कोरोना का कहर देश ही नहीं दुनिया को घेर चुका है. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनिओ गुटर्स ने कहा है  कि द्वितीय महायुद्ध के बाद यह सबसे बड़ी आपदा विश्व के सामने है पर चाहे द्वितीय विश्व युद्ध में मृतकों की संख्या कहीं  ज्यादा थी, वह युद्ध न पूरे विश्व  झेलना पड़ा था न हर घर उससे प्रभावित हुआ था. आज सारा विश्व   लौकडाउन  का शिकार हो चुका है. अब न शहर बचे हैं, न कस्बे और न ही गांव। कोरोना आज घरघर में घुस गया है, उस घर में भी जहाँ कोई बीमार नहीं है.

विश्व की 7 अरब की आबादी में अभी तक 9 लाख लोग बीमार हैं पर यह संक्रमण वाली बिमारी ऐसी है कि इसने  अपने से ज्यादा मारने वाले कैंसर, हार्टफेल को इसने हरा दिया है और हर घरवाली से लेकर हर राष्ट्रपति, डिक्टेटर, प्रधानमंत्री के माथे पर गहरी चिंता की लाईने डाल चुकी है. 2018  में कैंसर से 96  लाख लोग मरे थे यानी हर रोज 26000. दिल की बिमारियों से और भी ज्यादा मृत्यु हुईं पर फर्क यह है कि कैंसर या दिल की बीमारी या कोई और बीमारी दूसरे  से नहीं फैलती और मरने वाले के अपने शरीर के रोगों से मृत्यु  होती है जबकि कोरोनावायरस से होने वाली हर मृत्यु किसी और की देन है और मरने वाला जिम्मेदार नहीं है.

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इस बिमारी ने आज विश्व की  तिहाई जनता घरों में बंद है. इनमें औरतें और बच्चे भी हैं जिन्हें कई सप्ताह घर में बंद रखा जा रहा है. यह एक तरह से वैसी ही जेल है जैसी में कश्मीर की जनता 5 अगस्त 2019 से अब तक बंद रही है. अब जब थोड़ी ढील का समय आने लगा था कोरोना से डर कर बंद चालू रहा है. रूस, पाकिस्तान जैसे देश जो किसी भी कारण पूरा लौकडाउन नहीं कर रहे पछता सकते हैं. पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान जैसे देश ऐसे ही कोरोना से प्रभावित हो सकते हैं जैसे दिल्ली के तबलीगी जमात के लोग निजामुद्दीन इलाके में इस जानकारी के बावजूद जमा हुए और खुद को भी  और दूसरों को भी पकड़ा गए. इन 3000 तबलीगी भक्तों में से बहुत की मौत हो सकती है क्योंकि ये निजामुद्दीन की मस्जिद से निकल कर लॉकडाउन के कारण अपने देशों में न जा सके. इनमें विदेश से से आये थे इस बीमारी को अनजाने में एयरपोर्ट या अपने देश के बाजार से ले आए थे.

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