कोरोना विषाणु महामारी ने देश में राजनीति को कुछ इस तरह तेज कर दिया है कि देखते ही देखते राजनीति के महानायकों के मुखोटे उतरने लगे हैं . इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है देशभर में 40 दिनों से दबे कुचले असहाय मजदूर जब केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही स्पेशल ट्रेनों में अपने गंतव्य की तरफ रवाना किए जाने लगे तो उन्हें साफ-साफ कहा गया, आप अपनी अपनी टिकट कटा लो.
त्रासदी यह हो गई कि 40 दिनों तक बिना काम के कोरोना महामारी के इस समय काल मे तिल तिल कर किसी तरह जी रहे, अपना समय गुजारने वाले भीषड़ त्रासदी भोगने होने वाले गरीब मजदूरों के पास स्पेशल ट्रेनों में टिकट कटाने के लिए पैसे नहीं थे और वे ट्रेन पर सवार नहीं हो सके.
यह सारा घटनाक्रम बताता है कि कोरोना जैसे प्रलयंकारी महामारी के दरमियान भी देश की एक चुनी हुई सरकार किस तरह अपनी संवेदनशीलता खो सकती है. जब इस लेखक ने आज सुबह-सुबह एक मैसेज सोशल मीडिया में देखा की ट्रेन में प्रवासी मजदूरों के लिए टिकट आवश्यक है! तो उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि यह सोशल मीडिया का एक बनाया हुआ सफेद झूठ है.सच कहूं तो सोशल मीडिया में एक ट्रेन की टिकट देखने के बावजूद यह विश्वास नहीं हो पा रहा था कि भारत सरकार इतनी क्रूर हो सकती है कि कोरोना महामारी के समय स्पेशल चल रही ट्रेन में भी टिकट कटाने का नियम कठोरता के साथ पालन करवाया जा रहा है.
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इस महामारी के समय तो सफर के साथ भोजन आदि की संपूर्ण व्यवस्था सरकार को करनी ही चाहिए.क्योंकि लोकतंत्र का तात्पर्य ही है और कहा भी जाता है कि लोकतंत्र, जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए है. मगर भारत देश का लोकतंत्र इस परिभाषा से बाहर निकलता दिखाई दे रहा है और ऐसा लगता है कि भारत का लोकतंत्र, पैसों के लिए, पैसों के खातिर की परिभाषा में तब्दील हो चुका है.
सोनिया गांधी की प्रभावशाली एंट्री
आज स्पेशल ट्रेनों की तथा कथा जब मीडिया में तैरने लगी.इधर पहली बार अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोरोना के इन 40 दिनों के समय काल में एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए यह ऐलान कर दिया कि प्रवासी मजदूरों से जिस तरह स्पेशल ट्रेन की किराया वसूले जा रहे हैं उसको देखते हुए कांग्रेस पार्टी मजदूरों का किराया अदा करेगी. जैसे ही यह समाचार प्रसारित हुआ. सीधे-सीधे भारत सरकार और स्वयं को भारत सरकार का पर्याय मानने वाले नरेंद्र मोदी सकते में आ गए. और संपूर्ण देश में उनकी पद पिट गई. और यह पता चल गया कि नरेंद्र मोदी किस तरह देश की सरकार को चला रहे हैं. प्रति पखवाड़े एन केन प्रकारेण टेलीविजन पर आकर देश की जनता को बड़े-बड़े गुण सिखाने वाले नरेंद्र मोदी के मन की बात कुछ इस तरह संपूर्ण देश में उजागर हो गई कि यह सरकार मजदूरों गरीबों के प्रति किस तरह का सौतेला व्यवहार कर रही है. सरकार की क्या सोच है और कहां तक जाएगी. सरकार का अलोकतांत्रिक व्यवहार इस घटनाक्रम में उजागर हो गया कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
गरीब असहाय मजदूर 40 दिन तक कैसे, कहां भूखा प्यासा अपना समय बिताता रहा है और सरकार जब स्पेशल ट्रेन चलाती है तो पैसे लेने का नियम गाज बनकर उन पर गिर पड़ता है. और अगर यह कहा जाए कि सोनिया गांधी ने आज नरेंद्र मोदी को राजनीति की बिसात पर बुरी तरह झिंझोड़़ कर नीचे और नीचे गिरा दिया है तो यह कदापि कभी गलत नहीं होगा.
कोरोना “सत्ता ” को कर रहा है नग्न!
कोरोना महामारी के समयकाल में देश मे नेता, सता, पार्टियों को नग्न होते हुए हम देख रहे हैं. नेता और सरकारों की जो एक शर्म होती है वह मानो बिक चुकी है. यहीं पर आकर के दुष्यंत कुमार जैसे कवि जब सरकार को लताड़ते हैं तो वह कालजयी रचना बन बन जाती है.
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यहां अगर यह कहा जाए कि भारतीय संविधान की जो मनो भावना है सरकार उसके खिलाफ जाकर एक व्यापारी की तरह व्यवहार करने लगी है तो यह कदापि गलत नहीं होगा. एक तरफ मोदी जी चींख चींख कर कहते हैं कि देश की जनता के लिए केंद्र सरकार के पास राहत के पिटारे ही पिटारे हैं दूसरी तरफ इस भयंकर संक्रमण काल में प्रवासी मजदूरों के साथ ऐसा कठोर व्यवहार यह जगजाहिर करता है कि सरकार अपने रास्ते से भटक गई है. शायद यही कारण है कि देश का मीडिया जन भावनाओं को समझते हुए करवट बदलते हुए दिखा. सीधे-सीधे आज इस मामले में कांग्रेस को सामने रखकर सोनिया गांधी का चेहरा दिखाते हुए, नरेंद्र मोदी को बैकफुट पर लेकर आ गया. आज यह मामला एक तूफान बन चुका है. और देश की केंद्र सरकार के बाद राज्य सरकारें हिल रही है. इस भूकंप के चपेट में आए हुए नीतीश कुमार ने माहौल समझते ही तत्काल टिकट के साथ ₹500 देने की भी घोषणा कर दी है.
इधर जहां भाजपा की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने यह घोषणा कर दी है कि प्रवासी मजदूरों के ट्रेन का खर्चा हम अदा करेंगे वहीं राजस्थान, बिहार,छत्तीसगढ़ की सरकारों में भी आगे आकर खर्चा वहन करने की बात कही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह संवेदनशीलता जाहिर करते हुए स्वयं को एक तरह से भाजपा और मोदी से अलग करते हुए अपनी छवि बचाने का प्रयास किया है. इस तरह प्रवासी मजदूरों का यह मुद्दा संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था और पार्टियों के ताने-बाने को जग जाहिर करता शायद लोकतंत्र पर हंस रहा है.