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नोरा फतेही के इंस्टाग्राम पर 13 मिलियन फॉलोवर्स बढ़ें, कई आर्टिस्ट को छोड़ा पीछे

अभिनेत्री नोरा फतेही ने अपने पर्फोर्मंस से सभी के दिल में एक खास जगह बनायीं है. नोरा के डांस और परफॉर्मन्स के सभी कायल है . नोरा के फैंस सिर्फ़ भारत ही नहीं पूरे वर्ल्ड में है , उनके फैंस में बड़ो बूढ़ो से लेकर युवा और छोटे छोटे बच्चे भी है .

कुछ महीने पहले ही नोरा ने पेरिस के ओलंपिया में, पिंक फ़्लॉइड, द बीटल्स, जेनेट जैक्सन, मैडोना और टेलर स्विफ्ट के कॉन्सर्ट की जगह परफॉर्म किया है. यह नोरा का पहला म्यूजिक कॉन्सर्ट था और उन्होंने “दिलबर”, “साकी साकी”, “कमरिया” और “एक तो कम ज़िंदगानी” जैसे सॉन्ग्स को गाया भी था . यह एक हॉउसफुल शो था, जिसमें भारत, मध्य पूर्व और मोरक्को के दर्शक आये हुए  थे. तथा उनके नोरा ने अपने अल्बम से , अंग्रेजी सॉन्ग “पेपेटा” और “दिलबर” का अरबी संस्करण भी गाया था , नोरा का क्रेज़ इसी बात में समझ मे आता है कि नोरा ने फ्रेंच मांटेना जो की एक रैपर है उनको को इंस्टाग्राम पर फॉलोवर्स के मामले में पीछे छोड़ दिया है और वे आगे निकल आयी है . देखा जाए तो दोनों नोरा और फ्रेंच मांटेना मोरक्को से आते है लेकिन फ्रेंच मांटेना एक अमरीकन रैपर हिप हॉप आर्टिस्ट भी है और दोनों भी विश्वस्तरीय कलाकार है और दोनों भी अपनी अपनी कला में माहिर है . कॉम्प्टीशन हर जगह है वही इंस्टाग्राम पर भी देखा गया कि नोरा ने फ्रेंच मांटेना को पछाड़ते हुए 13 मिलियन फॉलोवर्स का पल्ला पर कर लिया है .

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अब नोरा मोर्रोकन सेलेब्रिटीज़ में नंबर एक पर है तो वही मांटेना नंबर 2 पर खिसक गए है .

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नोरा कहती है ” मेरा इंस्टा परिवार मजबूत हर रोज़ बढ़ रहा है , मुझे इस बात का गर्व है कि यह ओर्गानिक हो रहा है ! दुनिया में सबसे अधिक फॉलो किया जाने वाला मोरक्कन कलाकार होना यह एक बड़ी उपलब्धि है! मेरे सभी फ़ॉलोअर्स और मेरे वफादार प्रशंसक आधार के लिए धन्यवाद! वे मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और उनके निरंतर समर्थन के लिए में बहुत आभारी हु.

 

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This used to be my jam.. she speaking facts tho ?? #tiktok #quarantine

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नोरा ने हालही में टिक टॉक पर डेब्यू किया है और उन्होंने टिक टॉक पर भी बेहद कम समय मे 1 मिलियन फॉलोवर्स को पार किया है .

#coronavirus: फ्लू से बचोगे तो कोरोना से बचोगे

आजकल जहां भी देखो, लोग कोरोना की बात कर रहे हैं. यह एक नई बीमारी है, जिस का इलाज सिर्फ जानकारी है. इस बीमारी का नाम है कोविड 19. यह बीमारी एक महीने में 84 देशों में पहुंच चुकी है. दिसंबर के आखिरी महीने में यह चीन के वुहान शहर में देखी गई थी. अब यह बीमारी चीन के अलावा साउथ कोरिया, ईरान, इटली के अलावा जापान के डायमंड प्रिंसेस जहाज में कहर ढा चुकी है.

भारत में भी यह वायरस दस्तक दे चुका है. लेख लिखे जाने तक इस वायरस से संक्रमित होने के 29 मामले सामने आ चुके थे. कोरोना वायरस 84 देशों तक पहुंच चुका है जिस में 95,334 मामले सामने आए हैं. इस में मरने वालों की संख्या 3,285 व संक्रमित लोगों की संख्या 38,408 है.

व्यावहारिक तौर पर कोरोना वायरस सार्स की तरह काम करता है. इस के लक्षण 5 दिनों में नजर आने लगते हैं जिस के पश्चात 9 दिनों के भीतर संक्रमित व्यक्ति को निमोनिया होने और 14 दिनों में मृत्यु होने का खतरा होता है.कोराना वायरस के सभी मरीजों को बुखार होने के साथ 75 फीसदी को खांसी, 50 फीसदी को कमजोरी, 50 फीसदी को सांस न आने जैसी स्थिति से गुजरना पड़ रहा है.

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यह बीमारी है क्या

यह रेस्पिरेटरी सिक्रेशन है जिस का अर्थ है श्वसन तंत्र से फैलने वाली बीमारी जो शरीर में बुखार के साथ खांसी या ब्रेथलैसनैस यानी सांस में कमी करती है. जैसेजैसे इस बीमारी में बुखार के साथ खांसी या सांस फूलने लगती है वैसेवैसे यह एक आदमी से दूसरे आदमी में फैलती है.इस के फैलने के 2 तरीके हैं. पहला तरीका है ड्रौपलेट इन्फैक्शन जिस में अगर बीमारी से पीडि़त आदमी दूसरे आदमी के ऊपर 3 फुट के अंदर खांस देता है तो उस को यह बीमारी हो सकती है. दूसरा इस का कारण है बारबार हाथ को न धोना. अगर खांसी आने या छींकने के बाद यह वायरस किसी सरफेस पर रुक जाता है और हम उस को हाथ लगाते हैं तो यह वायरस हमारे हाथ में आ जाता है और अगर हम उन्हीं हाथों को अपने मुंह या आंखों पर हाथ लगाते हैं तो हमें यह बीमारी हो सकती है.

पहले यह बीमारी चमगादड़ और सांप जैसे वन्यजीवों से उभरी और फिर आदमी से आदमी में आई. अब यह कम्युनिटी में फैल रही है. इस का मतलब है कि कई देशों में यह बीमारी बिना किसी आदमी के संपर्क में आए भी हो रही है. इस बीमारी से 80 फीसदी लोग सिर्फ हलके बुखार और खांसी से पीडि़त होते हैं और उन की सांस नहीं फूलती.20 फीसदी लोगों की सांस फूलती है और उन को अस्पताल में जाने की जरूरत होती है. 2 फीसदी लोग निमोनिया से पीडि़त होते हैं और फिर उन की मृत्यु हो जाती है.

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एक नई चीज इस बीमारी में देखने में आई है कि यह बीमारी ज्यादातर बड़े या बुजुर्ग लोगों को होती है और 15 साल से कम उम्र के बच्चों में यह कम देखी गई है. मरने वालों में 80 फीसदी वे लोग हैं जो या तो वृद्ध हैं या उन के शरीर में कोई अंदरूनी बीमारी है.जापान में डायमंड प्रिंसैस जहाज में 23 फीसदी लोगों को यह बीमारी हो गई, जब उन को इकट्ठा रखा गया. यह बीमारी चिकन खाने से नहीं होती, चमगादड़ का सूप पीने से नहीं होती, लेकिन जंगली जानवरों के कच्चे मीट को हाथ लगाने से चीन जैसे देश में हो सकती है.
इस बीमारी में कोई एंटीबायोटिक काम नहीं करती. इस की कोई वैक्सीन नहीं है. किसी भी नई वैक्सीन को बनने में 18 महीने का समय लगता है. इसी बीमारी से मिलतीजुलती सार्स (एसएआरएस) यानी सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम की बीमारी जब आई थी तो वह सिर्फ 6 महीने रही थी, इसलिए उस की वैक्सीन नहीं बन पाई. अगर तब उस की वैक्सीन बनाई जाती तो शायद वह थोड़ीबहुत इस बीमारी में भी काम करती.

कोरोना से ऐसे बचें

अगर आप किसी ऐसी जगह पर जा रहे हैं जहां पर इस बीमारी से लोग पीडि़त हैं तो वहां पर सावधानियां बरतें. जो लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं उन्हें 3 लेयर वाला सर्जिकल मास्क पहनना चाहिए. ऐसे डाक्टर जो इन मरीजों का इलाज कर रहे हैं उन्हें एन95 मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए. अगर किसी आदमी को यह बीमारी हो जाती है तो वह 2 से 3 लोगों को यह बीमारी फैला सकता है. यह बीमारी तभी फैलती है जब आप का कम से कम 10 मिनट तक उस से संपर्क रहे. लेकिन, इस बीमारी से पीडि़त कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हम सुपर स्प्रेडर कहते हैं. ऐसा एक आदमी हजारों में यह बीमारी फैला सकता है. ऐसा लगता है कि चीन में यह बीमारी एक ही आदमी से फैली है. साउथ कोरिया में भी एक महिला ने यह बीमारी फैलाई. इसी तरह ईरान में भी एक सुपर स्प्रेडर रहा होगा जिस ने यह बीमारी फैलाई होगी.इस बीमारी से बचना है तो हमें फ्लू से बचना होगा क्योंकि इस बीमारी में और फ्लू की बीमारी के लक्षणों में कोई फर्क नहीं है.
अगर किसी को भी खांसीजुकाम के साथ बुखार है तो उसे समझ लेना चाहिए कि उस को यूलाइक इलनैस है. उसे दूसरे लोगों से 3 फुट की दूरी तक रहना चाहिए अगर उस ने मास्क नहीं पहन रखा. जहां पर भी वह खांसीजुकाम करता है उस जगह को साफ कर देना चाहिए.

सिंपल ब्लीचिंग पाउडर में यह वायरस एक मिनट में मर जाता है. अगर यह बीमारी फैल जाए तो
ऐसी जगह में नहीं जाना चाहिए जहां पर लोग इकट्ठे होते हैं. भारत में सार्स, मर्स,  इबोला तथा येलो फीवर नाम की बीमारियां कभी नहीं आईं. अब जब कोरोना देश में भी दस्तक दे चुका है तो हमें सतर्क रहना
जरूरी है.भारत, पाकिस्तान,  नेपाल और श्रीलंका में इस प्रकार की बीमारियां पहले कम देखी गई हैं. यह बीमारी सार्स से कम खतरनाक है, लेकिन ज्यादा तेजी से फैलने वाली है. जो बीमारी ज्यादा तेजी से फैलती है उस को रोकना मुश्किल होता है.

भ्रांतियों से बचें
एक बार अगर यह बीमारी आ जाए तो 7 दिन में यह बीमारी दोगुने लोगों को हो जाती है. लेकिन साउथ कोरिया में यह देखा गया कि यह बीमारी 2 दिन में 3 गुना लोगों को हो गई. भारत में बहुत सारे लोग अफगानिस्तान से मैडिकल चैकअप के लिए आते हैं और अगर वे 15 दिनों के बीच में ईरान गए हों तो वे इस बीमारी को भारत में ला सकते हैं.अभी तक देखा नहीं गया है कि यह बीमारी अगर गर्भावस्था में औरतों को हो जाए तो वह बीमारी उन के बच्चों में फैल सकती है या नहीं. कई सारे लोग इस बीमारी के बारे में भ्रांतियां फैला रहे हैं कि यह चीन की एक लैबोरैट्री से निकली है. यह बायोटेररिज्म हो सकती है. यह मांस खाने से होती है. यह अमेरिका और चीन की लड़ाई है. चीन में यह बीमारी लाखों में फैल चुकी है. चीन में हजारों लोगों को गोली मार दी गई जो कोरोनो वायरस से पीडि़त थे इत्यादि, सब झूठ है. यह सब भ्रम है और हमें इन से बचना चाहिए.

इस से पहले भी ऐसी महामारी पूरी दुनिया में आ चुकी है. सार्स, मर्स ऐसी 2 बीमारियां हैं जो पहले महामारी का रूप ले चुकी हैं और वे इसी वायरस की जाति से हैं. इस बीमारी को रोकने के लिए चीन ने एक ऐसा असंभव कार्य किया जो शायद कोई दूसरा देश न करता. चीन ने 5 करोड़ लोगों को नजरबंद कर दिया ताकि यह बीमारी देश के शेष हिस्सों में न जा पाए. अगर उस ने ऐसा न किया होता तो शायद चीन में अब तक यह बीमारी बड़ी महामारी का रूप ले चुकी होती. अभी तक डब्लूएचओ ने इसे महामारी घोषित नहीं किया है, हालांकि, कहा है कि सभी इस के लिए तैयार रहें.

लेखक सीएमएएओ, एचसीएफआई के अध्यक्ष और वरिष्ठ फिजीशियन व कार्डियोलौजिस्ट हैं. 

तोरण: भाग 3

झंडा चौक के पास आ कर बरात ठहर जाती है. बैंड पर इस समय ‘मेरा यार बना है दूल्हा…’ की धुन बज रही है. नीचे घेरे के बीच नाचते युवकों की लोलुप नजरें अनायास ही घरों के कोटरों से निकल कर बरात देखने निकली युवतियों पर आ गिरती हैं. एक युवक सलीम मास्टर के कान के पास जा कर कुछ अबूझा सा संकेत देता है. आननफानन ‘मेरा यार बना है दूल्हा…’ की धुन बीच में तोड़ दी जाती है और ‘सरकाय लो खटिया…’ पूरे धमाके के साथ बैंड पर थिरकने लगती है. गाने की सनसनाती लय पर घेरे के बीच खड़े युवकों का तथाकथित ब्रेक डांस शुरू हो जाता है. बेतरतीब लटकेझटके, हिचकोले खाते अंगप्रत्यंग. लगता है अभी सेठ को पैसा उछालने में देर है. गोबरा मुरगे की तरह गरदन ऊंची कर के सामने के पूरे नजारे का सिंहावलोकन करता है. लाइट ढोती औरतों के ब्लाउज पसीने से पारदर्शी हो उठे हैं. लगातार 2 घंटों से हाथ उठा कर लाइट के बक्सों को थामे रखने की पीड़ा उन के चेहरों पर छलकने लगी है. गोल घेरे के बीच जहां युवक उछलकूद मचाए हुए हैं, फनाफन कपड़े पहने एक बराती प्रकट होता है. शायद बींद का करीबी रिश्तेदार है. 10-10 रुपए के 5 नोट जेब से निकालता है और नाचते युवकों के सिर पर से उतारते हुए सलीम मास्टर को थमा देता है. क्षणांश में अन्य रिश्तेदारों में होड़ मच जाती है और वे भी एकएक कर के घेरे में आआ कर 10 व 20 रुपए के दसियों नोट हवा में लहरालहरा कर सलीम मास्टर को थमाने लगते हैं. इस तरह सलीम मास्टर पर नोट बरसते देख कर सुलेमान चचा का कलेजा मुंह को आने लगता है. अपने बेसुरे ट्रम्पेट को देखते उन की आंखें क्रोध से सुलगने लगती हैं. काश, कुछ रकम बतौर इनाम उन्हें भी मिल जाती.

तभी गोबरा की नजर उठती है, बींद का पिता थैली में हाथ डाल रहा है. वह चौकन्ना हो जाता है. भीतर गया हाथ मुट्ठी बन कर बाहर निकलता है और बींद के ऊपर झटके से खुल जाता है. गोबरा बिजली की फुरती से जमीन पर लोट कर हाथपांव चलाने लगता है. थैली में हाथ के घुसने और बाहर आ कर खुल जाने की यह क्रिया कई बार होती है. अचानक 5 रुपए का एक सिक्का घोड़ी की पिछली टांग के एकदम करीब आ कर गिरता है. गोबरा की आंखों में एकमुश्त जुगनुओं की चमक भर जाती है. सिक्के पर नजर गड़ाए वह कलाबाजी खाते हुए उछाल भरता है. सिक्का बेशक कब्जे में आ जाता है, पर उस के घुटने व कोहनी बुरी तरह छिल जाते हैं. लहरा कर तेजी से गिरने से असंतुलित बदन रोकतेरोकते भी घोड़ी की पिछली टांग से टकरा ही जाता है. कैंट की कद्दावर घोड़ी को भला यह अपमान कैसे बरदाश्त हो? एक ‘गधा’ तो पहले से ही उस पर लदा हुआ है, दूसरे ने टांग पर धक्का मार दिया. भड़क कर हिनहिनाती हुई पिछली टांग से वह जो दुलत्ती झाड़ती है तो सीधी गोबरा की आंख के पास लगती है. एक बारगी बदन सुन्न हो जाता है पीड़ा से. धमाचौकड़ी और होहल्ले के बीच किसी का ध्यान ही नहीं जाता उस की ओर. पूरी बरात ऊपर से गुजर जाती है और वह प्रसादजी के ‘विराम चिह्न’ की मानिंद पड़ा रहता. लेकिन थोड़ी देर में ही फिजिक्स की तरह स्वयं को संयत करता खड़ा हो जाता है वह. दर्द की लहर से बाईं आंख खुल नहीं रही. टटोल कर देखता है, आंख के पास गूमड़ उभर आया है, जिस की वजह से आंख सूज कर सिकुड़ जाती है. मुंह से भद्दी गाली बकता तेजी से वह बरात के पीछे लपक पड़ता है.

इसी बीच, बरात मंदिर चौक के पास पहुंच जाती है. गोबरा भीड़ में जगह बनाता पाखी के करीब आ जाता है. पाखी उस के गूमड़ को देख कर चिहुंक ही तो पड़ती है, ‘‘उफ, तू पईसा लूटने का काम काहे करता है रे? बस स्टैंड पर अच्छाखासा कमा तो रहा है.’ गोबरा हंस पड़ता है, ‘‘अरे, देश के नेता और अफसर लोग सरकारी खजाने से करोड़ोंकरोड़ लूट रहे हैं कि नहीं, अयं? हम फेंका हुआ 10-20 टका लूट लिए तो क्या हो गया?’’ पाखी सकपका जाती है, ‘‘ऊ बात तय है. हमरा मतलब, पईसा लूटने में केतना जोखिम है, सो देखते, एक सूत भी ऊपर लग जाता तो?’’ गोबरा छोटी आंख को और छोटी कर के कनखी मारता मुसकरा देता है, ‘‘जोखिम तो हर काम में है. तेरे लिए हम हर जोखिम उठा सकते हैं न.’’ बैंजो और क्लेरिनेट पर इस समय ‘चोली के पीछे…’ की धुन थिरक रही है और इस के मारक स्वर के सम्मोहन में बंधा हर छोटाबड़ा बराती अपनेअपने जेहन के खंडहरी एकांत में चोलियों की चीड़फाड़ में लग पड़ता है. लगातार श्रम की वजह से पाखी के चेहरे पर स्वेद कण उभर आए हैं. दोनों हाथ ऊपर उठे हैं, लाइट का बक्सा थामे हुए. दायां हाथ उतार कर पसीना पोंछना ही चाहती है कि बक्सा असंतुलित हो कर डगमगाने लगता है. पाखी झटके से हाथ ऊपर उठा लेती है. इस कवायद में बगल के पास ब्लाउज उधड़ जाता है. पाखी अकबका जाती है. चेहरा लज्जा से लाल हो उठता है. सांसें तेजतेज चलने लगती हैं.

‘‘लो यार,’’ उस के पीछे चल रहे युवा बरातियों की नजरें इस हादसे को कैच की तरह लपक लेती हैं, ‘‘चोली के पीछे के राज को दिखाने का इंतजाम भी कर रखा है गोयनका साहब ने. वाह…’’ इस टिप्पणी पर गोबरा के भीतर बैठा रणबीर कपूर पिनक कर खड़ा हो जाता है, ‘अभी इन ससुरों को हवा में उछाल कर ‘किरिस’ (कृष) वाला ऐक्शन दिखाते हैं, हूंह.’ पर पाखी आंखों के संकेत से उसे संयत रहने का अनुरोध करती है. वह सोचती है, ‘दू साल पहले जब मालती मैडम के यहां झाड़ूपोंछा का काम करती थी, यह ब्लाउज मिला था बख्शिश में. घिसा हुआ तो तभी था. कई बार सोचा कि नया ब्लाउज ले लेगी हाट से. पर ऐनवक्त पर कोई न कोई अड़चन आ खड़ी होती.’ युवकों की उत्तेजना आंच पर चढ़े दूध की तरह उफनती चली जाती है. एक के बाद दूसरा, अश्लील फिकरे गुगली से उछलते रहते हैं. बरात जगहजगह रुकती, नाचती, जश्न मनाती हुई नगर परिभ्रमण करने के बाद आखिरकार गोयनकाजी की कोठी पर आ पहुंचती है. सारी औरतें पंडाल के सुदूर बाएं कोने के नेपथ्य में अपनेअपने लाइटबौक्स जमा करा देती हैं. बैंड का मैनेजर सभी को हाजिरी थमा देता है. पाखी पैसे ले कर गेट की ओर बढ़ने को उद्यत होती ही है कि अचानक वे ही युवक जो सारी राह पाखी पर फिकरे कसते आए थे, वहां जिन्न की तरह प्रकट हो जाते हैं, ‘वाह फ्रैंड्स, लुक, दैट चोली गर्ल कमिंग.’ नशे के वरक में लिपटी उन की लरजती आवाज.

 

‘‘गर्ल?’’ सम्मिलित लिजलिजा ठहाका, ‘‘अरे विमेन बोलो यार, अ फुल फ्लैशी विमेन…’’ फिर एक ‘हवाई किस’ पाखी की ओर गुगली की तरह उछल आता है. पाखी के भीतर जैसे एक भट्ठी सी सुलग उठती है. आंखें हिंसक क्रोध से रक्ताभ हो जाती हैं. सधे कदमों से चल कर वह युवकों तक आती है, ‘‘तुम दिकू लोगों में यही तो खासीयत है. आते हो एगो धोती और एगो लोटा ले कर. पर देखतेदेखते खदान वाला और कोठी वाला बन जाते हो. अच्छा तनी बोलो तो. आज का जो एतना बड़ा जलसा कामयाब हुआ, इस कामयाबी का असली हीरो कौन है? तुमरा वह भड़ुवा दूल्हा? नहीं…नहीं? इस कामयाबी का असली हीरो हैं सांसों की मशक्कत करते बैंड पार्टी के मुलाजिम, 10-10 किलो वाला लाइट बक्सा ढोने वाली हम औरतें, सारी राह दूल्हा का चौकसी रखने वाला घोड़ी का बूढ़ा साईस, पैसा लूटने वाले ई लौंडे, बरातियों की खातिरदारी में लगे गरीब बैरे, जोकर शक्तिमान का मेकअप सजाए हमारी बिरादरी के मासूम कलाकार, हुंह. अगर ये हीरो न होते तो…तो साहेब, कैसा जश्न और कैसा जलसा? सबकुछ कफन की तरह सादा और बेनूर हो जाता. आप सेठ लोग सिरिफ दौलत खा सकते हैं सिरिफ दौलत ही बाहर कर सकते हैं. ये शोरशराबा और ये खुशियाली तो, विश्वास करें, इन्हीं हीरो लोगों की वजह से संभव हो सकी है.’’

पाखी की सांसें उत्तेजना से फूल जाती हैं. युवक ऐसे अपमान से तिलमिला उठते हैं, ‘‘दो कौड़ी की लेबर, जबान चलाती है. आउट. वी से, गैटआउट.’’ इस के पहले कि बात बिगड़ती, कुछ बुजुर्ग बराती बीचबचाव कर के मामला शांत करवा देते हैं. पाखी संयत कदमों से गेट की ओर बढ़ने लगती है कि अचानक भीतर से अजीब सी अफरातफरी और भयाकुल कोलाहल के छोटेछोटे टुकड़े रुई के फाहों की शक्ल में उड़उड़ कर गेट के आकाश तक चले आते हैं. जश्न का सारा कोलाहल थम गया है. पाखी के पांव भी थम जाते हैं. चौकन्नी निगाहें मुड़ कर स्थिति का जायजा लेना चाहती हैं. तभी पता चलता है, गोयनका साहब का ढाई वर्ष का दोहिता चिंटू काफी देर से लापता है. बेटीदामाद मुंबई से आए हैं. अपरिचित जगह, पूरे पंडाल में और कोठी के भीतर तलाश लिया गया. मामला संगीन हो उठा है. चिंटू की मां का रोरो कर बुरा हाल है. इस आकस्मिक हादसे की वजह से सारा उत्सव और सारा उत्साह तली जा चुकी साबुत मछली की तरह स्पंदनहीन हो गया है. सामने बने भव्य स्टेज पर वरवधू हाथों में माला लिए चुप खड़े हैं. आतिशबाजियों की रौनक और बैंड वालों की धमक भी हवा हो चुकती है.

पाखी मुंह बिचका देती है, उस की बला से. अब उसे न तो सेठ से ही कोई मतलब है, न उन के दोहिते से. ‘‘तेरा चेहरा इतना तमतमाया हुआ काहे है?’’ बाहर उस के इंतजार में खड़ा गोबरा बोलता है.

‘‘भीतर फिर वैसा ही गंदा बोल बोल रहा था ऊ लोग…’’ पाखी फनफनाती है.

‘‘तू न रोकती तो यहां बवाल पहले ही खड़ा कर देते हम, हुंह,’’ गोबरा भुने चने की तरह भड़क उठता है.

‘‘हम भी कम नहीं हैं,’’ पाखी अब संयत हो चुकती है, ‘‘ऐसा झाड़ पिलाए हैं कि वे जिनगी भर नहीं भूलेंगे.’’ पाखी के आंचल के छोर में गोबरा अपनी दोनों जेबों का सामान उलट देता है. 80 रुपए की रेजगारी, पानपराग के 2 पाउच और मुट्ठीभर काजूकिशमिश के दाने. देख कर पाखी हंस पड़ती है, ‘‘और ई सब में मेरे ये सौ टका.’’ धीरेधीरे चलते दोनों पहले मंदिर चौक, फिर झंडा चौक और फिर सुदूर इंद्रपुरी चौक के पास आ जाते हैं. ‘‘कल सब से पहले एक नया ब्लाउज खरीदना, ठीक? इसी के वजह से न एतना ताना और फिकरा सुनना पड़ा है,’’ गोबरा आदेशात्मक लहजे में कहता है. लहजे में मिश्रित प्यार की अदृश्य तासीर से पाखी रोमांच से सराबोर हो उठती है.

इंद्रपुरी चौक पर काफी चहलपहल है. पास ही इंद्रपुरी टाकीज जो है. अंतिम शो छूटने में अभी देर है. बस्ती की ओर जाने वाली गली के मुहाने पर चायपान की गुमटी है, गुमटी के बाहर ग्राहकों के लिए बैंच पड़ी है. दोनों वहां बैठ जाते हैं, ‘‘साहूजी…दु गिलास चा इधर भी.’’ तभी पाखी की नजरें कोने वाली बैंच की छोर पर गुमसुम बैठे एक बच्चे पर जाती हैं. गोरा, गदबदा बच्चा. तीखे नाकनक्श, आधुनिक फैशन के वस्त्र, लगातार रोते रहने से सूजीसूजी ललछौंह आंखें. पाखी का दिमाग ठनक जाता है. इस तरह के चेहरेमोहरे वाला बच्चा इस बस्ती का तो हो ही नहीं सकता.

‘‘बाबू, का नाम है आप का?’’ पाखी झट से बच्चे के पास आ जाती है. बच्चा सहमी आंखों से पाखी को निहारने लगता है. पाखी फिर पुचकारती है तो किसी तरह कंठ से फंसीफंसी किंकियाहट बाहर आती है, ‘‘चिंटू.’’

‘चिंटू?’ पंडाल से निकल रही थी तो यही नाम हवा में उड़ते हुए कान की खोह में उतरा था. पाखी चिंटू को गोद में उठा लेती है, ‘‘बाबू, कहां रहते हो आप?’’ औरत की गोद तो गोद ही होती है. चाहे कोई भी औरत हो. गोद की कैसी जाति और कैसा मजहब. गोद की वात्सल्यमयी ऊष्मा पा कर चिंटू के पस्त चेहरे पर आश्वस्ति की पुखराजी चमक खिल आती है.

‘‘सू…कर के प्लेन से आए हैं हम,’’ चिंटू नन्ही बांह हवा में लहरा कर उड़ते प्लेन की आकृति बनाने की चेष्टा करता है. अब शक की तनिक भी गुंजाइश नहीं. बेशक, यह वही बच्चा है जिस की तलाश वहां शादी वाले घर में हो रही है और जिस के न मिल पाने से सारा जलसा और जश्न थम सा गया है. पाखी चिंटू की पूरी रामकहानी गोबरा को बताती है.

‘‘ऊ सेठ लोग तेरे साथ इतना गंदा सुलूक किया…’’ गोबरा खीज उठता है, ‘‘फिर भी उन लोगों से हमदर्दी?’’

‘‘नहीं,’’ पाखी मासूमियत परंतु दृढ़ता से जवाब देती है, ‘‘हमदर्दी उन लोगों से नहीं, हमदर्दी इस मासूम बच्चे से है. गोबरा रे…औरत कोई भी हो, उस के लिए बच्चा तो बस बच्चा ही होता है. बच्चा का कैसा तो जात और कैसा तो मजहब?’’ गोबरा निरुत्तर हो जाता है, ‘‘तुम औरतों के दिल को तो कोई भी नहीं बूझ सकता. हमारा गोड़हाथ बहुते पिरा रहा है. पैदल चलना अब मुश्किल है,’’ गोबरा के बंद होंठों से छन कर हलका परिहास बाहर रिस आता है.

‘‘तो रिकशा कर लेंगे रे, मोरे राजा…’’ पाखी भी ठुनक पड़ती है.

‘‘यानी कि 20 टका का फुजूल का चूना. यानी कि ऊ कहावत है न, ‘फ्री में हाथ जलाना’…’’ गोबरा खीखी कर के खिलखिला पड़ता है. दोनों चिंटू को ले कर रिकशा पकड़ते हैं और रिकशा तेज गति से गोयनका साहब की कोठी की ओर दौड़ने लगता है. करीब 15 मिनट की बेचैन यात्रा. कोठी का माहौल अब पहले से भी ज्यादा गमगीन हो गया है. विवाह की सारी कार्यवाहियां स्थगित हैं. सारे लोगों के चित्त अशांत हैं. स्टेज पर वरवधू का वरमाला वाला कार्यक्रम भी रुका हुआ है. सिर्फ आतुर चहलकदमियों और चिंतातुर कानाफूसियों के टुकड़े कबूतर के नुचे पंखों की मानिंद पंडाल के आकाश में छितराए उड़ रहे हैं.पंडाल के गेट के पास अफरातफरी मची है, जैसे ही रिकशा दृष्टिक्षेत्र में आता है, सब से पहले चिंटू के पिता और गोयनका साहब की नजरें उस पर जाती हैं. दोनों बदहवास से उस ओर दौड़ पड़ते हैं. चिंटू को देखते ही दोनों की बेजान देह में नई जान भर आती है.

‘‘चिंटू, मेरे बेटे…’’ पाखी की गोद से चिंटू को झपट कर उस का पिता पागलों की तरह चूमने लगता है. पाखी चिंटू के पिता को देखती है तो हड़क जाती है, ‘अरे, यह तो वही मरदूद है जो अश्लील फिकरे कसने में सब से आगे था.’ पाखी से नजरें मिलते ही युवक का चेहरा भी सफेद पड़ जाता है. उस के जेहन में कुछ कोलाज चक्रवात की तरह घुमेरी घोलने लगते हैं…हवा में हाथ फटकारते हुए पाखी ललकार रही है- ‘आज के इस जलसे का असली हीरो कौन है? कौन? ये दूल्हा? गोयनका साहब की दौलत? नहीं. असली हीरो हैं ये बैंड वाले, ये लाइट वाले, पैसा लूटने वाले, साईस, बैरे, जोकर, शक्तिमान बने कलाकार…’ पाखी गोबरा की बांह थाम कर लौटने के लिए मुड़ जाती है. युवक हतप्रभ सा फटीफटी आंखों से उन्हें जाते हुए देखता रहता है. पर जेहन में अभिजात्य और संपन्नता का घमंड इतना सघन है कि चाह कर भी वह उन्हें रोक कर आभार के दो शब्द भी नहीं कह पाता.

 

ग्रीन टी फायदे और नुकसान

सब से पहले ग्रीन टी का चलन चीन में हुआ था. कमीलिया सीनेसिस नाम की पत्तियों से इसे बनाया जाता है. यह चाय कई तरह से सेहत के लिए फायदेमंद है. आज के जमाने में यह पूरे संसार में पी जाती है. मोटे लोग चर्बी को घटाने और छरहरा दिखने के लिए इसे पीते हैं. कई खाने की चीजों जैसे पूरक भोजन, पीने की चीजों, सेहत के लिए फायदेमंद चीजों और कास्मेटिक सामान वगैरह में कच्चे माल के रूप में इसे इस्तेमाल किया जाता है. इस के पत्तों का रस निकाल कर एक दवा की तरह इस का इस्तेमाल किया जाता है.

ग्रीन टी किस तरह काम करती है

ग्रीन टी की पत्ती, कली और तने के हिस्से को इस्तेमाल में लाया जाता है. इस की ताजी पत्तियों को भाप से ऊंचे तापमान पर रख कर तैयार किया जाता है. इस विधि के दौरान इस में पाई जाने वाले तत्त्व जैसे पालीफिनाल आदि जो सेहत के लिए फायदेमंद हैं, खत्म नहीं होते हैं. इस के इस्तेमाल से इनसान का दिमाग और बीमारियों से लड़ने की ताकत भी बनी रहती है और शरीर भी फुर्तीला बना रहता है.  यह एक ऐसी चीज है जो आसानी से बाजारों में मिल जाती है. हमारे देश में भी मोटापे को कम करने के लिए इस का इस्तेमाल काफी किया जा रहा है. इस की पीने की मात्रा, इस में पाए जाने वाली फायदेमंद चीजों और इस से शरीर को होने वाले नुकसान के बारे में जानना बहुत जरूरी है. यादा मात्रा में ग्रीन टी का इस्तेमाल कई लोगों के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है. इसलिए डाक्टर की सलाह के बिना ग्रीन टी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

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ग्रीन टी में मौजूद जरूरी तत्त्व

ग्रीन टी के फायदे और नुकसान को जानने के लिए यह जरूरी है कि इस में मौजूद चीजों के बारे में भी जाना जाए. कई बार जहां एक ओर यह हमारे शरीर के लिए फायदेमंद साबित होती है, वहीं दूसरी ओर इस से शरीर को नुकसान भी हो सकता है. इसलिए इस में मौजूद चीजों के लिए चौकसी रखना जरूरी है. ग्रीन टी में कैफीन, पालीफिनाल, थियोब्रोसाइस, कैराटिन, टैनिन, जरूरी वसा, थिपोफाइलाइन, वैक्स, सैपोनिन, मालिब्डिनम, विटामिन सी, ए, बी1, बी2, के, मिनरल, फ्लूराइड, मैग्नीशियम, कैल्शियम, कापर, निकिल व जिंक वगैरह तत्त्व पाए जाते हैं. ये तत्त्व फायदेमंद या नुकसानदाक हो सकते हैं, इसलिए ग्रीन टी का इस्तेमाल अपने शरीर को ध्यान में रख कर ही करना चाहिए.

सेहत के लिए फायदेमंद

वैसे तो ग्रीन टी का नाम आते ही हमारे दिमाग में फिटनेस का खयाल आता है और रोजाना ग्रीन टी पीने वालों को कई तरह की बीमारियों से छुटकारा भी मिलता है. लिहाजा इस के फायदे इस तरह से हैं :

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* ग्रीन टी में विटामिन ई, बी और सी ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं. ये एंटीआक्सीडेंट का काम करते हैं, जो कि हमें पुरानी बीमारियों से लड़ने की ताकत देते हैं.

* ग्रीन टी पीने से कैंसर का खतरा 25 फीसदी तक कम हो जाता है.

* इसे पीने से मधुमेह रोगी के खून में चीनी की मात्रा कम हो जाती है.

* ग्रीन टी से शरीर का नुकसानदायक कोलेस्ट्राल कम होता है और फायदेमंद कोलेस्ट्राल की मात्रा सही बनी रहती है.

* ग्रीन टी में थेनाइन होता है जिस से अमीनो एसिड बनता है. यह शरीर को तरोताजा बनाए रखता है और दिमागी शांति के साथसाथ थकावट व तनाव को भी कम करने में मदद करता है.

* ग्रीन टी में उम्र को कम करने वाली चीजें होती हैं, जो चेहरे की झुर्रियों को कम करती हैं, जिस से चेहरे की चमक तरोताजा बनी रहती है.

* खाने के बाद 1 कप ग्रीन टी पीने से खाना आसानी से पच जाता है, जिस के कारण व्यक्ति का वजन कम हो जाता है.

* यह जोड़ों की अकड़न के खतरे को भी कम करती है.

गलत प्रभाव

वैसे तो ग्रीन टी बहुत फायदेमंद होती है, परंतु इस में मौजूद कैफीन की मात्रा सदैव संदेह में डालती है, लिहाजा इस के कुछ नुकसान भी हो सकते हैं, जो इस तरह से हैं :

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* नींद में कमी होना.

* अधिक पीने से लिवर व किडनी में परेशानी हो सकती है.

* गर्भवती महिलाओं के लिए यह बहुत नुकसानदायक होती है.

* इस के पीने से बच्चों के वजन में कमी आती है.

* इस के सेवन से भू्रण की मौत भी हो सकती है व गर्भधारण में परेशानी होती है.

* इस में मौजूद कैफीन ब्लड प्रेशर को बढ़ा देती है.

* इसे खाली पेट लेने से गैस बनती है.

सावधानी व चेतावनी

ग्रीन टी को जब कम मात्रा में लिया जाता है, तो यह ज्यादातर लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाती है. कुछ लोगों में यह गैस और कब्ज को बढ़ावा देती है. इस के रस का ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करना जिगर की समस्याओं को बढ़ावा देता है.

इस प्रकार ग्रीन टी की खुराक के बारे में काफी भिन्नता पाई जाती है. लेकिन आमतौर पर यह भिन्नता 1 से 10 कप के बीच पाई गई है. रोज इस की मात्रा 3 से 4 कप के बीच लेना काफी फायदेमंद होता है.

* सिरदर्द व दिमागी शांति के लिए प्रतिदिन 3 कप ग्रीन टी पीनी चाहिए.

* सोच में सुधार लाने के लिए तकरीबन 1 कप ग्रीन टी का इस्तेमाल ठीक रहता है.

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* कोलेस्ट्राल की मात्रा को कम करने के लिए रोज 10 कप या उस से ज्यादा ग्रीन टी लेना लाभदायक रहता है.

* पार्किसंस बीमारी को रोकने के लिए रोजाना 5 से 33 कप ग्रीन टी पीना ठीक रहता है.

* महिलाओं के लिए 1 से 4 कप ग्रीन टी रोज लेना फायदेमंद होता है.

* गर्भवती औरतों को रोज 1 से 2 कप ग्रीन टी पीनी चाहिए.

लिहाजा यह कहा जा सकता है कि सेहत के प्रति जागरूक लोग ग्रीन टी जैसे पेय पदार्थ की मदद लेते हैं, जोकि उन के शरीर को कई बीमारियों से बचाती है.

‘‘सब्जैक्ट को रट कर नहीं समझ कर तैयार करें’’- इरा सिंघल

लेखक- श्रीनाथ दीक्षित

लगन और जीतोड़ मेहनत के दम पर जीवन के लक्ष्य को हासिल कर अपने परिवार का नाम रौशन किया है दिल्ली की रहने वाली इरा सिंघल ने. इरा वर्ष 2015 के यूपीएससी एग्जाम में टौपर का खिताब अपने नाम कर वर्तमान में नौर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कौर्पोरेशन के केशवपुरम जोन की डिप्टी कमिश्नर के पद पर सेवारत हैं.

पेश हैं, इरा सिंघल से खास बातचीत के अंश :

सवाल: आप ने इस एग्जाम को कितने अटैंप्ट्स में क्लियर किया?
जवाब: यों तो मैं इस पोस्ट के लिए 3 एग्जाम्स क्वालिफाई कर चुकी थी और सिर्फ इसी पोस्ट के लिए नहीं, बल्कि मैं ने आईआरएस जैसी और भी पोस्ट्स के एग्जाम्स एक ही अटैंप्ट में क्वालिफाई किए हुए हैं, पर लास्ट राडंट में आ कर मेरी शारीरिक विक्षमता को देखते हुए मुझे फिजिकल फिटनैस राउंड्स में डिसक्वालिफाई कर दिया जाता रहा.

सवाल:इतनी बड़ी सफलता पर थोड़ी रोशनी डालें?
जवाब:मैं ने मशहूर चौकलेट ब्रैंड कैडबरी डेरी मिल्क में एक ब्रैंड एग्जीक्यूटिव के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत की थी. लेकिन, कजिन भाई की प्रेरणा से मैं ने अपनी जौब छोड़ कर आईएएस की तैयारी शुरू कर दी.वैसे तो मैं इस पोस्ट के लिए पिछले 3 एग्जाम्स में क्वालिफाई कर चुकी थी, लेकिन हर बार फिजिकल फिटनैस राउंड्स में डिसक्वालिफाई होने के बाद मुझे कई बार डिप्रैशन भी हुआ और मैं ने इस सपने को छोड़ने का भी मन बना कर दोबारा कैडबरी डेरी मिल्क में अपनी जौब जौइन करने की कोशिश की. लेकिन अपने कत व लगन से एग्जाम्स में अपियर होती रही.जिन भाई की निरंतर प्रेरणा से मैं ने अपने इस सपने को पूरा करने के लिए तैयारी जारी रखी और उसी मेहन

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सवाल:सुनने में आया है कि आप के कारण अब इस हैंडीकैप्ड कैटेगरी के और भी स्टूडैंट्स को फायदा होगा?
जवाब:जी, यह बात एकदम सही है. अपने लगातार प्रयास और एकाग्रता से मैं ने कोर्ट में फाइल की अपनी पिटिशन पर सफलता पा ली है. अब इस कैटेगरी में आने वाले स्टूडैंट्स को अपनी क्षमता को साबित कर एक सफल एडमिनिस्ट्रेटर बनने का मौका मिलेगा.

सवाल:आने वाली पीढ़ी के लिए यह फैसला किस हद तक सफलता के द्वार खोलेगा?
जवाब:माननीय कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को मैं दिल से सलाम करती हूं. इस से न केवल इस कैटेगरी के स्टूडैंट्स को जौब मिलेगी, बल्कि अपने खोए हुए कौन्फिडैंस को दोबारा पा कर जीवन में आगे बढ़ देश की सेवा करने का मौका भी मिलेगा.

सवाल:इस एग्जाम की तैयारी के लिए आप क्या शैड्यूल फौलो करती थीं?
जवाब:इस एग्जाम की प्रिपरेशंस के लिए मैं ने कभी भी अपने दिमाग पर प्रैशर नहीं बनाया. बल्कि, बहुत ही आराम से खेलतेकूदते और खूब सारी मस्ती करते हुए मैं ने अपने पूरे सिलेबस को अच्छे से सोचसमझ कर याद किया.

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सवाल:आईएएस की प्रिपरेशंस के दौरान आप अपना मूड रिफ्रैश करने के लिए क्या करती थीं?
जवाब:वे हंसती हुई कहती हैं, सच बताऊं तो पढ़ाई के मामले में मैं महा आलसी थी. अगर इस सवाल को आप यों पूछें कि मैं पढ़ने के लिए मन कैसे बनाती थी, तो शायद यह सवाल एकदम करैक्ट रहेगा.वैसे जहां तक बात है मूड रिफ्रैश करने की, तो मैं कोई भी गेम या स्पोर्ट्स खेल कर दोबारा पढ़ाई करने के लिए अपना मूड बना लेती थी.

सवाल:एक आईएएस औफिसर के अलावा इरा सिंघल क्या हैं?
जवाब:इरा सिंघल एक बहुत ही नटखट और फनलविंग लड़की है जो अपने जीवन में हरदम कुछ नया एक्सपैरिमैंट कर के देखना चाहती है. लेकिन हां, अब आईएएस औफिसर बनने के बाद मेरे कंधों पर देश की जिम्मेदारी आ गई है और मैं उसे पूरी तन्मयता व प्रतिबद्धता के साथ निभाऊंगी.

सवाल:नौर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कौर्पोरेशन में डिप्टी कमिश्नर के पद का कार्यभार संभालते हुए आप को कैसा महसूस हुआ?

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जवाब:यह पोस्ट मेरे लिए बहुत ही अच्छी और बेहद इंपोर्टैंट है. वहीं, अपनी कमिश्नर, वर्षा जोशी मैडम के साथ काम करने का मजा ही कुछ और है. बड़ी से बड़ी परेशानियों को बेहद आराम से सुलझाने की उन की कला हमें जीवन में बिना डरे निरंतर अपनी सफलता की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है.

सवाल:आईएएस की तैयारी करने वाले स्टूडैंट्स को प्रिपरेशंस के लिए क्या टिप्स देना चाहेंगी?
जवाब:मैं सभी आईएएस ऐस्पायरैंट्स को यही टिप्स देना चाहूंगी कि सब से पहले तो आप अपना एक प्रौपर टाइमटेबल बनाएं और किसी भी सब्जैक्ट को रट कर याद करने की न सोचें, बल्कि, उसे ठीक तरह से समझ कर तैयारी करें.

(डिप्टी कमिश्नर, नौर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कौर्पोरेशन) 

तोरण: भाग 2

मास्टर के संकेत पर सुलेमान बेंजो पर ‘तू चीज बड़ी है मस्त…’ की धुन छेड़ देते हैं. मास्टर की उंगलियां क्लेरिनेट पर थिरकने लगती हैं. धुन की लय पर बरातियों के पावों में अदृश्य थिरकन शुरू हो जाती है. कुछ उत्साही युवक लोगों को ठेलठाल कर गोलवृत्त बना लेते हैं और वृत्त के भीतर गाने की धुन पर डांस शुरू कर देते हैं. उन के बदन का हर अंग कमर, बांह, कूल्हे, टांगें वगैरा बेतरतीब झटकों से हवा में मटकने लगते हैं. गोबरा हंस पड़ता है, बुदबुदाने लगता है, ‘ले हलुवा, ई भी कोई डांस है. इस से अच्छा डांस तो हम कर सकता है. डांस सीखने के लिए ही तो परभूदेवा का फिलिम वह 15 बार देखा था. पर मुसीबत है कि डांस करें कहां? घेरे के भीतर घुसना मुमकिन नहीं. शक्लसूरत और कपड़ालत्ता है ही ऐसा कि दूर से ही चीह्न लिया जाएगा.’ पर उस का उत्साही मन नहीं मानता. होटल की दाईं ओर पतली गली है, अंधेरी और सुनसान. अधिक आवाजाही नहीं है उधर. ‘तू चीज बड़ी है मस्तमस्त’ की धुन हलकी हो कर मंडरा रही है उस जगह. गोबरा वहां आ जाता है और पूरी तन्मयता के संग धुन पर बदन थिरकाने लगता है. आत्ममुग्ध, ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना…’ जैसा ही उन्माद. नीम अंधेरे में नाचता हुआ वह ऐसा लग रहा था जैसे कोई पागल हवा में हाथपांव मार रहा हो. तभी गाना खत्म हो गया. बैंड की चीख एक झटके के साथ थम जाती है. चेहरे पर संतुष्टि की आभा लिए इठलाता हुआ गोबरा फिर पाखी के पास आ जाता है. पाखी उस के नाच के प्रति उन्माद को खूब समझ रही है. मुसकरा कर उस को प्रशंसात्मक बधाई देती है. थोड़ी देर में ही मुख्यद्वार पर दोस्तों से घिरा बींद यानी दूल्हा प्रकट होता है. बरातियों समेत सभी लोगों की नजरें उत्सुकता से बींद की ओर उठ जाती हैं. जरी की कामदार शेरवानी और रेशमी चूड़ीदार, माथे पर कलगी लगा साफा, कमर में लाल रेशम की कमरबंद, गले में मोतियों की कंठमाला, पीछे जरी की नक्काशी वाला बड़ा सा छत्र उठाए हुए है सांवर नाई. एक पल के लिए गोबरा की आंखें चुंधिया गईं, ई कौन है बाप, दूल्हा है…या रणबीर कपूर…या फिर श्रीमान गोबरा मुंडा. एकदूसरे को अतिक्रमित करते 3 साए गोबरा के जेहन में गड्डमड्ड होने लगते हैं.

इधर, पाखी की हसरतभरी नजरें भी बींद की ओर उठ जाती हैं. आह, प्रकृति ने कैसा लाललाल भराभरा चेहरा दिया सेठ लोगों को. दिमाग में एक चुहल कौंधती है. अगर इस दूल्हे के संयोग से उसे बच्चा हो जाए तो कैसा होगा उस का रूपरंग और नाकनक्श? उन के आदिवासियों में तो अधिकांश लोग सांवले होते हैं. उपलों जैसे होंठ और पकौड़े जैसी नाक वाले. गोबरा भी वैसा ही है. मन ही मन हंस पड़ती है वह. ट्रम्पेट थामे सुलेमान चचा बींद को देखते हैं तो एक झपाके से खुली आंखों में कुछ कोलाज कौंधने लगते हैं. रजिया 30वें वर्ष को छूने वाली है. काफी भागदौड़ के बावजूद कोई ढंग का लड़का नहीं मिल सका अब तक. एकाध जगह बात आगे बढ़ी तो मामला दहेज की ऊटपटांग मांग पर आ कर खारिज हो गया. चचा की तबीयत भी ठीक नहीं रहती इन दिनों. ट्रम्पेट में थोड़ी देर हवा फूंकते ही सांस उखड़ने लगती है. सलीम साहब कई बार उन्हें रिटायर कर देने की चेतावनी दे चुके हैं. चचा ने उन से वादा कर रखा है कि किसी तरह रजिया के हाथ पीले कर दें, फिर वे स्वयं बैंड से छुट्टी ले लेंगे. दहेज के लिए पैसे जुट जाएं, बस. बींद धीरेधीरे हाथी की चाल से चलता हुआ घोड़ी के पास आता है. घोड़ी उसे ‘टाइगर हिल्स’ की तरह लगती है, जिस पर चढ़ पाना टेढ़ी खीर है उस के लिए. बींद के पिता घोड़ी वाले साईस के कान में कुछ फुसफुसाते हैं. साईस घुटनों के बल नीचे झुक जाता है और फिर उस के कंधे पर पांव रखते हुए 3-4 प्रयासों के बाद आखिरकार बींद घोड़ी पर सवार हो जाने में सफल हो जाता है. उस के घोड़ी पर बैठते ही पिता, जिन के हाथ में सिक्कों से भरी थैली झूल रही थी, ने थैली से मुट्ठी भर सिक्के निकाले और बींद पर उछाल दिए.

जा…जिस पल का इतनी देर से इंतजार था, वह अचानक इस तरह आ जाएगा, यह बात गोबरा ने सोची भी न थी. वह उछाल भर कर सिक्कों पर चील की तरह झपट्टा मारता है. इसी बीच, पैसा लूटने वालों की छोटी सी भीड़ जमा हो जाती है वहां. टेपला, गोबिन, नरेन, सुक्खू इन सब को तो वह पहचानता है. और भी दूसरी बस्ती के कई नए चेहरे. एक हड़कंप सा मच जाता है घोड़ी के इर्दगिर्द. एकदूसरे को धकियातेठेलते सिक्कों को लूटने के लिए आतुर लड़के. फिर सबकुछ शांत हो जाता है. गोबरा पाखी के करीब आ कर मुट्ठी खोलता है. आंखों में चमक भर जाती है. 22 रुपए. छोटे सिक्के एक भी नहीं, सब 2 और 5 के सिक्के. बींद का पूरा लावलश्कर मंथर गति से आगे सरकने लगता है. पैसे लूटने वालों की भीड़ भी बरातियों के बीच में छिप जाती है.

तालाब की मिट्टी से बढ़ती है खेत की पैदावार

दुनियाभर में 60 तरह की मिट्टी पाई जाती है, जिस में से 46 तरह की मिट्टी भारत में पाई जाती है. उन मिट्टियों में से कुछ ही तरह की मिट्टी में खेती से अच्छी पैदावार ली जा सकती है. कुछ तरह की मिट्टी में सुधार कर के भी उस की पैदावार कूवत बढ़ाई जा सकती है.

अकसर देखा गया है कि उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसान अपने खेत में तरहतरह की खादों का प्रयोग करते हैं. सब से ज्यादा कैमिकल खादों का प्रयोग किया जा रहा है. इस के चलते मिट्टी की उर्वरता कूवत काफी प्रभावित हुई है. मांग के अनुरूप जैविक उर्वरक उपलब्ध न होने के चलते हम अपने खेतों में देशी जैविक खाद नहीं डाल पा रहे हैं.

आज हम कृषि की उन्नत तकनीकों के चलते खेत की पैदावार बढ़ाने में काफी हद तक कामयाब हुए हैं. हम खाद्यान्न के मामले में भी आज आत्मनिर्भर हो गए हैं. दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भी भारत ने लगभग आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है.

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मिट्टी से अच्छी पैदावार

मिट्टी में 16 तरह के पोषक तत्त्व पाए जाते हैं. इन्हीं पोषक तत्त्वों के जरीए ही जमीन में उगाए गए पेड़पौधे अपनी खुराक लेते हैं. आज के समय में किसान अपने खेतों में कीट व बीमारी का प्रकोप रोकने के लिए फसल पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि रसायनों का भी इस्तेमाल करता है, जिस के चलते खेत की मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है.

खेत की मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी न हो, इस के लिए अनेक तरीके अपनाए जाते हैं. इन में अनेक जैविक तरीके भी हैं, जो खेत की मिट्टी में जैविक क्षमता को बढ़ाते हैं.
इसी संदर्भ में डाक्टर आरएस सेंगर, कृषि विशेषज्ञ (सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ) ने बताया कि गांवदेहात में जो तालाब होते हैं, जिन्हें इलाकाई बोली में पोखर या जोहड़ भी कहा जाता है. अगर उन तालाबों  की सड़ी मिट्टी को खेत में डाला जाए तो खेत की मिट्टी उपजाऊ बनती है.

गांवदेहात के जोहड़ या तालाब के पानी में पशुओं का गोबर औैर मूत्र वगैरह मिलते रहते हैं, जो फसल पैदावार बढ़ाने में सहायक होते हैं. उस में अनेक ऐसे तत्त्च मौजूद होते हैं, जो फसल पैदावार बढ़ाने में मददगार होते हैं.

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गरमी के मौसम में जब तालाब सूख जाते हैं, उस समय तालाब से मिट्टी निकाल कर खेत में डालनी चाहिए. इस मिट्टी को तालाब से निकाल कर रख भी सकते हैं और आगे कभी भी खेत में इस्तेमाल कर सकते हैं. यह मिट्टी पूरी तरह से जैविक होती है.

ऐसी मिट्टी जो कि काली चिकनी मिट्टी होती है, में कई प्रकार के जीवाणु मौजूद रहते हैं और मिट्टी की उपजाऊ ताकत को बढ़ाते हैं और उस में मौजूद पोषक तत्त्व पौधों को आसानी से मिल जाते हैं.
डाक्टर आरएस सेंगर ने बताया कि तालाब की सड़ी मिट्टी से उस में मौजूद जीवाश्म में बढ़वार होती है, जिस से खेत की मिट्टी की उर्वरता में सुधार होने के साथ ही भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में आई हुई गिरावट में भी विशेष सुधार देखा गया है. 1 ग्राम मिट्टी में 4 से 30 खरब जीवाणु व दूसरे सूक्ष्मजीव हो सकते हैं, जो मिट्टी ताप को भी नियंत्रित रखती है.

पुराने तालाब की सड़ी मिट्टी में 8 फीसदी नाइट्रोजन और 3 फीसदी सुपर फास्फेट पाया जाता है. 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से इस का उपयोग खेत में किया जा सकता है. तालाब की मिट्टी में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता खेत में 2 से 3 सालों तक बनी रहती है.

खेती में जो फायदा तालाब की सड़ी हुई मिट्टी से संभव है, वह रासायनिक उर्वरकों
से संभव नहीं है. इस मिट्टी का उपयोग संतुलित और जरूरत के मुताबिक बताई गई मात्रा में
ही करें.

प्रयास करें कि जरूरी पोषक तत्त्वों का एकतिहाई भाग तालाब की सड़ी हुई मिट्टी, दोतिहाई भाग जरूरी रासायनिक उर्वरकों से पोषक तत्त्वों की पूर्ति हो सके.

तालाब की सड़ी मिट्टी के अन्य फायदे

तालाब की सड़ी मिट्टी खेत की भौतिक, रासायनिक और जैविक उर्वरक क्षमता को बढ़ाती है. साथ ही, तालाबों का गहरीकरण होता है और उन की सफाई भी हो जाती है, जिस से पशुपक्षियों व इनसान के इस्तेमाल के लिए पानी मिलता है. जमीन में पानी का लैवल भी बढ़ता है.

मिट्टी के जैविक गुणों पर प्रभाव

अनेक जीवाणु मिट्टी से पोषक तत्त्च ले कर पौधों को देते हैं, इसलिए हम सभी को मेहनत कर के अपने खेत के आसपास वाले तालाबों का संरक्षण करना चाहिए और पानी को जमा करने के लिए अपनेअपने लैवल पर कोशिश करनी चाहिए, तभी हम खेती को अच्छी तरह से कर सकेंगे और उस का भरपूर फायदा उठा सकेंगे.

अगर हम तालाबों को बना लेते हैं तो इस से खेत को तो पानी मिलेगा ही, साथ ही तालाब की मिट्टी, जिस में अनगिनत तादाद में जीवाणु मौजूद रहते हैं, मिट्टी की सेहत को सुधारने के साथसाथ पैदावार कूवत बढ़ाएंगे और हमें अच्छा फसल उत्पादन दे सकेंगे.

 

तोरण: भाग 1

पाखी मुरगे की तरह गरदन ऊंची कर के विहंगम दृष्टि से पूरे परिवेश को निहारती है. होटल राजहंस का बाहरी प्रांगण कोलाहल के समंदर में गले तक डूबा हुआ है. बरातीगण आकर्षक व भव्य परिधान में बनठन कर एकएक कर के इकट्ठे हो रहे हैं. गोयनकाजी जरा शौकीन तबीयत के इंसान हैं. इलाके के किंग माने जाते हैं. पास के मिलिटरी कैंट से आई बढि़या नस्ल की घोड़ी को सलमासितारों व झालरलडि़यों के अलंकरण से सजाया जा रहा है. बाईं ओर सलीम बैंड के मुलाजिम खड़े हैं गोटाकिनारी लगी इंद्रधनुषी वरदियों में सज्जित अपनेअपने वाद्यों को फिटफाट करते. मकबूल की सिफारिश पर पाखी को सलीम बैंड में लाइट ढोने का काम मिल जाता है. इस के लाइट तंत्र में 2 फुट बाई 1 फुट के 20 बक्से रहते हैं. हर बक्से पर 5 ट्यूबलाइटों से उगते सूर्य की प्रतीकात्मक आकृति, दोनों ओर 10-10 बक्सों की कतारें. सभी बक्से लंबे तार द्वारा पीछे पहियों पर चल रहे जनरेटर से जुड़े रहते हैं.

मकबूल, इसलाम और शहारत तो पाखी की बस्ती में ही रहते हैं. मकबूल ड्रम को पीठ पर लटकाता है तो अचानक उस की कराह निकल जाती है. ‘‘क्या हुआ, मकबूल भाई?’’ पाखी पूछ बैठती है, ‘‘यह कराह कैसी?’’

‘‘हा…हा…हा…’’ मकबूल हंस पड़ता है, ‘‘बाएं कंधे पर एक फुंसी हो गई है. महीन हरी फुंसी…आसपास की जगह फूल कर पिरा रही है. ड्रम का फीता कम्बख्त उस से रगड़ा गया.’’

‘‘ओह,’’ पाखी बोलती है, ‘‘अब ड्रम कैसे उठाओगे? फीता फुंसी से रगड़ तो खाएगा.’’

‘‘दर्द सहने की आदत हो गई है रे अब तो. कोई उपाय भी तो नहीं है,’’ मकबूल फिर हंस पड़ता है, ‘‘तू बता, तेरी तबीयत कैसी है?’’

‘‘बुखार पूरी तरह नहीं उतरा है, भैया. कमजोरी भी लग रही है. पर हाजरी के सौ टका के लालच में आना पड़ा,’’ पाखी भी मुसकरा पड़ती है.

‘‘तेरा हीरो कहां है रे, दिखाई नहीं पड़ रहा?’’ मकबूल ने पाखी की आंखों में झांकते हुए ठिठोली की.

हीरो की बात पर पाखी के चेहरे पर लज्जा प्रकट हो जाती है और मुंह से निकल पड़ता है, ‘‘धत्…’’ होटल से थोड़ी दूर पर ही झंडा चौक है, नगर का व्यस्ततम चौराहा. बाईं ओर बरगद के पेड़ के पास लखन की चायपान की गुमटी है. गुमटी की बाहरी दीवार पर एक पुराना आईना छिपकली की तरह चिपका हुआ है. आईने में आड़ेतिरछे 2-3 तरेड़ पड़े हैं. इसी तरेड़ वाले आईने के सामने खड़ा है गोबरा. गोबरा यानी पाखी का हीरो. वह खीज से भर उठता है, ‘‘ये लखन भी न… हुंह. नया आईना नहीं ले सकता?’’ फिर पैंट की पिछली पौकेट से कंघी निकाल कर देर तक बाल झाड़ता रहता है. कंघी के 2-3 दांते टूटे हुए हैं. आखिर जब उसे इत्मीनान हो जाता है कि बाल रणबीर कपूर स्टाइल में सैट हो गए तो कंघी को पिछवाड़े की जेब में ठूंसता हुआ तेजतेज कदमों से होटल राजहंस की ओर लपक जाता है.

गोयनकाजी की लड़की की शादी है. बरात को होटल राजहंस में ठहराया गया है. बींद यानी दूल्हे को घोड़ी पर बैठा कर व सभी बरातियों को रोशनियों के घेरे में नगर का परिभ्रमण कराते हुए ‘तोरण’ के लिए गोयनकाजी की कोठी पर ले जाया जाएगा. पूरा होटल किसी नवेली दुलहन की तरह मुसकरा रहा है. गोबरा पाखी के करीब आ जाता है. गोबरा बाईं आंख दबा कर पाखी को कनखी मारता हुआ मुसकरा देता है. गोबरा को देखते ही पाखी के चेहरे पर भी खिली धूप सी उजास फैल जाती है. गोबरा के और उस के बप्पा दोस्त हैं. गोबरा पास की बस्ती में रहता है. घरेलू संबंध रहने से एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता है. मन ही मन दोनों का टांका भिड़ गया है. नगर के उत्तरी छोर पर जंगल के पास मिट्टी का एक टीला है. दोनों अकसर घनी झाडि़यों के बीच शाम के झुटपुटे में मिला करते हैं. गोबरा उसे बांहों में भर कर फुसफुसाता है, ‘तेरे सामने तो बंबई वाली सोनाक्षी भी पानी भरती है रे…’

‘‘अरे भाई मास्टर…जब तक बींद राजा बाहर नहीं आ जाते, एकाध गाने का धमाका ही क्यों न हो जाए,’’ बींद के पिता दूर से फटे बांस के सुर में चीख पड़ते हैं, ‘‘इस जानलेवा उमस का एहसास कुछ तो कम हो.’’ सलीम मास्टर एक नजर साथियों की ओर देखते हैं. सभी अपनेअपने वाद्यों के साथ चाकचौबंद हैं. आंखों में संतुष्टि के भाव लिए वे दायां हाथ ऊपर उठा कर चुटकी बजाते हुए पूरे लश्कर के पीछे खड़े जनरेटर वाले को संकेत देते हैं तो दूसरे ही पल जनरेटर चालक पूंछ फटकारता हरकत में आ जाता है. देखते ही देखते प्रकाश तंत्र का हर स्तंभ रोशनी से जगमगाने लगता है. पाखी भी आंचल कमर में खोंसती गमछे को सिर पर रखती है और ट्यूब वाले बक्से को ऊपर उठा लेती है. अन्य औरतें भी ऐसा ही करती हैं. सतह से ऊपर उठते ही ट्यूबों की दूधिया रोशनी में होटल राजहंस का प्रांगण जगमगा उठता है.

पीएम का संदेश: जो न समझे वो अनाड़ी है

राष्ट्र के नाम अपने लगभग 33 मिनिट के सम्बोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या क्या बोल गए और उनकी मंशा क्या थी यह किसी की समझ नहीं आ रहा है फिर भी जो लोग कुछ मतलब निकालने की कोशिश कर रहे हैं वह या तो उनका पेशा है या फिर भक्ति है. उनकी सारी बातें असम्बद्ध थीं और एक हद तक आत्ममुग्धता का शिकार भी थीं. लग ऐसा भी रहा था मानों कक्षा 12बी का कोई छात्र स्वेट मार्टन की किताब पढ़ते दुनिया जीतने का हौसला और जज्बा खुद में और औरों में पैदा कर रहा हो जिसका असर बेहद तात्कालिक होता है और व्यावहारिकता से तो उसका कोई संबंध होता ही नहीं.

मोदी के इस सम्बोधन का निचोड़ निकालें तो वह आयुर्वेद के काढ़े या अर्क जैसा है जिसे महज आस्था के चलते अपने जोखिम पर पिया जाता है. रोग का ठीक होना न होना ऊपर बाले की ज़िम्मेदारी होती है. उन्होने अपना भाषण तीन तरफ ज्यादा फोकस किया पहला कोरोना, दूसरी अर्थव्यवस्था और तीसरा आत्मनिर्भरता. यह त्रिफला चूर्ण लाक डाउन से पचे लोगों के गले इसलिए भी नहीं उतरा कि उनकी आवाज में न तो पहले जैसा उत्साह था और न ही चेहरे पर आत्मविश्वास दिख रहा था जो उनकी सबसे बड़ी पूंजी हुआ करती थीं. उम्मीद नहीं थी कि कभी उन्हें इस स्थिति में भी देखना पड़ेगा.

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बहरहाल उन्होने तीन बार संस्कृत के लघु श्लोक और सूक्तियाँ पढ़े, भारतीय संस्कृति और सभ्यता का बखान किया, 130 करोड़ लोगों की जीवटता और त्याग तपस्या की तारीफ की और फिर दर्शनशास्त्र के छज्जे से कूदकर अर्थशास्त्र की जमीन पर आते 20 लाख करोड़ के पेकेज की घोषणा कर दी और फिर हवा में तैरते आत्मनिर्भर होने का इशारा किया. यह बात कुछ कुछ देश के विश्वगुरु बनने जैसी थी कि अगर हम खुद उत्पादन और निर्माण कर खुद ही उसका उपभोग करें तो कल्याण पूरी दुनिया का होगा. यह बात उन्होने बहुत अस्पष्ट ढंग से समझाने की असफल कोशिश भी की भारत ऐसा कैसे कर सकता है और पूरी दुनिया को भी राह दिखा सकता है.

प्रधानमंत्री मेंटर की भूमिका में आएं यह बात कतई हर्ज की नहीं लेकिन जिस और जिन लोगों के त्याग और तपस्या की तारीफ वे कर रहे थे उनमें से कई सड़कों पर ही समाधिस्थ हो चुके थे और कई इसके विभिन्न चरणों से गुजर रहे हैं. समाधि भी क्यों इसे तो सल्लेखना या संथारा कहा जाना चाहिए जिसमें साधक अन्न जल त्याग कर धीरे धीरे मृत्यु नाम के शाश्वत सत्य का वरण करता है यह और बात है कि इस कृत्य को मृत्यु नहीं बल्कि मोक्ष करार दिया जाता है. मोदी जी ने सीधे सीधे भूख प्यास से सड़कों पर घर पहुँचने से पहले मरे लोगों का स्मरण भी अपनी शैली में लेकिन सकुचाते हुये किया.

क्या यह वक्त आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाने का था इस पर बहस या चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं क्योंकि मरते और हैरान परेशान करोड़ों मजदूरों के मोर्चे पर सरकार अनुत्तीर्ण हो चुकी है. आपदा तो अवसर में नहीं बदली लेकिन दो गज की दूरी का नारा सुनने समझने से पहले कई लोग (जाहिर है गरीब मजदूर) दो गज जमीन और दो गज कपड़े के कफन के बिना ही यह देखे बिना ही दुनिया से विदा हो गए कि उनके देश की तरफ पूरी दुनिया देख रही है. इन बेचारों को तो अपने ही देशवासियों ने नहीं देखा . ये अनाम शहीद कुछ दिन और जी जाते तो देख पाते कि लघु और मझोले कुटीर टाइप के उद्ध्योगो के लिए सरकार ने 20 लाख करोड़ रु की इमदाद मुहैया कराने का वादा किया है जिससे इनकी ज़िंदगी संवर जाती.

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जो जिंदा हैं उन्होने भी इस घोषणा से कोई इत्तफाक नहीं रखा. ये भुक्तभोगी जानते समझते हैं कि ऐसी राहत घोषणाओं के दाँत दिखावे के होते हैं यहाँ तो दो वक्त के खाने के लाले पड़े हैं उसके लिए तो सरकार कुछ नहीं कर पा रही. निश्चित रूप से बात क्रूर है और संकट के वक्त में ऐसी निराशाजनक बातें करना शोभा नहीं देता. ये बातें न की जातीं अगर प्रधानमंत्री ने 33 मिनिट में से 3 सेकंड के लिए भी संवेदनाएं दिखाते सरकार की भूमिका के लिए खेद व्यक्त किया होता.

इन सब बातों से परे मुद्दे की बात जिसकी वजह से लोग कल टीवी से चिपके थे वह यह थी कि लाक डाउन का क्या होगा इस पर मोदी जी ने कहा वह रहेगा और नए रंग रूप में आएगा . यह बात भी लगभग मीनिंगलेस और गोलमोल थी जिसके माने लोग अपनी तरह से निकालते रहे फिर थकहार कर बोले कल देखा जाएगा जब डिटेल्स आएंगे . यही बात 20 लाख करोड़ के पेकेज के बारे में सोची गई.

हालांकि न्यूज़ चेनल्स पर भाड़े के विशेषज्ञो जो अपनी बाजारू कीमत के लिहाज से दो चार दस हजार रुपयों के मेहनताने और स्क्रीन पर दिखने के लालच में विरोध व समर्थन में बोलने आधी रात को भी मुस्तैद रहते हैं की फौज मोदी जी की बातों का मतलब निकालने विराजमान थी लेकिन लाक डाउन रहेगा यह सुनते ही आम लोगों ने रिमोट का लाल बटन दबा लिया.

इधर सोशल मीडिया पर त्वरित टिप्पणियाँ ये आईं कि प्रधानमंत्री जी ने लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया है और इस बार का सबसे बड़ा टास्क उन्हें सुनना ही था. शायद यही 33 मिनिट के उनके सम्बोधन का सार था जिसे जो न समझे उसे खुद को अनाड़ी मान लेना चाहिए और आगे के लिए राशन पानी का इंतजाम कर लेना चाहिए. रही बात कोरोना की तो अब उसके कहर के भी कोई माने विषमताओं के चलते नहीं रहे लोग उसके साथ रहकर जीना सीख गए हैं.

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