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19 दिन 19 कहानियां: प्यार के अंधेरे में डूबा प्रकाश

छत्तीसगढ़ के जिला रायपुर की कोतवाली के अंतर्गत आने वाले मोहल्ला रिसाईपारा की रहने वाली 20 साल की खूबसूरत नगमा परवीन 18 जनवरी, 2017 की रात ब्यूटीपार्लर से लौट कर नहीं आई तो घर वालों को चिंता हुई. उस के अब्बू मोहम्मद असलम ने उस के मोबाइल पर फोन किया तो पता चला कि मोबाइल घर पर ही रखा है. उस से संपर्क का एकमात्र साधन फोन था, जो घर पर ही रखा था. ब्यूटीपार्लर ज्यादा दूर नहीं था. वहां जा कर पता किया तो पता चला कि उस दिन वह ब्यूटीपार्लर पर गई ही नहीं थी. यह जान कर घर वाले परेशान हो उठे. उन की समझ में यह नहीं आ रहा था कि नगमा ब्यूटीपार्लर पर नहीं गई तो बिना बताए कहां चली गई. जबकि उसे कहीं बाहर जाना होता था तो वह घर वालों को बता कर जाती थी.

ऐसा पहली बार हुआ था, जब नगमा घर वालों को बिना बताए न जाने कहां चली गई थी. अपने हिसाब से मोहम्मद असलम ने बेटी को हर तरह से खोजा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. वह कोई छोटी बच्ची नहीं थी कि कोई उसे बहलाफुसला कर उठा ले जाता. वह जहां भी गई थी, अपनी मरजी से गई थी. अगर उस के साथ जबरदस्ती की गई होती तो पता चल जाता.

मोहम्मद असलम और उन के घर वालों ने किसी तरह रात बिताई. सवेरा होते ही वह कुछ लोगों के साथ कोतवाली पहुंच गए और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के बाद इंसपेक्टर श्रीप्रकाश सिंह ने इस मामले में जांच शुरू की तो पता चला कि नगमा सुबह तेजप्रकाश सेन की मोटरसाइकिल पर बैठ कर कहीं गई थी.

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उसे तेजप्रकाश की मोटरसाइकिल पर बैठ कर जाते किसी और ने नहीं, नगमा की 8 साल की छोटी बहन ने देखा था. लेकिन यह बात उस ने घर वालों को नहीं बताई थी. जब पुलिस ने उस से पूछा, तभी उस ने बताया था.

श्रीप्रकाश सिंह को जब पता चला कि नगमा तेजप्रकाश के साथ गई है तो उन्होंने उस के बारे में मोहम्मद असलम से पूछा. पता चला कि तेजप्रकाश मोहल्ला आमातालाब में अपने परिवार के साथ रहता था. वह शादीशुदा था और 2 बच्चों का बाप था, इस के बावजूद उस ने खुद को कुंवारा बता  कर नगमा से कोर्टमैरिज कर ली थी.

नगमा को जब उस के शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप होने का पता चला था तो वह अदालत चली गई, जहां से उसे ढाई लाख रुपए गुजाराभत्ता देने का आदेश हुआ था. ये रुपए तेजप्रकाश को 27 हजार रुपए हर महीने की किस्त के रूप में देने थे. लेकिन तेजप्रकाश ने 27 हजार रुपए की मात्र एक किस्म ही दी थी. उस के बाद उस ने एक पैसा नहीं दिया था.

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नगमा और तेजप्रकाश की इस कहानी को जान कर श्रीप्रकाश सिंह को समझते देर नहीं लगी कि मामला क्या हो सकता है.  उन्होंने तुरंत तेजप्रकाश सेन के घर छापा मारा तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए उसे कोतवाली लाया गया, लेकिन पुलिस हिरासत में होने के बावजूद उस के चेहरे पर जरा भी भय नहीं था.

एसएसपी राजीव टंडन और सीओ ए.सी. द्विवेदी की उपस्थिति में उस से पूछताछ शुरू हुई. श्रीप्रकाश सिंह ने पूछा, ‘‘तुम नगमा परवीन को जानते हो?’’

‘‘जी जानता हूं. लेकिन आप उस के बारे में मुझ से क्यों पूछ रहे हैं?’’ तेजप्रकाश ने कहा.

‘‘इसलिए कि वह 4 दिनों से गायब है.’’

‘‘क्या?’’ उस ने चौंक कर कहा, ‘‘वह 4 दिनों से गायब है?’’

‘‘हां, वह 4 दिनों से गायब है. काफी प्रयास के बाद भी उस का कुछ पता नहीं चल रहा है. घर से ब्यूटीपार्लर जाने के लिए वह निकली थी, लेकिन वह ब्यूटीपार्लर पहुंच नहीं पाई. बीच से ही वह गायब हो गई.’’

‘‘ब्यूटीपार्लर नहीं गई तो फिर वह कहां गई?’’

‘‘यही पता करने के लिए तो तुम्हें यहां लाया गया है.’’ श्रीप्रकाश सिंह ने कहा.

‘‘लेकिन मुझे क्या पता कि वह ब्यूटीपार्लर नहीं गई तो कहां गई? वह जहां भी गई है, मुझे बता कर थोड़े ही गई है. वह कहां जाती है, किस से मिलती है, क्या करती है, मुझे बता कर थोड़े ही करती है?’’ सफाई देते हुए तेजप्रकाश ने कहा, ‘‘अगर उस के बारे में कुछ पूछना है तो उस के घर वालों से जा कर पूछें. वही बता सकते हैं कि वह कहां है?’’

‘‘ठीक है, घर वालों से पूछ लेंगे. लेकिन तुम एक बात यह बताओ, क्या तुम नगमा की छोटी बहन को जानते हो?’’

‘‘जी, बिलकुल जानता हूं.’’

‘‘वह कह रही थी कि जिस दिन नगमा गायब हुई है, उस दिन उस ने तुम्हें नगमा को मोटरसाइकिल पर बैठा कर ले जाते हुए देखा था.’’

‘‘वह झूठ बोल रही है.’’ तेजप्रकाश ने एकदम से कहा. लेकिन इस बात से वह घबरा गया, जो उस के चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था. पुलिस अधिकारियों ने उसे भांप भी लिया था. इस के बाद तो पुलिस अधिकारियों ने उसे अपने सवालों से इस तरह घेरा कि बिना सख्ती किए ही उस ने एसएसपी के पैर पकड़ लिए.

वह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. नगमा को मैं ने मार दिया है. उसे मारता न तो क्या करता. मैं ने उस से प्यार किया, पत्नीबच्चों को छोड़ कर शादी की, इस के बावजूद उस ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. उस की वजह से मेरे परिवार ने मुझे छोड़ दिया. इस के बावजूद वह मुझे छोड़ कर चली ही नहीं गई, मेरे ऊपर मुकदमा भी कर दिया था.’’

पुलिस ने तेजप्रकाश को अदालत में पेश कर के 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि के दौरान उस ने नगमा परवीन की हत्या का अपना अपराध तो स्वीकार कर ही लिया, मोटरसाइकिल और उस की डिक्की में रखा चाकू, बोरी, रस्सी आदि भी बरामद करवा दी. पूछताछ में उस ने नगमा की हत्या की जो कहानी पुलिस अधिकारियों को सुनाई, वह इस प्रकर थी—

नगमा परवीन मोहम्मद असलम की बड़ी बेटी थी. प्राइवेट नौकरी करने वाले मोहम्मद असलम की जिंदगी मजे से कट रही थी. वह जमाने से कदम मिला कर चलने वालों में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों को पढ़ायालिखाया. नगमा ने भी बीए किया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने नौकरी करने के बजाए ब्यूटीपार्लर का काम सीखा और घर से थोड़ी दूरी पर अपना ब्यूटीपार्लर खोल लिया. उस का ब्यूटीपार्लर चल भी निकला.

खूबसूरत नगमा परवीन पर मर मिटने वालों की कमी नहीं थी. उन्हीं में आमातालाब का रहने वाला तेजप्रकाश सेन भी था. वह किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उस के पिता सरकारी नौकरी में थे. बापबेटे को ठीकठाक तनख्वाह मिलती थी, इसलिए परिवार सुखी और संपन्न था.

तेजप्रकाश मांबाप की एकलौती संतान था. उस की शादी ही नहीं हो चुकी थी, बल्कि वह एक बेटे और एक बेटी का बाप भी था. इस के बावजूद वह पहली ही नजर में नगमा पर मर मिटा था. नगमा पर दिल आते ही वह उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर और ब्यूटीपार्लर के चक्कर ही नहीं लगाने लगा था, बल्कि घंटों उस के ब्यूटीपार्लर के सामने खड़ा हसरतभरी नजरों से ताका करता था.

उस की इस हरकत को देख कर नगमा को समझते देर नहीं लगी कि वह क्या चाहता है. फिर तो वह उसे देख कर अनायास ही मुसकराने लगी. इसी मुसकान ने दोनों को एकदूसरे के करीब ला दिया. उस समय नगमा 18 साल की थी तो तेजप्रकाश 29 साल का. देनों के बीच उम्र में 10 साल का लंबा फासला था. लेकिन तेजप्रकाश की कदकाठी ऐसी थी कि वह इतनी उम्र का लगता नहीं था.

जल्दी ही नगमा के घर वालों को उस के और तेजप्रकाश के प्रेमसंबंधों का पता चल गया था. लेकिन उन्होंने किसी तरह का ऐतराज नहीं किया. नगमा ने तेजप्रकाश को दिल का राजकुमार बनाया तो उसी से शादी करने का फैसला कर लिया. इस की वजह यह थी कि दोहरी जिंदगी जी रहे शातिर तेजप्रकाश सेन ने अपनी शादी के बारे में न तो नगमा को पता चलने दिया और न ही उस के घर वालों को.

जल्दी ही दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. चूंकि नगमा बालिग हो चुकी थी, इसलिए घर वाले चाह कर भी विरोध नहीं कर सकते थे. अदालत से पतिपत्नी की तरह रहने की इजाजत ले कर तेजप्रकाश ने किराए का कमरा लिया और उसी में नगमा परवीन के साथ रहने लगा.

तेजप्रकाश ने जो कुछ छिपा कर नगमा से शादी की थी, जल्दी ही उस सब की जानकारी नगमा को हो गई. जब तेजप्रकाश की सच्चाई नगमा के सामने आई तो वह सन्न रह गई. उस के सपने चूरचूर हो गए थे. उस ने तेजप्रकाश से ऐसी उम्मीद कतई नहीं की थी कि वह उस के साथ इतना बड़ा धोखा कर सकता है. इसलिए उस की सच्चाई जान कर उसे उस से नफरत हो गई.

नगमा परवीन की समझ में नहीं आ रहा था कि उस ने जो गलती की है, उसे मांबाप को कैसे बताए, क्योंकि एक तरह से उस ने मांबाप के भरोसे को तोड़ा था. उस ने मांबाप को बताए बिना तेजप्रकाश से शादी की थी. आखिर में मजबूर हो कर उस ने सारी बातें अपने अब्बू को बताई तो बेटी की परेशानी को देखते हुए वह उस की मदद के लिए तैयार हो गए. क्योंकि बेटी की जिंदगी का सवाल था.

तेजप्रकाश को सबक सिखाने के लिए मोहम्मद असलम ने अदालत में उस के खिलाफ धोखा दे कर शादी करने का मुकदमा दायर कर दिया. मुकदमा दायर होने के बाद तेजप्रकाश के घर वालों को जब उस की इस करतूत का पता चला तो मांबाप ने उस की मदद करने के बजाए उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

पत्नी भी बच्चों को ले कर मायके चली गई. तेजप्रकाश की स्थिति धोबी के कुत्ते की जैसी हो गई. वह न घर का रहा न घाट का. अदालत ने नगमा परवीन के हक में फैसला सुनाया. उस ने तेजप्रकाश को ढाई लाख रुपए देने का आदेश दिया, जिसे उसे 27 हजार रुपए महीने की किस्त के रूप में देना था. उस ने 27 हजार रुपए की पहली किस्त तो नगमा परवीन को दे दी, लेकिन उस के बाद उस ने उसे एक भी रुपया नहीं दिया. धीरेधीरे 3 साल बीत गए. मजबूर हो कर नगमा ने एक बार फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया.

नगमा द्वारा दोबारा मुकदमा करने पर तेजप्रकाश परेशान हो उठा. अब उसे अपने किए का पश्चाताप हो रहा था. क्योंकि अब वह कहीं का नहीं रह गया था. पत्नी पहले ही उसे छोड़ कर चली गई थी. मांबाप ने भी मुंह मोड़ लिया था. पत्नी और मांबाप को मनाने की उस ने बहुत कोशिश की, लेकिन उन्होंने उसे साथ रखने से साफ मना कर दिया. जिस की वजह से यह सब हुआ था, वह भी साथ रहने को तैयार नहीं थी. बल्कि वह उसे परेशान कर रही थी.

तेजप्रकाश की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? नगमा द्वारा दोबारा मुकदमा करने से वह काफी परेशान था. इस परेशानी में उस ने नगमा नाम की इस बला से निजात पाने के लिए सोचाविचारा तो उसे लगा कि वह इस बला से हमेशा के लिए तभी छुटकारा पा सकता है, जब उसे खत्म कर दे.

लेकिन इस में खतरा बहुत था. पकड़े जाने पर उस की पूरी जिंदगी जेल में बीतती. इसलिए वह हत्या इस तरह करना चाहता था कि पकड़ा न जाए. उसे पता था कि वह पकड़ा तभी नहीं जाएगा, जब पुलिस की हत्या का कोई सबूत न मिले. इस के लिए तेजप्रकाश टीवी पर आने वाले आपराधिक धारावाहिक देखने लगा. इन्हीं धारावाहिकों को देख कर उस ने नगमा की हत्या की योजना बना डाली. योजना के अनुसार उस ने पहले नगमा पर विश्वास जमाया. तेजप्रकाश नगमा का पहला प्यार था, इसलिए उस ने भले ही उसे धोखा दिया था, लेकिन वह उसे अपने दिल से निकाल नहीं पाई थी.

इसलिए जब भी तेजप्रकाश उसे फोन करता था, वह फोन उठा लेती थी. यही वजह थी कि वह नगमा को यकीन दिलाने में सफल रहा कि वह उसे फिर से अपना लेगा, दोनों पतिपत्नी की तरह रहेंगे. विश्वास दिलाने के लिए उस ने कहा था कि पत्नी से उस ने संबंध तोड़ लिए हैं. उस की इसी बात पर नगमा झांसे में आ गई.

नगमा को पूरी तरह विश्वास में ले कर 17 जनवरी, 2017 की रात 9 बजे के करीब तेजप्रकाश ने उसे फोन कर के कहा कि अगले दिन वह उसे ले कर घूमने जाना चाहता है. नगमा उस के साथ चलने को तैयार हो गई. उस ने यह बात मांबाप को भी नहीं बताई. इस की वजह यह थी कि शायद वे उसे उस के साथ जाने न देते.

18 जनवरी की सुबह 9 बजे तेजप्रकाश ने फोन कर के नगमा से कहा कि वह उस के घर से थोड़ी दूरी पर सड़क पर मोटरसाइकिल लिए खड़ा है. इस के बाद उस ने कहा था कि वह अपना फोन घर में ही छोड़ कर आए, क्योंकि वह उसे नया फोन गिफ्ट में दिलाना चाहता है.

बात नए फोन की थी, इसलिए नगमा ने वैसा ही किया, जैसा तेजप्रकाश ने कहा था. उस ने अपना फोन घर में ही छोड़ दिया. इस के बाद घर वालों से ब्यूटीपार्लर जाने की बात कह कर वह तेजप्रकाश के साथ उस की मोटरसाइकिल से चली गई. नगमा ने भले ही घर वालों को नहीं बताया था कि वह कहां जा रही है, लेकिन उस की छोटी बहन ने उसे तेजप्रकाश के साथ मोटरसाइकिल से जाते देख लिया था.

तेजप्रकाश उसे ले कर पड़ोसी जिले बालोद के सियादेई मंदिर पर पहुंचा. दर्शन करने के बाद उस ने सुनसान जगह पर मोटरसाइकिल रोक कर नगमा को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया और फुरती से गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. जब वह बेहोश हो गई तो उस ने डिक्की में रखे चाकू और पेंचकस से उस के गले पर कई वार किए.

जब उसे लगा कि नगमा मर गई है तो उस ने साथ लाए बोरे में उस की लाश भरी और उसे पीछे बांध कर वहां से 40 किलोमीटर दूर रुद्री घाट पर ले गया. वहां से उस ने धमतरी के एक लकड़ी व्यवसाई से फोन पर बात कर के अंतिम संस्कार के बहाने घाट पर लकडि़यां मंगवा लीं. उस समय तक शाम हो चुकी थी. उस ने मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर लकडि़यों पर लाश रखी और पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. उस समय घाट सूना पड़ा था. इसलिए उसे लाश जलाते हुए किसी ने नहीं देखा.

लाश जल गई तो उस ने राख ठंडी कर के नदी में फेंक दी, जिस से पुलिस को कोई साक्ष्य न मिले. इस के बाद नहाधो कर साफ कपड़े पहने और रात 11 बजे के करीब दुर्ग जिला के उतई गांव स्थित अपनी ससुराल पहुंच गया. रात उस ने वहीं बिताई और अगले दिन अपने घर आ गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर कोतवाली पुलिस ने उसे दोबारा अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक वह जेल में बंद था. पुलिस उस के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. तेजप्रकाश ने चालाकी तो बहुत दिखाई, पर कानून के लंबे हाथों से बच नहीं सका. सोचने वाली बात यह है कि आखिर तेजप्रकाश को मिला क्या? अगर वह अपनी पत्नी में ही संतोष किए रहता तो न उस का घर बरबाद होता और न जिंदगी?

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खेती की जमीन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का रखें ध्यान

बढ़वार हासिल करने के लिए पौधों को अनेक तत्त्वों की जरूरत होती है, जिन को वे मिट्टी, पानी व हवा से लेते हैं. लेकिन सभी तत्त्व पौधों की खुराक का हिस्सा नहीं होते. वे तत्त्व, जो पौधों की खुराक होते हैं, उन्हें पोषक तत्त्व कहते हैं.मशहूर कृषि वैज्ञानिक आरनोन पौधों के लिए पोषक तत्त्वों की जरूरत को कुछ इस तरह बताते हैं, वे पोषक तत्त्व, जिन की कमी होने पर पौधे अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर पाते हैं.
पौधों के लिए जरूरी

पोषक तत्त्व
खास पोषक तत्त्व : इस में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटैशियम आते हैं. पौधों को इन्हीं 3 पोषक तत्त्वों की सब से ज्यादा मात्रा की जरूरत होती है. इसलिए इन्हें खास पोषक तत्त्व कहते हैं. खेती में सब से ज्यादा इन्हीं पोषक तत्त्वों वाली खाद का इस्तेमाल होता है.

गौण पोषक तत्त्व : इस में कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम व सल्फर तत्त्व आते हैं. इन्हें पौधों के लिए पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए. लेकिन इन का काम खास पोषक तत्त्वों के मुकाबले कम होता है.
सूक्ष्म पोषक तत्त्व : इस में आयरन, जिंक, कौपर, मैंगनीज, बोरोन, मोलिब्डेनम, क्लोरीन व कोबाल्ट तत्त्व आते हैं. पौधों को इन पोषक तत्त्वों की बहुत ही कम मात्रा यानी
1 पीपीएम से भी कम की जरूरत होती है. इसलिए इन्हें सूक्ष्म पोषक तत्त्व कहते हैं.लेकिन खास पोषक तत्त्वों के साथसाथ सूक्ष्म पोषक तत्त्व भी पौधों के विकास व बढ़ोतरी के लिए जरूरी होते हैं.

सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से न केवल पौधों की बढ़वार रुक जाती है, बल्कि वे अपना जीवन चक्र भी पूरा नहीं कर पाते हैं. सूक्ष्म पोषक तत्त्व पौधों के पोषण के लिए जरूरी एंजाइम को क्रियाशील बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं और पौधों को बीमारियों से बचने व उन से लड़ने की ताकत देते हैं.

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आइए जानें, सूक्ष्म पोषक तत्त्व पौधों में क्याक्या करने की कूवत रखते हैं:
जिंक : यह पौधों की जिंदगी में होने वाली जरूरी प्रतिक्रियाओं में उत्प्रेरक का काम करता है और औक्सीकरण की क्रिया को नियमितता प्रदान करता है. यह अनेक एंजाइम्स के उपचयन में भाग लेता है और प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है. पौधों में पाए जाने वाले हार्मोनों के लिए यह जैविक संश्लेषण में काम आता है और पौधों के द्वारा फास्फोरस के उपापचय में सहायक होता है. यह पौधों द्वारा कार्बोहाइड्रेट के उपयोग को भी प्रभावित करता है.
जिंक की कमी से पौधों में पानी की मात्रा कम हो जाती है. जिंक पौधों में प्रकाश संश्लेषण और नाइट्रोजन के उपचयन में मदद करता है. जिंक फूल व फलों के बनने और फसलों के जल्दी पकने में मददगार होता है. पौधों में जिंक की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* पौधों की पत्तियां एकदम छोटी हो जाती हैं.
* फास्फोरस बढ़ने से जिंक की कमी बढ़ती है.
* धान में खैरा बीमारी इस की कमी का खास लक्षण है.
लोहा : पौधों को इस की कम मात्रा में जरूरत होती है, लेकिन पौधों के पोषण में इस का काफी महत्त्व है. यह पौधों में क्लोरोफिल, प्रोटीन व कोशिका विभाजन के लिए जरूरी और पौधों के विभिन्न एंजाइम्स के बनने का खास घटक है. इस की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* लोहे की कमी से पौधों में हरेपन की कमी दिखाई देती है.
* इस की कमी के लक्षण पौधे की शिराओं के बीच के भागों में ही सीमित रहते हैं.
* पत्तियों पर पीले रंग की लंबी धारियां दिखाई देती हैं.
* पौधों की बढ़वार कम होती है.
* पौधा सफेद दिखाई देने लगता है.
* फल अधपके गिर जाते हैं.

मैंगनीज : पौधों के पोषण में जरूरी यह तत्त्व पौधों की बढ़वार और पौधों के उपापचय के लिए जरूरी है. यह नाइट्रेट और क्लोरोफिल के बनने में मददगार होता है. यह कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन उपापचय में जरूरी होता है. यह एंजाइम के उत्प्रेरक के रूप में भी काम करता है. पौधों में मैंगनीज की कमी के लक्षण ये होते हैं:

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* मैंगनीज की कमी के चलते नई व पुरानी पत्तियों में कई तरह के हरिमाहीन धब्बे देखे जा सकते हैं.
* इस की कमी से पत्तियों का रंग हलका हो जाता है. साथ ही, पौधों की पत्तियों और जड़ों में चीनी की मात्रा में कमी आ जाती है.

* धान्य फसलों की पत्तियां भूरी हो जाती हैं और उन में ऊतक गलन बीमारी पैदा हो जाती है.
* इस की कमी के लक्षण पहले पौधों की नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं.
तांबा : यह प्रकाश संश्लेषण व श्वसन क्रिया में भाग लेता है. फफूंदी से पैदा होने
वाली बीमारियों की रोकथाम में इस का खास रोल होता है. यह औक्सीकरण अवकरण की क्रिया में अहम काम व पौधों में विटामिन ए के बनने में मदद करता है. पौधों में तांबे की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* तांबे की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है.
* सरसों वर्ग के पौधों की शिराओं व बीच में धब्बे पड़ जाते हैं.
* नई पत्तियों में क्लोरोसिस रोग हो जाता है.

बोरोन : यह आरएनए व डीएनए के संश्लेषण में योगदान देता है और कोशिकाओं में पानी पर काबू करता है. साथ
ही, दलहनी फसलों में यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण में काफी मददगार होता है. पौधों में बोरोन की कमी के लक्षण ये होते हैं:
* बोरोन की कमी से जहां दलहनी फसलों की जड़ों पर गांठों का पूरा विकास नहीं हो पाता, वहीं प्रजनन अंगों का विकास भी प्रभावित होता है.
* बोरोन की कमी होने पर पौधे नाइट्रोजन का उपयोग भी कम कर पाते हैं.
* पौधों के सिरे रंगहीन व मुडे़ हुए हो जाते हैं.

* पार्श्व कलिकाएं विकसित नहीं होतीं.
* इस की कमी से पत्तियों पर सफेद धब्बे व धारियां पाई जाती हैं.
* फूल व फल बनने की दर कम हो जाती है.
* इस की कमी से पत्तियों में झुर्रियां, कड़ापन व हरिमाहीनता वगैरह के लक्षण पैदा हो जाते हैं.
मोलिब्डेनम : यह चीनी और विटामिन सी बनाने में मददगार होता है और फास्फोरस के उपापचय में भाग लेता है. दलहनी फसलों की जड़ग्रंथियों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया द्वारा हवा में मौजूद नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में मोलिब्डेनम का खास रोल रहता है. यह फूलों की बढ़वार में मददगार होता है. मोलिब्डेनम के पौधों में कमी के लक्षण ये होते हैं:

* इस की कमी से पौधों में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है.
* पत्तियों के किनारे झुलस जाते हैं.
* तने व पत्ती पीली व धब्बेदार हो जाती है.
* दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रंथि कमजोर रह जाती है.
* फूल निकलने में कमी आ जाती है.
क्लोरीन : यह कोशिका रस के संतुलन में मददगार है व एंथोसाइनिंस का संघटक पदार्थ है. यह पौधों की प्रकाश अपघटन की क्रिया में भाग लेता है. क्लोरीन के पौधों में कमी के लक्षण ये होते हैं:
* इस की कमी होने पर फल नहीं बनते हैं.
* मक्के के पौधे सूख जाते हैं.
* बरसीम की पत्तियां कटने लगती हैं.
* पौधों में हरिमाहीनता पैदा हो जाती है.
सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को हम कैमिकल खादों का इस्तेमाल कर कम कर सकते हैं. विभिन्न प्रकार के कैमकल खादों का इस्तेमाल दिए गए बौक्स के अनुसार करें.

कोरोना वायरस के जाल में: भाग 3

लेखक- डा. भारत खुशालानी

अधिकारी दोनों को एक बड़े कमरे में ले कर गया, जो एक प्रतीक्षालय कमरे की तरह था. गरिमा उसी कमरे में बैठी रही, जबकि मिन अस्पताल में अपने दूसरे काम से निकल गया. गरिमा को चीनी भाषा अब अच्छे से समझ आने लगी थी. उस को अधिकारी और रिसैप्शनिस्ट की बातों से समझ आ गया था कि मामला गंभीर है. उस ने हिंदुस्तान फोन लगाने की सोची, लेकिन फिर स्काइप करना ज्यादा उचित समझा. भारत में अभी दोपहर हो रही होगी और मम्मी खाना बना रही होगी, यह सोच कर उस ने स्काइप करने का विचार भी त्याग दिया. उस के बदले उस ने विश्वविद्यालय में अपनी सहेली शालिनी को फोन लगाया. ‘‘शालिनी, तेरे को विश्वास नहीं होगा. हम लोगों को अभी अस्पताल से निकलने नहीं दिया जा रहा है.’’शालिनी बोली, ‘‘क्या बात कर रही है?’’ गरिमा ने कहा, ‘‘किसी वायरस की बात कर रहे थे. शायद मेरी जांच भी करें कि किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क तो नहीं हो गया है.’’शालिनी ने पूछा, ‘‘वान ने अच्छे से बात की तुझ से?’’गरिमा ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, उस से मुलाकात नहीं हो पाई. शायद वह व्यस्त है.

कहीं. उस के बदले मिन झोउ नाम के लड़के ने प्रयोगशालाएं दिखाईं.’’शालिनी ने आगे पूछा, ‘‘सभी को रखा है या सिर्फ तेरे को रखा है भारतीय जान कर?’’गरिमा ने यहांवहां देखा, ‘‘अच्छा प्रश्न किया है तू ने. अभी मुझे मालूम नहीं है. और एक हाथ की दूरी पर भी रहने को बोल रहे हैं.’’शालिनी ने कहा, ‘‘देख, थोड़ी देर रुक. फिर कोई परेशानी आए तो मुझे बताना.’’गरिमा बोली, ‘‘ठीक है, चल.’’गरिमा ने फोन रख दिया. इस बात का संदेह करना जरूरी था कि सिर्फ भारतीय समझ कर उस को रखा गया था या सब के ऊपर यह लागू था. यह सोच कर गरिमा ने प्रतीक्षालय कमरे से निकल कर थोड़ी तहकीकात करना उचित समझा. थोड़ी देर के बाद उस ने शालिनी को फिर फोन लगाया, ‘‘शालिनी, मेरे खयाल से ये लोग किसी को भी बाहर नहीं जाने दे रहे हैं, सिर्फ मैं ही इस में शामिल नहीं हूं.’’शालिनी बोली, ‘‘मैं आ जाऊं वहां पर?’’गरिमा ने कहा, ‘‘नहीं, यहां मत आ. तेरे को अंदर नहीं आने देंगे. कुछ घंटों के लिए इन्होंने पूरी जगह की ही तालाबंदी कर दी है. शायद सिर्फ सावधानी बरत रहे हैं. जहां मुझे रखा है, वह अस्पताल के पुराने हिस्से में है. कोई प्रतीक्षालय कमरा लगता है, लेकिन यहां गोदाम की तरह सामान भी रखा है.’’शालिनी ने चिंता जाहिर की, ‘‘तू ठीक है?’’गरिमा ने कहा, ‘‘अभी तक तो ठीक हूं. चल, मैं बाद में कौल करती हूं.’’  अचानक गरिमा को उन चूहों के डब्बे की याद आई जिसे आज उस ने एक बूढ़े को संक्रामक रोग विभाग की ओर ले जाते हुए देखा था. चूहों तक पहुंचने की इजाजत तो आज शायद उस को कोई नहीं देगा, यही सोच कर गरिमा ने महसूस किया कि आज के दिन ही उन चूहों का आना कोई विशेष महत्त्व की बात थी.

जिज्ञासावश, गरिमा उस विभाग को ढूंढ़ने के लिए इस गोदाम से दिखने वाले प्रतीक्षालय कमरे से निकल कर गलियारे में आ गई. दोचार गलियारे पार करने के बाद वह सहम गई क्योंकि वहां पर पुलिसवाले रक्षात्मक कपड़े पहने हुए खड़े थे. उन के पुलिस वाले होने का अंदेशा इसी से लगाया जा सकता था कि उन के पास कमर में पिस्तौल और बैटन मौजूद थे, और उन के पुलिस वाले बिल्ले उन की छाती पर लगे हुए थे. वे ठीक उसी प्रकार के कमरे के बाहर खड़े थे जिस प्रकार के कमरे में डा. वान लीजुंग को रखा गया था. इस कमरे में हुआनान सी फूड वाले आदमी को उस के घर से पुलिस वालों ने ला कर रखा था. 4 दिन पहले उस को सिर्फ हलके रोगलक्षण थे. आज उस की स्थिति इतनी गंभीर थी कि वह मरणासन्न नजर आ रहा था. शायद यहां से उस को तुरंत आईसीयू में ले जाया जाए, पुलिस वालों को भी यह बात पता नहीं थी. इस आदमी के परिवार वालों को, वहीं उस के घर में, संगरोध करने की प्रक्रिया, स्वास्थ्य विभाग के लोगों ने शुरू कर दी थी. कमसेकम 3 लोगों के साथ उस के सीधे संपर्क बने थे – उस की मां, उस की पत्नी और उस का बेटा. तीनों को उन के घर पर ही स्पर्शवर्जन करने की हिदायत, स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को दी गई थी. उन में से एक उस की पत्नी को खांसी और बुखार के लक्षण नजर आ रहे थे. पुलिस वालों ने उस के पास से वह सीफूड माल भी जब्त कर लिया था जो वह हुआनान मार्केट से खरीद कर लाया था. यह माल पुलिस वालों ने अस्पताल के डाक्टरों को दे दिया था. एक पुलिस वाले ने दूसरे से कहा, ‘‘डा. मू का कहना है कि यह सिर्फ तरल पदार्थों से ही फैलता है – खून, पसीना, पेशाब, सीमन.’’दूसरे ने कहा, ‘‘मैं ने तो इस के घर की किसी भी चीज को छुआ तक नहीं. इस को भी जब हम ले कर आए तो मैं ने पूरा गियर पहना हुआ था.’’पहले वाले ने कहा,

‘‘हम को वापस पुलिस स्टेशन लौट जाना चाहिए.’’दूसरा बोला, ‘‘इस की हालत तो देखो. तुम को ऐसा नहीं लगता कि भले ही पूरा गियर पहन रखा था, लेकिन इस के संपर्क में आने के कारण हम को यहां थोड़े समय रहना चाहिए निरीक्षण में?’’पहले वाला बोला, ‘‘किसी तरल पदार्थ का तो आदानप्रदान हुआ नहीं.’’दूसरा बोला, ‘‘मुझे मालूम है कि फिक्र की कोई बात नहीं है, फिर भी …’’पहले वाले की नजर अचानक गरिमा पर पड़ी. उस ने गरिमा से कहा, ‘‘यह निजी रोगीकक्ष है. आप यहां नहीं आ सकतीं.’’वुहान में, और अस्पताल में, अकसर विदेशी अच्छीखासी संख्या में दिखते थे, इसीलिए उन पुलिस वालों को भारतीय युवती को अस्पताल में देख कर कोई आश्चर्य नहीं हुआ. वह यहां क्या कर रही थी, इस बात को जानने में उन की कोई रुचि नहीं दिखाई दी. गरिमा ने सकपका कर कहा, ‘‘आज एक व्यक्ति चूहे ले कर संक्रामक रोग विभाग में गया है. वहां मेरा शोधकार्य है. मैं उसी को ढूंढ़ रही हूं.’’ यह बोलतेबोलते जब गरिमा ने कांच से उस कमरे के अंदर नजर डाली जिस में सीफूड वाले व्यक्ति को रखा गया था, तो उस की मरणासन्न हालत देख कर और पुलिस वालों के रक्षात्मक कवच देख कर उस को एक ही झटके में समझ में आ गया कि किसी भयंकर और संक्रामक वायरस वाला किस्सा है. पहले पुलिस वाले ने दूसरे से कहा, ‘‘मैं इस लड़की की मदद करता हूं.’’दूसरे ने हिदायत दी, ‘‘एक हाथ की दूरी पर रखना. और इस को भी मास्क और ग्लव्स दे दो.’’पहले वाले ने अपने कवच में से मास्क और ग्लव्स निकाल कर गरिमा को दे दिए जिन्हें गरिमा ने पहन लिए. मास्क पहनने के बाद यह बताना नामुमकिन था कि वह भारतीय है या चीनी.  पुलिस वाला गरिमा को रास्ता दिखाते हुए ले चला. रास्ते में गरिमा ने कहा, ‘‘वह आदमी, जिस के कमरे के बाहर तुम खड़े थे, बहुत गंभीर हालत में दिख रहा था.’’पुलिस वाला शायद अपने स्टेशन वापस जाने की जल्दी में था, इसीलिए उस ने गरिमा से बिना कुछ कहे उस को अस्पताल के अंदर के रास्ते से संक्रामक रोग विभाग तक पहुंचा दिया और चला गया. विभाग के बाहर बोर्ड लगा था, ‘प्रवेश निषेध.’ अंदर जाने के लिए कीकार्ड की जरूरत थी. इतने में अंदर से एक नीले रंग का कोट पहने व्यक्ति बाहर आया. उस ने गरिमा को वहां खड़ा हुआ पाया और कहा, ‘‘यह क्षेत्र वर्जित है.’’गरिमा ने हिम्मत जुटा कर कहा,

‘‘मैं डा. वान लीजुंग की सहायिका हूं. मुझे अंदर चूहों पर हो रही रिसर्च के सिलसिले में जाना है.’’गरिमा को इंग्लिश में बोलता सुन और विदेशी समझ कर नीले कोटवाले ने इज्जत से अपने कीकार्ड से दरवाजा खोल कर गरिमा को अंदर जाने दिया और खुद दूसरी ओर चला गया.  थोड़ी ही आगे जाने पर गरिमा को वह कमरा दिखा जिस में 2-3 लंबी टेबलें पड़ी थीं और जिन पर तरहतरह के उपकरण रखे थे. वह डब्बा भी था जिस में सफेद चूहे सूखी पत्तियों के ऊपर आतुरता से यहांवहां घूम रहे थे. पास ही सीरिंज का डब्बा था. नोटिसबोर्ड पर अलगअलग रिसर्चपेपर के पहले पन्ने लगे हुए थे जिन में चूहों से हुई रिसर्च के प्रकाशन को दर्शाया गया था. बूढ़ा व्यक्ति वहां नहीं था, वह चूहों को रख कर चला गया था. गरिमा ने चूहों के झांपे को गौर से देखा. इन चूहों पर अभी प्रशिक्षण होना बाकी था. कमरे में रोशनी ज्यादा तेज नहीं थी. चूहों के ऊपर हैंडलैंप से पीली रोशनी पड़ रही थी. एक ओर मेज पर टैलीफोन रखा हुआ था और कुछ कागजात बिखरे हुए थे. अचानक अपने पीछे से आई आवाज से गरिमा हड़बड़ा गई. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो वही युवक खड़ा था जिस ने उसे अस्पताल की अन्य प्रयोगशालाएं दिखाई थीं. मिन झोउ ने कड़की से पूछा, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’गरिमा चूहों की तरफ इशारा करना चाहती थी मानो पूछना चाहती हो कि इन चूहों पर कौन सा प्रयोग हो रहा है. लेकिन मिन ने उस को पूछने का अवसर नहीं दिया. मिन ने फिर सख्ती से कहा, ‘‘पूरा अस्पताल तालेबंदी में कर दिया गया है. यह नियम सब के ऊपर लागू होता है.’’गरिमा ने झेंप कर कहा, ‘‘हां.’’मिन ने कहा, ‘‘अब वे लोग किसी को भी इस अस्पताल से 48 घंटों तक बाहर नहीं जाने देंगे.’’गरिमा के मुंह से जैसे चीख ही निकल गई, ‘‘48 घंटे? पूरे 2 दिन?’’मिन ने बताया, ‘‘मैं ने पता कर लिया है, यह खबर झूठी नहीं है.’’गरिमा बोली, ‘‘यह कैसे हो सकता है?’’

कोरोना वायरस के जाल में: भाग 2

लेखक- डा. भारत खुशालानी

वान के नाक का निचला हिस्सा लाल हो चुका था. उस ने अपनी आंखें जमीन पर गड़ा दीं, बोली, ‘‘दस्तखत करते वक्त उस को छींक आई थी. उस छींक के कण कौपी पर और पैन पर आ गए थे.’’मू को मसला समझ में आ गया. उस ने वान को सांत्वना दी और तुरंत उस ओर चल दिया जहां सिक्योरिटी कैमरा से रिकौर्डिंग रखी जाती थी. रिकौर्डिंग कमरे में पहुंच कर उस ने वहां टैक्नीशियन से 4 दिन पहले की सुबह की रिकौर्डिंग मांगी. रिकौर्डिंग पर उसे डा. वान लीजुंग के कक्ष में घटित होने वाली वही घटना दिखी जिस में बीमार से दिखने वाले, समुद्री खाद्य को ले कर जाने वाले व्यक्ति ने पैन से कौपी पर हस्ताक्षर करते हुए छींका था. रिकौर्डिंग कमरे से ही मू ने रजिस्ट्रेशन कक्ष को फोन लगाया और बाद में डाक्टरपेशेंट रिपोर्ट रूम से डा. वान लीजुंग की कौपी मंगाई. वुहान, हूबे प्रांत के अंतर्गत आने वाला शहर है.

वुहान में ही, हूबे के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग में उस रोज जब पुलिसकर्मी भी थोड़ी तादाद में नजर आने लगे, तो स्वास्थ्य विभाग के बाकी कर्मचारी उन को देखने लगे. एक बड़े सम्मलेन कक्ष में स्वास्थ्य विभाग के बड़े ओहदे वाले 15-20 कर्मचारी बैठे थे और उन के पीछे पुलिसवाले खड़े हो कर आने वाले समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे.  सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष ने तेजी से प्रवेश किया और मुख्य कुरसी पर बैठते ही पौलीकौम का बटन दबाया और पौलीकौम में बात करना शुरू किया. पौलीकौम के दूसरे छोर पर डा. चाओ मू मौजूद थे. पौलीकौम से डा. मू की आवाज पूरे कमरे में गूंजी, ‘‘हुआनान समुद्री खाद्य मार्केट से आमतौर पर सी फूड खरीदने वाले व्यक्ति का नाम, पता और मोबाइल नंबर शेयर कर रहा हूं. तुरंत इस का पता लगा कर इस को अस्पताल ले कर आना है पूरे निरीक्षण के लिए. साथ ही, सिक्योरिटी फुटेज भी शेयर कर रहा हूं कि वह कैसा दिखता है.’’अध्यक्ष ने कहा, ‘‘डा. मू, यहां बैठे सब अधिकारी यह जानना चाहते हैं कि क्या चल रहा है? उन के हिसाब से यह संभावित फ्लू के प्रकोप का मामला है. यहां पूरे प्रांत के और शहर के अधिकारी मौजूद हैं. केंद्रीय शासन वाले अभी पहुंचे नहीं हैं.’’

डा. मू ने दूसरी ओर से चिंतापूर्ण लहजे में कहा, ‘‘इतने सारे महत्त्वपूर्ण लोगों को सिर्फ फ्लू का इंजैक्शन दिलाने के लिए नहीं बुलाया गया है. जिस व्यक्ति का फुटेज मैं भेज रहा हूं, वह व्यक्ति संक्रामक है. उस के छूने से ही रोग लगने के बेहद आसार हैं.’’अध्यक्ष ने मुख्य पुलिस अधिकारी को संबोधित किया, ‘‘चीफ, स्थानीय पुलिस की मदद ले कर इस आदमी का पता लगाओ और इस से पहले कि वह शहर में प्लेग फैला दे, इसे वुहान शहरी अस्पताल में डा. मू के पास ले कर जाओ.’’चीफ ने हामी भरी.डा. मू ने चीफ और अध्यक्ष को अधिक जानकारी देना उचित समझा, ‘‘पेशेंट उत्तेजित था, आप सिक्योरिटी फुटेज में भी देख सकते हैं. वह ग्रसनी शोथ से पीडि़त है और खांस रहा है. उस को सांस की तकलीफ हो रही है. कौपी में लिखा है कि उस ने सिरदर्द की भी शिकायत की है. ‘‘डा. वान की जांच कौपी में यह भी लिखा हुआ है कि उस के लसिका गांठ सूजे हुए हैं. उस समय राउंड पर डा. वान लीजुंग थी और वह ही पेशेंट देख रही थी. उस व्यक्ति का निरीक्षण करने के 4 दिनों के अंदर डा. लीजुंग रोगसूचक हो गई है और उस में उसी रोग के लक्षण नजर आ रहे हैं. इस से पता चलता है कि जो वायरस सी फूड वाला व्यक्ति ले कर घूम रहा है, वह वायरस चंद दिनों के भीतर ही अपनेआप को दोहरा सकता है.’’अध्यक्ष ने पूछा, ‘‘डा. मू, आप को लगता है कि सी फूड वाला यह व्यक्ति इस वायरस का पहला शिकार है? या आप की नजर में इस से पहले भी ऐसे लक्षणों वाला इस या दूसरे अस्पताल में आया था?’’चीफ ने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘‘फ्लू जैसी आम बीमारी के लिए तो कोई भी पहले पेशेंट को ढूंढ़ने की इतनी तकलीफ नहीं करता है.’’डा. मू ने दुख से कहा,

‘‘इस के बाद अस्पताल की 2 और नर्सें, और डा. लीजुंग के पति भी इस वायरस का शिकार हो गए हैं. दोनों नर्सों और उन के पतियों को यह वायरस डा. लीजुंग के संपर्क में आने की वजह से हुआ है.’’चीफ ने कहा, ‘‘इस घटना को 4 दिन हो गए, और आप हमें आज बता रहे हैं?’’ अध्यक्ष ने चीफ से कहा, ‘‘स्थानीय पुलिस को प्रोटोकौल के अनुसार तब ही शामिल किया जा सकता है जब उस की जरूरत महसूस हो,’’ फिर डा. मू से कहा, ‘‘डा. मू, आप क्या सुझाव देंगे?’’बहुत ही गंभीरता से डा. मू ने कहा, ‘‘जब तक हम इस सी फूड वाले व्यक्ति का निरीक्षण कर के यह नहीं पता लगा लेते कि उस से पहले कोई और इस वायरस से संक्रमित नहीं था, तब तक वुहान शहरी अस्पताल की तालाबंदी कर देनी चाहिए.’’यह सुनते ही वहां बैठे सब अधिकारी आपस में फुसफुसाने लगे. डा. मू ने उन की फुसफुसाहट को नजरअंदाज करते हुए अपना सुझाव जारी रखा, ‘‘इस प्रकोप को नियंत्रण में लाने के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि वह किसकिस के संपर्क में आया है और वे लोग कहां हैं जिन के संपर्क में वह आया है. ऐसे लोगों को भी अस्पताल में जल्दी से जल्दी ले कर आना है. अस्पताल में डा. लीजुंग के संपर्क में और कौनकौन आया है, इस की पूरी तहकीकात की जरूरत है, इसीलिए अस्पताल की तुरंत तालाबंदी की इजाजत चाहिए.’’अध्यक्ष बोले, ‘‘डा. मू, मैं तुम्हारी राय से सहमत हूं.’’चीफ बोले, ‘‘हम लोग किस वायरस के बारे में बात कर रहे हैं?

’’डा. मू ने बताया, ‘‘अभी तक तो यह वायरस सिर्फ श्वसन प्रणाली पर हमला करते हुए दिख रहा है. वर्तमान में यह ऐसे कुछ खास लक्षण नहीं प्रस्तुत कर रहा है जिस से हम इस की पहचान कर सकें.’’थोड़ी ही देर में गरिमा के साथ चल रहे युवक मिन झोउ का मोबाइल फोन बजा. उस ने फोन पर बात की जिस के बाद उस के हावभाव पूरी तरह बदल गए. पिछले 2 घंटों में मिन ने गरिमा को अस्पताल का निरीक्षण करवाया था और दोचार चुनिंदा प्रयोगशालाएं दिखाई थीं. आने वाले कुछ वर्षों के दौरान गरिमा इन्हीं प्रयोगशालाओं में कुछ शोधकार्य करने की सोच रही थी. इस के लिए आज उस की मुलाकात डा. वान लीजुंग से थी, लेकिन शायद वह व्यस्त थी, इसीलिए उस की जगह मिन झोउ ने ले ली थी.फोन जेब में रख कर मिन ने गरिमा से कहा, ‘‘थोड़ी सी समस्या है.’’गरिमा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या?’’ अब उस के वापस अपने विश्वविद्यालय लौटने का समय आ गया था, जहां होस्टल में एक कमरे में वह रहती थी. वुहान वाएरोलौजी विश्वविद्यालय, चीन का सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय है जहां उच्चकोटि की पढ़ाई तथा शोधकार्य होता है. वुहान शहरी अस्पताल की प्रयोगशालाओं का शोधकार्य, गरिमा को अपनी डाक्टरेट डिग्री के लिए जरूरी था. किसी अनुमानित परिप्रश्न के बदले वह एक व्यावहारिक और प्रयोगात्मक प्रश्न का हल अपने शोधकार्य में निकालना चाहती थी, इसीलिए उस ने विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों की मदद से वुहान शहरी अस्पताल में संपर्क किया था. विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, अकसर अस्पताल के डाक्टरों के साथ मिल कर शोधकार्य करते थे. अपने ज्यादातर डेटा के लिए प्राध्यापक अस्पताल के मरीजों के डेटा पर निर्भर रहते थे. मिन ने गरिमा को अपने फोनकौल के बारे में बताया, ‘‘ऐसा लगता है कि अभी हम लोग इस अस्पताल से नहीं जा सकते.’’गरिमा ने कहा, ‘‘क्या मतलब?’’दोनों वापस जाने के लिए तकरीबन मुख्यद्वार तक पहुंच ही गए थे कि एक अधिकारी सा दिखने वाला व्यक्ति उन के पीछे दौड़ता हुआ आया. दोनों ने पलट कर उस को देखा. अधिकारी ने रुक कर शिष्टाचारपूर्वक कहा, ‘‘माफी चाहता हूं, लेकिन आप दोनों को वापस अंदर आना पड़ेगा.’’मिन ने एक कोशिश की, ‘‘मुझे पहले ही देरी हो रही है.’’लेकिन उस अधिकारी ने फिर शिष्टाचार लेकिन दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘मुझे मालूम है, लेकिन मैं अभी आप लोगों को यहां से नहीं जाने दे सकता हूं. आप कृपया अंदर आ जाएं, फिर मैं सब समझा दूंगा.’’

मिन ने गरिमा से कहा, ‘‘डाक्टरों से ज्यादा अस्पताल प्रशासन की चलती है. इसलिए इन की बात हमें माननी ही पड़ेगी.’’गरिमा बोली, ‘‘ऐसा लगता है मेरा आज का दौरा पूरा नहीं हुआ है. अब तो यह और बढ़ गया है. आज शायद पूरा अस्पताल ही देखने को मिलेगा मुझे.’’अधिकारी ने एक और बात कही, जिस से दोनों चौंक गए, ‘‘तुम दोनों को कम से कम एक पूरे हाथ की दूरी पर रहना पड़ेगा.’’ यह सुन कर दोनों ने अपने बीच थोड़ी दूरी बना ली. अधिकारी ने मुख्यद्वार पर मौजूद 2 रिसैप्शनिस्ट्स को थोड़ी हिदायतें दीं. दोनों रिसैप्शनिस्ट्स ने बहुत ही गंभीरताभरी निगाहों से अधिकारी की बात सुनी और माना.

कोरोना वायरस के जाल में: भाग 1

लेखक- डा. भारत खुशालानी

सुबह का चमकता हुआ लाल सूरज जब चीन के वुहान शहर पर पड़ा, तो उस की बड़ीबड़ी कांच से बनी हुई इमारतें सूरज की किरणों को प्रतिबिंबित करती हुई नींद से जागने लगीं.

मुंबई जितना बड़ा, एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर अंगड़ाई ले कर उठने लगा, हालांकि मछली, सब्जी, फल, समुद्री खाद्य बेचने वालों की सुबह 2 घंटे पहले ही हो चुकी थी. आसमान साफ था, लेकिन दिसंबर की ठंड चरम पर थी. आज फिर पारा 5 डिग्री सैल्सियस तक गिर जाने की संभावना थी, इसीलिए लोगों ने अपने ऊनी कपडे़ और गरम जैकेट बाहर निकाल कर रखे थे. वैसे भी वहां रहने वालों को यह ठंड ज्यादा महसूस नहीं होती थी. इस ठंड के वे आदी थे. और ऐसी ठंड में सुहानी धूप सेंकने के लिए अपने जैकेट उतार कर बाहर की सैर करते और सुबह की दौड़ लगाते अकसर पाए जाते थे. दूर से, गगनचुंबी इमारतों के इस बड़े महानगर के भीतर प्रवेश करने वाला सड़कमार्ग पहले से ही गाडि़यों से सज्जित हो चुका था. सुबह के सूरज से हुआ सुनहरा पानी ले कर यांग्त्जी नदी, और इस की सब से बड़ी सहायक नदी, हान नदी, शहरी क्षेत्र को पार करती हुई शान से वुहान को उस के 3 बड़े जिलों वुचांग, हानकोउ और हान्यांग में विभाजित करते हुए उसी प्रकार बह रही थी जैसे कल बह रही थी.कुछ घंटों के बाद जब शहर पूरी तरह से जाग कर हरकत में आ गया, तो वुहान शहरी अस्पताल के बाहर रोड पर जो निर्माणकार्य चल रहा था,

उस पर दोनों तरफ ‘रास्ता बंद’ का चिह्न लगा कर कामगार मुस्तैदी से अपने काम में जुट गए थे. पीली टोपी और नारंगी रंग के बिना आस्तीन वाले पतले जैकेट पहने कामगार फुरती से आनेजाने वाले ट्रैफिक को हाथों से इशारा कर दिशा दे रहे थे. हालांकि, अस्पताल के अंदर आनेजाने वाले रास्ते पर कोई पाबंदी नहीं थी.  गरिमा जब अस्पताल के पास के बसस्टौप पर बस से उतरी, तो काफी उत्साहित थी. उस का काम अस्पताल के बीमार मरीजों को अच्छा करना नहीं था, यह काम वहां के डाक्टरों और उन की नर्सों का था. गरिमा ने अस्पताल की लौबी में जाने वाले चबूतरे में प्रवेश किया तो तकरीबन 60 बरस के एक बूढ़े चीनी व्यक्ति को अपने सामने से गुजरते हुए पाया. बूढ़े के हाथ में कांच का एक थोड़ा सा बड़ा डब्बा था, जिस में करीब 10-12 सफेद चूहे तेजी से यहांवहां घूम रहे थे. उन चूहों की बेचैनी शायद इस बात का हश्र थी कि उन को अंदेशा था कि उन के साथ क्या होने वाला है.अस्पताल की प्रयोगशाला में इस्तेमाल हो कर, अपनी कुर्बानी दे कर, मानव के स्वास्थ्य को और उस की गुणवत्ता को बढ़ाने का जिम्मा, जैसे प्रयोगकर्ताओं ने सिर्फ उन की ही प्रजाति पर डाल दिया हो. चबूतरे से निकल कर, एक ढलान, लौबी के अंदर न जाती हुई, उस ओर जा रही थी जहां बाहर से आने वाला सामान अस्पताल के अंदर जाता था. ढलान की शुरुआत पर लिखा हुआ था.

‘यहां सिर्फ सामान पहुंचाने वाली गाडि़यां और ट्रक’ और इस के ऊपर एक बोर्ड लगा था जिस पर अस्पताल के ‘प्लस’ चिह्न के साथ बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ‘संक्रामक रोग विभाग’ और उस के नीचे छोटे अक्षरों में ‘वुहान शहरी अस्पताल.’ बूढ़ा आदमी चूहों का डब्बा ले कर उस ढलान से विभाग के अंदर प्रवेश कर गया. गरिमा ने लौबी में प्रवेश किया. लौबी में सामने ही एक 28-30 बरस का चीनी युवक खड़ा था, जिस ने शायद गरिमा को देखते ही पहचान लिया और गरिमा से पूछा, ‘‘गरिमा?’’गरिमा ने चौंक कर उसे देखा, फिर इंग्लिश में कहा, ‘‘हां.’’चीनी युवक ने कहा, ‘‘मेरा नाम मिन झोउ है.’’गरिमा ने पूछा, ‘‘डाक्टर वान लीजुंग से मुझे मुलाकात करनी थी. वे नहीं आईं?’’मिन ने सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘पता नहीं वे कहां हैं. खैर, मुझे मालूम है आज क्या करना है.’’ मिन ने सफेद कोट पहन रखा था, जो दर्शाता था कि वह भी डाक्टर है. गरिमा ने सोचा शायद मिन भी डा. वान लीजुंग के साथ काम करता हो. डा. लीजुंग खुद भी कम उम्र की थीं. उन की भी उम्र 32-35 से ऊपर की नहीं होगी. मिन ने कहा, ‘‘इस अस्पताल के अंदर कहीं हैं वे.’’गरिमा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘एक डाक्टर तो अस्पताल में गायब नहीं हो सकता.’’मिन भी मुसकरा दिया. दोनों लौबी की ओर बढ़ चले. डा. लीजुंग ने अभी भी सफेद कोट पहना हुआ था. उस का चेहरा गंभीर था. माथा तना हुआ था. चेहरे पर पसीने की बूंदें थीं. वह एक ऐसे कमरे में थी जो छोटा और तंग तो था लेकिन जिस में एक बिस्तर डला हुआ था. कोने में लोहे की टेबल थी जिस पर पानी का जार रखा हुआ था.

ऊपर सफेद ट्यूबलाइट जल रही थी. कमरे का दरवाजा अच्छे से बंद था, लेकिन दरवाजे पर छोटी खिड़की जितना कांच लगा होने से बाहर दिखता था और बाहर से अंदर दिखता था. बाकी दरवाजा मजबूत प्लाईवुड का बना था. वान की आंखें लाल होती जा रही थीं. बाहर से एक तकरीबन 40 वर्ष के डाक्टर ने दरवाजे के कांच तक आ कर वान को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तुम को मालूम है कि ये सब एहतियात बरतना क्यों जरूरी है?’’वान ने बिना उस की तरफ देखे धीरे से हामी भरी.दरवाजे के बाहर खड़े डा. के सफेद कोट पर बाईं ओर छाती के ऊपर एक आयाताकार बिल्ला लगा था जिस पर लिखा था ‘डा. चाओ मू.’डा. मू ने गंभीरता से वान से प्रश्न किया, ‘‘मुझे थोड़ा समझाओ कि क्या कारण हो सकता है?’’वान ने आंखें मीचीं. जिस कुरसी पर वह बैठी थी, उस पर थोड़ा घूम कर कहा, ‘‘मैं ने जितने भी राउंड लगाए हैं अस्पताल के पिछले कई दिनों में, उन में 4 दिन पहले का सुबह वाला राउंड मुझे सब से ज्यादा संदिग्ध लगता है. उस दिन के मेरे सब से पहले वाले पेशेंट को एक्सरेरूम ले जाया गया था, इसलिए उस से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी उस सुबह. दूसरा पेशेंट सोया पड़ा था, उस से भी मेरा कोई संपर्क नहीं बना. तीसरा पेशेंट …,’’ वान ने रुक कर गहरी आंखों से डा. मू को देखा, ‘‘तीसरा पेशेंट थोड़ा मोटा सा था. उस के हाथ में सामान का एक थैला था. उस को बुखार लग रहा था और सर्दीजुकाम था. मैं ने बात करने के लिए उस से पूछा था कि थैले में क्या ले जा रहा है. उस ने बताया था कि हमेशा की तरह हुआनान यानी सीफूड (समुद्री खाद्य) मार्केट से खरीदारी कर के अपने घर जा रहा था.’’ वान ने याद करते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस के बाएं कंधे को अपने दाएं हाथ से पकड़ कर स्टेथोस्कोप को पहले उस के दाईं ओर रखा, उस ने गहरी सांस खींची. फिर मैं ने स्टेथोस्कोप बाईं ओर रखा. मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है जो ज्यादा जोखिम वाला संपर्क हो.

किसी भी द्रव्य पदार्थ से संपर्क नहीं बना.’’मू बोला, ‘‘तुम्हें पूरा विश्वास है?’’वान ने कहा, ‘‘ऐसा लगता तो है.’’ वान का इतना कहना ही था कि उसे जोरों की छींक आ गई. उस ने तुरंत अपनी कुहनी से नाक और मुंह ढकने की कोशिश की तो उसे 3-4 बार जोर से खांसी आ गई. हड़बड़ाहट में वह कुरसी से उठ कर दरवाजे के कांच तक आ पहुंची. उस ने एक हाथ से दरवाजे को थाम कर खांसी रोकने का प्रयास किया. उस ने कांच के दूसरी ओर डा. मू की तरफ पहले तो दयनीय दृष्टि से देखा, फिर अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘उस से कहा था कि थोड़ी देर और रुक जाए वह, ताकि मैं उस का और परीक्षण कर सकूं. लेकिन वह बोला कि उस को जल्दी घर जाना है.‘‘रजिस्ट्रेशन करते समय उस ने अपना नामपता लिखा होगा. मेरी कौपी में उस के परीक्षण का ब्योरा लिखा है. मेरी कौपी…’’ वान ने थोड़ा जोर दे कर फिर सोचा और कहा, ‘‘मैं ने अपनी कौपी पर उस को अस्पताल से बरखास्त किए जाने के लिए दस्तखत करने के लिए अपना पैन दिया. उस ने अपना समुद्री खाद्य वाला थैला नीचे रखा, पैन ले कर कौपी पर दस्तखत किए. मैं ने कौपी और पैन दोनों वापस ले लिए.’’

#coronavirus: लॉकडाउन के कारण प्रजनन स्वास्थ्य सेवाए हो रही है बाधित

बीते पखवाड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व के सभी देशों से कोरोना संकट के बीच गर्भधारण और गर्भपात को अनिवार्य स्वास्थ्य सेवा घोषित करने का अनुरोध किया था. संगठन ने सभी सरकारों से कहा था कि वे जिन भी सेवाओं को अनिवार्य मानती हैं, उन्हें चिह्नित करके वरीयता दें. इनमें प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को महत्त्वपूर्ण माना जाना चाहिए. विश्व के कई देशों ने इस पर अमल भी किया. कई जगह रूढ़िवादी सोच ने इसे प्रभावित किया है. आइये जानते है इस संकट के समय प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं पर क्या विशेष प्रभाव पड़ रहा है ..

* गर्भधारण करने का फैसला खुद महिला तय नहीं कर सकती :- आज भी हमारे देश समेत कई देशों में महिला यह तय नहीं कर सकती है कि उसे कब और किस उम्र पर गर्भधारण करना है. फैसला न ले पाना , का असर उनके सेहत पर पड़ता है , असमय वह कई बीमारियों का शिकार होती है.  लॉकडाउन के समय गर्भधारण रोने के उपायों भी सभी महिलाओं के पहुंच से दूर हुआ है . इस समय  कंडोम और गर्भनिरोधक पर सप्लाई नहीं हो पा रहा है, इसका असर महिलाओं पर पड़ रहा है. और कई महिलाएं अनचाहे गर्भ की परेशानी झेल रही हैं.

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* नवयुवतियों का असमय मौत होना चिंता जनक है :- यूनिसेफ का कहना है कि दुनिया भर में 15 से 19 साल की लड़कियों की मौत का सबसे बड़ा कारण गर्भावस्था और प्रसव से जुड़ी समस्याएं होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट के अनुसार मातृत्व मृत्यु के 4.7% से 13.2% मामलों का कारण असुरक्षित गर्भपात है. विश्व में प्रति एक लाख जीवित जन्म पर मातृत्व मृत्यु दर 211 है.

* 95 लाख महिलाओं को परिवार नियोजन की सेवाएं उपलब्ध नहीं  :- यूरोपीय देशों के लगभग 100 गैर-सरकारी संगठनों ने संयुक्त बयान में कहा है कि लॉक-डाउन के दौरान उन महिलाओं की मदद की जानी चाहिए जो प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करना चाहती हैं. वही लंदन की गैर-सरकारी संगठन ने चेतावनी दी थी कि कोविड-19 के कारण इस साल लगभग 95 लाख महिलाओं और लड़कियों को परिवार नियोजन की सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाएंगी. यह संगठन दुनिया के 37 देशों में गर्भनिरोध और सुरक्षित गर्भपात की सेवाएं मुहैया कराता है. संगठन का कहना है कि यात्रा पर प्रतिबंधों और लॉक-डाउन के चलते महिलाओं पर बुरा असर होगा क्योंकि उन्हें प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने में परेशानी हो रही है . वही एक अन्य अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ने बताया कि 64 देशों में उसके 5,600 क्लिनिक बंद कर दिए गए हैं. गर्भनिरोध के साधन और एचआईवी की दवाओं की भी कमी आई है .

 * निर्माण और सप्लाई बंद :- विश्व के कई इलाकों में कंडोम और दूसरे गर्भनिरोधक का निर्माण और सप्लाई बंद पड़ा है . इसके उत्पाद की अधिकतर कारखाने एशिया के कई देशों में है. बहुत सी कारखाने चीनी में है , जो अभी तक बंद हैं. तो अन्य देशों के कारखाने भी खुले नहीं है, बहुत से कारखाना मजदूरों को घर पर रहकर काम करने को या कम घंटे काम करने को कहा गया है. कही निर्माण हो ही नहीं रहा है तो कही इसके निर्माण क्षमता में भरी गिरावट दर्ज किया गया है. यातायात के साधन को बंद होने के कारण यह अपने तय विक्रेता के पास भी समय रहते नहीं पहुंच पा रहा है . अब सप्लाई बंद है तो  लाखों महिलाओं को प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी सामग्री मिलनी बंद हो गई हैं. इस कारण अपने पति और पुरुष मित्रों के साथ घरों तक सीमित हुई औरतों को अवांछित गर्भधारण का सामना करना पड़ रहा है.

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  * एक जिला ऐसा भी है जहाँ  घर घर बांटी जा रही है गर्भनिरोधक गोलियों :-   उत्तरप्रदेश के बलिया जिला में एसीएमओ डॉ वीरेंद्र कुमार के निगरानी में देश में जनसंख्या पर नियंत्रण रखने के लिए परिवार नियोजन के विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं. इसी उपाय में कंडोम व माला डी गोलियां हैं. अधिकारी का कहना है कि परिवार नियोजन किट बांटने का यह अभियान पहले से चल रहा है. लॉकडाउन में लोग घरों में हैं. ऐसे में जनसंख्या न बढ़े इसे ध्यान में रखते हुए कंडोम बांटने वाले अभियान को निरंतर जारी रखा गया है. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जा रहा है.

लॉकडाउन लगा तो टीकाकरण जैसे कार्यक्रम भी बंद हो गए. विदेश और देश के दूसरे हिस्सों से कौन आया, इसकी छानबीन के लिए घर-घर जा रहीं आशा कार्यकर्ता गर्भनिरोधक भी बांट रही हैं.  ये गोलियां उन्ही जोड़ों को दी जा रही हैं, जिनके छह माह या एक साल से ऊपर के बच्चे हैं और वे गर्भधारण के इच्छुक नहीं हैं. जबकि लॉकडाउन में बाहर निकलना मुश्किल है. वे परिवार नियोजन के कोई उपाय नहीं कर सकते.   इसके साथ ही आशा कार्यकर्ता व एएनएम घर-घर जाकर कोरोना से लड़ने के साथ-साथ परिवार नियोजन के फायदे भी बता रही हैं.

योगी कहे जय श्रीराम प्रियंका कहे पहले काम

जिस राज्य का मुखिया हिंदुत्व की दहाड़ खुलेआम करता हो और राज्य की सियासत उग्र हिंदू राष्ट्र के फेर में धंसती जा रही हो वहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा आम जनता का ध्यान मूलभूत मुद्दों की तरफ खींच रही हैं.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार बढ़ाने व पार्टी की सांगठनिक मजबूती के लिए किसानों, नौजवानों, बेरोजगारों के मूल सवालों पर फोकस करना शुरू किया है. उन्होंने यह तय किया है कि योगी सरकार के हिंदुत्व नैरेटिव से इतर आम आदमी के असल सवालों पर बात कर के योगी सरकार

की हिंसक, विभाजनकारी राजनीतिक असलियत की तुलना में आम जनता के सवालों पर प्रदेश की राजनीति को खड़ा किया जाए. इस के तहत पार्टी प्रदेश के बेरोजगारों, नौजवानों, छोटे दुकानदारों, रेहड़ीपटरी वालों, किसानों से सीधे संवाद कायम कर के योगी आदित्यनाथ सरकार की जनविरोधी नीतियों का परदाफाश करेगी और सरकार को सड़क से सदन तक घेरेगी.

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हालांकि, योगी आदित्यनाथ की सरकार भले ही बेरोजगारों, किसानों और नौजवानों की समस्याओं पर संवेदनशील होने का दावा करती हो लेकिन विश्लेषक यह मानते हैं कि यह सरकार केवल अपने मूल एजेंडे यानी हिंदुत्व के प्रसार और इसे स्थापित करने पर ही केंद्रित है. आम जनता की समस्याओं से इस का सरोकार नहीं है.

गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों को गन्ना मूल्य का समयबद्ध और उचित भुगतान मिलना एक बड़ी समस्या है. चीनी मिलों पर किसानों की बकाया रकम 4 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है. वहीं, पूर्वांचल में रोजीरोटी के लिए पलायन के साथ किसानों को धान और गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना एक  बड़ी चुनौती है. रोजगार गायब है. योगी सरकार के लाख दावों के बावजूद सरकार किसानों को गन्ने का समयबद्ध न्यूनतम मूल्य दिलवा पाने में जहां असफल है वहीं पूर्वांचल में धान के सीजन में किसानों ने बिचौलियों को बड़ी मात्रा में अपनी तैयार फसलें औनेपौने दामों में बेची हैं.

दिहाड़ी मजदूरों की दिहाड़ी 

पिछले 3 वर्षों से एक पैसा नहीं बढ़ी है और महंगाई 7 साल के अपने उच्चतम स्तर पर है. गांव में रोजगार का गंभीर संकट है और ग्रामीण भारत की क्रयशक्ति आधी हो चुकी है. ऐसे दौर में जब प्रदेश में किसान, मजदूर और खेती अपने सब से बुरे दौर में हैं तब प्रियंका गांधी का यह प्रयास क्या उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कोई सांगठनिक राजनीतिक ताकत दे पाएगा? और जब प्रदेश का विपक्ष भी हिंदू सांप्रदायिकता को संतुष्ट करने की कोशिश में हो, तब प्रियंका गांधी का यह कदम कांग्रेस की कितनी मदद करेगा?

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उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के सामाजिक कार्यकर्ता शम्स तबरेज से जब इस संदर्भ में पूछा गया, तो उन का जवाब था. कि प्रियंका गांधी ने आम आदमी व उस के सवालों पर बात करने और सरकार को घेरने का जो निर्णय लिया है वह समयानुकूलित है. जब पूरे विपक्ष के लिए ये सवाल बेगानी हों तब इन सवालों को ले कर जनता से संवाद करना बड़ी बात है. उन के मुताबिक, सरकार के दावों के इतर उन के क्षेत्र के किसानों ने अपने धान को औनेपौने दामों में बिचैलियों को बेचा है. छोटे और मझोले किसान बड़ी संख्या में अपनी धान की फसल बिचौलियों को 1,200 से 1,400 रुपए प्रति क्ंिवटल में बेच दे रहे हैं. इस की मुख्य वजह यह है कि सरकारी मंडियों में छोटे किसानों की कोई सुध नहीं लेता.

कई बार किसान इन्हीं बिचौलियों से फसल तैयार होने के पहले ही एडवांस पैसे इस वादे पर ले जाते हैं कि अपनी तैयार फसल वे इन्हीं बिचौलियों को देंगे और इस तरह से कर्ज में फंसे ये किसान बड़े नुकसान पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं. जब नौकरी नहीं है, किसान कर्जदार हैं, गन्ना किसान अपनी फसल का दाम नहीं पा रहा है, दिहाड़ी मजदूर संकट में हैं, तब कांग्रेस के लिए सही यही है कि वह अवाम के जमीनी सवालों पर योगी सरकार को घेरे.

#WhyWeLoveTheVenue: जानें शानदार Interior की खासियत

हुंडई वेन्यू इन दिनों सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली कार कही जा रही है. इसके फंक्शन और डिजाइन की मार्केट में जमकर तारीफ हो रही है. इस कार में बैठकर आप बेहद ही आराम से लंबा सफर तय कर सकते हैं. आइए जानते है इस कार की खासियत के बारे में..

इस कार के अंदर मौजूद सभी बटन टच करने से खुलते हैं और बंद होते हैं. अगर आप लंबे सफर पर जा रहे हैं और आपके गाड़ी के शीशे गंदे हो रहे हैं, जिससे ड्राइविंग में दिक्कत आ रही है तो ऐसे में वहां खुद ही पानी की फुहारे आ जाएंगी और फिर आपका शीशा क्लीन हो जाएगा.

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गाड़ी के अंदर का डैशबोर्ड 8 इंच का है. साथ ही इसके अंदर टचस्क्रीन स्मैक ui भी मौजूद है. जिससे आपको ज्यादा हाथ पैर मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

आगे की दोनों सीटे अच्छी और सपोर्टिव है. अगर बात करें ड्राइविंग सीट की तो आप बेहद ही कम्फर्टेबल होकर ड्राइव कर सकते हैं. सामने से सड़क का नीचे वाला हिस्सा आराम से नजर आएगा. जिससे आप एक्सिडेंट होने के खतरे से भी बच सकते हैं.

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गाड़ी की स्टेरिंग स्मूथ है जिससे आपको गाड़ी के अंदर थकावट महसूस नहीं होगी. लंबा इंसान भी इस गाड़ी के अंदर आराम महसूस करेगा.

मध्यप्रदेश-कोरोना से जंग

आध्यात्म , एकात्म और आयुर्वेद का पाखंड

कोरोना वायरस को किसी धार्मिक पाखंड , आयुर्वेद , ज्योतिष , झाडफूंक , तंत्र मंत्र या टोने टोटकों से काबू नहीं किया जा सकता यह बात किसी सबूत की मोहताज नहीं रह गई है लेकिन फिर भी इस बात को अगर बार बार दोहराना पड़ता है तो इसकी बड़ी वजह यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा के शीर्ष और जिम्मेदार पदों पर बैठे नेता एक षड्यंत्र और पूर्वाग्रह के चलते इन्हीं पाखंडों को थोपने की कोशिश करते कोरोना के कहर को और बढ़ा ही रहे हैं . एक तरफ दुनिया भर के देशों के नेता और वैज्ञानिक कोरोना का इलाज करने और वेक्सीन बनाने दिन रात एक किए दे रहे हैं तो दूसरी तरफ भाजपाई नेता हकीकत और विज्ञान की सच्चाई को झुठलाते हुये यह जताने की कोशिश जिसे मूर्खता और धूर्तता कहना ज्यादा बेहतर होगा कर रहे हैं कि कोरोना को सनातन धर्म के सिद्धांतों से काबू किया जा सकता है .

इस साजिश को बड़ा मंच दिया मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो बीती 28 अप्रेल को साधु संतों की शरण में थे . इस दिन आदि शंकराचार्य की जयंती थी .  शिवराज सिंह ने कई नामी संतों और धर्म गुरुओं से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये रूबरू होते उनसे पूछा कि कोविड 19 से निबटने का रास्ता क्या है . इस पौराणिक से संवाद का विषय रखा गया था , कोविड 19 की चुनौतियाँ और एकात्म बोध . बक़ौल शिवराज सिंह कोरोना से निबटने के लिए नए प्रकाश की जरूरत है .  चिकित्सा विज्ञान और डाक्टर अपना काम कर रहे हैं लेकिन अब दर्शन संत और आध्यात्मिक गुरुओं को भी रास्ता दिखाना जरूरी है .

बस इतना कहना भर था कि देश भर के नामी गिरामी गुरु नया प्रकाश लेकर स्क्रीन पर प्रगट हो गए जो डेढ़ महीने से घाटा झेल रहे हैं  . इनकी दुकाने बंद तो नहीं हुईं हैं  लेकिन लाक डाउन के चलते आमदनी जरूर पहले सी नहीं हो रही है . इन ब्रांडेड महात्माओं एक यह बड़ा डर अपनी जगह वाजिब भी है कि अगर भक्तों की दान दक्षिणा की लत छूट गई तो वातानुकूलित  मठों और आश्रमों की रंगीनी , वीरानी में तब्दील हो जाएगी और इन्हें देसी घी के पकवान और ड्राई फ्रूट के लाले पड़ जाएंगे.

संकट और नुकसान के इन दिनों में धर्मप्रेमी शिवराज सिंह ने इन्हें दुकान और धंधा चमकाने मौका दिया और एवज में प्रदेश की जनता को मिला यह आशीर्वादनुमा संदेश कि कोरोना का संकट ईश्वर द्वारा लिया जा रहा इम्तिहान है इसलिए घबराओ मत हिम्मत रखो .  भगवान इम्तिहान के बाद सब ठीक कर देगा , बस तुम लोग हमें मत भूल जाना . अब यह इन विददानों ने नहीं बताया कि भगवान को बैठे ठाले ये क्या ठिठोली सूझी कि उसने भक्तों का ही  जीना मुहाल कर दिया और यह भी नहीं बता रहा कि यह इम्तिहान कितने दिन और चलेगा .

और अहम सवाल ये कि वह खुद क्यों कोरोना के डर से मंदिरों में छिपा बैठा है और आप जैसे उसके दलाल भी मुंह छिपाते अपने दड़बो में कैद हैं . क्यों नहीं पहले की तरह आप महिलाओं की भव्य शोभा यात्रा निकालकर किसी मैदान में 101 कुंडीय कोई बगुलामुखी छाप यज्ञ कर कोरोना को भस्म नष्ट नहीं कर देते . इसका मेहनताना देने तो हम हमेशा की तरह तैयार हैं ही इस बार तो पीछे आप लोग हट रहे हो .

चालाकी भरे बोल वचन

जब ऑन लाइन दरबार सज गया तो राजन और ऋषियों का वार्तालाप शुरू हुआ . जूना अखाड़े हरिद्वार के मठाधीश अवधेशानन्द गिरि ने बड़े दार्शनिक अंदाज में कहा , चुनौती में अभाव अवसाद तो आते ही हैं लेकिन चुनौतियाँ समाधान व अवसर भी साथ लाती हैं . मनुष्य की  चेतना शताब्दियों से ऐसे कष्ट देख रही है . संकट में आचार्य शंकर के एकात्म का संदेश भी बड़ा समाधान है . योग , आयुर्वेद और आध्यात्म चुनौतियों से निबटने के लिए सशक्त माध्यम है . चिन्मय मिशन मुंबई के स्वरूपानन्द सरस्वती ने ज्ञान इन शब्दों में बघारा , आपत्ति में भी ईश्वर की कृपा होती है . आयुर्वेद का प्रचार हो रहा है . यह इम्यून सिस्टम को बढ़ाने में उपयोगी है . इसी तरह स्वस्थ मनुष्य की मनोदशा ठीक रहती है तो इम्यून सिस्टम और अच्छा होता है . अब भक्ति श्रद्धा और विश्वास बदलाब लाने का कार्य कर रहे हैं . लोगों का उत्साह बढ़ रहा है .

इन दोनों भगवान टाइप के महात्माओं से एक कदम आगे बढ़ते कन्याकुमारी की महिला संत निवेदिता भिड़े के मुताबिक मनुष्य एकात्मा को भूलकर उपयोग में जीने लगा था . ईश्वर ने कोरोना से आत्मवोध का महत्व बता दिया है . राजकोट के परमात्मानंद सरस्वती ने तो यह कहते पूरी फ़िलास्फी की ही बाट लगा दी कि कोरोना मनोवैज्ञानिक कष्ट है . इस संकट के बहाने आज ईश्वर संभवतः यह शिक्षा देना चाह रहे हैं कि व्यक्ति जितना उपभोग करेगा वह कष्ट का कारण बनेगा .

बीकानेर के संत संवित सोम गिरि के मुताबिक कोविड 19 एक चुनौती है लेकिन इसका समाधान भी आसान है . आज विश्व को शंकराचार्य का संदेश देना जरूरी है . कोरोना संक्रमण एक संदेश है कि हम अपने अपराध के लिए पृकृति और पर्यावरण से क्षमा मांगे . नागपुर के मुकुल कानिटकर ने बिना किसी लागलपेट के सीधी सनातनी दुकानदारी की बात करते कहा , हमारे यहाँ पहली रोटी गाय को खिलाने और तुलसी को जल चढ़ाने जैसी परम्पराएँ संस्कृति का हिस्सा हैं लाक डाउन को घरवास का नाम हमने दिया है जिसे मनोबल बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए .

डरे तो ये खुद हैं –

इन लोगों के बयानों ( प्रवचनों )  से साफ दिख रहा है कि इन्हें कोरोना से कोई लेना देना नहीं और न ही उसकी जानकारी है बल्कि इनकी चिंता और डर धर्म की अपनी दुकानदारी पर मँडराता खतरा है .  इसीलिए सभी ने घुमाफिरा कर संकेतों में दान दक्षिणा की ही बात की चूंकि शिवराजसिंह ने जनसंघ के संस्थापक दीनदायल उपाध्याय का दिया एकात्म चिंतन या वाद शब्द जोड़ दिया था इसलिए महानुभावों ने उसे भी जोड़ दिया और चूंकि शंकराचार्य जयंती थी इसलिए उनका भी पुण्य स्मरण सरकारी तौर पर कर लिया गया .

भाजपाई खेमे के नामी धर्मगुरु अवधेशानन्द इसी डर के चलते योग आध्यात्म और आयुर्वेद की वकालात करते नजर आए तो स्वरूपानन्द स्वरस्ती ने आयुर्वेद का खुलेआम न केवल प्रचार किया बल्कि कोरोना को उत्साह बढ़ाने बाली ईश्वरीय कृपा बता डाला . ये दोनों शायद ही बता पाएँ कि आयुर्वेद कैसे और कहाँ कोरोना से निबट रहा है . इन महात्माओं की मंशा या चालाकी  इतनी भर है कि इनके गाल बजाने भर से मान लिया जाये कि देश भर के अस्पतालों में कोरोना संक्रमित लोगों का जो इलाज चल रहा है वह दरअसल में एलोपेथी से नहीं बल्कि आयुर्वेद से चल रहा है . हजारों चरक , सुश्रुत और सुषेण यह काम कर रहे हैं . सेनेटाइजेशन , सोशल डिस्टेन्सिंग , मास्क , पीपीई किट और दवाइयों का आविष्कार या खोज आयुर्वेद की देन है .

मुकुल कानिटकर गाय की रोटी और तुलसी जल की बात दोहराकर कौन से विज्ञान से कोरोना संकट से निबटने की बात कर रहे हैं इसका तो कोई ओर छोर ही ही नहीं समझ आता . तमाम तथाकथित विददानों ने एक तरह से देखा जाये तो दक़ियानूसी बातें कर डाक्टरों की मेहनत लगन और निष्ठा को ही खारिज कर दिया है जो दिन रात एक कर , घर परिवार का सुख छोडकर , अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना से लोगों को बचा रहे हैं . ऐसे धार्मिक  आयोजनों से वे हतोत्साहित नहीं होंगे ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं .

शिवराज सिंह और साधु संतों के इस नवगठित गिरोह पर जरूरत तो इस बात की है कि कानूनी काररवाई हो क्योंकि ये लोग लोगों को गुमराह कर रहे हैं उन्हें वैज्ञानिक चिकित्सा से दूर कर रहे हैं और हैरानी की बात यह है कि अभियान एलोपेथी के दम पर ही चला रहे हैं . अगर वाकई योग ,  आयुर्वेद और आध्यात्म में कोई शक्ति या दम है तो इन सभी को एक दिन बिना मास्क पहने किसी अस्पताल में कोरोना ग्रस्तों के बीच गुजारकर दिखाना चाहिए लेकिन ये लोग ऐसा करेंगे नहीं क्योंकि ये लोग समर्पित डाक्टर नहीं हैं और न ही इनमें लोगों के भले का कोई जज्बा है .  ये लोग तो शुद्ध दुकानदार हैं जो अपने सर्व सुविधायुक्त आश्रमों में बैठकर दूध मलाई चाटते विलासी ज़िंदगी जी रहे हैं .

जब कोरोना संकट खत्म हो जाएगा तो ये लोग ब्रह्मा विष्णु राम श्याम और बम बम भोले का उद्घोष लगाते फिर गल्ला खोलकर धूनी रमा लेंगे कि देखो हमने कोरोना को पछाड़ दिया अब लाओ दक्षिणा .  लेकिन अभी ये डरे हुये हैं इसलिए फैसला आम लोगों को अपनी बुद्धि और विवेक से लेना है कि वे इन धूर्तों को श्रेय और दान दक्षिणा देंगे या नहीं .

इनकी क्या मजबूरी

बेहिसाब पैसा और एशोआराम की ज़िंदगी तो इन बाबाओं की आदत है लेकिन शिवराजसिंह ने किस मजबूरी के तहत यह बेतुका और बेहूदा  बेमतलब का आयोजन सरकारी पैसों से किया इसे समझना भी जरूरी है कि कैसे धर्म और राजनीति का गठजोड़ ठगी और पिछड़ेपन की वजह बनता है . कोरोने के मोर्चे पर शिवराज सिंह एक नाकाम मुख्यमंत्री साबित हुये हैं और अपनी नाकामी छिपाने धर्मगुरुओं का पल्लू पकड़ रहे हैं .

मध्यप्रदेश में कोरोना सरकार की गलती और कुप्रबंधन के चलते ज्यादा फैला क्योंकि 23 मार्च को शपथ लेने बाले शिवराज ने एक महीने तक तो अपना मंत्रिमंडल ही नहीं बनाया और बनाया भी तो सिर्फ 5 मंत्रियों का , जो हालात संभालने नाकाफी साबित हो रहा है . अब जिस राज्य में स्वास्थ मंत्री और स्वास्थ सचिव ही नहीं होगा वहाँ लोग तो बेमौत मारे ही जाएंगे . गौरतलब है कि शिवराज सिंह कांग्रेस के कमलनाथ से कुर्सी छीनकर मुख्यमंत्री बने हैं जिसमें उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सहयोग दिया है . एक नाटकीय घटनाक्रम में सिंधिया अपने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे .

चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज को समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें . उनके हाथ पाँव फूलने की वजहें राजनैतिक ज्यादा हैं . प्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है जिनकी तैयारियां भी शुरू हो गई हैं अगर जनता ने भाजपा और शिवराज को भाव नहीं दिया तो बहुमत के अभाव में यह सरकार भी गिर सकती है .  दूसरे भाजपा के दिग्गज नेता उन्हें चोथी बार मुख्यमंत्री बनाए जाने से खफा भी हैं कि क्या इस पद का पट्टा पार्टी ने उनके नाम कर दिया है जबकि 2018 में जनता ने उन्हें नकार दिया था .  तीसरी अहम बात यह कि शिवराज को अब बात बात में सिंधिया की सलाह और इजाजत का मोहताज होना पड़ रहा है जाहिर है ऐसी कई बातों से उनका आत्मविश्वास लड़खड़ाया हुआ है .

इस लड़खड़ाए आत्मविश्वास को ठीक से खड़ा करने वे गलती पर गलती किए जा रहे हैं . धर्मगुरुओं से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये कोरोना संकट से निबटने निर्देश वे मांग रहे हैं तो इससे हैरान परेशान लोगों में उल्टा मेसेज ही जा रहा है क्योंकि जमीनी तौर पर सरकार लोगों के लिए कुछ नहीं कर पा रही है . मंडियों में किसान परेशान हैं , युवाओं में रोजगार को लेकर डर व्याप्त है , गरीब तबका जिसकी तादाद कोई 5 करोड़ है खाने पीने को मोहताज हो चला है इस तबके को धर्म , आध्यात्म एकात्म बगैरह सब रोटी ही हैं .  इनसे भी ज्यादा अहम बात और शिवराज सिंह का वाजिब और जायज डर कर्मचारियों की नाराजी है जिनका महंगाई भत्ता रद्द कर दिया गया है जो कमलनाथ सरकार उन्हें दे गई थी .

एक प्रोफेसर की मानें तो शिवराज सिंह चाहते तो अप्रेल में बढ़ी हुई पगार दे सकते थे लेकिन कमलनाथ सरकार का फैसला रद्द कर उन्होने कर्मचारियों की नाराजी मोल ले ली है और अब बाबाओं के चक्कर में आकर तो उन्होने रही सही इमेज भी खराब कर ली है कोरोना संकट अगर इन्हीं धर्मगुरुओं के प्रताप  से उन्हें जीतना है तो वे अस्पताल बंद कर दें .  इससे पैसा भी बचेगा फिर वह हमें हमारा हक दे सकते हैं .

इन प्रोफेसर के मुताबिक राज्य सरकार बेवजह की फिजूलखर्ची आयुर्वेद का काढ़ा पिलाकर भी कर रही है . गौरतलब है कि 1 करोड़ लोगों को त्रिकुट नाम का आयुर्वेदिक काढ़ा इम्यूनिटी बढ़ाने के नाम पर पिलाया जा रहा है जिसके वैज्ञानिक होने में शक है .

शिवराज सिंह की मंशा साफ दिख रहा है कि सनातन धर्म के प्रचार प्रसार और पोंगा पंथ को हवा देने की है जिसके सहारे वे कोरोना के कहर को काबू कर पाएंगे इसमें शक बेहद कुदरती बात है यानि नुकसान झेलने आम जनता को और तैयार रहना चाहिए क्योंकि अब सरकार इम्यूनिटी बढ़ाने और भी प्रोडक्ट लाने की तैयारी कर रही है इन टोटकों पर कितना पैसा फुंक रहा है यह किसी को नहीं मालूम .

#lockdown: संकट में सुपरपावर 

कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में जारी है, मगर इसका सबसे ज्यादा खौफनाक असर अमेरिका पर देखने को मिल रहा है.अमेरिका में कोरोना वायरस ने करीब 56  हजार लोगों की जान ले ली है.कोरोना अमेरिका के लिए सबसे घातक बन गया है.अबतक अमेरिका में 9 लाख 87 हजार के करीब लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं.

अमेरिका में जनवरी के बाद से ही कोरोना वायरस का कहर तेज होता गया और लगातार पीड़ितों की संख्या बढ़ती गई. पिछले करीब चालीस दिन में अमेरिका में ‘स्टे एट होम’ का आदेश लागू है, इस वजह से करीब 90 फीसदी अमेरिकी जनता अपने घरों में है. गौरतलब है कि अमेरिका में पूरी तरह से लॉकडाउन नहीं है, जिसकी काफी आलोचना भी हुई है. यही कारण रहा कि अमेरिका के बड़े शहरों में कोरोना वायरस का कहर थम ही नहीं रहा. अभी भी न्यूयॉर्क में कोरोना वायरस ने सबसे अधिक तबाही मचाई है, सिर्फ न्यूयॉर्क में ही करीब 18 हजार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि यहां पर 8 लाख से अधिक लोगों का टेस्ट हो चुका है.अमेरिका में इस महामारी के कारण करीब 2 करोड़ से अधिक लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं. पूरी दुनिया में तबाही मचा रहे कोरोना का सबसे ज्यादा कहर अमेरिका पर टूटा है. अमेरिका में हर दिन कोरोना वायरस संक्रमण से मौत का ग्राफ बड़ा होता जा रहा है और हर दिन नया रिकॉर्ड बनता जा रहा है.

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अमेरिका के लिए पिछले कुछ साल बेहद मुसीबत भरे रहे हैं. इस साल कोरोना की विपदा आ गयी.उधर मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अमेरिका को जून से नंवबर के बीच कुदरत के कहर का फिर सामना करना पड़ सकता है. अगर अमेरिकी सरकार ने सही कदम नहीं उठाए और सही फैसले नहीं लिए तो प्राकृतिक मुसीबत बहुत बड़ी हो सकती है और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है.अमेरिका इस वक़्त तीन बड़ी मुसीबतों से घिरा हुआ है.

अमेरिका ने हाल ही में 1200 साल का सबसे भयावह सूखा देखा है. ये सूखा 18 साल तक चला यानी साल 2000 से 2018 तक. सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ दक्षिण-पश्चिमी और उत्तरी अमेरिका के इलाके इसके पीछे बड़े कारण हैं इंसानी गतिविधियां – जंगलों की कटाई, बढ़ता प्रदूषण आदि.

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के हाइड्रोक्लाइमेटोलॉजिस्ट पार्क विलियम्स और उनकी टीम ने अमेरिका के इस भयानक सूखे का अध्ययन किया है. पार्क विलियम्स की टीम ने अमेरिका के 1586 स्थानों पर जाकर हजारों पेड़ों, मिट्टी, जलस्तर, नमी और वातावरण का अध्ययन किया पार्क विलियम्स की यह रिपोर्ट साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है.पार्क की टीम ने दक्षिण-पश्चिमी अमेरिकी राज्यों और उत्तर पश्चिमी मेक्सिको के 1586 स्थानों की जांच करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है. पार्क ने बताया कि इससे पहले अमेरिका और मेक्सिको के इन इलाकों में इतना लंबा सूखा साल 800 में आया था. 850 से 1600 के बीच भी कई बार सूखे की स्थिती आई लेकिन इतनी भयावह नहीं थी.साल 1575 से 1593 के बीच एक बड़ा सूखा पड़ा था. लेकिन, इस बार का सूखा ज्यादा भयावह है. इस सूखे से अभी तक अमेरिका उबर नहीं पाया है.इसी की वजह कैलिफोर्निया जैसे प्रांतों में पानी की कमी हो गई गई है. वहां आयदिन जंगलों में आग लगी रहती है.

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इसी बीच, कोरोना वायरस के हमले की चपेट में आया अमेरिका शुरुआती लापरवाहियों के चलते अब खस्ताहाल है.अमेरिका में कोरोना वायरस की वजह से दस लाख से ज्यादा लोग बीमार हैं, जबकि, 56 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. यह संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है.इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है अमेरिकी सरकार द्वारा फैसला लेने में की गई लेटलतीफी.

जब अमेरिका को लॉकडाउन करना चाहिए था, जब उसे टेस्ट बढ़ाने चाहिए थे, तब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप राजनीति करने में लगे हुए थे. वे चीन और विश्व स्वास्थ संगठन पर गुस्सा उतार रहे थे. चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन से नाराज डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों पर मिलीभगत का आरोप भी लगाया. विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग रोक दी. दूसरे देशों से आने वाले लोगों पर रोक लगा दी. अमेरिका के इन फैसलों से दुनियाभर पर असर पड़ा.दुनिया को साफ़ नज़र आया कि सुपर पावर बुरी तरह बौखलाया हुआ है. वहीँ वे हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा की पैरवी में भी लगे हुए थे.भारत को धमका रहे थे कि दवा की खेप ना भेजी तो फिर जवाब दिया जाएगा, ऐसी बातें कर रहे थे। जिस दवा को लेकर पूरी दुनिया के डॉक्टर और वैज्ञानिक कह चुके हैं कि इस दवा से कोरोना मरीज का ठीक होना संभव नहीं है, ट्रंप उसी पर पूरा भरोसा जता रहे थे. हालांकि भारत ने दवा की खेप भेज दी मगर कोरोना से मौतों का सिलसिला फिर भी नहीं थम रहा है.

इस समय कोरोना वायरस का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट अमेरिका और न्यूयॉर्क बने हुए हैं. अमेरिका के बाद यूरोपीय देश स्पेन, इटली, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम हैं. इन देशों में लाखों की संख्या में लोग कोरोना वायरस की वजह से बीमार हुए हैं. हजारों की संख्या में लोग मारे गए हैं.

अमेरिका में इससे ज्यादा भयावह स्थिति बन सकती है अगर जून तक कोरोना वायरस का कोई रोकथाम नहीं हुआ तो, क्योंकि, जून से अमेरिका के ऊपर नई मुसीबत मंडराने लगेगी. इस मुसीबत का नाम है तूफान, हरिकेन और साइक्लोन. जिसकी भविष्यवाणी यूएस नेशनल ओशिएनोग्राफिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन और यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के हाइड्रोलॉजिक एंड एटमॉस्फियरिक साइंसेज ने की है.दोनों संस्थानों ने कहा है कि कि इस बार अमेरिका में भारी तूफान, हरिकेन और साइक्लोन आने की आशंका है. ऐसी ही भविष्यवाणी अटलांटा की एक निजी मौसम कंपनी द वेदर चैलन ने भी की है.

द वेदर चैनल के अनुसार इस साल 1 जून से लेकर 30 नवंबर के बीच 18 तूफान आएंगे. इनमें से 9 हरिकेन होंगे. वहीं, इस साल इन छह महीनों में 12 तूफान आएंगे, जिनमें से 6 हरिकेन होंगे.वेदर चैनल ने बताया है कि चार हरिकेन भयानक स्तर के होंगे. ये कैटेगरी तीन से ऊपर के हो सकते हैं. मतलब ये कि जब ये हरिकेन आएंगे तब हवा की रफ्तार 178 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार या उससे कहीं ज्यादा हो सकती है. जो अमेरिका में भारी तबाही मचाएगी.

कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी ने भी भयानक तूफान और हरिकेन आने की आशंका जताई है. सभी ने इस सीजन के इतने भयावह होने के पीछे हाई-सी सरफेस टेंपरेचर को कारण बताया है.अटलांटिक महासागर का पानी गर्म होकर हवा के साथ नमी बनाएगा. यही तूफानों को हवा देगा. अटलांटिक महासागर की गर्मी की वजह से हरिकेन और तूफानों की संख्या बढ़ती हुई दिख रही है. वैज्ञानिकों ने पिछले 30 सालों का अध्ययन करके यह नतीजा निकाला है. एरिजोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि 1993 के बाद इस बार अटलांटिक महासागर में गर्मी ज्यादा है, जून आते-आते इसका भयावह असर होगा. जितनी ज्यादा गर्मी महासागर में बढ़ेगी, अमेरिका के ऊपर उतना ही खतरा बढ़ जाएगा।.

एरिजोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं काइल डेविस और जुबिन जेंग ने कहा कि यह अभी अप्रैल की भविष्यवाणी है.जून के शुरूआत में हम एक और भविष्यवाणी जारी करेंगे। हमने 1993 से लेकर पिछले साल तक का डेटा खंगाला है.

काइल डेविस ने कहा कि हमने देखा कि जिस साल महासागर में गर्मी बढ़ी है, उस साल अमेरिका में तूफानों और हरिकेन की संख्या और भयावहता भी बढ़ी है.काइल का कहना है कि गणना के अनुसार इस बार अटलांटिक महासागर की गर्मी की वजह से 10 हरिकेन आएंगे, जिनमें से 5 बेहद गंभीर स्तर के होंगे.19 समुद्री तूफान आएंगे और 163 बार तेज बारिश और आंधी की संभावना है.

तीन तरफ से मुसीबत में घिरे अमेरिका की अर्थव्यवस्था तेज़ी से ढलान की ओर बढ़ रही है.अमेरिकी राष्ट्रपति इससे बुरी तरह घबराये हुए हैं लेकिन फिर भी वो इसमें सुधार लाने के लिए आश्वस्त करते हैं.ट्रंप कहते हैं, ‘हमारे पास कोई विकल्प नहीं है.मुझे हमेशा हर चीज की चिंता रहती है. हमें इस समस्या से पार पाना ही होगा. विश्व के इतिहास में हमारी अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी रही है…. चीन से बेहतर, किसी भी अन्य देश से बेहतर.हमने पिछले तीन साल में इसे खड़ा किया और फिर अचानक एक दिन उन्होंने कहा कि तुम्हे इसे बंद करना होगा. अब, हम इसे दोबारा खोल रहे हैं और हम बेहद मजबूत होगें, लेकिन दोबारा खोलने के लिए आपको उस पर कुछ धन लगाना होगा.’  उन्होंने कहा, ‘हमनें अपनी एयरलाइन्स बचा लीं.हमनें कई कम्पनियां बचा लीं, जो बड़ी कम्पनियां हैं और दो महीने पहले उनका बेहतरीन साल चल रहा था… और फिर अचानक से बाजार से बाहर हो गईं.हम उन कंपनियों को फिर पटरी पर ले आएंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना को चीन द्वारा बनाया जैविक हथियार ही मान रहे हैं जो अमेरिका जैसी सुपर पावर से लड़ने के लिए वूहान में बनाया गया. बीते हफ्ते व्हाइट हाउस में डेली ब्रीफिंग के दौरान ट्रंप ने कहा, ‘हम पर हमला हुआ. यह हमला ही है। यह कोई फ्लू नहीं है. पहले कभी किसी ने ऐसा कुछ नहीं देखा, 1917 में ऐसा आखिरी बार हुआ था’ ट्रंप कई हजार अरब डॉलर के प्रोत्साहन पैकेजों के परिणामस्वरूप बढ़ते अमेरिकी राष्ट्रीय ऋण के बारे में किए एक सवाल का जवाब दे रहे थे. उन्होंने कहा कि उनका प्रशासन वैश्विक महामारी से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए लोगों और उद्योगों की मदद के लिए सामने आया है. उन्होंने आश्वस्त किया कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था जल्दी ही पटरी पर आ जाएगी और हम मुसीबतों पर विजय पाएंगे.

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