दुनियाभर में 60 तरह की मिट्टी पाई जाती है, जिस में से 46 तरह की मिट्टी भारत में पाई जाती है. उन मिट्टियों में से कुछ ही तरह की मिट्टी में खेती से अच्छी पैदावार ली जा सकती है. कुछ तरह की मिट्टी में सुधार कर के भी उस की पैदावार कूवत बढ़ाई जा सकती है.

अकसर देखा गया है कि उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसान अपने खेत में तरहतरह की खादों का प्रयोग करते हैं. सब से ज्यादा कैमिकल खादों का प्रयोग किया जा रहा है. इस के चलते मिट्टी की उर्वरता कूवत काफी प्रभावित हुई है. मांग के अनुरूप जैविक उर्वरक उपलब्ध न होने के चलते हम अपने खेतों में देशी जैविक खाद नहीं डाल पा रहे हैं.

आज हम कृषि की उन्नत तकनीकों के चलते खेत की पैदावार बढ़ाने में काफी हद तक कामयाब हुए हैं. हम खाद्यान्न के मामले में भी आज आत्मनिर्भर हो गए हैं. दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भी भारत ने लगभग आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है.

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मिट्टी से अच्छी पैदावार

मिट्टी में 16 तरह के पोषक तत्त्व पाए जाते हैं. इन्हीं पोषक तत्त्वों के जरीए ही जमीन में उगाए गए पेड़पौधे अपनी खुराक लेते हैं. आज के समय में किसान अपने खेतों में कीट व बीमारी का प्रकोप रोकने के लिए फसल पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि रसायनों का भी इस्तेमाल करता है, जिस के चलते खेत की मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है.

खेत की मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी न हो, इस के लिए अनेक तरीके अपनाए जाते हैं. इन में अनेक जैविक तरीके भी हैं, जो खेत की मिट्टी में जैविक क्षमता को बढ़ाते हैं.
इसी संदर्भ में डाक्टर आरएस सेंगर, कृषि विशेषज्ञ (सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय, मेरठ) ने बताया कि गांवदेहात में जो तालाब होते हैं, जिन्हें इलाकाई बोली में पोखर या जोहड़ भी कहा जाता है. अगर उन तालाबों  की सड़ी मिट्टी को खेत में डाला जाए तो खेत की मिट्टी उपजाऊ बनती है.

गांवदेहात के जोहड़ या तालाब के पानी में पशुओं का गोबर औैर मूत्र वगैरह मिलते रहते हैं, जो फसल पैदावार बढ़ाने में सहायक होते हैं. उस में अनेक ऐसे तत्त्च मौजूद होते हैं, जो फसल पैदावार बढ़ाने में मददगार होते हैं.

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गरमी के मौसम में जब तालाब सूख जाते हैं, उस समय तालाब से मिट्टी निकाल कर खेत में डालनी चाहिए. इस मिट्टी को तालाब से निकाल कर रख भी सकते हैं और आगे कभी भी खेत में इस्तेमाल कर सकते हैं. यह मिट्टी पूरी तरह से जैविक होती है.

ऐसी मिट्टी जो कि काली चिकनी मिट्टी होती है, में कई प्रकार के जीवाणु मौजूद रहते हैं और मिट्टी की उपजाऊ ताकत को बढ़ाते हैं और उस में मौजूद पोषक तत्त्व पौधों को आसानी से मिल जाते हैं.
डाक्टर आरएस सेंगर ने बताया कि तालाब की सड़ी मिट्टी से उस में मौजूद जीवाश्म में बढ़वार होती है, जिस से खेत की मिट्टी की उर्वरता में सुधार होने के साथ ही भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में आई हुई गिरावट में भी विशेष सुधार देखा गया है. 1 ग्राम मिट्टी में 4 से 30 खरब जीवाणु व दूसरे सूक्ष्मजीव हो सकते हैं, जो मिट्टी ताप को भी नियंत्रित रखती है.

पुराने तालाब की सड़ी मिट्टी में 8 फीसदी नाइट्रोजन और 3 फीसदी सुपर फास्फेट पाया जाता है. 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से इस का उपयोग खेत में किया जा सकता है. तालाब की मिट्टी में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता खेत में 2 से 3 सालों तक बनी रहती है.

खेती में जो फायदा तालाब की सड़ी हुई मिट्टी से संभव है, वह रासायनिक उर्वरकों
से संभव नहीं है. इस मिट्टी का उपयोग संतुलित और जरूरत के मुताबिक बताई गई मात्रा में
ही करें.

प्रयास करें कि जरूरी पोषक तत्त्वों का एकतिहाई भाग तालाब की सड़ी हुई मिट्टी, दोतिहाई भाग जरूरी रासायनिक उर्वरकों से पोषक तत्त्वों की पूर्ति हो सके.

तालाब की सड़ी मिट्टी के अन्य फायदे

तालाब की सड़ी मिट्टी खेत की भौतिक, रासायनिक और जैविक उर्वरक क्षमता को बढ़ाती है. साथ ही, तालाबों का गहरीकरण होता है और उन की सफाई भी हो जाती है, जिस से पशुपक्षियों व इनसान के इस्तेमाल के लिए पानी मिलता है. जमीन में पानी का लैवल भी बढ़ता है.

मिट्टी के जैविक गुणों पर प्रभाव

अनेक जीवाणु मिट्टी से पोषक तत्त्च ले कर पौधों को देते हैं, इसलिए हम सभी को मेहनत कर के अपने खेत के आसपास वाले तालाबों का संरक्षण करना चाहिए और पानी को जमा करने के लिए अपनेअपने लैवल पर कोशिश करनी चाहिए, तभी हम खेती को अच्छी तरह से कर सकेंगे और उस का भरपूर फायदा उठा सकेंगे.

अगर हम तालाबों को बना लेते हैं तो इस से खेत को तो पानी मिलेगा ही, साथ ही तालाब की मिट्टी, जिस में अनगिनत तादाद में जीवाणु मौजूद रहते हैं, मिट्टी की सेहत को सुधारने के साथसाथ पैदावार कूवत बढ़ाएंगे और हमें अच्छा फसल उत्पादन दे सकेंगे.

 

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