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 पैगांबरी किस्म है शुगर फ्री

  लेखक: केदार सैनी

भारत का एक प्राचीन देशी गेहूं  पैगांबरी किस्म है.  जो  15 साल पहले मटर की फसल के बीच में हमें एक गेहूं का ऐसा पौधा मिला, जो देखने में सामान्य गेहूं के पौधों से काफी अलग था. उसी एक पौधे से हम ने इस के बीज संवर्धन की शुरुआत की थी, पर इस एक पौधे ने हमें इस गेहूं पर शोध करने के लिए प्रेरित किया.

पैगांबरी गेहूं लोकप्रिय रूप से अपने आकर्षक चमकीले छोटे गोल मोती जैसे दाने के कारण शुगर फ्री गेहूं के रूप में जाना जाता है. यह एक प्रकार का ट्रिटिकम स्फेरोकोकम  गेहूं है. इस का दाना गोल आकार का और पौधा बौनी प्रजाति का होता है. इस के पौधे की ऊंचाई 70 से 80 सैंटीमीटर तक होती है.

सही माने में देखा जाए तो यह गेहूं पहला भारतीय गेहूं कहा जाता है, क्योंकि इस की उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता से हुई थी और यह उस सभ्यता में मुख्य भोजन में से एक था. इस के उलट यह माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में तकरीबन 4000 साल पहले बौना गेहूं विकसित किया गया था, जो शायद वह यही गेहूं है.

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मधुमेह की बढ़ती घातक बीमारी को देखते हुए मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के भगवंतराव मंडलोई कृषि कालेज ने इसी देशी प्रजाति पैगांबरी गेहूं से एक नई किस्म तैयार की है. इस गेहूं के सेवन से मधुमेह की बीमारी काबू की जा सकती है.

दुनियाभर में तेजी से शुगर के मरीजों की बढ़ती तादाद को देखते हुए खंडवा के भगवंतराव मंडलोई कृषि कालेज के वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक पुरानी प्रजाति का पता लगाया है. गेहूं की इस प्रजाति का प्राचीन नाम पैगांबरी है, किंतु कृषि वैज्ञानिकों के इस प्रजाति पर किए गए अपने शोध में कई स्वास्थ्य लाभ देने वाले गुण पाए गए हैं. इस वजह से वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति से एक नई किस्म तैयार की है, जो शुगर फ्री है. यह डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान साबित होगा. वैज्ञानिकों का यह प्रयोग स्थानीय स्तर पर सफल हुआ है.

कृषि वैज्ञानिक सुभाष रावत ने बताया कि शुगर कंट्रोल करने के लिए कृषि कालेज में गेहूं की प्राचीन देशी प्रजाति से गेहूं की एक नई किस्म ए-12 तैयार की गई है. इसे शुगर फ्री गेहूं का नाम दिया है. इस में शुगर व प्रोटीन की मात्रा कम है.

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अब कालेज इस तरह की खेती बड़े पैमाने पर कराने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि शुगर से पीडि़त मरीजों को ठीक किया जा सके.

उन्होंने यह भी बताया कि कालेज में पिछली बार भी यह गेहूं लगाया गया था. इस के अच्छे नतीजे सामने आए थे. साथ ही, किसानों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि वे गेहूं की किस्म ए-12 की ज्यादा से ज्यादा बोआई करें.

पैगांबरी गेहूं की प्रजाति का दाना देखने में मैथी के दाने की तरह है, जबकि सामान्य गेहूं का दाना लंबा व अंडे के आकार का होता है. इस में छिलका व फाइबर अधिक और प्रोटीन की मात्रा कम होती है.

पैगांबरी गेहूं की खासीयत : इस गेहूं के बारे में समृद्धि देशी बीज बैंक, रुठियाई द्वारा किए कृषि शोधात्मक विश्लेषण में यह पाया गया कि यह किसी भी तरह की मिट्टी में बोया जा सकता है. वैसे तो इस की सिंचाई के लिए 4 से 5 बार सिंचाई की जरूरत होती है, किंतु काली दोमट उपजाऊ मिट्टी में केवल 2 सिंचाई में भी पक कर तैयार हो जाता है.

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अगर इस के उत्पादन की बात करें, तो पर्याप्त सिंचित, कार्बनिक तत्त्वों से भरपूर उपजाऊ जमीन पर 60 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज ली जा सकती है.

इस की बोआई नवंबर माह के पहले हफ्ते से ले कर जनवरी माह के पहले हफ्ते तक की जा सकती है. इस की फसल 120 से 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है.

इस का भूसा बहुत बारीक निकलता है, जिसे पशु बहुत पसंद करते हैं.

अब इस के उपयोग पर अगर हम नजर डालें तो इस का उपयोग मुख्य रूप से रोटियां बनाने, ब्रेड टोस्ट बनाने, दलिया बनाने और इस के दानों से चावल की तरह खीर बनाने में किया जाता है.

इस गेहूं की रोटियां बहुत ही मुलायम, सफेद और स्वादिष्ठ होती हैं.

इसे खाने के फायदे

एनर्जी के लिए : पैगांबरी गेहूं खाने से एनर्जी मिलती है. ये ऊर्जा का एक बहुत अच्छा स्रोत है. यह वजन घटाने में भी सहायक है. दरअसल, इसे खाने के बाद काफी देर तक भूख नहीं लगती. इस से वजन कंट्रोल भी होता है.

स्वस्थ दिल के लिए : पैगांबरी गेहूं कौलेस्ट्रौल लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है. इस से दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है. इस में मैग्नीशियम और पोटैशियम भी है, जो ब्लड प्रैशर को नियंत्रित रखने में मददगार है.

पाचन को रखे दुरुस्त : पैगांबरी गेहूं में भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जो पाचन को दुरुस्त रखने में सहायक है. इस गेहूं को खाने से कब्ज की समस्या भी नहीं होती है.

कैंसर से बचाव : गेहूं की खेती जैविक तरीके से की जा रही है, इसलिए यह कैंसर के बचाव में भी सहायक है. डायबिटीज के मरीज इस का नियमित सेवन कर शुगर कंट्रोल कर सकते हैं.

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पैगांबरी गेहूं की खूबियां

* आकार मैथी की तरह है.

* बाजरे की तरह गुण हैं.

* अन्य गेहूं की अपेक्षा प्रोटीन कम है.

* छिलका ज्यादा है.

* जल्दी पचने वाली वैरायटी है.

* फायबर अधिक है.

अधिक जानकारी के लिए लेखक से उन के मोबाइल नंबर 7898915683 पर संपर्क कर सकते हैं.

बारिश-भाग 1: नेहा अपनी मां से हर छोटी बात पर क्यों उलझती थी ?

कभी-कभी आदमी बहुत कुछ चाहता है, पर उसे वह नहीं मिलता जबकि वह जो नहीं चाहता, वह हो जाता है. नेहा दीदी द्वारा बारबार कही जाने वाली यह बात बरबस ही इस समय मृदु को याद आ गई. याद आने का कारण था, नेहा दीदी का मां से अकारण उलझ जाना. वैसे तो नेहा दीदी, उस से कहीं ज्यादा ही मां का सम्मान करती थीं, पर कभी जब मां गुस्से में कुछ कटु कह देतीं तो नेहा दीदी बरदाश्त भी न कर पातीं और न चाहने पर भी मां से उलझ ही जातीं. नेहा दीदी का यों उलझना मां को भी कब बरदाश्त था. आखिर वे इस घर की मुखिया थीं और उस से बड़ी बात, वे नेहा दीदी की सहेली या बहन नहीं, बल्कि मां थीं. इस नाते उन्हें अधिकार था कि जो चाहे, सो कहें, पलट कर जवाब नहीं मिलना चाहिए. पर नेहा दीदी जब पट से जवाब देतीं, तो मां का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचता.

उस दिन भी मां का पारा आसमान की बुलंदियों पर ही था. उन के एक हाथ में चाबियों का गुच्छा था. उन्होंने धमकाने के लिए उस गुच्छे को ही अस्त्र बना रखा था, ‘अब चुप हो जाओ, जरा भी आवाज निकाली तो यही गुच्छा मुंह में घुसेड़ दूंगी, समझी.’ मृदु को डर लगा कि कहीं सच में मां अपना कहा कर ही न दिखाएं. नेहा दीदी को भी शायद वैसा ही अंदेशा हुआ होगा. वह तुरंत चुप हो गईं, पर सुबकना जारी था. कोई और बात होती तो मां उस को चुप करा देतीं या पास जा कर खड़ी हो जातीं, पर मामला उस वक्त कुछ टेढ़ा सा था.

वैसे देखा जाए तो बात कुछ भी नहीं थी, पर एक छोटे से शक की वजह से बात तूल पकड़ गई थी. मां जब भी कभी नेहा दीदी को घर छोड़ कर मृदु के साथ खरीदारी पर चली जातीं तो दीदी का मुंह फूल जाता. वैसे भी समयअसमय वे मां पर आरोप लगाया करतीं, ‘मुझ से ज्यादा आप मृदु को प्यार करती हैं. वह जो कुछ भी चाहती है उसे देती हैं जो करना चाहती है, करती है, पर आप…’ ऐसे नाजुक वक्त पर मां अकसर हंस कर नेहा दीदी को मना लेतीं, ‘अरे, पगली है क्या  मेरे लिए तो तुम दोनों ही बराबर हो, इन 2 आंखों की तरह. मैं क्या तेरी इच्छाएं पूरी नहीं करती  मृदु तुझ से छोटी है, उसे कुछ ज्यादा मिलता है तो तुझे तो खुश होना चाहिए.’

अगर नेहा इस पर भी न मानती तो मां दोनों को ही बाजार ले जातीं. नेहा दीदी को मनपसंद कुछ खास दिलवातीं, चाटवाट खिलवातीं और फिर उन्हीं की पसंद की फिल्म का कोई कैसेट लेतीं व घर आ जातीं. मां की इस सूझ से घर का वातावरण फिर दमक उठता, पर यह चमकदमक ज्यादा दिन ठहर न पाती. नेहा दीदी उसे ले कर फिर कोई हंगामा खड़ा कर देतीं. बदले में मां थक कर उन्हें 2-4 चपत रसीद कर देतीं.मृदु को यह सब अच्छा नहीं लगता था. अपनी जिद्दी प्रवृत्ति और बचपने के कारण वह दीदी को नीचा दिखा कर खुश जरूर होती थी, पर वह उन्हें व मां को दुख नहीं देना चाहती थी.

पर उस दिन की बात, उस की समझ में न आई. यह बात जरूर थी कि मां उस दिन भी उसे अकेली ही बाजार ले कर गई थीं. सारे रास्ते वे उस की जरूरत की मनपसंद चीजें दिलाती और खिलाती रही थीं, पर हमेशा की तरह नेहा दीदी के लिए कुछ नहीं लिया था  मृदु को आश्चर्य भी हुआ था. उस ने मां से कहा तो उन्होंने झिड़क दिया, ‘तू क्यों मरी जा रही है. तुझे जो लेना है, ले, उसे लेना होगा तो खुद ले लेगी ’ ‘पर मां,’ मृदु ने कुछ कहना चाहा तो उन्होंने आंखें तरेर कर उस की ओर देखा. घबरा कर मृदु चुप हो गई. सारे रास्ते वह फिर कुछ न बोली. पर मां बुदबुदाती रहीं, ‘अब पर निकल आए हैं न, जो चाहे, सो करेगी. जब सबकुछ छिपाना ही है तो अपना साजोसामान भी अपनेआप खरीदे. अरे, मैं भी तो देखूं कि कितनी जवान ह गई है. हम तो अभी तक बच्ची समझ कर गलतियों को माफ करते रहे, पर अब… ’

मृदु को अब भी सारी बातें अनजानी सी लग रही थीं. यों रास्ते में अपने बच्चों से दुनियाजहान की बातें करते जाना मां की आदत थी पर इस तरह गुस्से में बुदबुदाना  उस ने उन्हें दोबारा छेड़ने की हिम्मत न की. यहां तक कि घर भी आ गई, तब भी खामोश रही. अपना लाया सामान भी हमेशा की तरह चहक कर न खोला. मां काफी देर तक सुस्ताने की मुद्रा में चुप बैठी रही थीं. फिर उस का सामान खोल कर ज्यों ही उस के आगे किया, नेहा दीदी का सब्र का बांध टूट ही गया, ‘मेरे लिए कुछ नहीं लाईं  सबकुछ इसी को दिला दिया ’

‘हां, दिला दिया, तेरा डर है क्या ’ रास्ते से ही न जाने क्यों गुस्से में भरी आई मां नेहा द्वारा उलाहना दिए जाने पर फूट पड़ीं, ‘क्या जरूरत है तुझे अब मुझ से सामान लेने की  अरे, अपने उस यार से ले न, जिस के साथ घूम रही थी.’ मां की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि अचानक जैसे बिजली सी कड़क उठी. मृदु ने नेहा दीदी की इतनी तेज आवाज कभी नहीं सुनी थी और मां को भी कभी इतने उग्र रूप में नहीं देखा था. मां की बात ने शायद नेहा दीदी को भीतर तक चोट पहुंचाई थी, तभी तो वे पूरी ताकत से चीख पड़ी थीं. ‘मां, जरा सोचसमझ कर बोलो.’ दीदी की इस अप्रत्याशित चीख से पहले तो मां भी हकबका गईं, फिर अचानक ‘चटाक’ की आवाज करता उन का भरपूर हाथ नेहा दीदी के गाल पर पड़ा. नेहा दीदी के साथसाथ मृदु भी सकपका गई थी. फिर माहौल में एक गमजदा सन्नाटा फैल गया. थोड़ी देर बाद वह सन्नाटा टूटा था, मां के अलमारी खोलने और नेहा दीदी की बुदबुदाहट से. मां अलमारी से साड़ी निकाल कर बदलने को मुड़ी ही थीं कि हिचकियों के बीच निकली नेहा दीदी की बुदबुदाहट ने उन के कदम फिर रोक लिए थे, ‘आप जितना चाहें मुझे मार लीजिए  पर आप की यह बेबुनियाद बात मैं बरदाश्त कभी नहीं करूंगी.’

फादर्स डे स्पेशल: मेरे पापा 12

बात काफी पुरानी है. उस समय गांवकसबों में भी दैनिक जलापूर्ति नदियों और कुओं से ही की जाती थी. मेरी उम्र तब 12 साल के करीब होगी. मेरी मम्मी कुएं से पानी खींच रही थीं और मैं सिर पर पानी का हंडा भर कर घर आ रही थी. हमारा घर ऊपरी मंजिल पर था. पिताजी दरवाजे के पास बैठे अपना काम कर रहे थे. जैसे ही मैं तांबे का हंडा सिर पर रख अंदर जाने लगी, एकाएक पैर फिसला और हंडा पिताजी के सिर पर गिर पड़ा. हंडे की किनारी पिताजी के सिर पर लगी और खून की धार बहने लगी. यह देख कर मैं रोने लगी.

पिताजी बोले, ‘‘बेटा, रो मत, नीचे जा कर डाक्टर को बुला ला. यह बात अपनी मां को मत बताना.’’ संयोग से डाक्टर की डिस्पैंसरी हमारे घर के निचले हिस्से में ही थी और उन से हमारे घरेलू संबंध भी थे. डाक्टर ने पिताजी के जख्म की ड्रेसिंग की और पट्टी बांध कर दवा इत्यादि दे दी. मैं ने सारी सफाई कर दी ताकि मां को मालूम न पड़े. मां की डांट से बचाने के लिए किया गया पिताजी का त्याग मुझे अभिभूत कर गया. हालांकि बाद में मां को सबकुछ पता चल गया. अब न पिताजी रहे और न मां. मां की ममता और त्याग के उदाहरण इतिहास बना चुके हैं किंतु पिता के त्याग भी कम नहीं हैं.

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विजया शर्मा, गोगावां (म.प्र.)

  • मेरे पापा एक बहुत ही नेकदिल, सच्चे व मेहनती इंसान थे. हम 5 भाई व 5 बहनें हैं. हम सभी को उच्चशिक्षा दिलाने में उन्होंने कोई भी कसर नहीं छोड़ी. रातदिन अकेले कमाते थे, लेकिन अपने लिए कभी किसी चीज की इच्छा जाहिर नहीं की. अपनी बेटियों को वे लड़कों का दरजा देते थे. जहां कहीं भी विवाह की बात करने जाते, यही कहते, ‘‘मेरी बेटियों में बेटी होने के गुणों के साथसाथ बेटे होने के भी सारे गुण हैं. मैं ने उन को बहुत काबिल बनाया है.’’
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मुझे पीएचडी करने के लिए यूजीसी की फैलोशिप मिली थी. उस का सारा पैसा मैं अपने पापा को दे देती थी. वे मेरा सारा पैसा इकट्ठा करते रहे. मेरी शादी के समय उन्होंने मेरा एक भी पैसा शादी के खर्च में नहीं लगाया. मृत्यु से पूर्व मुझे मेरे पति सहित अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘बेटी, तेरा कमाया सारा पैसा तुझे सौंप रहा हूं. तू इसे ले जा. मैं ने जैसे और बच्चों की शादी की वैसे ही तेरी भी कर दी थी.’’ यह सुन कर मेरा दिल भर आया, सिर श्रद्धा से झुक गया. मेरा पैसा दोगुना हो कर मुझे मिल गया था.

चीनी सामान का बहिष्कार ,बढ़ेगी बेकारी और बर्बादी

पिछले 11 माह में भारत ने चीन से 62 अरब डालर का सामान आयात किया है. चीनी सामान के बहिष्कार से भारतीय कारोबारियो को ही नुकसान होगा. चीन को इस बहिष्कार से तत्काल नुकसान नहीं होगा. चीन ने अपने नुकसान का अंदाजा लगाकर ही सीमा विवाद का फैसला किया होगा. भारत न तो सीमा पर तैयार था ना ही उसने कोई कारोबारी तैयारी की है.देष में सस्ता सामान न मिलने से उससे जुडे तमाम कारोबार प्रभावित होगे. जिससे देष में फैली बेकारी और बर्बादी के और बढने अनुमान लगाया जा सकता है.

देश की आजादी के समय अंग्रेजो का विरोध करने के लिये विदेषी सामानों की होली जलाई गई थी. ऐसे समय में पूरा देश एक सूत्र में बंध गया था. आजादी की लडाई में विदेषी सामानों का बहिष्कार एक प्रमुख मुददा बन गया था. देष में स्वदेषी आन्दोलन ने जोर पकडा. गांधी जी ने स्वदेषी सामानों के अपनाने की मुहिम के तहत ही चरखे से काटे गये सूत से बने कपडे पहनने पर जोर दिया. यही वजह है कि नेताओं ने खादी पहनना षुरू किया. धीरेधीरे नेताओं को स्वदेषी खादी की जगह विदेषी कौटन और लिनन से तैयार कपडे पहनने में फक्र महसूस होने लगा. 1990 के बाद इस तरफ तेजी से झुकाव होने लगा और भारत में विदेषी सामान तेजी से आने लगा. दुनिया भर की नजर में भारत एक बाजार बन गया था. हमारे नेता इस बात से खुष थे कि दुनिया हमें बाजार समझ रही थी.

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भारत की सरकारें भी विदेषियों की दबाव में उनके अनुकूल काम करने लगी. जिसका सबसे बडा लाभ चीन ने उठाया. चीन ने भारत से कच्चा माल मंगाना षुरू किया इससे सामान तैयार करके मंहगे दामों पर भारत के लोगों को ही बेचने लगा. 2019 में चीन ने भारत से 3900 करोड रूपये का लोहा मंगवाया और उसी लोहे से तैयार किये गये 12 हजार करोड का सामान भारत को बेच दिया. अगर चीन भारत को 10 वस्तुयें बेचता है तो उनमें से 9 वस्तुये भारत के ही कच्चे माल से तैयार होती थी. सस्ते के मोह और अपने देष में सामान तैयार ना होने के कारण भारत के लोग चीनी सामान खरीदने को मजबूर होते है.

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भारत की यह हालत देष में नीतियां बनाने वालो के कारण हुई. 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में बनी तो उसके बाद चीन के साथ उसका व्यवहार बेहद नरम हो गया. चीन के साथ अपने कारोबारी रिष्ते बढाने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति षी जिनपिंग के साथ कई करार किये. इसका प्रभाव यह रहा कि चीन का भारत में 6.2 अरब का प्रत्यक्ष निवेष हो गया. भारत और चीन का सीमा विवाद पुराना है. भारत को यह पता था कि चीन दुष्मन देष है. इस दौरान चीन कई बार भारत के दुष्मन पाकिस्तान की मदद भी करता रहा उसके बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के साथ वैसे ही भाईचारा बढाने में लगे रहे जैसे पहले के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे. चीन के साथ सीमा विवाद होने और 20 सैनिकों के षहीद होने के बाद एक बार फिर से सारा मुददा चीन के सामान के बहिष्कार का उठने लगा. जिससे सीमा विवाद और चीन के साथ नीतियों की विफलता के सवाल पर बचा जा सके.

कारोबारी नुकसान से बढेगी बेकारी:   

चीनी सामान के बहिष्कार का मसला पहली बार नही उठा है. जबजब भारत और चीन कर विवाद होता है यह मसला उठ खडा होता है. चीन भारत की सीमा पर 20 जवानों के षहीद होने के बाद देष भर में न केवल चीन के माल का बहिष्कार हो रहा है बल्कि सामान जलाने और उनके औफिस और कंपनियों पर तोडफोड और प्रदर्षन की घटनायें भी बढ गई है. सच्चाई यह है कि चीन के माल के बहिष्कार से चीन के साथ ही साथ भारत के लोगो को भी नुकसान होगा. चीन ने पिछले कुछ सालों में भारत के बाजार में बडे हिस्से में अपना कब्जा कर लिया है. चीन ने भारत के लोगों की जरूरत और उनकी हैसियत के मुताबिक माल तैयार किया. सस्ते माल के मोह में भारत के लोगों ने चीन के माल की बहुत खरीददारी की. अगर भारत में चीन के माल का बहिष्कार होगा तो भारत के वह कारोबारी तबाह हो जायेगे जिनके गोदामों में चीन का माल भरा पडा है.

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चीनी सामान के बहिष्कार से चीन का कुछ नहीं बिगडेगा हमारे देष में पहले से चल रही भयंकर बेकारी अब भंयकर बर्बादी में बदल जायेगी क्योकि चीनी की जगह देषी माल तक नहीं मिलेगा. इससे दुकानदार खाली बैठेगे. चीन ने भारत से झडप करने के पहले इस परेषानी का आकलन जरूर किया होगा. भारत सरकार अगर कानूनी रूप से चाइनीज सामान को बैन नही कर रही तो इसकी वजह होगी. भारत के बाजार में बडी संख्या में चीन का सामान बिना किसी पहचान के बिक रहा है. इसके साथ ही साथ चीन का बहुत सारा सामान इंडोनेषिया, मलेषिया, श्रीलंका और थाईलैंड के रास्ते भी पहचान बदल कर आ रहा है.

करोडों का कारोबार:

साल 2018 में भारत ने चीन से कुल 76 अरब डालर का आयात किया. इसमें सबसे बडी हिस्सेदारी 18 अरब डालर का आयात फोन के लिये थे. चीन से आयात होने वाले सामानों में हाउस होल्ड प्रोडक्टस यानि घरेलू काम में आने वाले सामान, गिफ्रट, प्रीमियम प्रोडक्टस, हैंडबैग, ट्रªैवल गुड्स, नकली ज्वेलरी, लाइटिंग प्रोडक्टस केमिकल्स, स्टील, पोलिस्टर यार्न और कौपर जैसे तमाम चीजे षामिल है.

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उत्तर प्रदेष की राजधानी लखनऊ का कोई ऐसा बाजार नहीं है जहां चाइना का सामान न बिकता हो. अनुमान के मुताबिक 9 हजार 2 सौ करोड सालाना का यहा चाइनीज माल का कारोबार होता है. लखनऊ में हर बाजार की खासियत भी अलग होती है. हर बाजार में अपनी खासियत के हिसाब से माल बिकता है. चाइनीज खिलौना और कास्टमेटिक का थोक कारोबार यहियागंज, अमीनाबाद, मुमताज मार्केट और प्रताप मार्केट में सबसे अधिक फैला हुआ है. एलईडी टीवी, कंप्यूटर, एसेसरीज, टार्च, मोबाइल एसेसरीज, टार्च, झालर सबसे अधिक नाका हिंडोला, अंबर मार्केट, आर्यनगर, नाजा मार्केट और श्रीराम टौवर मिलता है. इसके अलावा अमीनाबाद, गणेषगंज, गडबडझाला, नजीराबाद, चैक, गोमतीनगर, हजरतगंज, आलमबाग में भी चाइनीज माल खूब बिकता है.

लखनऊ में प्रमुख चाइनीज सामानो का कारोबार करोडों में है. अनुमान के मुताबिक खिलौना, 1300 करोड, सजावटी सामान 1500 करोड, इलेक्ट्रिकल 1200 करोड, कास्मेटिक 1200 करोड, मोबाइल 1000 करोड, एसेसीज 300 करोड, क्राकरी 1200 करोड, कपडा 1500 करोड, एलईडी टीवी 500 करोड, लैपटौप कंप्यूटर 300 करोड, टार्च 100 करोड, पीवीषीट 500 करोड है. अगर इन बाजारों में चीन के कारोबार का अनुपात देखे तो खिलौना कारोबार में चीन की हिस्सेदारी 90 फीसदी, मोबाइल में 60 से 70 फीसदी, मोबाइल एससरीज में 90 फीसदी, इलेक्ट्रौनिक आइटम 80 फीसदी, पीवीसी सीट और वौल पेपर 90 फीसदी, काॅस्मेटिक 50 फीसदी, एलईडी टीवी 40 फीसदी की हिस्सेदारी है.

पहचान करना मुष्किल:

बाजार के यह हालत होने के बाद भी लखनऊ कारोबारी राष्ट्रभक्ति में चीन के माल का ना केवल बहिष्कार कर रहे बल्कि नाम ना छापने की षर्त पर बताते है कि बाजार में कौन सा माल चीन का है कौन सा नहीं यह पता करना बहुत मुष्किल काम होता है. कई कंपनियां चीन के सामान को एसेंबल करके बेच रही है. युद्व के माहौल में लोग भले ही चाइनीज माल का बहिष्कार कर ले पर बिना चाइनीज माल के कारोबार चलना मुकिष्ल है. भारतीय बाजार में चाइनीज माल की खपत कई सालों में बढी है.इसको एकदम से बाहर करना बहुत मुष्किल काम है. चाइनीज माल  बिना ब्रांड का भी बिकता है. ऐसे में यह पता करना मुष्किल होता है कौन का माल किस देष का है. खेती किसानी में प्रयोग होने वाले बहुत सारे छोटे औजार, दवा छिडकने वाली पंप, लैसे बहुत सारे उत्पादो का पता ही नहीं होता. मौटर पार्टस, सौर ऊर्जा पंप, में भी नाम नहीं होता. इस कडी में एक बात और है कि चाइना का कुछ माल दूसरे देषों से होकर यहां आता है.

भारतीय बिजनेसमैनों ने चीन में प्रोसेस हाउस बना रखे है. वहां कम लागत में सामान तैयार करते है. वहां तैयार माल बेहतर होता है इसलिये बाजार में बिकता है. कपडा कारोबार को देखे तो चीन में तैयार माल बेहतर फिनिषिंग वाला होता है. सस्ता और बेहतर माल होने की वजह से पसद किया जाता है. देष भर में सडको पर बिकने वाला रेडीमेट मौल चाइना का होता है. जिससे हर गरीब अपना तन ढकने में सफल होता था. नये कपडे पहनने का सपना पूरा हो जाता था. चाइनीज माल का विरोध में होने से यह वर्ग अपनी जरूरतें नहीं पूरा कर पायेगा. इसके साथ ही साथ चाइनीज माल बेचकर कारोबार करने वाला आदमी भी बेकार और बेरोजगार हो जायेगा.

अप्रत्यक्ष निवेष बडी मुसीबत:

चीन ने भारत में प्रत्यक्ष निवेष के साथ ही साथ अप्रत्यक्ष निवेष भी कर रखा है. चीन का भारत में 6.2 अरब का प्रत्यक्ष निवेष है. इसके अलावा कुछ ऐसी कंपनियां है जिनमें चीन ने अपना निवेष कर रखा है. इनमें फ्रिलप कार्ड, ओला, स्विगी, जोमैटो, ओयो और ड्रीम 11 प्रमुख है. भारत सरकार कह रही है कि इस तरह के निवेष की जांच की जायेगी. जिन कंपनियों में चीन कह बडी कंपनियों का निवेष है उनमें बिग बास्केट में अलीबाबा का 25 करोड डौलर, ड्रीम में टेसेंट का 15 करोड डालर, ओला में टेसेंट और दूसरी कंपनियों का 50 करोड डालर, पेटीएम मौल और पेटीएम डाॅटकाम, स्नैपडील और जोमैटा मंे अलीबाबा समूह का निवेष है. इस तरह की कंपनियो की लिस्ट लंबी है. चीन का अप्रत्यक्ष निवेष हटने से देष की कारोबारी हालत और भी अधिक खराब हो जायेगी.

भारत का दवा कारोबार भी चीन पर पूरी तरह से निर्भर है. दवा बनाने के लिये भारत चीन पर निर्भर है. भारत 70 फीसदी एपीआई यानि एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंग्रीडिएटंस चीन से मंगाता है. 2018-19 में 240 करोड के एपीआई चीन से भारत ने आयात किये थे. इस कारोबार में सकंट आने से भारत में दवायें मंहगी हो जायेगी. जिससे गरीब वर्ग पर सबसे अधिक प्रभाव पडेगा. भारत में सौर उर्जा का तेजी से विकास हो रहा है. सौर उर्जा के क्षेत्र में चीन की कंपनियों ने भारतीय बाजार मंे 90 फीसदी की हिस्सेदारी कर रखी है. पिछले एक साल के चीन और भारत के कारोबार को देखे तो भारत ने 62 अरब डालर का सामान आयात किया है. इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति षी जिनपिंग के बीच करोबारी रिष्तो का बेहद प्रभाव था. भारतीय कारोबारी खुल कर अपने नुकसान की बात नहीं कह रहे है. असल में वह सबसे अधिक डरे हुये है.

#coronavirus: लॉकडाउन में रखे सेहत का ध्यान

लॉकडाउन का दौर चल रहा है , इस दौरान आपको अपने सेहत का विशेष ध्यान रखना होगा . लॉक डाउन के समय अगर आप खाने पर ध्यान नहीं देते है और लापरवाही करते है कि आप कोरोना से तो बच जायेगे लेकिन कई बीमारियों जैसे लीवर प्रॉब्लम्‍स , किडनी प्रॉब्लम, सांस लेने में तकलीफ, बिंज ईटिंग यानी लगातार खाने-पीने की वजह से शरीर के अंगों पर पड़ने वाले दवाब इत्यादि की समस्याओं से घेर लेगा , इसके अलावा आपको गैस्ट्रिक प्रॉब्लम, शुगर और कॉलेस्ट्रॉल बढ़ने की समस्या , खाना पचाने में मुश्किल, वजन बढ़ने की समस्‍याएं इत्यादि हो जाती हैं. इन सबसे बचने के लिए आपको अपनी भूख और हेल्थ के हिसाब से ही खाना होगा . लॉक डाउन आप घर में है तो इसका ख्याल रखे कि इस  दौरान अधिकांशत: मैदे, बेसन आदि की बनी हुई, तली हुई चीजें ज्यादा खाई जाती हैं. रेशेदार भोजन का सेवन बहुत कम होता है और गरिष्ठ का ज्यादा, जिससे पाचन तंत्र पर बोझ पड़ेगा ही और अपच, कब्ज व एसिडिटी की शिकायतें भी होंगी. अगर इन दिनों अपने खान-पान पर नियंत्रण रखें तो न केवल त्योहारों का भरपूर मजा ले पाएंगे, बल्कि स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहेगा। इसके लिए आवश्यक है इन बातों पर अमल करने की-

* भोजन समय पर और निश्चित अवधि के बाद करें. लॉक डाउनकी मौज-मस्ती में कुछ लोग दिन भर कुछ न कुछ खाते रहते हैं जिससे पाचन क्रिया बुरी तरह गड़बड़ा जाती है. जल्दी-जल्दी और ज्यादा भोजन कभी न खाएं.

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* गर्मी का मौसम है, सुबह नाश्ते के बाद अपनी क्षमतानुसार छाछ अवश्य पिएं.

* अगर संभव हो तो भोजन के साथ रेशेदार व रसदार फल खाएं.

*  नींबू का सेवन अधिक करें.

*  पानी अधिक पिएं. हर एक घंटे बाद एक गिलास पानी पिएं। ख्याल रहे भोजन के पश्चात् तुरंत पानी कभी न पिएं। इससे मंदाग्नि की आशंका रहती है.

* मिठाइयों व तली हुई चीजों से ज्यादा फलों को महत्व दें.

* उपवास के दौरान कुछ लोग पूरे दिन तो कुछ नहीं खाते लेकिन शाम को या अगले दिन खूब तले-भूने कई तरह के पकवान खा लेते हैं। इससे अपच, कब्ज, एसिडिटी, उल्टी आदि की शिकायत हो जाती है. अत: ऐसा करने से बचें.

*  रात के भोजन के बाद तुरंत कभी न सोएं. कम से कम एक डेढ़ घंटे बाद ही सोएं. तुरंत सो जाने से पाचन क्रिया मंद पड़ जाती है जिससे अपच की शिकायत हो सकती है.

*  लॉकडाउन के दिनों में सलाद का सेवन कम ना करे. सलाद भोजन पचाने में सहायता करता है जिससे पेट ठीक रहता है. जो संभव हो उसी का सलाद  घर पर ताजा कटा कर बना ले .

* लॉक डाउन के समय में साधारण खाने के बजाय आप पकवान अधिक बनाते है. ऐसे में आप आटे में जौ, बाजरे के आटे को गेहूं के आटे के साथ मिक्स कर लें, ये हेल्दी भी होगा और आपको फिट भी रखेगा.

* आप खाने में सलाद, फ्रूट्स इत्यादि लें इससे आपकी डायट भी बैलेंस रहेगी और आपकी सेहत भी नहीं बिगड़ेगी.

* यदि आप त्योहारों के मौके पर अधिक ड्रायफ्रूट्स लेते हैं और साथ ही एल्‍‍कोहल, धूम्रपान इत्यादि करते हैं तो भी आपकी सेहत बिगड़ने की आशंकाएं बढ़ जाती है. ऐसे में आपको इन चीजों के सेवन से बचना चाहिए.

* लॉक डाउन के समय चाय, कॉफी इत्यादि का सेवन कम करना चाहिए और संभव हो तो  ग्रीन टी सेवन करे, इसका सेवन करना लाभकारी होता है.

* कोशिश करें की मिलावटी पदार्थ के सेवन करने से बचे.

 

इंस्टाग्राम ने दी सुशांत को अब तक की सबसे बड़ी श्रद्धांजलि, अमर कर दिया एक्टर का अकाउंट

सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद लोग उन्हें अभी भी भूला नहीं पा रहे हैं. वहीं सोशल मीडिया साइट पर लगातार पोस्ट आ रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत के इंस्टाग्राम  अकांउट को अमर कर दिया गया है. सुशांत सिंह राजपूत का अकाउंट जैसा है वैसा ही रहेगा. जो भी चाहे उनके अकाउंट से फोटो और वीडियो देख सकता है.

सुशांत सिंह ने 14 जून को अपने आवास पर आत्महत्या कि थी. 5 दिन बीत चुके हैं लेकिन अभी भी लोग इस सदमें से बाहर नहीं आ रहे हैं.

उनकी इस खबर ने सबको झकझोर कर रख दिया है. इंडस्ट्री के सभी लोग सदमें में हैं. सोशल मीडिया उन्हें याद करके पुरानी तस्वीर शेयर कर रहे हैं.

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सुशांत की पुरानी तस्वीर को देखकर इंस्टाग्राम के फैंस बहुत ज्यादा भावुक हो रहे हैं. सुशांत के बायो में remembering जोड़ दिया गया है. सुशांत बॉलीवुड के ऐसे एक्टर बन गए हैं जिन्हें अमर करके इंस्टाग्राम पर श्रद्धांजलि दी गई है.

इंस्टाग्राम जिस अकाउंट को Memorialized करता है उसमें वह कोई बदलाव नहीं करता है. फैंस उस अकाउंट पर आसानी से सारी फोटोज और वीडियो देख सकते हैं.

बता दें सुशांत के अकाउंट पर आखिरी पोस्ट 3 जून की थी. उन्होंने अपनी मां के साथ कोलाज बनाकर शेयर किया था.

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वहीं दूसरी तरफ सुशांत के केस को पुलिस जांच कर रही है. उनके करीबी जानने वाले लोगों से लगातार पूछताछ कर रही है. सुशांत की कथित गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती से भी पुलिस ने लंबी पूछताछ की है.

रिया चक्रवर्ती के अलावा पुलिस ने करीब 10 और भी लोगों से पूछताछ कि है. सभी के मन में एक ही सवाल है आखिर सुशांत ने आत्महत्या जैसा खराब कदम क्यों उठाया. क्यों हार मान लिया था उन्होंने अपनी जिंदगी से.

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सुशांत अपने पीछे बहुत सारी यादों को छोड़ गए हैं, जिसे फैंस कभी नहीं भूल पाएंगे.

सुशांत के सुसाइड से सदमें में है ये दोस्त, अंकिता लोखंडे के लिए लिखा इमोशनल लेटर

34  वर्षीय सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को अपने घर में आत्महत्या कर ली. इस खबर ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है. सुशांत के आत्महत्या का कारण था डिप्रेशन. सुशांत लंबे वक्त से डिप्रेशन से जुझ रहे थें.

आखिर में उन्होंने अपनी दवा लेनी भी छोड़ दी थी और फिर जो हुआ उससे आज भी पूरा देश भूलने को तैयार नहीं है.

सुशांत सिंह राजपूत के खास दोस्त संदीप सिंह ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पुरानी तस्वीर शेयर करते हुए सुशांत सिंह को याद किया है. उन्होंने लिखा ‘मेरी प्यारी अंकिता लोखड़े हर दिन मुझे एक ही अफसोस हो रहा है कि काश हम उसके साथ होते और उसे जाने से रोक पाते  तो वो शायद आज हमारे साथ होता’ ..

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Dear Ankita, with each passing day, one thought keeps haunting me over and over again. Kaash… I wish… We could have tried even harder, we could’ve stopped him, we could’ve begged him! Even when you both seperated, you only prayed for his happiness and success… Your love was pure. It was special. You still haven’t removed his name from the nameplate of your house❤️ I miss those days, when the three of us stayed together in lokhandwala as a family, we shared so many moments which bring tears to my heart today…cooking together, eating together, ac ka paani girna, our special Mutton bhaat, our long drives to uttan, lonavala or Goa! Our crazy holi! Those laughs we shared, those sensitive low phases of life when we were there for each other, you more than anyone. The things you did to bring a smile on Sushant’s face. Even today, I believe that only you two were made for each other. You both are true love. These thoughts, these memories are hurting my heart…how do I get them back! I want them back! I want ‘us three’ back! Remember the Malpua!? And how he asked for my mother’s Mutton curry like a little kid! I know that only you could’ve saved him. I wish you both got married as we dreamt. You could’ve saved him if he just let you be there…You were his girlfriend, his wife, his mother, his best friend forever. I love you Ankita. I hope I never lose a friend like you. I won’t be able to take it.

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आगे उसने लिखा सुशांत सिंह राजपूत और तुम्हारा ब्रेकअप हो चुका था लेकिन तुमने हमेशा उसका भला चाहा. तुम हमेशा उसके लिए दुआएं ही करती थी कि वह हमेशा खुश रहे कामयाब रहे. तुम्हारा प्यार वाकई सच्चा था.

Sushant Singh Rajput Friend Sandeep Singh Write A HeartBreak Post ...

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तुमने आज भी अपने घर के नेम प्लेट से सुशांत का नाम नहीं हटाया है. संदीप सिंह ने अपने इमोशनल पोस्ट के जरिए खुलासा किया है कि मैं आज भी उन दिनों को नहीं भूला पाता हूं कि जब हम तीनों लोखडेवाला में एक परिवार की तरह रहते थें. कितने अच्छे थे वो दिन.

हम दोनों ने साथ में बहुत से शानदार पल बिताएं जो आज भी मेरे दिल में जिंदा है. जब हम साथ में खाना बनाते थे और फिर एक साथ मिलकर खाते थें. एसी का पानी गिरना या फिर स्पेशल मटन भात खाना फिर लॉन्ग ड्राइव पर जाना न जाने कहा चले गए वो दिन. होली के दिन खूब मस्ती करना आज भी उन दिन को याद करके मेरे चेहरे पर खुशियां आ जाती हैं.

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आगे लिखा सुशांत कितना ज्यादा खुश था हमारे साथ, काश तुम दोनों शादी कर लिए होते तुम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थें तुम तो उसके लिए सबकुछ थी, मां, दोस्त, गर्लफ्रेंड. एक तुम ही थी जो शायद उसे जानें से रोक सकती थी. अंकिता मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं उम्मीद करता हूं तुम मुझे  छोड़कर कही नहीं जाओगी. वरना मैं ये सदमा बर्दाशृत नहीं कर पाउंगा.

महिलाओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन, नजरअंदाज न करें इस बीमारी को

आज पूरा विश्व ही एक अवसादी दौर से गुजर रहा है. कहीं कारोबार के खत्म होने का अवसाद  है तो कहीं कैरियर के रुक जाने का अवसाद. रिपोर्ट्स की मानें तो अवसाद में 27 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. कई बार तो यह अवसाद इतना हावी हो जाता है कि एक इंसान को अपनी जिंदगी से इतर मौत को गले लगाना अच्छा विकल्प लगता है. जिसमें से एक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का चमकता हुआ सितारा सुशांत सिंह राजपूत भी अस्त हो गया.

आत्महत्या एक पलायनवादी प्रवृत्ति और एक कायरतापूर्ण कृत्य है, पर क्या हमें पता है कि दुनियाभर में हर साठवां व्यक्ति इसके बारे में कभी न कभी जरूर सोचता है. मानसिक अवसाद का यह पल हमारी आधी आबादी के भी हिस्से आता है और कहीं ज्यादा आता है.

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पहली बार मां बनने जा रही मीता से जब जोधपुर की एक नामचीन स्त्री रोग विशेषज्ञ ने पूछा, “क्या तुम वाकई इस बच्चे को जन्म देना चाहती हो? कहीं इस प्रेग्नेंसी के लिए खुद को जिम्मेदार तो नही ठहराती हो?”

इस सवाल से थोड़ी कसमसाती मीता ने थोड़ा रूखा ही पर जवाब दे दिया, पर तब उसे इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि ऐसे सवाल की जड़ किसी बीमारी से जुड़ी हुई है और उस बीमारी का नाम है पोस्टपार्टम डिप्रैशन या प्रसवोत्तर अवसाद.

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प्रसवोत्तर अवसाद, अवसाद का वह रूप है जो अमूमन पहले बच्चे के जन्म के बाद आए मानसिक तनाव से होता है, पर कभी कभी यह दूसरे या अगले बच्चों के जन्म तक होता है. यह लक्षण माता पिता दोनो में पाया जाता है, पर इसकी शिकार ज्यादातर महिलाएं होती हैं. एक ऐसा सामान्य अवसाद जो लगभग हर 10 महिलाओं में से एक महिला को होता है.

अमूमन हर महिला ही बच्चे के जन्म के बाद थोड़ी चिड़चिड़ेपन, मूड स्विंग और घबराहट से परेशान होती है. यह स्वाभाविक भी है. शरीर के परिवर्तन के साथ साथ मानसिक परेशानियां भी उन्हें तनाव देती हैं. छोटे समय के इस अवसाद को बेबी ब्लूज भी कहा गया है, जिस पर ज्यादा ध्यान भी लोग नहीं देते,पर यही अवसाद अगर 2 सप्ताह से ज्यादा बढ़ता है तो उसे पोस्टपार्टम अवसाद का दूरगामी लक्षण माना जाता है जो कभी कभी गंभीर परिणाम भी ले आता है.

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प्रेमलता जब पहली बार मां बनी तब वह बच्चे को लेकर कुछ ज्यादा ही भावुक थी. उसमें बच्चे का हर काम परफैक्ट तरीके से करने का जुनून था. वह किसी को अपने बच्चे को हाथ भी नही लगाने देती थी, यहां तक कि परिवारजनों को भी नहीं.

शुरुआत में सबने इसको सहजता से लिया पर प्रेमलता का यही अवसाद धीरे धीरे बढ़ता ही गया और ठीक दूसरे महीने उसकी आत्महत्या ने सबको झकझोर दिया. सुसाइड नोट में कारण लिखा था कि बच्चे की अच्छी देखभाल न कर पाने की वजह. और तब जाकर लोगों को पता चला कि वह प्रसवोत्तर अवसाद से जूझ रही थी.

अब जब यह अवसाद एक ऐसी समस्या है जो 15 प्रतिशत महिलाओं में अन्य अवसादों की भी कारक होती है, तो जाहिर है इसके कुछ कारक और समाधान भी होंगे.

मानसिक अवसाद का इतिहास

अगर किसी महिला में ऐसा कोई इतिहास रहा है तो उसके साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट के साथ साथ उनका खास ख्याल रखना भी आवश्यक है. अक्सर होता है यह है कि जब प्रसव हो जाता है तो पूरे परिवार का ध्यान बच्चे की तरफ आकर्षित हो जाता है और माँ उपेक्षित महसूस करती है. ऐसे में यह मानसिक अवसाद फिर से पनपने लगता है.

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प्रेगनेंसी के दौरान उतपन्न हुआ अवसाद

अब जब महिलाएं पहली बार मां बनने वाली होती हैं तो वे अलग अलग जगहों से सूचनाएं अधिग्रहण करने लगती हैं, ऐसे में कई बार अवांछनीय सूचना उनके तनाव में इजाफा कर देती है जो अवसाद का रूप लेने लगता है. ऐसे मे मांओं को चाहिए कि प्रेगनेंसी पर आधारित कुछ अच्छी पुस्तकों और पत्रिकाओं से अपना ज्ञानवर्धन करें. महिलाओं से जुड़ी पत्रिकाएं इसमें उनकी अच्छी मदद कर सकती हैं.

प्रसव के दौरान नजदीकी दोस्तों या रिश्तेदारों के न होना

अब जब पूरा समाज एकल होता जा रहा है, ये समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में महिला अपनी परेशानियां या बातें शेयर नहीं कर पाती और अवसाद से गुजरती हैं. इससे बचने के लिए कोशिश होनी चाहिए कि कोई शारीरिक रूप से महिला के साथ हो. अगर किसी कारण यह संभव नहीं हो तो मानसिक रूप से साथ जरूर रहें और धैर्यपूर्वक उनकी बातें सुनें और उचित सलाह दें.

पार्टनर के साथ कमजोर रिश्ता

कई बार पार्टनर का उचित ध्यान न पाना और उसके साथ कमजोर रिश्ते का होना भी इस कदर भारी पड़ जाता है कि रिश्ता मानसिक तनाव का कारक हो जाता है. पार्टनेट का सहयोग जरूरी है, जितना शारिरिक उतना ही मानसिक. कम से कम उसकी बातों का सुनना और समझना तो नितांत आवश्यक है।

तो आइए अगर ऐसी कोई भी महिला जो प्रेग्नेंट है तो उसका साथ दें, उसे इस बीमारी से अवगत कराएं. उसकी बातें सुनें, ताकि अगर ऐसा कोई भी लक्षण दिखाई दे तो उसका इलाज कराकर एक स्वस्थ माहौल तैयार करें, न कि उसे उपेक्षित छोड़ दें. अवसाद को बीमारी बनने से पहले उसका इलाज संभव है. अगर अवसाद ज्यादा बढ़ जाए तो मनोचिकित्सक से मिलने में भी परहेज न करें.

फादर्स डे स्पेशल: मेरे पापा-11

मेरे पापा बेहद नरमदिल, स्नेहिल स्वभाव वाले इंसान थे. वे हम 3 भाईबहनों के पापा कम, मित्र ज्यादा थे. बात उस समय की है जब मैं करीब 9 साल की थी. सर्दी के दिन थे. मां ने अंगीठी जला कर उस पर चाय बनाने के लिए रखी थी. मैं गरमाहट पाने के लिए अंगीठी के सामने बैठ गई और चाय बनते देखती रही. इतने में मां किसी काम से उठ कर बाहर गईं तो मेरी नजर एक कोयले पर पड़ी जो कुछ टेढ़ा सा हो रहा था. मैं ने चिमटा उठा कर उस कोयले को सीधा करना चाहा तो पतीले का संतुलन बिगड़ गया और खौलती हुई चाय मेरे पैर पर गिर पड़ी.

मैं ने दर्द के मारे चीखना शुरू कर दिया. मेरे रोने की आवाज सुन कर मेरी मां और मेरे पापा भी रसोई में आ गए. मां घबरा कर रोने लगीं.

पापा ने तुरंत मुझे अपनी गोद में उठाया और कुछ दूरी पर स्थित अस्पताल में ले गए जहां डाक्टरों ने मेरा उपचार किया. डाक्टर ने कुछ दिन पैर नीचे न रखने की हिदायत दी थी. मुझे दर्द से ज्यादा इस बात की चिंता थी कि मैं 4-5 दिन तक स्कूल कैसे जाऊंगी.

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मेरी मनोदशा को भांपते हुए पापा रोज सुबह अपनी गोद में उठा कर मुझे मेरी कक्षा में बिठा कर आते थे. पापा के औफिस में लंच का समय होता था. पापा लंच छोड़ कर दोपहर में मुझे फिर से गोद में उठा घर छोड़ कर फिर औफिस चले जाते.

आज मेरे पापा हमारे बीच नहीं हैं पर यह अनुभव और उन की यादें जीवन के अंतिम क्षणों तक मेरे दिल में रहेंगी.

मीनू मोहले, पंजाबी बाग (न.दि.)

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*

मैं गणित विषय से एमएससी कर चुकी थी. उसी साल मेरे पापा रिटायर हुए थे. मैं ने सोचा कि मैं अब आगे नहीं पढ़ूंगी, नौकरी ढूंढ़ूंगी ताकि घर का खर्च चलाने में पापा की मदद कर सकूं.

एक दिन मेरी सहेली हमारे घर आई और कहने लगी कि उस ने एमफिल में दाखिला ले लिया है. मेरे पापा ने सुन लिया और कहा, ‘‘तुम ने एमफिल का फौर्म क्यों नहीं भरा?’’ मैं ने कहा, ‘‘पापा, मैं और नहीं पढ़ूंगी, नौकरी कर के आप का हाथ बटाऊंगी.’’ पापा ने मुझे डांट कर कहा, ‘‘जब तक मैं हूं, तुम्हें घर की फिक्र करने की जरूरत नहीं. तुम जाओ और एमफिल करो.’’ अगले ही दिन मैं ने फीस भर कर एमफिल में दाखिला ले लिया. अभी मेरी एमफिल पूरी भी नहीं हुई थी कि मेरा राजकीय महाविद्यालय में प्राध्यापिका पद की नौकरी के लिए चयन हो गया. पापा आज हमारे बीच नहीं हैं. मुझे आज भी लगता है कि मुझे यह नौकरी पापा की वजह से ही मिली है.

पूनम कश्यप, विश्वकर्मा कालोनी (न.दि.)

Crime Story: तंत्र का आधा-अधूरा मंत्र

विकास की दौड़ में पिछड़े हुए गांवों का शैक्षिक स्तर भी पिछड़ा हुआ है, जिस की वजह से ऐसे गांवों के लोग अभी भी अंधविश्वासों की

बेडि़यों में जकड़े हुए हैं. कुडरिया गांव के सुघर सिंह के घर इसी अंधविश्वास ने ऐसा…   —’   कुडरिया जिला इटावा का छोटा सा गांव है, जो थाना बकेवर के क्षेत्र में आता है. कुडरिया का सुघर सिंह दोहरे मामूली सा किसान है. 21 फरवरी, 2020 को गांव के कुछ लोग सुघर सिंह दोहरे के घर के सामने वाले रास्ते से निकले तो उन की नजर दरवाजे के पास मरे पड़े भैंस के पड्डे पर गई, जिस की गरदन काटीगई थी.

कुछ लोग अनहोनी की आशंका के मद्देनजर सुघर सिंह के घर के अंदर गए तो हैरत में रह गए. आंगन में एक व्यक्ति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. जरूर कोई गंभीर बात है, सोच कर लोग घर के बाहर आ गए.

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इस खबर से गांव में सनसनी फैल गई. गांव वाले सुघर के मकान के सामने एकत्र होने लगे. इसी दौरान किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में बकेवर के थानाप्रभारी बचन सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. वहां सूने पड़े मकान में एक शव पड़ा हुआ था. वहां के दृश्य को देख लग रहा था कि वहां तांत्रिक क्रियाएं की गई थीं. वहां केवल भैंस के पड्डे की ही नहीं, बल्कि बकरे और मुर्गे की भी बलि दी गई थी. एक थाली में अलगअलग कटोरियों में तीनों का खून रखा था.

थानाप्रभारी ने आसपास के रहने वाले लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की तो पता चला घर में भूतप्रेत का कोई चक्कर था.

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इसी वजह से सुघर सिंह दोहरे ने तंत्रमंत्र क्रिया कराई थी. इसी को ले कर किसी व्यक्ति की बलि दी गई होगी.

इसी बीच संतोष नाम का एक युवक घटनास्थल पर पहुंचा. वह घबराया हुआ था. लाश को देख कर उस ने मृतक की शिनाख्त अपने चाचा हरिगोविंद के रूप में की. गांव मलेपुरा का हरिगोविंद पेशे से तांत्रिक था.

 

तब तक मृतक का बड़ा भाई वीर सिंह, सुघर सिंह के दामाद विपिन के साथ वहां पहुंच गया. कुछ देर में मृतक के अन्य घर वाले भी आ गए. हरिगोविंद की लाश देख कर घर वालों ने रोनाधोना शुरू कर दिया.

सुघर सिंह के घर के बाहर भारी भीड़ जमा होते देख थानाप्रभारी बचन सिंह ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना मिलने पर एएसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह, फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने पूरे मकान का निरीक्षण किया.

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पुलिस ने मकान की छत पर जा कर भी जांच की. घर में बड़ी मात्रा में तंत्रमंत्र में इस्तेमाल होने वाली सामग्री भी मिली, जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. तांत्रिक हरिगोविंद के सिर व गले पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे.

मृतक के बड़े भाई वीर सिंह ने बताया कि उस के भाई हरिगोविंद को सुघर सिंह ने विपिन को भेज कर झाड़फूंक के लिए बुलवाया था. सुघर सिंह और उस के घर वाले घटना के बाद से ही फरार थे.

वीर सिंह का आरोप था कि उस के भाई की हत्या साजिशन की गई थी, जिस में सुघर सिंह के सभी घर वाले शामिल थे. पुलिस ने वीर सिंह की तहरीर पर 7 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 302, 120बी के तहत केस दर्ज किया. 7 आरोपियों में विपिन के अलावा कुडरिया गांव का सुघर सिंह, उस की पत्नी सिया दुलारी, मलेपुरा निवासी दामाद विपिन, तीनों बेटे सतीश, श्यामबाबू व ब्रह्मप्रकाश और श्यामबाबू की पत्नी प्रियंका शामिल थे.

वीर सिंह ने अपनी तहरीर में कहा कि उस के छोटे भाई हरिगोविंद को 20 फरवरी को आरोपी विपिन व श्यामबाबू प्रेत बाधा दूर करने के लिए ले गए थे. श्यामबाबू ने उस के भाई को धमकी भी दी थी कि कई बार बुला कर काफी पैसा खर्च करवा लिया है. अगर आज भूत नहीं उतरा तो समझ लेना, तेरा भूत उतारूंगा.

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एसएसपी आकाश तोमर ने प्रैसवार्ता में बताया कि तथाकथित तांत्रिक की हत्या के मामले में बकेवर पुलिस ने कुडरिया निवासी सुघर सिंह, उस की पत्नी सियादुलारी और मलेपुरा निवासी उस के दामाद विपिन कुमार को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल नल का हत्था और लोहे की पत्ती बरामद की गई है. गिरफ्तार किए गए आरोपियों ने तांत्रिक की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया है. हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

कुडरिया के रहने वाले सुघर सिंह दोहरे के 3 बेटे व 2 बेटियां हैं. बेटों में सतीश, श्यामबाबू व ब्रह्मप्रकाश शामिल हैं. मझले बेटे श्यामबाबू की पत्नी प्रियंका व छोटा भाई ब्रह्मप्रकाश काफी समय से बीमार चल रहे थे. दोनों का गांव में ही इलाज कराया गया, लेकिन बीमारी ठीक नहीं हुई.

घर के लोगों ने अंधविश्वास के चलते उन पर भूतप्रेत का साया समझ लिया और उस के निदान के लिए उपाय तलाशने लगे.

 

इस बीच उन्होंने कई जानकार तांत्रिक व सयानों से झाड़फूंक कराई. यह सब घर में कई महीनों से चल रहा था, लेकिन प्रियंका व ब्रह्मप्रकाश की बीमारी में झाड़फूंक से कोई फायदा नहीं हो

रहा था.

सुघर सिंह की बेटी सुमन की शादी थाना लवेदी के ग्राम मलेपुरा निवासी विपिन के साथ हुई थी. विपिन ने सुघर सिंह को किसी अच्छे तांत्रिक से क्रिया कराने की सलाह दी. उस ने अपने ही गांव के तांत्रिक हरिगोविंद को तंत्रमंत्र विद्या में पारंगत बता कर उस से पूजापाठ कराने को कहा. हरिगोविंद विपिन का चचेरा चाचा था. उस ने बताया कि तंत्रमंत्र क्रिया कराने से भूत बाधा से मुक्ति मिल जाएगी.

 

इस की जानकारी होने पर एक दिन श्यामबाबू अपने बहनोई विपिन के गांव पहुंचा और अपनी पत्नी व भाई की बीमारी दूर करने के लिए तंत्रमंत्र साधना कराने के लिए कहा.

विपिन ने इस संबंध में अपने तांत्रिक चचेरे चाचा हरिगोविंद, जो लवेदी में रह कर तंत्रमंत्र और झाड़फूंक करता था, से संपर्क किया था. 45 वर्षीय हरिगोविंद की गांव में तांत्रिक के रूप में अच्छी पहचान बनी हुई थी. उस का दावा था कि वह अपनी शक्ति से भूतबाधा से पीडि़त व्यक्ति को मुक्ति दिला सकता है.

घटना से 2 दिन पहले श्यामबाबू बहनोई विपिन के साथ उस के गांव जा कर मिला. तांत्रिक हरिगोविंद के बताए अनुसार तय हुआ कि महाशिवरात्रि से एक दिन पहले यानी 20 फरवरी को तंत्र क्रिया शुरू की जाएगी, जो शिवरात्रि को पशु बलि देने के साथ संपन्न होगी.  तांत्रिक ने कहा कि बलि के बिना भूतबाधा से मुक्ति नहीं मिलेगी. इस के लिए हरिगोविंद ने श्यामबाबू को जरूरी सामान लाने के लिए एक लिस्ट थमा दी.

निश्चित दिन गुरुवार 20 फरवरी को विपिन दिन में ही तांत्रिक हरिगोविंद को ले कर गांव कुडरिया स्थित श्यामबाबू के घर पहुंच गया. इस बीच श्यामबाबू ने तंत्र क्रिया के लिए सभी सामान के साथ बलि के लिए मुर्गे व अन्य पशुओं का भी इंतजाम कर लिया था.

 

सुघर सिंह के घर के आंगन के बीच एक गड्ढा खोद कर उसमें तांत्रिक क्रियाएं शुरू की गई. इस दौरान हरिगोविंद ने मुर्गा, बकरा व पड्डा (भैंस का बच्चा) की बलि देने के साथ ही उन के खून को एक बरतन में इकट्ठा किया और तरहतरह की तांत्रिक क्रियाएं करने लगा. वह जय मां काली के उद्घोष के साथ ही तेजी से सिर हिलाने लगा. इसी बीच उस ने प्रियंका के साथ कुछ गलत हरकतें करनी शुरू कर दीं.

पहले तो घर वाले कुछ नहीं बोले, लेकिन जब तांत्रिक की हरकतें ज्यादा बढ़ गईं, तब घर वालों का खून खौल उठा. इस बात को ले कर घर वालों का तांत्रिक से विवाद हो गया.

विवाद बढ़ने पर उन लोगों ने तांत्रिक हरिगोविंद को दबोच लिया और उस के सिर पर हैंडपंप के हत्थे से और गरदन पर लोहे की पत्ती से प्रहार किए, जिस से उस की मृत्यु हो गई. हत्या करने के बाद सुघर सिंह के घर वाले रात में ही फरार हो गए.

सुघर सिंह का दामाद विपिन तांत्रिक को साथ ले कर कुडरिया आया था, लेकिन वापस लौट कर अपने गांव मलेपुर स्थित घर आ कर सो गया. उस ने मृतक हरिगोविंद के घर वालों को इस बारे में कुछ नहीं बताया. कुडरिया से मलेपुर गांव के बीच की दूरी करीब 9 किलोमीटर है.

हरिगोविंद के घर वालों को शुक्रवार सुबह लगभग 9 बजे घटना की जानकारी मिली. इस पर हरिगोविंद के घर वाले विपिन के घर पहुंच गए. विपिन घर पर सोता हुआ मिला. जब विपिन से हरिगोविंद के बारे में पूछा गया तो उस ने कुछ नहीं बताया. इस पर उन लोगों ने उसे मारापीटा.

 

हरिगोविंद के घर वाले विपिन को ले कर कुडरिया गांव आए. लेकिन उन के पहुंचने से पहले ही मृतक के भतीजे संतोष ने शव की शिनाख्त चाचा हरिगोविंद के रूप में कर दी थी. पुलिस ने पहले विपिन की पत्नी सुमन को भी हिरासत में लिया था, लेकिन आरोपियों में उस का नाम न होने पर छोड़ दिया था.

तांत्रिक हरिगोविंद शादीशुदा था. उस के 4 बच्चे हैं. 2 बेटे व 2 बेटियां. सभी बालिग हैं.

अपनी घरगृहस्थी चलाने के लिए उस ने आसपास के क्षेत्र में तंत्र विद्या में निपुण होने के तौर पर पहचान बना रखी थी. मलेपुर गांव में उस की पहचान तांत्रिक डाक्टर के रूप में थी. तंत्रमंत्र के साथ वह दवाई भी देता था.

मलेपुर गांव के लोगों के अनुसार हरिगोविंद तंत्रमंत्र व झाड़फूंक करता था. वह लंबे समय से अंधविश्वास से ग्रस्त लोगों को अपनी कथित तंत्रविद्या से भूतप्रेत बाधाओं को ठीक करने और उन का मुकद्दर बनाने का दावा करता रहता था.

अज्ञानता के चलते सीधेसादे लोग मामूली बीमार होने पर भी डाक्टर के पास न जा कर सीधे हरिगोविंद के पास झाड़फूंक के लिए चले जाते थे. तंत्रमंत्र और झाड़फूंक के नाम पर वह लोगों से मोटी कमाई करता था.

तंत्र क्रिया के दौरान कथित तांत्रिक हरिगोविंद द्वारा निरीह पशुपक्षियों की नृशंस हत्या का प्रतिफल उसे अपनी जान गंवा कर मिला.

—कथा पुलिस सूत्रों परधारित आ

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