श्रम कानून में बदलाव की वजह उद्योगपतियों को सहूलियत देना नहीं बल्कि मनुवादी सोंच का विकास करके सांमतवादी व्यवस्था को कायम करना है. बसपा जैसे जिन राजनीतिक दलों को इसका विरोध करना चाहिये वह केवल बयानों तक सीमित रह गये है. समाज के जिस बहुजन समाज के अधिकारों की रक्षा के लिये बसपा का गठन हुआ था वह खुद अब मौन है. इससे बेखौफ मनुवादी सोंच रखने वालों के हौसले बुलंद है. वह अपने राजनीतिक और सामाजिक बदलाव के एजेंडे पर आगे बढ रहे है. मजदूरों के अधिकारों की रक्षा और रोजगार देने के नाम पर दलित समाज को फिर से बुधंआ मजदूरी के दलदल में ढकेलने की मूहिम चल रही है.

 उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रम कानूनों को 3 साल के लिये अस्थाईतौर पर बंद कर दिया है. सरकार के इस कदम से प्रदेश में उद्योगों को बढावा दिया जायेगा. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेष यादव का कहना है भाजपा सरकार का यह काम मजदूर विरोधी है. इससे श्रमिकों का षोषण बढेगा. जिससे औद्योगिक वातावरण में अषांति फैलेगी जो उ़द्योग जगत के लिये भी अच्छी बात नहीं होगी. इस कारण प्रदेश में कोई बडा उद्योग काम नहीं करेगा. यह बात सच है कि केन्द्र की भाजपा सरकार उद्योगपतियों का पक्ष लेने के लिये मशहूर है.

 2014 से 2020 के बीच भाजपा सरकार की हर नीति मजदूर विरोधी रही है. धर्म के नाम पर यह सरकार वोट लेने में सफल होती रही है. इस सरकार ने धर्म के नाम पर भेदभाव करने के बाद अब मजदूर और मालिक के नाम पर राजनीति करने का प्रयास कर रही है. मजदूर कानून इसका पहला कदम है. कोरोना संकट को हल करने के नाम पर भाजपा सरकार अब उद्योगपतियों को संरक्षण देने के लिये मजदूरो के अधिकारों का हनन करेगी.

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