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पाखी मुरगे की तरह गरदन ऊंची कर के विहंगम दृष्टि से पूरे परिवेश को निहारती है. होटल राजहंस का बाहरी प्रांगण कोलाहल के समंदर में गले तक डूबा हुआ है. बरातीगण आकर्षक व भव्य परिधान में बनठन कर एकएक कर के इकट्ठे हो रहे हैं. गोयनकाजी जरा शौकीन तबीयत के इंसान हैं. इलाके के किंग माने जाते हैं. पास के मिलिटरी कैंट से आई बढि़या नस्ल की घोड़ी को सलमासितारों व झालरलडि़यों के अलंकरण से सजाया जा रहा है. बाईं ओर सलीम बैंड के मुलाजिम खड़े हैं गोटाकिनारी लगी इंद्रधनुषी वरदियों में सज्जित अपनेअपने वाद्यों को फिटफाट करते. मकबूल की सिफारिश पर पाखी को सलीम बैंड में लाइट ढोने का काम मिल जाता है. इस के लाइट तंत्र में 2 फुट बाई 1 फुट के 20 बक्से रहते हैं. हर बक्से पर 5 ट्यूबलाइटों से उगते सूर्य की प्रतीकात्मक आकृति, दोनों ओर 10-10 बक्सों की कतारें. सभी बक्से लंबे तार द्वारा पीछे पहियों पर चल रहे जनरेटर से जुड़े रहते हैं.

मकबूल, इसलाम और शहारत तो पाखी की बस्ती में ही रहते हैं. मकबूल ड्रम को पीठ पर लटकाता है तो अचानक उस की कराह निकल जाती है. ‘‘क्या हुआ, मकबूल भाई?’’ पाखी पूछ बैठती है, ‘‘यह कराह कैसी?’’

‘‘हा…हा…हा…’’ मकबूल हंस पड़ता है, ‘‘बाएं कंधे पर एक फुंसी हो गई है. महीन हरी फुंसी…आसपास की जगह फूल कर पिरा रही है. ड्रम का फीता कम्बख्त उस से रगड़ा गया.’’

‘‘ओह,’’ पाखी बोलती है, ‘‘अब ड्रम कैसे उठाओगे? फीता फुंसी से रगड़ तो खाएगा.’’

‘‘दर्द सहने की आदत हो गई है रे अब तो. कोई उपाय भी तो नहीं है,’’ मकबूल फिर हंस पड़ता है, ‘‘तू बता, तेरी तबीयत कैसी है?’’

‘‘बुखार पूरी तरह नहीं उतरा है, भैया. कमजोरी भी लग रही है. पर हाजरी के सौ टका के लालच में आना पड़ा,’’ पाखी भी मुसकरा पड़ती है.

‘‘तेरा हीरो कहां है रे, दिखाई नहीं पड़ रहा?’’ मकबूल ने पाखी की आंखों में झांकते हुए ठिठोली की.

हीरो की बात पर पाखी के चेहरे पर लज्जा प्रकट हो जाती है और मुंह से निकल पड़ता है, ‘‘धत्…’’ होटल से थोड़ी दूर पर ही झंडा चौक है, नगर का व्यस्ततम चौराहा. बाईं ओर बरगद के पेड़ के पास लखन की चायपान की गुमटी है. गुमटी की बाहरी दीवार पर एक पुराना आईना छिपकली की तरह चिपका हुआ है. आईने में आड़ेतिरछे 2-3 तरेड़ पड़े हैं. इसी तरेड़ वाले आईने के सामने खड़ा है गोबरा. गोबरा यानी पाखी का हीरो. वह खीज से भर उठता है, ‘‘ये लखन भी न… हुंह. नया आईना नहीं ले सकता?’’ फिर पैंट की पिछली पौकेट से कंघी निकाल कर देर तक बाल झाड़ता रहता है. कंघी के 2-3 दांते टूटे हुए हैं. आखिर जब उसे इत्मीनान हो जाता है कि बाल रणबीर कपूर स्टाइल में सैट हो गए तो कंघी को पिछवाड़े की जेब में ठूंसता हुआ तेजतेज कदमों से होटल राजहंस की ओर लपक जाता है.

गोयनकाजी की लड़की की शादी है. बरात को होटल राजहंस में ठहराया गया है. बींद यानी दूल्हे को घोड़ी पर बैठा कर व सभी बरातियों को रोशनियों के घेरे में नगर का परिभ्रमण कराते हुए ‘तोरण’ के लिए गोयनकाजी की कोठी पर ले जाया जाएगा. पूरा होटल किसी नवेली दुलहन की तरह मुसकरा रहा है. गोबरा पाखी के करीब आ जाता है. गोबरा बाईं आंख दबा कर पाखी को कनखी मारता हुआ मुसकरा देता है. गोबरा को देखते ही पाखी के चेहरे पर भी खिली धूप सी उजास फैल जाती है. गोबरा के और उस के बप्पा दोस्त हैं. गोबरा पास की बस्ती में रहता है. घरेलू संबंध रहने से एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता है. मन ही मन दोनों का टांका भिड़ गया है. नगर के उत्तरी छोर पर जंगल के पास मिट्टी का एक टीला है. दोनों अकसर घनी झाडि़यों के बीच शाम के झुटपुटे में मिला करते हैं. गोबरा उसे बांहों में भर कर फुसफुसाता है, ‘तेरे सामने तो बंबई वाली सोनाक्षी भी पानी भरती है रे…’

‘‘अरे भाई मास्टर…जब तक बींद राजा बाहर नहीं आ जाते, एकाध गाने का धमाका ही क्यों न हो जाए,’’ बींद के पिता दूर से फटे बांस के सुर में चीख पड़ते हैं, ‘‘इस जानलेवा उमस का एहसास कुछ तो कम हो.’’ सलीम मास्टर एक नजर साथियों की ओर देखते हैं. सभी अपनेअपने वाद्यों के साथ चाकचौबंद हैं. आंखों में संतुष्टि के भाव लिए वे दायां हाथ ऊपर उठा कर चुटकी बजाते हुए पूरे लश्कर के पीछे खड़े जनरेटर वाले को संकेत देते हैं तो दूसरे ही पल जनरेटर चालक पूंछ फटकारता हरकत में आ जाता है. देखते ही देखते प्रकाश तंत्र का हर स्तंभ रोशनी से जगमगाने लगता है. पाखी भी आंचल कमर में खोंसती गमछे को सिर पर रखती है और ट्यूब वाले बक्से को ऊपर उठा लेती है. अन्य औरतें भी ऐसा ही करती हैं. सतह से ऊपर उठते ही ट्यूबों की दूधिया रोशनी में होटल राजहंस का प्रांगण जगमगा उठता है.

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