भारत के कुल गेहूं उत्पादन का 31.5 फीसदी केवल उत्तर प्रदेश में पैदा होता है. रबी के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में गेहूं का खास स्थान है. देश की खाद्य सुरक्षा के लिए गेहूं का अधिक उत्पादन बेहद जरूरी है. गेहूं की ज्यादा पैदावार के लिए उन्नत कृषि क्रियाओं का खास योगदान है.
मुनासिब आबोहवा
गेहूं की खेती के लिए आमतौर पर ठंडा और नम मौसम सही रहता है. दाना बनने की अवस्था के लिए सूखा व कुछ गरम मौसम ठीक होता है. तापमान, बारिश और रोशनी गेहूं की बढ़वार को काफी प्रभावित करते हैं. फसल बोने के समय 20 से 22 डिगरी सेंटीग्रेड, बढ़वार के समय 25 डिगरी सेंटीग्रेड और पकने के समय 14 से 15 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान सही रहता है. फसल पकने की अवस्था पर तापमान ज्यादा होने से फसल जल्दी पक जाती है, जिस से उपज घट जाती है बाली लगने के समय पाला पड़ने से बीज अंकुरण कूवत खत्म हो जाती है और उस का विकास रुक जाता है. इस की खेती के लिए 600 से 1000 एमएम सालाना बारिश वाले इलाके सही रहते हैं. पौधों की बढ़वार के लिए 50-60 फीसदी नमी सही है.
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जमीन का चयन व तैयारी
गेहूं की खेती कई तरह की मिट्टी में की जाती है, मगर मटियार दोमट मिट्टी जिस की पानी सोखने की कूवत अच्छी होती है, इस की खेती के लिए सब से अच्छी मानी जाती है. पानी के निकलने की सुविधा होने पर भारी मिट्टी जैसे काली मिट्टी में भी इस की अच्छी फसल ली जा सकती है. मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच में होना फसल के लिए सही रहता है. ज्यादा क्षारीय या अम्लीय मिट्टी गेहूं के लिए ठीक नहीं होती है. अच्छे अंकुरण के लिए बोआई के वक्त खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए और नमी सही होनी चाहिए. मिट्टी इतनी भुरभुरी होनी चाहिए कि बोआई आसानी से सही गहराई व सामान दूरी पर की जा सके.