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अपरिमित: अमित के पार्टी परिंदे ग्रुप का क्या था राज? भाग 2

लेखिका-Meha gupta

इसी दरमियान मेरी मुलाक़ात अमित से हो गई . हमारी स्कूल में कन्सट्रक्शन का काम चल रहा था वह सिविल इन्जिनियर था . इसी सिलसिले में अक्सर उसका हॉस्टल आना होता था . उसने आज तक कसकर बंद किए मेरे दिल के झरोखों को खोलकर उसके एक कोने में अपने लिए कब जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला .
” क्या आप मेरे साथ कॉफ़ी शॉप चलेंगी ?” वीकेंड पर वह अक्सर मुझसे पूछता . उसकी आँखों में मासूम सा अनुनय होता जिसे मैं ठुकरा नहीं पाती थी . हम दोनों एक – दूसरे के साथ होते हुए भी अकेले ही होते क्योंकि उस समय भी मैं ख़ुद में ही सिमटी होती बिल्कूल ख़ामोश .. कभी टेबल पर अंगुली से आड़ी – टेडी लकीरें खींचते हुए तो कभी मेन्यू कार्ड में पढ़ने की असफल कोशिश करते हुए .
“तुम अमित से शादी कर लो ,अच्छा लड़का हैं तुम्हें हमेशा ख़ुश रखेगा .” एक शाम सिस्टर ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा . सारी रात मैं सो नहीं पाई थी . बाहर तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी और एक तूफ़ान सारी रात मेरे मन के भीतर भी घुमड़ता रहा था . मैंने सुबह होते ही अमित को वॉट्सैप कर दिया ,” मैं धीमी , मंथर गति से चलती सिमटी हुई सी नदी के समान हूँ और तुम अलमस्त बहते वो दरिया जिसका अनंत विस्तार हैं . हम दोनों बिलकुल अलग है . तुम मेरे साथ ख़ुश नहीं रह पाओगे . ”
” नदी की तो नियति ही दरिया में मिल जाना है और दरिया का धर्म है नदी को अपने में समाहित कर लेना . बस तुम्हारी हाँ की ज़रूरत है बाक़ी सब मेरे ऊपर छोड़ दो .” तुरंत अमित का मैसेज आया . जैसे वो मेरे मेसिज का ही इंतज़ार कर रहा था . मम्मा पापा को भी इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था . सादगीपूर्ण तरीक़े से हमारी शादी करवा दी गई .
मे के महीने में गरमी और क्रिकेट फ़ीवर अपने शबाब पर थे . अमित सोफ़े पर औंधे लेटे हुए चेन्नई सुपर किंग्स और मुंबई इंडीयंज़ की मैच का मज़ा ले रहे थे . इतने में मोबाइल बजने लगा . रंग में भंग पड़ जाने से अमित ने कुछ झुँझलाते हुए कुशन के नीचे दबा फ़ोन निकाला पर मैंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए और वह बात करने दूसरे रूम में चला गया . मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना ज़रूरी फ़ोन किसका है कि वो धोनी की बैटिंग छोड़कर दूसरे बात करने चला गया वो भी अकेले में .
“ किसका फ़ोन था ?” उसके आते ही मैंने उत्सुकता से पूछा .
“ ऐसे ही .. बिन ज़रूरी फ़ोन था .” संक्षिप्त सा उत्तर दे वो फिर से टीवी में मगन हो गया . मैंने फ़ोन उठाकर रीसेंट कॉल्ज़ लिस्ट देखी , उस पर मनन नाम लिखा हुआ था . स्क्रीन पर कई सारे अन्सीन वॉट्सैप मेसजेज़ भी थे . मैंने वाँट्सैप अकाउंट खोला वो सब मेसजेज़ ‘ पार्टी परिंदे ग्रूप ‘ पर थे . मुझे बड़ा रोचक नाम लगा .
“ अमित ये पार्टी परिंदे क्या है ? “
“ कुछ नही .. हमारा फ़्रेंड्ज़ ग्रूप है जो वीकेंड पर क्लब में मिलते है .”
“ मनन का फ़ोन क्यों आया था ? “
“ मै लास्ट संडे नहीं गया था तो पूछ रहा था कि शाम को आऊँगा की नहीं .”
“ तो तुमने क्या जवाब दिया ?”
“ मैंने मना कर दिया . अब प्लीज़ मुझे मैच देखने दो .”
“ तुमने मना क्यों कर दिया ? तुम मुझे अपने दोस्तों से नहीं मिलवाना चाहते ..”
“ वहाँ सब लोग तेज म्यूज़िक पर डान्स फ़्लोर पर होते हैं .. मुझे लगा तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लगेगा . “ इतनी देर में पहली बार अमित ने टीवी पर से नज़रें हटाकर मुझपर टिकाई थी . मैं भावुक हो गई . और मन ही मन सोचने लगी मैं तो आजतक यही सुनती आई हूँ कि शादी के बाद लड़की को अपनी पसंद – नापसंद , शौक़ , अरमान ताक पर रखने पड़ते हैं पर यहाँ तो फ़िज़ाओं का रुख़ बदला हुआ सा था .
“ कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है , और जब इतना क़ीमती तोहफ़ा हो तो जान भी हाज़िर है . एनीथिंग फ़ॉर यू .. जाना ,”कहते हुए उसने मेरी आँखों से ढुलकते आँसूओं को अपनी हथेली में भर लिया .
शाम छः बजे तैयार होकर मैं अमित के सामने खड़ी हो गई . ब्लैक ईव्निंग गाउन में ग्लैमरस लुक में वो मुझे अपलक देखता ही रह गया .
“ मै पूछ सकता हूँ , बेमौसम कहाँ बिजली गिराने का इरादा है ? कहते हुए वह मुझे अपनी बाँहों में भरने लगा तो मैंने हँसते हुए उसे पीछे धकेल दिया .
“ रात को मैं करूँ शर्मिंदा .. मैं हूँ पार्टी परिंदा ..” मैंने अदा से डान्स करते हुए कहा . मेरे इस नए अन्दाज़ से वो बहुत ख़ुश लग रहा था .
राजपूताना क्लब हाउस में बनाव श्रिंगार से तो मैं अमित के दोस्तों से मैच कर रही थी जिसमें कई लड़कियाँ भी थी ,पर मन को कैसे बदलती . वहाँ सब लोग लाउड म्यूज़िक के साथ डान्सिंग फ़्लोर पर थिरक रहे थे . कुछ देर तो मैं भी उन जैसा बनने की कोशिश करती रही . फिर थोड़ी देर बाद खिड़की के पास लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गई और अपने स्लिंग की चैन को अपनी अंगुलियों पर घुमाने लगी . उस दिन के बाद मुझे दुबारा उस क्लब में जाने की हिम्मत नहीं कर पाई ना कभी अमित ने मुझे चलने के लिए कहा .
शादी के कुछ दिनों बाद ही अमित की बर्थडे थी . मैं बहुत दिनों से उसकी एक पेंटिंग बनाने में लगी हुई थी । मैंने वह पेंटिंग और एक छोटी सी कविता बना उसके सिरहाने रख दी .सुबह उठकर मै किचन में अमित की पसंद का ब्रेकफ़ास्ट बनाने में जुटी हुई थी .
“ ये पेंटिंग तुमने बनाई है ?” अमित ने पीछे से आकर मुझे बाँहों में भरते हुए पूछा .
“ हाँ .. कोई शक ? “
“ नहीं तुम्हारी क़ाबिलियत पर कोई शक नहीं , पर स्वीटी मुझे लगता है तुम्हारे हाथ ये चाकू नहीं बल्कि पैन और ब्रश पकड़ने के लिए बने है . उसने मेरे हाथ से चाकू लेते हुए कहा .
” मम्मा का फ़ोन आया था वो दो – तीन दिन के लिए मुझे अपने पास बुला रही हैं .” एक दिन उसके ऑफ़िस से आते ही मैंने कहा .
“ मेरी जान के चले जाने से मेरी तो जान ही निकल जाएगी .
” ज़्यादा रोमांटिक होने की ज़रूरत नहीं है . टीवी , लैपटॉप और वेबसिरीज़ .. इतनी सौतन है तो मेरी तुम्हारा दिल लगाने के लिए .” मैंने बनावटी ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा .
” ओके! पर प्रॉमिस मी , अपने बर्थ्डे के दिन ज़रूर आ जाओगी . .” उसकी बर्थडे के अगले हफ़्ते ही मेरी बर्थडे थी . शादी के बाद अमित से बिछुड़ने का ये पहला मौक़ा था . किसी ने सही कहा है इंसान की क़ीमत उससे दूर रहकर ही होती है . तीन दिन मम्मा के पास बिता मैं मेरे बर्थडे वाली शाम को वापिस आ गई . मेरे घर पहुँचने से पहले ही अमित मुझे रिसीव करने के लिए बड़ा सा लाल गुलाब का गुलदस्ता लिए लॉन में खड़ा था . मुझे देखते ही मुझे बाँहों में भर लिया और फिर गोदी में उठा मुझे गेस्ट रूम तक लेकर गए . वहाँ का नज़ारा देखकर मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था .. वहाँ होम थीएटर की जगह स्टडी टेबल ने और अमित के मिनी बार की जगह बुक शेल्व्स ने ले ली थी . मैं इन सब बदलावों को छूकर देखने लगी कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही .

कामिनी आंटी : भाग 1

विभा को खिड़की पर उदास खड़ा देख मां से रहा नहीं गया. बोलीं, ‘‘क्या बात है बेटा, जब से घूम कर लौटी है परेशान सी दिखाई दे रही है? मयंक से झगड़ा हुआ है या कोई और बात है? कुछ तो बता?’’ ‘‘कुछ नहीं मां… बस ऐसे ही,’’ संक्षिप्त उत्तर दे विभा वाशरूम की ओर बढ़ गई.

‘‘7 दिन हो गए हैं तुझे यहां आए. क्या ससुराल वापस नहीं जाना? मालाजी फोन पर फोन किए जा रही हैं… क्या जवाब दूं उन्हें.’’ ‘‘तो क्या अब मैं चैन से इस घर में कुछ दिन भी नहीं रह सकती? अगर इतना ही बोझ लगती हूं तो बता दो, चली जाऊंगी यहां से,’’ कहते हुए विभा ने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘अरे मेरी बात तो सुन,’’ बाहर खड़ी मां की आंखें आंसुओं से भीग गईं. अभी कुछ दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से अपनी इकलौती लाडली बेटी विभा की शादी की थी. सब कुछ बहुत अच्छा था. सौफ्टवेयर इंजीनियर लड़का पहली बार में ही विभा और उस की पूरी फैमिली को पसंद आ गया था. मयंक की अच्छी जौब और छोटी फैमिली और वह भी उसी शहर में. यही देख कर उन्होंने आसानी से इस रिश्ते के लिए हां कर दी थी कि शादी के बाद बेटी को देखने उन की निगाहें नहीं तरसेंगी. लेकिन हाल ही में हनीमून मना कर लौटी बेटी के अजीबोगरीब व्यवहार ने उन की जान सांसत में डाल दी थी.

पत्नी के चेहरे पर पड़ी चिंता की लकीरों ने महेश चंद को भी उलझन में डाल दिया. कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि ‘‘हैलो आंटी, हैलो अंकल,’’ कहते हुए विभा की खास दोस्त दिव्या ने बैठक में प्रवेश किया. ‘‘अरे तुम कब आई बेटा?’’ पैर छूने के लिए झुकी दिव्या के सिर पर आशीर्वादस्वरूप हाथ फेरते हुए दिव्या की मां ने पूछा.

‘‘रात 8 बजे ही घर पहुंची थी आंटी. 4 दिन की छुट्टी मिली है. इसीलिए आज ही मिलने आ गई.’’

‘‘तुम्हारी जौब कैसी चल रही है?’’ महेश चंद के पूछने पर दिव्या ने हंसते हुए उन्हें अंगूठा दिखाया और आंटी की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘विभा कैसी है? बहुत दिनों से उस से बात नहीं हुई. मैं ने फोन फौर्मैट करवाया है, इसलिए कौल न कर सकी और उस का भी कोई फोन नहीं आया.’’ ‘‘तू पहले इधर आ, कुछ बात करनी है,’’ विभा की मां उसे सीधे किचन में ले गईं.

पूरी बात समझने के बाद दिव्या ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह तुरंत विभा की परेशानी को समझ उन से साझा करेगी.

बैडरूम के दरवाजे पर दिव्या को देख विभा की खुशी का ठिकाना न रहा. दोनों 4 महीने बाद मिल रही थीं. अपनी किसी पारिवारिक उलझन के कारण दिव्या उस की शादी में भी सम्मिलित न हो सकी थी.

‘‘कैसी है मेरी जान, हमारे जीजू बहुत परेशान तो नहीं करते हैं?’’ बड़ी अदा से आंख मारते हुए दिव्या ने विभा को छेड़ा. ‘‘तू कैसी है? कब आई?’’ एक फीकी हंसी हंसते हुए विभा ने दिव्या से पूछा.

‘‘क्या हुआ है विभा, इज समथिंग रौंग देयर? देख मुझ से तू कुछ न छिपा. तेरी हंसी के पीछे एक गहरी अव्यक्त उदासी दिखाई दे रही है. मुझे बता, आखिर बात क्या है?’’ दिव्या उस की आंखों में देखते हुए बोली. अचानक विभा की पलकों के कोर गीले हो चले. फिर उस ने जो बताया वह वाकई चौंकाने वाला था.

विभा के अनुसार सुहागरात से ही फिजिकल रिलेशन के दौरान मयंक में वह एक झिझक सी महसूस कर रही थी, जो कतई स्वाभाविक नहीं लग रही थी. उन्होंने बहुत कोशिश की, रिलेशन से पहले फोरप्ले आदि भी किया, बावजूद इस के उन के बीच अभी तक सामान्य फिजिकल रिलेशन नहीं बन पाया और न ही वे चरमोत्कर्ष का आनंद ही उठा पाए. इस के चलते उन के रिश्ते में एक चिड़चिड़ापन व तनाव आ गया है. यों मयंक उस का बहुत ध्यान रखता और प्यार भी करता है. उस की समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे. मांपापा से यह सब कहने में शर्म आती है, वैसे भी वे यह सब जान कर परेशान ही होंगे.

विभा की पूरी बात सुन दिव्या ने सब से पहले उसे ससुराल लौट जाने के लिए कहा और धैर्य रखने की सलाह दी. अपना व्यवहार भी संतुलित रखने को कहा ताकि उस के मम्मीपापा को तसल्ली हो सके कि सब कुछ ठीक है. दिव्या की सलाह के अनुसार विभा ससुराल आ गई. इस बीच उस ने मयंक के साथ अपने रिश्ते को पूरी तरह से सामान्य बनाने की कोशिश भी की और भरोसा भी जताया कि मयंक की किसी भी परेशानी में वह उस के साथ खड़ी है. उस के इस सकारात्मक रवैए का तुरंत ही असर दिखने लगा. मयंक की झिझक धीरेधीरे खुलने लगी. लेकिन फिजिकल रिलेशन की समस्या अभी तक ज्यों की त्यों थी.

कुछ दिनों की समझाइश के बाद आखिरकार विभा ने मयंक को काउंसलर के पास चलने को राजी कर लिया. दिव्या के बताए पते पर दोनों क्लिनिक पहुंचे, जहां यौनरोग विशेषज्ञ डा. नमन खुराना ने उन से सैक्स के मद्देनजर कुछ सवाल किए. उन की परेशानी समझ डाक्टर ने विभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कह कर मयंक से अकेले में कुछ बातें कीं. उन्हें 3 सिटिंग्स के लिए आने का सुझाव दे कर डा. नमन ने मयंक के लिए कुछ दवाएं भी लिखीं.

कुछ दिनों के अंतराल पर मयंक के साथ 3 सिटिंग्स पूरी होने के बाद डा. नमन ने विभा को फोन कर अपने क्लिनिक बुलाया और कहा, ‘‘विभाजी, आप के पति शारीरिक तौर पर बेहद फिट हैं. दरअसल वे इरैक्शन की समस्या से जूझ रहे हैं, जो एक मानसिक तनाव या कमजोरी के अलावा कुछ नहीं है. इसे पुरुषों के परफौर्मैंस प्रैशर से भी जोड़ कर देखा जाता है.

‘‘इस समय उन्हें आप के मानसिक संबल की बहुत आवश्यकता है. आप को थोड़ा मजबूत हो कर यह जानने की जरूरत है कि किशोरावस्था में आप के पति यौन शोषण का शिकार हुए हैं और कई बार हुए हैं. अपने से काफी बड़ी महिला के साथ रिलेशन बना कर उसे संतुष्ट करने में उन्हें शारीरिक तौर पर तो परेशानी झेलनी ही पड़ी, साथ ही उन्हें मानसिक स्तर पर भी बहुत जलील होना पड़ा है, जिस का कारण कहीं न कहीं वे स्वयं को भी मानते हैं. इसीलिए स्वेच्छा से आप के साथ संबंध बनाते वक्त भी वे उसी अपराधबोध का शिकार हो रहे हैं. चूंकि फिजिकल रिलेशन की सफलता आप की मानसिक स्थिति तय करती है, लिहाजा इस अपराधग्रंथि के चलते संबंध बनाते वक्त वे आप के प्रति पूरी ईमानदारी नहीं दिखा पाते, नतीजतन आप दोनों उस सुख से वंचित रह जाते हैं. अत: आप को अभी बेहद सजग हो कर उन्हें प्रेम से संभालने की जरूरत है.’’ विभा को काटो तो खून नहीं. अपने पति के बारे में हुए इस खुलासे से वह सन्न रह गई.

क्या ऐसा भी होता है. ऐसा कैसे हो सकता है? एक लड़के का यौन शोषण आदि

औफिस जाते समय रास्ते में बरतें सावधानी

पिछले दो महीने से सभी लोग घरों में बंद थे, पर अब लॉकडाउन में जैसेजैसे रियायत मिल रही है, लोग अपने कार्यस्थल पर जाने के लिए घरों से निकलने लगे हैं. ऐसे में इस बात की जानकारी होना जरूरी है कि अपने ऑफिस तक पहुंचने के लिए आप को क्या हिदायत बरतनी चाहिए.

विश्व स्वास्थ्य संगठन बता चुका है कि जब हम ज्यादा तेज सांस लेने वाले काम करते हैं तो कोरोना वायरस के शरीर में प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है.

तेज सांस लेने से होती है मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी

दो मिनट तेज सांस लेने से मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मात्रा 40 प्रतिशत तक कम हो जाती है. वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि तेज सांस लेने से शारीरिक कोशिकाओं में ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड का संतुलन बिगड़ता है. ऑक्सीजन की मात्रा घटते ही कोशिकाएं कम ऊर्जा का निर्माण करती हैं, जिस से थकावट होने लगती है और ध्यान भटकता है.

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गहरी सांस, तनाव घटाती है

गहरे और तेजतेज श्वास लेने को अकसर लोग एक ही बात मानते हैं, जबकि गहरी सांस लेना एक सधी हुई शारीरिक क्रिया है. इस से शरीर के इम्यून फंक्शन में सुधार होता है, ब्लडप्रेशर का स्तर घटता है, जिस से तनाव पैदा करने वाले हार्मोन भी घटते हैं और अच्छी नींद आती है.

कोरोना वायरस का बढ़ता खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि ज्यादा तेज श्वास लेने से शरीर में कोरोना वायरस के प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है. इस का कारण यह है कि तेजतेज सांस लेने के कारण किसी संक्रमित व्यक्ति के मुंह से निकले या किसी वस्तु पर मौजूद संक्रमित ड्रॉपलेट शरीर में तेजी से प्रवेश करते हैं.

सामाजिक दूरी बना कर चलें

हमेशा मास्क लगा कर ही घर से बाहर निकलें और पैदल चलते समय दूसरों से छह कदम यानी दो फिट की दूरी बना कर चलें.

* शारीरिक दूरी बना कर चलने से स्वाभाविक रूप से आप सामान्य गति से चलेंगे और तेज सांस नहीं लेनी पड़ेगी.

* दफ्तर जाने के लिए घर से 10-15 मिनट पहले निकलें. ऐसा करने से हड़बड़ी नहीं होगी.

* दफ्तर जाते समय कानों में ईयरफोन का इस्तेमाल न करें, ऐसा करने से आप स्वच्छता के नियमों के प्रति लापरवाह हो जाएंगे.

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* अगर आप के इलाके में बस या कैब चलने लगी हैं तो परिवहन संबंधी सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए ही चलें.

* बाइक या कार से दफ्तर जा रहे हैं तो मास्क लगा कर ही जाएं, चेकिंग प्वाइंट पर जांच में पुलिस का सहयोग करें.

* दफ्तर में थर्मल जांच कराएं, आईकार्ड पहनें ताकि पहचान की समस्या न आए.

* ऑफिस में लिफ्ट के इस्तेमाल से बचें, अगर लिफ्ट में पहले ही कोई मौजूद है तो उस में प्रवेश न करें. उंगली के बजाय कोहनी से बटन दबाएं.

* दफ्तर में काम के दौरान भी मास्क का इस्तेमाल करें, अपने कुलीग से बात करते समय चेहरे को बिल्कुल सामने रखने से बचें.

कामिनी आंटी : भाग 3

अपने सासससुर को भी उस ने मयंक की इस आपबीती के बारे में बताया, जिसे सुन कर वे भी सिहर उठे. अपने बेटे के साथ महीनों हुए इस शोषण के खिलाफ उन्होंने भी आवाज उठाने में एक पल की देर न लगाई. एक दिन फेसबुक पर कुछ देखते समय विभा के मन में अचानक एक विचार कौंधा. उस ने कामिनी गुप्ता के नाम से एफबी पर सर्च किया. भोपाल की जितनी भी कामिनी मिलीं उन में उस कामिनी को ढूंढ़ना असंभव नहीं पर मुश्किल जरूर था, पर अपने पति को न्याय दिलाने के लिए विभा कुछ भी करने को तैयार थी.

आखिरकार उस की सास ने जिस एक कामिनी की फोटो पर उंगली रखी, विभा उसे देखती ही रह गई. साफ दमकता रंग, आकर्षक व्यक्तित्व की धनी कामिनी आंटी आज 10 साल बाद भी अपनी वास्तविक उम्र से कम ही नजर आ रही थीं. यकीनन उन्हें देख कर इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वे एक संगीन जुर्म में लिप्त रह चुकी हैं.

तुरंत विभा ने उन्हें फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. 2-3 दिन बाद कामिनी आंटी ने विभा की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार ली. धीरेधीरे उस ने कामिनी आंटी की तारीफों के पुल बांधते हुए उन से मेलजोल बढ़ाया और उन का फोन नंबर ले लिया. अब उस का अगला कदम पुलिस को इस मामले की जानकारी देना था. लेकिन चूंकि सालों पुराने हुए इस अपराध को साबित करने के लिए उन के पास कोई ठोस सुबूत नहीं था. अत: पुलिस ने उन की सहायता करने में अक्षमता जताई.

विभा जानती थी कि अगर सुबूत चाहिए तो उसे कामिनी आंटी के पास जाना ही होगा. उस ने मयंक को समझाया और हौसला दिया कि वह एक बार फिर से कामिनी आंटी का सामना करे. योजना के तहत विभा ने कामिनी आंटी से फोन पर बात करते हुए उन्हें बताया कि वह पर्सनल काम से अपने पति के साथ भोपाल आ रही है. कामिनी आंटी ने उसे अपने घर आने का निमंत्रण दिया.

नियत समय पर विभा ने कामिनी आंटी के घर की बैल बजाई. कुछ पलों के पश्चात उन्हें दरवाजे पर देख वितृष्णा से उस का मुंह कसैला हो गया, पर अपनी भावनाओं पर काबू रख उस ने मुसकुराते हुए हाल के अंदर प्रवेश किया. सहज भाव से कामिनी आंटी ने उस का स्वागत किया. कुछ औपचारिक बातों के मध्य ही मयंक ने दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजे पर एक आकर्षक पुरुष को देख कामिनी आंटी कुछ अचरज से भर उठीं. उन्होंने मयंक पर प्रश्नवाचक निगाह डालते हुए उस का परिचय जानना चाहा. इधर विभा मयंक से अनजान बन वहीं खड़ी रही. मयंक अपना परिचय देता, उस से पहले ही कामिनी आंटी ने उसे लगभग पहचानते हुए पूछा, ‘‘तुम?’’ ‘‘दाद देनी पड़ेगी आप की नजर की, कुछ ही पलों में मुझे पहचान लिया.’’

कामिनी आंटी कुछ और कहतीं उस से पहले ही विभा ने उन से चलने की इजाजत मांग ली. ‘‘तुम यहां किस मकसद से आए हो?

क्या चाहते हो?’’ विभा के जाते ही वे मयंक पर बरस पड़ीं. ‘‘अरे वाह, पहले तो आप मुझे बुलाते न थकती थीं और आज इतना बेगाना व्यवहार.’’ मयंक ने अपने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘अच्छा, तो तुम मुझे धमकाने आए हो. भूल गए सालों पहले मैं ने तुम्हारी क्या हालत की थी?’’ कामिनी आंटी अपनी असलियत पर आ चुकी थीं. ‘‘अच्छी तरह याद है. इसीलिए तो आप के उन गुनाहों की सजा दिलाने चला आया,’’ मयंक ने हंस कर कहा.

‘‘तुम्हें मेरा पता किस ने दिया और क्या सुबूत है तुम्हारे पास कि मैं ने तुम्हारे साथ कुछ गलत किया है?’’ कामिनी आंटी बौखलाहट में बोले जा रही थीं, ‘‘तुम मुझे अच्छी तरह से जानते नहीं हो, इसलिए यहां आने की भूल कर दी. तुम्हारे जैसे जाने कितने मयंकों को मैं ने अपनी वासना के जाल में फंसाया और बरबाद कर दिया.

तुम आज भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. अभी मेरे पास वह वीडियो मौजूद है जिसे मैं ने तुम्हें फंसाने के लिए बनाया था. तुम कल भी मेरा दिल बहलाने का खिलौना थे और आज भी वही हो. अपनी सलामती चाहते हो तो निकल जाओ यहां से,’’ कामिनी आंटी ने चिल्लाते हुए कहा.

‘‘जरूर निकल जाएंगे, लेकिन आप को सलाखों के पीछे पहुंचा कर, कामिनी आंटी,’’ कहती हुई विभा अंदर आ कर मयंक के पास उस का हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई. उस के पीछे महिला पुलिस भी थी. किसी फिल्मी ड्रामे की तरह अचानक हुए इस घटनाक्रम से कामिनी आंटी बौखला गईं बोलीं, ‘‘ये क्या हो रहा है? कौन हो तुम सब? मैं किसी को नहीं जानती… निकल जाओ तुम सब यहां से.’’

‘‘इतनी आसानी से मैं आप को कुछ भी भूलने नहीं दूंगी. मैं हूं विभा मयंक की पत्नी. आप की एक नापाक हरकत ने मेरे बेकुसूर पति की जिंदगी तबाह कर दी. अब बारी आप की है. इंस्पैक्टर यही है वह कामिनी जिस ने मेरे पति का शारीरिक शोषण किया था, जिस के सारे सुबूत इस कैमरे में मौजूद हैं,’’ सैंटर टेबल के फूलदान से विभा ने एक हिडेन कैमरा निकालते हुए पुलिस को सौंप दिया, जिसे उस ने कुछ देर पहले ही कामिनी आंटी की नजर बचा कर रख दिया था. अपनी घिनौनी करतूत के सुबूत को सामने देख अचानक ही कामिनी आंटी ने अपना रुख बदला और मयंक के सामने गिड़गिड़ाने लगीं, ‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो, मैं आइंदा किसी के साथ ऐसा नहीं करूंगी. तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, प्लीज मुझे बचा लो.’’

‘‘कुछ सालों पहले मैं ने भी यही शब्द आप के सामने कहे थे और हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाया था, लेकिन आप ने जरा भी दया नहीं दिखाई थी,’’ कामिनी आंटी की ओर घृणा से देखते हुए मयंक ने मुंह फेर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पता चला कि कामिनी आंटी के पति उन्हें शारीरिक सुख देने के काबिल नहीं थे, जिस से न ही वे कभी मां बन सकीं और न ही उन्हें शारीरिक सुख मिला. लेकिन इस सुख को पाने के लिए उन्होंने जो रास्ता अपनाया वह नितांत गलत था.

इधर मयंक का खोया सम्मान उसे वापस मिल चुका था. ‘‘थैंक्यू सो मच विभा,

तुम ने मुझे एक शापित जिंदगी से मुक्ति दिला कर मेरा खोया आत्मविश्वास वापस दिलाया है,’’ कहतेकहते मयंक का गला भर्रा गया. ‘‘अच्छा तो इस के बदले मुझे क्या मिलेगा?’’ शरारत से हंसते हुए विभा ने उसे छेड़ा.

‘‘ठीक है तो आज रात को अपना गिफ्ट पाने के लिए तैयार हो जाओ,’’ मयंक भी मस्ती के मूड में आ चुका था. शादी के बाद पहली बार मयंक के चेहरे पर वास्तविक खुशी देख कर विभा ने चैन की सांस ली और शरमा कर अपने प्रिय के गले लग गई.

गमले में लगे टमाटर-मिनिमाटो

‘कोविड 19’ कोरोना वायरस के दौर में घरो में रहना और खाली समय का उपयोग करना बेहद जरूरी हो गया है। ऐसे में गमलों में सब्जियों का उगाना एक काम बन गया है. इससे 2 लाभ होते है कि एक तो बाहर से सब्जी नही लानी होती दूसरे अपनी उगाई सब्जी खाने का सुख अलग रहता है. गमलों में उगाई जाने वाली सब्जियों में एक नाम टमाटर का है. गमलों में उगाई जाने वाले टमाटर को मिनीमाटो कहते है. यह हाइब्रिड होता है.

टमाटर के बिना किसी तरह की सब्जी बनाने के बारे में सोंचा ही नहीं जा सकता.  ताजे और पके हुये लाल रंग के  टमाटर देखने में भी बहुत अच्छे लगते है. अगर टमाटर के पौधों को घर में खाली बची जमीन और गमले में लगाया जाय तो ताजे और पके हुये टमाटर खाने के लिये मिल सकते है.ख़ेतों में पैदा होने वाले टमाटर को घर में लगाने से सही ढंग के टमाटर नहीं मिलते है.  इन पौधो को जमीन से वह खुराक नहीं मिलती है जो उनको जमीन से मिलती है  इसलिये गमले में लगने वाले टमाटर के बीज अलग किस्म के होते है. यह कम समय में पैदा हो जाते है़.  इनका आकार खेत में पैदा होने वाले टमाटर से थोडा कम होता है.  देखने और खाने में यह छोटा टमाटर खेत वाले टमाटर के बराबर ही होता है. यह छोटा होता है इसी लिये इसको मिनीमाटो के नाम से जाना जाता है.

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मिनीमाटों की सबसे खास बात यह होती है कि इसको थोडी सी जगह में आसानी से लगाया जा सकता है.  यह पौधा थोडा छोटा होता है.  इसमें छोटे छोटे टमाटर खूब सारे लगते है.  यह खाने में बहुत ही स्वादिष्टï होते है.  मिनीमाटो को घर के गमले और किचन गार्डन में लगाया जा सकता है. सबसे अच्छी बात की इसको अपनी आंखों के सामने बढता हुआ देखा जा सकता है.  जिससे नेचर के बदलते रूप को महसूस किया जा सकता है.  नेहा ने अपने किचन गार्डन में मिनीमाटो को लगा रखा है वह कहती है  ‘मिनीमाटो से सबसे बडा लाभ यह होता है कि इसको ताजा ताज तोडकर सब्जी में डाला जा सकता है.  मै तो कभी रात में पति के साथ बैठकर मिनीमाटों के पलपल बदलते आकार को देखती रहती हूॅ.  ड्राइगरूम के गमले और किचन गार्डन में इस तरह नेचर को देखने का अपना अलग ही मजा मिलता है़’

मिनीमाटों के रूप में मिलने वाले टमाटर में विटामिन, मिनिरल, फाइबर, एंटीआक्सीडेंट नेचुरल रूप में मौजूद होते है.  मिनीमाटो की ऊचाई 35 सेमी के करीब होती है.  90 दिनों में यह फसल देने लगता है.  इसके बीज सब्जी के बीज वाली दुकानों पर आसानी से मिल जाते है.  इसको कभी भी बोंया जा सकता है.  बरसात के पहले इसकी खेती करना ज्यादा सही रहता है. यह घर में सजावट के रूप में भी काम देता है और इससे मिलने वाले टमाटर को सब्जी में भी डाला जा सकता है.  मिनीमाटों को बढने के लिये थोडे से पानी और सूरज की रोशनी की जरूरत होती है.  मिनीमाटों की सबसे खासबात यह होती है कि इससे पूरे साल टमाटर मिल सकते है. अगर इसको किचन गार्डन में लगाना चाहते है तो मौसम को कंट्रोल करने वाले ग्रीन हाउस में इसको रखा जा सकता है.

अगर घर में थोडी सी जगह है तो मिनीमाटो को लगाकर इससे बिक्री भी की जा सकती है. मिनीमाटो केजरीये डायनिंग टेबल पर हर समय टमाटर खाने के लिये मिल सकता है.  सब्जी की खेती करने वाले मलिहाबाद के किसान दीपक कुमार का कहना है कि छोटे टमाटर की खेती करने में बहुत सारे लाभ होते है़ इसका पौधा छोटा होता है इस कारण इसमें खाद और सिचाई कम करनी पडती है़ हाईब्रीड होने के नाते यह कम समय में ज्यादा पैदावार देता है.  इसका रंग और आकार सामान्य टमाटर से थोडा छोटा जरूर होता है पर यह देखने और खाने में बहुत अच्छा लगता है. जिस समय टमाटर की फसल नहीं होती उस समय यह मंहगा बिकता है. इससे यह लाभदायक फसल बन गया है.

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गृहणी विभा का मानना है कि मिनीमाटो किचन गार्डन की शान बन गया है. बेमौसम में यह टमाटर की कमी को पूरा कर देता है. घर में लगने के कारण इसकी जरूरत होने पर आपको बाजार में भागने की परेशानी नहीं उठानी पडती है.  बच्चों को इसको दिखाया जा सकता है जिससे बच्चे यह जान लेते है कि किस तरह सब्जी पेड पौधों में लगती है.  आमतौर पर शहर में रहने वाले बच्चे सब्जी को केवल सब्जी की दुकानो और मौल्स के बाक्स में ही देख पाते है जिससे उनको नेचर का अंदाजा नहीं लगता है. मिनीमाटो बच्चो को बहुत पसंद आता है. इसका गमला ड्राइग रूम में रखा हो तो वहां की शान भी बढ जाती है. इस तरह मिनीमाटो कई तरह से लाभदायक होता है.

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बसों को नही मजदूरों को “बे- बस” किया

सत्ता का अंहकार और सांमतशाही व्यवस्था ‘त्रेतायुग’ में भी थी और ‘कलयुग’ में भी है. ‘त्रेतायुग’ की तारीफ करने वाली भाजपा मजदूरों को उसी युग में वापस ले जाना चाहती है जिससे वह शहरी जीवन से निकल कर वापस गांव चले जहां पर जमींदारों के खेतों पर काम करे और उनके शोषण का शिकार हो सके. वर्णव्यवस्था में यकीन करने वाली भाजपा वापस उसी युग में मजदूरो का ले जाना चाहती है जहा पर वह अपनी मेहनत के नहीं बल्कि भाग्य को ही प्रमुख मानते थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हालत को मजदूर के त्याग और तपस्या से जोडा था.

जेल का डर

मजदूरों की मदद के लिये हाथ बढाने वाली कांग्रेस सरकार के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को एक ही दिन में दो बार गिरफ्रतार किया गया. अंत में उनको 14 दिन के लिये जेल भेज दिया गया.

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कांग्रेस के प्रवक्ता अशोक सिंह कहते है  “उत्तर प्रदेश की सरकार रावण की भूमिका में है. कांग्रेस ने मजदूरों को घर पहंचाने के लिये बसों की व्यवस्था की तो योगी सरकार ने बस चलाने परमिशन देने के नाम पर न केवल बसो चलने से रोका बल्कि कांग्रेस के नेताओं पर मुकदमें कायम करने शुरू कर दिये.

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को 14 दिन के लिये जेल भेज दिया. कॉग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह पर मुकदमा कायम हुआ. कई अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं पर मुकदमंे कायम करा दिये गये. 24 घंटे तक उत्तर प्रदेष सरकार और कांग्रेस के बीच रस्साकशी के बाद बसे वापस चली गई. अशोक सिंह कहते है ‘यह उत्तर प्रदेश सरकार का हठधर्म और अहंकार था. जिसकी वजह से मजदूरों की मदद नहीं हो पाई’.

हठधर्मी सरकार :

कांग्रेस नेता कहते है ‘यही हठधर्म अगर राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने दिखाया होता तो क्या उत्तर प्रदेश सरकार कोटा से छात्रों को बस से ला सकती थी ? राजस्थान ने तो उत्तर प्रदेश सरकार से द्वारा भेजी गई किसी बस फिटनेस प्रमाणपत्र नहीं मांगा था. राजस्थान में उत्तर प्रदेश सरकार को पूरा सहयोग मिला. जब उत्तर प्रदेश सरकार की बात आई तो उसने परमिशन का दांव पेंच चल दिया. इससे जनता में उत्तर प्रदेश सरकार की पोल खुल गई. कांग्रेस के नेताओं को डराने के लिये उनकर चैतरफा हमला कर दिया. कांग्रेस उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू सहित दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अनिल चैधरी, उत्तर प्रदेश महासचिव वीरेन्द्र गुडडू, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी पंकज मलिक सहित करीब 50 से 60 अन्य लोगों को नामजद किया गया.

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उत्तर प्रदेश सरकार कह रही है कि उसके पास बसों का पूरा इंतजाम है कांग्रेस केवल राजनीति करने के लिये बसों का पाखंड दिखा रही है. सवाल उठाता है कि अगर उत्तर प्रदेश की सरकार मजदूरों को लेकर संवेदनशील थी तो उसने लाॅक डाउन के 2 माह में इंतजाम क्यो नहीं किया जिससे मजदूर अपने घर पहंच जाते. उनको सडको पर पैदल चलने और सडक दुर्घटनाओं में फंस कर अपनी जान नहीं देनी होती. हो सकता है कि कांग्रेस ने राजनीति करने के लिये बसो का प्रयोग किया हो पर जिस तरह से भाजपा ने बसों को रोकने और कांग्रेसी नेताओं को जेल भेजने का काम किया है उससे सरकार की भदद पिट रही है.

बंटा हुआ है विपक्ष: 

मजदूरों के मुददे पर हो रही राजनीति में विपक्ष भी बंटा हुआ है. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव कहते है कि भाजपा सरकार को दूसरे से फिटनेस मांगने के पहले अपनी सरकार का फिटनेस प्रमाणपत्र देना चाहिये. सरकार के पास बसो की कमी नहीं है. तमाम स्कूलों में बसे खडी है. उनका उपयोग क्यो नहीं किया जाता है ? प्रदेश सरकार श्रमिकों को घर पहुचाने के लिये इनका उपयोग क्यो नहीं कर रही है. सरकार का हठ मजदूरों पर भारी पड रहा है. मदद का हाथ बढाने वाले को झिटक दिया जाता है. मायावती ने कांग्रेस और भाजपा दोनो को जिम्मेदार माना है पर भाजपा की आलोचना से वह बच रही है. मायावती का मजदूरों के पक्ष में खडा ना होना कई गंभीर सवाल खडे कर रहा है.

पपीते की खेती और खास प्रजातियां

लेखक-आलोक कुमार सिंह

आरएस सेंगर पपीता भारत का एक पाचक, पौष्टिक और पसंदीदा फल है. जिस की खेती देश के अलगअलग हिस्सों में की जाती है. इस की व्यावसायिक बागबानी भारत, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका व अमेरिका महाद्वीप के देशों में की जाती है. इस के फलों का दूध विभिन्न प्रकार के रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है. पपीते में विटामिन ए की मात्रा सारे फलों में आम के बाद दूसरे स्थान पर है. पपीते के पुष्पों को लिंग के आधार पर मुख्यतया नर, मादा व उभयलिंगी प्रकार में बांटा गया है. पपीते की उन्नत खेती करने के लिए अच्छे व स्वस्थ बीज का चुनाव बहुत जरूरी है.

भूमि व जलवायु पपीते की सफल बागबानी के लिए गहरी और उपजाऊ, सामान्य पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी अत्यधिक उपयुक्त मानी गई है. इस की बागबानी के लिए भूमि में जल निकास का होना बहुत जरूरी है. जल भराव इस फसल के लिए काफी नुकसानदायक है. पपीता एक उष्ण कटिबंधीय फल है पर इस की खेती बिहार की समशीतोष्ण जलवायु में कामयाबी से की जा रही है. वायुमंडल का तापमान 10 सैंटीग्रेड से कम होने पर पपीते की वृद्धि, फलों का लगना व फलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है. पपीते की अच्छी बढ़वार के लिए 22 सैंटीग्रेड से 26 सैंटीग्रेड तापमान उपयुक्त पाया गया है. औसत वार्षिक वर्षा 1200-1500 मिलीमीटर सही होती है. पपीते का पकाने समय शुष्क व गरम मौसम होने से फलों की मिठास बढ़ जाती है. उन्नतशील प्रजातियां वर्तमान में भारत में पपीते की कई किस्में विभिन्न प्रदेशों में उगाई जा रही हैं, जिन में प्रमुख रूप से 20 उन्नत किस्में हैं और कुछ स्थानीय व विदेशी किस्में हैं.

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स्थानीय किस्मों में रांची, बारवानी व मधु बिंदू प्रमुख हैं. विदेशी किस्मों में वाशिंगटन, सोलो, सनराइज सोलो व रैड लेडी प्रमुख हैं. पपीते की कुछ प्रमुख किस्मों की जानकारी इस प्रकार है : पूसा डेलिसियस यह एक गायनोडायोसियम प्रजाति है. इस में मादा और उभयलिंगी पौधे निकलते हैं व उभयलिंगी (ऐसे पौधे, जिन में नर और मादा दोनों के लक्षण होते हैं) पौधे भी फल देते हैं. यह 80 सैंटीमीटर की ऊंचाई से फल देता है. इस का फल अत्यंत स्वादिष्ठ और सुगंधित होता है. फल का आकार मध्यम से ले कर साधारण बड़ा होता है. इस का वजन 1-2 किलोग्राम तक होता है. पपीते के पकने पर फल के गूदे का रंग गहरा होता है व गूदा ठोस होता है. गूदे की मोटाई 4.0 सैंटीमीटर और कुल घुलनशील ठोस की मात्रा 10 से 13 ब्रिक्स होती है. फलों की पैदावार 45 किलोग्राम प्रति पेड़ होती है. पूसा मैजेस्टी इस प्रजाति में भी पूसा डेलिसियस की तरह मादा व उभयलिंगी पौधे निकलते हैं. यह 50 सैंटीमीटर की ऊंचाई से फल देता है और एक फल का वजन 1.0-2.5 किलोग्राम तक होता है. यह किस्म पैदावार में उत्तम है व फल में पपेन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. पपेन कच्चे पपीतों से निकाले गए दूध को सुखा कर बनाया जाता है. इस के फल ज्यादा टिकाऊ होते हैं व इस में विषाणु रोग का प्रकोप कम होता है. पकने पर गूदा ठोस व पीले रंग का होता है. एक पेड़ से तकरीबन 40 किलोग्राम फल मिलते हैं. इस के गूदे की मोटाई 3.5 सैंटीमीटर होती है.

यह प्रजाति सूत्रकृमि अवरोधी है. पूसा ड्वार्फ इस किस्म में नर व मादा पौधे निकलते हैं. पौधे बौने होते हैं और इस में फलन जमीन से 40 सैंटीमीटर की ऊंचाई से होता है. एक फल का औसत वजन 0.5 से 1.5 किलोग्राम होता है. इस की पैदावार 40-50 किलोग्राम प्रति पौधा है. फल के पकने पर गूदे का रंग पीला होता है. गूदे की मोटाई 3.5 सैंटीमीटर होती है. पौधा बौना होने के चलते इसे आंधी या तूफान से कम नुकसान होता है. पूजा जौइंट इस किस्म के पौधे बड़े होते हैं. इस में फलन जमीन से 80 सैंटीमीटर की ऊंचाई से होता है. इस के फल बड़े होते हैं और एक फल का वजन 1.5 से 3.5 किलोग्राम तक होता है. इस के गूदे का रंग पीला व मोटाई 5 सैंटीमीटर होती है. प्रति पेड़ औसत उपज 30-35 किलोग्राम है. यह किस्म पेठा और सब्जी बनाने के लिए काफी सही है. पूजा नन्हा यह पपीते की सब से बौनी प्रजाति है, जो गामा किरण द्वारा विकसित की गई है. यह 30 सैंटीमीटर की ऊंचाई से फलना शुरू करता है. इस में प्रति पेड़ 25 किलोग्राम फल मिलता है. इस के गूदे का रंग पीला व मोटाई 3 सैंटीमीटर होती है. यह प्रजाति सघन बागबानी व गृह वाटिका के लिए काफी सही पाई गई है.

कुर्ग हनी ड्यू यह किस्म भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु के केंद्रीय बागबानी प्रयोग केंद्र चेट्टाली द्वारा चयनित किस्म है. इस का चयन हनी ड्यू नामक प्रजाति से किया गया है. इस के पौधे मध्यम आकार के होते हैं. इस के फल लंबे, अंडाकार आकार व मोटे गूदेदार होते हैं. फल का वजन 1.5 से 2.0 किलोग्राम होता है. गूदे का रंग पीला होता है. इस में कुल घुलनशील ठोस 13.50 ब्रिक्स होती है. प्रति पौध औसत उपज 70 किलोग्राम तक होती है. सूर्या इस प्रजाति के फल मध्यम आकार के होते हैं, जिन का औसत वजन 600-800 ग्राम तक होता है और बीज की कैविटी कम होती है. फल का गूदा गहरा लाल रंग का होता है. फल की भंडारण क्षमता भी अच्छी है. प्रति पौध औसत उपज 55-65 किलोग्राम तक होती है. तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर की प्रजातियां इस प्रकार हैं : कोयंबटूर-1 : यह प्रजाति साल 1972 में रांची प्रजाति से चयनित की गई है. इस के पौधे छोटे होते हैं. फल मध्यम आकार के गोल होते हैं. इन का गूदा पीले रंग का होता है.

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प्रति पौध औसत उपज 40 किलोग्राम तक होती है. कोयंबटूर-2 : इस किस्म का चयन साल 1979 में स्थानीय किस्म से किया गया है. इस प्रजाति में पपेन प्रचुर मात्रा (4 से 6 ग्राम प्रति फल) में पाया जाता है. फल का औसत वज?न 1.5 से 2.0 किलोग्राम होता है. फल में 75 प्रतिशत गूदा होता है, जिस की मोटाई 3.8 सैंटीमीटर व रंग नारंगी होता है. फल का आकार बड़ा होता है. प्रति पौध औसत उपज 80-90 फल हर साल होती है. पपेन की औसत उपज 250 से 300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है. कोयंबटूर-3 : यह प्रजाति कोयंबटूर-2 व सनराइज सोलो के संकरण द्वारा साल 1983 में विकसित प्रजाति है. यह ताजे फल के रूप में खाने हेतु सर्वोत्तम किस्म है. इस के फल मध्यम आकार के होते हैं, जिन का औसत वजन 500 ग्राम से 800 ग्राम तक होता है. गूदे का रंग लाल होता है. प्रति पौध औसत उपज 90 से 120 फल होती है.

कोयंबटूर-4 : यह किस्म साल 1983 में कोयंबटूर-1 व वाशिंगटन के संकरण से विकसित की गई है. पौधे के तने व पत्ती के डंठल का रंग बैगनी होता है. फल मध्यम आकार का होता है, जिस का औसत वजन 1.2 से 1.5 किलोग्राम तक होता है. फल में गूदे का रंग पीला होता है. औसत उपज हर साल 80 से 90 फल प्रति पौधा होती है. कोयंबटूर-5 : इस प्रजाति का चयन साल 1985 में वाशिंगटन प्रजाति से किया गया, जो पपेन उत्पादन के लिए खास है. प्रति फल लगभग 14.45 ग्राम शुष्क पपेन पाया जाता है. पत्ती के डंठल का रंग गुलाबी होता है. फल का औसत वजन 1.5 से 2.0 किलोग्राम होता है. 2 साल के फसल चक्र में औसत उपज 75-80 फल प्रति पौध होती है. शुष्क पपेन की औसत उपज 1500-1600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है. इस में 72 फीसदी प्रोटीन पाया जाता है. कोयंबटूर-6 : इस प्रजाति का चयन साल 1986 में जौइंट प्रजाति से किया गया. यह प्रजाति पपेन उत्पादन व ताजा खाने के लिए उपयोगी पाई गई है. इस के पौधे छोटे होते हैं व फल की तुड़ाई पौध रोपण के 8वें महीने से शुरू हो जाती है. फल का औसत वजन 2 किलोग्राम तक होता है. फल के गूदे का रंग पीला होता है, जिस में कुल घुलनशील ठोस की मात्रा 13.60 ब्रिक्स होती है. प्रति पौध औसत उपज 80-100 फल है. प्रति फल शुष्क पपेन की मात्रा 7.5 से 8.0 ग्राम तक होती है. कोयंबटूर-7 : यह पूसा डेलिसियस, कोयंबटूर-3, सीपी-75 व कुर्ग हनी ड्यू के बहुसंकरण द्वारा साल 1997 में विकसित संकर किस्म है. यह एक गायनोडायोसियस प्रजाति है. इस में फल जमीन से 52.2 सैंटीमीटर की ऊंचाई से लगते हैं. इस के फल लंबे, अंडाकार होते हैं. इस किस्म में गूदे का रंग लाल होता है.

फल में कुल घुलनशील ठोस की मात्रा 16.7 ब्रिक्स होती है. यह प्रजाति 112.7 फल प्रति पौध उपज देती है, जो 340.9 टन प्रति हेक्टेयर है. रांची : यह प्रजाति रांची, झारखंड के आसपास छोटा नागपुर क्षेत्र में पाई जाती है. इस में नर, मादा व उभयलिंगी तीनों तरह के पेड़ मिलते हैं. इस के फल काफी बड़े होते है और उभयलिंगी फल का वजन 15 किलोग्राम तक पाया गया है. मादा पेड़ से एक फल का वजन 5 से 8 किलोग्राम तक पाया गया है, जो दूर से देखने पर कद्दू जैसे दिखाई देते हैं. लेकिन इस का बीज बाहर कहीं भी ले जा कर बोने से फल का वजन घट जाता है. प्रवर्धन : पपीते की खेती करने के लिए मुख्य रूप से बीज द्वारा पौध तैयार की जाती है. खेत में रोपने के बाद यह जल्दी उत्पादन देने लगते हैं, इसलिए इस में ऐसे बीज का चुनाव करना चाहिए, जो स्वस्थ व अच्छी पैदावार देने वाले हों. बीज किसी शोध संस्थान या प्रमाणित बीज भंडार से ही खरीदने चाहिए. नर्सरी प्रबंधन पपीते की खेती के लिए पौध तैयार करना ही खास काम है. खेत में पौधों को 1×8 1×8 मीटर की दूरी पर लगाना हो तो एक हेक्टेयर में रोपने के लिए 250 से 300 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बीज बोने के लिए 6×8 इंच आकार के आकार के पौलीथिन बैग प्रयोग में लाए जाते हैं. बीजों का उपचार कवकनाशी से करना चाहिए और बीजों को 1.0 सैंटीमीटर की गहराई पर पौलीथिन की थैलियों में बीचोंबीच बोना चाहिए.

बाद में स्वस्थ पौधे को छोड़ कर शेष पौधों को निकाल देना चाहिए. बीज बोने के बाद उन्हें समयसमय पर सिंचाई करते रहना चाहिए. पौध 20 से 25 सैंटीमीटर की हो जाने पर रोप देना चाहिए. बीजों को थैलियों में बोने से पहले 200 पीपीएम जिब्रेलिक से उपचारित करने के बाद बोने से जमाव की दर बढ़ जाती है व पौधों की ऊंचाई में वृद्धि होती है. पौध तैयार करने का समय साधरणतया पपीते का बीज नर्सरी में रोपने की निर्धारित तिथि से 2 महीने पहले बोना चाहिए. इस प्रकार पौधे मुख्य क्षेत्र में रोपाई के समय तकरीबन 15-20 सैंटीमीटर की ऊंचाई के हो जाते हैं. बिहार में जहां पानी जमा होने की समस्या है और बारिश के दिनों में विषाणु रोग अधिक तेजी से फैलते हैं, वहां अगस्त के अंत में या सितंबर के शुरू में नर्सरी में बीज बोना चाहिए. खाद और उर्वरक पपीते को बहुत अधिक खाद देने की जरूरत होती है. प्रत्येक फलने वाले पेड़ों को 200-250 ग्राम नाइट्रोजन, 200-250 ग्राम फास्फोरस व 250 से 500 ग्राम पोटाश देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है. साधारणतया उपरोक्त खाद तत्त्वों के लिए यूरिया 450 से 550 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 1200 से 1500 ग्राम व म्यूरेयेट औफ पोटाश 450-850 ग्राम ले कर उन्हें मिला लेना चाहिए और 4 भागों में बांट कर प्रत्येक महीने के शुरू में जुलाई से अक्तूबर माह तक पेड़ की छांव के नीचे पौधे से 30 सैंटीमीटर की गोलाई में दे कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. खाद देने के बाद हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए.

इस के अलावा सूक्ष्म तत्त्व बोरोन (1 ग्राम प्रति लिटर पानी में) और जिंक सल्फेट (5 ग्राम प्रति लिटर पानी में) का छिड़काव पौधा रोपने के चौथे व 8वें महीने में करना चाहिए. सिंचाई पपीते के सफल उत्पादन के लिए बगीचे में जल प्रबंधन बहुत ही आवश्यक है. जब तक पौधा फलन में नहीं आता, तब तक हलकी सिंचाई करनी चाहिए, जिस से पौधे जीवित रह सकें. अधिक पानी देने से पौधे काफी लंबे हो जाते हैं. विषाणु रोग का प्रकोप भी ज्यादा होता है. ऐसा देखा गया है कि पानी की कमी से फल झड़ने लगते हैं. पपीते में टपकन सिंचाई प्रणाली (ड्रिप) के तहत 8-10 लिटर पानी प्रतिदिन देने से पौधे की बढ़वार व उपज अच्छी मिलती है. मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए पौधे के तने के चारों तरफ सूखे खरपतवार या काली पौलीथिन की पलवार बिछानी चाहिए. फूल व फल लगना पौधे लगाने के लगभग 6 महीने बाद मार्चअप्रैल महीने से पौधों में फूल आने लगते हैं. पपीते में मुख्य रूप से 3 प्रकार के लिंग नर, मादा व उभयलिंगी पाए जाते हैं. नर व उभयलिंगी पौधे वातावरण के अनुसार लिंग परिवर्तन कर सकते हैं, पर मादा पौधे स्थायी होते हैं.

नर व मादा पौधों की पहचान फूल के आधार पर कर सकते हैं. ज्यों ही नर पौधे दिखाई पड़ें, तुरंत काट कर खेत से निकाल देने चाहिए. पर परागण के लिए खेत में 10 फीसदी नर पौधे अवश्य छोड़ देने चाहिए. उपज औसतन प्रति पेड़ 50 से 1000 किलोग्राम तक उपज हासिल होती है. फल का औसत भार 0.5 किलोग्राम से 3.0 किलोग्राम तक होता है. पपीते के एक अच्छे बाग से 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर फल प्रतिवर्ष प्राप्त होते हैं. प्रति हेक्टेयर उपज बाग में फल लगने वाले पौधों की संख्या व जाति पर भी निर्भर करती है.

 

Crime Story: आशिकी में फना

अब्दुल मलिक का प्रौपर्टी डीलिंग का काम था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में लौकडाउन था. अब्दुल मलिक का औफिस भी बंद था. 4 अप्रैल, 2020 को शाम के वक्त वह घर में ही था कि उस के मोबाइल पर किसी का फोन आया. अब्दुल मलिक ने स्क्रीन पर नजर डाली तो उस के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई, नंबर उस की प्रेमिका सूफिया का था.

घर वालों के सामने वह प्रेमिका से खुल कर बात नहीं कर सकता था, लिहाजा कमरे से बाहर निकल गया. अब्दुल मलिक लखनऊ के थाना सआदतगंज के नौबस्ता मंसूरनगर में रहता था. उस की प्रेमिका सूफिया का घर उस के घर से करीब 100 मीटर दूर था.

बाहर जा कर वह सूफिया से धीरेधीरे बात करने लगा. सूफिया ने उसे बताया कि उस के अब्बू और भाई ने उस की पिटाई की है और वह उस से कुछ बात करना चाहते हैं. उन्होंने तुम्हें अभी घर बुलाया है, थोड़ी देर के लिए घर आ जाओ.

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सूफिया की बात सुन कर अब्दुल मलिक परेशान हो गया. उस ने उसी समय फोन कर के अपने दोस्त अब्दुल वसी को बुलाया और मोटरसाइकिल पर दोस्त को ले कर सूफिया के घर पहुंच गया. सूफिया के घर उस के परिवार के लोगों के अलावा उस के ताऊ सुलेमान भी अपने दोनों बेटों रानू और तानू के साथ मौजूद थे.

अब्दुल मलिक और अब्दुल वसी जब वहां पहुंचे तो घर में शांति थी. वहां मौजूद सब लोग उन दोनों को इस तरह से देखने लगे जैसे उन्हें उन के ही आने का इंतजार हो. सूफिया भी अपने कमरे से बाहर निकल आई.

सूफिया के बाहर आते ही उस का भाई दानिश भड़क उठा. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘अभी तुझे इतना समझाया था, तेरी समझ में कुछ नहीं आया जो यार की आवाज सुनते ही बाहर आ गई. लगता है तू ऐसे नहीं मानेगी. अब देखता हूं कि तुझे बचाने के लिए कौन आता है.’’

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इतना कह कर वह सूफिया पर टूट पड़ा और कमरे में रखे डंडे से उस की पिटाई करने लगा. घर वालों ने कुछ देर पहले ही उस की काफी पिटाई की थी, जिस से उस का बदन दुख रहा था. फिर से पिटाई होने पर वह बुरी तरह कराहने लगी.

उस का दुख और कराहट अब्दुल मलिक से देखी नहीं गई. लिहाजा वह प्रेमिका को बचाने के लिए आगे आया. जैसे ही वह सूफिया को बचाने के लिए बढ़ा, तभी दानिश बहन को छोड़ अब्दुल मलिक पर टूट पड़ा.

सूफिया ने मलिक को बचाने का प्रयास किया तो उस के पिता उस्मान और ताऊ सुलेमान आ गए. उन दोनों ने सूफिया को धक्का दे कर अलग गिरा दिया. फिर वे दोनों भी मलिक पर टूट पड़े.

अपने दोस्त को बचाने के लिए वसी आगे आया तो सुलेमान के दोनों बेटे रानू और तानू ने अब्दुल वसी को दबोच लिया और उस की पिटाई करने लगे. वे सब अब्दुल मलिक और वसी पर अपनी भड़ास उतार रहे थे. सूफिया लहूलुहान हो चुकी थी. इतने पर भी वह किसी तरह अपने प्रेमी को बचाने की कोशिश करती रही. पर उस की कोशिश नाकामयाब रही.

इसी दौरान अब्दुल वसी किसी तरह उन के चंगुल से छूट कर वहां से निकला. वहां से भाग कर वह सीधे थाना सआदतगंज पहुंचा, क्योंकि नौबस्ता मंसूरनगर इसी थाने के अंतर्गत आता है.

लौकडाउन वैसे ही पुलिस का सिरदर्द बना हुआ. जिस समय अब्दुल वसी सआदतगंज थाने पहुंचा, उस समय एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) विकासचंद्र त्रिपाठी, एसीपी अनिल कुमार यादव के साथ सर्किल के पुलिसकर्मियों के साथ मीटिंग कर रहे थे.

अब्दुल वली ने यह जानकारी एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) विकासचंद्र त्रिपाठी को दी. वह खुद भी घायल था. एडिशनल डीसीपी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए थानाप्रभारी को तुरंत मौकाएवारदात पर रवाना कर दिया.

इस के बाद वसी ने फोन कर के यह सूचना अपने दोस्त अब्दुल मलिक के पिता अब्दुल करीम को भी दे दी. उस्मान और उस के घर के लोगों द्वारा अपने बेटे की पिटाई करने की खबर सुन कर करीम भौंचक रह गए. वह भी परिवार के लोगों के साथ गुस्से में उस्मान के घर की तरफ दौड़े.

उस के घर वाले जब उस्मान के घर पहुंचे तो पहले ही वहां पुलिस मौजूद थी. लेकिन वहां का माहौल बड़ा गमगीन था. घर में अब्दुल मलिक और उस की प्रेमिका सूफिया की लाशें पड़ी थीं. दोनों ही लाशें खून से लथपथ थीं. खून लगे डंडों के अलावा वहां खून सनी ईंटें भी पड़ी थीं. लग रहा था कि दोनों की हत्या डंडों से पीटपीट कर की गई थी.

जवान बेटे की लाश देख कर अब्दुल करीम का कलेजा गले में आ गया. वह बिलखबिलख कर रोने लगे. पुलिस ने उस्मान से उन दोनों हत्याओं के बारे में पूछताछ की तो उस ने बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बेटी सूफिया और अब्दुल मलिक की हत्या की है.

पुलिस ने उस्मान को उसी समय हिरासत में ले लिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस दोहरे हत्याकांड की जानकारी दे दी.

सूचना पा कर एडिशनल डीसीपी (पश्चिम) विकासचंद्र त्रिपाठी और एसीपी अनिल कुमार यादव कुछ ही देर में मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी मौकामुआयना करने के बाद आरोपी उस्मान से पूछताछ की. पुलिस ने मौके से सारे सबूत अपने कब्जे में ले लिए.

अब्दुल मलिक की हत्या की सूचना मिलते ही उस के घर में जैसे कोहराम मच गया. उस की पत्नी तो रोतरोते बारबार बेहोश हो रही थी. महिलाएं किसी तरह उसे संभाले हुई थीं.

इस दोहरे हत्याकांड की खबर सुन कर मोहल्ले के कई लोग उस्मान के घर के सामने जमा होने लगे, लेकिन लौकडाउन की वजह से उन्हें एक साथ एकत्र नहीं होने दिया गया. अधिकांश को पुलिस ने उन के घर भेज दिया. मृतकों के परिवार के जो नजदीकी लोग वहां बचे थे, उन्हें सोशल डिस्टैंस की बात कह कर एकदूसरे से एक मीटर दूर खड़े रहने के निर्देश दिए.

जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने अब्दुल मलिक और सूफिया के शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. उस्मान ने अपनी बेटी और उस के प्रेमी मलिक की हत्या खुद अकेले ही करने की बात कही थी, लेकिन यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी कि अकेला आदमी 2 जनों की हत्या, वह भी डंडे से पीट कर कैसे कर सकता है. इसलिए पुलिस ने उस्मान से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

उस्मान ने बताया कि दोनों की हत्या में उस के साथ उस का बेटा दानिश भी था. पूछताछ में यह भी पता लगा कि इस दोहरे हत्याकांड में उस्मान का बड़ा भाई सुलेमान, सुलेमान के दोनों बेटे रानू व तानू भी शामिल थे.

मुस्तैदी दिखाते हुए पुलिस ने दानिश को भी उसी समय हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने सुलेमान के घर दबिश दे कर उसे व उस के बेटे रानू को भी हिरासत में ले लिया जबकि दूसरा बेटा तानू फरार हो गया था.

चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई. उन सब से अब्दुल मलिक और सूफिया की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो उन्होंने जो कहानी बताई, वह प्यार की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक थाना है सआदतगंज. शहर में स्थित इस थाने के अंतर्गत आता है नौबस्ता मंसूरनगर. यहीं पर अब्दुल मलिक अपनी पत्नी और 4 बच्चों के साथ रहता था. वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था.

उस के घर से कोई 100 मीटर दूर उस्मान और सुलेमान रहते थे. अब्दुल मलिक के पिता अब्दुल करीम और सुलेमान की आपस में अच्छी दोस्ती थी. पारिवारिक संबंधों की वजह से उन का एकदूसरे के घर आनाजाना था.

अब्दुल मलिक भी उन के यहां आताजाता था. वहीं पर उस की मुलाकात उस्मान की 19 वर्षीय बेटी सूफिया से हुई. सूफिया बहुत खूबसूरत थी. हालांकि 32 वर्षीय अब्दुल मलिक शादीशुदा था, लेकिन इस के बावजूद उस का मन सूफिया पर डोल गया. उस ने उस की छवि अपने दिल में बसा ली. यह करीब एक साल पहले की बात है.

सूफिया भी जवानी के उफान पर थी. उस की हसरतें उड़ने के लिए फड़फड़ा रही थीं. चूंकि अब्दुल मलिक शादीशुदा होने की वजह से इस मामले में अनुभवी था, लिहाजा उस ने अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से उसे अपने प्यार के जाल में फंसा लिया. इस तरह दोनों के बीच प्यार का सफर शुरू हो गया. लेकिन इस सफर का अंत क्या होगा, इस बात पर दोनों में से किसी ने भी गंभीरता से नहीं सोचा.

अब्दुल मलिक और उस्मान के पारिवारिक संबंधों की आड़ में उन का प्यार अमरबेल की तरह बढ़ता गया. दोनों के ही घर वालों ने अब्दुल मलिक और सूफिया की बातों को कभी शक के नजरिए से नहीं देखा.

बाद में जब अब्दुल मलिक का उस्मान के घर आनेजाने का सिलसिला ज्यादा बढ़ गया और उस के आने पर सूफिया की खुशी उस के चेहरे पर झलकने लगी तो उन्हें दोनों के संबंधों पर शक होने लगा.

दोनों की पोल एक दिन तब खुली जब दानिश के एक दोस्त ने दोनों को लखनऊ के गौतमबुद्ध पार्क में झाड़ी की ओट में बैठ कर बातचीत करते देख लिया. उस दोस्त ने यह बात सूफिया के भाई दानिश को बता दी. दानिश के लिए यह बेइज्जती वाली बात थी. लिहाजा उस ने इस बारे में अपनी अम्मीअब्बू को बता दिया.

इस के बाद सूफिया के घर वालों को यह बात समझने देर नहीं लगी कि अब्दुल मलिक का उन के घर आने का असली मकसद क्या है. बहरहाल, उन्होंने ज्यादा होहल्ला करने के बजाए सूफिया को ही समझाया. इस के अलावा उन्होंने अब्दुल मलिक के पिता अब्दुल करीम से भी इस बारे में शिकायत की.

चूंकि अब्दुल करीम सूफिया के ताऊ सुलेमान के दोस्त थे, इसलिए सुलेमान ने भी अब्दुल करीम से बात की. करीम ने बेटे मलिक को समझाया कि वह शादीशुदा और 4 बच्चों का बाप है, इसलिए इस तरह की हरकतों से बाज आए.

घर वालों के समझानेबुझाने पर अब्दुल मलिक और सूफिया कुछ दिनों तक नहीं मिले. हां, फोन पर बातें जरूर कर लेते थे. दोनों ने तय कर लिया था कि चाहे कोई भी उन के ऊपर बंदिशें लगाए, जुदा नहीं होंगे. उन का प्यार हमेशा बरकरार रहेगा.

अब्दुल मलिक ने जब उस्मान के घर जाना बंद कर दिया तो वे लोग समझ गए कि अब मलिक और सूफिया ने मिलनाजुलना छोड़ दिया है, जबकि हकीकत कुछ और ही थी. दोनों प्रेमियों के दिलों में प्यार की आग ठंडी नहीं पड़ी थी, बल्कि मुलाकात न होने पर उन की चाहत और बढ़ गई थी.

आखिर चोरीछिपे उन्होंने घर के बजाय रेस्टोरेंट आदि जगहों पर मिलना शुरू कर दिया था. लेकिन उन की यह लुकाछिपी ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रह सकी.

एक दिन सूफिया के भाई दानिश ने खुद अपनी बहन सूफिया को आलमबाग इलाके में अब्दुल मलिक की मोटरसाइकिल पर घूमते देख लिया. यह देख कर उस का खून खौल उठा, लेकिन उस समय वह कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि मलिक की मोटरसाइकिल आगे निकल गई थी.

उस दिन सूफिया जब घर लौटी तो दानिश ने उसे आड़ेहाथों लिया. बेटे की शिकायत पर उस के पिता उस्मान ने सूफिया की जम कर पिटाई की. इतना ही नहीं, उस ने बेटी को हिदायत दी कि अगर उस ने मलिक से मिलना नहीं छोड़ा तो अंजाम बुरा होगा.

उस्मान इस बात को नहीं जानता था कि प्यार पर जितना पहरा बैठाया जाता है, वह उतना ही मजबूत होता है. यही हाल अब्दुल मलिक और सूफिया के प्यार का था. वे तन से ही नहीं, मन से भी एकदूसरे के हो चुके थे.

यह बात अब्दुल मलिक की पत्नी को भी पता थी. उस ने भी अपने शौहर को बहुत समझाया पर उस ने पत्नी की बातों को तवज्जो नहीं दी. इस के बाद उस की बीवी ने उस से झगड़ना शुरू कर दिया. नतीजा यह निकला कि उस के प्रेम संबंध को ले कर घर में कलह रहने लगी.

मलिक को उस के घर वाले भी समझातेसमझाते हार चुके थे, पर उस ने सूफिया से मिलना नहीं छोड़ा. सूफिया ने भी घर वालों की परवाह न कर के अब्दुल मलिक के घर जाना शुरू कर दिया. सूफिया की इस जिद से उस के घर वाले भी तंग आ चुके थे. वे उसे समझाने के साथ उस की पिटाई करकर के उकता गए थे.

पूरे मोहल्ले में उन के घर की खूब बदनामी हो रही थी. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे में वे क्या करें. शनिवार 4 अप्रैल, 2020 की बात थी. दोपहर के बाद सूफिया अपने प्रेमी अब्दुल मलिक से मिलने उस के घर गई. यह जानकारी जब सूफिया के घर वालों को हुई तो उस के घर लौटने पर भाई और अब्बा ने उस की पिटाई की.

जानकारी मिलने पर सूफिया के ताऊ और उस के दोनों बेटे रानू और तानू भी सूफिया को समझाने के लिए पहुंच गए. सूफिया ने पिटने के बाद भी कह दिया कि चाहे उस की जान चली जाए, वह अब्दुल मलिक को नहीं छोड़ेगी. इस जिद पर उस के घर वालों ने उस की और पिटाई की.सूफिया की जिद पर घर वाले समझ गए कि अब वह किसी भी कीमत पर मानने वाली नहीं है.

इस के लिए वह अब्दुल मलिक को ही कसूरवार मान रहे थे. उस की वजह से ही उन की इज्जत पूरे मोहल्ले में तारतार हो रही थी. इसलिए उन्होंने तय कर लिया कि वे मलिक को इस की सजा जरूर देंगे.

पिटाई के बाद सूफिया अपने कमरे में चली गई थी. इस के बाद घर के सभी लोगों ने योजना बनाई कि किसी बहाने से अब्दुल मलिक को बुला कर उसे ऐसी सजा दी जाए कि उस के घर वाले भी याद रखें.

योजना के अनुसार उन्होंने सूफिया से कहा कि तू अब्दुल मलिक को फोन कर के बुला ले. उस से भी पूछ लें कि वह शादीशुदा होने के बावजूद तुझ से शादी करने को तैयार है भी या नहीं.

अपने घर वालों की यह बात सुन कर सूफिया थोड़ी खुश हुई कि शायद घर वाले उस की शादी मलिक से कराने के लिए राजी हो गए हैं.इसलिए उन के कहने पर उस ने प्रेमी अब्दुल मलिक को अपने घर बुला लिया. सूफिया के कहने पर अब्दुल

मलिक अपने दोस्त वसी को मोटरसाइकिल पर बिठा कर सूफिया के घर पहुंच गया.लेकिन सूफिया के घर वाले तो पूरी योजना बनाए बैठे थे. जैसे ही वह वहां पहुंचा, सभी उस पर डंडा ले कर टूट पड़े. किसी तरह वसी वहां से जान बचा कर भागा और सीधे थाने पहुंच गया. इसी दौरान उस्मान और उस के भाई सुलेमान व उन के बच्चों ने अब्दुल मलिक व सूफिया की डंडों से पीटपीट कर हत्या कर दी और ईंट मारमार कर उन के सिर फोड़ दिए.

चारों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने अब्दुल करीम की शिकायत पर चारों आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 323, 302, 506 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.उन की निशानदेही पर पुलिस ने वारदात में प्रयुक्त 3 डंडे, ईंट भी बरामद कर ली.

चारों आरोपियों उस्मान, दानिश, सुलेमान और रानू को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें लखनऊ कारागार भेज दिया.

भूमिगत पानी का मालिक कौन किसान या सरकार?

भारत के ग्राउंडवाटर (भूमिगत जल) संसाधनों का आवश्यकता से अधिक प्रयोग किया जा रहा है, जो खतरे की घंटी है. विशेषज्ञ अब काफी समय से इस बारे में चेतावनी देते आ रहे हैं. 2011 के सैंपल मूल्यांकन के अनुसार भारत के 71 जिलों में से 19 (लगभग 26 प्रतिशत) में ग्राउंडवाटर की स्थिति गंभीर या शोषित है, जिसका अर्थ यह है कि उनके जलाशयों की जो प्राकृतिक रिचार्ज क्षमता है उसके बराबर या उससे अधिक पानी उनसे निकाला जा रहा है. 2013 के एक अन्य मूल्यांकन के अनुसार यह प्रतिशत बढ़कर 31 हो गया है, इस मूल्यांकन में उन जिलों के ग्राउंडवाटर ब्लॉक्स को भी शामिल किया गया जो खारे (सेलाइन) हो गये थे.

ग्राउंडवाटर का शोषण हर जगह एक सा नहीं है, यानी विभिन्न जगहों पर अलग-अलग है. अधिकतम ओवरड्राफ्ट (आवश्यकता से अधिक निकाला जाना) उत्तर पश्चिम राज्यों (राजस्थान, पंजाब व हरियाणा) में है. पंजाब व हरियाणा गेहूं गोदाम हैं और बावजूद इसके कि इन राज्यों में नहरों का अति-विकसित नेटवर्क है यह ग्राउंडवाटर पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं.

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देश के वार्षिक ग्राउंडवाटर संसाधन में बारिश का कुल योगदान 68 प्रतिशत है, और अन्य स्रोतों जैसे नहरों से जमीन के भीतर पानी जाना, सिंचाई से जल का वापसी फ्लो, तालाब व जल संरक्षण स्ट्रक्चरों को मिलाकर 32 प्रतिशत का जल योगदान मिलता है. इसके अतिरिक्त जनसंख्या में वृद्धि का अर्थ है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति जो जल की वार्षिक उपलब्धता रहती थी उसमें कमी आयी है, 2001 में यह 1816 क्यूबिक मीटर थी प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष, जो 2011 में 15 प्रतिशत घटकर 1544 क्यूबिक मीटर रह गई.

इस पतन के अनेक कारण हैं. आंकड़े बताते हैं कि 1960 के दशक के मध्य से ही भारत का नहर नेटवर्क किसानों की जल मांग की पूर्ति नहीं कर पा रहा है. दूसरे शब्दों में जल की जिस रफ्तार से मांग बढ़ी है उस गति से नहरों का निर्माण नहीं हुआ है. इसलिए अधिकतर किसान अपने खेतों पर ट्यूबवेल लगवाने लगे ताकि हरित क्रांति फसलों की जरूरतों को पूरा किया जा सके जिन्हें अधिक पानी व खाद की आवश्यकता होती है. फिर कुछ राज्यों में चुनावी वायदों के तहत मुफ्त बिजली दी गई इस पानी को पंप करने के लिए, इससे भी ट्यूबवेल पर निर्भरता बढ़ी.

पिछले दो दशक के दौरान मानसून पूर्व वर्षा की मात्रा में कमी आयी है, जिससे ग्राउंडवाटर पर निर्भरता में वृद्धि हुई है. मसलन, भारत में इस साल मानसून पूर्व वर्षा में जबरदस्त कमी आयी है. एक मार्च और मई के पहले सप्ताह के बीच देश को कम से कम 70 एम एम वर्षा मिलनी चाहिए थी, लेकिन केवल 55 एम एम ही, जोकि 20 प्रतिशत की कमी है. इस कमी के तुरंत संकेत वाटर स्टोरेज में जाहिर हैं.केन्द्रीय जल आयोग से मिले आंकड़ों के अनुसार भारत के मुख्य जलाशयों में मई के दूसरे सप्ताह में, वर्ष के इस समय के लिए, अपने एक दशक के औसत की तुलना में 10 प्रतिशत जल की कमी है. इन स्रोतों से कम जल का अर्थ है कि भारत के ग्राउंडवाटर रिजर्व पर गर्मियों की फसल की सिंचाई और पीने व औद्योगिक प्रयोग के लिए अधिक दबाव पड़ेगा.

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कावेरी जल के पानी के बंटवारे को लेकर तमिलनाडु व कर्नाटक के बीच जो तनाव है, उसमें भी ग्राउंडवाटर एक मुद्दा है. इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने जो इस संदर्भ में अपना ऐतिहासिक फैसला दिया उसमें तमिलनाडु को निर्देश दिया कि वह कर्नाटक से कावेरी जल मिलने पर निर्भर रहने की बजाये अपना 10 टीएमसी (थाउजेंड मिलियन क्यूबिक फीट) ग्राउंडवाटर प्रयोग करे. निर्णय में यह भी कहा गया था कि अगर ग्राउंडवाटर को नियमित निकाला नहीं जायेगा तो वह ‘बेकार चला जायेगा’. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति प्रदान की कि ग्राउंडवाटर रिजर्व का प्रयोग अपनी मर्जी के अनुरूप किया जा सकता है.

लेकिन इसमें एक समस्या है- ग्राउंडवाटर क्योंकि रिजर्व है इसलिए उसका न्यायोचित प्रयोग किया जाना चाहिए, खासकर इसलिए कि इसके आवश्यकता से अधिक प्रयोग से स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ जाते हैं. पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार व झारखंड में आर्सेनिक प्रदूषण की गंभीर समस्याएं हैं और इसका एक कारण यह है कि अधिक गहराई से निरंतर ग्राउंडवाटर निकाला जा रहा है. अनेक वर्षों से पंजाब व हरियाणा कैंसर मामलों में निरंतर वृद्धि रिपोर्ट कर रहे हैं; क्योंकि रसायनिक खाद मिट्टी में मिल रहे हैं जो ग्राउंडवाटर को प्रदूषित कर रहे हैं.

पूर्व में अनेक प्रयास किये जा चुके हैं कि राज्य ग्राउंडवाटर का प्रयोग सही से करें. केंद्र ने ‘मॉडल’ ग्राउंडवाटर विधेयक गठित किया है, जो राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं है. लेकिन 11 राज्यों व 4 केंद्र शासित प्रदेशों ने इसे अपनाया है. बहरहाल, इन राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में इस कानून का ग्राउंडवाटर शोषण पर सीमित प्रभाव ही पड़ा है.

पिछले साल केन्द्रीय जल मंत्रालय एक विधेयक लेकर आया जिसके तहत विभिन्न वर्ग जो ग्राउंडवाटर का प्रयोग करते हैं उन्हें इसकी फीस चुकानी होगी. इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इस विधेयक के जरिये यह प्रयास किया गया है कि संसाधन के रूप में ग्राउंडवाटर पर नजरिया बदले. वर्तमान में स्थिति यह है कि भूमि के मालिक को ही उस भूमि के ग्राउंडवाटर का मालिक समझा जाता है. इस विधेयक के जरिये ग्राउंडवाटर का मालिक राज्य को बनाने का प्रयास किया गया है. अब देखना यह है कि क्या राज्य इस दृष्टिकोण को स्वीकार करेंगे? लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या किसान, जिस ग्राउंडवाटर को अभी तक अपना मानते आ रहे हैं, उसे राज्य की सम्पत्ति मानकर राज्य को उसका पेमेंट देने के लिए तैयार हो जायेंगे? इससे तो निरंतर ऋण में डूबते किसानों पर अधिक बोझ बढ़ जायेगा.

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