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कामिनी आंटी : भाग 2

तमाम बातें उस की समझ के परे थीं. उस का मन मानने को तैयार नहीं था कि एक हट्टाकट्टा नौजवान भी कभी यौन शोषण का शिकार हो सकता है. पर यह एक हकीकत थी जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. अत: अपने मन को कड़ा कर वह पिछली सभी बातों पर गौर करने लगी. पूरा समय मजाकमस्ती के मूड में रहने वाले मयंक का रात के समय बैड पर कुछ अनमना और असहज हो जाना, इधर स्त्रीसुलभ लाज के चलते विभा का उस की प्यार की पहल का इंतजार करना, मयंक की ओर से शुरुआत न होते देख कई बार खुद ही अपने प्यार का इजहार कर मयंक को रिझाने की कोशिश करना, लेकिन फिर भी मयंक में शारीरिक सुख के लिए कोई उत्कंठा या भूख नजर न आना इत्यादि कई ऐसी बातें थीं, जो उस वक्त विभा को विस्मय में डाल देती थीं. खैर, बात कुछ भी हो, आज एक वीभत्स सचाई विभा के सामने परोसी जा चुकी थी और उसे अपनी हलक से नीचे उतारना ही था.

हलकेफुलके माहौल में रात का डिनर निबटाने के बाद विभा ने बिस्तर पर जाते ही मयंक को मस्ती के मूड में छेड़ा, ‘‘तुम्हें मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है न?’’ ‘‘नहीं तो, ऐसा बिलकुल नहीं है. अब तुम्हीं तो मेरे जीने की वजह हो. तुम्हारे बगैर जीने की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता,’’ मयंक ने घबराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अगर ऐसा है तो तुम ने अपनी जिंदगी की सब से बड़ी सचाई मुझ से क्यों छिपाई?’’ विभा ने प्यार से उस की आंखों में देखते हुए कहा. ‘‘मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता था, लेकिन मुझे डर था कहीं तुम मुझे ही गलत न समझ बैठो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं विभा और किसी भी कीमत पर तुम्हें खोना नहीं चाहता था, इसीलिए…’’ कह कर मयंक चुप हो गया.

फिर कुछ देर की गहरी खामोशी के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए मयंक बताने लगा. ‘‘मैं टैंथ में पढ़ने वाला 18 वर्षीय किशोर था, जब कामिनी आंटी से मेरी पहली मुलाकात हुई. उस दिन हम सभी दोस्त क्रिकेट खेल रहे थे. अचानक हमारी बौल पार्क की बैंच पर अकेली बैठी कामिनी आंटी को जा लगी. अगले ही पल बौल कामिनी आंटी के हाथों में थर. चूंकि मैं ही बैटिंग कर रहा था. अत: दोस्तों ने मुझे ही जा कर बौल लाने को कहा. मैं ने माफी मांगते हुए उन से बौल मांगी तो उन्होंने इट्स ओके कहते हुए वापस कर दी.’’

‘‘लगभग 30-35 की उम्र, दिखने में बेहद खूबसूरत व पढ़ीलिखी, सलीकेदार कामिनी आंटी से बातें कर मुझे बहुत अच्छा लगता था. फाइनल परीक्षा होने को थी. अत: मैं बहुत कम ही खेलने जा पाता था. कुछ दिनों बाद हमारी मुलाकात होने पर बातचीत के दौरान कामिनी आंटी ने मुझे पढ़ाने की पेशकश की, जिसे मैं ने सहर्ष स्वीकार लिया. चूंकि मेरे घर से कुछ ही दूरी पर उन का अपार्टमैंट था, इसलिए मम्मीपापा से भी मुझे उन के घर जा कर पढ़ाई करने की इजाजत मिल गई.’’ ‘‘फिजिक्स पर कामिनी आंटी की पकड़ बहुत मजबूत थी. कुछ लैसन जो मुझे बिलकुल नहीं आते थे, उन्होंने मुझे अच्छी तरह समझा दिए. उन के घर में शांति का माहौल था. बच्चे थे नहीं और अंकल अधिकतर टूअर पर ही रहते थे. कुल मिला कर इतने बड़े घर में रहने वाली वे अकेली प्राणी थीं.

‘‘बस उन की कुछ बातें हमेशा मुझे खटकतीं जैसे पढ़ाते वक्त उन का मेरे कंधों को हौले से दबा देना, कभी उन के रेंगते हाथों की छुअन अपनी जांघों पर महसूस करना. ये सब करते वक्त वे बड़ी अजीब नजरों से मेरी आंखों में देखा करतीं. पर उस वक्त ये सब समझने के लिए मेरी उम्र बहुत छोटी थी. उन की ये बातें मुझे कुछ परेशान अवश्य करतीं लेकिन फिर पढ़ाई के बारे में सोच कर मैं वहां जाने का लोभ संवरण न कर पाता.’’ ‘‘मेरी परीक्षा से ठीक 1 दिन पहले पढ़ते वक्त उन्होंने मुझे एक गिलास जूस पीने को दिया और कहा कि इस से परीक्षा के वक्त मुझे ऐनर्जी मिलेगी. जूस पीने के कुछ देर बाद ही मुझे कुछ नशा सा होने लगा. मैं उठने को हुआ और लड़खड़ा गया. तुरंत उन्होंने मुझे संभाल लिया. उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद न रहा.

2-3 घंटे बाद जब मेरी आंख खुली तो सिर में भारीपन था और मेरे कपड़े कुछ अव्यवस्थित. मैं बहुत घबरा गया. मुझे कुछ सही नहीं लग रहा था. कामिनी आंटी की संदिग्ध मुसकान मुझे विचलित कर रही थी. दूसरे दिन पेपर था. अत: दिमाग पर ज्यादा जोर न देते हुए मैं तुरंत घर लौट आया. ‘‘दूसरा पेपर मैथ का था. चूंकि फिजिक्स का पेपर हो चुका था, इसलिए कामिनी आंटी के घर जाने का कोई सवाल नहीं था. 2-3 दिन बाद कामिनी आंटी का फोन आया. आखिरी बार उन के घर में मुझे बहुत अजीब हालात का सामना करना पड़ा था. अत: मैं अब वहां जाने से कतरा रहा था. लेकिन मां के जोर देने पर कि चला जा बटा शायद वे कुछ इंपौर्टैंट बताना चाहती हों, न चाहते हुए भी मुझे वहां जाना पड़ा.

‘‘उन के घर पहुंचा तो दरवाजा अधखुला था. दरवाजे को ठेलते हुए मैं उन्हें पुकारता हुआ भीतर चला गया. हाल में मद्धिम रोशनी थी. सोफे पर लेटे हुए उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया. कुछ हिचकिचाहट में उन के समीप गया तो मुंह से आ रही शराब की तेज दुर्गंध ने मुझे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. मैं पीछे हट पाता उस से पहले ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे पर अपने ऊपर खींच लिया. बिना कोई मौका दिए उन्होंने मुझ पर चुंबनों की बौछार शुरू कर दी. यह क्या कर रही हैं आप? छोडि़ए मुझे, कह कर मैं ने अपनी पूरी ताकत से उन्हें अपने से अलग किया और बाहर की ओर लपका.

‘‘रुको, उन की गरजती आवाज ने मानो मेरे पैर बांध दिए, ‘मेरे पास तुम्हें कुछ दिखाने को है,’ कुटिलता से उन्होंने मुसकराते हुए कहा. फिर उन के मोबाइल में मैं ने जो देखा वह मेरे होश उड़ाने के लिए काफी था. वह एक वीडियो था, जिस में मैं उन के ऊपर साफतौर पर चढ़ा दिखाई दे रहा था और उन की भंगिमाएं कुछ नानुकुर सी प्रतीत हो रही थीं. ‘‘उन्होंने मुझे साफसाफ धमकाते हुए कहा कि यदि मैं ने उन की बातें न मानीं तो वे इस वीडियो के आधार पर मेरे खिलाफ रेप का केस कर देंगी, मुझे व मेरे परिवार को कालोनी से बाहर निकलवा देंगी. मेरे पावों तले जमीन खिसक गई. फिर भी मैं ने अपना बचाव करते हुए कहा कि ये सब गलत है. मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया है.

‘‘तब हंसते हुए वे बोलीं, तुम्हारी बात पर यकीन कौन करेगा? क्या तुमने देखा नहीं कि मैं ने किस तरह से इस वीडियो को शूट किया है. इस में साफसाफ मैं बचाव की मुद्रा में हूं और तुम मुझ से जबरदस्ती करते नजर आ रहे हो. मेरे हाथपांव फूल चुके थे. मैं उन की सभी बातें सिर झुका कर मानता चला गया. ‘‘जाते समय उन्होंने मुझे सख्त हिदायत दी कि जबजब मैं तुम्हें बुलाऊं चले आना. कोई नानुकुर नहीं चलेगी और भूल कर भी ये बातें कहीं शेयर न करूं वरना वे मेरी पूरी जिंदगी तबाह कर देंगी.

‘‘मैं उन के हाथों की कठपुतली बन चुका था. उन के हर बुलावे पर मुझे जाना होता था. अंतरंग संबंधों के दौरान भी वे मुझ से बहुत कू्ररतापूर्वक पेश आती थीं. उस समय किसी से यह बात कहने की मैं हिम्मत नहीं जुटा सका. एक तो अपनेआप पर शर्मिंदगी दूसरे मातापिता की बदनामी का डर, मैं बहुत ही मायूस हो चला था. मेरी पूरी पढ़ाई चौपट हो चली थी.

करीब साल भर तक मेरे साथ यही सब चलता रहा. एक बार कामिनी आंटी ने मुझे बुलाया और कहा कि आज आखिरी बार मैं उन्हें खुश कर दूं तो वे मुझे अपने शिकंजे से आजाद कर देंगी. बाद में पता चला कि अंकलजी का कहीं दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया है.

‘‘महीनों एक लाचार जीवन जीतेजीते मैं थक चुका था. उस बेबसी और पीड़ा को मैं भूल जाना चाहता था. उसी साल मुझे भी पापा ने पढ़ने के लिए कोटा भेज दिया, जहां मैं ने मन लगा कर पढ़ाई की, पर अतीत की इन परछाइयों ने मेरा पीछा शादी के बाद भी नहीं छोड़ा जिस कारण आज तक मैं तुम्हारे साथ न्याय नहीं कर पाया. मैं शर्मिंदा हूं, मुझे माफ कर दो विभा,’’ मयंक की आंखों में दर्द उतर आया. ‘‘नहीं मयंक तुम क्यों माफी मांग रहे हो. माफी तो उसे मांगनी चाहिए जिस ने अपराध किया है. मैं उस औरत को उस के किए की सजा दिलवा कर रहूंगी और तुम्हें न्याय,’’ कह विभा ने मयंक के आंसू पोंछे.

‘‘नहीं विभा, वह औरत बहुत शातिर है. मुझे उस से बहुत डर लगता है.’’ ‘‘तुम्हारा यही डर तो मुझे खत्म करना है.’’ कहते हुए विभा ने मन में कुछ ठान लिया. अगले दिन से विभा ने कामिनी आंटी के बारे में पता करने की मुहिम छेड़ दी. जिस अपार्टर्मैंट में वे रहती थीं, वहां जा कर खोजबीन करने पर उसे सिर्फ इतना पता चल सका कि कामिनी आंटी के पति का ट्रांसफर भोपाल में हुआ है. लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी.

Satyakatha: आशिक का खेल

सौजन्या- सत्यकथा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के पटवाई थानाक्षेत्र में पृथ्वीराज सपरिवार रहते थे. परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा संजय था. पृथ्वीराज के पास जो कुछ खेती की जमीन थी, उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का पेट पालते थे.

बड़ी बेटी की वह शादी कर चुके थे. दूसरे नंबर की प्राची ने हाईस्कूल करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. प्राची खूबसूरत थी. उम्र के 16 बसंत पार करते ही प्राची के रूपलावण्य में जो निखार आया था, वह देखते ही बनता था. वह गांव की गलियों से गुजरती तो मनचलों के सीने पर सांप लोट जाया करते थे. प्राची को भी इस बात का अहसास था कि उस में कुछ बात तो है, तभी तो लोग उसे टकटकी लगा कर देखते हैं.

वह उम्र के उस नाजुक दौर से गुजर रही थी, जहां लड़कियों के दिल की जवान होती उमंगें मोहब्बत के आसमान पर बिना नतीजा सोचे उड़ जाना चाहती हैं. ऐसी ही उमंगें प्राची के दिल में कुलांचे भरने लगी थीं. उम्र के इसी पायदान पर खड़ी प्राची ने कब अपना दिल धर्मवीर के हवाले कर दिया, इस का उसे पता भी नहीं लगा था.

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धर्मवीर प्राची के घर के पड़ोस में ही रहता था. हाईस्कूल करने के बाद वह अपना पुश्तैनी खेतीबाड़ी का काम करने लगा.

आसपड़ोस में घर होने के कारण अकसर प्राची और धर्मवीर का आमनासामना हो जाता था. जब भी प्राची धर्मवीर के सामने पड़ती तो धर्मवीर एकटक उसे देखता रहता था. पहले तो प्राची को यह बात बहुत खली लेकिन धीरेधीरे उसे भी धर्मवीर में रुचि आने लगी. इसी के चलते दोनों चुपकेचुपके एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए.

एक रोज शाम का समय था. गांव के बाहर एकांत में दोनों एकदूसरे के सामने पड़े तो धर्मवीर को लगा कि अपने दिल की बात कह देने का यही सब से उपयुक्त मौका है. वह प्राची से बोला, ‘‘प्राची, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहिए…’’ प्राची ने सीधे तौर पर पूछ लिया तो धर्मवीर झेंप गया.

फिर धर्मवीर हिम्मत कर के बोला, ‘‘प्राची, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. लगता है कि अब तुम्हारे बिना मेरा जीना मुश्किल है. क्या तुम मेरी मोहब्बत कबूल करोगी?’’

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यह सुन कर प्राची का चेहरा शर्म से लाल हो गया. वह धीरे से बोली, ‘‘चाहती तो मैं भी तुम्हें हूं, लेकिन डर लगता है.’’

‘‘डर…कैसा डर?’’ धर्मवीर ने प्राची से पूछा.

‘‘कहीं हमारी मोहब्बत रुसवा हो गई तो?’’

‘‘मैं तुम्हारी कसम खा कर कहता हूं कि मैं मर जाऊंगा लेकिन तुम्हें रुसवा नहीं होने दूंगा. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा है, तभी तो जनाब से इश्क करने की जुर्रत की है.’’ कह कर अब तक संजीदा प्राची के चेहरे पर शरारती मुसकान आ गई. धर्मवीर ने उसे अपनी बांहों में ले कर घेरा और तंग कर दिया, जिस पर प्राची कसमसा कर रह गई. धर्मवीर ने आगे बढ़ कर प्राची के होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया.

‘‘उई मां, बड़े बेशर्म हो तुम.’’ कहते हुए प्राची ने धर्मवीर को परे हटा कर खुद को उस की कैद से आजाद किया और हंसती हुई वहां से चली गई.

धर्मवीर प्राची का प्यार पा कर झूम उठा. उसे लगा कि सारे जहां की खुशियां उस की झोली में सिमट आई हैं. कुछ यही हाल प्राची का भी था. धर्मवीर की हरकतों ने उस के बदन में अजीब सी मादकता भर दी थी.

इस तरह धर्मवीर व प्राची की प्रेम कहानी शुरू हो गई. दोनों को जैसे ही मौका मिलता, उन के बीच प्यारमोहब्बत की बातें होतीं. उस समय दोनों को दीनदुनिया की खबर ही न रहती. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. जैसेजैसे समय बीतता रहा, उन का इश्क परवान चढ़ता रहा.

प्राची व धर्मवीर ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का किसी को पता न चले, लेकिन इश्क की खुशबू भला कौन रोक पाया है. प्राची के रंगढंग देख कर उस के पिता पृथ्वीराज को शक हुआ तो उन्होंने उस पर नजर रखने के लिए अपनी पत्नी ऊषा को कह दिया. ऊषा ने उस पर नजर रखी तो उस ने प्राची को धर्मवीर से इश्क करते देख लिया.

जब पृथ्वीराज को पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस समय प्राची घर पर ही थी. उस ने प्राची को आवाज दे कर बुलाया, जब वह उस के पास आ गई तो वह बोला, ‘‘क्यों री, यह मैं क्या सुन रहा हूं कि तू धर्मवीर से इश्क लड़ाती घूम रही है.’’

पिता के मुंह से यह बात सुन कर प्राची चौंक गई. वह समझ गई कि किसी ने उस के पिता से उस की व धर्मवीर की चुगली कर दी है.

फिर भी पिता से झूठ बोलना प्राची के बस में नहीं था, इसलिए वह पिता से बोली, ‘‘हां पापा, बात यह है कि हम दोनों आपस में मोहब्बत करते हैं और अगर आप की इजाजत हो तो विवाह करना चाहते हैं.’’

प्राची ने यह कहा तो मानो पूरे घर में भूचाल आ गया. पृथ्वीराज प्राची पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने प्राची की खूब पिटाई की और उसे हिदायत दी कि अगर उस ने दोबारा धर्मवीर से मिलनेजुलने की कोशिश की तो उस का परिणाम अच्छा नहीं होगा.

प्राची की मां ऊषा ने भी समाजबिरादरी का हवाला दे कर प्राची को समझाया. उधर प्राची व धर्मवीर के इश्क की बात धर्मवीर के घर वालों को पता चली तो उन्होंने भी धर्मवीर को प्राची से नाता तोड़ लेने का फरमान सुना दिया.

प्राची व धर्मवीर पर सख्त पाबंदियां लगा दी गईं. वे जल बिन मछली की तरह तड़प उठे. दरअसल, प्राची धर्मवीर के दिलोदिमाग पर नशा बन कर छा चुकी थी. उस के सौंदर्य ने धर्मवीर पर जादू सा कर दिया था. उधर प्राची का भी यही हाल था, उस के खयालों में धर्मवीर के अलावा और कुछ आता ही नहीं था. हर समय वह धर्मवीर से मिलने को बेकरार रहती थी.

कहते हैं कि प्रेम में जितनी लंबी जुदाई होती है, प्यार उतना ही गहरा होता है. घर वालों की बंदिशें धर्मवीर व प्राची के प्यार को कम नहीं कर सकीं. जब उन की प्रेम अगन बढ़ती चली गई तो उन्होंने मिलने का एक अनोखा रास्ता खोज लिया.

एक दिन धर्मवीर ने प्राची को संदेश भिजवाया कि वह दिन छिपने के बाद उस से जंगल में आ कर मिले. धर्मवीर का संदेश पा कर प्राची उस जगह दौड़ी चली गई, जहां धर्मवीर ने मिलने के लिए बुलाया था. दोनों ने गले मिल कर अपने गिलेशिकवे दूर किए. इस के बाद दोनों यही क्रम दोहराने लगे.

एक बार फिर से दोनों का मिलन बदस्तूर शुरू हो गया. इधर प्राची ने घर में धर्मवीर का नाम लेना तक बंद कर दिया था, जिस के चलते पृथ्वीराज ने सोच लिया कि बेटी के सिर से इश्क का भूत शायद उतर गया है.

धर्मवीर के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे तब धर्मवीर और प्राची को इस का पता चला तो उन के होश उड़ गए. धर्मवीर के घर वाले भी किसी कीमत पर प्राची को अपने घर की बहू स्वीकारने को तैयार नहीं थे. प्राची के पिता पृथ्वीराज ने भी साफसाफ कह दिया कि वह अपनी बेटी को कुएं में धक्का दे देगा लेकिन उस का हाथ धर्मवीर के हाथ में नहीं देगा.

अगले दिन प्राची जब धर्मवीर से मिली तो बोली, ‘‘कुछ करो धर्मवीर, अगर हम यूं ही खामोश बैठे रहे तो एकदूसरे से जुदा कर दिए जाएंगे और मैं तुम से जुदा हो कर जिंदा नहीं रहना चाहती. अगर तुम मुझे नहीं मिले तो मैं जहर खा कर जान दे दूंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते प्राची, हम ने पाक मोहब्बत की है. हमारी मोहब्बत जरूर कामयाब होगी.’’ धर्मवीर प्राची के हाथ को अपने हाथ में ले कर बोला तो प्राची के मन को तसल्ली हुई.

9 दिसंबर, 2019 की सुबह लगभग साढ़े 8 बजे प्राची घर का कूड़ा गांव के बाहर घूरे पर डालने गई. काफी समय बीत गया, वह नहीं लौटी तो उस के मातापिता ने उसे पूरे गांव में तलाशा, लेकिन उस का कोई पता नहीं लगा.

काफी तलाशने के बाद भी जब प्राची का नहीं मिली तो 10 दिसंबर को पृथ्वीराज ने थाना पटवाई में बेटी के लापता होने की सूचना दी. साथ ही उन्होंने गांव के ही धर्मवीर पर शक जताया. इस सूचना पर थानाप्रभारी इंद्र कुमार ने थाने में प्राची की गुमशुदगी की सूचना लिखा दी.

थानाप्रभारी ने धर्मवीर के बारे में पता करवाया तो वह भी घर से गायब मिला. उस की सुरागरसी के लिए उन्होंने अपने मुखबिरों को लगा दिया. 15 दिसंबर को पटवाई चौराहे से थानाप्रभारी इंद्रकुमार ने धर्मवीर को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब धर्मवीर से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने प्राची की हत्या कर लाश छिपाने का जुर्म स्वीकार कर लिया. इतना ही नहीं पुलिस ने धर्मवीर की निशानदेही पर गांव के बाहर घूरे में दबी सीमा की लाश भी बरामद करा दी.

प्राची की लाश क्षतविक्षत हालत में थी. उस का एक हाथ गायब था. अनुमान लगाया कि शायद कुत्तों ने उस की लाश को नोंच खाया होगा. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस धर्मवीर को ले कर थाने आ गई. इस के बाद प्राची के पिता पृथ्वीराज की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पूछताछ में हत्या की जो वजह निकल कर आई, वह कुछ इस तरह थी—

धर्मवीर और प्राची के घरवाले जब उन की शादी के लिए तैयार नहीं हुए तो इस प्रेमी युगल की चिंता बढ़ गई. तब धर्मवीर ने प्राची से वादा किया, ‘‘प्राची मैं घर वालों के कहने पर दूसरी लड़की से विवाह तो कर लूंगा लेकिन मैं सच्चे दिल से तुम्हारा ही रहूंगा. हमारा रिश्ता भले ही दुनिया की नजर में अलग हो जाए, लेकिन हम हमेशा एक रहेंगे. विवाह के बाद भी मैं तुम्हारा ही बना रहूंगा.’’

धर्मवीर के इस वादे पर प्राची को पूरा भरोसा था. इस के अलावा उन के पास अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए कोई रास्ता ही नहीं बचा था.

धर्मवीर के लिए जो रिश्ते आ रहे थे, उन में से धर्मवीर के परिजनों को एक रिश्ता भा गया. वह था रामपुर के मिलक थाना क्षेत्र के ऊंचा खाला निवासी नीलम का. नीलम अब अपने परिवार के साथ मुरादाबाद में रह रही थी. बात आगे बढ़ी तो दोनों का रिश्ता पक्का कर दिया गया.

19 अप्रैल, 2019 को धर्मवीर और नीलम का विवाह संपन्न हो गया. नीलम काफी सुंदर, शिक्षित व गुणवती थी. उस ने धर्मवीर के परिवार में आते ही अपनी बातों व कार्यों से सब का दिल जीत लिया.

उस में धर्मवीर भी था. नीलम के आने से धर्मवीर के दिलोदिमाग से प्राची के इश्क का भूत उतरने लगा था. लेकिन उस ने प्राची से संबंध खत्म नहीं किए थे. एक तरह से वह दो नावों की सवारी कर रहा था. ऐसे में उस का डूबना निश्चित था.

नीलम को कुछ ही दिनों में पति की हकीकत पता लग गई कि वह कैसे उसे धोखा दे रहा है. कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन शौहर का बंटवारा बिलकुल बरदाश्त नहीं कर सकती.

बीवी के रहते पति पराई औरत से इश्क लड़ाए, यह बात नीलम को पसंद नहीं थी. लिहाजा वह घर छोड़ कर मायके चली गई. धर्मवीर ने नीलम को काफी मनाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी.

इधर प्राची को पता चला तो वह धर्मवीर पर खुद से विवाह करने का दबाव बनाने लगी. इस से धर्मवीर परेशान हो गया. वह नीलम को हर हाल में घर वापस लाना चाहता था. इसी बीच 3 दिसंबर, 2019 को नीलम ने मुरादाबाद के महिला थाने में धर्मवीर के खिलाफ उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दिया. 8 दिसंबर को मुरादाबाद पुलिस धर्मवीर के घर आई, वह घर पर नहीं था. मुरादाबाद पुलिस पूछताछ कर के वापस लौट गई.

सब कुछ धर्मवीर की बरदाश्त के बाहर हो गया. उस ने प्राची से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का फैसला कर लिया. 9 दिसंबर की सुबह उस ने प्राची को मिलने के लिए गांव के बाहर बुलाया. प्राची घर का कूड़ा घूरे पर फेंकने के बहाने घर से निकली.

घूरे के पास धर्मवीर उसे खड़ा मिल गया. प्राची के आते ही धर्मवीर ने उसे दबोच लिया और हाथों से गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने उस की लाश घूरे में दबा दी और वहां से फरार हो गया.

लेकिन वह कानून की गिरफ्त से अपने आप को न बचा सका. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद इंसपेक्टर इंद्र कुमार ने उसे सीजेएम कोर्ट में पेश किया, वहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस टीवी एक्टर ने रोमांटिक अंदाज में मनाई एनिवर्सरी देखें फोटो

कोरोना वायरस के समय में हर कोई घर के अंदर पैक है. इस दौरान लोग अपने खास दिन को घर में रहकर ही स्पेशल तरीके से सेलिब्रेट कर रहे हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं टीवी जगत के मशहूर कपल अर्जुन बिजलानी और उनकी पत्नी नेहा स्वामी के बारे में…

हाल ही में दोनों ने अपनी सातवी सालगिरह मनाया है. जिसको उन्होंने अपने घर पर ही मनाया लेकिन डेकोरेशन देखकर आप यह नहीं कह सकते कि यह किसी रेस्तंरा से कम लग रहा है.

अर्जुन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर कुछ तस्वीरें शेयर की हैं जिसमें वह अपने बेटे अयान और पत्नी नेहा स्वामी के साथ नजर आ रही हैं. दोनों बेहद ही रोमांटिक अंदाज में नजर आ रहे हैं.

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सातवी सालगिरह पर अर्जुन अपनी पत्नी नेहा से प्यार का इजहार करना नहीं भूले हैं. अर्जुन ने सेलिब्रेशन की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है शादी की सालगिरह मुबारक हो हम दोनों की जीवन में ऐसे खुशियां बनी रहे.

 

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7 years ❤️ . @nehaswami …

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आगे लिखते है कि अब तो हमने कोरोना जैसी महामारी भी साथ में देख लिया हैं. आगे भी हर वक्त तुम साथ खड़े रहना. और ऐसे समय में तुमने मेरा साथ दिया उसके लिए अवार्ड देना चाहता हूं.

इसके लिए मैं अपने सभी फैंस का धन्यवाद करना चाहता हूं जिसने मेरे इस दिन को खास बनाया है. नेहा और अर्जन का एक बेटा है अयान जो बेहद क्यूट है अर्जुन कई फेमस सीरियल में काम कर चुके हैं तो वहीं नेहा अपने घर को संभालती हैं. दोनों की बॉन्डिंग देख कर लोग उदाहरण देते हैं. दोनों साथ में बेहद खुश नजर आते हैं. दोनों सादी से पहले से एक दूसरे को जानते थें.

पंडितों के धंधे की खुल गई पोल: पूजापाठ धर्म नहीं, धंधा है

एक बडे अखबार के जयपुर विशेषांक के पृष्ठ 10 पर प्रकाशित खबर  “नाई, धोबी, मोची, सहित  26 कैटेगरी का सर्वे करवा कर खाद्यान्न में मदद देगी सरकार ” शीर्षक से प्रकाशित हुई है

इस खबर पर टिप्पणी करने का उद्देश्य यह नहीं है कि सरकार के खाद्यान्न वितरण के जनसरोकार के कार्य की आलोचना की जाए, बल्कि अखबार के द्वारा चतुराई के साथ  “‘मंदिर में पूजापाठ व कर्मकांड वाले पंडितों ” को भी नाई, धोबी,  मोची, घरेलू नौकर, भिखारी, रिक्शा चालक, ऑटो चालक, श्रमिक आदि लगभग 40 प्रकार के कैटेगरी को राहत दिए जाने हेतु लिखा गया है.

समाचार पत्र द्वारा खबर प्रकाशन में तो प्रमुखता से नाई ,धोबी, मोची कैटेगरी का उल्लेख किया गया है. इस में हैरानी की बात यह है कि जिस प्रकार से लोकडाउन की वजह से नाई, धोबी, घरों में साफसफाई करने वाले, मोची, नौकर, मजदूरों का , “धंधा” ठप्प हो गया है, की खबर को मद्देनजर रखते हुए प्रमुखता से प्रकाशित किया है, जब कि मंदिर में पूजापाठ व कर्मकांड वाले पंडित को भी मदद की खबर को छुपाने का प्रयास किया गया है.

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जिस प्रकार से नाई, धोबी, मोची, घरेलू नौकर, श्रमिक, थड़ीठेले लगाने वाले या अन्य किस प्रकार से छोटामोटा व्यवसाय करने वाले मेहनतकश लोगों के साथ “मंदिर में पूजापाठ व कर्मकांड वाले पंडितों”‘ के कार्यों की समान तुलना की जाती है तो पंडितों का व्यवसाय भी “धंधा” ही है, जिस को अब तक यह मनुवादी लोग धर्म के नाम से प्रचारित कर के इस देश के मूलनिवासियों की खूनपसीने की कमाई को चतुराईपूर्वक विभिन्न प्रकार के धार्मिक कर्मकांडों और मंदिरों के देवताओं के नाम चढ़ावे के रूप में हजारों साल से प्राप्त करते आ रहे हैं.

दलित, पिछडे व कमेरे वर्ग के लोगों के समझ में यह बात अच्छे से आ जानी चाहिए कि जिन ब्राह्मण और उन के मंदिरों में जो चढ़ावा आप चढ़ाते हैं, वह किसी देवीदेवता के जेब में नहीं जा कर इस राशि से पूजापाठ वह कर्मकांड वाले पंडित अपना और अपने परिवार का जीवनयापन बिना किसी विशेष परिश्रम के करते हैं अर्थात यह उनका “धंधा” है, धर्म नहीं.

इस मसले पर शिक्षाविद शिवनारायण ईनाणिया का कहना है, ‘ चढ़ावे की राशि से यह लोग और अधिक ताकतवर बन कर भारत के संविधान और उस के द्वारा प्रदत मौलिक अधिकारों से इस देश के मूल निवासियों को वंचित करने की दिशा में ताकत लगाए हुए हैं. यदि आप इन्हें कमजोर देखना चाहते हैं तो इन पंडित पुजारियों से किसी प्रकार का धार्मिक कर्मकांड करवा कर नकद भेंट देना व इन के मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाना बंद करें. इस से मनुवादियों की ताकत स्वत: ही समाप्त हो जाएगी.”

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अगर किसी को लगता है कि पंडित धार्मिक पुरुष है और कर्मकांड व्यवसाय नहीं धर्म है, तो इन राहत पैकेज के खिलाफ आंदोलन करें और राशन-पैकेज लेने से इनकार करने के ज्ञापन राज्य सरकारों को भेज दें. जबरदस्ती राज्य सरकारें व मीडिया वाले पंडितों को मजदूर व कर्मकांडों को धंधा बताएं तो अपने अदालतें तो है ही, तुरंत उन का दरवाजा खटखटाया जा सकता है. ”

गौरतलब है कि निशुल्क राशन उपलब्ध करवाने के लिए राजस्थान सरकार ने अपनी एक गाइडलाइन में हिंदू मंदिरों के पुजारियों को संभावित पात्र श्रेणी में माना है, जबकि दूसरे किसी भी संप्रदाय के धार्मिक क्रियाकलाप करने वालों को इस संभावित पात्र श्रेणी में नहीं माना है.

अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मध्यप्रदेश सरकार से केवल मंदिरों के पुजारियों को सहायता दिलवाने की मांग की और सरकार ने तुरंत केवल मंदिरों के पुजारियों को 8 करोड़ की राहत देने की घोषणा कर दी.

अर्थात स्पष्ट है कि संप्रदाय के नाम पर भारत की सभी सरकारें हिंदू कर्मकांडी और पाखंडी पंडितों महात्माओं इत्यादि को अल्पसंख्यक समुदायों से ज्यादा अहमियत देती है. इस से यह भी साफ जाहिर होता है कि पूजापाठ व कर्मकांड एक तरह का व्यवसाय धंधा हैं.

Crime Story: तीन लाशों का मालिक

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की भिलाई नगरी इस्पात संयंत्र के कारण देश भर में विख्यात है. रवि शर्मा भिलाई के पौश इलाके तालपुरी इंटरनैशनल कालोनी में रहता था. 19 जनवरी, 2020 को वह किसी उधेड़बुन में घर से निकला. उस ने सोच रखा था कि आज उसे कुछ ऐसा करना है कि दूसरी पत्नी मंजू से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए.

इसी बारे में सोचते हुए वह पैदल ही स्थानीय सिविक सेंटर की ओर बढ़ गया. उस के कदम देसी शराब की दुकान के पास रुके. वहीं खड़ा हो कर वह हरेक आनेजाने वाले को ध्यान से देखने लगा. तभी अचानक उस की निगाह एक शख्स पर जा कर ठहर गई. रवि के दिमाग में जो खतरनाक प्लान था, उसे देखते ही पूरा होता दिखाई दिया. उस के पास जा कर चहकते हुए बोला, ‘‘अरे राजू, इधर आओ.’’

राजू ने उस की ओर देखा और मुसकराते हुए बोला, ‘‘भाई रवि, बहुत दिनों बात दिखे.’’‘‘हां यार, आजकल काम कुछ ज्यादा बढ़ गया है,’’ कहते हुए रवि शर्मा ने उस के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ‘‘चलो, आज पार्टी करते हैं.’’  ‘‘पार्टी! कैसी पार्टी भाई?’’ राजू ने पूछा.

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‘‘बस तुम से मिलने की खुशी में. चलो, मैं बोतल ले आता हूं, घर चल कर खाएंगेपिएंगे.’’ रवि शर्मा ने राजू को उकसाया.

राजू शराब की दुकान की ओर देखते हुए बोला, ‘‘वैसे तो मेरी इच्छा नहीं है, मगर तुम कह रहे हो तो चलो ठीक है.’’

‘‘ठीक है, तुम यहीं ठहरो मैं बोतल ले आऊं.’’ कह कर रवि राजू को वहीं ठहरने की बात कह कर सिविक सेंटर के पास स्थित शराब की दुकान की तरफ बढ़ गया.

बढ़ते कदमों के साथ उस के चेहरे पर कई हावभाव आजा रहे थे. जल्दीजल्दी उस ने शराब खरीदी और राजू के पास आ गया. राजू उस की कदकाठी और उम्र का था, फिर भी रवि ने पूछा, ‘‘राजू, तुम्हारी उम्र क्या होगी?’’

‘‘32 साल,’’ राजू बोला. ‘‘मैं 35 साल का हूं. देखो, कितनी समानता है हम दोनों की उम्र और कदकाठी में.’’ कह कर रवि ने उस का हाथ हाथों में ले लिया.

दोनों तालपुरी इंटरनैशनल कालोनी की तरफ चल दिए. रवि राजू को ले कर अपने घर पहुंचा. घर पहुंचते ही उस ने राजू को पत्नी मंजू से मिलाते हुए कहा, ‘‘मंजू, यह मेरा बहुत खास दोस्त राजू है, बहुत दिनों बाद मिला है. आज इस के साथ पार्टी होगी.’’

मंजू ने मुसकरा कर राजू का स्वागत किया. फिर रवि और राजू एक कमरे में बैठ गए. रवि ने पहले से ही साजिश रच ली थी. उसी योजना के तहत वह राजू को अपना शिकार बनाना चाहता था. उसी साजिश को अमलीजामा पहनाने के लिए रवि ने शराब गिलास में डालतेडालते चालाकी से राजू के गिलास में नींद की गोलियां डाल दीं. शराब के नशे के साथ राजू पर नींद की गोलियों का असर हुआ तो वह वहीं लुढ़क गया. उस के लुढ़कने से रवि खुश हुआ.

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वह मंजू के पास जा कर बोला, ‘‘मंजू, यह आदमी बहुत खतरनाक है. यह तुम्हारी और मेरी जिंदगी बरबाद करने पर तुला हुआ है.’’

‘‘कैसे?’’ मंजू ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘यह मुझे ब्लैकमेल करता है.’’ रवि ने कहा.

‘‘क्या कहता है?’’ मंजू ने पूछा.

‘‘कहता है कि पैसे दो नहीं तो हम दोनों के बारे में संगीता से शिकायत कर हमारा भंडाफोड़ कर देगा. अब मैं इसे पैसे कहां से दूं.’’ शर्मा ने असहाय भाव से कहा.

दरअसल, रवि शर्मा की शादी संगीता से हुई थी, जिस से 2 बच्चे भी थे. इस के बाद भी उस ने मंजू को अपने जाल में फांस लिया और उसे अपनी दूसरी पत्नी बना कर उस के साथ रह रहा था. लेकिन मंजू उस के गले की फांस बन चुकी थी, इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए ही उस ने यह एक नई साजिश रची थी.

इस के लिए उस ने मंजू से कहा, ‘‘मंजू, मैं राजू का काम खत्म करने वाला हूं. इस में तुम मेरी मदद करो. देखो, मना मत करना. तुम मेरी जिंदगी हो, तुम्हारे बगैर मैं कैसे जिंदा रहूंगा.’’

यह सुन कर मंजू शर्मा ने रवि की ओर प्यार से देखा.

‘‘मंजू, तुम मेरा साथ दो. इसे छत से नीचे फेंक देते हैं, इस का काम तमाम हो जाएगा.’’ वह बोला.

‘‘मगर कोई देख लेगा तो…और अगर यह घायल हो कर बच गया तो?’’ मंजू ने संशय व्यक्त किया.

‘‘तो ऐसा करते हैं, मैं इसे यहीं मौत की नींद सुला देता हूं. बेहोशी की हालत में ही इस के मुंह नाक पर टेप लगा देता हूं. सांस रुकने से यह छटपटा कर मर जाएगा. बाद में इसे कहीं ठिकाने लगा दूंगा.’’ रवि शर्मा की मीठीमीठी बातों में आ कर मंजू ने स्वीकृति दे दी. मंजू को छोड़ कर रवि शर्मा फिर राजू के पास आया, जो बेसुध पड़ा था.

रवि ने घर में पहले से ला कर रखा टेप निकाला और उस के मुंह और नाक पर अच्छे से चिपका दिया. इस के बाद उस के हाथपैर भी बांध दिए. फिर गमछे से उस का गला घोट कर उस की हत्या कर दी.

इस के बाद उस ने उस के मुंह और नाक से टेप हटा दिया और हाथपांव खोल कर उसे अपने कपड़े पहना दिए. यह सब करतेकरते उस के दिमाग में यह योजना जन्म ले रही थी कि दूसरी पत्नी मंजू को कैसे ठिकाने लगाए.

इसी उधेड़बुन में वह मंजू के पास जा कर बोला, ‘‘काम तमाम हो गया है. अब तुम और मैं जिंदगी भर मौजमजे करेंगे.’’

मंजू सहमी सी बिस्तर पर बैठी अपनी डेढ़ महीने की बच्ची को दूध पिला रही थी. पति की बात सुन कर वह उठ बैठी और घबरा कर पूछा, ‘‘क्या तुम ने सचमुच उसे मार डाला?’’

‘‘हां, और दूसरा रास्ता ही क्या था?’’

‘‘मुझे तो बहुत डर लग रहा है.’’ कह कर डरीसहमी मंजू पति रवि शर्मा की ओर देखने लगी.

‘‘अरे डरो नहीं, तुम्हें यह भूत बन कर नहीं डराएगा.’’ रवि शर्मा ने मंजू को कुछ डराने की नीयत से कहा तो मंजू डर कर कांपने लगी और नन्ही बालिका को सीने से लगा लिया.

रवि मन ही मन खुश होते हुए बोला, ‘‘तुम नींद की एक गोली खा लो और आराम से सो जाओ. बाकी मैं देख लूंगा.’’

रवि ने एक गिलास में 6 गोलियां घोल कर मंजू को थमा दिया. मंजू डरी हुई थी. गोलियों का पानी पी कर वह सो गई तो रवि शर्मा अपनी सोचीसमझी योजना के तहत उस का काम तमाम करने की जुगत में लग गया.

जब मंजू गहरी नींद में चली गई तो उस ने जैसे राजू को मौत के घाट उतारा था, वैसे ही वह मंजू के मुंहनाक पर टेप चिपकाने लगा. फिर उस के मुंह में कपड़ा ठूंस उस की भी गला घोट कर हत्या कर दी.

डेढ़ माह की नन्ही बालिका निशा जब रोने लगी तो रवि शर्मा ने उसे गोद में उठा लिया. वह सोचने लगा, ‘अब क्या करूं?’

उस के दिमाग में आया कि निशा को भी मार दिया जाए. फिर सोचा नहीं…नहीं यह नन्ही बच्ची उस के प्यार की निशानी है. यह उसे ले जा कर संगीता की गोद में डाल देगा. जहां 2 बच्चे पल रहे हैं, ये भी पल जाएगी. लेकिन संशय यह था कि संगीता उसे स्वीकार करेगी या नहीं.

‘नहीं…नहीं, संगीता और बच्चे इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे.’ यह सोच कर उस की आंखें भर आईं. नन्ही सी बालिका निशा उसे बहुत प्यारी थी. जब वह मुसकराती तो रवि निहाल हो जाता था. वह उसे गोद में ले कर अचानक जोरजोर से रोने लगा.

आंसू बह निकले तो मन थोड़ा मजबूत हुआ. उस ने सोचा कि जब इस की मां ही मर गई तो यह जिंदा रह कर क्या करेगी? रवि शर्मा ने यह निर्णय ले कर नन्ही बालिका की भी गला घोट कर हत्या कर दी और उसे मंजू के पास लिटा दिया.

3 हत्याएं कर के उस ने सोच लिया कि वह घटनास्थल पर ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देगा कि पुलिस तो क्या सीबीआई भी जांच करेगी तो उस तक नहीं पहुंच पाएगी.

रवि ने राजू को अपने कपड़े पहना ही दिए थे. उस ने तीनों लाशें एक कमरे में ला कर डाल दीं, फिर राजू के पास गैस चूल्हा रख कर गैस जला दी. धीरेधीरे वह राजू का सिर लकड़ी के गुटके से जलाने लगा. इसी दौरान उस ने घर के दरवाजे पर चाक से लिखा, ‘मैं मंजू से प्यार करता था, उस ने मुझ से शादी नहीं की. बदला…बदला, मैं रवि शर्मा के परिवार को मार रहा हूं. मंजू को मार रहा हूं. संजय आर्मी.’

रवि को लगा कि थोड़ी देर बाद गैस सिलेंडर से राजू जल जाएगा, घर में आग लग जाएगी. सिलेंडर ब्लास्ट हो जाएगा. सब जल कर खत्म  हो जाएंगे. लकड़ी के गुटके में आग लगाने के बाद वह स्कूटी से स्टेशन की ओर निकल गया, फिर वहां से ट्रेन पकड़ कर राउरकेला, ओडिशा चला गया. उसे अपनी पत्नी संगीता और बच्चों के पास जाना था.

उस ने रायपुर स्टेशन पर पीसीओ से अपनी सास मालती सूर्यवंशी को तड़के में काल की, ‘‘आ कर देख लो, तुम्हारे दामाद और बेटी की मौत. दोनों जल कर मर रहे हैं.’’

इस के बाद वह संगीता से मिलने के लिए हमसफर एक्सप्रैस में चढ़ गया.

रवि ने आग यह सोच कर लगाई थी कि जब घर में आग लग जाएगी तो तीनों लाशें जल जाएंगी. लेकिन लकड़ी के गुटके में आग लगने पर केल राजू का सिर व चेहरा ही जला था. इस के बाद आग आगे नहीं बढ़ पाई थी.

22 जनवरी, 2020 बुधवार की सुबह रिसाली अशोक नगर की रहने वाली मंजू की मां मालती सूर्यवंशी ने जब अज्ञात शख्स की धमकी सुनी तो वह घबराई और अपने पति और बेटे के साथ वह बेटी मंजू के घर पहुंची. वहां का भयावह दृश्य देख कर वह जोरजोर से रोने लगी.

घटना की सूचना मालती ने कोतवाली पुलिस को दे दी. घटना की जानकारी मिलते ही भिलाई नगर कोतवाली के प्रभारी सुरेश धु्रव मौके पर पहुंचे. घटनास्थल पर 3 लाशें पड़ी थीं.

मालती सूर्यवंशी ने पुलिस को बताया कि उस की बेटी मंजू वहां अपने पति रवि शर्मा और बेटी निशा के साथ रह रही थी. पुलिस को उस ने यह भी जानकारी दी कि उसे सुबहसुबह मोबाइल पर एक धमकी भरी काल आई थी.

प्रथमदृष्टया मामला हत्या का प्रतीत हो रहा था. पुलिस का ध्यान जांच के दरम्यान दरवाजे पर लिखे मैसेज पर गया, जिस का सार था, इस हत्याकांड को संजय देवांगन आर्मी ने अंजाम दिया है.

पुलिस दल ने मौकामुआयना शुरू किया. फोरैंसिक टीम भी आ गई. जांच अधिकारी सुरेश धु्रव ने शहर में हुए तिहरे मर्डर की ब्यौरेवार जानकारी एसएसपी अजय, एडीशनल एसपी लखन पटले, एसपी (सिटी) अजीत कुमार यादव को दी. लखन पटले स्वयं मौके पर पहुंचे और टीआई सुरेश धु्रव को गंभीरता से जांच कर आरोपी को गिरफ्तार करने के सख्त निर्देश दिए.

यह ट्रिपल मर्डर अपने आप में अजीब पेंच लिए हुए था, जिसे ब्लाइंड मर्डर भी कह सकते हैं. जिस में सूत्र से सूत्र मिला कर आरोपी तक पहुंचना था. दूसरी ओर रिसाली अशोक नगर की ललिता भिलाई थाने पहुंची. उस ने बताया कि उस का पति राजू 21 जनवरी से लापता है. राजू की पत्नी ललिता ने बताया कि उस का पति कुछ समय से अस्वस्थ चल रहा था और घर पर ही आराम कर रहा था.

21 जनवरी, 2020 की शाम को वह घर से निकला था और फिर वापस नहीं लौटा था. एन. राजू के 2 बच्चे हैं. ललिता ने पुलिस को बताया कि वह कल्पकृति अपार्टमेंट में लोगों के यहां काम कर के परिवार का पालनपोषण करती है. घर वालों की बातों से यह साफ हो गया था कि घटनास्थल पर जिस की लाश मिली, वह रवि नहीं था. पुलिस ने वह लाश राजू की पत्नी ललिता को दिखाई तो उस ने उसे अपने पति के रूप में पहचान लिया.

शव की पहचान के साथ ही पुलिस के हाथ एक बड़ा क्लू हाथ लग चुका था. इधर जब ललिता की बहन रंगममा ने भी राजू की शिनाख्त कर ली तो मंजू की मां मालती सूर्यवंशी व घर वालों ने भी राजू के शव को गौर से देख कर बताया कि वह रवि शर्मा का शव नहीं है.

रवि शर्मा और मंजू के विवाह की सारी कहानी मालती ने टीआई को बता दी. उस के अनुसार उस की बेटी मंजू सूर्यवंशी का विवाह पहले भी हुआ था. पहले पति महेश ने उसे छोड़ दिया था.

मंजू नेहरू नगर, रायपुर में एक कपड़ा दुकान में नौकरी करती थी. यहीं उस की मुलाकात रवि शर्मा से हुई और फिर प्रेम संबंध होने पर दोनों ने 22 नवंबर, 2017 को विवाह कर लिया था. नवंबर 2019 में 2 वर्ष बाद मंजू को एक बेटी निशा हुई थी.

मां मालती ने बताया कि मंजू का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं था. रवि शर्मा की पहली शादी और बच्चों के बारे में जानकारी मिलने के बाद रवि और संगीता में कलह बढ़ती जा रही थी. रवि शराबी था और घर में रुपएपैसों की किल्लत रहती थी. मंजू अकसर मां से कहती थी कि मां मैं तो कुएं से निकल कर खाई में गिर गई.

जांच अधिकारी सुरेश धु्रव ने जांच में तेजी ला कर रवि शर्मा के राउरकेला स्थित घर पत्नी और बच्चों के बारे में पता किया. उन्हें जानकारी मिली कि रवि शर्मा पत्नी संगीता से अकसर बात करता था. जब फोन पर संगीता से बात हुई तो उस ने बताया कि आज हमसफर एक्सप्रैस से रवि शर्मा राउरकेला, ओडिशा पहुंचने वाला है.

टीआई सुरेश धु्रव ने राउरकेला आरपीएफ व जीआरपी से बात कर के रवि शर्मा का फोटो भेज दिया. साथ ही बताया कि वह छत्तीसगढ़ में 3 हत्याएं कर के हमसफर एक्सप्रैस से राउरकेला पहुंच रहा है.

राउरकेला में फोटो के आधार पर रवि शर्मा को धर दबोचने के लिए स्टेशन पर पूरी तैयारी हो गई. जब हमसफर एक्सप्रैस स्टेशन पर पहुंची तो रवि शर्मा जीआरपी के हत्थे चढ़ गया. उसे गिरफ्तार कर के भिलाई ला कर पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया.

जांचपड़ताल में पहले तो रवि शर्मा ने बहुत होशियारी दिखानी चाही और खुद को बेगुनाह बताता रहा. मगर जब पुलिस ने उस के खिलाफ साक्ष्य दिखाने शुरू किए तो वह टूट गया और पूरा घटनाक्रम पुलिस के सामने बयान करता चला गया.

पुलिस को दिए इकबालिया बयान में रवि शर्मा ने बताया कि वह मूलत: गया, बिहार का निवासी है. उस की शादी सन 2015 में धनबाद की संगीता कुमारी से हुई थी. उस के 2 बच्चे हैं. वह कारपेंटर है और सन 2015 में काम की तलाश में रायपुर आ गया था.

यहीं कपड़े की दुकान में उस की मुलाकात मंजू सूर्यवंशी से तब हुई जब वह वहां कारपेंटरी का काम करने गया था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और शारीरिक संबंध बने तो मंजू ने शादी का दबाव डाला. ऐसा न करने पर उस ने बलात्कार के जुर्म में जेल भिजवाने की धमकी दी थी.

विवश हो कर रवि शर्मा ने उस से शादी कर ली मगर वह आए दिन उस से झगड़ा करती. वह ढेर सारा रुपया चाहती थी. उसी की जिद की वजह से भिलाई नगर की पौश कालोनी में किराए पर मकान ले कर रहना पड़ रहा था, उस का मन करता था कि वह पहली पत्नी संगीता और बच्चों के साथ बाकी का जीवन बिताए. लेकिन राह में रोड़ा मंजू थी. उसे हटाने के लिए अंत में उस ने खतरनाक कदम उठाया.

अपने आप को बचाने के लिए अपनी कदकाठी के आदमी की जरूरत थी. ऐसे में उसे राजू सही लगा. फिर उस ने राजू को शराब पिला कर मार डाला और यह सिद्ध करने की कोशिश की कि राजू दरअसल राजू नहीं, बल्कि रवि शर्मा है.

पुलिस को जांच में मशक्कत करनी पड़े, इस के लिए उस ने चाक से दरवाजे पर संजय आर्मी एक काल्पनिक नाम लिखा ताकि पुलिस उसे ही ढूंढती रह जाए. मगर कहते हैं कि अपराधी लाख कोशिश कर ले, मगर कहीं न कहीं सच के सूत्र, सबूत ऐसे होते हैं जो चीखचीख कर आरोपी की चुगली करते हैं और एक दिन उसे सजा दिलाने में कामयाब हो जाते हैं. रवि शर्मा के साथ भी यही हुआ. वह चालाकी तो करता रहा मगर उस की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई और 24 घंटों के भीतर ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

पुलिस ने 23 जनवरी, 2020 को रवि शर्मा को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कैसे करें लाइफ और टाइम मैनेजमैंट?

विज्ञान के बढ़ते प्रभाव से पूरी दुनिया में टैक्नोलौजी एक आम जरूरत बन गई है. हर व्यक्ति, खासकर युवा, इस से जुड़े उपकरणों का इस्तेमाल कर रहा है. टैक्नोलौजी से भरे इस समाज में जहां इस के भरपूर फायदे मिले वहीं कुछ समस्याएं भी देखने को मिलीं, खासकर युवा पीढ़ी को. तो आइए समझते हैं इन से कैसे निदान पाएं.

2020 तक विश्व में मल्टीटास्क करते आज के युवा बेशक पुनर्गठित हो चुके हों, और एक अतिस्मार्ट दुनिया के निर्माण में बेहतर तरीके से लगे हों, वे ज्यादा सीख भी रहे हों, किसी भी समस्या के समाधान के लिए ज्यादा जल्द निदान देने वाले हों, लेकिन इस रैपिड मेकैनिकल ऐक्शन का मानवीय दिमाग और मानवीय समाज पर क्या असर पड़ रहा है, यह जानना और होशियार रहना भी क्रांतिकारी रूप से सुधारात्मक कदम होगा. इस बारे में हमारे विशेषज्ञ ऐसी कई जानकारियां और अनुभव हमारे साथ साझा करेंगे जो मल्टी टास्किंग टैक्नो युवाओं को टाइम और लाइफ मैनेजमैंट में बेहतर परिणाम दे सकेंगे.

पहले विशेषज्ञ हैं छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के प्रशासनिक सेवा के तहत रायपुर में डिप्टी कलैक्टर के पद पर सेवारत मनीष मिश्रा. डिप्टी कलैक्टर की जिम्मेदारियों में राजस्व, कानून व्यवस्था, वित्तीय व प्रशासनिक जिम्मेदारियां आती हैं.

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दूसरे विशेषज्ञ हैं गुजरात के अहमदाबाद स्थित कंपनी एपेक्सा स्मार्ट सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरैक्टर मौलिक पटेल. ये वर्षों से आईटी क्षेत्र की बेहतरी, विकास, ट्रेनिंग के व्यवसाय में लगे हैं.

टैक्नोलौजी और युवा

तेजी से विकसित होती आज की दुनिया जहां पूरी तरह टैक्नोसैवी है और टैक्नोलौजी की पैठ स्टडीरूम से ले कर किचन तक, पर्यावरण से ले कर साइंटिस्ट की लैब तक हो गई है, वहां युवाओं के सामाजिक व बौद्धिक आचरण पर भी इस का खासा प्रभाव पड़ा है.

अनोखे तरीके से विकसित इन युवाओं के दिमाग में टैक्नोलौजी का ज्ञान सूचनाओं के माध्यम से हमेशा संकलित है, जबकि दूसरी ओर सामाजिक व्यवहार में ये

पिछड़ रहे हैं. डिप्रैशन, घातक भावनाएं, अदूरदर्शिता की वजह से आज की युवा पीढ़ी को संबंधों को निभाने में तो कठिनाई है ही, जीने की कला में भी उन में समझदारी का अभाव देखा जा रहा है.

गौरतलब है कि टैक्नोलौजी के असंतुलित उपयोगों से कुछ दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जिन्हें इस तरह समझा जा सकता है :

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युवाओं के व्यवहार में जल्दबाजी देखी जा रही है, धैर्य का अभाव भी. वे अपनी सूचनाएं संजोते नहीं हैं, बल्कि इंटरनैट पर निर्भरता की वजह से सब कुछ अपने डिवाइस पर छोड़ देते हैं.

इलैक्ट्रौनिक डिवाइस पर अत्यधिक निर्भरता से युवाओं में गहरे अंतर्ज्ञान का अभाव हो रहा है. जाहिर है वे अपने दिमाग का उपयोग किसी निर्देश पर काम करने वाले आज्ञाकारी की तरह करते हैं. वे आंखें मूंद कर आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस पर भरोसा करते हैं. ये बेहद निर्भरशील हो

जाते हैं.

इंटरनैट पर पूरी तरह निर्भरता की वजह से उन में आमनेसामने की सोशल स्किल न के बराबर रहती है.

घर-परिवार और आसपास की दुनिया से आज के युवा इस कदर कट जाते हैं कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया ही उन के लिए सच बन जाती है. हजारों की भीड़ में बेहद निजी अनुभव तो साझा कर देते हैं लेकिन घर में अपने सब से करीबी से अपने दिल का हाल नहीं कहते.

डिजिटल डिवाइस के रेडिएशन की अपनी खराबी है. इस वजह से युवाओं में कई तरह की क्रोनिक बीमारियां, मसलन आंखों में खराबी, रीढ़ की हड्डी की बीमारी, गरदन का अकड़ना, स्पौंडिलाइटिस, माइग्रेन की समस्या आदि देखी जाती हैं.

युवा में कई बार निराशा अकारण ही पनपने लगती है. वह दैनिक कामों से कतराता है. आलस में सारा दिन और रातभर डूबा अपने डिजिटल डिवाइस में ही जिंदगी ढूंढ़ लेता है. उस की अकर्मण्यता बढ़ती जाती है.

इंसोमेनिया, हाईपरमेनिया, साईकोमीटर डिस्और्डर, अपराधबोध, ध्यान की कमी, आत्महत्या का विचार आदि सैकड़ों किस्म की मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो रही हैं.

सोशल मीडिया और टैक्नोलौजी आज के युवाओं के लिए रीयल लाइफ विकल्प बनता जा रहा है. कोई भी किसी के साथ उस के सोशल मीडिया के प्रोफाइल में जा कर उस से कनैक्ट हो सकता है, चाहे व्यक्ति गलत ही क्यों न हो.

जब आप किसी व्यक्ति को उस के स्वभाव और दिमाग से नहीं जानते और मात्र उस की दी जानकारियों पर भरोसा कर उस से नजदीकी बढ़ाते हैं, तो ठगे जाने की शतप्रतिशत गुंजाइश रहती ही है. साइबर बुलिंग, अपराध, ड्रग, अल्कोहल आदि में सोशल मीडिया के गु्रप से प्रेरित हो कर फंसना और आखिरकार जिंदगी तबाह कर लेना तो आजकल आम है ही. इस के अलावा, युवा हैकिंग के भी शिकार होते हैं. इमोशनल ब्लैकमेलिंग के मामले सामने आते हैं और परिणामस्वरूप आत्महत्या तक नौबत आ जाती है.

इन दुष्परिणामों के मद्देनजर जब हम ने हमारे पहले विशेषज्ञ मनीष मिश्रा से मल्टी टास्किंग युवाओं के बौद्धिक व्यवहार और उन में हो रहे परिवर्तन के फलस्वरूप सामाजिक बदलाव के बारे में पूछा तो उन का कहना था-

‘‘मैं ने अपने कर्मक्षेत्र में इंटरनैट क्रांति का भरपूर लाभ उठाते हुए मानव सेवा और जनहित में ढेरों प्रोजैक्ट बनाए. विक्लांगों, महिलाओं, बच्चों, वृद्धों के लिए न सिर्फ लाभ की योजनाएं पारित कीं, बल्कि जानकारी भी बड़ी सुगमता से लाभ लेने वालों तक पहुंचाई. और यह इंटरनैट सुविधा की वजह से संभव हो पाया.

‘‘युवा चाहे किसी भी प्रोफैशन में जाना चाहें, टैक्नोलौजी के बिना कुछ भी संभव नहीं. प्रशासनिक महकमे में भी टैक्नोलौजी की उतनी ही महत्ता है जितनी अन्य क्षेत्रों में. इस क्षेत्र में भी युवाओं के लिए मौलिकता, रचनात्मकता और संयोजकता यानी कनैक्टिविटी की जरूरत होती है.

‘‘सरकारी कार्यप्रणाली में सोशल मीडिया के महत्त्व को समझने से पहले लोकतंत्र में मीडिया के महत्त्व को समझना होगा. जब मीडिया हमारे देश में चौथा स्तंभ है तब बात सिर्फ कम्युनिकेशन या संवाद की ही नहीं रह जाती, जिम्मेदारी की ज्यादा बन जाती है.

‘‘मीडिया का एक तरह से डिजिटल संस्करण सोशल मीडिया है जो ज्यादा प्रभावशाली इसलिए भी है क्योंकि इस में सूचनाओं और ज्ञान का बेहतर आदानप्रदान होता है. यह दोतरफा माध्यम है, इसलिए फीडबैक तुरंत मिल सकता है. ऐसे में युवा जब सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं तो उन्हें ज्यादा जिम्मेदार और लक्ष्यप्रधान होना चाहिए.’’

मनीष आगे कहते हैं, ‘‘लक्ष्य बनाते समय आगे आने वाली अड़चनों की सूची बना लें. फिर उन्हें एकएक कर दूर करें. जब युवा टैक्नो क्रांति को अपने जीवन का हिस्सा बना चुके हैं तो उन्हें टैक्नोलौजी का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए कम, कैरियर और सफलता के लिए ज्यादा करना चाहिए.’’

दूसरे विशेषज्ञ एपेक्सा कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर मौलिक पटेल हैं. एपैक्सा कंपनी सौफ्टवेयर डैवलपमैंट, ह्यूमन रिसोर्स, रीयल एस्टेट, कंप्यूटर एजुकेशन, डाटा प्रोसैसिंग, आईटी रिसेलिंग और नैटवर्किंग जैसी टैक्नोलौजी आधारित काम देखती है. कंपनी ने देशविदेश में आईटी प्रोडक्ट, क्लाउड, सबस्क्रिप्शन का सफल एंपायर खड़ा किया है. मौलिक पटेल कहते हैं –

‘‘हम सभी जानते हैं कि हर घड़ी तकनीक बदल रही है, विकसित हो रही है. अगर आने वाली टैक्नोलौजी की बात करें तो आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस और रोबोटिक टैक्नोलौजी हमारे जीवन में बहुत ही परिवर्तन लाने वाली होंगी. यही नहीं, ये लगभग हर क्षेत्र में प्रयोग में रहेंगी.

‘‘आज की युवा पीढ़ी का विजुअलाइजेशन पिछली पीढ़ी से बिलकुल अलग होगा. सैंसर और कैमरा इंडस्ट्री भी पूरी तरह बदल जाएगी और टैक्नोलौजी जिंदगी का अहम हिस्सा आज से भी ज्यादा होगी.

‘‘जहां तक सवाल टीन्ज के सोशल मीडिया के प्लेटफौर्म का है, तो इस मामले में कुछ निर्धारित सावधानियों की जरूरत है जिस में अकसर किशोर और कम आयु के युवा चूक जाते हैं. सोशल मीडिया बहुत ही उपयोगी और महत्त्वपूर्ण माध्यम है, लेकिन हां, जब इस का दुरुपयोग होता है तो खतरा बढ़ ही जाता है.

‘‘हम अपना उदाहरण दें, तो हम अपने बिजनैस के लिए सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करते हैं. देशदुनिया के कर्मचारी हम से इसी माध्यम से जुड़े होते हैं. काम से ले कर उपस्थिति तक इसी मीडिया के जरिए सुनिश्चित होती है. महत्त्वपूर्ण यह है कि उपयोग करने वाला क्या सोच रखता है.

‘‘युवाओं और टीन्ज को टैक्नोलौजी का प्रयोग तो करना ही है, बेहतर है कि ये इस का रचनात्मक उपयोग ज्यादा करें. अगर इंटरनैट में जानकारियों की बात करें तो गूगल तो है ही जानकारियों का खजाना, हजारों साइट्स भी हैं जहां आप की पसंद का विषय मिल सकता है. इंटरनैट से आप स्टडी और कैरियर के बारे में बेहतर जानकारी हासिल कर सकते हैं. तो बजाय सोशल मीडिया में गैरजरूरी चैटिंग में वक्त बिताने के आप के लिए यहां कई महत्त्वपूर्ण चीजें करने को होती हैं.’’

सोशल मीडिया पर प्राइवेसी मुद्दे पर मौलिक पटेल का कहना है –

‘‘किशोर और युवा होते बच्चों को सब से बड़ा खतरा हैकर्स को ले कर है. फेक अकाउंट से वे आसानी से टीन्ज की जिंदगी में दखल देते हैं. वे उन की ही उम्र के बन कर उन्हें कई तरह की मुसीबतों में डालते हैं. इस में सैक्सुअल हरैसमैंट से ले कर कई औनलाइन धोखाधड़ी शामिल हैं. इस से बचने के लिए यूजर को चाहिए कि वे अनजाने यूजर से प्राइवेसी शेयर न करे. व्यक्तिगत सूचनाएं गुप्त रखने के लिए कई तरह के उपलब्ध सैटिंग्स का इस्तेमाल करे.

‘‘हैकर्स या गलत लोग कम उम्र के युवाओं के साथ साइकोलौजिक गेम्स खेलते हैं. इस ठगी में न आने के लिए इमोशनल बहाव में न जाएं, क्योंकि सामने वाले के कुछ चैट से उस की पहचान नहीं हो सकती. हमेशा ध्यान में रखें, सफलता और पैसे कमाने के लिए कोई शौर्टकट नहीं है. इसलिए, ऐसे औफर की तरफ ध्यान ही नहीं देना चाहिए.

‘‘आज के युवाओं में डिजिटल डिवाइस के अत्यधिक उपयोग से अकेले रहने की आदत इतनी बढ़ गई है कि उन में मानवीय संवेदना, सामाजिक व्यवहार, अपने आसपास के लोगों के साथ वास्तविक जीवन से संबंधित सार्थक संवाद कम हो गया है.’’

टैक्नो टीन को कुछ अधिक प्राकृतिक और सामाजिक कैसे बनाया जाए. इस सवाल पर मौलिक कहते हैं –

‘‘यह सच है कि बच्चों से ले कर अधेड़ उम्र के लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं. जब आप रियल वर्ल्ड से खुद को अलग करना शुरू कर देते हैं तो आप फ्रस्ट्रेशन, डिप्रैशन के शिकार हो कर खुद को हारा हुआ पाते हैं. वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित हो चुका है कि इलैक्ट्रौनिक में आरएफ, जीएसएम डिवाइसों का ज्यादा प्रयोग आप के शरीर और अंगों को बुरी तरह प्रभावित करता है. जैसे लोग सिगरेट पीते वक्त उस पर लिखी वार्निंग पर ध्यान नहीं देते, वैसे ही वे आईपैड या दूसरी डिवाइस के अत्यधिक प्रयोग के खतरों को भी नजरअंदाज कर देते हैं.

‘‘मूल बात यह है कि अपने करीबी लोगों से संपर्क बनाए रखना, अपनी फिटनैस पर ध्यान देना, अपनी हौबी, स्पोर्ट्स, ट्रैवलिंग आदि के लिए समय निकालना सोशल मीडिया पर अनावश्यक समय बिताने से ज्यादा अच्छा है.’’

स्मार्टनैस लाएं

निस्संदेह 2020 टैक्नो वर्ल्ड होगा जहां टैक्नोसैवी यानी टैक्नोलौजी का अधिक से अधिक प्रयोग करने वाले लोग ही होंगे. तो यह डिजिटल दुनिया जहां वक्त की जरूरत है, वहीं वक्त गंवाने का माध्यम भी बन सकता है. यदि इस का दुरुपयोग किया गया.

पैसे की तरह ही वक्त का भी बजट होता है, इसलिए संभाल कर खर्च करना जरूरी है. लोग अकसर सोशल संदेश को साझा और फौरवर्ड करने, हमेशा एंटरटेन होते रहने में वक्त जाया करते हैं.

जब 2020 से टैक्नो टीन दुनिया पर राज करने वाली है तो क्या टैक्नो डिवाइस से मुंह मोड़ा जा सकता है? नहीं, और ऐसा होना लाजिमी भी नहीं. बस, युवाओं को उचित मार्गदर्शन की जरूरत है ताकि वे अपनी टैक्नो स्किल्स का सार्थकता के साथ बेहतर इस्तेमाल कर सकें.

हमारे विशेषज्ञ टाइम और लाइफ मैनेजमैंट के कुछ गुर बताते हैं, जो ये हैं:  अपने कमरे, फोन और विभाग से वलगर यानी गैरजरूरी चीजें हटाएं. फोन या डिजिटल डिवाइस में एक हद से ज्यादा चैट या मनोरंजन न करें.आनेजाने वालों की लिस्ट में सिर्फ जरूरी लोगों को ही शामिल रखें.खड़े हो कर फोन पर बात करें, जरूरी बातों तक ही खुद को सीमित रखें.

वाल चार्ट, इंडैक्स कार्ड, नोटबुक, कंप्यूटर प्रोग्रामर, पौकेट डायरी, इलैक्ट्रौनिक प्लैनर आदि की सहायता से समय को व्यवस्थित करें.सोशल मीडिया में सभी पोस्ट और बातचीत पर प्रतिक्रिया देने से बचें.

2020 की टैक्नोलौजी में टीन्ज का दबदबा कायम रहे, इस के लिए टैक्नोलौजी के प्रयोग के तरीकों में स्मार्टनैस लाएं.

ऐसा क्यों करता है हमारा शरीर

मानव शरीर रहस्यात्मक हो सकता है. इसलिए कभीकभी बहुत ही उलझनभरी, शर्मिंदा करने वाली या अजीब सी हरकतें हमारा शरीर करता है. आइए, जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है?

हम सब को पता है कि खून का सर्कुलेशन करने के लिए दिल धड़कता है, गरम दिन में पसीना निकलने से शरीर को ठंडक मिलती है. लेकिन हर किसी को यह नहीं पता कि हमें हिचकियां क्यों आती हैं? पांव क्यों सो जाते हैं यो रोंगटे क्यों खड़े हो जाते हैं? क्या सचमुच डर से आप के रोंगटे खड़े होते हैं या इस की कोई और वजह है? पांव के सोने पर वास्तव में आप का शरीर आप को क्या बताने की कोशिश करता है? शरीर में होने वाली इन अजीब बातों का एक तार्किक व चिकित्सकीय कारण होता है.

जानते हैं कुछ ऐसी ही शरीर में होने वाली बातों के बारे में जो कभीकभी आप के लिए शर्मिंदगी का कारण भी बन जाती हैं.

जम्हाई आना : जम्हाई आने को अकसर नींद आने के साथ जोड़ा जाता है. जब भी कोईर् जम्हाई लेता है, हम कहते हैं कि लगता है नींद आ रही है. उस समय कुछ सुस्ती भी महसूस होती है. लेकिन जब आप के शरीर में औक्सीजन की मात्रा कम होती है, तो आप का मुंह काफी बड़ा हो कर खुल जाता है और अधिक औक्सीजन अंदर लेने की कोशिश करता है. जम्हाई लेना खून में कार्बन डाईऔक्साइड और औक्सीजन की मात्रा को नियंत्रित करने का तरीका है. जम्हाई को आने से रोकना असंभव है.

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आंख फड़कना : आंख फड़कना जिस में पलक फड़कती है, एक बहुत ही आम स्थिति है जिस से हमें बहुत असुविधा महसूस होती है और बहुत परेशानी महसूस होती है. यह स्नायु में किसी तरह की गड़बड़ी की वजह से हो सकता है. पर जाना जाता है कि ऐसा तनाव, नींद की कमी, थकावट, कैफीन की अधिक मात्रा लेने से होता है. आंखों पर अधिक जोर पड़ता है तब भी आंख फड़कने लगती है. तनाव को दूर कर के और पर्याप्त नींद व आंखों को आराम देने से इन में आराम मिल जाता है. कौफी और अल्काहोल की मात्रा कम करने से भी इस में आराम मिल जाता है.

हिचकी आना : अगर किसी को हिचकी आती है तो अकसर कहा जाता है कि कोई याद कर रहा है और उसे पानी पीने की सलाह दी जाती है ताकि हिचकी बंद हो जाए. ‘‘अगर आप को बहुत हिचकियां आती हैं तो खाते व पीते समय धीरेधीरे खाएं व पिएं. बहुत जल्दीजल्दी खाने से आप के पेट में सूजन आ जाती है या कहें वह फूल सा जाता है, जिस से आप के डायफ्राम पर असर पड़ता है जो सिकुड़ता है और उस वजह से हिचकियां आती हैं. अगर मुंह खुला रखने की आदत हो तो हवा अंदर जाती रहती है,’’

यह कहना है फोर्टिस हौस्पिटल के फिजीशियन डा. विवेक नांगिया का. भावनात्मक स्थितियों या अचानक तापमान में होने वाले बदलाव की वजह से भी हिचकियां आती हैं. ऐसा होने पर तुरंत पानी पी लेना चाहिए.

रोंगटें खड़े होना : किसी बात को सुन या अचरज से, ब्लैकबोर्ड पर खडि़या के रगड़ने या ईंट सरकाने से शरीर के बाल, खासकर हाथों के रोंगटे, खड़े हो जाते हैं. एक मुहावरा भी है कि ‘डर के मारे रोंगटे खड़े होना.’ ठंड लगने पर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. इंडोगल्फ हौस्पिटल, नोएडा के सीनियर कंसल्टैंट डा. गिरीश वैष्णव के अनुसार, ‘वे नन्हेनन्हे रोएं तब उभर आते हैं जब आप को ठंड लगती है या डर लगता है. असल में वे बचावतंत्र की तरह काम करते हैं. शरीर के प्रत्येक बाल की सतह पर निहित एक छोटी सी मांसपेशी सिकुड़ती है. जब वे एकसाथ सिकुड़ती हैं तो मांस पर एक उभार की तरह लगती हैं. अपने हाथ को रगड़ कर गरमी देने से ये वापस बैठ जाती हैं. इस की वजह है कि बालों के बीच उष्मारोधी (इंसुलेटिंग) हवा को रोक कर उन्हें गरमाई पहुंचाती है. अगर आप के शरीर में अधिक बाल हैं तो वे आप के शरीर को गरम रखने के लिए खड़े रोंगटे हवा को रोक लेंगे.’’

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ऐंठन या क्रैंप पड़ना : अचानक ही बैठेबैठे या सोतेसोते पांव में बल पड़ जाते हैं. यह दर्र्द इतना अधिक होता है कि बरदाश्त करना मुश्किल होता है. अकसर इसे कमजोरी की निशानी समझा जाता है. यह कुछ सैकंड या कुछ मिनटों तक रहती है. मैक्स हौस्पिटल के फिजीशियन डा. अजय गोगिया कहते हैं, ‘‘मांसपेशी में होने वाली ऐसी ऐंठन की कई वजहें हो सकती हैं. कुछ न्यूट्रिएंट्स की कमी, डीहाइड्रेशन से ले कर इलैक्ट्रोलाइट असंतुलन, जो अकसर बहुत अधिक ऐक्सरसाइज करने से होता है, हो सकता है. ये क्रैंप आमतौर पर उन मांसपेशियों में पड़ते हैं जो आप के शरीर में 2 जोड़ों (जौइंट्स) के बीच खिंचती हैं. ये ज्यादातर पांवों के निचले हिस्से, पैरों, बांहों, हाथों और पेट में पड़ते हैं. वर्कआउट करने के बाद कोई पेयपदार्थ ले लें ताकि शरीर फिर से ठीक से काम करने लगे. इस से बचने के लिए अपनी मांसपेशियों की मसाज अवश्य करें. क्रैंप पड़ने पर चलें या पांवों को हिलाएं.’’

पांव सोना : अकसर बहुत देर तक बैठे रहने से पांव में एक झनझनाहट सी महसूस होती है या सुइयां भी चुभती महसूस होती हैं. और हम कहते हैं कि हमारा पांव सो गया है. हम सोचते हैं कि रक्तप्रवाह ठीक से न होने की वजह से पांव सो जाता है. पर ऐसा स्नायु पर बहुत अधिक दबाव डालने से होता है. जैसे ही हम अपने बैठने की स्थिति में बदलाव करते हैं या थोड़ा सा पांव को हिलातेडुलाते हैं तो  वह ठीक हो जाता है. डा. विवेक नांगिया कहते हैं, ‘‘जब किसी भाग पर लगातार दबाव पड़ता है, जैसे जब आप पैर के बल बैठते हैं या एक बांह पर सिर टिका कर लेटते हैं, तो दबाव आप के स्नायु के मार्ग को दबा देता है और इस दबाव का संदेश मस्तिष्क तक भेजता है. चूंकि आप का मस्तिष्क तब यह नहीं बता पाता कि आप क्या करें, इसलिए शरीर के भागों में एक झनझनाहट सी महसूस होती है. ऐसी स्थिति में न बैठें जिस से पैर या हाथ पर दबाव पड़े. सो, बीचबीच में अपनी स्थिति में बदलाव करते रहें.’’ यह स्थिति आप के शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है और खुद ही कुछ पलों के बाद ठीक हो जाती है.

छींक आना : हम सोचते हैं कि केवल ठंड लगने से ही छींक आती है, जबकि ऐसा नहीं है. छींकें गरमी में भी आती हैं. छींक तब आती है जब आप का शरीर नथुने के छेद से किसी खुजली या जलन पैदा करने वाले पदार्थ को बाहर फेंकने की कोशिश करता है. अगर आप को एलर्जी की शिकायत रहती है तो इस की वजह फूलों की खुशूब या धूलमिट्टी भी हो सकती है. अगर आप को जुकाम है तो वायरस को पकड़ने के लिए आप का शरीर श्लेष (म्यूकस) बनाता है और छींक उसे बाहर धकेलने में मदद करती है. डा. गिरीश वैष्णव के अनुसार, ‘‘छींक बेशक आप की नाक से शुरू होती है, पर उसे शरीर के अन्य भागों से बहुत सहयोग  की आवश्यकता होती है. छींक लाने के लिए आप की नाक आप के मस्तिष्क के विशेष भाग को एक संदेश भेजती है (कि आप के शरीर को परेशान करने वाले पदार्थ से छुटकारा पाने का तरीका) जिस के लिए आप की छाती, पेट, गले और आप की आंखों से भी शीघ्र प्रतिक्रिया करनी पड़ती है. जब भी हम छींकते हैं, हमारी आंखें बंद हो जाती हैं, क्योंकि उस के बाद एक राहत सी महसूस होती है.’’

तारे दिखाई देना : अगर आप एक झटके से खड़े हो जाएं, सिर पर कोई वार हो या माइग्रेन से पीडि़त हों, तो हो सकता है कि आप को तारे दिखाई दें. ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर के विभिन्न हिस्सों में खून प्रवाहित होने लगता है. आमतौर पर रोशनी की यह चमक कुछ पलों में अपनेआप ही धुंधला जाती है. लेकिन अगर आप को ये तारे कुछ मिनटों तक दिखाई देते हैं तो आप के आंसू निकलने लगते हैं या रेटिना में छोटेछोटे खून के थक्के जमा हो सकते हैं. ऐसा होने पर तुरंत किसी चिकित्सक की सलाह लें.

कान बजना : ‘तुम्हारे कान बज रहे हैं,’ ऐसा एक मुहावरा भी है. यह तब प्रयोग किया जाता है जब कोई आवाज न सुनाई देने पर किसी को लगे कि कोई बोल रहा है या कुछ आवाज हुई है. लेकिन शरीर में होने वाली इस क्रिया का इस मुहावरे से कोई संबंध नहीं है.डा. अजय गोगिया कहते हैं, ‘‘ऐसा

2 वजहों से होता है जिसे चिकित्सकीय भाषा में टिन्नीटस कहा जाता है. जब आप के कान के अंदर कुछ तरल पदार्थ या इन्फैक्शन होता है, तब आप को लगातार एक आवाज सी आती रहती है जो किसी भौंरे की भिनभिनाहट जैसी होती है. हालांकि, इस का सब से आम कारण है आप की सुनने की स्नायु के माइक्रोस्कोपिक सिरों का क्षतिग्रस्त हो जाना जो अकसर बहुत तेज संगीत सुनने से होता है. इस से बचने के लिए तेज संगीत बजने वाली जगहों पर इयरप्लग्स डाल लें.’’

अकसर मैं देखती हूं कि व्हाट्सऐप या फेसबुक पर पतिपत्नी अपना नाम साथ जोड़ कर लिखते हैं. किसी पार्टी या फंक्शन में जाती हूं तो पतिपत्नी को एक ही प्लेट में खाना खाते देखती हूं. कमर में हाथ डाल कर एकदूसरे के साथ डांस करते देखती हूं. यह सब देख कर मेरा मन काफी उदास हो जाता है क्योंकि मेरे पति ऐसा नहीं करते हैं.

घर में भी इकट्ठा होते तो सगेसंबंधी पति से संबंधित ऐसी ही बातें करते हैं जैसे उन के पति उन को कितना प्यार करते हैं. मसलन, उन के पति उन को साथ लिए बिना बाजार तक नहीं जाते, उन की मरजी के बिना एक कप तक घर में नहीं आता.

मैं यह सब सुन कर परेशान रहती और कुढ़ती रहती कि ये मुझ से उतना प्यार नहीं करते हैं जितना कि औरों के पति अपनी पत्नियों से.

कहीं से भी पतिपत्नी का नजारा देख कर आती तो एक बार इन से अवश्य लड़ती. तब ये कहते, ‘‘प्यार दिखावे की चीज नहीं होती है और मैं तुम को दिल से चाहता हूं, इसे साबित करने के लिए भरी महफिल में तुम्हारे साथ खाना खाने या डांस करने की मुझे जरूरत नहीं है.’’ यह सुन कर मैं कुढ़ कर रह जाती.

फिर एक दिन ऐसा हुआ कि मुझे अनायास ही मछली खाने का मन किया. शाम को जब ये आए तो देखा कि इन के हाथ में मछली है. मैं अचंभित रह गई. फिर एक दिन दोपहर में मेरे बेटे ने लड्डू खाने की फरमाइश की. मैं ने उसे समझा दिया कि पापा आएंगे तो बोल दूंगी लड्डू लाने के लिए. लेकिन आश्चर्य, जब ये आए तो इन के हाथ में लड्डू का डिब्बा था. मेरा मुंह खुला का खुला रह गया.

ऐसी आज तक कितनी बातें जो मेरे मन में आती हैं और ये उसे बिना कहे साकार करते दिखते हैं.ये घटनाएं अब तक मुझे एहसास करा चुकी हैं कि प्यार दिखावे की चीज नहीं होती है, यह तो दिल से होता है. अब मुझे यह मलाल नहीं होता कि मेरे पति मुझ से प्यार

नहीं करते हैं बल्कि यह सत्य लगने लगा है कि मेरे पति मुझ से सच्चा -प्यार करते हैं.

हनीमून: भाग 3

‘बाय मां’, ‘बाय आंटी’ के स्वर के साथ रश्मि का स्वर भी उभरा, ‘‘बायबाय बच्चो, मजे करो.’’

लिफ्ट के सरकते ही सीढि़यों में सन्नाटा सा छा गया. फ्लैट का दरवाजा बंद करते ही ऊपर से आती आवाजों का आभास भी बंद हो गया.

‘छत कौन सी बहुत दूर है, दिन में कई बार तो चक्कर लगेंगे,’ सोचती हुई रश्मि गृहस्थी सहेजनेसमेटने में जुट गई. सुबह से ही मुन्नू के कार्यक्रम की वजह से घर तो यों फैला पड़ा था जैसे कोई आंधीअंधड़ गुजरा हो.

घर समेट कर रश्मि सुपर बाजार का चक्कर भी लगा आई. दाल, चावल, मिर्च, मसाले, कुछ फलसब्जियां सब खरीद ली. डेढ़ बजे तक सबकुछ साफ संजो कर जमा भी दिया. इस बीच किसी भी बच्चे ने एक बार भी मुंह न दिखाया तो रश्मि को कुछ खटका सा लगा. दबेपांव वह ऊपर जा पहुंची और चुपके से अंदर झांका.

पिकनिक पार्टी जोरों पर थी. सीडी प्लेयर पर ‘दिल तो पागल…’ पूरे जोरशोर से बज रहा था. कुछ बच्चे गाने की धुन पर खूब जोश में झूम रहे थे. अनुराग कैमरा संभाले फोटोग्राफर बना हुआ था. ज्यादातर बच्चे मुन्नू और विधा को घेर कर बैठे थे. कोई कुछ कह रहा था, कोई कुछ सुन रहा था. कुल मिला कर समां सुहाना था. अपनी उपस्थिति जता कर बच्चों की मौजमस्ती में विघ्न डालना रश्मि को उचित न लगा, वह प्रसन्न, निश्ंिचतमन के साथ वापस उतर आई और टैलीविजन पर ‘आंधी’ फिल्म देखने बैठ गई.

लगभग साढ़े 4 बजे के करीब फोन की घंटी ने फिल्म का तिलिस्म तोड़ा, ‘‘हैलो,’’ दूसरी तरफ दूसरी मंजिल की शेफाली थी. वह अपनी नन्ही सी बेटी विधा के लिए बहुत चिंतित थी.

‘‘रश्मि, प्लीज एक बार जा कर देख तो आ. बच्चे तो सुबह के चढ़े एक बार भी नहीं उतरे…’’

‘‘अरे, बताया न, मैं ऊपर गई थी. सब बच्चे मजे में हैं. विधा भी खेल रही थी. देखना कुछ ही देर में उतर आएंगे,’’ रश्मि का सारा ध्यान अपनी फिल्म पर था, पर शेफाली अड़ी रही.

‘‘बस, एक सीढ़ी ही तो ऊपर जाना है. एक बार झांक आ न, प्लीज. मैं ही चली जाती पर कुछ लोग आ गए हैं. विधा ने पता नहीं कुछ खाया भी है कि नहीं. मैं तो समझती हूं वह जरूर सो गई होगी.’’

‘‘अच्छा बाबा, जाती हूं,’’ यद्यपि रश्मि को यह व्यवधान बहुत अखरा था फिर भी टीवी बंद कर के चाबी उठा कर चल पड़ी.

दिनभर के खेल से बच्चे शायद थक चुके थे. ऊपर अपेक्षाकृत शांति थी. छोटेछोटे खेमों में बंटे बच्चे आपस में धीरेधीरे बोल रहे थे. रश्मि ने तलाशा पर विधा और मुन्नू कहीं न दिखे. रश्मि की दृष्टि छत का ओरछोर नाप आई, पर मुन्नू और विधा कहीं न दिखे.

तभी बच्चों की नजर उस पर पड़ी और वे उछलनेकूदने लगे.

‘‘अरे, वे दोनों कहां गए,’’ पलभर को उछलकूद बंद हो गई और एकदम खामोशी छा गई. कुछ बच्चे हंसे, कुछ खिलखिलाए कुछ केवल मुसकराए. अजब रहस्यमय समां बंध गया था. रश्मि को अचरज भी हुआ और मन में डर भी लगा. इस बार उस ने कुछ जोर से पूछा, ‘‘कहां हैं मुन्नू और विधा?’’

उस की उत्तेजना पर बच्चे कुछ सकपका से गए. तब सोनाली ने भेद खोल दिया, ‘‘आंटी, हम ने तो उन की शादी कर दी.’’

‘‘क्या?’’ कुतूहल से उस की ओर देखती हुई रश्मि ने पूछा.

‘‘हां आंटी, छोटे में जैसे आप गुड्डेगुडि़यों की शादी करते थे न, वैसे ही…’’ तनय ने बात को और अधिक स्पष्ट किया.

‘‘पार्टी भी हुई आंटी…’’ प्रियज नाश्ते की प्लेट सजा लाया.

‘‘चलो, बड़ा काम निबट गया,’’ रश्मि ने चैन की सांस ली और केक का टुकड़ा खाते हुए बोली, ‘‘वे दोनों हैं कहां?’’

‘‘वे दोनों तो हनीमून पर चले गए.’’

‘‘क्या?’’ केक गले में जा अटका. रश्मि को जोर की खांसी आ गई.

‘‘पर कहां?’’ सहमनेसकपकाने की बारी अब रश्मि की थी. क्या पूछे, शब्द उसे ढूंढ़े न मिल रहे थे कि तभी उस की नजर दूर पानी की टंकी के पार से झांकती दो जोड़ी नन्हीमुन्नी टांगों पर जा पड़ी.

‘‘हूं, नदी के किनारे नहीं तो पानी की टंकी के पार ही सही, पट्ठों ने क्या जगह चुनी है हनीमून के लिए. जरा देखूं तो सही…’’

बच्चों का इरादा भांपते देर न लगी. सभी एक स्वर में बोले, ‘‘आंटी, शेमशेम. आप उधर कैसे जाएंगी?’’ रश्मि भौचक रह गई.

अब इस वर्जना को चुनौती दे कर नए जोड़े की एकांतता में खलल डाल खलनायिका बनने का साहस रश्मि में न था. इसलिए उस ने सहज दिखने का यत्न किया.

‘‘ठीक है, जाती हूं,’’ कंधे उचका कर वह मुसकराई और वापस पलटी. अपनी जीत पर बच्चों ने जोर का हुल्लड़ किया.

बेटा बिना बताए ही हनीमून पर निकल जाए तो मां अपने दिल को

कैसे समझाए, रश्मि से भी रहा न

गया. रेलिंग के साथ लगी सीमेंट की जाली में से अंदर का दृश्य साफ दिखाई दे रहा था.

लहंगा इधर तो चूनर उधर. दुलहन नींद से निढाल थी, पर रोमांच की रंगीनी को कायम रखने के प्रयत्न में दूल्हे ने एकलौते साझे लौलीपौप को पहले खुद चाटा, फिर लुढ़कतीपुढ़कती दुलहन के मुंह में ठूंस दिया.

‘हाय, 21वीं सदी का यह लौलीपौप लव,’ रश्मि सिर पीट कर रह गई, ‘चलूं, शेफाली को उस की बेटी की करतूतें बता दूं तथा लगेहाथ उसे खुशखबरी भी सुना दूं कि अब हम समधिन बन गई हैं,’ यह सोच कर रश्मि शेफाली के घर चल दी.

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