लेखक-आलोक कुमार सिंह

आरएस सेंगर पपीता भारत का एक पाचक, पौष्टिक और पसंदीदा फल है. जिस की खेती देश के अलगअलग हिस्सों में की जाती है. इस की व्यावसायिक बागबानी भारत, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका व अमेरिका महाद्वीप के देशों में की जाती है. इस के फलों का दूध विभिन्न प्रकार के रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है. पपीते में विटामिन ए की मात्रा सारे फलों में आम के बाद दूसरे स्थान पर है. पपीते के पुष्पों को लिंग के आधार पर मुख्यतया नर, मादा व उभयलिंगी प्रकार में बांटा गया है. पपीते की उन्नत खेती करने के लिए अच्छे व स्वस्थ बीज का चुनाव बहुत जरूरी है.

भूमि व जलवायु पपीते की सफल बागबानी के लिए गहरी और उपजाऊ, सामान्य पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी अत्यधिक उपयुक्त मानी गई है. इस की बागबानी के लिए भूमि में जल निकास का होना बहुत जरूरी है. जल भराव इस फसल के लिए काफी नुकसानदायक है. पपीता एक उष्ण कटिबंधीय फल है पर इस की खेती बिहार की समशीतोष्ण जलवायु में कामयाबी से की जा रही है. वायुमंडल का तापमान 10 सैंटीग्रेड से कम होने पर पपीते की वृद्धि, फलों का लगना व फलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है. पपीते की अच्छी बढ़वार के लिए 22 सैंटीग्रेड से 26 सैंटीग्रेड तापमान उपयुक्त पाया गया है. औसत वार्षिक वर्षा 1200-1500 मिलीमीटर सही होती है. पपीते का पकाने समय शुष्क व गरम मौसम होने से फलों की मिठास बढ़ जाती है. उन्नतशील प्रजातियां वर्तमान में भारत में पपीते की कई किस्में विभिन्न प्रदेशों में उगाई जा रही हैं, जिन में प्रमुख रूप से 20 उन्नत किस्में हैं और कुछ स्थानीय व विदेशी किस्में हैं.

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