एक बडे अखबार के जयपुर विशेषांक के पृष्ठ 10 पर प्रकाशित खबर  "नाई, धोबी, मोची, सहित  26 कैटेगरी का सर्वे करवा कर खाद्यान्न में मदद देगी सरकार " शीर्षक से प्रकाशित हुई है

इस खबर पर टिप्पणी करने का उद्देश्य यह नहीं है कि सरकार के खाद्यान्न वितरण के जनसरोकार के कार्य की आलोचना की जाए, बल्कि अखबार के द्वारा चतुराई के साथ  "'मंदिर में पूजापाठ व कर्मकांड वाले पंडितों " को भी नाई, धोबी,  मोची, घरेलू नौकर, भिखारी, रिक्शा चालक, ऑटो चालक, श्रमिक आदि लगभग 40 प्रकार के कैटेगरी को राहत दिए जाने हेतु लिखा गया है.

समाचार पत्र द्वारा खबर प्रकाशन में तो प्रमुखता से नाई ,धोबी, मोची कैटेगरी का उल्लेख किया गया है. इस में हैरानी की बात यह है कि जिस प्रकार से लोकडाउन की वजह से नाई, धोबी, घरों में साफसफाई करने वाले, मोची, नौकर, मजदूरों का , "धंधा" ठप्प हो गया है, की खबर को मद्देनजर रखते हुए प्रमुखता से प्रकाशित किया है, जब कि मंदिर में पूजापाठ व कर्मकांड वाले पंडित को भी मदद की खबर को छुपाने का प्रयास किया गया है.

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जिस प्रकार से नाई, धोबी, मोची, घरेलू नौकर, श्रमिक, थड़ीठेले लगाने वाले या अन्य किस प्रकार से छोटामोटा व्यवसाय करने वाले मेहनतकश लोगों के साथ "मंदिर में पूजापाठ व कर्मकांड वाले पंडितों"' के कार्यों की समान तुलना की जाती है तो पंडितों का व्यवसाय भी "धंधा" ही है, जिस को अब तक यह मनुवादी लोग धर्म के नाम से प्रचारित कर के इस देश के मूलनिवासियों की खूनपसीने की कमाई को चतुराईपूर्वक विभिन्न प्रकार के धार्मिक कर्मकांडों और मंदिरों के देवताओं के नाम चढ़ावे के रूप में हजारों साल से प्राप्त करते आ रहे हैं.

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