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पीपीई पर बेवजह का बवंडर क्यों?

आपदा को अवसर में बदलने की बात अगर पीपीई निर्माण में आत्म निर्भर होने को ले जाकर की जा रही है तो बात चिंता के साथ साथ शर्म की भी है.

21 मई के देश भर के प्रमुख अखबारों में भारत सरकार द्वारा जारी एक इश्तहार छपा था जिसकी शुरुआत ही इन शब्दों से हुई थी कि पिछले 60 दिनों में भारत में 500 से अधिक  पीपीई कवरआल्स निर्माता विकसित हुए हैं जिनकी उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 4 लाख से अधिक है. 20 मार्च 2020 तक देश में पीपीई कवरआल्स का कोई उत्पादन नहीं होता था.

इस गुणगान के बाद इस विज्ञापन में पीपीई की प्रयोगशाला जांच और यूनिक सर्टिफिकेशन कोड की जानकारी दी गई थी जिससे यह यूं ही खामोख्वाह और बेमकसद न लगे. विज्ञापन का इकलौता मकसद लोगों को यह बताना था कि वे गर्व करें क्योंकि पीपीई एकाएक ही भारत में बड़े पैमाने पर बनने लगी है और चूंकि इसके लिए अब हम विदेशों के मोहताज नहीं रह गए हैं इसलिए इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर फख्र करना तो बनता है. 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में इसका जिक्र कुछ इस तरह किया था मानो हमने यूरेनियम की खोज कर ली है जो हमें विश्वगुरु बनाने की तरफ एक अहम कदम है.

दर्जीगिरी है यह –

जिस पीपीई पर बलात गर्व करबाया जा रहा है उसे समझें तो सरकार की बुद्धि और मंशा पर तरस ही आता है. दरअसल में पीपीई यानि पर्सनल प्रोटेक्टिव इकयूपमेंट कोई भारी भरकम तकनीक बाला चिलीत्सीय उपकरण नहीं है जिसमें किसी फेकटरी या विशेषज्ञो की जरूरत पड़ती हो.  आसान शब्दों में कहा जाये तो यह एक तरह का रेनकोट यानि बरसाती सिलने जैसा आइटम है जिसे कोई साधारण दर्जी भी आसानी से छोटे से कमरे में सिल सकता है.  और ऐसा ही अधिकतर जगह हो भी रहा है इसलिए देखते ही देखते सैकड़ों इकाइयां इसकी लग भी गईं.

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पीपीई बनाने एक सिलाई मशीन और कपड़ा या महीन प्लास्टिक, पोलिथीन पर्याप्त है. एक श्रमिक या दर्जी एक दिन में 4-5 पीपीई आसानी से बना सकता है. कोरोना संकट के समय ये पीपीई बहुत महंगी विदेशों से खरीदी गईं थीं जबकि एक अच्छी गुणवत्ता बाली पीपीई की औसत लागत 500 रु भी नहीं आती और यह 800 रु में बिक रही है.

यानि लोकल लोकल ही साबित हो रहा है जिसके कोई तयशुदा दाम और पैमाने नहीं होते. भोपाल के गुलमोहर इलाके में मास्क और पीपीई बनाकर मांग के मुताबिक इन्हे स्थानीय तीन  निजी नर्सिंग होम में सप्लाई कर रहीं तनुजा गोडबोले बताती हैं पीपीई की कीमत कच्चे माल के इस्तेमाल के मुताबिक 250 रु से लेकर 1200 रु तक होती है. तनुजा के मुताबिक इन दिनों मांग बढ़ रही है और सप्लाई कम है.

त्रिपुरा मेडिकल कालेज के एक असिस्टेंट प्रोफेसर अर्कदीप्त चौधरी ने तो बेहद सस्ता मास्क तैयार कर डाला है जिसकी लागत 25 – 30 रु आती है जबकि बाजार में यही मास्क जो पीपीई किट के साथ इस्तेमाल होता है 250 से लेकर 499 रु में मिलता है. दिलचस्प बात यह है कि स्टॉपड्रॉप नाम के इस मास्क को उन्होने  पोलिस्टर पट्टियों और नकाब से मिलाकर तैयार किया है. बक़ौल अर्कदीप्त चौधरी जिस अस्पताल में वे काम करते हैं उसने मास्क का परीक्षण करने के बाद 300 मास्क खरीदे हैं और 2 हजार और मास्क का आर्डर दिया है. तिरूपुर  एक्सपोर्ट एसोशिएशन यानि टीइए के अध्यक्ष राजा शनमुगम के मुताबिक टीइए अभी तक 20 हजार पीपीइ और 10 लाख मास्क बना चुका है हाल ही में 1 लाख मास्क केरल सरकार को मांग पर दिये गए हैं.  टीइए कच्चा माल खासतौर से महाराष्ट्र और गुजरात से ले रहा है जिसका पूरा फायदा दक्षिण भारत की निर्यात इकाइयां उठा रहीं हैं.

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सार ये कि गमछे की ही तरह पीपीई की कीमतों में हर जगह भारी अंतर है.  सूरत की एक कंपनी यूनिवर्सल डिस्पोज़ेबल पर्सनल प्रोटेक्शन ईक्विपमेंट पीपीई 340 रु प्रति नग बेच रही है तो सूरत की ही एक दूसरी कंपनी नायलोन नॉन डिस्पोज़ेबल किट जो दोबारा इस्तेमाल की जा सकती है 1150 रु में बेच रही है. कीमतों में यह अंतर बताता है कि उत्पादक सरकार द्वारा निर्धारित मापदण्डों का उल्ङ्घ्घन कर रहे हैं , इस बाबत भोपाल के एक नामी नर्सिंग होम के एक सीनियर डाक्टर से सवाल किया गया तो वे मज़ाक उड़ाने के अंदाज में बोले ये मापदंड क्या हैं यह किसी को नहीं मालूम और यह भी कि ये हैं भी या नहीं.

कटघरे में सरकार

12 मई के भाषण में नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भरता को जो राग अलापा था उसका एक बड़ा आधार पीपीई ही थी. पीपीई देश में बनने लगे हैं यह अच्छी बात है लेकिन वे किस तरह बन रहे हैं यह ऊपर बताए उदाहरणो से साफ भी होता है. सोचा जाना लाजिमी है कि  सरकार 2014 से क्या कर रही थी जबकि इसे बनाना दुनिया का सबसे आसान काम है तब इस तरफ सरकार का ध्यान  क्यों नहीं गया कि ये चिकित्सीय बरसातियाँ हम देश में भी बना सकते हैं.  यह अदूरदर्शिता और लापरवाही नहीं तो क्या थी और आज कहा जा रहा है कि हमारी इस अदूरदर्शिता और लापरवाही पर ही गर्व कर लो क्योंकि हालफिलहाल गर्व करने लायक कुछ और है नहीं. हालांकि पहले भी नहीं था.

अगर समझदारी दिखाते सरकार पहले से ही पीपीई देश में बना या बनबा रही होती तो कोरोना संक्रमण जाहिर है कम होता , डाक्टर्स और स्वास्थकर्मी कम संक्रमित होते और प्यास लगने पर कुआं खोदने की जरूरत नहीं पड़ती. बात यहीं खत्म हो जाती तो और बात थी लेकिन लोगों की अज्ञानता का फायदा उठाते इसका प्रचार दूसरी गलती या चालाकी है. क्या लोग इस बात पर गर्व करना पसंद करेंगे कि हम गमछों के साथ साथ बरसातियाँ भी सिलने लगे हैं.

दरअसल में कोरोना को लेकर दुनिया की सबसे बुद्धिमान सरकार और उसके मुखिया के पास बताने रोज रोज के बढ़ते संक्रमितों और मौतों के सिवा कुछ है नहीं , हाँ ढकने जरूर काफी कुछ है जिसमें सड़कों पर भूख प्यास से दम तोड़ते प्रवासी मजदूर खास हैं जिन पर पुलिस डंडे दरियादिली से बरसा रही है. इन आंकड़ों और हालातों को पीपीई के गर्व से ढंकने की कोशिश हर्ज की बात नहीं.

क्या पीपीई यानि मेडिकल रेनकोट का निर्माण देश की दम तोड़ चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला देगा इसका जबाब भी शायद ही कोई समझदार नागरिक हाँ में देना पसंद करेगा क्योंकि सफ़ेद झूठ बोलने की और मूर्ख बनाने की कला हर कोई नहीं जानता. ऋषि मुनियों और तपस्वियों के इस महान देश में अगर पीपीई बनना वाकई कोई उपलब्धि की बात है और 6 साल से इसका न बनना कोई अनुपलब्धि नहीं थी तो आइये चूकें नहीं , गर्व करें इस बात पर भी कि हम हथियारों के सबसे बड़े खरीददार हैं पर उन्हें नहीं बना सकते सो कुछ और न सही पीपीई सही, इससे सरकार की लाज (निर्लज्जता नहीं) तो ढकी रहेगी.

लाॅकडाउन: कृति सेनन के लिए बहन नुपुर बनी हेयर ड्रेसर, वीडियो हुआ वायरल

देश में लॉकडाउन के 56 दिन हो गए हैं.इस दौरान हर कलाकार आए दिन कुछ न कुछ वीडियो बनाकर सोषल मीडिया पर पोस्ट करते हुए स्वयं को खबरों में बनाए रखने के प्रयास में लगा हुआ है.कुछ अपने कसरत करने के वीडियो डाल रहे हैं,तो कुछ कूकिंग करने के.पर हर आम इंसान की ही तरह हर कलाकार भी परेषान है.लोग अपने हेयर स्पा सेशन और पेडीक्योर, मैनीक्योर सेवाओं को बहुत ज्यादा याद कर रहे हैं.

लाॅकडाउन के चलते कलाकारों के हेअर ड्ेसर व मेकअप मैने भी अपने अपने घरांे में कैद हैं.मगर फिल्म कलाकारों को तो स्वयं को फिट रखने के साथ ही इस लॉकडाउन के दौरान घर पर रहते हुए भी अपने फैशन व अन्य स्टाइल का ध्यान रखना पड़ रहा है.इसी के चलते हर कलाकार नए नए रास्ते अपना रहा है.कुछ कलाकार अपने वीडियो डाल कर बता रहे हैं कि उनके भाई बहन या उनकी मां या उनके पति या उनकी पत्नी किस तरह उनकी मदद कर रही हैं.

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सोनम कपूर,विक्की कौशल, राधिका आप्टे,आलिया भट्ट,षिल्पा षेट्टी सहित कई कलाकार इस तरह की तस्वीरे व वीडियो सोषल मीडिया पर साझा कर चुके हैं.अब कृति सेनन का एक नया वीडियो वायरल हुआ है,जिसमें कृति सैनन की बहन नुपुर सैनन उनके लिए हेयर ड्रेसर बनकर उनके बालों को  नया हेयर कट देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.हेयर कट के बाद सेनन बहनों के बीच की मजेदार बातचीत भी इस वीडियो का हिस्सा है.दोनों बहनों ने इन मजेदार पलों को साझा करने के लिए इंस्टाग्राम पर यह वीडियो पोस्ट कियरा है,जिसे देखकर लोग अपनी हंसी नही रोक पा रहे हैं.

इस वीडियो पोस्ट को साझा करते हुए जहां कृति ने लिखा ‘‘ तुमने तो मुझे अपनी हंसी और पंजाबी गाने पर बूटी हिलाकर मुझे डरा ही दिया था.जबकि तुम्हारे हाथों में मेरे कीमती बाल थे.‘‘इस पर नुपुर ने जवाब दिया,‘‘ बहन है इसलिए जाने दिया!‘‘ .. भाई होता तो …..‘‘.

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कृति सैनन की बहन नुपुर सैनन भी अभिनेत्री हैं.वह पिछले दिनों एक अनप्लग्ड म्यूजिक वीडियो में नजर आयी थी. इन दिनों वह कुछ फिल्में भी कर रही हैं,जिनको लेकर उन्होने फिलहाल चुप्पी साध रखी है.कृति और नूपुर दोनों मुंबई में अपने परिवार और पालतू जानवर डिस्को और फोएबे के साथ रह रही हैं. लॉकडाउन के दौरान नुपुर संगीत व गायन के साथ कूकिंग में भी हाथ आजमा रही हैं.

लॉकडाउनः कभी करोड़पति थे Satish kaul,अब भुखमरी के चलते मांगी मदद

कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से सारे काम काज ठप पड़े हुए हैं.जिसके चलते  कई फिल्म व टीवी कलाकारों को भी भुखमरी व आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है.कोरोना के ही दौर में  अमिताभ बच्चन,देवानंद,विनोद खन्ना  व दिलीप कुमार सहित कई दिग्गज कलाकारो के साथ हिंदी व पंजाबी की तीन सै से अधिक फिल्मों और ‘महाभारत’सहित करीगन 15 टीवी सीरियलों में अभिनय कर चुके मशहूर अभिनेता सतीश कौल आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.

जी हाॅ!बी आर चोपड़ा निर्मित सीरियल‘‘महाभारत’’में देवराज इंद्र का किरदार निभा चुके अभिनेता सतीश कौल अपनी उम्र के 67 वें पड़ाव पर जबरदस्त आर्थिक तंगी से जूझ रहे है.इसे महज संयोग कहा जाए या कुछ और कि इन दिनों वही ‘महाभारत’सीरियल एक साथ दूरदर्शन के अलावा ‘कलर्स’,‘स्टार भारत’,डीडी रेट्ो सहित दूसरे चैनलांे पर प्रसारित हो रहा है,मगर सतीश कौल द्वारा सार्वजनिक रूप से मदद की गुहार लगाए जाने के तीन दिन बाद भी उनकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है.जबकि सतीश कौल सीरियल‘महाभारत’के अलावा अमिताभ बच्चन,दिलीप कुमार,गोंवदा, सुभाष घई,अनिल कपूर सहित कई कलाकारांे के संग ‘कर्मा’,‘अंाटी नंबर वन’,‘राम लखन’ जैसी  हिंदी और पंजाबी की तीन सौ से अधिक फिल्मो ंमें अभिनय कर चुके हैं.

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एक समाचार एजंसी से बात करते हुए 66 वर्षीय अभिनेता सतीश कौल ने अपनी ब्यथा और आर्थिक ंतंगी की मुसीबत का जिक्र करते हुए कहा है-‘‘मैं लुधियाना में एक छोटे से किराए के मकान में रह रहा हूं.मैं इससे पहले लुधियाना के एक वृद्ध आश्रम में रह रहा था.मेरी सेहत ठीक है लेकिन लॉकडाउन के चलते हालात खराब हो गए हैं.लॉकडाउन के चलते मेरी मुश्किलें कई गुना बढ़ गईं हैं. मुझे घर का किराया देने,दवाइयां और राशन वगैरह खरीदने के धन की सख्त जरूरत है.मुझे एक छोटे से मकान का हर माह साढ़े सात हजार रूपए किराया देना पड़ता है.मैं लोगों से मदद की गुहार लगा रहा हूंू.अपना सब कुछ गंवा देने और बीमार होने के बाद सरकार से पांॅच लाख रूपए की मदद मिली थी.मगर धीरे-धीरे यह रकम मकान का किराया देने,इलाज और दवाइयों में खर्च हो गए.’’

कुछ वर्ष पहले सतीश कौल को गिरने की वजह से ‘हिप बोन फै्रक्चर’ (कूल्हे की हड्डी में फ्रैक्चर) का शिकार होने पर चंडीगढ़ के अस्पताल में भर्ती होना पड़ा.ढाई वर्ष अस्पताल में रहने के बाद वह डेढ़ वर्ष तक लुधियाना के एक वृद्धाश्रम में भी रहे.इस बीमारी की मार से वह आज तक उबर नहीं पाए हैं.सूत्रों के अनुसार वह आज भी अपने पैरों पर खड़े होकर चलने-फिरने में असमथर््ा हैं.8 सितंबर 1954 को कमीर मे ंजन्में सतीश कौल की जिंदगी हमेशा तूफान से जूझते हुए ही बीती है.पुणे फिल्म संस्थान से जया भादुड़ी,डैनी डेंगजोग्पा,आशा सचदेव, अनिल धवन जैसे कई कलाकारों के साथ अभिनय का प्रशिज्ञण लेने के बाद सतीश कौल ने पंजाबी फिल्मों में बतौर हीरो काम करना षुरू किया था.फिर वह हिंदी फिल्मों से भी जुडे,मगर हिंदी में उन्हे आशातीत सफलता नही मिली.जबकि बाॅलीवुड में उनके कई दोस्त थे और उन्होंने दिलीप कुमार, देव आनंद,विनोद खन्ना,गोविंदा सहित कई बॉलीवुड के सुपर स्टार कलाकारों के साथ फिल्में की.एक वक्त वह था जब उनकी गिनती करोड़पति कलाकारों में हुआ करती थी.पर आज किस्मत उन्हे कंगाली में जीने पर मजबूर कर रही है.

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उनकी पत्नी भी उनका साथ छोड़कर बेटे के साथ दक्षिण अफ्रीका  चली गयी थी.लगभग 25 साल पहले माता-पिता के कैंसर के इलाज के लिए उन्होंने ढाई लाख रुपये में मुम्बई में वर्सोवा स्थित अपना फ्लैट बेच दिया था.बाकी बचे पैसों से छोटी बहन की शादी भी कराई.उसके बाद हिंदी फिल्मों और सीरियलों में कोई काम न मिलने पर वह 2011 में मुंबई को हमेशा के लिए अलविदा कह कर लुधियाना,पंजाब चले गए थे.जहां उन्होंने भागीदारी में अभिनय स्कूल खोलकर बच्चो को अभिनय का प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया था,जिसमें उन्हे काफी नुकसान उठाना पडा था.कुछ वर्ष पहले सत्या रानी नामक एक महिला के साथ उनके रिष्ते को लेकर काफी कुछ कहा गया था.वैसे सूत्र बताते हैं  कि पिछले छह वर्ष से यही महिला उनके साथ है.

अपरिमित: अमित ने क्यूं कहा अपनी पत्नी को थैंक्यू? भाग 1

लेखिका-Meha gupta

” दरवाज़ा खुलने की आवाज़ के साथ ही हवा के तेज़ झोंके के संग बरबैरी पर्फ़्यूम की परिचित ख़ुशबू के भभके ने मुझे नींद से जगा दिया .” तुम ऑफ़िस जाने के लिए तैयार भी हो गए और मुझे जगाया तक नहीं .” मैने मींची आँखों से अधलेटे ही अमित से कहा .” तुम्हें बंद आँखों से भी भनक लग गई की मैं तैयार हो गया हूँ .” अमित ने चाय का कप मेरी और बढ़ाते हुए कहा . भनक कैसे ना लगती ..यह ख़ुशबू मेरे दिलो दिमाग़ पर छा मेरे वजूद का हिस्सा बन गई है . मैंने मन ही मन कहा.

” थैंक्स डीयर !”
” अरे , इसमें थैंक्स की क्या बात है . रोज़ तुम मुझे बेड टी देती हो , एक दिन तो मैं भी अपनी परी की ख़िदमत में मॉर्निंग टी पेश कर ही सकता . “उसके इस अन्दाज़ से मेरे लबों पर मुस्कुराहट आ गई .
” बुद्धू चाय के लिए नहीं कह रही .. थैंक्स फ़ॉर एवरीथिंग .. जो कुछ आज तक तुमने मेरे लिए किया है .” कहते हुए सजल आँखों से मैं अमित के गले लग गई . चाय पीकर वो मुझे गुड बाय किस कर ऑफ़िस के लिए निकल गया . उसके जाने के बाद भी मैं उसकी ख़ुशबू को महसूस कर पा रही थी . मैंने एक मीठी सी अंगड़ाई ली और खिड़की से बाहर की ओंर देखने लगी .कल रात देर तक काम करते हुए मुझे अपने स्टडी रूम में ही नींद लग गई .

अगले हफ़्ते राजस्थान एम्पोरीयम में मेरी पैंटिंग्स और मेरे द्वारा बने हैंडीक्राफ़्ट्स की एग्ज़िबिशन थी . साथ में मैं अपनी पहली किताब भी लॉंच करने जा रही थी . कल रात देर तक काम करते हुए मुझे अपने स्टडी रूम में ही नींद लग गई .अमित ने मेरे स्टडी रूम के तौर पर गार्डन फ़ेसिंग रूम को चुना था . उसे पता है मुझे खिड़कियों से कितना लगाव है . ये खिड़कियाँ ही हैं जिनके द्वारा मैं अपनी दुनिया में सिमटी हुए भी बाहर की दुनिया से और मेरी प्रिय सखी प्रकृति से जुड़ी रहती हूँ . बादलों के झुरमुट से , डेट पाम की झूलती टहनियों से , अरावली की हरीभरी पहाड़ियों से मेरा एक अनजाना सा रिश्ता हो गया है .
‘अपरिमित ‘ ये ही तो नाम रखा है , मैंने अपनी पहली किताब का . अतीत की वो पगली सी स्मृतियाँ आज अरसे बाद मेरे ज़ेहन में सजीव होने लगी .

हम तीन भाई बहन है . अन्वेशा दीदी , अनुराग भैया और फिर सबसे छोटी मैं यानि परी . दीदी और भैया शाम को स्कूल से लौटने के बाद अपना बैग पटक आस – पड़ौस के बच्चों के साथ खेलने के लिए निकल जाते वहीं मुझे अपने रूम की खिड़की से उन सबको खेलते हुए निहारने में ही ख़ुशी मिलती . मैं हम तीनों का ख़याल रखने के लिए रखी गई लक्ष्मी दीदी के आगे – पीछे घूमती रहती . कभी वो मेरे साथ लूडो , स्नेक्स एंड लैडर्स खेलती तो कभी हम दोनों मिलकर मेरी बार्बी को सजाते . अन्वेशा दीदी बहुत ही चुलबुली स्वभाव की थी और उसका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी कमाल का था जिससे वह किसी को भी अपनी तरफ़ आकर्षित कर लेती थी . स्कूल , घर और आस – पड़ौस में सबकी चहेती थी . अनुराग भैया और मैं ट्विन्स थे . वे खेल – कूद , पढ़ाई सब में अव्वल रहते . उन्होंने कभी नम्बर दो रहना नहीं सीखा था . उन्होंने जन्म के समय भी मुझसे बीस मिनट पहले इस दुनिया में क़दम रख मेरे बड़े भाई होने का ख़िताब हासिल कर लिया था . मैं उन दोनों के बीच मिस्मैच सी लगती . मैं उन्हें देखकर अक्सर सोचती मैं ऐसी क्यों नहीं हो सकती . मम्मी – डैडी मुझे भी उन दोनों के जैसा बनाने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते .” आज तो मेरी छोटी गुड़िया ही अंकल को वो नई वाली पोयम सुनाएगी .” डैडी आने वाले मेहमानों के सामने प्रस्तुति के लिए मुझे ही आगे करते . पर मेरा सॉफ़्टवेर विंडो ६ था जिससे मेरी प्रोग्रैमिंग बहुत स्लो थी .जबकि मेरे दोनों भाई – बहन विंडो टैन थे , बहुत ही फ़ास्ट आउट्पुट और मैं कुछ सोच पाती उससे पहले पोयम हाज़िर होती और मैं मुँह नीचा किए अपने नाख़ून कुरेदती रह जाती .

एक दिन मैंने मम्मा को टीचर से फ़ोन पर बात करते सुना ,” मैम इस बार इंडेपेंडेन्स डे की स्पीच अनामिका से बुलवाइए , मैं चाहती हूँ उसका स्टेज फीयर ख़त्म हो .” टीचर के डर से मैंने स्पीच तो तैयार कर ली पर स्पीच देने से एक रात पहले मैं अपनी दोनों बग़ल में प्याज का टुकड़ा दबाए सो गई ( मैंने कहीं पर पढ़ रखा था कि प्याज़ को बग़ल में डालने से फ़ीवर हो जाता है .) जिससे दूसरे दिन मैं स्कूल ना जा पाऊँ .पर मेरी युक्ति असफल रही और दूसरे दिन ना चाहते हुए भी मुझे स्कूल जाना पड़ा . जिस समय मैंने स्पीच बोल रही थी वातावरण में सर्दियों की गुलाबी धूप खिल रही थी . स्टेज पर चढ़ते ही मेरे हाथ – पैर काँपने लगे थे , सर्दी की वजह से नहीं भय और घबराहट के मारे .

शाम को टीचर का फ़ोन आया था , कह रही थी आपकी बेटी ने कमाल कर दिया .”सुनकर मम्मा ने मुझे गले से लगा लिया . प्याज़ के असर से तो नहीं पर स्टेज फीयर से मुझे तेज़ फ़ीवर ज़रूर हो गया था .
मम्मा लैक्चरार थी . दोपहर को घर आकर थोड़ी देर आराम कर दूसरे दिन के लैक्चर की तैयारी में लग जाती .रात में अक्सर मैंने डैडी को मम्मा से कहते सुना था ,” अनामिका दिन ब दिन डम्बो होती जा रही है जब देखो गुमसुम सी घर में घुसी रहती है . उन दोनों को देखो घर , स्कूल दोनों में नम्बर वन .”
मैं उन लोगों से कहना चाहती थी मैं गुमसुम नहीं रहती हूँ … मैं अपने आप में बहुत ख़ुश हूँ . बस मेरी दुनिया आप लोगों से थोड़ी अलग है .धीरे – धीरे मुझ पर ‘डम्बो ‘ का हैश टैग लगने लगा था . जाने अनजाने मेरी तुलना दीदी और भैया से हो ही जाती थी . पर डैडी भी हार मानने वालों में से नहीं थे . उन्होंने मुझे हॉस्टल भेजने का फ़ैसला कर लिया .माउंट आबू के सोफ़िया बोर्डिंग स्कूल में मेरा अड्मिशन करवा दिया गया . वहाँ मैं सबसे ज़्यादा लक्ष्मी दीदी को मिस करती थी पर अब मैंने छिपकर रोना भी सीख लिया था . अब वह लाल छत वाला हॉस्टल ही मेरा नया आशियाना बन गया था . मुझे एक बात की तसल्ली भी थी की अब मैं गाहे बगाहे दीदी भैया से मेरी तुलना से तो बची .

वहाँ रहते हुए मुझे पाँच साल हो गए थे . मुझमें अंतर सिर्फ़ इतना आया था कि अब मेरा हैश टैग डंबो से बदलकर घमंडी और नकचढ़ी हो गया . जहाँ पहले मेरी अंगुलियाँ एकांत में किसी टेबल , किताब या अन्य किसी सतह पर टैप करती रहती थी वो अंगुलियाँ घंटों पीयानो पर चलने लगी . आराधना सिस्टर ने ही मुझे पीयानो बजाना सिखाया था . मुझे वो बहुत अच्छी लगती थी . जब कभी मै अकेले में बैठी अपने विचारों में डूबी रहती तो वे एक किताब मेरे आगे कर देती . उन्होंने ही मुझमे विश्वास जगाया था तुम जैसी हो , अपने आप को स्वीकार करो . मुझे अपनी ज़िंदगी में ‘कुछ’ करना था .. पर उस कुछ की क्या और कैसे शुरुआत करूँ और कैसे अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाऊँ यह पहेली सुलझ ही नहीं पाती थी .

मेरे अंतर्मुखी स्वभाव के चलते मैं अपने द्वारा बुने कोकुन से बाहर आने की हिम्मत ही नहीं कर पा रही थी । यही नहीं औरों के सामने स्वयं को अभिव्यक्त करना और अपनी बात रखना मेरे लिए लोहे के चने चबाने के बराबर था . इसी कश्मकश में मै स्कूल पूरी कर कॉलेज में आ गई . आगे की पढ़ाई के लिए मुझे बाहर जाना था पर मैं माउंट आबू छोड़कर नहीं जाना चाहती थी . सिस्टर की प्रेरणा से ही ,मैंने कॉरसपॉन्डन्स से ग्रैजूएशन कर लिया और स्कूल में ही लायब्रेरीयन की जॉब करने लगी थी .

 द्वेष,अशिक्षा,अंधविश्वास के त्रिकोण में हत्या

इंसान द्वेअंधविश्वास के  फेरे में फंसकर किस तरह अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेता है उसका ज्वलंत दृश्य इन दिनों छत्तीसगढ़ में देखा गया. जहां एक महिला ने अपने हाथों से एक मासूम की जिंदगी ले ली और अपनी जिंदगी  भी तबाह कर ली. उसने एक मासूम की हत्या कर बाकी जिंदगी जेल की सींखचों  में गुजारने का इंतजाम कर लिया.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 21 अप्रैल 2020 को कोरोना  लॉक डाउन के समय अपने देवर देवरानी की नन्ही बच्ची को पानी की टंकी में डाल हत्या करने का अपराध किया और अंततः पुलिस के हाथ चढ़ गई. पुलिस के अनुसार  माना टेमरी में हुये 1 साल की  बच्ची की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि उसकी बड़ी मां ने ही की थी. यह संपूर्ण कहानी है ऐसी महिला की जो अंधविश्वास और झाड़-फूंक के चक्कर में पड़कर एक जघन्य अपराध कर बैठती है.उसकी चाहत थी एक बच्चे की और जब लंबा समय बीत जाने के बाद भी उसे औलाद नहीं हुई तो द्वेष जलन और अशिक्षा अंधविश्वास में पड़कर उसने एक बड़ा कदम उठाया जो  उसे अपराध के अंधेरे की ओर धकेलता चला गया.

 औलाद की चाहत में द्वेष

अक्सर हम किस्से कहानियों में पढ़ते हैं  किस तरह  छोटी-छोटी बातों पर  महिलाएं  जलन और द्वेष  की आग में जलती रहती है और अपनी जिंदगी परिवार  को तबाह कर देती है. इसका सीधा वास्ता है अशिक्षा  और अंधविश्वास से. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आरोपी महिला राजेश्वरी साहू ने खुद की संतान नहीं होने के द्वेष में  हत्या जैसी घटना को अंजाम दिया. इस पूरे मामले का खुलासा सिविल लाईन  में एडिशनल एसपी ग्रामीण तारकेशवर पटेल और सीएसपी अभिषेक माहेश्वरी ने किया और बताया कि किस तरह महिला ने नन्हे मासूम बच्चे को पानी की टंकी में डालकर उसकी हत्या कर दी.

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घटना 21 अप्रैल के माना के टेमरी  गांव  की है.माना पुलिस को सूचना मिली थी कि टेमरी के एक घर के पानी टंकी में एक साल की बच्ची की लाश मिली हैै. शिकायत के बाद मौके पर पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और इस मामले को हत्या से जोड़कर जांच शुरू की गयी. परिवार वालों ने इस हत्या के पीछे बच्ची की बड़ी मां पर संदेह जताया . इसके बाद पुलिस ने राजेश्वरी से पूछताछ प्रारंभ  की. जैसा कि होता है पहले तो उसने  पुलिस को गोलमोल जवाब देकर गुमराह करना चाहा मगर  जब कड़ाई से पूछताछ की गयी तो जल्द ही हत्या करने की बात कबूल कर पुलिस के समक्ष सब कुछ सच-सच बता दिया. महिला राजेश्वरी साहू ने पुलिस को जो सच बताया वह सोचने पर मजबूर करता है फिर ऐसे अपराध ना हो इसके  लिए जागरूक भी करता है.

मृतक बच्ची की मां नीलम साहू के  अनुसार  सुबह अपनी एक वर्षीय पुत्री गीतांजली  को दूध पिलाकर र सुलाया था. कुछ समय पश्चात बालिका के कमरे से गायब हो  जाने से घर के सभी परिजन खोजबीन कर रहे थे, खोजबीन के दौरान घर के छत में प्लास्टिक की पानी टंकी जिसका ढक्कन बंद था एवं उसके उपर एक लकडी का बडा गुटका रखा हुआ था खोलकर देखने पर मृतका गीतांजली  को पानी टंकी अंदर पाये जाने से जीवित होने की उम्मीद पर परिजन इलाज हेतु मेकाहारा अस्पताल लेकर गये. जहां डाक्टर द्वारा बच्ची को मृत होना बताया गया.दिनांक घटना को आरोपी  नहाने का बहाना कर बाथरूम चली गई फिर  मृतका की मां नीलम साहू भी  जब  पुत्री को कमरे में सुला कर दूसरे बाथरूम में नहाने हेतु  गयी इसी समय   आरोपी राजेश्वरी साहू ने  दूधमुही गीतांजली  को उठाकर घर के उपर छत में ले गयी तथा सोते हुये स्थिति में जीवित ही उसे पानी टंकी में डालकर ढ़क्कन बंद कर दिया.

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पुलिस के समक्ष  हत्या की स्वीकारोक्ति करते हुए  बालिका  की हत्यारी कथित बड़ी मां ने पुलिस को बताया कि उसकी एक भी संतान नहीं थी, इसे लेकर वो कई बार झाड़ फूंक और डाॅक्टरी इलाज भी करा चुकी थी. तीन साल होने के बाद भी बच्चे नहीं होने से वो काफी परेशान थी और इसी के चलते  उसके मन में बच्ची के प्रति जलन और द्वेष की भावना पैदा हुई. आरोपी महिला के खिलाफ भादवि की धारा 302 के अधीन  हत्या का मामला दर्ज कर  उसे जेल भेज दिया गया है.

अपरिमित: क्या था अमित का पत्नी के लिए सरप्राइज? भाग 3

“ सरप्राइज़ कैसा लगा ?”
मैं निशब्द थी . समझ नहीं आ रहा था कैसे रीऐक्ट करूँ . जब कभी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने में ज़ुबान असक्षम हो जाती है तो आँखें इस काम को बखूबी अंजाम देती है . मेरी आँखें अविरल बहने लगी .
“ तो ये तुम्हारी और मम्मी की मिली भगत थी ना ? बट ऐनीवेज़ …! आई ऐम फ़ीलिंग ब्लेस्ड़ …”
बस उस दिन के बाद मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा . मैंने अपनी कला को अपने जुनून और करीयर में बदल दिया . मैंने हॉबी क्लासेस शुरू कर दी . मेरी शुरुआत दो तीन बच्चों से हुई थी , बढ़ते – बढ़ते यह संख्या सौ के पास आ गई . ख़ाली समय में मैं पैंटिंग्स बनाने लगी और बरसों से घुमड़ती मेरी भावनाओं को शब्दों का रूप देने के लिए मैंने एक किताब लिखनी भी शुरू कर दी .

अगर आज मैं आत्मनिर्भर बन पाई ख़ुद की एक पहचान बना पाई तो उसका पूरा श्रेय अमित को जाता है . नहीं तो मैं ख़ुद अपने अंदर की खूबियों को कभी जान ही नहीं पाती .
हम दोनो नितांत अलग व्यतित्व थे . वह आईफ़ोन टेन की तरह , स्मार्ट और फ़ास्ट जिसका कवरेज एरिया अनंत में फैला था . और मैं नब्बे के दशक का कॉर्डलेस फ़ोन जिसका सिमटा हुआ सा कवरेज एरिया है . मैं स्वयं ही अपनी डिजिटल उपमा पर मुस्कुरा उठी . यह अमित की सौहबत और मौहब्बत का ही तो असर था .
मैं जैसी भी थी उसने मुझे स्वीकार किया . हमेशा मेरी भावनाओं को समझा , ख़ुद को मुझमें ढालने की कोशिश की कभी मुझे बदलने की कोशिश नहीं की . बल्किं मेरी कमियों को मेरी ताक़त बनाया .
हवा के तेज झोंके से विंड चाइम की घंटियों की आवाज़ से मैं विचारों की दुनिया से बाहर लौट आई . एग्ज़िबिशन की सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थी . सारी आइटम्स को फ़िनिशिंग टच देने में मुझे समय का पता ही नहीं चला .
शाम घिरने को आई थी और अमित ऑफ़िस से लौटकर आ चुके थे . मैं बहुत खुश थी . उसे देखते ही मैं उसके गले से लग गई .
“ ये सब तुम्हारी वजह से ही मुमकिन हुआ है . तुम्हारे बिना मैं बिलकुल अधूरी हूँ . अब हम अमित और परी नहीं रह गए हैं . एक दूसरे में गुँथ कर ‘अपरिमित’ बन गए हैं .” मैंने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा .
अमित ने अपनी बाँहों के घेरे को थोड़ा ओंर मज़बूत कर लिया . मुझे लग रहा था मैं उसमें , उसके अहसासों में , उसके प्यार में सरोबार हो उसमें समाती चली जा रही हूँ .
किसी ने सच ही तो कहा है ,विवाह की सफलता इसी में है कि शादी के बाद पति – पत्नी एक दूसरे की कमज़ोरियों को परे रख और एक – दूसरे के लिए अपने – अपने कम्फ़र्ट ज़ोन से निकलकर ही तो मैं और तुम से हम बन जाते हैं .

अपरिमित: अमित के पार्टी परिंदे ग्रुप का क्या था राज? भाग 2

लेखिका-Meha gupta

इसी दरमियान मेरी मुलाक़ात अमित से हो गई . हमारी स्कूल में कन्सट्रक्शन का काम चल रहा था वह सिविल इन्जिनियर था . इसी सिलसिले में अक्सर उसका हॉस्टल आना होता था . उसने आज तक कसकर बंद किए मेरे दिल के झरोखों को खोलकर उसके एक कोने में अपने लिए कब जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला .
” क्या आप मेरे साथ कॉफ़ी शॉप चलेंगी ?” वीकेंड पर वह अक्सर मुझसे पूछता . उसकी आँखों में मासूम सा अनुनय होता जिसे मैं ठुकरा नहीं पाती थी . हम दोनों एक – दूसरे के साथ होते हुए भी अकेले ही होते क्योंकि उस समय भी मैं ख़ुद में ही सिमटी होती बिल्कूल ख़ामोश .. कभी टेबल पर अंगुली से आड़ी – टेडी लकीरें खींचते हुए तो कभी मेन्यू कार्ड में पढ़ने की असफल कोशिश करते हुए .
“तुम अमित से शादी कर लो ,अच्छा लड़का हैं तुम्हें हमेशा ख़ुश रखेगा .” एक शाम सिस्टर ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा . सारी रात मैं सो नहीं पाई थी . बाहर तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी और एक तूफ़ान सारी रात मेरे मन के भीतर भी घुमड़ता रहा था . मैंने सुबह होते ही अमित को वॉट्सैप कर दिया ,” मैं धीमी , मंथर गति से चलती सिमटी हुई सी नदी के समान हूँ और तुम अलमस्त बहते वो दरिया जिसका अनंत विस्तार हैं . हम दोनों बिलकुल अलग है . तुम मेरे साथ ख़ुश नहीं रह पाओगे . ”
” नदी की तो नियति ही दरिया में मिल जाना है और दरिया का धर्म है नदी को अपने में समाहित कर लेना . बस तुम्हारी हाँ की ज़रूरत है बाक़ी सब मेरे ऊपर छोड़ दो .” तुरंत अमित का मैसेज आया . जैसे वो मेरे मेसिज का ही इंतज़ार कर रहा था . मम्मा पापा को भी इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था . सादगीपूर्ण तरीक़े से हमारी शादी करवा दी गई .
मे के महीने में गरमी और क्रिकेट फ़ीवर अपने शबाब पर थे . अमित सोफ़े पर औंधे लेटे हुए चेन्नई सुपर किंग्स और मुंबई इंडीयंज़ की मैच का मज़ा ले रहे थे . इतने में मोबाइल बजने लगा . रंग में भंग पड़ जाने से अमित ने कुछ झुँझलाते हुए कुशन के नीचे दबा फ़ोन निकाला पर मैंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए और वह बात करने दूसरे रूम में चला गया . मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना ज़रूरी फ़ोन किसका है कि वो धोनी की बैटिंग छोड़कर दूसरे बात करने चला गया वो भी अकेले में .
“ किसका फ़ोन था ?” उसके आते ही मैंने उत्सुकता से पूछा .
“ ऐसे ही .. बिन ज़रूरी फ़ोन था .” संक्षिप्त सा उत्तर दे वो फिर से टीवी में मगन हो गया . मैंने फ़ोन उठाकर रीसेंट कॉल्ज़ लिस्ट देखी , उस पर मनन नाम लिखा हुआ था . स्क्रीन पर कई सारे अन्सीन वॉट्सैप मेसजेज़ भी थे . मैंने वाँट्सैप अकाउंट खोला वो सब मेसजेज़ ‘ पार्टी परिंदे ग्रूप ‘ पर थे . मुझे बड़ा रोचक नाम लगा .
“ अमित ये पार्टी परिंदे क्या है ? “
“ कुछ नही .. हमारा फ़्रेंड्ज़ ग्रूप है जो वीकेंड पर क्लब में मिलते है .”
“ मनन का फ़ोन क्यों आया था ? “
“ मै लास्ट संडे नहीं गया था तो पूछ रहा था कि शाम को आऊँगा की नहीं .”
“ तो तुमने क्या जवाब दिया ?”
“ मैंने मना कर दिया . अब प्लीज़ मुझे मैच देखने दो .”
“ तुमने मना क्यों कर दिया ? तुम मुझे अपने दोस्तों से नहीं मिलवाना चाहते ..”
“ वहाँ सब लोग तेज म्यूज़िक पर डान्स फ़्लोर पर होते हैं .. मुझे लगा तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लगेगा . “ इतनी देर में पहली बार अमित ने टीवी पर से नज़रें हटाकर मुझपर टिकाई थी . मैं भावुक हो गई . और मन ही मन सोचने लगी मैं तो आजतक यही सुनती आई हूँ कि शादी के बाद लड़की को अपनी पसंद – नापसंद , शौक़ , अरमान ताक पर रखने पड़ते हैं पर यहाँ तो फ़िज़ाओं का रुख़ बदला हुआ सा था .
“ कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है , और जब इतना क़ीमती तोहफ़ा हो तो जान भी हाज़िर है . एनीथिंग फ़ॉर यू .. जाना ,”कहते हुए उसने मेरी आँखों से ढुलकते आँसूओं को अपनी हथेली में भर लिया .
शाम छः बजे तैयार होकर मैं अमित के सामने खड़ी हो गई . ब्लैक ईव्निंग गाउन में ग्लैमरस लुक में वो मुझे अपलक देखता ही रह गया .
“ मै पूछ सकता हूँ , बेमौसम कहाँ बिजली गिराने का इरादा है ? कहते हुए वह मुझे अपनी बाँहों में भरने लगा तो मैंने हँसते हुए उसे पीछे धकेल दिया .
“ रात को मैं करूँ शर्मिंदा .. मैं हूँ पार्टी परिंदा ..” मैंने अदा से डान्स करते हुए कहा . मेरे इस नए अन्दाज़ से वो बहुत ख़ुश लग रहा था .
राजपूताना क्लब हाउस में बनाव श्रिंगार से तो मैं अमित के दोस्तों से मैच कर रही थी जिसमें कई लड़कियाँ भी थी ,पर मन को कैसे बदलती . वहाँ सब लोग लाउड म्यूज़िक के साथ डान्सिंग फ़्लोर पर थिरक रहे थे . कुछ देर तो मैं भी उन जैसा बनने की कोशिश करती रही . फिर थोड़ी देर बाद खिड़की के पास लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गई और अपने स्लिंग की चैन को अपनी अंगुलियों पर घुमाने लगी . उस दिन के बाद मुझे दुबारा उस क्लब में जाने की हिम्मत नहीं कर पाई ना कभी अमित ने मुझे चलने के लिए कहा .
शादी के कुछ दिनों बाद ही अमित की बर्थडे थी . मैं बहुत दिनों से उसकी एक पेंटिंग बनाने में लगी हुई थी । मैंने वह पेंटिंग और एक छोटी सी कविता बना उसके सिरहाने रख दी .सुबह उठकर मै किचन में अमित की पसंद का ब्रेकफ़ास्ट बनाने में जुटी हुई थी .
“ ये पेंटिंग तुमने बनाई है ?” अमित ने पीछे से आकर मुझे बाँहों में भरते हुए पूछा .
“ हाँ .. कोई शक ? “
“ नहीं तुम्हारी क़ाबिलियत पर कोई शक नहीं , पर स्वीटी मुझे लगता है तुम्हारे हाथ ये चाकू नहीं बल्कि पैन और ब्रश पकड़ने के लिए बने है . उसने मेरे हाथ से चाकू लेते हुए कहा .
” मम्मा का फ़ोन आया था वो दो – तीन दिन के लिए मुझे अपने पास बुला रही हैं .” एक दिन उसके ऑफ़िस से आते ही मैंने कहा .
“ मेरी जान के चले जाने से मेरी तो जान ही निकल जाएगी .
” ज़्यादा रोमांटिक होने की ज़रूरत नहीं है . टीवी , लैपटॉप और वेबसिरीज़ .. इतनी सौतन है तो मेरी तुम्हारा दिल लगाने के लिए .” मैंने बनावटी ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा .
” ओके! पर प्रॉमिस मी , अपने बर्थ्डे के दिन ज़रूर आ जाओगी . .” उसकी बर्थडे के अगले हफ़्ते ही मेरी बर्थडे थी . शादी के बाद अमित से बिछुड़ने का ये पहला मौक़ा था . किसी ने सही कहा है इंसान की क़ीमत उससे दूर रहकर ही होती है . तीन दिन मम्मा के पास बिता मैं मेरे बर्थडे वाली शाम को वापिस आ गई . मेरे घर पहुँचने से पहले ही अमित मुझे रिसीव करने के लिए बड़ा सा लाल गुलाब का गुलदस्ता लिए लॉन में खड़ा था . मुझे देखते ही मुझे बाँहों में भर लिया और फिर गोदी में उठा मुझे गेस्ट रूम तक लेकर गए . वहाँ का नज़ारा देखकर मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था .. वहाँ होम थीएटर की जगह स्टडी टेबल ने और अमित के मिनी बार की जगह बुक शेल्व्स ने ले ली थी . मैं इन सब बदलावों को छूकर देखने लगी कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही .

कामिनी आंटी : भाग 1

विभा को खिड़की पर उदास खड़ा देख मां से रहा नहीं गया. बोलीं, ‘‘क्या बात है बेटा, जब से घूम कर लौटी है परेशान सी दिखाई दे रही है? मयंक से झगड़ा हुआ है या कोई और बात है? कुछ तो बता?’’ ‘‘कुछ नहीं मां… बस ऐसे ही,’’ संक्षिप्त उत्तर दे विभा वाशरूम की ओर बढ़ गई.

‘‘7 दिन हो गए हैं तुझे यहां आए. क्या ससुराल वापस नहीं जाना? मालाजी फोन पर फोन किए जा रही हैं… क्या जवाब दूं उन्हें.’’ ‘‘तो क्या अब मैं चैन से इस घर में कुछ दिन भी नहीं रह सकती? अगर इतना ही बोझ लगती हूं तो बता दो, चली जाऊंगी यहां से,’’ कहते हुए विभा ने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘अरे मेरी बात तो सुन,’’ बाहर खड़ी मां की आंखें आंसुओं से भीग गईं. अभी कुछ दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से अपनी इकलौती लाडली बेटी विभा की शादी की थी. सब कुछ बहुत अच्छा था. सौफ्टवेयर इंजीनियर लड़का पहली बार में ही विभा और उस की पूरी फैमिली को पसंद आ गया था. मयंक की अच्छी जौब और छोटी फैमिली और वह भी उसी शहर में. यही देख कर उन्होंने आसानी से इस रिश्ते के लिए हां कर दी थी कि शादी के बाद बेटी को देखने उन की निगाहें नहीं तरसेंगी. लेकिन हाल ही में हनीमून मना कर लौटी बेटी के अजीबोगरीब व्यवहार ने उन की जान सांसत में डाल दी थी.

पत्नी के चेहरे पर पड़ी चिंता की लकीरों ने महेश चंद को भी उलझन में डाल दिया. कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि ‘‘हैलो आंटी, हैलो अंकल,’’ कहते हुए विभा की खास दोस्त दिव्या ने बैठक में प्रवेश किया. ‘‘अरे तुम कब आई बेटा?’’ पैर छूने के लिए झुकी दिव्या के सिर पर आशीर्वादस्वरूप हाथ फेरते हुए दिव्या की मां ने पूछा.

‘‘रात 8 बजे ही घर पहुंची थी आंटी. 4 दिन की छुट्टी मिली है. इसीलिए आज ही मिलने आ गई.’’

‘‘तुम्हारी जौब कैसी चल रही है?’’ महेश चंद के पूछने पर दिव्या ने हंसते हुए उन्हें अंगूठा दिखाया और आंटी की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘विभा कैसी है? बहुत दिनों से उस से बात नहीं हुई. मैं ने फोन फौर्मैट करवाया है, इसलिए कौल न कर सकी और उस का भी कोई फोन नहीं आया.’’ ‘‘तू पहले इधर आ, कुछ बात करनी है,’’ विभा की मां उसे सीधे किचन में ले गईं.

पूरी बात समझने के बाद दिव्या ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह तुरंत विभा की परेशानी को समझ उन से साझा करेगी.

बैडरूम के दरवाजे पर दिव्या को देख विभा की खुशी का ठिकाना न रहा. दोनों 4 महीने बाद मिल रही थीं. अपनी किसी पारिवारिक उलझन के कारण दिव्या उस की शादी में भी सम्मिलित न हो सकी थी.

‘‘कैसी है मेरी जान, हमारे जीजू बहुत परेशान तो नहीं करते हैं?’’ बड़ी अदा से आंख मारते हुए दिव्या ने विभा को छेड़ा. ‘‘तू कैसी है? कब आई?’’ एक फीकी हंसी हंसते हुए विभा ने दिव्या से पूछा.

‘‘क्या हुआ है विभा, इज समथिंग रौंग देयर? देख मुझ से तू कुछ न छिपा. तेरी हंसी के पीछे एक गहरी अव्यक्त उदासी दिखाई दे रही है. मुझे बता, आखिर बात क्या है?’’ दिव्या उस की आंखों में देखते हुए बोली. अचानक विभा की पलकों के कोर गीले हो चले. फिर उस ने जो बताया वह वाकई चौंकाने वाला था.

विभा के अनुसार सुहागरात से ही फिजिकल रिलेशन के दौरान मयंक में वह एक झिझक सी महसूस कर रही थी, जो कतई स्वाभाविक नहीं लग रही थी. उन्होंने बहुत कोशिश की, रिलेशन से पहले फोरप्ले आदि भी किया, बावजूद इस के उन के बीच अभी तक सामान्य फिजिकल रिलेशन नहीं बन पाया और न ही वे चरमोत्कर्ष का आनंद ही उठा पाए. इस के चलते उन के रिश्ते में एक चिड़चिड़ापन व तनाव आ गया है. यों मयंक उस का बहुत ध्यान रखता और प्यार भी करता है. उस की समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे. मांपापा से यह सब कहने में शर्म आती है, वैसे भी वे यह सब जान कर परेशान ही होंगे.

विभा की पूरी बात सुन दिव्या ने सब से पहले उसे ससुराल लौट जाने के लिए कहा और धैर्य रखने की सलाह दी. अपना व्यवहार भी संतुलित रखने को कहा ताकि उस के मम्मीपापा को तसल्ली हो सके कि सब कुछ ठीक है. दिव्या की सलाह के अनुसार विभा ससुराल आ गई. इस बीच उस ने मयंक के साथ अपने रिश्ते को पूरी तरह से सामान्य बनाने की कोशिश भी की और भरोसा भी जताया कि मयंक की किसी भी परेशानी में वह उस के साथ खड़ी है. उस के इस सकारात्मक रवैए का तुरंत ही असर दिखने लगा. मयंक की झिझक धीरेधीरे खुलने लगी. लेकिन फिजिकल रिलेशन की समस्या अभी तक ज्यों की त्यों थी.

कुछ दिनों की समझाइश के बाद आखिरकार विभा ने मयंक को काउंसलर के पास चलने को राजी कर लिया. दिव्या के बताए पते पर दोनों क्लिनिक पहुंचे, जहां यौनरोग विशेषज्ञ डा. नमन खुराना ने उन से सैक्स के मद्देनजर कुछ सवाल किए. उन की परेशानी समझ डाक्टर ने विभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कह कर मयंक से अकेले में कुछ बातें कीं. उन्हें 3 सिटिंग्स के लिए आने का सुझाव दे कर डा. नमन ने मयंक के लिए कुछ दवाएं भी लिखीं.

कुछ दिनों के अंतराल पर मयंक के साथ 3 सिटिंग्स पूरी होने के बाद डा. नमन ने विभा को फोन कर अपने क्लिनिक बुलाया और कहा, ‘‘विभाजी, आप के पति शारीरिक तौर पर बेहद फिट हैं. दरअसल वे इरैक्शन की समस्या से जूझ रहे हैं, जो एक मानसिक तनाव या कमजोरी के अलावा कुछ नहीं है. इसे पुरुषों के परफौर्मैंस प्रैशर से भी जोड़ कर देखा जाता है.

‘‘इस समय उन्हें आप के मानसिक संबल की बहुत आवश्यकता है. आप को थोड़ा मजबूत हो कर यह जानने की जरूरत है कि किशोरावस्था में आप के पति यौन शोषण का शिकार हुए हैं और कई बार हुए हैं. अपने से काफी बड़ी महिला के साथ रिलेशन बना कर उसे संतुष्ट करने में उन्हें शारीरिक तौर पर तो परेशानी झेलनी ही पड़ी, साथ ही उन्हें मानसिक स्तर पर भी बहुत जलील होना पड़ा है, जिस का कारण कहीं न कहीं वे स्वयं को भी मानते हैं. इसीलिए स्वेच्छा से आप के साथ संबंध बनाते वक्त भी वे उसी अपराधबोध का शिकार हो रहे हैं. चूंकि फिजिकल रिलेशन की सफलता आप की मानसिक स्थिति तय करती है, लिहाजा इस अपराधग्रंथि के चलते संबंध बनाते वक्त वे आप के प्रति पूरी ईमानदारी नहीं दिखा पाते, नतीजतन आप दोनों उस सुख से वंचित रह जाते हैं. अत: आप को अभी बेहद सजग हो कर उन्हें प्रेम से संभालने की जरूरत है.’’ विभा को काटो तो खून नहीं. अपने पति के बारे में हुए इस खुलासे से वह सन्न रह गई.

क्या ऐसा भी होता है. ऐसा कैसे हो सकता है? एक लड़के का यौन शोषण आदि

औफिस जाते समय रास्ते में बरतें सावधानी

पिछले दो महीने से सभी लोग घरों में बंद थे, पर अब लॉकडाउन में जैसेजैसे रियायत मिल रही है, लोग अपने कार्यस्थल पर जाने के लिए घरों से निकलने लगे हैं. ऐसे में इस बात की जानकारी होना जरूरी है कि अपने ऑफिस तक पहुंचने के लिए आप को क्या हिदायत बरतनी चाहिए.

विश्व स्वास्थ्य संगठन बता चुका है कि जब हम ज्यादा तेज सांस लेने वाले काम करते हैं तो कोरोना वायरस के शरीर में प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है.

तेज सांस लेने से होती है मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी

दो मिनट तेज सांस लेने से मस्तिष्क में ऑक्सीजन की मात्रा 40 प्रतिशत तक कम हो जाती है. वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि तेज सांस लेने से शारीरिक कोशिकाओं में ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड का संतुलन बिगड़ता है. ऑक्सीजन की मात्रा घटते ही कोशिकाएं कम ऊर्जा का निर्माण करती हैं, जिस से थकावट होने लगती है और ध्यान भटकता है.

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गहरी सांस, तनाव घटाती है

गहरे और तेजतेज श्वास लेने को अकसर लोग एक ही बात मानते हैं, जबकि गहरी सांस लेना एक सधी हुई शारीरिक क्रिया है. इस से शरीर के इम्यून फंक्शन में सुधार होता है, ब्लडप्रेशर का स्तर घटता है, जिस से तनाव पैदा करने वाले हार्मोन भी घटते हैं और अच्छी नींद आती है.

कोरोना वायरस का बढ़ता खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि ज्यादा तेज श्वास लेने से शरीर में कोरोना वायरस के प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है. इस का कारण यह है कि तेजतेज सांस लेने के कारण किसी संक्रमित व्यक्ति के मुंह से निकले या किसी वस्तु पर मौजूद संक्रमित ड्रॉपलेट शरीर में तेजी से प्रवेश करते हैं.

सामाजिक दूरी बना कर चलें

हमेशा मास्क लगा कर ही घर से बाहर निकलें और पैदल चलते समय दूसरों से छह कदम यानी दो फिट की दूरी बना कर चलें.

* शारीरिक दूरी बना कर चलने से स्वाभाविक रूप से आप सामान्य गति से चलेंगे और तेज सांस नहीं लेनी पड़ेगी.

* दफ्तर जाने के लिए घर से 10-15 मिनट पहले निकलें. ऐसा करने से हड़बड़ी नहीं होगी.

* दफ्तर जाते समय कानों में ईयरफोन का इस्तेमाल न करें, ऐसा करने से आप स्वच्छता के नियमों के प्रति लापरवाह हो जाएंगे.

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* अगर आप के इलाके में बस या कैब चलने लगी हैं तो परिवहन संबंधी सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए ही चलें.

* बाइक या कार से दफ्तर जा रहे हैं तो मास्क लगा कर ही जाएं, चेकिंग प्वाइंट पर जांच में पुलिस का सहयोग करें.

* दफ्तर में थर्मल जांच कराएं, आईकार्ड पहनें ताकि पहचान की समस्या न आए.

* ऑफिस में लिफ्ट के इस्तेमाल से बचें, अगर लिफ्ट में पहले ही कोई मौजूद है तो उस में प्रवेश न करें. उंगली के बजाय कोहनी से बटन दबाएं.

* दफ्तर में काम के दौरान भी मास्क का इस्तेमाल करें, अपने कुलीग से बात करते समय चेहरे को बिल्कुल सामने रखने से बचें.

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