उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पौराणिक काल के उस संत की तरह लगते है जिसे बात बात पर गुस्सा आता है और श्राप देने को तत्तपर दिखते हैं. आज के समय में वो श्राप भले ही ना दे सकते हो पर मुकदमा कायम करा कर जेल जरूर भेजने की ताकत रखते हैं. उनका यह गुस्सा बार बार देखने को मिलता है कभी वह किसी आंदोलनकारी को जेल भेजने का काम करते हैं तो कभी धरना प्रदर्शन के नुकसान से क्षतिपूर्ति के लिए जेल भेज दे की धमकी देते है.
योगी आदित्यनाथ ऐसे मुख्यमंत्रियों में शामिल हो गए है जिनको अपनी पुलिस पर सबसे अधिक यकीन है उनके लिए पुलिस उस चाबी की तरह है जो हर ताला खोल सकती है. पुलिस हर ताला खोल लेती हो या नहीं पर वह मन में एसी गांठ जरूर डाल देती है जिसकी क्षतिपूर्ति आने वाले भविष्य में नहीं हो पाती है.
साख बचाने में जुटी भाजपा :
मजदूरों को बस के द्वारा लाने के लिए जब कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश सरकार के सामने 1000 बसों का परमिट दिए जाने की बात की तब योगी सरकार और उसके अफसरों ने इसमें हर तरीके से अड़ंगा लटकाने का काम शुरू कर दिया .
कभी यह कहा गया की फिटनेस टेस्ट के लिए नोएडा से पहले बसे लखनऊ लाई जाए उसके बाद वह मजदूरों को लाएं जब इस बात का विरोध शुरू हुआ और इसकी कोई आवश्यकता समझ नहीं दिखी, तब योगी सरकार के अफसरों ने नया पैंतरा अपनाया और बसों का फिटनेस नोएडा और गाजियाबाद में देने को कहा.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार के अफसरों ने कांग्रेस को चिट्ठी लिखकर कहा कि वह 1000 बसों की सूची भेजें इसके साथ ही साथ बसों के चालक और परिचालक का पूरा विवरण भेजे.
जब कांग्रेस ने यह सूची भेज दी. तब उनमें यह देखा गया कि कुछ बसों के नंबर की जगह दूसरे वाहनों के नंबर लिख दिए गए. इस पर नियम कानून की बात करके बसों को लाने अनुमति नहीं दी गई.
कोंग्रेस इस बात को बारबार दोहराती रही कि जिन 800 से अधिक बसों के कागजात सही पाए गए है उनकी अनुमति दी जाए. इसके विपरीत उत्तर प्रदेश सरकार ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह पर आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ हजरतगंज थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया.
पुलिस ने संदीप सिंह पर आरोप लगाया कि उन्होंने जानबूझकर गलत नंबर दिए और उत्तर प्रदेश सरकार को गुमराह करने की कोशिश की.
सोशल मीडिया पर भक्त सक्रिय
बसों के नंबर की जगह पर दूसरी गाड़ियों के नंबर आने की बात सोशल मीडिया में भाजपा समर्थित लोगों के द्वारा तेजी से वायरल की गई . जिससे यह बात स्थापित की जा सके कि कांग्रेस बसों से मजदूरों को लाने की बात केवल राजनीतिक फायदे के लिए कर रही है उसका मजदूरों से कोई लेना-देना नहीं दरअसल यह रणनीति बहुत दिनों से चल रही है भाजपा पर जैसे ही कोई आरोप लगता है उसके पक्ष में माहौल बनाने वाले लोग ऐसा साबित करते हैं जैसे भाजपा पर आरोप लगाना ही गलत हो और आरोप लगाने वाला निजी स्वार्थ बस कर रहा हो इसको लेकर कई बार सोशल एक्टिविस्ट और मीडिया कर्मियों पर सोशल मीडिया के जरिए हमले किए जाते रहे है. यही नहीं कई बार पत्रकारों को सही मामले उजागर करने के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को जेल :
बसों के जरिए मजदूरों को लाने कार्यक्रम में लगे उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार ‘लल्लू’ को उत्तर प्रदेश सरकार ने हिरासत में ले लिया. अजय कुमार ‘लल्लू’ आगरा सीमा पर पहुंचकर बसों के रोके जाने का विरोध कर रहे थे. पहले दिन पूरा समय कांग्रेस और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच रस्साकशी में बीत गया. दूसरे दिन भी कांग्रेस और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच रस्साकशी जारी है. मजदूर इस प्रयास में है कि कैसे उनको अपने घर जाने का मौका मिले.
मुखर हो रहे मजदूर
भारतीय जनता पार्टी ये आरोप लगा रही है कि कांग्रेस मजदूरों के नाम पर राजनीति कर रही है उसका मजदूरों को घर तक पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है. भारतीय जनता पार्टी की एक बात मॉन भी ली जाए तो सवाल ये उठता है की लॉक डाउन के 60 दिन बीत जाने के बाद भी मजदूर सड़कों पर विवश होकर पैदल चलने और दुर्घटनाओं का शिकार होने के लिए मजबूर क्यों हो रहा है ?
असल मे भारतीय जनता पार्टी सरकार मजदूरों के प्रति भेदभाव और सामंतवादी व्यवहार कर रही है. एक तरफ हो विदेशों से हवाई जहाज पर लोगों को बैठा कर अपने देश वापस लाया जा रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार कोटा राजस्थान से बसों में सम्मान पूर्वक बैठा कर छात्रों को अपने घर वापस ला रही है. दूसरी तरफ गरीब मजदूरों को अपने घर वापस लाने के लिए किसी तरीके के साधन की व्यवस्था नहीं की जा रही है. बस और ट्रेन में सफर करने पर उनसे टिकट लिया जा रहा है. यही नहीं भाजपा की ही कर्नाटक जैसी सरकार ने तो मजदूरों को घर जाने से रोकने के लिए पहले से बुक ट्रेन कैंसिल कर दी . और साबित किया कि मजदूर आज भी बंधुवा मजदूर ही है.
देश मजदूरों की हालत देख रहा है ऐसे में भाजपा का यह व्यवहार उसके सामंतवादी चरित्र को दिखा रहा है जिसका परिणाम मजदूरों पर पड़ रहा है और वह मुखर होकर जोरदार तरीके से इस सरकार के सामंतवादी व्यवहार का विरोध कर रहे हैं. आजादी के बाद पहली बार मज़दूर बिना किसी नेता के पूरे देश मे अपने बल पर अपनी आवाज उठा रहे हैं. जिसकी अनदेखी शासन सत्ता को भारी पड़ेगी.