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अच्छी मिट्टी से मिले अच्छी पैदावार

स्वस्थ मिट्टी और उस की उर्वरा ताकत ही अच्छी उपज का आधार है. इस के बगैर खेती के तमाम उपाय, मेहनत और पूंजी बेकार हो सकती है. आज देश के ज्यादातर इलाकों में ज्यादा फसलों के उत्पादन, रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत और उस की उर्वरा ताकत दोनों को काफी नुकसान हो रहा है. इस का बुरा असर फसलों के उत्पादन पर पड़ने लगा है. लंबे समय तक अच्छी और ज्यादा उपज पाने के लिए समयसमय पर मिट्टी की जांच कराना जरूरी है. जांच रिपोर्ट के आधार पर ही खादों का इस्तेमाल किया जाए, तो मिट्टी और किसान की बल्लेबल्ले हो सकती है.

किसानों को यह समझना होगा कि उम्दा और ज्यादा फसल पाने के लिए उन्नत बीज, अच्छी खाद, सही तरीके से सिंचाई और उन की मेहनत व पूंजी ही काफी नहीं हैं. नियमित रूप से मिट्टी की जांच कर उस का उपचार करते रहने से ही किसान अच्छी उपज पा सकता है. मिट्टी की जांच और उस के उपचार की जानकारी ज्यादातर किसानों को नहीं है और जिन्हें इस की जानकारी है भी तो वे गंभीरता से नहीं लेते हैं.

कुछ किसानों से बातचीत करने पर यही पता चलता है कि उन्हें मिट्टी की सेहत के बारे में जरा भी पता नहीं है. बिहार के नालंदा जिले के किसान दिनेश कुमार कहते हैं कि वे बस यही जानते हैं कि खाद और पानी डालने से फसल अच्छी होती है.

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कृषि वैज्ञानिक वेदनारायण सिंह कहते हैं कि किसानों को मिट्टी की सेहत के प्रति जागरूक होने की जरूरत है. मिट्टी 2 तरह की होती है, एक अम्लीय और दूसरी क्षारीय. क्षारीय (ऊसर) मिट्टी 3 तरह की होती है, एक क्षारीय, दूसरी लवणीय और तीसरी लवण वाली क्षारीय. मिट्टी की समयसमय पर जांच करवा कर जांच रिपोर्ट के अनुसार उस का उपचार कर फसलों की पैदावार और मुनाफे में कई गुना ज्यादा इजाफा कर सकते हैं.

अगर किसी खेत की मिट्टी में अम्ल की मात्रा बहुत ज्यादा हो जाए, तो उसे अम्लीय मिट्टी कहते हैं और उस को चूने से सुधारा जा सकता है. प्रति हेक्टेयर 2-3 टन चूना डाल कर अम्लीय मिट्टी को दुरुस्त किया जा सकता है.

5 सालों में सिर्फ एक बार ही खेतों में चूना डालें. अन्य अम्लीय मिट्टी में नाली बना कर 4-5 क्विंटल चूना हर साल प्रति हेक्टेयर डाल कर बेहतर उपज पाई जा सकती है.

मिट्टी जांच रिपोर्ट के आधार पर ही चूने का इस्तेमाल करना चाहिए. लवणीय मिट्टी को सुधारने के लिए खेत से पानी को निकालने की व्यवस्था मजबूत बनानी होगी. मेंड़ को ऊंचा कर पानी को मिट्टी में लगा रहने दें. इस से मिट्टी में लगा लवण घुल जाएगा. उस के बाद उस पानी को नाली के जरीए बाहर निकाल देने से मिट्टी दुरुस्त हो जाती है.

इसी तरह से अगर मिट्टी में क्षारीयता आ जाती है, तो उसे ठीक करने के लिए पानी की निकासी को ठीक करने के साथ जिप्सम, गंधकीय प्रेसमड (चीनी मिल का पदार्थ), कंपोस्ट व पाइराइट डालने की जरूरत होती है. किस खेत की मिट्टी में कि?तना मिट्टी सुधारक डालना है, यह मिट्टी की जांच के बाद ही तय किया जा सकता है.

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औसतन प्रति हेक्टेयर 50 क्विंटल प्रेसमड या 200 क्विंटल कंपोस्ट की जरूरत होती है. बरसात से पहले मिट्टी जांच रिपोर्ट के आधार पर खेत में पाइराइट या जिप्सम को छिड़क कर पाटा चला दें. एक हफ्ते बाद गहरी सिंचाई कर दें. इस से मिट्टी की क्षारीयता बहुत हद तक कम हो जाती है, जिस से मन मुताबिक फसल की उपज पाई जा सकती है.

कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा 3 साल पर हर खेत की मिट्टी की जांच कराएं और खाद की मात्रा जरूर तय करवाएं. एक एकड़ से ज्यादा बड़े खेत में से 2-3 जगहों से मिट्टी का नमूना जांच के लिए लेना चाहिए.

अगर खेत के किसी हिस्से में फसल की उपज में फर्क हो या मिट्टी के रंग में अंतर हो या मिट्टी के भारीपन में फर्क हो या ऊसर हो तो उस भाग का अलग नमूना लें.

ऊसर वाली मिट्टी की पापड़ी का नमूना अलग से लें और इस के नीचे की मिट्टी की गहराई का अलगअलग नमूना जमा कर जांच के लिए निकालें.

खेत से खरपतवार हटा कर करीब आधा किलोग्राम मिट्टी प्लास्टिक या कपड़े के थैले में जमा करें.

जिस थैली में मिट्टी रखी गई है, उस पर किसान का नाम, गांव का नाम, खेत में उपजाई जाने वाली फसल का नाम, सिंचाई व्यवस्था, खेत का नंबर और पता, उर्वरक पर खर्च की जाने वाली रकम को एक कागज पर लिख कर चिपका कर जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजना चाहिए. मिट्टी के नमूने को जांच के लिए कृषि विश्वविद्यालय की मिट्टी जांच प्रयोगशाला में ही भेजें और कृषि अफसरों की सलाह को जरूर मानें.

बिहार की इस बेटी की तारीफ अमेरिका के राष्ट्रपति की बेटी इवांका ने क्यों की

बिहार के प्रवासी मजदूरों की दर्दभरी दास्तान को पूरा देश देख रहा है . भूखेप्यासे मजदूर जान बचाने के लिए किस तरह कंधे पर गठरियां लादे बिहार चल पङे यह कोरोना वायरस से भी अधिक पीङा पहुंचाने वाली बात है .

इस दर्द को वे ही समझ सकते हैं जिन्होंने इसे झेला है . लेकिन इसी बीच बिहार की एक खबर ने जहां बेटियों की हौसलों की नई तसवीर पेश की है, वहीं इस घटना ने बिहार की सियासी माहौल को भी गरमा दिया है . वह भी तब जब राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और सभी सियासी दलों के बीच चुनाव जीतने की होङ मची है .

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गुरूग्राम से दरभंगा

ताजा मामला बिहार की रहने वाली ज्योति नाम की 15 वर्षीय एक लङकी की है, जिस ने गुरूग्राम से दरभंगा लगभग 1200 किलोमीटर तक की यात्रा साइकिल से पूरी की और न सिर्फ खुद बल्कि अपने पिता को साइकिल पर पीछे बैठा कर घर पहुंच गई . ज्योति ने इस साहसिक यात्रा को सिर्फ 7 दिनों में पूरा कर लिया .

यों जिस देश में धर्म और पाखंड हावी हों, हर चीज और काम को अंधविश्वास से जोङ कर देखा जाता हो, वहां सदियों से महिलाओं को दोयम दरजे का माना जाता रहा है . यह विडंबना ही है कि जिस देश के तथाकथित लोग दुर्गा को देवी मान कर पूजते हैं, उसी देश की करोङों बेटियों को इसलिए शिक्षा से वंचित रखा जाता है ताकि ताउम्र उस पर पाबंदियां लगाई जा सकें, उन्हें मर्दों का गुलाम बना कर रखा जा सके . मगर ज्योति ने अपने जज्बे और साहस से यह बता दिया कि आज की बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं .

हार नहीं मानी

दरअसल, पूरे देश में लागू लौकडाउन के बीच गुरूग्राम में एक कंपनी में काम करने वाले ज्योति के पिता एक हादसे के बाद जख्मी हो गए थे . वे खुद बिहार अपने गांव जाने की स्थिति में नहीं थे . लिहाजा, जब ज्योति ने अपने पिता से कहा कि वह खुद उन्हें साइकिल पर बैठा कर दरभंगा ले जाएगी तो एक पिता के तौर पर उन्होंने यही समझा कि यह बेटी का उन के प्रति प्रेम है . मगर जब ज्योति ने अपने पिता को घर ले जाने की ठान ली तो वे मान गए . फिर दोनों 10 मई को गुरूग्राम से दरभंगा की दूरी नापने के लिए निकल पङे . साइकिल पर पीछे बैठे एक पिता को भी तब पूरा यकीन हो गया था कि बेटी किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानेगी .

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7 दिनों की वह यात्रा

1200 किलोमीटर की लंबी यात्रा पूरी करने में ज्योति को 7 दिन लगे . आखिरकार ज्योति 16 मई को घर पहुंची लेकिन रास्ते में तमाम कठिनाइयों के बाद ज्योति ने वह कर दिखाया जो लगभग नामुमकिन सा था .

ज्योति दिनभर साइकिल चलाती और रात को वे किसी पैट्रोलपंप पर रूक जाते . अहले सुबह यह यात्रा फिर शुरू हो जाती .

लौकडाउन के बीच गुरूग्राम से दरभंगा अपने पिता को साइकिल पर पीछे बैठा कर ले कर आने वाली ज्योति की चर्चा हुई तो लोगों ने इस हौसले की जम कर तारीफ की .

जब इवांका ने की तारीफ

मगर बात यहीं खत्म नहीं हुई . इस हौसले की तारीफ करने वालों में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका का नाम जुङा तो फिर ज्योति रातोरात स्टार बन गई और देश की बेटियों के लिए एक मिसाल भी .

इवांका ने ट्वीट कर कहा,”15 साल की ज्योति कुमारी ने अपने घायल पिता को साइकिल पर बैठा कर 7 दिनों में 1200 किलोमीटर की दूरी कर के अपने गांव ले गई . सहनशक्ति और प्यार की इस वीरगाथा ने भारतीय लोगों और साइकिल फैडरेशन औफ इंडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है .”

इवांका के ट्वीट के बाद मीडिया से बातचीत में ज्योति ने बताया,”हां, फैडरेशन वालों का फोन आया था उन्होंने मुझे ट्रायल के लिए दिल्ली बुलाया है .

“फिलहाल मैं थकी हुई हूं लेकिन लौकडाउन के बाद दिल्ली जा कर ट्रायल जरूर दूंगी .”

चढ़ा सियासी रंग

लेकिन ज्योति के इस हौसले की जहां पूरी दुनिया में तारीफ होने लगी तो यह सियासी मामला भी बन गया और ज्योति के इस कारनामे को राजनीतिक रंग देने की कोशिशें भी तेज हो गईं .

बिहार में इसी साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और तभी सियासी ड्रामे के केंद्र में दरभंगा की साहसी ज्योति रही जो सुबह में भाजपा की थी दोपहर होतेहोते लोजपा की हो गई और देर शाम राजद ने भी उस पर अपना दावा ठोंक दिया . फिर तो जदयू के लोग भी कहां पीछे रहने वाले थे?

सब से पहले सामने आए मधेपुरा के पूर्व सांसद पप्पू यादव, जिन्होंने अपनी तरफ से ज्योति को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई . उस के बाद तो सभी राजनीतिक दलों में होङ मच गई .

भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने भी ज्योति की मदद की तो वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी ₹1लाख देने की घोषणा की .

इस बीच ज्योति कुमारी का नाम बदल कर ज्योति पासवान हो गया और लोजपा के मुखिया और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने इस कहानी को साझा किया .

बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी पीछे नहीं रहीं और उन्होंने एक वीडियो जारी किया गया जिस में वह और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ज्योति से वीडियो कौंफ्रेंसिंग के माध्यम से बातचीत कर रहे थे और उसे सहायता देने का वादा भी कर रहे थे .

तारीफों का सिलसिला

अब खबर तेजी से वायरल होने लगा कि ज्योति के घर में छत नहीं है और न ही घर में कोई बुनियादी सुविधाएं . घर का एकमात्र कमाने वाला पिता लाचार है, जिसे वह एक लंबा सफर तय कर साइकिल से ले कर वापस दरभंगा लौटी है .

लोगों का जमावड़ा भी उस के घर पर होने लगा और तारीफों का सिलसिला चलता रहा . कोई इसे चमत्कार भी बता रहा था, तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो बेटी को बेटा से बेहतर मान रहे थे .

उधर देशभर में मुश्किल दौर से गुजर रहे प्रवासी बिहारी मजदूरों की ओर आंखें मूंदी बिहार सरकार को अब भी उन मजदूरों का खयाल शायद ही आया होगा जो भूख से तङप रहे हैं . जो मजदूर बिहार लौट चुके उन के लिए भी कोई ठोस पहल राज्य सरकार की ओर से नहीं की गई है .

कहां सोई है सरकार

पर चूंकि दिसंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं तो वहां सियासी दलों को ज्योति एक नया मुद्दा बनता दिख रहा है .

मगर दुख तो इस बात की होनी चाहिए आखिर क्यों एक बेटी को अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर 1200 किलोमीटर ले जाने का जोखिम उठाना पङा?

आखिर क्यों राज्य सरकार अपने बिहारी मजदूरों का खयाल नहीं रख पाई और वे पेट पालने के लिए देशभर में दरदर की ठोकरें खाने को विवश हैं?

आखिर क्यों नहीं राज्य सरकार इन के लिए कोई मुकम्मल व्यवस्था ढूंढ़ पाई? जबकि खुद नीतीश सरकार को भी राज्य में शासन करते लगभग 15 साल हो चुके हैं .

ज्योति की तरह साहस शायद हरकोई नहीं कर सकता मगर इस का श्रेय खुद उस बेटी को जाता है जिस ने यह बता दिया कि समाज में बेटियां बेटों से कमतर नहीं होतीं . मुश्किल हालात में बेटियां न सिर्फ अपने मातापिता का सहारा बन सकती हैं, बल्कि उन में किसी भी विकट परिस्थितियों से जूझने का हौसला भी होता है .

अभिनेता किरण कुमार भी कोरोना संक्रमित

मुंबई में कोरोना संक्रमण बड़ी तेजी से फैल रहा है.इसके संक्रमण से आम इंसान,पुलिस बल,महाराष्ट् राज्य के वरिष्ठ मंत्री के साथ ही अब फिल्म व टीवी अभिनेता किरण कुमार भी ग्रसित हो चुके हैं.अभिनेता किरण कुमार ने स्वयं इस बात को जगजाहिर किया. 74 वर्षीय अभिनेता किरण कुमार के अनुसार 14 मई को उनका कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया था.तब से वह अपने घर पर क्वॉरंटीन हैं.

किरण कुमार का कहना है कि उन्हें कोरोना के किसी भी प्रकार की कोई खांसी,बुखार, सांस लेने में कोई दिक्कत या फिर कोई दूसरे लक्षण नहीं थे.वास्तव में वह ‘एसिम्पटोमैटिक हैं,जिसकी जॉंच कराने के लिए जब वह अस्पताल पहुंचे,तो कोरोना पॉजिटिव निकला.उनका घर दो मंजिला है.उनकी पत्नी और बच्चे पहली मंजिल पर रह रहे हैं.जबकि  किरण कुमार ने स्वयं को अपने घर की दूसरी मंजिल पर कोरंटाइन  किया है.वह पत्नी व बच्चों से फोन पर बात करते रहते हैं.

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किरण कुमार ने आगे कहा- ‘‘कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है.इससे बचाव कर हमें निरंतर आगे बढ़ना है.मैं एकदम फिट हॅूं.एक्सरसाइज करता हॅूं.हमें अपना एटीट्यूड पॉजिटिव रखना है.हमें घर पर रहना है,जिससे हमारी वजह से कोई अन्य इंसान कोरोना संक्रमित न हो सके.हमें पूरे भारत को इस वायरस से बचाना है.’’

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किरण कुमार अब तक‘बागी सुल्तान’,‘शतरंज’,‘शोले और तूफान’,‘ईना मीना डीका’, ‘दिलबर’, ‘हिम्मत’ इंतकाम’, ‘दोस्ती’जिंदाबाद’ सहित डेढ़ सौ से अधिक फिल्में तथा ‘‘धड़कन’’सहित तकरीबन पचास टीवी सीरियलों में अभिनय कर चुके हैं.

लॉकडाउन टिटबिट्स – 8

स्वास्थवर्धक पद

विश्व स्वास्थ संगठन ( डब्लूएचओ ) में पसरी राजनीति का एक बेहतरीन उदाहरण है भारत के स्वास्थ मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन का उसके एग्जीक्यूटिव बोर्ड का अध्यक्ष बन जाना   . जैसे मोहल्ले की क्रिकेट टीम का केप्टन वही होता है जो टीम को लेदर बाल चंदे में दे सकता है वैसे ही यह पद हर्षवर्धन को हायड्रॉक्सीनक्लोरोक्वीन नाम की दवाई अमेरिका को देने के एवज में मिला है जिसे एक भरोसेमंद पिट्ठू की तलाश थी  . पेशे से एलोपेथी डाक्टर होते होते हुए भी हर्षवर्धन के दिमाग में गुड गोबर बाला एजेंडा किस तरह चाँदनी चौक से शुरू हुए उनके राजनैतिक संघर्ष के दिनों से ही भरा पड़ा है इसे समझने उनके कई ( अ ) भूतपूर्व वक्तव्य मौजूद हैं  .

जब वे पर्यावरण मंत्री थे तब पूरे इतमीनान से डब्लूएचओ की रिपोर्टों को नकारते रहते थे  .  एक बार तो उन्होने संसद में बड़ी अटपटी बात यह कही थी कि प्रदूषण से कोई नहीं मरता  .  जब वे विज्ञान और प्रोद्धोगिकी मंत्री थे तब वेद पुराणों और गोबर की महत्ता बताते रहते थे  . कभी औरत के शरीर की तुलना मंदिर से करने बाले हर्षवर्धन दरअसल में मंत्री बने रहने कुछ भी बिगाड़ने तैयार रहते हैं  .  कोविड 19 के कहर के वक्त में उनके मंत्रालय का आकलन था कि 16 मई के बाद मामले कम हो जाएंगे लेकिन हुआ उल्टा  . वैसे भी कोरोना के कहर के दौरान उनकी निष्क्रियता हर किसी ने देखी और महसूसी , अब खैरात में मिले इस पद पर रहते वे अमेरिका के इशारे पर मुजरा करते रहने के साथ साथ और क्या क्या गुल खिलाएँगे यह देखना कम दिलचस्प नहीं होगा  .

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….. काफिला क्यों लुटा

बिना किसी लिहाज के अक्सर खरी और कभी खोटी कहने बाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कन्डेय काटजू ने अपने एक ताजे लेख में बड़े तल्ख लहजे में वह बात कह डाली जिसे कई लोग डर और लिहाज के चलते नहीं कह पा रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अब देश नहीं संभल रहा  . बक़ौल जस्टिस काटजू नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की तरह 23 मार्च को बिना किसी की सलाह लिए लाक डाउन घोषित कर डाला जिसका खामियाजा लाखों मजदूर भुगत रहे हैं  .  आज मोदी की पीड़ा नेपोलियन की तरह हो गई है जो 1812 में मास्को पहुँच तो गया लेकिन हालातों से निबटने उसे आगे का रास्ता पता नहीं था  . भूख से दंगे भड़कने की आशंका जाहिर करते हुए उन्होने समस्या का समाधान भी बताया है  .

समाधान यह कि देश में एक राष्ट्रीय सरकार बनाई जाये जो विपक्ष को साथ लेकर भी काम करे  .  इस बाबत उन्होने सटीक मिसाल इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतयाहू की पेश की है जिन्होने पिछले दिनों इमरजेंसी यूनिटी सरकार का गठन किया है  .  इसके मुताबिक नेतयाहू पहले 18 महीने प्रधानमंत्री रहेंगे इसके बाद अगले 18 महीने विपक्ष की मुखिया बेनी गेट्ज़ यह पद संभालेंगी  . इस तरह सरकार में पक्ष और विपक्ष दोनों को अगुवाई का मौका मिलेगा और दोनों देश के हित और भलाई का काम करेंगे  . आइडिया बुरा नहीं लेकिन काटजू को मालूम है कि जब किसी की नहीं सुनी जाती तो उनकी कैसे सुन ली जाएगी  .  इसलिए लेख में दम तोड़ती अर्थव्यवस्था और नरेंद्र मोदी की नाकामी के जिक्र का समापन उन्होने इस शेर के साथ किया कि – तू इधर उधर की न बात कर , ये बता कि काफिला क्यों लुटा  .

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योगी सगी तो उद्धव सौतेली माँ –

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे में से कौन कितना अक्खड़ और अड़ियल है यह कोई तुलनात्मक अध्ययन भी सिद्ध नहीं कर सकता जिनके बीच मजदूरों को लेकर जुबानी जंग बेहद निचले स्तर तक जा पहुंची  . लेकिन यह बात किसी सबूत की मोहताज नहीं कि मजदूरों की चिंता या उनसे हमदर्दी दोनों में से किसी को नहीं  .  बेचारे मजदूरों को तो यह भी नहीं मालूम होगा कि उनकी आड़ में दोनों पिता तक तो नहीं पर माँ तक जरूर पहुँच गए  . बात का और छोर किसी को नहीं मालूम लेकिन उद्धव खेमे ने योगी को हिटलर करार देते यह तक कह डाला कि उत्तरप्रदेश में सरकारी संरक्षण में गरीब दलित मजदूरों पर जुल्मो सितम ढाए जा रहे है , उनके लिए घर जाने के साधन बंद किए जा रहे हैं  .

योगी अव्वल तो वैसे ही तिलमिलाए रहते हैं लेकिन शिवसेना नेता संजय राऊत के ट्वीट्स और सामना में लिखे लेखों पर और तिलमिला गए  .  फिर शुरू हुआ बाली सुग्रीव सा युद्ध  . योगी के दफ्तर से कहा गया अगर महाराष्ट्र सरकार ने सौतेली माँ बनकर भी सहारा दिया होता तो महाराष्ट्र गढ़ने बाले हमारे उत्तरप्रदेश के निवासियों को वापस न आना पड़ता  . बक़ौल योगी मानवता कभी उद्धव को माफ नहीं करेगी  . मजदूर हार्ड और साफ्ट हिंदुत्व में कहीं थे ऐसा कहने की कोई वजह नहीं इस बहाने अरसे बाद मानवता शब्द का सुनाई देना जरूर मजदूरों के लिहाज से खतरे की घंटी है  .

रवि किशन का यज्ञ –

भोजपुरी अभिनेता और सांसद गोरखपुर रवि किशन लाक डाउन के दिनों में मुंबई के अपने आलीशान फ्लेट में रहते भोले शंकर की आराधना में लीन रहे  .  लंगोट पहने यज्ञ , हवन और अभिषेक बगैरह की तस्वीरें वे सोशल मीडिया पर साझा करते रहे  .  किश्तों में की जाने बाली तपस्या से शंकर जी तो अवतरित होने से रहे लेकिन कट्टर ब्राह्मण परिवार के रवि जिनके पिता मुंबई में डेयरी व्यवसाय करते थे ने जमकर पूजा पाठ के कारोबार को हवा दी और बीच बीच में दिखाबे के लिए गरीब मजदूरों की दुर्दशा पर भी चिंता व्यक्त कर बता दिया कि उन्हें यूं ही योगी अदित्य नाथ के अखाड़े का पट्ठा नहीं कहा जाता  . उन्होने बड़े जज्बाती होकर गोरखपुर के लोगों के लिए जान तक देने जैसी फिल्मी बात भी कह डाली  .

इस प्रायोजित ड्रामे से मजदूरों को तो सिवाय बातों के बताशे के कुछ नहीं मिला लेकिन इस शिवभक्त नेता अभिनेता ने पाखंडों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जता दी कि आपदा के इस दौर में दलित मजदूर सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं और सवर्ण शंकर को प्रसन्न करने में लगे हैं क्योंकि वे भरे पेट हैं और बेघर नहीं हैं  .  बहरहाल उनके पूजा पाठ की तस्वीरें देख सहज ही लालू यादव के बेटे तेजप्रताप की याद हो आई कि वे भी जब भगवान टाइप के फोटो शेयर करते हैं तो उनके दिमागी संतुलन पर उंगली क्यों उठाई जाती है  .

पैसा कमाने- काढ़े के कारोबार की जुगाड़ में बाबा रामदेव

एमजीएम कालेज इंदोर की डीन डा ज्योति बिंदल ने 2 दिन पहले एक आवेदन कलेक्टर इंदोर मनीष सिंह को भेजा था  . यह आवेदन भगवा गेंग के प्रमुख चेहरों में शुमार पतंजलि कंपनी के मुखिया बाबा रामदेव का था  . ज्योति बिंदल के मुताबिक इस आवेदन में लिखा था कि एक आयुर्वेदिक दवा कोरोना मरीजों को देने और परिणाम टेस्ट करने की बात लिखी थी इसलिए आवेदन प्रमुख सचिव को भेजा गया  . इस आवेदन में यह जिक्र भी था कि इस दवा ( दरअसल में आयुर्वेदिक काढ़ा ) को कुछ मरीजों पर परखा गया है जिसके परिणाम सार्थक मिले हैं इसलिए इसे इंदोर के कोरोना ग्रस्त मरीजों को देकर कंपनी परिणाम देखना चाहती है  . इस काढ़े को अश्वगंधा से तैयार हुआ बताया गया  .

इसके बाद क्या हुआ , यह जानने से पहले डा ज्योति बिंदल के बारे में यह जान लेना अहम है कि वे पूर्व में एक आईएएस अधिकारी टीनू जोशी की मदद के चलते बर्खास्त की जा चुकी हैं  .  आरोप था कि उन्होने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे टीनू जोशी का इलाज उसकी फ़रारी के दौरान किया  .  लेकिन बाद में आरोप साबित न होने पर वे बरी कर दी गईं थीं  . ज्योति 20 सितंबर 2018 को भी सुर्खियों में रहीं थीं जब उन्हें एमजीएम कालेज इंदोर का डीन बनाया गया था इसमें खास बात यह थी कि उन्हें ही यह पद देने कई सीनियर प्रोफेसर्स को नजरंदाज कर दिया गया था जिस पर खूब हल्ला मचा था  . तब वे ग्वालियर के गजराराजे मेडिकल कालेज के स्त्री रोग विभाग की अध्यक्ष हुआ करती थीं  . उनकी नियुक्ति से सीनियर्स काफी क्षुब्ध हुये थे कि यह तो सरासर धांधली और जाने क्या क्या है  .

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साफ दिख रहा है कि बाबा रामदेव पर वे मेहरबान थीं और नीम हकीमी बाले एक काढ़े का क्लीनिकल ट्रायल करने तैयार हो गईं थीं  . आवेदन इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह की तरफ भेजा गया तो उन्होने भी इस पर स्वीकृति की मोहर लगा दी लेकिन इसी बीच जाने कैसे मामला लीक हो गया और खासा बवंडर मच गया  . इन दोनों के जो बयान आए उनसे यह कोई नहीं समझ पाया कि आखिर किस नुस्खे से रामदेव के काढ़े को क्लीनिकल ट्रायल की इजाजत मिल गई थी और दरअसल में यह दी किसने थी  .

मनीष सिंह ने बड़ी मासूमियत से सफाई दी कि प्रशासन ने दवा के ट्रायल की अनुमति नहीं दी  . आयुर्वेदिक या होम्योपेथी दवाइयों के क्लीनिकल ट्रायल नहीं होते हैं  . एलोपेथिक के ट्रायल होते हैं  . उसकी प्रोटोकाल और प्रक्रिया है  . इन सभी तथ्यों को देखते हुए आवेदन और अनुमति निरस्त कर दी गई  . जाहिर है जो भी अनुमति आई थी वह ऊपर कहीं से आई थी लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अनुमति कलेक्टर ने ही दी जिसका कि उन्हें अधिकार ही नहीं था  .

दरअसल में ग्वालियर दक्षिण सीट से कांग्रेसी विधायक प्रवीण पाठक ने  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा था कि पतंजलि समूह को कोविड – 19 मरीजों के इम्यूनिटी बूस्टर दवाओं का क्लीनिकल ट्रायल करने की अनुमति देना मरीजों की ज़िंदगी से खिलवाड़ नजर आता है  . दूसरी तरफ जन स्वास्थ अभियान मध्यप्रदेश और राजस्थान नागरिक मंच ने भी इस मामले की शिकायत ड्रग कंट्रोलर , स्वास्थ मंत्रालय और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ( आईसीएमआर ) से की थी जिसमें कहा गया था कि जिस तरह पतंजलि को अनुमति दी गई है वह वैधानिक नहीं है  . क्लीनिकल ट्रायल एक गंभीर विषय है जिसकी अनुमति के लिए एक विशेष प्रक्रिया है  . इसमें सबसे बड़ा मुद्दा मरीज की जानमाल की हिफाजत का होता है  . इन सभी का परीक्षण करने के बाद ही संबन्धित एजेंसियां अनुमति देती हैं  .

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बिना किसी भूमिका के कहा जाये तो इस गोरखधंधे के तार शिवराज सिंह और रामदेव के याराने से जुड़े हैं इस अनुमति के 2 दिन पहले ही एक वीडियो कान्फ्रेंसिंग में शिवराज सिंह रामदेव से कोरोना को लेकर मदद मांगते कलेक्टरों से कह भी रहे थे कि आयुर्वेद को लेकर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान रामदेव से कर सकते हैं  . इस पर शिवराज सिंह का जमकर मज़ाक सोशल मीडिया पर उड़ा था  . आइये देखें ऐसे कुछ कमेंट्स –

  • कोरोना से जंग में बाबा रामदेव से सीएम मदद मांग रहे हैं यह शर्म की बात है .
  • एक यूजर डाक्टर हारजीत सिंह ने लिखा , मैंने अपना एमबीबीएस जबलपुर के सरकारी कालेज से किया . मैं अपने कई सीनियर विशेषज्ञों को जानता हूँ जो दुनिया में किसी से कम नहीं हैं  . यह शर्मनाक है कि राज्य के मुख्यमंत्री एक ऐसे व्यापारी से मदद ले रहे हैं जो लोगों को अपने फायदे के लिए गलत जानकरियाँ देता है  . मुझे उम्मीद है ये लोग अपने इलाज के लिए पतंजलि जाएँगे  .
  • एक अन्य यूजर ने इस पर कमेन्ट किया – गाय , गोबर और गौ मूत्र बाली पार्टी से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं .
  • एक और यूजर के मुताबिक – मुख्यमंत्री को आचार्य बलकृष्ण से सलाह लेनी चाहिए जो खुद एम्स में अपना इलाज कराकर आए हैं .
  • एक और ने इसका समर्थन करते लिखा – हाँ तभी तो वह खुद अपने चेले आचार्य बलकृष्ण का इलाज नहीं कर पाए थे जिन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था .

इन कटाक्षों से परे हकीकत यह है कि बाबा रामदेव और शिवराज सिंह दोनों ही गड़बड़ाए हुए हैं  .  लाख कोशिशों के बाद भी पतंजलि का कारोबार घटता चला जा रहा है और जुगाड़ तुगाड़ से चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह की कुर्सी सलामत रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि जल्द ही 24 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होना है अलावा इसके  शिवराज सिंह से भाजपाई खफा हो चले हैं कि क्या आलाकमान ने कुर्सी इनके नाम कर दी है और किसी और को अब मौका ही नहीं मिलेगा  .

देश में कोरोना भगाने के नाम पर पूजा पाठ , यज्ञ हवन और आयुर्वेद के नाम पर नीमहकीमी व  दुकानदारी का कारोबार शबाब पर है  . पंडे पुजारी और वैध जमकर लोगों को बेवकूफ बनाते चाँदी काट रहे हैं जिन्हें रोकने के बजाय सरकार उन्हें शह दे रही है क्योंकि लोगों को पिछड़ा रखना और जागरूक न होने देना उसका एजेंडा है  . इंदौर में बाबा रामदेव के काढ़े जिससे लोगों की जान खतरे में पड़ सकती थी का क्लीनिकल ट्रायल पौराणिक युग सी बात है जिसमें सरेआम विज्ञान और कानून को धता बताकर यह भी जता दिया गया कि एलोपेथी तो टाइम पास मूँगफली है असल तो आयुर्वेद है  . अगर खुद बाबा रामदेव को अपने काढ़े पर कोई भरोसा है तो पहला ट्रायल उन्हें खुद पर सार्वजनिक रूप से करना चाहिए और इसके लिए कोरोना संक्रमित होने से उन्हें घबराना नहीं चाहिए  .

ये वही बाबा रामदेव हैं जो बेटा पैदा करने की शर्तिया दवा सरेआम बेचकर कानून की पकड़ से साफ साफ बच निकलते हैं  .  इस बार उनका मकसद आपदा को अवसर में बदलते यह था कि शिवराज सिंह की मिलीभगत से यह प्रचार कर दिया जाये कि पतंजलि ने कोरोना की दवा बना ली है और फिर इसे बेचकर जितना हो सके पैसा बना लिया जाए  . मीडिया तो कुछ बोलने से रहा क्योंकि उसकी तो दुकान ही पतंजलि के विज्ञापनो से चलती है  .

लेकिन लोग भी वाकई अंधविश्वासी और बेवकूफ हैं जो हकीकत और साजिश उजागर होने के बाद भी पतंजलि का काढ़ा ढूंढते घूम रहे हैं यानि चित और पट दोनों बाबा की हैं लेकिन लोगों को बचाने जरूरी है कि इंदौर मामले की बारीक जांच हो कि क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी किसने थी और ऐसा होना मुमकिन न हो तो लखनऊ के उस तांत्रिक अहमद सिद्दीकी को भी कोरोना ताबीज बेचने की इजाजत दी जाए जिसे बीती 15 मार्च को पुलिस ने चारसौबीसी के आरोप में गिरफ्तार किया था  .  और और भी बेहतर होगा अगर बाबा रामदेव को राज वैध नियुक्त कर दिया जाये जिससे ऐसे फसाद ही खड़े न हों  .

पत्नी के लिए ब्यूटीशियन बने मनीष पॉल

सुल्तान ऑफ स्टेज मनीष पॉल हमेशा से ही बुद्धिमत्ता की भावना से ओत-प्रोत व्यक्ति रहे हैं . मनीष ने हमेशा अपने अभिनय , वन लाइनर और शानदार पंचों के साथ हमारे दिलों को चुराया है और इस लॉकडाउन के दौरान मनीष पॉल एक अद्भुत शॉर्ट फिल्म लेकर आए हैं जो आपको स्क्रीन पर बांधे रखता है  . शॉर्ट फिल्म को पूरी बॉलीवुड बिरादरी से सराहना प्राप्त हो रही है और इतना ही नही बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी मनीष पॉल के इस बढ़िया काम की सराहना की है .

इस लॉकडाउन के दौरान मनीष ने तमाम ऐसे काम किये है जो वे करना चाहते थे  . मनीष ने सिंगिंग से लेकर कूकिंग में सभी में हाथ आजमाया है  . हालही में मनीष ने अपने सोशल मीडिया पर उनके नए हेयर कट के लिए अपनी पत्नी को धन्यवाद कहा था , मनीष ने यह भी कहा था कि इससे पहले कभी भी संयुक्ता ने उनका हेयर कट किया नही था और यह उन्होंने पहली बार किया था  .

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इस बार मनीष ने पत्नी सयुंक्ता के आइब्रोज बनाये है , इस पर सयुंक्ता पॉल ने एक पोस्ट साझा करते हुए कहा ” किसने सोचा था कि में आइब्रोज को इस तरह शेप दूँगी ?

यह मेरे लिए किया मनीष ने ! मुझे नही पता था कि मनीष इस तरह उस्तरा भी चला सकता है  .

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इस पर मनीष ने हँसते हुए रिप्लाई किया “hahahaha ट्रस्ट करने के लिए शुक्रिया, मुझे लगता है मेने डिसेंट काम किया है  . और यह तस्वीर सबूत है कि अगर कुछ गलत हुआ तो उसकी जिम्मेदारी मेरी होगी  .

देखा जाए तो इस लॉकडाउन सब कुछ बंद पड़ा है , और जो उपलब्ध संसाधन है उससे ही हर कोई अपना काम चला रहा है  . हालही में सयुंक्ता मनीष के लिए हेयर स्टाइलिस्ट बनी थी तो आज मनीष अपनी पत्नी संयुक्ता के लिए ब्यूटीशियन बन गए  .

विद्या बालन ने की अपील, कहा “अफवाह” वायरस को रोकना है जरूरी

हमारी प्यारी अभिनेत्री विद्या बालन अपने साथ एक बहुत ही दिलचस्प वीडियो लेकर आई हैं, जिसमें उनके साथ तुम्हारी सुलु के को-स्टार मानव कौल हैं . वीडियो में नए वायरस के बारे में बात की गई है जो की लोभी मानव का प्रकार है और यह अफवाह वायरस है . जी हां, आपने सही सुना अफवा वायरस जो कि कुछ लोग बहुत जल्दी फैला देते है  .

यह कुछ लोगों के मन में अराजकता और भ्रम की स्थिति पैदा करता है, तो ये अफवाह हैं और अनुमान लगाते हैं , यह आग की तरह फैलता हैं और अत्यधिक संक्रामक होता हैं . इस शॉर्ट वीडियो में विद्या लोगों को सोशल मीडिया या उन सभी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रहने की सलाह देती है जो इन अफवाहों को उत्पन्न करते हैं, और कहीं न कहीं हम भी इस से सहमत हैं . कई अजीब अफवाहें हैं जो हमने इस समय के दौरान सुनीं जिसने नासा, यूनेस्को जैसे प्रमुख निकायों द्वारा अलग-अलग घोषणा या खोजों पर आतंक और नकली अफवाहें पैदा की हैं . विद्या बहुत ही खूबसूरती से लोग इन अफवाह से दूरी बनाने के लिए फोन, लैपटॉप जैसे हमारे उपकरणों से एक दूरी बनाए रखने के लिए आग्रह करती है .

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खैर, यह एक बहुत ही दिलचस्प वीडियो है जिसे हमने हाल के दिनों में देखा है और हम इस महत्वपूर्ण संदेश को लोगों तक लाने के लिए विद्या और मानव को धन्यवाद कहे बिना नही रह सकते क्योंकि ये अफवाहें कहीं न कहीं मानव जाति को बहुत प्रभावित करती हैं और कभी खत्म नहीं होती हैं . वीडियो देखें और हम शर्त लगाते हैं कि आप इसे पसंद करेंगे और आप भी सहमत होंगे . इस बीच अभिनेत्रि विद्या बालन को शकुंतला देवी के रूप में देखने के लिए तैयार हैं, जो कि कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण अब वेब प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने वाली है . विद्या को दिलचस्प भूमिका निभाते हुए देखना बहुत ही उत्साह बढ़ाने वाला है और वह हमेशा की तरह हमारे दिलों पर राज करेगी .

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हाल ही में विद्या ने हेल्थ केयर वर्कर्स की सुरक्षा के लिए पीपीई ( पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) भी डोनेट किए है . विद्या जानती है कि इस समय मे सभी का हौसला बढ़ाने की जरूरत है और वे बखूब ही वे लोगों का हौसला बांधते हुए नजर आरही है और लोगों को सतर्क कर रही है  .

स्तनों के साइज में फर्क

इंट्रो : लडकियों के दोनो स्तनों का साइज कई अलग अलग होता है. यह सामान्य बात है. घबडायें नहीं.
कक्षा 12 में पढने वाली नीता की “शादी  होने वाली थी. उसकी कुछ सहेलियों की “शादी पहले हो चुकी थी. वह लोग उसको “शादी के बारे में बताती थी. जिससे उसको पता चला कि हमबिस्तरी में उसके खास अंगो का बहुत महत्व होता है. इनमें स्तन भी “शामिल है. एक दिन उसने नहाने के समय अपने स्तनो को ठीक से देखा तो वह घबडा गयी. नीता का एक स्तन बडा और दूसरा उससे छोटा था. नीता को लगा कि उसके स्तनो में किसी तरह की कोई बीमारी है. वह परेषानी हो गयी. उसे समझ नही आ रहा था कि यह परेषानी वह किससे कहे ?

नीता को इतना परेषान देखकर उसकी भाभी प्ररेणा ने परेषानी का सबब पूछा तो नीता ने सबकुछ साफ साफ कह दिया. प्रेरणा को लगा कि नीता की परेषानी जायज है. प्रेरणा को भी इसका कोई सही कारण समझ नही आया. इसके बाद प्रेरणा ने सोचा कि वह अपने स्तनो का साइज भी देखेगी. प्रेरणा ने जब अपने स्तनो को गौर से देखा तो लगा कि उसके स्तनो के साइज में भी फर्क है.

यह देखकर प्रेरणा ने नीता को अपने पास बुलाया और उसको बता दिया कि उसके स्तनो के साइज में भी फर्क है. उसको तो आज तक पता ही नही चला था. प्रेरणा ने कहा कि उसकी “ाादी को 2 साल का समय बीत गया इसके बाद भी उसको पता नही चला कि उसके स्तनो के साइज में फर्क है. इस फर्क से उसकी “ाादीषुदा जिंदगी में किसी तरह की कोई परेषानी भी नही आयी. प्रेरणा भी नई जानकारी से परेषान थी. वह “ाहर में रहने वाली और पढी लिखी थी. इसलिये उसने सोचा कि इसके बारे में अपनी डाक्टर से बात करेगी. प्रेरणा अपने साथ नीता को लेकर “ाहर आयी. यहां वह अपनी महिला डाक्टर से मिली और अपनी परेषानी बतायी.

साइज में फर्क के कारण:
लखनऊ के राजेन्द्र नगर अस्पताल की जानीमानी महिला रोगो की जानकार डाक्टर सुनीता चन्द्रा का कहना है कि औरतो के दोनो स्तनों का साइज कभी भी एक जैसा नही होता है. दोनो स्तनो के साइज में थोडा बहुत अंतर अवष्य होता है. यह अंतर ऐसा होता है जो आसानी से समझ ही नहीं आता है. बहुत कम औरतो में यह अंतर ऐसा होता है जो आसानी से पता चला जाता है. यह अंतर इतना ज्यादा होता है कि इसको आसानी से छिपाया भी नही जा सकता है. अगर अंतर इतना ज्यादा है तो डाक्टर से मिलना जरूरी हो जाता है.

ज्यादातर मामलों में यह अंतर सामान्य होता है. माहवारी के ंपहले यह अंतर दिखाई देता है बाद में अपने आप सही हो जाता है. जिन स्तनों के साइज में फर्क सामान्य वजहो से होता है उसको दबाने से दर्द नही होता है. अगर स्तन को दबाने से न सहने वाला दर्द हो तो डाक्टर से मिलकर उसकी जांच जरूर करानी चाहिये.

डाक्टर सुनीता चन्द्रा का कहना है कि स्तनो के साइज के बीच बडे अंतर की वजह स्तन में किसी तरह की सूजन या फिर कोई गांठ का होना भी हो सकता है. माहवारी के तत्काल बाद अपने हाथों से स्वंय इसकी जांच कर सकती है. अगर स्तन में गांठ होगी तो जैसे जैसे गांठ बढेगी उसका आकार भी बढता जायेगा. ज्यादातर मामलों में यह गांठ सामान्य ही होती है. इसके बाद भी इसकी जांच करानी जरूरी होती है. कभी कभी यह गांठ कैंसर की “ाुरूआत भी हो सकती है. अगर यह गांठ सामान्य है तो दवाओं के सहारे इसको दबाया जा सकता है. औरतो में कैंसर की सबसे ज्यादा बीमारी स्तनों में ही होती है. अगर समय से इसका पता चल जाये तो इलाज आसानी से हो जाता है.

“शादी के बाद स्तनो के साइज में फर्क:
“शादी के बाद औरतो के स्तनो के साइज में फर्क के मामले ज्यादा पाये जाते है. इसकी दो सामान्य वजहे होती है. हमबिस्तरी के दौरान ज्यादातर एक स्तन का ही प्रयोग फोरप्ले के लिये होता है. इसकी वजह से भी स्तनो के साइज में फर्क हो जाना हैरानी वाली बात नही होती है. बच्चों के जन्म के बाद भी स्तनो के साइज में फर्क हो जाता है. स्तनो में दूध उतरने पर उसका साइज बढ जाता है. दूध खत्म होते ही स्तनो का साइज घट जाता है. स्तनो में दूध उसी अनुपात में उतरता है जिस अनुपात में बच्चा दूध पीता है. अगर काई औरत एक स्तर से ज्यादा और दूसरे स्तन से बच्चे को कम दूध पिलाती है तो साइज में फर्क आ  सकता है. इसलिये औरतो को चाहिये कि वह दोनो स्तनो से बराबर बच्चे को दूध पिलाये. स्तनपान के दौरान इस तरह स्तन के साइज में आने वाला फर्क आसानी से नही जाता है.

स्तनों के साइज में सामान्य फर्क होने पर चिंन्ता करने की कोई जरूरत नही होती है. इसके लिये सही आकार की ब्रा पहन कर स्तनो के साइज को सही किया जा सकता है. अगर साइज असामान्य रूप से कम ज्यादा है तो इसका इलाज प्लास्टिक सर्जरी के जरीये अब किया जाने लगा है. स्तनो के साइज को लेकर कभी नीम हकीम डाक्टरों के पास जाने की जरूरत नही है. वहां जाने पर मरीज को ठगे जाने की संभावना बढ जाती है.जानकार डाक्टरों का कहना है कि स्तन के साइज को बढाने और आकार को सही रखने वाली दवाओं के झांसे में भी नही आना चाहिये. इससे किसी तरह को कोई लाभ नही होता है. सही खानपान और एक्सरसाइज से ही स्तन के आकार को सही ढंग से रखा जा सकता है.

बाक्स: खुद करे स्तनो की जांच
अपने स्तन की जांच करने के लिये “ाीषे के सामने दोनो हाथों को सिर के पीछे ले जाकर सीधी खडी हो जाये. कुछ इस तरह खडी हो कि दोनो स्तन सही तरह से दिख सके.
1. अगर स्तन में गडढे, डिम्पल, सूजन या फिर निपल की पोजीषन में कोई अंतर दिखे तो सावधानी की जरूरत है.
2.“शीषे के सामने खडी होकर उगलियों और अगूठे के सहारे निपल को दबाये अगर दूधिया, लाल या पीला रिसाव दिखे तो डाक्टर से जरूर जांच कराये.
3.लेट कर अपने स्तन को छुएं. बांये हाथ से दायें स्तन को और दांये हाथ से बायें स्तन को हर तरफ से दबा कर देखे. निपल के पास आकर उगलियो को गोलाई से घुमाये हर टिषू को महसूस करने की कोषिष करे. यह काम खडे और बैठ कर भी करे.
4.गीली और मुलायम त्वचा में यह जांच करना आसान होता है इसलिये नहाने के बाद करे तो अच्छा रहेगा. अगर कही कोई गांठ महसूस हो, त्वचा लाल या चकत्तेदार दिखे उस पर सूजन हो तो डाक्टर से सलाह ले.
5.यह जांच अगर माहवारी खत्म होने के एक सप्ताह के अंदर करे तो ज्यादा सही रहेगा.

सब्जियों में सिंचाई

सब्जियों का 90 फीसदी या इस से ज्यादा भाग जल से बना होता है. ऐसे में सब्जियां जल के प्रति अति संवेदनशील होती हैं. ज्यादा सिंचाई और कम सिंचाई दोनों ही हालात सब्जियों पर भारी पड़ते हैं. जल पोषक तत्त्वों के लिए विलेय का काम करता है. जल से सारे पोषक तत्त्व पूरे पौधे तक पहुंच पाता है. ऐसे में जरूरत होती है कि सब्जियों से अच्छी आमदनी के लिए समुचित सिंचाई का इंतजाम किया जाए, खासकर फूल आते समय, फलों की बढ़ोतरी के समय जल की कमी से पैदावार घट जाती है.

आइए जानते हैं, विभिन्न सब्जियों में किनकिन अवस्थाओं पर पानी की कमी या अधिकता से क्याक्या असर पड़ता है: जड़ वाली सब्जियों में प्रमुख रूप से गाजर और मूली शामिल है. जड़ों की बढ़वार के समय मिट्टी में नमी की कमी से जड़ों का विकास रुक सा जाता है. जड़ें टेढ़ीमेढ़ी और खुरदरी हो जाती हैं और जड़ों में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक है. खेत के सूखे रहने के बाद अचानक सिंचाई करने से जड़ें फट जाती हैं. जड़ों के विकास के समय ज्यादा नमी होने पर जड़ों के मुकाबले पत्तियों का विकास ज्यादा हो जाता है. प्याज : यह उथली जड़ वाली फसल होती है, इसलिए इस में बारबार, मगर हर बार हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

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कंदों के विकास के समय नमी की कमी होने पर 2 शल्ककंद बनते हुए या शल्ककंदों को फटते हुए देखा गया है. बैगन : इस में ज्यादा जल भराव से जड़ विगलन रोग लगने की संभावना होती है, जबकि कम नमी होने की दशा में फलों का रंग हलका हो जाता है. टमाटर : मिट्टी में नमी के उतारचढ़ाव से फल फट जाते हैं, जबकि नमी की कमी होने पर मिट्टी में कैल्शियम की कमी हो जाती है. इस से पुष्पवृंत सड़ने लगता है और फूल झड़ने लगता है. फूल आते समय मिट्टी में नमी की कमी होने पर फूल झड़ने लगते हैं या फल छोटे होने लगते हैं. मटर : यह एक दलहनी फसल है, जिस में कम सिंचाई की जरूरत होती है. ज्यादा सिंचाई करने से पौधे जड़ से सूखने लगते हैं. इस में 2 सिंचाई बहुत जरूरी हैं. पहली, फूल आते समय तकरीबन 30-40 दिनों पर. दूसरी, फली विकास के समय तकरीबन 50-60 दिनों पर. मिर्च और शिमला मिर्च :

इस में लगातार नमी का बना रहना जरूरी है. कम नमी की दशा में फूल व छोटे फल गिर जाते हैं और पौधा फिर से सिंचाई करने पर भी समायोजित नहीं हो पाता है. कम नमी होने के चलते पोषक तत्त्वों का अवशोषण कम हो जाता है, जिस से फलों का विकास रुक जाता है. पत्तागोभी : फसल की शुरुआती अवस्था में ज्यादा नमी होने की दशा में जड़ों का ज्यादा विकास हो जाता है, जबकि शीर्ष (बंद) फट जाता है. काफी समय तक सूखा रहने के बाद सिंचाई करने पर या बारिश होने पर बंद फट जाता है. खीरा, ककड़ी, तरबूज : कुकर विदेशी कुलकी ये सब्जियां पानी के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं.

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खरबूजा व तरबूज में फलों के पकने के समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए. इस से फलों की सुगंध, खुशबू और मिठास कम हो जाती है. खरबूजे में पकने के समय सिंचाई करने पर विटामिन सी और विलेय पदार्थों की मात्रा घट जाती है. तरबूज के पकते समय सिंचाई करने पर त्वचा फट जाती है. गूदे रेशेदार व कम रसीले होते हैं व फलों की क्वालिटी खराब हो जाती है, जबकि फलों के बढ़वार के समय नमी की मात्रा कम होने पर फलों में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है, जो सेहत के लिए बहुत ही नुकसानदायक है. खीरे में जलभराव की दशा में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और लताओं का विकास रुक जाता है, वहीं फूल आने पर मिट्टी में नमी की कमी के चलते पराग कण खराब व मरे हुए बनते हैं. इस से फसल उत्पादन कम हो जाता है. फलों के विकास के समय नमी की कमी में फलों का आकार बिगड़ जाता है और फलों में कड़वाहट होती है.

#coronaviru: डरना नहीं जीना है हमें

आज पूरा संसार एक नन्हे वायरस कोरोना के कारण डर के साए में जी रहा है. लगभग 140 देश इस वायरस से प्रभावित हैं. स्कूल, कालेज, औफिस बंद हैं, लोग घर से काम कर रहे हैं. होटल, मौल, रेस्टोरेंट, फैक्टरी बंद होने के कारण लोग बेरोजगारी के साए में जीने लगे हैं.

कुछ युवा जिन को नौकरी मिल गई थी, वे इस लौकडाउन की वजह से कंपनी व दूसरी फैक्टरियों के बंद होने के कारण अपने भविष्य के प्रति सशंकित हैं.

वहीं औरतों ने घर के सदस्यों की सुरक्षा के लिए नौकरानियों को भी बुलाना बंद कर दिया है. सारे काम स्वयं करने के कारण वे भी परेशान हैं.

घर में बंद रहने के चलते एक अजीब डर के साए में जीने के कारण बड़े तो बड़े बच्चे भी घुटन, अवसाद, तनाव और निराशा के शिकार होने लगे हैं.

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कुछ इसी तरह की बातें किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डाक्टर पीके दलाल ने इंडियन साइकियाट्रिस्ट सोसाइटी के तहत कोरोना संक्रमण और लौकडाउन से लोगों के ऊपर पड़ने वाले प्रभावों का पता लगाने के लिए की, वहीं साइक्लोजिकल इंपैक्ट औफ लौकडाउन सर्वे के द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, 50 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें परिवार की अहमियत समझ में आ गई है, उन का पारिवारिक रिश्ता प्रगाढ़ हुआ है, वहीं 40 फीसदी अवसादग्रस्त पाए गए.

भविष्य के प्रति अनिश्चितता के कारण दिनोंदिन कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण आज जनजन के मनमस्तिष्क में एक ही प्रश्न छाया हुआ है… क्या होगा जब लौकडाउन खुलेगा? कहीं हम बाहर निकले तो संक्रमित तो नहीं हो जाएंगे…

हमें समझना होगा कि लौकडाउन समस्या का हल नहीं है… पर हां, यह जरूर है कि लौकडाउन ने हमें इस वायरस को समझने और उस से लड़ने के लिए समय के साथ आत्मलोकन के लिए भी समय दिया है. डर कर जीना तो जिंदगी नहीं है.

अगर हम डर कर अपने डर और तनाव के चलते निर्मित यानी खुद के द्वारा बनाए गए कवच में छिप गए तो जीतेजी ही मर जाएंगे… हमें अपने कवच से निकल कर कुछ सावधानियों और अपनी सकारात्मक सोच के साथ सहज जीवन की ओर अग्रसर होना होगा.

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याद करिए, पृथ्वी पर अनेक बार जानलेवा बीमारियों जैसे टीबी, प्लेग, हैजा, चेचक, डेंगू, पोलियो, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों ने पैर पसारा है. जिंदगी कुछ पल ठहरी, पर उस ने चलना नहीं छोड़ा.

अभी तक कोरोना वायरस की दवा या वैक्सीन न बन पाने के चलते इस को फैलने से रोकना किसी के हाथ में नहीं है और न ही यह पता है कि इस वायरस की चपेट दुनिया में कब तक रहेगी?

जैसाकि अनुमान किया जा रहा है कि यह वायरस अभी इतनी जल्दी जाने वाला नहीं है, शायद 1-2 साल भी लग जाएं. अब धीरेधीरे हमें सामान्य जिंदगी की ओर बढ़ना होगा, क्योंकि जिंदगी रुकने का नहीं वरन जीने का नाम है.

दिनचर्या में मामूली बदलाव ला कर अपने तनाव को दूर रख कर, सुरक्षा के कुछ उपाय अपना कर सहज और सामान्य जीवन की ओर अग्रसर होना ही आज की मांग है.

मीडिया से स्वयं को दूर रखें

देशविदेश के समाचारों से खुद को अवगत रखें, पर बारबार एक ही जैसी खबरें देखने से बचें, खासतौर पर कोरोना से संबंधित… क्योंकि बारबार एक ही तरह की खबरें आप को तनावग्रस्त करने के साथ ही अवसादग्रस्त भी कर सकतीं हैं.

सामाजिक घनिष्ठता बना कर रखें

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. आखिर कब तक अपनों से दूर रह सकता है? आज तो विज्ञान ने हमें इतनी सुविधा दे रखी है. इस सुविधा का उपयोग कर के वीडियो चैटिंग के जरीए आप अपने मित्रों या सगेसंबंधियों से बातें कर के मन को तनाव से मुक्त रख सकते हैं. वहीं दूसरी ओर कोई ऐसी हौबी, जिसे आप अपने काम में बिजी होने के कारण पूरी नहीं कर पाए थे, उसे अपना कर स्वयं को बिजी रख सकते हैं. साथ ही, कोरोना वायरस के कारण बच्चों की भी छुट्टियां चल रही हैं, आप उन के साथ बातें कर के, उन के साथ खेल कर समय बिता सकते हैं. टीवी पर मूवी देख सकते हैं.

एक बार आप यह सोच कर देखिए कि इस वायरस ने आप को रोजाना की भागदौड़ से बचा कर, अपने परिवार के साथ समय बिताने का, स्वयं को स्वयं से पहचान कराने का अवसर दिया है, यह सोच आप का सारा तनाव दूर कर देगी.

कोरोना वायरस उन व्यक्तियों को, जिन की कैंसर, दमा, डायबिटीज या ब्लडप्रेशर के कारण कमजोर प्रतिरोधक क्षमता है, जल्दी चपेट में लेती है. ऐसे व्यक्तियों को विशेष सावधानी की आवश्यकता है.

वैसे भी हर व्यक्ति को अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए व्यायाम अवश्य करना चाहिए. चाहे आप एरोबिक व्यायाम करें या योगा, किंतु करें अवश्य.

एक अध्ययन के मुताबिक, व्यायाम करने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने के साथ न केवल व्यक्ति तनाव से दूर रहता है, बल्कि व्यायाम मनुष्य के शरीर में मौजूद न्यूट्रोफिल्स सेल्स (वाइट ब्लड सेल का एक प्रकार) को एक्टीवेट करता है, जो अवांछित और कभीकभी खतरनाक सूक्ष्मजीवियों को मारने की क्षमता रखते हैं. 7-8 घंटे की भरपूर नींद व्यक्ति को तनाव से दूर रखने के साथ उस की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है.

प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले खाने का इस्तेमाल

अपने प्रतिरक्षा तंत्र को विकसित करने के लिए खानपान की आदतों में बदलाव करना होगा. सुबह की शुरुआत 2 गिलास नींबू पानी से करें. पानी जहां आप के शरीर में पानी को स्तर को बैलेंस करेगा, वहीं नीबू से विटामिन सी मिलेगा. विटामिन सी के साथ विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए आवश्यक है, इसलिए गेहूं, दाल, दही, पालक, ब्रोकली, लहसुन, पालक, अदरक, हरी सब्जी, आंवला के साथ फलों विशेषतया अनार, संतरा व तरबूज इत्यादि का सेवन करें.

तरबूज में ग्लूटाथियोन नामक एंटीऔक्सीडेंट होता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है. गेहूं के जर्म यानी अंकुरित गेहूं में एंटीऔक्सीडेंट, विटामिन बी, जस्ता, प्रोटीन, फाइबर और कुछ स्वस्थ वसा का बहुत बड़ा स्रोत है. साथ ही, ज्यादा तलाभुना, पिज्जा, बर्गर, रिफाइंड शुगर, मैदे से बनी चीजें समोसे वगैरह खाने से परहेज करें.

स्वच्छता पर दें विशेष ध्यान

वैसे तो हम भारतीयों के जीवन में स्वच्छता और खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाता है, किंतु आज की उपभोगतावाद की संस्कृति ने हमारे खानपान और व्यवहार में काफी बदलाव ला दिया है. बाहर का खाना, वह भी बिना हाथ धोए, केवल टिशू पेपर से हाथ पोंछ कर खाना आज की नई युवा पीढ़ी में न जाने कैसे प्रचलन में आ गया है.

कोरोना वायरस का इन्फेक्शन दूषित सतहों को छूने और फिर उन्हीं हाथों को मुंह, आंख, नाक पर लग जाने से फैलता है.

हर काम करने से पूर्व हाथ धोने की आदत डालें.

वहीं सेनेटाइजर को बारबार उपयोग में लाने से हाथों की त्वचा खराब होने लगती है इसलिए सेनेटाइजर सिर्फ बाहरी जगहों में उपयोग में लाने के लिए रखें. घर में हाथ धोने के लिए साबुन का ही उपयोग करें.

कहा जाता है कि साबुन के घोल में यह वायरस नष्ट हो जाता है, इसलिए साबुन से हाथ लगभग 20 सेकंड तक धोएं, पर इतना ध्यान रखें कि नल 20 सेकंड तक न खुला रखें. हाथ गीले कर नल बंद कर दें. 20 सेकंड बाद नल खोल कर हाथ धो लें, वरना पृथ्वी पर पानी के गिरते स्तर के कारण पानी की कमी हम सब को और भी विवश कर देगी.

इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट औफ मेडिकल साइंस के फार्माकोलौजी विभाग के अध्यक्ष डाक्टर हरिहर दीक्षित के अनुसार, घर को कोरोना वायरस से सुरक्षित रखने के लिए घरेलू फिनाइल और लिक्विड ब्लीच यानी सोडियम हाइपोक्लोराइट से घोल बनाने के लिए 5 फीसदी ब्लीच और 98.99 फीसदी पानी का उपयोग करें. दोनों को मिलाने के बाद आंखों पर असर न हो, इस के लिए 2-3 मिनट रुकें, फिर इस के बाद इस घोल का उपयोग घर को वायरस से मुक्त करने के लिए करें.

सब से पहले उन चीजों को साफ करें, जहां आप का हाथ अकसर जाता है जैसे फ्रिज, खिड़की, दरवाजों के हैंडिल, कुंडी , मेजकुरसी, नल, टीवी के रिमोट, लैपटौप, मोबाइल, बच्चों के खिलौने वगैरह.

घर की सफाई के लिए हाइड्रोजन पैराऔक्साइड या स्प्रिट का भी उपयोग किया जा सकता है. यदि आप को लगता है कि घर में कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति आया है, तो कमरे को सेनेटाइज करने के लिए एक चुटकी पोटैशियम परमेगनेट और 2 चम्मच फार्मलीन में 100 एमएल पानी डाल कर घर में पोंछा लगा दें और खिड़कीदरवाजे खोल कर बाहर निकल जाएं, जिस से इस से निकलने वाली गैस से आप को नुकसान न हो.

अनावश्यक घूमने और खरीदारी से बचें

अगर आप को बाहर निकलना है, तब मास्क पहनने के साथ 2 फुट की शारीरिक दूरी का पालन करने की आदत डाल लीजिए, क्योंकि यह वायरस हवा में भी 2 या 3 घंटे तक रह सकता है.

अगर आप के सामने वाला व्यक्ति खांसता या छींकता है, तो आप के द्वारा पहना मास्क उस के खांसने और छींकने की बूंदों में निहित वायरस (अगर वह संक्रमित है) से आप की हिफाजत करेगा, वहीं बाहर पार्टी में जाने या घर में पार्टी करने से बचें.

अपने बौस या अपने सहयोगियों से हाथ मिलाने की जगह नमस्ते या हैलो कर के विश करने की आदत आप को डालनी होगी. साथ ही, अपने साथ सेनेटाइजर और डिस्पोजेबल ग्लव्स सदा साथ रखें, जिस से कि अगर आप को लगे कि आप ने कोई ऐसी जगह छुई है, जिसे अन्य लोगों ने भी छुआ हो तो अपने हाथों को सेनेटाइज कर सकें.

इस के अलावा लिफ्ट का प्रयोग करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतें. बटन दबाते समय डिस्पोजेबिल ग्लव्स अवश्य पहनें और निकलने के बाद डस्टबिन में डाल दें. इस के बाद भी अपने हाथों को सेनेटाइज करने की आदत डाल लें.

घर आने पर जूते बाहर ही उतारें. अगर बाहर नल है तो हाथ बाहर ही धो लें वरना सीधे बाथरूम में जा कर नहा कर फ्रेश हो लें. कपड़े वाशिंग मशीन में डाल दें. कपड़े धोते समय सामान्य डिटर्जेंट के साथ डिटोल का उपयोग भी अवश्य करें और पानी का तापमान 60 से 90 डिगरी सेल्सियस रखें.

फलसब्जी, दूध, ग्रोसरी का सामान लेते समय रखें सावधानी

अकसर लोगों के मन में आता है कि बाहर से लाए फल, सब्जियों को कैसे संक्रमण से मुक्त करें? फल और सब्जियों में संक्रमण का खतरा अधिक रहता है, क्योंकि यह कई हाथों से गुजरती हुई आप तक पहुंचती है. इसलिए इन्हें सीधे फ्रिज में न रखें.

अकसर लोग यह सोच कर इन्हें साबुन के पानी से धोते हैं कि इन में निहित वायरस समाप्त हो जाएगा, किंतु सब्जियों को कभी साबुन के पानी से न धोएं, क्योंकि सब्जियां पोरस होती हैं. साबुन सब्जियों में मिल कर सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है.

कुछ लोग कहते हैं कि सब्जियों को बेकिंग सोड़ा या विनेगर में डुबो कर, धो कर प्रयोग में लाना चाहिए, किंतु अमेरिका की फूड एंड एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, सब्जियों को धोने से पहले अपने हाथों को 20 सेकंड तक धो लें, फिर रनिंग वाटर में अच्छी तरह से रगड़ कर 2-3 बार धो कर निकाल लें. जब 2-3 घंटे में पानी अच्छी तरह सूख जाए, तब इन्हें फ्रिज में रखें.

इसी तरह दूध या ग्रोसरी के दूसरे पैकेटों को साबुन पानी से धो लें, जिस से संक्रमण दूर हो जाए. अगर ग्वाले से दूध ले रही हैं तो ध्यान रखें कि आप का बरतन उस के हाथ से न छुएं.

वैसे भी दूध उबाल लेने या सब्जियों को पका लेने से वायरस का संक्रमण दूर हो जाता है. इस सारी प्रक्रिया में अपने हाथ अवश्य धोते रहें.

मेंड्रेक्स की एक रिर्पोट के अनुसार, वायरस प्लास्टिक और स्टेनलैस स्टील पर 72 घंटे रहता है, जबकि कौपर पर 4 घंटे रहता है. कार्ड बोर्ड और कागज में यह 24 घंटे रहता है.

डिजिटल करैंसी का इस्तेमाल

लेनदेन के लिए डिजिटल करैंसी उपयोग में लाएं, ताकि संक्रमित होने से बचा जा सके. इस के बावजूद भी अगर आप को नोट का लेनदेन करना पड़े तो नोट लेने के बाद उन्हें ऐसी जगह रख दें, जहां कुछ घंटे उन्हें कोई न छुए और इस लेनदेन के बाद अपने हाथ सेनेटाइज अवश्य कर लें.

हम एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं… गुजर जाएगा यह दौर भी, बस मुसकराते रहें, खिलखिलाते रहें.

प्रसिद्ध लेखिका रोंडा बर्न ने अपनी पुस्तक ‘द सीक्रेट‘ में प्रतिपादित किया है कि आकर्षण के नियम के अनुसार पसंद ही पसंद को आकर्षित करती है अर्थात जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हमारे साथ घटित होता है. अगर हम अच्छा सोचते हैं तो हमारे साथ अच्छा होगा, अगर हम बुरा सोचेंगे तो बुरा होगा. अतः हमें मन की नकारात्मकता को त्याग कर सकारात्मक विचार अपना कर जीवन में परिवर्तन लाना होगा. कुछ सावधानियां अपना कर हमें अपने मन में पैठे डर और तनाव से नजात पानी होगी, अपने इम्युन सिस्टम को बढ़ाना होगा, जिस से कि यह वायरस हम से टकरा कर निकल जाए.

वैसे भी इस वायरस के कारण आज के दिन भारत में मृत्यु दर 3.07 फीसदी है, इसलिए अपने मन के सारे डर और तनाव को निकाल फेंकिए और जीवन में कुछ बदलाव ला कर एक अटूट संकल्प के साथ चल पड़िए… डरना नहीं जीना है, हमें इस वायरस के साथ ही…

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