आज पूरा संसार एक नन्हे वायरस कोरोना के कारण डर के साए में जी रहा है. लगभग 140 देश इस वायरस से प्रभावित हैं. स्कूल, कालेज, औफिस बंद हैं, लोग घर से काम कर रहे हैं. होटल, मौल, रेस्टोरेंट, फैक्टरी बंद होने के कारण लोग बेरोजगारी के साए में जीने लगे हैं.

कुछ युवा जिन को नौकरी मिल गई थी, वे इस लौकडाउन की वजह से कंपनी व दूसरी फैक्टरियों के बंद होने के कारण अपने भविष्य के प्रति सशंकित हैं.

वहीं औरतों ने घर के सदस्यों की सुरक्षा के लिए नौकरानियों को भी बुलाना बंद कर दिया है. सारे काम स्वयं करने के कारण वे भी परेशान हैं.

घर में बंद रहने के चलते एक अजीब डर के साए में जीने के कारण बड़े तो बड़े बच्चे भी घुटन, अवसाद, तनाव और निराशा के शिकार होने लगे हैं.

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कुछ इसी तरह की बातें किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डाक्टर पीके दलाल ने इंडियन साइकियाट्रिस्ट सोसाइटी के तहत कोरोना संक्रमण और लौकडाउन से लोगों के ऊपर पड़ने वाले प्रभावों का पता लगाने के लिए की, वहीं साइक्लोजिकल इंपैक्ट औफ लौकडाउन सर्वे के द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, 50 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें परिवार की अहमियत समझ में आ गई है, उन का पारिवारिक रिश्ता प्रगाढ़ हुआ है, वहीं 40 फीसदी अवसादग्रस्त पाए गए.

भविष्य के प्रति अनिश्चितता के कारण दिनोंदिन कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण आज जनजन के मनमस्तिष्क में एक ही प्रश्न छाया हुआ है... क्या होगा जब लौकडाउन खुलेगा? कहीं हम बाहर निकले तो संक्रमित तो नहीं हो जाएंगे...

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