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करण जौहर के घर पहुंचा कोरोना

महाराष्ट्र और मुंबई में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है.कोरोना वायरस के संक्रमण पर किसी भी तरह से रोक नहीं लग पा रही है.अब तो यह बॉलीवुड में भी अपने पैर पसारने लगा है.अप्रैल माह में करीम मोरानी और उनकी बेटी व अभिनेत्री जोया मोरानी कोराना ंसंक्रमित हुई  थीं.उनके ठीक होने के बाद से सब ठीक चल रहा था.मगर एक सप्ताह पहले बोनी कपूर के घर के कर्मचारी कोरोना पीड़ित पाए गए थे.दो दिन पहले अभिनेता किरण कुमार के कोरोना पीड़ित होने की खबरे आयीं.

अब फिल्म निर्माता निर्देशक करण जोहर के घर में काम करने वाले दो कर्मचारियों के कोरोना पीड़ित होने से हड़कंप मच गया है.25 मई को करा जेाहर का जन्मदिन था,उसी दिन उनके घर पर कार्यरत दो लोगों के कोरोना पीड़ित होने की खबरें सामने आयीं.और इस बात की जानकारी स्वयं करण जोहर ने ही दी.वैसे करण जोहर उनकी मां उनके बच्चों यस और रूही के कोरोना टेस्ट नगेटिव आए हैं.लेकिन एहतियातन करण जोहर के पूरे परिवार को 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन कर दिया गया है.

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खद करण जोहर ने सोषल मीडिया पर लिखा है-‘‘मेरे घर पर काम करने वाले दो लोगों का कोविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आया है. उन लोगों को क्वॉरंटीन कर दिया गया है.बीएमसी को इस बात की जानकारी दे गई है.परिवार के सभी सदस्य और स्टाफ के अन्य सभी लोग सुरक्षित हैं.सभी का टेस्ट नगेटिव आया है.लेकिन सुरक्षा के लिहाज से सभी लोग अगले 14 दिन के लिए सेल्फ आइसोलेशन में चले गए.‘’

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करण जौहर ने आगे बताया, ‘‘हम सभी को सुरक्षित करने के लिए अपने कमिटमेंट के साथ खड़े है और यह सुनिश्चित किया है कि अथॉरिटी द्वारा निर्धारित सभी उपायों का पालन करते रहेंगें.हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि जिन कर्मचारियों को कोरोना संक्रमण हुआ है,उन्हे बेहतरीन इलाज की सुविधा महैय्या करयी जाएगी.हमें पूरी उम्मीद है कि वह जल्द ही ठीक हो जाएंगे.’‘

लॉकडाउन इफेक्ट: रश्मि देसाई के बाद निया शर्मा भी हुई नागिन 4 से बाहर

टीवी जगत का मशहूर शो ‘नागिन 4’   हमेशा की तरह एक बार फिर सुर्खियों में आ चुका है. लेकिन अगर आप यह सोच रहे है कि सीरियल में कुछ ट्विस्ट आने वाला है तो बिल्कुल भी ऐसा नहीं है इस बार नागिन के फैंस के लिए बुरी खबर है.

नागिन 4 जल्द ही बंद होने वाला है. इसकी जानकारी पहले से ही आ रही थी लेकिन अब यह साफ हो गया है कि लॉकडाउन के खत्म होते ही रश्मि देसाई को शो से बाहर किया जाएगा. क्योंकि रश्मि इस शो में सबसे ज्यादा पैसा लेने वाली कलाकार है. वहीं अब खबर ये भी आ रही है कि रश्मि के बाद निया शर्मा को भी इस शो से बाहर किया जाएगा.

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एकता कपूर जल्द ही सीरियल नागिन 5 का ऐलान करने वाली हैं. जिसमें कई नए  चेहरे नजर आएंगे. लॉकडाउन में इस शो को घाटा भी हो रहा था. जिसे ध्यान में रखते हुए इन सभी फैसलों को लिया गया है.

ताजा रिपोर्ट की मानें तो इस बात का अंदाजा शो में काम करने वाले सभी कलाकारों को पहले से ही हो गया था. साथ ही खबर ये भी है कि निया शर्मा जल्द ही अपने नए शो के कास्ट को सभी के सामने होस्ट करने वाली है. वैसे नागिन तो हमेशा से लोगों का मन पसंदीदा सीरियल रहा है. इस सीरियल को लगभग सभी लोग देखना पसंद करते हैं. वैसे फैंस को एकता कपूर के नए शो का इंतजार है. देखना यह है कि इस शो में कैन-कौन होंगे नए चेहरे.

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वैसे फिलहाल सभी लोग लॉकडाउन में अपने घर से बैठकर काम कर रहे हैं. सभी को लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार है.

ये अफवाहें कोरोना से ज्यादा खतरनाक हैं

भारत में सिर्फ कोरोना वायरस ही नहीं है जो तेजी से फैल रहा है, बल्कि झूठी खबरों और अफवाहों की रफ्तार कोरोना वायरस को भी मात दे चुकी है. हर तरफ से आने वाली झूठी खबरें न केवल लोगों को सच देखने से रोक रही हैं, बल्कि उन की सोचनेसमझने की शक्तियों पर भी पाबंद लगा देती हैं जिस से उन के लिए सही और गलत में अंतर करना मुश्किल हो जाता है.

अफवाह और अराजकता

बीते दिनों नोएडा के रहने वाले राजेश को फेसबुक पर इंडिया टीवी के स्टाफ को ले कर झूठी खबरें फैलाने के जुर्म में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया.

राजेश ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर लिखा,”इंडिया टीवी के 20 कर्मचारियों को कोरोना वायरस हो गया है. यदि आप इंडिया टीवी के औफिस के आसपास रहते हैं तो सावधानी बरते और संभल कर रहें.”

इंडिया टीवी ने अपने कर्मचारियों को ले कर इस अफवाह के संदर्भ में झूठी खबर फैलाने के लिए राजेश के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. जाहिरतौर पर यह अफवाह जी न्यूज के कर्मचारियों के कोरोना संक्रमित होने के आधार पर फैलाई गई.

मिजोरम में 15 लोगों को फेक खबरें वायरल करने पर गिरफ्तार किया गया जिस में लिखा था कि राज्य से बाहर के लोग जल्द से जल्द वापस आ जाएं. राजस्थान के एक हैल्थकेयर कर्मचारी को कोविड-19 के झूठे आंकड़े पोस्ट करने पर हिरासत में लिया गया. ओडिशा में एक आदमी को फेसबुक पर अन्य व्यक्ति को कोरोना से संक्रमित होने की झूठी खबर पोस्ट करने पर गिरफ्तार किया गया. इस शख्स का कहना था कि उसे यह खबर व्हाट्सऐप पर मिली थी.

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झूठी खबरें फैलाने पर चिंता

यूनिवर्सिटी औफ मिशिगन के विद्वानों द्वारा भारत में झूठी खबरों के फैलने पर की गई स्टडी जिसे 18 अप्रैल, 2020 को जारी किया गया, के अनुसार भारत में लौकडाउन के दौरान झूठी खबरों के फैलने में भारी वृद्धि देखने को मिली है. स्टडी बताती है कि इस दौरान कोरोना वायरस के उपचार की झूठी खबरों में गिरावट आई है पर ऐसी खबरें जो लोगों को मार्मिक करने व मानसिक स्थिति को प्रभावित करती हैं में इजाफा हुआ है.

इस स्टडी में खबरों को 7 भागों में बांटा गया है जिस में संस्कृति या धर्म को ले कर फैलाई गई झूठी खबरें सब से ऊपर हैं. दूसरे स्थान पर हैं वायरस के इलाज और बचाव से जुड़ी अफवाहें, तीसरे स्थान पर प्रकृति से जुड़ी खबरें, चौथे और 5वें पर आपात व अर्थव्यस्था, छठे पर सरकार से जुड़ी झूठी खबरें व 7वें स्थान पर डाक्टरों से जुड़ी खबरें हैं.

अफवाहों के पीछे साजिश तो नहीं

इन झूठी अफवाहों के फैलाव का कारण देशव्यापी लौकडाउन है जिस के चलते सोशल मीडिया के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी हुई है. जहां फेसबुक का इस्तेमाल लौकडाउन के बाद 50% तक बढ़ा है, वहीं ट्विटर का इस्तेमाल भी कई फीसदी तक बढ़ा है. लौकडाउन के एक बार फिर बढ़ने से इन आंकड़ों में वृद्धि की आशंका है.

न के बराबर सच

झूठी खबरें फेसबुकू, इंस्टाग्राम, ट्विटर और व्हाट्सऐप पर धड़ल्ले से फैलाई जा रही हैं. ये खबरें कोरोना वायरस से जुड़े हरएक मुद्दे से ले कर देश की गरीब से गरीब और अमीर से अमीर व्यक्ति की सामाजिक, आर्थिक व निजी जीवन को भी अपनी चपेट में लेती हुई गढ़ी जाती हैं.

एक पढ़ेलिखे व्यक्ति के लिए भी इन फेक खबरों से खुद को दूर रखना लगभग मुश्किल हो गया है. यह निर्धारित करना मुश्किल हो गया है कि जो खबरें हमें सोशल मीडिया या न्यूज चैनलों द्वारा परोसी जा रही हैं वह किस हद तक विश्वसनीय हैं और कितनी नहीं.

बीते दिनों बौलीवुड अभिनेत्री और जबतब ट्विटर पर बेबाकी से अपनी राय रखने वालीं शबाना आजमी भी फेक न्यूज की चपेट में आ गईं.

शबाना आजमी ने अपने ट्विटर अकाउंट से एक तसवीर शेयर की जिस में एक गरीब बच्चा एक छोटे बच्चे को अपनी गोद में लिए बैठा था. यह तसवीर बेहद मार्मिक थी और इसे देश के मजदूरों के पलायन से जोड़ कर देखा गया. आजमी ने इसे शेयर करते हुए लिखा,”हार्टब्रेकिंग…”
यह तसवीर केवल आजमी द्वारा ही नहीं बल्कि विभिन्न सोशल प्लैटफौर्म्स पर विभिन्न लोगों द्वारा शेयर की गई थीं. सभी ने इस तसवीर को मजदूरों की दयनीय हालत से जोड़ कर देखा पर जब इस तसवीर की सचाई सामने आई तो भाव पूरी तरह बदल गए.

यह जनवरी 2019 की पाकिस्तान की एक तसवीर थी. संबित पात्रा समते अनेक लोगों ने इसे फेक बताया और आजमी को अर्बन नक्सल जैसे अलंकारों से ट्रोल करना शुरू कर दिया.

झूठी खबरों का बाजार

मजदूरों की बदहाली के बाद सोशल मीडिया पर मार्मिक खबरें दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं.

यकीनन मजदूरों की हालत दयनीय है और दिल को कचोटती हैं, पर इस मजबूरी का फायदा झूठी खबरों का बाजार गरम करने वाले तत्त्व बखूबी उठा रहे हैं.

कुछ दिनों पहले दलित कांग्रेस द्वारा एक तसवीर ट्वीट की गई जिस में एक बूढ़ा व्यक्ति अपनी बूढ़ी मां को कंधे पर उठाए चल रहा है. इस तसवीर से यकीनन आखें भीग उठती हैं लेकिन, यह तसवीर असल में भारतीय मजदूर प्रवासी की न हो कर 2017 में खींची गई बांग्लादेशी रोहिंग्या शरणार्थी की थी. इस तसवीर को पत्रकार और लेखक तवलीन सिंह और सागरिका घोष, अर्थशास्त्री रूपा सुब्रमनियम व जर्नलिस्ट स्वाति चतुर्वेदी ने भी शेयर किया था. इस के अलावा अनेक लोगों ने इसे फेसबुक, ट्विटर आदि पर भी पोस्ट किया.

परोसी जा रहीं हैं झूठी खबरें

भारत ऐसे फेज में पहुंच चुका है जहां खबरें मर्म और व्यक्ति की पहचान पर निर्धारित कर फैलाई जा रही हैं बजाय उन के वास्तविक तथ्य और वैज्ञानिक वैरिफिकेशन के. मार्मिक तसवीरों और लंबेलंबे मैसेजों के वायरल होने पर उन की सचाई जाने बिना उन पर यकीन कर लेना इतना आम हो गया है कि ये खबरें घृणा व दंगे भड़काने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने लगी हैं. भारत में मुसलिम तबके को ले कर नफरत का एक बङा कारण ये झूठी खबरे ही हैं.

भारत पर तंज

मई के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन की वर्चुअल मीटिंग में हिस्सा लिया जिस में उन्होंने आतंकवाद और झूठी खबरों को ले कर बात की. पीएम मोदी से पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने फेक न्यूज व इसलामोफोबिक कंटैंट पर बात की. राष्ट्रपति अल्वी ने भारत पर तंज कसते हुए कोरोनावायरस के संदर्भ में कहा, “बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को मौखिक दुर्व्यवहार अर्थात गालीगलौज, मौत की धमकी और शारीरिक हमलों का सामना कर पड़ा है. मुसलमानों को महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखा जा रहा है. यह ट्रैंड हमारे करीबी पड़ोसी देश से ज्यादा और कहीं विद्यमान नहीं है.”

यकीनन तबलीगी जमात के कोरोना फैलाने के मामले के पश्चात सोशल मीडिया पर हर मुमकिन तरीके से इसलामोफोबिक कंटैंट डाल कर नफरत फैलाने की कोशिशें की गईं. भारतियों का अपने धर्म को ले कर मार्मिक होना उन्हें व्यक्ति को धर्म की कसौटी से ऊपर उठा कर देखने से रोकता है. धर्म से इस भावनात्मक व संवेदनशील जुड़ाव का ही नतीजा है कि एक बीमार व्यक्ति का धर्म निश्चित करता है कि उस से सांत्वना रखनी चाहिए या द्वेष?

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अजैंडा के लिए झूठी खबरें

झूठी खबरें फैलाने के पीछे अन्य जरूरी मसलों को दबाने का अजैंडा छिपा होता है. सरकार की नाकामी को इन झूठी खबरों के नीचे दबा बेरोजगारी, चरमराती अर्थव्यवस्था, गरीबी, अपराध व भ्रष्टाचार से जनता का ध्यान कभी सीएए तो कभी दंगों पर लगा दिया जाता है. कोरोना महामारी के दौरान लोग पैनिक व ऐंजाइटी से गुजर रहे हैं और ऐसे में उन्हें अफवाहों के जाल में आसानी से जकड़ा जा रहा है.

धर्म के नाम पर कमियों को छिपाया जा रहा

भारत सरकार धर्म के नाम पर हमेशा से अपनी कमियों को ढंकती रही है फिर चाहे वह राम मंदिर का मसला हो या दिल्ली दंगों का. हिंदूमुसलिम का टकराव तो हमेशा से मौजूदा सरकार का नंबर-1 अजैंडा रहा है.

कोरोना वायरस के चलते ऐसी कितनी ही फेक वीडियोज वायरल हुईं जिन्होंने सरकार के अचानक से किए गए लौकडाउन की गलती तक को परदानशी कर दिया.

एक मुसलिम आदमी का एक विडियो वायरल हुआ जिस में वह अपनी रेहङी पर लगे फलों को चाट कर रख रहा था. इस विडियो को यह कह कर वायरल किया गया कि तबलीगी जमात से आया यह व्यक्ति फलों पर थूक लगा कोरोना फैलाने की कोशिश कर रहा है. विडियो पर काररवाई करते हुए पुलिस ने शेरू नामक इस व्यक्ति को हिरासत में लिया तो पता चला कि यह विडियो फरवरी माह की है और इस व्यक्ति की दिमागी हालत ठीक नहीं है जिस कारण इस का मजाक उड़ाने के लिए मोहल्ले के लड़कों ने यह विडियो बनाया था. यह विडियो तबलीगी जमात के मामले से पहले की थी.

अमर उजाला द्वारा 5 अप्रैल को यह रिपोर्ट पेश की गई कि तबलीगी जमात के कुछ लोग सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में नौनवेज खाने की मांग कर रहे हैं व खुले में मल त्याग रहे हैं. इस खबर को भी खूब फैलाया गया. आखिर सहारनपुर पुलिस द्वारा एक स्टेटमैंट जारी कर बताया गया कि यह खबर झूठी है अथवा अफवाह है और इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है.

झूठी खबरों के फैलाव से बचें

मुख्यधारा के न्यूज पेपर व चैनल फेक न्यूज को इस तरह परोसते हैं कि जनता इस पर विश्वास करने से खुद को रोक नहीं पाती और इन झूठी खबरों पर आग में घी डालने का काम किसी पद पर विराजमान अधिकारी या जानीमानी हस्तियां करती हैं. जैसे, बिजनैसवुमेन किरण शा मजूमदार ने ट्वीट किया था कि दक्षिणी गोलार्द्ध का देश कोरोना वायरस से मुक्त है, जिसे बाद में झूठी खबर करार दिया गया.

विश्व के लिए खतरा

ऐजेंस फ्रांस प्रैस की एक हालिया टैली के मुताबिक भारत में तकरीबन 100 लोगों को कोरोनावायरस से जुड़ी झूठी खबरों को फैलाने पर हिरासत में लिया गया. मुंबई पुलिस द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता के सैक्शन 144 के अंतर्गत एक और्डर लागू किया गया जिस के अनुसार, सोशल मीडिया पर किसी भी ग्रुप में फेक न्यूज का फैलाव होता है या किसी के भी द्वारा किया जाता है तो उस का जिम्मेदार ग्रुप का ऐडमिन होगा और उसी पर काररवाई की जाएगी.

लोगों के लिए यह समझना आवश्यक है कि झूठी खबरें किसी के जीवन को नष्ट कर सकती हैं, यहां तक कि ये विश्व के लिए भी खतरा हैं. इन्हें पोस्ट करने से पहले विश्वसनीय मीडिया हाउस की रिपोर्ट्स देखें व क्रौस चेक करें. सोशल मीडिया पर आने वाली हर खबर सच नहीं होती और कई बार विश्वसनीय स्रोत भी गलती कर बैठते हैं तो किसी एक स्रोत को अपने विचारों का आधार न बनाएं.

ऐसे जांचें झूठी खबरें

तसवीरें कौंटेक्स्ट अथवा प्रसंग के बिना होती हैं इसलिए उन की जांच करना मुश्किल होता है और उन पर विश्वास आसानी से हो जाता है. तसवीरें शेयर करने से पहले उन्हें गूगल इमेज सर्च के माध्यम से जांचें. गूगल पर रेवआई और टिनआई जैसे टूल्स मौजूद हैं जिन से आप किसी तसवीर की मौलिकता का पता लगा सकते हैं. तसवीर को गूगल पर खोलें व रेवआई टूल की मदद से उसे सर्च करें, इस तसवीर का मूल आप को मिल जाएगा.

इस पर भी ध्यान दें कि डाटा दिखाने वाले चार्ट्स का मतलब यह नहीं कि वह सही ही हैं, स्रोत के आधार पर डाटा की जांच करें उस में लिखी बातों के नहीं.

लोगों के लिए यह समझना जरूरी है कि जिन व्यक्तियों को वह अपना आदर्श मानते हैं वह भी गलत हो सकते हैं व उन के विचार रूढ़िवादी और हिंसक हों तो इस का मतलब यह नहीं कि यह सही है. आंखें मूंद कर किसी को फौलो न करें बल्कि दिमाग खोल कर करें. अधेड़ उम्र के व्यक्ति अपने राजनीतिक गुरुओं और युवा अपने सोशल मीडिया इंफ्लुऐंसर्स के नक्शेकदम पर चलने की बजाय अफवाहों को बढ़ावा न दें. किसी की गलत सोच, हिंसक और भड़काऊ पोस्ट को शेयर करना गलत है और निंदनीय है.

सोचसमझ कर शेयर करें

मैसाचुसैट्स इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी के मुताबिक ऐसी तसवीरें व्यक्ति में भावनात्मक प्रतिक्रिया को ट्रिगर करती हैं अधिक शेयर होती हैं. यही कारण है कि लोग जल्दी झूठी खबरों की चपेट में आते हैं जो मार्मिक और प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाली होती हैं. इन से बच कर रहें और सोचसमझ कर ही कुछ शेयर करें व विश्वास कर राय बनाएं.

कोरोना संकट : दुनियाभर के लोगों को दे रहा  है मानसिक आघात

कोरोना संकट का असर अब लोगों की मानसिक सेहत पर गंभीर रूप से पड़ने लगा है. इस वायरस के फैलाव की शुरुआत से ले कर अब तक दुनिया के कई देशों में मानसिक रोग से पीड़ित लोगों की संख्या में 50 फीसदी तक उछाल आया है. इस का सब से ज्यादा असर बच्चों, युवावर्ग और स्वास्थ्यकर्मियों पर देखने को मिल रहा है. इसे ले कर संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस के मुताबिक कोरोना संकट से पहले दुनियाभर में करीब 27 करोड़ लोग मानसिक रोगों से पीड़ित हैं. अब इस संख्या में करीब दोगुना बढ़ोतरी हुई है.

बच्चे :  मातापिता की तुलना में बच्चों में क्वारंटीन की वजह से चारगुना ज्यादा तनाव देखा जा रहा है. इस मामले में अन्य देशों के मुकाबले स्पेन और इटली सब से ज्यादा प्रभावित हैं.

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महिलाएं : भारत में इन पर सब से ज्यादा असर देखा जा रहा है. यहां इन की संख्या 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है. इस में 66 फीसदी महिलाएं प्रभावित हैं. पुरुषों का आंकड़ा 34 प्रतिशत है. गर्भवती और हाल में मां बनी महिलाओं में तनाव सब से अधिक है.

क्वारंटाइन का लंबे समय तक असर

मनोवैज्ञानिक बदलावों का असर लंबे समय तक रह सकता है. सार्स बीमारी के दौरान क्वारंटीन में गए लोग हफ्तों बाद भी इस मनोस्थिति से नहीं उभर पाए थे. सार्स फैलने के दौरान हुए सर्वे के मुताबिक लोगों ने घबराहट, ग्लानि और उदासी जैसी भावनाएं महसूस कीं. क्वारंटीन में पांच फीसदी लोगों को खुशी और चार फीसदी को राहत लगी.

हेल्थ वर्कर : अमेरिका और चीन में हो रहा हाल-बेहाल कोरोना से जंग में लगे स्वास्थ्यकर्मी भी मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं. उन्हें तत्काल रूप से सहायता की आवश्यकता है. चीन में पहले से ही 50 फीसदी हेल्थ वर्कर्स तनाव के दौर से गुजर रहे हैं. इसी तरह अमेरिका में सब से ज्यादा मामले आने के बाद हेल्थ वर्कर पर बोझ बढ़ता जा रहा है.

युवा :  कई देशों में कॉलेज और यूनिवर्सिटी बंद हैं और यह स्थिति कब तक बनी रहेगी, यह स्पष्ट नहीं है. ऐसे में युवा अपने भविष्य को ले कर बेहद चिंतित हैं.

कोरोना वायरस लोगों को मानसिक रूप से प्रभावित कर रहा है. लंबा लॉकडाउन व लंबे वक्त तक क्वारंटाइन रहना, कोरोना से अपने प्रियजन को खोने का दुख, नौकरी जाने और आमदनी कम होने का सदमा, मनचाही जगहों पर आवाजाही पर पाबंदी  और पारिवारिक व सामाजिक मेलजोल कम होने से भविष्य का डर बना हुआ है.

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इसलिए लॉकडाउन की वजह से घर में रहने वाले लोगों को हमेशा पॉजिटिव सोच रखने की जरूरत है. अगर घर में कोई हार्ट, शुगर या हाई बीपी का पेशेंट है तो वह अपनी दवा को नियमित समय पर लेते रहे. इस के अलावा मेंटल स्ट्रेस कम करने के लिए घर में अगर गार्डन है तो बागबानी करें, घर के काम में सहयोग करें, शारीरिक श्रम करें, योग आदि करें और कम से कम 7 घंटे की नींद जरूर लें.

इसलिए लोगों को चाहिए कि वह कोरोना को ले कर जागरूक रहें, लेकिन इन दिनों समाचार चैनल और सोशल मीडिया से थोड़ी दूरी भी बना कर रखें.

कोरोना वायरस : एक आम परिवार की व्यथा

 लेखक- डा. भारत खुशालानी

कोरोना वायरस : एक आम परिवार की व्यथा भाग 3

 लेखक- डा. भारत खुशालानी

प्रेषक ने कहा, “अगर डाक्टर साकेत आ कर इंजैक्शन दे कर गया होता तो अच्छा हो गया रहता.”

चिराक्षनी अपने गले को सहलाते हुए कराहने लगी, “मुझे अंदर से बहुत खराश महसूस हो रही है और लगता है मेरी बगल में गांठ हो गई है.”

प्रेषक, “हाथ लगाने पर दर्द होता है क्या?”

चिराक्षनी ने अपने ऊपर चादर ओढ़ ली, “ठंड लग रही है.”

प्रेषक ने अपनी चादर भी चिराक्षनी के ऊपर चढ़ा दी और उस के माथे का ताप लिया, “बहुत तप रहा है.”

चिराक्षनी ने सांसे भरते हुए कहा, “ठंडी लग कर बुखार आ गया है.”

प्रेषक शर्टपैंट पहनने लगा, “मैं डाक्टर को ले कर आता हूं.”

चिराक्षनी ने कहा, “देखो अगर साकेत मिल जाए तो…”

“मिला तो ठीक, नहीं तो मैं अस्पताल जा कर किसी डाक्टर को ले कर आता हूं.”

“अस्पताल तक तो मैं चल सकती हूं गाडी में.”

प्रेषक ने कहा, “नहींनहीं. अस्पताल नहीं जाएंगे. वहां पहले से बहुत बीमार लोग पड़े हुए हैं. वहां और इन्फैक्शन हो जाएगा. मैं साकेत को ही अस्पताल से ले कर आता हूं, अगर वह घर पर नहीं है तो.”

प्रेषक ने बाहर से दरवाजा लगाया. पहले वह डाक्टर साकेत के घर गया. वहां उसे ताला नजर आया. उस की खुद की कार ट्रैफिक के कारण फंस गई थी, इसलिए उस ने झट से चिराक्षनी की कार निकाली और अस्पताल का रुख किया. अस्पताल में ऐसा लग रहा था जैसे दिन हो. भारी चहलपहल थी. एक जगह पर दो नर्सें सब को फ्लू का इंजैक्शन लगा रही थीं. इंजैक्शन लगाने के लिए लाइन लगी हुई थी. प्रेषक ने हाथों में बड़ा सफेद प्याला ले जाती हुई एक नर्स को रोक कर पूछने की कोशिश की, “नर्स, ये डॉक्टर…”

लेकिन प्रश्न पूरा होने से पहले ही नर्स तेजी से आगे बढ़ गई, “रिसैप्शन पर पूछो.”

थोड़ी देर यहांवहां घूमने के बाद जनरल वार्ड में उस को साकेत नजर आ गया. उस ने जोर से आवाज लगाई ताकि भीड़ के ऊपर साकेत को सुनाई दे, “साकेतसाकेत…”

साकेत ने मुड़ कर देखा, “प्रेषक, यहां क्या कर रहे हो ?”

प्रेषक जल्दीजल्दी बताने लगा, “चिराक्षनी को तेज बुखार है और ठंड भी लग रही है. मुझे लगता है वह बहुत बीमार है.”

साकेत ने दुख जताया, “प्रेषक, आज के दिन तो कम से कम कोई भी यहां से आ कर उस को घर पर नहीं देख सकता है. मैं आज रात को तुम लोगों के घर आने वाला था लेकिन यहां का बुलावा आ गया. यहां की तो तुम हालत देख ही रहे हो.”

अस्पताल वाकई बहुत लोगों से भरा पड़ा था. प्रेषक ने तब गिङगिङाते हुए कहा, “उस की हालत वाकई खराब है. मैं ने बुखार की गोली दी है, लेकिन उसको डाक्टर की जरूरत है.”

साकेत ने अफसोस जाहिर किया, “स्टाफ की इतनी कमी हो गई है यहां कि नए मरीज भरती करने बंद कर दिए हैं हम लोगों ने. एक भी बिस्तर खाली नहीं है.”

“लोगों को अस्पताल से वापस भेजा जा रहा है?”

साकेत ने बताया, “हां. और बाकी के अस्पतालों में भी यही हाल है. वहां भी ऐसा ही हो रहा है.”

प्रेषक ने दुख और आश्चर्य से पूछा, “ऐसा क्यों? वे लोग कहां जाएंगे?”

साकेत ने तब बोला, “मरीज के साथसाथ हमारे स्टाफ के भी रोगी होने की संभावना बढ़ती जा रही है. कुछकुछ स्टाफ तो मरीज का इलाज करते हुए संक्रमित भी हो चुके हैं.”

“बहुत बेकार हुआ यह तो,” प्रेषक चिंतित हो कर बोला.

“जो जनरल प्रैक्टिशनर हैं, उन को तो वार्ड में आना ही है. नर्सें भी सभी आई हैं, लेकिन स्टाफ की संख्या ही पूरी नहीं पड़ रही है. सिर्फ यहां ही यह हाल नहीं है, सब अस्पतालों में ऐसा ही है.”

“जिस को यह वायरस लग जाता है, वह कितने दिनों तक बिस्तर पर रहता है?”

“अगर यह फ्लू होता तो अलग बात होती. सामने जो लंबी लाइन दिख रही है, उन को फ्लू का इंजैक्शन दे रहे हैं. लेकिन उस का कितना फायदा होगा, यह बता नहीं सकते, क्योंकि इस वायरस के ऊपर फ्लू का टीका प्रभावी नहीं है. फिर भी मनोवैज्ञानिक रूप से शायद मदद करे.”

“यहां तो आतंक का माहौल है. अब तक अस्पताल में कितनी मौतें हुई हैं?” प्रेषक ने जानना चाहा.

“इतनी तो नहीं हुई हैं कि घबराहट और आतंक का माहौल बन जाए. यह माहौल इस या किसी अस्पताल से नहीं बन रहा है.”

“कहीं हमारी सरकार भी आंकड़े तो नहीं छिपा रही है ?” प्रेषक ने पूछा.

“हम डाक्टरों को तो पक्के तौर पर सिर्फ हमारे अस्पताल में कितनी मौतें हो रही हैं, कितने संक्रमित हो रहे हैं, इस की जानकारी है. सब अस्पतालों का डाटा इकठ्ठा कर के उस के आंकड़े स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचाने का जिम्मा किसी और संकलन करने वाली संस्था को होता है,” डाक्टर साकेत ने बताया.

“संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है क्या?”

“सिर्फ संक्रमित लोगों की ही नहीं, वायरस से मरने वालों की भी. कल तक यह संख्या और बढ़ जाएगी.”

प्रेषक के गले में जैसे निवाला अटक गया. कल वाले संक्रमित मरीजों की सूची में उस की पत्नी भी शामिल होगी. प्रेषक की मानो जान अटक गई. विनती करते हुए उस ने साकेत से कहा, “तुम आ कर उसे देख नहीं सकते हो? उस को देखने के बाद कोई दवा या टैबलेट दे सकते हो?”

“ठीक है. मैं कोशिश करता हूं कि बाद में 15-20 मिनट निकाल कर आ सकूं. जैसे ही मुझे मौका मिलता है आने की कोशिश करता हूं,” डाक्टर साकेत ने कहा तो प्रेषक की जान में जान आई, “मैं घर पर इंतजार करता हूं तुम्हारा.”

एक पल के लिए प्रेषक को लगा कि साकेत से पूछे कि अस्पताल में वह कोई मदद कर सकता है? उस को मालूम था कि ऐसे ढेर सारे काम होंगे जिन में वह या तो साकेत की या अस्पताल प्रशासन की या फिर नर्सों की मदद कर सकता है. लेकिन चिराक्षनी का ध्यान आते ही उस ने यह विचार त्याग दिया.

एकाएक साकेत को कुछ ध्यान आया, “वार्ड 12 में निमोनिया के गंभीर मरीजों को रखा गया है. अपनी ही बिल्डिंग के फुल्वारे साहब हैं वहां.”

“ठीक है. मैं उन्हें देख आता हूँ,” प्रेषक ने मास्क लगाया और वार्ड 12 में प्रवेश किया. इस वार्ड को डोरमैट्री में बदल दिया गया था और हर बिस्तर पर मरीज लेटे हुए थे. इतने बड़े शयनगृह में एक मरीज को तलाशना कठिन कार्य था. लेकिन प्रेषक को मिसेज फुल्वारे नजर आ गईं. शयनगृह के बीच में बाईं ओर उन का बिस्तर था. मिसेज फुल्वारे ने भी मास्क पहना हुआ था और उन की आंखें रोरो कर लाल हो चुकी थीं.

प्रेषक को देखते ही उस ने पहचान लिया और गरदन हिला कर अभिवादन कर बोली, “आप यहां कैसे?”

“चिराक्षनी को भी बीमारी हो गई है,” प्रेषक ने बताया तो मिसेज फुल्वारे ने अपने पति की ओर इशारा कर बोलीं, “आईसीयू खाली नहीं है, मगर डाक्टरों ने बोला है कि इन्हें आईसीयू  में ही होना चाहिए.”

फुल्वारे को वैंटीलेटर पर रखा गया था. औक्सीजन की सफेद प्लास्टिक जैसी एक नली उस के नाक तक पहुंची हुई थी. उस को होश नहीं था.

प्रेषक ने सांत्वना देने की कोशिश की, “किसी और अस्पताल में?”

चिराक्षनी की हालत, फुल्वारे के सामने काफी हद तक सही नज़र आ रही थी.

मिस्सेस फुल्वारे ने कहा, “पहले कोशिश की थी. लेकिन हर अस्पताल में यही हाल है. अब तो डाक्टरों ने जवाब दे दिया है. 24 घंटे की मोहलत दी है,” इतना कहतेकहते वे फूटफूट कर रो पङीं.

मिसेज फुल्वारे से बातचीत के बाद प्रेषक को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे. उस ने यह जानना भी उचित नहीं समझा कि 1 सप्ताह पहले जो सब बिल्डिंग वालों की मीटिंग हुई थी, उस में जो लोग थे उन सभी को वायरस लग गया है क्या?

मिसेज फुल्वारे ने जोर से रोते हुए कहा, “सब लोग मर रहे हैं. आप और मैं कुछ नहीं कर सकते. मैं अपने पति की और आप अपनी पत्नी की कोई मदद नहीं कर सकते.”

प्रेषक ने हड़बड़ी में कहा, “मुझे लगा कि हम लोग तो कम से कम उस बीमारी से दूर हैं, हम लोगों को इतनी गंभीरता से यह रोग नहीं झेलना पड़ेगा.”

मिसेज फुल्वारे ने रोते हुए कहा, “पूरे वार्ड को डौरमैट्री बना दिया है और सभी मामले गंभीर हैं यहां.”

प्रेषक को सहसा ही वायरस की सचाई ने घेर लिया.

मिसेज फुल्वारे ने बताया, “सामने वाले बिस्तरों पर एक ही परिवार के चारों लोग आज मर गए”.

उस ने सामने की तरफ इशारा किया, “एक के बाद एक, सभी लोग मर गए,” फिर थोडा रूक कर कहा, “कल पता नहीं और कितने जाएंगे, और कितने रोगी बन कर आएंगे? अस्पताल में कोई जगह नहीं बची है.”

प्रेषक ने धीरे से कहा, “इस का मतलब है कि 1 हफ्ता बीतने तक… ओह…”

जब प्रेषक वापस अपने घर पहुंचा, तो चिराक्षनी के चेहरे से ले कर गले तक पसीना था और वह ठंड लग कर आए हुए बुखार से कांप रही थी. वह दर्द से कराह रही थी और उस को सांस लेने में बहुत तकलीफ महसूस हो रही थी. जब उस की सांस फूलने लगती थी, तो वह अपनी चादरों को भींच लेती थी.

 

कुछ समय के बाद साकेत प्रेषक के घर पहुंच गया. प्रेषक ने अस्पताल का दृश्य देखा था, शायद इसीलिए वह साकेत के प्रति अपनी कृतघ्नता को बयान नहीं कर पा रहा था. किन परिस्थितियों से जूझ कर साकेत यहां पहुंचा होगा, यह सोच कर ही प्रेषक साकेत का आभारी हो गया. ऐसी विकट परिस्थितियों में शायद ही कोई डाक्टर घर पर आ कर मरीज़ को देखता.

 

साकेत ने अपने ग्लब्स पहने हुए हाथों से चिराक्षनी की नब्ज टटोली और स्टेथोस्कोप से उस की दिल की धड़कन का मुआयना किया. चिराक्षनी आंखें बंद कर के लेटी ही रही.

“प्रेषक तुम को यहां से निकल जाना चाहिए. सिर्फ इस फ्लैट और इस बिल्डिंग से ही नहीं, मेरा मतलब है पूरे शहर से ही निकल जाना चाहिए,” डाक्टर साकेत ने कहा तो प्रेषक हैरानी से उसे देखते हुए कहा,”चिराक्षनी का क्या होगा?”

“अपनी कुछ जरूरी चीजें समेट लो. पैदल चलते हुए जितना सामान ले जा सकते हो, सिर्फ उतना ही लो अपने साथ,” डाक्टर साकेत ने उसे समझाया.

“मैं चिराक्षनी को छोड़ कर नहीं जा सकता.”

“तुम्हें अभी तक कोई लक्षण नहीं हैं. अभी मौका है. मौके का फायदा उठा लो.”

“मगर चिराक्षनी कहां रहेगी?”

“अस्पताल में. वैसे भी उस को अस्पताल ले कर जाना ही पड़ेगा. उस के लक्षण तीव्र हो गए हैं.”

“मैं उसके साथ ही रहूंगा,” प्रेषक ने जोर दे कर कहा तो डाक्टर साकेत बोल पङा, “नहीं. अस्पताल में इन्फैक्शन रेट बहुत ज्यादा है. स्वस्थ कर्मचारियों को तो पूरी शिक्षा दी जाती है, फिर भी वे भी संक्रमित हो गए हैं.”

“लेकिन डाक्टर साकेत ऐसे कैसे मैं अपनी पत्नी को अकेला इस बीमारी से लड़ने के लिए छोड़ दूं? अपनेआप को वह अकेला पाएगी तो कितना असहाय महसूस करेगी.”

“देखो प्रेषक, अभी सवेरा नहीं हुआ है. फिर पूरा ट्रैफिक जाम हो कर रास्ता बंद हो जाएगा. तुम जितना खाना अपने साथ ले जा सकते हो, उतना ले लो और निकल जाओ,” डाक्टर साकेत के इतना कहते ही

प्रेषक मायूस हो गया. बोला, “तुम डाक्टर हो. पूरे समय तुम्हारे पास सैकड़ों ऐसे मरीज़ आ रहे हैं, इसीलिए तुम को कुछ नहीं लग रहा है दिल में.”

साकेत ने दिलासा देते हुए कहा, “मेरी बात को समझो. मुझे भी…”

प्रेषक ने ध्यान से साकेत की तरफ देखा, “मुझे भी क्या?”

“मुझे भी वायरस लग गया है,” साकेत के मुंह से इतना सुन कर प्रेषक को जैसे बिजली का तार छू गया हो. एक कदम पीछे हटते हुए उस के मुंह से निकला, “क्या…?”

“मैं ने अपनी जांच खुद कर ली है. रिपोर्ट आ गई है. बस आज या कल में उस के लक्षण दिखने शुरू हो जाएंगे.”

प्रेषक बुत बन कर खड़ा रहा.

साकेत ने बताया, “चार दिन पहले शायद मुझे वायरस लग गया. इसलिए ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 2 या 3 दिनों में बुखार आना शुरू हो जाएगा. इस के बाद मुझे भी नहीं पता कि कितना गंभीर हो जाएगा. कुदरत करे सिर्फ हलका हो.”

साकेत की मानवता की भावना, प्रेषक के व्यापारी रवैआ से ऊपर थी.

साकेत ने प्रेषक को समझाना जारी रखा, “तुम भी वायरस की चपेट में हो. इस बिल्डिंग में केस हो चुके हैं. अस्पताल में तो तुम ने फुल्वारे को देखा ही. तुम्हारे घर में भी हो चुका है. बाहर जहां तुम जाते हो, उन में भी किसी ऐसे के संपर्क में जरूर आए होगे जिस ने खांसा हो या छींका हो. तुम्हारा ध्यान नहीं गया होगा. इतनी भारी ट्रैफिक भीड़ में तुम को पता ही नहीं चला होगा. तुम क्या, शहर के सभी लोग इस की चपेट में आ चुके होंगे. नहीं भी आए हैं, तो यही समझ कर चलना. हो सकता है तुम को वायरस लग गया है और लक्षण अभी दिखाई नहीं दे रहे हैं. अभी तक तो कोई लक्षण तुम्हारे शरीर पर नहीं दिख रहा है, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है.”

प्रेषक ने हकलाते हुए पूछा, “मु…मु…मुझे कैसे पता चलेगा?”

साकेत ने कहा, “बराबर पता चल जाएगा. सब को पता चल जाता है. वैसे भी आज रात को तुम ने काफी कुछ देख भी लिया है. हो सकता है कि तुम उन लोगों में से हो,जिन को नहीं लगा है या किन्हीं कारणों से नहीं लग सकता है.”

प्रेषक को जैसे हिम्मत बंधी, “हां, हो सकता है.”

साकेत ने कहा, “जिन लोगों को बीमारियों में भी रोग नहीं लगता है, उन्हें ‘असंक्राम्य’ कहते हैं. ऐसे लोग सीधे संपर्क में आते हुए भी बीमार नहीं होते हैं.”

प्रेषक का सीना जैसे गर्व से फूल रहा था, यह सोच कर की शायद उस ने वायरस को मात दे दी है.

साकेत ने अपना सामान उठाते हुए कहा, “मुझे वापस अस्पताल जाना है.”

प्रेषक ने डाक्टर का सामान समेटने में उस की मदद की.

साकेत ने फिर कहा, “याद रखना, शहर से बाहर निकल जाना.”

प्रेषक बोला, “लेकिन यदि मुझे लग ही गया है तो क्या फर्क पड़ता है? मैं कहां पर हूं, इस से तो कोई फर्क पड़ेगा ही नहीं. यह तो मेरे शरीर पर निर्भर करेगा कि हलका है या ज्यादा कष्टकारी.”

साकेत ने साँसें भरीं, “तुम्हारी मरजी है. मैं तुम को बता दूं कि यहां पर इस की मृत्यु दर बढ़ती ही जा रही है.”

“इन्फैक्शन भी अस्पताल में देखो, कितने बढ़ गए हैं…”

“और इस वायरस के कारण और बीमारियां भी बढ़ रही हैं, जैसे  टाइफाइड, कोलरा और भी पता नहीं कौनकौन सी, साकेत ने प्रेषक को उस के भले के लिए ही, थोड़ी वैज्ञानिक जानकारी देना उचित समझा ताकि प्रेषक उस की गंभीरता को समझ कर कदम उठा सके, “यह वायरस ‘उत्परिवर्ती’ है. ‘उत्परिवर्ती का मतलब जानते हो?”

प्रेषक की समझ से बाहर था, “नहीं.”

साकेत बोला,“यह वायरस बारबार अपना रूप बदल लेता है. इस के लिए दवा बनाई जाती है, फिर यह अपना रूप बदल कर दूसरे रूप में शरीर पर आक्रमण करता है. बहुत खतरनाक वायरस है यह.”

प्रेषक ने कुछ आशा से कहा, “कुछ तो करेगी सरकार.”

“किसी के भरोसे पर यहां मत बैठे रहो. जिस गति से यह वायरस लोगों को संक्रमित कर रहा है,उसे रोकने का कोई तरीका किसी के पास नहीं है. सरकारें भी कुछ नहीं कर सकतीं.”

प्रेषक ने अविश्वास से कहा, “ऐसे तो कुछ ही दिनों में मरने वालों की संख्या जिंदा रहने वालों से ज्यादा हो जाएगी. ऐसा कैसे हो सकता है?”

“पूरा शहर, बेकार हो जाएगा, ऐसा लगेगा जैसे यहां सिर्फ गंदगी और अपशिष्ट फेंके जा रहे हों. तुम सोच लो. तुम्हारे पास एक मौका है.”

साकेत ने जाने के लिए दरवाज़ा खोला, “अच्छे से सोच लेना. तुम्हारे ऊपर है. अस्पताल में ऐसे कई वायरस के शिकार मरीज हैं जो खुद से हैं, कोई परिवार वाला उन के साथ नहीं है वहां. फिर भी उस की देखभाल की जा रही है.”

साकेत चला गया. प्रेषक ने दरवाजा बंद किया और चिराक्षनी के पास आ कर खड़ा हो गया. शायद साकेत का कहना बिलकुल सही था. भले ही बात कड़वी हो, लेकिन यह कदम उस को उठाना ही पड़ेगा.

साकेत ने चिराक्षनी को अस्पताल में भरती करने का फैसला किया और चिराक्षनी को वहां छोड़ कर अपने बेटे के विश्वविद्यालय में जैसेतैसे पहुंच कर, किसी भी कीमत पर जस को उस के होस्टल से निकालने का निश्चय किया. चिराक्षनी भी यही चाहती थी. प्रेषक को इस समय अपनी पत्नी की बात का मान रखना उचित लगा. उसे समझ आ गया कि इस प्रकोप का कोई अंत नहीं दिख रहा है,ऐसे ही वायरस के खत्म होने के भरोसे पर बैठे रहना बेकार है.

कोरोना वायरस : एक आम परिवार की व्यथा भाग 2

 लेखक- डा. भारत खुशालानी

रात के तकरीबन पौने 9 बजे होंगे जब घर के दरवाजे पर घंटी बजी. चिराक्षनी ने आतुरता से दरवाज़ा खोला, प्रेषक ने जल्दी से घर में प्रवेश किया.

अपनी टाई उतारते हुए उस ने कहा, “पता नहीं कैसे पहुंचा हूं यहां तक. रोड पर एक भी गाडी अपनी जगह से हिल भी नहीं रही थी.”

 

चिराक्षनी ने प्रेषक का बैग रख दिया.

प्रेषक ने बताया, “3 बार लिफ्ट ली है, और 2 बार गाड़ियां बदली हैं, उस के बाद स्टैशन से यहाँ पैदल. लगभग 6 घंटे लग गए घर तक पहुंचने में.”

चिराक्षनी ने चिंतित हो कर पूछा, “बहुत थक गए होंगे न तुम?”

“थकना कम, गुस्सा ज्यादा आ रहा है,” प्रेषक ने बताया.

“टीवी पर बता रहे थे कि ट्रैफिक बहुत खराब है.”

“खराब? 2 गाड़ियों के बीच आदमी के निकलने की जगह तक नहीं थी और ऊपर से ट्रक, टैंपो, औटो वालों से धूल और धुंआ. पता नहीं कितने किलोमीटर लंबी लाइन लगी हुई थी.”

“अब शायद कल से लोग जाना ही छोड़ दें,” चिराक्षनी ने कहा.

“इतने सालों में पहली बार ऐसा देखा है. इस के पहले तो ऐसा कभी नहीं देखा, प्रेषक ने बताया.

“पता नहीं कितने दिन लगेंगे इन को सब वापस व्यवस्थित करने के लिए,” चिराक्षनी कुछ चिंतित हो गई थी.

“रास्ते में तो कोई कुछ करते दिखा नहीं,” प्रेषक ने बताया.

“चलो, कम से कम घर तो पहुँच गए,” चिराक्षनी थोङा निश्चिंत दिखी.

“जब तक सब ठीक नहीं हो जाता, तब तक बाहर काम पर जाना बेकार है. आज जैसी यात्रा तो फिर नहीं करनी है मुझे,” प्रेषक ने झल्लाते हुए कहा.

“रेल वाले स्टाफ बता रहे थे कि इलैक्ट्रिक गाड़ियां भी नहीं चल पा रही हैं.”

“हां, वहां भी वे लोग बोल रहे थे कि रेलमार्ग से न जा कर किसी और साधन से जाओ. प्राइवेट बस चल रही हैं, लेकिन उन में जगह ही नहीं है. और जाम में फंसी हैं.”

 

चिराक्षनी बिस्तर पर बैठ गई, “आज डाक्टर साकेत मिले थे. आज 9 बजे आने वाले हैं. फ्लू का टीका लगाएंगे हम दोनों को.”

प्रेषक भी बैठ गया, “उस से कुछ नहीं होने वाला है.”

चिराक्षनी, “क्यों ? भले ही पूरी 100% सुरक्षा नहीं मिलती हो, लेकिन कुछ नहीं से तो अच्छा है.”

प्रेषक ने कहा, “यह कोई फ्लू वायरस थोड़े ही है जो फ्लू का टीका लगाने से रक्षा होगी.”

“फ्लू के मामले तो हर साल होते ही हैं,” चिराक्षनी बोली.

“दिल्ली में तो ऐसे औफिस भी थे जहां एक भी आदमी काम पर आया ही नहीं,” प्रेषक बोला.

“मैं खाना लगा देती हूं.”

“मैं हाथमुंह धो कर आ जाता हूं,” यह कह कर प्रेषक वाशरूम की ओर बढ़ गया.

थोड़ी देर के बाद प्रेषक कपडे बदल कर आया और खाने पर बैठ गया. खाना खाते वक्त उस ने चिराक्षनी को बताया, “आज चाइना के किसी आदमी के साथ बात हुई फोन पर. पता नहीं कैसे काल लग गया. चाइना की सरकार की तरफ से तो खबर आएगी ही नहीं सही ढंग से. वह बता रहा था कि वहां लाखों लोग मर गए हैं. करोड़ों लोग संक्रमित हैं. पूरी जनव्यवस्था की ऐसीतैसी हो गई है वहां.”

चिराक्षनी ने तब चिंता से बोल पङी, “हमारे देश में भी लाखों लोग मर जाएंगे लेकिन किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ेगा.”

“टीवी पर क्या बोल रहे थे?”

“मरने के समाचार तो नहीं थे. बाहर के देशों में मरने वालों के बारे में बता रहे थे.”

“कम से कम जनसंचार के मामले में तो हमारे समाचार वाले बराबर जानकारी देते हैं, छिपाते नहीं हैं.”

“आज जस से मेरी बात हुई थी. वह ठीक है,” चिराक्षनी ने बात बदलते हुए कहा.

“अच्छा है.”

“टीवी पर देखो न और क्या बता रहे हैं?” चिराक्षनी बोली.

प्रेषक ने टीवी चालू किया. फिर रिमोट पर कुछ चैनल बदले, “बहुत सारे चैनल तो आ ही नहीं रहे हैं.”

“केबल वाले को फोन करना पड़ेगा,” चिराक्षनी ने सुझाव दिया.

प्रेषक ने रिमोट नीचे रख दिया, “अब उस का फोन कहां लगने वाला है. और हो सकता है उस का भी कोई दोष नहीं हो,” प्रेषक ने सफाई दी.

“100 साल पहले भी ऐसी ही जबरदस्त महामारी हुई थी,” चिराक्षनी बोली.

“वह फ्लू था,” प्रेषक बोल पङा.

“कितने लोग मर गए थे उस समय?”

“हमारे देश के 2 करोड़ लोग मर गए थे.”

“ओह, और कितने दिनों तक चला था वह?”

“उस समय तो वह महामारी 3 सालों तक चला था.”

“लो, हो गया. 3 साल?”

“इस बार तो अभी सिर्फ शुरुआत हुई है,” प्रेषक बोल पङा.

“लेकिन दवा में और इलाज करने में बहुत तरक्की हो गई है पिछले 100 सालों में, इसीलिए इतना ज्यादा तो इस बार नहीं होना चाहिए.”

प्रेषक ने बताया, “चाइना में भी तो तरक्की हुई है पिछले 100 सालों में. हम से ज्यादा ही हुई है. फिर वहां देखो क्या हाल हो गया. मेरे जानकार ने बताया कि वहां तो लाखों लोग मर गए, वह भी सिर्फ उन के प्रांत में होंगे. पूरे चाइना में तो करोड़ों लोग मर गए होंगे. वे थोड़े ही बताएंगे. उन की सरकार असली आंकड़े कभी नहीं बताती है.”

“आप को क्या लगता है, हमारे देश की अब तक कितनी बुरी हालत होगी? और इस के बाद कितनी बुरी हो सकती है?” चिराक्षनी थोङी गंभीर थी.

“हमारे देश में भी बहुत दूरदूर तक फैला हुआ है. बहुत अशांति का माहौल बना दिया है इस ने. हर जगह बाधा पैदा कर दी है. तुम यह सोचो कि हम अपना व्यापार कैसे चलाएंगे?जितना नुकसान आने वाले कुछ दिनों में होगा, उस की भरपाई करने को पता नहीं कितने महीने लग जाएंगे.”

तब चिराक्षनी बोली, “धीरेधीरे अपनेआप ही खत्म हो जाएगा यह वायरस.”

“वह तो है. लेकिन आज रास्ते की हालत देख कर ऐसा लगता है कि सामान्य स्थिति आने में बहुत समय लग जाएगा. दिल्ली में तो हालात नामुमकिन हैं.”

 

चिराक्षनी बोली, “ऐसी हालत तो सिर्फ तब होनी चाहिए दिल्ली में जब रेल कर्मचारी हड़ताल पर हों.”

“कुदरत ने चाहा तो जल्द ही सब ठीक हो जाएगा,” प्रेषक बोल पङा.

“मैं ने तो आज तक कभी सोचा ही नहीं कि एक वायरस के कारण शहर की क्या हालत हो सकती है. हालात इतने खराब हैं कि सभी प्रणालियां एक ही समय पर टूट गई हैं, यातायात नहीं है, बिजली नहीं है, गैस नहीं है, खाना नहीं है, पानी बंद हो जाता है, गंदा पानी और मलजल व्यवस्था जाम हो जाते हैं…” चिराक्षनी थोङी गंभीरता से बोली.

“खाना तो शहर के अंदर आ सकता है, लेकिन उस को जगहजगह ले जा कर बांटेगा कौन ?”

“महानगर में रहने वाले ये सब बातें कभी सोचते ही नहीं हैं कि ऐसी भी परिस्थिति आ सकती है.”

 

अचानक पूरे घर की बिजली गुल हो गई. दोनों शांत हो गए. थोड़ी देर बात चिराक्षनी ने सहम कर प्रेषक से पूछा, “सिर्फ हमारे घर की गई है या पूरे इलाके की ?”

प्रेषक ने खिड़की से देखा. चारों ओर अंधेरा दिख रहा था. सब की बिजली चले गई थी. उस ने मोमबत्ती जलाई और बोल पङा, “रात हो गई है. मेरे खयाल से अब सो जाना चाहिए.”

“मुझे तो अब जस की चिंता हो रही है. उस को जैसेतैसे यहां ले आना चाहिए,” चिराक्षनी चिंतित हो कर बोली तो प्रेषक ने समझाते हुए कहा “नहीं, मेरे खयाल से वह वहीं ठीक है. इतनी बड़ी संस्था है, इतना बड़ा विश्वविद्यालय है. उन को तो सब पता रहेगा क्या करना चाहिए. बाद में अगर हालात और बिगड़ जाएंगे तो देखेंगे.”

चिराक्षनी के चेहरे पर जस को ले कर चिंता की रेखाएं देख कर प्रेषक ने उस को सांतवना दी, “चिंता मत करो. वह ठीक है. चलो अब चुपचाप सो जाओ.”

 

अंधेरे में चिराक्षनी के चेहरे से पसीने की परत मोमबत्ती की रौशनी में चमक रही थी.

प्रेषक ने चिराक्षनी के चेहरे पर पसीना महसूस किया, “तुम ठीक हो? बुखार तो नहीं लग रहा है?”

चिराक्षनी बोली, “थोडी गरमी लग रही है बिजली जाने के बाद.”

 

रात को अचानक प्रेषक की नींद खुली तो उस ने चिराक्षनी को पसीने से सराबोर पाया.

प्रेषक ने चिराक्षनी के कंधे सहलाए, “इतना पसीना कैसे आ रहा है तुम को ?”

चिराक्षनी आधा उठ कर बिस्तर पर बैठ गई. प्रेषक एक गोली और पानी का गिलास ले कर आया, “यह गोली ले लो. इस से बुखार कम हो जाएगा,”

चिराक्षनी ने पानी के साथ गोली खा ली.

कोरोना वायरस : एक आम परिवार की व्यथा भाग 1

 लेखक- डा. भारत खुशालानी

चिराक्षनी ने अपने बजते हुए मोबाइल की स्क्रीन पर देखा, फिर फोन उठाते ही पूछा, “जस बेटा, कैसे हो तुम ?”

जस ने दूसरी ओर से उत्तर दिया, “मैं ठीक हूं. आप लोग कैसे हो ?”

“हम दोनों ठीक हैं. आज पापा को फरीदाबाद जाना था, शाम तक लौट कर आ जाएंगे,” चिराक्षनी ने बोला.

“आसपास तो कोई केस नहीं हुआ है ना ?” जस ने चिंतित भाव से पूछा.

“फिलहाल नहीं. वहां कैसा माहौल है ?”

“यहां सब को कैद कर के ही रख दिया है समझो. कहीं आनेजाने की अनुमति नहीं है.”

“बेटा, अगर आईआईटी नहीं होता, तो मैं कब का तुम्हें वहां से भाग कर आ जाने के लिए बोलती.”

“मम्मी, आईआईटी के छात्र कोई दंगावंगा नहीं करते हैं. सभी कक्षाएं  बंद हैं, तो सब होस्टल में ही बैठ कर पढ़ाई कर रहे हैं.”

“बहुत बढ़िया बेटा. बस अब कुछ दिनों की बात है.”

 

“मम्मी, ऐसा लगता है जैसे हम लोगों को घेराबंदी के तहत रखा गया है.”

“बेटा तुम कल फिर से काल करना. हो सके तो शाम को पापा के आने पर भी काल करना. तुम ने पापा को काल किया था?”

“पापा का फोन नहीं मिल रहा है. लेकिन आप चिंता मत करो.”

“यहां पर स्कूल और कालेज बंद कर दिए हैं. काश तुम लोगों को भी घर भेज दिया होता तो आज तुम यहां घर पर ही होते.”

“ठीक है मम्मी, अब मैं कल काल करूंगा.”

“ठीक है बेटा, अपना ध्यान रखना.”

 

चिराक्षनी ने मोबाइल रख दिया. उस को पता था कि कम से कम जस की तरफ से उस को चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी. उस ने अपनी नौकरानी को आवाज लगाई, “अरे जानकीबाई, 2 कप चाय रख दो.”

जानकी ने पूछा, “आंटी, जस ठीक है ?”

चिराक्षनी, “हां, होस्टल में ही है. क्लास वगैरह बंद हैं.”

जानकी ने चाय रखते हुए पूछा, “वहां पर कोई चिंता की बात तो नहीं लग रही है न ?”

“पूरे कालेज को बंद कर दिया है. किसी को न अंदर आने दे रहे हैं, न बाहर जाने दे रहे हैं. व्यापारी लोग कालेज के दरवाजे पर आ कर सामान दे कर जाते हैं. मेस तक में भी खाना बनाने के लिए सब्जियां ऐसे ही पहुंच रही हैं. कालेज के लोग दरवाजे से छात्रों तक सामान ले जा रहे हैं,” चिराक्षनी ने चिंतित भाव से कहा.

“अच्छा है, कम से कम इतना तो कर रहे हैं. अभी तक कालेज में किसी को रोग नहीं लगा है न ?” जानकी कुछ चिंतित हो कर पूछा.

“नहींनही. कुदरत का शुक्र है. जस बता रहा था कि कुछ लोगों को पेट में थोड़ी तकलीफ हुई थी, लेकिन वह शायद अभी कालेज के लोगों ने जो खाने पर प्रतिबंध लगाया है, उस के कारण है.”

“अच्छी बात है. नहीं तो यहां इतनी दूर बैठ कर चिंता में ही आदमी मर जाए,” जानकी ने चाय छानते हुए कहा.

जानकी ने 1 कप चाय चिराक्षनी को दी, फिर पूछ बैठी, “साहब शाम को कितने बजे आएंगे?”

“बोला तो था कि 4 बजे तक वापस आ जाएंगे,” चिराक्षनी ने धीरे से कहा.

इतने में चिराक्षनी का मोबाइल फिर बजा. फोन पति प्रेषक का था.

चिराक्षनी ने पति का फोन देखा तो रिसीव करते ही पूछ बैठी,“कहां तक पहुंचे आप ?”

 

“चिराक्षनी एक काम करो, अपनी गाड़ी ले कर मुझे लेने के लिए स्टैशन तक पहुंचो. मैं साढ़े 3 बजे की गाड़ी से पहुंच जाऊंगा,” पति प्रेषक ने कहा.

“क्यों, आप की कार को क्या हुआ ?”

“मैं बाद में आ कर बताता हूं”, कह कर प्रेषक ने फोन रख दिया.

चिराक्षनी को थोड़ी चिंता हुई. सवेरे प्रेषक यहां से अपनी कार ले कर गया था. अभी वह इसी खयाल में डूबी थी कि जानकी ने अचानक कहा, “मुझे भी 2-4 दिन अपने गांव जाना है. वहां सब देखना है कि कैसे क्या चल रहा है.”

 

चिराक्षनी की मुसीबतें जैसे चौगुनी हो गईं. जानकीबाई का एक दिन भी छुट्टी लेना उसे बहुत अखरता था. और इन दिनों में उस का अपने गांव चले जाना उस के लिए और भी बड़ी मुसीबत बन जाएगी.

उस ने जानकी से पूछा, “सब खैरियत तो है न गांव में ? मां की कोई खबर है क्या ?”

“2 दिन से मैं फोन करने की कोशिश कर रही हूं, कोई जवाब ही नहीं आ रहा है. आज सवेरे से अचानक ही फोन बंद आ रहा है. जबजब भी फोन करती हूं,” जानकी चिंतित हो कर बोली.

 

चिराक्षनी को और भी ऐसी कई जगहों की खबर थी जहां ऐसा हो रहा था. वह समझ गई कि अब जानकी का अपनी मां से फोन पर कोई संपर्क नहीं हो पाएगा और जानकी को तब तक बेचैनी सताती रहेगी जब तक वह गांव जा कर अपनी मां से मिल नहीं लेती. उस ने जानकी को समझाया, “पूरा दक्षिण वाला भाग भंग हो गया है. वहां कोई रिसैप्शन और कनैक्टिविटी नहीं है. इस का यह मतलब नहीं है कि कुछ बुरा घटित हुआ हो.”

“लेकिन 2 दिन पहले तक फोन में रिंग तो जा रही थी. अब तो कोई रिंग भी नहीं जा रही,”

“औपरेटर लोग और फोन वाले भी अब कम ही लोग हैं जो काम पर हैं. इसीलिए भी बहुत सारे टौवर स्विचऔफ कर दिए हैं. इसीलिए फोन जाता ही नहीं है.”

“लेकिन जब 2 दिन पहले रिंग बज रही थी, तो उस ने पलट कर काल भी नहीं किया. नहीं तो हमेशा करती है.”

“ठीक है. जा कर देख कर आ जाओ. तुम्हें भी संतुष्टि हो जाएगी. मगर एक ही दिन में आ जाना. क्या भरोसा, कल को वहां का भी रास्ता बंद कर दिया, तो तुम वहीं पर फंस कर रह जाओगी,” जानकी को समझाते हुए सुलक्षना ने कहा.

“वहां मां के पास रहूंगी इस समय तो उस को भी अच्छा लगेगा,” सुलक्षना ने जवाब में कहा.

“लेकिन वहां पर यहां जैसी सुविधाएं  नहीं हैं और यहां बराबर से सरकार के लोग खानेपीने और दवा का इंतज़ाम कर के देते रहेंगे. गांव में कुछ नहीं होने वाला,” जानकी को यह सब बताना जरूरी था, नहीं तो घर का पूरा काम उस के ही जिम्मे पर आ जाएगा.

जानकी अपने काम में लग गई. उस ने शाम को ही यहां से जाने के बाद अपने गांव जाने का सोच लिया.

 

5 मिनट गाड़ी निकालने के, 5 मिनट स्टैशन पहुंचने के और 5 मिनट गाड़ी पार्क कर के अंदर जाने को मिला कर, चिराक्षनी सवा 3 बजे अपने घर से निकली ताकि साढ़े 3 बजे वाली गाडी के लिए समय से पहुंच सके. पार्किंग में उसे डाक्टर साकेत मिले जो अपनी गाड़ी पार्क कर के अपने फ्लैट में जा रहे थे.

चिराक्षनी ने उन से कहा, “डाक्टर, लगता है आप रात को सोए नहीं?”

“वाकई नहीं सोया मैडम.पूरी रात अस्पताल में था. अब समय मिला है घर आ कर थोड़ा आराम करने का. आप कहां जा रही हैं ऐसे समय में ?”

“प्रेषक को लेने जा रही हूं स्टैशन,” चिराक्षनी ने कहा.

 

“ठीक है, तुम उस को ले कर आ जाओ. मैं 5-6 घंटे की नींद कर के रात को 9 बजे तक आप लोगों के घर आ जाता हूं.”

“बिलकुल आ जाइए. संजिनी को भी लेते आना. सब का मन बन जाएगा.”

“आप दोनों को भी फ्लू का टीका लगा देता हूं आ कर. पिछले 2-3 दिनों में बहुतों को दिया है,” डा. साकेत ने कहा.

 

चिराक्षनी को यह सुन कर खुशी हुई, “यह तो मेरे और प्रेषक दोनों के लिए बहुत बढ़िया होगा.”

साकेत ने कहा,“शायद संजिनी को न ला सकूं. उस की तबियत खरब है.” संजिनी उसकी बीवी थी.

चिराक्षनी को सुन कर दुख हुआ, “अरे नहीं…”

“कम से कम इस पूरी बिल्डिंग में और हो सके तो पूरी कालोनी में मुझे टीके लगाने हैं. इस से पहले कि बात बहुत गंभीर हो जाए.”

“कालोनी में कोई मामला तो सामने नहीं आया है न ?” चिराक्षनी ने पूछा.

“अस्पताल में तो 30-40 ऐसे हैं जिन के लक्षण दिख रहे हैं. ठीक है, मैं 9 बजे आ कर बाकी की खबर देता हूं.” साकेत चला गया.

चिराक्षनी जल्दी से अपनी कार में बैठ कर स्टैशन पहुंची.

 

नई दिल्ली जाने वाली गाडी खड़ी थी. उस ने आश्चर्य से अपनी घड़ी की तरफ देखा और एक रेल कर्मचारी से पूछा, “नई दिल्ली जाने वाली यह गाड़ी अभी कैसे ?”

कर्मचारी ने बताया, “यह 1 बजे वाली गाड़ी है. सभी गाड़ियां लेट चल रही हैं.”

“और फरीदाबाद से आने वाली गाड़ियां ?”

“पिछले 3 घंटों में तो वहां से कोई गाड़ी नहीं आई है.”

चिराक्षनी हतप्रभ भी हो गई और मायूस भी. घर वापस जाने की उस को इतनी चिंता नहीं थी क्योंकि घर पास में था. उस को प्रेषक के आने की चिंता थी.

 

तभी कर्मचारी ने बताया, “पता नहीं कहां फंसी हुई हैं सारी गाड़ियां. निकली भी हैं या नहीं, मालूम नहीं. कोई कुछ ढंग से बता ही नहीं रहा है. किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा है.”

चिराक्षनी समझ गई कि अब रुकना व्यर्थ है.

 

कर्मचारी ने बताया, “बहुत सारे रेलवे स्टाफ भी छुट्टियों पर है. थोड़ेबहुत अस्पताल में हैं, बाकी घर पर हैं. जो घर पर हैं, वे बाहर आना ही नहीं चाहते तो गाड़ियाँ कैसे चलेंगी ?”

चिराक्षनी ने पूछा, “गाड़ियां रद्द भी कर दी हैं क्या?”

कर्मचारी बोला, “समझ ही नहीं रहा है कौन सी गाडी किस समय पर आएगी और कौन से समय वाली को रद्द कर दिया है. रास्ते में बिजली भी नहीं है इलैक्ट्रिक रेलगाड़ियों के लिए.”

 

जैसे पूरी व्यवस्था ही चरमरा गई हो और टूटने की स्थिति में हो. फोन भी बीपबीप की आवाज कर के बंद हो जा रहे थे. बहुत मुश्किल से फोन लग रहे थे. शायद टौवर में बहुत ज्यादा काल जा रहे थे. या टौवर अपनी क्षमता से कहीं अधिक भार बरदास्त नहीं कर पा रहे थे. और अब रेल यातायात. पहले हर जगह पर सार्वजनिक फोन हुआ करते थे. अब वे नहीं दिखते. अगर वे इस जमाने में होते तो आज शायद वे भी काम नहीं करते क्योंकि सब लैंडलाइन फोनों का भी यही हाल था.

चिराक्षनी ने कहा, “मेरे पति साढ़े 3 बजे वाली गाड़ी से आने वाले थे.”

कर्मचारी ने कहा, “वह तो अब पता नहीं कब आएगी और आएगी भी या नहीं. समय सारणी सब खराब हो गई है, उस का कोई मतलब नहीं रह गया है.”

चिराक्षनी वापस घर आ गई. घर आ कर उस ने टीवी पर समाचार खोला. समाचारों में बता रहे थे कि किनकिन जगहों पर भारी ट्रैफिक जाम हो गया है. सिर्फ दिल्ली इलाके में ही नहीं, पूरे देश में यही हालत थी. देश के सब इलाकों की खबरों के बीच, सिर्फ दिल्ली के आसपास के इलाकों की खबरें बहुत कम आ रहीं थीं. इस से स्पष्ट रूप से कुछ पता भी नहीं लग पा रहा था कि वास्तविक परिस्थिति क्या थी? पुलिस अधिकारियों की तरफ से एक अजीब दरखास्त यह आ रही थी कि जो लोग आज काम पर आए थे, वे अपने घर देर से जाएं, ताकि कम ट्रैफिक का उन्हें सामना करना पड़े. ऐसा करने से न केवल उन को कम ट्रैफिक का सामना करना पड़ेगा, बल्कि उन के रोड पर न होने की वजह से ट्रैफिक भी कम होगा. देश के बड़े नगरों में बिजली की कटौती कर दी गई थी. जो लोग घर पर थे, यह उन लोगों के लिए न केवल असुविधाजनक बात थी, बल्कि रोष भी पैदा कर रही थी. इन सब नगरों में जनबल में काफी कमी आ गई थी. बहुत जगहों पर आपातकाल लागू कर दिया गया था. चिराक्षनी ये सब समाचार सुन कर सकते में आ गई. समाचारों में वायरस के बहुत तेज गति से फैलने पर चिकित्सा अधिकारी चिंता जता रहे थे.

Crime Story: इश्क, ईश्वर और राधा

साधारण परिवार में पलीबढ़ी राधा को न सिर्फ अपने परिवेश से नफरत थी, बल्कि गरीबी को भी वह अभिशाप समझती थी. लिहाजा होश संभालने के बाद से ही उस ने खुद को सतरंगी सपनों में डुबो दिया था. वह सपनों में जीने की कुछ यूं अभ्यस्त हुई कि गुजरते वक्त के साथ उस ने हकीकत को सिरे से नकार दिया.

हकीकत क्या है, वह जानना ही नहीं चाहती थी. मगर बेटी की बढ़ती उम्र के साथसाथ पिता श्रीकृष्ण की चिंताएं भी बढ़ती जा रही थीं.

राधा के पिता श्रीकृष्ण कन्नौज के तालग्राम थानाक्षेत्र के अमोलर गांव में रहते थे. वह मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे. परिवार में पत्नी गीता के अलावा 3 बेटियां थीं, पुष्पा, सुषमा और राधा. पुष्पा और सुषमा का उन्होंने विवाह कर दिया था. अब केवल राधा बची थी.

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राधा अभी किशोरावस्था में ही थी, जब उस के पिता श्रीकृष्ण ने उस के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया था. वह बेटी के हाथ पीले कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा लेना चाहते थे.

 

राधा अब तक यौवन की दहलीज पार कर चुकी थी. गेहुंआ रंग, छरहरी काया और बड़ीबड़ी आंखें उस का आकर्षण बढ़ाती थीं. कुल मिला कर वह आकर्षक युवती थी. उस के यौवन की चमकदमक से गांव के लड़कों की भी आंखें चुंधियाने लगी थीं. वे राधा के आगेपीछे मंडराने लगे थे. यह देख कर राधा मन ही मन खुश होती थी. लेकिन वह किसी को भी घास नहीं डालती थी.

आखिरकार उस के पिता ने अपनी कोशिशों के बूते पर उस के लिए एक लड़का तलाश कर लिया. उस का नाम ईश्वर दयाल था. वह कन्नौज के ही तिर्वा थानाक्षेत्र के मलिहापुर गांव का निवासी था. ईश्वर के पिता बच्चनलाल का देहांत हो चुका था. मां लक्ष्मी के अलावा उस के 2 बड़े भाई राजेश और राजवीर थे.

पिता की मृत्यु के बाद सभी भाई आपसी सहमति से बंटवारा कर के अलगअलग रह रहे थे. घर का बंटवारा जरूर हो गया था लेकिन उन के दिल अब भी नहीं बंटे थे. सुखदुख में सब साथ खड़े होते थे. भाइयों की तरह ईश्वर दयाल भी मेहनतमजदूरी करता था.

उधर घर वालों ने करीब 8 साल पहले राधा का विवाह ईश्वर दयाल से कर जरूर दिया था लेकिन वह पति से खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि राधा ने जिस तरह के पति के सपने संजोए थे, ईश्वर दयाल वैसा नहीं था.

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वह तो एक सीधासादा इंसान था, जो अपने परिवार में खुश था और उस की दुनिया भी अपने परिवार तक ही सीमित थी. राधा की तरह वह न तो ऊंचे सपने देखता था और न ही उस की महत्त्वाकांक्षाएं ऊंची थीं. ऊपर से उसे पहननेओढ़ने, सजनेसंवरने का शौक भी नहीं था.

राधा को पति ईश्वर दयाल का सीधापन बहुत अखरता था. वह चाहती थी कि उस का पति बनसंवर कर रहे. उसे घुमाने ले जाए, सिनेमा दिखाए. मगर ईश्वर दयाल को यह सब करने में संकोच होता था. उस की यह मजबूरी राधा को नापसंद थी. लिहाजा उस का मन विद्रोह करने लगा.

 

वक्त गुजरता रहा. इसी बीच राधा 2 बेटियों और 1 बेटे की मां बन गई तो ईश्वर दयाल खुशी से फूला नहीं समाया. उसे लगा अब राधा अपनी जिद छोड़ कर गृहस्थी में रम जाएगी. लेकिन जिस नदी को हिलोरें लेनी ही हों, उसे भला कौन रोक सकता है.

ईश्वर दयाल से राधा की कामना का वेग थमा नहीं था. वह तो बस मौके की तलाश में थी. जब परिवार बढ़ा तो ईश्वर दयाल की जिम्मेदारियां भी बढ़ गईं. वह सुबह काम पर निकलता तो शाम को ही घर आता.

 

ईश्वर दयाल के गांव में ही छोटेलाल रहता था. वह गांव का संपन्न किसान था. परिवार में उस की पत्नी श्यामा और 2 बेटियां और एक बेटा था. एक ही गांव में रहने के कारण ईश्वर दयाल और छोटेलाल की दोस्ती थी. दोनों ही शराब के शौकीन थे. उन की जबतब शराब की महफिल जम जाती थी.

अधिकतर छोटेलाल ही शराब की पार्टी का खर्चा किया करता था. एक दिन छोटेलाल मटन लाया. मटन की थैली ईश्वर दयाल को देते हुए बोला, ‘‘आज हम भाभी के हाथ का पका हुआ मटन खाना चाहते हैं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, राधा बहुत स्वादिष्ट मटन बनाती है. एक बार तुम ने खा लिया तो अंगुलियां चाटते जाओगे. ’’ कहते हुए ईश्वर दयाल ने मटन की थैली राधा को पकड़ा दी. इस के बाद ईश्वर दयाल और छोटेलाल साथ लाई शराब की बोतल खोल कर बैठ गए.

बातें करते हुए छोटेलाल शराब तो ईश्वर दयाल के साथ पी रहा था लेकिन उस का मन राधा में उलझा हुआ था और निगाहें लगातार उस का पीछा कर रही थीं.

छोटेलाल को उस की खूबसूरती भा गई थी. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में राधा का शबाब नशीला होता गया.

शराब का दौर खत्म हुआ तो राधा खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर छोटेलाल ने राधा और उस के द्वारा बनाए गए खाने की दिल खोल कर तारीफ की. राधा भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद छोटेलाल अपने घर लौट गया.

इस के बाद तो ईश्वर दयाल के घर रोज ही महफिल सजने लगी. छोटेलाल ने राधा से चुहलबाजी करनी शुरू कर दी. राधा भी उस की चुहलबाजियों का जवाब देती रही. राधा की आंखों में छोटेलाल को अपने लिए चाहत नजर आने लगी थी. उस के अंदाज भी कुछ ऐसे थे जैसे कि वह खुद उस के करीब आना चाहती है.

 

दरअसल, राधा को छोटेलाल में वह सब खूबियां नजर आई थीं, जो वह चाहती थी. छोटेलाल अच्छे पैसे कमाता था और खर्च भी दिल खोल कर करता था. ऐसे में मन मार कर ईश्वर दयाल के साथ रह रही राधा के सपनों को नए पंख लग गए. छोटेलाल का झुकाव अपनी तरफ देख कर वह बहुत खुश थी.

हर रोज की मुलाकात के बाद वे दोनों एकदूसरे से घुलतेमिलते चले गए. छोटेलाल हंसीमजाक करते हुए राधा से शारीरिक छेड़छाड़ भी कर देता था. राधा उस का विरोध नहीं करती, बल्कि मुसकरा देती. हरी झंडी मिल जाने पर छोटेलाल राधा को जल्द से जल्द पा लेना चाहता था, इसलिए उस ने मन ही मन एक योजना बनाई.

एक दिन जब वह ईश्वर दयाल के साथ उस के घर में बैठा शराब पी रहा था तो उस ने खुद तो कम शराब पी लेकिन ईश्वर को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. छोटेलाल ने भरपेट खाना खाया जबकि ईश्वर दयाल मुश्किल से कुछ निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया.

 

छोटेलाल की मदद से राधा ने ईश्वर दयाल को चारपाई पर लेटा दिया. इस के बाद हाथ झाड़ते हुए राधा बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी यह सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’

फिर उस ने छोटेलाल की आंखों में झांकते हुए भौंहें उचकाईं, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारी चारपाई भी बिछा दूं.’’

छोटेलाल के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ पड़ा. वह सोचने लगा कि राधा भी चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार का खेल खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर लगा दो.’’

इस के बाद राधा ने छोटेलाल के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया. वह खुद बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई.

छोटेलाल की आंखों में नींद नहीं थी. उस की आंखों के सामने बारबार राधा की खूबसूरत काया घूम रही थी. उस के कई बार मिले शारीरिक स्पर्श से वह रोमांचित हुआ था.

उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति पाने के लिए वह बेकरार था. ईश्वर दयाल की ओर से वह निश्चिंत था. इसलिए वह दबेपांव चारपाई से उठा और ईश्वर दयाल के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में राधा बच्चों के साथ सो रही थी.

 

कमरे में चारपाई पर बच्चे लेटे थे. जबकि राधा जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट को बंद कर के छोटेलाल राधा के पास जा कर बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने राधा को बांहों में भरा तो वह दबी जुबान में बोली, ‘‘अब यहां क्यों आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘अब तुम को अपने प्यार का असली मजा देने आया हूं.’’ कह कर उस ने राधा को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो मानो दो जिस्मों के अरमानों की होड़ लग गई. कपड़े बदन से उतरते गए और हसरतें बेलिबास होती गईं. फिर उन के बीच वह संबंध बन गया जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होना चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की थी तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी.

उस रात के बाद राधा और छोटेलाल एकदूसरे को समर्पित हो गए. राधा छोटेलाल के संग पत्नी धर्म निभाने लगी तो छोटेलाल ने भी राधा को अपना सब कुछ मान लिया.

राधा के संग रास रचाने के लिए छोटेलाल हर दूसरेतीसरे दिन ईश्वर दयाल के घर महफिल जमाने लगा. ईश्वर दयाल को वह नशे में धुत कर के सुला देता, उस के बाद राधा के बिस्तर पर पहुंच जाता. अब वह दिन में भी राधा के पास पहुंचने लगा था. उस के आने से पहले ही राधा बच्चों को घर के बाहर खेलने भेज देती थी. फिर दोनों निश्चिंत हो कर रंगरलियां मनाते थे.

13 जनवरी, 2020 को अचानक ईश्वर दयाल गायब हो गया. घर वालों ने उसे काफी तलाश किया. तलाश करने पर देर रात गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर कलुआपुर गांव के माध्यमिक विद्यालय के पास सड़क किनारे ईश्वर दयाल की लाश पड़ी मिली.

 

परिजनों ने जब लाश देखी तो फूटफूट कर रोने लगे. इसी बीच किसी ने घटना की सूचना कोतवाली तिर्वा को दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. पहली नजर में मामला एक्सीडेंट का लग रहा था. लाश के ऊपर किसी वाहन के टायर के निशान मौजूद थे.

लाश के पास ही एक गमछा पड़ा मिला. परिजनों से पूछा गया कि क्या वह गमछा ईश्वर दयाल का है, तो उन्होंने मना कर दिया. इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा चौंके कि अगर ईश्वर दयाल की मौत एक्सीडेंट से हुई है तो किसी और का गमछा यहां कैसे आ गया. इस का मतलब यह कि ईश्वर दयाल की हत्या कर के उसे एक्सीडेंट का रूप दिया गया है. यह गमछा हत्यारे का है, जो जल्दबाजी में छूट गया है. इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने उस गमछे को अपने कब्जे में ले लिया. फिर आवश्यक पूछताछ के बाद उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद 14 जनवरी, 2020 की सुबह 10 बजे ईश्वर दयाल की मां लक्ष्मी देवी की लिखित तहरीर पर इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने सर्वप्रथम घटना की रात घटनास्थल पर मौजूद रहे मोबाइल नंबरों की डिटेल्स निकलवाई. जब डिटेल्स सामने आई तो उस में कुछ नंबर ही थे. उन नंबरों में से 3 फोन नंबर ऐसे थे, जिन की लोकेशन एक साथ आ रही थी. उन नंबरों में एक नंबर मलिहापुर के छोटेलाल का था.

छोटेलाल के बारे में जानकारी जुटाई गई तो पता चला, उस की ईश्वर दयाल से गहरी दोस्ती थी. वह ईश्वर दयाल के घर आताजाता था. छोटेलाल के उस की पत्नी से अवैध संबंध थे.

इस के बाद इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने 23 फरवरी, 2020 को राधा, उस के प्रेमी छोटेलाल, छोटेलाल के दोस्त गिरिजाशंकर और रिश्तेदार सुघर सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

 

गिरिजाशंकर और सुघर सिंह के मोबाइल नंबर की लोकेशन छोटेलाल के फोन नंबर की लोकेशन के साथ मिली थी. इस के बाद

माता-पिता के लिए घर में करें ये बदलाव

पड़ोस में रहने वाले अभि और शीना के घर से कई दिनों से ठोकनेपीटने की आवाजें आ रही थीं. दोनों मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. सुबह जा कर शाम को ही घर आ पाते हैं. पर अभी दोचार दिनों से दोनों घर पर ही थे. वे मजदूरों से घर में कुछ निर्माणकार्य करवा रहे थे.

मेरा मन नहीं माना तो एक दिन उन के घर पहुंच ही गई. देखा, पूरा घर अस्तव्यस्त था. शीना ने बड़ी मुश्किल से जगह बना कर मुझे बैठाया. मेरे पूछने पर वह बोली, ‘‘कल मेरे सासससुर आ रहे हैं. अभी तक तो वे दोनों स्वस्थ थे और अपने सभी काम खुद ही कर लेते थे पर अब पापाजी काफी बीमार रहने लगे हैं.

अभी तक हम 2 ही थे और इस घर में हमें कोई परेशानी नहीं थी. पर अब पापाजी की आवश्यकतानुसार हम घर में कुछ बदलाव करवा रहे हैं ताकि वे यहां बिना किसी परेशानी के आराम से रह सकें.

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घर में जमीन पर बीचबीच में रखे फर्नीचर को शीना ने एक ओर कर दिया था. उन के कमरे से ले कर बाथरूम तक रैलिंग लगवा दी थी ताकि वे आराम से आजा सकें. इसी प्रकार के और भी बदलाव अभि व शीना ने अपने मातापिता की आयु की जरूरतों को देखते हुए करवा दिए थे.

रजत कुछ दिनों से ब्रोकर के जरिए घर ढूंढ़ रहा था. 2 फ्लैट के मालिक होने के बावजूद रजत को प्रतिदिन ब्रोकर के साथ देख कर रमा हैरान थी. एक दिन जब उस ने रजत से पूछा तो वह बोला, ‘‘आंटी, मेरे दोनों फ्लैट दूसरी और तीसरी मंजिल पर हैं और दोनों ही सोसाइटीज में लिफ्ट नहीं है. अभी तक तो चल रहा था, क्योंकि मैं अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ था. पर अब मेरी मां आने वाली हैं. 72 वर्षीया मेरी मां के दोनों घुटनों का औपरेशन हुआ है, इसलिए उन के लिए लिफ्ट या ग्राउंडफ्लोर का घर होना आवश्यक है.

10 वर्षों तक दुबई में प्रतिनियुक्ति के बाद अश्विन की जब भोपाल में पोस्ंिटग हुई तो उस ने अपने मातापिता के साथ ही रहने का फैसला लिया, ताकि वह अपने उम्रदराज हो चुके मातापिता की भलीभांति देखभाल कर सके. घर में एक माह रहने के बाद ही उसे समझ आ गया कि जिस घर में उस के मातापिता रह रहे हैं वह उन की उम्र के अनुकूल बिलकुल भी नहीं है. इसलिए, सर्वप्रथम 15 दिन का अवकाश ले कर उन की आवश्यकताओं को महसूस कर के उस ने घर को अपने मातापिता के अनुकूल करवाया ताकि वे उम्र के इस पड़ाव में सुकून के साथ रह सकें.

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जीवन चलने का नाम है. बाल्यावस्था, युवावस्था और फिर वृद्धावस्था. वैश्वीकरण के इस युग में मातापिता को छोड़ कर रोजीरोटी के लिए बाहर जाना बच्चों की मजबूरी है.

मातापिता का अपने बच्चों के पास जाना भी लाजिमी ही है परंतु कई बार देखने में आता है कि बच्चों के घर की व्यवस्था में वे खुद को मिसफिट पाते हैं. उन के सिस्टम में रहने में वे तकलीफ अनुभव करते हैं. इसलिए कई बार वे बच्चों के पास जाने से ही कतराने लगते हैं.

ऐसे में अपने बुजुर्ग मातापिता की आवश्यकताओं के अनुसार अपने घर में बदलाव करना आवश्यक हो जाता है. जिन बच्चों के मातापिता उम्रदराज या अशक्त हैं, ऐसे दंपतियों का अपने घर को सीनियराइज करने की बहुत जरूरत होती है ताकि आप के साथसाथ आप के मातापिता के लिए भी आप का घर सुविधाजनक रहे और वे आराम से आप के साथ रह सकें. बुजुर्गों की जरूरतों के अनुसार निम्न बदलावों को किया जाना आवश्यक है :

1.   महानगरों में फ्लैट कल्चर काफी तेजी से अपने पैर पसार चुका है. सोसाइटीज में बिल्डर कैमरे लगवाते ही हैं, परंतु यदि आप स्वतंत्र घर में निवास करते हैं तो मुख्य दरवाजे पर सीसीटीवी कैमरा अवश्य लगवाएं ताकि आप औफिस से ही मातापिता की कुशलता जान सकें, साथ ही, घर पर रह रहे आप के मातापिता भी हर आनेजाने वाले पर नजर रख सकें.

2.  अस्ति के घर की सीढि़यों पर अलग से लाइट की व्यवस्था न होने से उस के 65 वर्षीय ससुर का पैर फिसल गया और कूल्हे की हड्डी टूट गई. इसलिए घर के पोर्च, सीढि़यां, रैलिंग, बालकनी और टैरेस पर पर्याप्त लाइट लगवाएं ताकि अंधेरे में किसी प्रकार की दुर्घटना से वे बचे रहें.

3. विमलजी अपने इकलौते बेटे के पास केवल इसीलिए नहीं जा पाते क्योंकि उस की सोसाइटी में लिफ्ट नहीं है, और तीसरी मंजिल पर चढ़ कर वे जा नहीं पाते. वे कहते हैं, ‘‘एक बार चढ़ जाओ, तो नीचे आना ही नहीं हो पाता. पिंजरे में बंद पक्षी की भांति ऊपर टंगेटंगे जी उकता जाता है.’’ इसलिए जब भी घर खरीदें या किराए पर लें, तो अपने मातापिता का ध्यान रखते हुए ग्राउंड फलोर और लिफ्ट को प्राथमिकता दें.

4.    अपने घर में उन के रहने के लिए ऐसा कमरा चुनें जिस में पाश्चात्य शैली का अटैच्ड बाथरूम हो. यदि उन्हें चलने में परेशानी है तो बाथरूम तक पहुंचने के लिए बार्स या रैलिंग और बाथरूम में ग्रेब हैंडिल्स लगवाएं. ताकि, वे बाथरूम में हैंडिल्स को पकड़ कर आराम से उठबैठ सकें, क्योंकि घुटनों की समस्या आजकल बहुत आम है जिस के कारण बिना सहारे के उठनाबैठना मुश्किल हो जाता है.

5.  बाथरूम के बाहर और अंदर एंटी स्किट मैट की व्यवस्था करें ताकि उन के फिसलने की संभावना न रहे. बाथरूम का फर्श यदि चिकने टाइल्स का है तो उन्हें हटवा कर एंटी स्किट टाइल्स लगवाएं. साथ ही, चलनेफिरने के लिए भी एंटी स्किट स्लीपी ही यूज करने को कहें.

6.   घर के फर्नीचर की व्यवस्था इस प्रकार से करें कि बुजुर्ग मातापिता को घर में चलनेफिरने में वे बाधक न बने. उन के लिए सुविधाजनक हलके फर्नीचर की व्यवस्था करें.

7.    जीवन के एक मोड़ पर एक जीवनसाथी छोड़ कर चला जाता है. सो, अकेले रह गए पार्टनर के लिए हरदम घर के सदस्यों को पुकारना आसान नहीं होता. ऐसे में आप उन के लिए कार्डलैस बैल लगवाएं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे आप को घंटी बजा कर बुला सकें.

8.    बैड के पास ही मोबाइल चार्जिंग सौकेट लगवाएं ताकि अपने मोबाइल आदि को वे बिना किसी परेशानी के चार्ज कर सकें. यदि मोबाइल फोन उपयोग करने में उन्हें परेशानी होती है तो कार्डलैस फोन की व्यवस्था करें.

9.    बैड के दोनों ओर साइड टेबल बनवाएं ताकि इन पर वे अपनी जरूरत का सामान दवाएं, किताबें, चश्मा, मोबाइल, पेपर आदि को सहजता से रख सकें.

10.    बैडरूम में एक टैलीविजन अवश्य लगवा दें ताकि वे सहज हो कर अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्रम देख सकें, क्योंकि एक घर में रहने वाली तीन पीढि़यों की रुचियों में अंतर होना स्वाभाविक सी बात है. घर में रहने वाले छोटे बच्चों की पढ़ाई में यदि टैलीविजन से व्यवधान होता है तो उन्हें ईयरफोन ला कर दें ताकि वे अपने प्रोग्राम आराम से देख सकें.

11.    घर में जमीन पर से यदि टैलीफोन, बिजली या केबल के तार आदि निकल रहे हैं तो उन्हें अंडरग्राउंड करवा दें ताकि वे उन के चलने में बाधक न बनें. यदि घर के फर्श पर चिकने टाइल्स लगे हैं तो उन पर कालीन बिछाएं ताकि वे पूरे घर में सुगमता से आवागमन

कर सकें.

12.    घर का फर्श या टाइल यदि कहीं से टूटा है तो उसे तुरंत ठीक करवाएं वरना इस की ठोकर खा कर वे गिर सकते हैं.

वास्तव में उपरोक्त बातें बहुत छोटीछोटी सी हैं, परंतु उम्रदराज मातापिता की सुरक्षा और सुविधा के लिए बहुत जरूरी हैं.

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