लेखक- डा. भारत खुशालानी
प्रेषक ने कहा, “अगर डाक्टर साकेत आ कर इंजैक्शन दे कर गया होता तो अच्छा हो गया रहता.”
चिराक्षनी अपने गले को सहलाते हुए कराहने लगी, “मुझे अंदर से बहुत खराश महसूस हो रही है और लगता है मेरी बगल में गांठ हो गई है.”
प्रेषक, “हाथ लगाने पर दर्द होता है क्या?”
चिराक्षनी ने अपने ऊपर चादर ओढ़ ली, “ठंड लग रही है.”
प्रेषक ने अपनी चादर भी चिराक्षनी के ऊपर चढ़ा दी और उस के माथे का ताप लिया, “बहुत तप रहा है.”
चिराक्षनी ने सांसे भरते हुए कहा, “ठंडी लग कर बुखार आ गया है.”
प्रेषक शर्टपैंट पहनने लगा, “मैं डाक्टर को ले कर आता हूं.”
चिराक्षनी ने कहा, “देखो अगर साकेत मिल जाए तो…”
“मिला तो ठीक, नहीं तो मैं अस्पताल जा कर किसी डाक्टर को ले कर आता हूं.”
“अस्पताल तक तो मैं चल सकती हूं गाडी में.”
प्रेषक ने कहा, “नहींनहीं. अस्पताल नहीं जाएंगे. वहां पहले से बहुत बीमार लोग पड़े हुए हैं. वहां और इन्फैक्शन हो जाएगा. मैं साकेत को ही अस्पताल से ले कर आता हूं, अगर वह घर पर नहीं है तो.”
प्रेषक ने बाहर से दरवाजा लगाया. पहले वह डाक्टर साकेत के घर गया. वहां उसे ताला नजर आया. उस की खुद की कार ट्रैफिक के कारण फंस गई थी, इसलिए उस ने झट से चिराक्षनी की कार निकाली और अस्पताल का रुख किया. अस्पताल में ऐसा लग रहा था जैसे दिन हो. भारी चहलपहल थी. एक जगह पर दो नर्सें सब को फ्लू का इंजैक्शन लगा रही थीं. इंजैक्शन लगाने के लिए लाइन लगी हुई थी. प्रेषक ने हाथों में बड़ा सफेद प्याला ले जाती हुई एक नर्स को रोक कर पूछने की कोशिश की, “नर्स, ये डॉक्टर…”
लेकिन प्रश्न पूरा होने से पहले ही नर्स तेजी से आगे बढ़ गई, “रिसैप्शन पर पूछो.”
थोड़ी देर यहांवहां घूमने के बाद जनरल वार्ड में उस को साकेत नजर आ गया. उस ने जोर से आवाज लगाई ताकि भीड़ के ऊपर साकेत को सुनाई दे, “साकेतसाकेत…”
साकेत ने मुड़ कर देखा, “प्रेषक, यहां क्या कर रहे हो ?”
प्रेषक जल्दीजल्दी बताने लगा, “चिराक्षनी को तेज बुखार है और ठंड भी लग रही है. मुझे लगता है वह बहुत बीमार है.”
साकेत ने दुख जताया, “प्रेषक, आज के दिन तो कम से कम कोई भी यहां से आ कर उस को घर पर नहीं देख सकता है. मैं आज रात को तुम लोगों के घर आने वाला था लेकिन यहां का बुलावा आ गया. यहां की तो तुम हालत देख ही रहे हो.”
अस्पताल वाकई बहुत लोगों से भरा पड़ा था. प्रेषक ने तब गिङगिङाते हुए कहा, “उस की हालत वाकई खराब है. मैं ने बुखार की गोली दी है, लेकिन उसको डाक्टर की जरूरत है.”
साकेत ने अफसोस जाहिर किया, “स्टाफ की इतनी कमी हो गई है यहां कि नए मरीज भरती करने बंद कर दिए हैं हम लोगों ने. एक भी बिस्तर खाली नहीं है.”
“लोगों को अस्पताल से वापस भेजा जा रहा है?”
साकेत ने बताया, “हां. और बाकी के अस्पतालों में भी यही हाल है. वहां भी ऐसा ही हो रहा है.”
प्रेषक ने दुख और आश्चर्य से पूछा, “ऐसा क्यों? वे लोग कहां जाएंगे?”
साकेत ने तब बोला, “मरीज के साथसाथ हमारे स्टाफ के भी रोगी होने की संभावना बढ़ती जा रही है. कुछकुछ स्टाफ तो मरीज का इलाज करते हुए संक्रमित भी हो चुके हैं.”
“बहुत बेकार हुआ यह तो,” प्रेषक चिंतित हो कर बोला.
“जो जनरल प्रैक्टिशनर हैं, उन को तो वार्ड में आना ही है. नर्सें भी सभी आई हैं, लेकिन स्टाफ की संख्या ही पूरी नहीं पड़ रही है. सिर्फ यहां ही यह हाल नहीं है, सब अस्पतालों में ऐसा ही है.”
“जिस को यह वायरस लग जाता है, वह कितने दिनों तक बिस्तर पर रहता है?”
“अगर यह फ्लू होता तो अलग बात होती. सामने जो लंबी लाइन दिख रही है, उन को फ्लू का इंजैक्शन दे रहे हैं. लेकिन उस का कितना फायदा होगा, यह बता नहीं सकते, क्योंकि इस वायरस के ऊपर फ्लू का टीका प्रभावी नहीं है. फिर भी मनोवैज्ञानिक रूप से शायद मदद करे.”
“यहां तो आतंक का माहौल है. अब तक अस्पताल में कितनी मौतें हुई हैं?” प्रेषक ने जानना चाहा.
“इतनी तो नहीं हुई हैं कि घबराहट और आतंक का माहौल बन जाए. यह माहौल इस या किसी अस्पताल से नहीं बन रहा है.”
“कहीं हमारी सरकार भी आंकड़े तो नहीं छिपा रही है ?” प्रेषक ने पूछा.
“हम डाक्टरों को तो पक्के तौर पर सिर्फ हमारे अस्पताल में कितनी मौतें हो रही हैं, कितने संक्रमित हो रहे हैं, इस की जानकारी है. सब अस्पतालों का डाटा इकठ्ठा कर के उस के आंकड़े स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचाने का जिम्मा किसी और संकलन करने वाली संस्था को होता है,” डाक्टर साकेत ने बताया.
“संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है क्या?”
“सिर्फ संक्रमित लोगों की ही नहीं, वायरस से मरने वालों की भी. कल तक यह संख्या और बढ़ जाएगी.”
प्रेषक के गले में जैसे निवाला अटक गया. कल वाले संक्रमित मरीजों की सूची में उस की पत्नी भी शामिल होगी. प्रेषक की मानो जान अटक गई. विनती करते हुए उस ने साकेत से कहा, “तुम आ कर उसे देख नहीं सकते हो? उस को देखने के बाद कोई दवा या टैबलेट दे सकते हो?”
“ठीक है. मैं कोशिश करता हूं कि बाद में 15-20 मिनट निकाल कर आ सकूं. जैसे ही मुझे मौका मिलता है आने की कोशिश करता हूं,” डाक्टर साकेत ने कहा तो प्रेषक की जान में जान आई, “मैं घर पर इंतजार करता हूं तुम्हारा.”
एक पल के लिए प्रेषक को लगा कि साकेत से पूछे कि अस्पताल में वह कोई मदद कर सकता है? उस को मालूम था कि ऐसे ढेर सारे काम होंगे जिन में वह या तो साकेत की या अस्पताल प्रशासन की या फिर नर्सों की मदद कर सकता है. लेकिन चिराक्षनी का ध्यान आते ही उस ने यह विचार त्याग दिया.
एकाएक साकेत को कुछ ध्यान आया, “वार्ड 12 में निमोनिया के गंभीर मरीजों को रखा गया है. अपनी ही बिल्डिंग के फुल्वारे साहब हैं वहां.”
“ठीक है. मैं उन्हें देख आता हूँ,” प्रेषक ने मास्क लगाया और वार्ड 12 में प्रवेश किया. इस वार्ड को डोरमैट्री में बदल दिया गया था और हर बिस्तर पर मरीज लेटे हुए थे. इतने बड़े शयनगृह में एक मरीज को तलाशना कठिन कार्य था. लेकिन प्रेषक को मिसेज फुल्वारे नजर आ गईं. शयनगृह के बीच में बाईं ओर उन का बिस्तर था. मिसेज फुल्वारे ने भी मास्क पहना हुआ था और उन की आंखें रोरो कर लाल हो चुकी थीं.
प्रेषक को देखते ही उस ने पहचान लिया और गरदन हिला कर अभिवादन कर बोली, “आप यहां कैसे?”
“चिराक्षनी को भी बीमारी हो गई है,” प्रेषक ने बताया तो मिसेज फुल्वारे ने अपने पति की ओर इशारा कर बोलीं, “आईसीयू खाली नहीं है, मगर डाक्टरों ने बोला है कि इन्हें आईसीयू में ही होना चाहिए.”
फुल्वारे को वैंटीलेटर पर रखा गया था. औक्सीजन की सफेद प्लास्टिक जैसी एक नली उस के नाक तक पहुंची हुई थी. उस को होश नहीं था.
प्रेषक ने सांत्वना देने की कोशिश की, “किसी और अस्पताल में?”
चिराक्षनी की हालत, फुल्वारे के सामने काफी हद तक सही नज़र आ रही थी.
मिस्सेस फुल्वारे ने कहा, “पहले कोशिश की थी. लेकिन हर अस्पताल में यही हाल है. अब तो डाक्टरों ने जवाब दे दिया है. 24 घंटे की मोहलत दी है,” इतना कहतेकहते वे फूटफूट कर रो पङीं.
मिसेज फुल्वारे से बातचीत के बाद प्रेषक को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे. उस ने यह जानना भी उचित नहीं समझा कि 1 सप्ताह पहले जो सब बिल्डिंग वालों की मीटिंग हुई थी, उस में जो लोग थे उन सभी को वायरस लग गया है क्या?
मिसेज फुल्वारे ने जोर से रोते हुए कहा, “सब लोग मर रहे हैं. आप और मैं कुछ नहीं कर सकते. मैं अपने पति की और आप अपनी पत्नी की कोई मदद नहीं कर सकते.”
प्रेषक ने हड़बड़ी में कहा, “मुझे लगा कि हम लोग तो कम से कम उस बीमारी से दूर हैं, हम लोगों को इतनी गंभीरता से यह रोग नहीं झेलना पड़ेगा.”
मिसेज फुल्वारे ने रोते हुए कहा, “पूरे वार्ड को डौरमैट्री बना दिया है और सभी मामले गंभीर हैं यहां.”
प्रेषक को सहसा ही वायरस की सचाई ने घेर लिया.
मिसेज फुल्वारे ने बताया, “सामने वाले बिस्तरों पर एक ही परिवार के चारों लोग आज मर गए”.
उस ने सामने की तरफ इशारा किया, “एक के बाद एक, सभी लोग मर गए,” फिर थोडा रूक कर कहा, “कल पता नहीं और कितने जाएंगे, और कितने रोगी बन कर आएंगे? अस्पताल में कोई जगह नहीं बची है.”
प्रेषक ने धीरे से कहा, “इस का मतलब है कि 1 हफ्ता बीतने तक… ओह…”
जब प्रेषक वापस अपने घर पहुंचा, तो चिराक्षनी के चेहरे से ले कर गले तक पसीना था और वह ठंड लग कर आए हुए बुखार से कांप रही थी. वह दर्द से कराह रही थी और उस को सांस लेने में बहुत तकलीफ महसूस हो रही थी. जब उस की सांस फूलने लगती थी, तो वह अपनी चादरों को भींच लेती थी.
कुछ समय के बाद साकेत प्रेषक के घर पहुंच गया. प्रेषक ने अस्पताल का दृश्य देखा था, शायद इसीलिए वह साकेत के प्रति अपनी कृतघ्नता को बयान नहीं कर पा रहा था. किन परिस्थितियों से जूझ कर साकेत यहां पहुंचा होगा, यह सोच कर ही प्रेषक साकेत का आभारी हो गया. ऐसी विकट परिस्थितियों में शायद ही कोई डाक्टर घर पर आ कर मरीज़ को देखता.
साकेत ने अपने ग्लब्स पहने हुए हाथों से चिराक्षनी की नब्ज टटोली और स्टेथोस्कोप से उस की दिल की धड़कन का मुआयना किया. चिराक्षनी आंखें बंद कर के लेटी ही रही.
“प्रेषक तुम को यहां से निकल जाना चाहिए. सिर्फ इस फ्लैट और इस बिल्डिंग से ही नहीं, मेरा मतलब है पूरे शहर से ही निकल जाना चाहिए,” डाक्टर साकेत ने कहा तो प्रेषक हैरानी से उसे देखते हुए कहा,”चिराक्षनी का क्या होगा?”
“अपनी कुछ जरूरी चीजें समेट लो. पैदल चलते हुए जितना सामान ले जा सकते हो, सिर्फ उतना ही लो अपने साथ,” डाक्टर साकेत ने उसे समझाया.
“मैं चिराक्षनी को छोड़ कर नहीं जा सकता.”
“तुम्हें अभी तक कोई लक्षण नहीं हैं. अभी मौका है. मौके का फायदा उठा लो.”
“मगर चिराक्षनी कहां रहेगी?”
“अस्पताल में. वैसे भी उस को अस्पताल ले कर जाना ही पड़ेगा. उस के लक्षण तीव्र हो गए हैं.”
“मैं उसके साथ ही रहूंगा,” प्रेषक ने जोर दे कर कहा तो डाक्टर साकेत बोल पङा, “नहीं. अस्पताल में इन्फैक्शन रेट बहुत ज्यादा है. स्वस्थ कर्मचारियों को तो पूरी शिक्षा दी जाती है, फिर भी वे भी संक्रमित हो गए हैं.”
“लेकिन डाक्टर साकेत ऐसे कैसे मैं अपनी पत्नी को अकेला इस बीमारी से लड़ने के लिए छोड़ दूं? अपनेआप को वह अकेला पाएगी तो कितना असहाय महसूस करेगी.”
“देखो प्रेषक, अभी सवेरा नहीं हुआ है. फिर पूरा ट्रैफिक जाम हो कर रास्ता बंद हो जाएगा. तुम जितना खाना अपने साथ ले जा सकते हो, उतना ले लो और निकल जाओ,” डाक्टर साकेत के इतना कहते ही
प्रेषक मायूस हो गया. बोला, “तुम डाक्टर हो. पूरे समय तुम्हारे पास सैकड़ों ऐसे मरीज़ आ रहे हैं, इसीलिए तुम को कुछ नहीं लग रहा है दिल में.”
साकेत ने दिलासा देते हुए कहा, “मेरी बात को समझो. मुझे भी…”
प्रेषक ने ध्यान से साकेत की तरफ देखा, “मुझे भी क्या?”
“मुझे भी वायरस लग गया है,” साकेत के मुंह से इतना सुन कर प्रेषक को जैसे बिजली का तार छू गया हो. एक कदम पीछे हटते हुए उस के मुंह से निकला, “क्या…?”
“मैं ने अपनी जांच खुद कर ली है. रिपोर्ट आ गई है. बस आज या कल में उस के लक्षण दिखने शुरू हो जाएंगे.”
प्रेषक बुत बन कर खड़ा रहा.
साकेत ने बताया, “चार दिन पहले शायद मुझे वायरस लग गया. इसलिए ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 2 या 3 दिनों में बुखार आना शुरू हो जाएगा. इस के बाद मुझे भी नहीं पता कि कितना गंभीर हो जाएगा. कुदरत करे सिर्फ हलका हो.”
साकेत की मानवता की भावना, प्रेषक के व्यापारी रवैआ से ऊपर थी.
साकेत ने प्रेषक को समझाना जारी रखा, “तुम भी वायरस की चपेट में हो. इस बिल्डिंग में केस हो चुके हैं. अस्पताल में तो तुम ने फुल्वारे को देखा ही. तुम्हारे घर में भी हो चुका है. बाहर जहां तुम जाते हो, उन में भी किसी ऐसे के संपर्क में जरूर आए होगे जिस ने खांसा हो या छींका हो. तुम्हारा ध्यान नहीं गया होगा. इतनी भारी ट्रैफिक भीड़ में तुम को पता ही नहीं चला होगा. तुम क्या, शहर के सभी लोग इस की चपेट में आ चुके होंगे. नहीं भी आए हैं, तो यही समझ कर चलना. हो सकता है तुम को वायरस लग गया है और लक्षण अभी दिखाई नहीं दे रहे हैं. अभी तक तो कोई लक्षण तुम्हारे शरीर पर नहीं दिख रहा है, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है.”
प्रेषक ने हकलाते हुए पूछा, “मु…मु…मुझे कैसे पता चलेगा?”
साकेत ने कहा, “बराबर पता चल जाएगा. सब को पता चल जाता है. वैसे भी आज रात को तुम ने काफी कुछ देख भी लिया है. हो सकता है कि तुम उन लोगों में से हो,जिन को नहीं लगा है या किन्हीं कारणों से नहीं लग सकता है.”
प्रेषक को जैसे हिम्मत बंधी, “हां, हो सकता है.”
साकेत ने कहा, “जिन लोगों को बीमारियों में भी रोग नहीं लगता है, उन्हें ‘असंक्राम्य’ कहते हैं. ऐसे लोग सीधे संपर्क में आते हुए भी बीमार नहीं होते हैं.”
प्रेषक का सीना जैसे गर्व से फूल रहा था, यह सोच कर की शायद उस ने वायरस को मात दे दी है.
साकेत ने अपना सामान उठाते हुए कहा, “मुझे वापस अस्पताल जाना है.”
प्रेषक ने डाक्टर का सामान समेटने में उस की मदद की.
साकेत ने फिर कहा, “याद रखना, शहर से बाहर निकल जाना.”
प्रेषक बोला, “लेकिन यदि मुझे लग ही गया है तो क्या फर्क पड़ता है? मैं कहां पर हूं, इस से तो कोई फर्क पड़ेगा ही नहीं. यह तो मेरे शरीर पर निर्भर करेगा कि हलका है या ज्यादा कष्टकारी.”
साकेत ने साँसें भरीं, “तुम्हारी मरजी है. मैं तुम को बता दूं कि यहां पर इस की मृत्यु दर बढ़ती ही जा रही है.”
“इन्फैक्शन भी अस्पताल में देखो, कितने बढ़ गए हैं…”
“और इस वायरस के कारण और बीमारियां भी बढ़ रही हैं, जैसे टाइफाइड, कोलरा और भी पता नहीं कौनकौन सी, साकेत ने प्रेषक को उस के भले के लिए ही, थोड़ी वैज्ञानिक जानकारी देना उचित समझा ताकि प्रेषक उस की गंभीरता को समझ कर कदम उठा सके, “यह वायरस ‘उत्परिवर्ती’ है. ‘उत्परिवर्ती का मतलब जानते हो?”
प्रेषक की समझ से बाहर था, “नहीं.”
साकेत बोला,“यह वायरस बारबार अपना रूप बदल लेता है. इस के लिए दवा बनाई जाती है, फिर यह अपना रूप बदल कर दूसरे रूप में शरीर पर आक्रमण करता है. बहुत खतरनाक वायरस है यह.”
प्रेषक ने कुछ आशा से कहा, “कुछ तो करेगी सरकार.”
“किसी के भरोसे पर यहां मत बैठे रहो. जिस गति से यह वायरस लोगों को संक्रमित कर रहा है,उसे रोकने का कोई तरीका किसी के पास नहीं है. सरकारें भी कुछ नहीं कर सकतीं.”
प्रेषक ने अविश्वास से कहा, “ऐसे तो कुछ ही दिनों में मरने वालों की संख्या जिंदा रहने वालों से ज्यादा हो जाएगी. ऐसा कैसे हो सकता है?”
“पूरा शहर, बेकार हो जाएगा, ऐसा लगेगा जैसे यहां सिर्फ गंदगी और अपशिष्ट फेंके जा रहे हों. तुम सोच लो. तुम्हारे पास एक मौका है.”
साकेत ने जाने के लिए दरवाज़ा खोला, “अच्छे से सोच लेना. तुम्हारे ऊपर है. अस्पताल में ऐसे कई वायरस के शिकार मरीज हैं जो खुद से हैं, कोई परिवार वाला उन के साथ नहीं है वहां. फिर भी उस की देखभाल की जा रही है.”
साकेत चला गया. प्रेषक ने दरवाजा बंद किया और चिराक्षनी के पास आ कर खड़ा हो गया. शायद साकेत का कहना बिलकुल सही था. भले ही बात कड़वी हो, लेकिन यह कदम उस को उठाना ही पड़ेगा.
साकेत ने चिराक्षनी को अस्पताल में भरती करने का फैसला किया और चिराक्षनी को वहां छोड़ कर अपने बेटे के विश्वविद्यालय में जैसेतैसे पहुंच कर, किसी भी कीमत पर जस को उस के होस्टल से निकालने का निश्चय किया. चिराक्षनी भी यही चाहती थी. प्रेषक को इस समय अपनी पत्नी की बात का मान रखना उचित लगा. उसे समझ आ गया कि इस प्रकोप का कोई अंत नहीं दिख रहा है,ऐसे ही वायरस के खत्म होने के भरोसे पर बैठे रहना बेकार है.