स्वास्थवर्धक पद
विश्व स्वास्थ संगठन ( डब्लूएचओ ) में पसरी राजनीति का एक बेहतरीन उदाहरण है भारत के स्वास्थ मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन का उसके एग्जीक्यूटिव बोर्ड का अध्यक्ष बन जाना . जैसे मोहल्ले की क्रिकेट टीम का केप्टन वही होता है जो टीम को लेदर बाल चंदे में दे सकता है वैसे ही यह पद हर्षवर्धन को हायड्रॉक्सीनक्लोरोक्वीन नाम की दवाई अमेरिका को देने के एवज में मिला है जिसे एक भरोसेमंद पिट्ठू की तलाश थी . पेशे से एलोपेथी डाक्टर होते होते हुए भी हर्षवर्धन के दिमाग में गुड गोबर बाला एजेंडा किस तरह चाँदनी चौक से शुरू हुए उनके राजनैतिक संघर्ष के दिनों से ही भरा पड़ा है इसे समझने उनके कई ( अ ) भूतपूर्व वक्तव्य मौजूद हैं .
जब वे पर्यावरण मंत्री थे तब पूरे इतमीनान से डब्लूएचओ की रिपोर्टों को नकारते रहते थे . एक बार तो उन्होने संसद में बड़ी अटपटी बात यह कही थी कि प्रदूषण से कोई नहीं मरता . जब वे विज्ञान और प्रोद्धोगिकी मंत्री थे तब वेद पुराणों और गोबर की महत्ता बताते रहते थे . कभी औरत के शरीर की तुलना मंदिर से करने बाले हर्षवर्धन दरअसल में मंत्री बने रहने कुछ भी बिगाड़ने तैयार रहते हैं . कोविड 19 के कहर के वक्त में उनके मंत्रालय का आकलन था कि 16 मई के बाद मामले कम हो जाएंगे लेकिन हुआ उल्टा . वैसे भी कोरोना के कहर के दौरान उनकी निष्क्रियता हर किसी ने देखी और महसूसी , अब खैरात में मिले इस पद पर रहते वे अमेरिका के इशारे पर मुजरा करते रहने के साथ साथ और क्या क्या गुल खिलाएँगे यह देखना कम दिलचस्प नहीं होगा .
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….. काफिला क्यों लुटा –
बिना किसी लिहाज के अक्सर खरी और कभी खोटी कहने बाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कन्डेय काटजू ने अपने एक ताजे लेख में बड़े तल्ख लहजे में वह बात कह डाली जिसे कई लोग डर और लिहाज के चलते नहीं कह पा रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अब देश नहीं संभल रहा . बक़ौल जस्टिस काटजू नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की तरह 23 मार्च को बिना किसी की सलाह लिए लाक डाउन घोषित कर डाला जिसका खामियाजा लाखों मजदूर भुगत रहे हैं . आज मोदी की पीड़ा नेपोलियन की तरह हो गई है जो 1812 में मास्को पहुँच तो गया लेकिन हालातों से निबटने उसे आगे का रास्ता पता नहीं था . भूख से दंगे भड़कने की आशंका जाहिर करते हुए उन्होने समस्या का समाधान भी बताया है .
समाधान यह कि देश में एक राष्ट्रीय सरकार बनाई जाये जो विपक्ष को साथ लेकर भी काम करे . इस बाबत उन्होने सटीक मिसाल इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतयाहू की पेश की है जिन्होने पिछले दिनों इमरजेंसी यूनिटी सरकार का गठन किया है . इसके मुताबिक नेतयाहू पहले 18 महीने प्रधानमंत्री रहेंगे इसके बाद अगले 18 महीने विपक्ष की मुखिया बेनी गेट्ज़ यह पद संभालेंगी . इस तरह सरकार में पक्ष और विपक्ष दोनों को अगुवाई का मौका मिलेगा और दोनों देश के हित और भलाई का काम करेंगे . आइडिया बुरा नहीं लेकिन काटजू को मालूम है कि जब किसी की नहीं सुनी जाती तो उनकी कैसे सुन ली जाएगी . इसलिए लेख में दम तोड़ती अर्थव्यवस्था और नरेंद्र मोदी की नाकामी के जिक्र का समापन उन्होने इस शेर के साथ किया कि – तू इधर उधर की न बात कर , ये बता कि काफिला क्यों लुटा .
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योगी सगी तो उद्धव सौतेली माँ –
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे में से कौन कितना अक्खड़ और अड़ियल है यह कोई तुलनात्मक अध्ययन भी सिद्ध नहीं कर सकता जिनके बीच मजदूरों को लेकर जुबानी जंग बेहद निचले स्तर तक जा पहुंची . लेकिन यह बात किसी सबूत की मोहताज नहीं कि मजदूरों की चिंता या उनसे हमदर्दी दोनों में से किसी को नहीं . बेचारे मजदूरों को तो यह भी नहीं मालूम होगा कि उनकी आड़ में दोनों पिता तक तो नहीं पर माँ तक जरूर पहुँच गए . बात का और छोर किसी को नहीं मालूम लेकिन उद्धव खेमे ने योगी को हिटलर करार देते यह तक कह डाला कि उत्तरप्रदेश में सरकारी संरक्षण में गरीब दलित मजदूरों पर जुल्मो सितम ढाए जा रहे है , उनके लिए घर जाने के साधन बंद किए जा रहे हैं .
योगी अव्वल तो वैसे ही तिलमिलाए रहते हैं लेकिन शिवसेना नेता संजय राऊत के ट्वीट्स और सामना में लिखे लेखों पर और तिलमिला गए . फिर शुरू हुआ बाली सुग्रीव सा युद्ध . योगी के दफ्तर से कहा गया अगर महाराष्ट्र सरकार ने सौतेली माँ बनकर भी सहारा दिया होता तो महाराष्ट्र गढ़ने बाले हमारे उत्तरप्रदेश के निवासियों को वापस न आना पड़ता . बक़ौल योगी मानवता कभी उद्धव को माफ नहीं करेगी . मजदूर हार्ड और साफ्ट हिंदुत्व में कहीं थे ऐसा कहने की कोई वजह नहीं इस बहाने अरसे बाद मानवता शब्द का सुनाई देना जरूर मजदूरों के लिहाज से खतरे की घंटी है .
रवि किशन का यज्ञ –
भोजपुरी अभिनेता और सांसद गोरखपुर रवि किशन लाक डाउन के दिनों में मुंबई के अपने आलीशान फ्लेट में रहते भोले शंकर की आराधना में लीन रहे . लंगोट पहने यज्ञ , हवन और अभिषेक बगैरह की तस्वीरें वे सोशल मीडिया पर साझा करते रहे . किश्तों में की जाने बाली तपस्या से शंकर जी तो अवतरित होने से रहे लेकिन कट्टर ब्राह्मण परिवार के रवि जिनके पिता मुंबई में डेयरी व्यवसाय करते थे ने जमकर पूजा पाठ के कारोबार को हवा दी और बीच बीच में दिखाबे के लिए गरीब मजदूरों की दुर्दशा पर भी चिंता व्यक्त कर बता दिया कि उन्हें यूं ही योगी अदित्य नाथ के अखाड़े का पट्ठा नहीं कहा जाता . उन्होने बड़े जज्बाती होकर गोरखपुर के लोगों के लिए जान तक देने जैसी फिल्मी बात भी कह डाली .
इस प्रायोजित ड्रामे से मजदूरों को तो सिवाय बातों के बताशे के कुछ नहीं मिला लेकिन इस शिवभक्त नेता अभिनेता ने पाखंडों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जता दी कि आपदा के इस दौर में दलित मजदूर सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं और सवर्ण शंकर को प्रसन्न करने में लगे हैं क्योंकि वे भरे पेट हैं और बेघर नहीं हैं . बहरहाल उनके पूजा पाठ की तस्वीरें देख सहज ही लालू यादव के बेटे तेजप्रताप की याद हो आई कि वे भी जब भगवान टाइप के फोटो शेयर करते हैं तो उनके दिमागी संतुलन पर उंगली क्यों उठाई जाती है .