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Crime Story: किरण की आंखों का काजल

किरण उन युवतियों में नहीं थी जो भावनाओं में बह कर अपना ही अहित कर लेती हैं. पति से तलाक लेने के बाद जब उस ने मायके से बाहर कदम निकाले तभी सोच लिया था कि उसे किस राह जाना है. जब उसे उसी की सोच वाला अक्षय मीणा मिल गया तो…

राजस्थान के जिला दौसा के गांव बीनावाला की रहने वाली किरण बैरवा गोरे रंग की खूबसूरत युवती थी. जब वह टाइट जींस टीशर्ट पहन कर निकलती थी तो देखने वाले ताकते रह जाते थे. किरण को अपने रूपसौंदर्य पर बहुत नाज था. वह जानती थी कि उस से कोई भी व्यक्ति दोस्ती करने को तैयार हो जाएगा, क्योंकि वह बला की खूबसूरत है.

किरन को पाने के लिए पुरुषरूपी भंवरेउस के आसपास मंडराते रहते थे, मगर उस ने किसी को लिफ्ट नहीं दी. किरण के ख्वाब ऊंचे थे. खूबसूरत होने के साथ वह शातिरदिमाग भी थी. शादी योग्य होने पर घर वालों ने उस की शादी कर दी थी.

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किरण को जैसा जीवनसाथी चाहिए था, उस का पति वैसा नहीं था. किरण ने उस के साथ सात फेरे जरूर लिए थे, मगर पति को मन से कभी नहीं स्वीकारा. ऐसे में मतभेद स्वभाविक बात थी. शादी के कुछ समय बाद ही किरण का पति से तलाक हो गया. तलाक के बाद वह मायके में आ कर रहने लगी.

 

किरण ने अपने मांबाप को कह दिया कि वह पढ़ीलिखी है और कहीं नौकरी या कामधंधा कर के अपना गुजरबसर कर लेगी.

मायके आने के बाद किरण नौकरी की तलाश के लिए गांव से दौसा आनेजाने लगी. शहर में उसे नौकरी तो नहीं मिली, मगर जैसा जीवनसाथी उसे चाहिए था, वैसा दोस्त जरूर मिल गया. उस का नाम अक्षय उर्फ आशू था. अक्षण मीणा के पिता दौसा के पूर्व पार्षद हैं. पिता के पैसों पर ऐश करने वाला अक्षय मीणा भी शातिरदिमाग और तेजतर्रार युवक था.

उस की किरण से मुलाकात हुई तो पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे पर मर मिटे. दोनों ने एकदूसरे को मोबाइल नंबर दे दिए. इस के बाद उन की फोन पर बातें होने लगीं. किरण का जब मन करता, तब अक्षय मीणा से मिलने गांव से दौसा शहर आ जाती.

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दो जवां दिल अगर एक दूसरे के लिए धड़कने लगें तो मिलन होने में देर नहीं लगती. ऐसा ही किरण और अक्षय के मामले में भी हुआ. 4-6 मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए. अक्षय को जब पता चला कि किरण तलाकशुदा है तो वह बोला, ‘‘किरण, तुम मेरी हो. इसी कारण तुम्हारा अपने पति से तलाक हुआ है. हम दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं.’’

अक्षय के मुंह से यह सुन कर किरण को उस पर विश्वास हो गया कि वह उस का बहुत खयाल रखेगा. फिर तो उस ने अक्षय को अपना तनमन सब कुछ न्यौछावर कर दिया. एक बार शारीरिक संबंध बने तो सारी लाजशरम जाती रही. जब मन चाहता, दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते.

अक्षय ने किरण से वादा किया था कि वह उस से शादी करेगा और जीवन भर साथ निभाएगा. किरण तो अक्षय की दीवानी थी ही. मगर बगैर कामधाम किए मौजमस्ती से तो जिंदगी नहीं चलती.

 

किरण और अक्षय दोनों ही शातिरदिमाग थे, एक रोज उन्होंने बातोंबातों में पैसा कमाने का उपाय ढूंढना शुरू कर दिया. अंत में दोनों ने पैसा कमाने की अलग राह चुन ली. वह राह थी तन सौंप कर ब्लैकमेल करने यानी हनीट्रैप की.

अक्षय और किरण ने टीवी और अखबारों में हनीट्रैप के तमाम केस देखे और सुने थे. ऐसी घटनाओं से प्रेरित हो कर उन्होंने भी ऐसा ही कुछ कर के पैसा कमाने की योजना बना ली. तय हुआ कि मोटा पैसा कमाने के बाद शादी कर लेंगे.

योजना तैयार होने के बाद दोनों शिकार की तलाश में लग गए. उन की यह तलाश पूरी हुई दौसा शहर की रामनगर कालोनी निवासी विश्राम बैरवा पर. विश्राम बैरवा युवा प्रौपर्टी डीलर और ठेकेदार था. किरण ने कहीं से विश्राम बैरवा का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. यह सन 2016 की बात है.

 

फोन नंबर से उस ने विश्राम के बारे में काफी जानकारी हासिल कर ली. फिर एक दिन उस ने बैरवा को फोन किया. विश्राम ने काल रिसीव की तो किरण बोली, ‘‘मैं किरण बैरवा बोल रही हूं, आप विश्रामजी बोल रहे हैं न?’’

‘‘हां जी, मैं विश्राम बैरवा बोल रहा हूं. कहिए, कैसे फोन किया. मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ विश्राम ने कहा.

‘‘विश्रामजी, आप अच्छे आदमी हैं इसलिए फोन किया था. मैं तलाकशुदा हूं और यहीं दौसा में अपने चाचा आशू के साथ रहती हूं. लोगों से आप की बहुत तारीफ सुनी थी, इसलिए आप से बात करने की इच्छा हो रही थी तो फोन कर लिया. ’’

‘‘कोई बात नहीं, वैसे कोई काम हो तो बोलिए.’’

‘‘नहीं सर, कोई काम नहीं था, ऐसे ही फोन कर लिया, अगर आप को बुरा न लगा हो तो आगे भी फोन कर के आप का समय खराब करती रहूं.’’

 

किरण ने कहा तो विश्राम बोला, ‘‘आप से बात कर के खुशी होगी. जरूर फोन कीजिएगा.’’

इस के बाद किरण अकसर फोन कर के विश्राम बैरवा से इधरउधर की गप्पें मारने लगी. विश्राम भी उस से खुल कर बतियाने लगा था. इस तरह एक साल गुजर गया. अपनी बातों से किरण ने विश्राम पर ऐसा जादू कर दिया था कि वह उस से मिलने को आतुर रहने लगा. अब तक किरण और विश्राम की मोबाइल पर ही बातें हुई थीं, दोनों मिले नहीं थे.

एक बरस बाद जब एक रोज किरण ने विश्राम को फोन किया तो रुआंसे स्वर में बोली, ‘‘नमस्ते सर, किरण बोल रही हूं.’’

‘‘हां किरणजी, बोलिए. आज आवाज में वह चहक नहीं है, जो हमेशा होती है. तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं, मगर मुझे कुछ रुपए चाहिए थे. पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है, इलाज कराना है. मुझे नौकरी के लिए भी भागदौड़ करनी पड़ रही है. पैसों की तंगी है. अगर आप हेल्प कर देंगे तो मैं आप का एकएक रुपया चुका दूंगी.’’

‘‘किरण, पैसों की चिंता मत करो. मैं हूं न, सब संभाल लूंगा. मैं तुम से मिलता हूं. हम शाम को बैठ कर इस बारे में बात करेंगे.’’

 

शाम को किरण और विश्राम मिले. विश्राम ने किरण को 2 लाख रुपए नकद दे दिए. किरण रुपए ले कर धन्यवाद देते हुए बोली, ‘‘सर, मैं आप का एकएक रुपया चुकाऊंगी. नौकरी लगने दीजिए.’’

किरण की सहायता कर के विश्राम को यह सोच कर आत्मिक खुशी हुई कि उस ने एक जरूरतमंद महिला की मदद की है.

कुछ दिनों बाद किरण फिर मां की बीमारी के बहाने विश्राम से 2 लाख रुपए ले आई.

कमरे पर पहुंचने के बाद उस ने अक्षय से कहा, ‘‘आशू, आज 2 लाख रुपए तो मां की बीमारी के बहाने से ले आई, मगर अब आगे बहाना नहीं चलने वाला. अब हमें विश्राम को फांसना पड़ेगा.’’

‘‘किरण, तुम सही कह रही हो. तुम्हें अब उसे अपने तन की चकाचौंध दिखानी पड़ेगी, तभी इस मुर्गे को हलाल किया जा सकेगा.’’

‘‘ठीक है, मैं कल उसे कमरे पर बुला कर अपने जिस्म की गरमी देती हूं. फिर तुम देखना कि मैं उसे कैसे इशारों से नचाती हूं.’’ किरण हंस कर बोली.

अगले दिन किरण ने विश्राम बैरवा को किसी बहाने से सिंगवाड़ा रोड, दौसा स्थित अपने कमरे पर बुलाया. विश्राम जब कमरे पर पहुंचा तो किरण ने उस का स्वागत हंस कर किया. चायपानी के बाद दोनों पासपास बैठ कर बातें करने लगे.

बातचीत के दौरान किरण उस के शरीर से अपना जिस्म इस तरह टकरा देती थी, जैसे लापरवाही में ऐसा हो गया हो. इस से विश्राम के बदन में झुरझुरी दौड़ जाती थी. किरण यह सब इसलिए कर रही थी ताकि विश्राम उस के शरीर को भोगने के लिए मजबूर हो जाए. हुआ भी यही.

 

किरण ने उसे इस तरह उकसाया कि विश्राम खुद  पर नियंत्रण खो बैठा. विश्राम ने किरण से पूछा, ‘‘तुम्हारे आशू चाचा कहां हैं?’’

‘‘आशू चाचा कल तक आएंगे. आज बाहर गए हैं. यहां पर आज हम दोनों का राज है. हम जो चाहे, करेंगे.’’ किरण ने खुल कर कहा.

यह सुन कर विश्राम खुश हो गया. उस ने किरण को बांहों में भर कर किस करना शुरू कर दिया. किरण भी अपने हाथों का कमाल दिखाने लगी. कुछ ही देर में दोनों बेलिबास हो गए और एकदूसरे के तन से खेलने लगे. हसरतें पूरी करने के बाद विश्राम ने किरण को चूम कर विदा ली.

 

विश्राम के चले जाने के बाद किरण ने आशू को फोन कर कहा, ‘‘आ जाओ, मुर्गा फंस गया है.’’

आशू कमरे पर आ गया. किरण ने उसे सब कुछ विस्तार से बता दिया. इस के बाद वह बोली, ‘‘आशू, अब देखो मेरा खेल. कैसे विश्राम को नचाती हूं.’’

दोनों ने विश्राम को दुष्कर्म के मामले में फंसाने की धमकी दे कर रुपए ऐंठने की योजना बनाई. योजनानुसार अगले रोज किरण ने विश्राम को फोन कर 20 लाख रुपए मांगे. विश्राम ने कहा कि इतने रुपयों का क्या करोगी तो किरण बोली, ‘‘कुछ भी करूं, अगर पैसे नहीं दिए तो आप को बलात्कार के आरोप में अंदर करा दूंगी. इस के लिए मैं आप को शाम तक का समय देती हूं.’’

विश्राम कुछ कहता, उस से पहले ही किरण ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

विश्राम बैरवा इज्जतदार आदमी था. दौसा में उस का नाम था. अगर किरण उस के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा देती तो उस की इज्जत मिट्टी में मिल जाती.

विश्राम समझ गया कि वह किरण को जैसा समझता था, वह वैसी नहीं है. मगर जो नहीं होना था, वह हो चुका था. अब पछताने से क्या होने वाला था. विश्राम बैरवा ने अपना मानसम्मान इज्जत बचाने के लिए किरण की 20 लाख रुपए की डिमांड पूरी कर दी.

किरण पैसे ले कर विश्राम से बोली, ‘‘मेरे दिल के दरवाजे हमेशा खुले हैं. कभी भी आ कर मेरे तन से रुपए की वसूली कर सकते हो.’’

विश्राम बैरवा क्या बोलता. वह 20 लाख दे कर समझ रहा था कि बला टली. मगर किरण उसे कहां छोड़ने वाली थी. वह अक्षय मीणा उर्फ आशू के साथ विश्राम के दिए रुपयों से ऐश की जिंदगी जीने लगी.

दोनों दिल्ली, अहमदाबाद, नागपुर, मुंबई, गोवा आदि शहरों में घूमने गए और खूब अय्याशी की. किरण ने विश्राम बैरवा को अपने हुस्न के प्रेमजाल में ऐसा फांसा कि वह चाह कर भी किरण से दूर नहीं रह सका. किरण ने बातोंबातों में विश्राम से पहले ही पता कर लिया था कि वह करोड़पति है और उस का प्रौपर्टी का व्यवसाय अच्छा चल रहा है.

 

एक बार शारीरिक संबंध बना कर विश्राम किरण के प्रेमजाल में ऐसा फंसा कि वह उस के हाथों की कठपुतली बन कर नाचने लगा. किरण उसे बलात्कार के केस में फंसाने की धमकी दे कर कभी कैश तो कभी मांबाप और खुद के खाते में रुपए डलवा लेती थी. कभी बीमारी का बहाना कर के तो कभी होटल खोलने के नाम पर किरण विश्राम से पैसे ऐंठऐंठ कर उसे करोड़पति से रोड पर ले आई.

विश्राम ने अपना घर, जमीन, गहने, फ्लैट सब कुछ बेच कर किरण की मांग पूरी की ताकि उस की इज्जत बची रहे. जबकि किरण ने रुपए ऐंठ कर आशू के साथ नागपुर और दिल्ली में होटल भी खोले, मगर होटल व्यवसाय का ज्ञान न होने के कारण उन का बिजनैस नहीं चल सका.

दोनों होटल बंद कर के दौसा चले आए. होटल व्यवसाय में किरण व आशू की दोस्ती दिल्ली के कई लोगों से हो गई थी. लोग किरण और आशू को अच्छा बिजनैसमैन समझते थे. उन्हें इन की करतूत का पता नहीं थी.

विश्राम बैरवा सन 2016 से जनवरी 2020 तक किरण को करीब डेढ़ करोड़ रुपए दे चुका था. विश्राम की सारी जमीनजायदाद बिक गई थी. वह रोटीरोटी को मोहताज हो गया था. यह सब उस की एक गलती से हुआ था. विश्राम को बरबाद करने के बाद भी किरण उसे धमकी दे कर रुपए मांगती थी. वह कहती कि पैसे नहीं दिए तो बलात्कार के आरोप में जेल में सड़ा दूंगी.

विश्राम ने किरण से कहा कि अब उस के पास फूटी कौड़ी तक नहीं है तो उसे रकम कहां से दे. मगर किरण अपना ही राग अलापती रहती कि कुछ भी करो, उसे पैसे चाहिए. अगर पैसे नहीं दिए तो…

 

विश्राम बैरवा के पास अब कुछ नहीं बचा था. किरण भी उसे हड़का रही थी. ऐसे में विश्राम ने निर्णय कर लिया कि अब इज्जत जाए तो जाए, उसे पुलिस की मदद लेनी ही पड़ेगी. अगर इस से पहले किरण ने उस के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा दी तो वह अपनी सफाई भी नहीं दे सकेगा और उसे जेल की हवा भी खानी पड़ेगी.

इसलिए वह एसपी प्रह्लाद कृष्णैया से मिला और उन्हें सारी बात विस्तार से बताई. एसपी साहब ने विश्राम की शिकायत को गंभीरता से लिया और कोतवाली दौसा के इंसपेक्टर श्रीराम मीणा को फोन पर निर्देश दिए कि विश्राम की रिपोर्ट दर्ज कर आरोपियों के खिलाफ सख्त काररवाई करें.

कप्तान साहब के आदेश पर इंसपेक्टर श्रीराम मीणा ने 28 जनवरी, 2020 को विश्राम बैरवा की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस के बाद एसपी प्रह्लाद कृष्णैया ने एएसपी अनिल सिंह चौहान के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में डीएसपी नरेंद्र कुमार, शहर कोतवाल श्रीराम मीणा, एसआई राजेश कुमार, कांस्टेबल बसंताराम, नवीन कुमार, गोपीराम, महिला कांस्टेबल रेखा, मंजू देवी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने किरण बैरवा के मोबाइल की लोकेशन खंगाली तो उस की लोकेशन पुष्कर, जिला अजमेर, राजस्थान की मिली. पुलिस टीम दौसा से पुष्कर आई और किरण बैरवा व उस के प्रेमी अक्षय मीणा उर्फ आशू, निवासी सैंथल मोड़, दौसा को धर दबोचा.

पुष्कर के होटल में किरण व आशू शादी रचाना चाहते थे. दोनों के दोस्त शादी में शरीक होने दिल्ली से पुष्कर आए हुए थे.

यहां यह भी बता दें कि शादी के खर्च के लिए भी किरण बैरवा ने विश्राम बैरवा को फोन कर पैसे मांगे, लेकिन किरण ने यह नहीं बताया कि वह शादी कर रही है. किरण ने विश्राम से पहले तो डेढ़ लाख रुपए मांगे, फिर वह 55 हजार रुपए तक आ गई.

साइबर सैल की मदद से दौसा कोतवाली थाना पुलिस ने इस अनोखे जोड़े को 2 फरवरी, 2020 को पुष्कर के एक होटल से दबोच लिया. दिल्ली से जो बाराती आए थे, उन को भी प्रेमी जोड़े की असलियत पता नहीं थी. दिल्ली से आए इन के मित्रों को होटल का 67 हजार रुपए का बिल भी भरना पड़ा. क्योंकि उन्हें शादी में बुलाने वालों को तो पुलिस शादी से पहले ही पकड़ कर दौसा ले गई थी.

पुलिस पूछताछ में किरण और आशू मीणा ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अगले दिन 3 फरवरी को दोनों को पुलिस ने कोर्ट में पेश कर रिमांड पर लिया और विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ में ब्लैकमेलर प्रेमी जोड़े ने सारी कहानी बयान कर दी. किरण और आशू ने स्वीकार किया कि उन्होंने विश्राम बैरवा को हनीट्रैप में फांस कर उस से लाखों रुपए ऐंठे थे.

पुलिस ने इस मामले की कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पीडि़त व आरोपियों की मोबाइल काल डिटेल्स तथा बैंक खातों की जानकारी जुटाई. बैंक खातों में विश्राम बैरवा के बैंक खाते से रुपए लेनदेन की बात सामने आई. पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर किरण बैरवा और उस के प्रेमी अक्षय मीणा उर्फ आशू को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

विश्राम बैरवा सब कुछ गंवा कर पुलिस के पास गया. अगर वह तभी पुलिस के पास चला जाता जब किरण ने ब्लैकमेलिंग की पहली किस्त

20 लाख मांगी थी तो आज सड़क पर नहीं आता.

Short story: मन्नू भाई मोटर क्यों हो बंद…बंद…बंद-लॉकडाउऩ में कार का बुरा हाल

लेखिका-रोचिका अरुण शर्मा

कोरोना के चलते लौकडाउन हुए तकरीबन 2 महीने से ज्यादा हो चुके हैं. लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं. दफ्तरों में भी छुट्टी है और कई लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. ऐसे में सड़कें खाली हैं और कारें

पार्किंग में पार्क की हुई हैं.

मुंबई में रहने वाले अर्जुन ने पहले लौकडाउन की घटना बताते हुए कहा कि कार तकरीबन 15 दिन तक इस्तेमाल नहीं की और जब मेडिकल स्टोर से उन्हें अपने लिए बीपी और थायराइड की दवा लेने घर से बाहर जाना पड़ा, तो पार्किंग में जाते ही देखा कि कार का एक टायर फ्लैट नजर आ रहा है, सोचा पंक्चर है. क्या करता?
आजकल सब दुकानें तो बंद हैं, कहां जाऊंगा पंक्चर ठीक कराने? सो, स्टेपनी बदली, फिर बाहर गया.

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राजस्थान से रिया कहती हैं कि उन की कार भी कई दिन तक इस्तेमाल नहीं हुई. एक दिन जब कार का लौक खोला तो कार में से बहुत बदबू आ रही थी. फिर देखा, डैश बोर्ड के आसपास कुछ कागज कुतरे हुए हैं. समझते देर न लगी कि जरूर कार में चूहा आया है. ठीक से देखा तो पूरी कार में उस की गंदगी थी, जिस के कारण बदबू आ रही थी. किसी तरह पिंजरा लगा कर उसे पकड़ा.

तमिलनाडु से वेंकट कहते हैं कि 20 दिन बाद जब कार से बाहर जाने की आवश्यकता पड़ी तो स्टार्ट ही नहीं हुई, क्योंक बैटरी डेड थी.

इसी तरह की कई समस्याएं आजकल कारों में देखने को मिल रही हैं. अब चूंकि लौकडाउन बढ़ता ही जा रहा है, ऐसे में कारों का इस्तेमाल न होने या कम होने से उन के खराब होने के आसार ज्यादा हैं, क्योंकि यह तो मशीन है. अगर इसे काम में नहीं लेंगे तो जंग लगेगा ही.

तो आइए बताती हूं कुछ टिप्स, ताकि आप की कार चलती रहे सालोंसाल लौकडाउन में और उस के बाद तक भी.

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टायर प्रेशर

अब क्योंकि कार इस्तेमाल नहीं कर रहे या कम इस्तेमाल कर रहे हैं तो क्या…? ऐसे में उस के पहियों की हवा तो धीरेधीरे कम होगी ही. बाहर नहीं जा रहे, तो इस बात से ध्यान भी हट ही जाता है. किंतु टायर प्रेशर कम होने के कारण टायर फ्लैट होने लगता है और यदि यह लंबे समय तक रहा तो टायर में क्रैक भी आने लगेंगे.

फ्लैट स्पौट औन टायर

कार का पूरा वजन उस के टायरों पर ही टिका होता है. अब क्योंकि कार इस्तेमाल ही नहीं हो रही तो टायर भी एक जगह पर फिक्स रहते हैं. कार का वजन भी टायर के निचले तले पर ज्यादा पड़ता है. टायर रबड़ के बने होते हैं. इस्तेमाल न होने से वे हार्ड होने लगते हैं और वही आकार ले लेंगे, जिस स्थिति में वे दबे पड़े हैं. ऐसे में टायर का निचला हिस्सा फ्लैट हो जाता है और वह परमानेंटली फ्लैट ही रह जाएंगे.

इस के लिए कार को अपनी जगह से थोड़ा घुमानाफिराना भी जरूरी है ताकि कार के वजन का टायर पर दबाव का स्थान बदलता रहे.

कार के ब्रेक

अकसर जब हम कार पार्क करते हैं तो कार को गियर में डाल कर हैंड ब्रेक औन कर देते हैं. थोड़े समय के लिए तो ठीक है, किंतु यदि हैंड ब्रेक ज्यादा समय तक औन रहे तो वह स्वयं ही खराब होने लगता है.

इस के लिए ज्यादा अच्छा है कि यदि कार समतल स्थान पर पार्क की हुई हो तो ब्रेक का इस्तेमाल न किया जाए और यदि ढलान पर पार्क की हुई हो तो ब्रेक का इस्तेमाल न कर के उस के टायरों के आगेपीछे कोई भारी रुकावट जैसे पत्थर लगाए जाएं.

बैटरी

कार इस्तेमाल न करने से उस की बैटरी डिस्चार्ज होने लगती है. इस के लिए जरूरी है कि समयसमय पर कार के इंजन की रनिंग हो, तो कार को अपनी जगह पर खड़े होने पर भी कभीकभार जैसे 3 दिन में या हफ्ते में एक बार 10 मिनट के लिए इंजन स्टार्ट कर के छोड़ दिया जाए, ताकि बैटरी की चार्जिंग होती रहे.

लुब्रिकेशन

अब क्योंकि कार एक मशीन है, जो लोहे से बनी है. यदि इस्तेमाल न करें तो जंग लगते देर न लगेगी. ऐसे में कार की रनिंग करने से उस के इंजन से ले कर सभी पार्टों में लुब्रिकेशन होता है और जंग लगने की स्थिति से बचा जा सकता है.

फ्यूल टैंक

यह न सोचें कि कार का इस्तेमाल नहीं हो रहा है तो अब उस में ईंधन भर कर रखने की क्या जरूरत है, बल्कि इस समय फ्यूल टैंक फुल रहना चाहिए. क्योंकि यदि टैंक खाली रहा तो उस में हवा भर जाएगी और हवा का मोइश्चर कुछ समय में संघनित हो कर पानी बन जाएगा. यह पानी टैंक के तले में बैठ जाएगा, क्योंकि ईंधन की स्पेसिफिक ग्रेविटी पानी से ज्यादा होती है. इस से फ्यूल टैंक में कोरोजन होने की संभावना बढ़ जाती है .

कार पर धूलमिट्टी

कोशिश की जाए कि कार कवर्ड पार्किंग में खड़ी हो. यदि पार्किंग कवर्ड न हो तो कार को पूरी तरह से कवर किया जाए, ताकि उस पर धूलमिट्टी जमा न हो. यदि वह भी न हो तो कार को समयसमय पर साफ और नरम कपड़े से झाड़ कर गीले कपड़े से पोंछ दिया जाए.

ऐसा करने से उस पर से धूल निरंतर साफ होती रहेगी और जमा न होगी. इस तरह कार की बाहर की साफसफाई भी जरूरी है.

छिपकलीचूहे यानी रोडेंट से बचाव

अब क्योंकि कार बाहर जा नहीं रही. दूसरी वजह, लौकडाउन के चलते लोग भी घरों से बाहर नहीं निकल रहे तो ध्वनि प्रदूषण भी खत्म हुआ. हर तरफ शांति है, कार पार्किंग में भी कोई चहलपहल नहीं. ऐसे में पशुपक्षी स्वछंद घूम रहे हैं, ठीक उसी तरह चूहे, छिपकली, सांप, मकड़ियां आदि भी ज्यादा बाहर निकल रहे हैं. कौन जाने कब कार में घुस जाए, नेस्टिंग कर लें और वहां अंडे या बच्चे भी दे दें. क्योंकि वे भी शांत और सुरक्षित स्थानों की तलाश में रहते हैं.

इस के लिए कार के सभी एयर इनटेक और एग्जौस्ट और सभी ओपनिंग्स को किसी तरीके से सील किया जाए.

जब आप कार के इंजन रनिंग के लिए जाएं, तो म्यूजिक सिस्टम भी चलाएं, थोड़ी देर कार डोर्स खोल कर रखें. कभीकभार अंदर से वैक्यूम क्लीनिंग भी करें.

इस तरह कार के आसपास हलचल होती रहेगी, तो इन सभी के कार में घुसने की संभावना कम हो जाएगी.

अब इन सब टिप्स को उसी तरह अपनाइए, जैसे हम अपने घर को साफ और मेंटेन रखने के लिए करते हैं. या अपनेआप को मेंटेन करने के लिए सैलून सर्विसेज लेते हैं, जो इन दिनों उपलब्ध नहीं है. तो आप भी कुछ तो कर ही रहे होंगे स्वयं को घर में ही मेंटेन करने के लिए.

फिर देखिए लौकडाउन खत्म होने के बाद या अचानक से जरूरत के समय आप की कार आप को धोखा नहीं देगी, बल्कि मददगार साबित होगी. और आप कहना नहीं भूलेंगे, “मन्नू भाई मोटर चली पम…पम…पम.”

सुजाता: अतुल ने क्यों मांगा पत्नी से तलाक? भाग 3

अब सुजाता ने एमएससी पूरी कर ली थी. अपनी पढ़ाई और अन्य सामाजिक कार्यों से उस ने यूनिवर्सिटी और बनारस शहर में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली थी.

अमेरिका की अच्छी यूनिवर्सिटीज से स्कौलरशिप के साथ पीएचडी का औफर भी मिल गया था, जिन में कैलिफोर्निया की बर्कले और स्टैनफोर्ड भी थीं. उस ने स्टैनफोर्ड जाने का फैसला लिया था. उसे एफ-1 स्टूडैंट वीजा भी मिल गया था. बेटी रेणु तो अमेरिकन नागरिक थी ही, उसे अमेरिका जाने के लिए किसी वीजा की जरूरत नहीं थी.

सुजाता के पिता ने अमेरिका जाने के पहले उस से कहा, ‘‘बेटी, एक बार फिर से सोच लो. तुम अमेरिका में अकेले रह सकोगी? मुझे तुम्हारी और रेणु की सुरक्षा की चिंता है.’’

वह बोली, ‘‘पापा, आप को शायद मालूम नहीं है, महिलाओं के लिए अमेरिका बहुत ही सुरक्षित देश है. और अब तो रेणु भी समझदार हो गई है. अमेरिका में तो हजारों सिंगल मदर्स मिलेंगी. उन्हें कोई हेयदृष्टि से नहीं देखता. आप यहां चैन से रहिए. आप की बेटी अब इस काबिल हो गई है कि अपनी और रेणु की देखभाल भलीभांति कर सकती है.’’

अगस्त के अंतिम सप्ताह में सुजाता और रेणु अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत के सैन फ्रांसिस्को हवाई अड्डे पर उतरी थीं. वहां से टैक्सी ले कर पालो आल्टो पहुंच गई थीं. वहीं पर स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी है. वहां आने के पहले सुजाता ने एक रूम का अपार्टमैंट इंडिया से ही बुक कर लिया था. उस ने प्रसिद्ध एस्ट्रोफिजिसिस्ट के मार्गदर्शन में अपना शोध शुरू किया. उस के गाइड उस की प्रगति पर बहुत खुश थे.

बेटी रेणु भी स्कूल जाने लगी थी. सुबह यूनिवर्सिटी जाते समय उसे स्कूल में छोड़ देती थी और लौटते समय ले लेती थी. कभी लौटने में देर होने की संभावना होती तो उसे स्कूल में ही 2-3 घंटे एंक्सटैंडेड औवर्स में छोड़ देती थी. अमेरिका में ज्यादातर पतिपत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं, तो उन के छोटे बच्चों के लिए स्कूल में अकसर यह सुविधा होती है.

देखतेदेखते 5 साल गुजर गए थे. उस ने अपनी थीसिस सबमिट कर दी थी जिस में सौरमंडल के ग्रहों के बारे में अतिरिक्त दुर्लभ जानकारियां थीं. उस की थीसिस को अमेरिका के अतिरिक्त अन्य कई देशों की साइंस मैगजींस में प्रकाशित किया गया था. सब ने इस थीसिस की सराहना की थी.

सुजाता एस्ट्रोफिजिक्स में पीएचडी डिग्री प्राप्त कर अब डा. सुजाता थी. स्टैनफोर्ड में भी उस ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा था. पढ़ाई के अतिरिक्त वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों और भारतीय व अमेरिकी उत्सवों में भाग लेती थी. दीक्षांत समारोह के अवसर पर सुजाता ने अपने पिता को भी अमेरिका बुलाया था. वे भी अपनी बिटिया की संघर्षमय सफलता पर प्रसन्न थे.

इस दौरान एक भारतीय विधुर ने सुजाता को प्रोपोज किया था. उस ने अपने पिता से पूछा भी था. रेणु से भी चर्चा की थी. दोनों को कोई आपत्ति न थी. पिता को तो खुशी होती अगर सुजाता का घर फिर बस जाता.

वह एक बार उस विधुर के साथ डेट्स पर भी गई थी, परंतु यह एक औपचारिकताभर थी उस व्यक्ति का स्वभाव और विचार परखने के लिए. सुजाता को यह प्रपोजल स्वीकार नहीं था. उस को लगा कि यह व्यक्ति रेणु का सौतेला पिता बनने के योग्य नहीं था. इस के बाद उस के पास फिर कभी शादी की बात सोचने की फुरसत भी नहीं थी.

पीएचडी करने के दौरान ही सुजाता को नासा से एस्ट्रोफिजिसिस्ट साइंटिस्ट का औफर मिल चुका था. उसे मोफेट कील्ड, कैलिफोर्निया में स्थित नासा के रिसर्च सैंटर में पोस्ट किया गया था. सुजाता को उस की विशिष्ट उपलब्धियों के आधार पर ग्रीन कार्ड आसानी से मिल गया था. अब वह अमेरिका की स्थाई निवासी थी.

इस बीच, उस के पूर्व पति अतुल को भी अपनी पूर्र्व पत्नी की उपलब्धियों की जानकारी मिल चुकी थी. अमेरिकन लड़की से शादी के बाद उसे भी ग्रीन कार्ड मिल गया था. एक दिन उस ने सुजाता को फोन किया था. परंतु सुजाता ने उस को कोई तवज्जुह नहीं दी थी. उस ने मात्र इतना ही कहा, ‘‘हम मांबेटी दोनों बहुत खुश हैं, अब आगे हमारी जिंदगी में दखल न देना.’’ और फोन काट दिया था.

इधर अतुल की अपनी नई अमेरिकन बीवी के साथ निभ नहीं रही थी. उस की बीवी ने ही तलाक की अर्जी कोर्ट में दे रखी थी जो 6 मास होतेहोते मंजूर भी हो गई थी. अतुल को आधी संपत्ति उस अमेरिकन को देनी पड़ी थी.

सुजाता की बेटी रेणु करीब 15 साल की हो चली थी. वह भी कैलिफोर्निया की जूनियर चैस चैंपियन थी. एक बार फिर अतुल ने सुजाता से फोन कर मिलने की इच्छा व्यक्त की थी. पहले तो वह नहीं मान रही थी, पर उस के बारबार के आग्रह पर रविवार को सुबह मिलने को कहा. सुजाता ने रेणु को भी सारी सचाई बता दी थी, हालांकि, अतीत की कुछ बातें रेणु को अभी भी याद थीं.

डा. सुजाता ने सैन होजे में बड़ा घर खरीद लिया था. अतुल रविवार को सुजाता से मिलने पहुंचा था. रेणु ने स्नैक्स और जूस ला कर सामने टेबल पर रखा था.

रेणु को सामने देख कर अतुल बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘इधर आओ बेटी, मैं तुम्हारा पिता हूं.’’

सुजाता ने उस की बात काटते हुए कहा, ‘‘गलत. बिलकुल गलत. तुम उस के पिता थे. अब नहीं रहे.’’

अतुल बोला, ‘‘सौरी. पर क्या हम फिर से एक नहीं हो सकते? जब जागो तभी सवेरा.’’

सुजाता बोली, ‘‘याद करो, परदेश में तुम ने मुझे बेसहारा समझ सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया था. मैं तो कभी सोई ही नहीं. हमेशा जगी और सचेत थी. हां, तुम जाग कर भी सोए हुए थे. जगे हुए को जगाया नहीं जाता है.’’

अतुल बोला, ‘‘मुझे तुम से तलाक लेने का अफसोस है. पर क्या फिर हम मिल नहीं सकते?’’

सुजाता ने कहा, ‘‘तुम अभी तक 2 बीवियों से तो निभा नहीं सके हो. तुम पर कोई मूर्ख लड़की भी भरोसा नहीं करेगी, मेरा तो सवाल ही नहीं उठता.’’

अतुल बोला, ‘‘एक बार फिर से सोच लो. आखिर, रेणु को भी पिता का संरक्षण मिल जाएगा.’’

सुजाता बोली, ‘‘अब तुम इतने दिनों

से अमेरिका में रह कर भी

बेवकूफी वाली बात कर रहे हो. यहां लड़कियां और औरतें बहुत सुरक्षित हैं. तुम तो कंप्यूटर इंजीनियर हो. तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं जहां भी रहूं, सैलफोन में ऐप्स के द्वारा रेणु और घर पर बराबर नजर रख सकती हूं. वैसे, हम दोनों अपने बल पर अपनी रक्षा कर सकते हैं. तुम्हारे जैसे कमजोर मर्द क्या सुरक्षा देंगे? तुम अपनी फिक्र करो. हो सकता है, तुम्हें किसी औरत का संरक्षण चाहिए.’’

अतुल बोला, ‘‘एक बार रेणु से भी पूछ लो, उसे पिता नहीं चाहिए?’’

सुजाता ने रेणु से पूछा, ‘‘क्यों बेटे, मिस्टर अतुल को क्या जवाब दूं?’’

रेणु बोली, ‘‘मेरी मम्मीपापा दोनों आप हो मौम. हम दोनों में इतनी

शक्ति और क्षमता है कि किसी तीसरे की कोई गुंजाइश नहीं है हमारे बीच. मिस्टर अतुल से कह दो, कृपया चले जाएं.’’

सुजाता अतुल की तरफ देख कर बोली, ‘‘तुम्हें जवाब चाहिए था, मिल गया न. नाऊ, यू कैन गो. और कभी नारी को अबला समझने की भूल भविष्य में न करना.’’

अतुल बिना कुछ बोले सुजाता के घर से निकल पड़ा था.  द्य

ऐसा भी

होता है

बात पुरानी है. हमें हिमाचल प्रदेश के किसी गांव में किसी शादी में जाना था और वह गांव मुख्य सड़क से काफी अंदर जा कर था.  बस से हम शाम ढले उस जगह पहुंचे जहां से हमें मुख्य सड़क से गांव की ओर पैदल जाना था लेकिन जब बस से उतरे तब बाहर बहुत तेज वर्षा हो रही थी.

अब गांव जाएं तो कैसे जाएं, यही सोचतेसोचते हम परिवार समेत सड़क किनारे स्थित एक छप्परनुमा दुकान की छत के नीचे खड़े हो गए.

दुकान में बैठे एक बुजुर्ग शायद हमारी समस्या को भांप गए थे. उन्होंने हमें बड़ी विनम्रता से छप्पर के अंदर आने को कहा सो हम अंदर चले गए और वहां पर बने एक चबूतरेनुमा बैंच पर बैठ गए.

उन दिनों मोबाइल भी नहीं होते थे इसलिए गांव में सूचना देना भी संभव नहीं था. उधर वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी.

बातों ही बातों में रात हो गई और सब भूख से बेहाल होने लगे. हमारी स्थिति भांप कर वही बुजुर्ग बोले, ‘‘मैं तुम्हारे सब के लिए खाना बना देता हूं, खाना खा कर तुम सब इसी छप्पर के नीचे सो जाना क्योंकि बारिश तो बहुत तेज हो रही है. थमने का नाम नहीं ले रही. लगता है  सुबह तक होती रहेगी. ऐसे में तुम्हारा निकलना संभव नहीं. उन्होंने शायद हमारे मन की बात कह दी थी सो सब ने यह सोच कर चुपचाप उन की बात मान ली कि सुबह चलते समय हम उन को खाने का और ठहरने का दाम दे देंगे. इतना कुछ हमारे लिए कर रहे हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि उन की पैसे से मदद करें.

हम ने भरपेट खाना खाया और थकावट के कारण हमें झट से नींद आ गई. सुबह सो कर उठे तो देखा बारिश भी रुक गई थी तो हम ने सामान उठाया और उन बुजुर्ग को पूरी व्यवस्था के दाम पूछे.

पलट कर बुजुर्ग बोले, ‘‘बेटा यह सब व्यवस्था मैं ने पैसे के लिए नहीं की थी बल्कि इंसानियत के नाते की थी. इस दाने पर तुम्हारा नाम था सो तुम ने खाया.’’

यह सुनते ही मैं ने बुजुर्ग के चरण पकड़ लिए. मैं ने उन्हें कुछ तो पैसे लेने को कहा लेकिन उन्होंने एक पैसा नहीं लिया और यह सोचता चला आया कि दुनिया में इंसानियत अभी जिंदा है,

सुजाता: अतुल ने क्यों मांगा पत्नी से तलाक? भाग 2

हूं. ठीक है, अब देररात

हो चुकी है, आगे कल

बात होगी.’’

रात में सुजाता ने अपने पापा को सारी बातें विस्तार से बताई थीं. उस के पिता ने कहा भी था कि वे अतुल के पूरे परिवार को इंडिया में कोर्ट केस में बुरी तरह ऐसा फंसा देंगे कि पूरी जिंदगी कोर्ट के चक्कर लगाते रहेंगे.

सुजाता ने कहा, ‘‘नहीं पापा, इस में अतुल के परिवार का कोई दोष नहीं है. उन को बेवजह क्यों तंग करना है, और जब अतुल को मुझ से प्यार ही नहीं रहा, तो मैं क्या उन से प्यार की भीख मांगूं?’’

अगले दिन सुजाता ने अतुल से कहा, ‘‘तुम अपने पेपर्स तैयार करा लो, मैं साइन कर दूंगी.’’

अतुल बोला, ‘‘इस में एक बाधा है जो तुम्हारे हित में नहीं है.’’

वह बोली, ‘‘अब भी तुम मेरा हित सोच रहे हो?’’

अतुल बोला, ‘‘बात ठीक से समझो. जिस दिन कोर्ट से तलाक मिल जाता है, उसी दिन से तुम्हारा अमेरिका में रहना, गैरकानूनी हो जाएगा क्योंकि तब तुम मुझ पर आश्रित नहीं रहोगी और तुम्हारा वीजा  रद्द हो जाएगा. तुम भारी मुसीबत में फंस जाओगी.’’

सुजाता बोली, ‘‘तब, मुझे क्या करना चाहिए?’’

अतुल बोला, ‘‘मैं सारे पेपर्स तैयार करवा लेता हूं. इस के अतिरिक्त एक एग्रीमैंट भी तैयार कर लेता हूं. मेरा जितना भी बैंक बैलेंस और शेयर्स हैं उस का आधा तुम्हें दे रहा हूं. रेणु की कस्टडी भी तुम्हें दे रहा हूं क्योंकि बेटी मां के पास ज्यादा खुश रहेगी. तुम सारे पेपर्स पर साइन कर दो. जितना जल्दी हो जाए, अच्छा है क्योंकि जितनी बार हम वकील के यहां या कोर्ट जाएंगे, महंगा पड़ेगा. यहां वकील की फीस बहुत ज्यादा होती है. पेपर्स साइन कर तुम इंडिया जा सकती हो क्योंकि तब तक तुम्हारा वीजा वैलिड रहेगा. बाकी, सब मैं यहां देख लूंगा.’’

सुजाता बोली, ‘‘ठीक है, मुझे सबकुछ मंजूर है जिस में तुम्हारी खुशी है. तुम पर प्यार न तो थोपूंगी और न ही इस के लिए तुम से भीख मांगूगी.’’

अतुल बोला, ‘‘तो मैं वकील से मिल कर पेपर्स तैयार करा लेता हूं.’’

सुजाता बोली, ‘‘हां, करा लो. मगर मुझे तुम्हारा एक पैसा भी नहीं चाहिए. इंडिया जाने का अपना और रेणु का टिकट मैं खुद कटाऊंगी. मुझे या रेणु को जो कैश गिफ्ट मिलते थे, उन में से कुछ पैसे बचाए हैं. इस के अतिरिक्त पापा का दिया क्रैडिट कार्ड भी है. उस से मेरा काम हो जाएगा. हां, रेणु मेरी बेटी मेरे ही साथ रहेगी.’’

अतुल बोला, ‘‘मगर रेणु के लिए मैं कुछ देना चाहूंगा.’’

‘‘वे पैसे हमारी तरफ से अपनी नई अमेरिकन बीवी को गिफ्ट कर देना,’’ सुजाता ने कहा.

2 दिनों बाद अतुल ने सुजाता को तलाक से संबंधित पेपर्स दिए थे. सुजाता ने उन पेपर्स पर साइन कर अतुल को लौटा दिए थे. कुछ ही दिनों के बाद सुजाता को कोर्ट से भी एक नोटिस मिला था, जिसे उस ने तलाक पर अपनी सहमति के साथ वापस भेज दिया था.

2 सप्ताह के अंदर सुजाता अपनी बेटी रेणु के साथ इंडिया आ गईर् थी. 40 वर्ष की उम्र के आसपास अब वह एक बेटी की सिंगल पेरैंट थी. उधर, अतुल अपनी अमेरिकन प्रेमिका के साथ रहने लगा था. चंद महीनों के अंदर अतुल और सुजाता का तलाक भी हो गया था. फिर अतुल ने अमेरिकन से शादी कर ली थी.

इधर, सुजाता अपने पापा के साथ बनारस में थी. उस के पापा ने कहा, ‘‘बेटी, तू डरना नहीं. तेरा बाप जिंदा है. तुझे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने देगा.’’

सुजाता ने कहा, ‘‘मुझे आप के रहते किसी बात की चिंता नहीं है. पर मुझे अपना और रेणु का भविष्य सुनिश्चित तो करना ही होगा. हम पूरी जिंदगी किसी के सहारे तो नहीं काट सकते हैं.’’

इंडिया आने के कुछ ही महीने बाद उस ने बीएचयू में एमएससी (फिजिक्स) में ऐडमिशन लिया था. अपने फ्री समय में घर से कंप्यूटर पर स्काइप द्वारा अमेरिका के अपने कुछ पुराने बच्चों को चैस की कोचिंग देने लगी थी. इस में अच्छी आमदनी भी थी. एक बच्चे से एक घंटे कोचिंग के लिए 500 रुपए तो आसानी से मिल जाते थे क्योंकि अमेरिका में यही बच्चे एक घंटे के लिए सौ डौलर तक देते हैं.

इस के अतिरिक्त सुजाता को पियानो बजाना भी आता था. बनारस में उसे कोई पियानो सीखने वाला विद्यार्थी तो नहीं मिला क्योंकि वहां पियानो दूर तक किसी के पास नहीं था. पर कुछ बच्चे कीबोर्ड सीखने वाले मिल गए थे. पिता के रहते उसे पैसे की कोई कमी नहीं थी, फिर भी वह आर्थिकरूप से अब आत्मनिर्भर थी. उस ने रेणु का ऐडमिशन भी एक प्रसिद्ध इंटरनैशनल स्कूल में करा दिया था.

छुट्टियों में वह रेणु के साथ किसी न किसी हिल स्टेशन पर जाती थी. इस से बनारस की गरमी से भी बच जाती थी और मनोरंजन भी हो जाता था. उस ने कम उम्र में ही रेणु को भी चैस की कोचिंग देना शुरू कर दिया था. उस ने एक एनजीओ भी जौइन कर लिया था जो अमेरिका में पीडि़त भारतीय महिलाओं की मदद करता था.

एक बार सुजाता के घर उस की मौसी आई थी. सुजाता कहीं घूमने के लिए बाहर निकल रही थी. वह जींस और टौप पहने थी.

उस की ड्रैस पर मौसी ने कहा, ‘‘यह क्या पहनावा है. बेटियों को ठीक से तो रहना चाहिए. इतनी उम्र हो गई इतना भी नहीं सीखा?’’

सुजाता ने कहा, ‘‘मौसी, आप ने तो ऐसा ब्लाउज पहन रखा है कि आधी छाती और आधी पीठ नजर आ रही है और साड़ी भी नाभि के नीचे बांध रखी है. मेरे पहनावे से तो मेरा कोई अंगप्रदर्शन नहीं हो रहा है. तब मेरी ड्रैस बुरी कैसे हुई?’’

मौसी तिलमिला कर रह गई थीं. सुजाता दिनपरदिन पहले से ज्यादा ही स्मार्ट लगने लगी थी, मेकअप तो नाममात्र का करती थी पर अपने पसंदीदा ब्रैंडेड कपड़े और रंगीन चश्मा पहन कर जब

भी निकलती थी, उसे देख कर कोई भी 30 साल से ज्यादा की नहीं सोचता था.

सुजाता ने फाइनल ईयर में पहुंचतेपहुंचते जीआरई और टोएफेल टैस्ट्स में अच्छे स्कोर्स हासिल कर लिए थे. ये दोनों टेस्ट्स अमेरिका में आगे की पढ़ाई के लिए जरूरी होते हैं. उस ने अमेरिका की कुछ प्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज में पीएचडी के लिए अप्लाई भी कर दिया था.

सुजाता: अतुल ने क्यों मांगा पत्नी से तलाक? भाग 1

अतुल ने सुजाता से तलाक मांगा, उस ने दे दिया. सुजाता को पति के प्यार की भीख नहीं चाहिए थी. अतुल ने सुजाता को अबला समझा था, लेकिन वह कमजोर नहीं थी…

मुकेश कुमार बनारस के नामी  वकील थे. दयालबाग में उन का बड़ा सा बंगला था. आज उन के घर की रौनक देखने लायक थी. हजारों रंगीन बल्ब जगमगा रहे थे. दर्जनों हैलोजन बल्ब्स सामने की रोड पर भी लगे थे. पूरी रोड को कवर कर बड़ा सा पंडाल सजाया गया था. पंडाल के अंदर भी काफी सजावट थी. और बिस्मिल्लाह खान की शहनाई बज रही थी. बरात के शानदार स्वागत की पूरी तैयारी थी. क्यों न हो, उन की इकलौती बेटी सुजाता की शादी जो थी.

सुजाता ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से बीएससी करने के बाद कंप्यूटर के कुछ कोर्स किए थे. वह राज्य की चैस चैंपियन थी. इस के अतिरिक्त, उस ने संगीत में प्राथमिक शिक्षा भी ली थी. देखने में सुंदर भी थी. उस का भावी पति अतुल लखनऊ का रहने वाला था. उस ने

भी बीएचयू से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीटैक किया था. बेंगलुरु में एक अमेरिकन कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था. मुकेश साहब बेटी की शादी अच्छे सजातीय लड़के से कर निश्ंिचत हो गए थे. अरेंज्ड मैरिज थी. बेटी को जरूरत की सब चीजें दिल खोल कर दी थीं. शादी के एक सप्ताह बाद ही सुजाता पति के साथ बेंगलुरु आ गई थी.

अतुल और सुजाता दोनों बहुत खुश थे. सुजाता तो शाकाहारी थी पर अतुल मांसाहारी था. पर सुजाता को इस में कोई आपत्ति नहीं थी. दोनों ने प्लानिंग की थी कि 5 साल के बाद ही कोई बच्चा हो. इस बीच, दोनों ने खूब मौजमस्ती की. देशविदेश की सैर भी की. शादी के 6 साल बाद सुजाता मां बनने वाली थी. तभी अतुल को लंबे समय के लिए अमेरिका जाना पड़ा था. कंपनी ने उस के लिए एच 1 बी जौब वीजा लिया था. सुजाता को एच 4 वीसा, जो आश्रितों के लिए होता है, मिला था.

दोनों अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में आ गए थे. कुछ महीने बाद उन को एक प्यारी सी बेटी हुई थी, रेणु. अमेरिका में जन्म होने के कारण उसे अमेरिकी नागरिकता मिल गई थी. साथ में अतुल ने उस के लिए भारतीय कौंसुलेट से ओवरसीज सिटीजन औफ इंडिया कार्ड भी बनवा लिया था.

सुजाता अपने वीजा पर अमेरिका में कोई काम नहीं कर सकती थी. और वैसे भी, उस की डिगरी पर कोई नौकरी नहीं मिल सकती थी. पर वह घर पर ही कुछ भारतीय बच्चों को चैस सिखलाया करती थी.

इस से उस का समय कट जाता था. अमेरिका में बच्चों में पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ न कुछ सीखने का शौक होता है. वह इस के बदले में कोई फीस तो नहीं लेती थी क्योंकि औपचारिक तौर पर वह यह काम नहीं कर सकती थी. पर जब कभी रेणु के जन्मदिन पर और अपनी एनिवर्सरी पर उन बच्चों व उन के मातापिता को बुलाती थी तो वे जानबूझ कर कैश ही गिफ्ट करते थे. सुजाता ने अमेरिका में पियानो बजाना भी सीख लिया था.

शुरू के 4-5 साल तो ठीक से बीत गए थे. दोनों पतिपत्नी बहुत खुश थे. रेणु अब अमेरिका में स्कूल जाने लगी थी. कुछ दिनों बाद पति व पत्नी में अकसर नोकझोंक होने लगी थी क्योंकि अतुल अकसर वीकैंड में देररात घर लौटता था. इस के चलते कभीकभी तो लड़ाईझगड़े भी होते थे. अतुल का उसी की कंपनी में कार्यरत एक अमेरिकन लड़की से अफेयर चल रहा था. यह बात अब सुजाता से छिपी नहीं थी. सुजाता इस का कड़े शब्दों में विरोध करती थी. आएदिन घर में तनाव रहता था.

एक दिन अचानक अतुल ने सुजाता से कहा, ‘‘बेहतर है, अब हम अलग हो जाएं.’’

सुजाता बोली, ‘‘तनाव तो तुम ने पैदा किया है हमारे बीच उस अमेरिकन लड़की को ला कर. उसे अपनी जिंदगी से निकाल फेंको, सबकुछ अपनेआप ठीक हो जाएगा.’’

अतुल बोला, ‘‘तुम जैसा सोच रही हो, वह नहीं होगा. हमारे बीच की खाई पाटना अब मुमकिन नहीं है. क्यों न हम तलाक ले लें?’’सुजाता को इस की उम्मीद नहीं थी. उस ने अपने को संभालते हुए

कहा, ‘‘बेहतर है, तलाक की बात तुम ने शुरू की. मैं भी बंटा हुआ पति नहीं चाहती हूं.’’थोड़ी देर रुक कर, फिर सुजाता ने आगे कहा, ‘‘क्यों न हम एक बार इंडिया में अपनेअपने घर बात कर उन्हें यह सब बता दें? इस के बाद जैसा तुम कहोगे, वैसा होगा.’’

अतुल इस के लिए तैयार नहीं था. उस के मन में चालाकी सूझी थी. उसे अमेरिका आए 5 साल से ज्यादा हो गया था. उस का एच 1 बी वीजा 8 महीने बाद खत्म हो रहा था. यह वीजा 6 साल से ज्यादा नहीं मिलता है. उस का मन अमेरिका छोड़ने का नहीं था. वहां की लाइफस्टाइल उसे बेहद पसंद थी. उस ने मन में अमेरिकन लड़की से शादी करने की ठान ली थी. इस से उसे ग्रीन कार्ड आसानी से मिल जाता. फिर अमेरिका में जितने दिन चाहता, रह सकता था. उस को भय था कि यह बात सुजाता के पिता को अच्छी नहीं लगेगी और वे खुद एक वकील हैं, आसानी से तलाक नहीं होने देंगे और मामला लंबे समय तक लटका रहेगा.

सुजाता ने आगे कहा, ‘‘तब सीरियसली बताओ, मुझे क्या करना चाहिए?’’अतुल बोला, ‘‘मैं यहां डाइवोर्स सूट फाइल करूंगा. और तुम्हें बता दूं कि कैलिफोर्निया में ‘नो फाल्ट’ तलाक का नियम है. यदि पति या पत्नी में से कोई भी यहां की कोर्ट में तलाक की अर्जी देता है किसी वजह से भी तो उसे कोर्ट में वजह साबित करने की जरूरत नहीं होती है. हां, ज्यादा से ज्यादा प्रौपर्टी के बंटवारे और बच्चे की कस्टडी के लिए आपस में समझौता कर लेना होता है या फिर कोर्ट के फैसले का इंतजार करना पड़ता है.’’

सुजाता बोली, ‘‘जब तुम ने फैसला कर ही लिया है, तो मैं तुम से जबरदस्ती बंध कर नहीं रह सकती

अपने घर को करें सीनियराइज

घर जरूरत की हर सुखसुविधा से युक्त होना चाहिए और यह तब ज्यादा जरूरी हो जाता है जब आप सीनियर सिटिजन की श्रेणी में आ जाएं क्योंकि स्वयं की सुरक्षा आप के लिए प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए. जीवन चलने का नाम है – बाल्यावस्था, युवावस्था और फिर वृद्धावस्था. इसी प्रकार विवाह, बच्चे और फिर मम्मीपापा से दादीदादा बनने का सफर. जीवन अपनी निर्बाध गति से चलता ही रहता है. युवावस्था में हम घर बनवाते हैं अपने परिवार और बच्चों की जरूरत के मुताबिक. परंतु एक दौर ऐसा आता है जब बच्चे अपनी जिंदगी में सैट हो जाते हैं और घर में रह जाते हैं केवल बुजुर्ग पति व पत्नी.

अब आप सीनियर सिटिजन की श्रेणी में आ जाते हैं, शरीर कमजोर हो जाता है और काम करने की क्षमता भी कम हो जाती है. इसलिए अब आवश्यकता होती है अपने घर को भी सीनियराइज करने की यानी अपनी उम्र को देखते हुए अपने घर और उस की व्यवस्था में आप इस प्रकार से परिवर्तन करें जिस में आप को अधिक से अधिक आराम हो और आप दोनों सहजता से अपने सभी कार्य कर सकें. इस अवस्था के अधिकांश लोग अपने घर में ही रहना पसंद करते हैं. परंतु कई बार उन का घर में रहना बहुत रिस्की और कठिन हो जाता है. इस उम्र में आमतौर पर गिरने की समस्या बहुत बढ़ जाती है. इसलिए घर में इस प्रकार से बदलाव किया जाए कि आप को आराम तो हो ही, साथ ही, आप की सुरक्षा प्रथम प्राथमिकता हो.

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सुरक्षा सब से पहले द्य घर के मुख्य दरवाजे पर कैमरा लगवाएं, ताकि हर आनेजाने वाले को आप देख सकें. द्य घर के पोर्च, सीढि़यों और बाहर टहलने वाले स्थान पर पर्याप्त लाइटें लगवाएं. द्य आप चाहे फ्लैट में रहते हों या स्वतंत्र घर में, बाहर निकलने के लिए एक अतिरिक्त दरवाजा अवश्य बनवाएं, ताकि किसी भी प्रकार की इमरजैंसी में वह काम आ सके. द्य घर में जहां भी सीढि़यां हों वहां रेलिंग अवश्य लगवाएं, ताकि आप को चढ़ने में सुगमता रहे. बाथरूम में बदलाव द्य इस उम्र में आमतौर पर घुटनों की समस्या हो जाती है. सो, भारतीय शैली के स्थान पर पाश्चात्य शैली के शौचालय बनवाएं. द्य बाथरूम में बार्स या रेलिंग लगवाएं ताकि उस के सहारे वहां आप आसानी से पहुंच सकें. द्य बाथरूम के बाहर और अंदर मैट रखें, ताकि आप फिसलें नहीं. यदि वहां का फर्श चिकने टाइल्स का है, तो उन्हें बदलवाएं. द्य बाथरूम में ग्रैब हैंडिल्स लगवाएं जिन्हें पकड़ कर आप आसानी से उठबैठ और खड़े हो सकें.

बाथरूम साफ करने के लिए लंबे वाइपर और ब्रश का प्रयोग करें. गतिविधियों को बनाएं सरल द्य घर के समस्त फर्नीचर की व्यवस्था इस प्रकार से करें कि वह घर में आप के चलनेफिरने में बाधा न बने. साथ ही, भारी फर्नीचर के स्थान पर केन, फाइबर और स्टील के हलके फर्नीचर का उपयोग अधिक करें, ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप सहजता से उठा सकें. द्य घर के गेट के पास एक सीसीटीवी कैमरा लगवाएं ताकि घर के आसपास की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. द्य घर के दरवाजे पर इलैक्ट्रौनिक बेल लगाएं, उस की स्क्रीन कमरे में लगाएं जहां से व्यक्ति बैठेबैठे देख सकता है कि दरवाजे के बाहर कौन खड़ा है. द्य घर में अपने पास इमरजैंसी मोबाइल नंबर की एक लिस्ट रखें ताकि जरूरत पड़ने पर यहांवहां ढूंढ़ना न पड़े. द्य अपने लिए कौर्डलैस बेल और फोन रखें ताकि सुगमता से नातेरिश्तेदारों और मित्रों से बात कर सकें. आजकल मोबाइल फोन का चलन है,

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उस का प्रयोग करना आप के लिए अधिक सुविधाजनक होगा. द्य अपनी जरूरत का सामान, जैसे दवाएं, किताबें, चश्मा, मोबाइल आदि, ऐसी जगह रखें जहां से आप को निकालने में आसानी रहे. द्य अपने बैडरूम या लिविंगरूम में एक टीवी अवश्य लगवाएं, ताकि आप सहज हो कर अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्रम देख सकें. द्य अकसर घरों में कपड़े सुखाने की व्यवस्था छत पर होती है. ऐसे में सीढि़यों पर चढ़ने में आप को परेशानी हो सकती है. इस से बचने के लिए आप कपड़े सुखाने का स्टैंड खरीदें और उसे गैलरी और पोर्च आदि में रख कर अपने कपड़े सुखाएं. द्य ऊंचाई वाले स्थान पर चढ़ने के लिए स्टैप स्टूल का प्रयोग करें. द्य आरामदायक चप्पलजूतों का प्रयोग करें, मोजों को कभी भी जूतों के बिना न पहनें क्योंकि मोजे फर्श पर स्लिप करते हैं. द्य घर में जमीन पर से यदि टैलीफोन, बिजली के तार आदि निकल रहे हैं तो उन्हें अंडरग्राउंड करवा दें, ताकि वे आप के चलने में बाधा न बनें.

घर का फर्श यदि कहीं से टूटा है तो उसे तुरंत ठीक करवाएं वरना इस से ठोकर खा कर आप गिर सकते हैं. द्य घर में कांच से बने बरतनों का कम से कम उपयोग करें ताकि अगर बरतन हाथ से फिसल कर गिर जाए और टूट जाए तो उस के टुकड़े यहांवहां न फैलें. द्य घर की छत या बालकनी पर मनमोहक फूलों वाले पौधे लगाएं. ये खुशबू भी देंगे और घर की सुंदरता भी बढ़ाएंगे. साथ ही ये घर में पर्यावरण को भी साफ करेंगे. द्य घर में बेहतर क्वालिटी के बिजली उपकरण जैसे स्विच, होल्डर और बटन लगाएं ताकि ओवरलोड हो कर अनचाही घटना से बचा जा सके. द्य तत्काल परिस्थिति को देखते हुए घर में सैनिटाइजर जरूर रखें. घर पर हमेशा हैंड क्लीनर अपने आसपास जरूर रखें. द्य

दलितों की बेबसी पर नहीं पसीजी ’बहिन जी’

कानपुर से लखनऊ तक आ चुके सुनील, प्रकाश निर्मल और प्रताप नामके 4 गरीब मजदूरों को कुशीनगर जाना था. वह कानपुर रोड बाईपास से शहीद पथ पकड कर साइकिलो से आगे बढ रहे थे. इनको प्यास लगी तो वहीं पास बनी पुलिस चैकी के अंदर गये और पानी पीकर प्यास बुझाई. यह लोग कुछ देर साइकिल पकड पर पैदल पैदल चल रहे थे और कुछ देर साइकिल की सवारी कर रहे थे. यह लोग ट्रक और बस में तभी सफर करते थे जब उनकी साइकिल को रखने का मौका मिलता था. राजस्थान से हरियाणा होते हुये कुशीनगर जाने वाले यह लोग बताने लगे राजस्थान में फैक्ट्री में काम करते थे हमने अपने लिये एकएक साइकिल खरीद ली थी. हम बस या ट्रक का सफर करने के लिये अपनी साइकिल नहीं छोड सकते. साइकिल के सहारे ही अपने गांव तक पहुचेगे.

सडको पर मिलने वाली सहायता के बारे में जब पूछा गया तो यह बोले कि हर तरह के समाज के लोग हमारी मदद कर रहे थे. किसी ने जाति या धर्म नहीं पूछा. हमें इस बात का अफसोस हो रहा है कि जिन नेताओं के कहने पर हम जाति और धर्म के नाम पर मरने मारने को तैयार रहते है मुसीबत की इस घडी में उनमें से कोई भी हमारी मदद को सडक पर नहीं दिखा. सुनील, प्रकाश निर्मल और प्रताप चारों की दलित बिरादरी के थे. जब सवाल मायावती की मदद का उठा तो यह बोले बहिन जी को तो हमेंशा वोट लेने के समय ही हमारा ख्याल आता है. कई बार हम लोग अपने कामधंधे से छुट्टी लेकर वोट डालने आते थे. आज हम मुसीबत में है तो हमारे हक के लिये वह आवाज भी उठाने को तैयार नहीं है.

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मायावती को देना होगा गरीबो के छालों का हिसाब ः

दलित और गरीब एक दो दिन नहीं कई महीनों तक पांव में छाले लिये सडको पर दरदर भटक रहा था. दलितों की मसीहा बहिन मायावती किसी दलित के आंसू पोछने सडक पर नहीं उतर सकी. दलित और गरीब सडको पर अपना खून पसीना बहा रहा था पर बहिन जी का मन एक धेला भी नहीं पसीजा. यह बहिन जी कोई ऐसी वैसी बहिन नही है. यह दलितों की देवी, दलितों की मसीहा बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो हाईकमान मायावती है. ऐसा नहीं कि मायावती और उनकी पार्टी बसपा इतना भी सक्षम नहीं थी कि कोरोना संकट में सडको पर भटक रहे गरीब और दलितों की मदद करने सडक पर नहीं उतर सकती थी. मायावती पर भ्रष्टाचार के बडे बडे मामले है. खुद अपने जन्मदिन पर मायावती इन्ही गरीब और दलितों की मदद से नोटों के हार पहनती थी. इन्ही दलित और गरीबों के वोट पा कर वह केवल एक दो बार नहीं चारचार बार उत्तर प्रदेश जैसे बडे राज्य की मुख्यमंत्री रही है.

 

 

 

विश्वशूद्र महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चैधरी जगदीश पटेल कहते है ‘पहले तीन बार मायावती ने भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की. कुर्सी पर बैठने के अपने बचाव में हर बार वह यह कहती थी कि उनको दलितों के हित में काम नहीं करने दिया जा रहा. 2009 में इसी गरीब दलित वर्ग ने मायावती को बहुमत से उत्तर की सरकार चलाने का मौका दे दे दिया. तब मायावती ने भाजपा की ही तर्ज पर मूर्तिपूजा को बढावा देते हुये ना केवल दलित समाज के महापुरूषों की मूर्तियां लगवाई उनके नाम पर पार्क बनवाये बल्कि मायावती ने अपनी खुद की मूर्ति भी लगवाई. जीवित रहते अपनी मूर्ति लगवाने वाली वह पहली नेता बनी. मायावती को इस बात का डर था कि सत्ता से हटने के बाद उनके समर्थक मूर्तियां लगवाने का काम नहीं करेगे तो क्या होगा ? कहीं वह गुमनाम ना हो जाये. एक तरह से यह वहीं मनुवादी सोंच थी जिसका वह विरोध करती थी‘.

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गरीब और दलितों को समझा पैर की जूती ः

चैधरी जगदीश पटेल कहते है ‘बसपा और बामसेफ ने जिस मनुवाद के खिलाफ लडाई लडी. दलितो को जागरूक किया मायावती ने कुर्सी पर बैठते हुये उसको कमजोर करने का काम शुरू कर दिया. मायावती ने सरकार की अनुमति के बिना बाबा साहब की मूर्ति कहीं लगाने को प्रतिबंधित कर दिया. लेकिन अपनी मूर्ति लगा दी ? बसपा को छोडकर तमाम दलित संगठनों को कमजोर करने का काम किया. उनके मुददों को दबाया गया. दलित संगठन जितना मायावती के कार्यकाल में प्रताडित हुये उतने और कभी नहीं परेशान किये गये. मायावती ने दलित और गरीबों को कभी बराबरी का अधिकार नहीं दिया. पूरी दुनिया खुली आंखों से देखा कि उनके मंच पर उनके बराबर बैठने का अधिकार किसी को नहीं रहा. जिस भेदभाव का मायावती विरोध करती थी उसी को उन्होने अपने व्यवहार में ढाल लिया. बहुजन समाज की बात करने वाली बसपा केवल उसी तरह मायावती की पार्टी बनकर रह गई जैसे कांग्रेस गांधी नेहरू परिवार और भाजपा संघ परिवार की पार्टी बनकर रहती है.‘

 

जगदीश पटेल कहते है ‘करोना संकट का प्रभाव केवल जीवन और मौत पर ही नहीं है. इसका सबसे बडा सामाजिक प्रभाव भी पडेगा. गांव मंे इन गरीब मजदूरों को पहले की तरह छुआछूत और भेदभाव का शिकार होना पडेगा. अगडी जातियों के खेतों में काम करना होगा. मेहनत के हिसाब से मजदूरी नहीं मिलेगी. वर्ग सघर्ष और बढेगा. मायावती सहित कोई भी दलित नेता सडको पर भय और भूख से लड रहे गरीब मजदूरों की मदद के लिये आगे नहीं आया. यह बात इनको याद रहेगी. अपनी इस गलती का अहसास मायावती और दूसरे दलित नेताओं को बाद में होगा. इसका असर व्यापक होगा. मायावती पर भाजपा का दबाव साफ दिखाई दे रहा है. उनको यह भी लग रहा है कि यह दलित कांग्रेस के साथ ना खडा हो जाये इस कारण पर भाजपा से अधिक कांग्रेस पर हमलावर हो रही है.’

मायावती के गढ में ही बेबस मजदूर:

उत्तर प्रदेश में गरीब और मजदूरों की सबसे खराब हालत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके में रही. इसकी प्रमुख वजह यह भी कि दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, गुजरात से दरदर की ठोकरे खा कर आ रहे मजदूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रास्ते ही उत्तर प्रदेश और बिहार जाने के लिये आ रहे थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह इलाका मायावती का सबसे मजबूत गढ माना जाता है. वह खुद सहारनपुर की रहने वाली है.यही से ज्यादातर वह चुनाव भी लडती रही है. आगरा और इटावा होते हुये लखनऊ आने वाली हर सडक पर रास्ते भर दलित और गरीबों को जीवन से लडते देखा जा सकता था. गरीब और दलितों के दर्द देखकर उत्तर प्रदेश की पुलिस तक उनको नरमी से पेश आ रही थी. वह उनका सडकों पर आने जाने से रोक नहीं रही थी.

जगदीश पटेल मायावती की उपेक्षा का एक और कारण भी मानते है. मायावती ने अपने इलाके में भी इनकी मदद नहीं की. वह इसके पीछे की वजह मायावती पर भाजपा का दवाब मान रहे है. मायावती को पता है कि भाजपा बदले की भावना के उनके खिलाफ मुकदमा कायम करके जेल भेज सकती है. भ्रष्टाचार के मामले से जुडी फाइले खुल सकती है. जैसे कांग्रेस के साथ किया. कांग्रेस ने आगरा में जब एक हजार बसों का इंतजाम किया तो उनके नियम कानून बता कर रोक दिया गया कांग्रेस के नेताओं को जेल भेज दिया गया. मायावती को यही डर था जिसकी वजह से वह भाजपा पर हमलावार नहीं हो पा रही थी और सडक पर उतर कर गरीब दलितोे की मदद करने को तैयार नहीं हुई.    ष्

जगदीश पटेल कहते है ‘भाजपा ने अपने लोगो को राहत देने के लिये कोटा से छात्रों लाने और विदेशो से लोगों को लाने का काम किया. बसपा भी अपने बहुजन समाज के लिये यही काम कर सकती थी. भले ही कांग्रेस को भाजपा ने गरीब मजदूरो की मदद करने के लिये मौका नहीं दिया पर कम से कम कांग्रेस सडक पर उनकी मदद के लिये लडाई लडती दिखी. बसपा दलित-मुसलिम गठजोड करके चुनावों में वोट लेना चाहती है पर कोरोना सकंट में जब यही लोग सडको पर थे तब बसपा को इस गठजोड की याद नहीं आई. मायावती को आज गरीब और दलितों की फ्रिक नहीं है. कल यही गरीब उनकी फ्रिक नहीं करेगे. दलित और गरीब वर्ग अब विकल्प की तलाश में है.‘

मजबूत नहीं मजबूर दलित की दरकार ः

दलित चिंतक रामचन्द्र कटियार कहते है ‘बसपा को मजबूत नहीं मजबूर दलित ही चाहिये. इसी वजह से वह दलितो मजबूत करने की पक्षधर नहीं रही. अपने शासनकाल में दलितों की हितों के लिये ऐसी कोई योजना नहीं चलाई जिससे वह मजबूत बन सके. कांग्रेस ने मनरेगा जैसी योजना चलाकर दलित और गरीब की मदद की थी. मोदी के कार्यकाल में मनरेगा की खिलाफत करने वाली भाजपा भी आज मनरेगा के तंत्र का ही प्रयोग करके गरीब और मजदूरोंे की मदद का दावा करती है. मायावती को सबसे अधिक वोट तब मिलते थे जब गांव का गरीब और मजदूर शहर में मजदूरी करने नहीं जाता था. जब से दलित और गरीब शहर जाने लगा उसने बसपा को वोट देना बंद कर दिया. वह अपने अधिकारों को लेकर सजग हो गया था.

रामचन्द्र कटियार कहते है ‘मायावती को यह बात पता है कि शहर जाकर मजबूत होने वाला गरीब उनको वोट नहीं देता है. वह दलित और गरीबों को मजबूत नहीं मजबूर ही रखना चाहती है. जब शहरों से पलायन करके मजदूर अपने गांव जाने लगा तो मायावती ने उनकी मदद नहीं की. जिससे परेशान दलित और मजदूर गांव से वापस शहर जाने की दोबारा ना सोच सके. वह गांव में रहे. अगडी जातियों के द्वारा परेशान किया जाये और परेशान होकर वह मायावती के सहारे की तलाश में बना रहे. शहरों से वापस आया यह दलित गरीब और लाचार जरूर है पर अपने अधिकारों को लेकर पूरी तरह से जागरूक है.‘

 

रेप के आरोप पर शहनाज गिल के पिता ने दी सफाई, पुलिस कर रही छानबीन

बिग बॉस 13 कंटेस्टेंट शहनाज गिल के पिता संतोख सिंह पर एक महिला ने रेप का आरोप लगाया है. जबकी शहनाज के पिता ने महिला के लगाए आरोप को गलत बताया है. आइए जानते हैं क्या है इस केस का पूरा मामला

महिला ने शहनाज के पापा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया है. उसने दावा किया है कि वह अफने ब्यॉफ्रेंड से मिलने उनके घर गई थी तब उन्होंने मेरा बलत्कार किया है.

वहीं शहनाज के पिता ने खुद की सफाई देते हुए कहा है कि उससे मैं दो तीन बार मिल चुका हूं वह मुझे अपना भाई मानती है भला वह कैसे मुझ पर इतना गलत इल्जाम लगा सकती है.

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मेरा पूरा घर सीसीटीवी के निगरानी में है जिस वकत् की यह घटना है आप टीवी फूटेज देख सकते हैं उस वक्त मैं अपने घर पर ही था. अपनी फैमली के साथ मेरे साथ हर वक्त मेरे दो गार्ड रहते हैं आप उनसे भी पूछ सकते हैं पूरे घटना के बारे…

यह महिला लोगों से पैसे कमाने के लिए इस तरह के गलत इल्जाम लगाती रहती है. उसे अपने सेल्फ रिस्पेक्ट का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहता है. पैसे कमाने के लिए उसने मेरे पर गलत इल्जाम लगाए हैं.

 

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इस  खबर के बाद शहनाज का पूरा परिवार मानो हिल सा गया है. हर जगह ये खबर वायरल हो रही है. इस पर पुलिस लगातार करवाई कर रही है कि क्या सच्चाई है और क्या गलत है.

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शहनाज का फिलहाल को ई ब्यान नहीं आया है अपने पापा के ऊपर लगेआ आरोप पर हालांकि सभी दर्शकों को शहनाज के कुछ बोलने का इंतजार है. फिलहाल पुलिस अपने काम को अच्छे से कर रही है. उम्मीद है जल्द ही दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.

शांति कुंज की अशांति को अस्थाई राहत: 12 जून तक टली प्रणव पंडया की गिरफ्तारी

पिछले 15, दिनों से गायत्री परिवार के लोगों के दिलों और शांति कुंज में एक अजीब सी अशांति थी कि अब क्या होगा उनके मुखिया प्रणब पंड्या हाल फिलहाल गिरफ्तारी से बच गए हैं लेकिन सवाल ज्यों के त्यों हैं.

9 मई को इसी वैबसाइट पर प्रकाशित मेरे लेख सकते में 16 करोड़ अनुयायी – क्या वाकई में बलात्कारी हैं डा प्रणव पंडया ? में विस्तार से घटना और उससे जुड़े पहलुओं की जानकारी दी गई थी. तब गायत्री परिवार के कई साधकों ने बहुत तीखी प्रतिक्रियाएँ दी थीं जिनका सार और अभिप्राय यह था कि शांति कुंज के प्रमुख डाक्टर प्रणव पंडया निर्दोष हैं और बदनाम करने की गरज से उन्हें फंसाया जा रहा है. यह एक साजिश है और मुझे ऐसा नहीं लिखना चाहिए था क्योंकि सवाल गायत्री परिवार और हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा का है.

हरियाणा की एक साधिका ने तो कोर्ट तक जाने की धमकी दी थी उसके हिसाब से यह यानि इस घटना पर लिखा जाना ही डा पंडया की मानहानि है . इन सभी प्रतिक्रियाओं का उल्लेख यहाँ कर पाना संभव नहीं लेकिन एक दिलचस्प बात (जिसके अपने अलग दूरगामी माने हैं) अधिकतर भक्तों ने कही थी कि प्रणव पंडया उनके गुरु नहीं हैं, उनके गुरु तो सिर्फ और सिर्फ श्रीराम शर्मा आचार्य हैं. पंडया तो दूसरों की तरह शांतिकुंज के एक साधारण कार्यकर्ता मात्र हैं जिन्हें वरिष्ठता की वजह से कई जिम्मेदारियाँ मिली हुई हैं . कुछ ने यह भी कहा कि हमारा उनसे कोई लेना देना नहीं.

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अब नैनीताल हाइकोर्ट ने पीड़िता द्वारा दिल्ली में दर्ज कराई एफआईआर के मामले पर सुनवाई करते शांतिकुंज गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंडया की गिरफ्तारी पर रोक लगाते याचिकाकर्ता को पुलिस जांच में सहयोग करने के निर्देश दिये हैं. गौरतलब है कि डा प्रणव पंडया व अन्य ने हाइकोर्ट से अपनी गिरफ्तारी पर रोक व दायर एफआईआर को निरस्त करने की गुहार लगाई थी. यह सुनवाई नैनीताल हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकल पीठ में हुई . कोर्ट ने सरकार को जबाब दाखिल करने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 12 जून तय की है . इस मामले में प्रणव पंडया की पत्नी शैलबाला भी नामजद आरोपी हैं जिनहे श्रद्धा और सम्मान से शैल दीदी गायत्री परिवार के लोग कहते हैं.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की एक 25 वर्षीय युवती ने दिल्ली के विवेक विहार पुलिस स्टेशन में 5 मई  को अपने साथ शांतिकुंज हरिदद्वार में हुई ज्यादती की नामजद रिपोर्ट लिखाई थी . इस पर दिल्ली पुलिस ने मामला हरिद्वार भेज दिया था. मामले की जांच के लिए मीना आर्य को नियुक्त किया गया है जिन्हें सभी दस्तावेज़ सौंप दिये गए हैं. पीड़िता 2010 में नाबालिग थी जब उसका पहली दफा बलात्कार प्रणव पंडया ने शांति कुंज हरिदद्वार के अपने कमरे में किया था.  इसके बाद यह सिलसिला आम हो गया था लेकिन 2014 में पीड़िता की तबीयत बिगड़ी तो उसे उसके घर रायपुर भेज दिया गया इस धौंस के साथ कि अपना मुंह बंद रखना . बाद में भी पीड़िता को फोन पर इस आशय की धमकियाँ दी जाती रहीं.

इस मामले का एक दिलचस्प पहलू पाक्सो एक्ट भी है जो साल 2012 में वजूद में आया इसे प्रणव पंडया पर लागू होना चाहिए या नहीं इसे पंडया पर लागू करने न करने को  लेकर पुलिस असमंजस में है क्योंकि 2010 में पीड़िता नाबालिग थी . देखा जाये तो यह कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है क्योंकि एफआईआर में पीड़िता ने अपना जन्म वर्ष 1995 लिखाया है इस लिहाज से वह 2013 तक 17 साल की यानि  नाबालिग थी इस नाते पाक्सो एक्ट इस मामले में लागू होता है. अब यह आगे की जांच में साफ होगा कि पीड़िता का जन्म माह और दिनांक क्या है  इससे यह तय होगा कि बलात्कार के वक्त यह बालिग थी या बालिग नहीं थी .

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पिछले लेख पर जिन अनुयायियों ने आपत्तियाँ उठाई इनमें कोई तर्क नहीं थे सिर्फ एक अंध  आस्था कि प्रणव पंडया ऐसा नहीं कर सकते . क्यों नहीं कर सकते,  इसका जबाब देने कोई तैयार नहीं .  क्या दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक संस्थान का मुखिया होना और पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का दामाद होना बलात्कारी न होने का सर्टिफिकेट है और अगर है तो कानूनन इस मामले के कोई माने नहीं रह जाते . मुमकिन यह भी है कि प्रणव पंडया बलात्कारी न हों लेकिन यह फैसला अब अदालत को करना है.

देश के धर्मस्थलों और आश्रमों में कौन से पाप नहीं होते इस पर भी सोचा जाना जरूरी है यह वाक्य सुनते ही किसी भी धार्मिक संस्था से जुड़े लोग तुरंत अग्रिम बचाव करते हुए  कहते हैं और यह उनका हक भी है कि हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता , हमारी तुलना उनसे न करें . यह एक अजीब सी बात , तर्क , आग्रह या चलन है जिस पर पूछा जा सकता है कि क्यों न करें और क्यों न कहें .  दर्जनों ब्रांडेड नामी धर्म गुरु बलात्कार और अय्याशी की सजा जेलों में काट रहे हैं उनके नाम सभी जानते हैं और यह भी जानते हैं कि आरोप सिद्ध होने तक वे भी भगवान की तरह पूजे जाते थे . और दुख की बात तो यह है कि देश में व्यक्ति पूजा और भगवानबाद का आलम तो यह है कि कई बाबा और धर्मगुरु आरोप सिद्ध होने के बाद भी पूजे जाते हैं .

और महज आस्था धर्म कर्म और प्रतिष्ठा के तराजू पर किसी गरीब पिछड़े समुदाय की लड़की की अस्मत का जिक्र छिपाने की बात ही अन्याय स्थापित करने की मंशा लिए हुए और समाज को पिछड़ा साबित करती हुई है . प्रणव पंडया अगर बलात्कारी नहीं हैं तो गायत्री परिवार के लोगों को अदालती फैसले तक धैर्य रखना चाहिए . सच्चा न्याय ऊपर बाले की नहीं बल्कि लोकतान्त्रिक अदालतों में होता है .

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