कानपुर से लखनऊ तक आ चुके सुनील, प्रकाश निर्मल और प्रताप नामके 4 गरीब मजदूरों को कुशीनगर जाना था. वह कानपुर रोड बाईपास से शहीद पथ पकड कर साइकिलो से आगे बढ रहे थे. इनको प्यास लगी तो वहीं पास बनी पुलिस चैकी के अंदर गये और पानी पीकर प्यास बुझाई. यह लोग कुछ देर साइकिल पकड पर पैदल पैदल चल रहे थे और कुछ देर साइकिल की सवारी कर रहे थे. यह लोग ट्रक और बस में तभी सफर करते थे जब उनकी साइकिल को रखने का मौका मिलता था. राजस्थान से हरियाणा होते हुये कुशीनगर जाने वाले यह लोग बताने लगे राजस्थान में फैक्ट्री में काम करते थे हमने अपने लिये एकएक साइकिल खरीद ली थी. हम बस या ट्रक का सफर करने के लिये अपनी साइकिल नहीं छोड सकते. साइकिल के सहारे ही अपने गांव तक पहुचेगे.
सडको पर मिलने वाली सहायता के बारे में जब पूछा गया तो यह बोले कि हर तरह के समाज के लोग हमारी मदद कर रहे थे. किसी ने जाति या धर्म नहीं पूछा. हमें इस बात का अफसोस हो रहा है कि जिन नेताओं के कहने पर हम जाति और धर्म के नाम पर मरने मारने को तैयार रहते है मुसीबत की इस घडी में उनमें से कोई भी हमारी मदद को सडक पर नहीं दिखा. सुनील, प्रकाश निर्मल और प्रताप चारों की दलित बिरादरी के थे. जब सवाल मायावती की मदद का उठा तो यह बोले बहिन जी को तो हमेंशा वोट लेने के समय ही हमारा ख्याल आता है. कई बार हम लोग अपने कामधंधे से छुट्टी लेकर वोट डालने आते थे. आज हम मुसीबत में है तो हमारे हक के लिये वह आवाज भी उठाने को तैयार नहीं है.
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मायावती को देना होगा गरीबो के छालों का हिसाब ः
दलित और गरीब एक दो दिन नहीं कई महीनों तक पांव में छाले लिये सडको पर दरदर भटक रहा था. दलितों की मसीहा बहिन मायावती किसी दलित के आंसू पोछने सडक पर नहीं उतर सकी. दलित और गरीब सडको पर अपना खून पसीना बहा रहा था पर बहिन जी का मन एक धेला भी नहीं पसीजा. यह बहिन जी कोई ऐसी वैसी बहिन नही है. यह दलितों की देवी, दलितों की मसीहा बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो हाईकमान मायावती है. ऐसा नहीं कि मायावती और उनकी पार्टी बसपा इतना भी सक्षम नहीं थी कि कोरोना संकट में सडको पर भटक रहे गरीब और दलितों की मदद करने सडक पर नहीं उतर सकती थी. मायावती पर भ्रष्टाचार के बडे बडे मामले है. खुद अपने जन्मदिन पर मायावती इन्ही गरीब और दलितों की मदद से नोटों के हार पहनती थी. इन्ही दलित और गरीबों के वोट पा कर वह केवल एक दो बार नहीं चारचार बार उत्तर प्रदेश जैसे बडे राज्य की मुख्यमंत्री रही है.
विश्वशूद्र महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चैधरी जगदीश पटेल कहते है ‘पहले तीन बार मायावती ने भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की. कुर्सी पर बैठने के अपने बचाव में हर बार वह यह कहती थी कि उनको दलितों के हित में काम नहीं करने दिया जा रहा. 2009 में इसी गरीब दलित वर्ग ने मायावती को बहुमत से उत्तर की सरकार चलाने का मौका दे दे दिया. तब मायावती ने भाजपा की ही तर्ज पर मूर्तिपूजा को बढावा देते हुये ना केवल दलित समाज के महापुरूषों की मूर्तियां लगवाई उनके नाम पर पार्क बनवाये बल्कि मायावती ने अपनी खुद की मूर्ति भी लगवाई. जीवित रहते अपनी मूर्ति लगवाने वाली वह पहली नेता बनी. मायावती को इस बात का डर था कि सत्ता से हटने के बाद उनके समर्थक मूर्तियां लगवाने का काम नहीं करेगे तो क्या होगा ? कहीं वह गुमनाम ना हो जाये. एक तरह से यह वहीं मनुवादी सोंच थी जिसका वह विरोध करती थी‘.
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गरीब और दलितों को समझा पैर की जूती ः
चैधरी जगदीश पटेल कहते है ‘बसपा और बामसेफ ने जिस मनुवाद के खिलाफ लडाई लडी. दलितो को जागरूक किया मायावती ने कुर्सी पर बैठते हुये उसको कमजोर करने का काम शुरू कर दिया. मायावती ने सरकार की अनुमति के बिना बाबा साहब की मूर्ति कहीं लगाने को प्रतिबंधित कर दिया. लेकिन अपनी मूर्ति लगा दी ? बसपा को छोडकर तमाम दलित संगठनों को कमजोर करने का काम किया. उनके मुददों को दबाया गया. दलित संगठन जितना मायावती के कार्यकाल में प्रताडित हुये उतने और कभी नहीं परेशान किये गये. मायावती ने दलित और गरीबों को कभी बराबरी का अधिकार नहीं दिया. पूरी दुनिया खुली आंखों से देखा कि उनके मंच पर उनके बराबर बैठने का अधिकार किसी को नहीं रहा. जिस भेदभाव का मायावती विरोध करती थी उसी को उन्होने अपने व्यवहार में ढाल लिया. बहुजन समाज की बात करने वाली बसपा केवल उसी तरह मायावती की पार्टी बनकर रह गई जैसे कांग्रेस गांधी नेहरू परिवार और भाजपा संघ परिवार की पार्टी बनकर रहती है.‘
जगदीश पटेल कहते है ‘करोना संकट का प्रभाव केवल जीवन और मौत पर ही नहीं है. इसका सबसे बडा सामाजिक प्रभाव भी पडेगा. गांव मंे इन गरीब मजदूरों को पहले की तरह छुआछूत और भेदभाव का शिकार होना पडेगा. अगडी जातियों के खेतों में काम करना होगा. मेहनत के हिसाब से मजदूरी नहीं मिलेगी. वर्ग सघर्ष और बढेगा. मायावती सहित कोई भी दलित नेता सडको पर भय और भूख से लड रहे गरीब मजदूरों की मदद के लिये आगे नहीं आया. यह बात इनको याद रहेगी. अपनी इस गलती का अहसास मायावती और दूसरे दलित नेताओं को बाद में होगा. इसका असर व्यापक होगा. मायावती पर भाजपा का दबाव साफ दिखाई दे रहा है. उनको यह भी लग रहा है कि यह दलित कांग्रेस के साथ ना खडा हो जाये इस कारण पर भाजपा से अधिक कांग्रेस पर हमलावर हो रही है.’
मायावती के गढ में ही बेबस मजदूर:
उत्तर प्रदेश में गरीब और मजदूरों की सबसे खराब हालत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके में रही. इसकी प्रमुख वजह यह भी कि दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, गुजरात से दरदर की ठोकरे खा कर आ रहे मजदूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रास्ते ही उत्तर प्रदेश और बिहार जाने के लिये आ रहे थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह इलाका मायावती का सबसे मजबूत गढ माना जाता है. वह खुद सहारनपुर की रहने वाली है.यही से ज्यादातर वह चुनाव भी लडती रही है. आगरा और इटावा होते हुये लखनऊ आने वाली हर सडक पर रास्ते भर दलित और गरीबों को जीवन से लडते देखा जा सकता था. गरीब और दलितों के दर्द देखकर उत्तर प्रदेश की पुलिस तक उनको नरमी से पेश आ रही थी. वह उनका सडकों पर आने जाने से रोक नहीं रही थी.
जगदीश पटेल मायावती की उपेक्षा का एक और कारण भी मानते है. मायावती ने अपने इलाके में भी इनकी मदद नहीं की. वह इसके पीछे की वजह मायावती पर भाजपा का दवाब मान रहे है. मायावती को पता है कि भाजपा बदले की भावना के उनके खिलाफ मुकदमा कायम करके जेल भेज सकती है. भ्रष्टाचार के मामले से जुडी फाइले खुल सकती है. जैसे कांग्रेस के साथ किया. कांग्रेस ने आगरा में जब एक हजार बसों का इंतजाम किया तो उनके नियम कानून बता कर रोक दिया गया कांग्रेस के नेताओं को जेल भेज दिया गया. मायावती को यही डर था जिसकी वजह से वह भाजपा पर हमलावार नहीं हो पा रही थी और सडक पर उतर कर गरीब दलितोे की मदद करने को तैयार नहीं हुई. ष्
जगदीश पटेल कहते है ‘भाजपा ने अपने लोगो को राहत देने के लिये कोटा से छात्रों लाने और विदेशो से लोगों को लाने का काम किया. बसपा भी अपने बहुजन समाज के लिये यही काम कर सकती थी. भले ही कांग्रेस को भाजपा ने गरीब मजदूरो की मदद करने के लिये मौका नहीं दिया पर कम से कम कांग्रेस सडक पर उनकी मदद के लिये लडाई लडती दिखी. बसपा दलित-मुसलिम गठजोड करके चुनावों में वोट लेना चाहती है पर कोरोना सकंट में जब यही लोग सडको पर थे तब बसपा को इस गठजोड की याद नहीं आई. मायावती को आज गरीब और दलितों की फ्रिक नहीं है. कल यही गरीब उनकी फ्रिक नहीं करेगे. दलित और गरीब वर्ग अब विकल्प की तलाश में है.‘
मजबूत नहीं मजबूर दलित की दरकार ः
दलित चिंतक रामचन्द्र कटियार कहते है ‘बसपा को मजबूत नहीं मजबूर दलित ही चाहिये. इसी वजह से वह दलितो मजबूत करने की पक्षधर नहीं रही. अपने शासनकाल में दलितों की हितों के लिये ऐसी कोई योजना नहीं चलाई जिससे वह मजबूत बन सके. कांग्रेस ने मनरेगा जैसी योजना चलाकर दलित और गरीब की मदद की थी. मोदी के कार्यकाल में मनरेगा की खिलाफत करने वाली भाजपा भी आज मनरेगा के तंत्र का ही प्रयोग करके गरीब और मजदूरोंे की मदद का दावा करती है. मायावती को सबसे अधिक वोट तब मिलते थे जब गांव का गरीब और मजदूर शहर में मजदूरी करने नहीं जाता था. जब से दलित और गरीब शहर जाने लगा उसने बसपा को वोट देना बंद कर दिया. वह अपने अधिकारों को लेकर सजग हो गया था.
रामचन्द्र कटियार कहते है ‘मायावती को यह बात पता है कि शहर जाकर मजबूत होने वाला गरीब उनको वोट नहीं देता है. वह दलित और गरीबों को मजबूत नहीं मजबूर ही रखना चाहती है. जब शहरों से पलायन करके मजदूर अपने गांव जाने लगा तो मायावती ने उनकी मदद नहीं की. जिससे परेशान दलित और मजदूर गांव से वापस शहर जाने की दोबारा ना सोच सके. वह गांव में रहे. अगडी जातियों के द्वारा परेशान किया जाये और परेशान होकर वह मायावती के सहारे की तलाश में बना रहे. शहरों से वापस आया यह दलित गरीब और लाचार जरूर है पर अपने अधिकारों को लेकर पूरी तरह से जागरूक है.‘