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नीड़: हरिया माली की क्या गलती थी? भाग 3

अगले दिन तक नेहा और जमाई बाबू भी पहुंच गए. घर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. उन के आने से समीर और शालिनी को भी काफी राहत मिल गई थी. कुछ समय के लिए दोनों दफ्तर हो आते. नेहा मां के पास बैठती तो स्वाति अस्पताल हो आती थी. इन दिनों उस की इन्टर्नशिप चल रही थी. अस्पताल जाना उस के लिए निहायत जरूरी था. शाम को सभी उन के कमरे में एकत्रित होते. कभी ताश, कभी किस्सेकहानियों के दौर चलते तो घंटों का समय मिनटों में बदल जाता. वे मंदमंद मुसकराती अपनी हरीभरी बगिया का आनंद उठाती रहतीं. सिद्धेश्वरीजी एक दिन चाय पी कर लेटीं तो उन का ध्यान सामने खिड़की पर बैठे कबूतर की तरफ चला गया. खिड़की के जाली के किवाड़ बंद थे, जबकि शीशे के खुले थे. मुश्किल से 5 इंच की जगह रही होगी जिस पर वह पक्षी बड़े आराम से बैठा था. तभी नेहा और शालिनी कमरे में आ गईं, बोलीं, ‘‘मां, इस कबूतर को यहां से उड़ाना होगा. यहां बैठा रहा तो गंदगी फैलाएगा.’’

‘‘न, न. इसे उड़ाने की कोशिश भी मत करना. अब तो चैत का महीना आने वाला है. पक्षी जगह ढूंढ़ कर घोंसला बनाते हैं.’’

उन की बात सच निकली. देखा, एक दूसरा कबूतर न जाने कहां से तिनके, घास वगैरह ला कर इकट्ठे करने लगा. वह नर व मादा का जोड़ा था. मादा गर्भवती थी. नर ही उस के लिए दाना लाता था और चोंच से उसे खिलाता था. सिद्धेश्वरीजी मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें देखतीं. पक्षियों को नीड़ बनाते देख उन्हें अपनी गृहस्थी जोड़ना याद आ जाता. उन्होंने भी अपनी गृहस्थी इसी तरह बनाई थी. रमानंदजी कमा कर लाते, वे बड़ी ही समझदारी से उन पैसों को खर्चतीं. 2 देवर, 2 ननदें ब्याहीं. मायके से जो भी मिला, वह ननदों के ब्याह में चढ़ गया. लोहे के 2 बड़े संदूकों को ले कर अपने नीड़ का निर्माण किया. बच्चे पढ़ाए. उन के ब्याह करवाए. जन्मदिन, मुंडन-क्या नहीं निभाया.  खैर, अब तो सब निबट गया. बच्चे अपनेअपने घर में सुख से रह रहे हैं. उन्हें भी मानसम्मान देते हैं. हां, एक कसक जरूर रह गई. अपने मकान की. वही नहीं बन पाया. बड़ा चाव था उन्हें अपने मकान का.  मनपसंद रसोई, बड़ा सा लौन, पीछे आंगन, तुलसीचौरा, सूरज की धूप की रोशनी, खिड़की से छन कर आती चांदनी और खिड़की के नीचे बनी क्यारी व उस क्यारी में लगी मधुमालती की बेल.

वे बैठेबैठे बोर होतीं. करने को कुछ था नहीं. एक दिन उन्होंने कबूतरी की आवाज देर तक सुनी. वह एक ही जगह बैठी रहती. अनिरुद्ध उन के कमरे में आया तो अतिउत्साहित, अति उत्तेजित स्वर में बोला, ‘‘बड़ी मां, कबूतरी ने घोंसले में अंडा दिया है.’’

‘‘इसे छूना मत. कबूतरी अंडे को तब तक सहेजती रहेगी जब तक उस में से बच्चे बाहर नहीं आ जाते.’’

अनिरुद्ध पीछे हट गया था. उन्हें इस परिवार से लगाव सा हो गया था. जैसे मां अपने बच्चे के प्रति हर समय आशंकित सी रहती है कि कहीं उस के बच्चे को चोट न लग जाए, वैसे ही उन्हें भी हर पल लगता कि इन कबूतरों के उठनेबैठने से यह अंडा मात्र 4 इंच की जगह से नीचे न गिर जाए. एक दिन उस अंडे से एक बच्चा बाहर आया. सिर्फ उस की चोंच, आंखें और पंजे दिखाई दे रहे थे. अब कबूतर का काम और बढ़ गया था. वह उड़ता हुआ जाता और दाना ले आता. कबूतरी, एकएक दाना कर के उस बच्चे को खिलाती जाती. सिद्धेश्वरीजी ने अनिरुद्ध से कह कर उन कबूतरों के लिए वहीं खिड़की पर, 2 सकोरों में दाने और पानी की व्यवस्था करा दी थी. अब कबूतर का काम थोड़ा आसान हो गया था.

सिद्धेश्वरीजी अनजाने ही उस कबूतर जोड़े की तुलना खुद से करने लगी थीं. ये पक्षी भी हम इंसानों की तरह ही अपने बच्चों के प्रति समर्पित होते हैं. फर्क यह है कि हमारे सपने हमारे बच्चों के जन्म के साथ ही पंख पसारने लगते हैं. हमारी अपेक्षाएं और उम्मीदें भी हमारे स्वार्थीमन में छिपी रहती हैं. इंसान का बच्चा जब पहला शब्द मुंह से निकालता है तो हर रिश्ता यह उम्मीद करता है कि उस प्रथम उच्चारण में वह हो. जैसे, मां चाहती है बच्चा ‘मां’ बोले, पापा चाहते हैं बच्चा ‘पापा’ बोले, बूआ चाहती हैं ‘बूआ’ और बाबा चाहते हैं कि उन के कुलदीपक की जबान पर सब से पहले ‘बाबा’ शब्द ही आए. हम उस के हर कदम में अपना बचपन ढूंढ़ते हैं. अपनी पसंद के स्कूल में उस का ऐडमिशन कराते हैं.

यह हमारा प्रेम तो है पर कहीं न कहीं हमारा स्वार्थ भी है. उस का भविष्य बनाने के लिए किसी अच्छे व्यावसायिक संस्थान में उसे पढ़ाते हैं. उस की तरक्की से खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. समाज में हमारी प्रतिष्ठा बढ़ती है. हम अपनी मरजी से उस का विवाह करवाना चाहते हैं. यदि बच्चे अपना जीवनसाथी स्वयं चुनते हैं तो हमारा उन से मनमुटाव शुरू हो जाता है, हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा को बट्टा जो लग जाता है. हमारी संवेदनाओं को ठेस पहुंचती है. बच्चे बड़े हो जाते हैं, हमारी अपेक्षाएं वही रहती हैं कि वे हमारे बुढ़ापे का सहारा बनें. हमारे उत्तरदायित्व पूरे करें. हमारे प्रेम, हमारी कर्तव्यपरायणता के मूल में कहीं न कहीं हमारा स्वार्थ निहित है. कुछ दिन बाद उस बच्चे के छोटे पंख दिखाई देने लगे. फिर पंख थोड़े और बड़े हुए. अब उस ने स्वयं दाना चुगना शुरू कर दिया था. फिर एक दिन उस के मातापिता उसे साथ ले कर उड़ने लगे. तीनों विहंग छोटा सा चक्कर लगाते और फिर लौट आते वापस अपने नीड़ में.

धीरेधीरे सिद्धेश्वरीजी की तबीयत सुधरने लगी. अब वे घर में चलफिर लेती थीं. अपना काम भी स्वयं कर लेती थीं. रमानंदजी को नाश्ता भी बना देती थीं. घर के कामों में शालिनी की सहायता भी कर देती थीं. अब यह घर उन्हें अपना सा लगने लगा था. दिन स्वाति उन्हें अस्पताल ले गई. मोच तो ठीक हो गई थी. फिजियोथेरैपी करवाने के लिए डाक्टर ने कहा था, सो प्रतिदिन स्वाति ही उन्हें ले जाती. वापसी में समीर अपनी गाड़ी भेज देता. अब ये सब भला लगता था उन्हें.

एक दिन उन्होंने देखा, कबूतर उड़ गया था. वह जगह खाली थी. अब वह नीड़ नहीं मात्र तिनकों का ढेर था. क्योंकि नीड़ तो तब था जब उस में रहने वाले थे. मन में अनेक सवाल उठने लगे, क्या वह बच्चा हमेशा उन के साथ रहेगा? क्या वह बड़ा हो कर मातापिता के लिए दाना लाएगा? उन की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाएगा? इसी बीच उन के मस्तिष्क में एक ऋषि और राजा संवाद की कुछ पंक्तियां याद आ गई थीं. ऋषि ने राजा से कहा था, ‘‘हे राजा, हम मनुष्य अपने बच्चों का भरणपोषण करते हैं, परंतु योग माया द्वारा भ्रमित होने के कारण, उन बच्चों से अपेक्षाएं रखते हैं. पक्षी भी अपने बच्चों को पालते हैं पर वे कोई अपेक्षा नहीं रखते क्योंकि वे बुद्धिजीवी नहीं हैं और न ही माया में बंधे हैं.’’

उन्होंने खिड़की खोल कर वहां सफाई की और घोंसला हटा दिया. धीरेधीरे तेज हवाएं चलने लगीं. उन्होंने खिड़की बंद कर दी. कुछ दिन बाद कबूतर का एक जोड़ा फिर से वहां आ गया. अपना नीड़ बनाने. वे मन ही मन सुकून महसूस कर रही थीं. अब फिर घोंसला बनेगा, कबूतरी अंडे देगी, उन्हें सेना शुरू करेगी, अंडे में से चूजा निकलेगा, फिर पर निकलेंगे और फिर कबूतर उड़ जाएगा और कपोत का जोड़ा टुकुरटुकुर उस नीड़ को निहारता रह जाएगा, उदास मन से. ठंड बढ़ने के साथसाथ मोच वाले स्थान पर हलकी सी टीस एक बार फिर से उभरने लगी थी. परिवार में उन की हालत सब के लिए चिंता का विषय बनी हुई थी. रमानंदजी आयुर्वेद के तेल से उन के टखनों की मालिश कर रहे थे. स्वाति ने एक अन्य डाक्टर से उन के लिए अपौइंटमैंट ले लिया था. सिद्धेश्वरीजी ने उसे रोकने की कोशिश की, तो वह उन्हें चिढ़ाते हुए बोली, ‘‘बड़ी मां, टांग का दर्द ठीक होगा तभी तो गांव जाएंगी न.’’

स्वाति समेत सभी खिलखिला कर हंसने लगे थे. नौकर गरम पानी की थैली दे गया तो सिद्धेश्वरीजी पलंग पर लेट कर सोचने लगीं, ‘सही कहते हैं बड़ेबुजुर्ग, घर चारदीवारी से नहीं बनता, उस में रहने वाले लोगों से बनता है.’ घोंसला अवश्य उन का अस्थायी रहा पर वे तो भरीपूरी हैं. बेटेबहू, पोतेपोती से खुश, संतप्त भाव से एक नजर उन्होंने रमानंदजी की दुर्बल काया पर डाली, फिर दुलार से हाथ फेरती हुई बुदबुदाईं, ‘उन का जीवनसाथी तो उन के साथ है ही, उन के बच्चे भी उन के साथ हैं. अब उन्हें किसी नीड़ की चाह नहीं. जहां हैं सुख से हैं, संतुष्ट और संतप्त.’ उन्होंने कामवाली बाई से कह कर बक्से में से सामान निकलवाया और अलमारी में रखवा दिया. और फिर मीठी नींद के आगोश में समा गईं.

 

डिप्रेशन ने ली एक और एक्टर की जान! सुशांत सिंह राजपूत ने किया सुसाइड

34 वर्षीय टीवी और फिल्म कलाकार सुशांत सिंह राजपूत ने रविवार, 14 जून की सुबह मुंबई के ब्रांदा इलाके में हिल रोड पर स्थित अपने घर के बेडरूम में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इस खबर से बॉलीवुड के साथ साथ सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंषक भी सदमें में है. किसी की भी समझ में नही आ रहा है कि आखिर सुशांत सिंह राजपूत इस तरह का कदम उठाने के लिए क्यों मजबूर हुए.

यह महज संयोग है कि पांच दिन पहले ही उनकी पूर्व सेक्रेटरी दिशा सालियान ने भी आत्महत्या की थी.

सुसाइड से एक रात पहले हुई घर में पार्टी

फिलहाल जो शुरूआती जानकारी आ रही है, उसके अनुसार रात में सुशांत सिंह के घर पर सुशांत सिंह के कुछ दोस्त आए थे. घर की हालत देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि शायद दोस्तों ने छोटी सी पार्टी मनायी होगी, पर इस बारे में सुशांत सिंह राजपूत के नौकर या पुलिस ने कुछ भी नहीं कबूला है.

6 महीने से डिप्रेशन में थे सुशांत…

पुलिस का दावा है कि सुशांत के दोस्तों से मिली जानकारी के अनुसार सुशांत सिंह राजपूत पिछले छह माह से डिप्रेशन में थे और वह इसका इलाज भी करा रहे थे. मगर सुशांत सिंह राजपूत द्वारा आत्महत्या करने की बात समझ से परे है.

बहन ने साधी चुप्पी…

मुंबई के इस मकान में सुशांत सिंह की बहन भी रही है, पर वह चुप हैं. लगभग पौने चार बजे तक पुलिस सुशांत सिंह के घर के अंदर ही जांच में लगी हुई है और अभी तक सुशांत का शव भी घर के अंदर ही है.

एकता कपूर के शो से शुरू किया करियर…

21 जनवरी 1986 को पटना, बिहार में जन्में सुशांत सिंह राजपूत ने 2008 में टीवी सीरियल ‘‘किस देश में है मेरा दिल’ से अभिनय कैरियर की शुरूआत की थी. एकता कपूर निर्मित सीरियल ‘‘पवित्र रिश्ता’’ में सुशांत ने मानव देशमुख का किरदार निभाया था और इसी सीरियल के दौरान उनका संबंध अभिनेत्री अंकिता लोखंडे के साथ जुड़ा था.

 

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Perhaps, the difference between what is miserable, and that, which is spectacular, lies in the leap of faith… #selfmusing ?

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कई फिल्मों में किया काम…

2013 में फिल्म ‘‘कई पो छे’’ से राज कुमार राव के साथ फिल्मों में कदम रखा था. फिर ‘शुद्ध देशी रोमांस’, ‘पी के’’, ‘‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’, ‘एम एस धोनी’, ‘राब्ता’, ‘केदारनाथ’, ‘सोन चिड़िया’, ‘छिछोरे’ व ‘ड्राइव’ में नजर आए. इनमें से कुछ फिल्में सफल रहीं,  कुछ असफल रही. फिल्म‘ड्राइव’ को खरीददार न मिलने पर ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज किया गया. इस वक्त वह मुकेश छाबरा निर्देशित फिल्म ‘‘दिल बेचारा’’ में अभिनय कर रहे थे, जिसकी कुछ दिन की शूटिंग बाकी है.

अंकिता के साथ सुर्खियों में रहा रिश्ता…

मुंबई में अंकिता लोखंडे के साथ उनका रिश्ता काफी लंबा रहा. मुंबई में वह अंकिता लोखंडे के साथ ही उनके घर पर रहा करते थे. पर एक दिन अचानक दोनों के बीच अलगाव हो गया. फिर सुशांत ने ब्रांदा इलाके में आलीशान फ्लैट खरीदा था. उसके बाद सुशांत सिंह राजपूत के रिश्ते कई अभिनेत्रियों के संग जुड़े, पर यह रिश्ते बहुत कम समय तक ही टिके.

 

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#SushantSinghRajput and #AnkithaLokhande posing together at #VikramPhanis25thyearfashionshow #instadaily #instafashion

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ब्रेकअप पर अंकिता ने कही थी ये बात…

फरवरी माह में जब हमारी बातचीत अंकिता लोखंडे से हुई थी, उस वक्त उन्होने सुशांत सिंह राजपूत से रिश्ता खत्म होने के सवाल पर कहा था- ‘‘उसके लिए अच्छा नहीं रहा. पर मेरा तो अच्छा रहा.’’

बहरहाल सुशांत के फैंस इस खबर से सदमे में हैं और लगातर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.

#coronavirus: आखिर क्या होती है महामारी?

जब कोई बीमारी पूरे विश्व के अधिकांश देशों में छुआछूत के कारण फैलती है तो उसे महामारी कहते हैं. इसका फैलाव क्षेत्र पूरा विश्व होता है. महामारी पूरे विश्व में फैलती है व उस पर नियंत्रण हासिल कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है. इतिहास बताता है कि एक समय था जब प्लेग, चेचक, हैजा आदि महामारी घोषित हुए थे. पूरी दुनिया को सबसे ज्यादा ब्लैक डेथ (या काली मौत) नामक बीमारी ने प्रभावित किया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) इससे पहले  इनफलूएंजा को ही महामारी मानता था जबकि कोरोना वायरस फ्लू है.  जबकि इपेडेमिक या प्रकोप कहते थे, कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहता व उससे कम लोग मरते हैं.  इपेडेमिक शब्द ग्रीक शब्द इपीडीमियम से पैदा हुआ है जबकि पेडेमिक शब्द पेडोमीज शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है ‘सभी लोग’ इबोलो को इपोडेमिक कहा जाता था क्योंकि इसने पश्चिम अफ्रीका को ही प्रभावित किया व कुछ वर्षों में उसके कारण हजारों लोग मारे गए थे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) ने इससे पहले विगत में प्लेग, इनफलुएंजा, यैलो फीवर, हैजा आदि को ही महामारी माना है. इसके पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2009 में एच1एन1 स्वाइन फ्लू को महामारी घोषित किया था.

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 पुरे विश्व में कोरोना के प्रति उठाये गए महत्वपूर्ण कदम

* इस बीमारी का पहले संदिग्ध मामलों के बारे में चीन ने  31 दिसंबर 2019 को WHO को सूचित किया गया था.

* चीन में रोगसूचक बीमारी के पहले उदाहरणों के साथ 8 दिसंबर 2019 को केवल तीन सप्ताह पहले दिखाई दिया था.

* वुहान शहर को 1 जनवरी 2020 को बाजार बंद कर दिया गया था, और जिन लोगों में कोरोनोवायरस संक्रमण के संकेत और लक्षण दिखाई दिए, उन्हें अलग कर दिया गया थे.

* संभावित रूप से संक्रमित व्यक्तियों के साथ संपर्क में आने वाले 400 से अधिक स्वास्थ्य कर्मचारियों सहित 700 से अधिक लोगों की शुरुआत में निगरानी की गई थी.

* जाँच के बाद वुहान शहर के  41 लोगों में  2019-nCoV की उपस्थिति की पुष्टि की गई.

* कोरोना वायरस संक्रमण से पहली पुष्टि की गई मौत 9 जनवरी 2020 को हुई.

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* 23 जनवरी 2020 को, वुहान शहर को पूरा तरह बंद कर दिया गया,  वुहान के अंदर और बाहर सभी सार्वजनिक परिवहन को निलंबित कर दिया गया था.

* 24 जनवरी से आस-पास के चीन के शहर हुआंगगांग, इझोउ, चबी, जिंगझोउ और झीझियांग को भी अलग कर बंद कर दिया गया .

* 23 जनवरी 2020 को, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रकोप को अंतरराष्ट्रीय चिंता का एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के खिलाफ फैसला किया.

* 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना वायरस के प्रसार को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया गया,

इस  आपातकाल डब्लूएचओ द्वारा 2009 के एच वन एन वन के बाद छठा आपातकाल है.

देश  में कोरोना के प्रति उठाये गए महत्वपूर्ण कदम

*  17 जनवरी को सरकार ने  चीन की यात्रा से परहेज करने के लिए सलाह जारी की गई है

* 18 जनवरी को सरकार ने चीन और हॉन्ग कॉन्ग से आने वाले यात्रियों की थर्मल जांच शुरू किया गया .

*  30 जनवरी को सरकार ने चीन की यात्रा से बचने के लिए सख्त सलाह जारी की गई .

* भारत में 30 जनवरी, 2020 को कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया .

*  3 फरवरी को सरकार ने चीन के नागरिकों के लिए ई-वीजा की सुविधा निलंबित करना शुरू किया .

* 22 फरवरी को सरकार ने  सिंगापुर की यात्रा से बचने की सलाह जारी किया . साथ ही  काठमांडू, इंडोनेशिया, वियतनाम और मलयेशिया से आने वाली उड़ानों की पूर्ण जांच शुरू किया गया .

* 26 फरवरी को सरकार ने ईरान, इटली और कोरिया गणराज्य की यात्रा से बचने के लिए सलाह जारी की गई. इन देशों से आने वाले यात्रियों की जांच शुरू की गई, और जांच व जोखिम आकलन के आधार पर उन्हें क्वारंटाइन (एकांतवास) में भेजा जा सकता है.

* 3 मार्च को भारत सरकार ने एक आदेश कर इटली, ईरान, दक्षिण कोरिया, जापान और चीन के लिए सभी तरह के वीजा निलंबित कर दिया . चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, ईरान, इटली, हॉन्ग कॉन्ग, मकाऊ, वियतनाम, मलयेशिया, इंडोनेशिया, नेपाल, थाईलैंड, सिंगापुर और ताईवान से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आने वाले यात्रियों की अनिवार्य स्वास्थ्य जांच शुरू किया गया .

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* 4 मार्च को सभी सरकार ने सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की व्यापक जांच शुरू कर दिया . जांच और जोखिम विवरण के आधार पर क्वारंटाइन या एकांतवास के लिए घर या अस्पताल भेज जाया ने लगा .

 *  5 मार्च को सरकार ने इटली या कोरिया गणराज्य से आने वाले यात्रियों से प्रवेश से पहले स्वास्थ्य प्रमाण पत्र हासिल करना जरूरी कर दिया गया .

* 10 मार्च को सरकार ने आदेश जारी किया कि आने वाले अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को अपने स्वास्थ्य की खुद निगरानी करनी चाहिए और सरकार के निर्देशों का पालन करना चाहिए.  इसमें ही आगे सरकार ने कहा कि चीन, हॉन्ग कॉन्ग, कोरिया गणराज्य, जापान, इटली, थाईलैंड, सिंगापुर, ईरान, मलयेशिया, फ्रांस, स्पेन और जर्मनी की यात्रा कर चुके यात्रियों को भारत में कदम रखने के बाद पहले 14 दिन तक घर पर ही क्वारंटाइन रहना होगा.

* 11 मार्च को सरकार ने अनिवार्य क्वारंटाइन जारी कर दिया . सरकार ने यह घोषण किया कि 15 फरवरी, 2020 के बाद चीन, इटली, ईरान, कोरिया गणराज्य, फ्रांस, स्पेन और जर्मनी से घूमकर आने वाले यात्रियों को कम से कम 14 दिन की अवधि के लिए क्वारंटाइन रहना अनिवार्य है .

* 16 मार्च को सरकार ने यूएई, कतर, ओमान और कुवैत से या वहां होकर आने वाले यात्रियों के लिए न्यूनतम 14 दिन के लिए विस्तृत अनिवार्य क्वारंटाइन करने को कहा.  इसी दिन सरकार ने  यूरोपीय संघ, यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन के सदस्य देशों, तुर्की और यूनाइटेड किंगडम से घूमकर आने वाले यात्रियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया .

 * 17 मार्च को सरकार ने अफगानिस्तान, फिलीपींस, मलयेशिया से आने वाले यात्रियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया .

* 22 मार्च को सरकार ने देश में आने वाली सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को निलंबित कर दिया .

*   25 मार्च को भारत को आने वाली सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के निलंबन को 14 अप्रैल 2020 तक के लिए बढ़ाया दिया गया .

* महामारी के वैश्विक स्तर पर प्रसार के साथ न सिर्फ यात्रा सलाहों को संशोधित किया गया, बल्कि हवाई अड्डा जांच का सभी हवाई अड्डों तक विस्तार किया गया.

* हवाई अड्डों पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा जांच किए जाने के बाद यात्रियों को जोखिम आकलन के आधार पर क्वारंटाइन या अस्पतालों को भेज दिया गया.

हवाई यात्रा कर के आये उन सभी यात्रियों को लिस्ट अलग से बने गया जिनका स्वास्थ्य विभाग द्वारा जांच किए जाने के बाद यात्रियों को  स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा स्वस्थ करार दिया गया था . इनका ब्यौरा आवश्यक दिनों तक संबंधित राज्य/संघ शासित सरकारें से  साझा किया गया ताकि इन पर निगरानी बनाए रख सकें. जरुरत पड़ने पर इनकी जाँच हो .

*  25 मार्च से देश में 21 दिन का सम्पूर्ण लॉक डाउन घोषित कर दिया गया है .

योगी सरकार के कामकाज पर किया सवाल, पूर्व आईएएस पर हो गई एफआईआर

वो कहते हैं न. जिसके पास हथोडा होता है उसे हर कोई कील नजर आता है. यही हाल योगी सरकार का हो चला है. सत्ता का घमंड और लाठी का जोर इतना हो गया है कि उनके खिलाफ बोलने वालों पर सीधा एफआईआर हो जाती है. इसी फेहरिश्त में एक और नाम जुड़ गया है.

इसका ताजा शिकार हुए हैं पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह. मामला बीते बुधवार का है. सूर्य प्रताप ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा “सीएम योगी की टीम-11 की मीटिंग के बाद क्या मुख्यसचिव ने ज्यादा कोरोना टेस्ट कराने वाले कुछ डीएमस को हडकाया कि ‘क्यों इतनी तेजी पकड़े हो, क्या इनाम पाना है, जो टेस्ट-2 चिल्ला रहे हो?’

यह ट्वीट यूपी में कम कोरोना टेस्टिंग के चलते किया गया. लखनऊ के हजरतगंज थाणे में हुई इस एफआईआर में आईएएस के ट्वीट को भ्रामक बताया गया. उनके खिलाफ धारा 188, 505, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.

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अपने ऊपर किये एफआईआर का जवाब पूर्व अधिकारी ने फिर से एक ट्वीट कर के दिया. जिसमें उन्होंने कहा कि ‘टीम-11 पर किये मेरे ट्वीट को लेकर सरकार ने मेरे खिलाफ मुकदमा कर दिया है. सबसे पहले तो मैं ये साफ़ कर देना चाहता हूँ कि यूपी सरकार की पालिसी पर दिए ‘नों टेस्ट, नों कोरोना’ वाले बयान पर मैं अडिग हूँ, और सरकार से निरंतर सवाल पूछता रहूँगा.’

यही नहीं योगी सरकार पर असहमति की आवाज को दबाने के आरोप में एक ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा कि ‘मैंने आईएएस रहते पिछली सरकार के खिलाफ आन्दोलन चलाया, तब भाजपा के नेता मेरी पीट थपथपाते थकते नहीं थे. आज ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की बात करने वाली सरकार का रवैया देख कर चकित हूँ.’

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टेस्ट न हो तो देश में कोरोना ख़त्म समझो

जाहिर है भारत में प्रवासी समस्या उभरने के बाद मजदूर अपने गृह राज्यों की तरफ बड़ी संख्या में गए हैं. ऐसे में एक बड़ी संख्या उत्तर भारत के मजदूरों में यूपी में आने वालों की रही है. जिनमें कोरोना खतरा होने की आशंका जताई जा रही है. 10 जून को स्क्रोल डॉट इन पर आई खबर के मुताबिक प्रदेश के पूर्वी उत्तर प्रदेश में 3 करोड़ लोगों पर मात्र एक कोरोना टेस्टिंग लैब है.

वहीँ हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक देश के सबसे बड़े जनसंख्या घनत्व वाले राज्य में मात्र 33 कोरोना टेस्ट लैब हैं. वो भी बड़े शहरों के भीतर. वहीँ अगर टेस्टिंग दर को देखा जाए तो, प्रदेश में हर 10 लाख में मात्र 1,740 लोगों का टेस्ट किया जा रहा है. जो भारत के औसतन 3,797 के आधे से भी कम है. साथ ही यह देखने में भी आ रहा है कि टेस्टिंग लैब से रिपोर्ट आने में काफी इन्तेजार करना पड़ता है. जाहिर है इन आकड़ों को देखते हुए कम टेस्टिंग को लेकर सवाल करना जरुरी बन जाती है.

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भारत में कम कोरोना टेस्टिंग को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं. अभी बीते दिनों अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने यहां तक कह दिया कि “भारत व चीन कारोना टेस्ट नहीं कर रहा वरना मामले अमेरिका से ज्यादा निकल सकते हैं.” देखा जाए तो जनसंख्या घनत्व के हिसाब से कोरोना टेस्टिंग मामले में भारत काफी नीचे स्थान पर है.

ऐसे में यह सोचने वाली बात है अगर कल को सरकार एक भी कोरोना टेस्ट नहीं करती है तो कोरोना का एक मामला भी दर्ज नहीं होगा. मामले दर्ज होने का मसला इसी पर निर्भर करता है कि सरकार कितने बड़े स्तर पर टेस्टिंग प्रक्रिया चला रही है. ज्यादातर मामलों में कोरोना के हलके लक्षण पाए जा रहे हैं, जिसमें मरीज घर के भीतर ही बुखार की दवाई खाकर ठीक हो रहे हैं. कई लोग अस्पतालों तक नहीं जा रहे, पास के झोला छाप डॉक्टर से दवाई लेकर काम चला रहे हैं. ऐसे में सरकार सभी राज्यों की सरकारों की मंशा इसी पर है कि कम से कम लोग अस्पतालों में आए ताकि कोरोना आकड़ों में वृद्धि दर्ज न हो पाए.

ऐसा पहले भी हो चुका है.

यह कोई पहला मामला नहीं जब सरकार के खिलाफ बोलने वालों पर योगी सरकार ने मामला दर्ज किया हो. इससे पहले भी पहले लाकडाउन में ही ‘द वायर’ के फौन्डिंग एडिटर सिद्धार्थ वर्धराजन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.

वहीँ मिर्जापुर के प्राइमरी स्कूल से एक वीडियो वायरल हुआ था. जिसमें मिड डे मील में नमक रोटी परोसी जा रही थी. इस पुरे मामले की खबर बनाने के चलते पत्रकार पवन जायसवाल पर धारा-120-बी, 186, 193 और 420 के चलते मुकदमा कर दिया गया. वहीँ प्रशांत कनोजिया का मामला तो पिछले साल पिछले दौरान देश में चर्चा का विषय बन गया. जब एक ट्वीट के चलते कनोजिया को गिरफ्तार कर दिया गया. इस गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश की सरकार को रिहा करने का आदेश दिया.

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वही अगर देखा जाए तो पुरे देश में सबसे ज्यादा मौतें सीएए विरोधी आन्दोलन में किसी प्रदेश में हुई हैं तो वह यूपी में हुई. जहां 23 लोगों की मौत रिपोर्ट की गई. जिसमें 21 लोगों की जान बुलेट इंजरी से बताई गई, 1 की मौत लाठी चार्ज के दौरान, और एक की पत्थर लगने के कारण बताई गई. जिसमें कई पार्टियों और फैक्ट फाइंडिंग टीम का कहना था कि अधिकतर मौतें पुलिस की गोलियों से हुई.

सरकार से सवाल करना ही नागरिकता है

प्राय यह देखा जा रहा है कि एक अजीब किस्म की राजनीति देश में हावी हो रही है. सरकार की किसी नीति से असहमति रखना मानो जुर्म हो गया हो. सरकारों की सहनशीलता लगातार कम होती जा रही है. मात्र एक ट्वीट पर एफआईआर दर्ज हो जा रही है. कभी आपदा एक्ट के नाम पर तो कभी यूएपीए के नाम पर विरोधी आवाज को कुचला जा रहा है. गिरफ्तारी होने लगती है. सरकार की नीतियों या कार्यवाहियों पर प्रश्नचिन्ह लगाना देश से गद्दारी बतायी जा रही है. खासकर यह भाजपा राज्यों में देखा जा रहा है.

ऐसे में सरकार द्वारा इस प्रकार की गतिविधियाँ भारत के लोकतंत्र के लिए खतरा है, जहां सरकार द्वारा असहमतियों की आवाज को दबाया या कुचला जा रहा हो. बेहतर होता कि तमाम असहमतियों को सरकार द्वारा अपना पक्ष रख आकड़े जारी करते हुए जवाब दिया जाता. भाजपा जिन राज्यों में विपक्ष की भूमिका में है वहां सत्तापक्ष पर आरोप लगाती है. जाहिर है यह आरोप गलत व सही दोनों हो सकते हैं, ऐसे में सत्ता में बैठे व्यक्ति की जिम्मेदारी उन आरोपों पर अपनी सफाई देने की होनी चाहिए. यह बात योगी सरकार को भी बेहतर तरीके से समझने की जरुरत है. वह लोगों के सवालों या असहमतियों का जवाब दे न की आवाज को दबाए.

‘दिया और बाती हम’ की दीपिका सिंह की मां हुईं कोरोना पॉजिटिव, इलाज न मिलने पर केजरीवाल से मांगी मदद

कोरोना वायरस के कहर से देश का हर एक नागरिक परेशान है. लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि यह महामारी कब खत्म होगी. वहीं कुछ लोग अपने परिवार से दूर रहकर भी परेशानियों का सामना कर रहे हैं.

दीया और बाती फेम एक्ट्रेस दीपिका सिंह ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है. जिसमें वह दिल्ली सरकार के सामने अपने परिवार को बचाने की गुहार लगा रही हैं. उन्होंने हाथ जोड़कर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से भी अपनी परिवार की सुरक्षा के लिए गुहार लगाई है.

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दरअसल, दीपिका सिंह ने इन दिनों मुंबई में हैं और उनकी फैमली दिल्ली में रहती है. उनकी मां का रिपोर्ट कोरोना पॉजिटीव आया है. उन्होंने अपनी जांच दिल्ली के लेडिंग हार्डिंग अस्पताल में करवाया है. जिसमें उन्हें कहा गया कि आप इस रिपोर्ट की फोटो ले लीजिए और फिर उन्हें हाथ में रिपोर्ट नहीं दी गई. जिस वजह से उन्हें किसी अस्पताल में सही ट्रीटमेंट देने को कोई तैयार नहीं है.

वहीं दीपिका के पापा को भी सांस लेने में दिक्कत हो रही है. उनका पूरा परिवार 45 लोगों का है, जिसमें उनकी दादी के हालात भी नाजुक लग रहे हैं. इन सभी चीजों को देखते हुए दीपिका की छोटी बहन मम्मी- पापा के इलाज के लिए दिल्ली गई है.

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लेकिन वहां जाने के बाद उन्हें पता चला कि उनकी मां को कोरोना पॉजीटीव है. वहां सभी परिवार वालों को भी टेस्ट करवाना है. किसा को भी कुछ समझ नहीं आ रहा है. कैसे इस समस्या से निपटा जाएं.

दीपिका ने लगातार अपनी फैमली के सलामती के लिए अपील कर रही है. उसे समझ नहीं आ रहा कैसे बचाएं वह दूर रहकर अपनी फैमली को.

उनकी फैमली पर कोरोना का खतरा मडराता देखकर वह बहुत ज्यादा घबराई हुई है. उन्हें अपनी फैमली की चिंता सता रही है.

अभिनव कोहली के साथ एक ही घर में रहने की बात पर श्वेता तिवारी ने तोड़ी चुप्पी

टीवी इंडस्ट्री में आएं दिन कुछ न कुछ नई खबर आती रहती हैं. लॉकडाउन में भी कलाकार सुर्खियों में बने हुए हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं टीवी इंडस्ट्री की मशहूर अदाकार श्वेता तिवारी की जो इन दिनों अपनी निजी जीवन को लेकर सुर्खियों में बनी हुई हैं.

श्वेता तिवारी इन दिनों अपने दूसरे पति को लेकर सवाल के घेरे में हैं. श्वेता के पति अभिनव कोहली पर श्वेता ने घरेलू हिंसा का इल्जाम लगाया था. श्वेता ने बताया था कि उऩके पति अभिनव उनकी बेटी पलक के साथ कुछ गलत तरीके से पेश आ रहे थे.

जिसके बाद उन्होंने घर के मामले को पुलिस तक लेकर गई थी. इस मामले में श्वेता के पति अभिनव लंबे समय तक जेल में रहने के बाद अब अपने घर वापस आ गए हैं.

 

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The struggle you are in Today, Is developing the Strength you need for Tomorrow! #staystrong #weareinittogether #nanhayatri

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उन्होंने जेल से निकलने के बाद दावा किया है कि वह शेवेता के साथ उसी घर में रह रहे हैं. हालाकिं जब यह सवाल श्वेता से पूछा गया तो उन्होंने इस बात से साफ इंकार कर दिया है. उन्होंने कहा लोगों के पास मौका है जितनी चाहे बाते कर लें. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है.

कुछ दिनों पहले श्वेता तिवारी के पति अभिनव कोहली ने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया था जिसमें वह अपनी पत्नी और दोनों बच्चे के साथ नजर आ रहे हैं. इस वीडियों को द्खने के बाद लोग तरह-तरह के कमेंट करने शुरू कर दिए हैं. लोग कयास लगा रहे हैं कि पूरा मामला सुलढ गया है.

 

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My #nanhayatri Loveees playing with Dough! Last week, i came across a video on @johnsonsbabyindia , on ‘How to make colorful play dough for babies’. Reyansh and i drew inspiration from this interactive indoor activity and tried our hand at it too! Taking into consideration how babies tend to chew on toys, colorful edible play dough is a safe alternative. It is not only fun to play with but also helps in developing their sensory skills. We had an absolute blast doing this together! As a family, in this time of uncertainty, we decided to come together to create memorable moments and a positive atmosphere for each other, with each other. Try this engaging activity with your little one, capture and share your moments, tagging @johnsonsbabyindia and the best will stand a chance to feature on their brand page! Dough it! #CHOOSEgentle #GentleTogether

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जबकी श्वेता तिवारी ने इस बात पर कोई सफाई नहीं दी है. उनका कहना है कि लोगों के कहने पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है. अभिनव श्वेता दोबारा सुर्खियों में छा गए हैं. श्वेता अपने घर में बेटी पलक और बेटे के साथ रहती हैं.

बात करें उनकी बेटी पलक की तो बेटी पलक मॉडलिंग करना चाहती हैं. उनकी मॉडलिग की फोटो आए दिन वायरल होती रहती है.

आईवीएफ के लिए जाते समय बचें इमोशनल टेंशन से

आईवीएफ या कोई दूसरा फर्टिलिटी उपचार कराते समय चिंता होना स्वाभाविक है. अगर शुरुआती अवस्था में तनाव दूर न हो तो यह बाद में महिला और कपल्स के लिए मुश्किल का कारण बन सकता है. आईवीएफ का फैसला एक कपल के जीवन का बहुत बड़ा फैसला होता है. हालांकि यह उम्मीद की एक किरण ले कर आता है, लेकिन इस का अनुभव अपनेआप में अलग होता है.

उपचार को सफल बनाने के लिए भावनात्मक तनाव से बचना बहुत ज़रूरी है. कई कारक हैं जो तनाव का कारण बन सकते हैं, ये हार्मोन से ले कर उम्मीद या डर तक कुछ भी हो सकते हैं. व्यक्ति को पहले यह समझ लेन चाहिए कि आईवीएफ के लिए विशेष देखभाल की ज़रूरत होती है. इस तरीके के तहत गर्भधारण हो जाने के बाद गर्भावस्था में ठीक उसी तरह के एहतियात बरतने चाहिए जैसे सामान्य गर्भधारण में बरते जाते हैं. गर्भधारण तक पहुंचना कई बार मानसिकरूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

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दुनियाभर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सुझाव है कि सही सपोर्ट सिस्टम आईवीएफ यात्रा को सफल बना सकता है. पूरी प्रक्रिया में तनाव को कम करने की कोशिश करनी चाहिए. सभी दिन एक से नहीं होते, कभीकभी ज़्यादा मुश्किल का सामना भी करना पड़ सकता है. इन सब के साथ भी आईवीएफ को सहज व आशापूर्ण बनाया जा सकता है.

सही क्लिनिक और डाक्टर चुनें :

सब से पहले सही फर्टिलिटी क्लिनिक चुनना बहुत ज़रूरी है. जब सर्च कर रहे हैं तो क्लिनिक के प्रदर्शन दर पर ध्यान दें, फीडबैक देखें, यह भी देखें कि क्या मरीज़ आप के जैसे थे. इस के बाद इस बात पर ध्यान दें कि जब आप अस्पताल जाते हैं तो क्या टीम आप को सहज महसूस कराती है. क्या आप सहजता से सवाल पूछ पाते हैं? क्या आप को स्पष्ट जवाब मिलते हैं, और क्या टीम आप को पूरी जानकारी देती है.

आईवीएफ के बारे में जानकारी पाएं :

कोई भी जानकारी बेकार नहीं जाती.  हर कदम पर जानकारी हासिल करनी चाहिए. डाक्टर से पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी लें. अगर आप को पूरी जानकारी मिलेगी तो आप का तनाव दूर होगा. आप डाक्टर से मिलने वाले किसी अन्य कपल से भी बातचीत कर सकते हैं, जो पहले से यहां आईवीएफ करा चुके हों. इस से भी आप का तनाव कुछ कम हो जाएगा.

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अपने पार्टनर से बात करें :

कोई भी फैसला खुद लेना मुश्किल हो सकता है. इसलिए उपचार के हर पहलू के बारे में अपने पार्टनर से बात करें. इस प्रक्रिया में आप को हर कदम पर अपने पार्टनर की ज़रूरत होगी.

कपल और फैमिली के लिए काउंसलिंग कारगर हो सकती है. आप का रिश्ता चाहे कितना ही मजबूत हो, आईवीएफ कई कपल्स पर भारी पड़ता है. आप दोनों को सपोर्ट की ज़रूरत होती है. यह भी ज़रूरी है कि आप के मातापिता और सासससुर भी इस तरह की काउंसलिंग लें.

तनाव प्रबंधन की तकनीकें अपनाएं :

साबित हो चुका है कि मनन और व्यायाम तनाव से बचने में कारगर हैं. नियमित रूप से एक्सरसाइज और मनन कर आप आईवीएफ उपचार को आसान बना सकते हैं. आईवीएफ प्रक्रियाके दौरान तनाव से बचने के लिए अपने शौक अपनाएं, मस्ती और मनोरंजन के लिए समय निकालें.

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आप का आईवीएफ साइकल कैसा होगा, इस बात को ले कर चिंता न करें, बल्कि यह सोचें कि इस प्रक्रिया ने आप को उम्मीद की नई किरण दी है, जीवन में अपने सपने पूरा करने और कुछ सीखने का मौका दिया है. दरअसल, मन में छिपी क्षमता से आप किसी भी मुश्किल पर जीत पा सकते हैं. आप अपनी क्षमता को पहचानें और उस का उपयोग करें तो सही. आप कामयाब होंगे और फिर आप को अपनी क्षमता पर गर्व भी होगा.

(यह लेख डा. असवती नायर, फर्टिलिटी कंसल्टैंट, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, से बातचीत पर आधारित है).

मैं 28 साल की विवाहित स्त्री हूं, मेरा रंग सांवला है. मैं अभी प्रैगनैंट हूं, कुछ ऐसे उपाय बताएं कि बच्चा गोरे रंग का हो?

सवाल
मैं 28 साल की विवाहित स्त्री हूं. मेरा रंग सांवला है. मैं अभी प्रैगनैंट हूं. कुछ ऐसे उपाय बताएं कि बच्चा गोरे रंग का हो. क्या खानपान से इस पर कोई असर पड़ता है? कोई दूसरे घरेलू उपाय हों तो वे भी बताएं? गृहशोभा के इसी स्तंभ में कुछ समय पहले त्वचा की रंगत के पीछे मिलेनोसाइट की जानकारी दी गई थी. क्या कोई ऐसा उपाय नहीं जिस से कि बच्चे के मिलेनोसाइट अप्रभावी रह जाएं और वह गोराचिट्टा हो सके?

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जवाब
हमारे नैननक्श और दूसरे शारीरिक गुणों जैसे कदकाठी के समान हमारी त्वचा का रंग निर्धारित करने वाले मिलेनोसाइट्स के घनत्व का गणित भी हमारे जींस तय करते हैं, जो हमें अपने मातापिता और दूसरे पूर्वजों से मिलते हैं. उन्हें किसी तरह से बदला नहीं जा सकता.

यों भी किसी व्यक्ति का रूपसौंदर्य मात्र उस के रंग से निर्धारित नहीं होता. कई गहरे रंग के लोग भी गजब के सुंदर दिखते हैं और कई गोरेचिट्टे भी सामाजिक पैमाने पर सुंदर नहीं होते. अत: आप अनावश्यक ही अपने और अपने होने वाले बेबी के रंग को ले कर इतनी सैंसिटिव न हों.

प्रैगनैंसी के अनुसार समुचित मात्रा में प्रोटीन, विटामिन और मिनरल युक्त आहार लें, जिस में फल, शाकसब्जियां, दूध, अंडा, दालें प्रचुर मात्रा में हों ताकि आप को और आप के बेबी को समस्त पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिल सकें.

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प्रैगनैंसी से जुड़े भ्रम

विज्ञान ने आज भले ही कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन हमारे समाज में आज भी प्रैगनैंसी से जुड़े बहुत सारे ऐसे भ्रम हैं जो न सिर्फ घातक हैं, बल्कि कई बार जानलेवा भी साबित हो सकते हैं. आइए, जानते हैं उन के बारे में और करते हैं उन का समाधान:

भ्रम : प्रैगनैंसी में उलटी होना एक बेहद सामान्य सी बात है.

सच्चाई : यह सच है कि प्रैगनैंसी के शुरू के दिनों में उलटियां होना बहुत सामान्य बात है, लेकिन इतनी सामान्य बात भी नहीं है जितना लोग समझ लेते हैं. सच्चाई यह है कि  ज्यादा उलटियां आने से न केवल गर्भवती वरन गर्भस्थ शिशु को भी नुकसान पहुंचता है. इसलिए बेहतर होगा कि आप डाक्टर से संपर्क करें.

भ्रम : नारियल खाने से बच्चा नारियल की तरह गोराचिट्टा पैदा होता है.

सच्चाई: नारियल एक ऐसा फल है जो रेशा युक्त होता है, जिस की वजह से प्रैगनैंसी के दौरान इस का सेवन लाभदायक होता है, लेकिन इस का बच्चे के रंग से कोई संबंध नहीं है.

भ्रम : प्रैगनैंसी में गर्भवती को दोगुना खाने की जरूरत होती है.

सच्चाई : इस दौरान दोगुना भोजन गर्भवती के वजन को बढ़ा कर डिलिवरी को कौंप्लिकेटेड बना सकता है. सच्चाई यह है कि इस दौरान हर महिला को सिर्फ 300 अतिरिक्त कैलोरी की जरूरत पड़ती है.

भ्रम : ऐक्सरसाइज से बच्चे को नुकसान होता है.

सच्चाई: यह बिलकुल गलत धारणा है. सच्चाई बिलकुल इस के विपरीत है. डाक्टरों का कहना है कि इस दौरान किसी प्रोफैशनल की निगरानी में ऐक्सरसाइज करना ठीक है.

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भ्रम : अगर आप की उम्र 30 से ज्यादा है तो आप के प्रैगनैंट होने के चांसेज नहीं के बराबर हैं, इसलिए 30 साल की उम्र से पहले ही अपना पहला बेबी प्लान कर लें.

सच्चाई : आज महिलाएं अपने कैरियर को ले कर काफी सजग हो गई हैं. यही कारण है कि वे आमतौर पर 30 साल की आयु के बाद ही मां बनना पसंद करती हैं और अब यह उतना मुश्किल भी नहीं है, क्योंकि एग फ्रीजिंग और आईवीएफ तकनीक ने इसे बेहद आसान बना दिया है.

भ्रम : अगर सूर्य और चंद्र ग्रहण के दौरान प्रैगनैंट महिला कोई काम करती है तो बच्चा अपाहिज पैदा होता है.

सच्चाई : हैरानी की बात है कि आज विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है, फिर भी कई ऐसे लोग हैं जो इस अंधविश्वास को सच मानते हैं. इस का कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है

भ्रम : अगर डिलिवरी के बाद पेट पर कोई टाइट सी बैल्ट बांध दी जाए तो टमी फ्लैट रहती है.

सच्चाई : यह बिलकुल निराधार बात है. सच्चाई यह है कि अगर कोई महिला डिलिवरी के बाद टमी को किसी टाइट बैल्ट से बांध कर रखती है तो इस से वहां का रक्तसंचार बाधित होगा जो घातक सिद्ध हो सकता है.

फादर्स डे स्पेशल: मेरे पापा-5

लेखिक- सुधा सक्सेना

मेरे पापा की हम 3 बेटियां और हमारा एक भाई है. मेरे भैया और बड़ी बहन की शादी होने के बाद मेरी मम्मी की मृत्यु हो गई. मुझ से बड़ी बहन की भी शादी हो गई तो घर में मैं और पापा ही रह गए. बहन की शादी के बाद मैं अपने पापा का पूरा ध्यान रखती और अपनी पढ़ाई भी करती थी. लेकिन पापा और भैया के बीच अकसर झगड़ा होता था. जिस के कारण पापा बीमार रहने लगे. उसी बीच पापा ने मेरी भी शादी कर दी. फिर वे अकेले पड़ गए. मेरी शादी के डेढ़ साल बाद वे बहुत ज्यादा बीमार हो गए. डाक्टर ने जवाब दे दिया. मैं अपनी ससुराल से पीहर पहुंच गई और उन की देखरेख करती रहती थी. कमजोरी के कारण वे बिस्तर से नहीं उठ सकते थे. मैं ने उन का पूरा ध्यान रखा.

अस्पताल से आने के 12 दिनों के बाद उन की मृत्यु हो गई. लेकिन, मरने से पहले मेरे सिर पर हाथ रख कर वे बोले, ‘‘तुम हमेशा खुश रहोगी, तुम ने एक बेटे का फर्ज निभाया है, जो तुम्हारे भाई को करना चाहिए था वह तुम ने किया है. सब की नजरों में बेटा ही सबकुछ होता है लेकिन आज तुम ने बेटी हो कर भी एक बेटे का फर्ज निभाया है.’’ उन की यह बात हमेशा मेरे दिमाग में रहती है.

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गुंजन सक्सेना, दादरी (उ.प्र.)

*

मैं अपने पापा को कभी नहीं भूल सकती. उन की मृत्यु हुए 25 वर्ष से भी अधिक का समय हो गया है पर लगता है कि कल ही की बात है. पापा ने मेरे दादादादी से जायदाद में से अपने हिस्से का कोई भी अंश नहीं लिया. उन्होंने अपनी छोटी सी नौकरी में हम 9 भाईबहनों को पढ़ायालिखाया व शादीविवाह किया और अपनी मांबहनों व भाइयों को जिंदगीभर अपने से ज्यादा माना. उन्हें पूरा मानसम्मान दिया और उन की जरूरतों का ध्यान रखा.

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मेरे पापा ने हम 6 बहनों को एमए, डबल एमए कराया व तीनों भाइयों को अच्छी शिक्षा दी. आज हम सभी बहनें व भाई अच्छी तरह जीवनयापन कर रहे हैं, कमी है तो मम्मीपापा की. पापा ने हम लोगों को कभी भी किसी चीज की कमी होने नहीं दी. कभी भी कोई चीज की मांग करने पर कहीं से भी ला कर देते थे. भले ही बेटों की मांग पूरी न हो पर उन्होंने बेटियों को कभी भी दुखी नहीं होने दिया. मेरे पापा अनुशासनप्रिय थे. शाम को 7 बजे खाने पर सब का होना आवश्यक था क्योंकि वे हम सब के साथ ही खाना खाते थे. उन्होंने अपनी हैसियत से ज्यादा अपने बच्चों के लिए किया. हम एक क्षण भी पापा को नहीं भुला पाते. ऐसे थे मेरे पापा.

Crime Story: मां, बाप और बेटे के कंधों पर लाश

अवैध संबंधों की परिणति कभी भी अच्छी नहीं होती. यह बात पुरुष भी जानता है और महिला भी. इस के बावजूद वे गलतियों पर गलतियां करते रहते हैं. यही गलती अखिलेश और अंजुम कर रहे थे, जिस का नतीजा…    20तारीख के यही कोई सुबह के 6 बजे की बात है. कड़ाके की ठंड के साथसाथ कोहरे की चादर भी

फैली हुई थी. पौ फटते ही धीरेधीरे अस्तित्व में आती सूरज की किरणों ने कोहरे से मुकाबला करना शुरू किया तो दिन का मिजाज बदलने लगा. ठंड कम होती गई और कोहरे की चादर झीनी.

ग्वालियर के थाना हजीरा क्षेत्र के कांच मिल इलाके में बसी श्रमिकों की बस्ती में रहने वाले लोग नित्यक्रिया के लिए रेल पटरी के पास गए तो उन्हें वहां एक पुरुष की रक्तरंजित लाश पड़ी दिखाई दी.

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खून चूंकि जम कर काला पड़ गया था, इस से लग रहा था कि उसे मरे हुए 1-2

दिन हो गए होंगे. खबर फैली तो पैर कटी लाश के आसपास काफी भीड़ जमा हो गई.

एकत्र भीड़ में तरहतरह की चर्चाएं हो रही थीं. लोग उसे पहचानने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसे कोई भी नहीं पहचान पाया. इस बीच किसी ने हजीरा थाने को फोन

कर रेलवे लाइन पर लाश पड़ी होने की सूचना दे दी.

कुछ ही देर में  थानाप्रभारी आलोक परिहार पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पुलिस को आया देख भीड़ लाश के पास से हट गई.

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थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 45 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में साफी लिपटी थी, जिस का एक भाग मुंह में ठुंसा था. इस से यह बात साफ हो गई कि उस की हत्या कहीं और की गई

थी, और बाद में लाश को यहां डाल दिया गया था.

तलाशी में पुलिस को मृतक की जेबों से एक पर्स मिला, जिस में ड्राइविंग लाइसैंस और ग्वालियर नगर निगम का परिचय पत्र था. इन दोनों चीजों से मृतक की शिनाख्त हो गई. इस से पुलिस का काम आसान हो गया. मृतक का नाम अखिलेश था, परिचय पत्र और लाइसैंस में उस का पता लिखा था. अखिलेश नगर निगम की कचरा ढोने वाली गाड़ी चलाता था. मौके से पुलिस को मृतक के नामपते के अलावा कोई भी अहम सबूत हाथ नहीं लगा.

ड्राइविंग लाइसैंस और परिचय पत्र को कब्जे में ले कर थानाप्रभारी आलोक परिहार ने 2 सिपाहियों को भेज कर मृतक के परिजनों को मौके पर बुलवा लिया. घर वाले अखिलेश की लाश देखते ही बिलखने लगे. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

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थाने पहुंचते ही थानाप्रभारी ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

मामला संगीन था, इसलिए एसपी नवनीत भसीन के आदेश पर एसपी (सिटी) रवि भदौरिया ने इस ब्लाइंड मर्डर के खुलासे के लिए हजीरा थानाप्रभारी आलोक परिहार की अगुवाई में एक टीम का गठन कर दिया. इस टीम का निर्देशन एएसपी पंकज पांडे कर रहे थे.

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह गला घोटा जाना बताया गया था. मौत का समय रात 11 बजे से 2 बजे के बीच का था.

समय देख कर पुलिस को लगा कि अखिलेश की हत्या किसी नजदीकी व्यक्ति ने की होगी, इसलिए पुलिस ने उस के पड़ोसियों, रिश्तेदारों के अलावा परिचितों से भी पूछताछ कर के जानना चाहा कि उस का किनकिन लोगों के यहां ज्यादा आनाजाना था.

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पूछताछ में पुलिस को पता चला कि अखिलेश पिछले 8 सालों से अवाडपुरा निवासी मुश्ताक के घर आताजाता था. घर में बैठ कर दोनों देर रात तक शराब पीते थे.

पुलिस ने अखिलेश और मुश्ताक के घर वालों के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि अखिलेश एक नंबर पर सब से ज्यादा बातें किया करता था. उस नंबर की जांच हुई तो पता चला कि वह मुश्ताक के नाम पर था. लेकिन उस नंबर पर उस की पत्नी अंजुम भी बात करती थी.

हकीकत जानने के लिए पुलिस मुश्ताक के घर गई और उस की पत्नी अंजुम से पूछताछ की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. दोनों ने यह बात स्वीकारी की अखिलेश से बात भी होती थी और वह घर भी आता था.

कुछ लोगों से की गई पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली कि पिछले कुछ दिन से मुश्ताक को अखिलेश का घर आनाजाना खटक रहा था. सौरभ और छोटे खान भी उसे टेढ़ी नजर से देखते थे. खास कर सौरभ और छोटे खान को तो अखिलेश फूटी आंख पसंद नहीं था. जबकि अंजुम को बापबेटों की बातें कांटे की तरह चुभती थीं. इसी बात को ले कर अंजुम का अपने शौहर और बेटों से विवाद होता रहता था.

जानकारी काम की थी. पुलिस का शक अंजुम के पति और बेटों के इर्दगिर्द घूमने लगा. यह भी संभव था कि पति और बेटे मां के प्रेमी के कातिल बन गए हों. लेकिन इस बाबत पुख्ता सबूत हाथ न लगने से पुलिस असमंजस की स्थिति में थी.

एक और अहम बात यह थी कि अखिलेश की हत्या की भनक पड़ोसियों तक को नहीं थी. पुलिस के पहुंचने पर ही पड़ोसियों के बीच इस बात को ले कर बहस छिड़ी कि आखिरकार मुश्ताक के घर पुलिस के आने की असल वजह क्या है.

पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर एक बार फिर अंजुम से अलग से पूछताछ की. उस ने बिना डरे बड़ी चतुराई के साथ सभी सवालों के जबाव दिए. अखिलेश से दोस्ती और परिवार में इस बात के विरोध की बात तो उस ने स्वीकार की, लेकिन अखिलेश की हत्या करने की बात नकार दी.

पुलिस ने जब अखिलेश के परिजनों से जानना चाहा कि उस की किसी से कोई ऐसी रंजिश थी, जो हत्या की वजह बनी हो. साथ ही यह भी पूछा कि अखिलेश का किसी के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था. घर वालों ने बताया कि उन की जानकारी में अखिलेश का किसी से कोई विवाद नहीं था.

 

पुलिस टीम ने अखिलेश की तथाकथित प्रेमिका अंजुम और उस के परिवार को शक के दायरे में रख कर जांच में परिवर्तन किया. इस मामले की कई दृष्टिकोण से जांच की गई.

महीनों चली जांच में कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं मिला जो हत्यारों को कटघरे में खड़ा कर देता. लौट कर बात मुश्ताक और अंजुम पर आ कर ठहर जाती थी. अंतत: पुलिस ने एक बार फिर सर्विलांस ब्रांच की मदद ली. काफी मशक्कत के बाद एक ठोस सबूत हाथ लगा. सबूत यह कि अंजुम, मुश्ताक और अखिलेश के मोबाइल फोन की लोकेशन अवाडपुरा में पाई गई थी.

इस सबूत के बाद पुलिस टीम ने एक बार फिर मुश्ताक के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. एक फुटेज से पता चला कि हत्या वाले दिन अखिलेश मुश्ताक के घर आया तो था, मगर किसी भी फुटेज में वह वापस जाता हुआ दिखाई नहीं दिया. मुश्ताक और अंजुम ने उस के आने की बात से इनकार नहीं किया था. इसलिए उन्हें आरोपी नहीं माना जा सकता था.

2 ठोस सबूतों के बाद पुलिस ने बिना देर किए 7 मार्च को अंजुम को हिरासत में ले लिया और उसे थाने ले आई.

थाने की देहरी चढ़ते ही अंजुम की सिट्टीपिट्टी गुम होनी शुरू हो गई. इस बार पुलिस ने उस से सबूतों के आधार पर मनोवैज्ञानिक ढंग से दबाव बना कर पूछताछ की.

अंजुम पुलिस की बात को झुठला नहीं सकी. आखिर उस ने सच बोलते हुए कहा, ‘‘साहब, अखिलेश को मैं ने और मेरे पति व बेटे ने पड़ोसी के साथ मिल कर मारा है.’’

अंजुम ने पुलिस को दिए बयान में अखिलेश की हत्या की जो कहानी बताई, वह काफी दिलचस्प निकली—

अखिलेश साहू नाका चंद्रबदनी माता वाली गली में रहता था और नगर निगम में कचरा ढोने वाली गाड़ी के चालक के पद पर कार्यरत था. उसे शराब पीने की लत थी. अखिलेश का शैलेंद्र के जरिए मुश्ताक से परिचय हुआ था. शैलेंद्र और मुश्ताक पड़ोसी थे.

 

पहले अखिलेश खानेपीने के लिए शैलेंद्र के घर आताजाता था. मुश्ताक भी पीने का शौकीन था, इसलिए वह भी इन के साथ बैठने लगा. फिर कुछ दिन बाद अखिलेश के खर्च पर शराब की महफिल मुश्ताक के घर जमने लगी. अखिलेश के घर वालों ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह नहीं सुधरा तो घर वालों ने उस से इस बारे में बात करना ही छोड़ दिया.

अखिलेश रोजाना शाम की ड्यूटी पूरी कर के शराब पीने के लिए अवाडपुरा में मुश्ताक के घर चला जाता था.

इसी दौरान उस की मुलाकात मुश्ताक की पत्नी अंजुम से हुई. जल्दी ही अखिलेश को अंजुम से भावनात्मक लगाव हो गया. अंजुम भी उस से लगाव रखने लगी थी.

दोनों के बीच अकसर मोबाइल पर भी बातें होती थीं. भावनात्मक बातों का यह सिलसिला शरीरों पर जा कर रुका. एक बार दोनों के बीच की दूरी मिटी तो फिर यह आए दिन की बात हो गई. जब भी अंजुम और अखिलेश को मौका मिलता, बिना आगेपीछे सोचे हदें लांघ कर अपनी हसरतें पूरी कर लेते.

अंजुम और अखिलेश के बीच अवैध संबंध बने तो उन की बातचीत और हंसीमजाक का लहजा बदल गया.

अखिलेश अंजुम का हर तरह से खयाल रखने लगा था, इसलिए आसपड़ोस वालों को संदेह हुआ तो लोग दोनों के संबंधों को ले कर चर्चा करने लगे. नतीजा यह निकला कि लोग अखिलेश को देख कर मुश्ताक के बच्चों से कहने लगे, ‘तुम्हारा दूसरा बाप आ गया.’

अंजुम को उस के बडे़ बेटे सौरभ ने अखिलेश के साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. उस ने यह बात पिता को बता दी. मामले ने बेहद संगीन और नाजुक मोड़ अख्तियार कर लिया था, लिहाजा बापबेटे ने अंजुम को ऊंचनीच बता कर भविष्य में अखिलेश से कभी मेलमुलाकात न करने की कसम दिलाई.

अंजुम मुश्ताक की पत्नी ही नहीं, उस के बच्चों की मां भी थी, इसलिए बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए मुश्ताक ने दोबारा ऐसी गलती न करने की चेतावनी दे कर उसे माफ कर दिया.

लेकिन जिस का पैर एक बार फिसल चुका हो, उस का संभलना मुश्किल होता है. यही हाल अंजुम और उस के प्रेमी अखिलेश का भी था. कुछ दिन शांत रहने के बाद अंजुम अपने वायदे पर टिकी न रह सकी. मौका पाते ही वह चोरीछिपे अखिलेश से मिलने लगी.

 

इस बात का पता मुश्ताक को लगा तो अपना घर बचाने के लिए उस ने बड़े बेटे के साथ बैठ कर अखिलेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस योजना में मदद के लिए मुश्ताक के बड़े बेटे ने अपने दोस्त सलमान को भी शामिल कर लिया.

हालांकि बिना अंजुम की मदद के अखिलेश को ठिकाने लगा पाना सौरभ और मुश्ताक के बूते की बात नहीं थी. उन्होंने जैसेतैसे अंजुम को भी इस योजना में शामिल कर लिया. तय योजना के अनुसार 18 दिसंबर की रात अंजुम से फोन करवा कर अखिलेश को घर पर बुलाया गया.

 

उस के आते ही मुश्ताक ने उसे जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो कर गिरने लगा तो बापबेटे ने अंजुम के हाथों साफी से उस का गला घोटवा कर उस की हत्या करवा दी. इस काम में सौरभ और शौहर मुश्ताक ने भी मदद की.

हत्या करने के बाद मुश्ताक और सौरभ रात में ही अखिलेश की लाश को ठिकाने लगाने की सोचते रहे, लेकिन रात ज्यादा हो जाने से उन का यह मंसूबा पूरा न हो सका. फलस्वरूप लाश को बाथरूम में छिपा

दिया गया.

अगले दिन 19 दिसंबर को सौरभ घूमने जाने के बहाने अपने मामा की नैनो कार एमपी07सी सी3726 ले आया.

जब मोहल्ले में सन्नाटा हो गया, तो रात 11 बजे अखिलेश की लाश को बाथरूम से निकाल कर मुश्ताक, सौरभ, अंजुम और सलमान ने मिल कर कार में इस तरह बैठाया कि अगर किसी की नजर पड़े तो लगे कि अखिलेश ज्यादा नशे में है.

लाश को कार में डाल कर आरोपी अंधेरे में कांच मिल क्षेत्र में रेल की पटरी पर लाए और पटरी पर इस तरह रख दिया, जिस से लगे कि उस ने आत्महत्या की है.

अपराध करने के बाद कोई कितनी भी चालाकी  से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है.

अंजुम ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सकी.

 

पुलिस ने अंजुम के बेटे सौरभ की निशानदेही पर वह नैनो कार भी बरामद कर ली, जिस में उस ने और उस के पिता ने अखिलेश की लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंका था. काफी खोजबीन के बाद भी अखिलेश का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया.

विस्तार से पूछताछ के बाद हत्या के चारों आरोपियों सौरभ, उस के पिता मुश्ताक खान, गोरे उर्फ सलमान और अंजुम के खिलाफ धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.    —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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