अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अप्रैल 2020 के पहले हफ्ते में ही कड़ी आलोचना की थी. तब ट्रंप ने कहा था कि डब्ल्यूएचओ चीन परस्त रवैय्या अपना रहा है. उनके मुताबिक डब्ल्यूएचओ ने कोराना वायरस से दुनिया को आगाह करने के संबंध में एक नहीं बहुत सारी गलतियां की थी. ट्रंप के मुताबिक डब्ल्यूएचओ को इस संक्रमण की चेतावनी उससे बहुत पहले जारी करनी चाहिए थी, जब उसने की. इन आलोचनाओं के बीच ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ को तभी चेतावनी दे दी थी कि अमरीका आने वाले दिनों में डब्ल्यूएचओ को दिये जाने वाले फंड मंे रोक लगाने जा रहा है. लेकिन तब दुनिया को लग रहा था शायद ट्रंप अमरीका की स्थिति संभाल न पाने के कारण तनाव में हैं और डब्ल्यूएचओ के खिलाफ गुस्सा निकाल रहे हैं. लेकिन वह वास्तव में ऐसा नहीं करेंगे.
मगर ट्रंप ने अपने आलोचकों और अपने विश्लेषकों को हमेशा चैंकाते हैं. आमतौर पर ट्रंप सिर्फ धमकी नहीं देते बल्कि धमकी पर बड़ी सहजता से अमल भी करते हैं. यही वजह है कि 29 मई 2020 को अमेरिका ने आखिरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन से रिश्ता तोड़ने का औपचारिक ऐलान कर दिया. गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ अपने तमाम खर्चों, योजनाओं और मौजूदगी के लिए अमरीका की दी जाने वाली आर्थिक मदद पर काफी हद तक निर्भर है. अमरीका अकेले डब्ल्यूएचओ को मिलने वाले असेस्ड कंट्रीब्यूशन में 15 फीसदी का योगदान करता है. पिछले साल अमरीका ने डब्ल्यूएचओ के कुल बजट का 15 प्रतिशत के बराबर योगदान दिया था. अमरीका ने 2018-19 में डब्ल्यूएचओ को 400 मिलियन डाॅलर की मदद की थी, जबकि इस दौरान चीन ने कुल 86 मिलियन डाॅलर की ही मदद की थी. 2020-21 में अमरीका डब्ल्यूएचओ को कोई 450 मिलियन डाॅलर भुगतान करने वाला था, लेकिन उसका कहना है जब डब्ल्यूएचओ चीन के साथ सांठगांठ कर रहा है तो हम इसे क्यों एक भी पैसा भुगतान करें?
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गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया ट्रैडोस ऐड्रेनाॅम गैबरेयेसस, जो कि इस पद पर पहुंचने वाले पहले अफ्रीकी हैं और माना जाता है कि वे इस पद पर चीन की बदौलत पहुंचे है, इसलिए चीन का पक्ष ले रहे हैं. लेकिन डब्ल्यूएचओ के मुखिया इस बात को सिरे से नकारते हैं. उन्होंने अप्रैल में ट्रंप की चेतावनी के बाद ही कहा था कि डब्ल्यूएचओ का राजनीतिकरण करने से बचें. डब्ल्यूएचओ के मुखिया ने तभी जेनेवा में एक प्रेस काॅन्फ्रेंस करके कहा था कि यह दुनिया पर छाये बेहद संकट का समय है. इस समय दुनिया के सभी देशों को मिलकर कोरोना के विरूद्ध जंग छेड़ने पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए, इस तरह की राजनीति से बचना चाहिए.
डब्ल्यूएचओ के मुखिया ने अमरीका की चेतावनी के बाद यह भी कहा था, ‘राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर किसी तरह की दरार, किसी वायरस और संक्रमण को सफल बनाती है. भगवान के लिए हम दुनिया के 60,000 लोगों को खो चुके हैं. (तब तक कोरोना से दुनियाभर में 60,000लोगों की मौत हुई थी) ऐसे में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए कोविड-19 का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए.’ हालांकि अप्रैल में जब ट्रंप ने फंड खत्म करने की शुरुआती धमकी दी थी, तब वह कुछ ही देर के बाद अपने बयान से मुकर गये थे, यह कहकर कि मैं अभी ये करने नहीं जा रहा हूं, लेकिन आने वाले दिनों में हम इसे देखेंगे और इसकी जांच करेंगे. करीब दो महीने के बाद अंततः ट्रंप ने औपचारिक रूप से डब्ल्यूएचओ से नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को हुई थी, इसका मुख्यालय स्विटजरलैंड के शहर जेनेवा में है और इसके सदस्य देशों की मौजूदा संख्या 194 है, जबकि जिस समय इसकी स्थापना हुई थी, इसके कुल 61 सदस्य थे. आज की तारीख में डब्ल्यूएचओ के पूरी दुनिया मंे 150 से ज्यादा आॅफिस हैं और पूरे संगठन में करीब 7000 कर्मचारी काम करते हैं. डब्ल्यूएचओ का मुख्य काम दुनियाभर मंे स्वास्थ्य समस्याओं पर नजर रखना है और समस्याओं का खात्मा करना है. जो हर साल वल्र्ड हेल्थ रिपोर्ट बनती है, उसके लिए जिम्मेदार डब्ल्यूएचओ ही होता है. यह दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारियों मसलन- कैंसर, हृदय रोग, इन्फ्लयूंजा और एचआईवी से लड़ने में दुनिया की मदद करता है और इनके ऊपर लगातार रिसर्च करता है.
1 जुलाई 2017 मंे जब पांच सालों के लिए डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल ट्रैडोस ऐड्रेनाॅम गैबरेयेसस चुने गये थे, तभी से अमरीका को किसी न किसी बहाने डब्ल्यूएचओ को लेकर परेशानी होती रही है. क्योंकि माना जाता है कि ट्रैडोस चीन समर्थक हैं. अमरीका इस आरोप को इसलिए भी ठोस आरोप बताता है; क्योंकि ट्रैडोस ने 28 जनवरी 2020 को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने बाद कोरोना बीमारी से लड़ने के लिए चीन की सराहना की थी. दुनिया के और भी कई जगहों पर डब्ल्यूएचओ के मुखिया चीन की तारीफ कर चुके हैं. लेकिन अमरीका और उसके साथी देश इसे चीन के प्रति डब्ल्यूएचओ की पक्षधरता मानते हैं.
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सवाल है अमरीका जो डब्ल्यूएचओ को इतने बड़े पैमाने पर फंडिंग करता है, अगर उसने अब भविष्य मंे वाकई कोई फंडिंग नहीं करता तो डब्ल्यूएचओ रहेगा या बंद हो जायेगा? निश्चित रूप से इस सवाल का जवाब यही है कि कोई एक देश चाहे कितना ताकतवर हो जाए लेकिन वो पूरी दुनिया की व्यवस्था को नहीं तय कर सकता और न ही दुनिया को अपने इशारों पर हांक सकता है. अमरीका ने डब्ल्यूएचओ से रिश्ते सिर्फ इसलिए नहीं तोड़े कि डब्ल्यूएचओ कोरोना के बारे में उसे आगाह करने में देर की बल्कि उसने इसलिए डब्ल्यूएचओ से चिढ़कर रिश्ता तोड़ा है; क्योंकि वह उससे चिढ़ा हुआ है. अमरीका के चिढ़ने का कारण यह है कि डब्ल्यूएचओ दुनिया की एकमात्र महाशक्ति के इशारे पर नहीं चल रहा. अमरीका को इस तरह की हरकतों से बाज आना चाहिए.