जब बिहार और पश्चिम बंगाल सहित देश के तमाम राज्यों के मजदूर सडकों पर भूखे प्यासे मर रहे थे तब पार्टी स्तर पर भाजपा ने आगे बढ कर इनके लिये किसी सुविधा का काम नहीं किया. अब जब वोट लेने का वक्त आ रहा है तो करोडों के बजट से भाजपा वर्चुअल रैलियां कर रही है.

बिहार, पश्चिम बंगाल और उडीसा में भाजपा की वर्चुअल रैलियां चुनावी है या नहीं. यह बहस का मुददा बन गया है. तीन राज्यों में से बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव नजदीक है. ऐसे में भाजपा की यह रैलियां पूरी तरह राजनीतिक नही है भाजपा के इस तर्क में दम नहीं है. वर्चुअल रैलियांे के जरिये भाजपा ने विरोधी दलों को अपनी ताकत दिखाने के साथ बूथ स्तर तक पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी सक्रिय करने का काम किया है. जिसको चुनाव पूर्व की कवायद माना जा रहा है. एक तरफ देश कोरोना संकट से गुजर रहा है. अगर भाजपा के पास मजबूत तंत्र और साधन है. तो उसे इसका प्रयोग जनता को कारोना संक्रमण और इस दौरान बने दूसरे सकंट से बचाने में मदद के रूप मे इस्तेमाल करना चाहिये था. कोरोना संकट के दौर में गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के दूसरे बडे नेता कम ही मौको पर दिखाई दिये. आज जब वोट लेने का समय आ रहा तो भाजपा वर्चुअल रैलियांे के जरीये जनता के बीच अपनी घुसपैठ बनाना चाहती है.

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समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव कहते है कि भाजपा की वर्चुअल रैलियांे पर 150 करोड रूपया खर्च हुआ होगा. कोरोना सकंट के दौरान जब पूरा देश आर्थिक बदहाली से गुजर रहा हो उस समय सत्ताधारी दल जनता की मदद करने की जगह पर वर्चुअल रैलियां कर रहा हो तो उसकी मानसिकता को समझा जा सकता है. भाजपा ने इन रैलियों को सफल बनाने के लिये प्रति बूथ एक एलईडी टीवी और उसको चलाने के लिये टेक्नलौजी का प्रबंध किया था. इस पर आने वाला खर्च कम नहीं होगा. पश्चिम बंगाल में कुल 80 हजार बूथ है. भाजपा का दावा है कि 65 हजार बूथ पर उनकी बूथ कमेटी बनी है. अब 65 हजार बूथ पर एलईडी का इंतजाम कम से भाजपा को करना पडा होगा. इसी तरह से उडीसा और बिहार में भी हजारों की संख्या मे बूथ है. इनके प्रंबंध में करोडो का बजट भाजपा को करना पडा होगा.

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