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Hyundai #AllRoundAura: तकनीक में है शानदार

हुंडई Aura हर तरह के नए टेक्नोलोजी फीचर्स के साथ आती है. जैसे की इसके सेंटर कंसोल में लगा वायरलेस चार्जर

बस अपने Qi इनेब्ल्ड फोन को यहां रखें और इसके बारे में भूल जाएं. जब आप अपनी डेस्टिनेशन तक पहुंचेंगे, तब तक आपको आपका फोन पूरी तरह चार्ज मिलेगा. हुई ना कमाल की सुविधाजनक तकनीक.

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अगर इसके दूसरे फीचर्स की बात करें तो हुंडई Aura में आपको मिलता है स्टीयरिंग माउंटेड ऑडियो कंट्रोल, क्रूज़ कंट्रोल, और ऑटोमैटिक क्लाइमेट कंट्रोल. हुंडई Aura में आपकी सुविधा के लिए बहुत कुछ है. #AllRoundAura

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पैसे न मिलने से परेशान हुई ‘कसौटी जिंदगी की’ ‘प्रेरणा’, छलका दर्द

कोरोना वायरस के चलते सभी लोगों की हालात नाजुक हो गई है. लॉकडाउन बीच में जैसे ही यह खबर आई है कि अब सीरियल्स की शूटिंग शुरू कर दी जाएगी. ऐसे में कुछ कालाकारों को राहत मिली है, टीवी स्टार्स की सैलरी न आने की वजह से उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

कसौटी जिंदगी 2 की एक्ट्रेस एरिका फर्नांडिस का कहना है कि टाइम पर पेमैंट नहीं आने की वजह से हमें कई तरह के दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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उन्होंने एक रिपोर्ट में बात करते हुए कहा है कि सैलरी समय से नहीं आने की वजह से मुझे ही नहीं कई और भी लोग हैं जिन्हें मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. मेरी सैलरी भी टाइम से नहीं आई है. जिस वजह से मैंने अपने पैमेंट नहीं किए है. बहुत सी चीजों का बकाया है. मैंने अपने बिल्स नहीं दिए हैं.

 

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आगे उन्होंने कहा है कि किसी को भी पैसे समय से नहीं मिल रही है. जिससे हमें कई तरह के समस्याओं से जुझना पड़ रहा है. पता न कब तक यह सब चलेगा. समझ नहीं आ रहा है. कुछ ऐसा हाल टीवी शोज के प्रोड्यूसर्स का भी है. उनके पास भी पैसे नहीं है. जिससे वह अपने कलाकारों को पैसा नहीं दे पा रहे है.

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गौरतलब है कि कुछ दिनों से टीवी इंडस्ट्री में हर कोई नॉन पेमैंट की बात कर रहा है. लेकिन क्या कर सकते हैं, सभी के हालात यही है. सभी लोग इस परेशानियों से जुझ रहे हैं. अभी कुछ समझ नहीं आ रहा है कि कब तक लोगों को इस मुसीबत का सामना करना पडेगा. हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं.

 

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उम्मीद की जा रही है कि जल्दा ही हालात सही हो सभी लोग अपने काम पर वापस लौट जाएं. सभी की स्थितियां सही हो जाएं.

“Choti Bahu” की बोल्ड तस्वीर पर यूजर्स ने पूछे ऐसे सवाल

टीवी एक्ट्रेस रुबीना दिलाइक किसी न किसी वजह से चर्चा में बनी रहती हैं. इन दिनों वह अपनी बोल्ड तस्वीर को लेकर सुर्खियों में बनी हुई हैं. रुबीना दिलाइक ने हाल ही में अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है. जिसमें वह काले रंग की ब्लैक स्वीम सूट पहनी हुई हैं.

रुबीना दिलाइक की यह तस्वीर 5 साल पुरानी है. इस तस्वीर को उनके पति अभिनव शुक्ला ने शेयर किया है. इस तस्वीर पर ट्रोलर्स ने एक बार फिर उन्हें निशाने पर ले लिया है.

रुबाना ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए कहा है कि यह 2015 की बात है. वहीं फैंस लगातार इस तस्वीर पर कमेंट कर रहे हैं. एक फैंस ने कमेंट करते हुए लिखा है कि तुम छोटी बहू में ही अच्छी लगती हो. अब बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती. वहीं एक शख्स ने लिखा है कि इंसान को अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए.

 

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#throwback

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रुबीना दिलाइक के पति अभिनव भी जानें माने कलाकार है. और वह एक अच्छे फोटोग्राफर भी हैं. रुबीना दिलाइक की फोटो अभिनव क्लिक करते हैं. अभइनव ने फोटो पर कमेंट करते हुए लिखा है कि वह फोटो शूट करवाना चाहते हैं.

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Yeh 2015 ki baat hai…. #throwback

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बता दें कि रुबीना दिलाइक और अभिनव शुक्ला की शादी दो साल पहले हुई थी. दोनों की मुलाकात एक कॉमन दोस्त के जरिए हुई थी. फिर दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल गई. और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

फिलहाल रुबीना अपने फैमली के साथ घर पर है. वह अपना फैमली टाइम स्पेंड कर रही हैं. इन दिनों वह किसी टीवी सीरियल्स में नजर नहीं आ रही हैं.

उन्हें भी बाकी सभी कलाकारों की तरह लॉकडाउन खुलने का इंतजार है. क्योंकि उनका मानना है कि अभी घर से बाहर निकलने का कोई मतलब नहीं है. समय बहुत ज्यादा खराब चल रहा है.

 

Medela Flex Breast Pump: बिना दर्द के अब ब्रेस्ट फीडिंग होगी आसान

हर मां चाहती है कि उसके बच्चे को भरपूर पोषण मिले, इसके लिए वह बच्चे के जन्म लेते ही उसे अपना दूध पिलाती है, चाहे उसे इसके लिए कितनी भी पीड़ा क्यों सहनी पड़े. आखिर ये रिश्ता होता ही ऐसा है. मां से अपने बच्चे की पीड़ा देखी नहीं जाती. वह जानती है कि अगर बच्चे को हैल्थी रखना है, उसकी इम्युनिटी को बढ़ाना है तो उसे मां का दूध पिलाना ही होगा

लेकिन कई बार ऐसी स्थिति  जाती है जब मां चाहा कर भी अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पाती. जैसे कई बार स्तनों में दूध नहीं आता या फिर अधिक दूध आने के कारण स्तनों में अत्यधिक पीड़ा होती है या जौब के कारण मजबूरन उसे अपने बच्चे का पेट भरने के लिए  फार्मूला मिल्क का सहारा लेना ही पड़ता है. जो भले ही बच्चे की भूख को शांत कर दे लेकिन इससे बच्चे को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स नहीं मिल पाते हैं, जो आगे चलकर उसमें कई कमियों का कारण भी बन सकते हैं

लेकिन अब नई टेक्नोलॉजी के आने के कारण हमारा जीवन आसान हो गया है. हमारे सामने आज ढेरों विकल्प होते हैं. इसी में एक है ब्रैस्ट पंपअब ऐसे ब्रैस्ट पंप्स  गए हैं जिसने मां की परेशानी को दूर करने का काम किया है

क्या है ब्रैस्ट पंप 

ब्रैस्ट पंप एक ऐसा यंत्र है, जिसकी मदद से मां अपने दूध को संग्रहित करके रख सकती है और जब बच्चे को इसकी जरूरत हो आसानी से पिलाया जा सकता है. एक बार दूध संग्रहित होने के बाद मां दूसरे काम भी आसानी से टेंशन फ्री हो कर कर सकती है. हर मां के मन में ये सवाल जरूर आता है कि कहीं ब्रैस्ट पंप के इस्तेमाल से हमें दर्द तो नहीं होगा या फिर बच्चे को इस दूध से कोई नुकसान तो नहीं पहुंचेगा. तो आपको बता दें कि ये पूरी तरह से सेफ है. बस आप पंप की साफ़ सफाई का खास ध्यान रखें

आपको बता दें कि ब्रैस्ट पंप वैक्यूम के कारण काम करते हैं. जब इन पंप्स को दोनों स्तनों पर अच्छे से लगाया जाता है तो वैक्यूम के कारण स्तनों से दूध निकल कर पंप से जुड़ी हुई बोतल में भरने लगता है. जिन्हें आप आसानी से फ्रिज में स्टोर करके रख सकती हैं. बस इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को दूध तभी पिलाएं जब दूध नोर्मल टेम्परेचर पर जाए. इससे जहां आपको सुविधा होगी वहीं आपके बच्चे को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स भी मिल जाएंगे

वैसे को मार्केट में आपको ढेरों ब्रैस्ट पंप मिल जाएंगे. लेकिन सवाल है बच्चे की हैल्थ का जिससे कोई समझौता नहीं हो सकता. ऐसे में मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप का जवाब नहीं. क्योंकि उन्होंने एक मां की जरूरतों को ध्यान में रखकर ब्रेस्ट पंप बनाए हैं. जिसमें  हैल्थ भी और कम्फर्ट भी. चाहे बच्चा जन्म से पहले जन्मा  हो, स्तनों से दूध बाहर पा रहा हो, ऐसे में उच्च क्षमता वाले मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप मां के दूध को स्तनों से आसानी से बाहर निकाल के  बच्चे तक मां के दूध को पहुंचाने का काम करते हैं. इसके अधिकांश पम्प में 2 फेज एक्सप्रेशन टेक्नोलोजी है, जो काफी यूनिक है

तो फिर मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप से आप भी रहें रिलैक्स और बच्चे को भी दें पूरा पोषण. साथ ही में अपनी पर्सनल और प्रौफेशनल लाइफ का भी रखें ख्याल.

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देश में पहली बार आएंगे एंटी वायरस कपड़े…जो करेंगे आपकी कोरोना से सुरक्षा

अब क्योंकि कोरोना का खतरा तो बढ़ता ही जा रहा है और ऐसे में लोगों की सेहत का और उनकी सुरक्षा का खयाल रखते हुए भारत में पहली बार ऐसे कपड़े आने वाले हैं जो एंटी वायरस होंगे.जी हां है न हैरान करने वाली बात की अब कपड़े भी मिलेंगे एंटी वायरस. ये कपड़े आपके शरीर में कोरोना के वायरस को इंटर नहीं करने देंगे और पूरी तरह से आपको सुरक्षा प्रदान करेंगे.

कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए देश में इस एंटी वायरस टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी से बने कपड़े लॉन्च होंगे और मार्केंट में इसको जून के अंत तक लाने की तैयारी की जा रही है.जून के आखिर में सूटिंग-सर्टिंग फैब्रिक्स से तैयार किए हुए ये कपड़े मार्केंट में लाने की जोरो-शोरों से तैयारी की जा रही है.रिपोर्ट के मुताबिक इन कपड़ों में 99.99 फीसदी कीटाणुओं को मारने की क्षमता होगी.

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इस एंटी वायरस फैब्रिक्स को ताइवान की प्रमुख स्पेशलिस्ट केमिकल जिंटेक्स कॉर्पोरेशन की मदद से और स्विस टेक्सटाइल इनोवेशन कंपनी की मदद से कपड़ा एवं परिधान फिल्ड की कंपनी अरविंद लिमिटेड तैयार कर रही है,जिसके निदेशक हैं कुलिन लालाभाई.जिसकी लागत है एक हजार करोड़ रुपये. और इस एंटी वायरस कपड़े की बिक्री को जल्द से जल्द मार्केट में बढ़ाने की कोशिश  की जाएगी.कंपनी ने कहा है कि रिसर्च से ये जानकारी मिली कि वायरस और बैक्टीरिया, कपड़ों की सतहों पर दो दिनों तक सक्रिय रहते हैं, कपड़ों की मदद से ही वो शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.लेकिन ये एंटी वायरस कपड़े उन किटाणुओं को शरीर तक पहुंचने से रोकेंगे, दरअसल एचईक्यू वायरोब्ल़ॉक के साथ ट्रीट किए गए ये एंटी वायरस कपड़े वायरस को रोकने का काम करेंगे.

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कुलिन लालभाई ने कहा है कि कोविड-19 के कारण दुनिया एक बहुत बड़े संकट का सामना कर रही है. और इसको देखते हुए अपने ग्राहकों को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है और यही कारण है कि हमनें भारत में क्रांतिकारी वायरोब्लॉक तकनीक लाने के लिए एचईक्यू के साथ करार किया है. तो तैयार हो जाइए दोस्तों एक एंटी वायरस कपड़े को पहनने के लिए बहुत जल्द ये आपके लिए मार्केट में उपलब्ध होगें.आपकी कोरोना वायरस से सुरक्षा करेंगे.

बेबस आंखें- भाग 3: केशव अपनी बेटी से आंखें क्यों नहीं मिला पा रहा था?

‘‘पापा, मैं ने कई बार आप को फोन किया, परंतु आप ने फोन ही नहीं उठाया.’’ केशव ने अपना फोन निकाल कर देखा, उस में स्वरा के 6 मिस्डकौल थे. जाने कैसे फोन साइलैंट मोड पर चला गया था. राधे की हालत नाजुक थी, इसलिए केशव ने रात को वहीं रुकने का निश्चय किया. स्वरा अकेले घर जाने को तैयार नहीं थी, इसलिए अस्पताल के ही एक प्राइवेट रूम में दोनों जा कर बैठ गए. बेटी स्वरा के ऐक्सिडैंट की खबर से आज वे ऐसी मानसिक यंत्रणा से गुजरे थे कि उन का संपूर्ण अस्तित्व ही हिल उठा था. अपने जीवन में घटने वाली हर दुर्घटना के लिए उन्होंने हमेशा स्वयं के द्वारा किए गए अपराध की वजह से अपने को ही दोषी मानते आए थे. आज उन्होंने मन ही मन पूर्ण निश्चय कर लिया था कि वे आज अपनी बेटी के समक्ष अपने गुनाह को स्वीकार कर के अपने दिल का बोझ हलका कर लेंगे. अब उन के लिए यह बोझ असहनीय हो चुका है.

मन ही मन सोचना और मुंह से बोलना 2 अलग अलग बातें हैं. ऊहापोह की बेचैन मानसिक अवस्था में वे लगातार चहलकदमी कर रहे थे. ‘पापा, राधे काका ठीक हो जाएंगे. आप इतना परेशान क्यों हैं?’’

‘‘स्वरा, मैं बहुत नर्वस हूं. मैं तुम से कैसे कहूं अपने दिल का हाल. पता नहीं, तुम मुझे माफ करोगी या नहीं? जीवन में सबकुछ होते हुए भी तुम्हारे सिवा मेरा दुनिया में कोई नहीं है. लेकिन ठीक है, अब तुम मुझे चाहे सजा देना, चाहे माफी.’’

‘‘पापा, आप कहिए, जो कुछ कहना चाह रहे हैं.’’

केशव अपनी बेटी स्वरा से आंखें नहीं मिला पा रहे थे. इसलिए उन्होंने अपना मुंह दीवार की तरफ कर लिया. फिर बोले, ‘‘बेटी, ध्यान से सुनो, तुम लगभग 3 वर्ष की थीं. मेरी आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी. पैसा कमाने का मन में जनून था. मैं ने अम्मा से जबरदस्ती कर के उन का घर बेच दिया और उन्हीं पैसों से पहली फैक्टरी खरीदी. लेकिन खरीदना और उसे चलाना अलग बात होती है. मैं परेशान रहता था. तभी एक दिन अम्मा के मुंह से सुना, वे मंगला मौसी से कह रही थीं, ‘अपनेअपने समय की बात है. अच्छा समय होता तो मेरा अपना घर ही काहे को छूटता.’ तुम्हारी मां से मालूम हुआ कि अम्मा तीर्थयात्रा पर जाना चाहती हैं.

‘‘अम्मा की जिद के आगे मैं झुक गया और तुम्हारी मां और मैं ने उन्हें तीर्थयात्रा पर भेजने का निश्चय कर लिया. अम्मा के चेहरे पर से उदासी के बादल छंट गए. कनकलता उन के जाने की तैयारी में लग गई. आखिर वह घड़ी आ गई जब अम्मा को बस पर तीर्थयात्रा के लिए जाना था. मैं और कनकलता दोनों उन्हें बस पर बिठा कर आए. तेरा माथा चूमते हुए अम्मा की आंखों से झरझर आंसू बह निकले थे. ‘‘तुम्हारी मां बहुत खुश थी कि चलो, अम्मा की कोई इच्छा तो वह पूरी कर पाई थी. कनकलता ने अपने पैसे से एक नया मोबाइल फोन ला कर अम्मा को दिया था. अम्मा रोज एक बार फोन कर के बताना कि कहां पहुंची? क्या देखा? और कैसी हो? अम्मा बहू का लाड़ देख उस को गले से लगा कर रो पड़ी थीं.‘‘मुझे फैक्टरी चलाने के लिए ब्याज पर रुपया लेना पड़ता था, इसलिए जो फायदा होता था वह ब्याज में चला जाता था. मुझे कोई उपाय नहीं सूझता था.

‘‘अम्मा को गए एक हफ्ता हो गया था. घर में सन्नाटा लगता था. कनकलता को घर के कामों से फुरसत नहीं मिलती थी. छोटी सी गुडि़या सी तुम दादी दादी पुकार कर उन्हें यहां वहां ढूंढ़ा करती थीं. ‘‘अम्मा अपनी यात्रा में बहुत खुश थीं. वे अपनी तीर्थयात्रा पूरी कर के लौट रही थीं. उस के बाद उन से संपर्क टूट गया. तेरी मां बहुत चिंतित थीं. मैं अपनी उलझनों में था कि मंगला मौसी के बेटे मोहन का फोन आया कि बस का ऐक्सिडैंट हो गया है. इसलिए किसी भी यात्री के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा है. उस ने सूचना दे कर फोन काट दिया था.

‘‘टीवी पर हैल्पलाइन नंबर देख हम लोग किसी तरह से घटनास्थल पर पहुंचे. वहां का दर्दनाक दृश्य देख कनकलता तो बेहोश ही हो गई थी. बस के आधे से अधिक यात्री अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुके थे. कुछ के हाथपैर कटे हुए थे, किसी का मुंह पिचका हुआ था. कोहराम मचा हुआ था. घर वालों की चीत्कार और प्रियजनों का रोनाबिलखना, बहुत ही वीभत्स दृश्य था. बदहवास रिश्तेदार अपने प्रियजनों को खोजने के लिए शवों को पलटपलट कर देख रहे थे. ‘‘बस चूंकि सरकारी थी, इसलिए सरकार ने मुआवजा घोषित किया था. यात्रियों का बीमा भी हुआ था, इसलिए बीमा कंपनी की ओर से भी रुपया मिलना था. घायलों को सरकार 20 हजार रुपए दे रही थी और मृतकों को 20 लाख रुपए देने की घोषणा मंत्री महोदय ने स्वयं की. वे घटनास्थल पर चैक बांटने के लिए आने वाले थे. ‘‘बेटी, मैं लालच में अंधा हो गया था. मैं मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि अम्मा का शव दिख जाए और मुझे 20 लाख रुपए का चैक मिल जाए. तभी एक एनजीओ कार्यकर्ता की आवाज कानों में पड़ी, ‘कुदरत ने कैसा अन्याय किया है हाथपैर दोनों कट गए हैं, आंते भी बाहर निकली पड़ रही हैं.’

‘‘वह अपने साथी से बोला, ‘देखो, जरा यह बूढ़ी अम्मा शायद अपने बेटे की आस में पलकें खोले रखे हैं. काहे अम्मा, अपने लड़के को ढूंढ़ रही हो?’

‘‘उन लोगों की बातें सुन महज जिज्ञासावश मेरी नजरें अम्मा की बेबस आंखों से टकराईं. पलभर को मैं सहम गया था. मुझे अपना 20 लाख रुपए का चैक हाथ से जाता हुआ दिख रहा था. ‘‘गंभीररूप से घायल बेजबान अम्मा की आवाज अवश्य जा चुकी थी परंतु उन की लाचार आंखों ने अपने स्वार्थी बेटे की इस हरकत पर कुदरत से अवश्य मौत मांगी होगी.

‘‘मैं पैसे का लालची और स्वार्थ में अंधा बेटा दूसरी लाश की शिनाख्त कर, उसे अपनी अम्मा बता कर 20 लाख रुपए का चैक ले कर धंधे में लग गया. परंतु तुम्हारी मां कनकलता को कतई कभी विश्वास नहीं हुआ कि अम्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं. उसी समय कनकलता गर्भवती भी हो गई थी. परंतु वह सदमे में थी. मैं अपने धंधे में व्यस्त था. न तो मुझे दिन का होश, न रात का. मुझे कनक को देखने की फुरसत ही नहीं थी. और जब अंबर पैदा हुआ तो मैं ने खूब खुशी मनाई परंतु कनक अभी भी गुमसुम रहती थी. जब 3-4 महीने के बाद अंबर के मैंटली रिटार्डेड होने का पता लगा तो पहली बार कनकलता को हिस्टीरिया का तेज दौरा पड़ा. धीरेधीरे उस की मानसिक स्थिति बिगड़ती गई. दोबारा होने वाले इस सदमे से वह फिर उबर नहीं पाई. वह पूर्णरूप से मानसिक रोगी बन चुकी थी. मजबूरन मुझे उसे कमरे में बंद करना पड़ा.

‘‘स्वरा, मैं धन के ढेर पर बैठा हुआ उल्लू हूं. मैं ने अपनी अम्मा के साथ अन्याय किया. धन के लालच में मैं अंधा हो गया था. धन तो मुझे अथाह मिल गया परंतु जीवन से सबकुछ छिन गया. मां के प्रति किए गए अपराध के अवसाद से पत्नी पागल हो गई और बेटा अपाहिज रह गया. वह जीवित लाश की तरह है. मैं मात्र तुम्हारे सहारे, तेरी उम्मीद पर जीवित हूं. परंतु आज तुम्हारे ऐक्सिडैंट की खबर से मैं अंदर तक कांप उठा. अब भविष्य में मुझ में कुछ भी खोने की शक्ति नहीं है. अम्मा की बेबस आंखें आज भी मुझे डराती हैं. मैं आज तक एक दिन भी चैन की नींद नहीं सो सका हूं. मैं पैसे के लालच में ऐसा अंधा था कि अपनी जीवित मां को भी पहचानने से इनकार कर दिया. मैं अपराधी हूं. मेरा अपराध क्षमायोग्य भी नहीं है. अपने कलेजे पर अपराध के बोझ के भार को उठा कर घूम रहा हूं. ‘‘मेरी बेटी, अब इस के बाद मैं तुम्हें नहीं खोना चाहता. मेरी बच्ची, मैं ने तुम्हारे सामने अपना दिल खोल कर रख दिया है. तुम जो चाहे वह सजा मुझे दो. मेरा सिर तुम्हारे सामने झुका है.’’

केशव सिर झुका कर बच्चों की तरह फूटफूट कर रो पड़े थे. स्वरा किंकर्तव्यविमूढ़ कुछ समय निश्छल खड़ी रही. आज वह पापा की बेबस आंखों को पश्चात्ताप के आंसू बहाते देख रही थी. आखिरकार, वह पापा के गले से लिपट गई. अब 2 जोड़ी बेबस आंखों से आंसू बह रहे थे.

बेबस आंखें- भाग 2: केशव अपनी बेटी से आंखें क्यों नहीं मिला पा रहा था?

अचानक उन की निगाहें घड़ी पर गईं. रात के 9 बज रहे थे. अभी तक स्वरा नहीं आई थी. उन की बेचैनी बढ़ने लगी थी. वह कभी भी देररात तक घर से बाहर नहीं रहती. यदि देर से आना होता था तो वह मैसेज जरूर कर देती थी. वे परेशान हो कर अपने कमरे से बाहर आ कर बरामदे में चहलकदमी करने लगे. तभी उन के फोन की घंटी बज उठी. उस तरफ बेटी स्वरा की घबराई हुई आवाज थी, ‘‘पापा, मेरी गाड़ी का ऐक्सिडैंट…’’ उस के बाद किसी दूसरे आदमी ने फोन ले कर कहा, ‘‘हम लोग इसे अस्पताल ले कर जा रहे हैं. खून बहुत तेजी से बह रहा है, आप तुरंत पहुंचिए.’’ यह खबर सुनते ही केशव अपना होश खो बैठे. यह सब उन के अपने कर्मों का फल था. जब उन के पास पैसा नहीं था तो वे ज्यादा खुश थे. कितने अच्छे दिन थे, उन का छोटा सा परिवार था. वे अपने अतीत में खो गए.

वे थे और थी उन की अम्मा. पिताजी बचपन में ही उन का साथ छोड़ गए थे. अम्मा ने कपड़े सिलसिल कर उन को बड़ा किया. अम्मा ने अपने दम पर उन को पढ़ायालिखाया. उन की नौकरी लगते ही अम्मा को उन के विवाह की सूझी. छोटी उम्र में ही उन की शादी कर दी. पत्नी कनकलता सुंदर और साथ में समझदार भी थी. उन की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी. छोटी सी तनख्वाह में हर समय पैसे की किचकिच से वे परेशान रहते थे. फिर भी जब अम्मा शाम को गरमगरम रोटियां सेंक कर खिलाती थीं तो वे कितनी संतुष्टि महसूस करते थे. परंतु उन की पैसे की हवस ने उन के हाथ से उन की सारी खुशियां छीन लीं. बचपन से ही उन्हें पैसा कमाने की धुन थी. जब वे बहुत छोटे थे तो लौटरी का टिकट खरीदा करते थे. एक बार उन का 1 लाख रुपए का इनाम भी निकला था. दिनरात पैसा कमाने की नित नई तरकीबें उन के दिमाग में घूमती रहती थीं. एक दिन अखबार में उन्होंने एक चलती हुई फैक्टरी के बहुत कम कीमत में बिकने का विज्ञापन पढ़ा. उन्होंने मन ही मन उस फैक्टरी को हर सूरत में खरीदने का निश्चय कर लिया.

स्वरा का जन्म हो चुका था. खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो गया था. उन्होंने फैक्टरी खरीदने के लिए अम्मा को घर बेचने पर मजबूर कर दिया. अम्मा बेटे की जिद और जबरदस्ती देख, सकते में थीं.

वे रोती हुई बोली थीं, ‘लल्ला, हम रहेंगे कहां?’ ‘अम्मा, कुछ दिनों की ही तो बात है, मैं आप को बहुत बड़ी कोठी खरीद कर दूंगा. यह मेरा वादा है आप से.’ अम्मा ने सिसकते हुए बहती आंखों से कागज पर दस्तखत कर दिए थे. लेकिन अपने नालायक बेटे की शक्ल से उस समय उन्हें नफरत हो रही थी. अपनी मजबूरी पर वे रातदिन आंसू बहाती थीं. घर खाली करते समय वे अपने घर को अपनी सूनी, पथराई आंखों से घंटों निहारती रही थीं. घर बिकने के सदमे से अम्मा उबर नहीं पा रही थीं. वे न तो ढंग से खाती थीं, न किसी से बात करती थीं. बस, हर समय चुपचाप आंसू बहाती रहती थीं.

एक दिन पड़ोस की मंगला मौसी,  जोकि अम्मा की बहन जैसी थीं,  उन से मिलने आईं, ‘क्या कर रही हो, बहन?’ आंसू पोंछते हुए अम्मा बोलीं, ‘कुछ नहीं मंगला, इस घर में मेरा बिलकुल भी मन नहीं लग रहा है. मुझे यहां अच्छा नहीं लगता. वहां सब लोग कैसे हैं?’ ‘सब अपनीअपनी दालरोटी में लगे हुए हैं. हां, हम चारधाम की यात्रा पर जा रहे हैं.’

अम्मा लहक कर बोलीं, ‘चारधाम, मेरे तो सब धाम यहीं हैं. अब तो मर कर ही घर से निकलेंगे.’ ‘अपने लोगों की तो सारी जिंदगी बेटाबेटी और चूल्हेचौके में बीत गई. कुछ कभी अपने बारे में भी सोचोगी?’

‘तीर्थयात्रा में जाने का तो बहुत मन है, लेकिन क्या करूं, स्वरा अभी छोटी है. नई जगह है. अकेली बहू को छोड़ कर कैसे जाऊं?’ ‘मैं तो चारधाम यात्रा वाली सरकारी बस से यात्रा पर जा रही हूं. किसी तरह रोतेधोते, हायहाय कर के यह जिंदगी बिताई है. कुछ ज्यादा नहीं कर सकती तो चारधाम की यात्रा ही कर आऊं.’

‘बहुत अच्छा सोचा है, बहन.’

‘मेरी तो आवर्ती जमा की एक स्कीम पूरी हुई थी. उस के 4 हजार रुपए मिले थे. एक हजार रुपए कम पड़ रहे थे तो रंजीत से कहा. उस ने मुंह बनाया लेकिन बहू अच्छी है, उस ने रंजीत से कहसुन कर दिलवा दिया. अब वह मेरे जाने की तैयारी में लगी हुई है.’ अम्मा उत्सुक हो कर बोलीं, ‘कब जाना है?’

‘अभी तो जाने में एक महीना बाकी है. लेकिन बुकिंग तो अभी से करवानी पड़ेगी. जब पूरी सीटें भर जाएंगी तभी तो बस जाएगी.’ तभी बहू कनकलता चाय ले कर अंदर आई तो अम्मा उसे सुनाते हुए बोलीं, मैं भला कैसे जा पाऊंगी, बिटिया छोटी है. केशव को रातदिन अपनी फैक्टरी के सिवा किसी बात से मतलब नहीं है. बहू को छोड़ कर मैं नहीं जाऊंगी.’

‘बहन, तुम भी खूब हो इस उम्र में तीर्थयात्रा पर नहीं जाओगी तो कब जाओगी, जब हाथपैर बेकार हो जाएंगे? बिस्तर पर लेटेलेटे सोचती रहना कि सब मन की मन में ही रह गई. हम ने सब का किया लेकिन अपने लिए कुछ न कर पाए. रुपए तो तुम ने भी जोड़ कर रखे ही होंगे. काहे को किसी के आगे हाथ पसारो. चेन की ओर इशारा करती हुई वह बोली, गले में सोने की जंजीर न पहनोगी तो कुछ बिगड़ थोड़े ही जाएगा. फिर तुम्हारा जैसा मन हो, वैसा करो. लेकिन जीवन में मौके बारबार नहीं मिलते.’ ‘अरे नहीं, तुम ने बहुत अच्छा किया जो मुझे बता दिया. तीर्थयात्रा पर तो जाने का मेरा भी मन कब से है. लेकिन कोई बात नहीं, भविष्य में कभी जाएंगे.’ ड्राइवर की आवाज से केशव की

विचारशृंखला भंग हुई. वे वर्तमान में लौटते ही स्वरा स्वरा पुकारने लगे. इमरजैंसी वार्ड के बाहर स्वरा को चहलकदमी करता देख उन के कलेजे में ठंडक पड़ी. उन्होंने दौड़ कर स्वरा को सीने से लगा लिया. उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

‘‘बेटी, तुम्हें ठीक देख मेरी जान में जान आई. वह तो कह रहा था, खून बहुत बह रहा था.’’

‘‘पापा, राधे काका के सिर में चोट आई है. उन की हालत सीरियस है.’’ वे तेजी से दौड़ कर डाक्टर के पास गए और उस का अच्छा से अच्छा इलाज करने को कहा. राधे की पत्नी और बेटे को सांत्वना देते हुए बोले, ‘‘तुम लोगों को घबराने को जरूरत नहीं है. मैं ने डाक्टर से बात कर ली है. मैं इन का अच्छा से अच्छा इलाज करवाऊंगा. तुम लोगों का घरखर्च के लिए रुपए घर पर पहुंच जाएंगे. इस के सिवा तुम्हें आधी रात को भी कोई जरूरत हो तो निसंकोच मुझे फोन करना.’’

‘‘मालिक, आप की कृपा है,’’ रोती हुई राधे की पत्नी बोली थी. अब केशव स्वरा की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘बेटी, तुम्हें फोन कर के अपनी कुशलता की खबर देनी चाहिए थी कि नहीं? ऐक्सिडैंट शब्द सुनते ही मेरे तो प्राण सूख गए थे.’’

बेबस आंखें- भाग 1: केशव अपनी बेटी से आंखें क्यों नहीं मिला पा रहा था?

‘डियर डैड, गुड मौर्निंग. यह रही आप के लिए ग्रीन टी. आप रेडी हैं मौर्निंग वौक के लिए?’’

‘‘यस, माई डियर डौटर.’’ वह दीवार पर निगाह गड़ाए हुए बोली, ‘‘डैड, यह पेंटिंग कब लगवाई? पहले तो यहां शायद बच्चों वाली कोई पेंटिंग थी.’’

‘‘हां, यह कल ही लगाई है. मैं पिछली बार जब मुंबई गया था तो वहां की आर्ट गैलरी से इसे खरीदा था. क्यों, अच्छी नहीं है क्या?’’

‘बेबस आंखें’ टाइटल मन ही मन पढ़ती हुई वह बोली, ‘‘डैड, आप की कंपनी का ‘लोगो’ भी आंखें है और अब कमरे में इतनी बड़ी पेंटिंग भी खरीद कर लगा ली है. आंखों के साथ कोई खास घटना जुड़ी है क्या?’’ केशव के हाथ जूते के फीते बांधते हुए कांप उठे थे. उन्होंने अपने को संभालते हुए बात बदली, ‘‘स्वरा, तुम विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी हो, अब आगे तुम्हारा क्या इरादा है?’’

‘‘डैड, क्या बात है? आप की तबीयत तो ठीक है न. आज आप के चेहरे पर रोज जैसी ताजगी नहीं दिख रही है. पहले मैं आप का ब्लडप्रैशर चैक करूंगी. उस के बाद घूमने चलेंगे.’’

स्वरा ने डैड का ब्लडप्रैशर चैक किया और बोली, ‘‘ब्लडप्रैशर तो आप का बिलकुल नौर्मल है, फिर क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं, आज तुम्हारी दादी की पुण्यतिथि है, इसलिए उन की याद आ गई.’’

‘‘डैड, आप दादी को बहुत प्यार करते थे?’’

धीमी आवाज में ‘हां’ कहते हुए उन की अंतरात्मा कांप उठी. वे किस मुंह से अपनी बेटी को अपनी सचाई बताएं. उन्होंने फिर बात बदलते हुए कहा, ‘‘तुम ने बताया नहीं कि आगे तुम्हें क्या करना है?’’

‘‘डैड, मैं सोच रही हूं कि आप का औफिस जौइन कर लूं’’ केशव ने प्रसन्नता के अतिरेक में बेटी को गले से लगा लिया, ‘‘मैं बहुत खुश हूं जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली.’’

‘‘डैड, आज कुछ खास है?’’

‘‘हां, सुबह 8 बजे हवन और शांतिपाठ. फिर अनाथाश्रम में बच्चों को भोजन व कपड़े बांटना. दोपहर 2 बजे वृद्धाश्रम के नए भवन का उद्घाटन और वहां पर तुम्हारी दादी की मूर्ति का अनावरण. आई हौस्पिटल में कंपनी की ओर से निशुल्क मोतियाबिंद का औपरेशन शिविर लगवाया गया है. शाम 6 बजे औफिस में दादी की स्मृति में जो बुकलैट बनाई गई है उस का वितरण और सभी कर्मचारियों के लिए बोनस की घोषणा. तुम साथ रहोगी न?’’

‘‘यस पापा, क्यों नहीं? मैं दिनभर आप के साथ रहूंगी.’’

‘‘थैंक्स, बेटा.’’

केशव जिस काम में हाथ लगाते हैं, सोना बरसने लगता है. देशभर में उन का व्यापार फैला हुआ है. 20-22 वर्ष के व्यवसायिक दौर में वे देश की जानीमानी हस्ती बन गए हैं. उन्होंने अपना बिजनैस अपनी मां भगवती देवी के नाम पर भगवती स्टील, भगवती फैब्रिक्स, भगवती रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में फैलाया हुआ है. शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना हाथ आजमाया है. ‘भगवती मैनेजमैंट इंस्टिट्यूट’ देश में उच्च श्रेणी में गिना जाता है. दिनभर के व्यस्त कार्यक्रम के बाद केशव रात में जब बैड पर लेटे तो सोचने लगे कि स्वरा को कंपनी जौइन करने के अवसर को वे किस तरह से भव्य बनाएं. फ्रांस के साथ ब्यूटी प्रोडक्ट्स की एक डीड फाइनल स्टेज पर थी. उन्होंने मन ही मन स्वरा फैशन एवं ब्यूटी प्रोडक्ट्स लौंच करने का निश्चय किया. अब उन का मन हलका हो गया था. उन्होंने नींद की गोली खाई और सो गए.

अगली सुबह औफिस पहुंचते ही उन्होंने अपनी सैक्रेटरी जया को बुलाया, ‘‘मेरे आज के अपौइंटमैंट्स बताओ.’’ ‘‘सर, सुबह 10 बजे औफिस के नए प्रोजैक्ट का डिमौंस्ट्रेशन देखना और उस पर बातचीत करनी है. 2 बजे फ्रैंच डैलिगेशन के साथ नई कंपनी को ले कर अपनी मीटिंग है. डीड फाइनल स्टेज पर है. शाम 7 बजे सरकारी अफसरों के साथ मीटिंग है.’’ वे दिनभर काम में लगे रहे. शाम को 6 बजे वे थका हुआ महसूस करने लगे. उन्होंने डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने हाई ब्लडप्रैशर होने की वजह से उन्हें घर पर आराम करने की सलाह दी. वे मीटिंग कैंसिल कर के उदास व मायूस चेहरे के साथ घर पहुंचे. आज वे समय से पहले घर पहुंच गए थे. आलीशान महल जैसी कोठी में नौकरों की भीड़ तो थी परंतु उन का अपना कहने वाला कोई नहीं था. बेटा अंबर अब 22 वर्ष का हो चुका था. दाढ़ीमूंछें आ गई हैं, परंतु उसे छोटे बच्चों सी हरकत करते देख केशव मन ही मन रो पड़ते हैं. वह कौपीपैंसिल ले कर पापापापा लिखता रहता है. वह सहमासिकुड़ा, बड़े से आलीशान कमरे के एक कोने में बैठा हुआ या तो टीवी देखता रहता है या कौपी में पैन से कुछकुछ लिखता रहता है. जब कभी वे उस के खाने के समय पर आ जाते हैं तो डाइनिंग टेबल पर उन को देख कर मुसकरा कर वह खुशी जाहिर करता है.

जिस बेटे के पैदा होने पर उन्होंने घरघर लड्डू बांटे थे उसी बेटे को अपनी आंखों से देख कर वे पलपल मरते हैं और जिस तकलीफदेह पीड़ा से वे गुजरते हैं, यह उन का दिल ही जानता है. दुनिया की दृष्टि में वे सफलतम व्यक्ति हैं परंतु सबकुछ होते हुए भी वे अंदर से हर क्षण आंसू बहाते हैं. पत्नी कनकलता और बेटे अंबर के लिए उन्होंने क्या नहीं किया. परंतु उन के हाथ कुछ नहीं लगा. मांस के लोथड़े जैसे बेटे को गोद में ले कर कनकलता सदमे की शिकार हो गई. एक ओर पत्नी को पड़ने वाले लंबेलंबे दौरे, दूसरी ओर मैंटली रिटार्डेड बच्चा और साथ में बढ़ता हुआ बिजनैस. गरीबी की मार को झेले हुए केशव ने पैसे को प्राथमिकता देते हुए अपने बिजनैस पर ध्यान केंद्रित किया. लेकिन आज अथाह धन होते हुए भी संसार में वे अपने को अकेला महसूस कर रहे थे. बेटी स्वरा ही उन की जिंदगी थी. उस को देखते ही उन्हें पत्नी कनकलता का चेहरा याद आ जाता. वह हूबहू अपनी मां पर गई थी.

फादर्स डे स्पेशल: मेरे पापा -4

पापा के हार्ट की बाईपास सर्जरी हुई थी. सर्जरी के 5 दिनों बाद आईसीयू से बाहर आने पर डाक्टर ने उन्हें थोड़ा टहलाने की सलाह दी थी. मैं ने पापा से कहा , ‘‘पापा, उठिए थोड़ा टहलते हैं.’’ उन्होंने नजरें उठा कर कहा, ‘‘तुम ने छुट्टी ले रखी होगी? तुम लोगों को तो छुट्टी मुश्किल से मिलती है.’’

इस पर मैं ने कहा, ‘पर पापा तो स्पैसिफिक इंपौर्टैंट एसेट होते हैं.’ मुझे और मेरे पास खड़े मेरे पति अमित की ओर देख कर पापा मुसकरा दिए, उन की आंखों में आंसू आ गए. मैं और मेरी बहन श्रुती, हम 2 बेटियां ही हैं पापा की. पापा हम बहनों के साथ बचपन से ही बड़े फ्रैंडली रहे हैं.अति विशिष्ट पहचान वाले, व्यस्त विद्युत अभियंता होने के बावजूद समय मिलते ही पापा हमारे साथ बैडमिंटन खेलते, कैरम और लूडो खेलते, बेईमानी करते और हम से झूठमूठ का झगड़ते.

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दिल तो बच्चा है जी

कभी बोलते, ‘चलो, बाहर डिनर कर के आते हैं’ या ‘चलो, आइसक्रीम खा कर आते हैं.’ कभी किचन में जा कर बोलते, ‘चलो, आज मम्मी की किचन से छुट्टी, हम कुकिंग करते हैं.’ पढ़ाई में कभी कम अंक आते या खेल में हम चोट लगा कर आते तो बोलते, ‘ये सब तो जिंदगी के फंडे हैं, बच्चों. इस से घबराते नहीं. नए जोश से काम शुरू करते हैं, धैर्य नहीं खोते.’ पापा की इन बातों का हम बहनों पर दिल की गहराई तक असर होता और हम आत्मविश्वास  से भरभर जाते. हमारे महान पापा, उन्होंने हमें हर क्षेत्र में और हमेशा उत्कृष्ट रहने की प्रेरणा दी. उन की सीख का यह नतीजा रहा कि मैं बीसीए करने के बाद सीडीएस उर्त्तीण कर के आज एयरफोर्स में अपने पति के साथ विंग कमाडंर हूं और श्रुती, एमबीए कर के अपने पति के साथ फाइनैंस सलाहकार के रूप में कार्यरत है.

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फादर्स डे स्पेशल: मेरे पापा

– रुची खरे

*मेरे पिताजी उस वक्त डिप्टी सैक्रेटरी, रेवेन्यू थे. हम सब बहनें स्कूल की बस से स्कूल आयाजाया करती थीं. एक दिन स्कूलबस न आने के कारण हम लोगों ने पापा से कहा कि सरकारी गाड़ी द्वारा हम लोगों को स्कूल भिजवा दें. हमारी बात सुन कर उन्होंने साफ मना कर दिया कि वे ऐसा नहीं करेंगे. ऐसा करने का अर्थ होगा, एक गलत प्रवृत्ति को आगे की पीढि़यों तक ले जाना. उन का मानना था कि बेटा तो केवल अपने ही कुल का नाम रोशन करता है लेकिन बेटियां 2 कुलों का नाम रोशन करती हैं. अपने पापा की यह सीख हमें आज भी याद

 

मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से हो सकती है फोन नेक की समस्या

लेखकडा. अरविंद कुलकर्णी

पूरा देश कोरोना महामारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहा है, ऐसे में देशवासियों के पास समय काटने के लिए केवल फोन या टीवी ही विकल्प के तौर पर बचते हैं. लेकिन उन्हें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि गलत मुद्रा में बैठ कर ज्यादा देर तक फोन चलाने से गरदन और कंधे की समस्याएं बढ़ती हैं. इन समस्याओं से बचने के लिए सावधानी बरतनी जरूरी है.

फोन को चलाने के लिए हमें अपनी गरदन को 60-70  डिगरी में झुकाना पड़ता है, जिस के कारण गरदन पर लगभग 25 किलो के वजन का दबाव पड़ता है. और गरदन पर अत्यधिक दबाव पड़ने के कारण रीढ़ का ढांचा समय से पहले बिगड़ने लगता है.

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फोन नेक यानी गरदन, पीठ और कंधे की मांसपेशियों में अकड़न, दर्द और सुन्नपन एक वैश्विक महामारी बन चुका है. इस बीमारी से हर आयुवर्ग, खासकर युवावर्ग, के लाखों लोग प्रभावित हैं. आज जिस तरह से हम दिनरात मोबाइल तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं और टेबलेट, कंप्यूटर जैसे स्मार्ट गैजेट्स का बिना रुके पूरेपूरे दिन इस्तेमाल कर रहे हैं, उस का विपरित प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ रहा है. इसे ही फोन नेक की समस्या कहते हैं. फोन नेक गरदन में होने वाले उस दर्द और समस्या को कहते हैं जो लगातार और लंबे समय तक सैलफोन या दूसरे ताररहित गैजेट्स के इस्तेमाल के कारण होता है.

लौकडाउन के दौरान गरदन पीठ के ऊपरी हिस्से में दर्द के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. ऐसे कुल मरीजों में 50 फीसदी मरीज युवा हैं जिन की उम्र 15-25 वर्ष के बीच है. इस बीमारी को ले कर सब से बड़ी चिंता युवा और बढ़ते बच्चों की है क्योंकि अभी उन की बढ़ती उम्र है और इस उम्र में इलैक्ट्रौनिक उपकरणों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से उन की सर्वाइकल स्पाइन यानी गरदन की हड्डियों को स्थायी नुकसान पहुंच सकता है. नतीजतन, उन्हें अपना पूरा जीवन गरदनदर्द के साथ बिताना पड़ सकता है.

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लौकडाउन के अंतराल के अलावा, एक हालिया रिपोर्ट यह बताती है कि 18-59  वर्ष की उम्र की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या रोजाना लगभग 12 घंटे फोन चलाने में व्यस्त रहती है. फोन चलाने वाले लोगों के अलावा लैपटौप या कंप्यूटर पर काम करने वाले लोग इस समस्या की लिस्ट में अगले नंबर पर आते हैं. इस तकनीक के बेतहाशा इस्तेमाल करने से इंसान के शरीर को काफी नुकसान पहुंच रहा है.

गैजेट्स के इस्तेमाल को ले कर सतर्कता बरती जाए, तो फोन नेक की परेशानी से बचा जा सकता है. जाहिर है, लौकडाउन में इन गैजेट्स का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ गया है. ऐसे में गरदन और कंधे की समस्याएं बढ़नी ही थीं.

फोन नेक के लक्षण :

इस बीमारी के होने पर रोगी सुबह उठते ही पीठ के ऊपरी हिस्से में भयानक दर्द और मांसपेशियों में तनाव की शिकायत करता है. इस बीमारी के होने पर गरदन का सामान्य झुकाव आगे की तरफ होने के बजाय पीछे की तरफ हो जाता है. इस तरह गरदन की हड्डियों की प्रकृति में बदलाव आने से सिर, गरदन, कंधे और पीठ में दर्द बना रहता है.

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फोन चलाते वक्त ठुड्डी को छाती पर रखने से रीढ़ की हड्डी और ब्रेन स्टेम में खिंचाव आता है. इस से सांस लेने में मुश्किल, दिल की धड़कन और रक्तचाप में गड़बड़ी होती है. इस वजह से हमारे अंदर एंडोर्फिन और सेरोटोनिन जैसे हैप्पी हार्मोन्स का स्राव बंद हो सकता है. ऐसे में व्यक्ति सोने के बाद भी हमेशा चिंता और तनावग्रस्त महसूस करता है. हालांकि, एक स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली के साथ इन समस्याओं से बचा जा सकता है.

एक स्वस्थ रीढ़ के लिए समय पर निदान, रोज़ एक्सरसाइज़ करना, सही तरीके से उठनाबैठना, सही तरीके से झुकना और शरीर को सीधा रखना आदि जरूरी है. अधिकतर बच्चे और युवा औनलाइन गेम्स के दीवाने हैं, जिस के कारण वे सारासारा दिन फोन पर लगे रहते हैं. इस से उन की गरदन, हाथ, जोड़ों और आंखों के साथ पूरा स्वास्थ्य प्रभावित होता है.

फोन नेक से बचाव के उपाय :

अपने सैलफोन को जितना हो सके अपनी आंखों के सामने रखने का प्रयास करें. ऐसा ही लैपटौप और टेबलेट के इस्तेमाल करते समय करें. अगर इन गैजेट्स का इस्तेमाल करते हुए आप को अपने जोड़ों और मांसपेशियों में तनाव महसूस हो रहा हो तो अपनी शारीरिक स्थिति में बदलाव करें.

सैलफोन का इस्तेमाल करते हुए अपने सिर को नीचे की ओर न झुकाएं. पूरे दिन अपने सिर को झुका कर नीचे देखने से बचें.

फोन पर टेक्सटिंग करने के बजाय कौल पर बात करने की कोशिश करें. इस से आप की मुद्रा में झुकाव नहीं आएगा.

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फोन चलाते वक्त बीचबीच में ब्रेक लें. इस दौरान गरदन पर हलकी मसाज करें और रीढ़ को स्ट्रेच करें.

आप चाहे घर में हों या औफिस में, कंप्यूटर पर काम करते हुए थोड़थोड़े अंतराल पर 10 से 15 मिनट का ब्रेक अवश्य लें.

·नियमित टहलें (लौकडाउन के दौरान घर में ही टहलें) और कुछ स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें ताकि आप की गरदन और कंधे की मांसपेशियों को आराम मिल सके व उन का तनाव दूर हो.

·  वर्कआउट करते समय अपने अंदरूनी और पीठ की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करें.

·  नियमित पौष्टिक आहार लें और भरपूर पानी पिएं ताकि आप के शरीर में पानी की कमी न हो और आप की मांसपेशियां सुचारु रूप से कार्य करती रहें.

इस तरह, पूरा दिन आप अपनी शारीरिक मुद्रा का ध्यान रखें. ड्राइविंग करते हुए या लैपटौप चलाते हुए सिर आगे की तरफ न झुकाएं.  इस के साथ उन सभी गतिविधियों पर ध्यान दें जब आप सिर नीचे झुका कर काम करते हैं. सिर झुकाने से गरदन में तनाव बढ़ सकता है. सो, बहुत ज़रूरी न हो तो सिर को सीधा या उठा कर ही रखें.

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