मसूर एक ऐसी दलहनी फसल है, जिस की खेती भारत के ज्यादातर राज्यों में की जाती है. मसूर फसल तैयार होने में भी 130 से ले कर 140 दिन लेती है. ऐसे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के वैज्ञानिकों ने मसूर की नई प्रजाति विकसित की है जो कम दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. धान के बाद खाली खेती में मसूर की बोआई अक्तूबर माह के मध्य के बाद किसानों को करनी चाहिए.

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो राज्य उपसमिति की बैठक में प्रथम किस्म छत्तीसगढ़ मसूर-1 को प्रदेश के लिए अनुमोदित किया गया है. यह किस्म 88-95 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है, जिस की औसत उपज 14 क्विंटल है.

इस किस्म के पुष्प हलके बैंगनी रंग के होते हैं. इस के 100 दानों का औसत वजन 3.5 ग्राम होता है. छत्तीसगढ़ मसूर-1 किस्म, छत्तीसगढ़ में प्रचलित किस्म जेएल-3 की अपेक्षा 25 फीसदी अधिक उपज देती है.

मसूर की खेती के लिए जमीन को पहले से तैयार कर लें. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 2-3 जुताइयां देशी हल से कर के पाटा लगा कर एकसार कर लें.

मसूर की खेती के लिए बीजोपचार जरूरी होता है. इस के लिए 10 किलोग्राम बीज को 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर के बोना चाहिए.

मसूर में सिंचाई की कम जरूरत पड़ती है लेकिन इस के बाद भी इस की पहली सिंचाई फूल आने से पहले करनी चाहिए. धान के खेतों में बोई गई मसूर की फसल में सिंचाई फली बनने के समय करनी चाहिए.

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