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‘‘सिर्फ उसे ही नहीं, कल्लू की बेटी को भी फांसी देने का फैसला पंचायत सुना चुकी है. मैं उस में कोई फेरबदल कर समाज को गलत संदेश नहीं देना चाहता.’’ इतना कह कर दादाजी अंदर चले गए औैर वह आदमी वहीं सिर पटकने लगा. नौकर लोग उसे घसीट कर बाहर ले जाने लगे.

पूरा परिवार मूकदर्शक बना पूरी घटना देख रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस आदमी के लड़के ने किया क्या है जो वह आदमी, दादाजी से अपने पुत्र का जीवनदान मांग रहा है. तभी बूआजी का स्वर गूंजा, ‘‘लड़कियो, रुक क्यों गईं, अरे भई, नाचोगाओ. ऐसा मौका बारबार नहीं आता. ’’

 

इतनी संवेदनहीनता, ऐसा आचरण वह भी गांव के लोगों का, जिन के  बारे में वह सदा से यही सुनती आई है कि गांव में एक व्यक्ति का दुख सारे गांव का दुख होता है. उसे लग रहा था कैसे हैं इस गांव के लोग, कैसा है इस गांव का कानून जो एक प्रेमी युगल को फांसी पर लटकाने का आदेश देता है. इस को रोकने का प्रयास करना तो दूर, कोई व्यक्ति इस के विरुद्ध आवाज भी नहीं उठाता मानो फांसी देना सामान्य बात हो.

जब उस से रहा नहीं गया तब वह नील का हाथ पकड़ कर उसे अपने कमरे में ले आई. इस पूरे घर में एक वही थी जो उस के प्रश्न का उत्तर दे सकती थी. कमरे में पहुंच कर छवि ने उस से प्रश्न किया तब नील ने उस का आशय समझ कर उस का समाधान करने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘दीदी, गांव में हम सब एक परिवार की तरह रहते हैं, उस आदमी के बेटे ने इस गांव की ही एक लड़की से प्रेम किया तथा उस के साथ विवाह करना चाहता था. उन का गोत्र  एक है. एक ही गोत्र में विवाह करना हमारे समाज में वर्जित है. उसे पता था कि उन के प्यार को गांव वालों की मंजूरी कभी नहीं मिल सकती. सो, उन दोनों ने भागने की योजना बनाई. इस का पता गांव वालों को लग गया. पंचायत ने दोनों को मौत की सजा सुना दी. अगर दादाजी चाहते तो वे बच सकते थे पर दादाजी गांव के रीतिरिवाजों के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं.’’

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