हरीश बाबू लेटेलेटे सोचने लगे, अच्छा होता अगर वे अनाथालय से कोई बच्चा गोद ले लेते. कम से कम एक बच्चे का तो जीवन सुधर जाता. करीबी संबंधी को गोद ले कर उन्हें क्या मिला? सुमंत तब तक उन का दुलारा रहा जब तक उसे उन की जरूरत थी. जैसे ही अपने पैरों पर खड़ा हुआ, अपने मांबाप का हो गया. आज की तारीख में उस को मेरी जरूरत नहीं. तभी तो बेगानों जैसा व्यवहार करने लगा. सोचतेसोचते कब उन की आंख लग गई, उन्हें पता ही न चला. अगली सुबह एक ठोस नतीजे के साथ फोन कर के उन्होंने अपने वकील को बुलाया.
‘‘क्या गोदनामा बदल सकता है?’’ एकाएक उन के फैसले से वकील को भी आश्चर्य हुआ.
‘‘यह तो नहीं हो सकता? पर आप ऐसा चाहते क्यों है?’’ वकील ने प्रश्न किया. हरीश बाबू ने सारा वाकेआ बयां कर दिया.
‘‘आप ही बताइए सुमंत को मैं ने अपना बेटा माना, बदले में उस ने मुझे क्या समझा. वह अच्छी तरह जानता है कि मैं ने उस के लिए क्याकुछ नहीं किया. तिस पर उस ने मेरी उपेक्षा की. क्यों? या तो उसे मेरी अब जरूरत नहीं या फिर वह यह सोच कर बैठा है कि भावनात्मक रूप से जुड़े होने के नाते मैं उस के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लूंगा?’’
कुछ सोच कर वकील बोला, ‘‘आप चाहेंगे तो वसीयत बदल सकते हैं और सुमंत को कुछ भी न दें.’’
‘‘आप वसीयत बदल दीजिए, ताकि उसे सबक मिले. इस तरह मुझे भी अपनी गलती सुधारने का मौका मिलेगा.’’
वकील ने वही किया जो हरीश बाबू चाहते थे. यानी वसीयत बदलवा दी. यह खबर किसी को कानोंकान न लगी. नटवर जब भी आता, यही रट लगाता कि आप गोदनामा बदल दें. मैं आप का सगा भाई हूं, जब तक जीवित रहूंगा, आप की सेवा करता रहूंगा. आप की संपत्ति गैर को मिले, यह बड़े शर्म की बात होगी. हरीश बाबू उस का मन टटोलने की नीयत से बोले, ‘‘क्या तुम लालच में मेरी सेवा करोगे?’’
‘‘नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है,’’ नटवर सकपकाया.
‘‘मैं सिर्फ आप को राय दे रहा हूं. खुदगर्ज को देने से क्या फायदा? सुधीर को दे कर आप ने देख लिया.’’
‘‘तुम मुझे खून के रिश्ते का वास्ता दे रहे हो. मान लिया जाए कि मैं तुम्हें फूटी कौड़ी भी न दूं तो भी क्या तुम मेरी ऐसी ही देखभाल करते रहोगे?’’ नटवर ने बेमन से हामी भर तो दी मगर हरीश बाबू उसे अच्छी तरह से जानते थे कि उस के मन में क्या है?
एक रोज हरीश बाबू अकेले पैंशन ले कर लौट रहे थे. रिकशे से गिर पड़े. टांग की हड्डी टूट गई. किसी तरह कुछ हमदर्द लोगों की मदद से अस्पताल ले जाए गए. जहां उन के प्लास्टर लगा. एक महीने से ज्यादा तक वे किसी काम के नहीं रहे. सुधीर को खबर दी तो भी वह नहीं आया, ‘सुमंत को दिक्कत होगी,’ बहाना बना दिया. सुमंत तो कहीं भी खापी सकता था. पर वे कैसे रहेंगे, वह भी इस हालत में? उस ने यह नहीं सोचा. नौकरानी ही उन्हें डंडे के सहारे उठातीबैठाती, उन की देखभाल करती व खाना बना कर देती. बुढ़ापे का शरीर एक बार झटका तो उबर न सका. एक सुबह खुदगर्ज दुनिया में उन्होंने अंतिम सांस ली. उस समय उन के पास कोई नहीं था.
मौत की खबर लगी तो नटवर भी भागेभागे आया. उस समय सगे में वही था. हरीश बाबू का एक और साला किशन भी आ चुका था. नटवर भाई का क्रियाकर्म करने का इंतजाम करने लगा. उसे ऐसा करते देख किशन बोला, ‘‘आप को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं. उन का दत्तक पुत्र सुमंत बेंगलुरु से चल चुका है.’’
‘‘बेटा, कैसा बेटा, उन के कोई औलाद नहीं थी,’’ नटवर बोला.
‘‘आप अच्छी तरह जानते हैं कि उन्होंने सुमंत को गोद लिया था. कानूनन वही उन का बेटा है,’’ किशन को क्रोध आया.
‘‘मैं किसी सुमंत को नहीं जानता. मैं उन का क्रियाकर्म करूंगा क्योंकि वे मेरे सगे भाई थे. उन पर हमारा हक है. इस से हमें कोई नहीं रोक सकता,’’ नटवर हरीश बाबू के शरीर पर से कपड़ा हटाने लगा.
‘‘रुक जाइए,’’ किशन बिगड़ा, ‘‘अपनी हद में रहिए वरना मुझे पुलिस बुलानी पड़ेगी.’’
‘‘पुलिस, वह क्या करेगी? हम ने इन की हत्या तो की नहीं, जो लाश चोरी से जलाने जा रहे रहे हैं. भाई का क्रियाकर्म भाई नहीं करेगा, तो कौन करेगा?’’ नटवर ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया. जब नटवर नहीं माना तो किशन ने थाने में जा कर शिकायत की. पुलिस मामले की तहकीकात में जुट गई.
‘‘उन का कोई बेटा नहीं था,’’ नटवर बोला.
‘‘क्या यह सच है?’’ थानेदार ने किशन से पूछा.
‘‘हां, पर उन्होंने अपने साले के बेटे सुमंत को बाकायदा गोद लिया था. गोदनामा न्यायालय में रजिस्टर्ड है.’’
‘‘क्या आप मुझे वे कागजात दिखा सकते हैं?’’
‘‘क्यों नहीं? परंतु आप को 1-2 दिन इंतजार करना होगा. कागज उन्हीं के पास हैं.’’ थानेदार को किशन की बात में सचाई नजर आई. लाश का क्रियाकर्म उन के आने तक रुक गया.
प्लेन से आने में सुधीर, सुनीता व सुमंत को ज्यादा समय नहीं लगा. नटवर तो जानता ही था कि हरीश बाबू ने सुमंत को गोद लिया था. मगर जिस तरह से उस ने जल्दबाजी की वह सब की समझ से परे था. अंतिम संस्कार करने के बाद जब सब लौटे तो सुनीता हरीश बाबू के फोटो के सामने टेसुए बहाते हुए बोली, ‘‘कितना तो कहा, बेंगलुरु चलिए पर नहीं गए. कहने लगे इस शहर से न जाने कितनी यादें जुड़ी हैं. बेगाने शहर में एक पल जी नहीं सकूंगा.’’
तेरहवीं के बाद सुधीर वकील के पास गया. वह मकान पर जल्द से जल्द सुमंत का नाम चढ़वा देना चाहता था ताकि भविष्य में मकान बेच कर अच्छी रकम प्राप्त की जा सके.
‘‘वसीयत में सुमंत के नाम कुछ नहीं है,’’ वकील बोला.
‘‘यह आप क्या कह रहे हैं. गोदनामा तो बाकायदा रजिस्टर्ड है,’’ सुधीर को पैरों तले जमीन सिखकती नजर आई.
‘‘हरीश बाबू अपने जीतेजी अपनी संपत्ति के बारे में कुछ भी कर सकते थे,’’ वकील ने कहा.
‘‘मैं नहीं मान सकता. जरूर उन की मानसिक दशा ठीक नहीं होगी. किसी ने उन्हें बरगलाया है,’’ सुधीर की त्योरियां चढ़ गईं.
‘‘आप जो समझें.’’
‘‘फिर यह मकान किस का होगा?’’ सुधीर ने सवाल किया.
‘‘उन के भाई के बेटों का,’’ वकील कुछ छिपा रहा था जो सुधीर समझ न सका. नटवर को पता चला कि हरीश बाबू ने वसीयत में उस का नाम लिखा है तो मकान पर अपना मालिकाना हक जमाने चला आया.
‘‘मैं मकान खाली नहीं करूंगा. वे मेरे पिता थे,’’ सुमंत तैश में बोला.
‘‘करना तो पड़ेगा ही, क्योंकि वसीयत में तुम्हारा हक रद्द हो चुका है. सुना नहीं वकील ने क्या कहा,’’ नटवर ने कहा कि अब यह मकान मेरे बेटों का होगा. जाहिर सी बात है कि मुझ से ज्यादा करीबी कौन होगा? नटवर के चेहरे पर विजय की मुसकान बिखर गई.
‘‘अगर ऐसा है तो मैं इसे अदालत में चुनौती दूंगा. उन्होंने यह सब अपने मन से नहीं किया होगा,’’ सुमंत के तर्क को नटवर ने नहीं माना.
‘‘क्या इस वसीयत को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?’’ सुधीर ने वकील से पूछा.
‘‘क्या सिद्ध करना चाहेंगे?’’
‘‘यही कि उन की मानसिक दशा ठीक नहीं थी. लिहाजा, यह वसीयत गैरकानूनी है.’’
उन की नई वसीयत में बाकायदा 2 प्रतिष्ठित लोगों के हस्ताक्षर हैं जिस पर साफसाफ लिखा है कि मैं पूरे होशोहवास में अपनी वसीयत बदल रहा हूं.
सुधीर हताश था. वकील के चेहरे पर स्मित की हलकी रेखा खिंच गई. अब क्या किया जा सकता है? सुधीर इस उधेड़बुन में था. वह भारी कदमों से वकील के चैंबर से अपने घर जाने के लिए निकला ही था तभी वकील ने कहा, ‘‘जनाब, आप ने क्या सोचा था कि बिना जिम्मेदारी निभाए करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा कर लेंगे?’’
‘‘इसी बात का अफसोस है.’’
‘‘अब अफसोस करने से क्या फायदा. वैसे, हरीश बाबू ने एक ट्रस्ट बना दिया है. न सुमंत को दिया है न भाई के बेटों को. उन्होंने इस मकान को गरीबों की शिक्षा के लिए स्कूल बनवाने के लिए दे दिया है,’’ वकील के कथन पर सुधीर का चेहरा देखने लायक था.
सुनीता ने सुना तो लगा वह बेहोश हो जाएगी. उसे विश्वास था कि किन्हीं भी परिस्थितियों में हरीश बाबू गोदनामा नहीं बदलेंगे, इसलिए वह उन के प्रति लापरवाह हो गई थी. उसी का फल उसे अब मिला. अब सिवा पछताने के, उन के पास कुछ नहीं रहा. हरीश बाबू ने सही वसीयत कर के लालची बिलौटों को सही जवाब दे दिया था.