सौजन्या- सत्यकथा

नाजायज संबंध बनाए रखने के लिए चाहे कितनी भी सतर्कता बरती जाए, एक न एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. इस के बाद भी इन संबंधों को जारी रखने पर एक अपराध जन्म ले लेता है. काश! इस बात को ममता और संजीव जान लेते तो...

उस रोज बेचू अपने निर्धारित समय से पहले ही घर के लिए निकल पड़ा था. अभी वह अपनी गली के नुक्कड़ पर

ही पहुंचा था कि उस ने अपने घर की तरफ से संजीव यादव उर्फ उधारी को आते हुए देखा. संजीव को देख कर बेचू का माथा ठनका. उस के दिलोदिमाग पर शक काबिज हो चुका था. वह तेज कदमों से घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस की पत्नी ममता उसे देखते हुए थोड़ी हड़बड़ाई फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ, आज कैसे जल्दी आ गए?’’

‘‘क्यों, जल्दी आने पर कोई पाबंदी है क्या?’’ बेचू ने पत्नी के अस्तव्यस्त कपड़ों को गौर से देखते हुए तंज किया.

‘‘लगता है आज तुम फिर लड़ाई के मूड में हो. मैं ने पूछ कर कोई गुनाह कर दिया क्या?’’ पत्नी बोली.

‘‘पहले यह बता कि संजीव यहां क्यों आया था?’’ बेचू ने पत्नी ममता से सीधे सवाल किया.

‘‘कौन संजीव?’’ ममता के चेहरे पर हैरानी उभरी.

‘‘वही संजीव, जो अभीअभी यहां से बाहर निकला है. ढोंग क्यों करती है, साफसाफ बता.’’ बेचू लगभग चीखने वाले अंदाज में बोला.

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शौहर के तेवर देख कर एक पल के लिए ममता सकपका गई, लेकिन जल्द ही संभल कर बोली, ‘‘तुम्हारे दिमाग में तो लगता है शक बैठ गया है. हर वक्त उल्टा ही सोचते रहते हो. मैं कह रही हूं न कि घर में कोई नहीं आया था.’’

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