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मेरी प्रतिभा के अनुरूप मुझे काम और शोहरत नहीं मिली, दया शंकर पांडे

पिछले 11 वर्षों से “सब टीवी” पर प्रसारित हो रहे सफलतम सीरियल “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” के क्रिएटिव कंसलटेंट और सीरियल में इंस्पेक्टर चालू पांडे के किरदार को निभाते हुए शोहरत बटोर रहे अभिनेता दयाशंकर पांडे किसी परिचय के मोहताज नहीं है. लोग उन्हें फिल्म “लगान” के  गोली, “मकड़ी” के स्कूल टीचर, ” गंगाजल” के  सब इंस्पेक्टर मगनीराम,” मकबूल” के मास्टर जी ,”अपहरण” के दयाशंकर, ” एक अजनबी”के कृपा, ” राजनीति” के रामचरित्र, “जंजीर”के इंस्पेक्टर  प्रेम ,”जाने क्यों दें यारों ” के आकाश दुबे के रूप में बेहतर तरीके से पहचानते हैं. दया शंकर पांडे ने पिछले 28 वर्षों के दौरान सिर्फ फिल्मों में ही नहीं ,बल्कि टीवी सीरियल और थिएटर पर भी अपने अभिनय से लोगों का मन मोहते आए हैं. वह एक पात्रीय नाटक “पॉपकॉर्न विथ हरिशंकर परसाई”के माध्यम से भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे हैं .

इन दिनों वह 7 अगस्त को ओटीईटी प्लेटफार्म “शेमारू बॉक्स ऑफिस” पर आ रही फिल्मकार मनीष वात्सल्य की फिल्म “स्कॉटलैंड” को लेकर  काफी उत्साहित हैं. इस फिल्म में हरिराम पांडे के किरदार को निभाना उनके लिए भावनात्मक रूप से काफी चुनौतीपूर्ण रहा.

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प्रस्तुत है दया शंकर पांडे से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश:

4 माह बाद  ‘तारक मेहता का उल्टा चश्माकी शूटिंग करने के अनुभव?

-जी हां !काफी लंबे समय बाद पुनः  कैमरे का सामना किया .देखिए, डर का माहौल तो है. मगर सेट पर सुरक्षा के काफी उपाय किए गए हैं. लाइट मैन से लेकर कलाकार सभी के मन में भय है. पर अब काम तो करना ही है .धीरे-धीरे यह डर भी खत्म हो जाएगा. लोग खान-पान पर, इम्यूनिटी बूस्टर पर ध्यान दे रहे हैं.सेट पर सैनिटाइजर का उपयोग कर रहे हैं . सच कहूं तो बहुत दिनों से टैलेंट दबा हुआ था, तो 4 माह बाद वाले दिन सिर्फ कैमरे के सामने पहुंचते ही भड़ास निकल गयी. ओवरएक्टिंग भी कर गया.

 लॉकडाउन के 4 माह कैसे बीते?

– कुछ दिन किताबें पढ़ी, फिल्में देखी, कुछ पूजा-पाठ किया। अप्रैल, मई-जून इन माह में ऐसा लग रहा था कि मौत का जहाज खड़ा है और लोग लाइन में खड़े हैं. ऐसे समय में मुझे फिल्म ‘हिटलर’ के कुछ दृश्य भी याद आए. सभी कतार में खड़े हैं और इंतजार कर रहे हैं कि हम कब मरेंगे .तो इन  चार माह के दौरान हमें भी लग रहा था कि हम नौका पर बैठे हुए हैं. तो हम सभी मौत के भय से ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे.

 

कैरियर के टर्निंग प्वाइंट क्या रहे हैं?

– मेरे कैरियर  का पहला टर्निंग प्वाइंट तो आमीर खान के साथ फिल्म “गुलाम” का मिलना ही रहा.  दूसरा टर्निंग प्वाइंट ‘लगान’ थी.  वैसे तो भारतीय सिनेमा जगत के लिए भी  यह फिल्म भी एक टर्निंग प्वाइंट थी. इस फिल्म के बाद निर्माता-निर्देशक से मेरा मिलना आसान हो गया.  वरना फिल्मकारों से मिलना आसान नहीं होता था. उन दिनों मोबाइल , व्हाट्सएप, इंटरनेट, ईमेल, सोशल मीडिया , नही था, जिनके उपयोग से हम अपनी प्रतिभा के बारे में लोगों को बता सकते.  ‘लगान’ के बाद जैसे ही मैं लोगों से कहता कि फिल्म  ‘लगान’ वाला कलाकार दयाशंकर पांडे हूं, तो लोग तुरंत मिलने के लिए बुला लेते.जबकि ‘लगान’ से पहले काफी सवाल पूछे जाते थे. पर अब सवालों की बौछार कम हो गयी. ‘लगान’ के बाद लोगों ने हमें अच्छा कलाकार मानना शुरू कर दिया था.  फिर ‘गंगाजल’, ‘स्वदेश’ जैसी फिल्में मिली.बड़े बड़े निर्देशकों को मेरी प्रतिभा पर यकीन हुआ. यह एक बड़ा बदलाव रहा. इसके बाद 2008 में टीवी  सीरियल” महिमा शनिदेव की” भी आया. यह ऐसा किरदार रहा, जिसने कलाकार व इंसान के तौर पर काफी संतुष्ट दी.  सीरियल का फॉर्मेट ऐसा है कि हर एपिसोड में मुझे अलग किरदार निभाने को मिल रहा था.  यह मेरे लिए चुनौती थी. आज जब ‘दंगल’ पर इसका पुनः  प्रसारण हो रहा है,  तो लोग हमें फिर याद कर रहे हैं. अब जब लोग फोन पर या  सोशल मीडिया पर कहते हैं कि उन्होंने मेरा सीरियल ‘महिमा शनिदेव’ देखा, तो सुनकर खुशी होती है.  हमें यह अहसास होता है कि हमारी मेहनत बेकार नहीं गयी.  इस तरह से यह कैरियर का बड़ा टर्निंग प्वाइंट था. फिर सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में मेरा चालू पांडे का किरदार भी टर्निंग प्वाइंट रहा. मैं शुरू में इस सीरियल के साथ क्रिएटिव कंसलटेंट के रूप से जुड़ा था. पर उम्मीद नहीं थी कि इसे इतनी सफलता मिलेगी.  तो कई चीजें उम्मीद से ज्यादा अच्छी हो जाती हैं. जब हम किसी फिल्म में अपनी तरफ से मेहनत करते हैं और वह असफल हो जाती है, तो दुख होता है कि मेरी मेहनत को लोगों ने तवज्जो नहीं दी.

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मैं एक नाटक किया था “पॉपकॉर्न विथ हरिशंकर परसाई”. फिलहाल यह बंद पड़ा हुआ है .यह हरिशंकर परसाई का लिखा हुआ एक पात्रीय नाटक है. एक घंटा 20 मिनट तक स्टेज  पर मैं यह परफॉर्म करता था. लोग तारीफ करते थे. मगर कलाकार की भड़ास होती है कि मेरा काम ज्यादा से ज्यादा लोग देखें. एक घंटा 20 मिनट बिना किसी इंटरवल के अकेले परफॉर्म करना ,लोगों से प्रशंसा भी मिली. पर दुख होता था कि उसे जितने दर्शक मिलने चाहिए, नहीं मिल रहे थे .तो कुछ खुशियां हैं, कुछ दुख भी हैं. कुछ  असंतुष्टि भी है तो कुछ संतुष्टि भी है. यदि कलाकार संतुष्ट हो जाए,तो मान ले कि वह समय बिताने के लिए अभिनय कर रहा था. अन्यथा कलाकार कभी पूर्णरूपेण संतुष्ट नहीं होता.

आपने काफी अच्छा काम किया पर आपको नहीं लगता कि जिस मुकाम पर पहुंचना चाहिए था, वह मुकाम नहीं मिल पाया?

– जब पत्रकार मुझसे यह सवाल करते हैं, तो मुझे अंदर से खुशी होती है कि यह जानकर कि मेरे अभिनय की सराहना करने वाले लोग हैं . पर मैं स्वयं आज तक नहीं समझ पाया कि ऐसा क्यों हुआ? कभी-कभी मेरी बेटी से उसके मित्र जब मेरे अभिनय की तारीफ करते हैं, तो लगता है कि एक कॉन्प्लीमेंट मिला.पर धीरे-धीरे अहसास होने लगा है कि मेरी प्रतिभा के अनुरूप मुझे काम और शोहरत नहीं मिली. इसका जवाब मैं  किससे मांगू ?यह खुद मुझे समझ में नहीं आता. यदि कलाकारों का अपना कंजूमर कोर्ट होता, तो मैं उससे यह सवाल पूछता. मुझे खुशी है कि आप भी मुझे काबिल समझते हैं कि मुझे जिस मुकाम पर होना चाहिए था ,वहां पर नहीं पहुंच पाया. दुख भी होता है पर मेरे वश में कुछ नहीं है .बॉलीवुड में आमीर खान, आशुतोष गोवारीकर सहित सभी बड़े लोग मेरे दोस्त हैं, मगर उनका मेरे प्रति नजरिया क्या है ,यह समझ में नहीं आता. इस फिल्म इंडस्ट्री का रिवाज है कि ‘दिल मिले या ना मिले , हाथ मिलाते रहिए.’ इसलिए यह समझना मुश्किल है कि कौन मित्र है और कौन हमारा भला चाहता है. सच कहूं तो मैं ईश्वर के भरोसे ही चल रहा हूं.

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आपने कुछ धार्मिक सीरियलों मैं अभिनय किया, तो ऐसे में इमेज में बनने का डर नहीं सताया?

मैं डरता नहीं हूं. मैंने हमेशा अलग-अलग तरह के किरदार ही निभाए हैं. मैंने कभी अपने आप को पर्दे पर दोहराया नहीं है. ‘लगान’ में गोली था. फिर ‘मेला’ में अलग. ‘स्वदेश’ में अलग किरदार किया. ‘गंगाजल’ में पुलिस अफसर का किरदार किया.इससे पहले वेब सीरीज ‘रक्तांचल’ में एक करप्ट नेता का किरदार निभाया. मुझे अपनी तारीफ करने में शर्म आती है, पर मैं हमेशा नेचुरल अभिनय करता हूं. लोग मुझे जमीन से जुड़ा हुआ कलाकार मानते हैं, यह मेरा स्वभाव भी है. मैं हर किरदार को एक यकीन के साथ करता हूं.

 

आपने कहा कि आपको खुद की प्रशंसा करने में शर्म आती है ,मगर बॉलीवुड में हर किसी को अपनी ढोल खुद बजानी पड़ती है?

– शायद…अब मुझे भी इस बात का अहसास हो रहा है.पर पता नहीं क्यों मैंने स्वयं कभी अपने ढोल पीटने की कोशिश नहीं की .जब लोग मुझसे सवाल करते हैं, तो अच्छा लगता है.मुझे यह बात खुशी देती है कि लोगों को मेरे अभिनय की कद्र है .पर अब तक मेरे कैरियर में अचानक ही सब कुछ होता रहा है, इसलिए मुझे उम्मीद है कि आगे भी कुछ अच्छा हो जाएगा. ‘गंगाजल’ की शूटिंग शुरू होने से 3 दिन पहले मेरा चयन हुआ था. ‘महिमा शनिदेव’ के लिए 4 दिन पहले मुझे याद किया गया. तो ईश्वर मेरे साथ हमेशा ही अच्छा करता रहा है, आगे भी कुछ अच्छा करेगा. सीरियल” तारक मेहता का उल्टा चश्मा” से अच्छी शोहरत मिल रही है .इसके अलावा 7 अगस्त को “शेमारू बॉक्स ऑफिस” पर फिल्म “स्कॉटलैंड” रिलीज होगी, इसमें भी मेरे किरदार को पसंद किया जाएगा ,ऐसी उम्मीद है.

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फिल्म स्कॉटलैंडको लेकर क्या कहेंगे?

– मनीष वात्सल्य निर्देशित फिल्म  ‘स्कॉटलैंड’ 7अगस्त को ‘शेमारू बॉक्स ऑफिस’ पर रिलीज हो रही है. यस सत्य घटनाक्रम पर आधारित फिल्म है. इसकी  कहानी के केंद्र मैं एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार की घटनाएं हैं. इसमें मैंने हरी राम पांडे नामक ऐसे इंसान का किरदार निभाया है, जिसकी बेटी के साथ कई बार बलात्कार हो चुके है और एक दिन बेटी अपने साथ हुए बलात्कार की घटनाओं के बारे में अपने पिता को बताती हैं. फिर यह अपराधियों को सजा दिलाने के लिए कमर कस लेता है.

 

पिछले 25 वर्ष के दौरान फिल्म व टीवी इंडस्ट्री में जो बदलाव आए हैं उन्हें किस तरह से देखते हैं?

– कुछ बदलाव तो अच्छे हुए.मगर कुछ बदलाव खटक रहे हैं. नई पीढ़ी के निर्देशक हम कलाकारों पर यकीन नहीं करते. जबकि हम उन पर यकीन कर लेते हैं. उदाहरण के तौर पर हम उनका काम देखे बिना उनके साथ काम करने को तैयार हो जाते हैं, पर वह हमारी परीक्षा लेते हैं. उनकी कोई गारंटी नहीं कि वह सत्यजीत रे हैं .जबकि वह हमेशा उम्मीद रखते हैं कि हम अमिताभ बच्चन है या नहीं?  हम पिछले 28 वर्ष से अपनी प्रतिभा को दिखाया व साबित कर चुके हैं. फिर भी हम परीक्षा देने को तैयार हैं ,पर आप हमसे वादा करो कि आप भी उसी योग्य साबित हो.नए निर्देशकों को हम पर यकीन करना चाहिए.

हिंदी थिएटर के हालात को लेकर आपकी क्या सोच है?

– हिंदी थिएटर के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं .इसकी व्यवहारिक वजह है. हिंदी के दर्शकों के लिए मनोरंजन के साधन बंटे हुए हैं.वह मनोरंजन के लिए फिल्में, टीवी सीरियल, वेब सीरीज, नाटक आदि देख रहे हैं. ऐसे में उनकी प्राथमिकता फिल्में हो जाती हैं .जबकि गुजराती मराठी भाषा में भी फिल्में बन रही हैं. मगर वह थिएटर को ज्यादा महत्व देते हैं. फिल्म व थिएटर के दर्शकों की मानसिकता में अंतर भी होता है. मेरा अनुभव यही कहता है कि दर्शक बंट चुका है. अब बोरीवली में रह रहा दर्शक जुहू के पृथ्वी थिएटर में हिंदी नाटक देखने जाने से पहले 10 बार सोचता है.

आपके शौक क्या है?

– फिल्में देखना, किताबें पढ़ना, घूमना पसंद है. मैं यात्रा करते समय स्थानीय लोगों से मिलता हूं ,उनसे बातें करता हूं, उनकी जीवनशैली, सुख-दुख के बारे में उनसे सुनता हूं. आसाम, अरुणाचल सहित कई राज्यों में गया हूं. अनजान जगह जाकर अनजान लोगों से बातें करने का मुझे शौक है .मुझे अनजान लोगों से बातें करना अच्छा लगता है.

निर्माता या निर्देशक बनने की इच्छा नहीं होती?

– मुझे निर्देशक बनना है.  काफी समय पहले असित मोदी के सीरियल ‘ये दुनिया है रंगीन’ का मैंने व धर्मपाल ने निर्देशन किया था. असित मोदी ,मैं और धर्मपाल एक ही कॉलेज से हैं .पर ‘लगान’ हिट होते ही मुझे अभिनय के अवसर मिल गए ,तो धर्मपाल के जिम्मे छोड़ कर मैं अभिनय में व्यस्त हो गया था. ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’  का मैं क्रिएटिव कंसलटेंट क्रिएटिव डायरेक्टर हूं .

अब तो लघु फिल्मेंवेब सीरीज कई अवसर हैं?

-लघु फिल्मों की जो दुनिया है,  वह व्हाट्सएप और तारीफों की दुनिया है.पर जल्द कुछ करने का इरादा है. मैं ऐसा कुछ निर्देशित करना चाहूंगा ,जिसमें समाज के लिए कुछ संदेश होगा. ‘स्वदेश’ मेरे दिल के करीब की फिल्म है.

शांति स्वरूप त्रिपाठी

कपिल शर्मा शो: पत्नी अर्चना की खिंचाई करते नजर आए परमीत, शो में कह दी ये बात

लॉकडाउन कोरोना वायरस के चलते सभी सीरियल्स और रियलिटी शो कि शूटिंग बंद हो गई थी, लेकिन कुछ वक्त  पहले ही इन्हें शूटिंग करने की इजाज्त दी गई है. वहीं कपिल शर्मा शो के फैंस को इस शो का बेसब्री से इंतजार था कि कब नया एपिसोड आएगा.

हालांकि सोनी टीवी ने यह निर्णय लिया था लॉकडाउन के दौरान की कपिल शर्मा शो को बंद न करके पुराने शो को प्रसारित किया जाए. इस दौरान कई पुराने शो को चैनल पर प्रसारित किया गया दर्शकों ने भी शो को खूब मजा लिया.

वहीं एक शो में यह भी दिखाया गया कि अभिनेत्री अर्चना पूरन सिंह और उनके पति परमीत के साथ  बेहद ही शानदार अंदाज में शो में एंट्री करते नजर आएं. उन दोनों को शो में देखकर दर्शक बेहद ही खुश नजर आ रहे थें.

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वहीं अर्चना के पति परमीत ने कोई भी चांस नहीं छोड़ी अर्चना की खिंचाई करने के लिए पति-पत्नी शो में मस्ती करते नजर आ रहे थें.

अर्चना और परमीत शो में ब्लैक रंग के ड्रेस में नजर आएं वही शो के दौरान परमीत ने पत्नी कि खिंचाइ करते हुए कहा कि अर्चना अभी तक शो के 6,7 जजों को खा चुकी है और आज ऑडियंस को भी खा गई. इस पर कपिल शर्मा और बाकी दर्शक जोर से हंसते नजर आएं.

 

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बता दें कि इस शो में अभी तक कई दिग्गज कलाकार आ चुके हैं. उन्होंने इस शो में आकर अपनी फिल्म के प्रमोशन के साथ-साथ कपिल शर्मा के साथ मस्ती भी किया है.

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वहीं कई बार इस शो के कलाकार भी अपनी फैमली के साथ शो में आ चुके हैं. इस दौरान भी शो की टीआरपी में कभी कोई कमी नहीं आई है.

एलोवेरा की खेती 

यह एक बहुवर्षीय मांसल पौधा होता है, जो पूरे देश में पाया जाता है. इस के पत्ते मांसल व कांटेदार होते हैं, जिन से लिसलिसा पदार्थ निकलता है. इस की पत्तियों की लंबाई 1-2 फुट तक होती है. अलगअलग इलाकों में इसे अलगअलग नामों से जाना जाता है, जैसे घृतकुमारी, ग्वारपाठा, गृहकन्या, घीकुंवार, एलोवेरा, दरख्ते तीव्र, सब्बारत वगैरह.

अपने औषधीय गुण के कारण एलोवेरा काफी मशहूर है. बेहद गुणकारी होने की वजह से हर उम्र के लोगों को इस के इस्तेमाल की नसीहत दी जाती है. वर्तमान में तमाम सौंदर्य प्रसाधन कंपनियां इस का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन की चीजें बनाने में कर रही हैं.

एलोवेरा में तमाम तरह के विटामिन पाए जाते हैं, जिन में विटामिन ए, सी, ई, फोलिक एसिड, विटामिन बी 1, बी 2, बी 3, बी 6 वगैरह खास हैं.

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इस के अलावा एलोवेरा में कई तरह के खनिज लवण भी पाए जाते हैं, जिन में कैल्शियम, मैगनीशियम, जिंक, क्रोमियम, सैलोनियम, सोडियम, आयरन, पोटैशियम व कौपर खास हैं.

एलोवेरा में काफी मात्रा में अमीनो एसिड व फैटी एसिड भी पाए जाते हैं, जो इनसान के शरीर के लिए जरूरी हैं.

यह मौसम के बदलाव से होने वाली कमियां दूर करने के अलावा प्रतिरोधक कूवत बढ़ाता है.

हाजमा खराब होने से तमाम बीमारियां हो जाती हैं. एलोवेरा में पाया जाने वाला एलोटा मैटाबोलिक क्रिया को बढ़ा कर पाचन कूवत बढ़ाता है, जिस से सेहत में सुधार होता है.

एलोवेरा पित्ताशय की क्रिया को काबू करता है, जिस से आंत से संबंधित बीमारियां काबू में रहती हैं. यह शरीर में जरूरी अम्ल की मात्रा को बनाए रखने में मददगार है. इस से शरीर से निकलने वाले तमाम हार्मोन नियमित होते हैं.

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शरीर को स्वस्थ रखने में लाल रक्त कणिकाओं की बहुत अहमियत है. एलोवेरा के इस्तेमाल से लाल रक्त कणिकाओं की गति बढ़ जाती है, जिस से शरीर स्वस्थ रहता है.

एलोवेरा में पाया जाने वाला एलोटा शरीर से मरी हुई कोशिकाओं को बाहर निकालने और नई कोशिकाओं के बनने में भी अहम भूमिका निभाता है. यही वजह है कि आज सौंदर्य प्रसाधन के क्षेत्र में एलोटा का इस्तेमाल बहुतायत से किया जाता है.

एलोटा शरीर की प्रतिरोधक कूवत को बढ़ा कर उसे बीमारियों से लड़ने लायक बनाता है. एलोटा शरीर की त्वचा में होने वाले किसी भी तरह के नुकसान को तेजी से पूरा करता है. जलने या त्वचा से संबंधित संक्रमण होने पर एलोवेरा कारगर साबित होता है.

एलोवेरा का इस्तेमाल वर्तमान में एंटी बायोटिक, एंटी माइक्रोवाइल, जर्मीसाइड, एंटी बैक्टोरियल, एंटी सैप्टिक, एंटी फंगल व एंटी वायरल दवा के रूप में कामयाबी के साथ किया जा रहा है. यह जोड़ों के दर्द में भी लाभदायक है. इस में मौजूद विटामिन सी शरीर में वसा की मात्रा को सही करता है, जिस से वजन कम होता है.

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एलोवेरा के पत्तों में बारबेलोइन नामक तत्त्व पाया जाता है, जो हलके पीले रंग का ग्लूकोसाइक होता है. यह पानी में आसानी से घुल जाता है. इस के अलावा इस में इलो इमोडिन गैलिक एसिड व सुगंधित तेल भी पाया जाता है, जिस का इस्तेमाल औषधीय सामग्रियों को तैयार करने में किया जाता है.

प्रमुख प्रजातियां

एलोवेरा भारत में पाए जाने के साथसाथ अफ्रीका व अरब देशों में भी पाया जाता है. इस की खास प्रजातियां इस तरह हैं:

एलोवेरा : यह सामान्य प्रजाति है व पूरे देश में पाई जाती है.

एलोइंडिका : यह छोटी प्रजाति है, जो दक्षिण भारत में चेन्नई में खासतौर से पाई

जाती है.

एलो रूपेसेंस : यह प्रजाति बंगाल के आसपास पाई जाती है. इस पर नारंगी व लाल रंग के फूल आते हैं. यह प्रजाति पाचन तंत्र को ठीक रखने में खास भूमिका निभाती है.

दवाओं के तौर पर इस्तेमाल

एलोवेरा के पत्तों से जूस निकाल कर आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण किया जाता है, जिन का इस्तेमाल पेट की बीमारियों में किया जाता है.

इस के अलावा कई तरह के भस्म व तेल तैयार करने में भी एलोवेरा का इस्तेमाल किया जा रहा है.

एलोवेरा से तैयार दवाएं : चंद्रोदय रस, पूर्ण चंद्ररस, मुक्ता पंचामृत, उन्माद गंजाकुष रस, कुमार कल्याण रस, व्रदरांतक रस, शिला सिंदूर व स्वर्ण सिंदूर.

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एलोवेरा का इस्तेमाल एंटी औक्सीडेंट के रूप में सफलतापूर्वक किया जाता है. इस के अलावा चर्म रोग, दांत का दर्द, चोट लगने, आग से जलने, कफ विकार, खांसी व बवासीर वगैरह में भी एलोवेरा का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है.

सौंदर्य प्रसाधन में इस्तेमाल : एलोवेरा विटामिन सी से भरपूर होता है. इस वजह से इस का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन के क्षेत्र में काफी किया जाता है. यह शरीर में मृत कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होता है.

एलोवेरा की खेती

इस की खेती सभी तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है. इस के लिए ऐसी भूमि की आवश्यकता होती है, जिस में पानी निकलने का सही इंतजाम हो और पानी भराव की स्थिति न रहती हो. इस की जड़ें ज्यादा गहराई तक नहीं जाती हैं, इसलिए इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती.

जमीन की तैयारी : एलोवेरा के पौधों की बढ़वार और विकास के लिए मिट्टी

का हलका होना जरूरी है. इस के लिए गरमियों में एक गहरी जुताई और 2 हलकी जुताई करनी चाहिए और बारिश में पौधों की रोपाई कर देनी चाहिए.

पौधों की रोपाई : एलोवेरा की खेती के लिए छोटेछोटे सकर्स की रोपाई जुलाईअगस्त महीने में 3-3 फुट की दूरी पर करते हैं. एलोवेरा के पौधों की रोपाई में 3 फुट की दूरी रखने  से उत्पाद के रूप में प्राप्त पौधों में पल्प ज्यादा बनता है, जिस से उत्पादन अधिक होता है.

कटाई : एलोवेरा का पौधा तकरीबन

1 साल बाद कटाई के लायक हो जाता है. तैयार पौधों को जड़ के ऊपर से तेज धारदार हंसिए से काटना चाहिए, ताकि पत्तियां महफूज रहें व जैल को नुकसान न हो.

एलोवेरा के पौधों के बीच आसानी से नेपाली सतावर की खेती की जा सकती है, जिस से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है. उल्लेखनीय है कि नेपाली सतावर भी सालभर में तैयार हो जाता है. इस के कंद जमीन के नीचे होते हैं, जिस से खाली जमीन का सही इस्तेमाल हो जाता है.

खरपतवार की  रोकथाम : एलोवेरा की खेती में अनुकूल परिस्थितियां पा कर खरपतवार पैदा हो जाते हैं, इसलिए उन की निराईगुड़ाई कर उन्हें खेत से बाहर निकाल देना चाहिए. शुरू में 15 दिन पर और बाद में 1 महीने में निराईगुड़ाई करनी चाहिए, जिस से पौधों का विकास अच्छी तरह हो सके.

पैदावार : एलोवेरा के पौधों से प्रति एकड़ तकरीबन 90 हजार किलोग्राम पत्तियां हर साल तैयार होती हैं. इन का बाजार मूल्य

4-5 रुपए प्रति किलोग्राम है. इस तरह प्रति हेक्टेयर लगभग साढ़े 3 से साढ़े 4 लाख रुपए तक की पैदावार हो जाती है.

इस के अलावा साथ में लगाए जाने वाले सतावर से भी प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल सूखी जडें़ हासिल होती हैं, जिस से ढाई से 3 लाख रुपए की सालाना अतिरिक्त आय होती है.

गलती-भाग 3: मालती ने माला का जीवन कैसे खराब किया था?

‘‘कैसी मूर्खतापूर्ण बातें कर रहे हो तुम, स्वरूप?’’

‘‘मैं गंभीरतापूर्वक कह रहा हूं.’’

‘‘स्वरूप, मालती पर तुम्हारी यह आसक्ति भावनात्मक अपरिपक्वता है. तुम एक अवसर का अनुचित लाभ उठा रहे हो. पर जिसे तुम लाभ समझ रहे हो, उस से दोहरी हानि हो रही है. एक तरफ तुम अपनी अविवाहिता साली की जिंदगी बरबाद कर रहे हो, दूसरी तरफ तुम अपने सुखी वैवाहिक जीवन को नष्ट करने पर तुले हो. स्वरूप, मेरा विश्वास करो, इस खेल में हानि ही हानि है, लाभ कुछ नहीं.’’

‘‘तुम्हें मेरे व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.’’

‘‘स्वरूप, मैं तुम्हारा अभिन्न मित्र हूं. आज से नहीं, पिछले 20 वर्षों से. मैं अपनी मित्रता की सौगंध खा कर कहता हूं कि तुम जो कुछ कर रहे हो, उस के दूरगामी दुष्परिणाम निकलेंगे.’’

‘‘देखा जाएगा.’’

‘‘तब कहीं बहुत देर न हो जाए.’’

स्वरूप के मुख पर कड़वाहट के चिह्न उभर आए और वह अपना रजिस्टर उठाता हुआ बोला, ‘‘इस समय तो मुझे क्लास में जाने के लिए देर हो रही है. क्षमा करना.’’ मैं ठगा सा, स्वरूप को स्टाफरूम के दरवाजे से बाहर जाते देखता रह गया. अगले दिन मेरी सिर्फ एक क्लास थी. मैं सवा 11 बजे खाली हो गया. स्वरूप शाम 3 बजे तक व्यस्त था. यों उस के स्वतंत्र या व्यस्त होने से मुझे कोई अंतर नहीं पड़ने वाला था. मैं पिछले दिन के कटु अनुभव के संदर्भ में स्वरूप से भेंट करने से कतराता रहा. जिस व्यक्ति की विचारधारा एकदम एकांगी हो जाए और जो संकीर्ण पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो, उस से विचारविनिमय करना मूर्खता ही है. पर पिछली 2 रातों से मैं सो नहीं पाया था. माला और स्वरूप के सुखी जीवन और मधुर संबंधों के बिखरने की विभीषिका मुझे कहीं बहुत गहराई तक कचोट गई थी. मैं बड़ी उत्कंठा से माला भाभी के मेरठ से लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था.

‘शायद लौट आई हों?’ मैं ने सोचा और कालेज से मैं सीधा स्वरूप के घर पहुंच गया. मुझे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि माला भाभी मेरठ से नहीं लौटी थीं, परंतु मालती घर पर ही मिल गई.

‘‘आप, इस समय? जीजाजी कहां हैं?’’ मुझे देखते ही मालती सकपका गई.

‘‘मैं तो माला भाभीजी से मिलने आया था.’’

‘‘वे तो मेरठ से अभी वापस नहीं लौटी हैं.’’

‘‘वह तो मैं देख रहा हूं,’’ मैं ने अनमने स्वर में कहा और घूर कर मालती को देखने लगा. मेरी पारखी दृष्टि ने मालती का सूक्ष्म निरीक्षण कर लिया. माला भाभी द्वारा किया हुआ रहस्योद्घाटन बिलकुल सत्य था. 8 मास पूर्व की मालती और अब की मालती में कितना अंतर आ गया है. पहले वह कितनी दुबलीपतली थी पर अब उस का शरीर कैसा गदरा गया है. मेरी जमी दृष्टि के प्रभाव से मालती कुछ असुविधा सी महसूस कर रही थी. वह सकपका कर दोबारा बोली, ‘‘जीजाजी कहां हैं?’’

‘‘कालेज में. पर तुम यहां घर पर क्या कर रही हो?’’

‘‘शुक्रवार को मेरी छुट्टी होती है.’’ फिर हम दोनों के बीच मौन छा गया.

मैं मालती को देख रहा था और मेरे अंतर में घोर वितृष्णा उभरती चली आ रही थी. मालती यों ही अपनी सकपकाहट छिपाने के लिए किताबों को उलटपुलट रही थी. फिर कुछ क्षण ठहर कर बोली, ‘‘दीदी आएंगी तो मैं आप को सूचित कर दूंगी.’’

‘‘तुम चाहती हो मैं चला जाऊं?’’

‘‘मैं ने ऐसा तो नहीं कहा.’’

‘‘मालती, क्या मैं तुम से कुछ बातें कर सकता हूं?’’

‘‘किस विषय में?’’ मालती ने मुड़ कर पूछा. मैं ने गौर से देखा, उस का मुख उतरा हुआ था.

‘‘तुम्हारी दीदी के बारे में.’’

‘‘मैं जानती हूं, आप मुझ से क्या बातें करना चाहते हैं पर इस में मेरा कोई दोष नहीं है.’’

मालती के साहस तथा स्पष्टवादिता से मैं प्रभावित हो गया. उत्साहित हो कर मैं ने कहा, ‘‘देखो मालती, मैं किसी को दोष देना नहीं चाहता और न ही मेरा इरादा किसी को अपराधी सिद्ध करना है. मैं तो एक जटिल समस्या को किसी प्रकार सुलझाना चाहता हूं.’’ ‘‘इस में सारा दोष दीदी का ही है. वे अपने पति को बांध कर रख पाने में असफल रही हैं. ईर्ष्यालु बन, झगड़ा कर, वे जीजाजी को कभी नहीं बांध पाएंगी.’’

‘‘यह बात छोड़ो. क्या तुम्हें इस स्थिति की भयावहता का आभास है? स्वरूप ने माला को छोड़ने की धमकी दी है.’’ मैं ने कहा.

‘‘यह सब दीदी की मूर्खता का परिणाम है.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं है कि स्वरूप तुम्हारे प्रेम में अंधा हो कर…’’

‘‘यदि जीजाजी मुझ पर आसक्त हो जाएं तो इस में मैं क्या कर सकती हूं?’’

‘‘मालती, तुम्हारे कारण ही तुम्हारी बड़ी बहन के सुखी संसार में अलगाव का विस्फोट हुआ है. जिस ने तुम पर इतना उपकार किया, तुम ने उस के साथ विश्वासघात किया है.’’

‘‘यह गलत है,’’ मालती का स्वर ऊंचा हो गया.

‘‘मालती, एक बात याद रखना, कब्रों के ऊपर महल नहीं बना करते. जो पुरुष 12 वर्ष के पश्चात अपनी पत्नी को तुम्हारी खातिर छोड़ सकता है वह किसी अन्य महिला की खातिर बाद में तुम्हें भी छोड़ सकता है.’’ मेरे इस संयत स्वर को सुन कर मालती जैसे विस्मित रह गई. उस के मुख का रंग बदलने लगा. वह ठगी सी एकटक मेरी ओर देखती हुई यंत्रवत बोली, ‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘तुम अपनी दीदी और जीजाजी की जिंदगी से निकल जाओ.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘विवाह कर लो.’’

‘‘पर जीजाजी का दिल टूट जाएगा.’’

‘‘यह बेकार की बात है.’’

‘‘वे मेरे विवाह के पक्ष में नहीं हैं.’’

‘‘मालती, स्वरूप अपने स्वार्थ के कारण अंधा हो रहा है. उस की यह विवेकहीनता 3 जिंदगियों को नष्ट कर देगी.’’ इस से पूर्व कि मालती कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करती, ड्राइंगरूम का खुला दरवाजा जोर से भड़भड़ाया. मैं ने पलट कर देखा, मेरे लिए वहां एक सुखद आश्चर्य उपस्थित था. माला भाभी आ गई थीं. उन के साथ एक प्रौढ़ावस्था के सज्जन थे. उन की आंखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगा हुआ था. जिस के पीछे उन की आग्नेय आंखें मालती को घूर रही थीं. माला भाभी ने मुझे देखा तो खुशी से खिल गईं. उन्होंने अपने पापा से मेरा परिचय कराया. हम लोग बैठ गए. शायद माला भाभी ने पापा को सारी स्थिति से अवगत करा दिया था. तभी वे उपेक्षा तथा घृणा की दृष्टि से मालती को देख रहे थे.

‘‘कहिए भाभीजी, कुछ काम बना?’’ मैं ने पहल की.

‘‘तुम ने तो, भैया, मेरी नाव को मझधार में डूबने से बचा लिया,’’ माला भाभी ने उत्साहित हो कर कहा.

‘‘मालती…’’ पापा का कड़कदार स्वर सुन कर मालती ने गरदन उठाई.

‘‘मैं ने सबकुछ सुन लिया है. नीचता की हद कर दी तुम ने. अब तक जिस थाली में खा रही थी, उसी में छेद करती रहीं. खैर, अब तुम इस काबिल नहीं कि इस घर में एक पल भी रहो. अपना सामान बांधो, हमें शाम की बस से मेरठ लौटना है.’’

‘‘पर मेरा बीटेक?’’ मालती बुदबुदाई.

‘‘भाड़ में गया तुम्हारा बीटेक.’’

‘‘एक महीने की ही तो बात है, कर लेने दीजिए न,’’ मैं ने सुझाव दिया.

‘‘अजी, नहीं, राकेशजी, अब मैं पलभर को भी इसे यहां नहीं छोड़ूंगा. मैं ने इस के लिए लड़का तलाश कर लिया है. अपने रामचरण वकील हैं, उन का लड़का है. एलएलबी कर के उस ने प्रैक्टिस शुरू कर दी है. लड़की उन लोगों की देखी हुई है. उन्हें रिश्ता मंजूर है. मैं तो शादी की तारीख भी तय कर आया हूं. इसी फरवरी में शादी होनी है.’’

‘‘पापा,’’ मालती मिनमिनाई.

‘‘पापावापा करने से काम नहीं चलेगा. सामान बांधो. यह मेरा अंतिम फैसला है.’’

‘‘पर जीजाजी… उन से तो…’’

‘‘स्वरूप से मुझे कुछ नहीं पूछना. परामर्श उस से लेना चाहिए जो तटस्थ और स्वार्थहीन हो.’’ मैं ने देखा, माला भाभी के मुख पर विजय की चमक बिखरी हुई थी. माला भाभी का अनुरोध मैं टाल नहीं पाया. मुझे भी मालती के विवाह में मेरठ जाना पड़ा. संक्षिप्त तथा सादे समारोह के बाद लड़की विदा हो रही थी. यों तो परिवार के हर सदस्य की आंखें अश्रुपूर्ण थीं पर स्वरूप फूटफूट कर रो रहा था. लगता था जैसे उस का कलेजा फटा जा रहा हो. मैं भरी बदली सा खड़ा था. मेरे बाद स्वरूप, फिर माला भाभी और अंत में भाभी की तीसरी और सब से छोटी बहन रूपा खड़ी थी. मालती अपने पति के साथ चली गई. मेरे अंतर से जैसे भारी बोझ उतर गया. पर स्वरूप मुंह लटकाए खड़ा था. इस सब के लिए वह मुझे ही दोषी ठहरा रहा था. पर मुझे पता था कि समय बीतते सब सहज हो जाएगा. मेरा मन स्वरूप को छेड़ने का किया. मै ने कहा, ‘‘यार, क्यों दुखी होता है. मालती गई तो क्या हुआ, तेरी दूसरी साली रूपा भी तो है. उसे साथ ले जा.’’

मेरे इस तीखे व्यंग्य से स्वरूप तिलमिला कर रह गया. पर वह बोला कुछ नहीं. उस ने आग्नेय दृष्टि से मुझे देखा और लज्जित हो गरदन झुका ली.

उधर से माला भाभी ने तेज स्वर में कहा, ‘‘न बाबा, मैं दोबारा ऐसी गलती नहीं करूंगी.’’ मैं मुसकरा कर माला भाभी की ओर देखता रह गया.

 

 

गलती-भाग 2: मालती ने माला का जीवन कैसे खराब किया था?

‘‘तुम्हारी कोई साली नहीं है, इसलिए तुम्हें इस रिश्ते के सुख का क्या पता? साली का जीजा पर और जीजा का साली पर पूरा हक होता है.’’ उस समय माला भाभी मुसकरा रही थीं और मैं एक अनाम आशंका से कांप रहा था. उन लोगों ने मेरी इच्छा के विरुद्ध एक निर्णय ले लिया था. इन बातों को 8 महीने हो गए. मैं अपने हलके से विरोध को लगभग भूल गया. इस का कारण था कि वे तीनों खूब हंसीखुशी रह रहे थे. उन के बीच कहीं कोई दरार उत्पन्न नहीं हुई थी. फिर आज अचानक यह क्या हो गया? संबंधों की मजबूत नींव अचानक चरमरा कैसे गई?

मैं ने दृष्टि उठाई और माला भाभी की ओर देखा. वे दोनों हाथों से मुंह ढांपे सुबक रही थीं.

‘‘भाभी, तो फिर क्या मेरी आशंका सच निकली?’’

‘‘कुछ पूछिए मत, भाईसाहब,’’ माला भाभी बुदबुदाईं.

‘‘भाभी, आप मुझे गैर समझती हैं?’’

‘‘नहीं, भैया.’’

‘‘फिर खुल कर बातें कीजिए. कुछ भी मत छिपाइए. जटिल समस्याओं की भीड़ से घिरा इंसान बहुत अकेला हो जाता है. इस भीड़ से बचने के लिए उसे किसी के सहारे की जरूरत होती है.’’ मेरा भावनात्मक सहारा पा कर माला भाभी कुछ आश्वस्त सी हो गईं. उन्होंने साड़ी के पल्लू से अपने मुंह तथा आंखों को पोंछा और फिर संयत स्वर में बोलीं, ‘‘भाईसाहब, आज से लगभग 8 महीने पूर्व मैं ने एक बहुत बड़ी गलती की थी.’’

‘‘गलती? मैं तो कहता हूं कि आप ने तब स्वयं अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारी थी.’’

‘‘मैं स्वीकार करती हूं कि मुझे मालती को मेरठ से ला कर अपने घर में नहीं रखना चाहिए था. उस समय भावावेश में आ कर मैं यह सब सोच नहीं पाई. पर अब, अब तो पानी सिर से निकल गया है.’’

‘‘पर यह हुआ कैसे?’’

‘‘शुरूशुरू में तो सालीजीजा में हंसीमजाक चलता रहता था. मैं समझी थी कि यह तो इन रिश्तों की स्वाभाविक नोकझोंक है. पर बाद में मुझे पता चला. मैं ने स्वयं अपनी आंखों से देखा कि स्वरूप तथा मालती हद से भी गुजर गए हैं. तब मैं चेत गई. मैं ने विरोध करना शुरू किया तो…’’ कहतेकहते माला भाभी का गला भर आया.

‘‘भाभीजी, पुरुष की विविधता की चाह को पूरा करने का अवसर भी आप ने ही तो प्रदान किया था.’’

‘‘मैं मानती हूं. पर मुझे मालती से ऐसी निर्लज्जता तथा नीचता की कदापि आशा नहीं थी.’’

‘‘ऐसी स्थिति में इन शब्दों का कोई अस्तित्व नहीं होता.’’ ‘‘यह मेरी समझ में अब आया है, भैया. अब तो ये लोग खूब खुल कर खेल रहे हैं. आएदिन स्वरूप से मेरा झगड़ा होता रहता है. आज उस ने साफसाफ कह भी दिया.’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि मैं स्वतंत्र हूं. बच्चों को ले कर जहां चाहूं, जा सकती हूं. वह मुझे मालती की खातिर त्यागने का निर्णय कर चुका है.’’ मेरा अंतर कसक गया.

‘‘भाईसाहब, मैं ने भी फैसला कर लिया है कि अब इस घर में नहीं रहूंगी. मैं पढ़ीलिखी हूं, कहीं नौकरी कर लूंगी, पर अपनी आंखों के आगे यह दुराचार देखने की मुझ में सामर्थ्य नहीं है.’’

‘‘भाभीजी, मैं आप से सहमत नहीं हूं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘आप ने जो कुछ सोचा है, वह कायरता तथा पलायनवाद की पराकाष्ठा है. अपने अधिकारों को स्वेच्छा से त्याग देना मूर्खता है. आप अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कीजिए.’’

‘‘भाईसाहब, मैं तो टूट चुकी हूं,’’ भाभीजी ने रोंआसे स्वर में कहा.

‘‘दिल को दुखी करने से काम नहीं चलेगा, भाभी. इस समस्या से मुक्ति पाने का उपाय तलाश करना होगा. मेरी समझ में एक तरकीब आई है.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘आप मालती के विवाह के लिए कोई अच्छा लड़का तलाश करना शुरू कर दीजिए. मैं भी कोशिश करता हूं.’’

‘‘भाईसाहब, पापा ने कई लड़के देखे थे. वे कई बार दिल्ली आए, पर स्वरूप ने किसी न किसी तरकीब से किसी मामले को पटने नहीं दिया. वह नहीं चाहता कि मालती की शादी हो.’’

‘‘भाभीजी, आप निश्ंिचत रहिए. मैं इस समस्या को सुलझा कर ही दम लूंगा. आप एक काम कीजिए. मेरठ जा कर अपने पापा से मिलिए. यदि उन की निगाह में कोई ढंग का लड़का हो तो काम आसान हो जाएगा.’’

‘‘जी, ठीक है. मैं कल ही मेरठ जाती हूं.’’ उदास मन से मैं वहां से लौट आया. अगले दिन स्टाफरूम में स्वरूप से भेंट हुई. उसे देखते ही मन वितृष्णा से भर गया. पर अपनी आंतरिक भावनाओं पर अंकुश रखते हुए मैं उस के पास गया और बोला, ‘‘स्वरूप, कल शाम को तो खूब मूर्ख बनाया.’’

‘‘यार, क्षमा मांगता हूं. अचानक फिल्म का प्रोग्राम बन गया. मालती कालेज से लौटते समय फिल्म की टिकटें ले आई थी.’’

‘‘क्या सिर्फ 2 ही टिकटें लाई थी?’’

स्वरूप ने घूर कर मुझे देखा और फिर कड़े स्वर में बोला, ‘‘लगता है, माला ने तुम्हारे कान भरे हैं.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात तो नहीं है. वह बेचारी घर पर अकेली बोर हो रही थी और तुम अपनी विवाह की वर्षगांठ अपनी साली के साथ मना रहे थे.’’ ‘‘यार, पता नहीं माला को क्या हो गया है. वह इतनी ईर्ष्यालु तथा तंगदिल हो गई है कि बस पूछो मत. उस ने तो मेरी जिंदगी बरबाद कर दी है.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं है कि चोर उलटा कोतवाल पर दोषारोपण कर रहा हो?’’

‘‘यार, तुम…’’ कहतेकहते स्वरूप ठिठका, फिर संयत हो कर बोला, ‘‘देखो, मालती मेरी साली है, मैं उस से प्रेम करता हूं. मुझे इस का पूरा हक है. अगर माला को यह पसंद नहीं तो वह मुझ से तलाक ले सकती है.’’

Crime Story: लाल चूड़ियों के टुकड़े

 सौजन्य-मनोहर कहानियां 

300गज में फैली उस कोठी में 2 बैडरूम और एक ड्राइंगरूम भूतल पर था, 2 बैडरूम और एक ड्राइंगरूम पहली मंजिल पर था. दाएं हिस्से में एक लंबी ओपन गैलरी कोठी के पीछे के हिस्से में बने गैराज तक गई थी. ऊपर की मंजिल में जाने के लिए सीढि़यां अंदर से भी थीं और बाहरी गैलरी से भी.

इस कोठी में एक ही परिवार रहता था. इस परिवार में मात्र 5 प्राणी थे- नरेश सेठी, उस की पत्नी पूर्णिमा सेठी और नौकर रामकिशन उर्फ रामू. नरेश सेठी का एकमात्र 8 वर्षीय बेटा विशु मसूरी के किसी पब्लिक स्कूल में पढ़ रहा था और बोर्डिंग में रहता था.

पूर्णिमा सेठी की लाश ऊपर की मंजिल के एक बैडरूम में डबल बैड पर पड़ी मिली थी. उसे गला घोंट कर मारा गया था. जिस चुन्नी से पूर्णिमा का गला घोंटा गया था, वह उसी की थी और उस के गले में ही लिपटी मिली थी.

पता चला कि पूर्णिमा सेठी सुबह साढ़े 9 बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक घर में अकेली थी. उस का पति नरेश सेठी अपने औफिस गया हुआ था और नौकर रामू कनाट प्लेस. इसी बीच किसी समय पूर्णिमा का कत्ल हुआ था. पूर्णिमा की लाश सब से पहले दोपहर के डेढ़ बजे नौकर रामू ने देखी थी. उसी ने शोर मचा कर पासपड़ोस के लोगों की बुलाया था. उन्हीं में से किसी ने पुलिस को सूचना दी थी.

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जिस वक्त मैं मौका ए वारदात पर पहुंचा, उस समय पूर्णिमा का पति नरेश आ चुका था और इंसपेक्टर उसी से पूछताछ कर रहा था. नरेश ने बताया कि वह सुबह 9 बजे घर से निकला था. रास्ते में उसे 2-3 जगह जाना था, वहीं से होता हुआ वह पौने 2 बजे औफिस पहुंचा था. 2 बजे उसे औफिस में ही पूर्णिमा की हत्या की सूचना मिली थी.

पूछताछ में रामू ने बताया कि वह सुबह साढ़े 9 बजे घर से निकला था. उसे पहले जमुनापार शकरपुर में अपने एक रिश्तेदार के घर जाना था और उस के बाद कनाट प्लेस की एक ट्रैवल एजेंसी से मैडम का मुंबई का हवाई टिकट ले कर वापस लौटना था.

यह काम कर के वह डेढ़ बजे कोठी पर लौटा. उस समय कोठी का मुख्य द्वार बंद था, पर अंदर के सारे दरवाजे खुले मिले. मैडम नीचे दिखाई नहीं दीं तो वह ऊपर पहुंचा. वहीं उस ने बैडरूम में मैडम की लाश पड़ी देखी.

घर में न तो किसी प्रकार की लूटपाट हुई थी और न ही कोई चीज गायब थी. संघर्ष का भी कोई चिह्न नहीं मिला. अलबत्ता जिस में पूर्णिमा की लाश मिली थी, उसी बैडरूम में बैड के पास कमीज का गुलाबी रंग का एक बटन जरूर पड़ा मिला. बटन रामू की उसी कमीज का था, जो वह पहने हुए था.

रामू को स्वयं पता नहीं था कि उस की कमीज का एक बटन गायब है. इंसपेक्टर ने इस ओर उस का ध्यान दिलाया तो वह चौंका. उस ने बताया कि सुबह कमरे की सफाई करते समय बटन टूटा होगा.

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रामू शादीशुदा युवक था. वह उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर का रहने वाला था और पिछले 11 सालों से नरेश सेठी के घर में नौकरी कर रहा था. मात्र बटन के आधार पर उस पर शक करना बेमानी था.

मैं ने इंसपेक्टर को साथ ले कर कोठी की दोनों मंजिलों का मुआयना किया. कोठी की छानबीन में हमें कई ऐसी चीजें मिलीं, जो हमारी जांच को दिशा दे सकती थीं. ऐसी चीजें थीं, फ्रिज के ऊपर रखा मिला एक बिल और कुछ खुले रुपए. बिल 440 रुपए का था और उसी के पास 10 रुपए खुले रखे थे.

नरेश सेठी ने बताया कि वह बिल दूध का है. उस दिन महीने की 2 तारीख थी और 2 तारीख को ही दूध वाला बिल लेने आता था. बिल के अलावा हमें कुछ और भी ऐसी चीजें मिलीं, जिन्हें मुद्दा बना कर घटना की जड़ों को टटोल सकते थे.

चाय के 2 जूठे प्याले रसोई के सिंक में पड़े मिले थे और 2 ऊपर की मंजिल वाले ड्राइंगरूम की सेंटर टेबल पर. इस के अलावा नीचे की मंजिल वाले ड्राइंगरूम के सोफे पर हमें खूबसूरत सा एक पेन भी पड़ा मिला. वहीं पर साइड टेबल पर 2 किताबें और एक आधी लिखी नोट बुक रखी थी. दोनों ही किताबें जनरल इंगलिश की थीं और नोटबुक में भी अंगरेजी ही लिखी थी.

पूछताछ करने पर पता चला कि पूर्णिमा सेठी मदन भाटिया नाम के एक ट्यूटर से अंगरेजी बोलना सीख रही थी. जो उसे प्रतिदिन 11 से 12 बजे के बीच पढ़ाने आता था. सोफे पर मिले पेन को पूर्णिमा का पति नरेश तो नहीं पहचान पाया, अलबत्ता रामू ने उस पेन को पहचान कर बताया कि उस तरह का पेन मदन भाटिया अपनी जेब में लगाए रहते थे.

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सिंक और ऊपर की मंजिल वाले ड्राइंगरूम की टेबल पर मिले प्यालों के बारे में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं मिल सकी कि उन में किस ने चाय पी थी. हम ने अनुमान लगाया कि चाय 2 बार बनाई गई थी और दोनों बार नीचे की मंजिल वाली रसोई में ही बनी थी.

पूर्णिमा ने दोनों बार चाय एक ही व्यक्ति के साथ पी या अलगअलग व्यक्तियों के साथ, यह कहना मुश्किल था. ऊपर की मंजिल पर पूर्णिमा सेठी किसी खास व्यक्ति को ही साथ ले जा सकती थीं. प्यालों से यह भी संदेह हुआ कि पूर्णिमा सेठी की हत्या संभवत: दूसरी बार चाय पीने के बाद चाय पीने वाले व्यक्ति द्वारा की गई होगी.

साढ़े 9 बजे से डेढ़ बजे के बीच हुई हत्या की वारदात के लिए हम ने 5 लोगों को संदेह के दायरे में रखा. ये थे रामू, मृतका का पति नरेश सेठी, दूध वाला शंकर और ट्यूटर मदन भाटिया. 5वें नंबर पर उस शख्स पर संदेह किया जा सकता था, जिस के साथ पूर्णिमा ने ऊपर के ड्राइंगरूम में चाय पी थी.

इन पांचों में सब से ज्यादा संदिग्ध रामू लगा. वह काफी घबराया हुआ भी था, जिस से उस पर संदेह और भी बढ़ा.

मैं ने रामू से पूछा, ‘‘तुम कहां सोते हो?’’

‘‘पहली मंजिल के जिस बैडरूम में मैडम की लाश मिली है, उसी के बराबर वाले बैडरूम में सोता हूं. कोठी में सर्वेंट क्वार्टर न होने की वजह से मालिक ने वह कमरा मुझे दे रखा है.’’ रामू बोला.

रामू पर शक था, इसीलिए मैं ने उस के कमरे में जा कर देखा. जिस कमरे में रामू सोता था, यह 8×10 का बैडरूम था और उस में सिंगल बैड पड़ा हुआ था.

सामान या सजावट के नाम पर उस कमरे में कुछ नहीं था, अलावा रामू के कपड़ों और जरूरत की दूसरी चीजों के. बैड भी सामान्य सा था. बैड के साथ वाले शोकेस में एक औरत और बच्चे का सादा सा फोटो फ्रेम रखा था. वह रामू की पत्नी और बच्चे का फोटो था.

मैं ने रामू के बैड को गौर से देखा तो मुझे लगा कि उस कमरे में जरूर कुछ न कुछ अस्वाभाविक घटा था.

रामू के कमरे का निरीक्षण करने पर खिड़की में लाल रंग की टूटी हुई चूड़ी का एक टुकड़ा मिला. पूर्णिमा सेठी के दोनों हाथों में कोई चूड़ी नहीं मिली थी. मैं ने चूड़ी के उस टुकड़े को सावधानीपूर्वक उठा लिया. जिस खिड़की में टुकड़ा मिला था, वह पीछे की ओर गली में खुलती थी. कुछ सोच कर मैं कोठी के बाहर आया और आसपड़ोस की 2-3 कोठियों का चक्कर काट कर पीछे वाली गली में पहुंचा.

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पीछे वाली गली से मुझे रामू के कमरे की वह खिड़की नजर आ गई, जिस में चूड़ी का टुकड़ा मिला था. मैं ने उस खिड़की के नीचे गली में खोजबीन की, तो लाल चूडि़यों के वैसे ही 8 टुकड़े मिल गए. सारे टुकड़े एकत्र कर के मैं ने कागज में रख लिए.

मैं ने वे टुकड़े नरेश सेठी को दिखा कर पूछा, ‘‘ये टुकड़े तुम्हारी पत्नी की चूडि़यों के हैं?’’

‘‘नहीं,’’ नरेश सेठी ने दो टूक जवाब दिया, ‘‘मेरी पत्नी कांच की चूडि़यां विशेष अवसरों पर ही पहनती थी. लाल रंग की चूडि़यां तो उस ने कभी पहनी ही नहीं. चूडि़यां तो क्या, लाल रंग के कपड़ों तक से उसे चिढ़ थी.’’

रामू के कमरे की खिड़की के नीचे से चूडि़यों के टुकड़े एकत्र करते समय मैं सोच रहा था कि मैं हत्यारे के करीब पहुंच गया हूं, लेकिन नरेश सेठी ने यह बात बता कर मेरी सारी आशाओं पर पानी फेर दिया.

रामू 27-28 साल का था, लगभग इतनी ही उम्र पूर्णिमा सेठी की भी थी. ऐसी स्थिति में संदेह के लिए कई बातें सोचीसमझी जा सकती थीं.

मैं ने रामू को चूडि़यों के टुकड़े दिखा कर पूछा, ‘‘पहचानते हो इन्हें? तुम ने ही खिड़की से बाहर फेंके थे?’’

‘‘जी नहीं, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता.’’

‘‘कोई बात नहीं, थाने चल कर हम पता लगा लेंगे.’’ मैं ने उस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला तो वह रोने लगा, ‘‘साहबजी, आप गलत समझ रहे हैं. मैं इस घर में 11 साल से नौकरी कर रहा हूं. मैं इस परिवार का बुरा नहीं सोच सकता.’’

नरेश सेठी पत्नी की असमय मौत के गम से व्यथित था. फिर भी उस ने रामू को तसल्ली दी. समझाया, ‘‘डर मत. पुलिस को अपना काम करने दे.’’

मैं ने नरेश सेठी से पूछा कि क्या उसे रामू के शकरपुर और कनाट प्लेस जाने की बात मालूम थी. उस ने बताया कि इस संबंध में तो उसे कोई जानकारी नहीं थी, अलबत्ता यह जरूर मालूम था कि पूर्णिमा को 5 अगस्त को मुंबई जाना है और इस के लिए उस ने कनाट प्लेस की किसी ट्रैवल एजेंसी को टिकट का इंतजाम करने को कहा था.

मैं ने रामू से उस के शकरपुर वाले रिश्तेदार और ट्रैवल एजेंसी का पता ले लिया, फिर वह टिकट देखा, जो वह ले कर आया था. टिकट वास्तव में 5 अगस्त का ही था.

‘‘पूर्णिमा मुंबई किस सिलसिले में जा रही थी?’’ मेरे यह पूछने पर नरेश सेठी ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया.

उस वक्त हमारे सामने रामू के अलावा कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसे हम संदेह के दायरे में रख सकते. इसीलिए हम रामू को पूछताछ के लिए थाने ले आए.

चूडि़यों के टुकड़े, कमीज का बटन, सोफे पर मिला पेन, ड्राइंगरूम और सिंक में मिले चाय के प्याले, फ्रिज पर मिला दूध का बिल और पैसे आदि सभी चीजें हम ने जांच के लिए कब्जे में ले ली थीं. इस के साथ ही हम ने हत्या का केस दर्ज करने के बाद पूर्णिमा सेठी की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी थी.

जिन दिनों की यह बात है, उन दिनों मैं एसीपी था. मेरा औफिस थाने में ही था. थाने पहुंचते ही मैं ने 2 सबइंसपेक्टरों को बुलाया. उन में से एक को कनाट प्लेस स्थित ट्रैवल एजेंसी और दूसरे को रामू के शकरपुर स्थित रिश्तेदार के यहां भेजा.

शाम होतेहोते मुझे दोनों जगह की रिपोर्ट मिल गई. पता चला कि रामू पौने 11 बजे अपने मौसा श्यामबाबू के यहां पहुंचा था.

श्यामबाबू के पास रामू पौन घंटे के करीब रुका. उस के बाद वह कनाट प्लेस स्थित टै्रवल एजेंसी के औफिस पहुंचा. वहां वह 12 या सवा 12 बजे पहुंचा था और 15 या 20 मिनट वहां रहा, फिर वहां से मैडम का एयर टिकट ले कर वापस लौट आया.

रात को हम ने रामू से पूछताछ की. रामू के अनुसार उस ने न तो पूर्णिमा सेठी का कत्ल किया था और न वह ऐसा सोच सकता था. पूर्णिमा को वह अपनी बहन मानता था.

रामू ने बताया कि वह डेढ़ नहीं, बल्कि एक बजे कोठी पर वापस लौटा था. उसे कोठी का मुख्य दरवाजा बंद मिला. दरवाजा खोल कर जब वह अंदर पहुंचा, तो उसे सारे दरवाजे खुले मिले. उस ने मैडम को पहले नीचे खोजा, लेकिन जब वह नीचे नजर नहीं आईं तो वह ऊपर की मंजिल पर गया.

ऊपर  की मंजिल पर उस ने मैडम को अपने कमरे में बैड पर पड़े देखा, तो उस का माथा ठनका. मैडम ऊपर की मंजिल पर कम ही आती थीं. उस के रूम में तो मैडम के आने का प्रश्न ही नहीं था.

रामू ने बताया कि मैडम को 2 चीजें चमचमाती हुई रखने का शौक था, एक बाथरूम और दूसरा बैड. वह न तो किसी के बैड पर बैठना पसंद करती थीं और न ही किसी को अपने बैड पर बैठाती थीं. मैडम का रामू के बैड पर तो बैठने का प्रश्न ही नहीं था.

वह समझ गया कि जरूर कोई गड़बड़ है. गौर से देखा तो उसे समझते देर नहीं लगी कि मैडम मर चुकी हैं. उन के गले में जिस ढंग से चुन्नी लिपटी थी, उसे देख कर कोई भी बता सकता था कि उन्हें गला घोंट कर मारा गया था.

पूर्णिमा सेठी की हत्या रामू के कमरे में उसी के बैड पर हुई थी. वह यह सोच कर डर गया था कि सब उसी पर शक करेंगे, वह पकड़ा जाएगा. सोचविचार कर उस ने मैडम की लाश को अपने कमरे से हटाने का निश्चय किया. सब से पहले उस ने लाश को नीचे वाली मंजिल में ले जाने की सोची. लेकिन पूर्णिमा सेठी चूंकि उस से काफी भारी थीं, इसलिए उसे अपना इरादा बदलना पड़ा.

अंतत: उस ने पूर्णिमा की लाश को अपने कमरे से उठा कर दूसरे बैडरूम के बैड पर डालने का निश्चय किया. ऐसा ही उस ने किया भी. लाश को दूसरे बैडरूम में डालते समय ही उस की कमीज का बटन भी दूटा था, जिस पर बौखलाहट में ध्यान नहीं दे पाया था.

इतना सब करने के बाद रामू ने अपने आप को सामान्य किया और फिर शोर मचा कर आसपड़ोस के लोगों को बुला लिया था.

रामू से हम ने रात को साढ़े 12 बजे पूछताछ शुरू की थी, जो सुबह साढ़े 4 बजे तक चलती रही. इस पूछताछ के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि रामू जो कह रहा है, वह सच है. उस ने अपने बचाव के लिए हत्या के सबूतों को अपने स्थान से हटाने और मिटाने का अपराध जरूर किया है, लेकिन वह हत्यारा नहीं है.

अब सवाल यह था कि पूर्णिमा सेठी की हत्या रामू ने नहीं की, तो किस ने की? रामू के बाद संदिग्धों की लिस्ट में हम दूधिया शंकर, ट्यूटर मदन भाटिया और नरेश सेठी को रख सकते थे. रामू की गैरमौजूदगी में मदन भाटिया और शंकर कोठी पर आए थे, इस बात के प्रमाण हमारे पास थे ही.

मदन भाटिया का पता मैं ने नरेश सेठी से ले लिया था. शंकर का पता उस के पास भी नहीं था. मैं ने इंसपेक्टर से कहा कि वह सुबह होते ही एक हवलदार को इस निर्देश के साथ नरेश सेठी की कोठी पर भेज दें कि शंकर अगर दूध देने आए, तो वह उसे थाने ले आए.

सुबह में मैं ने इंसपेक्टर से कहा कि एक एसआई को मदनगीर स्थित भाटिया के घर भेज कर उसे बुला लें.

मदन भाटिया की उम्र 32-33 साल थी. स्वभाव से वह सीधासज्जन लगता था. उसे ले कर आने वाले दरोगा ने मेरी हिदायत के मुताबिक उसे पूर्णिमा सेठी के कत्ल की बात नहीं बताई थी. मैं ने मदन भाटिया को सामने की कुरसी पर बैठा कर पूछताछ की. कुछ सामान्य रूप से तो कुछ तीखे सवालों के साथ.

मदन भाटिया के चेहरे और मन के भावों को समझने के लिए मैं उस के साथ सख्ती से पेश आया था.

पूर्णिमा सेठी की हत्या की बात सुन कर मदन भाटिया बेहद आश्चर्य में था. उस से बातचीत के दौरान मुझे जरा भी ऐसा नहीं लगा कि वह इस मामले में कहीं दोषी है. मैं ने उस से पिछले दिन की सारी बातें बताने को कहा.

मदन भाटिया ने बताया कि वह रोज की तरह गत दिवस भी सवा 11 बजे नरेश सेठी की कोठी पर पहुंचा था. उस ने घंटी बजाई तो रामू की जगह पूर्णिमा सेठी ने दरवाजा खोला. पता चला, रामू कहीं बाहर गया हुआ था. मदन भाटिया पूर्णिमा के साथ अंदर गया और ड्राइंगरूम में सोफे पर जा बैठा. पूर्णिमा वहीं बैठ कर पढ़ती थी. उस ने मदन भाटिया को पानी पिलाया और किताबें तथा नोटबुक ले कर पढ़ाई के लिए आ बैठी.

इत्तफाक से पूर्णिमा पेन लाना भूल गई थी. वह पेन लाने के लिए उठी, तो भाटिया ने उसे अपना पेन दे दिया.

भाटिया ने लगभग पौन घंटे तक पूर्णिमा को पढ़ाया. जब वह जाने लगा तो पूर्णिमा चाय पीने की जिद करने लगी. वह बैठ गया. पूर्णिमा रसोई में जा कर 2 कप चाय बना लाई. चाय पीते समय पूर्णिमा की नजर किताबों के ऊपर रखे पेन पर पड़ी, तो उस ने पेन उठा कर भाटिया की ओर बढ़ाया. उस समय भाटिया के हाथ में चाय का प्याला था. उस ने यह सोच कर पेन सोफे पर रख दिया कि जाते समय उठा लेगा. लेकिन उसे पेन उठाने का ध्यान नहीं रहा.

मदन भाटिया नरेश सेठी की कोठी से सवा 12 बजे लौटा था. अगर वह सच बोल रहा था, तो फिर कत्ल सवा 12 से एक बजे के बीच पौन घंटे की अवधि में हुआ था. मदन भाटिया के अनुसार पूर्णिमा ने उसे चाय पिलाई थी. चाय के प्याले भी सिंक में पड़े मिले थे. इस का मतलब यह था कि ऊपर वाली मंजिल में चाय के जो प्याले मिले थे, उन में पूर्णिमा ने मदन भाटिया के जाने के बाद किसी और के साथ चाय पी थी.

रामू और मदन भाटिया को भी हम संदेह से मुक्त नहीं कर सकते थे. इसीलिए मैं ने दोनों को निगरानी में रखने का आदेश दिया.

दूसरा सबइंसपेक्टर शंकर को ले कर साढ़े 10 बजे मेरे औफिस आया. शंकर 40-42 साल का गठे हुए बदन का व्यक्ति था. मैं ने शंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गत दिवस वह सवा 10 बजे सेठी की कोठी पर पहुंचा था. उस ने घंटी बजाई तो रामू की जगह पूर्णिमा सेठी ने दरवाजा खोला.

उस ने अंदर जा कर दूध दिया और साथ ही पिछले महीने का बिल भी. पूर्णिमा सेठी ने उसे साढ़े 4 सौ रुपए ला कर दिए. बिल 440 रुपए का था, अत: उस ने 10 रुपए पूर्णिमा को लौटा दिए. उस के बाद वह वहां से चला गया था.

मदन भाटिया के अनुसार पूर्णिमा सेठी सवा 12 बजे तक सहीसलामत थीं. जबकि शंकर सवा 10 बजे ही कोठी पर पहुंचा था. ऐसी स्थिति में उस पर शक करने की कोई तुक नहीं थी, फिर भी ऐहतियात के तौर पर मैं ने उसे भी निगरानी में रखने को कहा.

पूर्णिमा की हत्या हुए 24 घंटे होने को थे. इस बीच नरेश सामान्य हो गया होगा, यह सोच कर मैं इंसपेक्टर को साथ ले कर उस की कोठी पर पहुंचा. वहां पर हमें पूर्णिमा के मातापिता और भाई भी मिल गए. वे लोग रात को आए थे. पता चला, पूर्णिमा का मायका चंडीगढ़ में था. हम ने पूर्णिमा के मातापिता और भाई से बातचीत की तो उन्होंने अपने दामाद पर किसी तरह का संदेह व्यक्त नहीं किया. उन का कहना था कि नरेश पूर्णिमा को बहुत प्यार करता था. ऐसा कोई कारण नहीं था जिस की वजह से उसे पूर्णिमा की हत्या करने की जरूरत पड़ती.

मैं ने नरेश सेठी को एक अलग कमरे में बैठा कर पूछताछ की. उस ने बताया कि गत दिवस उसे 2-3 जगह जाना था, इसीलिए वह सुबह 9 बजे घर से निकल गया था. घर से रवाना होने के बाद वह पहले जैकी एक्सपोर्ट के मालिक नवीन खन्ना के घर ग्रेटर कैलाश गया. नवीन खन्ना के घर वह सवा घंटा बैठा रहा. वहां से वह आरकेपुरम स्थित अशोक बब्बर के घर गया. अशोक बब्बर की कालकाजी में बब्बर ओवरसीज के नाम से एक्सपोर्ट कंपनी थी. बब्बर के साथ वह एक घंटे तक रहा.

बब्बर के घर से वह लक्ष्मीबाई नगर स्थित अंजलि एक्सपोर्ट में पहुंचा. इस कंपनी के मालिक रमेश भसीन के साथ वह डेढ़ घंटा रहा. फिर वह ग्रीन पार्क स्थित अपने औफिस गया. तब तक दोपहर के पौने 2 बज गए थे. 2 बजे उसे औफिस में ही पूर्णिमा की हत्या की सूचना मिली.

नरेश सेठी के सचझूठ को परखने के लिए मैं ने तीनों पतों से जानकारी कराई तो पता चला, उस की बात सच थी. लेकिन इस के बावजूद हम नरेश सेठी को शक के दायरे से बाहर नहीं कर सकते थे. वजह यह थी कि नरेश जिनजिन जगहों पर गया था, वे सब लाजपतनगर के करीब थीं. नरेश के पास चूंकि कार थी, इसलिए वह आर.के. पुरम, ग्रेटर कैलाश, ग्रीन पार्क और लक्ष्मीबाई नगर कहीं से भी 10-15 मिनट में लाजपत नगर पहुंच सकता था.

बाकी सारी चीजें तो पता चल गईं, लेकिन हम यह पता नहीं लगा पाए कि पूर्णिमा ने दूसरी बार किस के साथ चाय पी थी. दोपहर होतेहोते हमें पूर्णिमा सेठी की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस की मृत्यु दम घुटने से हुई थी. मृत्यु से पहले उस के साथ कुकर्म या सहवास नहीं हुआ था.

रिपोर्ट के अनुसार, पूर्णिमा की मृत्यु 12 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच हुई थी. नरेश सेठी की कोठी से न तो कोई सामान गायब था, न पूर्णिमा के साथ कुछ ऐसावैसा हुआ था, फिर हत्या क्यों की गई? इस मुद्दे पर हम बुरी तरह उलझ कर रह गए. कोई राह नहीं सूझी, तो मैं ने रामू के कमरे की खिड़की के नीचे गली में मिले चूडि़यों के टुकड़ों को जांच का मुद्दा बनाया.

सारे टुकड़ों को जोड़ा गया, तो 2 चूडि़यों के मौडल तैयार हुए. मैं ने चूडि़यों के इन मौडलों की नाप को पूर्णिमा के हाथों में मिली चूडि़यों से मिलाया, तो यह देख कर आश्चर्य हुआ कि मौडल वाली चूडि़यों की साइज पूर्णिमा की चूडि़यों से काफी छोटी थी. संदेह होने पर मैं ने नरेश सेठी की कोठी पर जा कर वार्डरोब में रखी पूर्णिमा की कांच की चूडि़यां देखीं.

उन चूडि़यों में वास्तव में लाल रंग की कोई चूड़ी नहीं थी. साइज भी घटनास्थल पर मिली चूडि़यों से बड़ी थी. इस से यह बात साफ हो गई कि खिड़की के बाहर गली में मिले चूडि़यों के टुकड़े पूर्णिमा के नहीं थे.

नरेश सेठी ने मेरे 3 बार पूछने पर भी यह बात स्पष्ट नहीं की थी कि पूर्णिमा मुंबई किस लिए जा रही थी. यह जानकारी हमारे लिए महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती थी. रामू उस परिवार में पिछले 11 साल से नौकरी कर रहा था. यह सोच कर कि उसे परिवार के सभी महत्त्वपूर्ण मामलों की जानकारी रहती होगी, मैं ने रामू से पूछताछ करने की सोची.

इस बारे में रामू ने बताया कि मुंबई में मैडम के एक कजिन परवीन चड्ढा का काफी बड़ा कारोबार है. उन के कारोबार में मैडम स्लिपिंग पार्टनर थीं. वह उन्हीं के पास मुंबई आतीजाती थीं.

‘‘कितनेकितने दिनों के अंतराल से जाती थीं?’’ मैं ने पूछा तो रामू ने बताया कि वह महीने में 1-2 बार मुंबई जरूर जाती थीं और 3-4 दिन में लौटती थीं. इतना ही नहीं, कभीकभी परवीन चड्ढा भी दिल्ली आते रहते थे. वह हमेशा होटल में ठहरते थे. मेरे पूछने पर रामू ने यह भी बताया कि नरेश सेठी मैडम के बारबार मुंबई आनेजाने से खुश नहीं थे. इस बात को ले कर दोनों में एकदो बार झड़पें भी हुई थीं.

यह बात पता चलते ही मैं ने नरेश सेठी को बुलाया. उस से परवीन चड्ढा के बारे में पूछा तो वह थोड़ी झुंझलाहट में बोला, ‘‘मैं उस शख्स के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. उस से मेरा न तो कोई सरोकार था, न है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारी पत्नी का तो था? वह उस के पास महीने में 2-2 बार जाती थी.’’

नरेश सेठी कुछ देर खामोश बैठा रहा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप परवीन चड्ढा को इस केस में न घसीटें तो ठीक रहेगा. इस से हमारी बदनामी हो सकती है. मैं इतना ही कह सकता हूं कि वह मुंबई से यहां आ कर पूर्णिमा का कत्ल नहीं कर सकता. इस की उसे जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि पूर्णिमा ने उस की बहुत मदद की थी.’’

‘‘कर भी तो सकता है. पूर्णिमा उस के कारोबार में स्लिपिंग पार्टनर थी. हो सकता है, उस ने अपने किसी व्यावसायिक लाभ के लिए…’’ मैं ने कहना चाहा तो नरेश सेठी खीझे से स्वर में बोला, ‘‘स्लिपिंग पार्टनर सिर्फ नाम के लिए थी. एक बहाना था यह.’’

नरेश सेठी की बातों से मैं समझ गया कि पूर्णिमा और परवीन चड्ढा के बीच चाहे जो भी रिश्ता रहा हो, उसे नरेश सेठी पसंद नहीं करता था. मैं नरेश सेठी को ले कर उस की कोठी पर गया और उस के बैडरूम और ड्राइंगरूम में लगे फोन के पास रखी मैसेज स्लिपें चैक कीं. बैडरूम के फोन वाली स्लिपों में मुझे एक काम का टेलीफोन नंबर मिल गया. इस नंबर के साथ 311 लिखा था.

मैं ने उस नंबर पर फोन मिलाया तो मेरा अनुमान सही निकला. वह नंबर नई दिल्ली के एक होटल का था. मैं समझ गया कि 311 इसी होटल के कमरे का नंबर है.

औफिस लौट कर मैं ने एक सबइंसपेक्टर को बुला कर कहा कि वह उस होटल के रिकौर्ड से पता लगाए कि कमरा नंबर 311 में एक और दो तारीख को कौन ठहरा था. वह कब होटल आया और कब गया? क्या उस के साथ कोई महिला भी थी?

सबइंसपेक्टर ने वापस लौट कर जो कुछ बताया, वह मेरी आशा के अनुरूप था. पता चला, उस कमरे में 30 तारीख से 2 तारीख की शाम तक परवीन चड्ढा ठहरा था. साथ में एक औरत भी थी, जो उस ने अपनी पत्नी बताई थी. परवीन चड्ढा ने अपना नामपता सही लिखा था. आगमन की जगह उस ने मुंबई लिखा था और जाने की जगह चंडीगढ़.

परवीन चड्ढा दिल्ली आया हो और पूर्णिमा से न मिला हो, ऐसा संभव नहीं था. मुझे लगा कि पूर्णिमा का कत्ल संभवत: परवीन चड्ढा ने ही किसी औरत की मदद से किया है. कत्ल क्यों किया, यह वही बता सकता है.

परवीन चड्ढा के बारे में जानकारी मिलने के बाद मैं ने शंकर और मदन भाटिया को इस चेतावनी के साथ जाने की इजाजत दे दी कि वह पूछताछ के लिए दिल्ली में ही उपलब्ध रहें. रामू की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं थी.

परवीन चड्ढा का मुंबई और चंडीगढ़ का पता नरेश सेठी से मिल गया था. मैं ने उसी रात उस की तलाश में दोनों जगह पुलिस पार्टियां भेजीं.

चंडीगढ़ गई पुलिस पार्टी दूसरे दिन परवीन चड्ढा को साथ ले कर दिल्ली लौट आई. उस के साथ उस की पत्नी परमजीत कौर भी थी. वे दोनों काफी घबराए हुए थे. परवीन चड्ढा कुछ दुखी और परेशान सा भी लग रहा था. मैं ने सब से पहले परमजीत कौर की चूडि़यों का साइज चैक किया. परमजीत कौर का साइज भी बड़ा था.

घटनास्थल पर मिली चूडि़यां उस की नहीं थीं, यह देख मुझे आश्चर्य हुआ. परवीन और परमजीत से बातचीत के बाद यह बात तो साफ हो गई कि होटल में वह दोनों ही कमरा नंबर 311 में ठहरे थे.

मैं ने परमजीत कौर से पूछा, ‘‘आप पूर्णिमा सेठी को जानती थीं?’’

‘‘हां, सालों पहले 2-3 बार मुलाकात हुई थी.’’ परमजीत कौर ने बताया तो मैं ने आश्चर्यचकित हो कर पूछा, ‘‘वह तो हर महीने मुंबई जाती थीं. क्या आप के घर नहीं ठहरती थीं?’’

‘‘नहीं.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘वह आप लोगों के व्यवसाय में स्लिपिंग पार्टनर थीं?’’

‘‘स्लिपिंग पार्टनर!’’ परमजीत ऐसे चौंकी, जैसे मैं ने कोई अनहोनी बात कह दी हो.

मेरी और परमजीत कौर की इन बातों से परवीन चड्ढा के चेहरे का रंग उतर गया था. वह नजरें झुकाए बैठा था. मैं ने परमजीत से एक सवाल और पूछा, ‘‘आप को मालूम है, आप के पति एक और दो तारीख को दिल्ली में पूर्णिमा सेठी से मिले थे?’’

‘‘नहीं, यह बात मेरी जानकारी में नहीं है.’’

मैं ने परवीन को समझाते हुए कहा, ‘‘मि. चड्ढा, आप की प्रेमिका का कत्ल हो चुका है. हमें संदेह है कि कत्ल में आप शामिल हैं. अगर आप इस बात से इत्तफाक नहीं रखते तो हमें सारी बातें साफसाफ बता दें.’’

परवीन चड्ढा की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई. उस के एक ओर पुलिस थी, दूसरी ओर बीवी. चेहरे का रंग उड़ जाना स्वाभाविक था. उस की समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे. लेकिन बोलना उस की मजबूरी थी.

परवीन चड्ढा ने जो कुछ बताया, उस का सार यह था कि पूर्णिमा और परवीन दोनों सहपाठी रहे थे. शादी से पहले दोनों न केवल एकदूसरे को जानते थे, बल्कि प्यार भी करते थे. उन की शादी भी हो जाती. लेकिन परवीन चड्ढा को 2 साल का बिजनैस मैनेजमेंट का कोर्स करने इंग्लैंड जाना पड़ा. इसी बीच पूर्णिमा के पिता ने उस की शादी नरेश सेठी से कर दी थी.

इस शादी का पूर्णिमा ने विरोध भी किया था, लेकिन अपनी मां और दिल्ली वाली मौसी के दबाव की वजह से उसे झुकना पड़ा था.

मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद परवीन भारत लौटा, तो उस ने पूर्णिया को उस की बेवफाई के लिए ताना दिया. पूर्णिमा ने बताया कि उस ने नरेश सेठी से अपनी मरजी से शादी नहीं की थी. इंग्लैंड से लौटने के बाद परवीन चड्ढा को मुंबई की एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर की नौकरी मिल गई. उस ने चंडीगढ़ की ही एक लड़की से शादी भी कर ली. लेकिन इस के बावजूद उस ने पूर्णिमा सेठी से मिलनाजुलना बंद नहीं किया था.

पूर्णिमा के पति का आयातनिर्यात का काफी बड़ा कारोबार था. पैसे की उस के पास कोई कमी नहीं थी. पूर्णिमा का जब भी मन होता, वह परवीन चड्ढा से मिलने मुंबई चली जाती थी.

नरेश सेठी की मां की मृत्यु उस की शादी से पहले ही हो चुकी थी. 2 साल बाद पिता भी चल बसे. लेदे कर नरेश सेठी का एक ही बड़ा भाई था, जो अमेरिका में रहता था.

परवीन को नौकरी करते अभी 3 साल हुए थे कि पूर्णिमा ने उसे कोई अपना व्यवसाय करने की राय दी. उस ने उस से यह भी कहा कि वह उस की आर्थिक मदद करेगी.

कुछ पैसा परवीन चड्ढा के पास था, कुछ पूर्णिमा ने दिया. कुछ पैसा बैंक से कर्ज ले कर उस ने भांडुप, पश्चिम मुंबई में इलैक्ट्रौनिक उपकरण बनाने की फैक्ट्री लगा ली. फैक्ट्री में इलैक्ट्रौनिक उपकरण बनने तो लगे, इस के बावजूद कई कारणों से उतना लाभ अर्जित न हुआ, जितना होना चाहिए था.

इस का नतीजा यह हुआ कि परवीन चड्ढा की आर्थिक स्थिति नरेश सेठी जैसी सुदृढ़ न हो सकी. उस की स्थिति को ध्यान में रखते दुए पूर्णिमा सेठी उस की जबतब रुपएपैसे से मदद करती रही. पूर्णिमा सेठी, नरेश सेठी से परवीन चड्ढा को अपना कजिन बताती थी. उस ने परवीन चड्ढा के कारोबार में स्लिपिंग पार्टनर होने की बात भी बताई थी. नरेश सेठी चूंकि अपने कारोबार में बेहद व्यस्त रहता था, इसलिए उस ने हमेशा उसी बात पर यकीन किया, जो पूर्णिमा ने कही थी.

पूछताछ में परवीन चड्ढा ने यह बात स्वीकार की कि पूर्णिमा उस से मिलने मुंबई जाती थी और होटल में ठहरती थी. उस ने यह भी माना कि 30 जुलाई को दिल्ली आते ही उस ने पूर्णिमा को फोन किया था. होटल का फोन नंबर और कमरा नंबर भी उस ने ही बताया था.

उस ने बताया कि वह 31 जुलाई, एक और 2 अगस्त को पूर्णिमा से उस की कोठी पर ही जा कर मिला था. वहीं पर पूर्णिमा का 5 अगस्त को मुंबई जाने का प्रोग्राम बना था. परवीन चड्ढा के अनुसार, परमजीत कौर को चंडीगढ़ छोड़ते हुए उसे भी 5 अगस्त को मुंबई पहुंचना था.

परवीन चड्ढा ने बताया कि पूर्णिमा के कत्ल में उस का कोई हाथ नहीं है. उस ने यह भी बताया कि पूर्णिमा उसे तनमनधन हर तरह से चाहती थी. ऐसी हालत में वह उस का बुरा कैसे सोच सकता था. अगर परवीन चड्ढा सच बोल रहा था तो फिर ऐसा कोई कारण नहीं था कि उसे पृर्णिमा का कल्ल करने की जरूरत पड़ती.

इस मामले में जितने भी लोग संदिग्ध हो सकते थे, मैं ने एकएक कर सभी से पूछताछ कर ली थी, फिर भी मैं हत्यारे की छाया को नहीं छू पाया. समझ में नहीं आ रहा था कि हत्यारा कौन है. मैं ने परवीन चड्ढा से पूछा कि 31 जुलाई और एक व 2 अगस्त को जब वह पूर्णिमा से मिलने गया था, तब उसे नरेश सेठी ने तो नहीं देखा था?

‘‘नरेश सेठी ने तो नहीं, लेकिन 3 अगस्त को जब मैं कोठी से बाहर जा रहा था, तो रामू मुझे जरूर मिला था. वह उसी समय कहीं से लौटा था.’’

परवीन चड्ढा की इस बात से मुझे लगा कि कहीं नरेश सेठी ने ही तो पूर्णिमा की हत्या नहीं की. हो सकता है, चूडि़यों के टुकड़े उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए फेंके हों. मैं ने रामू से पूछा कि उसे 3 अगस्त को परवीन चड्ढा को कोठी से निकलते देखा था, क्या यह बात उस ने नरेश सेठी से बताई थी?

रामू ने बताया कि 3 अगस्त को मैडम ने मुझे 11 बजे टेलीफोन का बिल जमा करने भेजा था. बिल जमा करने में काफी देर लगी. मैं साढ़े 12 बजे जब वापस लौटा, तो परवीन चड्ढा कोठी से निकल रहे थे. नरेश सेठी ने मुझे निर्देश दे रखा था कि कभी परवीन चड्ढा दिखाई दे, तो बताना. परवीन चड्ढा कई बार कोठी पर आए थे. मैं उन्हें पहचानता था, इसलिए यह बात मैं ने मालिक को बता दी थी.

रामू की बात से मुझे पक्का विश्वास हो गया कि पूर्णिमा की हत्या उस के पति ने ही की है. लेकिन समस्या यह थी कि नरेश सेठी के खिलाफ हमारे पास कोई ऐसा सुबूत नहीं था, जिस के बूते पर हम उसे गिरफ्तार कर सकते.

जब कोई रास्ता नहीं सूझा, तो मैं ने नरेश सेठी के बैडरूम की तलाशी लेने का निश्चय किया. मैं इंसपेक्टर को ले कर नरेश की कोठी पर पहुंचा और उस से बातचीत करने के बाद तलाशी लेने की इच्छा जाहिर की. उस ने इस में कोई आपत्ति नहीं की.

नीचे के दोनों बैडरूम, उन की शेल्फों और अलमारियों में हमें कोई भी ऐसी चीज न मिली, जिस के आधार पर कोई कड़ी जुड़ पाती. ऊपर वाले बैडरूम में भी हमें कोई खास चीज नहीं मिली. ऊपर वाले बैडरूम में अलमारी के ऊपर लोहे का पुराना संदूक रखा था. मैं ने वह संदूक उतरवाने को कहा, तो नरेश सेठी बोला, ‘‘इस संदूक में मां के पुराने कपड़े हैं. चाबी भी पता नहीं कहां होगी. उसे छोडि़़ए, उस में कुछ नहीं मिलेगा.’’

नरेश सेठी की इस बात से मुझे शक हुआ. मैं ने वह संदूक उतरवा लिया और उस से चाबी मांगी. वह बोला यह संदूक मां की मौत के बाद से यूं ही बंद है. चाबी पता नहीं कहां होगी. वैसे भी चाबियां पूर्णिमा के पास ही रहती थीं.

कोई और चारा न देख मैं ने संदूक का ताला तुड़वा दिया. उस संदूक में सब से ऊपर बिना तह किया शादी का लाल जोड़ा कुछ इस तरह रखा था, जैसे जल्दी में रखा गया हो. संदूक के अंदर गहने वगैरह तो नहीं थे, अलबत्ता सूखे फूलों की पत्तियां, कुछ पुराने कपड़े और एक पुरानी सफेद चादर थी. देख कर ही बताया जा सकता था कि यह सब सुहागरात की इस्तेमाली चीजें थीं.

उसी संदूक में हमें वह सबूत भी मिल गया, जिस के आधार पर हम कह सकते थे कि हत्यारा कौन है. वह सबूत था, लाल रंग की दरजनभर से ज्यादा चूडि़यां. ये चूडि़यां बिलकुल वैसी ही थीं, जैसी चूडि़यों के टुकड़े खिड़की के बाहर मिले थे.

मैं ने संदूक के अंदर से चूडि़यां निकाल कर हाथ में लीं, तो नरेश सेठी के चेहरे का रंग उतर गया. पूर्णिमा की मां अभी दिल्ली में ही थीं. मैं ने शादी का जोड़ा और चूडि़यां उसे दिखाईं तो उस ने बताया कि शादी का जोड़ा और चूडि़यां पूर्णिमा की ही थीं.

उस के अनुसार, 10 साल पहले जब पूर्णिमा की शादी हुई थी, तो वह बहुत दुबलीपतली थी. तब उस के हाथों में उसी साइज की चूडि़यां आती थीं.

इस के बाद नरेश समझ गया कि अब कुछ भी छिपाना व्यर्थ है. उस ने स्वत: ही सब कुछ कह डाला. नरेश सेठी ने बताया कि पूर्णिमा को वह बहुत प्यार करता था. उसे उस ने अपने व्यापार में भी औन रिकौर्ड आधे का साझेदार बना रखा था.

शादी के बाद शुरू के 6 साल उस ने पूर्णिमा के साथ बड़े आराम और प्रेम के साथ गुजारे. इस बीच उन के यहां एक बच्चा भी पैदा हुआ. तब तक उसे पूर्णिमा और परवीन चड्ढा के संबंधों या प्रेम की कोई बात पता नहीं थी. यही वजह थी कि जब पूर्णिमा ने परवीन के व्यवसाय में पैसा लगाया, तो भी उस ने कोई आपत्ति नहीं की.

नरेश सेठी के अनुसार पूर्णिमा पर उसे संदेह तब हुआ, जब 4 साल पहले रामू ने एक दिन बताया कि परवीन चड्ढा उस के पीछे कोठी पर आता है और घंटों वहां रहता है. पूर्णिमा उस वक्त किसी न किसी बहाने से उसे कहीं भेज देती थी. उस समय मेरा बेटा भी दिल्ली में ही था. उस ने भी मुझे यह बात बताई. यह पता चलने के बाद भी मैं ने पूर्णिमा पर शक नहीं किया.

बाद में जब बेटा मसूरी चला गया और पूर्णिमा हर महीने मुंबई जाने लगी, तो मैं ने टोकाटाकी शुरू की. लेकिन जबजब मैं ने कुछ कहा, पूर्णिमा मुझ से लड़ बैठती कि मैं बिना वजह उस पर शक करता हूं. मेरे मना करने के बावजूद वह मुंबई के चक्कर पर चक्कर लगाती रही और मैं कुछ न कर सका.

मेरी जानकारी के हिसाब से पूर्णिमा ने परवीन चड्ढा के व्यवसाय में 20 लाख रुपए लगाए थे. यह अलग बात थी कि उस व्यवसाय से पूर्णिमा को लाभ की कोई राशि कभी नहीं मिली थी. इस साल फरवरी में इत्तफाक से पूर्णिमा की एक व्यक्तिगत डायरी मेरे हाथ लग गई. उस डायरी में पूर्णिमा ने उस रकम का ब्यौरा लिख रखा था, जो उस ने परवीन चड्ढा को दी थी. मैं ने टोटल किया तो पता चला यह रकम लगभग 40 लाख थी.

मुझे लगा कि मैं ने कुछ न किया तो पूर्णिमा चड्ढा के चक्कर में मुझे बरबाद कर देगी. मैं ने निश्चय किया कि जैसे भी होगा, मैं इस कहानी को खत्म कर दूंगा.

नरेश सेठी ने बताया कि पिछले एक साल से उसे व्यापार में काफी नुकसान हुआ था. पैसे की परेशानी हो रही थी. मैं ने पूर्णिमा से कहा कि उस ने चड्ढा के व्यवसाय में जो 20 लाख रुपए लगाए हैं, उन से कोई लाभ तो हो नहीं रहा, अत: वापस ले ले.

पैसे लाने का बहाना कर वह मुंबई जाती और पैसा लाने के बजाए उसे पैसा दे कर आ जाती. मुझ से वह बहाने बना देती. मैं ने उस से कई बार कहा कि वह परवीन चड्ढा से मेरी बात करा दे, लेकिन उस ने चड्ढा से न तो मेरी बात ही कराई और न मिलवाया.

मजबूरी में मैं ने एक प्राइवेट जासूस की मदद ली और चड्ढा और अपनी पत्नी के संबंध की हकीकत पता की. जो कुछ पता चला, उस से मेरा दिल भी टूटा और विश्वास भी. रामू ने चड्ढा को 3 तारीख को देखा था. उस ने यह बात मुझे उसी शाम को बताई. मुझे लगा कि परवीन चड्ढा दिल्ली में ही होगा. मैं ने रामू से पूछा, ‘‘क्या मैडम ने आज दोपहर भी तुम्हें कहीं भेजा था?’’

उस ने बताया कि मैडम ने उसे 12 बजे कुछ कीमती साडि़यां दे कर कहा था कि वह उन्हें बैंडबौक्स ड्राईक्लीनर कनाट प्लेस को ड्राई क्लीनिंग के लिए दे आए. साडि़यां दे कर रामू ढाई बजे वापस लौटा था. लाजपत नगर में कई बड़े ड्राई क्लीनर थे, फिर क्लीनिंग के लिए साडि़यां कनाट प्लेस भेजने की क्या तुक थी. मैं समझ गया कि दोपहर में चड्ढा आया होगा. इसीलिए पूर्णिमा ने रामू को कनाट प्लेस भेजा होगा.

नरेश ने बताया, 2 अगस्त की सुबह जब मैं ड्राइंगरूम में बैठा चाय पी रहा था, तो रामू ने मुझ से कहा कि उस के मौसा का फोन आया था, उसे थोड़ी देर के लिए शकरपुर जाना है. मैं ने उस से पूछा कि कब तक लौटेगा तो वह बोला, 2-ढाई घंटे में लौट आएगा. पूर्णिमा मेरे पास बैठी थी. वह बोली, ‘‘कनाट प्लेस से मेरा एयर टिकट भी लाना है. मैं ने फोन किया था, साढ़े 12 या 1 बजे तक कंफर्मेशन मिलेगा.’’

नरेश ने मन ही मन हिसाब लगाया. साढ़े 12, एक बजे तक रामू कनाट प्लेस में रहेगा, फिर एकडेढ़ घंटे में घर लौटेगा. इसी बीच चड्ढा को आना चाहिए.

नरेश ने चाय पीतेपीते पूरी योजना बना ली कि उसे क्या करना है. हकीकत में उस का इरादा पूर्णिमा और चड्ढा को कोई शारीरिक क्षति पहुंचाने का नहीं था. अलबत्ता उस दिन वह उन दोनों को आमनेसामने बैठा कर कुछ बातें साफ कर लेना चाहता था.

नरेश ने बताया कि वह अशोक बब्बर के आरके पुरम स्थित घर से सवा 12 बजे निकला और पहले ग्रीन पार्क गया. उस का इरादा औफिस में जाने का था. लेकिन औफिस से थोड़ा पहले ही उस का इरादा बदल गया और उस ने घर जाने का निश्चय किया. जिस समय वह कोठी पर पहुंचा, उस समय पौने एक बजा था. जब वह अपनी गली में प्रवेश कर रहा था, तो उस गली से एक टैक्सी को निकलते देखा. उसे लगा कि वह औफिस के चक्कर में लेट हो गया और चड्ढा निकल गया.

नरेश सेठी ने बताया कि वह काफी गुस्से में था. कोठी के अंदर पहुंचा तो बाहर का गेट खुला पड़ा था. नीचे की मंजिल के दरवाजे भी खुले हुए थे. पूर्णिमा नीचे नहीं दिखी, तो वह ऊपर गया. ऊपर ड्राइंगरूम की मेज पर रखे 2 प्याले देखते ही नरेश समझ गया कि चड्ढा ही आया था. उस ने देखा, पूर्णिमा ऊपर वाले बैडरूम में पुराना संदूक खोले बैठी थी और उस का सामान सहेज रही थी.

नरेश गुस्से में तो था ही, उस ने पूर्णिमा से पूछा कि उस संदूक को क्यों खोले बैठी है? लेकिन उस ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया. चड्ढा के बारे में भी उस ने जुबान नहीं खोली. इस पर नरेश ने संदूक का सारा सामान उलटपलट कर देखा, तो उसे पत्रों का एक बंडल मिला. नरेश ने बंडल खोलना चाहा, तो पूर्णिमा उलझ गई. उस ने पत्रों का बंडल नरेश के हाथ से छीनने की कोशिश की. जबकि वह सारे पत्र बिना पढ़े लौटाना नहीं चाहता था.

नरेश गुस्से में था और पूर्णिमा डरी हुई. जब वह नहीं मानी, तो नरेश ने उसे बैड पर गिराया और उस की चुन्नी से ही उस का गला घोंट दिया. वह भहरा कर एक ओर लुढ़की तो नरेश की रूह फना हो गई. वह उसे मारना नहीं चाहता था. लेकिन वह मर चुकी थी.

पूर्णिमा की लाश बैड पर पड़ी थी. बैड पर ही सामान भी फैला पड़ा था. सामान संदूक में भरने के बाद बैड को झाड़ना जरूरी था. सोचविचार कर नरेश पूर्णिमा की लाश रामू के कमरे में डाल आया और सारा सामान संदूक में भर दिया. पूर्णिमा से गुत्थमगुत्था होने की वजह से बैड पर सामान के साथ पड़ी कुछ चूडि़यां टूट गई थीं.

उन के टुकड़े बीन कर नरेश ने रामू के कमरे की खिड़की से बाहर फेंक दिए. दरअसल जिस बैडरूम में नरेश ने पूर्णिमा का गला घोंटा था, उस की खिड़की साइड वाली गैलरी में खुलती थी, जबकि रामू के कमरे की खिड़की गली में खुलती थी. इसीलिए उस ने चूडि़यां वहां से फेंक दी थीं.

संदूक में सामान भरने के बाद नरेश ने संदूक अलमारी के ऊपर रख दिया और डबल बैड की चादर झाड़ कर बिछा दी. पत्रों का बंडल साथ लिया और बिना एक पल भी गंवाए कोठी से बाहर निकल गया. यह सारा काम 15 मिनट में निपट गया था. यह इत्तेफाक ही था कि किसी ने उसे आतेजाते नहीं देखा था.

नरेश ने आगे बताया कि कोठी से निकल कर वह अंजलि एक्सपोर्ट के औफिस गया और वहां लगभग पौन घंटा बैठ कर अपने औफिस चला गया था.

पूर्णिमा के कत्ल की पूरी कहानी पता चल चुकी थी. हम ने नरेश को विधिवत गिरफ्तार कर लिया. उस ने अपने औफिस से पत्रों का पुलिंदा भी बरामद करा दिया. ये पत्र वे थे जो पूर्णिमा ने लंदन और मुंबई के पतों पर शादी से पहले और बाद में परवीन चड्ढा को लिखे थे. पत्रों के हिसाब से उन दोनों में बहुत प्यार था. प्यार ही नहीं दैहिक संबंध भी था.

रामू पर भी भादंवि की धारा 201 का अपराध बनता था. अत: पूछताछ के बाद हम ने नरेश सेठी और रामू को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

—प्रस्तुति : पुष्कर पुष्प

घर पर ऐसे बनाएं खोया चॉकलेट बरफी

तमाम तरह की मिठाइयां मूल रूप से खोए, अनाजों, मेवों और चीनी से ही मिल कर बनती हैं. मिठाइयां बनाने के शौकीन लोग तरहतरह के प्रयोग कर के खाने वालों को अलगअलग स्वाद का एहसास कराने की कोशिश करते रहते हैं. खोया चाकलेट बरफी भी इसी कोशिश का नतीजा है. यह 2 तरह बनती है. पहली खोया चाकलेट परतदार बरफी होती है, जो खोए और चाकलेट के दोहरे स्वाद का एहसास कराती है. यह परतदार बरफी खाने में जितनी स्वादिष्ठ होती है, उतनी ही दिखने में भी अलग होती है.

दूसरी किस्म की बरफी खोया चाकलेट की साधारण बरफी होती है, जिस में खोए के स्वाद में चाकलेट का अंदाज दिखता है. दोनों ही तरह की बरफियों में खोए के साथ मेवों का इस्तेमाल किया जाता है. दोनों में फर्क यह होता है कि परतदार बरफी में चाकलेट और खोया अलगअलग परतों में दिखते हैं और दूसरी किस्म में केवल एक ही तरह की बरफी दिखाई पड़ती है.

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खोया चाकलेट परतदार बरफी बनाने के लिए पहले खोए की परत तैयार की जाती है, फिर चाकलेट की परत तैयार होती है. दोनों को एकदूसरे के ऊपर रख कर जमा दिया जाता है. खोया चाकलेट की साधारण बरफी तैयार करने के लिए खोए में चाकलेट पाउडर और मेवे मिला कर एक जैसी ही बरफी तैयार की जाती है.

कुछ लोग परतदार बरफी पसंद करते हैं, तो कुछ लोग दूसरी बरफी पसंद करते हैं. चाकलेट खोया बरफी देखने में चाकलेट पीस की तरह लगती है. इसे और अच्छा बनाने के लिए चांदी के वर्क से सजा दिया जाता है. खाने वाले को क्रंची स्वाद का एहसास हो इस के लिए बरफी में अलगअलग तरह के मेवे मिलाए जा सकते हैं. मिठाइयों की माहिर प्रिया अवस्थी कहती हैं, ‘मुझे तो चाकलेट खोया की साधारण बरफी ज्यादा अच्छी लगती है. परतदार बरफी देखने में बरफी जैसी ही लगती है, मगर साधारण चाकलेट खोया बरफी चाकलेट जैसी नजर आती है.’

सामग्री :

खोया 300 ग्राम, चीनी पाउडर 100 ग्राम, 5-6 छोटी इलायचियों का पाउडर.

चाकलेट बरफी परत के लिए :

खोया 200 ग्राम, चीनी पाउडर 70 ग्राम, कोको पाउडर 2 टेबल स्पून, घी 2 टेबल स्पून.

विधि :

खोया बरफी बनाने के लिए खोए को कद्दूकस कीजिए. फिर कढ़ाई में 1 छोटा चम्मच घी डाल कर गरम कर लीजिए. गैस एकदम धीमी रखिए.

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घी पिघलने के बाद कद्दूकस किया हुआ खोया और चीनी पाउडर डाल दीजिए. लगातार चलाते हुए खोए चीनी के आपस में ठीक से मिलने तक भूनिए. सही तरह से मिलने के बाद मिश्रण को धीमी गैस पर 5-6 मिनट तक लगातार चलाते हुए पका लीजिए.

फिर इस में इलायची पाउडर मिला दीजिए. प्लेट में घी लगा कर चिकना कीजिए और मिश्रण को जमने के लिए प्लेट में डालिए और घी लगे चम्मच से एक जैसा फैला कर 1 घंटे तक ठंडा होने दीजिए.

चाकलेट बरफी की परत तैयार करने के लिए कढ़ाई में एक छोटा चम्मच घी, कद्दूकस किया खोया, चीनी पाउडर और कोको पाउडर डालें. मिश्रण को धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए खोया चीनी के मिलने तक भूनें.

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खोया व चीनी अच्छी तरह मिलने के बाद मिश्रण को धीमी आंच पर 4-5 मिनट तक लगातार चलाते हुए भूनें. चाकलेट का मिश्रण बरफी जमाने के लिए तैयार है.

चाकलेट वाले तैयार मिश्रण को ठंडे किए हुए बर्फी के मिश्रण के ऊपर डालिए और घी लगे चम्मच से फैला कर एक जैसा कर दीजिए.

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बरफी को जमने के लिए ठंडी जगह पर 2-4 घंटे के लिए रख दीजिए. इस के बाद बरफी तैयार हो जाएगी, जमी तैयार बरफी को अपने मनपसंद टुकड़ों में काट लीजिए.

गलती-भाग 1: मालती ने माला का जीवन कैसे खराब किया था?

मैं ने सोचा था कि स्वरूप के यहां काफी गहमागहमी होगी. उस ने मेरे अतिरिक्त अन्य मित्रों को भी निमंत्रित किया होगा. जम कर पार्टी होगी. दिल खोल कर ठहाके लगेंगे. पर ऐसा कुछ होता नजर नहीं आया. स्वरूप का सुंदर, छोटा सा कोठीनुमा घर एक विचित्र श्मशानी खामोशी और निर्जनता से आतंकित था. सारे दरवाजे बंद, चारों ओर गहन अंधकार. ‘क्या मुझे निमंत्रित कर के ये लोग कहीं और चले गए हैं?’ मैं ने सोचा. पर अंतर ने इस विचार को अस्वीकार कर दिया. स्वरूप तथा माला मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते.

मैं ने दरवाजे के बाहर लगे घंटी के सफेद बटन को दबा दिया. सन्नाटा छटपटा गया, पर मानव गतिविधि का कोई आभास नहीं मिला. फिर वही सन्नाटा.

‘शायद घर में कोई नहीं है,’ मैं ने सोचा और अनायास फिर से मेरा हाथ घंटी के बटन की ओर बढ़ गया. बटन दबा कर मैं मुड़ गया, वापस लौटने के लिए. मुख्यद्वार से कोई 50 गज की दूरी पर पहुंचते ही मुझे एक करुणभीगी नारीस्वर सुनाई दिया, ‘‘कौन है?’’ मैं पलटा. लपक कर मुख्यद्वार के समीप पहुंचा. उस अविश्वसनीय दृश्य को देख कर मैं बुरी तरह चौंक गया और मेरे मुंह से अनायास निकल गया, ‘‘माला भाभी, आप?’’

‘‘राकेश भैया, आप,’’ जिस तरह मैं चौंका था, उसी तरह माला भाभी भी मेरी अनपेक्षित तथा आकस्मिक उपस्थिति को देख कर जैसे घबरा गई थीं. मेरे सारे प्रश्न जम गए. शंकाओं को जैसे लकवा मार गया. यह क्या हुआ माला भाभी को? अस्तव्यस्त बाल, लाल आंखें, गालों पर सूखे आंसुओं की अव्यक्त एवं अदृश्य रेखाएं. कंपकंपाते होंठ, थरथराता शरीर. पिछले 12 वर्षों में पहली बार मैं माला भाभी को इस रूप में देख रहा था. यह अचानक रूपांतर क्यों? आखिर इस खिले, महकते पुष्प को क्या हो गया, जो इस तरह मुरझा गया?

‘‘अंदर आइए, भाईसाहब,’’ माला भाभी का जलतरंगीय स्वर जैसे बेसुरा हो गया था.

‘‘भाभीजी, आखिर बात क्या है?’’ हार कर मैं ने पूछ ही लिया.

‘‘कुछ भी तो नहीं.’’

‘‘फिर इस तरह, आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हूं.’’

‘‘फिर?’’

‘‘अंदर तो आइए.’’

मैं अंदर पहुंचा. भाभी की आंखों की भांति उन का ड्राइंगरूम भी बिलकुल सूना और अंधकारमय था. मैं ने लाइट जलाई. कमरा दूधिया प्रकाश में जगमगा उठा. मैं ने कमरे के बीचोंबीच व्यथा तथा शोक की प्रतिमूर्ति बनी खड़ी माला भाभी को देखा और दृढ़तापूर्वक बोला, ‘‘लगता है, स्वरूप से खटपट हो गई है.’’ माला भाभी ने कोई उत्तर नहीं दिया.

‘‘भाभी, आखिर चक्कर क्या है? आप कुछ बोलती क्यों नहीं? मैं आप लोगों को पिछले 12 वर्षों से देख रहा हूं. आप दोनों वास्तव में एक आदर्श पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. आप दोनों में कितनी आपसी समझबूझ थी. 2 बच्चे, आर्थिक समृद्धि, किसी चीज का अभाव नहीं. फिर आखिर आज आप के सुखसंतोष की जलधारा कैसे सूख गई?’’ इस बार भी माला ने कोई उत्तर नहीं दिया. सहानुभूति की उष्मा पा कर उन का जमा अंतर पिघला और आंखों को डबडबा गया.

‘‘अरे, आप तो रो रही हैं. आज कितना अच्छा दिन है. आप के विवाह की 12वीं वर्षगांठ. ऐसे खुशी के अवसर पर आप की आंखों में आंसू.’’

‘‘हां, भाईसाहब, अब तो जिंदगीभर रोना है.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं?’’ मैं ने घोर आश्चर्य से कहा. मैं विस्मित तथा उलझा हुआ सा एकटक माला भाभी को देख रहा था. इस तरह का माहौल इस घर के लिए एक अप्रत्याशित बात थी. मैं सोफे पर बैठ गया. मैं अंदर ही अंदर परेशान हो उठा. अचानक मुझे स्वरूप की याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘स्वरूप कहां है?’’

‘‘फिल्म देखने गए हैं.’’

‘‘अकेले ही?’’

‘‘नहीं, मालती भी साथ गई है.’’

‘‘आप को नहीं ले गए?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मेरी अब क्या जरूरत है?’’ माला भाभी बोलीं. मैं स्तंभित सा उन की ओर देखता रह गया. क्या मालती ‘तीसरा व्यक्ति बन कर इस सुखी परिवार को नष्ट करने का माध्यम बन गई है?’ ऐसा होना तो नहीं चाहिए. माला भाभी ने अपनी छोटी बहन मालती पर बड़ा उपकार किया है. बीए पास करने के बाद मालती को घर बैठ जाना पड़ा. मेरठ में उसे बीटेक में दाखिला नहीं मिला. घर की आर्थिक दशा ऐसी नहीं थी कि पापा मालती को कहीं मेरठ से बाहर भेज कर आगे पढ़ा सकते. तब मालती ने कैसी दर्दभरी दास्तां लिख कर एसएमएस किया था. मैं ने उस एसएमएस को गौर से पढ़ा था. माला भाभी ने कैसी अभूतपूर्व सहायता की थी अपनी छोटी बहन की. स्वरूप प्रोफैसर है. उस की भागदौड़ तथा सिफारिश के कारण मालती को बीटेक में दाखिल मिल गया. वह दिल्ली आ कर माला के घर में ही रहने लगी. स्वरूप और माला उस की पढ़ाईलिखाई तथा घर में रहनेसहने का पूरा खर्च उठा रहे थे.

माला भाभी तथा स्वरूप ने यह निर्णय करते समय मुझ से सलाह ली थी. मुझे खूब अच्छी तरह याद है कि मालती को दिल्ली में पढ़ाने के विषय में स्वरूप सब से ज्यादा उत्साही था. माला भाभी थोड़ी सकुचा रही थीं. पर मैं उन के विरुद्ध था. मैं ने दबी जबान से इस निर्णय का विरोध किया था. पर स्वरूप ने उत्साह में भर कर कहा था, ‘‘यार, अपने नातेरिश्तेदार ही काम आते हैं. फिर मालती कोई पराई है क्या? अरे, वह तो अपनी साली है. और तुम जानते ही हो कि साली आधी घरवाली होती है.’’ ‘‘स्वरूप, यह विचारधारा एकदम भ्रामक है.’’

 ग्रामीण इलाके की प्रतिभा लड़कियों में अव्वल

ग्रामीण समाज में आज भी लडकियों को पढने के अवसर कम मिलते है. लडकियों के पैदा होने पर घर माहौल उस तरह खुशी नहीं जाहिर करता तैसे बेटे के होने पर करता है. एससीबीसी में हालात और भी खराब है. जिन पिछडी जातियों में लडकियों पर भरोसा किया जाता है उनको साधन और प्रोत्साहन दिया जाता है वहां की लडकियां प्रतिभा वर्मा जैसा कमाल करती है. सिविल सर्विस परीक्षा 2019 में लडकियों ने पहले के मुकाबले बेहतर पर्दशन किया है. जिसको देख कर कहा जा सकता है कि हमारी लडकियां किसी से कम है क्या ?

‘’मैं बचपन से ही यह देखती थी कि कोई भी बडा संकट आता है तो आईएएस अधिकारी ही आगे बढ कर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते है. ऐसे में मैं भी आईएएस बन कर देश और समाज की सेवा करना चाहती थी. इस कारण पिछले साल इनकम टैक्स कमिश्नर बनने के बाद भी मेरा प्रयास रहा कि आईएएस बन जाऊ.‘  यह कहना है सिविल सेवा में लडकियोे की कैटेगरी में पहला मुकाम हासिल करने वाली प्रतिभा वर्मा का.

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उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के दुबेपुर ब्लाक की रहने वाली प्रतिभा वर्मा ने 2019 की सिविल सेवा परीक्षा में महिला वर्ग में पूरे देश में पहले स्थान पर रही. औल ओवर इंडिया में प्रतिभा ने तीसरी रैंक हासिल की. प्रतिभा की स्कूली शिक्षा सुल्तानपुर के सरकारी स्कूलों में हुई. 2008 में उसने रामराजी इंटर कालेज यूपी बोर्ड की कक्षा 10 परीक्षा में टौप किया. 2010 में इंटरमीडिएट में प्रतिभा ने केएनआईसी कालेज से जिला टौप किया. 2014 में उसने आईआईटी दिल्ली से बीटेक किया. 2015 में प्रतिभा के पिता ने सिविल सर्विस की लिये प्रेरित किया. सिविल सर्विस 2018 में  498 रैंक हासिल करके इनकम टैक्स कमिश्नर बनी. एक साल तक प्रतिभा ने  नौकरी की. प्रतिभा के मन में बचपन से ही आईएएस बनने का सपना था. इसलिये पढाई जारी रखी. इसके साथ ही साथ उसने सिविल सर्विस की तैयारी जारी रखी. इस साल उसका सपना पूरा हुआ. प्रतिभा की बडी बहन प्रियंका वर्मा दिल्ली में डाक्टर है.

प्रतिभा वर्मा

प्रतिभा में पढाई के प्रति रूझान बचपन से था. इसमें प्रतिभा के मातापिता का प्रमुख मार्गदर्शन रहा. प्रतिभा बचपन में अपने पिता के साथ सुल्तानपुर जिले के बघराजपुर गांव में रहती थी. प्रतिभा के पिता सुवंश वर्मा बिकवाजितपुर  गांव के माध्यमिक विद्यालय में पढाते थे. वहां से प्रिसिपल के पद से रिटायर हुये. प्रतिभा की मां ऊषा वर्मा प्राथमिक विद्यालय बभनगंवा में प्रिसिपल है. मातापिता ने प्रतिभा का हौसला बढाने का काम किया.

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प्रतिभा ने बताया कि पढाई के दौरान हम घरेलू कामकाज निपटाते थे. जब रात में घर के लोग सो जाते थे तब अपनी पढाई करते थे. 16 से 18 घंटे पढाई करने के बाद भी सफलता मिलना सरल नहीं होता है. 2018 की सिविल परीक्षा में जब 498 रैंक आई तो बहुत निराशा हुई थी. पर हार नहीं माना. मातापिता ने हौसला बढाया और इसके बाद सेल्फ स्टडी करनी शुरु कर दी. टाइम मैनेजमेंट करके पढाई शुरू की. अब जब सफलता मिली तो बहुत अच्छा लग रहा. उससे भी अच्छा यह लग रहा कि हमारे जैसी तमाम लडकियों ने सिविल सर्विस में अच्छा स्थान पाया है. लडकियों की भागीदारी बढ रही है.

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सिविल सर्विस में लडकियों की धमक:

सिविल सर्विस परीक्षा 2019 में पहले 20 सफल प्रत्यशियों में 7 लडकियां है. पहले 50 में 19 लडकियां है. कुल 829 प्रत्याशी सफल हुये. इनमें जनरल कैटेगरी के 304, ओबीसी के 251 एससी के 129 और एसटी के 67 प्रत्याशी सफल हुये. सिविल सेवा परीक्षा में पहली बार 78 प्रत्याशियों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की श्रेणी में आरक्षण के तहत सफलता मिली. जम्मू कश्मीर में 14 प्रत्याशी सफल हुये. कुपवाडा की रहने वाली नादिया ने 23 साल की उम्र में ही सफलता पाई.

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हर विषय और हर इलाके से आये छात्र बनेगे अफसर:

26 वें नम्बर पर आये प्रदीप सिंह बिहार के गोपालगंज के रहने वाले है. पिता ने घर बेच कर उनको पढाई करवाई. अभी उनका परिवार इंदौर में रहता है. 2018 की सिविल सर्विस परीक्षा में प्रदीप को इंडियन रेवेन्यू सर्विस में स्थान मिला था. 1 नंबर कम रैंक रहने से आईएएस में उनको चुनाव रह गया था. सिविल सर्विस के 829 प्रत्याशियों में से 180 लोग आईएएस बनते है. हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले प्रदीप सिंह ने पहला स्थान हासिल किया. सिविल सर्विस की परीक्षा में किसी एक विषय का दबदबा नहीं रहा. इस परीक्षा में पूरे देश की अलग अलग प्रतिभाओं ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया.

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