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अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिए

केंद्रीय गौवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ तीसरे अंक में आप ने पढ़ा था : अब आप की औसर 2 साल की हो चुकी है. वह अपनी पहली हीट दिखाएगी, जिसे आप छोड़ देते हैं. 2 साल पौने 3 महीने होने पर जब उस में तीसरी हीट के लक्षण दिखाई दें, तब उसे गाभिन कराने का सही समय मानिए. गाभिन होने के बाद उस का खास खयाल रखा जाता है. अब पढि़ए आगे… आ प की बछिया बड़ी हो कर एक नई बछिया या बछड़े की मां बन चुकी है और इस में कुल 3 साल लगे.

अब आप को इस के नवजात का पोषण बिलकुल वैसे ही करना है, जैसे इस बछिया का किया था. मगर अब मां बन चुकी इस गाय को विशेष पोषण चाहिए, क्योंकि खुद के शरीर में रखरखाव के लिए और दूध उत्पादन के लिए. अपने खुद के बच्चे के लिए इसे उतना दूध नहीं पैदा करना है, जितना इसे आप के बच्चों का खयाल है. अगर आप ने शैड्यूल के मुताबिक भरणपोषण किया है तो इस ताजा ब्याई गाय की जेर ज्यादा से ज्यादा 12 घंटों में गिर जाएगी. अगर नहीं गिरती है तो आप को किसी पशुचिकित्सक की शरण में जाना ही होगा. गर्भकाल के दौरान प्रोटीन की कमी होने पर जेर गिरने में समस्या आती है. इस समय दुधारू गाय को हम भरपेट हरा चारा देंगे. साथ में देंगे कुछ मात्रा में भूसा और रातिब मिश्रण की एक निश्चित मात्रा. अब 3 स्थितियां हो सकती हैं * आप के पास हरा चारा बहुत कम है और जो हरा चारा उपलब्ध है,

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वह गैरदलहनी चारा है और आप के पास पर्याप्त भूसा और प्रचुर मात्रा में रातिब मिश्रण उपलब्ध है. * आप के पास गैरदलहनी हरा चारा भी पर्याप्त मात्रा में है और भूसा भी और रातिब मिश्रण भी. * आप के पास दलहनी और गैरदलहनी हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, भूसा भी है, मगर रातिब मिश्रण लिमिटेड है या बिलकुल नहीं है. दुधारू गाय का पोषण उस के दुग्ध उत्पादन और दूध में उपस्थित वसा की मात्रा पर निर्भर होगा. यहां हम आप को 3 उत्पादन स्तर वाली गायों के पोषण के बारे में बताएंगे : * 5 लिटर दूध उत्पादन वाली. * 10 लिटर दूध उत्पादन वाली. * 15 लिटर दूध उत्पादन वाली. पहले बात करते हैं 5 लिटर दूध उत्पादन वाली गाय की तीनों स्थितियों में पोषण की. स्थिति 1 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध देने वाली गाय को 5 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 6 किलोग्राम भूसा और 5 किलोग्राम 16 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण देना होगा. चूंकि इस में रातिब मिश्रण की मात्रा ज्यादा है, इसलिए यह ज्यादा महंगा साबित होगा और उत्पादन लागत बहुत ज्यादा होगी. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 50 रुपए प्रति लिटर होगी.

लागत मूल्य से ज्यादा विक्रय मूल्य होने पर ही आप कुछ कमाई कर पाएंगे. 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला 100 किलोग्राम रातिब मिश्रण बनाने के लिए मक्का 40 किलोग्राम, गेहूं का चोकर 40 किलोग्राम, सरसों की खली 17 किलोग्राम, अच्छी गुणवत्ता का विटामिन मिनरल मिक्सचर 2 किलोग्राम और साधारण नमक 1 किलोग्राम को अच्छी तरह से मिलाने की जरूरत होगी. स्थिति 2 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध वाली गाय को 24 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा, 2 किलोग्राम भूसा और 2.5 किलोग्राम 16 फीसदी क्रूड प्रोटीन वाला रातिब मिश्रण प्रतिदिन देंगे. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 42 रुपए प्रति लिटर होगी. दूध 50 रुपए प्रति लिटर बेच कर भी आप कुछ न कुछ बचा ही लेंगे. स्थिति 3 : इस स्थिति में 5 लिटर दूध देने वाली गाय को 15 किलोग्राम दलहनी हरा चारा, 10 किलोग्राम गैरदलहनी हरा चारा और 6 किलोग्राम भूसा देने से भी सभी पोषण जरूरतें पूरी हो जाएंगी और यह सब से सस्ता भी होगा. इस की उत्पादन लागत सभी खर्चे जोड़ कर तकरीबन 35 रुपए प्रति लिटर होगी.

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यह सब से ज्यादा फायदा देने वाली स्थिति है. कुलमिला कर यह कह सकते हैं कि हरा चारा और भूसा खिला कर दूध पैदा करना सब से सस्ता होता है. साथ ही, बिना रातिब मिश्रण खिलाए केवल दलहनी और गैरदलहनी चारा खिला कर 5 लिटर तक दूध उत्पादन लिया जा सकता है, मगर इस से ज्यादा दूध उत्पादन वाली गायों के लिए रातिब मिश्रण देना जरूरी हो जाएगा. दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि दूध उत्पादन जितना ज्यादा होगा, उत्पादन लागत उतनी ही कम होती जाएगी, इसलिए किसी भी डेरी की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि कम उत्पादन वाले ज्यादा पशुओं के स्थान पर ज्यादा उत्पादन वाले कम पशु रखे जाएं. किसान के पास पर्याप्त मात्रा में हरा चारा उपलब्ध हो. साथ ही, रातिब मिश्रण खुद बनाया जाए. खुद बनाया गया रातिब मिश्रण गुणवत्ता में भी अच्छा होगा और सस्ता पड़ेगा. इस के अलावा दूध की बिक्री बिचौलियों के माध्यम से न कर के खुद की जाए, ताकि उपभोक्ता को भी फायदा हो और आप को भी दूध का उचित दाम मिल पाए.

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दूध की मार्केटिंग तो आप को हर हाल में सीखनी पड़ेगी. ठ्ठ बीमार पशु की पहचान – डा. सुमित महाजन ऐसे कई संकेत हैं जो यह तय करते हैं कि कोई पशु स्वस्थ है या किसी बीमारी से पीडि़त है. पशुपालक पशुओं के संकेतों की जांच कर के बीमार पशुओं और रोगों को प्रारंभिक अवस्था में पहचान सकते हैं. अगर यह एक गंभीर बीमारी को जन्म दे रहा है, तो प्रारंभिक निदान पशुओं को बचा सकता है. एक पशु स्वस्थ है या बीमार है इस का निर्धारण निम्नलिखित दिए गए सांकेतिक लक्षणों से किया जा सकता है : पशु की भोजन में अरुचि या सामान्य रूप से कम खाना. यह आमतौर पर बीमार पशु का पहला संकेत है.  बीमार पशु समूह के अन्य पशुओं से अलगअलग या पीछेपीछे चलता है.

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वह जुगाली कम या फिर बंद कर देता है.  अत्यधिक मात्रा में लार का टपकना.  सांस लेने में तकलीफ होना.  आंख, नाक या योनि से असामान्य स्राव.  धंसा हुआ नेत्र गोलक भी बीमारी का संकेत होता है. दुधारू पशु के दूध में अचानक कमी आ जाती?है. मल त्याग में खिंचाव और तनाव. * पेशाब के रंग व मात्रा में बदलाव.  असामान्य ध्वनि निकालना (घुरघुराना).  अचानक पेट के आकार में परिवर्तन होना.  थनों में सूजन, दूध में छिछड़े व खून का आना थनैला रोग के लक्षण हैं. महत्त्वपूर्ण संकेतों में बदलाव बीमारियों के प्रारंभिक लक्षण हो सकते हैं, इसलिए पशुपालकों को स्वास्थ्य या अस्वस्थता के संकेतों के लिए पशुओं की लगातार जांच करनी चाहिए, ताकि समय रहते बीमारी का सुचारु रूप से उपचार किया जा सके.

चोट-भाग 1: रीना ने योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से क्या कहा?

योगेन नपेतुले कदमों से आगे बढ़ते हुए साफ महसूस कर रहा था कि आगे चल रही महिला उस से डर रही है. उस अंधेरे कौरीडोर में वह बारबार पीछे मुड़ कर देख रही थी. उस की आंखों में एक अंजाना सा डर था और वह बेहद घबराई हुई लग रही थी. शायद उसे लग रहा था कि वह उस का पीछा कर रहा है.

बिजनैस सेंटर में ज्यादातर औफिस थे, जिन में अब तक काफी बंद हो चुके थे. इस बिजनैस सेंटर में खास बात यह थी कि इस के औफिस में किसी भी समय आयाजाया जा सकता था. इसीलिए सेंटर के गेट पर एक रजिस्टर रख दिया गया था, जिस में आनेजाने वालों को अपना नामपता और समय लिखना होता था.

महिला रजिस्टर में अपना नामपता और समय लिख कर तेजी से आगे बढ़ गई. उस के बाद योगेन भी नामपता और समय लिख कर महिला के साथ लिफ्ट में सवार हो गया था. लिफ्ट में महिला ने एक बार भी नजर उठा कर उस की ओर नहीं देखा.

शायद वह अपने खौफ पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. योगेन ने लिफ्ट औपरेटर से कहा, ‘‘सातवीं मंजिल पर जाना है.’’

इस पर महिला ने चौंक कर उस की ओर देखा, क्योंकि उसे भी उसी मंजिल पर जाना था. यह सोच कर उस की सांस रुकने लगी कि यह आदमी क्यों उस के पीछे लगा है?

चंद पलों में ही सातवीं मंजिल आ गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही महिला तेजी से निकली और उसी रफ्तार से आगे बढ़ गई. उस की ऊंची ऐड़ी के सैंडल फर्श पर ठकठक बज रहे थे. तेजी से चलते हुए उस ने पलट कर देखा तो गिरतेगिरते बची.

योगेन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस महिला को कैसे समझाए कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा, इसलिए उसे उस से डरने की कोई जरूरत नहीं है.

आगे बढ़ते हुए योगेन दोनों ओर बने धुंधले शीशे वाले औफिसों पर नजर डालता जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से दरवाजों पर लिखे नंबर ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे. कौरीडोर खत्म होते ही महिला बाईं ओर मुड़ गई. वह भी उसी ओर मुड़ा तो महिला और ज्यादा सहम गई.

वह और तेजी से आगे बढ़ कर एक औफिस के आगे रुक गई. उस की लाइट जल रही थी. दरवाजे के हैंडल पर हाथ रख कर उस ने योगेन की ओर देखा. लेकिन वह उस के करीब से आगे बढ़ गया.

आगे बढ़ते हुए योगेन ने दरवाजे पर नजर डाली थी. उस पर डा. साहिल परीचा के नाम का बोर्ड लगा था. उस के आगे बढ़ जाने से महिला हैरान तो हुई ही, उसे यकीन भी हो गया कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा था.

योगेन अंधेरे में डूबे दरवाजों को पार करते हुए आगे बढ़ता रहा. उस कौरीडोर में आखिरी दरवाजे से रोशनी आ रही थी. आगे बढ़ते हुए उस ने अपनी दोनों जेबें थपथपाई. एक जेब में पिस्तौल था, जिसे इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी थी. दूसरी जेब में 50 लाख रुपए की कीमत का बहुमूल्य हीरे का नेकलैस मखमल की एक डिब्बी में रखा था. जिसे लेने से पहले योगेन ने अच्छी तरह चैक किया था. वह वही नेकलैस पहुंचाने यहां आया था.

दरवाजा खोलने से पहले योगेन ने पलट कर देखा तो वह महिला अभी तक दरवाजे पर खड़ी उसी को देख रही थी. योगेन ने उसे घूरा तो वह हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर चली गई.

योगेन ने एक बार फिर खाली कौरीडोर को देखा और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. सामने रिसैप्शन में बैठी लड़की उसे देख कर मुसकराते हुए उठी और उस के गले लग गई. योगेन कुछ कहता, उस के पहले ही वह बोली, ‘‘तुम एकदम सही समय साढ़े 8 बजे आए हो डियर. उसे साथ ले आए हो न?’’

‘‘हां, ले आया हूं.’’ योगेन ने जेब पर हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘कैसा है, क्या बहुत खूबसूरत है?’’ लड़की ने बेचैनी से पूछा.

योगेन ने लड़की का हाथ पकड़ कर उस के बाएं हाथ की हीरे की अंगूठी देखते हुए कहा, ‘‘रीना, नेकलैस के सारे हीरे इस से बड़े और काफी कीमती हैं.’’

‘‘योगेन फिर कभी ऐसा मत कहना. मेरे लिए यह अंगूठी दुनिया की सब से कीमती चीज है. जानते हो क्यों? क्योंकि इसे तुम ने दिया है. यह तुम्हारे प्यार की निशानी है.’’ रीना योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा.

रीना की इस बात पर योगेन मुसकराया.

रीना ने अपने बैग से टिशू पेपर निकालते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे गाल पर मेरी लिपस्टिक का निशान लग गया है…’’ रीना इतना ही कह पाई थी कि उस की आंखें हैरानी से फैल गईं और आगे की बात मुंह में ही रह गई.

रीना की हालत से ही योगेन अलर्ट हो गया. वह समझ गया कि उस के पीछे जरूर कोई मौजूद है. उस ने मुड़ने की कोशिश की कि तभी उस के सिर के पिछले हिस्से पर कोई भारी चीज लगी और वह रीना की बांहों में गिर कर बेहोश हो गया.

जब उसे होश आया तो उसे लगा कि वह किसी मुलायम चीज पर लेटा है. सिर के पिछले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था. उस के होंठों से कराह निकली. आंखें खोलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा.

उसे लगा जैसे उस की आंखों पर भारी बोझ रखा है. फिर भी उस ने हिम्मत कर के आंखें खोल दीं. लेकिन तेज रोशनी से उस की आंखें बंद हो गईं. उस के कानों में कुछ आवाजें पड़ रही थीं. कोई कह रहा था, ‘‘ओह गाड, यह क्या हुआ?’’

चोट-भाग 4 : रीना ने योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से क्या कहा?

‘‘तुम क्या कहते हो डा. परीचा?’’ पटेल ने डा. परीचा से पूछा.

‘‘मैं अकेला था.’’ डाक्टर धीरे से बोला.

‘‘लिलि पराशर तुम्हारे साथ नहीं थीं?’’

उस ने इनकार में सिर हिला दिया.

‘‘पर लिलि ने तो मान लिया है कि वह तुम्हारे साथ थी.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

पर डाक्टर इनकार करता रहा.

‘‘डाक्टर पुलिस के काम में उलझन मत पैदा करो. तुम्हें अंदाजा नहीं है कि तुम्हारा यह झूठ तुम्हें मुश्किल में डाल सकता है. लिलि और उस के पति ने मान लिया है कि वह तुम्हारे कमरे में थी. पर तुम लगातार इनकार कर रहे हो. आखिर कारण क्या है?’’

‘‘मि. अतुल एक शक्की आदमी है. मैं नहीं चाहता कि मेरे सच बोलने की वजह से लिलि के लिए कोई मुसीबत खड़ी हो. वह पागल आदमी उस का जीना मुश्किल कर देगा.’’ डा. परीचा ने कहा.

‘‘तुम और लिलि शादी के पहले से दोस्त हो?’’

पटेल ने अचानक प्रेमप्रकाश से सवाल किया, ‘‘तुम ने मि. अतुल को इस लड़की और योगेन को करीब खड़े देखा था, ये दोनों फर्श पर पड़े थे, तुम अपने औफिस से इस औफिस में क्यों आए थे?’’

‘‘मैं यहां शोर सुन कर वजह जानने आया था.’’

‘‘तुम्हें नेकलैस के बारे में मालूम था?’’ पटेल ने घूरते हुए पूछा.

‘‘जी, अतुल ने मुझ से ही उस कीमती नेकलैस का इंश्योरैंस करवाया था. मुझे यह भी पता था कि वह नेकलैस आज ही उन्हें मिलने वाला है.’’ प्रेमप्रकाश ने कहा.

‘‘उस नेकलैस के चोरी होने से तुम्हें तो नुकसान होगा?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘मुझे तो नहीं, हां मेरी कंपनी को जरूर नुकसान होगा. इस के लिए पुलिस जांच की रिपोर्ट की जरूरत पड़ेगी.’’ प्रेमप्रकाश ने बताया.

‘‘क्या तुम रेस खेलते हो, घोड़ों पर रकम लगाते हो, यह बहुत महंगा शौक है?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘तुम्हारा मतलब है नेकलैस मैं ने चुराया है?’’ प्रेमप्रकाश ने खीझ कर पूछा.

पटेल ने उसे जवाब देने के बजाय डाक्टर से पूछा, ‘‘तुम इतनी रात तक अपने औफिस में क्या कर रहे थे? लिलि की राह देख रहे थे क्या?’’

‘‘मुझे लिलि के आने के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह जिस वक्त मेरे पास आई, घबराई हुई थी. उस ने बताया कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने यह भी कहा कि वह आदमी उस के पति के औफिस में गया है. इस के बाद हम बातें करने लगे. तभी प्रेमप्रकाश आ गया. मैं ने लिलि को अंदर वाले कमरे में भेज दिया और अपना बैग ले कर उस के साथ यहां आ गया. लिलि को मुझे छिपाना नहीं चाहिए था.’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘उस के बाद क्या हुआ?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘जब मैं अतुल के औफिस में पहुंचा तो रीना मर चुकी थी. मगर यह लड़का जिंदा था. इस के सिर पर चोट आई थी. अगर चोट जरा भी गहरी होती तो यह मर भी सकता था.’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘अच्छा, तुम दोनों जा सकते हो.’’ पटेल ने कहा.

‘‘क्या मैं भी जा सकता हूं?’’ योगेन ने पूछा.

इंसपेक्टर पटेल ने उसे भी इजाजत दे दी.

योगेन की चोट तकलीफ दे रही थी. सिर के पिछले हिस्से में दर्द था. उस की नजरों के सामने बारबार रीना की लाश आ रही थी. कैसी हंसतीमुसकराती लड़की मिनटों में मौत की गोद में समा गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. रीना से मुलाकात का दृश्य उस की आंखों में घूम रहा था, कानों में उस की आवाज गूंज रही थी.

वह उन आवाजों के बारे में सोचने लगा, जो जरा होश में आने पर उस के कानों में पड़ी थी. अचानक एक आवाज उसे याद आई तो वह उछल पड़ा. उस ने उसी वक्त इंसपेक्टर पटेल को फोन किया. पटेल ने झुंझला कर कहा, ‘‘अभी तुम सो जाओ, सुबह बात करेंगे.’’

‘‘इंसपेक्टर साहब, सुबह तक बहुत देर हो जाएगी. सारा खेल खतम हो जाएगा. हमें अभी और इसी वक्त बिजनैस सेंटर चलना होगा. मुझे उम्मीद है कि नेकलैस भी बरामद कर लेंगे और कातिल को भी पकड़ लेंगे.’’

आधे घंटे बाद दोनों अतुल के औफिस में बैठे थे. इंसपेक्टर पटेल थोड़ा नाराज थे. योगेन जबरदस्ती उन्हें औफिस ले आया था. गार्ड से चाबी ले कर अतुल का औफिस खोल कर दोनों उस में बैठे थे.

‘‘मुझे रीना के कातिल का पता चला गया है.’’ योगेन ने कहा.

‘‘कौन है वह?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘यह बड़ी होशियारी से तैयार किया गया प्लान था. कातिल किसी का कत्ल नहीं करना चाहता था. उस ने पाइप में भी कपड़ा लपेट रखा था, ताकि अपने शिकार को बेहोश कर के नेकलैस उड़ा सके. न जाने क्यों उस ने लिफाफे खोलने वाली छुरी से रीना पर हमला कर दिया? शायद उसे अंदाजा नहीं था कि यह छुरी किसी को मार भी सकती है.’’

‘‘यह सब छोड़ो, तुम यह बताओ कि हम यहां क्यों आए हैं? रीना का कातिल कौन है?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘जिस वक्त रीना मेरी बांहों में थी, उसी वक्त उस ने चौंक कर मेरे पीछे देखा था. मतलब उस ने मुझ पर हमला करने वाले को देख लिया था. हमला करने वाला मुझे बेहोश कर के नेकलैस हासिल करना चाहता था. मगर रीना ने उसे देख लिया था, इसलिए हमला करने वाले को मजबूरन उस का कत्ल करना पड़ा.’’ योगेन ने कहा.

‘‘आखिर वह है कौन?’’ पटेल ने झुंझला कर पूछा.

‘‘इस के लिए आप को थोड़ा इंतजार करना होगा. सुबह होते ही कातिल आप की गिरफ्त में होगा.’’ योगेन ने जवाब में कहा.

दोनों बैठे इंतजार करते रहे. जैसे ही सुबह का उजाला फैला, योगेन ने उठ कर अतुल के औफिस के दरवाजे में हलकी सी झिरी कर दी और बाहर झांकने लगा. पटले भी उसी के साथ खड़ा था. धीरेधीरे लोग आने लगे. सभी अपनेअपने औफिसों में जा रहे थे. कुछ देर बाद डा. परीचा नजर आया, वह भी अपने औफिस का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

अतुल और प्रेमप्रकाश भी नजर आए. दोनों साथसाथ बातें करते आ रहे थे. प्रेमप्रकाश अपने औफिस में चला गया. जैसे ही अतुल ने अपने औफिस के दरवाजे के हैंडल पर हाथ रखा, योगेन ने दरवाजा खोल दिया.

योगेन को अंदर देख कर अतुल हैरान रह गया. कभी वह इंसपेक्टर पटेल को देखता तो कभी योगेन को. योगेन ने कहा, ‘‘अतुलजी अंदर आ जाइए. थोड़ी देर में आप को सब मालूम हो जाएगा.’’

उन दोनों को हैरानी से देखते हुए अतुल अंदर आ गया. फिर वह अंदर के कमरे में चला गया. योगेन झिरी से बाहर की तरफ देखता रहा. अचानक उस ने एकदम से दरवाजा खोल  कर कहा, ‘‘आइए पटेल साहब.’’

दोनों तेजी से दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. सामने ही मरदाना टौयलेट था. योगेन ने पटेल से चाबियों का गुच्छा मांगा, जो उस ने गार्ड से ले रखा था. उस में से एक चाबी ढूंढ़ कर टौयलेट में लगाई, दरवाजा खुल गया, सामने का सीन साफ नजर आने लगा. प्रेमप्रकाश फर्श पर झुका बेसिन के नीचे कुछ तलाश रहा था.

उन दोनों को देख कर वह सीधा खड़ा हो गया. योगेन ने उसे एक तरफ धकेल कर बेसिन के नीचे हाथ डाला तो अगले पल उस के हाथ में वह मखमली डिबिया थी, जिस में हीरों का नेकलैस था. यह वही डिबिया थी, जो रात योगेन अतुल पराशर को देने लाया था.

‘‘मिल गया न इंसपेक्टर साहब नेकलैस.’’ योगेन ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल प्रेमप्रकाश को घूर रहे थे. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. वह हकलाते हुए बोला, ‘‘मैं तो… बस अंदाजे से तलाश रहा था. इस से पहले कि मैं सफल होता, आप लोग आ गए. मैं तो…’’

‘‘प्रेमप्रकाश झूठ मत बोलो.’’ योगेन ने कहा.

‘‘मैं सच कह रहा हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘बेकार की बकवास मत करो.’’ पटेल ने घुड़का.

‘‘तुम झूठे हो, पहले तुम ने मेरी मंगेतर रीना का खून किया, उस के बाद नकेलैस ले कर इस बेसिन के नीचे छिपा दिया.’’ योगेन ने कहा.

प्रेमप्रकाश घबरा गया. वह दोनों को देखता रहा. उस की जुबान बंद हो चुकी थी.

‘‘जब मैं नेकलैस ले कर अतुल के औफिस की तरफ जा रहा था, तब तक तुम अपने औफिस में अंधेरा किए खड़े थे और मेरी निगरानी कर रहे थे. जब मैं औफिस में रीना की बांहों में था तो तुम अंदर आए. रीना ने तुम्हें देख लिया. पहले तुम ने मुझ पर हमला किया, उस के बाद रीना को छुरी घोप कर मार दिया, क्योंकि वह तुम्हें देख चुकी थी.

मेरी बेहोशी का फायदा उठा कर तुम नेकलैस ले उड़े. नेकलैस तुम ने मरदाना टौयलेट में छिपा दिया. इस के बाद यहां आ कर ड्रामा करने लगे. तुम्हारी जुबान से निकले एक वाक्य ने तुम्हें फंसवा दिया. बाद में तुम्हारी भारी आवाज पहचान ली थी. जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आ रहा था, तब तुम ने कहा था, ‘पीछे देखो, शायद इस के दिमाग पर चोट आई है.’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे सिर के पीछे चोट लगी थी. हमलावर जा चुका था, हम दोनों फर्श पर पड़े थे. इस से यह साबित होता है कि चोट तुम ने ही मारी थी. इसलिए तुम इस के बारे में जानते थे.’’

योगेन ने सारी बात का खुलासा कर दिया. रीना की मौत का दुख उस की आंखों में छलक आया.

‘‘प्रेमप्रकाश, तुम्हारा खेल खत्म हो चुका हूं. मैं तुम्हें रीना के कत्ल और हीरों के नेकलैस की चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार करता हूं.’’ इंसपेक्टर पटेल ने सख्ती से कहा.

प्रेमप्रकाश ने सिर झुका लिया. योगेन ने दरवाजा खोला और आंसू पोंछते हुए चला गया.

चोट-भाग 3 : रीना ने योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से क्या कहा?

‘‘हम ने सभी की अच्छी तरह तलाशी ले ली है. डा. परीचा और अतुल के औफिसों की भी अच्छी तरह तलाशी ले ली गई है. लेकिन नेकलैस नहीं मिला. कोई सुराग भी नहीं मिल रहा है.’’ पटेल ने कहा.

‘‘हो सकता है, किसी तरह नेकलैस बाहर पहुंचा दिया गया हो?’’ योगेन ने कहा.

‘‘सवाल ही नहीं उठता. हम ने लगभग सभी दरवाजे लौक करवा दिए हैं. सारे रास्ते बंद करा दिए हैं. सब से जरूरी है कातिल को पकड़ना. नेकलैस को बाद में भी ढूंढ़ लेंगे.’’

‘‘रीना को किस ने और कैसे मारा?’’ योगेन ने रुंधे गले से पूछा.

‘‘किसी ने लिफाफे खोलने वाली छुरी, जो उस की मेज पर रखी रहती थी, उसी को उस के सीने में घोंप कर मार दिया है. तुम्हारे सिर पर पीछे से एक पाइप से वार किया गया था, जिस पर कपड़ा लपेटा हुआ था.’’

‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं तुम्हारे सामने उन चारों को बुला कर पूछताछ करूंगा. तुम सारी बातें सुनते रहना, शायद उस में काम की कोई बात निकल आए.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इस के बाद उन्होंने लिलि और अतुल को बुलवाया. लिलि ने सवालिया नजरों से योगेन की ओर देखा तो योगेन ने उसे नजरंदाज कर के उस के पति की ओर देखा. वह एक छोटे कद का भारीभरकम आम सा आदमी था, जबकि लिलि काफी खूबसूरत थी. अतुल ने आते ही ऐतराज करते हुए कहा, ‘‘मैं पुलिस का हर तरह से सहयोग कर रहा हूं, फिर भी मुजरिमों की तरह मेरी तलाशी ली जा रही है. मेरी बीवी को भी पूछताछ में शामिल किया गया है.’’

पटेल ने उस के ऐतराज पर ध्यान दिए बगैर योगेन का उस से परिचय कराया. अतुल ने हमदर्दी से कहा, ‘‘तो तुम्हीं से रीना की शादी होने वाली थी?’’

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

‘‘उस की मौत का मुझे बहुत अफसोस है. रीना अकसर तुम्हारा जिक्र किया करती थी. उसी के कहने पर मैं ने तुम्हारी फर्म की नेकलैस का और्डर दिया था. काश, मैं ऐसा न करता.’’ अफसोस जाहिर करते हुए अतुल ने कहा.

‘‘इस का मतलब तुम ने रीना की सिफारिश पर नेकलैस का और्डर दिया था?’’ पटेल ने कहा.

‘‘जी, मेरे और्डर पर इस लड़के को फायदा होता. हालांकि यह उस फर्म का सेल्समैन नहीं है, फिर भी रीना के कहने पर मैं ने उस फर्म से संपर्क कर और्डर देते हुए कहा था कि वह नेकलैस योगेन के जरिए मुझे भिजवा दिया जाए, ताकि उसे फायदा हो जाए.’’

‘‘मि. अतुल, सब से पहले तुम ने रीना और योगेन को देखा था?’’ पटेल ने पूछा.

‘‘मैं अपने औफिस में बैठा था. रिसेप्शन पर मुझे शोर सुनाई दिया तो मैं ने घंटी बजाई कि रीना को बुला कर इस शोर के बारे में पता करूं. लेकिन रीना की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो मैं बाहर निकला. तब ये दोनों मुझे फर्श पर पड़े मिले. रीना के सीने में लिफाफे खोलने वाली छूरी घुसी हुई थी और यह योगेन बेहोश पड़ा था.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘मैं मामला समझ ही रहा था कि प्रेमप्रकाश अंदर आए. मैं ने उन से डा. परीचा को बुलाने को कहा. इस के बाद पुलिस को फोन किया.’’

‘‘मिसेज अतुल पराशर मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम अपने पति के औफिस में आने से पहले डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं? और तुम ने योगेन से यह क्यों कहा कि वह इस बात का किसी से जिक्र न करे?’’

लिलि ने गुस्से से योगेन की ओर देखा. उस के बाद बोली, ‘‘इंसपेक्टर योगेन या तो ख्वाबों की दुनिया में रहता है या बहुत बड़ा झूठा है.’’

‘‘ठीक है, हम डा. परीचा से पता कर लेते हैं, लेकिन उस से पहले प्रेमप्रकाश से बात करूंगा. वहीं डा. परीचा को बुलाने गया था. अगर तुम वहां थीं तो उस ने तुम्हें जरूर देखा होगा?’’ पटेल ने रूखेपन से कहा.

‘‘जरूरजरूर, अगर सच में मैं डा. परीचा के पास थी तो प्रेमप्रकाश जरूर बता देगा.’’ लिलि ने कहा.

इस के बाद उस ने अतुल की ओर देखा, जो कभी पटेल को देख रहा था और कभी लिलि को. उस के चेहरे पर उलझन थी. लिलि समझ गई थी कि योगेन ने ही इंसपेक्टर पटेल को यह बताया होगा.

‘‘इंसपेक्टर, आप मुझ से सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं और इस आदमी से कुछ नहीं पूछ रहे हैं, जिस के गाल पर अभी तक लिपस्टिक का निशान है.’’ लिलि ने कहा.

‘‘तुम चुपचाप आराम से बैठो. यह पुलिस की जांच है, कोई मजाक नहीं. बेकार की बातें करने के बजाय यह बताओ कि तुम डाक्टर के औफिस में क्यों गई थी?’’ इंसपेक्टर पटेल ने पूछा.

‘‘तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए.’’ लिलि ने गुस्से में कहा.

इस बात पर उस का पति अतुल गुस्से में बोला, ‘‘पर मुझे मतलब है लिलि. मुझे बताओ कि तुम डा. परीचा के औफिस में क्यों गई थीं?’’

‘‘अतुल, तुम क्यों पागल हो रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारा पति हूं. मेरा पूरा हक है यह जानने का कि तुम डाक्टर के पास क्यों गई थीं? क्या मैं बेवकूफ हूं कि इतनी बड़ी रकम खर्च कर के तुम्हारे लिए हीरों का नेकलैस खरीद रहा था? मेरी यही मंशा थी कि तुम डाक्टर का खयाल तक न करो, पूरी तरह मेरी वफादार बन जाओ. रीना ने ही मुझ से कहा था कि मैं वह हीरों का नेकलैस इस के मंगेतर योगेन के जरिए खरीदूं, ताकि उस का कुछ भला हो जाए. उसे कमीशन मिल सके. यह इतना कीमती नेकलैस मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा था और इस के बदले मैं तुम्हारी वफा चाहता था, लेकिन मुझे खुशी है कि वह नेकलैस चोरी हो गया. अच्छा हुआ जो तुम जैसी बेवफा औरत को नहीं मिला. वैसे भी मैं ने कौन सी अभी उस की कीमत अदा की है. अच्छा हुआ कि तुम्हारे चेहरे से नकाब उतर गया. तुम्हारी असली सूरत सामने आ गई. शक तो मुझे पहले भी था, अब तो इस का सबूत भी मिल गया.’’

‘‘जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा नेकलैस. मामूली सी बात का बतंगड़ बना दिया सब ने.’’ लिलि गुस्से से बोली.

‘‘तुम दोनों लड़नाझगड़ना बंद करो. यह तुम्हारा आपस का मामला है. घर जा कर सुलझाना. यहां जांच हो रही है, उस में अड़ंगे मत डालो.’’ इंसपेक्टर पटेल ने कहा.

इंसपेक्टर पटेल ने डा. परीचा और प्रेम प्रकाश को अंदर बुलाया. डा. परीचा सेहतमंद और काफी स्मार्ट था. प्रेमप्रकाश लंबा और स्लिम था. वह इंश्योरैंस एजेंट था.

‘‘प्रेमप्रकाश जब तुम डाक्टर को बुलाने उस के औफिस में गए थे तो वह अकेला था या उस के साथ कोई और था?’’ इंसपेक्टर ने पहला सवाल किया.

‘‘मैं सिर्फ बाहरी कमरे तक ही गया था. वह वहां अकेला ही था. अंदर के कमरे में कोई रहा हो तो मुझे मालूम नहीं.’’ प्रेमप्रकाश ने कहा.

बेल की खेती

कम पानी वाले इलाकों में खेती करने से सिंचाई में ही काफी पूंजी खर्च हो जाती है, लेकिन ऐसे इलाकों में बेल की खेती आसानी से हो जाती है और बढि़या मुनाफा भी मिलता है. बेल के पौधों और पेड़ों को काफी कम पानी की जरूरत होती है. इसे हर तरह की मिट्टी में और हर मौसम में उगाया जा सकता है.

ऊसर, बंजर, कंकरीली, खादर और बीहड़ जमीन में इस की खेती की जा सकती है, पर बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए बेहतर होती है. इस के लिए 6-8 पीएच मान वाली जमीन सब से?ज्यादा मुनासिब है. 7 डिगरी से 46 डिगरी सैल्सियस तापमान तक इस की खेती की जा सकती है.

बेल की उन्नत किस्मों में खास हैं, पंत शिवानी, पंत अपर्णा, पंत उर्वशी, पंत सुजाता, सीआईएसएचबी 1, सीआईएसएचबी 2 वगैरह, इन किस्मों के बेल में रेशे और बीज बहुत ही कम होते?हैं. इन किस्मों के पेड़ों से प्रति पेड़ हर साल 40 से 60 किलोग्राम तक उपज पाई जाती?है. बेल के पौधे मुख्य रूप से बीज से तैयार किए जाते?हैं. मई और जून माह में इस की बोआई की जाती?है.

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बेल के पौधों को 6 से 8 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. रोपने से 20-25 दिन पहले गड्ढे कर के छोड़ देने चाहिए और उन में गोबर की सड़ी खाद डाल देनी चाहिए.

तैयार गड्ढों में जुलाईअगस्त माह में पौधों को रोपना होता है. हर पौधे में हर साल 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फास्फोरस और 50 ग्राम पोटाश डालनी चाहिए. 10 साल पुराने पेड़ में 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस, 500 ग्राम पोटाश और 50 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए.

ऊसर जमीन में जिंक की काफी कमी होती है, इसलिए उस में बाकी खाद के अलावा प्रति पेड़ 250 ग्राम जिंक सल्फेट डालनी जरूरी है. शुरुआती डेढ़ साल तक इस के पौधों को सिंचाई की जरूरत पड़ती है, पर बाद में मईजून के महीने में 20-30 दिनों के अंतराल पर 2 बार सिंचाई कर देने से पौधों के बढ़ने की रफ्तार तेज हो जाती है.

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इस के पेड़ों को कैंसर, छोटे फलों का गिरना, फलों का सड़ना, पत्तियों पर काले धब्बे पड़ना और डाईबैक जैसी बीमारियां होती हैं. उन से बचाव करना जरूरी है.

बेल के कलमी पेड़ 3 से 4 सालों में फल देने लगते हैं, जबकि बीजू पेड़ 7 से 8 सालों में फल देना शुरू करते?हैं. अप्रैलमई महीनों में फल तोड़ने लायक हो जाते हैं. जब फलों का रंग  गहरा हरा से बदल कर पीला हरा होने लगे तो उन की तोड़ाई 2 सैंटीमीटर डंठल के साथ करनी चाहिए. तोड़ते समय इस बात का खयाल रखना जरूरी है कि फल जमीन पर न गिरें. गिरने से उन का ऊपरी कठोर हिस्सा चटक सकता है, जिस से भंडारण के दौरान फल सड़ सकते हैं. 10-12 साल के पूरी तरह विकसित हो चुके पेड़ से हर साल 125 से 150 फल पाए जा सकते?हैं.

उत्तर प्रदेश के देवरिया, बस्ती, गोंडा, फैजाबाद, बनारस, उन्नाव, प्रतापगढ़, इटावा और कानपुर में इस की नियमित खेती की कोशिशें हो रही?हैं, पर इतने भर से बेल को लुप्त होने से नहीं बचाया जा सकता है. बिहार में गंगा नदी का दक्षिणी हिस्सा बेल की खेती के लिए काफी मुफीद है.

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फायदेमंद है बेल

बेल का दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. इस के फल ही नहीं जड़, छाल व पत्ते वगैरह कई रोगों के इलाज के लिए दवा के रूप में उपयोगी हैं. इसे श्रीफल भी कहा जाता?है. बेल के गूदे में पाया जाने वाला मारमेलोसिन नाम का तत्त्व अजीर्ण, पेचिश, डायरिया और आंतों के अल्सर के लिए दवा का काम करता है. गरमी के मौसम में बेल का शरबत पीने से लू से बचाव होता है.

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इनसानों के स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होने के बाद भी बेल की खेती सही तरीके से नहीं हो रही?है. हर मौसम और मिट्टी में उपज के बाद भी बेल की नियमित खेती नहीं होने और किसानों की इस में दिलचस्पी नहीं होने की वजह से यह फल लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है.

चोट-भाग 2: रीना ने योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से क्या कहा?

‘‘पता नहीं, मैं ने इसे इसी तरह पड़ा पाया था.’’ किसी ने जवाब दिया.

‘‘अरे इसे होश आ रहा है.’’ किसी ने कहा.

इस के बाद 2-3 लोगों ने मिल कर योगेन को उठाया तो उस के हलक से कराह निकल गई.

‘‘आराम से, शायद यह जख्मी है. शायद इसे दिमागी चोट आई है. रुको डा. परीचा के औफिस में लाइट जल रही है. मैं उन्हें बुला कर लाता हूं.’’ किसी ने भारी आवाज में कहा.

‘‘ठीक है, डाक्टर को जल्दी ले कर आओ.’’ किसी अन्य ने कहा.

अब तक योगेन को पूरी तरह से होश आ गया था. कोई धीरेधीरे उस के शरीर को टटोल रहा था. शायद चोट तलाश रहा था. जैसे ही उस का हाथ योगेन के सिर के पीछे पहुंचा, उसके मुंह से कराह निकल गई. उस का शरीर कांप उठा.

‘‘इस का मतलब सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरी चोट लगी है. इसे उठा कर सोफे पर लिटाओ, उस के बाद देखता हूं.’’

योगेन को उठा कर मुलायम और आरामदेह सोफे पर लिटा दिया गया. इस के बाद कोई उस के जख्म की जांच करने लगा तो उसे तकलीफ हुई और वह दोबारा बेहोश हो गया.

योगेन को दोबारा होश आया तो उस का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह नींद से जागा हो. किसी की कोमल अंगुलियों ने उस के सिर को छुआ तो उस ने आंखें खोल दीं. उस की आंखों के सामने उसी औरत का चेहरा था, जो कौरीडोर में उस से डर रही थी. लेकिन अब डर की जगह उस के चेहरे पर मुसकराहट थी.

उस ने हमदर्दी से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा फील कर रहे हो?’’

‘‘ठीक हूं.’’ योगेन ने मुश्किल से जवाब दिया.

‘‘मुझे पहचाना मैं लिलि… लिलि पराशर. मैं वही हूं, जो तुम्हारे आगेआगे बिजनैस सेंटर में आई थी. तुम मेरे पीछे थे.’’ लिलि ने बेहद नरमी से कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था.’’

‘‘तुम्हें याद है, मैं डा. परीचा के औफिस में गई थी?’’ लिलि ने पूछा.

योगेन ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

‘‘तुम से मेरी एक रिक्वैस्ट है. अगर तुम ने मेरी बात मान ली तो मुझ पर एक बड़ा एहसान करोगे.’’ लिलि ने कहा.

‘‘इस की वजह?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘दरअसल, मेरे पति अतुल पराशर बहुत ही शक्की स्वभाव के हैं. मैं और डा. परीचा बहुत अच्छे दोस्त हैं. शादी के पहले से हम एकदूसरे को जानते हैं. अतुल उन से जलता है, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम यह बात भूल जाओ कि मैं डाक्टर के औफिस में गई थी. इस समय तुम मेरे पति के ही औफिस में हो.’’

योगेन चुपचाप उसे देखता रहा. लिलि ने आगे कहा, ‘‘मेरी बात मानोगे न? बाहर पुलिस आ चुकी है. कहीं ऐसा न हो कि तुम कह दो कि मैं डाक्टर के पास गई थी.’’

‘‘पुलिस… पुलिस क्यों आई है?’’ यह कह योगेन उठा और दरवाजे की ओर बढ़ा. लिलि ने उसे रोकना चाहा, लेकिन वह रुका नहीं. उसे चक्कर आ गया तो उस ने दीवार का सहारा ले कर दरवाजा खोला. दूसरे कमरे में काफी लोग जमा थे. फर्श पर रीना चित लेटी थी. उस की आंखें खुली थीं, चेहरा सफेद पड़ गया था. उस के सीने में चमकदार चीज घुसी थी. वह जोर से चीखा, ‘‘रीना…’’

इसी के साथ वह लड़खड़ा कर गिरने लगा तो 2 लोगों ने उसे संभाल कर सोफे पर लिटा दिया. थोड़ी देर बाद एक स्मार्ट सा आदमी उस के पास आ कर बोला, ‘‘मैं इंसपेक्टर पटेल…क्या तुम इस लड़की को जानते हो?’’

‘‘जी, रीना मेरी मंगेतर थी.’’ उस ने उदासी से कहा.

‘‘जी, मुझे अफसोस है. इस लड़की का कातिल यहीं मौजूद है. वह कौन है? हम पता करने की कोशिश कर रहे हैं.’’ पटेल ने हमदर्दी से कहा, ‘‘मैं उसे जल्दी ही पकड़ लूंगा.’’

योगेन चुपचाप भरी आंखों से पटेल को देखता रहा. इंसपेक्टर पटेल ने पूछा, ‘‘तुम मि. अतुल पराशर को हीरो का नेकलैस डिलीवर करने आए थे न?’’

यह सुन कर योगेन का हाथ जेब पर गया. जेब में न नेकलैस था, न पिस्तौल. उस ने कहा, ‘‘सर, नेकलैस की डिबिया गायब है.’’

‘‘मुझे पता है. मैं तुम्हारी तलाशी ले चुका हूं. तुम्हारी पिस्तौल मेरे पास है. तुम पूरी बात मुझे बताओ.’’ पटेल ने कहा.

योगेन ने शुरू से अंत तक पूरी बात बता दी. उस के बाद पटेल ने कहा, ‘‘तुम्हारे और मृतका लड़की के अलावा बाहर के कमरे में 4 लोग मौजूद हैं. वे चारों इसी फ्लोर पर थे. इन में से किसी ने तुम्हारे ऊपर हमला कर के तुम्हारी मंगेतर का कत्ल किया और तुम्हारी जेब से वह नेकलैस लिया.’’

‘‘क्या, सचमुच कातिल और चोर बाहर मौजूद हैं?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘हां, क्योंकि इन लोगों के अलावा यहां कोई और नहीं था. लिफ्ट से कोई आया नहीं, सीढि़यों वाले दरवाजे में ताला बंद था.’’ पटेल ने बताया.

‘‘वे 4 लोग कौन हैं?’’ योगेन ने पूछा.

‘‘मि. अतुल, उन की बीवी लिलि, डा. परीचा और एक इंश्योरैंस एजेंट प्रेमप्रकाश.’’

‘‘आप ने उन लोगों से कुछ पता किया?’’

खूबसूरती पर धब्बा हैं फटी एड़िया, ऐसे करें ठीक

‘जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई’, वैसे तो इस कहावत का मतलब है कि जिसने ज़िंदगी में खुद दर्द-तकलीफ ना झेली हो, वो दूसरे का दर्द नहीं समझ सकता, मगर बिवाइयों का दर्द भी वही समझ सकता है जिसके खुद के पैरों ने इस तकलीफ  को सहा हो. जी हां, बिवाइयों का दर्द बड़ा जालिम होता है. बिवाइयां दर्द ही नहीं देतीं, बल्कि पैरों का पूरा सौंदर्य ही समाप्त कर देती हैं. आपका चेहरा कितना ही सुन्दर हो, आपका शरीर कितना ही आकर्षक हो, लेकिन आपके पैरों की एड़ियां अगर फटी हुई हैं तो आपके सारे सौन्दर्य का सत्यानाश कर देती हैं. आपके चेहरे हो तारीफ की नज़र से देखने वाला आपकी फटी बिवाइयां देखते ही मुँह बिचका लेता है. बड़ा दर्दनाक होती हैं ये बिवाइयां और लीजिये अब तो इनके फटने का मौसम भी आ गया है. बरसात ख़त्म होते ही बिवाइयां शुरू हो जाएंगी और अगर अभी से आपने इनके प्रति सावधानी नहीं बरती तो ये मनमाने तरीके से बढ़ती ही जाएंगी और आपको बहुत सारा दर्द देंगी.
बिवाई या एड़ी का फटना एक आम समस्या है. इसमें पैरों के तलवों की त्वचा विशेष कर एड़ी की त्वचा सूख कर तड़क जाती है और वहां दरारें बन जाती हैं. इन दरारों में धूल और गन्दगी जमा होने पर ये बड़ी भद्दी दिखती हैं. इनमें दर्द भी होने लगता है तथा कभी-कभी खून भी रिसने लगता है.

बता दें कि पैर के तलवों की त्वचा में केवल पसीने वाली ग्रंथियां होती है. तेल की ग्रंथियां नहीं होती हैं. अगर किसी कारण से पैरों की पसीने वाली ग्रंथियां सुचारू रूप से काम नहीं करती हैं तो नमी कम हो जाने पर एड़ी की त्वचा सूखी होकर चटकने लगती है. एड़ी का फटना नुकसानदेह नहीं होता, लेकिन दरारें गहरी होने पर दर्द के कारण आपके चलने फिरने में बड़ी दिक्कत शुरू हो जाती है, साथ ही मोज़े वगैरा पहनने पर उनके फटने का डर रहता है. अगर बिवाइयों में खून भी बहने लगा तो स्थिति और कष्टकारी हो जाती है. यदि इसका उपचार न किया जाए तो एड़ी में पड़ी दरारों में संक्रमण हो सकता है. डायबिटीज इस समस्या को अधिक बिगाड़ सकती है. एड़ियों का फटना पैरों की केयर सही तरीके से नही होना दर्शाता है. एड़ियों का फटना आम है, लेकिन इसकी परेशानियां अलग-अलग हो सकती है. कुछ लोगों में यह सामान्य रूप से होती हैं तो कुछ लोगों में दर्द भरे घाव का रूप ले लेती है. लेकिन दोनों ही स्थ‍िति में पैरों और एड़ियों की खूबसूरती जरूर चुरा लेती है.

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एड़ियां फटने के मुख्य कारण
रोज अधिक देर तक खड़े रहना. कठोर फर्श पर नंगे पांव अधिक देर घूमना. प्राकृतिक रूप से सूखी त्वचा. अधिक वजन के कारण तलवे का अधिक फैलना. पीछे से खुली चप्पल या सैंडल लगातार पहनते रहना. किसी बीमारी के कारण जैसे सोरायसिस, एक्ज़िमा, थायरॉइड,  डायबिटीज आदि रोग होना. अधिक देर तक पानी में खड़े रहना. उम्र ज्यादा होना. गलत फिटिंग के जूते चप्पल पहनना. बहुत सूखे वातावरण में रहना या पोष्टिक भोजन की कमी से बिवाइयां फटती हैं.

घर का काम करने वाली कई महिलाओं की एड़ियां फट जाती हैं क्योंकि वो बहुत ज़्यादा पानी का काम करती रहती हैं. घरेलू महिलायें अक्सर अपने कामों में इतना उलझी रहती हैं कि अपने पैरों की देखभाल के लिए उनके पास वक़्त नहीं होता. नहाने के बाद हल्का सा तेल या मॉश्चराइज़र तक लगाना भूल जाती हैं. इसके चलते एड़ियां सूख कर चिटक जाती हैं.
लॉक डाउन के दिनों में सारे ब्यूटीपार्लर बंद रहे, जिसके चलते जो महिलायें पैडीक्योर करवा कर इस मुसीबत से छुटकारा पा लेती थीं, वे भी इन दिनों इस समस्या से त्रस्त हैं. तो लीजिये हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे घरलू फुट मास्क जो बनाने-लगाने में भी आसान हैं और जिनका असर आपके पैरों पर इतनी जल्दी दिखेगा कि पतिदेव कहने को मजबूर हो जाएंगे – जानी, आपके पैर बहुत खूबसूरत हैं, इन्हे ज़मीन पर मत रखियेगा.

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1. नमक, ग्लिसरिन और गुलाब जल का फुट मास्क
गुलाब जल में एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं जो सेल को डैमेज होने से रोकते हैं. इसमें एंटीइंफ्लामेटरी प्रोपर्टीज भी होती है. वहीं ग्लिसरिन स्किन को मोइश्चराइज करती है और दोनों का साथ में इस्तेमाल करने से फटी एड़ियां जल्दी ठीक हो जाती हैं.
इस फुट मास्क को बनाने के लिए 1 चम्मच नमक, 2 चम्मच ग्लिसरिन, 2 चम्मच गुलाब जल, थोड़ा गर्म पानी और फुट स्क्रब ले लीजिये. सबसे पहले गर्म पानी में नमक, ग्लिसरिन और गुलाब जल डालें. अपने पैरों को इस पानी में 15 से 20 मिनट के लिए रखें. अब अपनी एड़ियों को स्क्रब करें. आप देखेंगे कि इससे धीरे-धीरे एड़ियों पर जमा डेड स्किन निकल रही है. कम से कम हफ्ते में कुछ दिनों तक इसका इस्तेमाल करें. आप पाएंगे कि आपकी एड़ियां चिकनी और मुलायम हो गयी हैं.

2. वेजिटेबल ऑयल
स्टडिज के मुताबिक वेजिटेबल ऑयल में एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लामेटरी प्रोपर्टी होती हैं और साथ ही चोट को ठीक करने की क्षमता भी होती है. यह प्राकृतिक तरह से आपकी एड़ियों को ठीक करती है. इस मास्क के लिए आपको सिर्फ 2 चम्मच वेजिटेबल ऑयल चाहिए. अपने पैरों को धो कर साफ तौलिये से सुखाने के बाद इस वेजिटेबल ऑयल को अपनी एड़ियों पर लगाएं और गोल-गोल घुमाते हुए थोड़ी सी मसाज कर लें. हर रात सोने से पहले इसे लगा लें और फिर मोज़े पहन कर सो जाएं. सुबह अपने पैरों को धो लें. कुछ दिनों के उपचार से ही फटी बिवाइयां गायब हो जाएंगी.

3. केले और एवोकाडो फुट मास्क
एवोकाडो में विटामिन ए, ई और ओमेगा फैटी एसिड्स होते हैं और साथ ही इसमें चोट को ठीक करने की क्षमता होती है. वहीं केला मोइश्चराइजर का काम करता है. फटी एड़ियों को ठीक करने के लिए ये मास्क एकदम परफेक्ट है. इसको बनाने के लिए आपको चाहिए 1 छिला हुआ केला और आधा एवोकाडो. छिले हुए केले और एवोकाडो को ब्लैंड कर पेस्ट बना लें. अब इस पेस्ट को अपने पैरों पर और एड़ियों पर लगाएं. कम से कम 15 से 20 मिनट के लिए लगा रहने दें और फिर हल्के गर्म पानी से पैर धो लें. इसका रोजाना इस्तेमाल करें. कुछ ही दिन में फटी बिवाइयां गायब हो जाएंगी और आपके पैर भी गोरे और मुलायम दिखाई देंगे.

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4. पेट्रोलियम जेली
पेट्रोलियम जैली मोइश्चराइजर का काम करती है और फटी एड़ियों को ठीक करती है. साथ ही ये त्वचा से पानी के निकास को भी कम करती है. ये आपकी त्वचा को मुलायम और हइड्रेटेड रखती है. पेट्रोलियम जेली मास्क बनाने के लिए आपको चाहिए 1 चम्मच वैसलीन, मोइश्चराइजर, फुट स्क्रब और हल्का गर्म पानी.
अपने पैरों को 15 से 20 मिनट के लिए गर्म पानी में भिगो कर रखें. फुट स्क्रब से अपने पैरों को स्क्रब करें और फिर पैरों को पानी से निकाल कर सूखे तौलिया से अच्छी तरह सुखा लें. अब पैरों पर मोइश्चराइजर लगाएं और उसके ऊपर वैसलीन का लेप लगा कर मोटी जुराबें पहन कर सो जाएं. सुबह सामान्य पानी से अपने पैर धो लें. इस मास्क से कुछ दिनों में ही फटी एड़ियों की बदसूरती गायब हो जायेगी.

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5. शहद
शहद एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक है जो फटी एड़ियों के लिए लाभकारी है. इसके मास्क के लिए आपको चाहिए 1 कप शहद और गर्म पानी. आधी बालटी गर्म पानी में 1 कप शहद को मिला लें. अब इसमें 15 से 20 मिनट के लिए अपने पैरों को भिगोए रखें फिर पैरों को स्क्रब करें और साफ़ पानी से धो कर सूखा लें. मुलायम एड़ियों के लिए रोजाना इस तरीके से अपने पैरों को साफ़ करें.

समाज के लिये खतरनाक है बुद्विजीवियों पर चढ़ा जातीय श्रेष्ठता का रंग

जातीय श्रेष्ठता समाज में विभेद पैदा कर रही है. हीन भावना से ग्रसित लोग अपने को दोयम दर्जे का समझ रहे है. जिसकी वजह से देश की उत्पादकता और प्रशासनिक क्षमता घट रही. देश पिछड रहा है. अभिव्यक्ति की आजादी और सेक्यूलिज्म किताबी बातें हो गई है. बुद्विजीवियो की खेमेबंदी समाज को खतरा पहुंचा रही है.

1990 की बात है. देश में मंडल कमीशन का डंका बज रहा था. उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के रहने वाले युवा पुष्पेंद्र प्रशान्त श्रीवास्तव दिल्ली में पत्रकारिता करने गये. रिपोर्ट में उनको नाम नहीं जाता था. ऐसे में कुछ समय गुजर गया और एक अच्छी रिपोर्ट में उनका नाम गया. अगले दिन यह चर्चा हुई की रिपोर्ट तो ठीक थी पर इतना बडा नाम अच्छा नहीं लग रहा. कुछ विचार विमर्श के बाद नाम से ‘श्रीवास्तव‘ हट गया. यह किसी एक की बात नहीं बहुत सारे ऐसे उदाहरण मिले जिससे पता चलता है कि बुद्विजीवियांे में उस जमाने में जातीय श्रेष्ठता का चलन नहीं था. लोगो की उनकी जाति और किसके समर्थक है इससे उनके लेखन का पता नही चलता था.

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उस दौर में खबरों को लिखते इस बात का ध्यान रखा जाता था कोई ऐसा शब्द ना लिखा जाये जिससे जातीयता का बोध हो. या कोई ऐसी बात ना लिखी जाये जो संविधान के अनुरूप ना हो. हर लेख और रिपोर्ट में लिखे गये शब्दों को जांचने के लिये संपादन करने वाले लोगों के पास ‘शब्द कोष‘ रखा रहता था. अगर कि शब्द को लेकर कोई शका है तो संपादकीय विभाग में बहस हो जाती थी. बहस के बाद वही शब्द प्रकाशित होता था. जो हर तरह से सही होता था. धीरे धीरे बुद्विजीवियों पर जातीय श्रेष्ठता का रंग गहराने लगा. तकनीकी का जमाना आ गया. ‘शब्द कोष‘ गायब हो गया. अब लेखन से नही नाम से ही पता चलने लगा कि कौन किस विचारधारा का है.

लेखन से लेकर टीवी की पत्रकारिता तक में लेखक और एंकर दोनो मनचाहे शब्दो का प्रयोग करने लगे. दोनो को ही भाषा की व्याकरण और समाज के मर्म से कोई रिश्ता नाता नहीं रह गया. खबर में तथ्य कम और बहस ज्यादा होने लगी. बुद्विजीवियों की जातीय खेमेबंदी पढने और दिखने दोनो में साफ झलकने लगी. एंकर दिखता समाज के साथ जरूर है पर वह होता सरकार के साथ है. बुद्विजीवियों पर ऐसा प्रभाव दिखने लगा कि अब दर्शक और पाठक दोनो को एंकर और लेखक का नाम देखकर यह समझ आने लगा है कि यह किस तरह की बात करेगा. नेताओं के भी अपने पूर्वाग्रह भी होने लगे है. जो उनके मनमुताबिक नही लिखता उसे वो अपना विरोधी मॉन लेते है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दैनिक जागरण  का कार्यक्रम था. कार्यक्रम की रूपरेखा काफी कुछ चैनलों की तरह की थी. जिसमें एक हौल में दर्शक थे. मंच पर दो-तीन राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता और एक समीक्षक था. समाचार पत्र के संपादक खुद एंकर की भूमिका पर सवाल कर रहे थे. उनका सवाल समाजवादी पार्टी पर होता है. सवाल थोडा आलोचनात्मक था. समाजवादी पार्टी के नेता राजेन्द्र चौधरी को लगा कि उनकी पार्टी पर क्षेत्रीय पार्टी का टैग लगाना सही नहीं है. इस कारण उनको यह  सवाल अच्छा नही लगा. सवाल के साथ ही साथ राजेंद्र चौधरी को यह लग रहा था कि यह समाचार पत्र उनकी बातों को सही तरह से खबरों में जगह नही दे रहा. इस कारण मंच पर ही वह इस बात को कहने लगे. नेताओं में ऐसे आरोप लगाने का चलन शुरू हुआ है.

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राजनीतिक दल और नेता यह देखने लगे है कि कौन सा लेखक और एंकर किसका समर्थन कर रहा है इसको जानने के लिये पढने और देखने की जरूरत खत्म हो गई. अब एक सोच के आधार पर सबके विषय मे राय बना ली जाती है.

समाज के लिये बढा खतरा:
जाति और धर्म देश और समाज की सबसे बडी चुनौती रहे है. बुद्विजीवी वर्ग का काम यह था कि जाति और धर्म के खतरों से समाज को अवगत कराता रहे. जिससे समाज हर जाति और धर्म के लोगो को साथ लेकर चल सके. इसको मजबूत करने के लिये धर्म निरपेक्षता यानि सेक्यूलिज्म के भाव को आगे बढाया गया. समय के साथ ही साथ देश में नौन सेक्यूलिज्म की विचारधारा हावी होने लगी. जिसके कारण बुद्विजीवियों पर जातिय श्रेष्ठता का रंग चढने लगा. वह जाति के रंग में रंगने लगे. इससे समाज में ऊंची जातियों का बना रहे. इससे एससीबीसी जातियों में घोर निराशा का माहौल बन गया है. जिससे यह देश के लिये मेहनत से काम नहीं कर रही. परिणाम स्वरूप देश तरक्की नहीं कर रहा. आधुनिक तकनीकी से जो काम हो रहे वह बेमन से हो रहे है. जिससे आधुनिक तकनीकी का मटियामेट हो रहा है.

लेखक, संपादक, एंकर, कवि, इतिहासकार, शिक्षक, प्रशासक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक जातीय के मोहपाश में फंस गये. इन पर जातिय श्रेष्ठता का भाव चढ गया. इससे समाज को तमाम तरह के नुकसान होने लगे. सबसे बडा नुकसान उनको हुआ तो नीची और पिछडी जाति के थे. 1970 से 80 के दौर में पिछडों को जब राजनीतिक ताकत मिली थी तब के विचारों में और आज के विचारों में जो अंतर बुद्विजीवी वर्ग में आया है वह आज के समय में साफतौर पर देखा जा सकता है. बुद्विजीवियों में जाति की श्रेष्ठता आज चढ कर बोल रही है. 1990 से 2005 के दौर में देश में मंडल कमीशन लागू हुआ तो पिछडी जातियों को बहुत सारे राजनीतिक और प्रशासकीय अधिकार मिले. इससे इन जातियों में काम करने का लगन बढा. जैसे ही ऊंची जातियों का प्रभाव बढा यह अपने को दोयम दर्जे का समझने लगे और देश की प्रगति से यह गायब होने लगे.

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समान काम और वेतन पर जातीय श्रेष्ठता अलग:
सरकारी नौकरी में समान काम करने वाले और समान वेतन पाने वाले के बीच किसी भी तरह का समान भाव नहीं होता है. गांव के स्कूल से इस भेदभाव को देखे तो पता चलता है कि अगर शिक्षक ब्राहमण है तो बच्चे दूर से ही ‘पंडित जी पांय लागी‘ या ‘गुरू जी पांय लागी’ का सहारा लेते हुये सम्मान देता है. यही शिक्षक अगर किसी दूसरी जाति का होता है तो ‘गुरू जी नमस्ते‘ कह कर काम चला लिये जाता है. जातीय श्रेष्ठता का यह भाव ही बताता है कि समान वेतन और समान काम करने से समाज में इज्जत समान नहीं मिलती है. जातीय श्रेष्ठता का यही भाव बना रहे इसके लिये नाम और पहनावे से ऐसा प्रयास किया जाय कि सामने वाले को बिना बताये ही समझ आ जाये. अदालत में तमाम वकीलों के बस्ते, तख्त यानि चैम्बर को देखें तो उनको देखते ही जातीय श्रेष्ठता समझ में आने लगती है.

मुंबई मेडिकल की छात्रा डॉक्टर पायल तडवी ने खुदकुशी कर ली तो पता चला कि उसके साथ ही छात्राये और शिक्षक उसका जातिगत उत्पीडन करती थी. हैदराबाद का रोहित बेमुला का मामला भी ऐसा ही था. लखनऊ मेडिकल कालेज में पढाई कर रही छात्रा डॉक्टर नेहा रशिम बताती है कि साथ पढने वाली लडकियां ही ऐसे व्यवहार करती है जैसे मेरे आरक्षण कोटे की वजह से ही उनकी प्रगति रूकी हो. जातीय श्रेष्ठता का भाव केवल छात्राओं में ही नहीं है. यहा काम करने वालों डाक्टरों और मरीजों के बीच भी रहता है. जातीय श्रेष्ठता का ही भाव है कि लोग आरक्षण पाने वाले डाक्टर से इलाज कराने में झिझकते है.

आरक्षण पाये डाक्टर सतीश चंद्र  का कहना है कि प्रमोशन में आरक्षण का विरोध होने के बाद अब हम लोग भी अपनी पूरी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर रहे. जातीय श्रेष्ठता के इस मुददे के कारण लोगों की कार्यक्षमता घटी है. यह केवल डाक्टरों के साथ ही नहीं है. इंजीनियर और दूसरे वर्ग के असफर और कर्मचारियों के साथ यही भेदभाव उनकी कार्यक्षमता का घटाने का काम कर रही है. यह बात सरकार को भी पता है. इस कारण वह जातीय श्रेष्ठता वाले नौकरों और अफसरों को ही मुख्य जिम्मेदारी सौंप रही है. आरक्षण और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर एससीबीसी जातीय के लोगों में गुस्सा है. वह खुद को दोयम दर्जे का समझ रहे है. उनको लग रहा है कि राज बामनबनिये का है तो काम वह क्यो करे ?

घट गई उत्पादकता:
आज गांव से लेकर शहर तक सरकारी कामकाज का यही माहौल है. जनता को भी लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में सरकार उस तरह से विकास काम नहीं कर पा रही है जैसे अखिलेश सरकार में हुआ था. अखिलेश सरकार ने अपने 5 साल में उत्तर प्रदेश को एक्सप्रेस हाइवे, मेट्रो रेल, आईटी सिटी, नया विधानसभा भवन ‘लोकभवन‘, जैसे तमाम काम करके दिये जो जनता को दिख रहे है. योगी सरकार के 3 साल बीत चुके है पर धरातल पर दिखने वाला कोई काम नहीं दिखा है. अखिलेश सरकार ने जहां विकास कार्यो को बढावा दिया वहीं योगी सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर का भूमिपूजन किया है.

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जातीय श्रेष्ठता का ही उदाहरण है कि लोग अब यह कहने लगे है कि राम मंदिर के भूमिपूजन के साथ ही उन्होने भाजपा को जो वोट दिया था. वसूल हो गये. सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल हो रहा है . ऐसे ही मेसजे को भेजने वाले उमेश तिवारी लिखते है ‘आज हर वोटर के खाते में 15 लाख की रकम भूमिपूजन के रूप में आ गई. धारा 370 और नागरिकता कानून बोनस है. ‘ एक दूसरे मेसजे में ओमेश्वर सिंह कहते है ‘वोट देना वसूल हो गया”.

अब अगर बिना किसी काम के लोगों को लग रहा है कि उनका काम पूरा हो गया तो काम करने की क्या जरूरत है ? यही वह सोंच है तो लोगों को निठल्ला बना रही है. काम ना करने की इसी प्रवृत्ति के चलते यहां फैक्ट्री और कारखाने बंद हो गये और देश को चाइनीज सामान के भरोसे रहना पड रहा है. जातीय श्रेष्ठता कामकाज को प्रभावित कर रही है. फैक्ट्री से लेकर खेती तक में काम करने वाले मजदूर नहीं मिल रहे. जिससे देश की आर्थिक हालत खराब होती जा रही है. देश को भले ही राम मंदिर मिल गया हो पर मजदूरों को काम नहीं मिल रहा.

अमिताभ ने अपनी इस गलती के लिए फैंस से मांगी माफी

अमिताभ बच्चन आए दिन अपने सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं. वह अपने फैंस के साथ सोशल मीडिया के जरिए हर खबर देते  रहते हैं. अमिताभ बच्चन हाल ही में कोरोना से ठीक होकर अस्पताल से घर आएं हैं. कोरोना को हराने के बाद से फैंस उन्हें लगातार बधाई दे रहे हैं.

अमिताभ बच्चन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक कविता शेयर की थी. जिसमें उन्होंने नाम अपने पिता का दिया था. अमिताभ बच्चन को इस बाद का अंदाजा बाद में लगा की जो कविता उन्होंने लिखी है वह उनके पिता यानि हरिवंश राय बच्चन की कविता नहीं हैं. जैसे उन्हें इस बात का पता चला उन्होंने अपने फैंस से सोशल मीडिय पर माफी मांगी.

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दरअसल , अमिताभ बच्चन ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जो कविता मैंने शेयर की है वह मेरे पिता जी की नही बल्कि कवि प्रसून जोसी की है. मैं इसके लिए मांफी चाहता हूं.

वहीं अमूल ने अमिताभ बच्चन को कोरोना से ठीक होने के लिए सम्मान दिया है. इस तस्वीर को अमिताभ बच्चन ने शेयर किया और अमूल को धन्यवाद देते हुए लिखा कि ‘वर्षों से एक साधारण शख्सियत को सम्मान देकर अमूल्य बना दिया’. वहीं बहुत सारे यूजर्स इसके लिए अमिताभ बच्चन को बधाई दे रहे थें.

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इसी बीच एक यूजर ने अमिताभ बच्चन को कमेंट करते हुए लिखा कि कम से कम फ्री में तो अमूल्य नहीं बने होंगे पैसे तो लिए ही होंगे इसके लिए.

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यूजर के इस कमेंट पर बिग बी को गुस्सा आया और उन्होंने लिखा कि आप बहुत बड़े गलतफहमी में है मियां कई बार बोलने से पहले सोच लिया जाता है. मैं न तो कभी अमूल को एडोंर्स करता हूं और न कभी किया है. कई बार तीर दूसरों पर मारने की जगह खुद पर आकर गिर जाती है. अपने जुंबान को स्वच्छ रखें. ऐसा न करने दें.

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