मध्यप्रदेश के रीवा जिले की म‌ऊगंज तहसील में एक छोटा सा गांव है हरज‌ई . इस गांव के एक खपरैल मकान में रामजस केवट का परिवार रहता है. दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाले रामजस के परिवार में पत्नी सहित चार लड़के और चार लड़कियां हैं.आठ बच्चों में एक बच्चा यैसा भी है , जिसके दोनों हाथ नहीं है. इस बच्चे को सामान्य ढंग से काम करते देखकर यह महसूस ही नहीं होता कि उसे हाथों की कमी है.इस बच्चे का नाम है कृष्ण कुमार. कृष्ण कुमार अपने पैरों से वह सभी काम कर लेता है, जो अममून हाथों की मदद से संभव हो पाते हैं.पढाई, लिखाई और खाने पीने के अलावा यह लड़का अपने पैरों से सुई में धागा डालकर कपड़े भी सिल लेता है.परिवार को लोग बताते हैं कि वह अपने कामों के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाता है.

कृष्ण कुमार को देखकर किसी शायर की ये पंक्तियां बरवश ही याद आ जाती है-

मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है. पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.

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लगता है जैसे शायर ने यह शायरी बिना हाथ वाले इसी लड़के को देखकर लिखी  हैं.इस विलक्षण लड़के ने हाल ही मैं 27 जुलाई को घोषित हुए मध्यप्रदेश की हायर सेकंडरी परीक्षा के नतीजों में 82 फीसदी अंक लेकर सबको चौंका दिया है.

उसने साबित कर दिया है कि परीक्षा में पास होने के लिए  मंदिर ,मस्जिद,चर्च में किसी भगवान ,खुदा या मसीहा के आगे नत मस्तक होने की जरूरत नहीं  पड़ती है और न ही पंडे , पुजारियों, मौलवी , पादरियों के सामने गिड़गिड़ाने की. मध्यप्रदेश के रीवा जिले के कृष्ण कुमार केवट ने अपने बुलंद हौसलों और कड़ी मेहनत की बदौलत  सफलता की यैसी कहानी लिख दी है ,जो  हाथ पैरों से भले चंगे लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है.  दोनों हाथ न होने के बावजूद भी मऊगंज तहसील के कृष्ण कुमार ने अपने पैरों को ही हाथ  बना लिया. 2020 की बारहवीं की परीक्षा में पैरों से लिखकर 82 प्रतिशत  अंक हासिल कर उन सुबिधा संपन्न लड़को के मां बाप को करारा जबाव दिया है,जो  पैसों की दम पर अपने बच्चों को मंहगे स्कूलों और कोचिंग क्लासों में पढ़ कर उतने अंक हासिल नहीं कर पाते.  कृष्ण कुमार के बुलंद हौंसलों के आगे उसके मजदूर पिता ने भी अपनी गरीबी की परवाह न करके उसका हौसला में कोई कसर बाकी नहीं रखी.

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