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‘‘तुम्हारी कोई साली नहीं है, इसलिए तुम्हें इस रिश्ते के सुख का क्या पता? साली का जीजा पर और जीजा का साली पर पूरा हक होता है.’’ उस समय माला भाभी मुसकरा रही थीं और मैं एक अनाम आशंका से कांप रहा था. उन लोगों ने मेरी इच्छा के विरुद्ध एक निर्णय ले लिया था. इन बातों को 8 महीने हो गए. मैं अपने हलके से विरोध को लगभग भूल गया. इस का कारण था कि वे तीनों खूब हंसीखुशी रह रहे थे. उन के बीच कहीं कोई दरार उत्पन्न नहीं हुई थी. फिर आज अचानक यह क्या हो गया? संबंधों की मजबूत नींव अचानक चरमरा कैसे गई?

मैं ने दृष्टि उठाई और माला भाभी की ओर देखा. वे दोनों हाथों से मुंह ढांपे सुबक रही थीं.

‘‘भाभी, तो फिर क्या मेरी आशंका सच निकली?’’

‘‘कुछ पूछिए मत, भाईसाहब,’’ माला भाभी बुदबुदाईं.

‘‘भाभी, आप मुझे गैर समझती हैं?’’

‘‘नहीं, भैया.’’

‘‘फिर खुल कर बातें कीजिए. कुछ भी मत छिपाइए. जटिल समस्याओं की भीड़ से घिरा इंसान बहुत अकेला हो जाता है. इस भीड़ से बचने के लिए उसे किसी के सहारे की जरूरत होती है.’’ मेरा भावनात्मक सहारा पा कर माला भाभी कुछ आश्वस्त सी हो गईं. उन्होंने साड़ी के पल्लू से अपने मुंह तथा आंखों को पोंछा और फिर संयत स्वर में बोलीं, ‘‘भाईसाहब, आज से लगभग 8 महीने पूर्व मैं ने एक बहुत बड़ी गलती की थी.’’

‘‘गलती? मैं तो कहता हूं कि आप ने तब स्वयं अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारी थी.’’

‘‘मैं स्वीकार करती हूं कि मुझे मालती को मेरठ से ला कर अपने घर में नहीं रखना चाहिए था. उस समय भावावेश में आ कर मैं यह सब सोच नहीं पाई. पर अब, अब तो पानी सिर से निकल गया है.’’

‘‘पर यह हुआ कैसे?’’

‘‘शुरूशुरू में तो सालीजीजा में हंसीमजाक चलता रहता था. मैं समझी थी कि यह तो इन रिश्तों की स्वाभाविक नोकझोंक है. पर बाद में मुझे पता चला. मैं ने स्वयं अपनी आंखों से देखा कि स्वरूप तथा मालती हद से भी गुजर गए हैं. तब मैं चेत गई. मैं ने विरोध करना शुरू किया तो…’’ कहतेकहते माला भाभी का गला भर आया.

‘‘भाभीजी, पुरुष की विविधता की चाह को पूरा करने का अवसर भी आप ने ही तो प्रदान किया था.’’

‘‘मैं मानती हूं. पर मुझे मालती से ऐसी निर्लज्जता तथा नीचता की कदापि आशा नहीं थी.’’

‘‘ऐसी स्थिति में इन शब्दों का कोई अस्तित्व नहीं होता.’’ ‘‘यह मेरी समझ में अब आया है, भैया. अब तो ये लोग खूब खुल कर खेल रहे हैं. आएदिन स्वरूप से मेरा झगड़ा होता रहता है. आज उस ने साफसाफ कह भी दिया.’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि मैं स्वतंत्र हूं. बच्चों को ले कर जहां चाहूं, जा सकती हूं. वह मुझे मालती की खातिर त्यागने का निर्णय कर चुका है.’’ मेरा अंतर कसक गया.

‘‘भाईसाहब, मैं ने भी फैसला कर लिया है कि अब इस घर में नहीं रहूंगी. मैं पढ़ीलिखी हूं, कहीं नौकरी कर लूंगी, पर अपनी आंखों के आगे यह दुराचार देखने की मुझ में सामर्थ्य नहीं है.’’

‘‘भाभीजी, मैं आप से सहमत नहीं हूं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘आप ने जो कुछ सोचा है, वह कायरता तथा पलायनवाद की पराकाष्ठा है. अपने अधिकारों को स्वेच्छा से त्याग देना मूर्खता है. आप अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कीजिए.’’

‘‘भाईसाहब, मैं तो टूट चुकी हूं,’’ भाभीजी ने रोंआसे स्वर में कहा.

‘‘दिल को दुखी करने से काम नहीं चलेगा, भाभी. इस समस्या से मुक्ति पाने का उपाय तलाश करना होगा. मेरी समझ में एक तरकीब आई है.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘आप मालती के विवाह के लिए कोई अच्छा लड़का तलाश करना शुरू कर दीजिए. मैं भी कोशिश करता हूं.’’

‘‘भाईसाहब, पापा ने कई लड़के देखे थे. वे कई बार दिल्ली आए, पर स्वरूप ने किसी न किसी तरकीब से किसी मामले को पटने नहीं दिया. वह नहीं चाहता कि मालती की शादी हो.’’

‘‘भाभीजी, आप निश्ंिचत रहिए. मैं इस समस्या को सुलझा कर ही दम लूंगा. आप एक काम कीजिए. मेरठ जा कर अपने पापा से मिलिए. यदि उन की निगाह में कोई ढंग का लड़का हो तो काम आसान हो जाएगा.’’

‘‘जी, ठीक है. मैं कल ही मेरठ जाती हूं.’’ उदास मन से मैं वहां से लौट आया. अगले दिन स्टाफरूम में स्वरूप से भेंट हुई. उसे देखते ही मन वितृष्णा से भर गया. पर अपनी आंतरिक भावनाओं पर अंकुश रखते हुए मैं उस के पास गया और बोला, ‘‘स्वरूप, कल शाम को तो खूब मूर्ख बनाया.’’

‘‘यार, क्षमा मांगता हूं. अचानक फिल्म का प्रोग्राम बन गया. मालती कालेज से लौटते समय फिल्म की टिकटें ले आई थी.’’

‘‘क्या सिर्फ 2 ही टिकटें लाई थी?’’

स्वरूप ने घूर कर मुझे देखा और फिर कड़े स्वर में बोला, ‘‘लगता है, माला ने तुम्हारे कान भरे हैं.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात तो नहीं है. वह बेचारी घर पर अकेली बोर हो रही थी और तुम अपनी विवाह की वर्षगांठ अपनी साली के साथ मना रहे थे.’’ ‘‘यार, पता नहीं माला को क्या हो गया है. वह इतनी ईर्ष्यालु तथा तंगदिल हो गई है कि बस पूछो मत. उस ने तो मेरी जिंदगी बरबाद कर दी है.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं है कि चोर उलटा कोतवाल पर दोषारोपण कर रहा हो?’’

‘‘यार, तुम…’’ कहतेकहते स्वरूप ठिठका, फिर संयत हो कर बोला, ‘‘देखो, मालती मेरी साली है, मैं उस से प्रेम करता हूं. मुझे इस का पूरा हक है. अगर माला को यह पसंद नहीं तो वह मुझ से तलाक ले सकती है.’’

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