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पिता बनने की भी हैं जिम्मेदारियां

मां ही नहीं पिता बनने की भी होती हैं कई जिम्मेदारियां. अगर आप पिता बनने वाले हैं, तो इन चुनौतियों के लिए अभी से तैयार रहें. शिशु की देखभाल और उस की परवरिश की जिम्मेदारी मां की ही मानी जाती है और यह सच भी है कि मां मां होती है और शिशु के प्रति उस की जिम्मेदारी अहम होती है मगर पिता बनने की भी कई जिम्मेदारियां होती हैं जिन के बारे में अकसर लोगों को पता नहीं होता या इन की तरफ ध्यान नहीं देना चाहते हैं. जब भी आप परिवार आगे बढ़ाने के बारे में सोचते हैं और बच्चे की प्लानिंग करते हैं, तो याद रखें कि पिता के नाते आप की भी कई जिम्मेदारियां हैं. हालांकि आज पिता को ले कर कई धारणाएं गलत हो रही हैं.

इस के विपरीत आज पिता भी मां की तरह बच्चे का खयाल रखने में पीछे नहीं हैं. आज के पिता मां की तरह ही बच्चे के प्रति हर काम में बराबरी के भागीदार हैं. लेकिन इस सब के लिए उन्हें अपनी कई आदतों को बदलना पड़ता है और नई आदतों को अपनी जिंदगी में शामिल करना होता है. इस के लिए जरूरी हैं कुछ बातें : खुद को बदलना : अपने बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए खुद को बदलें. यानी कि जिस तरह आप का बच्चा सोचता है, आप को उस के सामने उसी तरह बात करनी होगी. बच्चों को अच्छे संस्कार या उन से किसी तरह की उम्मीद आप तब ही कर सकते हैं जब बच्चा आप की बातों में रुचि ले रहा हो. पितृत्व के बारे में जानें : पितृत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करें. जो पितृत्व सुख से गुजर चुके हैं उन से जानकारी लें.

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अपने बच्चे को शुरू से प्यार करें. उस की देखरेख वाले काम खुद करें, जैसे मां बच्चे को स्तनपान कराए तो फीड के बाद उसे आप संभाल सकते हैं. बच्चा बोतल का दूध पी रहा है तो उसे दूध पिलाने का काम आप कर सकते हैं. उसे नहलाना, डायपर बदलना पिता के लिए थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन करते रहने से आदत हो जाती है, साथ ही बच्चा पिता को पहचानने लगता है. बच्चे के साथ अधिक समय बिताएं: नौकरी के कारण पिता के पास बच्चे के साथ समय गुजारने का ज्यादा वक्त नहीं होता. लेकिन फिर भी बिजी टाइम में कुछ समय तो बच्चे के लिए निकालना ही पड़ेगा.

ऐसा करने से आप अपने बच्चे की जरूरतों को सम झेंगे. आप उसे जो सिखाएंगे, वह आजीवन याद रखेगा. बच्चे के साथ बौंडिंग बनाने के लिए उस के साथ संबंध गहन बनाना जरूरी है. बच्चे से बात करें, पुचकारें. भले ही बच्चा आप की भाषा न सम झे पर आवाज सम झने लगेगा. आप के करीब आने लगेगा. कभी भी कहीं से आएं, उसे आवाज दें, उस के पास रुकें और प्यार करें. उसे खूब बोलबोल कर पुचकारें और हंसेंबोलें. इस तरह धीरेधीरे पिता और बच्चे में स्किन टू स्किन कौंटैक्ट बन जाएगा. अच्छी परवरिश के लिए आर्थिक योजनाएं : आजकल की महंगाई और प्रतिस्पर्धा में अच्छी शिक्षा, अच्छा जीवनस्तर और अच्छे स्वास्थ्य के लिए पैसे की जरूरत होती है. ऐसे में पिता बनने से पहले बच्चे के भविष्य की आर्थिक योजनाएं जरूर बना लें. शिशु के साथ खेलें: बच्चे के साथ रोजाना आधा घंटा खेलें. यदि चाहते हैं कि बच्चा आप की गोद में आ कर न रोए और आनंद ले तो उसे अपनी आदत डलवानी होगी, उस के जैसी हरकतें करनी होंगी और तरहतरह से मुंह बना कर उसे खुश करना होगा. मांबाप के साथ बच्चे का रिश्ता वैसा ही बनता है जैसे वे बनाते हैं.

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बड़े होने के बाद भी वे उसी मांबाप के करीब होते हैं, जिन्होंने उन्हें बचपन से सम झा हो या प्यार किया हो. रोल मौडल बनें : किसी बच्चे के लिए उस का रोल मौडल पिता होता है. इसलिए बच्चे की अच्छी परवरिश के साथ ही अपने अंदर की बुरी आदतों को छोड़ कर आप को अच्छी आदतें डालनी चाहिए ताकि आप का बच्चा आप से कुछ अच्छा सीख सके. एक शोध में पाया गया है कि पिता बनने के बाद पुरुषों के लिए अपनी बुरी आदतें छोड़ना ज्यादा आसान होता है. अध्ययन बताते हैं कि पिता बनने के बाद धूम्रपान, शराब और अन्य बुरी लतें छूटने की संभावना पहले के मुकाबले बढ़ जाती हैं.

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दरअसल, बुरी आदतों का अपराधबोध तब गहरा हो जाता है जब व्यक्ति पर किसी और की जिम्मेदारी आ जाती है. ऐसे में शिशु के जन्म के साथ ही बहुत से लोग गलत आदतें छोड़ देते हैं. आप के द्वारा की गई गलतियों को बच्चे न दोहराएं, इस बात का खास ध्यान रखें. आप जो भी करते हैं, बच्चे उसे सीखते हैं और उस का अनुसरण भी करते हैं. द्य केयरिंग डैड बनें बच्चे के पैदा होते ही पिता तुरंत कोई रिश्ता नहीं बना पाते. बच्चे के साथ मां जैसा अटैचमैंट पैदा करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. मां तो बच्चे के काम आराम से अच्छी तरह कर पाती है, पर एक पिता के लिए ये काम थोड़े मुश्किल होते हैं. ऐसे में जरूरी है कि वे अपने शिशु को पहले दिन से ही ज्यादा से ज्यादा समय दें, जैसे: द्य उस की देखरेख वाले काम खुद करें. द्य शिशु की हरकतों को सम झें. द्य अपने बच्चे से स्किन टू स्किन कौंटैक्ट बनाएं. द्य शिशु से बात करें, पुचकारें, हंसें, बोलें. द्य शिशु के साथ खेलें. द्य शिशु को पहले दिन से ही ज्यादा से ज्यादा समय दें. इन सब बातों को अपना कर आप अपने शिशु से मां की तरह करीब आ सकते हैं.

मुट्ठीभर स्वाभिमान-भाग 2: कौन था दीनानाथ के मौत से सबसे ज्यादा दुखी ?

और उस के बाद दीनानाथजी ने दोबारा रसोई में पांव नहीं रखा. बहू कितनी भी देर से सो कर क्यों न उठे, वे अपने कमरे में ही चाय का इंतजार करते रहते थे. सुकांत अपने काम में अत्यधिक व्यस्त रहता था. घर में दीनानाथजी बहू के साथ अकेले ही होते थे. उन की इच्छा होती कि बेटी समान बहू उन के  पास बैठ कर दो बातें करे क्योंकि पत्नी की मृत्यु का घाव अभी हरा था और उसे मरहम चाहिए था, किंतु ऐसा न हो पाता. 2-4 मिनट उन के पास बैठ कर ही बहू किसी न किसी बहाने से उठ जाती और दीनानाथजी अपनेआप को अखबार व किताबों में डुबो लेते. वे परिमार्जित रुचियों के व्यक्ति थे. बेटे ने भी उन से विरासत में शालीन संस्कार ही पाए थे. सो, किताबों से कितनी ही अलमारियां भरी पड़ी थीं.

अपने दफ्तर की ओर से सुकांत को फिर 1 महीने के लिए जरमनी जाना था और सदा की तरह इस बार भी उस की पत्नी शांता साथ जाना चाहती थी. वह सुकांत के बिना 1 महीना रहने को तैयार न थी. रात की निस्तब्धता में दीनानाथजी के कानों में बहू एवं सुकांत के बीच चल रही तकरार के कुछ शब्द पड़े, ‘बाबूजी को इस अवस्था में यहां अकेले छोड़ना उचित है क्या?’ सुकांत का स्वर था. ‘तो मैं क्या करूं? मुझे भी तो घूमने के कभीकभी ही अवसर मिलते हैं,’ शांता का रोषपूर्ण स्वर था. और अधिक सुनने का साहस न था दीनानाथजी में. सो, कमरे का दरवाजा बंद कर हाथ की किताब रख दी और बत्ती बुझा कर सोने की चेष्टा करने लगे. किंतु कहां थी नींद आंखों में? बंद भीगी पलकों में वे सुनहरे छायाचित्र तैर रहे थे, जो पत्नी के साथ बिताए 40 वर्षों की देन थे. अपना एकाकीपन आज उन्हें बुरी तरह झकझोर गया. फिर भी स्वाभिमान के धनी थे. इसलिए सुबह होते ही सुकांत से अपने वापस जाने की इच्छा प्रकट की. किंतु सुकांत अटल था अपने निश्चय पर कि बाबूजी यहीं रहेंगे. सो, वे वहीं रहे. सुकांत अकेला ही जरमनी गया. सुकांत के बिना वह पूरा 1 महीना दीनानाथजी ने लगभग मौनव्रत रख कर ही काटा.

और फिर एक दिन उन के दांत में बेहद दर्र्द होने लगा. सारा दिन दर्द से तड़पते रहे. अपने देश में तो दंतचिकित्सक था, जो एक फोन करते ही उन्हें आ कर देख जाता था. दवा तक खरीदने जाना नहीं पड़ता था. वही खरीद कर भिजवा देता था. किंतु यहां? यहां तो वे असहाय से मफलर से मुंह लपेटे दफ्तर से सुकांत के घर लौटने का इंतजार करते रहे. यहां न तो वे गाड़ी चला सकते थे और न ही उन्हें किसी डाक्टर का पता मालूम था. शाम को सुकांत लौटा तो बाबूजी का सूजा हुआ गाल देख कर सब समझ गया. पिता को गाड़ी में बिठा कर तुरंत दंतचिकित्सक के पास ले गया. 80 डौलर ले कर डाक्टर ने उन्हें देखा और फिर आगे के स्थायी इलाज के लिए लगभग 3,000 डौलर का खर्चा सुना दिया. दवा आदि ले कर जब सुकांत बाबूजी के साथ घर लौटा तो उस का चेहरा खिलाखिला सा था कि बाबूजी को अब आराम आ जाएगा. किंतु रात को खाने की मेज पर बैठे दलिया खा रहे दीनानाथजी से शांता कह ही उठी, ‘बाबूजी, आप को भारत से स्वास्थ्य संबंधी बीमा पौलिसी ले कर ही आना चाहिए था. अब देखिए न, अभी तो डाक्टर ने 80 डौलर सिर्फजांच करने के ही ले लिए, इलाज में कितना खर्च होगा, कुछ पता नहीं.’

‘बस करो शांता,’ सुकांत कड़े स्वर में बोला, ‘यह मत भूलो कि बाबूजी अपना टिकट खुद खरीद कर आए हैं, तुम से नहीं मांगा है…’ ‘तुम भी यह मत भूलो सुकांत कि जो पैसा बाबूजी पर खर्च हो रहा है, वह आखिरकार हमारा है,’ तलवार की धार जैसे इस एक ही वाक्य से दीनानाथजी का सीना चीर कर बहू उठ खड़ी हुई और अपने कमरे में जा कर झटके से दरवाजा बंद कर लिया. सुकांत स्तब्ध रह गया. शांता के इस लज्जाजनक व्यवहार की तो उस ने कभी कल्पना भी न की थी. दीनानाथजी खामोश, मुंह झुकाए अपमानित से बैठे रहे. बात का रुख यह मोड़ लेगा, उन्हें उम्मीद न थी. दूसरे दिन सुकांत को अकेला पा कर दीनानाथजी ने उस से अपने वापस लौटने की इच्छा जाहिर की. न चाहते हुए भी सुकांत को उन के निश्चय के आगे झुकना पड़ा. सो, भारत जा रहे अपने एक मित्र के साथ उन के वापस लौटने का प्रबंध कर दिया.

70 वर्ष की आयु में दीनानाथजी ने अपने इस एकाकी जीवन का एक नया अध्याय शुरू किया. घर में सबकुछ यथास्थान था. पत्नी घर को सदा ही सुव्यवस्थित रखती थी. बैंक में पैसा था और पैंशन भी आती थी. फिर किसी बात की दिक्कत क्यों होगी भला? यही सब सोचते हुए उन्होंने यारदोस्तों से एक छोटे नौकर के लिए भी कह छोड़ा. किंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था. 6 महीने भी न निकल पाए, वे अकेले टूट से गए थे. बहुत सालता था यह एकाकी जीवन. पढ़नेलिखने के शौकीन थे, सो, किताबें पढ़ कर कुछ समय कट जाता था. किंतु आखिर कोई बोलने वाला भी तो होना चाहिए घर में. आखिरकार उन्होंने डायरी लिखनी शुरू की और डायरी के पहले पन्ने पर लिखा, ‘सुकांत व शांता के नाम.’

अंत्येष्टि के सारे कामों से फुरसत पाने के बाद सुकांत को ध्यान आया कि बैंक व घर के कागजों को भी संभालना है. सभी चीजें बड़ी वाली अलमारी में बंद होंगी, वह जानता था. सारे कागज संभालना मां की जिम्मेदारी थी और बाबूजी उन के द्वारा रखी चीजों की जगह को कभी नहीं बदलते थे, यह भी वह जानता था. अलमारी की चाबी उसे पहले की ही तरह एक कागज के लिफाफे में लिपटी मिली. ‘कुछ भी तो नहीं बदला यहां,’ सुकांत सोचता रहा कि सबकुछ वैसा ही है. उस की मां नहीं बदली, बाबूजी नहीं बदले. बदल गया तो केवल वह खुद. और अब पहली बार सुकांत अकेले में फूटफूट कर रोया. घर की सूनी दीवारों ने मानो उसे अपने सीने में समेट लिया.

दूसरे दिन सुबह शांता का फोन आ गया, ‘‘कैसे हो? सब ठीक तो है न? फोन भी नहीं किया तुम ने?’’ ‘‘सब ठीक है,’’ सुकांत का दोटूक जवाब था. ‘‘अरे, बोल कैसे रहे हो?’’ आदत के मुताबिक झल्ला उठी शांता, ‘‘हुआ क्या है तुम्हें?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ सुकांत अपनेआप पर नियंत्रण रखे था.

‘‘तो फिर,’’ शांता के स्वर में बेचैनी थी, ‘‘जल्दी ही सब काम निबटा कर वापस आने की कोशिश करो. बैंक के खाते और मकान के कागज तुम्हारे नाम हुए कि नहीं? बाबूजी की वसीयत तो होगी?’’ सुकांत ने बिना उत्तर दिए फोन रख दिया. विरक्ति से भर उठा वह. उस का हृदय मानो हाहाकार कर रहा था कि कैसी है यह स्त्री, जिसे पैसे के सिवा कुछ और दिखाई ही नहीं देता और क्यों वह स्वयं इतना कमजोर बन गया कि उस ने कभी शांता के इन विचारों पर अंकुश नहीं लगाया. इस भयावह स्थिति का जिम्मेदार वह खुद को मान रहा था. सुकांत का सिर दर्द से फट रहा था. रिश्तेदार सब अपनेअपने घर चले गए थे, बल्कि सच तो यह था कि सुकांत ने ही हाथ जोड़ कर उन से विनती की थी कि उसे अकेला छोड़ दिया जाए. कुछ को बुरा भी लगा, किंतु विरोध नहीं किया किसी ने भी. विदेश में बसे लोगों की मानसिकता कुछ भिन्न हो जाती है और यदि साफ शब्दों में कहें तो कुछ ऐसा कि उन का खून सफेद हो जाता है, यही मान कर चुपचाप चले गए सब. जातेजाते चाची ने खाने के लिए भी पूछा, किंतु सुकांत ने मना कर दिया. पर अब एक प्याला चाय या कौफी चाहिए थी उसे, सो रसोई में चला गया. कौफी तो थी ही नहीं, क्योंकि मांबाबूजी चाय ही पीते थे. चीनी व चाय की पत्ती 2 डब्बों में मिल गई. दूध नहीं था. सो, बिना दूध की चाय ही बना ली. फिर रसोई में पड़े स्टूल पर बैठ गया.

खेत को उपजाऊ बनाती हरी खाद

फसल उत्पादन और उत्पाद की क्वालिटी बढ़ाने के लिए मिट्टी पर कैमिकल खादों का लगातार अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है. जीवांश वाली खादों, जैसे फार्म यार्ड मैन्योर यानी गोबर की खाद, कंपोस्ट व हरी खादों का इस्तेमाल न के बराबर हो रहा है. इस का नतीजा यह है कि खेतों की पैदावारी कूवत लगातार घट रही है.

कैमिकल खादों के इस्तेमाल से पोषक तत्त्वों की कमी तो पूरी हो जाती है, लेकिन मिट्टी के भौतिक व जैविक गुणों का खात्मा हो जाता है. इस के चलते खेत बंजर बनते जा रहे हैं.

हमारे देश में ज्यादातर गोबर को उपले या कंडे यानी ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर के खत्म किया जाता है. गोबर की बाकी बची मात्रा, जो खाद के रूप में इस्तेमाल की जाती है, उस के ज्यादातर पोषक तत्त्व लीचिंग की क्रिया से खत्म हो जाते हैं.

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कार्बनिक पदार्थ को मिट्टी में बढ़ाने के लिए ज्यादातर किसान कंपोस्ट खाद को तैयार करने की विधियों से अनजान हैं. मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ाने के लिए खलियों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन हमारे देश में फसलों के लिए पोषक तत्त्वों की आपूर्ति खलियों से करना नामुमकिन है, क्योंकि इन का इस्तेमाल पशुओं के भोजन के लिए भी किया जाता है.

सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्त्वों को सही मात्रा में पहुंचाने और मिट्टी के भौतिक व जैविक गुणों को सुधारने के लिए कैमिकल खादों के साथसाथ जीवांश खादों व जैविक खादों, जैसे राइजोबियम, अजोला, नील हरित शैवाल, एजेटोबैक्टर, माइकोराइजा वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए.

फसल चक्र में दलहनी व हरी खाद वाली फसलें यानी उड़द, मूंग, लोबिया, बरसीम, ढैंचा, सनई वगैरह का इस्तेमाल ज्यादा करना, मिट्टी को पोषक तत्त्वों को पर्याप्त मात्रा में मुहैया कराने में काफी फायदेमंद साबित होता है.

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क्या है हरी खाद

दलहनी या अदलहनी फसलों के ऐसे पौधों, जो सड़ेगले न हों या उन के कुछ भागों को जब मिट्टी की नाइट्रोजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए खेत में दबाया जाता है, तो इस प्रक्रिया को हरी खाद देना कहते हैं.

हरी खाद को दूसरे शब्दों में इस तरह सम झ सकते हैं. फसलें, जो मिट्टी में जीवांश की मात्रा को बरकरार रखने या बढ़ाने के लिए उगाई जाती हैं, हरी खाद वाली फसलें कहलाती हैं.

हरी खाद के फायदे

बढ़ाएं मिट्टी में जीवांश और नाइट्रोजन की मात्रा : मिट्टी में बड़ी मात्रा में पौधों के हरे भागों को मिलाते रहने से मिट्टी में जीवांश की मात्रा ज्यादा बढ़ती है. मिट्टी व आबोहवा की किस्मों व परिस्थितियों के लिए मुफीद अलगअलग प्रकार की फसलों का इस्तेमाल कर हर साल 50 से 100 किलोग्राम तक नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर मिट्टी में बढ़ाया जा सकता है.

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दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा अदलहनी फसलों के मुकाबले ज्यादा होती है. इस की खास वजह दलहनी फसलों की जड़ों में पाए जाने वाले राइजोबियम बैक्टीरिया होते हैं. वे आबोहवा से नाइट्रोजन ले कर उसे पौधों की जड़ों की गांठों में स्टोर करते हैं, जिस का इस्तेमाल वे पौधे करते हैं. अगली फसल भी इस को इस्तेमाल करती है.

पोषक तत्त्वों का संरक्षण : परती खेतों में हरी खाद की फसल उगा कर लीचिंग द्वारा होने वाले पोषक तत्त्वों के नुकसान जैसे नाइट्रोजन व नाइट्रेट के रूप में पोटाश के नुकसान को बचाया जा सकता है. ये तत्त्व खेत में खड़ी फसल द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं और बाद में जब फसल को खेत में दबाते हैं, तो जीवांश पदार्थ के रूप में दोबारा मिट्टी को मिल जाते हैं. जीवांश पदार्थ का विच्छेदन कर ये पोषक तत्त्व अगली उगाई जाने वाली फसल को हासिल हो जाते हैं. इस से मिट्टी में खनिज तत्त्वों में बढ़वार न होने पर भी उन की मात्रा को स्थिर व महफूज रखने में मदद मिलती है.

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पोषक तत्त्वों की उपलब्धता में बढ़वार : हरी खाद की फसलें जब मिट्टी में दबाई जाती हैं, तो उन का विच्छेदन होता है यानी वे मिट्टी में घुलमिल जाती हैं. विच्छेदन की क्रिया में कई तरह के फायदेमंद व अकार्बनिक अम्ल पैदा होते हैं, जो अलगअलग पोषक तत्त्वों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस व पोटाश वगैरह की घुलनशीलता को बढ़ाते हैं. ऐसा होने से वे पौधों को आसानी से मुहैया हो जाते हैं.

मिट्टी की सतह का संरक्षण : हरी खाद की फसलों की वानस्पतिक व जड़ों की बढ़वार काफी होती है. इस प्रकार की फसलें मिट्टी की सतह को ढकती हैं. साथ ही, उन की जड़ें मिट्टी कणों को बांध कर रखती हैं. ऐसा कर के वे हवा व पानी द्वारा होने वाले मिट्टी कटाव से मिट्टी की सतह बचा कर उसे पूरी तरह संरक्षण देती हैं. इस के साथसाथ वे मिट्टी के जैविक गुण बढ़ाने, खरपतवार की रोकथाम, मिट्टी संरचना में सुधार, क्षारीय व लवणीय मिट्टी में सुधार व फसलों के उत्पादन में बढ़वार करने में मददगार होती है.

कैसी हो हरी खाद वाली फसल

  ऐसी फसल, जो कम समय में ज्यादा बढ़वार करती हो.

उस की जड़ें मिट्टी में गहराई तक पहुंचती हों.

 फसल के तने, शाखाएं व पत्तियां ज्यादा व मुलायम होनी चाहिए.

   फसल कम पोषक तत्त्व ग्रहण करने वाली हो.

 वह कीट व बीमारियों को सहन करने की कूवत रखती हो.

  वह मिट्टी को ज्यादा मात्रा में जीवांश पदार्थ व नाइट्रोजन प्रदान करने वाली हो.

7     फसल की शुरुआत की बढ़वार खरपतवार को रोकने के लिए जल्दी से होनी चाहिए.

   फसल का बीज सस्ती दरों पर मिलने चाहिए.

9   फसल के उत्पादन का खर्च कम होना चाहिए.

10    फसल कई मकसद की पूर्ति करने वाली होनी चाहिए जैसे, चारा, रेशा व हरी खाद.

हरी खाद देने की विधियां : भारत में हरी खाद देने के अलगअलग तरीके अपनाए जाते हैं. जैसे, हरी खाद की इन सीटू विधि, हरी पत्तियों से हरी खाद वगैरह.

इन सीटू विधि : इस विधि में जिस खेत में हरी खाद की फसल उगाई जाती है, उसी खेत में उस को दबा दिया जाता है. इस तरह की फसलें अकेली या किसी खास फसल के साथ मिला कर बोई जा सकती हैं खासकर जिन इलाकों में अच्छी बारिश होती है, वहां इस विधि को अपनाते हैं. नमी की कमी में फसल की बढ़वार व फसल का सड़ना अच्छी तरह से नहीं हो पाता है.

हरी खाद के लिए इस्तेमाल होने वाली फसल

सनई : हरी खाद के लिए इस्तेमाल की जाने वाली यह खास फसल है. इसे मानसून के शुरू होने पर बोते हैं. इस को सभी प्रकार की मिट्टी में उगा सकते हैं.

ढैंचा : सनई के बाद यह फसल दूसरे नंबर पर आती है. इसे सभी प्रकार की मिट्टी व आबोहवा में उगा सकते हैं. यह कम समय में तैयार होने वाली यानी 45 दिन में तैयार होने वाली हरी खाद की फसल है. गरमियों में 5-6 सिंचाई लगा कर इस की फसल तैयार कर लेते हैं व इस के बाद धान की फसल की रोपाई की जा सकती है. प्रति हेक्टेयर इस से मिट्टी में 80 से 100 किलोग्राम नाइट्रोजन इकट्ठा हो जाता है. जुलाई या अगस्त माह में इस फसल की बोआई कर के 45-50 दिन बाद खेत में दबा कर, इस के बाद गेहूं या दूसरी रबी की फसल उगा सकते हैं.

फसल की पलटाई का समय : फसल की एक खास समय पर पलटाई करने से मिट्टी को ज्यादा नाइट्रोजन व जीवांश पदार्थ हासिल होता है. जब फसल कच्ची अवस्था में हो और फूल निकलने शुरू हो गए हों, उस समय पौधों की बढ़वार ज्यादा होती है. पौधों की शाखाएं और पत्तियां मुलायम होती हैं. इस अवस्था में सीएन यानी कार्बन नाइट्रोजन का अनुपात भी कम होता है, जिस से जीवांश का विच्छेदन जल्दी होता है.

दलहनी फसलें : लोबिया, ग्वार, कुल्थी, उड़द, मूंग, बरसीम, मसूर, खेसारी वगैरह को हरी खाद के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

हरी खाद उगाना क्यों जरूरी : मिट्टी में जीवांश पदार्थ के लैवल को बनाए रखना हमारे देश में गोबर, कंपोस्ट व खलियों के द्वारा नामुमकिन है. इस के लिए हरी खाद की फसल उगाना जरूरी हो जाता है.

इस के अलावा लवणीय मिट्टी में हरी खाद की फसल उगा कर उस का सुधार भी मुमकिन है. उस का आने वाली फसल पर सीधा असर पड़ता है.

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए मिट्टी में नाइट्रोजन व कार्बनिक का लैवल बढ़ाने व मिट्टी की भौतिक व जैविक कैमिकल दशा को सुधारने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल ही सब से बढि़या उपाय है. हरी खाद की उपयोगिता व इस के फायदे को ध्यान में रख कर हर किसान हरी खाद वाली फसलों को उगाए. खेतों को ज्यादा समय तक टिकाऊ बनाने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल एक बढि़या विकल्प है.

 

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित निर्देशक व अभिनेता निशिकांत कामत लीवर की बीमारी के चलते अस्पताल में

2006 में मराठी भाषा की फिल्म “डोंबिवली फास्ट’ निर्देशित कर  राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले निर्देशक अभिनेता निशिकांत कामत “लीवर सिरोसिस” की गंभीर बीमारी की वजह से हैदराबाद के एआईजी अस्पताल में भर्ती किए गए हैं.
हैदराबाद के एआईजी की माने तो निशिकांत कामत की हालत बहुत नाजुक बनी हुई है. अस्पताल द्वारा जारी बयान में कहा गया है- ” पचास वर्षीय निशिकांत कामत को  पीलिया और पेट से जुड़ी एक बीमारी की शिकायत के बाद हैदराबाद के एआईजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जहां जांच करने पर पता चला कि उन्हें लीवर सिरोसिस नामक गंभीर बीमारी के साथ ही कुछ अन्य इन्फैक्शन्स से जूझ रहे हैं. उनकी सेहत पर स्पेशलिस्ट डॉक्टर लगातार निगरानी बनाए हुए हैं. उनकी हालत नाज़ुक ,पर स्थिर है. हम उनके जल्द ठीक होने की दुआ करते हैं.”
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मराठी भाषा की फिल्म “डोंबिवली फास्ट” के बाद निशिकांत कामत ने अजय देवगन और तब्बू को लेकर हिंदी भाषा की फिल्म “दृश्यम” का निर्देशन किया था ,जिसे काफी शोहरत मिली थी. इसके बाद उन्होंने जॉन अब्राहम के साथ “रॉकी हैंडसम” और “फोर्स ” जैसी फ़िल्में निर्देशित की.
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निशिकांत कामत सिर्फ एक बेहतरीन निर्देशक ही नहीं, बल्कि बेहतरीन अभिनेता भी हैं. निशिकांत कामत  ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर पर अभिनय करते हुए की थी. फिर उन्होंने “भावेश जोशी सुपर हीरो” और “डैडी” जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया .इतना ही नहीं हाल ही में जी5 पर प्रसारित वेब सीरीज ” द फाइनल” के क्रिएटिव निर्माता थे. इंडियन निशीकांत कामत अपनी नई फिल्म” दरबदर” पर काम कर रहे थे, जिसे  2022 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने कि उनकी योजना है.

Hyundai Verna डिजाइन ऐसी की नजरें न हटें

जब हम कार खरीदते हैं तो अपनी जरूरत के साथ बाहरी डिजाइन और लुक पर भी काफी ध्यान देते हैं. हम चाहते हैं कि हमारी गाड़ी ऐसी हो जो कंफर्ट लेवल के साथ स्टाइलिश और अट्रैक्टिव भी हो. बात करें अगर SUVs की तो सेडान हमेशा से ही लोगों लुभाती रही है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर हुंडई वरना की ऐसी क्या खासियत है जो कार ग्राहकों को इतनी पसंद आती है.

हुंडई वरना में पहली चीज जो आप नोटिस करते हैं वो क्रोम ग्रिल और सामने की ओर लगाए गए हेडलाइट्स हैं जो किसी कार में एकदम नया फीचर है. इस डार्क क्रोम के बड़े स्वैट्स की वजह से वरना को एक फ्रेश एलिगेंट लुक मिलता है.

वहीं अगर आप हुंडई वर्ना के टर्बो वेरिएंट को चुनते हैं तो आपको एक ब्लैक-आउट ग्रिल मिलता है जो इसके फ्रंट को थोड़ा और स्ट्रांग लुक का एहसास देता है. अब तो आप समझ ही गए होंगे कि, जब डिजाइन की बात आती है तो Hyundai Verna #BetterThanTheRest है.

संजय दत्त को लेकर पत्नी मान्यता ने दिया बयान, कैंसर को लेकर कही ये बात

संजय दत्त बीती  रात  अपने इलाज के लिए यूएस गए हैं. उन्हें लंग कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो गई है. बीती रात संजय दत्त के फैंस को जानकारी मिली है कि उनका पसंदीदा कलाकार इस गंभीर बीमारी के चपेट में आ गया है.

संजय दत्त के फैंस लगातार सोशल मीडिया पर फोटो शेयर कर उनकी सलामति की दुआ मांग रहे हैं. फैंस के द्वारा मिल रहे आपार प्यार को देखते हुए संजय दत्त के परिवार ने आधिकारिक बयान जारी किया है. और कहा है कि संजय दत्त इस बीमारी में भी जीत हासिल करेंगे और जल्द सभी के बीच लौटेंगे.

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वहीं संजय दत्त की पत्नी ने कहा है कि जिन लोगों ने संजू के लिए दुआएं मांगी है उन लोगों का दिल से शुक्रिया अदा करती हूं. हमें आप सभी की शुभकामनाएं की जरुरत है. हमारा पूरा परिवार कुछ साल पहले बहुत लंबी लड़ाई में जीत हासिल किया है. उम्मीद है हम इस लड़ाई में भी जीत हासिल करेंगे.

मैं संजू के फैंस से गुजारिश करती हूं कि किसी प्रकार के अफवाह पर ध्यान न दें. सब कुछ जल्द ठीक हो जाएगा. संजू हमेशा फाइटर रहे हैं. भगवान एक बार फिर हमारी परीक्षा लेने की ठानी है. हम इस परीक्षा में भी सफल होंगे.

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आप सभी लोगों की दुआएं की जरुरत है हम इस परीक्षा में भी जीत हासिल करेंगे. संजय दत्त काफी लंबे समय से फिल्मों में काम कर रहे हैं. उनके करोड़ों फैंस हैं. इस खबर के बाद से सभी का दिल टूट गया है.

फैंस लगातार अपने पसंदीदा कलाकार के लिए दुआएं मांग रहे हैं. बता दें संजय दत्त और मान्यता दत्त के दो बच्चें हैं.

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जब संजय दत्त ने मान्यता से शादी की थी उस वक्त उनका पूरा परिवार संजय के खिलाफ था लेकिन मान्यता ने सभी का दिल अपने प्यार से जीत लिया और एक खुशहाल परिवार बनाया.

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सुशांत सिंह मामले की जांच अब सीबीआई कर रही है. इस मामले में अभी तक रिया चक्रवर्ती, रिया के भाई शोविक चक्रवर्ती,रिया के पिता और सुशांत की बहन मीतू सिंह से  ईडी ने पूछताछ की  है. इसी बीच सुशांत की बहन श्वेता कृति सिंह ने सोशल मीडिया पर वीडियो के जरिए एक मैसेज भेजा है.

श्वेता कृति सिंह ने वीडियो शेयर करते हुए कहा है कि मैं श्वेता कृति सिंह आप सभी से रिक्वेस्ट करती हूं कि सभी मिलकर एक साथ सीबीआई की मांग करें. हम सबको सच्चाई जानने का हक है. अगर सच्चाई का पता नहीं लग पाया तो हम शांति से नहीं जी पाएंगे.

बता दें  शिवसेना के नेता संजय राउत ने खुलासा किया है कि सुशांत के संबंध उसके पिता के साथ मधुर नहीं थे. उसे अपने पिता की दूसरी शादी स्वीकार्य नहीं थी. जिस वजह से वह अपने पिता से हमेशा नाराज रहता था. जबकी सुशांत के परिवार वालों का मानना है कि वह गलत बात है.

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संजय राउत के बयान के बाद श्वेता ने सुशांत के पिता के साथ एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि हमारे पिता ने हमें फाइटर बनना सिखाया है. हमें बुरे परिस्थितियों में भी कैसे रहना है उसे समझाया है.

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He admits he was closest to his sister Priyanka (Sonu Di) because she gets him…❤️ #Warriors4SSR #justiceforsushant #godiswithus

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वहीं श्वेता ने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें सुशांत एक इंटरव्यू में बता रहे हैं कि मैं अपने सभी परिवार के सदस्यों को करीब हूं लेकिन सबसे ज्यादा करीब मैं अपनी बहन प्रियंका के हूं. वह मुझे हर बात समझाती है.

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हम दोनों में बहुत की समानता है. सुशांत के मौत के बाद से लगातार फैंस और फैमली परेशान है. सभी को सुशांत के मौत की सही वजह क्या है वह जानना है. उम्मीद है सच्चाई जल्द ही सभी के सामने आएगी.

जल्द ही सुशांत के परिवार को न्याय मिलेगा.

Crime Story: मोबाइल का जिन्न

लेखक- आर.के. राजू 

सौजन्य-मनोहर कहानियां

आजकल मांबाप 12-13 साल का होते ही बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा देते हैं, जिस में लगे इंटरनेट पर अच्छीबुरी  हर चीज मौजूद है. अगर यह कहा जाए कुछ किशोर सैक्स के बारे में मांबाप से ज्यादा जानते हैं तो गलत नहीं होगा. सौरभ भी ऐसा ही दिशाहीन युवक था. जिस ने…

एक साल के प्यार, 2 साल की रिलेशनशिप और 8 साल के प्रेम विवाह में रचना कभी इतना नहीं घबराई थी. इस दौरान वह हर तरह से, हर कदम पर बृजेश के साथ खड़ी रही थी. बृजेश कम ही

कहां था, कोर्टमैरिज करते समय न उस के मायके वालों से घबराया, न अपने घर वालों से, जो उसे घर से निकालने की धमकी दे रहे थे. उन की धमकी से डरने के बजाय उस ने खुद ही उन की देहरी पर कदम न रखने की बात कह दी थी. कहा तो निभाया भी.

बृजेश जिला मुरादाबाद के संभल का रहने वाला था और रचना अमरोहा के मोहल्ला कुरैशियान की. अमरोहा में बृजेश के बड़े भाई राजेश की ससुराल थी. रचना रिश्ते में उस की साली लगती थी. राजेश कभीकभी भाई की ससुराल जाता था, वहीं उस की रचना से मुलाकात हुई और दोनों में प्यार हो गया.

बाद में जब दिशू और परी आईं तो घर वालों का प्रेम जागा और वे लोग रचना बृजेश व दोनों बच्चियों को खुद घर ले गए. तब तक रचना के मायके वाले भी दामाद और बेटी के प्रेमिल रिश्ते को समझ गए थे. 10 साल लंबे साथ में रचना को कभी लगा ही नहीं कि बृजेश उसे प्यार नहीं करता या उसे उस पर विश्वास नहीं है.

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इतनी लंबी अवधि में रचना को न तो कभी ऐसी टेंशन हुई थी और न ही वह कभी इतनी घबराई थी. वजह यह कि तब हर कदम पर बृजेश उस के साथ खड़ा था, उस का हौसला बन कर. वह इतना प्यार और विश्वास करने वाला पति था कि कभीकभी रचना को अपनी किस्मत पर नाज होने लगता था. फिर बृजेश को अचानक ऐसा क्या हो गया कि अपनी प्रेम संगिनी पर विश्वास ही नहीं रहा, उस के लिए वह दूषित हो गई, पराई सी लगने लगी.

कभीकभी वह बृजेश के पक्ष में सोचती तो उसे लगता, न बृजेश गलत है न उस की सोच. कोई और भी होता तो ऐसे ही सोचता. लेकिन वह खुद ही गलत कहां थी. गलत तो वह था जो अनायास उन दोनों के बीच घुस आया था. रचना की परेशानी यह थी कि बृजेश को उस की हकीकत बता भी नहीं सकती थी. बता देती तो कीचड़ के छींटे उस के दामन पर भी आते.

एक स्नेहिल शुरुआत

संभल के मोहल्ला डेरा सहाय का रहने वाला बृजेश करीब 8 महीने पहले मुरादाबाद आया था. उस ने थाना नागफनी क्षेत्र के बंगला गांव स्थित रामवती के मकान में किराए के 2 कमरे ले लिए, फिर पत्नी रचना, दोनों बेटियों दिशू और परी को मुरादाबाद ले आया. मकसद था बड़ी हो रही बेटियों को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाना. बृजेश ने खुद पीतल के एक बड़े कारखाने में नौकरी ढूंढ ली, जहां बनी चीजें एक्सपोर्ट होती थीं.

बड़े शहर में आ कर रचना भी खुश थी और दोनों बेटियां भी. उन्हें खुश देख बृजेश उन से भी ज्यादा खुश रहता था. बृजेश सुबह को काम पर जाता तो अंधेरा घिरने तक ही लौटता. रचना दिन भर बच्चियों को पढ़ाने, संभालने और घर के कामों में लगी रहती. देखतेदेखते हंसीखुशी 2-3 महीने गुजर गए. इस बीच रचना और दोनों बच्चियां रामवती से भी घुलमिल गई थीं.

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सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन रामवती का पोता सौरभ दादी से मिलने आया. सौरभ नाबालिग था, लेकिन वाचाल. सौरभ ने रचना को देखा तो उस की खूबसूरती उस के दिल में उतर गई.

दादी ने पोते का परिचय रचना से करा दिया. वह रचना से मीठीमीठी बातें कर के नजदीकी बढ़ाने की कोशिश करने लगा. रचना उसे बच्चा समझ कर उस से वैसी ही बातें करती. नजदीकी बढ़ाने के लिए सौरभ रचना की दोनों बेटियों से भी घुलमिल गया. रचना को वह भाभी कहता था.

सौरभ नाबालिग था, बच्चों की तरह. उस के दिमाग में क्या है, रचना न तो जानती थी न जान सकती थी. जो भी हो, इस के बाद सौरभ हर हफ्ते दादी से मिलने आने लगा. आता तो रचना और उस की बेटियों से मिलता भी, बातें भी करता. कभी रामवती के सामने तो कभी पीछे. सौरभ मकान मालिक का पोता है, यह सोच कर रचना हंसती भी, उस से बातें भी करती.

एक दिन सौरभ ने कहा, ‘‘भाभी, आप मुझे बहुत सुंदर लगती हो. मैं आप का एक फोटो ले सकता हूं.’’

रचना ने न हां कहा न ना. तब तक सौरभ ने मोबाइल निकाल कर 3-4 फोटो खींच लिए. यह सामान्य सी बात थी. रचना ने सामान्य ढंग से ही लिया.

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सौरभ हफ्ते में एकदो बार आता और दादी से कम और रचना व उस की बेटियों से ज्यादा बात करता. बच्चियां उस के साथ खुश रहती थीं, इसलिए इस सब को उस ने किसी दूसरे पहलू से देखासोचा ही नहीं. एक बार सौरभ आया तो दादी के सामने ही रचना से बोला, ‘‘भाभी, आप की सेल्फी ले लूं?’’

रचना मना करती तो मकान मालकिन को बुरा लग सकता था, इसलिए उस ने न ना कहा न हां. इसी बीच सौरभ ने रचना के कंधे के पास सिर ले जा कर सेल्फी ले ली. एक और, एक और कर के उस ने 3 सेल्फी लीं, जिन में एक ऐसी भी थी, जिस में पीछे की ओर से सौरभ का चेहरा रचना के कंधे पर रखा दिख रहा था और दोनों के गाल मिले हुए थे. बाद में उस ने वह सेल्फी रचना को दिखाई तो वह उसे डिलीट करने को कहने लगी. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. वह अपने घर चला गया.

नाबालिग हो गया जवान

सेल्फी ऐसी नहीं थी कि उसे ले कर परेशान हुआ जाए. रचना परेशान भी नहीं हुई. लेकिन घर जा कर सौरभ ने जब सेल्फी को बारबार देखा तो उसे लगा कि वह जवान हो गया है. पलभर में उस का किशोरवय वाला दिमाग जवानी के पाले में जा खड़ा हुआ. दिमाग में उसी तरह की खुराफातें भी आने लगीं. उसे लगा रचना वाली सेल्फी उस के पास ऐसा हथियार है, जिस के बूते पर वह उसे मनचाहे ढंग से झुका सकता है. वह पूरी कोशिश करेगी कि सेल्फी उस के पति के सामने न जा पाए.

 

सौरभ ने जो सोचा किया भी. उस ने रचना को फोन करना शुरू कर दिया. पहले सामान्य सा हंसीमजाक, फिर प्रेमप्यार की बातें और फिर उन बातों में अश्लीलता घुल गई. रचना को बुरा लगा तो उस ने सौरभ को डांट दिया. फिर से फोन न करने को कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

सौरभ एक दिन शांत रहा, लेकिन अगले दिन फिर फोन कर दिया. रचना ने उसे समझाया, ‘‘तुम अभी बच्चे हो, ऐसी बेवकूफी मत करो. नहीं तो मुझे तुम्हारी दादी से शिकायत करनी पड़ेगी.’’

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‘‘भाभी, ये हम दोनों के बीच की बात है. दादी इस में क्या करेगी? बात दादी तक गई तो वह तुम लोगों को मकान से निकाल देगी, क्योंकि मैं सच थोड़े ही बोलूंगा. तुम पर उलटा इलजाम लगा दूंगा कि तुम मुझे फंसा रही थीं. मैं नहीं माना तो…’’

सौरभ की बात सुन कर रचना डर गई. सोचने लगी यह औरत होने की सजा है या विश्वास करने की. एक किशोर से स्नेहपूर्वक बात करना क्या इतना घातक है. दादी का वार खाली गया तो रचना ने पति के नाम का हथियार इस्तेमाल करते हुए उस की जुबान पर ताला डालने की कोशिश की, ‘‘ठीक है, मैं आज ही तुम्हारे भैया से कहूंगी, वही तुम्हारा दिमाग ठीक करेंगे.’’

रचना की बात सुन कर सौरभ हंस पड़ा. पलभर हंसने के बाद उस ने आखिरी तीर चलाया, ‘‘मेरी तुम्हारी एक सेल्फी है, तुम तो उसे भूल गई होगी. कोई बात नहीं, मैं भेज देता हूं. पहले देख लो फिर धमकी देना. देखो और सोचो, मैं ने यह सेल्फी बृजेश भैया को भेज दी तो क्या होगा.’’

सौरभ ने सेल्फी रचना को भेज दी. रचना सेल्फी वाले वाकए को भूल चुकी थी. लेकिन उस ने सौरभ की भेजी सेल्फी देखी तो थर्रा कर रह गई. बृजेश उसे देख लेता तो उस पर ही इलजाम लगाता.

वह सोच भी नहीं सकती थी कि 17 साल का किशोर इतना शातिर भी हो सकता है. उस की परेशानी यह थी कि सौरभ मकान मालकिन का पोता था. बात बढ़ती तो वह उसी का पक्ष लेती. उन्हें मकान खाली करने को भी कह सकती थी. अनायास जो स्थिति बनी थी या सौरभ ने बना दी थी, उस से वह टेंशन में रहने लगी.

इस स्थिति में उसे सौरभ को बहलाएफुसलाए भी रखना था और उसे बृजेश को सेल्फी भेजने से रोकना भी था. रचना इन्हीं स्थितियों में जीती रही, क्योंकि उसे कोई राह नहीं सूझ रही थी. सौरभ फोन करता तो सीधे कहता, ‘‘कब बुला रही हो?’’

अब उस ने रचना को भाभी कहना भी बंद कर दिया था.

 

यह सब चल ही रहा था कि 23 मार्च को लौकडाउन की घोषणा हो गई. बृजेश का काम पर जाना बंद हो गया. वह घर में रहने लगा. रचना हर समय डरीडरी सी रहने लगी. डर स्वाभाविक था. उसे जिस का डर था, वही हुआ.

सौरभ ने फोन कर दिया. रचना को अलग जा कर फोन सुनना पड़ा. उस ने सौरभ से बृजेश के घर में होने की बात कहनी पड़ी. इस पर वह खुश होते हुए बोला, ‘‘यह तो और भी अच्छा है. उस की बगल में बैठ कर बात करो मुझ से, वह सुनेगा तो और मजा आएगा.’’

रचना उस के सामने रोईगिड़गिड़ाई, मिन्नतें कीं, लेकिन सौरभ पर कोई असर नहीं हुआ. वह कमीनों की तरह हंसते हुए बोला, ‘‘छोटी सी बात है, मान जाओ. इतना परेशान होने की क्या जरूरत है. तुम भी खुश रहो, मैं भी खुश.’’

वह बात कर के कमरे में आई तो बृजेश ने पूछा, ‘‘किस से बात कर रही थीं?’’

जल्दी में कुछ नहीं सूझा तो रचना ने कह दिया, ‘‘मायके से फोन था.’’

‘‘उन से तो मेरे सामने भी बात कर सकती थी.’’ रचना ने सौरी कह कर बात तो खत्म कर दी लेकिन बृजेश उस के उतरे चेहरे को देख कर समझ गया कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है.  उस ने मन ही मन उस गड़बड़ का पता लगाने की ठान ली. फिर एक दिन सौरभ अचानक आ गया. बृजेश घर में था. रचना की रुह कांप गई. उसे लगा कि आज सौरभ मुंह जरूर खोलेगा. गनीमत यह रही कि सौरभ ने ऐसा कुछ नहीं किया और वापस चला गया.

पता तो नहीं लगा पाया, लेकिन जब रोजरोज सौरभ के फोन आने लगे तो उसे पूरा यकीन हो गया कि रचना का किसी के साथ चक्कर जरूर है. पिछले 12 सालों में वह इतनी टेंशन में कभी नहीं रही थी. पति को वह सफाई देती, कसमें खाती, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं था. अगर वह सब कुछ सच बताती तो सेल्फी वाला फोटो उस का दुश्मन बन जाता.

नतीजा यह हुआ कि बृजेश का शक बढ़ता गया. वह रोजाना शराब पीता और मन में भरा सारा गुबार रचना पर निकाल देता. वह गालियां खाती, पिटाई झेलती. बृजेश उस की सफाई सुनने को तैयार नहीं था. 17 साल के सौरभ ने रचना की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी थी. आग लगाई ही नहीं, रोज उसे हवा भी देता रहा. महीना भर से ज्यादा समय तक यही चलता रहा.

कुछ नहीं किया पुलिस ने

जब रचना पूरी तरह टूट गई, बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो एक दिन उस ने बृजेश को सच्चाई बता दी. बृजेश ने उस की बात पर यकीन किया या नहीं, यह अलग बात है. पर उस ने रचना से कहा, ‘‘तैयार हो जा, थाने चलते हैं.’’

रचना और बृजेश थाना नागफनी गए और लिखित तहरीर दे दी. तहरीर ले कर थानेदार ने कह दिया, बाद में देखेंगे. पतिपत्नी मुंह लटकाए लौट आए. बात जहां थी वहीं रह गई. वही शक वही संदेह और वही लड़ाईझगड़ा, मारपीट. रचना बृजेश को जितनी सफाई देती, समझाती, वह उसे उतना ही गलत समझता.

 

20 जून, 2020 को शनिवार था. उस दिन बृजेश रचना से खूब लड़ा, इतना ज्यादा कि रचना को अपनी जिंदगी बेकार लगने लगी. कोई रास्ता नहीं सूझा तो उस ने अपनी कलाई की नस काट ली. किसी पड़ोसी ने इस की सूचना बंगला गांव पुलिस चौकी को दी.

चौकी इंचार्ज रामप्रताप सिंह मौके पर आए और उन्होंने रचना को जिला अस्पताल में भरती करा दिया. इस से रचना की जान बच गई. रामप्रताप सिंह को लगा कि पतिपत्नी के झगड़े का मामला है, इसलिए उन्होंने दोनों को समझाया, उन्हें उन की बच्चियों का वास्ता दिया. साथ ही दोनों को सीधे घर जाने को भी कहा.

21 जून, 2020 को सुबह 8 बजे बृजेश दोनों बेटियों दिशू और परी को वहां से थोड़ी दूर पर रहने वाले अपने मौसेरे भाई प्रमोद के घर छोड़ आया.

वापसी में वह सल्फास की गोलियों का पैकेट लाया था. आते ही उस ने रचना से कहा, ‘‘मैं अब जीना नहीं चाहता. तूने मेरे साथ जो विश्वासघात किया है, मैं बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं. मेरे पीछे खूब मौजमजे करना.’’

बृजेश ने जेब से पैकेट निकाला तो रचना ने उस के हाथ से छीन लिया. वह बोली, ‘‘गुनहगार मैं हूं तो मुझे मरना चाहिए, तुम्हें नहीं. बच्चियां अभी छोटी हैं, उन्हें कौन संभालेगा.’’

बृजेश रचना से पैकेट लेने की कोशिश करता, इस से पहले ही उस ने पानी की बोतल उठा कर 4-5 गोलियां गटक लीं. पैकेट फर्श पर पड़ा देख बृजेश ने उठाया और वह भी पानी से 3-4 गोली निगल गया.

दोनों फंस गए मौत के चंगुल में

इस बीच बैड पर गिरी रचना के मुंह से झाग निकलने लगे थे. बृजेश भी फर्श पर फैल गया था. बृजेश और रचना के बीच महीनों से विवाद चल रहा था. उन के लड़ने की आवाजें अड़ोसीपड़ोसी भी सुनते थे. उस दिन भी दोनों में विवाद हुआ था.

जब अचानक दोनों की आवाजें आनी बंद हो गईं तो आसपड़ोस के लोगों को अनहोनी का डर लगा. उन्होंने जा कर कुंडी खड़काई. गिरतेपड़ते बृजेश ने अंदर से कुंडी खोली. अंदर का हाल देख कर लोग समझ गए कि दोनों ने जहर खाया है.

लोगों ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस उन्हें अस्पताल ले गई. डाक्टरों ने अपनी ओर से पूरी कोशिश की लेकिन रात आतेआते रचना ने दम तोड़ दिया. इस दौरान संभल से बृजेश के बड़े भाई और घर वाले आ गए. लेकिन प्रेमकथा में फंसा एक पेंच कैसे पीछे रह पाता. अगले दिन दोपहर में बृजेश ने भी दम तोड़ दिया.

उसी शाम पोस्टमार्टम के बाद रचना और बृजेश के शव उन के घर वालों को सौंप दिए, जिन का उन्होंने उसी शाम लालबाग श्मशान घाट में अंतिम संस्कार  कर दिया. शवों को मुखाग्नि बृजेश के भतीजे ने दी.

इस बीच पुलिस ने फोरैंसिक टीम को मौके पर बुलवा कर जांच कराई. जांच का सारा काम सीओ राजेश कुमार की देखरेख में हुआ.

पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की, लेकिन अंदर की कहानी कोई नहीं जानता था.

उसी रात बृजेश के बड़े भाई राजेश ने थाना नागफनी जा कर तहरीर दी, जिस में सौरभ को बृजेश और रचना को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दोषी बताया गया था. इस शिकायत पर थाना नागफनी के प्रभारी सुनील कुमार ने सौरभ के खिलाफ भादंवि की धारा 306 के तहत केस दर्ज कर लिया.

अगले दिन सौरभ को गिरफ्तार कर लिया गया. जांच के लिए उस का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया गया.

रचना का मोबाइल पहले ही पुलिस के पास था, जो घटनास्थल से मिला था. पूछताछ के बाद सौरभ को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

दूसरी ओर 8 साल की दिशू और 4 साल की परी मां और पिता के लिए बराबर रोए जा रही थीं. उन के ताऊ राजेश और बुआ रीमा उन्हें समझा रहे थे कि मां बीमार है, अस्पताल में है और पापा मम्मी के लिए दवाई लेने गए हैं.

लेकिन ऐसी बातों से बच्चियों को कब तक बहलाया जा सकता था. उन्हें यह भी तो पता ही नहीं था कि उन के मम्मीपापा इस दुनिया में नहीं रहे.

सच तो यह है कि बच्चियां यह तक नहीं जानतीं कि इंसान मरता कैसे है और क्यों. फिलहाल बृजेश के बड़े भाई राजेश दिशू और परी को अपने साथ ले गए हैं.

गेहूं की खेती में कीटों व रोगों से बचाव

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था कि कैसे नए तरीके से गेहूं की खेती की जाए. इस में खाद, पानी और उन्नत किस्म के बीजों के बारे में भी खास जानकारी दी गई थी. साथ ही बताया गया था कि गेहूं में उगने वाले खरपतवारों का खात्मा कैसे करें.

फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए जिस तरीके से हम अच्छे खादबीज व पानी का ध्यान रखते हैं, उतना ही जरूरी है फसल में लगने वाले कीटों व   बीमारियों की भी समय से रोकथाम करना. तभी हम फसल से बेहतर पैदावार ले सकेंगे.

गेहूं के खास कीट

दीमक (ओडोंटोटर्मिस आबेसेस) : दीमक बिना सिंचाई वाली और हलकी जमीन का एक खास हानिकारक कीट?है. दीमक जमीन में सुरंग बना कर रहती है और पौधों की जड़ें खाती है, जिस वजह से पौधे सूख जाते?हैं. यह हलके भूरे रंग की होती?है. इस का असर टुकड़ों में होता है, जिसे आसानी से पहचाना जाता है.

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रोकथाम?: 1 किलोग्राम बिवेरिया और 1 किलोग्राम मेटारिजयम को तकरीबन 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिला कर प्रति एकड़ बोआई से पहले इस का इस्तेमाल करें. असर ज्यादा होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लीटर मात्रा बालू में मिला कर प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. बीज बोआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस 0.1 फीसदी से उपचारित कर लेना चाहिए.

माहूं?: गेहूं में 2 तरह के माहूं लगते?हैं. पहला जड़ का माहूं रोग कारक रोपालोसाइफम रूफीअवडामिनौलिस नामक कीट है. दूसरा, पत्ती का माहूं है, यह सीटोबिनयन अनेनी, रोपालोसारफम पाडी और इस की विभिन्न जातियों से होता है. यह फसल की पत्तियों का रस चुस कर नुकसान पहुंचाता है. इन के मल से पत्तियों पर काले रंग की फफूंदी पैदा हो जाती?है, जिस से फसल का रंग खराब हो जाता है.

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रोकथाम : माहूं का असर होने पर पीले चिपचिपे ट्रेप का इस्तेमाल करें, जिस से माहूं?ट्रेप पर चिपक कर मर जाए. परभक्षी काक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर 50000 से 100000 अंडे या सूंडी प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें. 5 फीसदी नीम का अर्क या 1.25 लीटर तेल 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें. बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. इंडोपथोरा व वरर्टिसिलयम लेकानाई इंटोमोपथोजनिक फंजाई (रोग कारक कवक) का माहूं का असर होने पर छिड़काव करें. जरूरत होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17 एसएल डाइमेथोएट 30 ईसी या मेटासिसटाक्स 25 ईसी 1.25-2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

कर्तन कीट (एग्राटिन एप्सिलाना) : इस की सूंडियां खेत में एकसाथ हमला कर के सारी पत्तियां खा जाती हैं. नर व मादा संभोग कर पत्तियों पर अंडे देते?हैं. इन की जीवन चक्र क्रिया वातावरण के हिसाब से एकदो महीने में पूरी होती है. इस की सूंडी जमीन में गेहूं के पौधे के पास मिलती है और जमीन की सतह से पौधे को काट देता है.

रोकथाम : खेतों के बीचोंबीच शाम को घासफूस के?छोटेछोटे ढेर लगाने चाहिए. रात को जब सूंडियां खाने को निकलती हैं तो बाद में इन्हीं में छिपती हैं. घास हटाने पर आसानी से इन्हें नष्ट किया जा सकता?है. ज्यादा असर होने पर क्लोरपाइरीफास 20 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़काव करें.

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सैनिक कीट (माइथिमना सपरेटा) : अंडे से निकली सूंडी हवा के?झोंकों से एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचती है. नवजात सूंडी पौधे के बीच की मुलायम पत्तियों को खाती?है. जैसेजैसे यह बढ़ती है, तो पुरानी पत्तियों को खाने लगती?है और पूरा पौधा कंकाल हो जाता है. बड़ी सूंडियां बालियों के सींकुर भी खाती हैं, साथ ही बिना पके दानों को?भी खाती हैं. इसे काली कर्तन कीट या बाली काटने वाला कीट भी कहा जाता है.

रोकथाम : कीटनाशी रसायन डायक्लोरवास 76 फीसदी 500 मिलीलीटर, क्विनालफास 25 ईसी 1 लीटर या कार्बारिल 50 फीसदी डब्ल्यूपी की 3 किलोग्राम मात्रा को 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

तना मक्खी या प्ररोह मक्खी (एथरिगोना सोकटा) : मादा मक्खी तने के निचले भाग में या पत्तियों के नीचे अंडे देती है. अंडे से मैगट निकल कर तने में छेद कर के भीतर दाखिल हो जाती है और अंदर से तने को खाती रहती है. तने के अंदर सुरंग बना कर मृत केंद्र डेडहार्ट बनाती?है. फलस्वरूप पौधा पीला पड़ जाता है और अंत में सूख जाता है.

रोकथाम : कीटनाशी रसायन इमिडाक्लोप्रिड 17 एसएल 1 मिलीलीटर या साइपरमेथ्रिन 25 फीसदी की 350 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. कार्बारिल 10 फीसदी डीपी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकें.

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कटाई और मंडाई?: जब गेहूं का दाना पक जाए या दांत से तोड़ने पर कट की आवाज आए तो समझना चाहिए कि फसल कटाई के लिए तैयार हो गई है. फसल की कटाई मौजूदा साधनों के आधार पर हंसिया ट्रैक्टरचालित रीपर या कंबाइन से की जा सकती है. कटाई के एकदम बाद यानी कटाईमड़ाई के समय मौसम खराब हो जाता है.

उपज?: यदि किसान सही समय पर अच्छी नस्ल व नए तरीके अपना कर अच्छी विधियों का इस्तेमाल करता है, तो वह पैदावार को ज्यादा उगा सकता है, जिस में तकरीबन 50 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज हासिल होती है.

 

परी हूं मैं-भाग 1 : किसे देखकर खुश हो जाता था राजीव?

जिस रोज वह पहली बार राजीव के साथ बंगले पर आया था, शाम को धुंधलका हो चुका था. मैं लौन में डले झूले पर अनमनी सी अकेली बैठी थी. राजीव ने परिचय कराया, ‘‘ये तरुण, मेरा नया स्टूडैंट. भोपाल में परी बाजार का जो अपना पुराना घर था न, उसी के पड़ोस में रमेश अंकल रहते थे, उन्हीं का बेटा है.’’ सहजता से देखा मैं ने उसे. अकसर ही तो आते रहते हैं इन के निर्देशन में शोध करने वाले छात्र. अगर आंखें नीलीकंजी होतीं तो यह हूबहू अभिनेता प्राण जैसा दिखता. वह मुझे घूर रहा था, मैं हड़बड़ा गई. ‘‘परी बाजार में काफी अरसे से नहीं हुआ है हम लोगों का जाना. भोपाल का वह इलाका पुराने भोपाल की याद दिलाता है,’’ मैं बोली.

‘‘हां, पुराने घर…पुराने मेहराब टूटेफूटे रह गए हैं, परियां तो सब उड़ चुकी हैं वहां से’’, कह कर तरुण ने ठहाका लगाया. तब तक राजीव अंदर जा चुके थे.

‘‘उन्हीं में से एक परी मेरे सामने खड़ी है,’’ लगभग फुसफुसाया वह…और मेरे होश उड़ गए. शाम गहराते ही आकाश में पूनम का गोल चांद टंग चुका था, मुझे लगा वह भी तरुण के ठहाके के साथ खिलखिला पड़ा है. पेड़पौधे लहलहा उठे. उस की बात सुन कर धड़क गया था मेरा दिल, बहुत तेजी से, शायद पहली बार. उस पूरी रात जागती रही मैं. पहली बार मिलते ही ऐसी बात कोई कैसे कह सकता है? पिद्दा सा लड़का और आशिकों वाले जुमले, हिम्मत तो देखो. मुझे गुस्सा ज्यादा आ रहा था या खुशी हो रही थी, क्या पता. मगर सुबह का उजाला होते मैं ने आंखों से देखा. उस की नजरों में मैं एक परी हूं. यह एक बात उस ने कई बार कही और एक ही बात अगर बारबार दोहराई जाए तो वह सच लगने लगती है. मुझे भी तरुण की बात सच लगने लगी.

और वाकई, मैं खुद को परी समझने लगी थी. इस एक शब्द ने मेरी दुनिया बदल कर रख दी. इस एक शब्द के जादू ने मुझे अपने सौंदर्य का आभास करा दिया और इसी एक शब्द ने मुझे पति व प्रेमी का फर्क समझा दिया. 2 किशोरियों की मां हूं अब तो. शादी हो कर आई थी तब 23 की भी नहीं थी, तब भी इन्होंने इतनी शिद्दत से मेरे  रंगरूप की तारीफ नहीं की थी. परी की उपमा से नवाजना तो बहुत दूर की बात. इन्हें मेरा रूप ही नजर नहीं आया तो मेरे शृंगार, आभूषण या साडि़यों की प्रशंसा का तो प्रश्न ही नहीं था. तरुण से मैं 1-2 वर्ष नहीं, पूरे 13 वर्ष बड़ी हूं लेकिन उस की यानी तरुण की तो बात ही अलहदा है. एक रोज कहने लगा, ‘मुझे तो फूल क्या, कांटों में भी आप की सूरत नजर आती है. कांटों से भी तीखी हैं आप की आंखें, एक चुभन ही काफी है जान लेने के लिए. पता नहीं, सर, किस धातु के बने हैं जो दिनरात किताबों में आंखें गड़ाए रहते हैं.’

‘बोरिंग डायलौग मत मारो, तरुण,’ कह कर मैं ने उस के कमैंट को भूलना चाहा पर उस के बाद नहाते ही सब से पहले मैं आंखों में गहरा काजल लगाने लगी, अब तक सब से पहले सिंदूर भरती थी मांग में. तरुण के आने से जाने अनजाने ही शुरुआत हो गई थी मेरे तुलनात्मक अध्ययन की. इन की किसी भी बात पर कार्य, व्यवहार, पहनावे पर मैं स्वयं से ही प्रश्नोत्तर कर बैठती. तरुण होता तो ऐसे करता, तरुण यों कहता, पहनता, बोलता, हंसताहंसाता. बात शायद बोलनेबतियाने या हंसतेहंसाने तक ही सीमित रहती अगर राजीव को अपने शोधपत्रों के पठनपाठन हेतु अमेरिका न जाना पड़ता. इन का विदेश दौरा अचानक तय नहीं हुआ था. पिछले सालडेढ़साल से इस सैमिनार की चर्चा थी यूनिवर्सिटी में और तरुण को भी पीएचडी के लिए आए इतना ही वक्त हो चला है. हालांकि इन के निर्देशन में अब तक दसियों स्टूडैंट्स रिसर्च कंपलीट कर चुके हैं मगर वे सभी यूनिवर्सिटी से घर के ड्राइंगरूम और स्टडीहौल तक ही सीमित रहे किंतु तरुण के गाइड होने के साथसाथ ये उस के बड़े भाई समान भी थे क्योंकि तरुण इन के गृहनगर भोपाल का होने के संग ही रमेश अंकल का बेटा जो ठहरा. इस संयोग ने गुरुशिष्य को भाई के नाते की डोर से भी बांध दिया था.

औपचारिक तौर पर तरुण अब भी भाभीजी ही कहता है. शुरूशुरू में तो उस ने तीजत्योहार पर राजीव के और मेरे पैर भी छुए. देख कर राजीव की खुशी छलक पड़ती थी. अपने घरगांव का आदमी परदेस में मिल जाए, तो एक सहारा सा हो जाता है. मानो एकल परिवार भरापूरा परिवार हो जाता है. तरुण भी घर के एक सदस्य सा हो गया था, बड़ी जल्दी उस ने मेरी रसोई तक एंट्री पा ली थी. मेरी बेटियों का तो प्यारा चाचू बन गया था. नन्हीमुन्नी बेटियों के लिए उन के डैडी के पास वक्त ही कहां रहा कभी. यों तो तरुण कालेज कैंपस के ही होस्टल में टिका है पर वहां सिर्फ सामान ही पड़ा है. सारा दिन तो लेबोरेट्री, यूनिवर्सिटी या फिर हमारे घर पर बीतता है. रात को सोने जाता है तो मुंह देखने लायक होता है. 3 सप्ताहों का दौरा समाप्त कर तमाम प्रशंसापत्र, प्रशस्तिपत्र के साथ ही नियुक्ति अनुबंध के साथ राजीव लौटे थे. हमेशा की तरह यह निर्णय भी उन्होंने अकेले ही ले लिया था. मुझ से पूछने की जरूरत ही नहीं समझी कि ‘तुम 3 वर्ष अकेली रह लोगी?’

मैं ने ही उन की टाई की नौट संवारते पूछा था, ‘‘3 साल…? कैसे संभालूंगी सब? और रिद्धि व सिद्धि…ये रह लेंगी आप के बगैर?’’ ‘‘तरुण रहेगा न, वह सब मैनेज कर लेगा. उसे अपना कैरियर बनाना है. गाइड हूं उस का, जो कहूंगा वह जरूर करेगा. समझदार है वह. मेरे लौटते ही उसे डिगरी भी तो लेनी है.’’ मैं पल्लू थामे खड़ी रह गई. पक्के सौदागर की तरह राजीव मुसकराए और मेरा गाल थपथपाते यूनिवर्सिटी चले गए, मगर लगा ऐसा जैसे आज ही चले गए. घर एकदम सुनसान, बगीचा सुनसान, सड़कें तक सुनसान सी लगीं. वैसे तो ये घर में कोई शोर नहीं करते मगर घर के आदमी से ही तो घर में बस्ती होती है. इन के जाने की कार्यवाही में डेढ़ माह लग गए. किंतु तरुण से इन्होंने अपने सामने ही होस्टलरूम खाली करवा कर हमारा गैस्टरूम उस के हवाले कर दिया. अब तरुण गैर कहां रह गया था? तरुण के व्यवहार, सेवाभाव से निश्ंिचत हो कर राजीव रवाना हो गए.

वैसे वे चाहते थे घर से अम्माजी को भी बुला लिया जाए मगर सास से मेरी कभी बनी ही नहीं, इसलिए विकल्प के तौर पर तरुण को चुन लिया था. फिर घर में सौ औरतें हों मगर एक आदमी की उपस्थिति की बात ही अलग होती है. तरुण ने भी सद्गृहस्थ की तरह घर की सारी जिम्मेदारी उठा ली थी. हंसीमजाक हम दोनों के बीच जारी था लेकिन फिर भी हमारे मध्य एक लक्ष्मणरेखा तो खिंची ही रही. इतिहास गवाह है ऐसी लक्ष्मणरेखाएं कभी भी सामान्य दशा में जानबूझ कर नहीं लांघी गईं बल्कि परिस्थिति विशेष कुछ यों विवश कर देती हैं कि व्यक्ति का स्वविवेक व संयम शेष बचता ही नहीं है. परिस्थितियां ही कुछ बनती गईं कि उस आग ने मेरा, मुझ में कुछ छोड़ा ही नहीं. सब भस्म हो गया, आज तक मैं ढूंढ़ रही हूं अपनेआप को. आग…सचमुच की आग से ही जली थी. शिफौन की लहरिया साड़ी पहनने के बावजूद भी किचन में पसीने से तरबतर व्यस्त थी कि दहलीज पर तरुण आ खड़ा हुआ और जाने कब टेबलफैन का रुख मेरी ओर कर रैगुलेटर फुल पर कर दिया. हवा के झोंके से पल्ला उड़ा और गैस को टच कर गया.

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