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और वक्त बदल गया-भाग 3: नीरज क्यों खुश हो गया?

धीरे धीरे रेनू ने अंकल के कान भरने शुरू कर दिए. अब नीरज उन की नजरों में भी खटकने लगा. बेवजह के ताने व प्रताड़ना शुरू हो गई. उस दिन तो हद हो गई, उसे एक किताब की जरूरत थी, उस ने अंकल से पैसे मांगे. इस बात को ले कर इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया कि अतीत के सारे कालेपन्ने खोल कर उसे सुनाए गए. उस पर किए गए एहसान जताए गए, खर्च के हिसाब बताए गए. नीरज खामोश खड़ा सब सुनता रहा.  उस के पास कहने को क्या था? उस के मांबाप ने उसे ऐसी स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया था कि शरम से उस का सिर झुक जाता था. अच्छे मार्क्स लाने के बाद उस की न कोई कद्र थी, न कोई तारीफ. 10वीं में उस के 97 फीसदी नंबर आए थे. स्कौलरशिप मिल रही थी. पढ़ाई के सारे खर्चे उसी में से पूरे हो जाते. कभीकभार किताबें वगैरा के लिए कुछ पैसे मांगने पड़ते थे. उस पर भी हंगामा खड़ा हो जाता.

उस दिन वह अपने कमरे में आ कर बेतहाशा रोया. उस के मांबाप ने अपनी मुहब्बत व अपने ऐश, अपनी सहूलियतों, अपने स्वार्थ के लिए उस की जिंदगी बरबाद कर दी थी. अगर उन दोनों ने विधिवत शादी की होती, अपनी जिम्मेदारी समझी होती तो ननिहाल या ददिहाल में से कोई भी उसे रख लेता. उस की जिंदगी यों शर्मसार न हुई होती. उसी दिन रात को उस ने तय किया कि 12वीं पास होते ही वह यह घर छोड़ देगा. अपने बलबूते पर अपनी पढ़ाईर् पूरी करेगा. 12वीं उस ने मैरिट में उत्तीर्ण की. पर घर में कोई खुशी मनाने वाला न था. रूखीफीकी मुबारकबाद मिली. बस, बूआ ने बहुत प्यार किया. अपने पास से मिठाई मंगा कर उसे खिलाई. हां, उस के दोस्तों ने खूब सैलिब्रेट किया. 2-4 दिनों बाद उस ने घर छोड़ दिया. पढ़ाई के खर्चे की उसे कोई फिक्र न थी. स्कौलरशिप मिल रही थी. एक अच्छे स्टूडैंट के लिए कुछ मुश्किल नहीं होती.

उस की परफौर्मेंस बहुत अच्छी थी. उस का ऐडमिशन एक अच्छे कालेज में हो गया. उस ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर कमरा किराए पर ले लिया और ट्यूशन कर के निजी खर्च निकालने लगा. उस का पढ़ाने का ढंग इतना अच्छा था कि उसे 10वीं के बच्चों की ट्यूशन मिल गई. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. छुट्टियों में काम कर के कुछ और पैसे कमा लेता. बीई में उस ने पोजीशन ली. बीई के बाद उस के दोस्त ने जौब कर ली और दूसरे शहर में चला गया. मकानमालिक को कमरे की जरूरत थी, उसे वह घर छोड़ना पड़ा. फिर थोड़ी कोशिश के बाद उसे मिसेज रेमन के यहां कमरा मिल गया. यह खूब पुरसुकून व अच्छी जगह थी. उस ने दुनिया के सारे शौक, सारे मजे छोड़ दिए थे. उस की जिंदगी का बस एक मकसद था, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई. यहां भी वह ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता था. अब स्टोर में भी काम मिल गया, ये सब पुरानी बातें सोचतेसोचते वह नींद की आगोश में चला गया.

नीरज का यह फाइनल सैमेस्टर था. कैंपस सिलैक्शन में उसे एक अच्छी कंपनी ने चुन लिया. जीभर कर उस ने खुशियां मनाई. फाइनल होने के बाद उस ने वही कंपनी जौइन कर ली. शानदार पैकेज, बहुत सी सहूलियतें जैसे उस की राह देख रही थीं. मिसेज रेमन और मिस्टर जैकब को भी उस ने बाहर डिनर कराया. उन दोनों ने भी उसे तोहफे व दुआएं दे कर उस का हौसला बढ़ाया. मिसेज रेमन ने एक मां की तरह प्यार किया. बूआ को साड़ी व पैसे दिए. वक्त और हालात बदलते देर नहीं लगती. आज वह 6 साल का मजबूर व बेबस बच्चा न था, 24 साल का खूबसूरत, मजबूत और समृद्ध जवान था. एक शानदार घर में रह रहा था. दुनिया की सारी सुखसुविधाएं उस के पास थीं. पर फिर भी उस की आंखों में उदासी और जिंदगी में तनहाई थी. वह हर वीकैंड पर मिसेज रेमन से मिलने जाता. वही एकमात्र उस की दोस्त, साथी या रिश्तेदार थीं. अच्छा वक्त तो वैसे भी पंख लगा कर उड़ता है.

उस दिन शाम को वह लौन में बैठा चाय पी रहा था कि गेट पर एक टैक्सी आ कर रुकी. उस में से एक सांवली सी अधेड़ औरत उतरी और गेट खोल कर अंदर चली आई. नीरज उस महिला को पहचान न सका, फिर भी शिष्टाचार के नाते कहा, ‘‘बैठिए, आप कौन हैं?’’ उस औरत की आंखें गीली थीं. चेहरे पर बेपनाह मजबूरी और उदासी थी. उस ने धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘नीरज, तुम ने मुझे पहचाना नहीं. मैं सोनाली हूं, तुम्हारी मम्मी.’’ नीरज भौचक्का रह गया. कहां वह जवान और खूबसूरत औरत, कहां यह सांवली सी अधेड़ औरत. दोनों में बड़ा फर्क था. ‘मम्मी’ शब्द सुन कर नीरज के मन में कोई हलचल न हुई. उस की सारी कोमल भावनाएं बर्फ की तरह सर्द हो कर जम चुकी थीं. अब दिल पर इन बातों का कोई असर न होता था. उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘कहिए, कैसे आना हुआ? आप को मेरा पता कहां से मिला?’’

‘‘बेटा, मैं दूर जरूर थी पर तुम से बेखबर न थी. तुम्हारा रिजल्ट, तुम्हारी कामयाबी, नौकरी सब की खबर रखती थी. इंटरनैट से दुनिया बहुत छोटी हो गई है. जीजाजी से मिसेज रेमन का पता चला. उन से तुम्हारे बारे में मालूम हो गया. इस तरह तुम तक पहुंच गई. मैं जानती हूं, मेरा तुम से माफी मांगना व्यर्थ है क्योंकि जो कुछ मैं ने किया है उस की माफी नहीं हो सकती. तुम्हारा बचपन, तुम्हारा लड़कपन, मेरी नादानी और मेरे स्वार्थ की भेंट चढ़ गया. मैं ने जज्बात में आ कर गलत फैसला किया. न मैं खुश रह सकी न तुम्हें सुख दे सकी. मैं ने वह खिड़की खुद ही बंद कर दी जहां से ताजी हवा का झोंका, मुहब्बत की ठंडी फुहार मेरे तपते वजूद की तपिश कम कर सकती थी. मैं ने थोड़े से ऐश की खातिर उम्रभर के दुखों से सौदा कर लिया. अब सिर्फ पछतावा ही मेरी जिंदगी है.’’

‘‘ठीक है, सोनाली मैम, जो आप ने किया, सोचसमझ कर किया था. आज से 30-32 साल पहले ‘लिवइन रिलेशनशिप’ इतनी आम बात न थी. बहुत कम लोग यह कदम उठाते थे. आप उस समय इतनी बोल्ड थीं, आप ने यह कदम उठाया. फिर उस को निभाना था. एक बच्चे को जन्म दे कर आप ने उस की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया. न मेरा कोई ननिहाल रहा, न ददिहाल. मैं ने कैसे खुद को संभाला, यह मैं जानता हूं. ‘‘जिस उम्र में बच्चे मां के सीने पर सिर रख कर सोते हैं उस उम्र में मैं ने तकिए से लिपट कर रोरो कर रातें काटी हैं. आप ने और पापा ने सिर्फ अपने ऐश देखे. एक पल को भी, उस बच्चे के बारे में न सोचा जिसे दुनिया में लाने के आप दोनों जिम्मेदार थे. अब मेरी मासूमियत, मेरा बचपन, मेरी कोमल भावनाएं सब बेवक्त मर चुकी हैं.’’

‘‘नीरज, तुम जो भी कह रहे हो, एकदम सच है. मैं ने हर कदम सोचसमझ कर उठाया था. पर उस के अंजाम ने मुझे ऐसा सबक सिखाया है कि हर लमहा मैं खुद को बुराभला कहती हूं. मलयेशिया में मैं ने दूसरी शादी की थी. पर 6 साल तक मुझे औलाद न हुई तो उस ने मुझे तलाक दे दिया. उसे औलाद चाहिए थी और मैं मां न बन सकी. औलाद की बेकद्री की मुझे सजा मिल गई. मैं औलाद मांगती रही, मेरे बच्चा न हुआ. सारे इलाज कराए. यहां औलाद थी तो मैं ने दूसरों को दे दी. मेरे गुनाहों का अंत नहीं है. ‘‘मुझे कैंसर है. थोड़ा ही वक्त मेरे पास है. मैं अपने गुनाहों का, अपनी भूलों का प्रायश्चित्त करना चाहती हूं. अब मैं तुम्हारे पास रहना चाहती हूं. मैं तनहाई से तंग आ गई हूं. मुझे तुम्हारी तनहाई का भी एहसास है. पैसा है मेरे पास, पर उस से तनहाई कम नहीं होती. भले तुम मुझे खुदगर्ज समझो पर यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. एक बार मुझे मेरी गलतियां सुधारने का मौका दो. अपनी बेबस व मजबूर मां की इतनी बात रख लो.’’

नीरज सोच में पड़ गया. एक बार दिल हुआ, मां को माफ कर दे. दूसरे पल संघर्षभरे दिन, अकेले रोतेरोते गुजारी रातें याद आ गईं. उस ने धीमे से कहा, ‘‘सोनाली मैम, इतने सालों से मैं बिना रिश्तों के जीने का आदी हो गया हूं. रिश्ते मेरे लिए अजनबी हो गए हैं. मुझे थोड़ा वक्त दीजिए कि मैं अपने दिल को रिश्ते होने का यकीन दिला सकूं, अपनों के साथ जीने का तरीका अपना सकूं. ‘‘इतने सालों तक तपते रेगिस्तान में झुलसा हूं, अब एकदम से ठंडी फुहार बरदाश्त न कर सकूंगा. मुझे अपनेआप को ‘मां’ शब्द से मिलने का, समझने का मौका दीजिए. अभी मुझे नए तरीकों को अपनाने में थोड़ी हिचकिचाहट है. जैसे ही मुझे लगेगा कि मैं ने मां को पहचान लिया है, मैं आप को खबर कर के लेने आ जाऊंगा. आप अपना फोन नंबर और पता मुझे दे जाइए.’’

सोनाली ने एक उम्मीदभरी नजर से बेटे को देखा. उस की आंखें डबडबा गईं. वह थकेथके कदमों से गेट की तरफ मुड़ गई.

 

और वक्त बदल गया-भाग 2: नीरज क्यों खुश हो गया?

जिंदगी एक ढर्रे पर चलने लगी. नीता आंटी उस का बहुत खयाल रखतीं. आंटी के यहां रहते हुए उसे कई बातें पता चलीं. आंटी की शादी को 8 साल हो गए थे. उन के यहां औलाद न थी. इसलिए उन्होंने उसे गोद लिया था. जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उसे सारी बातें समझ में आती गईं. कुछ बातें उसे नीता आंटी से पता चलीं. कुछ बातें उन की पुरानी बूआ कमला से पता चलीं. उस के मांबाप की कहानी भी उन्हीं लोगों से मालूम पड़ीं. उस की मम्मी सोनाली बहुत खूबसूरत, चंचल और जहीन थीं. जब वे एमएससी कर रही थीं, उन की मुलाकात उस के पापा रवि से हुई. पहले दोस्ती, फिर मुहब्बत. दोनों के धर्म में फर्क था. दोनों के घरों से शादी का इनकार ही था. पर इश्के जनून कहां रुकावटों से रुकता है. दोनों की पढ़ाई पूरी होते ही उन दोनों ने सोचसमझ कर आपसी सहमति से अपना शहर छोड़ दिया और इस शहर में आ कर बस गए. सोनाली और रवि दोनों ही नए जमाने के साथ चलने वाले, ऊंची उड़ान भरने वाले परिंदे सरीखे थे. पुराने रीतिरिवाजों के विरोधी, नई सोच नई डगर, आजाद खयालों के हामी, उन दोनों ने ‘लिवइन रिलेशन’ में एकसाथ रहना शुरू कर दिया. विवाह उन्हें एक बंधन लगा.

उन का एजुकेशनल रिकौर्ड काफी अच्छा था. जल्द ही उन्हें अच्छी नौकरी मिल गई. जल्द ही उन्होंने जीवन की सारी जरूरी सुविधाएं जुटा लीं. एक साल फूलों की महक की तरह हलकाफुलका खुशगवार गुजर गया. फिर उन की जिंदगी में नीरज आ गया. शुरूशुरू में दोनों ने खुशी से जिम्मेदारी उठाई. दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. सोनाली चंचल और आजाद रहने वाली लड़की थी. घर में सासससुर या कोई बड़ा होता तो कुछ दबाव होता, थोड़ा समझौता करने की आदत बनती. पर ऐसा कोई न था. रवि बेहद महत्त्वाकांक्षी और थोड़ा स्वार्थी था. खर्च और काम बढ़ने से दोनों के बीच धीरेधीरे कलह होने लगी. पहले तो कभीकभार लड़ाई होती, फिर अंतराल घटने लगा. दोनों में बरदाश्त और सहनशीलता जरा न थी. फिर हर दूसरे, तीसरे दिन लड़ाई होने लगी. रवि के अपने मांबाप, परिवार से सारे संबंध टूट चुके थे और वे लोग उस से कोई संबंध रखना भी नहीं चाहते थे. उन के रवि के अलावा एक बेटा और एक बेटी थी. उन्हें डर था कि कहीं रवि के व्यवहार का दोनों बच्चों पर बुरा प्रभाव न पड़ जाए. जो लड़का प्यार की खातिर घरपरिवार छोड़ दे, उस से उम्मीद भी क्या रखी जा सकती है.

रिश्तेदारों से तो रवि पूरी तरह कट चुका था. कभी किसी दोस्त या सहयोगी के यहां कोई समारोह में शामिल होने का मौका मिलता, वहां भी कोई न कोई ऐसी बात हो जाती कि मन खराब हो जाता. कभी कोई इशारा कर के कहता, ‘यही हैं जो लिवइन रिलेशन में रह रहे हैं.’ या कोई कह देता, ‘इन लोगों की शादी नहीं हुई है, ऐसे ही साथ रहते हैं.’ उन दिनों लिवइन रिलेशन बहुत कम चलन में था. लोग इसे बहुत बुरा समझते थे. लोग खूब आलोचना भी करते थे. रवि भी इस बात को महसूस करता था कि अगर समाज में घुलमिल कर रहना है तो समाज के बनाए उसूलों के अनुसार चलना जरूरी है. पर अब इन सब बातों के लिए बहुत देर हो चुकी थी. जो जैसा चल रहा था, वही अच्छा लगने लगा था.

सोनाली अपने परिवार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी 2 बहनें थीं. उस ने घर से भाग कर रवि के साथ रहना शुरू कर दिया. इन सब बातों की उस के मांबाप को खबर हो गई थी. बिना शादी के दोनों साथ रहते हैं, इस बात से उन्हें बहुत धक्का लगा. ऐसी खबरें तो पंख लगा कर उड़ती हैं. उन की 2 बेटियां कुंआरी थीं. कहीं सोनाली की कालीछाया उन दोनों के भविष्य को भी ग्रहण न लगा दे, यह सोच कर उन लोगों ने सोनाली से कोई संबंध नहीं रखा, न उस की कोई खोजखबर ली. वैसे भी, एक आजाद लड़की को क्या समझाना. इस तरह सोनाली भी अपने परिवार से अलग हो गई थी. उस की रिश्ते की एक बहन नीता इसी शहर में रहती थी. उस से मेलमुलाकात होती रहती थी. उस की शादी को 8 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद न थी. वह बच्चे के लिए तरसती रहती थी. इधर, रवि और सोनाली के बीच अहं का टकराव होता रहता. दोनों पढ़ेलिखे, सुंदर और जहीन थे. कोई झुकना न चाहता था. एक बात और थी, दोनों ही अपने परिवारों से कटे हुए थे. इस बात का एहसास उन्हें खटकता तो था पर खुल कर इस को कभी स्वीकार नहीं करते थे क्योंकि उन की ही गलती नजर आती. फिर सोशललाइफ भी कुछ खास न थी. इसी घुटन और कुंठा ने दोनों को चिड़चिड़ा बना दिया था.

नीरज की जिम्मेदारी और खर्च दोनों को ही भारी पड़ता. दोनों को अपनाअपना पैसा बचाने की धुन सवार रहती. नतीजा निकला रोजरोज की लड़ाई और अंजाम, रवि घर, नीरज और सोनाली को छोड़ कर चला गया. न कोई बंधन था, न कोई दवाब, न कोई कानूनी रोक. बड़ी आसानी से वह सोनाली और बच्चे को छोड़ चला गया. किसी से पता चला कि वह दुबई चला गया. इधर, सोनाली भी बहुत महत्त्वाकांक्षी थी. उस ने भी दौड़धूप व कोशिश की. उसे मलयेशिया में नौकरी मिल गई. अब सवाल उठा बच्चे का. उस का क्या किया जाए. सोनाली भी अकेले यह जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहती थी. अभी उस के सामने पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की कजिन नीता ने सुझाव दिया कि उस की कोई औलाद नहीं है, वह नीरज को अपने बेटे की तरह रखेगी. सोनाली ने नीरज को उसे दे दिया. एक मौखिक समझौते के तहत बच्चा उसे मिल गया. कोई कानूनी कार्यवाही की जरूरत ही नहीं समझी गई. इस तरह मासूम नीरज, नीता आंटी के पास आ गया. बिना मांबाप के एक मांगे की जिंदगी गुजारने की खातिर. नीता आंटी उस का खूब खयाल रखती थीं, पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी. जो बच्चे बचपन में दुख उठाते हैं, तनहाई और महरूमी झेलते हैं, वे वक्त से पहले सयाने और समझदार हो जाते हैं. नीरज ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया. एक ही धुन थी उसे कि कुछ बन कर दिखाना है. मेहनत और लगन से उस का रिजल्ट भी खूब अच्छा आता था.

दुख और हादसे कह कर नहीं आते. नीता आंटी का रोड ऐक्सिडैंट हो गया. 4-5 दिन मौत से संघर्ष करने के बाद वे चल बसीं. नीरज की तो दुनिया उजड़ गई. अब बूआ एकमात्र सहारा थीं. वे उस का बहुत ध्यान रखतीं. अंकल पहले से ही कटेकटे से रहते थे. अब और तटस्थ हो गए. धीरेधीरे हालात सामान्य हो गए. उस वक्त वह 10वीं में पढ़ रहा था. एक साल गुजर गया. आंटी की कमी तो बहुत महसूस होती पर सहन करने के अलावा कोई रास्ता न था. पहले भी वह अकेला था अब और अकेला हो गया. उस के सिर पर आसमान तो तब टूटा जब अंकल दूसरी शादी कर के दूसरी पत्नी को घर ले आए. दूसरी पत्नी रेनू 30-31 साल की स्मार्ट औरत थी. कुछ अरसे तक वह चुपचाप हालात देखती और समझती रही और जब उसे पता चला, नीरज गोद लिया बच्चा है, तो उस के व्यवहार में फर्क आने लगा.

नीरज ने अपनेआप को अपने कमरे तक सीमित कर लिया. खाने वगैरा का काम बूआ ही देखतीं. डेढ़ साल बाद जब रेनू का बेटा पैदा हुआ तो नीरज के लिए जिंदगी और तंग हो गई. अब तो रेनू उसे बातबेबात डांटनेफटकारने लगी थी. खानेपीने पर भी रोकटोक शुरू हो गई. बासी बचा खाना उस के लिए रखा जाता. वह तो गनीमत थी कि बूआ उसे बहुत प्यार करती थीं, छिपछिपा कर उसे खिला देतीं.

Crime Story: सोने की तस्करी

सोने की तसकरी कोई नई बात नहीं है. अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर प्राय रोज ही सोना पकड़ा जाता है. लेकिन यूएई से केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर जो 32 किलो सोना पकड़ा गया, उस का मामला इसलिए चिंता का विषय है, क्योंकि सोने की इस तसकरी के तार मंत्रालय और वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से जुड़े पाए गए.

इसी साल जुलाई के पहले सप्ताह की बात है. केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एयर कार्गो से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के

वाणिज्य दूतावास के नाम से कुछ बैगों में राजनयिक सामान आया था. यूएई का वाणिज्य दूतावास तिरुवनंतपुरम शहर के मनाक में स्थित है. सामान क्या शौचालयों में उपयोग होने वाले उपकरण थे, जो खाड़ी देश से आई फ्लाइट से आए थे.

विमान से आए बैग उतार कर कार्गो यार्ड में रख दिए गए. इन बैगों को लेने के लिए 2 दिनों तक कोई भी संबंधित व्यक्ति हवाई अड्डे नहीं पहुंचा, तो कस्टम अधिकारियों ने भारतीय विदेश मंत्रालय से इजाजत ले कर 5 जुलाई को बैगों की जांच की.

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जांच के दौरान एक बैग में छिपा कर रखा गया 30 किलो से ज्यादा सोना मिला. सोने को इस तरह पिघला कर रखा गया था कि वह शौचालय के सामानों में पूरी तरह फिट हो जाए.

भारतीय बाजार में इस सोने की कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई. यूएई के वाणिज्य दूतावास ने बैग में मिला सोना अपना होने से इनकार कर दिया. इस पर सोने को सीज कर सीमा शुल्क विभाग ने मामले की जांच शुरू की.

प्रारंभिक जांच में अधिकारियों को यह मामला सोने की तस्करी से जुड़ा होने का संदेह हुआ. अधिकारियों को शक हुआ कि इस संदिग्ध मामले में राजनयिक को मिलने वाली छूट का दुरुपयोग किया गया है.

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा सम्मेलन में लिए गए फैसलों के तहत भारत सरकार की ओर से दूसरे देशों के राजनयिकों को कई तरह की छूट दी गई थीं. इस में उन की और उन के सामान की जांच पड़ताल की छूट भी शामिल है.

जांच शुरू करने के दूसरे दिन 6 जुलाई को कस्टम अधिकारियों ने संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास के एक पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. से पूछताछ की. पूछताछ के बाद अधिकारियों को रहस्य की परतों में उलझा और दूसरे देशों से जुड़ा यह मामला काफी बड़ा होने का अंदाजा हो गया. इस मामले में एक महिला अधिकारी पर भी शक जताया गया.

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सीमा शुल्क अधिकारियों ने दूतावास के पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. को गिरफ्तार कर शक के दायरे में आई महिला अधिकारी की तलाश शुरू कर दी.

कस्टम अधिकारियों की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि सरित पी.आर. ने पहले भी ऐसी कई खेप हासिल की थी. इस मामले में केरल सरकार की एक महिला अधिकारी स्वप्ना सुरेश भी शामिल थी.

सोने की तस्करी का यह मामला केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की जानकारी तक भी पहुंच गया. मुख्यमंत्री को अपने स्तर पर पता चला कि इस मामले में संदेह के दायरे में आई महिला अधिकारी स्वप्ना के संबंध राज्य के कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से हैं. मुख्यमंत्री खुद भी उस महिला से परिचित थे. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बात से इनकार किया कि सीएम उस महिला को जानते थे.

विपक्ष ने उठाई आवाज

इस बीच, यह मामला राजनीतिक स्तर पर उछल गया. विपक्षी दल भाजपा और कांग्रेस ने प्रदर्शन करते हुए केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार को घेरने की कोशिश शुरू कर दी. केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने 7 जुलाई को प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मुख्यमंत्री कार्यालय में सोना तसकरी गिरोह के कथित प्रभाव की सीबीआई से जांच कराने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि एक महिला इस रैकेट की कथित सरगना है. यह महिला केरल सरकार के आईटी विभाग के तहत केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में आपरेशंस मैनेजर के तौर पर 6 जुलाई, 2020 तक कार्यरत थी. संदेह है कि इस तसकरी की मास्टरमाइंड वही है.

इस महिला के केरल के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. यह महिला कई बार मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण आयोजनों में भी नजर आई थी.

महिला का नाम स्वप्ना सुरेश है. सोना तसकरी रैकेट में स्वप्ना सुरेश का नाम आने पर केरल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री कार्यालय और आईटी सचिव ने स्वप्ना सुरेश का नाम हटाने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाया.

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शीर्ष स्तर पर संपर्कों के लिए जानी जाने वाली स्वप्ना सुरेश को आईटी सचिव एम. शिवशंकर संरक्षण दे रहे हैं. वे स्वप्ना के आवास पर अक्सर आतेजाते हैं. सुरेंद्रन ने स्वप्ना की नियुक्ति की सीबीआई से जांच कराने की भी मांग की.

राजनीतिक स्तर पर इस मामले के तूल पकड़ने पर केरल सरकार ने 7 जुलाई को सूचना प्रौद्योगिकी सचिव एम. शिवशंकर को मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटा दिया. पद से हटाए जाने के बाद शिवशंकर एक साल की छुट्टी पर चले गए. दूसरी ओर, सरकार ने स्वप्ना सुरेश को केरल स्टेट आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर से बर्खास्त कर दिया. मुख्यमंत्री कार्यालय ने स्वप्ना से किसी तरह के संबंध होने से इनकार किया.

8 जुलाई को केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने केरल सरकार की ओर से आयोजित स्पेस कौंक्लेव-2020 में पूरा ब्यौरा मीडिया के सामने रखते हुए कहा कि इस कौंक्लेव का प्रबंधन स्वप्ना सुरेश ही संभाल रही थी.

स्वप्ना ने ही राज्य सरकार की ओर से गणमान्य लोगों को आमंत्रण पत्र भेजे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि इसरो से संबंधित एक संस्था में कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में स्वप्ना की नियुक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती है.

सोना तस्करी का यह मामला देशभर में चर्चित हो जाने और इस घटना का राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ने की संभावना को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 जुलाई को इस की जांच एनआईए को सौंप दी. वहीं, भूमिगत हुई स्वप्ना सुरेश ने इस मामले में पहली बार औडियो संदेश जारी कर चुप्पी तोड़ी.

उस ने कहा कि इस में मेरी कोई भूमिका नहीं है. मैं ने यूएई के राजनयिक राशिद खमीस के निर्देशों के अनुसार काम किया है. कार्गो परिसर में सामान को जब क्लियर नहीं किया गया, तो राशिद ने मुझे सीमा शुल्क अधिकारियों से संपर्क करने को कहा था. तब तक मुझे पता नहीं था कि यह खेप कहां से आई थी और इस में क्या था? सोना जब्त किए जाने का पता लगने पर राशिद के कहने पर वे बैग वापस भेजने की कोशिश भी की गई थी.

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दूसरी ओर, गिरफ्तारी की आशंका से स्वप्ना सुरेश ने 9 जुलाई को केरल हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की. अगले दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने यह याचिका 14 जुलाई तक के लिए टाल दी. एनआईए ने 10 जुलाई को सोने की तस्करी के मामले को आतंकवाद से जोड़ते हुए 4 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत सरित पीआर, स्वप्ना सुरेश, संदीप नैयर के अलावा एर्नाकुलम के फैसल फरीद को आरोपी बनाया गया.

इस के दूसरे ही दिन 11 जुलाई को एनआईए ने स्वप्ना सुरेश को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा संदीप नैयर को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों को अगले दिन 12 जुलाई को एनआईए की विशेष अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

विशेष अदालत ने एनआईए की अर्जी पर दोनों आरोपियों को 13 जुलाई को 8 दिन के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी की हिरासत में दे दिया. कहानी में आगे बढ़ने से पहले यह जानना जरूरी है कि सोना तसकरी के मामले में केरल में सियासी भूचाल लाने वाली हाई प्रोफाइल महिला स्वप्ना सुरेश है कौन?

बहुत ऊंचे तक थी स्वप्ना सुरेश की पहुंच  केरल के राजनीतिक गलियारों और ब्यूरोक्रेट्स के बीच अपना प्रभाव रखने वाली स्वप्ना सुरेश का जन्म यूएई के अबूधाबी में हुआ था. अबूधाबी में ही उस ने पढ़ाई की. इस के बाद उसे एयरपोर्ट पर नौकरी मिल गई. स्वप्ना ने शादी भी की, लेकिन जल्दी ही तलाक हो गया था.

इस के बाद वह बेटी के साथ रहने के लिए केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई. भारत आने के बाद स्वप्ना सुरेश ने तिरुवनंतपुरम में 2011 से 2 साल तक एक ट्रेवल एजेंसी में काम किया.

वर्ष 2013 में उसे एयर इंडिया में एसएटीएस में एचआर मैनेजर पद पर नौकरी मिल गई. यह एयर इंडिया और सिंगापुर एयरपोर्ट टर्मिनल सर्विसेज का संयुक्त उद्यम है. साल 2016 में जब केरल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जालसाजी के एक मामले में उस की जांच शुरू की, तो वह अबूधाबी चली गई.

फर्राटेदार अंग्रेजी और अरबी भाषा बोलने वाली स्वप्ना सुरेश ने अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में नौकरी हासिल कर ली. पिछले साल यानी 2019 में उस ने यह नौकरी छोड़ दी.

कहा यह भी जाता है कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. बताया जाता है कि एयर इंडिया एसएटीएस और अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में काम करते हुए स्वप्ना सुरेश हवाई अड्डों और सीमा शुल्क विभाग के कई अधिकारियों के संपर्क में आ गई थी. उसे राजनयिक खेपों की आपूर्ति और हैंडलिंग के सारे तौरतरीके पता चल गए थे.

यूएई के महावाणिज्य दूतावास में की गई नौकरी स्वप्ना सुरेश को जिंदगी के एक नए मोड़ पर ले गई. वहां उस ने बड़ेबड़े लोगों से अपनी जानपहचान बना ली थी. इस दौरान उस के यूएई से केरल आने वाले कई प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी किया. अबूधाबी में नौकरी से हटने के बाद वह अपने संपर्कों की गठरी बांध कर वापस केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई.

यूएई के अपने संपर्कों के बल पर इस बार वह तिरुवनंतपुरम में हाई प्रोफाइल तरीके से सामने आई. उस ने राजनीतिज्ञों और ब्यूरोक्रेट्स से अच्छे संबंध बना लिए. केरल के मुख्यमंत्री के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर से उस के गहरे ताल्लुकात बन गए.

कहा जाता है कि शिवशंकर उस के घर भी आतेजाते थे. आरोप यह भी है कि शिवशंकर की सिफारिश पर ही स्वप्ना को केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में अनुबंध पर आपरेशंस मैनेजर की नौकरी मिली थी. स्वप्ना सुरेश केरल के बड़े होटलों में होने वाली पार्टियों में अकसर शामिल होती थी. अरबी समेत कई भाषाएं जानने वाली स्वप्ना केरल आने वाले अरब नेताओं की अगुवाई करने वाली टीम में शामिल रहती थी.

सोने की तस्करी का मामला सामने आने के बाद ऐसे कई वीडियो और फोटो वायरल हुए, जिन में स्वप्ना सुरेश केरल के मुख्यमंत्री, अरब नेताओं और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर के साथ दिखाई दी.

एनआईए की हिरासत में भेजे जाने के बाद स्वप्ना सुरेश के बुरे दिन शुरू हो गए. 13 जुलाई को उस के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मामले में स्वप्ना के साथ 2 कंपनियों प्राइम वाटर हाउस कूपर्स और विजन टेक्नोलोजी को भी आरोपी बनाया गया. आरोप है कि स्वप्ना ने केरल के आईटी विभाग में नौकरी हासिल करने के लिए फर्जी अकादमिक डिग्री का इस्तेमाल किया था.

स्वप्ना के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच करने की जिम्मेदारी कंसल्टिंग एजेंसी प्राइस वाटर हाउस कूपर्स और विजन टैक्नोलोजी पर थी. केरल के आईटी विभाग के अधीन केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की शिकायत पर दर्ज इस मामले में स्वप्ना पर आरोप है कि उस ने महाराष्ट्र के डा. बाबा साहेब आंबेडकर विश्वविद्यालय की बीकौम की फर्जी डिगरी से नौकरी हासिल की थी.

मुख्यमंत्री के सचिव शिवशंकर की करीबी थी स्वप्ना  14 जुलाई को यह बात काल डिटेल्स से सामने आई कि केरल के मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटाए गए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर ने स्वप्ना सुरेश सहित सोने की तसकरी के 2 आरोपियों से फोन पर बातचीत की थी. उसी दिन कस्टम अधिकारियों की एक टीम ने आईएएस अधिकारी शिवशंकर के घर जा कर उन्हें नोटिस दिया और उन से पूछताछ की.

बाद में शिवशंकर उसी दिन शाम को तिरुवनंतपुरम में सीमा शुल्क विभाग के कार्यालय पहुंचे, अधिकारियों ने उन से शाम से रात 2 बजे तक 9 घंटे पूछताछ की.

कोच्चि से कस्टम कमिश्नर और अन्य अधिकारियों ने भी वीडियो कौंफ्रेंस के जरीए शिवशंकर से पूछताछ की. रात 2 बजे पूछताछ पूरी होने के बाद कस्टम अधिकारियों ने उन्हें घर ले जा कर छोड़ दिया. पूछताछ में शिवशंकर ने स्वीकार किया कि स्वप्ना सुरेश ने उन के पास काम किया था, और सरित पीआर उन का दोस्त है.

कस्टम अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि आईएएस अधिकारी ने अपने पद का दुरुपयोग कर सोना तस्करी के आरोपियों स्वप्ना सुरेश, संदीप नायर और सरित पीआर को किसी तरह की मदद तो नहीं पहुंचाई थी.

इस बीच, कस्टम अधिकारियों ने एक होटल के एक और 2 जुलाई के सीसीटीवी फुटेज हासिल किए, जहां आईएएस अधिकारी शिवशंकर और आरोपी ठहरे थे. कहा जाता है कि शिवशंकर के एक कर्मचारी ने इस होटल में कमरा बुक कराया था.

शिवशंकर पर गंभीर आरोप लगने पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर केरल के मुख्य सचिव डा. विश्वास मेहता के नेतृत्व में अधिकारियों के एक पैनल ने जांच शुरू कर दी. सोना तस्करों से कथित रूप से तार जुड़े होने की बातें सामने आने के बाद केरल सरकार ने 16 जुलाई को वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर को निलंबित कर दिया.

इस मामले की जांच चल ही रही थी कि 17 जुलाई को यूएई वाणिज्य दूतावास से जुड़ा केरल पुलिस का एक जवान जयघोष अपने घर से करीब 150 मीटर दूर बेहोशी की हालत में पड़ा मिला.

पुलिस ने संदेह जताया कि उस ने कलाई काट कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. पुलिस ने उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया. जयघोष के परिजनों ने इस से एक दिन पहले ही उस के लापता होने की शिकायत थुंबा थाने में दर्ज कराई थी.

परिजनों ने कहा था कि अज्ञात लोगों की ओर से धमकी दिए जाने के कारण वह खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा था. इस से पहले जयघोष ने वट्टियोरकावु थाने में अपनी सर्विस पिस्तौल जमा करा दी थी. जयघोष के मोबाइल पर जुलाई के पहले हफ्ते में स्वप्ना सुरेश ने भी फोन किया था.

केरल सोना तस्करी मामले की जांच कर रही एनआईए ने 18 जुलाई को आरोपी फैजल फरीद के खिलाफ इंटरपोल से ब्लू कौर्नर नोटिस जारी करने का अनुरोध किया. इस से पहले कोच्चि की विशेष एनआईए अदालत ने फरीद के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था.

एनआईए ने विशेष अदालत को बताया था कि वे वारंट को इंटरपोल को सौंप देंगे, क्योंकि फरीद के दुबई में होने का संदेह है. एनआईए ने दावा किया कि फरीद ने ही संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास की फरजी मुहर और फरजी दस्तावेज बनाए थे.

एनआईए और कस्टम विभाग की प्रारंभिक जांच में जो तथ्य उभर कर सामने आए, उन के मुताबिक यूएई के वाणिज्य दूतावास के नाम पर सोने की तसकरी करीब एक साल से हो रही थी. इस तसकरी में एक पूरा गिरोह संलिप्त था.

स्वप्ना सुरेश इस गिरोह की मास्टर माइंड थी और गिरोह से दूतावास के कुछ मौजूदा और पूर्व कर्मचारी जुड़े हुए थे.

यह गिरोह डिप्लोमैटिक चैनल के जरीए पिछले एक साल में खाड़ी देशों से तस्करी का करीब 300 किलो सोना भारत ला चुका था. तस्करी के सोने की पहली खेप का कंसाइनमेंट डिप्लोमेटिक चैनल के जरीए पिछले साल जुलाई में तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर आया था.

इस साल जुलाई के पहले हफ्ते में पकड़े गए सोने सहित 13 खेप लाई गई थीं. सोने की तस्करी के मामले में नाम उछलने पर तिरुवनंतपुरम स्थित यूएई के वाणिज्य दूतावास में तैनात राजनयिक अताशे राशिद खमिस जुलाई के दूसरे हफ्ते में भारत छोड़ कर स्वदेश चले गए.

स्वप्ना सुरेश ने राशिद के इशारे पर ही काम करने की बात कही है. हालांकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और कस्टम विभाग सोना तस्करी मामले की जांच कर रहे हैं. मामले में कुछ और प्रभावशाली लोगों की गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं.

लेकिन चिंता की बात यह है कि सोने की तस्करी में राजनयिक चैनल का दुरुपयोग किया जा रहा था. एक खास तथ्य यह भी है कि भारत में सोने की सब से ज्यादा तसकरी केरल में होती है.

हालांकि अब जयपुर का एयरपोर्ट भी सोने की तस्करी का एक नया माध्यम बन कर उभर रहा है. जयपुर में जुलाई के ही पहले हफ्ते में 2 फ्लाइटों से लाया गया 32 किलो सोना पकड़ा गया था. इस मामले में 14 यात्रियों को गिरफ्तार किया गया था.

सोने की तसकरी में केरल नंबर एक पर है. इस के अलावा मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु और चेन्नई एयरपोर्ट पर सोने की तसकरी के सब से ज्यादा मामले पकड़े जाते हैं.

और वक्त बदल गया-भाग 1: नीरज क्यों खुश हो गया?

नीरज की परेशानी दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी. स्कूल के इम्तिहान खत्म हो चुके थे. ट्यूशन क्लासेज भी बंद हो गई थीं. अभी उस के सामने कई खर्चे खड़े थे- कमरे का किराया, घर का सामान. उस के पास इतने पैसे न थे कि सारे खर्च एकसाथ निबट जाते. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. नीरज को एकाएक खयाल आया कि मकानमालकिन मिसेज रेमन से बात की जाए, शायद कोई हल निकल आए. मिसेज रेमन उस 2 कमरों के मकान में अकेली ही रहती थीं. छत पर उस का कमरा था. वहां एक कमरा वाशरूम के साथ था. बरामदे को घेर कर छोटी सी रसोई बना दी थी. नीरज के लिए कमरा ठीकठीक था. उस की अच्छी गुजर हो रही थी. पिछले दिनों उस की बीमारी की वजह से पैसों की समस्या खड़ी हो गई थी. इलाज में पैसा खर्च हो गया और बचत न हो सकी.

शाम को वह मिसेज रेमन के दरवाजे की घंटी बजा रहा था. उन्होंने दरवाजा खोला और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘हैलो यंगमैन, कैसे हो?’’ उस के जवाब का इंतजार किए बगैर उन्होंने प्यार से उसे बिठाया. उस के न कहने के बावजूद वे चाय ले आईं. फिर पूछा, ‘‘बताओ, कैसे आना हुआ?’’ नीरज ने धीमे से कहा, ‘‘मैम, आप को तो पता है मैं एमई कर रहा हूं और ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता हूं. छुट्टियों में कोई काम कर लेता हूं पर इस बार बीमारी के इलाज में खर्च ज्यादा हो गया, इसलिए इस महीने का किराया वक्त पर नहीं दे पाऊंगा. मुझे थोड़ी मोहलत दे दीजिए.’’

इस से पहले कभी नीरज से मिसेज रेमन को कोई शिकायत न थी. बहुत शिष्ट और शालीन था वह. किराया हमेशा वक्त पर देता था. मिसेज रेमन अच्छी महिला थीं, बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, जब तुम्हें सहूलियत हो तब किराया दे देना. तुम स्टूडैंट हो और बहुत अच्छे लड़के हो. इतनी रियायत तो मैं तुम्हें दे सकती हूं.’’

नीरज खुश हो गया, बोला, ‘‘बहुतबहुत शुक्रिया मैम.’’

वे बोलीं, ‘‘नीरज मेरे पास तुम्हारे लिए एक औफर है. मेरा एक स्टोर है. उस को मेरे एक पुराने मित्र मिस्टर जैकब देखते हैं. वे भी काफी उम्र के हैं. हिसाबकिताब में उन्हें परेशानी होती है. अगर तुम शाम को थोड़ा वक्त निकाल कर हिसाबकिताब देख लो तो तुम्हारे किराए के रुपए भी उसी में से कट जाएंगे और कुछ रुपए तुम्हें मिल भी जाएंगे.’’

नीरज ने तुरंत कहा, ‘‘ठीक है मैम, मैं कल से यह काम शुरू कर दूंगा. इस से मुझे बहुत मदद मिल जाएगी. मैं आप का बहुत एहसानमंद हूं.’’

दूसरे दिन से नीरज 1-2 घंटे स्टोर पर हिसाबकिताब वगैरा देखने लगा. मिस्टर जैकब बहुत सुलझे हुए और सहयोग करने वाले इंसान थे. बड़े अच्छे से उस का काम चलने लगा. महीना पूरा होने पर किराए के पैसे काट कर उसे कुछ रकम भी मिलगई. नीरज के सैमेस्टर शुरू हो गए. परीक्षाएं खत्म होने पर उसे सुकून मिला. उस दिन वह अच्छे मूड में नीचे गार्डन में बैठा था कि मिसेज रेमन आ गईं. उस की परीक्षाएं खत्म होने की बात सुन कर वे बहुत खुश हुईं. उसे रात के खाने पर आमंत्रित किया. बहुत अच्छे माहौल में खाना खाया गया. उन्होंने बिरयानी बहुत अच्छी बनाई थी. बरसों बाद उसे किसी ने इतने प्यार से खाना खिलाया था. मिसेज रेमन ने छुट्यों में उसे 1-2 जगह और काम दिलाने का भी वादा किया.

रात को जब वह बिस्तर पर लेटा तो मिसेज रेमन के बारे में सोच रहा था. पर पता नहीं कैसे एक खूबसूरत चेहरा उस के खयालों में उभर आया. उस हसीन चेहरे को वह भूल जाना चाहता था. अपने अतीत को अपने जेहन से खुरच कर फेंक देना चाहता था. पर न जाने क्यों वह चेहरा बारबार उस की यादों में चला आता था. न चाहते हुए भी वह अतीत में डूब गया…

उस समय वह करीब 6 साल का था. एक बहुत खूबसूरत औरत, जो उस की मम्मी थी, उसे प्यार करती, उस का खयाल रखती. उस के पापा भी बहुत हैंडसम और डैश्ंिग थे. वे उसे घुमाने ले जाते, खिलौने दिलाते. पर एक बात से वह बहुत परेशान रहता कि अकसर किसी न किसी बात पर उस के मातापिता के बीच लड़ाई हो जाती, खूब तकरार होती. वह सहम कर अपने कमरे में छिप जाता. उस का मासूम दिल यह समझ ही नहीं पाता कि उस के मम्मी-पापा क्यों झगड़ते हैं. फिर घर में खाना नहीं पकता. पापा गुस्से से बाहर चले जाते और खूब देर से घर लौटते. वह दूध और डबलरोटी खा कर सो जाता. इसी तरह दिन गुजर रहे थे. एक दिन दोनों के बीच बड़ी जोरदार लड़ाई हुई. फिर पापा जोरजोर से चिल्ला कर पता नहीं क्याक्या बक कर बाहर चले गए. मम्मी भी देर तक चिल्लाती रहीं. उस रात को पापा घर वापस लौट कर नहीं आए. दूसरे दिन आए तो फिर दोनों में तकरार शुरू हो गई. बीचबीच में उस का नाम भी ले रहे थे. फिर पापा सूटकेस में अपना सामान भर कर चले गए और कभी लौट कर नहीं आए. मम्मी का मिजाज बिगड़ा रहता.

3 महीने इसी तरह गुजर गए, फिर मम्मी एकदम, खुश दिखने लगीं. एक दिन एक बैग में उस का सामान पैक किया, फिर उस की मम्मी, जिस का नाम सोनाली था, ने कहा, ‘नीरज, मुझे विदेश में जौब मिल गई है. अब तुम मेरी कजिन नीता आंटी के साथ रहोगे. वे तुम्हारा बहुत खयाल रखेंगी. बेटा, तुम भी उन को तंग न करना.’ दूसरे दिन सोनाली उसे नीता आंटी के यहां छोड़ने गई. नीरज किसी भी हाल में मम्मी को छोड़ना नहीं चाहता था. रोरो कर उस की हिचकियां बंध गईं. मम्मी भी रो रही थीं पर फिर वे आंचल छुड़ा कर चली गईं. नीरज उदास सा, हालात से समझौता करने को मजबूर था. उस के पास और कोई रास्ता न था. उस का ऐडमिशन दूसरे स्कूल में हो गया. नीता आंटी का व्यवहार उस से अच्छा था. वे उसे प्यार भी करती थीं. अंकल बहुत कम बोलते, उसे अलग कमरे में अकेले सोना होता था. रात में सोते समय वह कई बार डर कर उठ जाता, तकिया सीने से लगाए रोरो कर रात काट देता. कोई ऐसा न था जो उसे उन काली रातों में उसे सीने से लगा कर प्यार करता. उसे समझ नहीं आता था, मां उसे छोड़ कर क्यों चली गईं? पापा कहां चले गए? दिन बीतते रहे. 10-12 दिनों बाद मम्मी उस से मिलने आईं. खिलौने, चौकलेट, कपड़े लाई थीं. उसे खूब प्यार किया और फिर उसे रोताबिलखता छोड़ कर मलयेशिया चली गईं.

अंकिता लोखंडें ने वीडियो शेयर कर उठाई सीबीआई जांच की मांग, कहा पूरा देश जानना चाहता है सच्चाई

बॉलीवुड के मशहूर एक्टर सुशांत सिंह राजपूत को मौत को दो महीने से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन अभी तक यह मालूम नहीं हो रहा है कि आखिर वह क्या वजह थी जिससे वह फांसी लगाने पर मजबूर हुए. वहीं सुशांत सिंह राजपूत के कुछ करीबी दोस्त है जो यह मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि सुशांत सिंह फांसी लगाकर आत्महत्या कर सकते हैं.

वहीं सुशांत सिंह राजपूत के फैंस लगातार सोशल मीडिया पर इंसाफ की मांग कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग सुशांत के लिए सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत की एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडें भी मैदान में खुलकर आ गई हैं.

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अंकिता ने 13 अगस्त को एक वीडियो शेयर कर सीबीआई जांच की मांग की है ताकी सुशांत को इंसाफ मिल सके. सुशांत सिंह राजपूत की बहन श्वेता कृति सिंह ने भी वीडियो के जरिए सीबीआई जांच की मांग करते हुए कहा है कि अगर सच्चाई का पता नहीं लगा तो हम चैन से नहीं जी पाएंगे.

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वहीं सुशांत सिंह राजपूत की को स्टार कृति सेनन ने भी कुछ दिनों पहले इंस्टाग्राम पर वीडियो शेयर कर कहा था कि सुशांत सिंह राजपूत के परिवार को पूरा हक है कि उनके बेटे को न्याय मिले. उन्हें जानने का पूरा हक है कि उस रात उनके बेटे के साथ क्या हुआ था.

बता दें कि सुशांत सिंह राजपूत के पिता ने इस बात का खुलासा किया है कि अंकिता लोखंडें जब सुशांत सिंह राजपूत की गर्लफ्रेंड थी उस दौरान वह सुशांत के घर पटना में आई थीं. अंकिता के अलावा सुशांत की कोई भी गर्लफ्रेंड घर नहीं आई थी.

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जब तक अंकिता सुशांत एक-दूसरे के साथ थें. उस वक्त तक दोनों के बीच कभी कुछ ऐसी नौबत नहीं आई लेकिन अंकिता से अलग होने के कुछ वक्त बाद से ही सुशांत के स्वभाव में बदलाव आ गया था.

करण सिंह ग्रोवर के बाद पार्थ समथान भी छोड़ना चाहते है ‘कसौटी जिंदगी 2’ को जानें क्या है वजह

टीवी का मशहूर शो कसौटी जिंदगी 2 के एक्टर पार्थ समथान कुछ दिनो पहले कोरोना पॉजिटीव पाएं गए थें. बीते सप्ताह कसौटी जिंदगी 2 के शो के लिए वह शूटिंग भी शुरू कर दिए थें. लेकिन अब जो पार्थ समथान को लेकर खबर आ रही है वह सभी को हिलाकर रख दिया है.

पार्थ समथान ने कसौटी जिंदगी छोड़ने का फैसला ले लिया है. कुछ दिनों पहले हिना खान यानि कमोनिका के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस ने भी शो को अलविदा कह दिया है. वही शो के लीड रोल में नजर आने वाले करण सिंह ग्रोवर जो मिस्टर बजाज के भूमिका में नजर आ रहे थें उन्होंने ने भी इस शो को कुछ दिनों पहले अलविदा कह दिया था.

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एक रिपोर्ट की मानें तो पार्थ समथान अपने बाकी अन्य प्रोजेक्ट्स पर काम करना चाहते हैं. इसी सिलसिले में पार्थ अपने करियर को आगे बढ़ाना चाहते हैं. एकता कपूर पार्थ को अपने शो में दूबारा बुलाना चाह रही हैं. लेकिन अभिनेता ने इस शो छोड़ने का पूरा मन बना लिया है.

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वहीं पार्थ के रोल को निभाने के लिए टीवी पर बाकी अन्य अभिनेताओं के बारे में विचार किया जा रहा है. वहीं पार्थ ने भी कुछ दिनों पहले अपने एक फिल्म के बारे में खुलकर बात की थी. उन्होंने कहा था कि यह अच्छा मौका है मैं इस साल फिल्म करुंगा.

शो में कुछ दिनों पहले ही करण पटेल की एंट्री हुई है वह शो में मिस्टर बजाज कि भूमिका निभा रहे हैं. शो में एंट्री होने के बाद दर्शक काफी खुश हैं उनकी एक्टिंग को पसंद भी किया जा रहा है.

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वहीं एक्ट्रेस आमना शरीफ भी इस शो में एंट्री कि है वह इस शो में कमोनिका के किरदार में नजर आ रही हैं. वहीं पार्थ समथान ने इस बारे में कोई ऑफिशियल अनांउसमेंट नहीं कि है.

 

नमक पर रखें कंट्रोल

खाने में नमक ज़्यादा हो जाए तो खाने का मज़ा खराब हो जाता है और यही नमक अगर शरीर में ज़्यादा हो जाए तो सेहत का सत्यानाश कर डालता है. तेज़रफ़्तार महानगरीय जीवन में कामकाजी लोग घर से बाहर अधिक समय व्यतीत करते हैं. ऐसे में बाहर का खाना एक मजबूरी बन गया है. होटल-रेस्टोरेंट के खाने में नमक और मसाला हमेशा तेज़ ही होता है. रेहड़ी-पटरी वालों के छोले-भठूरे, चाट-पापड़ी, गोलगप्पे, चाउमीन, ब्रेडपकोड़ा जैसी चीज़ों पर भी ऊपर से नमक और मसाला छिड़क कर दिया जाता है. पहले ये चीज़ें कभी-कभी का शौक होता था, मगर अब रोज़ का मामला हो गया है. लंच टाइम में ब्रेडपकोड़ा या चाउमीन मंगवा ली, छोले भठूरे ख़ा लिए या रेस्टोरेंट से थाली आर्डर कर दी. शाम के वक़्त गोलगप्पे और चाट पापड़ी के ठेलों पर लगी भीड़ देखिए, लोग चटपटा खाने पर टूटे पड़ते हैं. भैया, मसाला ज़रा तेज़ रखना ….. भैया, नमकीन चटनी तो डालो…..  मोटी-मोटी औरतें और युवतियां गोलगप्पे वाले से नमकीन चटपटा पानी अलग से पिलाने की गुहार लगाती दिखाई देती हैं, बिना ये सोचे कि आप चटपटा पानी नहीं बल्कि ज़हर पी रही हैं.

जी हाँ, जहर…..  नमक, टाटरी, अजीनोमोटो मिला पानी आपके शरीर के लिए ज़हर ही है. खाने के ऊपर और ज़्यादा नमक-मसाले का छिड़काव आपकी सेहत के लिए खतरनाक है. रोमा को हर वक़्त सिरदर्द रहता था, जोड़ों में सूजन भी रहती थी, लेकिन ये सब अधिक नमक के कारण था इस बात का पता तब चला जब उसको स्ट्रोक पड़ा. रोमा मरते-मरते बची है और अब उसके डॉक्टर ने उसके खाने में नमक की मात्रा ना के बराबर कर दी. दिन में एक टाइम तो वो नमक रहित उबली सब्ज़ियां ही खाती है.
जो लोग हमेशा उत्तेजित, गुस्सैल, ओवरएक्टिव से नज़र आते हैं, जीने बात-बात पर गुस्सा आता है, जो बड़े अधीर से दिखते हैं, अगर आप उनके खान-पान पर गौर करें तो पाएंगे कि वे अधिक नमक का सेवन करते हैं. खाने पर ऊपर से भी नमक छिड़क कर खाते हैं. ये अतिरिक्त नमक ही उत्तेजना, गुस्से और हाइपरटेंशन को जन्म देता है. धीरे-धीरे आप हाई बीपी के मरीज़ हो जाते हैं और आपको दिल और दिमाग के रोग घेर लेते हैं.

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हाल ही में अमेरिका में इस विषय पर एक रिसर्च हुई. इसमें यह बात सामने आई कि नमक का अधिक सेवन करने से आँतों में सूजन आ सकती है. रिसर्च में यह बात सामने आई है कि अमेरिका की तकरीबन तिहाई वयस्‍क आबादी आंतों में सूजन की परेशानी झेल रही है. शोधकर्ता इसका कारण पेट में गैस बनना बताते हैं. वह बताते हैं कि यह गैस फाइबर को पचाने वाले बैक्‍टीरिया के चलते बनती है. उनका कहना है कि ज्‍यादा फाइबर वाले खाने में नमक की मात्रा बढ़ जाने से गैस की भी समस्‍या बढ़ जाती है. इसीलिए अधिक फाइबर वाले खाने में नमक की मात्रा कम ही रखनी चाहिए.

अमेरिका में हुए रिसर्च के मुताबिक ज्‍यादा नमक खाने से अल्‍सर भी हो सकता है. क्‍योंकि शरीर में नमक की ज्‍यादा मात्रा से हेलिकोबैक्‍टर पाइलोरी यानी कि एच पाइलोरी बैक्‍टीरिया सक्रिय हो जाता है. इससे पेट में अल्‍सर की बीमारी हो सकती है. शोध में सामने आया है कि ज्‍यादा नमक की उपस्थिति से एच पाइरोली बैक्‍टीरिया खतरनाक रूप ले लेते हैं और पाचन तंत्र को कमजोर कर देते हैं. इससे अल्‍सर की समस्‍या हो सकती है.

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अधिक मात्रा में नमक का सेवन करने से शरीर में कैलोरीज बढ़ती हैं जो कैंसर के जोखिम को बढ़ाने का काम करती हैं. इसके अलावा ज्‍यादा नमक खाने से सेहत को और भी नुकसान होते हैं. ज़्यादा नमक के सेवन से हृदय की मासपेशियां बढ़ने लगती हैं. यह कुछ ही दिनों में बहुत घातक साबित हो सकता है. हार्ट अटैक का मुख्य कारण यही है. हाई ब्लड प्रेशर और हाइपरटेंशन का मुख्य कारण भी नमक का अधिक सेवन है. नमक से हाई बीपी (ब्लेड प्रेशर) का सीधा संबंध है. कम उम्र में दिल का दौरा पड़ने का खतरा भी बढ़ता है. यानी नमक ज्यादा खाने से आपकी उम्र घटती है.

नमक का अधिक सेवन करने के कारण सिरदर्द की समस्या हो सकती है. हम सोचते हैं कि हम तनावग्रस्त हैं, काम ज़्यादा है, गर्मी अधिक है इन कारणों से सिर दर्द हो रहा है, जबकि ये अधिक नमक के सेवन से होता है. जब खून में नमक की मात्रा बढ़ जाती है तो ये मांसपेशियों का दर्द, घुटनों-एड़ियों का दर्द या सिरदर्द के रूप में सामने आता है. शरीर में मौजूद अतिरिक्त नमक की मात्रा अगर बाहर ना निकले तो वह किडनी स्टोन का रूप ले सकता है. शरीर में ज्यादा नमक की मात्रा से निर्जलीकरण यानी डिहाइड्रेशन की समस्या भी हो सकती है. शरीर में डिहाइड्रेशन की समस्या नहीं हो इसके लिए नमक की संतुलित मात्रा लेने के साथ भरपूर पानी पीना बहुत ज़रूरी है. किडनी से जुडी कुछ बीमारियों का जोखिम नमक का अधिक सेवन करने के कारण होता है.

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वैज्ञानिक अध्यन में इस बात की पुष्टि हुई है कि नमक ज़्यादा खाने से स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ जाता है. ज़्यादा मात्रा में नमक खाने से बढ़ती उम्र के साथ ऑस्टियोपोरोसिस नामक हड्डी क्षरण रोग का ख़तरा भी बढ़ जाता है. कुछ प्रायोगिक रिसर्च में देखा गया है कि नमक अधिक खाने से पेट का कैंसर हो सकता है. शरीर में नमक की मात्रा ज्यादा होने पर पानी जरूरत से ज्यादा जमा हो जाता है. यह स्थिति वाटर रिटेंशन या फ्लूड रिटेंशन कहलाती है. ऐसी स्थिति में हाथ, पैर और चेहरे में सूजन हो जाती है. इससे त्वचा भी सूज जाती है. इसलिए शरीर में नमक की मात्रा का ध्यान रखने के साथ भरपूर मात्रा में पानी का सेवन करना चाहिए.

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डॉक्टर की माने तो प्रतिदिन मात्र पांच ग्राम या इससे भी कम मात्रा में नमक का सेवन करना चाहिए. खाने और सलाद पर ऊपर से नमक का छिड़काव तो हरगिज़ नहीं करना चाहिए. भरपूर पानी पीना चाहिए ताकि पसीने और मूत्र के ज़रिये अतिरिक्त नमक शरीर से बाहर निकल जाए. दिन में अगर एक टाइम फीका खाना खाया जाए तो ये आपकी सेहत के लिए बहुत अच्छा रहेगा. अगर आपका बीपी 120/80 से ज़्यादा रह रहा है तो अपने खाने में नमक की मात्रा तुरंत कम कर दें. कोशिश करें कि दो टाइम बिना नमक के उबली सब्ज़ी और बिना नमक वाला दही खाएं. कुछ दिन की ये खुराक आपका बीपी नार्मल कर देगी. नमक कम करके आप अपना बीपी खाने पीने से ही कंट्रोल कर लें. यदि आपने नमक की मात्रा कम ना की और बीपी की समस्या बनी रही तो फिर ज़िंदगी भर जहां बीपी की दवाएं फांकनी पड़ेंगी, बल्कि हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज की तलवार भी हर वक़्त सिर पर लटकी रहेगी.

मुट्ठीभर स्वाभिमान-भाग 1: कौन था दीनानाथ के मौत से सबसे ज्यादा दुखी ?

बंद कमरे में हुई बाबू दीनानाथ की मृत्यु रिश्तेदारों व महल्ले वालों को आश्चर्य व सदमे की हालत में छोड़ गई थी. स्वभाव से ही हंसमुख व्यक्ति थे दीनानाथ. रोज सुबहसुबह ही घर के सामने से निकलते हर जानपहचान वाले का हालचाल पूछना व एकाध को घर ले आ कर पत्नी को चाय के लिए आवाज देना उन की दिनचर्या में शामिल था. पैसे से संपन्न भी थे. किंतु 2 वर्ष पूर्व पत्नी के निधन के बाद वे एकदम खामोश हो गए थे. महल्ले वाले उन का आदर करते थे. सो, कोई न कोई हालचाल पूछने आताजाता रहता. किंतु सभी महसूस करते थे कि बाबू दीनानाथ ने अपनेआप को मानो अपने अंदर ही कैद कर लिया था. शायद पत्नी की असमय मृत्यु के दुख से सदमे में थे. 70 वर्ष की आयु में अपने जीवनसाथी से बिछुड़ना वेदनामय तो होता ही है, स्मृतियों की आंधी भी मन को मथती रहती है. पीड़ा के दंश सदा चुभते रहते हैं.

जब तक पत्नी जिंदा थी, बेटे के बुलाने पर वे अमेरिका भी जाते थे, किंतु वापस लौटते तो बुझेबुझे से होते थे. जिस मायानगरी की चमकदमक औरों के लिए जादू थी, वह उन्हें कभी रास न आई. वापस अपने देश पहुंच कर ही वे चैन की सांस लेते थे. अपने छोटे से शांत घर में पहुंच कर निश्ंिचत हो जाते. किंतु अब यों उन का आकस्मिक निधन, वह भी इस तरह अकेले बंद कमरे में, सभी अपनेअपने ढंग से सोच रहे थे. सब से अधिक दुखी थे योगेश साहब, जो दीनानाथजी के परममित्र थे.

दीनानाथजी के छोटे भाई ने फोन पर यह दुखद समाचार अपने भतीजे को दिया. फिर मृतशरीर को बर्फ पर रखने की तैयारी शुरू कर दी. वे जानते थे कि उन के भतीजे सुकांत को तुरंत चल पड़ने पर भी आने में 2 दिन लगने ही थे.

हवाईअड्डे पर हाथ में एक छोटी अटैची थामे सुकांत इधरउधर देख रहा था कि शायद उस के घर का कोई लेने आया होगा, लेकिन किसी को न पा कर वह टैक्सी ले कर चल पड़ा. घर के सामने काफी लोग जमा थे. कुछ उसे पहचानते थे, कुछ नहीं. आज 7 वर्षों के बाद वह आया था. अंदर पहुंच कर नम आंखों से उस ने चाचा के पांव छुए.

‘‘बहू और बिटिया को नहीं लाए बेटा?’’ चाचा ने पूछा. ‘‘जी, नहीं. इतनी जल्दी सब का आना कठिन था,’’ सुकांत ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया. आंखों से पल्लू लगाए रोने का अभिनय सा करती चाची ने आगे आ कर सुकांत को गले लगाना चाहा, किंतु वह उन के पांव छू कर पीछे हट गया. 15 वर्ष हो चुके थे उसे विदेश में रहते. इसलिए इन खोखली औपचारिकताओं से उसे सख्त परहेज था. चाचा से मालूम हुआ कि अंतिम संस्कार के लिए रुपयों का प्रबंध करना है, दीनानाथजी की जेब से कुल 270 रुपए मिले हैं और अलमारी में ताला बंद है, जिसे खोलने का हक केवल सुकांत को है.

पड़ोस के घर से चाय बन कर आ गई थी, किंतु सुकांत ने पीने से मना कर दिया. अपने बाबूजी के मृतशरीर के पास खामोश बैठा उन्हें देखता रहा. उन के ढके चेहरे को खोलने का उस में साहस नहीं हो रहा था. जिस जीवंत पुरुष को सदा हंसतेहंसाते ही देखा हो, उस का भावहीन, स्पंदनहीन चेहरा देखने की कल्पना मर्मांतक थी. सुकांत ने अपने बटुए से 200 डौलर निकाल कर चाचा के हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘इन्हें आप बैंक से रुपयों में भुना कर अंतिम संस्कार के सामान का इंतजाम कर लीजिए.’’

‘‘तुम नहीं चलोगे सामान लेने?’’

‘‘आप ही ले आइए, चाचा,’’ सिर झुकाए धीमे स्वर में बोला सुकांत.

‘‘ठीक है,’’ कह कर चाचा पड़ोस के व्यक्तियों को साथ ले कर चले गए.

घर में घुसने के बाद से ले कर अब तक पलपल सुकांत को मां का चेहरा हर ओर नजर आ रहा था. अपने बचपन को यहीं छोड़ कर वह जवानी की जिस अंधीदौड़ में शामिल हो विदेश जा बसा था, वह उसे बहुत महंगी पड़ी. लेकिन कभीकभी अपने ही लिए फैसलों को बदलना कितना कठिन हो जाता है. पास ही बैठी चाची बीचबीच में रो पड़ती थीं. किंतु सुकांत की आंखों में आंसू नहीं थे. वह एक सकते की सी हालत में था. 2 वर्षों पूर्व जब मां का देहांत हुआ था तो वह आ भी न पाया था. अंतिम बार मां का मुख न देख पाने की कसक अभी भी उस के हृदय में बाकी थी. उस समय वह ट्रेनिंग के सिलसिले में जरमनी गया हुआ था. पत्नी भी घूमने के लिए साथ ही चली गई थी. दीनानाथजी फोन पर फोन करते रहे. घंटी बजती रहती पर कौन था जो उठाता. खत और तार भी अनुत्तरित ही रहे. पत्नी के शव को बर्फ की सिल्लियों पर रखे 2 दिनों तक दीनानाथजी प्रतीक्षा करते रहे कि शायद कहीं से सुकांत का कोई संदेश मिले. फिर निराश, निरुपाय दीनानाथजी ने अकेले ही पत्नी का दाहसंस्कार किया और खामोशी की एक चादर सी ओढ़ ली.

जरमनी से वापस आ कर जब सुकांत को अपने बाबूजी का पत्र मिला तो वह दुख के आवेग में मानो पागल हो उठा कि यह क्या हो गया, कैसे हो गया. उस के दिमाग की नसें मानो झनझना उठीं. मां के प्रति बेटा होने का अपना फर्ज भी वह पूरा न कर पाया. उस का हताश मन रो उठा. किंतु अब भारत जाने का कोई अर्थ नहीं बनता था. सो, एक मित्र को उस के घर पर फोन कर के सुकांत ने उस से आग्रह किया कि वह वापसी में बाबूजी को अपने साथ ले आए. न चाहते हुए भी दीनानाथजी चले गए. बेटे का आग्रह ठुकरा न सके. पत्नी के इस आकस्मिक निधन पर अपनेआप को बहुत असहाय सा पा रहे थे. बेटे के पास पहुंच उस की बांहों में मुंह छिपा कर रो लेने का मन था उन का. बेटे के सिवा और कौन बांट सकता था उन के इस दुख को? चले तो गए, किंतु वहां अधिक दिन रह न सके. बुढ़ापे की कुछ अपनी समस्याएं होती हैं, जिस तरह बच्चों की होती हैं. पहले तो हमेशा पत्नी साथ होती थी, जो उन की हर जरूरत का ध्यान रखती थी. किंतु अब कौन रखता? सुबह 4 बजे जब आंख खुलती और चाय की तलब होती तो चुपचाप मुंह ढांप कर सोए रहते. पत्नी साथ आती थी तो बिना आहट किए दबे पांव जा कर रसोई से चाय बना कर ले आती थी. किंतु अब जब एक बार उन्होंने खुद सुबह चाय बनाने की कोशिश की थी तो बरतनों की खटपट से बेटाबहू दोनों जाग कर उठ आए थे और दीनानाथजी संकुचित हो कर अपने कमरे में लौट गए थे. फिर दोपहर होते न होते बड़े तरीके से बहू ने उन्हें समझा भी दिया, ‘बाबूजी, मैं उठ कर चाय बना दिया करूंगी.’

सरकार गिराने की राजनीति

लोकतंत्र की हत्या करने के लिए सैनिक तानाशाही की जरूरत नहीं है, सिर्फ लोकतांत्रिक संस्थाओं को धीरेधीरे जहर दे कर मार दो, लोकतंत्र अपनेआप मर जाएगा. पौराणिक युग का राज स्थापित करने के चक्कर में देश में इस समय चारों तरफ से उन संस्थाओं पर हमले हो रहे हैं जो लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए जरूरी हैं. संस्थाओं को मारने के लिए बाहरी हमले से ज्यादा अंदरूनी घुसपैठ काफी होती

है और यह अब संसद, विधानसभाओं, न्यायपालिका, सेना, नौकरशाही, मंत्रिमंडलों, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, परिवहन सब जगह साफ दिख रहा है.

कर्नाटक, मध्य प्रदेश, कुछ छोटे राज्यों के बाद अब राजस्थान में कांग्रेस में विद्रोह करा कर भारतीय जनता पार्टी का खुल्लमखुल्ला सरकार गिराने का प्रयास और उस पर भी देश व संविधान की दुहाई देना दोगलेपन की निशानी तो है ही, आने वाले दिनों में पौराणिक तानाशाही की पक्की पकड़ का संकेत भी है.

हमारे पुराणों में धार्मिक कथाएं हैं जो आमतौर पर राजाओं की हैं जो ऋषियों के कहे अनुसार इधर से उधर दौड़ते नजर आते हैं या राजाओं के मूर्खतापूर्ण कामों के बखान हैं जिन्हें महान बताया गया है. आज देशभर में यही हो रहा है और इन का खमियाजा गरीब जनता भुगत रही है.

कोरोना से लड़ाई या चीन से झड़प की तैयारी में लगने की जगह केंद्र की भाजपा सरकार को पहले मध्य प्रदेश की सरकार को गिराने की चिंता थी, अब राजस्थान की है. विभीषण सचिन पायलट के सहारे भाजपा सरकार रामायण युग का युद्ध जीतने का प्रयास कर रही है. कोरोना के मरीज देशभर में बुरी तरह बढ़ रहे हैं पर राजस्थान के विद्रोही विधायकों को बचाने की पूरी कोशिश में केंद्र सरकार लगी है जिस में मुख्यतया सिर्फ 2 ही जने फैसला लेने वाले हैं, उन से चाहे कोरोना का काम करा लो, चाहे चीन का या फिर राजस्थान का.

विपक्षी को समाप्त कर चक्रवर्ती राज की स्थापना करने का सपना हमारे पौराणिक ग्रंथ बारबार कहानियों में दोहराते हैं और उन में जनहित कहीं नहीं होता था. अब भी अगर बेंगलुरु, पणजी, भोपाल में सरकारें बदली हैं तो कोई सोच नहीं बदली है. जनता पहले से ज्यादा सुखी नहीं हुई है. भाजपा राज्य सरकारें प्रशासनिक कुशलता नहीं दिखा पा रही हैं. इन राज्यों की आर्थिक प्रगति तेज नहीं हुई है. ये बदलाव केवल भारतीय जनता पार्टी के अहं को पूरा करने के लिए किए जा रहे हैं.

यह न भूलें कि रामायण हो या महाभारत, आखिरकार इन पौराणिक कथाओं में महान विजयों के बाद घोर पछतावा ही विजेताओं के हाथ लगे. भारत में जितना लंबा शासन मुगलों या अंगरेजों ने किया, उतना, जैसा भी इतिहास है हमारा उस के अनुसार, किसी हिंदू राजा ने नहीं किया. आमतौर पर देशी राजा को किसी विदेशी हमलावर ने नष्ट किया और देश ऐसी अराजकता में डूबा कि इतिहास के पन्नों से वे अंश ही गायब हो गए.

आज जो विधानसभाओं से खिलवाड़ हो रहा है, वह बहुत महंगा पड़ेगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया या सचिन पायलट का हाल भारतीय जनता पार्टी में मेनका गांधी व उदित राज की तरह होगा ही. उन का इस्तेमाल कर उन्हें गड्ढे में फेंक दिया जाएगा. इस दौरान विधानसभाओं और विधायकों की हैसियत काफी कम हो चुकी होगी. पुलिस थानेदार भी उन की सुनना बंद कर देंगे क्योंकि वे केवल बिकाऊ एजेंट हैं, जनता के प्रतिनिधि नहीं या जनता के नेता नहीं.

चीन से टकराव

यह तो अच्छी बात है कि चीन से मुकाबले में भारत अकेला नहीं है. इस समय अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, जापान, ताइवान, फिलीपींस भी चीन से खफा हैं. अगर भारत लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को ले कर चीनी घुसपैठ का शिकार है तो अमेरिका और आस्ट्रेलिया साउथ चाइना सी व हौंगकौंग में चीनी घुसपैठ से नाराज हैं.

हौंगकौंग वैसे तो हमेशा ही चीन का हिस्सा रहा है पर जब इंग्लैंड ने इस पर से अंतिम विदाई ली थी तो यह भरोसा दिलाया गया था कि हौंगकौंग को चीन एक देश 2 सिस्टम की तरह चलाएगा और वहां चीनी तानाशाही नहीं चलेगी. लेकिन, अब चीन की सरकार ने उस पर फौलादी शिकंजे कसने शुरू कर दिए हैं.

आस्ट्रेलिया व अमेरिका चाहते हैं कि हौंगकौंग अपना अलग तौरतरीका बनाए. वहां थोड़ीबहुत जो लोकतांत्रिक भावना है, वह चीनी कदमों से न कुचली जाए. पर चीन, अब एकछत्र राज की कल्पना कर रहा है. वह सफल भी है क्योंकि जितनी मेहनत चीनी कर रहे हैं, कोई और देश नहीं कर रहा.

भारत के लिए परेशानी यह है कि हमारे सारे पड़ोसी हम से नाराज हैं. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, ईरान और यहां तक कि भूटान भी चीन के करीबी बनते जा रहे हैं. पाकिस्तान तो पूरी तरह चीनी खेमे में है. ईरान ने भारत से हुए पिछले कई समझौते तोड़ दिए हैं.

भारत ने पिछले दिनों जो नागरिकता संशोधन कानून और कश्मीर पर फैसले लिए वे काफी लोगों के नाराज होने के लिए बहाना बन गए हैं. चीन को वे देश नाराज नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें भारत में अब एक लोकतांत्रिक, उन्नति कर रहे देश की ललक नहीं दिख रही. भारत सिर्फ मजदूर सप्लाई करने वाला अफ्रीका सरीखा देश दिख रहा है जहां के लोगों को चंद सिक्के फेंक कर खरीदा जा सकता है. तेजी से उभरते हुए भारत की जो छवि बनी थी वह टूट चुकी है. अब चीन की हमलावर नीति ने उसे और झटका दे दिया है.

वैसे भी, हर देश को अपनी रक्षा खुद ही करनी होती है. कभीकभार कोई और देश बड़ी सहायता करता है. भारत के बड़े औद्योगिक केंद्र बनने की जो आशाएं जमी थीं, वे अब कट्टरपंथी धार्मिक छवि के कारण खत्म हो चुकी हैं. ऐसे में कौन चीन से भारत के लिए नाराजगी लेगा जबकि चीन अपनी खुद की नित नई खोजें कर रहा है और उद्योगों के नए पैमाने बना रहा है. भारत में जब चीनी सामान को न खरीदने की अपील की गई थी तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तक ने भांप लिया था कि भारत में गणेश भी चीन से आते हैं.

भारतचीन युद्ध होगा, इस की संभावना कम है, क्योंकि भारत की सेना भी बहुत बड़ी व मजबूत है और भारत के पास भी अंतिम हथियार अणुबम हैं. पर युद्ध की तैयारी भी भारत को भारी पड़ेगी, क्योंकि नेताओं की बेवकूफियों की वजह से हमारे उद्योग भी चौपट  हो रहे हैं और सामाजिक तानाबाना भी. चीन ने जिस आसानी से फौजियों के समझौतों को न मानने की हठ दिखाई है और हमारे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सीमा के बारे में जिस तरह देश को कोई गारंटी न देने की बात की है, उस से साफ है कि भारत को अकेले बहुतकुछ झेलना पड़ेगा.

अमेरिका में बदलाव

हर युग के समाज  से अपनी जरूरतों के मद्देनजर कुछ गलतियां हो ही जाती हैं. कुछ समाज उन गलतियों को सांस्कृतिक धरोहर मानते हुए उन से चिपके रहते हैं व उन्हें सही प्रमाणित करने के लिए तरहतरह के अतार्किक बहाने ढूंढ़ते रहते हैं जबकि कुछ समाज अपनी गलतियों पर पश्चात्ताप करते हैं व गलतियां सुधारते हैं और गलत बातों को गलत कह कर स्वीकार करते हैं.

अमेरिका आजकल रंगभेद की अपनी 200 वर्षों से ज्यादा पुरानी परंपरा को मिटाने पर लगा हुआ है. मिनियापोलिस में गोरे पुलिसमैन द्वारा एक काले युवक को जमीन पर पटक कर, 9 मिनट तक उस की गरदन को अपने घुटने से दबा कर मार डालने से अमेरिकियों का खून खौल रहा है. काले, भूरे, मिश्रित ही नहीं, शुद्ध गोरे भी इस कुकर्म पर रोष जताने के लिए सड़कों पर उतरे हुए हैं.

वैसे तो अमेरिका में कालों को अफ्रीका से गुलाम बना कर लाने पर भीषण गृहयुद्ध हुआ था. अब्राहम लिंकन ने 1861 में उन अमेरिकी राज्यों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था जिन्होंने गुलाम परंपरा का विरोध करने वाले कानून को मानने से इनकार कर दिया था. उन राज्यों ने तो एक अलग देश बनाने की घोषणा कर दी थी जिसे यूनाइटेड स्टेट्स औफ अमेरिका की जगह कौन्फैडरेट स्टेट्स औफ अमेरिका कहा जाने लगा था. उस युद्ध में 8 लाख से ज्यादा सैनिक मरे थे. गुलामी को खत्म करने के लिए गोरों के बीच हुए उक्त युद्ध में अकसर काले (तब अन्य रंगों के लोग वहां बहुत कम थे) मूकदर्शक बने रहे थे.

अमेरिका ने गुलामी समाप्त तो कर दी पर आज 200 वर्षों बाद भी देशभर की गलियों में यह रंगभेद जारी है. अब मिनियापोलिस में हत्यारे गोरे अफसर व उस के साथियों जिन्होंने हत्या करने में उस का साथ दिया, को कोई गिलाशिकवा नहीं है. आज भी गोरों का बड़ा हिस्सा मानता है कि गरीब काले इसी बरताव के लायक हैं. 1865 में गृहयुद्ध समाप्ति के बाद अमेरिका में जगहजगह उन अफसरों, जनरलों, गवर्नरों और यहां तक कि राष्ट्रपतियों की मूर्तियां लगीं जो गुलामी प्रथा को घिनौनी नहीं, ईश्वरप्रदत्त मानते रहे हैं. आज भी उन्हें गोरे याद करते हैं.

पर जौर्ज फ्लौयड की हत्या ने एक तरह से क्रांति की शुरुआत की है. अमेरिका का एक बड़ा वर्ग अपनी गलती को सुधारने में लगा है, वहीं, एक बड़ा वर्ग इस सुधार का विरोध कर रहा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस सुधार के घोर विरोधी हैं और उन की पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी, की जीत उन दक्षिणी राज्यों के सहारे ही होती रही है जिन्होंने गुलामी पर 1860 में विद्रोह किया था. ये वही कट्टर लोग हैं जो हर बात में बाइबिल का सहारा लेते हैं और उस में से अपने मतलब की बात ढूंढ़ते हैं. अमेरिका में कोरोना के ज्यादा मामलों के पीछे ट्रंप की हठधर्मी है कि मास्क पहनने, टैस्ट करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि ईश्वर उन के साथ है, जीसस ने मास्क नहीं पहना था, बाइबिल में मास्क का निर्देश नहीं है.

पर यह अमेरिका की खूबी है कि वह पेंडुलम की तरह कभी एक तरफ जाता है तो फिर ठीक करने के लिए दूसरी ओर भी. अब अमेरिका अपने को सुधार रहा है. ट्रंप ध्यान बंटाने के लिए चीन से झगड़ा मोल ले रहे हैं. फिर भी इस पर आम जनता में कोई चीन विरोधी लहर नहीं है. चीन ने कोरोना को फैलाया है, इस के लिए गुस्सा जरूर है.

अमेरिका में अब गुलामी को महिमामंडित करने वालों के पुलों, झंडों, रंगों को तोड़ा या हटाया जा रहा है. यह सुखद बदलाव कितना चलता है पर अगर इस की जड़ें गहरी हुईं तो अमेरिका चीन का मुकाबला करने लायक बन सकता है. विविधता और स्वतंत्रता अमेरिका की पूंजी है.

चांदनी चौक का कायापलट

दिल्ली के चांदनी चौक इलाके को  सिर्फ पैदल चलने वालों के लिए बनाना एक मुश्किल काम था. पर जो तसवीरें अब आ रही हैं उस से लगता है कि यह कायापलट कोरोना के युग में तो और भी बहुत मुश्किल का काम था.  पुराने बाजारों से यदि रिकशा, गाडि़यां, ठेले, छोटे दुकानदार हट जाएं तो उन में सैर करना शहरियों के लिए एक सुखद एहसास होगा. छोटे होते घरों में रहने वालों को अब तक चांदनी चौक जैसे देशभर के शहरों के पुराने बाजारों में सिर्फ शोर, गंद और भीड़ मिलती थी.

यूरोप ने यह प्रयोग काफी पहले किया था और घनी बस्तियों के बीच के उन के बाजार आज बेहद लोकप्रिय हो गए हैं.

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