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गर्म पानी पीने से होते हैं ये 6 फायदे, जानकर हो जाएंगे हैरान

सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है कि आप पानी खूब पिएं. जानकारों की माने तो अच्छी सेहत के लिए दिन भर में 8 से 20 गिलास पानी पीना जरूरी है. पर क्या आप गर्म पानी पीने के फायदों के बारे में जानते हैं? गर्म पानी पीने से शरीर के बहुत से विकार कम होते हैं. इस खबर में हम आपको गुनगुने पानी के पीने के फायदों के बारे में बताएंगे. आइए जाने गर्म पानी पीने के फायदों के बारे में.

1.थम जाती है बढ़ती उम्र

अक्सर बढ़ते उम्र के साथ चेहरे पर झुर्रियां आने लगती हैं. बुढ़ापे का ये पहला लक्षण होता है. इस परेशानी में गर्म पानी काफी लाभकारी होता है. इसके नियमित सेवन से चेहरे की झुर्रियां कम होती हैं और त्वचा भी चमकदार हो जाती है.

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2.डिटौक्स होती है बौडी

शरीर की गंदगी को दूर करने में गर्म पानी काफी असरदार है. नियमित रूप से इसके सेवन से शरीर की सारी अशुद्धियां दूर होती हैं. गर्म पानी पीने से शरीर का तपमान बढ़ता है जिससे पसीना आता है. पसीने के माध्यम से शरीर की अशुद्धियां दूर हो जाती हैं.

3.बालों के लिए है फायदेमंद

सिल्की और चमकदार बालों के लिए गर्म पानी काफी असरदार होता है. लंबे समय तक इसके सेवन से बालों की ग्रोथ भी अच्छी रहती है.

4.पेट को रखे स्वस्थ

पाचन क्रिया की बेहतरी के लिए गर्म पानी का बहुत फायदेंद होता है. कोशिश करें कि खाना खाने के बाद आप गर्म पानी की  आदत डाल लें.

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5.जोड़ों के दर्द में होता है असरदार

गर्म पानी जोड़ों के दर्द में काफी असरदार होता है. आपको बता दें कि मांसपेशियों का 80 फीसदी हिस्सा पानी से बना होता है. मांसपेशियों में आने वाली ऐंठन में भी ये काफी असरदार होता है.

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6.वजन होता है कम

आपको बता दें कि बढ़ते वजन में गर्म पानी का सेवन बेहद लाभकारी होता है. शरीर की चर्बी कम करने में गर्म पानी बेहद असरदार है. गर्म पानी में नींबू और शहद डालकर सेवन करने से वजन तेजी से कम होता है. इसके उपयोग से कुछ ही दिनों में आपको अंतर महसूस होगा.

परी हूं मैं-भाग 3 : किसे देखकर खुश हो जाता था राजीव?

तरुण फुरती से दौड़ा उस के पीछे, तब तक तो खबर फैल चुकी थी. मैं कुछ देर तो चौके में बैठी रह गई. जब छत पर पहुंची तो औरतों की नजरों में स्पष्ट हिकारत भाव देखा और तो और, उस रोज से नानी की नजरें बदली सी लगीं. मैं सावधान हो गई. ज्योंज्यों शादी की तिथि नजदीक आ रही थी, मेरा जी धकधक कर रहा था. तरुण का सहज उत्साहित होना मुझे अखर रहा था. इसीलिए तरुण को मेहंदी लगाती बहनों के पास जा बैठी. मगर तरुण अपने में ही मगन बहन से बात कर रहा था, ‘पुष्पा, पंजे और चेहरे के जले दागों पर भी हलके से हाथ फेर दे मेहंदी का, छिप जाएंगे.’  सुन कर मैं रोक न पाई खुद को, ‘‘तरुण, ये दाग न छिपेंगे, न इन पर कोई दूसरा रंग चढ़ेगा. आग के दाग हैं ये.’’ सन्नाटा छा गया हौल में. मुझे राजीव आज बेहद याद आए. कैसी निरापदता होती है उन के साथ, तरुण को देखो…तो वह दूर बड़ी दूर नजर आता है और राजीव, हर पल उस के संग. आज मैं सचमुच उन्हें याद करने लगी.

आखिरकार बरात प्रस्थान का दिन आ गया, मेरे लिए कयामत की घड़ी थी. जैसे ही तरुण के सेहरा बंधा, वह अपने नातेरिश्तेदारों से घिर गया. उसे छूना तो दूर, उस के करीब तक मैं नहीं पहुंच पाई. मुझे अपनी औकात समझ में आने लगी. असल औकात अन्य औरतों ने बरात के वापस आते ही समझा दी. उन बहन-बुआ के एकएक शब्द में व्यंग्य छिपा था-‘‘भाभीजी, आज से आप को हम लोगों के साथ हौल में ही सोना पड़ेगा. तरुण के कमरे का सारा पुराना सामान हटा कर विराज के साथ आया नया पलंग सजाना होगा, ताजे फूलों से.’’ छुरियां सी चलीं दिल पर. लेकिन दिखावे के लिए बड़ी हिम्मत दिखाई मैं ने भी. बराबरी से हंसीठिठोली करते हुए तरुण और विराज का कमरा सजवाया. लेकिन आधीरात के बाद जब कमरे का दरवाजा खट से बंद हुआ. मेरी जान निकल गई, लगा, मेरा पूरा शरीर कान बन गया है. कैसे देखती रहूं मैं अपनी सब से कीमती चीज की चोरी होते हुए. चीख पड़ी, ‘चोर, चोर,चोर.’ गुल हुई सारी बत्तियां जल पड़ीं. रंग में भंग डालने का मेरा उपक्रम पूर्ण हुआ. शादी वाला घर, दानदहेज के संग घर की हर औरत आभूषणों से लदी हुई. ऐसे मालदार घरों में ही तो चोरलुटेरे घात लगाए बैठे रहते हैं.

नींद से उठे, डरे बच्चों के रोने का शोर, आदमियों का टौर्च ले कर भागदौड़ का कोलाहल…ऐसे में तरुण के कमरे का दरवाजा खुलना ही था. उस के पीछेपीछे सजीसजाई विराज भी चली आई हौल में. चैन की सांस ली मैं ने. बाकी सभी भयभीत थे लुट जाने के भय से. सब की आंखों से नींद गायब थी. इस बीच, मसजिद से सुबह की आजान की आवाज आते ही मैं मन ही मन बुदबुदाई, ‘हो गई सुहागरात.’ लेकिन कब तक? वह तो सावित्री थी जिस ने सूर्य को अस्त नहीं होने दिया था. सुबह से ही मेहमानों की विदाई शुरू हो गई थी. छुट्टियां किस के पास थीं? मुझे भी लौटना था तरुण के साथ. मगर मेरे गले में बड़े प्यार से विराज को भी टांग दिया गया. जाने किस घड़ी में बेटियों से कहा था कि चाची ले कर आऊंगी. विराज को देख कर मुझे अपना सिर पीट लेने का मन होता. मगर उस ने रिद्धि व सिद्धि का तो जाते ही मन जीत लिया. 10 दिनों बाद विराज का भाई उसे लेने आ गया और मैं फिर तरुण की परी बन गई. गिनगिन कर बदले लिए मैं ने तरुण से. अब मुझे उस से सबकुछ वैसा ही चाहिए था जैसे वह विराज के लिए करता था…प्यार, व्यवहार, संभाल, परवा सब.

चूक यहीं हुई कि मैं अपनी तुलना विराज से करते हुए सोच ही नहीं पाई कि तरुण भी मेरी तुलना विराज से कर रहा होगा. वक्त भाग रहा था. मैं मुठ्ठी में पकड़ नहीं पा रही थी. ऐसा लगा जैसे हर कोई मेरे ही खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है. तरुण ने भी बताया ही नहीं कि विराज ट्रांसफर के लिए ऐप्लीकेशन दे चुकी है. इधर राजीव का एग्रीमैंट पूरा हो चुका था. उन्होंने आते ही तरुण को व्यस्त तो कर ही दिया, साथ ही शहर की पौश कालोनी में फ्लैट का इंतजाम कर दिया यह कहते हुए, ‘‘शादीशुदा है अब, यहां बहू के साथ जमेगा नहीं.’’ मैं चुप रह गई मगर तरुण ने अब भी मुंह मारना छोड़ा नहीं था. तरुण मेरी मुट्ठी में है, यह एहसास विराज को कराने का कोई मौका मैं छोड़ती नहीं थी. जब भी विराज से मिलना होता, वह मुझे पहले से ज्यादा भद्दी, मोटी और सांवली नजर आती. संतुष्ट हो कर मैं घर लौट कर अपने बनावशृंगार पर और ज्यादा ध्यान देती. फिर मैं ने नोट किया, तरुण का रुख उस के बजाय मेरे प्रति ज्यादा नरम और प्यारभरा होता, फिर भी विराज सहजभाव से नौकरी, ट्यूशन के साथसाथ तरुण की सुविधा का पूरा खयाल रखती. न तरुण से कोई शिकायत, न मांगी कोई सुविधा या भेंट.

‘परी थोड़ी है जो छू लो तो पिघल जाए,’ तरुण ने भावों में बह कर एक बार कहा था तो मैं सचमुच अपने को परी ही समझ बैठी थी. तब तक तरुण की थीसिस पूरी हो चुकी थी मगर अभी डिसकशन बाकी था. और फिर वह दिन आ ही गया. तरुण को डौक्टरेट की डिगरी के ही साथ आटोनौमस कालेज में असिस्टैंट प्रोफैसर पद पर नियुक्ति भी मिल गई. धीरेधीरे उस का मेरे पास आना कम हो रहा था, फिर भी मैं कभी अकेली, कभी बेटियों के साथ उस के घर जा ही धमकती. विराज अकसर शाम को भी सूती साड़ी में बगैर मेकअप के मिडिल स्कूल के बच्चों को पढ़ाती मिलती. ऐसे में हमारी आवभगत तरुण को ही करनी पड़ती. वह एकएक चीज का वर्णन चाव से करता…विराज ने गैलरी में ही बोनसाई पौधों के संग गुलाब के गमले सजाए हैं, साथ ही गमले में हरीमिर्च, हरा धनिया भी उगाया है. विराज…विराज… विराज…विराज…विराज ने मेरा ये स्वेटर क्रोशिए से बनाया है. विराज ने घर को घर बना दिया है. विराज के हाथ की मखाने की खीर, विराज के गाए गीत… विराज के हाथ, पैर, चेहरा, आंखे…

मैं गौर से देखने लगती तरुण को, मगर वह सकपकाने की जगह ढिठाई से मुसकराता रहता और मैं अपमान की ज्वाला में जल उठती. मेरे मन में बदले की आग सुलगने लगी. मैं विराज से अकेले में मिलने का प्रयास करती और अकसर बड़े सहजसरल भाव से तरुण का जिक्र ही करती. तरुण ने मेरा कितना ध्यान रखा, तरुण ने यह कहा वह किया, तरुण की पसंदनापसंद. तरुण की आदतों और मजाकों का वर्णन करने के साथसाथ कभीकभी कोई ऐसा जिक्र भी कर देती थी कि विराज का मुंह रोने जैसा हो जाता और मैं भोलेपन से कहती, ‘देवर है वह मेरा, हिंदी की मास्टरनी हो तुम, देवर का मतलब नहीं समझतीं?’  विराज सब समझ कर भी पूर्ण समर्पण भाव से तरुण और अपनी शादी को संभाल रही थी. मेरे सीने पर सांप लोट गया जब मालूम पड़ा कि विराज उम्मीद से है, और सब से चुभने वाली बात यह कि यह खबर मुझे राजीव ने दी.

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ मैं भड़क गई.

‘‘तरुण ने बताया.’’

‘‘मुझे नहीं बता सकता था? मैं इतनी दुश्मन हो गई?’’

विराज, राजीव से सगे जेठ का रिश्ता निभाती है. राजीव की मौजूदगी में कभी अपने सिर से पल्लू नीचे नहीं गिरने देती है, जोर से बोलना हंसना तो दूर, चलती ही इतने कायदे से है…धीमेधीमे, मुझे नहीं लगता कि राजीव से इस बारे में उस की कभी कोई बात भी हुई होगी. लेकिन आज राजीव ने जिस ढंग से विराज के बारे में बात की , स्पष्टतया उन के अंदाज में विराज के लिए स्नेह के साथसाथ सम्मान भी था. चर्चा की केंद्रबिंदु अब विराज थी. तरुण ने विराज को डिलीवरी के लिए घर भेजने के बजाय अपनी मां एवं नानी को ही बुला लिया था. वे लोग विराज को हथेलियों पर रख रही थीं. मेरी हालत सचमुच विचित्र हो गई थी. राजीव अब भी किताबों में ही आंखें गड़ाए रहते हैं. और विराज ने बेटे को जन्म दिया. तरुण पिता बन गया. विराज मां बन गई पर मैं बड़ी मां नहीं बन पाई. तरुण की मां ने बच्चे को मेरी गोद में देते हुए एकएक शब्द पर जोर दिया था, ‘लल्ला, ये आ गईं तुम्हारी ताईजी, आशीष देने.’

बच्चे के नामकरण की रस्म में भी मुझे जाना पड़ा. तरुण की बहनें, बूआओं सहित काफी मेहमानों को निमंत्रित किया गया. कार्यक्रम काफी बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था. इस पीढ़ी का पहला बेटा जो पैदा हुआ है. राजीव अपने पुराने नातेरिश्ते से बंधे फंक्शन में बराबरी से दिलचस्पी ले रहे थे. तरुण विराज और बच्चे के साथ बैठ चुका तो औरतों में नाम रखने की होड़ मच गई. बहनें अपने चुने नाम रखवाने पर अड़ी थीं तो बूआएं अपने नामों पर. बड़ा खुशनुमा माहौल था. तभी मेरी निगाहें विराज से मिलीं. उन आंखों में जीत की ताब थी. सह न सकी मैं. बोल पड़ी, ‘‘नाम रखने का पहला हक उसी का होता है जिस का बच्चा हो. देखो, लल्ला की शक्ल हूबहू राजीव से मिल रही है. वे ही रखेंगे नाम.’’ सन्नाटा छा गया. औरतों की उंगलियां होंठों पर आ गईं. विराज की प्रतिक्रिया जान न सकी मैं. वह तो सलमासितारे जड़ी सिंदूरी साड़ी का लंबा घूंघट लिए गोद में शिशु संभाले सिर झुकाए बैठी थी.

मैं ने चारोें ओर दृष्टि दौड़ाई, शायद राजीव यूनिवर्सिटी के लिए निकल चुके थे. मेरा वार खाली गया. तरुण ने तुरंत बड़ी सादगी से मेरी बात को नकार दिया, ‘‘भाभी, आप इस फैक्ट से वाकिफ नहीं हैं शायद. बच्चे की शक्ल तय करने में मां के विचार, सोच का 90 प्रतिशत हाथ होता है और मैं जानता हूं कि विराज जब से शादी हो कर आई, सिर्फ आप के ही सान्निध्य में रही है, 24 घंटे आप ही तो रहीं उस के दिलोदिमाग में. इस लिहाज से बच्चे की शक्ल तो आप से मिलनी चाहिए थी. परिवार के अलावा किसी और पर या राजीव सर पर शक्लसूरत जाने का तो सवाल ही नहीं उठता. यह तो आप भी जानती हैं कि विराज ने आज तक किसी दूसरे की ओर देखा तक नहीं है. वह ठहरी एक सीधीसादी घरेलू औरत.’’

औरत…लगा तरुण ने मेरे पंख ही काट दिए और मैं धड़ाम से जमीन पर गिर गई हूं. मुझे बातबात पर परी का दरजा देने वाले ने मुझे अपनी औकात दिखा दी. मुझे अपने कंधों में पहली बार भयंकर दर्द महसूस होने लगा, जिन्हें तरुण ने सीढ़ी बनाया था, उन कंधों पर आज न तरुण की बांहें थीं और न ही पंख.

परी हूं मैं-भाग 2 : किसे देखकर खुश हो जाता था राजीव?

बस, एक चिनगारी से भक् से आग भड़क गई. सोच कर ही डर लगता है. भभक उठी आग. हम दोनों एकसाथ चीखे थे. तरुण ने मेरी साड़ी खींची. मुझ पर मोटे तौलिए लपेटे हालांकि इस प्रयास में उस के भी हाथ, चेहरा और बाल जल गए थे. मुझे अस्पताल में भरती करना पड़ा और तरुण के हाथों पर भी पट्टियां बंध चुकी थीं तो रिद्धि व सिद्धि को किस के आसरे छोड़ते. अम्माजी को बुलाना ही पड़ा. आते ही अम्माजी अस्पताल पहुंचीं. ‘देख, तेरी वजह से तरुण भी जल गया. कहते हैं न, आग किसी को नहीं छोड़ती. बचाने वाला भी जलता जरूर है.’ जाने क्यों अम्मा का आना व बड़बड़ाना मुझे अच्छा नहीं लगा. आंखें मूंद ली मैं ने. अस्पताल में तरुण नर्स के बजाय खुद मेरी देखभाल करता. मैं रोती तो छाती से चिपका लेता. वह मुझे होंठों से चुप करा देता. बिलकुल ताजा एहसास.

अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई तो घर का कोनाकोना एकदम नया सा लगा. फूलपत्तियां सब निखर गईं जैसे. जख्म भी ठीक हो गए पर दाग छोड़ गए, दोनों के अंगों पर, जलने के निशान. तरुण और मैं, दोनों ही तो जले थे एक ही आग में. राजीव को भी दुर्घटना की खबर दी गई थी. उन्होंने तरुण को मेरी आग बुझाने के लिए धन्यवाद के साथ अम्मा को बुला लेने के लिए शाबाशी भी दी. तरुण को महीनों बीत चले थे भोपाल गए हुए. लेकिन वहां उस की शादी की बात पक्की की जा चुकी थी. सुनते ही मैं आंसू बहाने लगी, ‘‘मेरा क्या होगा?’’ ‘परी का जादू कभी खत्म नहीं होता.’ तरुण ने पूरी तरह मुझे अपने वश में कर लिया था, मगर पिता के फैसले का विरोध करने की न उस में हिम्मत थी न कूवत. स्कौलरशिप से क्या होना जाना था, हर माह उसे घर से पैसे मांगने ही पड़ते थे. तो इस शादी से इनकार कैसे करता? लड़की सरकारी स्कूल में टीचर है और साथ में एमफिल कर रही है तो शायद शादी भी जल्दी नहीं होगी और न ही ट्रांसफर. तरुण ने मुझे आश्वस्त कर दिया. मैं न सिर्फ आश्वस्त हो गई बल्कि तरुण के संग उस की सगाई में भी शामिल होने चली आई. सामान्य सी टीचरछाप सांवली सी लड़की, शक्ल व कदकाठी हूबहू मीनाकुमारी जैसी.

एक उम्र की बात छोड़ दी जाए तो वह मेरे सामने कहीं नहीं टिक रही थी. संभवतया इसलिए भी कि पूरे प्रोग्राम में मैं घर की बड़ी बहू की तरह हर काम दौड़दौड़ कर करती रही. बड़ों से परदा भी किया. छोटों को दुलराया भी. तरुण ने भी भाभीभाभी कर के पूरे वक्त साथ रखा लेकिन रिंग सेरेमनी के वक्त स्टेज पर लड़की के रिश्तेदारों से परिचय कराया तो भाभी के रिश्ते से नहीं बल्कि, ‘ये मेरे बौस, मेरे गाइड राजीव सर की वाइफ हैं.’ कांटे से चुभे उस के शब्द, ‘सर की वाइफ’, यानी उस की कोई नहीं, कोई रिश्ता नहीं. तरुण को वापस तो मेरे ही साथ मेरे ही घर आना था. ट्रेन छूटते ही शिकायतों की पोटली खोल ली मैं ने. मैं तैश में थी, हालांकि तरुण गाड़ी चलते ही मेरा पुराना तरुण हो गया था. मेरा मुझ पर ही जोर न चल पाया, न उस पर. मौसम बदल रहे थे. अपनी ही चाल में, शांत भाव से. मगर तीसरे वर्ष के मौसमों में कुछ ज्यादा ही सन्नाटा महसूस हो रहा था, भयावह चुप्पियां. आंखों में, दिलों में और घर में भी.

तूफान तो आएंगे ही, एक नहीं, कईकई तूफान. वक्त को पंख लग चुके थे और हमारी स्थिति पंखकटे प्राणियों की तरह होती लग रही थी. मुझे लग रहा था समय को किस विध बांध लूं? तरुण की शादी की तारीख आ गई. सुनते ही मैं तरुण को झंझोड़ने लगी, ‘‘मेरा क्या होगा?’’ ‘परी का जादू कभी खत्म नहीं होगा,’ इस बार तरुण ने मुझे भविष्य की तसल्ली दी. मैं पूरा दिन पगलाई सी घर में घूमती रही मगर अम्माजी के मुख पर राहत स्पष्ट नजर आ रही थी. बातों ही बातों में बोलीं भी, ‘अच्छा है, रमेश भाईसाहब ने सही पग उठाया. छुट्टा सांड इधरउधर मुंह मारे, फसाद ही खत्म…खूंटे से बांध दो.’ मुझे टोका भी, कि ‘कौन घर की शादी है जो तुम भी चलीं लदफंद के उस के संग. व्यवहार भेज दो, साड़ीगहना भेज दो और अपना घरद्वार देखो. बेटियों की छमाही परीक्षा है, उस पर बर्फ जमा देने वाली ठंड पड़ रही है.’ अम्माजी को कैसे समझाती कि अब तो तरुण ही मेरी दुलाईरजाई है, मेरा अलाव है. बेटियों को बहला आई, ‘चाची ले कर आऊंगी.’ बड़े भारी मन से भोपाल स्टेशन पर उतरी मैं. भोपाल के जिस तालाब को देख मैं पुलक उठती थी, आज मुंह फेर लिया, मानो मोतीताल के सारे मोती मेरी आंखों से बूंदें बन झरने लगे हों. तरुण ने बांहों में समेट मुझे पुचकारा. आटो के साइड वाले शीशे पर नजर पड़ी, ड्राइवर हमें घूर रहा था. मैं ने आंसू पोंछ बाहर देखना शुरू कर दिया. झीलों का शहर, हरियाली का शहर, टेकरीटीलों पर बने आलीशन बंगलों का शहर और मेरे तरुण का शहर.

आटो का इंतजार ही कर रहे थे सब. अभी तो शादी को हफ्ताभर है और इतने सारे मेहमान? तरुण ने बताया, मेहमान नहीं, रिश्तेदार एवं बहनें हैं. सब सपरिवार पधारे हैं, आखिर इकलौते भाई की शादी है. सुन कर मैं ने मुंह बनाया और बहनों ने मुझे देख कर मुंह बनाया. रात होते ही बिस्तरों की खींचतान. गरमी होती तो लंबीचौड़ी छत थी ही. सब अपनीअपनी जुगाड़ में थे. मुझे अपना कमरा, अपना पलंग याद आ रहा था. तरुण ने ही हल ढूंढ़ा, ‘भाभी जमीन पर नहीं सो पाएंगी. मेरे कमरे के पलंग पर भाभी की व्यवस्था कर दो, मेरा बिस्तरा दीवान पर लगा दो.’ मुझे समझते देर नहीं लगी कि तरुण की बहनों की कोई इज्जत नहीं है और मां ठहरी गऊ, तो घर की बागडोर मैं ने संभाल ली. घर के बड़ेबूढ़ों और दामादों को इतना ज्यादा मानसम्मान दिया, उन की हर जरूरतसुविधा का ऐसा ध्यान रखा कि सब मेरे गुण गाने लगे. मैं फिरकनी सी घूम रही थी. हर बात में दुलहन, बड़ी बहू या भाभीजी की राय ली जाती और वह मैं थी. सब को खाना खिलाने के बाद ही मैं खाना खाने बैठती. तरुण भी किसी न किसी बहाने से पुरुषों की पंगत से बच निकलता. स्त्रियां सभी भरपेट खा कर छत पर धूप सेंकनेलोटने पहुंच जातीं. तरुण की नानी, जो सीढि़यां नहीं चढ़ पाती थीं, भी नीम की सींक से दांत खोदते पिछवाड़े धूप में जा बैठतीं. तब मैं और तरुण चौके में अंगारभरे चूल्हे के पास अपने पाटले बिछाते और थाली परोसते. आदत जो पड़ गई है एक ही थाली में खाने की, नहीं छोड़ पाए. जितने अंगार चूल्हे में भरे पड़े थे उस से ज्यादा मेरे सीने में धधक रहे थे. आंसू से बुझें तो कैसे? तरुण मनाते हुए अपने हाथ से मुझे कौर खिला रहे थे कि उस की भांजी अचानक आ गई चौके में गुड़ लेने…लिए बगैर ही भागी ताली बजाते हुए, ‘तरुण मामा को तो देखो, बड़ी मामीजी को अपने हाथ से रोटी खिला रहे हैं. मामीजी जैसे बच्ची हों. बच्ची हैं क्या?’

FOOD TIPS: खाने का स्वाद बढ़ाते हैं ये 10 खुशबूदार मसाले

मसाले किसी भी व्यंजन में न केवल स्वाद और सुगंध बढ़ाते हैं बल्कि वे स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं. यही वजह है कि पूरी दुनिया भारतीय व्यंजनों की दीवानी होती जा रही है. मसालों का प्रयोग ही भारत के व्यंजनों को बाकी देशों के व्यंजनों से अलग करता है. आइए, जानते हैं कुछ महत्त्वपूर्ण मसालों के बारे में :

  1. केसर

केसर मूलतया पर्शिया क्षेत्रों में पाया जाता है. बाद में इस की खेती यूरेशिया, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका में भी होने लगी. अमूमन केसर का इस्तेमाल किसी भी डिश में रंग लाने के लिए किया जाता है. यह मसालों में सब से महंगा है. खीर, रबड़ी और कई तरह की मिठाइयों के अलावा केसर का बिरयानी, पुलाव आदि नमकीन डिशेज में भी इस्तेमाल किया जाता है. यही नहीं, सांस लेने में तकलीफ हो, पाचनतंत्र में गड़बड़ी या रक्तस्राव को कम करना हो तो केसर का सेवन सही रहता है. इस के साथ ही यह नींद में सुधार, हृदय को दुरुस्त, हड्डियों को मजबूत और प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार लाता है. यह चेहरे की रंगत निखारने का भी काम करता है.

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2. छोटी इलायची

मैसूर, मंगलौर, मालाबार और श्रीलंका में छोटी इलायची बहुतायत में पैदा होती है. इसे हरी इलायची भी कहा जाता है. इस का पौधा 5 से 10 फुट लंबा होता है और इस की फसल 3-4 वर्षों में तैयार होती है. अपने यहां छोटी इलायची का इस्तेमाल मेहमानों के स्वागतसत्कार, मुखशुद्धि और डिशेज में भीनी खुशबू लाने के लिए किया जाता है. खीर, मिठाइयां और बिरयानी में छोटी इलायची न हो तो वे अधूरी लगती हैं.

सुबह उठते और रात को सोते समय छोटी इलायची को चबा कर खाने और फिर गुनगुना पानी पीने से गले की खराश ठीक हो जाती है. खांसी होने पर भी अदरक, लौंग और तुलसी के पत्ते के साथ इस का सेवन सही रहता है.

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खीर में हरी इलायची न हो तो खीर का लगभग 25 फीसद स्वाद कम रहता है. कुछ लोगों को आइसक्रीम में भी हरी इलायची का स्वाद अच्छा लगता है. नौनवेज पसंद करने वाले खासकर चिकन खाने वाले हरी इलायची के हिमायती मिलेंगे, क्योंकि यह चिकन की रैसिपी में दम भर देता है.

3.  दालचीनी

दालचीनी दक्षिण भारत, श्रीलंका और चीन में खूब मिलती है. भारत में इस के पेड़ पूर्वी हिमालय, असम, सिक्किम और खासीजौंतिया की पहाडि़यों में मिलते हैं. यह 10-15 मीटर ऊंचा सदाबहार पेड़ है, जिस की छाल का प्रयोग मसाले की तरह किया जाता है. इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखा गया है. इस का सुगंधित तेल भी निकाला जाता है.

पेड़ से छाल उतारने के बाद पेड़ बेकार हो जाता है, लेकिन इस के मुख्य तने से 4 से 7 नई शाखाएं निकल आती हैं. इन से भी 2 वर्षों तक छाल निकाली जाती है. छाल को सुखाने के बाद साफ कर के पतली सुराहीदार आकार में बांध कर बेचा जाता है. दालचीनी का प्रयोग केक, मिठाई और गरममसालों में किया जाता है.

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दालचीनी स्वाद में तीखी होती है. दालचीनी के तेल का इस्तेमाल इत्र के रूप में किया जाता है. अपच, पेटदर्द, सीने में जलन, पाचन में सुधार लाने, उलटी रोकने, कब्ज की समस्या कम करने, जुकाम कम करने आदि में दालचीनी बहुत फायदेमंद होती है.

रोजाना एक सी चाय पी कर ऊब गए हैं तो एक बार दालचीनी पाउडर चाय में डाल कर देखें. इसे पीस कर डब्बे में बंद कर के रख लें, जब भी एक मसाले से ऊब जाएं तो पकी सब्जियों या कटे फलों पर इसे डाल लें. पुडिंग, मिठाई या मीठे ब्रैड को बनाते समय भी कई लोग इस का इस्तेमाल करते हैं.

4.  काली इलायची

काली इलायची को बड़ी इलायची भी कहा जाता है. भारतीय और अन्य देशों के व्यंजनों में इस का काफी प्रयोग किया जाता है. इस के बीज से कपूर की खुशबू आती है. इस के पेड़ 5 फुट तक ऊंचे होते हैं. ये भारत, भूटान और नेपाल के पहाड़ी प्रदेशों में पाए जाते हैं. पुलाव, मुगलई व्यंजन, चाय, मीट, सूप आदि में काली इलायची का प्रयोग खूब किया जाता है.

गरम मसाले की यह जरूरी सामग्री है. मुंह के छाले ठीक करने के लिए काली इलायची और मिश्री को मिला कर पीसने के बाद जबान पर रखने से लाभ होता है. उलटी हो तो इसे पानी में उबाल लें और उस पानी को पीने से उलटी बंद हो जाती है.

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भारतीय भोजन में करी, दाल, चावल, सूप आदि में काली इलायची का इस्तेमाल जम कर किया जाता है. कुछ विशेष तरह की मिठाइयों में भी काली इलायची का प्रयोग किया जाता है. विशेष तरह का पान खाने वाले अपने पान में काली इलायची डलवाते हैं.

5. लौंग

भारतीय व्यंजनों में लौंग का खूब प्रयोग किया जाता है. चीन, सुमात्रा, जमैका, ब्राजील, पेबा और वैस्टइंडीज में लौंग की अच्छी पैदावार होती है. इस के पौधे में छठे साल फूल निकल आते हैं और 12 से 25 साल तक अच्छी उपज देता है. इस की कलियों को तोड़ कर धूप या आग पर सुखाया जाता है. सुखाने के बाद केवल 40 फीसद लौंग ही बचती है. किसी भी व्यंजन में लौंग के इस्तेमाल से उस में अच्छी खुशबू आने लगती है.

दवा के तौर पर भी इस के तेल का प्रयोग किया जाता है. दांतदर्द, मुंह की बदबू, उलटी आने, जोड़ों के दर्द, सिरदर्द व कानदर्द में लौंग का इस्तेमाल लाभकारी है.

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मीठी चीजें बनाते समय लौंग का खास इस्तेमाल किया जाता है. कई तरह की मिठाइयों के अलावा बिहार में बनने वाले ठेकुआ में लौंग को डाला ही जाता है. लौंग के नाम से तो एक मिठाई ही है, जिस का नाम लौंगलत्ता है. कई बार सिर्फ गार्निशिंग के तौर पर भी लौंग का प्रयोग किया जाता है.

6. साबुत सरसों

सरसों के पौधे की ऊंचाई एक से 3 फुट तक होती है. इस की फलियां पक जाने पर बीज जमीन पर गिर जाते हैं. इस के बीज काले और पीले रंग के होते हैं. पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात में इस की खेती की जाती है. इस के बीज का प्रयोग सब्जी में बेहतरीन स्वाद ले कर आता है. गरम तेल में सरसों का तड़का अधिकतर व्यंजनों का जायका दोगुना कर देता है. सरसों कौलेस्ट्रौल को कम करने और मेनोपौज के दौरान महिलाओं के लिए बेहतरीन है. यह एंटी इंफ्लेमेटरी भी है, जो मांसपेशियों और गठिया के दर्द में फायदा पहुंचाता है.

7.  साबुत धनिया

धनिया को कोथमीर भी कहा जाता है. यह भारतीय रसोई का अहम हिस्सा है. रोजमर्रा के खाने में साबुत धनिया अहम भूमिका निभाता है, इस के लिए इसे पीस कर सूखा मसाला तैयार किया जाता है. एयरटाइट डब्बे में महीनों तक इसे रखा जा सकता है. हमारा देश धनिया का प्रमुख निर्यातक है. विटामिन सी होने की वजह से यह सर्दीजुकाम में फायदेमंद है. धनिया के बीजों को पानी में उबाल कर ठंडा करने के बाद पीने से कौलेस्ट्रौल का स्तर कम होता है.

ब्रोकलीसूप में साबुत धनिया को पीस कर डालने से उस का स्वाद बढ़ जाता है. नौनवेज का स्वाद बढ़ाना और कुछ अलग करना है तो उस में साबुत धनिया को जीरा और अदरक के साथ पीस कर डालें. दाल में कभी जीरा की जगह साबुत धनिया का तड़का लगा कर देखिए, स्वाद अलग और सोंधा लगेगा.

8. तेजपत्ता

तेजपत्ता का इस्तेमाल अलग स्वाद और खुशबू के लिए किया जाता है. तुर्की, फ्रांस, बेल्जियम, इटली, रूस, मध्य अमेरिका, उत्तरी अमेरिका और भारत में तेजपत्ता की पैदावार होती है. तोड़े जाने के कई  हफ्ते बाद तक सुखाए जाने के बावजूद इस का स्वाद पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता.

इसे सूखा नहीं खाया जा सकता, क्योंकि यह स्वाद में काफी तेज और कड़वा होता है. इस का इस्तेमाल सूप, मीट, सी फूड, सब्जियों, पुलाव, बिरयानी आदि में खूब किया जाता है. गरम मसालों में शामिल तेजपत्ता में ऐसे कई गुण हैं जो इसे डायबिटीज, माइग्रेन, बैक्टीरियल इन्फैक्शन, गैस्ट्रिक, अलसर जैसे रोगों के इलाज में उपयोगी बनाते हैं. यह एक बेहतरीन एंटीऔक्सिडैंट भी है.

सौस, सूप, स्टू में तेजपत्ता का प्रयोग उस के स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है. पुलाव या बिरयानी में भी इस का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन डिश तैयार होने के बाद खाने से पहले इसे निकाल भी दिया जाता है.

9.  जीरा

जीरा खानपान के व्यंजनों में साबुत या पिसा हुआ मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है. भूने जीरे की सोंधी महक के कारण दहीप्रेमी जीरा को भला कैसे भूल सकते हैं, खासकर, नमकीन दही खाने वाले लोग. नमक और लालमिर्च पाउडर के साथ भुना जीरा पाउडर दही के स्वाद को कई गुना बढ़ा देता है. दहीबड़े तो बिना भुने जीरा पाउडर के खाए ही नहीं जाते. दाल हो या कोई दूसरी सब्जी, गरम घी या सरसों के तेल में तड़कता जीरा उस के स्वाद को सोंधा बना देता है.

10.  जायफल

जायफल एक सदाबहार पेड़ है, जो चीन, ताइवान, वैस्टइंडीज, दक्षिणी अमेरिका, श्रीलंका और भारत के केरल में खूब पनपता है. दरअसल, इस के पेड़ को मिरिस्टिका कहते हैं और इस के बीज को जायफल. पूरी तरह से पक जाने पर इस का फल 2 हिस्सों में फट जाता है और अंदर सिंदूरी रंग की जावित्री दिखाई देने लगती है. जावित्री के अंदर की गुठली को तोड़ने पर भीतर जायफल रहता है.

जायफल जावित्री से ज्यादा मीठा होता है. अल्कोहल में जायफल एक परंपरागत मसाला है. विदेशों में जायफल का अचार भी मिलता है, लेकिन अपने यहां जायफल का प्रयोग मिठाई के साथ मुगलई व्यंजन बनाने में किया जाता है. यह भी एक गरम मसाला है. कई देशों में इस का प्रयोग सब्जी, सूप, सौस और मीट में भी किया जाता है. इस के तेल का प्रयोग कई तरह के कौस्मेटिक्स तैयार करने में किया जाता है. सर्दी के लिए यह बहुत उपयोगी है. छोटे बच्चों को जायफल मिलाए हुए सरसों के तेल से मालिश करने से आराम मिलता है. यह पेट और त्वचा संबंधी समस्याओं को भी दूर रखता है.

– गौतम चौधरी, शेफ, डेमीअर्जिक हौस्पिटैलिटी

एक बेटी हमेशा अपने पिता की प्यारी बेटी होती है

मंगावलर का दिन देश के सभी बेटियों के लिए एक ऐतिहासिक दिन बन गया. इस दिन देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि पैतृक संपत्ति में बेटी का भी बराबर का हक है. तो आईए आसान भाषा में जानते है क्या है ऐतिहासिक और क्या आयेगा  बड़ा बदलाव . 5 विन्दुओं में समझते है पुरे फैसले को …

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  1. दूरगामी प्रभाव पड़ेगा :- यह फैसला बड़ा और दूरगामी माना जा रहा है. कोर्ट ने फैसला सुनाने का दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि एक बेटी हमेशा अपने पिता की प्यारी बेटी होती है. कानून की व्याख्या न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने हिन्दू उत्तराधिकार कानून में 2005 में किए गए संशोधन की व्याख्या किया. उन्होंने कहा कि अगर कानून संशोधन से पहले भी किसी पिता की मृत्यु हो गई हो तब भी उसकी बेटियों को पिता की सम्पत्ति में बराबर हिस्सा मिलेगा.
  2. मिला बराबर का हक़ :- इस कानून के मुताबिक पैतृक संपत्ति पर बेटियों का बराबर का अधिकार होगा. अत: कोई भी बेटी को उसके अधिकार से वंचित नहीं कर सकता. पिता के सभी सम्पति पर बेटियों का बेटों के बराबर का अधिकार रहेगा .

3 .अविभाजित परिवार में भी मिला हक :- अब सीधे शब्दों में समझे तो अब बेटियों को बराबर का हक मिला है. कोर्ट की ओर आदेश दिया गया कि हिन्दू अविभाजित परिवार की पैतृक सम्पत्ति में बेटी का भी बेटे की तरह समान अधिकार होगा, भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने के पहले ही उसके पिता की मृत्यु क्यों न हो गई हो.

  1. बिना वसीयत के भी मिलेगा संपति में हक:- अब यदि पिता की मौत बिना वसीयत किए हुई है तो सभी उत्तराधिकारियों का प्रॉपर्टी पर बराबर अधिकार होगा. फिर चाहे वह बेटा हो या बेटी.
  2. हिंदू उत्तराधिकार कानून में कब कब हुआ है बदलाव :- मंगलवार से पहले इस कानून में 2005 में ऐतिहासिक बदलाव आया था , तब हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 में संशोधन किया गया था, इसके तहत पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का हिस्सा देने की बात कही गई थी. श्रेणी-एक की कानूनी वारिस होने के नाते संपत्ति पर बेटी का बेटे जितना हक है. शादी से इसका कोई लेना-देना नहीं है. इसकी व्याख्या की मांग की गई थी कि क्या यह संशोधन पूर्वप्रभावी होगा या नहीं. इसी की ब्याख्या कोर्ट ने 11 अगस्त 2020 को किया.

ये है सुशांत के नाम की वो नेमप्लेट जो आज भी अंकिता लोखंडें के घर पर लगी है, पढ़ें खबर

सुशांत सिंह राजपूत की एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडें  इन दिनों  सुशांत के परिवार के साथ हर कदम पर खड़ी हैं. वह सुशांत को इंसाफ दिलाना चाहती हैं. जब पूरी दुनिया में सुशांत के सुसाइड की खबर चली रही थी उस वक्त अंकिता लोखंडें पूरी दुनिया के सामने आ कर कहती हैं कि सुशांत इतना कमजार नहीं था कि वह  आत्महत्या कर लें,

अंकिता सुशांत के परिवार के साथ हर कदम पर खड़ी है. अंकिता चाहती है कि सुशांत को इंसाफ मिले. वह कभी इतना कमजोर था ही नहीं कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठाएं. अंकिता के अनुसार सुशांत को मारा गया है.

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सुशांत के घर के आगे नेमप्लेट जो लगा हुआ था उसमें अब तस्वीर भी लग गई है. जिसमें अंकिता के नाम के नीचे सुशांत लिखा है और उसमें सुशांत की तस्वीर भी लगी हुई है. इससे मालूम होता है कि अंकिता सुशांत से अलग होने के बाद भी कभी उन्हें भूला नहीं पाई. अंकिता सुशांत के करीबी दोस्त बताते हैं कि अंकिता सुशांत से अलग होने के बाद भी अपने घर का नेमप्लेट चेंज नहीं कि थी.

 

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वह हमेशा सुशांत और अपने नाम का नेमप्लेट लगाई थी. वहीं इन दिनों अंकिता लोखंडें सुशांत के मामले पर खुलकर बोलने पर कुछ लोगों के निशाने पर भी आ गई हैं. अंकिता शिवसेना नेता संजय राउत के निशाने पर है. कुछ दिनों पहले संजय राउत ने अंकिता को टारगेट पर लेते हुए बहुत खरी –खोटी सुनाया था.

संजय राउत ने रिया चक्रवर्ती का बचाव करते हुए कहा था कि रिया चक्रवर्ती सुशांत के साथ हमेशा थी लेकिन अंकिता ने उसका साथ छोड़ दिया था.

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आगे संजय राउत ने कहा कि यह बात पब्लिक डोमीन में होनी चाहिए कि आखिर सुशांत अंकिता का ब्रेकअपन कैसे हुआ.

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साल 2016 में सुशांत एमएस धोनी के प्रमोशन में व्यस्त थें. इसी बीच अंकिता और सुशांत के बीच ब्रेकअप की खबरें आने लगी. सुशांत और अंकिता एक-दूसरे से अलग हो गए. सुशांत और अंकिता करीब 7 साल तक रिलेशन में रहे थें.

 

लिटिल चैंप्स से लेकर लक्ष्मी बम तक: अमिका शैल

अभिनेत्री अमिका शैल, जो वर्तमान में SAB TV की बाल वीर रिटर्न्स ’टेलीविजन श्रृंखला में वायु परी के किरदार निभा रही  हैं; अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म लक्ष्मी बॉम्बे में एक महत्वपूर्ण किरदार में दिखाई देंगी. यह फ़िल्म जल्द ही डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज होने के लिए तैयार है.

राघव लॉरेंस द्वारा अभिनीत, फिल्म 2011 की तमिल फिल्म कंचना की एक आधिकारिक हिंदी रीमेक है, जिसमें लॉरेंस मुख्य भूमिका में थे.

 

बहुत कम लोगों को पता होगा कि एक अभिनेत्री होने के अलावा, अमिका शैल एक प्रशिक्षित गायिका हैं और देश के शीर्ष 10 YouTube गायकों में शामिल हैं. पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के उत्तरपारा में जन्मी और पली-बड़ी; मनोरंजन उद्योग के साथ अमिका ने अपना पहला ब्रश जब 9 साल की उम्र में हुआ . जब उन्होंने लिटिल चैंप्स ’ मे गाना गाया. उन्होंने माही गिल-नाना पाटेकर स्टारर बॉलीवुड फिल्म ‘ वेडिंग एनिवर्सरी ’के लिए भी गाना गाया था.

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इस अवसर पर टिप्पणी करते हुए, अमिका ने कहा, “मैं अक्षय कुमार, कियारा आडवाणी, तुषार कपूर, शरद केलकर, आदि जैसे उम्दा अभिनेताओं के साथ एक स्क्रीन साझा करने के लिए बहुत खुश हूं, हालांकि फिल्म में मेरे चरित्र की एक सीमित उपस्थिति है,पर इसका दर्शकों पर एक स्थायी प्रभाव देखने मिलेगा. मुझे यकीन है कि डिज्नी प्लस हॉटस्टार के माध्यम से फिल्म बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचेगी. ”

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गायिका बनी अभिनेत्री ने कलर्स टीवी श्रृंखला ‘उड़ान’में अपना पहला अभिनय असाइनमेंट हासिल किया. जिसके बाद वह स्टार प्लस श्रृंखला ‘दिव्य द्रष्टि ’ में भी एक भूमिका में नज़र आई.

“एक गायक होने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मैं अभिनय में हाथ आजमा सकती हूं. जिस समय मैंने सिंगिंग रियलिटी शो में भाग लिया, ठीक उसी समय से मैं टेलीविज़न इंडस्ट्री से बहुत आकर्षित थी. मैं स्वीकार करती हूं कि मैं एक गायक होने के लक्ष्य के साथ मुंबई आई थी, लेकिन अभिनय ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया. ‘उड़ान’ ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया और मुझे और अधिक जाने के लिए प्रेरित किया. जब मैंने सुना कि मुझे ‘लक्ष्मी बॉम्ब ’के लिए चुना गया है , मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था.

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यह एक सपने के सच होने जैसा था. जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मुझे पता चलता है कि यह लिटिल चैंप्स से लेकर लक्ष्मी बॉम्ब तक का एक शानदार सफर रहा है. मैं इसके लिए सर्वशक्तिमान को धन्यवाद देती हूं. मेरे पास पोस्ट-प्रोडक्शन चरण में दो अन्य पूर्ण परियोजनाएं हैं जो जल्द ही घोषित की जाएंगी ” अमिका ने बताया.

Crime Story : दोस्त का कत्ल

 सौजन्य- सत्यकथा 

मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर की एक तहसील है गोटेगांव. इस तहसील क्षेत्र में प्रसिद्ध धार्मिक

स्थल झोतेश्वर होने की वजह से छोटा शहर होने के बावजूद गोटेगांव खासा प्रसिद्ध है. गोटेगांव के इलाके में ही एक गांव है कोरेगांव.

8 दिसंबर, 2019 की सुबह कोरेगांव का रहने वाला खुमान ठाकुर झोतेश्वर पुलिस चौकी की इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री के पास आया. उस ने अंजलि को बताया कि उस के भाई का बड़ा लड़का आशीष 6 दिसंबर को किसी काम से घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा. उन्होंने उसे गांव के आसपास के अलावा सभी रिश्तेदारों के यहां तलाश किया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. उस ने आशीष की गुमशुदगी दर्ज कर उसे तलाशने की मांग की.

एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान से पूछा, ‘‘आप को किसी पर कोई शक हो तो बताओ.’’

खुमान के साथ आए उस के दामाद कृपाल ने बताया कि 6 दिसंबर को उस ने आशीष को उस के दोस्तों पंकज और सुरेंद्र के साथ खेतों की तरफ जाते देखा था. उस ने यह भी बताया कि आशीष के परिवार के लोगों ने जब पंकज और सुरेंद्र को बुला कर पूछताछ की तो वे इस बात से साफ मुकर गए कि आशीष उन के साथ था. इसलिए हमें उन पर शक हो रहा है.

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चौकी इंचार्ज अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान की शिकायत दर्ज कर इस घटना की सूचना तत्काल एसपी गुरुचरण सिंह, एसडीपीओ (गोटेगांव) पी.एस. बालरे और टीआई प्रभात शुक्ला को दे दी.

एसडीपीओ के निर्देश पर चौकी इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने कोरेगांव में पंकज और सुरेंद्र के घर दबिश तो दोनों घर पर ही मिल गए. उन दोनों से पुलिस चौकी में पूछताछ की गई तो पंकज और सुरेंद्र ने बताया कि हम तीनों दोस्त मछली मारने के लिए गांव से बाहर खेतों के पास वाले नाले पर गए थे.

मछली मारते समय नाले के पास से जाने वाली मोटरपंप की सर्विस लाइन से आशीष को करंट लग गया, जिस से उस की मौत हो गई.

 

उन्होंने बताया कि आशीष की इस तरह हुई मौत से वे दोनों घबरा गए. डर के मारे उन्होंने आशीष के शव को नाले के समीप ही गड्ढा खोद कर दफना दिया.

पुलिस को पंकज और सुरेंद्र द्वारा गढ़ी गई इस कहानी पर विश्वास नहीं हुआ. उधर आशीष का छोटा भाई आनंद ठाकुर पुलिस से कह रहा था कि उस के भाई की हत्या की गई है.

मामला संदेहपूर्ण होने के कारण पुलिस ने गोटेगांव के एसडीएम जी.सी. डहरिया को पूरे घटना क्रम की जानकारी दे कर दफन की गई लाश को निकालने की अनुमति ली.

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उसी दिन गोटेगांव एसडीपीओ पी.एस. बालरे, फोरैंसिक टीम सहित दोनों आरोपियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. आरोपियों की निशानदेही पर कोरेगांव के नाले के पास खेत में बने एक गड्ढे से लाश निकाली गई.

आशीष के पिता ने लाश के हाथ पर बने टैटू को देखा तो वह फूटफूट कर रोने लगा. लाश के गले पर घाव और खून का निशान था. इस से स्पष्ट हो गया कि आशीष की मौत करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए जबलपुर मैडिकल कालेज भेज दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि आशीष की मौत बिजली के करंट से नहीं, बल्कि किसी धारदार हथियार से गले पर किए गए प्रहार से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि आशीष की हत्या पंकज और सुरेंद्र ने ही की है.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से जब सख्ती से पूछताछ की तो पंकज जल्दी ही टूट गया. उस ने पुलिस के सामने आशीष की हत्या करने की बात कबूल ली. आशीष ठाकुर की हत्या के संबंध में उस ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह अवैध संबध्ाोंं पर गढ़ी हुई निकली—

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आदिवासी अंचल के छोटे से गांव कोरेगांव के साधारण किसान पुन्नूलाल का बड़ा बेटा आशीष और गांव के ही जगदीश ठाकुर के बेटे पंकज की आपस में गहरी दोस्ती थी. हमउम्र होने के कारण दोनों का दिनरात मिलनाजुलना बना रहता था. आशीष पंकज के घर आताजाता रहता था. पंकज ठाकुर की शादी हो गई थी और पंकज की पत्नी अनीता (परिवर्तित नाम) से भाभी होने के नाते आशीष हंसीमजाक किया करता था.

एक लड़की के जन्म के बाद भी अनीता का बदन गठीला और आकर्षक था. अनीता आशीष की शादी की बातों को ले कर उस से मजाक किया करती थी. 24 साल का आशीष उस समय कुंवारा था. वह अनीता की चुहल भरे हंसीमजाक का मतलब अच्छी तरह समझता था. देवरभाभी के बीच होने वाली इस मजाक का कभीकभार पंकज भी मजा ले लेता था.

दोस्तों के साथ मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देख कर आशीष के मन में अनीता को ले कर वासना का तूफान उठने लगा था. इसी के चलते वह अनीता से दैहिक प्यार करने लगा. उसे सोतेजागते अनीता की ही सूरत नजर आने लगी थी.

पंकज का परिवार खेतीकिसानी का काम करता था. घर के सदस्य दिन में अकसर खेतों में काम करते थे. इसी का फायदा उठा कर आशीष पंकज की गैरमौजूदगी में अनीता से मिलने आने लगा.

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करीब 2 साल पहले सर्दियों की एक दोपहर में आशीष पंकज के घर पहुंचा तो अनीता की 2 साल की बेटी सोई हुई थी और अनीता नहाने के बाद घर की बैठक पर कपड़े बदल रही थी.

अनीता के खुले हुए अंगों और उस की खूबसूरती को देखते ही आशीष के अंदर का शैतान जाग उठा. वह घर की बैठक के एक कोने में पड़ी चारपाई पर बैठ गया और अनीता से इधरउधर की बातें करने लगा.

बातचीत के दौरान जैसे ही अनीता उस के पास आई, उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

आशीष के बंधन में जकड़ी अनीता ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, छोड़ो, कोई देख लेगा.’’

इस पर आशीष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘भाभी, मैं तुम से प्यार करता हूं तो डरना क्या.’’

अनीता कुछ शरमाई तो आशीष ने उसे अपने सीने से दबाते हुए अपने होंठे उस के होंठों पर रख दिए. देखते ही देखते आशीष के कृत्य की इस चिंगारी से उठी वासना की आग ने अनीता को भी अपने आगोश में ले लिया.

 

आपस की हंसीमजाक से शुरू हुआ प्यार का यह सफर वासना के खेल में बदल गया. अनीता अपना सब कुछ आशीष को सौंप चुकी थी. अब जब भी पंकज के घर के लोग काम के लिए निकल जाते, आशीष अनीता के पास पहुंच जाता और दोनों मिल कर अपनी हसरतें पूरी करते.

एक बार पंकज ने आशीष को अनीता के साथ ज्यादा नजदीकी से बात करते देख लिया, तब से उस के दिमाग में शक का कीड़ा बैठ गया. उस ने अनीता को आशीष से दूर रहने की हिदायत दे कर आशीष से इस बारे में बात की तो वह दोस्ती की दुहाई देते हुए बोला, ‘‘तुम्हें गलतफहमी हुई है, मैं तो भाभी को मां की तरह मानता हूं.’’

लेकिन प्यार के उन्मुक्त आकाश में उड़ने वाले इन पंछियों पर किसी की बंदिश और समझाइश का कोई असर नहीं पड़ा. आशीष और अनीता के प्यार का खेल बेरोकटोक चल रहा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, दोनों अपनी जिस्मानी भूख मिटा लेते थे.

 

पंकज भी अब पत्नी अनीता पर नजर रखने लगा था. पंकज अकसर सुबह को खेतों में काम के लिए निकल जाता और शाम को ही वापस आता था. लेकिन एक दिन जब वह दोपहर में ही घर लौट आया तो अपने बिस्तर पर आशीष और अनीता को एकदूसरे के आगोश में देख लिया.

अपनी पत्नी को पराए मर्द की बांहों में देख कर उस का खून खौल उठा. आशीष तो जल्दीसे अपने कपड़े ठीक कर के वहां से चुपचाप निकल गया, मगर क्रोध की आग में जल रहे पंकज ने अपनी पत्नी अनीता की जम कर धुनाई कर दी.

पंकज ने बदनामी के डर से यह बात किसी को नहीं बताई. वह गुमसुम सा रहने लगा और आशीष से मिलनाजुलना भी कम कर दिया. अब उस ने गांव के एक अन्य युवक सुरेंद्र ठाकुर से दोस्ती कर ली. इसी दौरान आशीष की शादी भी हो गई और उस ने अनीता से मिलनाजुलना बंद कर दिया. लेकिन पंकज के दिल में बदले की आग अब भी जल रही थी.

उस की आंखों में आशीष और अनीता का आलिंगन वाला दृश्य घूमता रहता था. उस के मन में हर समय यही खयाल आता था कि कब उसे मौका मिले और वह आशीष का गला दबा दे.

पंकज सोचता था कि जिस दोस्त के लिए वह जान की बाजी लगाने को तैयार रहता, उसी दोस्त ने उस की थाली में छेद कर दिया.

6 दिसंबर के दिन योजना के मुताबिक सुरेंद्र ठाकुर आशीष को मछली मारने के लिए गांव के बाहर नाले पर ले गया. नाले के पास ही पंकज ठाकुर अपने खेतों पर उन दोनों का इंतजार कर रहा था.

 

उस ने आशीष और सुरेंद्र को नाले में मछती मारते हुए देखा तो वह खेत पर रखे चाकू को जेब में छिपा कर नाले के पास आ गया.

आशीष नाले के पानी में कांटा डाले मछली पकड़ने में तल्लीन था. तभी पंकज ने मौका पा कर आशीष के गले पर चाकू से धड़ाधड़ कई वार किए तो आशीष छटपटा कर जमीन पर गिर गया.

कुछ देर में उस ने दम तोड़ दिया. यह देख पंकज ने अपने खेतों से फावड़ा ला कर गड्ढा खोदा और सुरेंद्र की मदद से आशीष को दफना दिया. चाकू और फावड़े को इन लोगों ने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिया. फिर कपड़ों पर लगे खून के छींटों को नाले में धोया और दोनों अपनेअपने घर चले गए.

 

हत्या के बाद दोनों सोच रहे थे कि उन्हें किसी ने नहीं देखा. लेकिन आशीष के जीजा कृपाल ने सुरेंद्र और आशीष को नाले की तरफ जाते देख लिया था. इसी आधार पर घर वालों ने सुरेंद्र और पंकज पर संदेह होने की बात पुलिस को बताई थी. पंकज ने बिना सोचेसमझे बदले की आग में अपने दोस्त पंकज का कत्ल तो कर दिया, लेकिन कानून की पकड़ से नहीं बच सका.

पंकज और सुरेंद्र के इकबालिया बयान के आधार पर आशीष ठाकुर की हत्या के आरोप में गोटेगांव थाने में भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहम मामला कायम कर उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

जवानी के जोश में अपने दोस्त की पत्नी से अवैध संबंध बनाने वाले आशीष को अपनी जान गंवानी पड़ी तो पंकज ठाकुर और सुरेंद्र ठाकुर को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ विजेता बबीता रावत: अपने दम पर बंजर धरती में उगाया सोना

24 साल की बबीता रावत से जब मैं फोन पर बात कर रहा था, तब उन का आत्मविश्वास देखने लायक था. आज एक तरफ जब पहाड़ों की मुश्किल जिंदगी से तंग आ कर वहां की ज्यादातर नौजवान पीढ़ी मैदानी शहरों में छोटीमोटी नौकरी कर के जैसेतैसे गुजारा कर रही है, वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के गांव सौड़ उमरेला की रहने वाली इस लड़की ने अपनी मेहनत और लगन से बंजर धरती को भी उपजाऊ बना दिया है और यह साबित कर दिया है कि सीमित साधनों का अगर दिमाग लगा कर इस्तेमाल किया जाए, तो कमाई तो कहीं भी की जा सकती है.

बबीता रावत के इस कारनामे को उत्तराखंड सरकार ने भी सराहा है. दरअसल, राज्य सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में बेहतरीन काम करने वाली महिलाओं का चयन प्रतिष्ठित ‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ के लिए किया था. इस सिलसिले में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्या ने वर्ष 2019-20 के लिए दिए जाने वाले इन पुरस्कारों के नामों की पहले घोषणा की थी और उस के बाद 8 अगस्त, 2020 को इन महिलाओं को वर्चुअल माध्यम से पुरस्कृत किया गया था.

 

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‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ के लिए चयनित महिलाओं को 21,000 की धनराशि और प्रशस्तिपत्र दिया जाता है, जबकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 10,000 हजार की धनराशि और प्रशस्तिपत्र दिया जाता है.

बबीता रावत का चयन बंजर भूमि को उपजाऊ बना कर उस में सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मशरूम उत्पादन के जरीए आत्मनिर्भर मौडल को हकीकत में बदलने के लिए किया गया था.

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बबीता रावत ने बताया, “मुझे इस पुरस्कार में हिस्सा लेने की प्रेरणा बाल विकास कार्यालय से मिली. एक दिन वहां से फोन आया कि अपने कागज जमा कर लीजिए, अखबारों की कटिंग भी इकट्ठा कर लीजिए. छोटे लैवल पर जितने भी पुरस्कार मिले हैं, उन का ब्योरा एकत्र कर लीजिए. ऐसे मैं ने अपना नाम इस पुरस्कार के लिए दर्ज कराया.”

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बबीता रावत की कहानी पहाड़ के लोगों के लिए प्रेरणादायी है. उन्होंने थोड़ी सी जमीन पर खेतीबारी शुरू की और धीरेधीरे अपने परिवार की आर्थिक तंगी को खत्म किया. उन की मेहनत का नतीजा है कि आज उन की रुद्रप्रयाग के कोर्ट इलाके में एक छोटी सी कैंटीन भी है, जिस में लोगों के लिए चायनाश्ता और खाना मिलता है. उस कैंटीन को बबीता रावत की उन से बड़ी बहन और पिता संभाल रहे हैं.

आज से कुछ साल पहले तक बबीता रावत के पिताजी सुरेंद्र सिंह रावत पर अपने परिवार के कुल 9 सदस्यों के भरणपोषण की जिम्मेदारी थी. 6 बेटियों और एक बेटे के पिता सुरेंद्र रावत की साल 2009 में अचानक तबीयत खराब होने से परिवार के सामने आर्थिक तंगी आ खड़ी हुई थी. तब परिवार की गुजरबसर पारंपरिक खेतीबारी से किसी तरह हो रही थी. उस समय बबीता महज 13 साल की थीं, पर ऐसे विकट हालात में भी बबीता ने हार नहीं मानी और खेतों में हल भी चलाया. दिन गुजरते गए और बबीता का ज्यादातर समय खेतों में ही बीतने लगा. एक समय ऐसा भी आया जब बबीता हर रोज सुबहसवेरे अपने खेतों में हल चलाने के बाद 5 किलोमीटर दूर पैदल इंटर कालेज, रुद्रप्रयाग में पढ़ाई करने के लिए जाती थीं और साथ में दूध भी बेचने के लिए ले जाती थीं, जिस से परिवार का खर्च चलने लगा था.

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धीरेधीरे बबीता रावत ने सोचा कि पारंपरिक खेती में मेहनत ज्यादा है और मुनाफा कम, इसलिए उन्होंने सब्जियों का उत्पादन भी शुरू किया और पिछले कुछ सालों से वे सीमित संसाधनों में मशरूम उत्पादन का भी काम कर रही हैं.

बबीता रावत ने बताया, “मैं किराए की 15-20 नाली जमीन (एक नाली बराबर 240 गज) पर ओएस्टर मशरूम का उत्पादन करती हूं और साथ ही दूसरी फसलें भी लेती हूं, जिस से मुझे अच्छी आमदनी हो जाती है. बस, एक समस्या है कि हमें मशरूम के बीज के लिए देहरादून या दिल्ली या फिर दूर की किसी जगह का मुंह ताकना पड़ता है. इस से हमारा समय बरबाद होता है और बीज मंगवाना भी महंगा पड़ता है. लोकल में यह सुविधा बिलकुल नहीं है.”

 

आप के मशरूम की खपत कहां होती है? इस सवाल के जवाब में बबीता रावत ने बताया, “हमारे ज्यादातर मशरूम रुद्रप्रयाग में ही रह रहे सरकारी मुलाजिम खरीद लेते हैं. इस के अलावा होटल और रैस्टौरैंट वाले भी इन्हें मंगवा लेते हैं.”

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बबीता रावत ने एक और अहम जानकारी दी, “मैं ने भारतीय स्टेट बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान, रुद्रप्रयाग से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया है. लौकडाउन के दौरान मैं ने 15 से 20 लोगों को मशरूम उत्पादन और सब्जी उत्पादन का प्रशिक्षण दे कर उन का स्वरोजगार शुरू कराया है.”

इस तरह हिंदी में एमए की डिगरीधारी बबीता रावत ने खेतीकिसानी कर के अपने परिवार को आर्थिक तंगी से बाहर निकालने का जो हिम्मती काम किया है, वह वाकई शानदार है. आज कोरोना महामारी के बुरे दौर में लौकडाउन के दौरान जहां न जाने कितने लोगों का रोजगार छिन गया है, वहीं बबीता रावत ने अपने खेतों में मटर, भिंडी, शिमला मिर्च, बैगन, गोभी समेत मशरूम जैसी नाजुक सब्जी का उत्पादन कर के दूसरों के सामने नई मिसाल पेश की है.

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