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Crime Story: गजाला के प्यार में डूबा शाहिद

10जुलाई, 2020 की सुबह आगरा के महात्मा दूधाधारी इंटर कालेज के पास नगला कमाल के रास्ते पर एक युवक की लाश पड़ी थी. सूचना मिलते ही मौके पर गांव वाले पहुंच गए, भाजपा नेता उदय प्रताप भी वहां पहुंचे. उन्होंने इस की सूचना थाना खेरागढ़ पुलिस को दे दी.लाश पड़ी होने की सूचना पा कर थानाप्रभारी अवधेश अवस्थी पुलिस टीम के मौके पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने फौरेंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 28 से 30 वर्ष के बीच रही होगी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे. कपड़ों की तलाशी ली गई तो उस की पैंट की जेब में आधार कार्ड मिला.

आधार कार्ड मृतक का ही था. उस में उस का नाम शाहिद खान लिखा था. पता कटघर ईदगाह, आगरा लिखा था. इस के अलावा कोई साक्ष्य नहीं था. आधार कार्ड को जाब्ते में लेने के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. फिर थाने वापस लौट आए.पुलिस ने इस की सूचना मृतक के घरवालों को दे दी. शाहिद की हत्या की खबर मिलते ही घर में हाहाकार मच गया. घर वाले थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी अवस्थी ने उन से पूछताछ की तो पता चला मृतक शाहिद खान खुद का टैंपो चलाता था. 4 साल से वह पत्नी गजाला और 2 बच्चों के साथ रैना नगर, धनौली में किराए पर रह रहा था. उन से पूछताछ के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

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थानाप्रभारी अवधेश अवस्थी मृतक के घर गए तो घर पर शाहिद की पत्नी गजाला मिली. पूछने पर उस ने बताया कि एक दिन पहले यानी 9 जुलाई की शाम शाहिद टैंपो ले कर निकला था, तब से वापस नहीं आया.
थाने लौटने के बाद थानाप्रभारी अवस्थी ने मामले पर विचार किया कि कहीं शाहिद की हत्या की वजह लूटपाट तो नहीं है, क्योंकि उस का टैंपो भी नहीं मिला था. लेकिन अगले ही पल दिमाग में आया कि हत्या लूट के लिए की गई होती तो लुटेरे लाश को इतना दूर क्यों फेंकते.इंसपेक्टर अवस्थी ने दिमाग पर जोर दिया तो उन्हें शाहिद की पत्नी गजाला की हरकतें कुछ अटपटी लगीं. जब वह शाहिद के घर गए थे तो गजाला घबराई हुई थी. वह रो तो रही थी लेकिन उस की आंखें बराबर इधरउधर चल रही थीं. वह बराबर पुलिस की गतिविधि पर नजर रख रही थी.

थानाप्रभारी को गजाला पर शक हुआ तो उन्होंने उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर था, जिस पर वह रोजाना बातें करती थी. वह नंबर रैना नगर के ही रहने वाले राहुल हुसैन का था.इस के बाद सर्विलांस टीम की मदद ली गई. सर्विलांस टीम ने जांच की तो पता चला घटना वाले दिन 9 जुलाई की शाम को राहुल हुसैन शाहिद खान के साथ था. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने 12 जुलाई को राहुल हुसैन को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के दोस्त इमरान को भी उठा लिया. दोनों से पूछताछ के बाद गजाला को उस के घर से गिरफ्तार किया गया. तीनों से जब पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

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30 वर्षीय शाहिद खान आगरा के खेरागढ़ के कटघर ईदगाह (रकाबगंज) मोहल्ले में रहने वाले हबीब खान का बेटा था. 2 भाइयों में सब से बड़ा शाहिद अपना खुद का टैंपो चलाता था.8 साल पहले शाहिद का निकाह रैना नगर, धनौली (मलपुरा) में रहने वाली गजाला के साथ हुआ था. शाहिद गजाला जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर बहुत खुश था. जबकि सांवले रंग के साधारण शौहर शाहिद से गजाला खुश नहीं थी. दरअसल गजाला ने अपने मन में जिस तरह शौहर की कल्पना की थी, शाहिद वैसा नहीं था. गजाला ने सपना संजो रखा था कि उस का शौहर हैंडसम और सुंदर होगा. जबकि शाहिद उस की अपेक्षाओं के बिलकुल विपरीत था.

गजाला अपने हिसाब से उसे मौडर्न बनाने की कोशिश भी करती, शाहिद फैशनेबल कपड़े पहनता भी तो उस पर वे जंचते नहीं थे, वह रंगरूप से मात खा जाता था. गजाला मन मसोस कर रह जाती. इसी चक्कर में वह कुंठित और चिड़चिड़ी हो गई. वह बातबात में शाहिद से झगड़ने लगती थी. उस की यह आदत सी बन गई थी.पतिपत्नी के रोजरोज के झगड़ों से शाहिद के घरवाले परेशान रहने लगे. इस सब के चलते गजाला एक बेटा और एक बेटी की मां बन गई. 4 साल पहले शाहिद रैना नगर, धनौली में ससुराल के पास किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.शाहिद सुबह टैंपो ले कर निकल जाता तो देर रात घर लौटता था. उस के चले जाने के बाद चंचल हसीन और खूबसूरत गजाला को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. उस का मन नहीं लगता तो वह बनसंवर कर घर से निकल कर ताकझांक करने लगती. चूंकि पास में ही उस का मायका था, इसलिए वह कुछ देर के लिए मायके चली जाती थी.

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गजाला भले ही 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन उस की महत्त्वाकांक्षा उसे चंचल बना रही थी, मर्यादा हनन करने को उकसा रही थी.रैना नगर में ही राहुल हुसैन रहता था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. देखने में स्मार्ट और अविवाहित. गजाला जब उस के मोहल्ले में पति के साथ रहने आई, तभी उस की नजर गजाला पर पड़ चुकी थी. उसे गजाला का रूपसौंदर्य पहली नजर में ही भा गया था.गजाला राहुल से परिचित थी. शाहिद के घर न होने पर राहुल उसके पास पहुंचने लगा. गजाला को उस से बात करना अच्छा लगता था. चंद मुलाकातों में दोनों के बीच काफी नजदीकियां हो गईं. राहुल और गजाला में हंसीमजाक भी होने लगी. गजाला राहुल के मजाक का बिलकुल बुरा नहीं मानती थी. राहुल बातूनी था, इसलिए वह भी उस से खूब बतियाती थी. दरअसल गजाला के दिल में राहुल के प्रति चाहत पैदा हो गई थी.
राहुल जब भी उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करता तो गजाला के शरीर में तरंगें उठने लगती थीं. 2 बच्चों की मां बनने के बाद गजाला का गदराया यौवन और रसीला हो गया था. आंखों में मादकता छलकती थी.

एक दिन राहुल ने उस के हुस्न और जिस्म की तारीफ की तो वह गदगद हो गई. फिर वह बुझे मन से बोली, ‘‘ऐसी खूबसूरती किस काम की, जिस पर शौहर ध्यान ही न दे.’’राहुल को गजाला की ऐसी ही किसी कमजोर नस की ही तलाश थी. जैसे ही उस ने पति की बेरुखी का बखान किया, राहुल ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘तुम क्यों चिंता करती हो, हीरे की परख जौहरी ही करता है. आज से तुम्हारे सारे दुख मेरे हैं और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी.’’राहुल की लच्छेदार बातों ने गजाला का मन मोह लिया. वह उस की बातों और व्यक्तित्व की पूरी तरह कायल हो गई. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. मन बेकाबू होने लगा तो गजाला ने थरथराते होठों से कहा, ‘‘अब तुम जाओ. उन के आने का समय हो गया है. कल दोपहर में आना, मैं इंतजार करूंगी.’’

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राहुल ने वह रात करवटें बदलते काटी. सारी रात वह गजाला के खयालों में डूबा रहा. सुबह वह देर से जागा. दोपहर तक सजसंवर कर वह गजाला के घर पहुंचा. गजाला उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने उस दिन खुद को विशेष ढंग से सजायासंवारा था. राहुल ने पहुंचते ही गजाला को अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘आज तो तुम हूर लग रही हो.’’‘‘थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.’’ गजाला ने मुसकरा कर कहा, ‘‘कम से कम दरवाजा तो बंद कर लो, वरना किसी आनेजाने वाले की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.’’

राहुल ने फौरन कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बांहें फैलाईं तो गजाला उन में समा गई. राहुल के तपते होंठ गजाला के नर्म और सुर्ख अधरों पर जम गए. इस के बाद एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा सब कुछ जल कर स्वाहा हो गया.अवैध संबंधों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर रुकने का नाम नहीं लिया. ऐसी बातें समाज की नजरों से कब तक छिपी रह सकती हैं. शाहिद की गैरमौजूदगी में राहुल का उस के कमरे पर बने रहना पड़ोसियों के मन में शक पैदा कर गया. किसी पड़ोसी ने यह बात शाहिद के कान में डाल दी. यह सुन कर उस पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा.

बीवी के बारे में ऐसी बात सुन कर शाहिद परेशान हो गया. उस का काम से मन उचट गया. बड़ी मुश्किल से शाम हुई तो वह घर लौट आया. गजाला को पता नहीं था कि उस के शौहर को उस की आशनाई के बारे में पता चल गया है. वह खनकती आवाज में बोली, ‘‘क्या बात है, आज बड़ी जल्दी घर लौट आए.’’
‘‘सच जानना चाहती हो तो सुनो. तुम जो राहुल के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो, मुझे सब पता चल गया है.’’ शाहिद ने बड़ी गंभीरता से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना कुछ छिपाए सब कुछ सचसच उगल दो. उस के बाद मैं तुम्हें बताऊंगा कि तुम्हारा क्या करना है.’’गजाला शौहर की बात सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक न एक दिन शाहिद को सब पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा उतर गया. वह घबराए स्वर में कहने लगी, ‘‘जिस ने भी तुम से मेरे बारे में यह सब कहा है, वह झूठा है. लोग हम से जलते हैं, इसलिए किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं.’’

गजाला ने जान लिया था कि अब त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, ‘‘मैं कल भी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हूं. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर मेरी ओर देखने की हिम्मत भी नहीं कर सकता. ‘‘तुम मुझ पर यकीन करो. तुम ने जो कुछ सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं, वह मुझे हासिल नहीं कर सके तो हमारे बीच आग लगा कर हमारा जीना हराम करना चाहते हैं.’’

आखिरकार गजाला की बातों से शाहिद को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने गजाला पर यकीन कर लिया. घर में कुछ दिन और शांति बनी रही. फिर एकदो लोगों ने टोका, ‘‘शाहिद, तुम दिन भर बाहर रहते हो, देर रात को लौटते हो. इस बीच गजाला किस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है, तुम्हें क्या मालूम, अब भी समय है, चेत जाओ वरना ऐसा न हो कि किसी दिन तुम्हें पछताना पड़े.’’

शाहिद को उन की बात समझ में आ गई. वह जान गया कि धुंआ तभी उठता है, जब कहीं आग लगती है. उस ने गजाला को चेतावनी दी कि अब कभी उस ने कोई गलत काम किया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. अच्छा हुआ भी नहीं. कोई न कोई गजाला की खबर उस तक पहुंचा देता था, इस से आजिज आ कर शाहिद गजाला के साथ झगड़ा और मारपीट करने लगा.

घटना से 6 दिन पहले गजाला की बहन तनु की शादी थी. शाहिद ने शादी के बाद भी गजाला को पीटा. गजाला पति से परेशान हो चुकी थी. उस ने फोन पर रोतेरोते यह बात राहुल को बताई. वैसे भी गजाला राहुल से निकाह कर के उस के साथ रहने का मन बना चुकी थी. राहुल भी यही चाहता था. ऐसे में राहुल ने शाहिद को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. गजाला को उस ने बताया तो उस ने भी अपनी सहमति दे दी. शाहिद की हत्या करने के लिए राहुल ने अपने दोस्त इमरान को भी शामिल कर लिया. वह उसी मोहल्ले में रहता था.

9 जुलाई, 2020 की देर शाम को राहुल ने शाहिद का टैंपो भाड़े पर बुक किया और उसे सब्जी मंडी बुलाया. वहां राहुल इमरान के साथ पहले से मौजूद था. शाहिद के वहां पहुंचने पर राहुल ने उसे कोल्ड ड्रिंक पिलाई, जिस में उस ने नशीली गोलियों का पाउडर मिला दिया था. कोल्ड ड्रिंक पी कर शाहिद
बेहोश हो गया. दोनों ने उसे टैंपो की पिछली सीट पर लिटा दिया. इमरान टैंपो चलाने लगा.
दोनों बेहोश हुए शाहिद को दूधाधारी इंटर कालेज के पास ले गए. वहां दोनों ने तेज धारदार चाकू से शाहिद का गला रेत कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश वहीं फेंक कर फरार हो गए.
लेकिन आखिरकार कानून की गिरफ्त में आ ही गए. राहुल और इमरान की निशानदेही पर पुलिस ने आलाकत्ल चाकू और शाहिद का टैंपो भी बरामद कर लिया. इस के बाद कानूनी लिखापढ़ी कर के गजाला, राहुल और इमरान को न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया़

नए रिश्ते -भाग 1: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा

रानो घर में दौड़ती हुई घुसी. बस्ता एक तरफ पटक कर वह सरला से लिपट गई. ‘‘दादी बूआ, दादी बूआ, आज हमें मम्मी मिली थीं. हमें मम्मी मिली थीं, दादी बूआ.’’

रानो बड़े उत्तेजित स्वर में बताती जा रही थी कि मम्मी ने उसे क्याक्या खिलाया, क्याक्या कहा.

सरला उस की बातें सुनती रही, उस के सिर और शरीर को सहलाती रही. न रानो के स्वर की उत्तेजना कम हुई थी और न ही सरला के शरीर पर उस के नन्हे हाथों की पकड़ ढीली पड़ी थी. वह अपनी समस्त शक्ति से दादी बूआ के शरीर से चिपटी रही जैसे वही एकमात्र उस का सहारा थी. कुछ ही देर में रानो की उत्तेजना आंसू बन कर टपकने लगी.

‘‘मम्मी घर क्यों नहीं आतीं, दादी बूआ? वे दूसरे घर में क्यों रहती हैं? सब की मम्मी घर में रहती हैं, मेरी मम्मी क्यों नहीं रहतीं? मैं भी यहां नहीं रहूंगी, मैं भी मम्मी के पास जाऊंगी, दादी बूआ.’’

रानो का रोना बढ़ता ही जा रहा था. सरला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे कैसे चुप कराए. वह उसे चिपटाए हुए उस का शरीर सहलाती रही. रानो की व्यथा उस की स्वयं की व्यथा बनती जा रही थी. उस की आंखें रहरह कर भरी आ रही थीं. रानो की मम्मी घर पर क्यों नहीं रहतीं, यह क्या वह स्वयं ही समझ सकी थी?

जब वह बूढ़ी होने पर यह बात नहीं जान पाई थी कि रानो की मम्मी उस के साथ क्यों नहीं रहती तो बेचारी रानो ही कैसे समझ सकती थी. वह और रानो तो अल्पबुद्धि थे, यह सब नहीं समझ सकते थे, परंतु प्रदीप तो अपने को बड़ा बुद्धिमान समझता था. क्या उस के पास ही इस बात का कोई उत्तर था और नंदा ही क्या इस का उत्तर जानती थी? वे दोनों समझते हैं कि वे जानते हैं, पर शायद वे भी नहीं जानते कि वे दोनों मिल कर क्यों नहीं रह सके.

वह रानो को कस कर छाती में दबाए रही, जैसे इसी से वह उसे दुनिया के सारे दुखों से बचा लेगी. उस के हाथों के नीचे नन्हा सा शरीर सुबकता हुआ हिचकोले ले रहा था. वह मन ही मन अपना सारा स्नेह और ममता रानो पर उड़ेल रही थी. धीरेधीरे रानो शांत होने लगी और कुछ ही देर में वह बचपन की शांत गहरी नींद में खो गई. उस का आंसुओं की लकीरों से भरा मासूम चेहरा वेदना की साकार मूर्ति लग रहा था.

जिस नन्ही सी कोमल कली को मां की छाया में पलना चाहिए था, उसे मांविहीना कर के कड़ी धूप में झुलसने को छोड़ दिया गया था.

सरला किचन की टेबल पर सब्जी काटने लगी. मन बहुत सी उलझी हुई गुत्थियों में उलझने लगा.

सत्य क्या है, कौन जान सकता है? वह जीवन में बहुत सी कमियों को झेलती रही थी. उस ने विवाह नहीं किया था. एक छोटी नौकरी के चक्कर में कितने ही लड़कों को न कर दिया था. बाद में मातापिता की मृत्यु के बाद वह इन अभावों को सहती हुई अकेली जीवन व्यतीत करती रही थी. परंतु नंदा को तो सबकुछ मिला था – एक स्वस्थ, सुंदर पति तथा फूल सी प्यारी बिटिया. उस ने किस तरह, कैसे उन्हें हाथ से निकल जाने दिया, क्या उस के लिए पति तथा पुत्री का कोई महत्त्व नहीं था? कुछ तो होगा बहुत ही बड़ा, बहुत ही महत्त्वपूर्ण, जो इन अभावों की पूर्ति कर सका होगा.

वह तो अपने पतिविहीन तथा संतानहीन जीवन को एक यातना समझ कर जी रही थी, परंतु नंदा के लिए इन दोनों का होना ही शायद यातना बन गया था, तभी वह अपने खून और जिगर के टुकड़े को छोड़ कर जा सकी थी. अन्य दिनों की तरह वह आज भी इस प्रश्न को टटोलती रही, पर कोई उत्तर न पा सकी.

प्रदीप आ गया था.

‘‘रानो कहां है, बूआ? दिखाई नहीं दे रही, क्या बाहर खेलने गई है?’’

‘‘सो रही है.’’

‘‘इस समय? तबीयत तो ठीक है?’’ प्रदीप चिंतातुर हो उठा.

‘‘तबीयत तो ठीक है पर उस का मन ठीक नहीं है,’’ बूआ की बात सुन कर प्रदीप प्रश्नचिह्न बना उसे देखता रहा.

‘‘आज उसे उस की मम्मी मिली थी.’’

‘‘क्या नंदा यहां आई थी?’’

‘‘नहीं. वह स्कूल के बाद उसे मिली थी. रानो लौटी तो बेहद उत्तेजित थी. घर आ कर मम्मी को याद करती रोतेरोते सो गई.’’

‘‘कैसी नादानी है नंदा की. बच्ची से मिल कर उसे इस तरह हिला देने का क्या मतलब है? यह तय हो चुका है कि बिना मेरी अनुमति के वह रानो से मिलने की चेष्टा नहीं करेगी. उस ने ऐसा क्यों किया?’’ क्रोध के मारे प्रदीप की कनपटी की नसें फड़क रही थीं.

सरला चुपचाप बैठी सब्जी काटती रही. वह क्या उत्तर दे इन प्रश्नों का. या तो वह पागल है या ये लोग, प्रदीप और नंदा, जो प्राकृतिक सत्य को झुठला कर कोई दूसरा सत्य स्थापित करने की चेष्टा कर रहे हैं. मां अपनी कोखजायी बेटी से बिना अनुमति नहीं मिल सकती? यह कैसा और कहां का नियम है? क्या खून के रिश्तों को कानून के दायरे से घेरा जा सकता है?

प्रदीप दनदनाता हुआ बाहर जाने लगा.

बूआ ने रोका, ‘‘प्रदीप, कहां जा रहा है? चाय तो पी ले, सुबह का भूखाप्यासा है.’’

‘‘नहीं, बूआ, भूख नहीं है. जरा काम से जा रहा हूं.’’

‘‘मुझे पता है तू कहां जा रहा है. क्रोध कर के मत जा, प्रदीप. सब संबंध तोड़ देने के बाद तुझे क्रोध करने का हक भी कहां रह गया है?’’

‘‘नहीं बूआ, अब चुप रहने से काम नहीं चलेगा. वह एकदो बार पहले भी ऐसा कर चुकी है. खुशी से रह रही रानो से मिल कर वह उसे कितने दिनों के लिए तोड़ जाती है, रानो अपनी जिंदगी से दूर जा कर अलग हो जाती है. रानो के दिमाग पर इस का कितना गहरा और स्थायी असर पड़ सकता है. मैं ऐसा नहीं होने दे सकता.’’

कंगना रनौत के निशाने पर बॉलीवुड के ये सितारे, कहा- नहीं लेते ड्रग्स तो कराएं जांच

बॉलीवुड अदाकारा कंगना रनौत इन दिनों सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद से लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. कंगना अभी तक न जानें कई बॉलीवुड की मशहूर हस्तियों पर निशाना साधा है. कंगना रनौत इन दिनों खुलकर बॉलीवुड के सितारों पर बोल रही हैं.

कंगना ने हाल ही में बॉलीवुड के कुछ मशहूर नाम को अपने निशाने पर लिया है. कंगना ने रणबीर कपूर, रणवीर सिंह, विक्की कौशल और अयान मुखर्जी को अपने निशाने पर लिया है. अदाकारा ने अपने एक ट्विट में कहा है कि रणबीर कपूर, रणवीर सिंह और अयान मुखर्जी से अपील करती हूं कि वह अपने खून की जांच करवाएं.

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ऐसी अफवाह है कि आप लोग कोकिन का सेवन करते हैं. मैं चाहती हूं कि आप लोग अपने ऊपर लग रहे अफवाहों पर पूरी तरह से विराम दें. इस ट्विट के बाद लोग तरह –तरह के कमेंट करने शुरू कर दिए हैं. कंगना आए दिन बॉलीवुड के सच्चाई से लोगों को रुबरु कराती रहती हैं.

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वहीं कुछ लोग कंगना रनौत के ट्वीट को जमकर सराह रहे हैं. वहीं अश्विनी महाजन ने लिखा है कि कंगना रनौत चाहती हैं कि फिल्मी हस्तियों को अवार्ड देने से पहले उनका खून चेक किया जाए. वैसे ये सही डिमांड हैं कंगना रनौत कहती हैं कि एक ड्रग एडिक्ट कैसे हमारा रोल मॉडल हो सकता है.

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वहीं कंगना अपने सोशल मीडिया के जरिए लगातार सुशांत सिंह राजपूत को सपोर्ट करती नजर आ रही हैं. कंगना रनौत कई ट्विट में रिया चक्रवर्ती पर निशाना साधा है. साथ ही कंगना रनौत के निशाने पर बॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर करण जौहर भी आ चुके हैं.

दिलीप कुमार ने 12 दिन के अंदर ही खो दिया दूसरा भाई, एक की कोरोना से हुई मौत

कोरोनाकाल में बुरी खबरों का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. एक के बाद एक सदमें देखने को मिल रहे हैं. इसी बीच खबर आ रही है कि दिलीप कुमार के भाई एहसान खान का देहांत हो गया है. एहसान खान बीते कुछ समय से कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे थें.

दिलीप कुमार के छोटे भाई ने 2 सितंबर के रात 11 बजे मुंबई के लीलावती अस्पताल में अंतिम सांस ली है. एहसान खान की उम्र 90 वर्ष थी वह अपने दिल की बीमारी का इलाज करवा रहे थें बाद में वह कोरोना वायरस के चपेट में आ गए थें.

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इसके अलावा एहसान खान हाइपर टेंशन और अल्जाइमर जैसी खतरनाक बीमारी से पीड़ीत थें. एहसान खान से पहले उनके भाई असलम खान का भी देहांत हो चुका है. महज 12 दिनों में ही दिलीप कुमार ने अपने दोनों भाईयों को खो दिया है.

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दोनों भाइयों के जाने के बाद परिवार में शोक का माहौल है. सभी परिवार वाले इस बात से परेशान है.कुछ दिनों पहले दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो ने दिलीप कुमार के छोटे भाई की तबीयत को लेकर चिंता जताई थी.

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Dilip Kumar's most memorable performances

शायरा बानो ने एक इंटरव्यू में कहा था कि एहसान भाई की कोरोना वायरस से मौत हो गई इस बात से हमारा परिवार गमगीन है. वहीं एहसान भाई की हालत भी बहुत ज्यादा गंभीर है. हम नहीं जानते कि आगे क्या होगा. एहसान भाई के लिए सब लोग दुआ कर रहे हैं.

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आगे सायरा बानो ने कहा मुझे उम्मीद है वह जल्द ही ठीक होकर परिवार में वापस आएंगे. बता दें कि दिलीप कुमार अपने भाइयों के साथ नहीं रह रहे थें वह पूरी तरह से ठीक हैं.

एकाकी महिला के लिए गाली है करवाचौथ

कामिनी सिंगल मदर है. छह साल का सुमित उसके जीवन की इकलौती ख़ुशी है. करीब पांच साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में कामिनी के पति चल बसे. तब सुमित सिर्फ एक साल का हुआ था. यह तो अच्छा था कि दिल्ली जैसे शहर में उसके पति का खुद का फ्लैट था, वरना दुधमुए बच्चे के साथ विधवा औरत का किसी किराये के मकान में जिंदगी बसर करना तमाम खतरों से भरा हुआ है. कामिनी को अपना यह फ्लैट बहुत प्यारा है. उसके पति की निशानी है. बिल्डिंग के चौथे और अंतिम फ्लोर पर रहने वाली कामिनी को बिल्डिंग की छत को इस्तेमाल करने का अधिकार मिला हुआ है. कामिनी के बहुत सारे काम छत पर होते हैं. छत के एक हिस्से को उसने किचेन गार्डन का रूप दिया हुआ है, जिसमे खूब हरियाली रहती है. उसके करीब ही उसने एक छोटी टेबल, दो चेयर्स, रंगीन मोढ़े और एक टेबल फैन लगा कर नन्हा सा ऑफिस बना लिया है, जहाँ हरियाली के बीच बैठ कर वह अपने लैपटॉप पर ऑफिस का काम भी कर लेती है.

शनिवार और इतवार की उसकी शामें सुमित के साथ इसी छत पर बीतती हैं. नन्हा सुमित छत पर स्केटिंग करता है, माँ के साथ गार्डनिंग में हाथ बंटाता है, वह ऑफिस का काम करती है तो सुमित जमीन पर रंगों के साथ खेलते हुए पेंटिंग में मशगूल रहता है. कामिनी अच्छी कंपनी में कार्यरत है, अच्छा कमा लेती है, अपने बेटे को अच्छी परवरिश दे रही है और उसके साथ बहुत खुश है. नौकरीपेशा कामिनी ने बड़ी हिम्मत के साथ खुद को और अपने बेटे को सम्भाला हुआ है. वह अकेली है इस बात का अहसास उसको साल में सिर्फ एक बार होता है – करवाचौथ के दिन, जब शाम होते ही उसकी छत पर बिल्डिंग के सभी फ्लोर पर रहने वाली औरतें नख-शिख तक श्रृंगार करके, करवे की थालियां सजा कर, दिए और मिठाइयां ले कर ढोल-मजीरे के साथ उसकी छत पर आ धमकती हैं, और उसके सुकून में आग लगा देती हैं.

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दरअसल करवाचौथ का चाँद देख कर व्रत तोड़ने के लिए सभी महिलायें छत पर शाम से ही इकट्ठा होना शुरू कर देती हैं. तीन बजे से ही कुछ महिलायें छत के बीचोंबीच रंगोली बनाने लगती हैं. इसके लिए कभी-कभी तो कामिनी के छोटे से गार्डन में बड़ी मेहनत से उगाये गए फूलों की बलि भी चढ़ जाती है. फिर तमाम महिलायें रंगोली के गिर्द गोले में अपनी अपनी करवे की थालियां सजा देती हैं. जिनके पीछे बैठ कर ढोल मजीरे के साथ सुहागिनों के गीत गाये जाते हैं. करवे की कहानी सुनी जाती है. वैसे औरतों का ध्यान करवा की कहानी से ज़्यादा अन्य महिलाओं के वस्त्रों और आभूषणों पर होता है. व्रत के बावजूद चार बजे के बाद कोल्ड ड्रिंक पीने की इजाज़त पंडित ने दे रखी है, लिहाज़ा चार बजते ही धड़ाधड़ कोल्ड ड्रिंक की बोतलें खुलने लगती हैं. हंसी-मज़ाक, गाने-नाचने और अपनी नयी-नयी मंहगी ड्रेसेस, आभूषणों और श्रृंगारों के दिखावे के इस पब्लिक कार्यक्रम के साथ खाली बोतलें और उनके ढक्कन पूरी छत पर इधर-उधर फ़ैल जाते हैं. दीयों के तेल, मिठाइयों के डिब्बे और रैपर, माचिस की तीलियों और अन्य कचड़े से कामिनी की साफ़-सुथरी छत पर गन्दगी का ढेर लग जाता है, जिसको साफ़ करने की ज़िम्मेदारी कोई नहीं लेता. चाँद के निकलते ही तमाम औरतें व्रत तोड़ कर पकवानो से पेट भरने के लिए अपने-अपने किचेन की और दौड़ पड़ती हैं. गन्दगी से पटी छत पीछे छूट जाती है, जिसे कामिनी दूसरे, तीसरे और चौथे दिन तक साफ़ करती रहती है.

करवाचौथ का दिन कामिनी के लिए साल का सबसे मनहूस दिन होता है. यह दिन उसको गाली की तरह लगता है. उपेक्षा की सलाखों से उसका सीना छलनी होता है. घृणा की नज़रें उसको बेधती हैं. सुहागिनों के गीत उसके कानों में गर्म पिघले शीशे की तरह महसूस होते हैं. कभी-कभी तो वह गहरी उदासी और अवसाद में चली जाती है. करवाचौथ के रोज़ कामिनी पूरे दिन सुमित को ले कर अपने फ्लैट में कैद रहती है. उसको सख्त निर्देश हैं कि उस दिन उसकी छाया किसी सुहागिन पर ना पड़े. वह किसी को अपना चेहरा ना दिखाए क्योंकि वो एक विधवा है. लिहाज़ा उस दिन कितना भी ज़रूरी काम क्यों ना हो, वो अपने फ्लैट से बाहर ही नहीं निकलती है. नन्हे सुमित को लेकर बेडरूम में बंद रहती है. सुमित मचलता है – मम्मी आज हम छत पर क्यों नहीं जा रहे हैं? मम्मी ये सारी आंटियां हमारी छत पर गाना क्यों गा रही हैं? हम उनके पास क्यों नहीं जा सकते? मम्मी तुम इन आंटियों की तरह क्यों नहीं सजती हो? सुमित सैकड़ों सवाल कामिनी पर दागता है मगर कामिनी के पास उसके किसी सवाल को जवाब नहीं होता है. करवाचौथ का व्रत जो अब पब्लिक फंक्शन बन चुका है, पढ़ी लिखी और समझदार कामिनी को विचलित कर जाता है. उसको उसके अकेलेपन का अहसास दिलाता है.

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उसके मुँह पर तमाचा मार कर कहता है कि उसे श्रृंगार करने का हक नहीं है, गाने बजाने का हक नहीं है, खुश रहने का हक नहीं है, क्योंकि वह विधवा है. उपेक्षित है, तिरस्कृत है, इतनी मनहूस है कि उसकी छाया से भी लोग बचते हैं, डरते हैं. वह अपशकुन है, समाज पर काला धब्बा है. इन तमाम कडुवे शब्दों का दंश कामिनी बीते पांच सालों से झेल रही है. यहाँ तक कि उसकी अपनी माँ भी करवाचौथ के दिन या उसके आसपास कामिनी को कभी अपने घर नहीं आने देती है. कहती है उसके वहां होने से उनका और उनकी बहु का करवाचौथ का व्रत दूषित होगा. सास और ननद तो सालों से उससे मुँह मोड़ कर बैठी हैं. कामिनी को उसके पति की मृत्यु का उतना दुःख और कष्ट नहीं होता, जितना करवाचौथ का दिन तकलीफ देता है. इस दिन के गुजरने के बाद उसकी मानसिक स्थिति ठीक होने में कई दिन लग जाते हैं.

करवाचौथ को भारतीय महिलाओं का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है. धर्म ने यह दिन को उनके सजने-संवारने, नख-शिख तक बहुमूल्य वस्त्र-आभूषण धारण करने, नाचने-गाने और उत्सव मनाने के लिए भेंट किया है. करवाचौथ की तैयारियां महिलाएं कई सप्ताह पहले से करने लगती हैं. उस ख़ास दिन पर क्या पहनना है इसका चुनाव महीने भर पहले से होने लगता है. मंहगी साड़ी, लहंगे के साथ मैचिंग जड़ाऊ ब्लाउज़ सिलवाने के लिए दर्ज़ियों की दुकानों पर लाइन लग जाती है. हरी-लाल या मैचिंग चूड़ियों की खरीदारी, ज़ेवरों की खरीदारी के साथ कई दिन पहले ही ब्यूटीपार्लर भी बुक करवा लिए जाते हैं. औरतें उस रोज़ चाँद की दीदार की तैयारी में सुबह से ही ब्यूटी पार्लर्स में जमा होने लगती हैं. बालों को कलर करवाना, नेल पेंट करवाना, फेशियल-मेकअप और तमाम तरह के अन्य श्रृंगार औरतें करती हैं. पति का खूब पैसा करवाचौथ पर लुटाया जाता है और पति चूं भी नहीं करते क्योंकि धर्म ने बताया है कि ये सब उनकी ही लम्बी उम्र के लिए हो रहा है. लेकिन यही धर्म दूसरी ओर उन तमाम महिलाओं के साथ घोर अन्याय और बर्बरता कर रहा है जो विधवा हैं, अकेली हैं, तलाकशुदा हैं या किसी कारणवश जिनका विवाह नहीं हो पाता है. उनके लिए तो करवाचौथ एक गाली है. एक नश्तर है जो उनके सीने में गहरा ज़ख्म करता है. उनकी भावनाओं को छलनी करता है.

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एक-डेढ़ दशक पहले तक करवाचौथ का व्रत इतनी धूमधाम से नहीं मनाया जाता था. भारत के कुछ ही भागों में यह प्रचलित था, लेकिन इसका प्रचलन बढ़ाने का श्रेय हिंदी फिल्मों और टीवी सीरियलों को जाता है. धर्म, पूजा पाठ, व्रत त्यौहार का छौंक लगा कर जो मसाला रंगीन परदे पर परोसा जा रहा है, उसने भारतीय समाज में उन औरतों की ज़िंदगी हलकान कर रखी है जिनके पीछे कोई मर्द नहीं है. पहले भावनाओं को माध्यम बना कर कम्पनियाँ अपने उत्पाद बेचा करती थीं, अब धार्मिक कुरीतियों को हवा दे कर अपने विज्ञापन करती हैं और उनके विज्ञापनों के दम पर चलने वाले टीवी धारावाहिक समाज में अकेली नारी के दर्द को भुना कर अपना बाज़ार चलाते हैं. पराये मर्दों की गिद्ध दृष्टी से कदम-कदम पर बच कर और डर कर रहने वाली अकेली औरत की ज़िंदगी करवाचौथ मनाने वाली औरतों ने भी नरक कर रखी है. चाहे टीवी सीरियलों में देखें या आम जीवन में, इस त्यौहार की आड़ में सुहागिन औरतें विधवा औरतों को कटु वचन बोलते, घृणा और उपेक्षा से देखते और व्यंग बाण मारते ही दिखाई देती हैं. अपने कृत्यों से उन्हें हर वक़्त यह दिखाने और महसूस कराने की कोशिश होती रहती है कि तुम अकेली हो, तुम अपशकुन हो, तुम समाज का कलंक हो.

धर्म कुछ औरतों को ख़ुशी दे रहा है और कुछ औरतों को घोर दुख में डुबा रहा है. धर्म भेदभाव कर रहा है. धर्म औरत की ताकत को पुरुष से कमजोर रखने के लिए इन व्रतों और अनुष्ठानों के ज़रिये औरतों के बीच ही खाइयां बनाता है. उन्हें एकजुट नहीं होने देता. करवाचौथ के नाम पर सुहागिन औरतें विधवा औरतों का तिरस्कार कर रही हैं, उसको ये कह कर अपमानित कर रही हैं कि उनकी छाया पड़ना भी अपशकुन है. वह उनको घृणा और उपेक्षा की नज़रों से देखती हैं. यह सब उन्हें कौन सिखा रहा है? यह सब उन्हें धर्म और उसके ठेकेदार सिखा रहे हैं. क्या धर्म को ऐसा करना चाहिए? क्या धर्म किसी अबला को तकलीफ पहुंचाने के लिए होना चाहिए?

करवाचौथ को लेकर अन्य सवाल भी उठते हैं. क्या करवाचौथ का व्रत रखने वाली सारी औरतें सुहागन ही मरती हैं? क्या  करवाचौथ की व्रत रखने वाली सभी महिलाओं के पति लम्बी आयु प्राप्त करते हैं? ऐसा तो हरगिज़ नहीं है. पूरी श्रद्धा से व्रत करने वाली औरतें भी तो विधवा हो जाती है, ऐसे में करवाचौथ पति की लम्बी आयु की गारंटी कैसे हो गया? क्या धर्म का कोई ठेकेदार इस बात की गारंटी लेने को तैयार

होगा कि करवाचौथ जैसा व्रत करके पति की उम्र लंबी हो जाएगी? नहीं. तो क्या यह धर्म का फैलाया हुआ झूठ नहीं है?

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सवाल और भी हैं. अगर करवाचौथ जैसे व्रत से किसी की उम्र लम्बी हो सकती है तो ऐसा व्रत पति अपनी पत्नी के लिए क्यों नहीं रखते हैं? क्या वे नहीं चाहते कि उनकी पत्नी की उम्र लम्बी हो? इसका मतलब तो यह निकला कि वह अपनी पत्नी को प्रेम ही नहीं करते हैं. उनकी लम्बी उम्र की कामना नहीं रखते, बल्कि व्रत ना रख कर वो अपनी पत्नी को मारना चाहते हैं. ऐसे पति के लिए फिर क्यों व्रत रखना? क्या आज के युग में सब पति पत्निव्रता हैं? आज की अधिकतर महिलाओं की जिन्दगी घरेलू हिंसा के साथ चल रही है, जिसमें उनके पतियों का हाथ है. ऐसी महिलाओं का करवाचौथ का व्रत रखना कैसा रहेगा?

श्रीमती सरला सेठी 15 साल से विवाहित हैं. उनकी अपने पति से लगभग रोज़ लड़ाई होती है. पति की शाम को दारु पीने की आदत है. उसका बहुत सारा पैसा दारू में जाता है. इसी बात को लेकर आधी-आधी रात तक दोनों में गाली-गलौच होती रहती है.

किट्टी पार्टी में आने वाली श्रीमती सरोज की महीने में बीस दिन पति से बोलचाल बंद रहती है और वो उस बात को अपनी सहेलियों से छुपाती भी नहीं हैं. अक्सर वो सहेलियों के बीच अपनी ज़िंदगी का रोना रोती रहती हैं.

कामवाली बाई कमला का पति हफ्ते में दो तीन बार दारु पी पर उसको पीटता है और कमला का कहना है कि वह वेश्याओं के पास भी जाता है.

स्कूल में टीचिंग करने वाली सुधा का अपने पति से तलाक और दहेज़ का केस चल रहा है, केवल कोर्ट में तारीखों पर ही पति-पत्नी का आमना सामना होता है. परन्तु ये सभी महिलायें करवाचौथ का व्रत रखती हैं. क्यों रखती हैं तथा इनकी मानसिक स्थिति क्या है? कल्पना कर के देखिये.

करवाचौथ मुस्लिम नहीं मनाते, ईसाई नहीं मनाते, दूसरे देश नहीं मनाते और तो और भारत में ही दक्षिण, या पूर्व में इसे नहीं मनाते, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इन तमाम जगहों पर पति की उम्र

कम होती हो और इसको मनाने वाली औरतों के पतियों की उम्र ज़्यादा हो जाती हो. यह व्रत ज्यादातर उत्तर भारत में प्रचलित हैं, दक्षिण भारत में इसका महत्व ना के बराबर हैं, क्या उत्तर भारत की महिलाओं के

पतियों की उम्र दक्षिण भारत की महिलाओं के पतियों से कम होती है?

दरअसल करवाचौथ के ज़रिये दशकों से महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए ताबूत गढ़े जा रहे हैं. समाज में अकेली, निर्बल नारी को और ज़्यादा अकेला और भयभीत करने के लिए करवाचौथ का सामूहिक प्रदर्शन धर्म के ठेकेदारों द्वारा आयोजित करवाया जाता है. महिलाओ की मानवीय गरिमा का इस तरह विरोध करने वाले त्योहारों को क्या त्यौहार की संज्ञा देना उचित है? क्या इनका समर्थन किया जाना चाहिए?

सच तो यह है कि करवाचौथ औरतों के लिए एक परम्परागत मजबूरी है. या यूँ कहें कि यह एक दिन का दिखावा हैं? करवाचौथ जैसा व्रत महिलाओं की एक मजबूरी के साथ उनको अंधविश्वास के घेरे में रखे हुए हैं. ज़्यादातर औरतें इसको अंधविश्वास के तहत धारण करती हैं, मगर बहुतेरी ऐसी हैं जिन्हे मजबूरीवश घर के बड़ों के कहने पर यह व्रत रखना पड़ता है. क्योंकि कल को यदि उनके पति के साथ कुछ हो गया तो इसका ठीकरा यह कह कर उसके सिर पर फोड़ा जाएगा कि वह अपने पति की लम्बी आयु के लिए करवाचौथ का व्रत नहीं करती थी. इस डर से वह इस व्रत को रखती हैं. इस व्रत की कहानी भी अंधविश्वासपूर्ण भय उत्पन्न करती है कि करवाचौथ का व्रत न रखने अथवा अज्ञानवश व्रत के खंडित होने से पति के प्राण खतरे में पड़ सकते हैं, यह महिलाओं को अंधविश्वास और आत्मपीड़न की बेड़ियों में जकड़ने को प्रेरित करता है. आखिर सारे व्रत-उपवास पत्नी, बहन और माँ के लिए ही क्यों हैं? पति, भाई और पिता के लिए क्यों नहीं होते? क्योंकि धर्म की नज़र में महिलाओं की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है, पत्नी मर जाए तो पुरुष दूसरी शादी कर लेगा, क्योंकि सारी संपत्ति पर तो व्यावहारिक अधिकार उसी को प्राप्त है.

अरवी और बंडा की खेती

अरबी और बंडा की सब्जी खाने में लजीज तो होती ही है, पोषक तत्त्वों से भी भरपूर होती है. इन की फसल अच्छी लेनी हो तो, इस के लिए किसानों को इस में लगने वाले कीटों और रोगों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि उन का समय रहते इलाज हो सके. अरवी में लगने वाले खास कीट और रोग :

सूंड़ी कीट

इस के प्रोन पतले और भूरे रंग के तकरीबन 16 मिलीमीटर से 18 मिलीमीटर लंबे होते हैं. इस का ऊपरी पंख कत्थई रंग का होता है, जिस पर सफेद लहरदार धारियां पाई जाती हैं. पिछले पंख सफेद रंग के होते हैं.

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पूरी तरह विकसित सूंड़ी का शरीर कोमल व पीलापन लिए हुए हरा व भूरा होता है. इस के शरीर पर कहींकहीं रोएं होते हैं.

पीठ पर दोनों ओर 1-1 पीली धारी होती है और एक पीली धारी शरीर के निचले भाग में दोनों तरफ होती है. दाएं, बाएं और धारी के ऊपर एक काला नवचंद्रक होता है. सूंड़ी के सिर व टांगों का रंग काला होता है. जुलाई और अगस्त माह में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है.  इस की सूंड़ी पत्तियों को खा कर हानि पहुंचाती हैं.

1.प्रबंधन : कीटग्रस्त खेत के चारों तरफ नालियां खोद कर विषयुक्त पानी भर देना चाहिए.

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यदि खेत में कीट नहीं आया है तो नीम तेल 1,500 पीपीएम की 50 मिलीलिटर दवा और एक पाउच शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें.

2.यदि खेत में कीट आ गया है, तो प्रोफेनोफास 25 ईसी की 25 मिलीलिटर दवा और एक पाउच शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

3.बारिश शुरू होते ही पत्तियों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं. पत्तियां और डंठल गलने लगते हैं.

4.प्रबंधन : इस रोग के प्रबंधन के लिए  2.0 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज शोधन कर के ही बोएं.

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5.यदि रोग फसल पर आ गया है तो मैंकोजेब एम-45 की 45 ग्राम दवा और एक पाउच शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

फाइटोप्थोरा ?

6.यह प्रमुख रोग है. इस में पत्तियों पर भूरे रंग के जलीय धब्बे बनते हैं, जो पत्तियों को ?ालसा देते हैं. कभीकभी पत्तियां किनारे की तरफ से भी ?ालसने लगती हैं. इस रोग से कंद भी प्रभावित होते हैं. वातावरण में नमी होने पर यह रोग उग्र रूप धारण कर लेता है.

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7.प्रबंधन : इस रोग के लक्षण दिखते ही या आसमान में बदली होने पर तुरंत रिडोमिल एमजेड

8.78 की 30 ग्राम दवा और एक पाउच शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

मैं चुप ही रहूंगा : आपसी कलह में पिसता गया सुधीर का परिवार

‘‘मां, कल रश्मि का बर्थडे है. उसे रात को 12 बजे केक काटने का बहुत शौक है, इसलिए आज आप को थोड़ा ऐडजस्ट करना पड़ेगा. मैं औफिस से आता हुआ केक ले आऊंगा, आप उसे फ्रिज में छिपा देना. आज शायद आप को सोने में थोड़ी देर हो जाए. उसे रात को सरप्राइज देंगे,’’ पवन की आवाज में जो उत्साह था, वह एक पल में ही खत्म हो गया जब माया ने कहा, ‘‘यह 12 बजे केक काटने का नाटक मुझे बिलकुल पसंद नहीं है. दिन में भी तो बर्थडे मना सकते हो. यह सब नहीं चलेगा. बेवजह मेरी नींद खराब होगी.’’

वहीं बैठे हुए सुधीर ने कहा, ‘‘माया, बहू का पहला बर्थडे है हमारे साथ, बच्चों को अच्छी तरह से जन्मदिन मनाने दो. एक दिन थोड़ी देर से सोएंगे, तो क्या हो जाएगा.’’ माया दहाड़ी, ‘‘तुम तो चुप ही रहो. खुद तो सो जाओगे, मेरी नींद डिस्टर्ब होती है. नहीं, यह सब शुरू ही मत करो वरना हर साल यह ड्रामा होगा.’’ पवन को बहुत बुरा लगा. वह बोला, ‘‘ठीक है मां, फिर मैं शाम को ही रश्मि को बाहर ले जाता हूं. बाहर ही डिनर कर के वहीं केक भी काट लेंगे. आप सो जाना अपने टाइम पर.’’

माया को झटका लगा, बोली, ‘‘साल भी नहीं हुआ शादी हुए, इतने गुलाम बन गए हो.’’ पवन को गुस्सा आ गया, ‘‘आप क्या समझेंगी पतिपत्नी की आपसी समझ को?’’

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माया चिल्लाई, ‘‘क्यों नहीं समझूंगी, मैं क्या पत्नी नहीं हूं तुम्हारे पिता की, इतने सालों से मैं क्या झक मार रही हूं?’’

‘‘आप कैसी पत्नी हैं, आप अच्छी तरह जानती होंगी?’’

माया के गुस्से का ठिकाना नहीं था. पर बेटा कहीं हाथ से न निकल जाए, इस बात का ध्यान गुस्से में भी था. स्वर को संयत करते हुए बोली, ‘‘ठीक है, जैसी मरजी हो, कर लो, हम ने कभी घर में न यह सब नाटक किया, न देखा, इसलिए हमारे लिए थोड़ा नया ही है यह सब. खैर, ले आना केक.’’ सब डाइनिंग टेबल पर बैठे थे. रश्मि औफिस के लिए जल्दी निकलती थी. वह जा चुकी थी. सुधीर ने कहा, ‘‘पवन, रश्मि की पसंद का ‘ब्लू बेरी चीज’ केक लाओगे न? उसे यही फ्लेवर पसंद है.’’ पवन मुसकरा दिया, ‘‘वाह पापा, आप को याद है?’’

‘‘हां, मेरे बर्थडे पर वह यही लाई थी, तभी उस ने बताया था. बहुत प्यारी बच्ची है.’’

माया को बहू की तारीफ सुन कर गुस्सा आ गया, ‘‘तुम चुप नहीं रह सकते. चुपचाप नाश्ता करो. तुम से किसी ने उस की तारीफ का सर्टिफिकेट मांगा है क्या.’’ कर्कशा, मुंहफट पत्नी को देखते हुए सुधीर ने दुख से कहा, ‘‘चुप ही तो हूं सालों से.’’

‘‘पापा, अब मैं चलता हूं, बाय,’’ कह कर पवन भी औफिस के लिए निकल गया. सुधीर सब से बाद में निकलते थे. उन का औफिस घर के पास ही था. वे चुपचाप अपना बैग ले कर निकल रहे थे. माया का बड़बड़ाना उन के कानों में पड़ ही रहा था, ‘सालभर नहीं हुआ है घर में आए हुए, पता नहीं यह लड़की क्या जादू जानती है, पति को पहले दिन से ही गुलाम बना कर रखा है.’

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सुधीर चले गए, सामान इधर से उधर रखती हुई माया गुस्से में तपी घूम रही थी. इकलौता बेटा है पवन, उस से उलझना भी नहीं चाहती. कहीं बहू को ले कर अलग हो गया तो क्या करेगी. बेटे को भी दूर नहीं होने देना है, बहू को भी दबा कर रखना है. क्या करे, यह लड़की तो हाथ ही नहीं आती. सुबह ही निकल जाती है, शाम को लगभग सुधीर के साथ ही आती है. पवन भी तभी आ जाता है. घर में काम के लिए कोई क्लेश न हो, यह सोच कर बहूरानी ने पहले दिन से कुक रख ली है. दलील दी थी, ‘मां, औफिस के काम के चक्कर में किचन में आप का हाथ ज्यादा नहीं बंटा पाऊंगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा कि आप पर ही सब काम रहे. यह लता अच्छी कुक है. दोनों टाइम जो खाना बनवाना हो, इस से बनवा लेना. आप को भी आराम मिलेगा.’ सुधीर और पवन ने भी इस बात का समर्थन किया था. माया जब अकेली पड़ गई तो तीनों के सामने क्या कहती. बात माननी पड़ी. सफाईबरतन का काम राधा कर ही जाती थी. अब बचा क्या जिसे ले कर रश्मि की क्लास ले. मौका ही नहीं देती. मांमां करती घर में घुसती है, सुबह मांमां करती निकल जाती है.

आज सुधीर भी औफिस में माया के बारे में ही सोच रहे थे. इतने सुशिक्षित, सभ्य इंसान हो कर भी कैसी कर्कशा, क्लेशप्रिया पत्नी मिली है उन्हें. नारी के हृदय की कोमलता तो उसे छू कर भी नहीं गुजरी कभी. यह उन के पिता ने कैसी लड़की उन के पल्ले बांध दी जिस के साथ निभातेनिभाते वे थक गए हैं. वह तो अब उन के घर में रश्मि बहू बन कर ताजी हवा के झोंके की तरह आई है, तो घर, घर लगने लगा है. कितनी अच्छी बच्ची है. कितनी पढ़ीलिखी, कितनी शालीन पर माया के स्वभाव के कारण किसी दिन बेटेबहू दूर न हो जाएं, यह बात उन के मन को अकसर उदास कर देती थी.

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शाम को रश्मि औफिस से आई. पवन को आज आने में थोड़ा टाइम था. उसे रश्मि के बर्थडे के लिए केक और गिफ्ट लेना था. रश्मि ने पूछा, ‘‘पापा, डिनर लगा दूं?’’

‘‘पवन को आने दो.’’

‘‘उन्हें थोड़ी देर होगी, कहा है सब लोग खाना खा लेना.’’

सुधीर ने कहा, ‘‘ठीक है, फिर लगा दो.’’ रश्मि डिनर लगाने लगी, माया वहीं बैठी टैलीविजन देख रही थी. रश्मि ने खाना लगाते हुए कहा, ‘‘मां, आप ने फिर कोफ्ते बनवाए हैं? अभी तो बने थे.’’

‘‘हां, मुझे बहुत पसंद हैं, लता अच्छे बनाती है.’’

‘‘पर मां, पापा ने तो कल दाल और करेले बनवाने के लिए कहा था.’’

‘‘मेरा मन नहीं था वह सब खाने का.’’

‘‘ठीक है मां, पर कल जरा पापा की पसंद का खाना बनवा लेना.’’

सुधीर ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, जो बना है ठीक है.’’

माया ने फटकार लगाई, ‘‘तुम चुप रहो. ज्यादा शरीफ बन कर दिखाने की जरूरत नहीं है.’’ सुधीर के चेहरे का रंग अपमान से काला पड़ गया. वे पत्नी का मुंह देखते रह गए. क्या यह औरत कभी नहीं सुधरेगी. वह उन की शराफत, शालीनता का सारी उम्र फायदा उठाती रही है. अब बेटेबहू के सामने भी क्या उन का अपमान करती रहेगी? क्या वही अच्छा रहता कि इस की बदतमीजी पर एक थप्पड़ शुरू में ही लगा देता? क्या ऐसी औरतें तभी ठीक रहती हैं. क्या उन का अपने क्रोध पर संयम रखना ही उन की कमजोरी बन गया है? घर में, बेटे के जीवन में सुखशांति के लिए हमेशा चुप रहना ही क्या उन की नियति है? रश्मि ने सुधीर का उदास चेहरा देखा तो सब समझ गई. उसे बहुत दुख हुआ. वह बहुत ही समझदार लड़की थी. कई बार उस ने पवन से अकेले में मजाक भी किया था, ‘पुरानी ब्लैक ऐंड व्हाइट फिल्में ज्यादा तो नहीं देखीं पर जितनी भी देखी और सुनी हैं, मां को देख कर ललिता पवार याद आ जाती है.’ पवन ने घूरने के बाद फिर स्वीकारा था, ‘हां, रश्मि, पापा जितने शांत हैं, मां उतना ही गुस्से वाली. बेचारे पापा, मैं ने उन्हें ही हमेशा सामंजस्य बिठाते देखा है.’

रश्मि ने खूब उत्साह से 12 बजे केक काटा. पवन उस के लिए एक सुंदर साड़ी भी लाया था. सुधीर ने भी एक लिफाफा रश्मि को देते हुए सिर पर प्यारभरा हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, हमारी तरफ से अपनी पसंद का कुछ ले लेना कल.’’ इस पर माया चौंकी, पर बोली कुछ नहीं. रश्मि बहुत खुश हुई. पवन ने कहा, ‘‘मां, कल हम दोनों ने छुट्टी ली है. कल सब मूवी देखने चलेंगे.’’ सुधीर को फिल्मों का बहुत शौक था, उत्साह से पूछा, ‘‘हांहां, बिलकुल, कौनसी?’’

रश्मि ने कहा, ‘‘जो आप कहें, पापा.’’

माया ने कहा, ‘‘मेरा मन नहीं है, मुझे नहीं जाना.’’

सुधीर ने कहा, ‘‘चलो न माया, बच्चों के साथ तो कभी गए ही नहीं अब तक.’’

‘‘नहीं, मेरा मूड नहीं है.’’

पवन ने कहा, ‘‘मां, मूवी देखेंगे, डिनर करेंगे, कल खूब एंजौय करेंगे सब.’’

रश्मि तो बहुत ही उत्साहित थी, बोली, ‘‘हां मां, बर्थडे है मेरा, खूब मजा आएगा, चलिए न.’’

‘‘नहीं, अब मुझे नींद आ रही है. पहले ही इतनी देर हो गई सोने में,’’ कह कर माया बैडरूम में चली गई तो सुधीर भी एक ठंडी सांस ले कर ‘गुडनाइट’ कह कर सोने चले गए. रश्मि ने बैडरूम में पवन से कहा, ‘‘पवन, बुरा मत मानना, मुझे मां की कई बातें पसंद नहीं हैं.’’

‘‘हां, रश्मि, मां शुरू से ही ऐसी हैं. मुझे भी बहुत दुख होता है.’’

‘‘पर मैं मां का यह व्यवहार ज्यादा सहन नहीं करूंगी, अभी बता देती हूं.’’ पवन चुप ही रहा, वह तो बचपन से ही मां का जिद्दी, गुस्सैल स्वभाव देखता आ रहा था. सुबह जब रश्मि सो कर उठी तो देखा सुधीर ड्राइंगरूम में रखे दीवान पर सो रहे थे. आहट से उठे तो रश्मि ने पूछा, ‘‘पापा, आप यहां क्यों सोए?’’

‘‘सोने में माया को देर हो गई तो वह मेरे करवट बदलने से डिस्टर्ब हो रही थी, उसे परेशानी हो रही थी.’’

‘‘पर इस गद्दे पर सोने से आप को गरदन में दर्द होता है न.’’

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‘‘हां, पर ठीक है, कोई बात नहीं.’’

‘‘कोई बात कैसे नहीं पापा, आप को तकलीफ होगी तो यह क्या अच्छी बात है?’’ सुधीर बिना कुछ बोले फ्रैश होने चले गए. सुधीर की इच्छा देखते हुए भी माया मूवी देखने नहीं गई. सुधीर ने ही पवन और रश्मि को भेजते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, हम तुम्हें डिनर पर जौइन करेंगे, बता देना, कहां आना है.’’ डिनर पर माया आराम से तैयार हो कर गई. चारों ने अच्छे मूड में डिनर किया और लौट आए. आज रश्मि मन ही मन बहुत सारी बातें सोच चुकी थी. घर आते ही सुधीर का मोबाइल बजा. बात करने के बाद उन्होंने बताया, ‘‘माया, अगले महीने मुग्धा आ रही है, संजीव भी साथ आएगा.’’

माया गुर्राई, ‘‘क्यों?’’

‘‘अरे, उस के भाई का घर है, एक ही तो बहन है मेरी, उस का रश्मि से मिलने का मन है.’’

रश्मि खुश हुई, ‘‘वाह, बूआजी आ रही हैं. मजा आएगा. विवाह के समय भी वे मुझे बहुत अच्छी लगी थीं.’’

‘‘हां, बहुत खुशमिजाज है मेरी बहन.’’

‘‘तुम तो चुप ही रहो,’’ माया चिढ़ गई, ‘‘क्या मजा आएगा. गरमी में किसी के आने पर कितनी परेशानी होती है, तुम्हें क्या पता.’’ रश्मि आज चुप नहीं रह पाई, बोली, ‘‘मां, पापा ही हमेशा क्यों चुप रहें. उन की बहन है, अपनी बहन के आने पर वे खुश क्यों न हों?’’

माया ने रश्मि को डांट दिया, ‘‘मुझ से बहस करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हो रही है?’’

‘‘मां, बहस कहां कर रही हूं. जब से आई हूं यही तो देख रही हूं कि पापा कुछ बोल ही नहीं सकते.’’

माया के गुस्से की सीमा नहीं थी, ‘‘पवन, देख रहा है? इस की इतनी हिम्मत?’’

रश्मि ने बहुत मधुर स्वर में कहा, ‘‘मां, मुझे अच्छा नहीं लगता आप पापा को बोलने ही नहीं देतीं. मैं ने अपने घर में अपने मम्मीपापा का एकदूसरे के लिए बहुत ही प्यार और आदरभरा रिश्ता देखा है और वैसे ही पवन के साथ रहने की इच्छा है. यहां मुझे और कोई कमी नहीं है, बस, आप का पापा के साथ जो रवैया है, वह खटकता है. पापा का स्वभाव कितना अच्छा है.’’ पवन ने रश्मि के कंधे पर हाथ रख कर उसे शांत रहने का इशारा किया तो माया ने तेज आवाज में कहा, ‘‘सुन रहा है इस की बातें?’’

‘‘मां, रश्मि ठीक ही तो कह रही है. मैं और पापा सालों से आप का जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव सहते आ रहे हैं पर अपने घर का अच्छा माहौल देख कर आने वाली लड़की को तो आप का स्वभाव अजीब ही लगेगा.’’ माया को तो आज झटके पर झटके लग रहे थे. उस ने सुधीर से कहा, ‘‘मेरी शक्ल क्या देख रहे हो, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?’’ सुधीर का चेहरा तो बच्चों की बातें सुन कर अलग ही खुशी से चमक रहा था. हंसते हुए बोले, ‘‘भई, मैं तो आज भी चुप ही रहूंगा.’’ पवन और रश्मि ने भी खुल कर उन की उन्मुक्त हंसी में उन का साथ दिया तो माया का चेहरा देखने लायक था.

Crime Story: बेवफा पत्नी का खूंखार प्यार

सौजन्य – सत्यकथा

‘‘ऐजी, कैसी ॒शक्ल बिगाड़ रखी है तुम ने. क्या मेरे वियोग में खानापीना तक छोड़ दिया है?’’ सुमन ने संजीव के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा.‘‘क्या करूं सुमन, जब से तुम मायके आई हो, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. न घर में जी लगता है, न बाहर.’’ मायूसी से संजीव फुसफुसाया, ‘‘बहुत दिनों से तुम्हारा प्यार नहीं मिला है. एक पप्पी दो न!’’‘‘पागल हो गए हो क्या. देख रहे हो, कितने लोग हैं. यहां पप्पी मांग रहे हो.’’ सुमन हाथ छुड़ाने का नाटक करती हुई बोली, ‘‘घर चलो, जी भर कर प्यार कर लेना.’’
‘‘बस एक…’’ संजीव गिड़गिड़ाया.

‘‘बड़े बेसब्र हो जी…चलो ले लो, तुम भी क्या याद रखोगे कि दिलदार बीवी से पाला पड़ा है.’’ सुमन ने कहा.
संजीव ने उस के गोरे गालों पर अपने होंठों की छाप छोड़ दी. सुमन ने साड़ी के पल्लू से अपना गाल रगड़ा और ठंडी सांस ले कर बोली, ‘‘मेरा मन तुम से लिपटने को बेकरार हो रहा है. बस अब सवारी पकड़ो और घर चलो. आज की रात फिर से हमारी सुहागरात होगी.’’संजीव बीवी की बात पर रोमांच से भर उठा. वह काफी खुश था, खासतौर पर इस बात पर कि लड़नेझगड़ने वाली उस की बीवी इतनी अच्छी बातें कर रही थी. उसे याद नहीं आ रहा था कि अंतिम बार सुमन ने उस से इस तरह कब बात की थी.

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काफी मनाने के बाद वह मायके से वापस आने को तैयार हुई थी. वापस आते समय सुमन इतने अच्छे मूड में थी कि संजीव को विश्वास नहीं हो पा रहा था. वह शायद यह नहीं समझ पाया कि इंसान जब अपनी फितरत से हट कर व्यवहार करे तो समझ जाना चाहिए कि वह कुछ खेल खेलने वाला है और उसे अपनी मीठी बातों में फंसा रहा है. सुमन तेजतर्रार बीवी थी और वह सीधासादा इंसान था. आखिर वह कैसे समझता कि बीवी उस की भावनाओं के साथ ही नहीं, उस की जिंदगी के साथ भी खेल खेलने वाली है. संजीव ने बस पकड़ी और सुमन के साथ अपने घर वापस आ गया.

9 मार्च की सुबह सुमन अलसाई सी उठी. उसे किसी के दरवाजा पीटने की आवाज सुनाई दी. जा कर दरवाजा खोला तो सामने पड़ोसन खड़ी थी. दरवाजा खुलते ही पड़ोसन ने उसे घर के बाहर खडं़जे पर नाली के किनारे संजीव के पड़े होने की बात बताई. सुमन तुरंत संजीव के पास पहुंच गई और उसे उस हालत में पड़ा देख रोनेपीटने लगी. सुमन के रोने की आवाज सुन कर पहले आसपड़ोस के लोग फिर पूरे गांव के लोग वहां एकत्र हो गए. संजीव की सांसें थम चुकी थीं, यानी उस के साथ कोई घटना घटित हुई थी.
मामला शाहजहांपुर जनपद के अल्हागंज थाना क्षेत्र के गांव दहेना मनिहार का था.

पास के गांव गोहरा में संजीव का छोटा भाई विवेक अन्य परिजनों के साथ रहता था. खबर मिलते ही वह भी आ गया. इसी बीच किसी ने यह सूचना अल्हागंज थाने में दे दी थी. सूचना पा कर थानाप्रभारी सुधाकर पांडेय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने पहले लाश का निरीक्षण किया. मृतक के गले पर काफी सूजन थी और शरीर के अन्य हिस्सों पर पीटे जाने के निशान मौजूद थे.लाश का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने मृतक संजीव की पत्नी सुमन से पूछताछ की तो उस ने बताया की रात में उस के पति साथ में सोए थे. सुबह उठी तो यह बाहर इस अवस्था में पड़े मिले. हो सकता है सुबह जल्दी दूध लाने के लिए निकले हों, तभी उन को किसी ने मार दिया हो.

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इस के बाद अन्य घरवालों व पड़ोसियों से आवश्यक पूछताछ की गई. फिर पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दी और थाने लौट आए.विवेक ने अपने भाई संजीव की हत्या का आरोप उस की पत्नी सुमन, सास केशरवती साले मुनीश और मुकुल उर्फ सोनू पर लगाते हुए थाने में तहरीर दी. जिसके आधार पर पुलिस ने सभी नामजद के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.थानाप्रभारी पांडेय ने सुमन से पूछताछ की. पूछताछ के बाद उसे जाने दिया गया. इस के बाद जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति ही करते रहे. इसी बीच उन का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह निगोही थाने से ट्रांसफर हो कर आए इंसपेक्टर इंद्रजीत भदौरिया. थाने का चार्ज लेते ही उन्होंने थाने में दर्ज मुकदमों की फाइलें देखीं तो उन में संजीव हत्याकांड की फाइल भी थी.

उन्होंने केस का गंभीरता से अध्ययन किया और जांच में जुट गए. उन्होंने सुमन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो घटना वाले दिन सुबह से देर रात तक एक नंबर पर सुमन की बात होने के बारे में पता चला. उस नंबर पर सुमन हर रोज बात करती थी. उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई गई तो वह बरेली में एक्टिव था, लेकिन घटना की रात उस की लोकेशन घटनास्थल की मिली. इस के बाद थानाप्रभारी इंद्रजीत भदौरिया ने 14 जून को सुमन को उस के बरेली स्थित मायके से गिरफ्तार कर लिया. उसे थाने ला कर महिला कांस्टेबल साधना की उपस्थिति में उस से कड़ाई से पूछताछ की गई. पुलिस के सामने उस ने पति की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. साथ ही उस ने बताया कि इस हत्या में उस के प्रेमी अमित ने उस का साथ दिया था.

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उत्तर प्रदेश के महानगर बरेली का एक थाना है बिथरी चैनपुर. इस थाने के अंतर्गत शहर से सटा एक गांव चांदपुर है. इसी गांव की निवासी थी सुमन. सुमन के पिता हरप्रसाद खेतीबाड़ी करते थे. परिवार में सुमन की मां केशरवती, 2 भाई मुनीश, मुकुल उर्फ सोनू व 2 बहनें सीमा और सरिता थी. सुमन सब से छोटी थी.किशोरावस्था में आते ही सुमन के शरीर में काफी परिवर्तन आ गए थे. अब वह न बच्ची थी और न ही पूरी तरह से जवान. लेकिन जवानी की बहार आने की शुरुआत हो चुकी थी. हर किसी की निगाह उस के बदन पर आ कर टिक जाती थी. उस समय सुमन बरेली के कुसुम कुमारी इंटर कालेज में नौंवी कक्षा की छात्रा थी. सुमन की एक सहेली रानी (परिवर्तित नाम) थी. वह रानी से मिलने उस के घर आयाजाया करती थी.

वहीं रानी के भाई का दोस्त अमित आताजाता था. अमित बरेली के नवादा में वनखंडी नाथ मंदिर के पास रहता था. उस के पिता रमेश कुमार प्राइवेट नौकरी करते थे. अमित पढ़ रहा था.आनेजाने के दौरान सुमन का अमित से परिचय हुआ. दोनों में बातें होने लगीं. समय के साथ दोनों में दोस्ती हो गई. जल्दी ही दोनों काफी घुलमिल गए, साथ घूमते मौजमस्ती करते. एक साथ समय बितातेबिताते दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. उन की चाहत आंखों से झलकने लगी तो दोनों को समझते देर नहीं लगी कि एकदूसरे को चाहते हैं. चाहत बेपरदा हुई तो जुबां से भी इजहार हो गया. दोनों ही अपने दिल की मुराद पूरी होने पर काफी खुश हुए.

समय के साथ उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों के बीच दैहिक संबंध भी बन गए. इसी बीच अमित के घर वालों ने उस की शादी तय कर दी. जब अमित की सुमन से मुलाकात हुई तो अपनी शादी तय होने का जिक्र करते हुए उस से शादी करने की इच्छा जताई. वह सुमन से प्यार करता था और शादी भी उसी से करना चाहता था. सुमन ने अमित की शादी करने की इच्छा को यह कह कर शादी करने से मना कर दिया कि वह दूसरी जाति से है. उस के भाइयों को पता चल गया तो वह शादी तो होने नहीं देंगे, साथ ही उस की पढ़ाई भी बंद करा देंगे. सुमन का जवाब सुन कर अमित कुछ नहीं बोल सका.

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सन 2009 में अमित का विवाह सुमन के बजाए किसी और से हो गया. इस के बाद सुमन का उस से मिलनाजुलना बंद हो गया. संपर्क टूटा तो सुमन फिर से अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने लगी. इंटरमीडिएट पास करने के बाद सुमन ने बरेली के अवंतीबाई डिग्री कालेज में बीए में दाखिला ले लिया. बीए की पढ़ाई पूरी होतेहोते उस के घर वाले उस की शादी के लिए रिश्ता तलाशने लगे थे.एक रिश्तेदार की मदद से उन्हें शाहजहांपुर जनपद के गांव दहेना मनिहार निवासी संजीव श्रीवास्तव के बारे में पता चला. संजीव दिल्ली में रह कर सिलाई का काम करता था. उस के परिवार में पिता महावीर, मां माया देवी के अलावा छोटा भाई विवेक और 3 बहनें प्रेमलता, सपना और छाया थीं.

विवेक भी दिल्ली में रह कर एक फैक्ट्री में काम करता था. बहनों में केवल प्रेमलता की ही शादी हुई थी, लेकिन बाद में उस की मृत्यु हो गई.बताते चलें कि संजीव शादीशुदा था. लेकिन उस की पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी. उस की पहली शादी पड़ोसी जिले हरदोई के अंतर्गत हरदोई-शाहजहांपुर मार्ग पर स्थित शाहाबाद निवासी शिवानी से हुई थी. लेकिन पहले बच्चे के रूप में एक बेटी को जन्म देते समय शिवानी की मृत्यु हो गई थी. लेकिन बेटी बच गई थी, संजीव ने बेटी का नाम मोनिका रखा.

सुमन के लिए रिश्ता आया तो संजीव और उस के घरवालों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. सन 2014 में सुमन का विवाह संजीव से हो गया. शादी के एक साल बाद सुमन ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रजत रखा गया.महानगर में रहने वाली पढ़ीलिखी सुमन को गांव का माहौल पसंद नहीं आया. वह एक महीने ससुराल तो 4 महीने मायके बरेली में रहती थी. वह बरेली में ही रहना चाहती थी. इस के लिए वह संजीव पर दबाव बनाने लगी कि यहां का मकान बेच कर बरेली चल कर रहे. वहां किसी अच्छी जगह नौकरी कर लेगा और वहां उस के बच्चे का भविष्य भी बन जाएगा. लेकिन संजीव इस के लिए तैयार नहीं होता था. इसे ले कर दोनों में झगड़ा होता था.

संजीव का छोटा भाई पड़ोस के गांव गोहरा में मातापिता व घर के अन्य सदस्यों के साथ रहने लगा. वह चाहता था कि भैयाभाभी उसी मकान में रहें, बरेली न जाएं. संजीव भी उस की बात से सहमत था, वह भी गांव छोड़ कर नहीं जाना चाहता था. अपनी बात न मानते देख सुमन रोज घर में कलह करने लगी. वह इस हद तक पहुंच गई कि उस ने अपनी सास की पिटाई कर दी. सौतेली बेटी मोनिका को भी बुरी तरह पीटा. उस की गरदन पर पैर रख कर जान से मारने की कोशिश की. गांव वालों ने किसी तरह बीचबचाव किया. उस समय संजीव और विवेक दोनों दिल्ली में थे.

2019 में सुमन ससुराल से बरेली चली आई और एक नर्सिंग कालेज में नौकरी करने लगी. अब वह वापस ससुराल जाने की इच्छुक नहीं थी. एक दिन ड्यूटी से आते समय डोहरा मोड़ पर उसे अमित मिल गया. दोनों अचानक एकदूसरे को सामने पा कर खुशी से खिल उठे.‘‘जिंदगी के इस मोड़ पर इस तरह अचानक हमारी मुलाकात होगी, ये तो मैं ने कभी सोचा ही नहीं था.’’ खुश होती हुई सुमन बोली.
‘‘सोचा तो मैं ने भी नहीं था सुमन, लेकिन दोबारा मिलना हमारी किस्मत में लिखा था तो मुलाकात हो गई.’’‘‘और बताओ, जिंदगी कैसी कट रही है?’’ अमित की जिंदगी के पन्नों पर लिखी इबारत का कुछ हिस्सा जानने के उद्देश्य से सुमन ने पूछा.

यह सुन कर अमित का मुसकराता चेहरा एकाएक मुरझा गया, बोला, ‘‘क्या बताऊं, जिंदगी बस घुटघुट कर कट रही है.’’‘‘क्यों शादी कर के खुश नहीं हो, बीवी खयाल नहीं रखती तुम्हारा?’’ अमित की परेशानी जानने के उद्देश्य से सुमन ने पूछा.‘‘अरे पूछो मत, जीना हराम कर रखा है. उस से शादी कर के तो जिंदगी और भी बदतर हो गई है. हर समय क्लेश करती है, बातबात में टोकाटाकी करती है.’’ वह दुखी मन से बोला.‘‘तुम अपनी जिंदगी में खुश नहीं हो, मैं अपनी जिंदगी में खुश नहीं हूं. मेरा पति गांव में रहता है. मैं उस से बरेली आ कर रहने को कहती हूं तो तैयार नहीं होता, यहां आने के लिए. गांव में ही डेरा डाले पड़े है. इसे ले कर हमारे बीच झगड़ा होता है, मगर उस बंदे पर कोई असर नहीं होता. अपने साथ मेरी जिंदगी खराब कर रखी है.’’

अमित कुछ सोच कर बोला, ‘‘सुमन, हम दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी में खुश नहीं हैं. मैं अपनी बीवी से खुश नहीं हूं तुम अपने पति से. हम दोनों की परेशानियों का हल निकालने के लिए ही शायद किस्मत ने हमें फिर से मिलाया है.’’‘‘कैसे निकलेगा हमारी परेशानियों का हल?’’ बेचैन सुमन अमित से पूछ बैठी.
‘‘हम दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी को खत्म कर दें तो आराम से एक साथ रह सकते हैं.’’ अमित ने उस की आंखों में देखते हुए परेशानी से बाहर आने का रास्ता बता दिया. सुमन उस की बात पर कुछ देर सोचती रही, फिर बोली,‘‘ठीक है, सब से पहले मेरे पति को हटाओ.’’‘‘ठीक है, तुम अपनी ससुराल चली जाओ. पति को मना कर उस से प्यार भरी बातें करो. किसी दिन आ कर मैं तुम्हारे साथ संजीव का काम तमाम कर दूंगा.’’ अमित ने सुझाव दिया.

सुमन ने सहमति दे दी. फिर दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर लिया और अपनेअपने घर चले गए.
इस के बाद दोनों की मोबाइल पर रोजाना बातें होती रहीं. अमित ने सुमन को मैडिकल स्टोर से ला कर नशीली गोलियां दे दीं.संजीव सुमन को विदा कराने के लिए कई बार अपनी सास केशरवती से कह चुका था, लेकिन सुमन ही थी जो जा नहीं रही थी. इस बार जब संजीव का फोन आया तो सुमन ने उस के साथ जाने को हां कर दी.संजीव खुशीखुशी उसे विदा कराने ससुराल पहुंचा. सुमन भी उसे देख कर और चलने की बात सुन कर खुश होने का नाटक करती रही. रास्ते में वह उस से प्यार से बातें करती रही. संजीव के पप्पी मांगने पर नाजनखरे दिखाने के बाद सुमन ने पप्पी दे दी.

संजीव सुमन का यह रूप देख कर काफी खुश था. मगर उस की यह खुशी कुछ दिनों की मेहमान है, उसे इस की भनक तक नहीं थी. सुमन का त्रियाचरित्र वह भांप नहीं पाया था. सुमन संजीव के साथ ससुराल आ गई.8 मार्च, 2020 को सुमन अमित से सुबह से ही बात करने लगी कि कैसे क्या और कब करना है. फोन पर अमित उसे समझाता रहा कि रात को ही संजीव को ठिकाने लगा देना है. रात 9 बजे संजीव खेतों पर चला गया. रात 12 बजे के करीब वह घर लौटा. सुमन ने चाय बनाई और उस में नशे की 2 गोलियां मिला दीं और चाय संजीव को पीने के लिए दे दी. संजीव चाय पीने के बाद आधे घंटे में ही बेहोश हो कर लुढ़क गया.

तभी सुमन ने अमित को फोन कर के संजीव के बेहोश होने की खबर दे दी. यह सुनते ते ही अमित बरेली से बाइक द्वारा सुमन के घर के लिए चल दिया.लगभग साढ़े 3 बजे वह सुमन के गांव पहुंचा. उस ने अपनी बाइक गांव के बाहर खड़ी की और पैदल उस के घर के बाहर पहुंचा. उस ने दरवाजा खटखटाने के बजाय सुमन को फोन किया. जिस के बाद सुमन ने दरवाजा खोल दिया, अमित घर के अंदर आ गया. दोनों ने बेहोश संजीव को उठा कर आंगन में डाला. सुमन ने संजीव के पैर पकड़े तो अमित संजीव के मुंह पर तकिया रख कर दबाने लगा. संजीव छटपटाने लगा, लेकिन सुमन सख्ती से उस के पैर पकड़े रही.
10-12 मिनट तक तकिए से मुंह दबाने के बाद भी संजीव नहीं मरा तो दोनों ने उस का गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद उस की लाश को उठा कर घर के बाहर खडं़जे पर नाली के किनारे डाल दिया.

अमित नशे की बची गोलियां, सुमन का मोबाइल और सिम ले कर वापस बरेली चला गया. सुमन आराम से घर में लेट गई. सुबह पड़ोसन के बताने पर वह रोने का नाटक करने लगी.लेकिन उस का गुनाह छिप न सका, वह पकड़ी गई. सबूत मिटाने के उद्देश्य से लाश को घर से बाहर डाला गया था, इसलिए मुकदमे में धारा 201 और बढ़ा दी गई. सुमन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद थानाप्रभारी भदौरिया ने अमित की गिरफ्तारी करने के प्रयास किए तो वह तो हाथ नहीं आया लेकिन हत्या में इस्तेमाल हुई उस की बाइक जरूर बरामद हो गई.
22 जून, 2020 को अमित ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों हत्याभियुक्त जेल में थे.

स्पेशल शाही गुजिया : टेस्ट ऐसा जो कभी नहीं भूलेंगे आप

त्योहारों के मौसम में हर किसी के घर नए-नए तरह के पकवान बनते हैं. ऐसे गुजिया का नाम सबसे ऊपर आता है. आइए जानते हैं शाही गुजिया बनाने का स्पेशल तरीका .

सामग्री :

आटा गूंथने के लिए 

–  4 कप मैदा

– 6 बड़े चम्मच घी

– तेल या घी

भरावन के लिए –

– 6 कप मावा

– एक चम्मच इलायची पाउडर

– एक कप नारियल कद्दूकस किया हुआ

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– 3 बड़े चम्मच किशमिश

– 5 बड़े चम्मच काजू कटे हुए

– 4 कप चीनी का बूरा (पिसी हुई चीनी)

चाशनी के लिए –

– 4 कप चीनी

– 4 कप पानी

बनाने की विधि :

– गुजिया की बाहरी परत बनाने के लिए मैदा छान लें.

– इसमें घी मिलाएं और फिर जरूरत के हिसाब से पानी डालते हुए सख्त गूंद लें.

– इसे थोड़ी देर के लिए गीले कपड़े से ढक कर रख दें.

– अब भरावन तैयार करने के लिए गैस पर कड़ाही गर्म करें.

– इसमें मावा डालकर मध्यम आंच पर 3 मिनट तक भूनें.

–  मावा चलाते रहें ताकि जले न.

– जब मावा सुनहरा हो जाए तो गैस बंद कर दें.

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– अब बर्तन में मावा, चीनी का बूरा, किशमिश, कसा हुआ नारियल, काजू और इलायची पाउडर डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें.

– इसके बाद तैयार मैदे को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट लें और हर हिस्से को गोल आकार देने के बाद छोटी रोटी में बेल लें.

– गुझिया बनाने का सांचा लें और इसमें दोनों तरफ हल्का तेल लगा दें.

– अब बेली हुई रोटी को इस सांचे में रखें.

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– और एक चम्मच के करीब तैयार की गई भरावन की सामग्री को इसमें मिला दें.

– सांचा बंद करें और जो भी हिस्सा बाहर रह जाए, उसे हटा दें.

-अब इसे डीप फ्राई कर लें.

लीजिए तैयार है आपकी शाही गुजिया.

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