‘‘इस के लिए तुम क्या करती हो?’’
‘‘कुछ नहीं. मैं उन्हें घूमने देती हूं.’’
‘‘शादी के पैगाम भी आते होंगे?’’
‘‘हां, कई,’’ नंदा नेपकिन को खोल लपेट रही थी.
‘‘फिर शादी क्यों नहीं की?’’ चिनगारी को फिर हवा मिली.
‘कहा न, अनुभव कड़वा है. विवाह में आस्था नहीं रही.’’
‘‘बौस कैसा है?’’
‘‘अच्छा है. वह भी मुझ से विवाह के लिए निवेदन कर चुका है.’’
‘‘मान लेतीं. बड़ा बिजनैस है, रुपएपैसे की बहार रहती.’’
उन के आपसी अनेक मतभेदों में एक कारण नंदा का बेहद खर्चीला स्वभाव भी था.
‘‘खयाल बुरा नहीं. वह 55 वर्ष का है. विधुर और गंजा. 1 लड़का और 2 लड़कियां हैं.’’
‘‘फिर?’’
‘‘उस के बच्चों को यह विचार पसंद नहीं. सोचते हैं कि मैं उन के पिता के धन की ताक में हूं. वे लोग इस विचार से काफी परेशान रहते हैं.’’
‘‘तुम क्या सोचती हो?’’
‘‘कुछ सोचती नहीं, सिर्फ हंसती हूं. अच्छा, अपनी बताओ, क्या कर रहे हो आजकल?’’
‘‘बस, नौकरी.’’
‘‘विवाह?’’
‘‘अभी तक तो चल रहा है. नहीं चलेगा तो मजबूरी है. रानो के खयाल से डर लगता है. उस ने रानो को पसंद न किया तो वह मासूम मारी जाएगी. मैं तो दिनभर दफ्तर में रहता हूं. उसे देख नहीं पाता. अभी तो बूआ उस की देखरेख करती हैं, पता नहीं बाद में बूआ रहना पसंद करें या न करें.’’
‘‘तुम यह नहीं कर सकते कि रानो को मुझे दे दो. तुम शादी कर लो. इस से सभी सुखी होंगे,’’ नंदा का स्वर काफी उत्तेजित हो आया था.
‘‘रानो को तुम्हें दे दूं? कभी नहीं, हरगिज नहीं. तुम उस की ठीक से देखभाल नहीं कर सकोगी. अदालत में इतना झगड़ा कर के रानो को लिया है, तुम्हें नहीं दे सकता.’’
नंदा हंसी, ‘‘यह तो अदालत नहीं है. अदालत रानो को खुशियां नहीं दे सकी. तुम्हारी जिद थी, पूरी हो गई. अब तुम्हें स्वयं लग रहा है कि रानो तुम्हारे विवाह में बाधा है या विवाह के बाद वह सुखी नहीं रह सकेगी. रानो को मुझे देने के बाद इस का भय न रहेगा, तुम सुख से रहना.’’
‘‘रानो को तुम्हें दे कर सुख से रहूं? तुम क्या अच्छी तरह उसे रख पाओगी?’’ प्रदीप का स्वर तेज हो गया था.
‘‘मैं उस की मां हूं. बड़े कष्ट से उसे जन्म दिया है. मैं उसे ठीक से नहीं रख पाऊंगी? कम से कम विमाता से तो अच्छी तरह ही रखूंगी.’’
‘‘नहीं, नंदा, रानो का भला मेरे पास रहने में ही है. तुम्हारा जिम्मेदारी का काम तुम्हें समय ही कम देगा. फिर तुम्हारे पास रह कर उसे वह शिक्षा कहां से मिलेगी, जो अच्छे बच्चे को मिलनी चाहिए. ऐश और आराम का जीवन बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा नहीं है.’’
‘‘अच्छा, मैं चलती हूं. बेकार की बातें सुन कर मन और खराब होता है. यह विडंबना ही है कि रानो मेरे और तुम्हारे संयोग से पैदा हुई. मातापिता की गलती का परिणाम बच्चों को भुगतना पड़ता है. इस बात का इस से बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है,’’ नंदा उठ कर जाने लगी.
‘‘वह बात तो तुम से कही ही नहीं जिसे कहने को तुम्हें बुलाया था. तुम रानो से मत मिला करो. वह तुम से मिल कर अस्थिर हो जाती है, टूट जाती है, जीवन से जुड़तेजुड़ते कट सी जाती है. फिर उसे सामान्य करना कठिन हो जाता है.’’
‘‘कैसी विडंबना है कि मां के होते हुए बेटी मातृहीना की तरह पल रही है,’’ नंदा की आंखों से मोटेमोटे आंसू गिरने लगे. उस ने उन्हें पोंछने का कोई उपक्रम नहीं किया. आतेजाते और बैठे लोग उसी की तरफ देखने लगे थे.
प्रदीप स्थिति से काफी त्रस्त हो उठा. अपनी बात दोबारा कहने या बढ़ाने का मौका नहीं था. वह जल्दी से बिल दे कर उठ खड़ा हुआ. नंदा वहीं मेज पर कोहनी टिका कर, सिर छिपा कर फफकने लगी.
उस ने नंदा को बांह का सहारा दे कर उठाया. नंदा रूमाल से मुंह पोंछती उस का सहारा ले कर लड़खड़ाती सी चलने लगी.
दोनों बाहर आ कर कार में बैठ गए. प्रदीप का हाथ नंदा को घेरे रहा.
प्रदीप के अंदर घुमड़ता क्षोभ हर क्षण गलता जा रहा था. वर्षों पहले हुए झगड़े उसे नाटक से लग रहे थे. उन नाटकों का अंत हुआ था अदालत में संबंधविच्छेद के रूप में.
उसे महसूस हुआ कि अपनीअपनी राह जाने के प्रयास के बाद भी वे एक राह के ही राही बने रहे थे. नंदा प्रदीप को भूल सकी, पर रानो को नहीं भूल सकी थी. प्रदीप भी नंदा को भूलने की कोशिश करता रहा, पर रानो का हितअहित उस के जीवन का प्रथम प्रश्न बना रहा, जो उस का रक्त अंश थी, नंदा के शरीर में पली थी.
रानो उन दोनों के मध्य हमेशा ही बनी रही है, बनी रहेगी. चाहे वह और नंदा दुनिया के अलगअलग कोनों पर कितने ही दूर चले जाएं, पर रानो के माध्यम से एक धागा उन दोनों को परस्पर बांधे ही रहेगा.
प्रदीप को लगा वह और नंदा अपनी निर्धारित भूमिका को छोड़ कर किसी और की ही भूमिका अदा कर रहे थे. वे दोनों ही अपने रास्ते से हट गए थे. पतिपत्नी का रिश्ता झुठलाना कठिन नहीं, किंतु मांबेटी का और पितापुत्री का रिश्ता कोई शक्ति झुठला नहीं सकती. बूआ जो कहती हैं, वह शायद ठीक ही है.
उस ने कार स्टार्ट कर दी और घर की तरफ मोड़ दी. नंदा चिरपरिचित रास्ते को पहचान रही थी. वह सीधी हो कर बैठ गई.
‘‘वहां नहीं, रानो को देख कर मेरा कठिनाई से सहेजा हुआ दिल फिर छिन्नभिन्न हो जाएगा. जिस रास्ते को पीछे छोड़ आई हूं उस पर यदि चल ही नहीं सकती तो चाहे जैसे भी हो उस का मोह तो छोड़ना ही होगा.’’
रानो को फिर से देखने की, छाती से चिपटाने की अदम्य इच्छा उस के कलेजे में घुमड़ने लगी.
‘‘क्या तुम रानो से नहीं मिलोगी? वह तुम्हें याद करती, रोतेरोते सो गई है. जागने पर तुम्हें देखेगी तो कितनी खुश होगी.’’
‘‘तुम्हीं तो कह रहे थे कि मुझ से मिल कर वह टूट सी जाती है. दिल से और छलावा करने से क्या लाभ? उसे अब इस टूटे रिश्ते को स्वीकार करना सीख ही लेना चाहिए.’’
नंदा की आंखें रहरह कर भर आ रही थीं. जिस रानो को उस ने जन्म दिया था, दिनरात गोदी में झुलाया था, उस से क्या सचमुच ही उस का रिश्ता टूट गया है? नाता तो उस ने प्रदीप से तोड़ा था. रानो से कब, क्यों और किस तरह उस का नाता टूट गया?
प्रदीप चुपचाप कार चलाता रहा. कार रुकते ही नंदा पागलों की तरह अंदर भागी. रानो अब भी सो रही थी. उस का दिल हुआ वह उसे उठा कर सीने से चिपटा ले, पर वह उस के सिरहाने बैठी उसे देखती रही. आंखों से वात्सल्य छलकाती रही.
उस ने देखा कि प्रदीप की बूआ कमरे में आ रही हैं. उस ने उठ कर उन के पैर छुए. सरला ने नंदा को छाती से लगा लिया. नंदा का अपने पर रहासहा नियंत्रण भी समाप्त हो गया. वह बच्चों की तरह फूट पड़ी. सरला रानो की तरह नंदा को सहलाने लगी.
‘‘नंदा, मैं सब जानती हूं. बस, एक ही बात पूछना चाहती हूं कि तुम और प्रदीप आपस में झगड़ कर अपनीअपनी राह पर चल दिए. आपस में बनी नहीं, संबंध तोड़ दिया. ठीक ही किया, पर रानो को अकेला क्यों छोड़ दिया? तुम दोनों इतनी बड़ी दुनिया में रह भी लोगे, खुशियां भी ढूंढ़ लोगे, अपनेअपने घर भी बसा लोगे, पर क्या रानो का टूटा जीवन कभी साबुत हो सकेगा? कोई भी कुसूर न होने पर भी सब से ज्यादा सजा रानो को ही मिल रही है. बोलो क्यों? ऐसा क्यों हो रहा है?’’
प्रदीप भी कमरे में आ गया था.
सरला का प्रवाह रुक नहीं रहा था. वर्षों से मन में दबे प्रश्न अपना जवाब मांग रहे थे
‘‘मैं तो अविवाहिता निपूती हूं. पति और संतान की चाहना क्या होती है, यह मुझ से ज्यादा कोई नहीं जानता. तुम लोग रुपएपैसों को संभाल कर बटुए और तिजोरी में रखते हो, पर एक अमूल्य जीवन को पैरों तले रौंद रहे हो. रानो अभी एक अविकसित, मुरझाई कली है, बड़ी होने पर वह सिर्फ एक अविकसित मुरझाया फूल बन कर रह जाएगी.
‘‘तुम लोगों ने अपने मानअपमान और अहंपूर्ति के चक्कर में रानो के जीवन को मिलते प्रकाश और हवा के रास्ते क्यों बंद कर दिए? क्यों उस नन्हे से जीवन को दम घोट कर मार रहे हो? यदि तुम दोनों, जो वयस्क और समझदार हो, परस्पर समझौता नहीं कर सकते तो नासमझ रानो की जिंदगी से किस स्तर पर समझौता करने की अपेक्षा करते हो?’’
प्रदीप और नंदा दोनों अपराधी से सिर झुकाए खड़े थे.
‘‘प्रदीप, क्या तू अपनी जिद नहीं छोड़ सकता? बहू, तुम ही क्या अपने मानअपमान के प्रश्न को नहीं पी सकतीं? तुम लोग जो अपना जीवन जी चुके हो, रानो के जीवन और खुशियों की बलि क्यों ले रहे हो? क्या तुम उसे जीने का मौका नहीं दे सकते?’’
सरला को लगा कि वह सहसा बहुत थक चुकी है और अपनी बात उन तक पहुंचाने में असमर्थ है.
उन्होंने अंतिम प्रयास किया, ‘‘प्रदीप और बहू, क्या तुम लोग फिर से एकसाथ नया जीवन नहीं शुरू कर सकते? पुरानी गलतियों को भूल कर नए तरीके से अपने लिए न सही, रानो के लिए क्या यह टूटा घर फिर से साबुत नहीं बनाया जा सकता? ऐसा घर जहां रानो प्रसन्न रह सके, संपूर्ण जीवन जी सके?’’
सरला धीरेधीरे कमरे से बाहर चली गई. प्रदीप और नंदा सोती हुई रानो को देख रहे थे. उन्हें महसूस हुआ कि एक अदृश्य धागा अपने में लपेट कर नए रिश्तों में बांध रहा है- प्रदीप को, नंदा को और रानो को. सहसा लगा कि नन्ही रानो के जीवन का प्रश्न बहुत बड़ा है और उन दोनों के आपसी रिश्ते उस के आगे बिलकुल तुच्छ, नगण्य हो कर रह गए हैं.