‘‘वे मन ही मन बुदबुदा कर बोले, ‘मुझे तो अपनी बेटी को ले कर सारी दुनिया से डर लगता है.’
‘‘मैं बेटी और उस की सहेलियों के लिए लड्डू, मठरी वगैरह बना रही थी तो पल्लव बोले, ‘कल तो तुम्हारी लाड़ो आ रही है लेकिन आज सुबह से ऐसी तैयारी चल रही है जैसे बेटी नहीं, तुम्हारा दामाद ही आ रहा हो.’
‘‘मैं बोली, ‘आप भी, बस, दामाद भी समय पर आ जाएगा. उस की सहेलियां आ रही हैं कि नहीं?’
‘‘‘हांहां, लाओ, परची दो तो सामान ला दूं.’
‘‘‘तुम्हारी बेटी हम लोगों के लिए गिफ्ट ला रही है,’ पल्लव हंस कर बोले, ‘तुम्हारी बेटी तो तुम्हारी तरह पक्की गृहस्थिन है. रहती वहां है लेकिन मन उस का यहां रहता है. जाने कितनी उस की फुजूलखर्ची की आदत है.’
‘‘रात में उन्हें करवट बदलते देख मैं बोली, ‘क्या बेटी के आने की खुशी में नींद उड़ी हुई है?’
‘‘‘नहीं, बलवंत आया था. वह धमकी दे कर गया है.’
‘‘‘मैं ने प्रांजल को समझा दिया है. वह आखिर आप की बेटी है, आप का कहना जरूर मानेगी. आप सो जाइए, सुबह स्टेशन जाना है. उस की सहेलियां भी तो आ रही हैं.’
‘‘सुबह हंसतीचहचहाती लड़कियां आ गई थीं. हम लोगों के लिए तो घर में जश्न का माहौल था. मुझे किचन से फुरसत नहीं थी तो पल्लव को बाजार के कामों से. पल्लव ने टैक्सी बुला दी थी. हम सब इमामबाड़ा, भूलभुलैया, रेजीडैंसी देखने गए. अमीनाबाद की मशहूर चाट खा कर सब खुश हो गई थीं. फिर हजरतगंज में जा कर चिकन का सूट सब ने खरीदा.
‘‘अगला दिन भी मस्ती में बीता था. पल्लव सुबह से कुछ ढीले थे इसलिए वे घर में ही रहे. हम सब रात में प्रांजल की सहेलियों को टे्रन में बिठा कर थके हुए घर पहुंचे तो पल्लव बेचैनी की हालत में यहांवहां चहलकदमी कर रहे थे. पूछने पर बोले, ‘बेटा, मेरा ब्लडप्रैशर शायद बढ़ा हुआ है. दिनभर की भागदौड़ में अपनी दवा लाना भूल गया था. इसलिए कल से दवा नहीं खाई है.’