अपने नाम का एनाउंसमैंट सुनते ही डा. प्रांजल राउंड अधूरा छोड़ कर तेज कदमों से इमरजैंसी की ओर चल पड़ी. आज सुबह से उस के सिर में हलकाहलका दर्द हो रहा था. मन बेचैन था, जी घबरा रहा था. डा. मृदुल भी तेजी से इमरजैंसी की ओर जा रहे थे.
डा. प्रांजल को देखते ही गर्मजोशी से उस से हाथ मिला कर बोले, ‘‘मैं बहुत खुश हूं. नर्सिंगहोम में आते ही सब से पहले तुम दिख गईं, अब आज का दिन मेरा बहुत अच्छा बीतेगा. तुम मेरी परफैक्ट जीवनसाथी हो.’’
‘‘क्या डा. मृदुल, आप भी, सुबहसुबह ही शुरू हो गए.’’
दोनों ने साथ ही इमरजैंसी में प्रवेश किया. डा. नीरज और डा. हंसा रोगी को प्राथमिक उपचार दे रहे थे.
डा. प्रांजल ने आगे बढ़ कर देखा.
12-13 वर्ष की नाजुक सी लड़की खून से लथपथ लेटी हुई थी. रक्तस्राव बहुत तेजी से हो रहा था. उसे सांस रुकरुक कर आ रही थी.
डा. प्रांजल की निगाह लड़की के चेहरे पर पड़ी, वह चौंक पड़ी. जानापहचाना चेहरा था. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. एकबारगी उस की सोचनेसमझने की शक्ति समाप्त हो गई थी. यह वही चेहरा था जिस ने उस के जीवन से खुशियों को दूर कर दिया था. उस के पापा को उस से दूर कर दिया था.
लड़की का चैकअप करते हुए वह एक पल को ठिठक गई थी. उस की आंखें डबडबा उठी थीं. डा. मृदुल की आंखों से डा. प्रांजल के आंसू छिप न सके थे.
‘‘डा. प्रांजल, तुम ठीक तो हो?’’
‘‘जी, डा. मृदुल, आप फिक्र न करें.’’
अपने सिर को झटकते हुए
डा. प्रांजल ने तुरंत आवश्यक उपचार शुरू किया. डाक्टरों की टीम का अथक प्रयास अपना असर शीघ्र दिखाने लगा था. लगभग घंटेभर बाद लड़की की सांसों की गति सुधरने लगी थी. परंतु बलात्कारी ने मासूम के नाजुक अंगों को बर्बरतापूर्वक चोट पहुंचाई थी, इसलिए उस का रक्तस्राव लगातार जारी था. उस को ठीक करने के लिए औपरेशन तुरंत आवश्यक था.