बेटी के दुख से दुखी हो कर प्रीतिजी ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं. उसी समय दबेपांव डा. मृदुल उन के पास आ कर खड़े हो गए थे. आहट होते ही उन्होंने आंखें खोलीं तो मृदुल को देखते ही वे उठ कर बैठ गईं.
‘‘बैठिए मृदुलजी.’’
‘‘कैसी हैं, आंटी, प्रांजल ने बताया था कि आप की तबीयत नासाज है, इसलिए मेरा मन नहीं माना और मैं आप से मिलने आ गया.’’
‘‘मैं तो ठीक हूं. मुझे तो प्रांजल की फिक्र रहती है. मेरे बाद वह बिलकुल अकेली हो जाएगी.’’
‘‘चलिए, आप की फिक्र मैं आज ही दूर करता हूं. आंटी, मैं प्रांजल का हाथ आप से मांगता हूं.’’
प्रीतिजी मृदुल को पसंद करती थीं परंतु उन की बेटी तो राजी हो? फिर उस का अतीत जानने के बाद मृदुल की प्रतिक्रिया क्या होगी? यह सोच कर वे डर गईं. उन्होंने मृदुल का हाथ अपने हाथ में ले लिया, ‘‘तुम तो मेरे बेटे की तरह हो. क्या आज अस्पताल में कोई सीरियस केस आया था?’’
‘‘हां, एक लड़की के बलात्कार का केस आया था. उस को देखने के बाद से ही प्रांजल का मूड उखड़ाउखड़ा हो गया. उसे देख कर वह रोंआसी हो उठी थी.’’
‘‘ओह,’’ वे डा. मृदुल की ओर देख कर बोलीं, ‘‘काश, वह घिनौना पल उस के जीवन में न आया होता.
‘‘मैं पल्लव और बेटी प्रांजल के साथ खुशनुमा जिंदगी जी रही थी. पल्लव स्वयं डाक्टर थे. उन का अपना क्लीनिक था जिस में अब प्रांजल बैठती है. उन की प्रैक्टिस ठीकठाक चलती थी. वे मरीजों का इलाज अपने पैसे से करते थे. वे दिल के बहुत दयालु थे. गरीबों को मुफ्त में दवा देते थे, ऊपर से फल खरीदने के लिए अपनी जेब से पैसा देते थे. इसलिए हम लोगों की माली हालत खस्ता रहती थी. उन्होंने बेटी के पैदा होते ही उसे डाक्टर बनाने का निश्चय कर लिया था. उन्होंने अपनी जरूरतों में कटौती कर के उस का ऐडमिशन शहर के सब से अच्छे स्कूल में करवाया था. प्रांजल शुरू से पढ़ने में बहुत तेज थी.