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केले केे पत्ते की सब्जी इस तरह से बनाएं

केला एक ऐसा फल है जो हर शहर और गांव में आसानी से मिल जाता है.  केला का इस्तेमाल बहुत सारे तरीके से किया जाता है. कुछ लोग केला का सेवन फल के रूप में करते हैं यानी पक्के हुए केले खाना पसंद करते हैं. ऐसे में आग आपको केले के पत्ते से कैसे सब्जी बनती है.

शायद इससे पहले आपने कभी नहीं सोचा होगा कि केले के पत्ते की सब्जी बनती हैं.

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समाग्री

1 केला का पत्ता

एक चुटकी जीरा

हींग

2 साबुत लाल मिर्च

1-2 हरी मिर्च

थोड़ा सा अदरक

पिसा धनिया

एक चम्मच आमचूर

एक चम्मच तेल

विधि

-केले के मोटे के डंडल को हटा दें, अब केले के अच्छे से साफ कर लें. अब छलनी पर उसे छोड़ दें. जब पूरा पानी निकल जाए तो उसे अच्छे से साफ कर लें. उसके बाद केले को बारीक काट लें.

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-अब कड़ाही में माध्यम आंच पर तेल गर्म करें, उसके बाद उसमें जीरा डालें, कुछ सेकेण्ड भूनें और फिर उसमें हींग डालें जब हींग और जीरा भून जाए तो उसमें मिर्च डाल दें. अब उसमें बारीक कटी हुई लहसुन और अदरक को डालकर भूनें.

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– अब कटी हुई केले डाले और उसे अच्छे से भूनें, अब इसमें नमक और पिसा धनिया डालकर अच्छे से चलाएं. कुछ देर चलाने के बाद उसमें आमचूर पाउडर, धनिया पाउडर , खटाई डालकर अच्छे से चलाएं.

कुछ देर चलाने के बाद स्वादिष्ट पौष्टिक केले की सब्जी तैयार है अब आप केले की सब्जी को चावल या फिर रोटा के साथ खा सकते हैं.

 

प्रहरी-भाग 1 : कैसे उतरा विभा की आंखों पर पड़ा नासमझी का परदा

विभा रसोई में भरवां भिंडी और अरहर की दाल बनाने की तैयारी कर रही थी. भरवां भिंडी उस के बेटे तपन को पसंद थी और अरहर की दाल की शौकीन उस की बहू सुषमा थी. इसीलिए सुषमा के लाख मना करने पर भी वह रसोई में आ ही गई. सुषमा और तपन को अपने एक मित्र के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में जाना था और उस के लिए उपहार भी खरीदना था. सो, दोनों घर से जल्दी निकल पड़े. जातेजाते सुषमा बोली, ‘‘मांजी, ज्यादा काम मत कीजिए, थोड़ा आराम भी कीजिए.’’

विभा ने मुसकरा कर सिर हिला दिया और उन के जाते ही दरवाजा बंद कर दोबारा अपने काम में लग गई. जल्दी ही उस ने सबकुछ बना लिया. दाल में छौंकभर लगाना बाकी था. कुछ थकान महसूस हुई तो उस ने कौफी बनाने के लिए पानी उबलने रख दिया. तभी दरवाजे की घंटी बजी. जैसे ही विभा ने दरवाजा खोला, सुषमा आंधी की तरह अंदर घुसी और सीधे अपने शयनकक्ष में जा कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. विभा अवाक खड़ी देखती ही रह गई.

सिर झुकाए धीमी चाल से चलता तपन भी पीछेपीछे आया. उस का भावविहीन चेहरा देख कुछ भी अंदाजा लगाना कठिन था. विभा पिछले महीने ही तो यहां आई थी. किंतु इस दौरान में ही बेटेबहू के बीच चल रही तनातनी का अंदाजा उसे कुछकुछ हो गया था. फिर भी जब तक बेटा अपने मुंह से ही कुछ न बताए, उस का बीच में दखल देना ठीक न था. जमाने की बदली हवा वह बहुत देख चुकी थी. फिर भी न जाने क्यों इस समय उस का मन न माना और वह सोफे पर बैठे, सिगरेट फूंक रहे तपन के पास जा बैठी.

तपन ने सिगरेट बुझा दी तो विभा ने पूछा, ‘‘सुषमा को क्या हुआ है?’’ ‘‘कुछ भी नहीं,’’ वह झल्ला कर बोला, ‘‘कोई नई बात तो है नहीं…’’

‘‘वह तो मैं देख ही रही हूं, इसीलिए आज पूछ बैठी. यह रोजरोज की खींचतान अच्छी नहीं बेटा, अभी तुम्हारे विवाह को समय ही कितना हुआ है? अभी से दांपत्य जीवन में दरार पड़ जाएगी तो आगे क्या होगा?’’ विभा चिंतित सी बोली.

‘‘यह सब तुम मुझे समझाने के बजाय उसे क्यों नहीं समझातीं मां?’’ कह कर तपन उठ कर बाहर चला गया, जातेजाते क्रोध में दरवाजा भी जोर से ही बंद किया. विभा परेशान हो उठी कि तपन को क्या होता जा रहा है? बड़ी मुश्किल से तो वे लोग उस की रुचि के अनुसार लड़की ढूंढ़ पाए थे. उस ने तमाम गुणों की लिस्ट बना दी थी कि लड़की सुंदर हो, खूब पढ़ीलिखी हो, घर भी संभाल सके और उस के साथ ऊंची सोसाइटी में उठबैठ भी सके, फूहड़पन बिलकुल न हो आदिआदि.

कुछ सोचते हुए विभा फिर रसोई में चली गई. कौफी का पानी खौल चुका था. उस ने 3 प्यालों में कौफी बना ली. बाथरूम में पानी गिरने की आवाज से वह समझ गई कि सुषमा मुंह धो रही होगी, सो, उस ने आवाज लगाई, ‘‘सुषमा आओ, कौफी पी लो.’’ ‘‘आई मांजी,’’ और सुषमा मुंह पोंछतेपोंछते ही बाहर आ गई.

कौफी का कप उसे पकड़ाते विभा ने उस की सूजी आंखें देखीं तो पूछा, ‘‘क्या हुआ था, बेटी?’’ सुषमा सोचने लगी, पिछले पूरे एक महीने से मां उस के व तपन के झगड़ों में हमेशा खामोश ही रहीं. कभीकभी सुषमा को क्रोध भी आता था कि क्या मां को तपन से यह कहना नहीं चाहिए कि इस तरह अपनी पत्नी से झगड़ना उचित नहीं?

‘‘बताओ न बेटी, क्या बात है?’’ विभा का प्यारभरा स्वर दोबारा कानों में गूंजा तो सुषमा की आंखें छलछला उठीं, वह धीरे से बोली, ‘‘बात सिर्फ यह है कि इन्हें मुझ पर विश्वास नहीं है.’’ ‘‘यह कैसी बात कर रही हो?’’ विभा बेचैनी से बोली, ‘‘पति अपनी पत्नी पर विश्वास न करे, यह कभी हो सकता है भला?’’

‘‘यह आप उन से क्यों नहीं पूछतीं, जो भरी पार्टी में किसी दूसरे पुरुष से मुझे बातें करते देख कर ही बौखला उठते हैं और फिर किसी न किसी बहाने से बीच पार्टी से ही मुझे उठा कर ले आते हैं, भले ही मैं आना न चाहूं. मैं क्या बच्ची हूं, जो अपना भलाबुरा नहीं समझती?’’ विभा की समझ में बहुतकुछ आ रहा था. तसवीर का एक रुख साफ हो

चुका था.अपनी सुंदर पत्नी पर अपना अधिकार जमाए रखने की धुन में पति का अहं पत्नी के अहं से टकरा रहा था. वह प्यार से बोली, ‘‘अच्छा, तुम कौफी पियो, ठंडी हो रही है. मैं तपन को समझाऊंगी,?’’ यह कह कर विभा रसोई में चली गई. कुकर का ढक्कन खोल दाल छौंकी तो उस की महक पूरे घर में फैल गई. तभी तपन भी अंदर आया और बिना किसी से कुछ बोले कौफी का कप रसोई से उठा कर अंदर कमरे में चला गया.

रात को जब तीनों खाना खाने बैठे, तब भी तपन का मूड ठीक नहीं था. इधर सुषमा भी अकड़ी हुई थी. वह डब्बे से रोटी निकाल कर अपनी व विभा की प्लेट में तो रखती, लेकिन तपन के आगे डब्बा ही खिसका देती. एकाध बार तो विभा चुप रही, फिर बोली, ‘‘बेटी, तपन की प्लेट में भी रोटी निकाल कर रखो.’’ इस पर सुषमा ने रोटी निकाल कर पहले तपन की प्लेट में रखी तो उस का तना हुआ चेहरा कुछ ढीला पड़ा.

खाने के बाद विभा रोज कुछ देर घर के सामने ही टहलती थी. सुषमा या तपन में से कोई एक उस के साथ हो लेता था. उन दोनों ने उसे यहां बुलाया था और दोनों चाहते थे कि जितने दिन विभा वहां रहे, उस का पूरा ध्यान रखा जाए. इसीलिए जब विभा ने बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला तो पांव में चप्पल डाल कर तपन भी साथ हो लिया.

कुछ दूर तक मौन चलते रहने के बाद विभा ने पूछा, ‘‘सुषमा को क्या तुम पार्टी से जबरदस्ती जल्दी ले आए थे?’’ ‘‘मां, अच्छेबुरे लोग सभी जगह होते हैं. सुषमा जिस व्यक्ति के साथ बातें किए जा रही थी उस के बारे में दफ्तर में किसी की भी राय अच्छी नहीं है. दफ्तर में काम करने वाली हर लड़की उस से कतराती है. अब ऐसे में सुषमा का इतनी देर तक उस के साथ रहना…और ऊपर से वह नालायक भी ‘भाभीजी, भाभीजी’ करता उस के आगेपीछे ही लगा रहा, क्योंकि कोई और लड़की उसे लिफ्ट ही नहीं दे रही

Crime Story: पाप किसी का सजा किसी को

प्रिंस का दुर्भाग्य यह था कि उस ने एक ऐसा दृश्य देख लिया था, जो उसे नहीं देखना चाहिए था. यही उस की हत्या का कारण बना. वह सतरूपा और अंकित के आंतरिक संबंधों की भेंट चढ़ गया, लेकिन…
पुष्पा देवी सुबह 10 बजे मंदिर से घर आईं. उन्होंने पूजा का थाल चौकी पर रखा फिर चारों ओर नजर दौड़ाई. जब प्रिंस दिखाई नहीं पड़ा तो उस ने आवाज लगाई, ‘‘प्रिंस कहां हो तुम? आ कर प्रसाद ले लो.’’
8 वर्षीय प्रिंस पुष्पा का एकलौता बेटा था. उसे घर से गायब देख वह घबरा गई. घर से बाहर जा कर वह उसे गली में खोजने लगी. जब प्रिंस गली में कहीं नहीं दिखा, तब पुष्पा ने उस की खोजबीन आसपड़ोस के घरों में की, पर उस का पता नहीं चला.

पुष्पा के घर से चंद घर दूर उस का देवर राकेश रहता था. उस ने सोचा कहीं वह चाचा के घर न चला गया हो. वह तुरंत देवर के घर पहुंची. राकेश घर पर ही था. पुष्पा ने उस से पूछा, ‘‘देवरजी, प्रिंस घर से गायब है. जब मैं मंदिर गई थी, तब घर के बाहर खेल रहा था. वापस आई तो नहीं था. मैं ने पासपड़ोस के घरों में खोजबीन की, पर उस का पता नहीं चला. कहीं वह तुम्हारे घर तो नही है.’’‘‘भाभी, प्रिंस कुछ देर पहले आया था. मैं ने उसे नाश्ता भी कराया था. उस के बाद वह चला गया था. भाभी, आप घबराइए नहीं. यहीं कहीं होगा. चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं.’’

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फिर देवरभौजाई ने मिल कर गांव की हर गली छान मारी. आसपड़ोस के हर घर का दरवाजा खटखटा कर पूछताछ की. लेकिन प्रिंस का पता न चला. पुष्पा के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं. मन घबरा रहा था. राकेश के माथे पर भी चिंता की लकीरें उभर आई थीं. मन में उथलपुथल होने लगी थी.
चौसड़ गांव में रहने वाली पुष्पा के पति राजेश कुमार कुशवाहा प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. वह भागीरथी डिग्री कालेज में प्रवक्ता थे. उस समय वह कालेज में थे. पुष्पा ने पति को फोन पर प्रिंस के गायब होने की जानकारी दी और तुरंत घर आने को कहा.राकेश ने भी फोन पर बात की और चिंता जताते हुए भाई से अनुरोेध किया कि वह कैसा भी जरूरी काम हो, छोड़ कर घर आ जाएं.

अपने एकलौते बेटे प्रिंस के गायब होने की जानकारी पा कर प्रोफेसर राजेश कुशवाहा घबरा गए. वह तुरंत घर आ गए. उन्होंने भी आसपास पूछताछ की लेकिन किसी से उन्हें कोेई सुराग नहीं मिला. इस से उन की चिंता बढ़ गई. उन्होंने भाई राकेश को साथ लिया और मोटरसाइकिल से पूजास्थल, बस व टैंपो स्टैंड पर प्रिंस की खोज की. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. आखिरकार निराश हो कर वह घर लौट आए.
प्रोफेसर राजेश कुशवाहा के मन में बारबार सवाल उठ रहा था कि आखिर 8 साल का बच्चा कहां चला गया. अगर वह गांव में भटक गया होता तो वह उसे ढूंढ लेते. उन के मन में विचार आया, कहीं किसी ने उन के बेटे का अपहरण तो नहीं कर लिया.

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पुलिस को दी सूचना

राजेश कुमार कुशवाहा ने जब घर आ कर बताया कि प्रिंस का कुछ पता नहीं लग रहा है. तब घर में रोनाधोना शुरू हो गया. आसपड़ोस के लोग भी आ गए.
प्रिंस के गायब होने से सभी चिंतित थे. पुष्पा का तो रोरो कर बुरा हाल था. वह बारबार पति से अनुरोध कर रही थी कि जैसे भी संभव हो, उस के जिगर के टुकड़े को वापस लाओ. राजेश पुष्पा को धैर्य बंधा रहे थे. यह बात 19 अक्तूबर, 2020 की है.जब दिन भर खोजने के बाद भी प्रिंस का कुछ पता नहीं चला तो राजेश शाम 7 बजे थाना विसंडा पहुंचे. थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह उस समय थाने में ही थे. उन्होंने उन्हें अपने 8 वर्षीय बेटे प्रिंस के अचानक घर से गायब होने की जानकारी दी और रिपोर्ट दर्ज कर प्रिंस को खोजने का अनुरोध किया.

फिरौती की आई काल

नरेंद्र सिंह ने तत्काल प्रिंस की गुमशुदगी दर्ज कर ली और आश्वासन दिया कि वह उन के बेटे को खोजने का पूरा प्रयास करेंगे.प्रोफेसर राजेश कुशवाहा गुमशुदगी दर्ज करा कर घर आए तो उन के मित्र व परिवार के लोग घर पर मौजूद थे. राजेश उन से प्रिंस के गायब होने के संबंध में विचारविमर्श करने लगे. अभी वह बात कर ही रहे थे कि उन के मोबाइल फोन पर काल आई. राजेश ने काल रिसीव कर हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘मास्टरजी, मेरी बात गौर से सुनो. मैं ने तुम्हारे बच्चे का अपहरण कर लिया है. 5 लाख फिरौती चाहिए, जल्दी इंतजाम करो. पुलिस को सूचना दी तो बच्चे की लाश मिलेगी.’’
इस के बाद उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. राजेश हैलोहैलो ही कहते रहे.

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अपहरण की जानकारी पा कर सभी चिंतित हो उठे. पुष्पा रोने लगी और पति से बोली, ‘‘मेरे पास जो भी पैसा है, सब ले लो. सोनेचांदी के गहने भी बेच दो. लेकिन मेरे लाल को छुड़ा कर ले आओ. उस के बिना मैं नहीं रह पाऊंगी.’’पुष्पा के करुण रूदन से सभी की आंखें भर आईं. राजेश ने पत्नी को समझाया कि वह जल्द ही फिरौती की रकम दे कर प्रिंस को छुड़ा लेंगे. उसे कुछ नहीं होगा. राजेश और पुष्पा ने वह रात आंखोंआंखों में बिताई.

सवेरा होते ही उन के घर पर फिर जमावड़ा शुरू हो गया. इसी बीच राकेश किसी काम से तालाब की ओर गया तो उस ने तालाब किनारे भतीजे प्रिंस की एक चप्पल पड़ी देखी. उस का माथा ठनका. वह सोचने लगा, ‘‘कहीं प्रिंस तालाब में तो नहीं डूब गया.’’राकेश ने यह बात बड़े भाई राजेश को बताई तो राजेश दरजनों लोगों के साथ तालाब पर पहुंच गए. दरअसल, राजेश के घर से तालाब की दूरी मात्र 100 मीटर थी और वहां तक प्रिंस आसानी से पहुंच सकता था. अत: शक के आधार पर गांव के 2 तैराक तालाब में उतरे. उन्होंने हरसंभव प्रयास किया. लेकिन प्रिंस का पता नहीं चला.

तालाब के किनारे पुआल और कंडे का ढेर लगा था. पुआल के ढेर के पास प्रिंस के पैर की दूसरी चप्पल पड़ी थी. उत्सुकतावश कुछ लोगों ने पुआल के ढेर को पलटा तो सब की आंखें फटी रह गईं. पुआल और कंडे के बीच 8 वर्षीय प्रिंस की लाश पड़ी थी. उस के मुंह पर टेप चिपका था और हाथपैर रस्सी से बंधे थे.
पुष्पा और परिवार की अन्य महिलाओं ने प्रिंस की लाश देखी तो वे बिलख पड़ीं. सब एकदूसरे को धैर्य बंधाने लगीं. पुष्पा तो रोतेरोते मूर्छित हो गईं. महिलाएं उन्हें घर ले गईं. राकेश और राजेश भी प्रिंस का शव देख कर रो रहे थे. प्रोफेसर के मासूम बेटे प्रिंस की हत्या की खबर जंगल की आग की तरह चौसड़ और आसपास के गांवों में फैली तो भारी भीड़ उमड़ पड़ी.

भीड़ हुई उत्तेजित

इसी बीच थाना विसंडा पुलिस को प्रिंस की हत्या की खबर मिली तो थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह तथा डीएसपी आनंद कुमार पांडेय पुलिस टीम के साथ चौसड़ गांव आ गए. घटनास्थल पर भारी भीड़ देख कर पुलिस के हाथपांव फूल गए. हालात तब ज्यादा बिगड़ गए, जब उत्तेजित भीड़ पुलिस विरोधी नारे लगाने लगी. उन की मांग थी कि जब तक आला अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह शव को नहीं उठने देंगे.
स्थिति को भांप कर डीएसपी आनंद कुमार पांडेय ने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी और जनता की मांग से अवगत कराया. जानकारी पा कर आईजी (बांदा) के. सत्यनारायण, एसपी डा. सिद्धार्थ शंकर मीणा तथा एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह चौहान चौसड़ गांव पहुंचे. सुरक्षा की दृष्टि से उन्होंने अतिरिक्त फोर्स मंगवा ली थी.

पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित जनता को आश्वासन दिया कि मासूम की हत्या
का जल्द ही परदाफाश होगा और कातिल पकड़े जाएंगे. पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर जनता का गुस्सा ठंडा पड़ा तो उन्होंने आननफानन में घटनास्थल का निरीक्षण किया. फिर शव को पोस्टमार्टम हेतु बांदा के जिला अस्पताल भिजवा दिया. एसपी डा. सिद्धार्थ शंकर मीणा ने हत्या का परदाफाश करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया. टीम की कमान एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह चौहान को सौंपी गई. इस टीम में थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह, चौकी इंचार्ज पी.आर. गौरव, एसआई अनिल सिंह, सत्येंद्र मिश्र, महिला सिपाही विमला, अंजू तथा डीएसपी आनंद कुमार पांडेय को शामिल किया गया.
गठित पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के अनुसार प्रिंस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. इस के बाद टीम ने मृतक प्रिंस के मातापिता व चाचा से पूछताछ की.

पिता राजेश कुशवाहा ने बताया कि 19 अक्तूबर की रात 10 बजे उन के मोबाइल पर एक काल आई थी, जिस में प्रिंस के अपहरण की बात कही गई थी और 5 लाख की फिरौती मांगी गई थी. उन्हें शक है कि बेटे की हत्या में परिवार के ही किसी सदस्य का हाथ है. उन्होंने पुलिस को वह नंबर दिया, जिस से काल आई थी. उन्होंने हत्या का शक परिवार के जितेंद्र कुशवाहा व उस की पत्नी सतरूपा पर जताया.

21 अक्तूबर, 2020 की शाम 4 बजे पुलिस टीम ने शक के आधार पर जितेंद्र और उस की पत्नी सतरूपा को उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना विसंडा ले आई.उधर जिस नंबर से फिरौती का फोन आया था, पुलिस ने उस की जांच की तो पता चला कि वह नंबर विसंडा के छोटा गुप्ता के नाम से है. शक के आधार पर पुलिस छोटा गुप्ता को भी उस के घर से उठा कर थाना विसंडा ले आई.पुलिस टीम ने सब से पहले जितेंद्र कुशवाहा से पूछताछ की. उस ने बताया कि 19 अक्तूबर की सुबह 7 बजे वह खेत पर पानी लगाने गया था. दोपहर 12 बजे लौट कर घर आया तो पत्नी सतरूपा ने बताया कि मास्टर राजेश का लड़का प्रिंस लापता हो गया है. तब वह उन के घर गया और सब के साथ प्रिंस की खोज में जुटा रहा. प्रिंस की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है.

जितेंद्र के बाद पुलिस टीम ने उस की पत्नी सतरूपा से पूछताछ शुरू की. सतरूपा जब से थाने आई थी, उस का चेहरा उतरा हुआ था, वह घबराई हुई भी.पूछताछ में पहले तो वह पुलिस को बरगलाती रही . लेकिन जब सख्ती की गई तो उस ने प्रिंस की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि प्रिंस की हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी अंकित कुशवाहा व उस के दोस्त छोटा गुप्ता ने दिया था.
यह पता चलते ही पुलिस टीम ने अंकित कुशवाहा को भी रात में उस के घर में ही छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया. यही नहीं, पुलिस टीम ने आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल रस्सी, टेप तथा मोबाइल फोन सतरूपा के घर से बरामद कर लिया. सतरूपा के पति जितेंद्र कुशवाहा का हत्या में कोई हाथ नही था, अत: उसे थाने से जाने दिया गया.

चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आला कत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह ने मृतक के पिता राजेश कुमार कुशवाहा की तहरीर पर भादंवि की धारा 363/364/302/201/34 के तहत सतरूपा, अंकित कुशवाहा छोटा गुप्ता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों से की गई पूछताछ में एक ऐसी औरत का खेल सामने आया, जिस ने अपना पाप छिपाने के लिए एक घर का चिराग बुझा दिया था.
अवैध संबंधों के चलते हुई हत्या

बांदा जिला की अतर्रा तहसील में एक बड़ी आबादी वाला गांव है चौसड़. इसी गांव में राजेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा एकलौता बेटा प्रिंस था.
राजेश कुशवाहा भागीरथी डिग्री कालेज में प्रवक्ता थे. उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी, वह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. राजेश कुमार का बेटा प्रिंस कुशाग्र बुद्धि व चंचल स्वभाव का था. राजेश और पुष्पा उसे भरपूर प्यार देते थे.

पुष्पा के लिए प्रिंस जिगर का टुकड़ा था. प्रिंस घर वालों का ही दुलारा नहीं था, बल्कि मोहल्ले के लोग भी उसे प्यार करते थे. वह घरघर का कन्हैया था. प्रिंस का चाचा राकेश तो उस पर जान छिड़कता था. वह अकसर नाश्ता उसी के साथ करता था.

राजेश के घर से 4 घर दूर जितेंद्र कुशवाहा रहता था. वह किसान था. लगभग 7 साल पहले उस का विवाह सतरूपा से हुआ था. सतरूपा साधारण रंगरूप वाली मनचली औरत थी और चमकदमक से रहती थी. वह 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. 2 बेटियों के जन्म के बाद जितेंद्र का मन स्त्री संसर्ग से उचट गया था, जबकि सतरूपा की शारीरिक भूख बढ़ गई थी. वह हर रात पति का साथ चाहती थी. लेकिन जितेंद्र उस का साथ नहीं दे पाता था. वह किसानी में ही व्यस्त रहता था.

जितेंद्र के घर अंकित कुशवाहा का आनाजाना था. अंकित पड़ोस में ही रहने वाले मास्टर आनंद कुमार का बिगड़ैल बेटा था. वह शरीर से हृष्टपुष्ट तथा अविवाहित था. औरत उस की कमजोरी थी. जितेंद्र के घर आतेजाते उस की नजर जितेंद्र की पत्नी सतरूपा पर पड़ी. वह उस पर डोरे डालने लगा.
सतरूपा और अंकित के बीच देवरभाभी का नाता था. सो दोनों के बीच खूब हंसीमजाक होता था. सतरूपा मनचली औरत थी और पति सुख से वंचित रहती थी, सो जल्दी ही वह अंकित के प्यार जाल में फंस गई और दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया.

सतरूपा अविवाहित अंकित की इतनी दीवानी बन गई कि वह जब भी प्रणय निवेदन करता सतरूपा उसे समर्पित हो जाती थी. अंकित ऐसे समय घर आता था जब सतरूपा का पति खेतों पर होता था.

प्रिंस ने देख लिया था

19 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे जितेंद्र अपने खेतों में पानी लगाने चला गया. उस के जाने के कुछ देर बाद अंकित घर आ गया. आते ही उस ने सतरूपा को बांहों में भर लिया और कमरे में ले गया. जल्दी में दोनों घर का मुख्य दरवाजा बंद करना भूल गए. कमरे के अंदर अंकित और सतरूपा जिस्म की प्यास बुझा ही रहे थे कि राजेश का 8 वर्षीय बेटा प्रिंस कमरे में आ गया. उस ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया.प्रिंस कहीं भेद न खोल दे, अत: दोनों ने मासूम प्रिंस को पकड़ लिया और उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फेवीक्विक लगा कर होेंठ बंद कर दिए तथा मुंह पर टेप लगा दिया ताकि वह चीखचिल्ला न सके. इस के बाद गला दबा कर दोनों ने प्रिंस को मार डाला. लाश को कमरे में ही छिपा दिया.

इस के बाद अंकित ने अपने दोस्त छोटा गुप्ता को सारी जानकारी दे कर मदद मांगी. छोटा गुप्ता मदद को राजी हो गया. उस ने ही रात में राजेश को अपहरण और फिरौती के लिए फोन किया था, ताकि घर वाले और पुलिस गुमराह हो जाएं. आधी रात को तीनों ने मिल कर प्रिंस के शव को घर से कुछ दूरी पर स्थित तालाब के किनारे पुआल और कंडों के बीच छिपा दिया.उधर पुष्पा देवी मंदिर से घर लौटीं तो प्रिंस घर से नदारद था. उस ने खोज शुरू की और पति को जानकारी दी. राजेश अपने साथियों के साथ प्रिंस की खोज करता रहा, लेकिन उस का पता न चला. दूसरे रोज पुआल के ढेर से प्रिंस का शव बरामद हुआ.
थाना विसंडा पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच प्रारंभ की तो प्रिंस की हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

22 अक्तूबर, 2020 को थाना विसंडा पुलिस ने अभियुक्त अंकित कुशवाहा, छोटा गुप्ता तथा सतरूपा को बांदा की जिला अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.
सैक्स के भूखे लोग दरवाजा क्यों खुला छोड़ देते हैं, समझ के बाहर है.

देवोलीना भट्टचार्जी ने किया दिव्या भटनागर के पति के बारे में खुलासा, पति उन्हें मारता-पिटता था

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ कि फेम दिव्या भटनागर के मौत से पूरा इंडस्ट्री हिला हुआ है. दिव्या भटनागर की मौत से उनके सभी साथी कलाकार को सदमा लगा हुआ है. दिव्या कि सबसे क्लोज सहेली रही देवोलीना भट्टाचार्जी का बयान सोशस मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

देवोलीना भट्टाचार्जी ने दिव्या को भावभीन श्रद्धाजलीं देने के बाद एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में बिग बॉस 13 फें एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्जी ने बताया है कि दिव्या का पति गगन उन्हें मारता- पिटता था. और दिव्या को धोखा दे रहा था.

इसी के साथ देवोलीना ने वीडियो में ये भी बताया कि गगन के खिलाफ शिमला में मोलेशटेशन का केस दर्ज है. यह सच्चाई जानने के बाद सभी के होश उड़ गए हैं. दिव्या अपने घरेलू मामले से भी परेशान थीं.

34 साल की दिव्या भटनागर के जाने का दुख हर किसी को है. वो काफी दिनों से वेटिलेटर पर सीरियस हालत में थी. दिव्या ये रिश्ता क्या कहलाता है में गुलाबो के किरदार से मशहूर थीं. उन्हें कुछ वक्त पहले नेमोनिया हो गया था.

नेमोनिया के अलावा उन्हें हाइपरटेंशन की भी बीमारी थीं. और उनकी कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटीव आई थी. कुछ दिन पहले दिव्या की हालात ज्यादा खराब हो गई थी जिसके बाद उन्हें मुंबई के ख अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. जिसके कुछ दिनों बाद ही दिव्या ने दम तोड़ दिया. उनकी मौत से पूरी इंडस्ट्री में सन्नाटा छाया हुआ है. सभी साथी दोस्तों ने उन्हें श्रद्धाजली दी है.

वहीं देवोलीना भट्टचार्जी ने लिखा है कि पोस्ट में कि ‘जब कोई साथ नहीं होता था तब तू ही होती थी. जिसे मैं डांट सकती थी रूठ सकती थी, अपने दिल की बात कह सकती थी. मैं जानती हूं जिंदगी तुम्हारे लिए बहुत कठिन थी. दर्द बहुत असहनीय थी. आज तुम एएक बेहतर स्थान पर हो.’

बिग बॉस 14: घर से बाहर जानें के बाद राहुल वैद्या ने फैंस के लिए लिखा इमोशनल पोस्ट

बिग बॉस 14 में एकबार फिर सलमान खान ने चौकाने वाला फैसला लिया है. इस फैसले से लगभग हर कोई हैरान हो गया है. राहुल वैद्या को घर से बेघर कर दिया है. राहुल वैद्या के शॉकिंग  इविक्शन से हर कोई हैरान है.

राहुल वैद्या को घर में एक मजबूत दावेदार माना जा रहा था. ऐसे में सिंगर को खुद ही घर से बाहर निकलने के फैसले ने उन्हें चौका दिया है. घर से बाहर आते ही राहुल वैद्या अपने चाहने वालों के सामने आएं हैं. राहुल वैद्या ने सभी के सामने आने के बाद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट शेयर करते हुए अपने सभी चाहने वाले लोगों को थैक्स बोला है.

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राहुल वैद्या ने पोस्ट लिखते हुए कहा है कि मैं अपने सभी प्रशंसकों को धन्यवाद देना चाहता हूं, आप सभी के बिना ये सफर आसान नहीं था. मुझे बहुत खुशी है कि मैं आप सभी का मनोरंजन कर पाया. आप सभी के प्रतिक्रया को देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि हमारा फैनडम कितना विशाल है.

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राहुल वैद्या के इविकेश्न के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि मेकर्स ने उन्हें जान बुझकर बाहर किया है. कुछ लोगों का कहना है कि राहुल का हौसला लगातार तोड़ा गया था क्योंकि उन्होंने नेशनल टीवी के सामने अपने प्यार का इजहार किया.

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जबकी इसका जवाब उन्हें शो में नहीं मिला राहुल ने कुछ दिन पहले भी यह बात साफ करते हुए कहा था कि उन्हें गर कि याद सता रही है. ऐसे में राहुल वैद्या के जाने से काफी लोगों का दिल टूटा है.

किसान आन्दोलन: जब किसानों ने रागिणी गा कर सरकार को घेर लिया

लेखक-रोहित और शाहनवाज

“सो सो पड़े मुसीबत बेटा, मर्द जवान में,
ओरे भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में
मेरे जैसा कौन जणदे पूत जहान में,
भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में
दुनिया में तेरे गीत सुनूंगी, और कदे ना कदे माँ फेर बनूंगी,
और अगले जनम में फेर जनूंगी, ऐसी संतान मैं,
भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में…”

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शाम के करीब 4:30 बज रहे थे. दिल्ली हरियाणा के टिकरी बॉर्डर पर किसान आन्दोलन में मंच के पास सब कुछ शांत हो गया था. मंच से काफी दूर दूर तक सब हलचल मानों बंद हो गई थी. अचानक से लाउड स्पीकर पर एक धुन बजने लगी. ये मटके के बजने की आवाज थी. मटके के मुह पर काला रबर बंधा था, जो की किसी दुसरे रबर के संपर्क में आने पर ‘टुंग टुंग’ जैसी आवाज निकल रही थी.

मंच पर करीब 5-6 लोग मिल कर मटका बजा रहे थे और एक आदमी हारमोनियम बजा रहा था. ये धुन इतनी प्यारी थी की सिर्फ चुप चाप खड़े हो कर सुनने का मन कर रहा था. उसी बीच मंच पर उपस्थित एक और व्यक्ति, थोड़ी भारी सी आवाज में और हरियाणवी बोली में ऊपर लिखे गीत को गाने लगे.

कोई भी इंसान उस आवाज को सुनता तो यह उस आवाज को सुरीला नहीं कहता. लेकिन जैसे ही गाने में “भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में…” ये लाइन आई तो जितने लोग उस वक्त मौजूद थे उन के अन्दर न जाने कहां से एक ऐसा जोश और ऐसा उमंग भर गया, जो शायद ही अभी शब्दों में बयान करना मुमकिन है.

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ऊपर इन लाइन का मतलब समझाते हुए हरियाणा के रोहतक में टिटोली गांव से प्रदर्शन में शामिल हुए रविंदर ने बताया कि, “इस गाने में भगत सिंह की माँ, लोगों को ये मेसेज देना चाहती है कि भगत सिंह को चार दिवारी में बाँध कर नहीं रखा जा सकता है. और उन की माँ ये बताना चाहती है कि उन को गर्व है की उन्होंने भगत सिंह जैसे पूत को जन्म दिया है और अगले जनम में अगर फिर से माँ बनी तो फिर से भगत सिंह जैसे बेटे को जनम देंगी.”

उस वक्त की सब से खास बात ये थी कि वहां मौजूद लोग चुपचाप खड़े हो कर रागिणी सुनने में मगन थे. लेकिन जब भी पंचिंग लाइन (भगत सिंह कदे जी घबरा जा…) आती तो सब एक लय में मंच पर मौजूद रागिणी गाने वाले व्यक्ति की आवाज से आवाज मिला कर गाने लगते. ये बेहद जोशीला माहौल था जिस का साक्षी होने का मौका हमें मिला.

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क्या होती है रागिणी?

हर राज्य का अपना कुछ न कुछ कल्चर होता है, गीत होता है, संगीत होता है. उसी तरह से रागिणी भारत में हरियाणा की लोक गीत है. रागिणी में प्रेमियों के जुदाई का दर्द बयान किया जाता है, वीरता और शौर्य का गुणगान किया जाता है, फसल उगने का और कटने की खुशी व्यक्त की जाती है. इसे कही बढ़ कर रागिणी में समाज में चल रहे अस्त व्यस्तता को दिखाया जाता है और सच्चाई को बुलंद आवाज में कह देने की हिम्मत होती है.

इसे गाने के लिए किसी का सुरीला होना जरुरी नहीं है, बल्कि गीत के बोल में इतना दम होना चाहिए कि सुन ने वाले व्यक्ति के दिल और दिमाग में उस के बोल उतर जाए. रागिणी गाने के साथ साथ गाने वाला सांग भी करता है जो कि गीत के बोल पर हल्का फुल्का थिरकना शामिल होता है, जो की माहौल को और अधिक खुशनुमा बनाता है.

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रागिणी को गाने के लिए और उस में धुन बजाने के लिए बहुत अधिक उपकरणों की जरुरत भी नहीं है. कम से कम एक मटका जिस के मुह पर रबर बंधा हो और उसे बजाने के लिए दूसरा रबर ही काफी है. प्रोफेशनल रागिणी गाने वाले लोग अपने पास इकतारा, सारंगी, चिमटा, मंजीरा, दुग्गी, खर्ताल इत्यादि उपकरण भी साथ रखते हैं.

मुख्य रूप से रागिणी गांव देहातों में ख़ुशी के मौको पर गाई जाती है, जैसे की शादी बियाह के मौकों पर. लेकिन यह किसी भी मौके पर गाई जा सकती है.

क्यों गाई गई प्रोटेस्ट में रागिणी?

दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन की सब से अनोखी बात यह है की प्रदर्शन करने आए ये किसान अपनी मांगों को ले कर बेहद क्रिएटिव है. वें सिर्फ अपनी मांगों को ले कर नारे लगाना नहीं जानते बल्कि अपनी बात अलग अलग माध्यमों के द्वारा जाहिर करना भी जानते हैं. रागिणी उन्ही में से एक माध्यम है.

शाम 4:30 बजे से रागिणी गाना शुरू किया गया था और 4-5 घंटे तक अलग अलग कलाकारों ने किसान आन्दोलन के समर्थन में कई तरह कि रागिणी गा कर सरकार की पोल खोलने का काम किया.

क्योंकि रागिणी में किसानों के द्वारा फसल की उगाई से ले कर कटाई तक हर तरह का वर्णन मिलता है इसीलिए रागिणी ने मुख्य रूप से किसानों की आवाज बुलंद करने का काम किया है.

उस समय मौजूद कलाकारों के द्वारा कई ऐसे गाने गाए गए जो की सरकारी हुकूमत, भ्रष्टाचार, शोषण, उत्पीडन, नौकरशाही, बेरोजगारी इत्यादि न जाने कई तरह की समस्याओं और सरकार को घेरने का काम किया गया. जिस से आन्दोलन कर रहे किसानों के अन्दर एक अलग तरह की ऊर्जा का संचार देखने को मिलता है.

निराई गुड़ाई व जुताई बोआई कृषि यंत्र

हमारे देश की खेती पशुओं पर निर्भर रही है, लेकिन अब किसान खेती के नएनए तौरतरीके अपना रहे हैं. पहले निराईगुड़ाई जैसे काम के लिए काफी मजदूर लगाने पड़ते थे. समय बदलने लगा और मजदूरों की जगह मशीनों ने ले ली. कृषि मशीन निर्माता व अनेक संस्थाएं खेती की मशीनें बनाने लगे, जिन से किसानों का काम आसान हुआ.

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अभी हाल ही में हमारे अनेक पाठकों ने निराईगुड़ाई की मशीन के बारे में जानकारी मांगी. उसी के संदर्भ में कुछ खास जानकारी :

‘पूसा’ पहिए वाला हो वीडर

यह बहुत साधारण प्रकार का कम कीमत का यंत्र है. इस यंत्र में खड़े हो कर निराईगुड़ाई की जाती है. इस का वजन लगभग 8 किलोग्राम है व इसे आसानी से फोल्ड कर के कहीं भी ले जाया जा सकता है. इस यंत्र को खड़े हो कर आगेपीछे धकेल कर चलाया जाता है. निराईगुड़ाई के लिए लगे ब्लेड को गहराई के अनुसार ऊपरनीचे किया जा सकता है. पकड़ने में हैंडल को भी अपने हिसाब से एडजस्ट कर सकते हैं. यह कम खर्चीला यंत्र है.

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‘पूसा’ चार पहिए वाला वीडर

एकसार खेत से कतार में बोई गई उस फसल से खरपतवार निकालने के लिए यह अच्छा यंत्र है, जिन पौधों की कतारों के बीच की दूरी 40 सेंटीमीटर से अधिक है, क्योंकि इस मशीन का फाल 30 सेंटीमीटर चौड़ा है. इस मशीन को पकड़ कर चलाने वाले हैंडल को भी अपनी सुविधा के हिसाब में एडजस्ट कर सकते हैं. इस यंत्र का वजन लगभग 11-12 किलोग्राम है. इसे फोल्ड कर के आसानी से उठा कर कहीं भी ले जाया जा सकता है. यह भी पूसा कृषि संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बनाया गया है.

उपरोक्त दोनों यंत्र कृषि अभियांत्रिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली द्वारा बनाए गए?हैं. इन के लिए आप इस संस्थान से संपर्क कर सकते हैं.

पावर टिलर द्वारा चालित यंत्र

यह कतार में बोई गई सोयाबीन, चना, अरहर, ज्वार, मक्का, मूंग आदि फसलों में निराईगुड़ाई के लिए उपयोगी यंत्र है. इस यंत्र को 8-10 हार्सपावर के पावर टिलर में जोड़ कर चलाया जाता है. इस की अनुमानित कीमत 1800 रुपए है.  यह यंत्र केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल द्वारा निर्मित है. आप इन के फोन नं. 2521133, 0755-2521139 पर संपर्क कर सकते हैं.

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छोटा पावर वीडर

पैट्रोल से चलने वाला यह छोटा पावर वीडर निराईगुड़ाई के लिए अच्छा यंत्र है. इस में 2 स्ट्रोक इंजन लगा होता है. इस से 3 से 4 इंच गहराई तक निराईगुड़ाई होती है. इस के लिए जमीन में लगभग 25 फीसदी नमी होना जरूरी है. इस यंत्र की कीमत तकरीबन 16 हजार रुपए है. इस के अलावा 5 हार्स पावर के डीजल इंजन के साथ लगा कर चलाने वाले कई और वीडर भी उपलब्ध हैं, जिन की शुरुआत 65 हजार रुपए से होती है और मशीन के कूवत के हिसाब से यह कीमत बढ़ती जाती है.

डीजल इंजन के साथ अनेक मशीनें जैसे लैवलर, स्प्रे पंप, रोटावेटर, सीड ड्रिल आदि को जोड़ कर खेती के काम किए जा सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए आप राघवेंद्र कुमार से उन के मोबाइल नंबर 09670632555 पर बात कर सकते हैं.

इस के अलावा बीसीएस इंडिया प्रा. लि. लुधियाना, पंजाब की कंपनी भी वीडर मशीन बना रही है, जिस का कृषि यंत्र निर्माताओं में अच्छा नाम है. आप इन से भी इन के फोन नं. 08427800753 पर बात कर के तफसील से पूरी जानकारी ले सकते हैं.

जुताई व बोआई यंत्र

किसान अपनी रबी की फसल ले चुके हैं. अब खरीफ फसलों की तैयारी पर काम चल रहा है. कुछ किसान तो अपने खेतों में फसल बो चुके हैं. किसान अपने बीज को बोआई यंत्र से बो सकते हैं, क्योंकि यंत्रों से बिजाई करने से बीज बरबाद नहीं होते हैं. पावर टिलर चालित जुताई व बोआई यंत्र 

यह यंत्र खेत की तैयारी के साथसाथ बोआई भी करता है इस से खाद भी साथ ही डाल सकते हैं. इस यंत्र को 10 से 12 हार्स पावर के टिलर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. इस यंत्र की अनुमानित कीमत 15000 रुपए से 18000 रुपए है. इस यंत्र से गेहूं, सोयाबीन, चना, ज्वार, मक्का की बोआई कर सकते हैं. इस यंत्र को खरीदने के लिए आप कृषि अभियांत्रिकी संस्थान के फोन नं. 0755-2521133, 2521139, 2521142 पर संपर्क कर सकते हैं.

जांगड़ा की बिजाई मशीन

सब्जियों की बोआई हेतु महावीर जांगड़ा की यह बिजाई मशीन खासी लोकप्रिय है. खेत तैयार करने के बाद इस मशीन से बिजाई करने पर बीज उचित मात्रा में लगते हैं. साथ ही यह मशीन खुद मेंड़ बनाती है और बिजाई करती है. यह मशीन 2 मौडल में उपलब्ध है :

* 2 बेड वाली बिजाई मशीन :  यह मशीन 8 लाइन में बिजाई करती है और इसे 35 से 40 हार्स पावर के ट्रैक्टर से चलाया जाता है. इस बिजाई मशीन की कीमत लगभग 52000 रुपए है.

* 3 बेड वाली बिजाई मशीन :  यह मशीन 12 लाइनों में बिजाई करती है और इसे 50 हार्स पावर के ट्रैक्टर से चलाया जाता है. इस की कीमत लगभग 72000 रुपए है.

इस मशीन से बोई जाने वाली खास फसलें :

* फूलगोभी, पत्तागोभी, सरसों, राई, शलगम.

* गाजर, मूली, धनिया, पालक, मेथी, हरा प्याज, मूंग, जीरा, टमाटर.

* भिंडी, मटर, मक्का, चना, कपास, टिंडा, तोरी, फ्रांसबीन, घीया, तरबूज.

जो भी किसान इस मशीन को लेना चाहें वे महावीर जांगड़ा से उन के फोन नंबर 09896822103, 9813048612 पर संपर्क कर सकते हैं.

मेरी पत्नी चिड़चिड़ी सी रहने लगी है और बातबात पर तुनक जाती है, क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 52 साल है और मेरी पत्नी 48 साल की है. हमारी शादी को 30 साल हो गए हैं. पिछले कुछ समय से मेरी पत्नी चिड़चिड़ी सी रहने लगी है और बातबात पर तुनक जाती है. कभीकभार तो हमारी लड़ाई भी हो जाती है.

मैं उसे मनाने के लिए सैक्स की डिमांड करता हूं तो वह मुझे दूर कर देती है. वैसे, हमारे परिवार में और कोई दिक्कत नहीं है. इस समस्या का हल बताएं?

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जवाब

शादी के 30 साल बाद ऐसा होना कुदरती बात है. आप समझ और सब्र से काम लेते हुए पत्नी की परेशानियों को समझें. सैक्स के लिए उतावला होने के बजाय प्यार और हमदर्दी से पेश आएं.इस उम्र में औरतों के चिड़चिड़े होने की कई वजहें होती हैं. बेहतर होगा कि आप कुछ दिनों के लिए पत्नी के साथ कहीं दूर घूमने चले जाएं और खुल कर घरगृहस्थी व दुनियाजहान की बातें करें.

इस गलतफहमी को दिल से निकाल दें कि वह पहले की तरह सैक्स की डिमांड से खुश होगी. अब वह आप के प्यार, हमदर्दी और नजदीकियों से ज्यादा खुश होगी. आप की सैक्स लाइफ ठीक रहे, यह ध्यान रखें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

लालिमा-भाग 3 : बहू के रूप में सुनीता को क्यों नहीं भायी लाली

‘आकाश को बचपन में ही चुप करा देती थी वह. आज भी उस को बोलते देख जबान बंद हो गई होगी आकाश की. कुछ तो हुआ ही होगा, वरना चक्कर कैसे आ गया अचानक?’

सुनीता के लिए अब इंतजार का पलपल भारी हो रहा था. रसोई में जा कर वह खिचड़ी बनाने लगी, ताकि समय भी बीत जाए और दीपक के आने पर वह उस के पास बैठ पाए.

दरवाजे की घंटी की आवाज सुन वह तेजी से दरवाजे की ओर लपकी. दीपक को सहारा देते हुए आकाश ने मुसकराते हुए अंदर प्रवेश किया. आकाश के पीछेपीछे एक युवती भी थी. फिरोजी शिफोन की साड़ी और गले में उसी रंग की माला, हाथ में क्लच थामे, कंधे तक लहराते रेशमी बालों में वह बेहद आकर्षक लग रही थी. माथे पर छोटी सी बिंदी और बड़ीबड़ी काजल लगी मनमोहक आंखें उस के सांवले चेहरे पर चारचांद लगा रही थीं.

‘क्या यह लाली है?’ सोचते हुए सुनीता को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था.

‘‘ओह मम्मी, कितने वर्षों बाद मिल रही हूं आप से,’’ कह कर उत्साहित हो लाली सुनीता के पास आ कर खड़ी हो गई.

सब लोग बैडरूम में आ गए. दीपक को सहारा दे कर बिस्तर पर लिटा आकाश और लाली उस के पास बैठ गए.

‘‘मैं ऐप्पल जूस ले कर आती हूं,’’ कहते हुए सुनीता कमरे से निकली तो लाली भी पीछेपीछे हो ली.

‘‘मम्मी, आप बैठिए न पापा के पास. मुझे बताइए क्या करना है,’’ लाली बोली.

‘‘अरे नहीं बेटा, अभी तुम बैठो, मैं आती हूं एक मिनट में,’’ सुनीता का व्यवहार अचानक ही लाली के प्रति नरम हो गया. कुछ देर बाद हाथ में ट्रे थामे सुनीता वापस वहीं आ कर बैठ गई.

‘‘आप ठीक तो हैं न? पापाजी की तबीयत के बारे में सुन कर आप न जाने कब से परेशान हो रही होंगी, आप पीजिए पहले जूस,’’ लाली सुनीता की ओर जूस बढ़ाते हुए बोली.

‘‘मैं ठीक हूं. पर ये कैसे बेहोश हो गए थे आज अचानक? मुझे आकाश के घर पहुंच कर फोन करना भी भूल गए,’’ सुनीता के लहजे में थोड़ी शिकायत झलक रही थी.

‘‘पापा मेरे घर पहुंचे ही कहां थे, मम्मी,’’ आकाश बोला.

‘‘मतलब?’’ सुनीता की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘हम आज आप के पास आना चाहते थे, पर सुबह 5 बजे ही कपूर हौस्पिटल से फोन आ गया. वहां एक मरीज का जरूरी औपरेशन होना था. औपरेशन करने वाले डा. सेठी के पिता का अचानक देहांत हो गया. वे लोग मुझ से औपरेशन करने की रिक्वैस्ट कर रहे थे. इसलिए मुझे उस हौस्पिटल में जाना ही पड़ा.

‘‘जब बर्थडे विश करने के लिए आप का फोन आया तब मैं हौस्पिटल में ही था. लाली जानती थी मेरे जन्मदिन के मौके पर आप दोनों आज मेरा इंतजार कर रहे होंगे.

‘‘जब कपूर हौस्पिटल से लाली को मैं ने फोन कर बताया कि औपरेशन के बाद कुछ घंटे मरीज की हालत पर नजर रखने के लिए मुझे वहां रुकना पड़ेगा तो आप लोगों के बारे में सोच कर यह परेशान हो गई और इस ने आप लोगों के पास अकेले ही आने का कार्यक्रम बना लिया.

‘‘लाली घर के नजदीक पहुंच कर औटोरिकशा से उतरी ही थी कि…तुम ही बताओ न,’’ आकाश बात बताते हुए लाली की ओर देख कर बोला.

‘‘मैं औटो से उतर कर घर की तरफ आ रही थी कि मैं ने देखा पापा ने घर के सामने खड़ी अपनी कार के पिछले दरवाजे को खोल डस्टर निकाला और आगे वाले शीशे को साफ किया. वे जब दोबारा दरवाजा खोल कर अंदर घुसे तो फिर बाहर नहीं निकले. मैं ने भीतर झांका तो देखा, पापा सीट पर बैठे थे और उन का सिर आगे की ओर झुका हुआ था.’’

लाली को बीच में रोक कर दीपक बोल पड़े, ‘‘मैं डस्टर वापस रखने अंदर घुसा तो मेरी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. मैं सीट पर बैठ गया और अपना हाथ आगे वाली सीट पर रख, उस पर अपना सिर टिका लिया. इस के बाद मुझे नहीं पता, होश आया तो मैं हौस्पिटल में था, अगलबगल ये दोनों थे.’’

लाली ने अपनी बात का सिरा पकड़ते हुए फिर से बोलना शुरू किया, ‘‘जब मैं ने कार की पिछली सीट पर पापा को उस हालत में देखा तो मैं घबरा गई, सोचा कि घर आ कर मम्मी को बुला लाऊं. फिर लगा कि इस समय ज्यादा वक्त बरबाद करना ठीक नहीं है. जल्दी से मैं ने आकाश के दोस्त डा. सचिन को फोन कर दिया, क्योंकि मैं जानती थी कि आकाश तो कपूर हौस्पिटल में होंगे. डा. सचिन ने अपने स्टाफ से तैयार रहने को कह दिया और मैं जल्दी से कार ड्राइव कर पापा को हौस्पिटल ले गई.

‘‘गेट पर ही स्टाफ के 2 लोग खड़े थे. वे पापा को इमरजैंसी में ले गए. शुगर लैवल अचानक कम ह९ो जाने के कारण पापा बेहोश हो गए थे.’’

‘‘मतलब, अगर लाली मुझे ले कर जल्दी से हौस्पिटल न जाती तो कुछ भी हो सकता था,’’ दीपक ने सुनीता की ओर देख कर कहा.

‘‘सचमुच, लाली ने आज सारी स्थिति को झट से समझ लिया और आप की जान बचा ली. मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि बचपन में जो लाली बस शैतानियां करना ही जानती थी, वह अब इतनी समझदार हो गई है,’’ सुनीता के शब्दों से स्नेह झलकने लगा था.

‘‘मम्मी, ये सब आप की वजह से ही हुआ है,’’ लाली सुनीता की ओर देख कर बोली.

‘‘अरे, मेरी वजह से, मतलब?’’ सुनीता ने प्रश्नभरी दृष्टि से उसे निहारा.

‘‘हां, आप तो जानती ही हैं कि जब मैं बहुत छोटी थी तभी मेरी मां चल बसी थीं. बिन मां की बच्ची को सही रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं होता. बापू पूरी कोशिश करते थे मुझे एक बेहतर इंसान बनाने की, पर समय ही कहां होता था उन के पास मुझे देने के लिए.

‘‘याद है न, जब आप गांव आती थीं, मैं आकाश से कितना लड़ाईझगड़ा करती थी, फिर भी आप हमें बैठा कर अच्छीअच्छी बातें बताया करती थीं. आप ने ही तो बापू से कहा था कि मेरी पढ़ाई जारी रखी जाए. बस, जब शिक्षा का दामन थामा तो न जाने क्याक्या सीख लिया मैं ने. फिर जब आप और पापा अंकिता दीदी के पास आस्ट्रेलिया गए हुए थे तो यहां आकाश और मैं आप के बारे में खूब बातें किया करते थे. आकाश मुझे बताया करते थे कि आप कौन सा काम कैसे करती हैं, जीवन को ले कर आप का नजरिया क्या है और रिश्तों का आप के लिए क्या महत्त्व है. आप संकट के समय भी हिम्मत न हार कर धीरज से काम लेती हैं, यह भी बताया मुझे आकाश ने.

‘‘सच कहूं तो वह सब जानने के बाद मैं ने ठान लिया कि मैं भी आप जैसी बनूंगी. और बस, जीवन के सही मार्ग पर चलना शुरू कर दिया. मैं इस रास्ते पर  लगातार चलती रहूं और कभी भटक न पाऊं, इस के लिए मुझे आप के साथ की जरूरत है. मेरा हाथ थाम लो मम्मी, आप के बिना मैं अधूरी हूं.’’

सुनीता यह सब सुन कर भावविभोर हो गई. ‘लाली का मन कितना साफ है और मैं न जाने क्याक्या तोहमत लगा रही थी उस पर.’  सोच कर सुनीता खुद शर्मिंदा हो रही थी. उस ने आगे बढ़ कर लाली को गले लगा लिया. लाली की आंखों से टपटप आंसू बहने लगे.

‘‘अरे, आप दोनों के चेहरे लाल क्यों हो गए?’’ मुसकराते हुए आकाश बोला.

‘‘प्यारभरा मिलन जो हुआ है लाली और मां का. भई वाह, लाली और मां से मिल कर ही तो लालिमा शब्द बना है न. तो चमकने दो दोनों के चेहरे पर ये उज्ज्वल सी लालिमा.’’ दीपक मुसकराते हुए पूरी तरह स्वस्थ लग रहे थे.

घर के बाहर सूर्यास्त की लालिमा बिखरी हुई थी तो घर के भीतर नए रिश्ते के उदय होने की लालिमा फैली थी.

लालिमा-भाग 2 : बहू के रूप में सुनीता को क्यों नहीं भायी लाली

सुनीता और दीपक 6 महीने का वीजा ले कर बेटी अंकिता के पास आस्ट्रेलिया चले गए. उन के जाने के कुछ दिनों बाद ही लाली वहां आ गई. उधर, अंकिता को बेटे की सौगात मिली. आस्ट्रेलिया में 6 महीने बिता कर सुनीता जब घर वापस लौटी तो लाली अपनी ट्रेनिंग पूरी कर लौट चुकी थी.

लाली को अपने यहां रखने के निर्णय पर पछतावा होता रहता था सुनीता को. उस ने तो सोचा था कि जब तक वे आस्ट्रेलिया में हैं, लाली आकाश के पास रहे तो क्या हर्ज है? वह घर पर खाना बना लेगी तो आकाश को भी बाहर नहीं खाना पड़ेगा. पर यह नहीं पता था कि लाली आकाश के पेट से दिल तक पहुंच जाएगी. सुनीता और दीपक तब अपनेआप को ठगा सा महसूस करने लगे जब आकाश ने लाली के साथ शादी की जिद पकड़ ली.

सुनीता और दीपक का समझाना भी बेकार चला गया. हार कर उन्होंने शादी की इजाजत तो दे दी, पर साथ ही यह भी कह दिया कि शादी कोर्ट में ही होगी और वे दोनों वहां उस समय उपस्थित नहीं रहेंगे. आकाश के दोस्त ही गवाह बन कर साइन कर देंगे.

तभी दरवाजे की घंटी बजने से सुनीता वर्तमान में लौट आई. ‘शायद दीपक आ गए’ सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला. सामने के फ्लैट में रहने वाली निशा आई थी.

‘‘सुनीता दी, आज तो आकाश का बर्थडे है न. इस बार केक नहीं खिलाया आप ने?’’ दोनों के बैठते ही निशा बनावटी शिकायत करते हुए बोली.

‘‘अरे, क्या बताऊं निशा, जब से आकाश की लाली के साथ शादी हुई है, मन बुझ सा गया है मेरा. बनाया तो था केक पर तुम्हें देना भूल गई.’’

‘‘क्या सुनीता दी, आप इतनी दकियानूसी कब से हो गईं? आप की नाराजगी की वजह तो बस यही है न कि वह आप की जाति की नहीं है?’’ लाली का पक्ष लेते हुए सुनीता को समझाने के अंदाज में निशा बोली.

‘‘अरे नहीं, जातिपांति में तो विश्वास नहीं रखती मैं, पर लड़की आकाश के लायक तो हो, खूब देखा है मैं ने उसे. चलो छोड़ो, मैं केक ले कर आती हूं,’’ सुनीता सोफे से उठने लगी तो निशा ने रोक दिया.

‘‘अभी नहीं, बाद में. अभी तो मैं बाजार जा रही हूं. बस, यों ही मिलने आ गई थी आप से और केक ही क्यों? हम तो पार्टी लेंगे आकाश की शादी की.’’

‘‘आकाश भी यही सपना संजोए बैठा है कि लाली से मिलने पर मैं उसे जरूर पसंद कर लूंगी और तब दे देंगे रिश्तेदारों व दोस्तों को रिसैप्शन. पर ऐसा कहां होने वाला है? आकाश को पसंद है तो रहे उस की बीवी बन कर वह लाली. जरूरी तो नहीं कि मैं उसे अपने घर की बहू मान लूं?’’ मुंह बना कर सुनीता बोली.

‘‘दी, मेरा एक अनुरोध है. आप एक बार मिल तो लो लाली से. आप के पीछे से जब वह यहां थी तो एकदो बार मेरी मुलाकात हुई थी उस से. लड़की तो बुरी नहीं है वह.’’

कुछ देर इस विषय पर बातचीत करने के बाद निशा वापस अपने घर चली गई.

निशा के जाते ही सुनीता फिर से दीपक की देरी को ले कर चिंतित हो उठी. कई बार मन हुआ कि दीपक को फोन कर के ही जान ले देरी का कारण. उस ने मोबाइल उठाया भी, पर कुछ सोच कर हाथ रुक गए. ‘कहीं ऐसा न हो कि ये अभी आकाश के घर पर ही बैठे हों. फिर मेरे कौल करते ही आकाश को पकड़ा दें मोबाइल. जन्मदिन की मुबारकबाद तो मैं ने दे ही दी सुबह उसे. अब दोबारा बात हुई तो जरूर कहेगा कि मम्मी आज तो कर ही लो बात लाली से. उंह, मैं कभी बहू नहीं मान सकती उस कालीकलूटी, उलझे बालों की चोटी बनाए, लंबी सी फ्रौक पहन गांव में सब से लड़तीझगड़ती लाली को.’ और लाली के विषय में सोचते हुए उस का मुंह कसैला हो गया.

तभी मोबाइल बजने लगा, आकाश का फोन था.

‘‘हैलो मम्मी, आप पापा के न पहुंचने से परेशान मत होना. उन्हें चक्कर आ गया था. हौस्पिटल में ही मेरे साथ हैं.’’

‘‘अरे, क्या हुआ पापा को? बात तो करवा जरा उन से,’’ घबराई हुई सुनीता बोली.

‘‘वे कमरे में हैं. मैं कमरे से बाहर निकल कर बात कर रहा हूं. आप बिलकुल फिक्र मत करो. हम पहुंच रहे हैं कुछ देर में घर.’’

दीपक के विषय में जान कर सुनीता चिंतित हो गई. ‘क्यों जाने दिया मैं ने उन्हें अकेले वहां? मैं क्या जानती नहीं थी लाली का स्वभाव? बात तो पुरानी है पर थी तो वह लाली ही. गांव में जब मैं बच्चों को बैठा कर किस्सेकहानियां सुना रही होती थी तो कैसे चिढ़ जाती थी दीपक के वहां अचानक आ जाने पर, मजा खराब हो जाता था उस का. आज भी शायद दीपक को देख कर मूड औफ हो गया हो. सोच रही होगी कि अच्छीखासी जिंदगी चल तो रही थी. क्यों आ गए ससुरजी?

‘बस, अब सास भी आने लगेगी और फिर हमारी सारी आजादी खत्म हो जाएगी, ऐशोआराम पर भी लगाम लग जाएगी. इसलिए ही पूछा नहीं होगा ज्यादा इन्हें. उसे सीधे मुंह बात न करते देख टैंशन में आ गए होंगे दीपक और बस आ गया होगा चक्कर या फिर झगड़ा तो नहीं कर लिया होगा लाली ने दीपक से? कह दिया होगा कि जब आप शादी के समय थे ही नहीं कोर्ट में तो अब कौन सा हक जताने आए हो हमारे पास.

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