भाभी का मायका आर्थिक रूप से कमजोर था. पिता एक प्राइवेट स्कूल में ड्राइवर थे. मां यह सोच कर उन्हें लाईं कि गरीब घर की बहू रहेगी तो निबाह हो जाएगा. मगर हुआ उलटा. कुछ न देखने वाली भाभी को जब सरकारी नौकरी वाला आर्थिक रूप से संपन्न पति मिला तो वे स्वार्थी और अहंकारी हो गईं. उन्हें लगा कि अब उन्हें किसी की जरूरत नहीं. मायके से उन्हें शह मिलती. उन की मां चाहती थीं कि किसी तरह उन के बेटीदामाद अपना अचल हिस्सा ले कर स्वतंत्र गृहस्थी बसाएं. मां के मरने के बाद भरसक उन का यही प्रयास रहा कि किसी तरह मैं इस मकान का अपना हिस्सा उन्हें बेच दूं. मैं ने मन बना लिया था कि चाहे वे जो भी कर लें, मैं पिताजी की अमानत नहीं छोड़ूंगा. मुझे मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के पीछे उन की यही मंशा थी. इस प्रताड़ना से बचने के लिए जब मुझे तनख्वाह मिलने लगी तो उन के यहां खाना छोड़ दिया. यह भी उन्हें बरदाश्त न हुआ. कभी बिजली तो कभी मकान के टैक्स के नाम पर वे मुझे जबतब परेशान करतीं. एक दिन मुझ से रहा न गया, बोला, ‘‘भाभी, सब से ज्यादा बिजली आप खर्च करती हैं. टीवी, फ्रिज, इन्वर्टर, प्रैस सभी आप के पास हैं.’’
‘‘आप भी खरीद लीजिए. मैं ने मना तो नहीं किया है,’’ उन की वाणी में व्यंग्य का पुट था, ‘‘मगर बिजली का बिल आधा आप को देना ही होगा.’’
‘‘आधा क्यों?’’
‘‘कनैक्शन पिताजी के नाम है. घर की आधी हिस्सेदारी आप की भी बनती है. तो बिल भी तो आधा देना होगा.’’
‘‘अच्छा तर्क है आप का. बराबर क्यों?’’ मैं उखड़ा, ‘‘आप ज्यादा खर्च करेंगी, तो ज्यादा देंगी. मैं कम खर्च करूंगा तो कम दूंगा. बिजली के नाम पर मैं सिर्फ एक 15 वाट का सीएफएल और एक पंखे का इस्तेमाल करता हूं.’’ उन्हें मेरा तर्क नागवार लगा. तुनक कर भैया के पास गईं. भैया चुपचाप सुन रहे थे. मुझे अस्पताल की जल्दी थी, सो जल्दीजल्दी कपड़े पहन कर निकल गया. मेरे जाने के बाद दोनों के बीच जो भी खुसुरफुसुर हुई हो, मुझे पता नहीं. हां, 2 दिनों बाद भैया ने मुझे अपना फैसला सुनाया.
‘‘मैं रोजरोज की किचकिच से ऊब चुका हूं. बेहतर होगा हम इस मकान को बेच कर अलग हो जाएं.’’
यह सुन कर मैं सन्न रह गया. मुझे सपने में भी भान नहीं था कि भैया पिताजी की विरासत के प्रति इस कदर निर्मम होंगे. आदमी जानवर पालता है तो उस से भी मोह हो जाता है. यहां तो पिताजी के सपनों का आशियाना था. इस से कितनी यादें हम लोगों की जुड़ी थीं. कितने कष्टों को झेल कर उन्होंने यह मकान बनवाया था. किराए के मकान में रह कर उन्होंने बहुत परेशानी झेली थी. 10 किराएदारों के बीच सुबह 4 बजे ही मम्मीपापा को उठना पड़ता था ताकि सब से पहले पानी भर सकें. साझा बाथरूम अलग सिरदर्द था. चीलकौओं को पानी देने वाला समाज व्यवहार में भैया जैसा ही होता है. लिहाजा, मैं ने मन मार कर उन के फैसले पर मुहर लगा दी.
मकान बिकने के बाद भैया ने दीदी को फूटी कौड़ी भी न दी. मामा ने मुझे सलाह दी कि अगर बड़े भैया गैरजिम्मेदार हो गए हैं तो तुम अपनी जिम्मेदारी निभाओ. उन्हीं के कहने पर मैं ने 50 हजार रुपए दीदी को पापा के हक के नाम कर दे दिए. उन्होंने भरसक मना किया. यहां तक कि रिश्तों की कसम देने की कोशिश की मगर मैं टस से मस नहीं हुआ. जीजाजी थोड़े रुष्ट हुए, कहने लगे, ‘किस चीज की हमारे पास कमी है. उस धन पर तुम दोनों भाइयों का हक है.’ भले ही उन्होंने मना किया पर मैं ससुराल वालों की मानसिकता को जानता था. पीठपीछे सासससुर जरूर ताना मारते. थोड़े रुपयों के लिए मैं नहीं चाहता था कि उन का सिर नीचा हो.
मैं एक किराए के मकान में रहने लगा. वक्त ने मुझे काफीकुछ सिखा दिया. दीदी के प्रयासों से मेरी शादी हो गई. मेरी शादी में भैया की तरफ से कोई नहीं आया. मैं ने भी मनुहार नहीं की. जब उन्हें अपने फर्ज की याद नहीं रही तो मैं क्यों पहल करूं. 10 साल गुजर गए. इस बीच भैयाभाभी का थोड़बहुत हालचाल अन्य स्रोतों से मिलता रहा. 1 लड़की पहले से ही थी, 2 और हो गईं. वे 3 बच्चियों के पिता बन गए. शायद यही वजह रही जो उन्हें शराब की लत लग गई. लड़कियों को पढ़ालिखा कर आत्मनिर्भर बनाने की जगह जिम्मेदारियों से भागने का उन का यह तरीका मुझे कायराना लगा. एक दिन दीदी से खबर लगी कि उन की हालत बेहद खराब है. वे अस्पताल में भरती हैं. मैं सपरिवार उन्हें देखने गया. भाभी ने हमें खास तवज्जुह न दी. उलटे उलाहना देने लगीं कि इस संकट की घड़ी में किसी ने साथ नहीं दिया. चाहता तो मैं भी कह सकता था कि आप ने कौन सा रिश्ता निभाया? कभीकभार दीदी उन से मिलने जातीं तो इन का मुंह टेढ़ा ही रहता.
भैया किसी तरह ठीकठाक हुए इस चेतावनी के साथ कि अगर उन्होंने शराब नहीं छोड़ी तो निश्चय ही उन का गुर्दा खराब हो सकता है, फिर उन्हें कोई भी नहीं बचा पाएगा. भाभी सहम गईं. वे इस कदर कमजोर हो गए थे कि ठीक से उठबैठ नहीं सकते थे. औफिस कहने के लिए जाते. उन से कोई काम हो नहीं पाता था. पीने की लत अभी भी नहीं छूटी थी. शाम पी कर घर आते तो लड़ाईझगड़ा करते. वे हद दरजे के चिड़चिड़े हो गए थे. अपनी लड़कियों को फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते थे. जबकि उन की बड़ी बेटी ही उन की देखभाल करने में आगे रहती थी. वे उन्हें हमेशा लताड़ते रहते. कहते कि तुम लोग मेरे लिए बोझ हो. उन्हें एक पुत्र की आस थी. 3 पुत्रियां ही हुईं.
एक दिन उन के पेट में फिर दर्द उठा. डाक्टर के पास ले गए तो उस ने वही पुरानी नसीहत दी मगर भैया पर कोई असर नहीं पड़ा. शराब ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था. एक हफ्ते औफिस नहीं गए. जा कर करते भी क्या? एक दिन साहब ने भाभी को बुलाया, ‘‘मैडम, काम नहीं तो तनख्वाह कैसी?’’
यह सुन कर भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. साहब ने उन की परेशानी भांप ली. एक रास्ता सुझाया, ‘‘आप कितनी पढ़ी हैं?’’
‘‘इंटर.’’
‘‘नियमानुसार ठीक तो नहीं मगर मानवता के नाते मैं एक रास्ता सुझाता हूं. आप इन की जगह यहां आ कर 10 से 5 बजे तक ड्यूटी करें.
‘‘काम बेहद आसान है. आप को सिर्फ लिफाफों पर मुहर लगानी है व फाइलों को इधर से उधर ले जाना है.’’
भाभी राजी हो गईं. इस तरह घर में भैया की देखभाल बड़ी बेटी करती और वे नौकरी. भैया की देखभाल की वजह से बड़ी बेटी की पढ़ाईलिखाई हमेशाहमेशा के लिए छूट गई.? इन्हीं झंझावतों के बीच एक दिन खबर आई कि भैया नहीं रहे. सुन कर मुझे तीव्र आघात लगा. मैं अपनी बीवीबच्चों के साथ आया. भाभी का रोरो कर बुरा हाल था. तीनों लड़कियों के भी आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. एक तरह से वे असहाय हो गए थे. मेरी पत्नी ने ढाढ़स बंधाया. ‘सब ठीक हो जाएगा.’
वे अपना रुदन रोक बोलीं, ‘‘मैं अकेली औरत 3-3 बेटियों को ले कर कैसे पहाड़ जैसी जिंदगी काटूंगी? कैसे इन की शादी होगी?’’
मैं ने अपनी ओर से आश्वासन दिया कि भैया की कमी भरसक पूरी करने की कोशिश करूंगा. 15 दिन बाद जब मैं सपत्नी वापस आने लगा तो भाभी रुंधे कंठ से बोलीं, ‘‘अगर सब एकसाथ होते तो अच्छा होता. कम से कम बुरे वक्त में एकदूसरे के करीब होते. एकदूसरे के काम आते.’’ मुझे मौका मिला अपने भीतर वर्षों से जमे जज्बातों को उड़ेलने का. किंचित भावुक स्वर में बोला, ‘‘भाभी, नौकरी के दरम्यान मृत्यु होने पर सरकार, उन के आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर इसलिए नौकरी देती है कि परिवार आर्थिक समस्या से न जूझे और वे अपने परिवार की जिम्मेदारियों को वैसे ही निभाएं जैसे मृतक. क्या भैया ने वैसा किया? उन्होंने तो नौकरी पा कर ऐसे मुख मोड़ लिया, जैसे उन्हें यह नौकरी उन की योग्यता पर मिली हो. वे यह भूल गए कि यह नौकरी उन्हें पिताजी की अधूरी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए मिली थी, न कि अपना घर बसा कर ऐश करने के लिए.’’ भाभी चुप थीं. क्या जवाब देतीं? आज विपत्ति आई है तब सब की याद आई. जब उन का सब ठीकठाक था तो मुझे ठीक से खाना तक नहीं देती थीं. बिजली के बिल तक का हिसाब लेती थीं. आज परिस्थिति प्रतिकूल हुई तो पता चला कि जिंदगी का हिसाबकिताब कितना जटिल होता है. क्या उन के पास इस जटिल हिसाब का कोई समाधान है? शायद नहीं.
घर में भैयाभाभी का मेरे प्रति कोई सहयोगात्मक रवैया नहीं था. वे मेरे साथ बेगानों की तरह व्यवहार करते. आखिरकार, जब मेरी पढ़ाई रुक गई तो मैं ने एक अस्पताल में वार्ड बौय की नौकरी कर ली. तनख्वाह कोई खास न थी. हां, लोगों की टिप्स ठीकठाक मिल जाया करती थी. अभी एक महीना भी न गुजरा था कि एक दिन मैं ने भाभी को भैया से यह कहते सुना, ‘‘कब तक मुफ्त की रोटियां तोड़ते रहेंगे देवरजी?’’
‘‘1 महीना होने दो,’’ भैया बोले.
‘‘अभी से कान भरोगे तभी कुछ सोचेगा,’’ भाभी बोलीं.
भैया ने घुमाफिरा कर भाभी की बात मेरे सामने दोहरा दी. मुझे नागवार लगा. भाभी न सही, कम से कम भैया को तो सोचसमझ कर बात करनी चाहिए. एक तो मेरी पढ़ाई बीच में छूट गई, दूसरे, नौकरी लगे जुम्माजुम्मा चार दिन हुए और घरखर्च का ताना देने लगे. अस्पताल से लौटने में कभीकभी मुझे देर हो जाया करती थी. ऐसे ही एक रात मैं देर से घर लौटा तो पाया कि घर के फाटक पर ताला लटक रहा था. मैं ने पड़ोसी से चाबी ले कर फाटक खोला. कमरे की चाभी भैया एक खास जगह रख कर जाते थे जिस का सिर्फ मुझे पता था. वहां से चाभी ले कर मैं ने कमरा खोला. बहुत भूख लगी थी. रसोई में जा कर बरतन उलटापुलटा कर के देखे, खाने के लिए कुछ न मिला. खिन्न मन से भैया को फोन लगाया तो पता चला कि वे ससुराल में हैं. अगले दिन दशहरा था, सो मना कर ही लौटेंगे. मैं ने स्वयं रोटी बनानी चाही. जैसे ही गैस जलाई, कुछ सैकंड जली, फिर बंद हो गई.
रात 12 बज गए. अब इतनी रात मुझे बाहर भी कुछ खाने को मिलने वाला न था. ऐसा ही था तो भैया मुझे फोन कर देते, मैं बाहर ही खापी कर आ जाता. खुद तो ससुराल में दावत उड़ा रहे हैं और मुझे भूखा मरने के लिए छोड़ गए. यह सोच कर मुझे तीव्र क्रोध आया, वहीं अपने हाल पर रोना भी. भैया को मुझ से क्या अदावत है, जो इतना दुराव कर रहे हैं. भाभी ही उन की सबकुछ हैं, मैं कुछ नहीं. अगर इतना ही है, साफसाफ कह देते, मैं अपना खाना खुद बना लूंगा. यही सब सोच कर क दिन मैं ने स्वयं पहल की. तनाव में रहने से अच्छा है, मैं खुद ही अलग हो जाऊं.
दशहरा बीतने के बाद भैयाभाभी घर लौट आए.
‘‘आप लोग नहीं चाहते हैं तो मैं अपना खाना खुद बना लूंगा.’’
भाभी ने सुना तो तुनक गईं, बोलीं, ‘‘यह तो अच्छी बात हुई. 6 महीने से हमारा खा रहे थे, अब जब कमाने लगे तो अलग गुजारे की बात करने लगे.’’
‘‘अलग गुजारे के लिए आप लोगों ने विवश किया. वैसे भी 6 महीने खिला कर कोई एहसान नहीं किया. 2 लाख रुपए थे मां के खाते में जिसे आप लोगों ने छल से निकाल लिया.’’ मैं ने भी कहने में कोई कसर न छोड़ी. अब जब अलग रहना ही है तो मन की भड़ास निकालना ही मुझे उचित लगा.
‘‘बेशर्म, हम लोगों पर इस तरह इलजाम लगाते हुए शर्म नहीं आती,’’ भैया चीखे.
‘‘हकीकत है, भैया, आज वह रुपया होता तो मुझे अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर अस्पताल की मामूली नौकरी न करनी पड़ती.’’
‘‘तो क्या कलैक्टरी करते?’’
‘‘कलैक्टरी नहीं करता मगर ढंग से नौकरी तो करता. आप ने पिता का फर्ज निभाना तो दूर, मेरा हक मार लिया.’’ उन्हें मेरा कथन इतना बुरा लगा कि मुझे थप्पड़ मारने के लिए उठे. मगर न जाने क्या सोच कर रुक गए.
‘‘आज से तुम्हारा हमारा संबंध खत्म,’’ कह कर भैया अपने कमरे में चले गए. पीछेपीछे भाभी भी पहुंचीं, ‘‘ऐसा भाई मैं ने जिंदगी में नहीं देखा था. बड़े भाई पर इलजाम लगा रहा है. 6 महीने से खिलापिला रहे थे यह सोच कर कि भाई है. उस का यह सिला दिया, एहसानफरामोश.’’ भैया सुनते रहे. तभी बड़ी बहन गीता आ गईं. मैं ने भरसक माहौल बदलने की कोशिश की तो भी वे समझ गईं. जब तक मां जिंदा थीं भैयाभाभी ने उन की खूब आवभगत की. मां पैंशन का आधा हिस्सा उन्हीं लोगों को दे देती थीं. शेष अपने लिए रखतीं. गीता के बच्चों की डिमांड वही पूरा करतीं. भैयाभाभी सिर्फ समय से नाश्ताखाना खिला देते. भाभी को इतना भी फर्ज पहाड़ सा लगता. पीठ पीछे भैया से भुनभुनातीं. दोचार दिन के लिए गीता दीदी आतीं तो भाभी चाहतीं कि दीदी किचन में उन का हाथ बंटाएं. अपने बच्चों का एक भी सामान वे गीता दीदी के बच्चों को देना नहीं चाहती थीं.
एक दिन रात सोने के समय उन का बौर्नविटा खत्म हो गया. दीदी का बड़ा बेटा उस के बिना दूध नहीं पीता था. सो, वे भाभी के पास गईं, ‘भाभी, जरा सा बौर्नविटा ले लेती हूं अपने सोनू के लिए. कल सुबह मंगा लूंगी.’ भाभी हंस कर टालने की नीयत से बोलीं, ‘अपना भी यही हाल है, थोड़ा सा बचा है, खत्म हो जाएगा तो मुश्किल होगी. इन का हाल तो जानती हैं,’ भैया की ओर मुखातिब हो कर बोलीं, ‘कोई सामान लाने में ये कितने आलसी हैं?’ भैया नजरें चुराने लगे.
दीदी को सबकुछ समझते देर न लगी. उन का मन तिक्त हो गया. वे उलटे पांव लौट आईं. मां को पता चला तो उन की त्योरियां चढ़ गईं. भाभी को सुनाने के लिए उठीं तो दीदी ने रोक दिया, ‘क्यों मेरे लिए उन से बैर लेती हो? मैं आज हूं कल अपने ससुराल चली जाऊंगी. रहना तो तुम्हें इन्हीं लोगों के साथ है.’ मां मन मसोस कर रह गईं.
3 दिनों से बंद फ्लैट की साफसफाई और हर चीज व्यवस्थित कर के साक्षी लैपटौप और मोबाइल फोन ले कर बैठी तो फोन में बिना देखे तमाम मैसेज पड़े थे. लैपटौप में भी तमाम मेल थे. पिछले 3 दिनों में लैपटौप की कौन कहे, मोबाइल तक देखने को नहीं मिला था. मां को फोन भी वह तब करती थी, जब बिस्तर पर सोने के लिए लेटती थी. मां से बातें करतेकरते वह सो जाती तो मां को ही फोन बंद करना पड़ता.
पहले उस ने लैपटौप पर मेल पढ़ने शुरू किए. वह एकएक मैसेज पढ़ने लगी. ‘‘हाय, क्या कर रही हो? आज आप औनलाइन होने में देर क्यों कर रही हैं?’’
‘‘अरे कहां है आप? कल भी पूरा दिन इंतजार करता रहा, पर आप का कोई जवाब ही नहीं आया?’’
‘‘अब चिंता हो रही है. सब ठीकठाक तो है न?’’
‘‘मानता हूं काम में बिजी हो, पर एक मैसेज तो कर ही सकती हो.’’ सारे मैसेज एक ही व्यक्ति के थे.
मैसेज पढ़ कर हलकी सी मुसकान आ गई सरिता के चेहरे पर. उसे यह जान कर अच्छा लगा कि कोई तो है जो उस की राह देखता है, उस की चिंता करता है. उस ने मैसेज टाइप करना शुरू किया.
‘‘मैं अपने इस संबंध को नाम देना चाहती हूं. आखिर हम कब तक बिना नाम के संबंध में बंधे रहेंगे. आप का तो पता नहीं, पर मैं तो अब संबंध की डोर में बंध गई हूं. यही सवाल मैं ने आप से पहले भी किया था, पर न जाने क्यों आप इस सवाल का जवाब टालते रहे. जवाब देने की कौन कहे, आप बात ही करना बंद कर देते हो. आखिर क्यों.?
‘‘एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए. बिना किसी नाम का दिशाहीन संबंध मुझे पसंद नहीं है. हमेशा दुविधा में रहना अच्छा नहीं लगता. पिछले 3 दिनों से आप के संदेश की राह देख रही हूं. गुस्सा तो बहुत आता है पर आप पर गुस्सा करने का हक है भी या नहीं, यह मुझे पता नहीं. आखिर मैं आप के किसी काम की या आप मेरे किस काम के..?
‘‘आप के साथ भी मुझे मर्यादा तय करनी है. है कोई मर्यादा? आप को पता होना चाहिए, अब मैं दुविधा में नहीं रहना चाहती. मैं आप को किसी संबंध में बांधने के लिए जबरदस्ती मजबूर नहीं कर रही हूं. पर अगर संबंध जैसा कुछ है तो उसे एक नाम तो देना ही पड़ेगा. खूब सोचविचार कर बताइएगा.
‘‘मेरे लिए आप का जवाब महत्त्वपूर्ण है. मैं आप की कौन हूं? इतनी निकटता के बाद भी यह पूछना पड़ रहा है, जो मुझे बहुत खटक रहा है. —आप के जवाब के इंतजार में सरिता.’’
सरिता काफी देर तक लैपटौप पर नजरें गड़ाए रही. उन के बीच पहली बार ऐसा नहीं हो रहा था. इस के पहले भी सरिता ने कुछ इसी तरह की या इस से कुछ अलग तरह की बात कही थी. पर हर बार किसी न किसी बहाने बात टल जाती थी. देखा जाए तो दोनों के बीच कोई खास संबंध नहीं था. दोनों कभी मिले भी नहीं थे. एकदूसरे से न कोई वादा किया था, न कोई वचन दिया था.
बस, उन के बीच बातों का ही व्यवहार था. कभी खत्म न हो, ऐसी बातें. उस की बातें सरिता को बहुत अच्छी लगती थीं. दोनों दिनभर एकदूसरे को मेल या चैटिंग करते रहते. बीचबीच में अपना काम कर के फिर चैटिंग पर लग जाते. समयसमय पर मेल भी करते.
दोनों की जानपहचान अनायास ही हुई थी. मेल आईडी टाइप करने में हुई एक अक्षर की अदलाबदली की तरह से. ध्यान नहीं दिया और मेल सैंड हो गया. उस के रिप्लाय में आया. सौरी, सामने से फिर जवाब, करतेकरते दोनों को एकदूसरे का जवाब देने की आदत सी पड़ गई.
जल्दी ही उन की बातें एकदूसरे की जरूरत बन गईं. दोनों का परिचय हुए 3 महीने हो चुके थे, पर ऐसा लगता था, जैसे वे न जाने कब से परिचित हैं, दोनों में गहरा लगाव हो गया था, उन का स्वभाव भी अलग था और व्यवसाय भी, फिर भी दोनों नजदीक आ गए थे.
वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कालेज में हिंदी का प्रोफेसर था. साहित्य का भंडार था उस के पास. कभी वह खुद की लिखी कोई गजल या शायरी सुनाता तो कभी अपनी यूनिवर्सिटी की मजाकिया बातें कह कर हंसाता. सरिता उस की छोटी से छोटी बात ध्यान से सुनती और पढ़ती. उस के साथ के क्षणों में, उस की बातों में आसपास का सब बिसार कर खो सी जाती.
पर जब वह 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई तो मन जैसे अपनी बात कहने को विकल हो उठा. आज दिल की बात कह ही देनी है, यह निश्चय कर के वह दाहिने कान के पीछे निकल आई लट को अंगुलियों में ले कर डेस्क पर रखे लैपटौप की स्क्रीन में खो गई. जैसे वह सामने बैठा है और वह उस की आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात कह रही है. वह मैसेज टाइप करने लगी.
‘‘हाय 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई थी. जाने का प्लान अचानक बना, इसलिए तुम्हें बता नहीं सकी, बहुत परेशान किया न तुम्हें? पर सच कहूं, 3 दिनों तक तुम से दूर रह कर मेरे मन में हिम्मत आई कि मैं अपने मन की बात तुम से खुल कर कह सकूं. क्या करूं, थोड़ी डरपोक हूं न? आज तुम्हें मैं अपने एक दूसरे मित्र से मिलवाती हूं. अभी नईनई मित्रता हुई है जानते हो किस से? जी हां, दरिया से… हां, दरिया, समुद्र, सागर…
‘‘नजर में न भरा जा सके, इतना विशाल, चाहे जितना देखो, कभी मन न भरे. इतना आकर्षक कि मन करता है हमेशा देखते रहो. मेरे लिए यह सागर हमेशा एक रहस्य ही रहा है. कहीं कलकल बहता है तो कहीं एकदम शांत तो कहीं एकदम तूफानी.
‘‘समुद्र मुझे बहुत प्यारा लगता है. घंटों उस के सान्निध्य में बैठी रहती हूं, फिर भी थकान नहीं लगती. पर मेरा यह प्यार दूरदूर से है. दूर से ही बैठ कर उस की लहरों को उछलते देखना, उस की आवाज को मन में भर लेना. इस तरह देखा जाए तो यह सागर मेरा ‘लौंग डिसटेंस फ्रेंड’ कहा जा सकता है, एकदम तुम्हारी ही तरह. हम मन भर कर बात करते हैं, कभीकभी एकदूसरे से गुस्सा भी होते हैं, पर जब नजदीकी की बात आती है तो मैं डर जाती हूं. दूर से ही नमस्कार करने लगती हूं.
‘‘पर इस सब को कहीं एक किनारे रख दो. मैं भले ही सागर के करीब न जाऊं, दूर से ही उसे देखती रहूं, पर वह किसी न किसी युक्ति से मुझे हैरान करने आ ही जाता है. दूर रहते हुए भी उस की हलकी सी हवा का झोंका मेरे शरीर में समा जाता है. मजाल है कि मैं उस के स्पर्श से खुद को बचा पाऊं. एकदम तुम्हारी ही तरह वह भी जिद्दी है.
‘‘उस की इस शरारत से कल मेरे मन में एक नटखट विचार आया. मन में आया कि क्यों न हिम्मत कर के एक कदम उस की ओर बढ़ाऊं. चप्पल उतार कर उस की ओर बढ़ी. एकदम किनारे रह कर पैर पानी में छू जाए इतना ही बढ़ी थी. वह पहले से भी ज्यादा पागल बन कर मेरी ओर बढ़ा और मुझे पूरी तरह भिगो दिया. जैसे कह रहा हो, बस मैं तुम्हारी पहल की ही राह देख रहा था, बाकी मैं तो तुम्हें कब से भिगोने को तैयार था.
‘‘मैं उस के इस अथाह प्रेम में डूबी वहीं की वहीं खड़ी रह गई. मैं ने तो केवल पैर धोने के लिए पानी मांगा था, उस ने मुझे पूरी की पूरी अपने में समा लिया था. कहीं सागर तुम्हारा रूप ले कर तो नहीं आया था? शायद नाम की वजह से दोनों का स्वभाव भी एक जैसा हो. वह समुद्र और तुम सागर. दोनों का स्थान मेरे मन में एक ही है. सच कहूं, अगर मैं एक कदम आगे बढ़ाऊं तो क्या तुम मुझे खुद में समा लोगे? —तुम्हारी बनने को आतुर सरिता’’
क्या जवाब आता है, यह जानने के लिए सरिता का दिल जोजोर से धड़कने लगा था. दिल में जो आया, वह कह दिया. अब क्या होगा, यह देखने के लिए वह एकटक स्क्रीन को ताकती रही.
सागर में उछाल मार रहे समुद्र की एक फोटो भेजी. मतलब सरिता की पहल को उस ने स्वीकार कर लिया था.
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प्रकृति के नियम के अनुसार फिर एक सरिता बहती हुई अपने सागर मे मिलने का अनोखा मिलन रचने जा रही थी.
सवाल
मैं 19 साल की युवती हूं. इधर कुछ समय से जब भी मैं कोई सैक्सुअली रोमांटिक उपन्यास पढ़ती हूं या कोई ऐसेवैसे चित्र देखती हूं तो मेरे शरीर में अजीब सी हलचल मच जाती है. मन में कामुक विचार गहरा उठते हैं और योनि से डिस्चार्ज होने लगता है. समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? घर में कोई ऐसा नहीं जिस से यह बात बांट सकूं. कृपया मार्गदर्शन करें?
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जवाब
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आप बिलकुल परेशान न हों. मन में कामुक विचार जाग्रत होने पर योनि की तरलता का बढ़ना बिलकुल स्वाभाविक है. इस का संबंध मस्तिष्क में पाए जाने वाले सैक्स सैंटर से है. जब भी यह सैंटर उत्तेजित होता है, स्पाइनल कोर्ड और कुछ विशेष तंत्रिकाओं में अपने आप आवेग उत्पन्न होता है और उस से प्रेरित संदेश से पेट के निचले भाग के अंगों में खून का दौरा बढ़ जाता है.
इसी से योनि के भीतर लबलबापन उत्पन्न हो जाता है और यह भीतर ही भीतर तरल हो उठती है. यह प्राकृतिक मैकेनिज्म शारीरिक मिलन की क्रिया को सहज बनाने के लिए रचा गया है.
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पिताजी गुजरे तब मेरी उम्र 12 साल की थी. गीता दीदी 18 और भैया 22 साल के थे. अचानक हुए इस हादसे को हम सब बरदाश्त करने की स्थिति में नहीं थे. मुझे समझ थोड़ी कम थी, फिर भी इतना भी नासमझ नहीं था कि पिताजी के जाने का अर्थ न समझ सकूं. मां का रोरो कर बुरा हाल था. कच्ची गृहस्थी थी. ऐसे में उन्हें चारों तरफ सिवा अंधकार के कुछ नहीं दिख रहा था. सारे रिश्तेदार जमा थे. वे मां को समझाने का भरसक प्रयास कर रहे थे. मगर वे कुछ समझने को तैयार ही नहीं थीं. बस, एक ही रट लगाए थीं कि अब वे शेष जीवन कैसे गुजारेंगी. कैसे गीता की शादी होगी? हम सब को वे कैसे संभालेंगी? उन का रुदन सुन कर सभी की आंखें नम थीं. थोड़ाबहुत वे मामाजी को समझने को तैयार थीं.
मामाजी भरे मन से बोले, ‘दीदी, दिल छोटा मत करो. मैं तुम्हारे लिए सुरक्षाकवच बन कर तब तक खड़ा रहूंगा जब तक तुम्हारा परिवार संभल नहीं जाता.’ उन्होंने अपना वादा निभाया. रोजाना शाम को बैंक की ड्यूटी से खाली होते तो सीधे घर आ कर हमारा हालचाल जरूर लेते. उन के आने से हम सब को बल मिलता. उन्हीं के प्रयास से भैया को पापा की जगह पोस्ट औफिस में नौकरी मिली. फंड से मिले रुपयों से गीता दीदी की शादी हुई. पापा का बनाया मकान था, सो रहने की समस्या नहीं थी. आहिस्ताआहिस्ता हमारा घर संभलने लगा. गीता दीदी की शादी के बाद बचे रुपयों को मां ने अपने पास बुरे वक्त के लिए रख लिया. इस बीच भैया की शादी के लिए लड़की वालों के रिश्ते आने लगे. मां को एक जगह रिश्ता अच्छा लगा, सो मामा से रायमशविरा कर के भैया की शादी कर दी. अब वे निश्ंचत थीं. लेदे कर एक मैं ही बचा था. उन्हें विश्वास था कि मैं कहीं न कहीं पढ़लिख कर सैटल हो ही जाऊंगा. मगर नियति को और ही कुछ मंजूर था. मां को अचानक ब्रेनहेमरेज हुआ और वे हम सब को रोताबिलखता छोड़ चली गईं. भैया को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा पर मैं अकेला हो गया. मैं उस रोज फूटफूट कर रोया क्योंकि एक मां ही थीं जो मेरी राजदां थीं. मैं जब भी कभी उलझन में होता, वे बड़ी आसानी से मेरी समस्या का समाधान कर देतीं. एक तरह से वे मेरी संबल थीं.
मां की तेरहवीं तक गीता दीदी मेरे पास रहीं. जब तक थीं मेरी तन्हाई पर अंकुश लगा रहा. पर जैसे ही वे चली गईं, घर काटने को दौड़ने लगा. सब से बुरी बात यह हुई कि जिन भैयाभाभी पर मेरी जिम्मेदारी थी वे ही मुझ से विमुख होने लगे. एक दिन मैं ने मां की पासबुक देखी तो पाया कि उस में फूटी कौड़ी भी न थी. यह जान कर मैं स्तब्ध रह गया. भैया से पूछा तो बड़े तल्ख शब्दों में बोले, ‘‘मैं क्या जानूं?’’ ‘‘पूरे 2 लाख थे, भैया. मां ने मेरी पढ़ाईलिखाई के लिए रखे थे,’’ मैं लगभग रोंआसा हो गया. ‘‘जब तू जानता था कि पूरे 2 लाख रुपए थे तो तुझे यह भी पता होगा कि रुपए कहां गए. मुझे तो पता भी नहीं था कि मां ने इतने रुपए बैंक में रखे हैं,’’ भैया बड़ी सफाई से अपना दामन बचा ले गए.
‘‘भैया, याद कीजिए, मां ने आप को मेरी अनुपस्थिति में कुछ दिया हो?’’
‘‘तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया. मां से दिनरात तो तू चिपका रहता था. तुम दोनों क्या खिचड़ी पकाते थे, मैं ने कभी जानने की भी कोशिश नहीं की. फिर वे कहां से मुझे रुपए देंगी? मुझे रुपयों की जरूरत ही क्या है जो उन से मांगूंगा और वे मुझ को देंगी.’’
‘‘खिचड़ी? कैसी बात कर रहे हैं. न मैं ने, न मां ने आज तक आप से कुछ छिपाया. पापा का जो भी फंड मिला उस से गीता दीदी की शादी हुई और शेष रुपए जस के तस बैंक में जमा थे तो इसलिए कि अगर मुझे बेहतर पढ़ाई करनी होगी तो आप से मांगने की जरूरत न पड़े.’’
‘‘इतना घमंड?’’
‘‘मां आप पर आर्थिक बोझ नहीं डालना चाहती थीं. अब आप इसे जिस रूप में लें,’’ कह कर मैं ने इस विवाद को विराम दिया. क्योंकि जब मैं ने देखा ही नहीं तो क्या कर सकता हूं. जबकि सचाई यही थी कि रुपए भैया ही ने लिए थे. मां की आदत थी. वे चैकों पर अग्रिम हस्ताक्षर बना कर रखती थीं ताकि पैंशन के रुपए लेने के लिए मुझे मां का इंतजार न करना पड़े. कभीकभी मां दीदी के पास चली जाती थीं, तो वहीं से फोन कर देतीं कि मैं ने चैक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, तू पैंशन निकाल लेना. मां के इस विश्वास का भैया ने नाजायज फायदा उठाया. मां के मरने की खबर रिश्तेदारों को देने जब मैं घर से बाहर निकला, उसी समय भैयाभाभी को मौका मिला मां का बक्सा खोल कर चैक और उन के रखे कुछ गहनों को चुराने का. मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि एक तरफ मां की लाश जमीन पर पड़ी हो, दूसरी तरफ भैया ऐसे कुत्सित प्रयास में लिप्त रहेंगे. ये सब सोच कर मेरा मन भीग गया. उस रोज मांपिताजी की खूब याद आई. अगर आज वे जिंदा होते तो शायद यह सब न देखना पड़ता? इन सब वजहों से मैं ज्यादा पढ़लिख भी नहीं पाया.
राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता व भारत की महिला पहलवान रितु फोगाट भारतीय खेल में प्रसिद्ध फोगाट परिवार से आती हैं. फोगाट परिवार की वे पहली सदस्य हैं जो अखाड़े में ताल ठोंकने के बाद अब मिक्स मार्शल आर्ट्स यानी एमएमए में उतरी हैं.
अगर आप में आत्मविश्वास, मेहनत, लगन, हिम्मत आदि हो तो आप को मंजिल तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता, ऐसी सोच रखती हैं रितु. मिक्स मार्शल आर्टिस्ट रितु फोगाट, जिन्हें इंडियन टाईग्रेस के नाम से भी जाना जाता है, ने 30 अक्तूबर को सिंगापुर में आयोजित ‘वन चैंपियनशिप’ में जीत हासिल की है और एशिया की पहली महिला मिक्स मार्शल आर्टिस्ट बन चुकी हैं.
पूर्व पहलवान महावीर सिंह फोगाट की तीसरी पुत्री रितु ने 8 वर्ष की उम्र से अपने पिता से कुश्ती की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी. उन्होंने कुश्ती के कैरियर पर ध्यान देने के लिए 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. कुश्ती में सफलता हासिल करने के बाद वे मार्शल आर्ट की तरफ मुड़ीं और कई चैंपियनशिप जीतीं.
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26 साल की रितु अपनी इस जीत से बहुत खुश हैं. यह जीत उन के मार्शल आर्ट कैरियर की सब से महत्त्वपूर्ण जीत है.
इस जीत से आप क्या महसूस कर रही हैं?
कोरोना महामारी के दौरान मैं ने जितनी मेहनत की है, उस का फल मु?ो मिला. मैं भारत की ओर से मार्शल आर्ट को ऊंचाइयों तक ले जाना चाहती हूं. कोरोना में जब सबकुछ बंद था, मैं प्रैक्टिस करती रही, क्योंकि मेरे कोच मु?ो वीडियो की सहायता से ट्रेनिंग देते थे. मैं परिवार, दोस्तों और सभी देशवासियों की आभारी हूं जिन्होंने मु?ो यहां तक पहुंचने में मेरे मनोबल को ऊंचा किया. मेरी कोच भी धन्यवाद की पात्र हैं जिन्होंने मु?ो इस मुश्किल समय में भी हर दिन ट्रेनिंग दी. अभी मैं ग्रैंड प्रिक्स की तैयारी कर रही हूं ताकि मैं वर्ल्ड चैंपियनशिप को जीत सकूं.
फाइट करते समय आप अपने मनोबल को ऊंचा कैसे रखती हैं?
इस के लिए अधिक मात्रा में अभ्यास, आत्मविश्वास और दर्शकों की आवाज मनोबल को बढ़ाती है. इस के अलावा, एक एथलीट को मानसिक रूप से मजबूत होने की जरूरत होती है, जिस के लिए मैं व्यायाम करती हूं. जब मैं फाइट के लिए जाती हूं, तो वहां सिर्फ प्रतिद्वंद्वी ही मु?ो सामने दिखते हैं और जीत के लिए खुद की सौ प्रतिशत शक्ति वहां लगा देती हूं.
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खुद को मजबूत रखने के लिए आप की डाइट क्या होती है?
जब मैं अपने घर में रहती हूं तो घर में सारी चीजें देसी मिल जाती हैं, इस से प्रोटीन और विटामिन की कमी नहीं होती, लेकिन बाहर जाने से प्रोटीन की कमी हो जाती है, तब विटामिन की गोली लेती हूं. कोच के हिसाब से डाइट लेनी पड़ती है.
आप का नाम इंडियन टाईग्रेस कैसे पड़ा?
जब मैं कुश्ती करती थी तो सभी मु?ो कहते थे कि मैं शेरनी की तरह अपने प्रतिद्वंद्वी पर ?ापटती हूं और उसे हिलने नहीं देती. इस से प्रेरित हो कर मैं ने अपना नाम इंडियन टाईग्रेस रखा है.
कुश्ती से मिक्स मार्शल आर्ट में आने पर आप को किस तरह का लाभ मिला?
बहुत अधिक लाभ मिला है. इस से जमीन पर प्रतिद्वंद्वी को होल्ड करना आसान हुआ है. शुरूशुरू में थोड़ी मुश्किलें मिक्स मार्शल आर्ट सीखने में आई थीं, पर अब सही हो चुका है.
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ग्रैंड प्रिक्स टाइटिल से आप कितनी दूर हैं?
अभी तो मु?ो वन चैंपियनशिप का यह खिताब मिला है. आगे मैं और अधिक तैयारियां कर रही हूं, क्योंकि ग्रैंड प्रिक्स में केवल एक लड़की इंडिया से चुनी जाएगी और मैं वह लड़की होना चाहती हूं. देश के लिए वर्ल्ड चैंपियनशिप की बैल्ट ले कर आऊंगी. मैं हमेशा प्रतिद्वंद्वी की कमजोरी और मजबूत पौइंट को सम?ाने की कोशिश कर उसी हिसाब से खुद को तैयार करती हूं. इस के अलावा मैं प्रसिद्ध मिक्स मार्शल आर्टिस्ट खबीब नुरमागोमेदोव की वीडियोज बहुत देखती हूं और वैसा स्टाइल अपनाने की कोशिश करती रहती हूं.
हमारे देश में मिक्स मार्शल आर्ट में बहुत कम लड़कियां है, वजह क्या है? आप इसे और अधिक पौपुलर करने के लिए क्या करना चाहती हैं?
पहले इस खेल के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी थी, वे सम?ाते थे कि यह मारपीट का खेल है, लेकिन अब मीडिया की कवरेज की वजह से लोग इस में रुचि लेने लगे हैं. इंडिया में अब प्रतिभा की कमी नहीं है, पर उस को निखारने और प्लेटफौर्म देने की जरूरत है. इसलिए मैं वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत कर सब का ध्यान इस ओर लाना चाहती हूं ताकि मिक्स मार्शल आर्ट को भी दूसरे स्पोर्ट्स की तरह जगह मिले. इस के अलावा, मैं सभी लड़कियों से यह कहना चाहती हूं कि खेल चाहे कोई भी हो, अनुशासन और मेहनत के साथ अपने टारगेट को पाने की कोशिश करनी चाहिए.
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फाइट के समय मानसिक स्थिति कैसी होनी चाहिए?
एक खिलाड़ी को सब से अधिक जरूरत मानसिक रूप से मजबूत रहने की होती है. मेहनत करने के बाद भी अगर आप की मानसिक स्थिति मजबूत नहीं है तो जीत हासिल करने में मुश्किल होती है. इस के लिए मैं व्यायाम करती हूं. हालांकि, मैं मानसिक रूप से बहुत स्ट्रौंग हूं.
आप के यहां तक पहुंचने में पिता का सहयोग कितना रहा. पूरे परिवार ने कैसे सहयोग दिया?
मेरे पिता ने बहुत सहयोग दिया है. शुरू में जब मैं कुश्ती से मिक्स मार्शल आर्ट की तरफ मुड़ी, तो पहले बहनों से बात की, उन्होंने पिता से कहा. पिता ने एक बार भी मना नहीं किया. उन्होंने कहा कि अगर मेरी रुचि मिक्स मार्शल आर्ट में जाने की है, तो मैं जा सकती हूं, लेकिन इस बात का ध्यान रखूं कि देश का ?ांडा हमेशा ऊंचा रहे. मैं वही कर रही हूं.
मेरे यहां तक पहुंचने में मेरे पूरे परिवार ने बहुत सहयोग दिया है. उन के बिना यहां तक पहुंचना संभव नहीं था. जब भी मैं ने परिवार को मिस किया, बड़ी बहन की बेटी के साथ बात की.
परिवार से दूर रह कर जीत हासिल करना कितना मुश्किल होता है?
दूसरे देश में जा कर जीत हासिल करना बहुत मुश्किल होता है. कई बार ट्रेनिंग के बाद इतनी थकान हो जाती है कि खुद खाना बनाना संभव नहीं होता. ऐसे में बाहर से खाना ला कर खाना पड़ता है. परिवार के साथ होने पर खानेपीने की चिंता नहीं रहती और ट्रेनिंग अच्छी तरह से हो जाती है.
खाली समय में क्या करना पसंद करती हैं?
रविवार को मेरी ट्रेनिंग नहीं होती. तब मैं घर की साफसफाई करती हूं. कुछ अलग डिशें, जो मैं ट्रेनिंग के दौरान नहीं खा सकती, उन्हें बनाती हूं, जिन में हलवा और खीर खास हैं.
अगर आप की बायोपिक बनती है, तो उस में बौलीवुड की किस अभिनेत्री को देखना पसंद करेंगी?
मैं कामयाबी के लिए बहुत मेहनत कर रही हूं. मेरी जर्नी और संघर्ष को मु?ा से अधिक बेहतर कोई नहीं जान सकता. इसलिए मैं ही उस बायोपिक को बनाने की इच्छा रखती हूं.
महिलाओं को क्या मैसेज देनाचाहती हैं?
आप जो भी सोचें वह कर सकती हैं. खुद पर विश्वास रखें और आगे बढ़ती जाएं. इस के अलावा परिवार की भी पूरी जिम्मेदारी होती है कि वे अपनी लड़कियों को उन की मनचाही दिशा में आगे बढ़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें.
नई सरकार के गठन के बाद से ही सिनेमा के विकास में योगदान के लिए कार्यरत चार
संगठनों को ‘राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम’में विलय करने की चर्चाएं शुरू हो गयी थी.इसी तरह की
चर्चा के बीच ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड’का दफ्तर जो मुंबई मे एक अलग स्थान पर था,उसे ‘फिल्मस
डिवीजन’के प्रांगण में अप्रैल 2017 में स्थानांतरित कर दिया गया था.
पूरे विष्व में प्रति वर्ष सर्वा धिक फिल्में भारत में बनती है.एक अनुमान के अनुसार हर वर्ष भारत
में तकरीबन तीन हजार से अधिक फिल्मों का निर्माण किया जाता है.यह एक अलग बात है कि इसमंे
सरकारी या ेगदान न के बराबर है.निजी कंपनियों व निजी फिल्म निर्माताओं की ही भागीदारी ज्यादा हैअब वर्तमान सरकार फिल्म क्षेत्र में अपनी प्रतिभागिता बढ़ाना चाहती है.इसीके मद्दे नजर केंद्रीय
मंत्रीमंडल ने सरकारी खर्च में कटौती करने के साथ ही देश में फिल्मों के विकास के नाम पर एक बड़ा
फैसला लेते हुए फिल्म विकास से जुड़ी चार अहम इकाइयों,संस्थाओ का विलय भारतीय फिल्म विकास
निगम (एनएफडीसी) में कर दिया है.प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मेमा रेंडम
ऑफ आर्टिकल्घ्स ऑफ एसोसिएशन ऑफ एनएफडीसी का विस्तार करके इसमें अपनी चार मीडिया
इकाइयों,फिल्मस डिवीजन, फिल्म समारोह निदेशालय, भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार और बाल
फिल्म सोसायटी के विलय को मंजूरी दे दी.
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सूचना और प्रसारण मंत्रालय के एक बयान के अनुसार राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम एक ‘छाता
संगठन‘ के रूप में कार्य करेगा। सरकारी निकाय फिल्म्स डिवीजन, नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ
इंडिया, चिल्ड्रंस फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया और फिल्म फेस्टिवल निदेशालय का विलय कर दिया
जाएगा. प्रत्येक संगठन अलग- अलग कार्य करता है और विभिन्न शहरों में स्थित है.1975 में स्थापित
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम/ एनएफडीसी,जो मुंबई से संचालित होता है.यह फिल्मों के लिए धन
इकट्ठाकर फिल्मकारों को धन मुहैया कराता है.साथ ही साथ सह-निर्मा ण मंच फिल्म बाजार भी
चलाता है.
1948 में स्थापित फिल्म्स डिवीजन का मुख्यालय मुंबई में एक अलग परिसर में है.इसका मुख्य
काम सरकार के कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए वृत्तचित्रों और समाचार वीडियो का निर्माण करना है.
यह संस्था वृत्तचित्रों, लघु फिल्मों और कई विषयों पर एनीमेटेड फिल्मों का निर्मा ण करता है.इसके
अलावा फिल्म्स डिवीजन हर दो वर्ष में एक बार मुंबई में ही अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह व पुरस्कार
समारोह का भी आयोजन करता है.
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चिल्ड्रेन्स फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया यानी कि बाल चित्र समित का गठन 1955 में हुआ थाइसका कार्या लय मुंबई में फिल्म्स डिवीजन कॉम्प्लेक्स में स्थित है,जो कि बच्चों और युवा वयस्कों के
मद्देनजर फिल्मों का निर्माण करती है.
1973 में स्थापित फिल्म समारोह निदेशालय के कार्यो में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का संगठन,
दादा साहब फाल्के पुरस्कार और भारत का वार्षि क अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह शामिल है,जो विदेशों में
भारतीय फिल्मों की स्क्रीनिंग की सुविधा प्रदान करता है.इतना ही नही भारत में हर वर्ष संपन्न होने वाले
‘अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह’के पैना रमा खंड की फिल्मों का चयन भी यही इकाई करती है.यह
निदेशालय उन भारतीय फिल्मों के संग्रह का भी काम करता है, जिन्होंने वर्षो से अंतर्राष्ट्रीय त्योहारों की
यात्रा की है.
1964 में स्थापित ‘नेशनल फिल्म आर्का इव ऑफ इंडिया’का मुख्यालय महाराष्ट् के पुणे में है.यहां
भारतीय सिनेमा का भंडार है,जो मूवी प्रिंट, प्रचार सामग्री और सिनेमा के लेखन का संग्रह कर रहा हैपुरालेख भी दुर्लभ प्रिंट के अधिग्रहण और चुनिंदा शीर्षकों की बहाली में शामिल रहा है.
वैसे फिल्मों से जुड़े कई लोग इन इकाइयों के कामकाज से असेतुष्ट थे.एनएफडीसी,बाल चित्र
समिति, फिल्मस डिवीजन सहित हर इकाई में समय समय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं इसके
अलावा चारों संबद्ध इकाइया ें के बीच समन्वय के अभाव की बातें भी समय पर सामने आती थीं.
यॅू तो सरकार के पास तमाम शिकायतें पहुॅची थी.
आरोप लगते रहे हैं कि फिल्मस डिवीजन और भारतीय बाल फिल्म सा ेसायटी अपनी भूमिका
सही ढंग से नहीं निभा रही है.बाल चित्र समिति के चेअरमैन पद पर रहते हुए अमोल गुप्ते व मुकेश
खन्ना भी अपनी असंतुष्टि जाहिर करते हुए अपने अपने पदों से त्यागपत्र दे चुके है.वास्तव में इन
सरकारी इर्काइेयों में लालफीताषाही के साथ पुराने ढर्र पर ही काम होता है.यहां नए विचारों और नई
योजनाओं का स्पष्ट अभाव देखा जा सकता था.जबकि इन इकाइयों का गठन देश में सिनेमा के विकास
में योगदान देने के लिए किया गया था.सरकार का मानना है कि अब एनएफडीसी में विलय से इनकी
कार्यप्रणाली सुधरेगी और देश में एक फिल्म नीति बनाने में भी बहुत मदद मिलेगी.
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‘‘केंद्रीय मंत्रिमंडल इन मीडिया इकाइयों के विलय को मंजूरी देने के बाद संपत्ति और
कर्मचारियों के हस्तांतरण पर सलाह देने और विलय के परिचालन के सभी पहलुओं की देखरेख के लिए
एक लेन-देन सलाहकार और कानूनी सलाहकार की नियुक्ति को भी मंजूरी दी है.
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है-‘‘विलय की इस कवायद को करते हुए,सभी संबंधित मीडिया
इकाइयों के कर्मचारियों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा और किसी भी कर्मचारी को नहीं हटाया
जाएगा.‘‘
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘‘नई इकाई की दृष्टि अपने सभी शैलियों में भारतीय सिनेमा के
संतुलित और केंद्रित विकास को सुनिश्चित करने के लिए होगी,जिसमें ओटीटी प्लेटफार्मों, बच्चों की
सामग्री, एनीमेशन, लघु फिल्मों और वृत्तचित्रों के लिए फिल्में आदि सामग्री शामिल हैं.‘‘
मंत्रालय के बयान के अनुसार विलय ‘‘मौजूदा बुनियादी ढांचे और जनशक्ति के बेहतर और
कुशल उपयोग‘‘ और ‘‘गतिविधियों के दोहराव में कमी और सरकारी खजाने का सीधे बचत‘‘ के उद्देश्य
से किया गया है.
सरकार के अनुसार नई संस्था की परिकल्पना में नए समय में फिल्मों के बदले हुए रूप पर
ध्यान दिया जाएगा.भविष्य में नई संस्था का काम फिल्मो,ओटीटी मंचो की विषयवस्तु, बच्चों से संबंधित
विषय वस्तु, एनीमेशन, शॉर्ट फिल्मों और वृत्तचित्रों (डॉक्युमेंट्री) सहित अपनी सभी शैलियाों की फीचर
फिल्मों में भारतीय सिनेमा का संतुलित और केंद्रित विकास सुनिश्चित करना रहेगा.
टीवी जगत की जानी मानी एक्ट्रेस गौहर खान के निकाह में कुछ घंटे ही बचें हुए हैं. ऐसे में गौहर खान और जैद दरबार ने बीते रात अपनी संगीत सेरेमनी की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. जिसमें गौहर खान अपने होने वाले पति के साथ पोज देती नजर आ रही हैं.
गौहर खान इस तस्वीर में बलां की खूबसूरत नजर आ रही हैं. वहीं गौहर खान और उनके पति जैद दरबार फोटो में बहुत ज्यादा स्टाइलिश लग रहे हैं. तस्वीर में जैद दरबार अपनी होने वाली बेगम के चिक्स को छुते हुए नजर आ रहे हैं.
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गौहर खान हैवी ज्वैलरी के साथ मांग टीका में कमाल की लग रही हैं. इन दोनों की सेरेमनी की तस्वीर इंटरनेट पर जमकर वायरल हो रही हैं. फैंस इन्हें खूब सारी बधाइयां देते नजर आ रहे हैं.
गौहर और जैद दरबार की सेरेमनी मुंबई के एख लग्जरी होटल में हुई है. गौहर और जैद की तस्वीर को देखऩे के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि ये दोनों एक –दूसरे के लिए ही बने हैं.
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आज गौहर और जैद की शादी होगी दोनों हमेशा के लिए एक-दूसरे के लिए हो जाएंगे इन दोनों के फैंस काफी ज्यादा खुश हैं इनकी शादी के लिए.
सभी के दिलों पर राज करने वाला सीरियल अनुपमा पहले दिन से ही टीआरपी चार्ट में सबसे आगे है. अनुपमा को लगभग हर घर में पसंद किया जाता है शायद यही वजह है कि अनुपमा सभी के दिलों पर राज करती हैं.
हाल ही में अनुपमा सीरियल में एक नया ड्रामा देखने को मिलेगा. जिसमें अनुपमा अपने बेटे और बहू के शादी के दिम काव्या को जोड़दार थप्पड़ मारती नजर आएंगी.
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दरअसल, बीते एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अनुपमा नौकरी मिलने से काफी ज्यादा खुश है वहीं परिवार वाले तोषु की शादी की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अनुपमा को इस बात का पता नहीं है कि उसकी खुशी ज्यादा दिनों तक टिकने वाली है.
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हाल ही में प्रोमो में दिखाया गया है कि अनुपमा के घरवाले तोषु के शादी के लिए खुश नजर आ रहे हैं. वीडियो में पंडित तोषु को शादी की रस्में निभाने के लिए माता पिता को आगे आने के लिए कहते हैं, लेकिन जैसे ही अनुपमा और वनराज रस्में निभाने के लिए आगे बढ़ते हैं तभी काव्या आगे आ जाती है.
काव्या आकर अनुपमा के साथ दुर्व्यव्यवहार करने लगती है ये सब अनुपमा को बर्दास्त नहीं होता है. वह काव्या को जोरदार थप्पड़ मारती हैं. और घर से बाहर का रास्ता दिखा देती है.
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घर से बाहर निकालते हुए अनुपमा कहती हैं मेरे शादी में तो अड़चन डाला था चुमने लेकिन अब मेरे बच्चों के शादी में ऐसा नहीं होने दूंगी.