बीती 24 जनवरी को पुत्रदा एकादशी का व्रत कई माओं ने रखा था जिससे उनकी संतानें सुखी रहें लेकिन एक माँ ऐसी भी थी जो व्रत रखने वाली महिलाओं से भी ज्यादा अन्धविश्वासी और  `धर्मपरायण` निकली . दो जवान बेटियों का धार्मिक अन्धविश्वास के नाम पर बेरहमी से क़त्ल कर देने वाली इस कुमाता का नाम पद्मजा है . हादसा दिल दहला देने बाला है जिसे जिसने भी सुना उसने सतयुग लाने वाली इस कलयुगी माँ की काली करतूत और थू थू की लेकिन अफ़सोस इस बात का ज्यादा होना चाहिए कि किसी ने उस धर्म और उसके पाखंडों व ग्रंथों और अंधविश्वासों को लानत नहीं भेजी जो इस मानसिकता और उन्माद का स्रोत और उद्गम है .

पुत्रदा एकादशी व्रत के बारे में कहा यह भी जाता है कि इसे करने से घर में सुख - शांति और धन -  वैभव बगैरह भी रहते हैं . आँध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के मदनपल्ली कस्बे में रहने बाले नायडू परिवार के पास वो सब कुछ था जिसकी इच्छा हर कोई रखता है लेकिन नहीं थी तो मानसिक शांति . हालाँकि इस संपन्न परिवार का कोई भी सदस्य नशा पत्ता नहीं करता था लेकिन यह पूरा परिवार दुनिया के सबसे घातक और खतरनाक नशे धर्म की लत में था जिसकी खुमारी 24 जनवरी को उतरी तो देश भर में सनाका खिंच गया .

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यह सच भी किसी हादसे से कम नहीं बल्कि उन्हें बढ़ावा देने बाला है कि किसी शिक्षित बुद्धिजीवी या कुलीन ने यह नहीं कहा कि यह एक धार्मिक विकृति है उलटे इसे मानसिक विकृति कहते सभी ने जता और बता दिया कि हल्के से ही नशे में तो वे भी हैं . जो नशा हमारे पूर्वज हमें दे गए हैं उसे हम धरोहर समझ अगली पीढ़ी को देने का दस्तूर निभा रहे हैं क्योंकि इस विकृति पर हमें शर्मिंदगी नहीं बल्कि गर्व है . मदनपल्ली के इस बेटी हत्याकांड में शुक्र की बात तो लोगों का खुलेआम यह न कहना रहा कि पुलिस को नायडू दंपत्ति को वक्त देना चाहिए था मुमकिन है बेटियां जिन्दा हो भी जातीं .

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