आजकल के मां-बाप अपने जैसे दूसरे मां-बापों से मिलने पर बच्चों को लेकर रोना शुरु कर देते हैं कि वे अब पहले के बच्चों की तरह मासूम नहीं हैं और इसके लिए वे जमाने और नई तकनीक पर तोहमत का ठीकरा फोड़ते हैं. लेकिन न तो तकनीक और न ही जमाना बच्चों से उनकी मासूमियत छीन रहा है, यह आप हैं जो उनकी मासूमियत के जानी दुश्मन बने हुए हैं.

हम अकसर घरों में अपने छोटे बच्चों के सामने न केवल न अपने तमाम रिश्तेदारों बल्कि आस पड़ोस के उन लोगों की खूब बुराईयां करते रहते हैं जिन्हें सामने बहुत सम्मान देते हैं. मां-बाप की इस रवैय्ये से छोटे बच्चे बहुत कंफ्यूज हो जाते हैं कि लोगों पर भरोसा करना चाहिए या उनको चालाक और काईयां समझना चाहिए. इस द्वंद के अंत में वे आपके ही नक्शेकदम पर चलते हुए दोहरा व्यवहार करने लगते हैं.

यही वह कारण है, जिसकी वजह से बहुत कम उम्र में ही बच्चे अपनी मासूमियत खो देते हैं. हम इसके लिए जमाने को दोषी ठहराते हैं, टीवी को दोषी ठहराते हैं, मोबाइल को दोषी ठहराते हैं. लेकिन कभी गौर से देखने और समझने की कोशिश नहीं करते कि कोई और नहीं हम खुद ही इसके सबसे बड़े गुनाहगार हैं. याद रखिये बच्चे आधुनिक तकनीक की वजह से रिश्तों का अनादर नहीं करते, रिश्तों का तकनीक से कोई नकारात्मक मेल नहीं है. उल्टे तकनीक तो रिश्तों को बेहतर बनाने में काम आ सकती है. बच्चे कहीं गये हों और उन्हें दादा-दादी की याद आ रही हो तो मोबाइल के जरिये दादा-दादी से बात कर लेना उनके प्रेम और लगाव को बढ़ायेगा ही, कम नहीं करेगा.

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