लेखक-तपेश भौमिक

पढ़ना ऐसी क्रिया है जो ज्ञान में दिनोंदिन बढ़ोतरी करती है और जीने का सलीका सिखाती है. यह एक तरह से ऐक्सरसाइज की तर्ज पर है, जितना पढ़ेंगे उतना मंजेंगे. पढि़ए, खूब पढि़ए और आगे बढि़ए. ‘रीडिंग इज टू द माइंड, व्हाट ऐक्सरसाइज इज टु द बौडी’ प्रख्यात अंग्रेज साहित्यकार व संपादक जोसफ एडिसन ने आज से लगभग 300 साल पहले यह बात कही थी, यानी पढ़ाई दिमाग के लिए उतनी जरूरी है, जितना शारीरिक स्वास्थ्य के लिए व्यायाम. उन की यह बात कई वैज्ञानिक शोधों द्वारा प्रमाणित भी हो चुकी है. व्यायाम जिस प्रकार से हमारे शरीर को स्वस्थ और सुडौल बनाता है, ठीक उसी प्रकार हम किताबें पढ़ कर अपने मनमस्तिष्क को स्वस्थ व आनंदमय बना सकते हैं.

एक अच्छी किताब मनुष्य के मन की आंखों को जिस प्रकार खोल देती है, ठीक उसी प्रकार ज्ञान और बुद्धि को भी प्रसारित कर अंत:स्थल को रोशनी से भर देती है. किताबें मनुष्य की महानतम संपदा हुआ करती हैं. इन के साथ अन्य किसी भी वस्तु की तुलना नहीं की जा सकती. उदाहरण के लिए, आप अगर एक प्रयोग से गुजरते हैं कि एक ही दिन में कुछ मनपसंद पुस्तकें और सामान खरीद कर लाते हैं और अपने सम्मुख किसी मेज पर उन्हें रख कर ध्यान लगा कर उलटपुलट कर देखते हैं, तो ऐसा निश्चित अनुभव होगा कि किताबें खरीद कर आप ने अपनेआप को अधिकतम समृद्ध किया है. साथ ही, यह भी अनुभव कर सकते हैं कि आप ने अपने आने वाले वंशज के लिए भी एक धरोहर तैयार करनी शुरू कर दी है. उन्हें इस बात का गुमान होगा कि उन के पूर्वजों ने उन के लिए धन के साथसाथ विद्या भी रख छोड़ी है.

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