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किसान आन्दोलन: जब किसानों ने रागिणी गा कर सरकार को घेर लिया

लेखक-रोहित और शाहनवाज

“सो सो पड़े मुसीबत बेटा, मर्द जवान में,
ओरे भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में
मेरे जैसा कौन जणदे पूत जहान में,
भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में
दुनिया में तेरे गीत सुनूंगी, और कदे ना कदे माँ फेर बनूंगी,
और अगले जनम में फेर जनूंगी, ऐसी संतान मैं,
भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में…”

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शाम के करीब 4:30 बज रहे थे. दिल्ली हरियाणा के टिकरी बॉर्डर पर किसान आन्दोलन में मंच के पास सब कुछ शांत हो गया था. मंच से काफी दूर दूर तक सब हलचल मानों बंद हो गई थी. अचानक से लाउड स्पीकर पर एक धुन बजने लगी. ये मटके के बजने की आवाज थी. मटके के मुह पर काला रबर बंधा था, जो की किसी दुसरे रबर के संपर्क में आने पर ‘टुंग टुंग’ जैसी आवाज निकल रही थी.

मंच पर करीब 5-6 लोग मिल कर मटका बजा रहे थे और एक आदमी हारमोनियम बजा रहा था. ये धुन इतनी प्यारी थी की सिर्फ चुप चाप खड़े हो कर सुनने का मन कर रहा था. उसी बीच मंच पर उपस्थित एक और व्यक्ति, थोड़ी भारी सी आवाज में और हरियाणवी बोली में ऊपर लिखे गीत को गाने लगे.

कोई भी इंसान उस आवाज को सुनता तो यह उस आवाज को सुरीला नहीं कहता. लेकिन जैसे ही गाने में “भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में…” ये लाइन आई तो जितने लोग उस वक्त मौजूद थे उन के अन्दर न जाने कहां से एक ऐसा जोश और ऐसा उमंग भर गया, जो शायद ही अभी शब्दों में बयान करना मुमकिन है.

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ऊपर इन लाइन का मतलब समझाते हुए हरियाणा के रोहतक में टिटोली गांव से प्रदर्शन में शामिल हुए रविंदर ने बताया कि, “इस गाने में भगत सिंह की माँ, लोगों को ये मेसेज देना चाहती है कि भगत सिंह को चार दिवारी में बाँध कर नहीं रखा जा सकता है. और उन की माँ ये बताना चाहती है कि उन को गर्व है की उन्होंने भगत सिंह जैसे पूत को जन्म दिया है और अगले जनम में अगर फिर से माँ बनी तो फिर से भगत सिंह जैसे बेटे को जनम देंगी.”

उस वक्त की सब से खास बात ये थी कि वहां मौजूद लोग चुपचाप खड़े हो कर रागिणी सुनने में मगन थे. लेकिन जब भी पंचिंग लाइन (भगत सिंह कदे जी घबरा जा…) आती तो सब एक लय में मंच पर मौजूद रागिणी गाने वाले व्यक्ति की आवाज से आवाज मिला कर गाने लगते. ये बेहद जोशीला माहौल था जिस का साक्षी होने का मौका हमें मिला.

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क्या होती है रागिणी?

हर राज्य का अपना कुछ न कुछ कल्चर होता है, गीत होता है, संगीत होता है. उसी तरह से रागिणी भारत में हरियाणा की लोक गीत है. रागिणी में प्रेमियों के जुदाई का दर्द बयान किया जाता है, वीरता और शौर्य का गुणगान किया जाता है, फसल उगने का और कटने की खुशी व्यक्त की जाती है. इसे कही बढ़ कर रागिणी में समाज में चल रहे अस्त व्यस्तता को दिखाया जाता है और सच्चाई को बुलंद आवाज में कह देने की हिम्मत होती है.

इसे गाने के लिए किसी का सुरीला होना जरुरी नहीं है, बल्कि गीत के बोल में इतना दम होना चाहिए कि सुन ने वाले व्यक्ति के दिल और दिमाग में उस के बोल उतर जाए. रागिणी गाने के साथ साथ गाने वाला सांग भी करता है जो कि गीत के बोल पर हल्का फुल्का थिरकना शामिल होता है, जो की माहौल को और अधिक खुशनुमा बनाता है.

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रागिणी को गाने के लिए और उस में धुन बजाने के लिए बहुत अधिक उपकरणों की जरुरत भी नहीं है. कम से कम एक मटका जिस के मुह पर रबर बंधा हो और उसे बजाने के लिए दूसरा रबर ही काफी है. प्रोफेशनल रागिणी गाने वाले लोग अपने पास इकतारा, सारंगी, चिमटा, मंजीरा, दुग्गी, खर्ताल इत्यादि उपकरण भी साथ रखते हैं.

मुख्य रूप से रागिणी गांव देहातों में ख़ुशी के मौको पर गाई जाती है, जैसे की शादी बियाह के मौकों पर. लेकिन यह किसी भी मौके पर गाई जा सकती है.

क्यों गाई गई प्रोटेस्ट में रागिणी?

दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन की सब से अनोखी बात यह है की प्रदर्शन करने आए ये किसान अपनी मांगों को ले कर बेहद क्रिएटिव है. वें सिर्फ अपनी मांगों को ले कर नारे लगाना नहीं जानते बल्कि अपनी बात अलग अलग माध्यमों के द्वारा जाहिर करना भी जानते हैं. रागिणी उन्ही में से एक माध्यम है.

शाम 4:30 बजे से रागिणी गाना शुरू किया गया था और 4-5 घंटे तक अलग अलग कलाकारों ने किसान आन्दोलन के समर्थन में कई तरह कि रागिणी गा कर सरकार की पोल खोलने का काम किया.

क्योंकि रागिणी में किसानों के द्वारा फसल की उगाई से ले कर कटाई तक हर तरह का वर्णन मिलता है इसीलिए रागिणी ने मुख्य रूप से किसानों की आवाज बुलंद करने का काम किया है.

उस समय मौजूद कलाकारों के द्वारा कई ऐसे गाने गाए गए जो की सरकारी हुकूमत, भ्रष्टाचार, शोषण, उत्पीडन, नौकरशाही, बेरोजगारी इत्यादि न जाने कई तरह की समस्याओं और सरकार को घेरने का काम किया गया. जिस से आन्दोलन कर रहे किसानों के अन्दर एक अलग तरह की ऊर्जा का संचार देखने को मिलता है.

निराई गुड़ाई व जुताई बोआई कृषि यंत्र

हमारे देश की खेती पशुओं पर निर्भर रही है, लेकिन अब किसान खेती के नएनए तौरतरीके अपना रहे हैं. पहले निराईगुड़ाई जैसे काम के लिए काफी मजदूर लगाने पड़ते थे. समय बदलने लगा और मजदूरों की जगह मशीनों ने ले ली. कृषि मशीन निर्माता व अनेक संस्थाएं खेती की मशीनें बनाने लगे, जिन से किसानों का काम आसान हुआ.

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अभी हाल ही में हमारे अनेक पाठकों ने निराईगुड़ाई की मशीन के बारे में जानकारी मांगी. उसी के संदर्भ में कुछ खास जानकारी :

‘पूसा’ पहिए वाला हो वीडर

यह बहुत साधारण प्रकार का कम कीमत का यंत्र है. इस यंत्र में खड़े हो कर निराईगुड़ाई की जाती है. इस का वजन लगभग 8 किलोग्राम है व इसे आसानी से फोल्ड कर के कहीं भी ले जाया जा सकता है. इस यंत्र को खड़े हो कर आगेपीछे धकेल कर चलाया जाता है. निराईगुड़ाई के लिए लगे ब्लेड को गहराई के अनुसार ऊपरनीचे किया जा सकता है. पकड़ने में हैंडल को भी अपने हिसाब से एडजस्ट कर सकते हैं. यह कम खर्चीला यंत्र है.

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‘पूसा’ चार पहिए वाला वीडर

एकसार खेत से कतार में बोई गई उस फसल से खरपतवार निकालने के लिए यह अच्छा यंत्र है, जिन पौधों की कतारों के बीच की दूरी 40 सेंटीमीटर से अधिक है, क्योंकि इस मशीन का फाल 30 सेंटीमीटर चौड़ा है. इस मशीन को पकड़ कर चलाने वाले हैंडल को भी अपनी सुविधा के हिसाब में एडजस्ट कर सकते हैं. इस यंत्र का वजन लगभग 11-12 किलोग्राम है. इसे फोल्ड कर के आसानी से उठा कर कहीं भी ले जाया जा सकता है. यह भी पूसा कृषि संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बनाया गया है.

उपरोक्त दोनों यंत्र कृषि अभियांत्रिकी संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली द्वारा बनाए गए?हैं. इन के लिए आप इस संस्थान से संपर्क कर सकते हैं.

पावर टिलर द्वारा चालित यंत्र

यह कतार में बोई गई सोयाबीन, चना, अरहर, ज्वार, मक्का, मूंग आदि फसलों में निराईगुड़ाई के लिए उपयोगी यंत्र है. इस यंत्र को 8-10 हार्सपावर के पावर टिलर में जोड़ कर चलाया जाता है. इस की अनुमानित कीमत 1800 रुपए है.  यह यंत्र केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल द्वारा निर्मित है. आप इन के फोन नं. 2521133, 0755-2521139 पर संपर्क कर सकते हैं.

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छोटा पावर वीडर

पैट्रोल से चलने वाला यह छोटा पावर वीडर निराईगुड़ाई के लिए अच्छा यंत्र है. इस में 2 स्ट्रोक इंजन लगा होता है. इस से 3 से 4 इंच गहराई तक निराईगुड़ाई होती है. इस के लिए जमीन में लगभग 25 फीसदी नमी होना जरूरी है. इस यंत्र की कीमत तकरीबन 16 हजार रुपए है. इस के अलावा 5 हार्स पावर के डीजल इंजन के साथ लगा कर चलाने वाले कई और वीडर भी उपलब्ध हैं, जिन की शुरुआत 65 हजार रुपए से होती है और मशीन के कूवत के हिसाब से यह कीमत बढ़ती जाती है.

डीजल इंजन के साथ अनेक मशीनें जैसे लैवलर, स्प्रे पंप, रोटावेटर, सीड ड्रिल आदि को जोड़ कर खेती के काम किए जा सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए आप राघवेंद्र कुमार से उन के मोबाइल नंबर 09670632555 पर बात कर सकते हैं.

इस के अलावा बीसीएस इंडिया प्रा. लि. लुधियाना, पंजाब की कंपनी भी वीडर मशीन बना रही है, जिस का कृषि यंत्र निर्माताओं में अच्छा नाम है. आप इन से भी इन के फोन नं. 08427800753 पर बात कर के तफसील से पूरी जानकारी ले सकते हैं.

जुताई व बोआई यंत्र

किसान अपनी रबी की फसल ले चुके हैं. अब खरीफ फसलों की तैयारी पर काम चल रहा है. कुछ किसान तो अपने खेतों में फसल बो चुके हैं. किसान अपने बीज को बोआई यंत्र से बो सकते हैं, क्योंकि यंत्रों से बिजाई करने से बीज बरबाद नहीं होते हैं. पावर टिलर चालित जुताई व बोआई यंत्र 

यह यंत्र खेत की तैयारी के साथसाथ बोआई भी करता है इस से खाद भी साथ ही डाल सकते हैं. इस यंत्र को 10 से 12 हार्स पावर के टिलर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. इस यंत्र की अनुमानित कीमत 15000 रुपए से 18000 रुपए है. इस यंत्र से गेहूं, सोयाबीन, चना, ज्वार, मक्का की बोआई कर सकते हैं. इस यंत्र को खरीदने के लिए आप कृषि अभियांत्रिकी संस्थान के फोन नं. 0755-2521133, 2521139, 2521142 पर संपर्क कर सकते हैं.

जांगड़ा की बिजाई मशीन

सब्जियों की बोआई हेतु महावीर जांगड़ा की यह बिजाई मशीन खासी लोकप्रिय है. खेत तैयार करने के बाद इस मशीन से बिजाई करने पर बीज उचित मात्रा में लगते हैं. साथ ही यह मशीन खुद मेंड़ बनाती है और बिजाई करती है. यह मशीन 2 मौडल में उपलब्ध है :

* 2 बेड वाली बिजाई मशीन :  यह मशीन 8 लाइन में बिजाई करती है और इसे 35 से 40 हार्स पावर के ट्रैक्टर से चलाया जाता है. इस बिजाई मशीन की कीमत लगभग 52000 रुपए है.

* 3 बेड वाली बिजाई मशीन :  यह मशीन 12 लाइनों में बिजाई करती है और इसे 50 हार्स पावर के ट्रैक्टर से चलाया जाता है. इस की कीमत लगभग 72000 रुपए है.

इस मशीन से बोई जाने वाली खास फसलें :

* फूलगोभी, पत्तागोभी, सरसों, राई, शलगम.

* गाजर, मूली, धनिया, पालक, मेथी, हरा प्याज, मूंग, जीरा, टमाटर.

* भिंडी, मटर, मक्का, चना, कपास, टिंडा, तोरी, फ्रांसबीन, घीया, तरबूज.

जो भी किसान इस मशीन को लेना चाहें वे महावीर जांगड़ा से उन के फोन नंबर 09896822103, 9813048612 पर संपर्क कर सकते हैं.

मेरी पत्नी चिड़चिड़ी सी रहने लगी है और बातबात पर तुनक जाती है, क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 52 साल है और मेरी पत्नी 48 साल की है. हमारी शादी को 30 साल हो गए हैं. पिछले कुछ समय से मेरी पत्नी चिड़चिड़ी सी रहने लगी है और बातबात पर तुनक जाती है. कभीकभार तो हमारी लड़ाई भी हो जाती है.

मैं उसे मनाने के लिए सैक्स की डिमांड करता हूं तो वह मुझे दूर कर देती है. वैसे, हमारे परिवार में और कोई दिक्कत नहीं है. इस समस्या का हल बताएं?

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जवाब

शादी के 30 साल बाद ऐसा होना कुदरती बात है. आप समझ और सब्र से काम लेते हुए पत्नी की परेशानियों को समझें. सैक्स के लिए उतावला होने के बजाय प्यार और हमदर्दी से पेश आएं.इस उम्र में औरतों के चिड़चिड़े होने की कई वजहें होती हैं. बेहतर होगा कि आप कुछ दिनों के लिए पत्नी के साथ कहीं दूर घूमने चले जाएं और खुल कर घरगृहस्थी व दुनियाजहान की बातें करें.

इस गलतफहमी को दिल से निकाल दें कि वह पहले की तरह सैक्स की डिमांड से खुश होगी. अब वह आप के प्यार, हमदर्दी और नजदीकियों से ज्यादा खुश होगी. आप की सैक्स लाइफ ठीक रहे, यह ध्यान रखें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

लालिमा-भाग 3 : बहू के रूप में सुनीता को क्यों नहीं भायी लाली

‘आकाश को बचपन में ही चुप करा देती थी वह. आज भी उस को बोलते देख जबान बंद हो गई होगी आकाश की. कुछ तो हुआ ही होगा, वरना चक्कर कैसे आ गया अचानक?’

सुनीता के लिए अब इंतजार का पलपल भारी हो रहा था. रसोई में जा कर वह खिचड़ी बनाने लगी, ताकि समय भी बीत जाए और दीपक के आने पर वह उस के पास बैठ पाए.

दरवाजे की घंटी की आवाज सुन वह तेजी से दरवाजे की ओर लपकी. दीपक को सहारा देते हुए आकाश ने मुसकराते हुए अंदर प्रवेश किया. आकाश के पीछेपीछे एक युवती भी थी. फिरोजी शिफोन की साड़ी और गले में उसी रंग की माला, हाथ में क्लच थामे, कंधे तक लहराते रेशमी बालों में वह बेहद आकर्षक लग रही थी. माथे पर छोटी सी बिंदी और बड़ीबड़ी काजल लगी मनमोहक आंखें उस के सांवले चेहरे पर चारचांद लगा रही थीं.

‘क्या यह लाली है?’ सोचते हुए सुनीता को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था.

‘‘ओह मम्मी, कितने वर्षों बाद मिल रही हूं आप से,’’ कह कर उत्साहित हो लाली सुनीता के पास आ कर खड़ी हो गई.

सब लोग बैडरूम में आ गए. दीपक को सहारा दे कर बिस्तर पर लिटा आकाश और लाली उस के पास बैठ गए.

‘‘मैं ऐप्पल जूस ले कर आती हूं,’’ कहते हुए सुनीता कमरे से निकली तो लाली भी पीछेपीछे हो ली.

‘‘मम्मी, आप बैठिए न पापा के पास. मुझे बताइए क्या करना है,’’ लाली बोली.

‘‘अरे नहीं बेटा, अभी तुम बैठो, मैं आती हूं एक मिनट में,’’ सुनीता का व्यवहार अचानक ही लाली के प्रति नरम हो गया. कुछ देर बाद हाथ में ट्रे थामे सुनीता वापस वहीं आ कर बैठ गई.

‘‘आप ठीक तो हैं न? पापाजी की तबीयत के बारे में सुन कर आप न जाने कब से परेशान हो रही होंगी, आप पीजिए पहले जूस,’’ लाली सुनीता की ओर जूस बढ़ाते हुए बोली.

‘‘मैं ठीक हूं. पर ये कैसे बेहोश हो गए थे आज अचानक? मुझे आकाश के घर पहुंच कर फोन करना भी भूल गए,’’ सुनीता के लहजे में थोड़ी शिकायत झलक रही थी.

‘‘पापा मेरे घर पहुंचे ही कहां थे, मम्मी,’’ आकाश बोला.

‘‘मतलब?’’ सुनीता की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘हम आज आप के पास आना चाहते थे, पर सुबह 5 बजे ही कपूर हौस्पिटल से फोन आ गया. वहां एक मरीज का जरूरी औपरेशन होना था. औपरेशन करने वाले डा. सेठी के पिता का अचानक देहांत हो गया. वे लोग मुझ से औपरेशन करने की रिक्वैस्ट कर रहे थे. इसलिए मुझे उस हौस्पिटल में जाना ही पड़ा.

‘‘जब बर्थडे विश करने के लिए आप का फोन आया तब मैं हौस्पिटल में ही था. लाली जानती थी मेरे जन्मदिन के मौके पर आप दोनों आज मेरा इंतजार कर रहे होंगे.

‘‘जब कपूर हौस्पिटल से लाली को मैं ने फोन कर बताया कि औपरेशन के बाद कुछ घंटे मरीज की हालत पर नजर रखने के लिए मुझे वहां रुकना पड़ेगा तो आप लोगों के बारे में सोच कर यह परेशान हो गई और इस ने आप लोगों के पास अकेले ही आने का कार्यक्रम बना लिया.

‘‘लाली घर के नजदीक पहुंच कर औटोरिकशा से उतरी ही थी कि…तुम ही बताओ न,’’ आकाश बात बताते हुए लाली की ओर देख कर बोला.

‘‘मैं औटो से उतर कर घर की तरफ आ रही थी कि मैं ने देखा पापा ने घर के सामने खड़ी अपनी कार के पिछले दरवाजे को खोल डस्टर निकाला और आगे वाले शीशे को साफ किया. वे जब दोबारा दरवाजा खोल कर अंदर घुसे तो फिर बाहर नहीं निकले. मैं ने भीतर झांका तो देखा, पापा सीट पर बैठे थे और उन का सिर आगे की ओर झुका हुआ था.’’

लाली को बीच में रोक कर दीपक बोल पड़े, ‘‘मैं डस्टर वापस रखने अंदर घुसा तो मेरी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. मैं सीट पर बैठ गया और अपना हाथ आगे वाली सीट पर रख, उस पर अपना सिर टिका लिया. इस के बाद मुझे नहीं पता, होश आया तो मैं हौस्पिटल में था, अगलबगल ये दोनों थे.’’

लाली ने अपनी बात का सिरा पकड़ते हुए फिर से बोलना शुरू किया, ‘‘जब मैं ने कार की पिछली सीट पर पापा को उस हालत में देखा तो मैं घबरा गई, सोचा कि घर आ कर मम्मी को बुला लाऊं. फिर लगा कि इस समय ज्यादा वक्त बरबाद करना ठीक नहीं है. जल्दी से मैं ने आकाश के दोस्त डा. सचिन को फोन कर दिया, क्योंकि मैं जानती थी कि आकाश तो कपूर हौस्पिटल में होंगे. डा. सचिन ने अपने स्टाफ से तैयार रहने को कह दिया और मैं जल्दी से कार ड्राइव कर पापा को हौस्पिटल ले गई.

‘‘गेट पर ही स्टाफ के 2 लोग खड़े थे. वे पापा को इमरजैंसी में ले गए. शुगर लैवल अचानक कम ह९ो जाने के कारण पापा बेहोश हो गए थे.’’

‘‘मतलब, अगर लाली मुझे ले कर जल्दी से हौस्पिटल न जाती तो कुछ भी हो सकता था,’’ दीपक ने सुनीता की ओर देख कर कहा.

‘‘सचमुच, लाली ने आज सारी स्थिति को झट से समझ लिया और आप की जान बचा ली. मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि बचपन में जो लाली बस शैतानियां करना ही जानती थी, वह अब इतनी समझदार हो गई है,’’ सुनीता के शब्दों से स्नेह झलकने लगा था.

‘‘मम्मी, ये सब आप की वजह से ही हुआ है,’’ लाली सुनीता की ओर देख कर बोली.

‘‘अरे, मेरी वजह से, मतलब?’’ सुनीता ने प्रश्नभरी दृष्टि से उसे निहारा.

‘‘हां, आप तो जानती ही हैं कि जब मैं बहुत छोटी थी तभी मेरी मां चल बसी थीं. बिन मां की बच्ची को सही रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं होता. बापू पूरी कोशिश करते थे मुझे एक बेहतर इंसान बनाने की, पर समय ही कहां होता था उन के पास मुझे देने के लिए.

‘‘याद है न, जब आप गांव आती थीं, मैं आकाश से कितना लड़ाईझगड़ा करती थी, फिर भी आप हमें बैठा कर अच्छीअच्छी बातें बताया करती थीं. आप ने ही तो बापू से कहा था कि मेरी पढ़ाई जारी रखी जाए. बस, जब शिक्षा का दामन थामा तो न जाने क्याक्या सीख लिया मैं ने. फिर जब आप और पापा अंकिता दीदी के पास आस्ट्रेलिया गए हुए थे तो यहां आकाश और मैं आप के बारे में खूब बातें किया करते थे. आकाश मुझे बताया करते थे कि आप कौन सा काम कैसे करती हैं, जीवन को ले कर आप का नजरिया क्या है और रिश्तों का आप के लिए क्या महत्त्व है. आप संकट के समय भी हिम्मत न हार कर धीरज से काम लेती हैं, यह भी बताया मुझे आकाश ने.

‘‘सच कहूं तो वह सब जानने के बाद मैं ने ठान लिया कि मैं भी आप जैसी बनूंगी. और बस, जीवन के सही मार्ग पर चलना शुरू कर दिया. मैं इस रास्ते पर  लगातार चलती रहूं और कभी भटक न पाऊं, इस के लिए मुझे आप के साथ की जरूरत है. मेरा हाथ थाम लो मम्मी, आप के बिना मैं अधूरी हूं.’’

सुनीता यह सब सुन कर भावविभोर हो गई. ‘लाली का मन कितना साफ है और मैं न जाने क्याक्या तोहमत लगा रही थी उस पर.’  सोच कर सुनीता खुद शर्मिंदा हो रही थी. उस ने आगे बढ़ कर लाली को गले लगा लिया. लाली की आंखों से टपटप आंसू बहने लगे.

‘‘अरे, आप दोनों के चेहरे लाल क्यों हो गए?’’ मुसकराते हुए आकाश बोला.

‘‘प्यारभरा मिलन जो हुआ है लाली और मां का. भई वाह, लाली और मां से मिल कर ही तो लालिमा शब्द बना है न. तो चमकने दो दोनों के चेहरे पर ये उज्ज्वल सी लालिमा.’’ दीपक मुसकराते हुए पूरी तरह स्वस्थ लग रहे थे.

घर के बाहर सूर्यास्त की लालिमा बिखरी हुई थी तो घर के भीतर नए रिश्ते के उदय होने की लालिमा फैली थी.

लालिमा-भाग 2 : बहू के रूप में सुनीता को क्यों नहीं भायी लाली

सुनीता और दीपक 6 महीने का वीजा ले कर बेटी अंकिता के पास आस्ट्रेलिया चले गए. उन के जाने के कुछ दिनों बाद ही लाली वहां आ गई. उधर, अंकिता को बेटे की सौगात मिली. आस्ट्रेलिया में 6 महीने बिता कर सुनीता जब घर वापस लौटी तो लाली अपनी ट्रेनिंग पूरी कर लौट चुकी थी.

लाली को अपने यहां रखने के निर्णय पर पछतावा होता रहता था सुनीता को. उस ने तो सोचा था कि जब तक वे आस्ट्रेलिया में हैं, लाली आकाश के पास रहे तो क्या हर्ज है? वह घर पर खाना बना लेगी तो आकाश को भी बाहर नहीं खाना पड़ेगा. पर यह नहीं पता था कि लाली आकाश के पेट से दिल तक पहुंच जाएगी. सुनीता और दीपक तब अपनेआप को ठगा सा महसूस करने लगे जब आकाश ने लाली के साथ शादी की जिद पकड़ ली.

सुनीता और दीपक का समझाना भी बेकार चला गया. हार कर उन्होंने शादी की इजाजत तो दे दी, पर साथ ही यह भी कह दिया कि शादी कोर्ट में ही होगी और वे दोनों वहां उस समय उपस्थित नहीं रहेंगे. आकाश के दोस्त ही गवाह बन कर साइन कर देंगे.

तभी दरवाजे की घंटी बजने से सुनीता वर्तमान में लौट आई. ‘शायद दीपक आ गए’ सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला. सामने के फ्लैट में रहने वाली निशा आई थी.

‘‘सुनीता दी, आज तो आकाश का बर्थडे है न. इस बार केक नहीं खिलाया आप ने?’’ दोनों के बैठते ही निशा बनावटी शिकायत करते हुए बोली.

‘‘अरे, क्या बताऊं निशा, जब से आकाश की लाली के साथ शादी हुई है, मन बुझ सा गया है मेरा. बनाया तो था केक पर तुम्हें देना भूल गई.’’

‘‘क्या सुनीता दी, आप इतनी दकियानूसी कब से हो गईं? आप की नाराजगी की वजह तो बस यही है न कि वह आप की जाति की नहीं है?’’ लाली का पक्ष लेते हुए सुनीता को समझाने के अंदाज में निशा बोली.

‘‘अरे नहीं, जातिपांति में तो विश्वास नहीं रखती मैं, पर लड़की आकाश के लायक तो हो, खूब देखा है मैं ने उसे. चलो छोड़ो, मैं केक ले कर आती हूं,’’ सुनीता सोफे से उठने लगी तो निशा ने रोक दिया.

‘‘अभी नहीं, बाद में. अभी तो मैं बाजार जा रही हूं. बस, यों ही मिलने आ गई थी आप से और केक ही क्यों? हम तो पार्टी लेंगे आकाश की शादी की.’’

‘‘आकाश भी यही सपना संजोए बैठा है कि लाली से मिलने पर मैं उसे जरूर पसंद कर लूंगी और तब दे देंगे रिश्तेदारों व दोस्तों को रिसैप्शन. पर ऐसा कहां होने वाला है? आकाश को पसंद है तो रहे उस की बीवी बन कर वह लाली. जरूरी तो नहीं कि मैं उसे अपने घर की बहू मान लूं?’’ मुंह बना कर सुनीता बोली.

‘‘दी, मेरा एक अनुरोध है. आप एक बार मिल तो लो लाली से. आप के पीछे से जब वह यहां थी तो एकदो बार मेरी मुलाकात हुई थी उस से. लड़की तो बुरी नहीं है वह.’’

कुछ देर इस विषय पर बातचीत करने के बाद निशा वापस अपने घर चली गई.

निशा के जाते ही सुनीता फिर से दीपक की देरी को ले कर चिंतित हो उठी. कई बार मन हुआ कि दीपक को फोन कर के ही जान ले देरी का कारण. उस ने मोबाइल उठाया भी, पर कुछ सोच कर हाथ रुक गए. ‘कहीं ऐसा न हो कि ये अभी आकाश के घर पर ही बैठे हों. फिर मेरे कौल करते ही आकाश को पकड़ा दें मोबाइल. जन्मदिन की मुबारकबाद तो मैं ने दे ही दी सुबह उसे. अब दोबारा बात हुई तो जरूर कहेगा कि मम्मी आज तो कर ही लो बात लाली से. उंह, मैं कभी बहू नहीं मान सकती उस कालीकलूटी, उलझे बालों की चोटी बनाए, लंबी सी फ्रौक पहन गांव में सब से लड़तीझगड़ती लाली को.’ और लाली के विषय में सोचते हुए उस का मुंह कसैला हो गया.

तभी मोबाइल बजने लगा, आकाश का फोन था.

‘‘हैलो मम्मी, आप पापा के न पहुंचने से परेशान मत होना. उन्हें चक्कर आ गया था. हौस्पिटल में ही मेरे साथ हैं.’’

‘‘अरे, क्या हुआ पापा को? बात तो करवा जरा उन से,’’ घबराई हुई सुनीता बोली.

‘‘वे कमरे में हैं. मैं कमरे से बाहर निकल कर बात कर रहा हूं. आप बिलकुल फिक्र मत करो. हम पहुंच रहे हैं कुछ देर में घर.’’

दीपक के विषय में जान कर सुनीता चिंतित हो गई. ‘क्यों जाने दिया मैं ने उन्हें अकेले वहां? मैं क्या जानती नहीं थी लाली का स्वभाव? बात तो पुरानी है पर थी तो वह लाली ही. गांव में जब मैं बच्चों को बैठा कर किस्सेकहानियां सुना रही होती थी तो कैसे चिढ़ जाती थी दीपक के वहां अचानक आ जाने पर, मजा खराब हो जाता था उस का. आज भी शायद दीपक को देख कर मूड औफ हो गया हो. सोच रही होगी कि अच्छीखासी जिंदगी चल तो रही थी. क्यों आ गए ससुरजी?

‘बस, अब सास भी आने लगेगी और फिर हमारी सारी आजादी खत्म हो जाएगी, ऐशोआराम पर भी लगाम लग जाएगी. इसलिए ही पूछा नहीं होगा ज्यादा इन्हें. उसे सीधे मुंह बात न करते देख टैंशन में आ गए होंगे दीपक और बस आ गया होगा चक्कर या फिर झगड़ा तो नहीं कर लिया होगा लाली ने दीपक से? कह दिया होगा कि जब आप शादी के समय थे ही नहीं कोर्ट में तो अब कौन सा हक जताने आए हो हमारे पास.

लालिमा-भाग 1 : बहू के रूप में सुनीता को क्यों नहीं भायी लाली

दोपहर की धूप ढलान पर थी, पर सुनीता की चिंता बढ़ती जा रही थी. पति दीपक घर से सुबह से ही निकले हुए थे. अब तक तो उन्हें वापस आ जाना चाहिए था. इसी उधेड़बुन और इंतजार में बेचैन सुनीता बालकनी में जा कर खड़ी हो गई. मन में विचारों की तरंगें हिलोरें लेने लगीं. ‘शायद रास्ते में ट्रैफिक जाम होगा, इसी वजह से लौटने में इतनी देर हो गई. दिल्ली में कभी भी किसी सड़क पर जाम लग सकता है. सिर्फ एक कप चाय पी हुई है दीपक ने सुबह से. न जाने बेटे के घर कुछ खाने को मिला होगा या नहीं.

अच्छा होता कि मैं भी साथ चली गई होती. बस, यही सोच कर रुक गई कि इतवार की वजह से आज तो लाली भी होगी घर पर. सामना ही नहीं करना चाहती हूं मैं तो उस का. और आकाश बचपन से ही अपने जन्मदिन का इंतजार मेरे हाथों का बना आलमंड केक खाने के लिए ही करता है. न भेजती केक उस के पास तो मेरा दिल दुखता.’

सुनीता और दीपक का डाक्टर बेटा आकाश लगभग 4 महीने से हौस्पिटल के पास ही एक फ्लैट में रह रहा था. एक साल हुआ था उसे डाक्टर बने. हौस्पिटल में उस की नाइट ड्यूटी लग जाती थी तो घर से आनेजाने में परेशानी होती थी. इसलिए ही उस ने हौस्पिटल के नजदीक रहने का निर्णय किया था. छुट्टी वाले दिन वह सुनीता और दीपक के पास आ जाता था पर पिछले 2 महीनों से उस का आना कम ही हो रहा था. लाली से हुआ प्रेमविवाह बेटे और मातापिता के बीच दीवार सा बन गया था.

लाली और आकाश एकदूसरे को बचपन से ही जानते थे. सुनीता अपने बच्चों के स्कूल की छुट्टियों में गांव चली जाती थी. परिवार के नाम पर तो केवल दीपक के पिता ही थे गांव में, लेकिन बड़ी सी पुश्तैनी हवेली और दूर तक फैले लंबेचौड़े खेत बच्चों को बहुत आकर्षित करते थे.

आकाश से उम्र में 4 साल बड़ी बेटी अंकिता तो स्कूल की छुट्टियां होते ही गांव जाने की जिद करने लगती थी. आकाश को भी वहां छुट्टियां बिताना अच्छा लगता था पर लाली का साथ बिलकुल पसंद नहीं आता था उसे.

लाली के पिता गोपाल सिंह उसी गांव में सुनार थे. गांव के एक सरकारी विद्यालय में पढ़ रही लाली का अपने हमउम्र बच्चों के साथ खूब झगड़ा होता था. छुट्टियों में सुनीता के गांव जाने पर गोपाल सिंह की इच्छा होती थी कि इधरउधर भटकने से अच्छा है लाली सुनीता के बच्चों के साथ खेलती रहे. बिन मां की बच्ची की देखभाल करने वाला उस के घर पर कोई था भी नहीं.

लाली आकाश से उम्र में तो छोटी थी पर अकसर आकाश के साथ भी उस का झगड़ा हो जाता था. आकाश बारबार आ कर मां से शिकायत करता था उस की. और जब मां आकाश को अपनी अंकिता दीदी के साथ ही खेलने को कहती, तो लाली अंकिता को पटा कर अपने साथ मिला लेती थी. बेचारा आकाश अकेला पड़ जाता था.

सुनीता फिर बीच में पड़ती और तीनों को एकसाथ बैठा कर प्रेरणादायक किस्से और ज्ञानवर्धक व रोचक कहानियां सुनाती. अंधविश्वास से जुड़ी बातें बता कर उन से दूर रहने और मेहनत के बल पर सफलता हासिल करने की शिक्षा भी देने का प्रयास करती थी वह. दोपहर के समय लाली को वह अपने बच्चों के साथ ही खाना खिलाती.

जितने दिन भी सुनीता वहां रहती, लाली को लड़ाईझगड़ों से दूर रह कर सब से मीठा व्यवहार करने की सीख देती. कभी लगता था कि लाली पर कुछ असर हो रहा है तो कभी वह वापस अपने रंग में आ जाती थी.

यह सिलसिला लगभग हर वर्ष चलता था. किंतु जब बच्चे बड़े हो गए तो सुनीता का वहां जाना भी कम हो गया. दीपक ने अपने पिता के निधन के बाद गांव की हवेली और खेतों को बेच दिया और अब उन का गांव जाना बिलकुल बंद हो गया.

समय अपनी गति से भाग रहा था. एमए की पढ़ाई पूरी होते ही अंकिता की नौकरी लग गई और फिर उस का विवाह आस्ट्रेलिया में रह रहे तनुज से हो गया. आकाश मैडिकल कालेज में ऐडमिशन ले कर अपने मम्मीपापा के सपने को साकार करने में जुट गया.

बच्चों को फलताफूलता देख सुनीता और दीपक फूले न समाते थे. इधर, आकाश डाक्टर बना, उधर, अंकिता के जीवन में नई खुशी ने दस्तक दे दी थी. किंतु डिलीवरी से लगभग 3 माह पहले कुछ दिक्कतों के कारण उसे डाक्टर ने बैड रेस्ट बता दिया. सुनीता ने दीपक से कह कर अंकिता के पास जाने का कार्यक्रम बना लिया. आकाश भी चाहता था कि ऐसे समय में मम्मीपापा अंकिता दीदी के पास चले जाएं.

जाने से पहले सुनीता आकाश के खानेपीने के लिए कोई व्यवस्था कर देना चाहती थी. किसी मेड को रखने की बात वह सोच ही रही थी कि अचानक गोपाल सिंह का फोन आ गया. उस ने बताया कि लाली जयपुर में रह कर जूलरी डिजाइन का कोर्स कर रही है और अब उसे 6 महीने की ट्रेनिंग करने दिल्ली आना है. उस का आग्रह था कि दीपक लाली के लिए कोई ठीक सा पीजी देख ले.

सुनीता ने सोचा कि यदि लाली उन के घर पर ही रह जाए तो गोपाल का भी काम बन जाएगा और आकाश के खाने को ले कर भी वे बेफिक्र हो जाएंगे. खाना बनाना तो आता ही होगा लाली को. बस, उस ने गोपाल को फोन कर लाली को अपने घर पर ही रहने को कह दिया और आकाश को समझा दिया कि वह उस से ज्यादा बातचीत न करे ताकि बचपन की तरह ही नोकझोंक न होने लगे दोनों के बीच.

मेथी वाले छोले

मेथी के परांठ अभी तक आपने सुना होगा लेकिन आज आपको मेथी वाल छोले बनान की विधि बताती हू. आइए जानते हैं मेथी वाले छोले खाने के क्या फयदा होते हैं.

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समाग्री

छोले

इलायची

नमक

तेजपत्ता

प्याज

टमाटर

हरी मिर्च

गरम मसाला

धनिया पाउडर

आमचूर

शक्कर

विधि

छोले को साफ करके रात भर भींगोकर रख दें. भींगे छोले में नमक और चाय की पत्ती को डाल दें. छोले को प्रेशर कुकर में उबाल लें. छोले 2-3 सीटी में अच्छे से गल जाते हैं.

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प्याज अदरक का छिल्का उतार कर अच्छे से धो लें. हरी मिर्च का डंडल हटाकर प्याज औऱ लहसुन के साथ अच्छे से ब्लंड कर लें.

टमाटर धो लें और अच्छे से धोकर काट लें. अब टमाटर को भी बारीक पीस लें. मेथी के मोटे डंडल को हटा लें और अच्छे से उसे साफ कर लें.

एक कड़ही में तेल डालकर प्याज के पेस्ट को डालकर कुछ देर तक भूनें. टमाटर को भूनने में करीब 4-5 मिनट का समय लगता है. काली मिर्च का पाउडर भी अच्छे से मिक्स करें.

अब गरम मसाला जीरा भूनकर उसमें मिक्स करें. अब छोले को कुछ देर तक डालकर भूनें. उसके बाद आप क कप पानी डालकर 10 मिनट के लिए पकने के लिए रख दें. उसके बाद आप चाहे तो रोटी या फिर चावल के साथ सर्व करें.

जब अकेले रहना हो तो सुख से जिये’

65 साल के मशहूर वकील हरीश साल्वे ने 38 साल वैवाहिक जीवन को व्यतीत करने के बाद पत्नी मीनाक्षी साल्वे से तलाक लेकर अपनी ब्रिटिश दोस्त 56 साल की कैरोलिन के साथ दूसरी शादी कर ली. साल्वे अगर भारत में रह रहे होते तो उनके लिये सामाजिक रूप से संभव नहीं होता. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और अमृता राय की शादी को समाज ने स्वीकार नहीं किया और उनका राजनीतिक जीवन हाशिये पर चला गया. विदेशो में रिटायरमेंट की उम्र में शादी कोई चैकाने वाली बात नहीं होती है पर भारत में अकेले बुजुर्ग के लिये सुख से जीना संभव नहीं होता. यहां माना जाता है कि बुजुर्गो को गृहस्थ जीवन त्याग देना चाहिये. आधुनिकता के बाद भी अकेले बुजुर्ग के लिये सुख से जीना सरल नही है.
बुजुर्गो की संख्या पूरी दुनिया में बढ रही है. वहां उनके अधिकार और सुख सुविधा का ध्यान रखा जाता है. भारत में अभी भी यह माना जाता है कि रिटायरमेंट के बाद बुजुर्ग को अपने शोक  त्याग कर खुद को सीमित कर लेना चाहिये. अकेलापन सुख के साथ जीना अच्छा है इसके बाद भी बुढापे के अकेलेपन में जोखिम बहुत होते है. हमारे देश में समाज और सरकार यह मानती है कि बुजुर्गो को किसी चीज की जरूरत नहीं होती उनको सबकुछ त्याग कर अपने मरने का इंतजार करना चाहिये. धार्मिक ग्रंथों में यह बताया जाता है कि बुजुर्गो को माया, मोह और गृहस्थ जीवन त्याग कर धार्मिक यात्रा पर चले जाना चाहिये. महिला बुजुर्गो को तो काशी मथुरा जैसे शहरों में बने विधवा आश्रमों में छोड दिया जाता था. आज हालात भले ही बदल गये हो पर सोंच नहीं बदली है. जिसकी वजह से बुजुर्गो का सुख से जीवन व्यतीत करना तमाम तरह की आलोचनाओं का भी शिकार होता है.

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फिल्मी नहीं होती हर कहानी

  फिल्म ‘बागवान‘ में बुजुर्गो की परेशानियों को पर्दे पर दिखाया गया था. फिल्मी पर्दे पर परेशानी की सुखद अंत भी हो गया था. बुजुर्गो की यह परेशनियां हर दूसरे तीसरे घर की कहानियां बन चुकी है. सबका सुखद अंत नहीं होता है. आने वाले सालों में जिस तेजी से बुजुर्गो की संख्या देश में बढ रही है और समाज का तानाबाना बदल रहा है उसमें बुजुर्गो का भविष्य एक बडे मुददे के रूप में सामने है. समझने वाली बात यह है कि सरकार और समाज दोनो ही इस मुददे पर बात करने से बचते है. सामाजिक शुचिता के कारण बुजुर्गो की अनदेखी को कोई परिवार स्वीकार नहीं कर पा रहा है. 2050 तक देश  के सामने सबसे बडी परेशानी बुजुर्गो की होगी. जो लोग अपने बुढापे का सही तरह से इंतजाम कर लेते है वह सुख से जीते है. इसके बाद भी बुजुर्गो के अकेलेपन में जोखिम कम नहीं है.
भारत में बुजुर्गाे की आबादी तेजी से बढ़ रही है. इनमें 60 से 70 आयु वर्ग के लोगों की संख्या  सबसे ज्यादा है. कुछ सालों में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की आबादी बढ़ी है. यह संख्या 10 करोड़ मानी ता रही है. 2050 तक कुल जनसंख्या का चैथाई हिस्सा बुजुर्ग लोगों का होगा. इनमें शहर और खासकर महानगरों में रहने वाले लोग ज्यादा हैं. शहरों में बच्चे मां-बाप को अपनी सुविधानुसार रहने के लिए तो बुला लेते हैं, पर उन्हें वक्त नहीं दे पाते. भारत में यह समस्या तेजी पांव पसार रही है. भारत ही नहीं दुनिया के सभी देशों में बुजुर्ग अकेलेपन के शिकार हैं.
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125 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले भारत की 47.49 फीसदी आबादी बुजुर्ग है. शहरी क्षेत्रों में अकेले रहने वाले बुजुर्ग ज्यादा हैं. इनकी संख्या 64.3 फीसदी है. इसके मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में अकेलेपन के शिकार बुजुर्गो की संख्या 39.19 पाई गई. 10 हजार ग्रामीण बुजुर्गो में से 3 हजार 910 बुजुर्गो ने बताया कि वह अकेले रहने को विवश हैं. भारत में बुजुर्गो के साथ व्यवहार शर्मनाक है. एक स्टडी में 4 हजार 615 बुजुर्गो को शामिल किया गया. इसमें 2 हजार 377 पुरुष तथा 2 हजार 238 महिलाएं थीं. 44 फीसदी ने माना कि उनके साथ सार्वजनिक तौर पर गलत व्यवहार किया जाता है. 55 फीसदी बुजुर्ग मानते हैं कि भारतीय समाज में बुजुर्गो के साथ भेदभाव होता है.जोखिम भरा होता है बुढापे का अकेलापन:
बाराबंकी जिले के थाना मोहम्मदपुर खाला इलाके के गांव बढ़नापुर में रहने वाले राजकुमार गुजरात में रहते थे. उनके पोत्र यानि की बेटे के बेटे का मुंडन संस्कार था. मुंडन संस्कार में छोटे बच्चों के सिर के बाल पहली बार बनवाये जाते है. इस अवसर पर दावत का इंतजाम किया जाता है. गांव और नाते रिश्तेदार इसमें शामिल होते है. राजकुमार अपने बेटे दिनेश के साथ गुजरात में नौकरी करते थे. 80 साल की उम्र में भी वह काफी एक्टिव थे. 22 मार्च को वह बेटे दिनेश के साथ बाराबंकी आये. यहां परिवार के बाकी लोग रहते थे. गांव में उनके 2 घर थे. वह अपने घर में अकेले रहते थे. मार्च में जब वह आये थे जब प्रदेश में कोरोना का खतरा तेजी पर था. ऐसे में उनको अलग घर में अकेले रहना पडा. बेटा दिनेश अपने परिवार के साथ दूसरे मकान में रह रहा था. प्रशासन के द्वारा होम क्वारंटाइन किये जाने के बाद से गांव के लोग उधर जाते ही नहीं थे.
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कभी-कभी राशन और दूसरे जरूरी सामान लेते समय गांव के लोग उन्हें देख लेते थे. परिवार के लोग भी कभी जाते थे. गांव की आशा बहू 4 अप्रैल को नोटिस चस्पा करने उनके घर गई थी. इस दौरान उन्हें किसी अनहोनी की भनक भी नहीं थी. अपने जिद्दी स्वभाव के कारण राजकुमार अपना खाना भी खुद ही बनाते थे. वह दमे के मरीज थे. घर में अकेले रहते हुये उनकी मौत हो गई. मौत के 4 से 5 दिन के बाद घर परिवार और गांव के लोगों को पता चला. इस दौरान उनके शरीर पर कीड़े इस कदर थे कि वह दीवारों पर भी रेंगने लगे थे. दिल्ली मुम्बई जैसे बडे शहरों में ऐसी घटनाएं कई बार सामने आती है. गांव और छोटे शहरों में ऐसी घटनाएं अकेलेपन कर परेशानियों की तरफ ध्यान दिलाती है.
अलीगढ़ जिले के टप्पल मुहल्लागंज में रहने वाले वीरपाल शर्मा पुत्र ननुआ शर्मा उम्र 55 वर्ष निवासी मुहल्ला गंज टप्पल अपने घर के आंगन में अकेले सो रहे थे. मृतक वीरपाल शर्मा के एक लड़का रामू व लड़की कविता हैं. कविता की शादी हो चुकी है. वह अपने ससुराल में थी व लड़का रामू अपने पिता की बूआ के पास गांव सलेमपुर गया था. घर पर वीरपाल शर्मा अकेले रहते थे. घर के सामने वाली गली में पड़ोस में ही रहने वाला पवन पुत्र ओमप्रकाश शर्मा उनके घर समय पर सुबह पहुंचा और चैखट की लकड़ी से वीरपाल के सिर पर वार कर दिया. जिससे वीरपाल की मौके पर मौत हो गई. सुबह जब चचेरा भाई कल्लू जागकर वीरपाल के घर पहुंचा तो वीरपाल को मृतक देखकर दंग रह गया. सूचना कंट्रोल रुम को दी सूचना पर पहुंची पीआरवी व थाना पुलिस पहुंची तथा जांच पड़ताल करने लगी.
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तभी पवन पुलिस को देख भयभीत हो गया. अपने घर में रोशनदान में दुपट्टा डालकर फांसी लगा ली. पुलिस पवन के घर पहुंची लेकिन पवन की मौत हो चुकी थी. पुलिस ने दोनों शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए अलीगढ़ भेज दिया. मृतक पवन के पत्नी पिंकी व दो बेटी पूर्वी 6 वर्ष व रेखा 4 साल हैं. पवन के पिता ओम प्रकाश अपनी दूसरी पत्नी के साथ मुंबई में रहते हैं. ओमप्रकाश ने अपनी दो शादी की थी पहली पत्नी मर गयी थी. जिसका बेटा पवन था. पवन पूरी तरह से पागल था जिसको घर वालों ने इलाज नहीं कराया था. जो वृद्वजन अपने परिजनों के साथ रहते है वह भी सुरक्षित नहीं है.

भोपाल के अयोध्या नगर इलाके में स्थित सी-सेक्टर एमआइजी 43 में रहने वाले 80 वर्षीय अंजली लाल मिश्रा की लाश पुलिस ने उनके घर से बरामद की है. उस पर किसी प्रकार की चोट के निशान नहीं थे. वह अकेले ही रहते थे. डॉक्टरों ने मौत के लिए हार्ट अटैक की आशंका जाहिर की. अयोध्या नगर थाने के एएसआइ बीएल रघुवंशी ने बताया कि अंजली लाल मिश्रा बीएचईएल से सेवानिवृत्त थे. पत्नी की मृत्यु के बाद वह इस मकान में अकेले ही रहते थे. पड़ोसियों को जब उनके मकान से अजीब तरह की दुर्गंध आना शुरू हुई. तब इसकी सूचना पुलिस को दी गई. पुलिस ने मकान का दरवाजा तोड़कर पलंग पर पड़ा बुजुर्ग का शव बरामद किया. अंजलि लाल मिश्रा के बच्चे नहीं थे. एक रिश्तेदार खंडवा में मंदिर के पुजारी हैं. उनकी बहन के दो बेटे भोपाल में रहते हैं. मौत की जानकारी मिलने पर वह आये. अलग अलग शहरों की यह घटनाएं बताती है कि समाज में अकेले जीना कितना मुश्किल और जोखिम भरा काम है.

बीमारी का कारण बनता अकेलापन:
क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट आकांक्षा जैन कहती है ‘बुजुर्गो में अकेलापन बीमारी का कारण बनता है. उनकी मानसिक हालत इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने परिवार तथा दोस्तों में  कितना मिलते हैं. यह हमारी सेहत को काफी प्रभावित करता है. अकेलापन किसी को मानसिक ही नहीं शारीरिक रूप से भी बीमार कर देता है. गांव और षहर में लाइफ स्टाइल जितनी आधुनिक हो रही है. बुजुर्गो के लिए परेशानियां उतनी ही बढ़ रही हैं. बच्चे बेहतर भविष्य की तलाश में देश से बाहर चले गए जाते है. कुछ समय के बाद उनका घर लौटने का कोई इरादा भी नहीं रहता है. ऐसे में बुजुर्गो को सबसे बड़ी समस्या अपनी सुरक्षा को लेकर होती है.‘

वह कहती है ‘बदलती सामाजिक व्यवस्था के कारण और जहां परिवार छोटे हुए हैं. बुजुर्गो का महत्व कम हुआ है. जो बुजुर्ग कभी परिवार का एक महत्वपूर्ण अंग होते थे जिनसे नई पीढ़ी संस्कृति और मूल्यों का पाठ सीखती थी वे दिन अब दूर होते जा रहे हैं. बच्चे टीवी व मोबाइल में उलझे रहते है और पति-पत्नी को अपनी जौब से समय नहीं होता. केवल मध्यम-वर्गीय परिवार ही नहीं संपन्न परिवारों की भी यही हालत है. गांव और शहर का भी कोई भेद नहीं रह गया है. गांवों में दिखावे और सामाजिक दबाव के लिये बुजुर्गो को भले ही साथ रखा जाता हो पर भेदभाव कम नहीं होता है.‘खराब हालत में है वृद्धाश्रम:
विदेशो में वृद्धाश्रम बुजुर्गो की देखभाल का काम करते है. भारत में वृद्धाश्रम कम है और जो भी है वह है भी उनकी हालत बेहद खराब है. ऐसे में वह भी बुजुर्गो की मदद नहीं कर पा रहे है. भारत में एक हजार से अधिक वृद्धाश्रम हैं. कुछ वृद्धाश्रमों में बुजुर्गो के मुफ्त ठहरने की व्यवस्था है. भारत में ना तो परिवार के लोग बुजुर्गो को वृद्धाश्रम में रखना चाहते है और ना ही बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहना चाहते है. कुछ सर्वे बताते है 85 फीसदी बुजुर्गो को वृद्धाश्रम में रहना अच्छा नहीं लगता. भारत में विदेशो के मुकाबले बुजुर्गो की हालत ज्यादा खराब है. यहां सुव्यवस्थित व्यवस्था नहीं है. जिसकी वजह से बुजुर्गो की परेशनियां अलग है.
संजोगिता महाजन मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष अनुराग महाजन कहते है ‘भारत में बुजुर्गो की सुरक्षा को लेकर बने कानून कागजों पर तगडे दिखते है. हकीकत में यह कमजोर है. पुलिस और प्रशासन इन कानून को लेकर सजग और जिम्मेदार नहीं है. बच्चे बुजुर्गो का अपमान करते है. उनके अधिकार नहीं देते. इसकी शिकयात  कहां की जाये जहां सहुलियत के साथ अधिकारों की रक्षा हो सके. कोर्ट से मदद मिलती है पर वह प्रक्रिया बहुत लंबी है. बुजुर्ग कैसे अपने अधिकारों की रक्षा करे इसका कोई सरल तंत्र विकसित नहीं किया जा सका है.‘कई देशों में रिटायरमेंट के साथ ही बुजुर्गो को घरों पर वे तमाम सहूलियतें दे दी जाती हैं. जो उनकी सुरक्षा के लिए जरूरी हैं. बुजुर्गो को पुलिस केंद्रों से फोन के जरिए हर मदद तत्काल मिलती है. विदेशो में ऐसे कानून है जहां अगर बच्चे अपने माता-पिता की अनदेखी करते है तो बुजुर्ग माता-पिता बच्चों पर केस कर सकते हैं. भारत में यह अधिकार केवल किताबी बातें भर है. भारत के मामले में ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि युवा अपने बड़े-बुजुर्गो का पूरा ध्यान रखें, उन्हें सम्मान दें.
परेशानी का सबब है आर्थिक कमजोरी:
भारत में बुजुर्गो की खराब हालत का सबसे बडा कारण आर्थिक कमजोरी है. यहां के बुजुर्गो के पास अपनी आय के सीमित साधन है. कुछ के पास जमीन जायदाद होती है और कुछ के पास रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन. बुजुर्गो के सामने सबसे बड़ी समस्या धन की आती है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई परिवार पर खर्च कर दी होती है. अब उनके पास जमापूंजी रहती भी है तो बहुत सीमित मात्रा में. इस तरह वे आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं. लेकिन खर्चें दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाते हैं. बच्चों का बेरोजगार रहना, उनके विवाह का खर्च, अपनी बीमारी इत्यादि खर्चे जब उनके सम्मुख आते हैं जो उनको मानसिक रूप से तनावग्रस्त कर देेते है.

धन के अभाव में बुजुर्ग अच्छे अस्पताल में इलाज नहीं करा पातें है. शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण उनको दूसरे पर निर्भर रहना पडता है. यदि एकाध वृद्ध आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं तो उनको पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर रहना पडता है. बुजुर्गो का अस्वस्थ रहना तो स्वाभाविक ही है. जब वे स्वस्थ नहीं होते है तो समाज के लोगों के साथ मिलजुल नहीं सकते और न ही हँस-बोल सकते हैं. इस तरह समाज के लोगों के साथ उनका सम्पर्क कट जाता है. शारीरिक और मानसिक रूप से परेषान होने के कारण उनकी विचारधारा, पसंद, दृष्टिकोण में बदलाव आ जाता है. जिसके चलते उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है. जिसके कारण परिवार में उनके सम्बंध अच्छे नहीं बने रह पाते हैं. संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों के चलन ने इस समस्या को बढ़ावा दिया है.

मास्क पहनना है जरूरी

पिछले कुछ महीने अनिश्चित रहें बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसके बारे में हमने और आपने नहीं सोचा था. खैर अब हम सभी चीजों को सामान्या करने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं तो हमें कुछ बातों का खास ख्याल रखऩा होगा.

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आपको हमेशा मास्क पहनना होगा. अगर आप घर से बाहर निकल रहे हैं तो मास्क पहनना न भूलें. अगर आप अपने घर से बाहर अपनी लॉबी में भी पार्सल लेने जा रहे हैं तो बिना मास्क के न जाएं. याद रखिए मास्क पहनना केवल बाहरी चीज नहीं हैं यदि आपके घर पर बाहरी लोग आते हैं तो उनसे भी एक सुरक्षित दूरी बनाएं रखें. साथ ही मास्क भी लगाएं रखें. इससे आप भी सुरक्षित रहेंगे और आपके साथ वाले लोग भी सुरक्षित रहेंगे.

किसानों के सपोर्ट में सामने आए बॉलीवुड, इन सितारों ने किया ट्वीट

नए किसान बिल के लिए खिलाफ किसानों को सिर्फ पंजाब सितारे ही नहीं अब बॉलीवुड स्टार्स  भी उनका सपोर्ट करना शुरू कर दिए हैं.

आप कह सकत हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री खुलकर किसानों के सपोर्ट में आ गई है. सोनम कपूर, प्रियंका चोपड़ा, रितेश देशमुख, सोनू सूद के अलावा कई अन्य कलाकार किसानों के सोपर्ट में आ गई है.

इन सभी सितारों का कहना है कि केंद्र सरकार इनकी बातों को सुने और इनकी मांग को पूरा करें. कुछ वक्त पहले पंजाबी सिंगर और एक्टर दलजीत दोसांझ खुलकर अपने पिंड के किसानों का सपोर्ट करते नजर आ रहे थें वहीं इसी बीच कंगना रनौत और दलजीत दोसांझ के बीच जमकर बहस हुई थी.

दरअसल, कंगना रनौत का कहना था कि किसान गलत मांग कर रहे हैं जबकी दलजीत दोसांझ किसान के समर्थन में थें उन्होंने डांट लगाते हुए कंगना रनौत का जवाब दिया था.

हालांकि उसके बाद से बॉलीवुड के कई सितारे किसानों के सपोर्ट में आ गए है. सभी का कहना है कि यह जो भी कर रहें हैं. अपनी भलाई के लिए कर रहे हैं. किसान अगर खुश रहेंगे तो सभी लोगों को भला होगा. किसान बिल को बदलना जरुरी है.

कुछ दिन पहले दलजीत दोसांझ अपने किसान भाइयों के सपोर्ट के लिए आंदोलन जहां हो रही है उस स्थान पर आएं थें. अब देखना यह है कि आखिर किसान बिल को लेकर हमारी सरकार क्या राय रखती है. क्या किसान के फेबर में बिल पास होगा. या फिर उन्हें निराश होकर लौटना पडेगा.

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