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प्रहरी-भाग 2 : कैसे उतरा विभा की आंखों पर पड़ा नासमझी का परदा

‘‘मां, अब तुम ही बताओ, मेरे पास और क्या उपाय था, सिवा इस के कि मैं उसे वहां से वापस ले आता. उसे खुद भी तो अक्ल होनी चाहिए कि ऐसेवैसों को ज्यादा मुंह न लगाया करे. किसी भी बहाने से वह उस के पास से हट जाती तो भला मैं पार्टी बीच में छोड़ कर उसे जल्दी क्यों लाता?’’ तपन के स्वर में कुछ लाचारी थी, तो कुछ नाराजगी. विभा मन ही मन मुसकराई कि सुंदर पत्नी की चाह सभी को होती है, किंतु कभीकभी खूबसूरती भी सिरदर्द बन जाती है. वह बोली, ‘‘चलो छोड़ो, जाने दो. धीरेधीरे समझ जाएगी. तुम ही थोड़ा सब्र से काम लो,’’ और विभा घर की ओर पलट पड़ी.

विभा की सारी रात करवटें बदलते बीती. बेटा मानो उस के पति का ही प्रतिरूप बन सामने आ खड़ा हुआ था. अपने विवाह के तुरंत बाद के दिन विभा की बंद आंखों में किसी चलचित्र की भांति उभर आए. किसी भी पार्टी में जाने पर अपने पति सत्येंद्र का अपनी सुंदर पत्नी के चारों ओर मानो एक घेरा सा डाले रखना उसे भूला न था. कभीकभी सत्येंद्र के मित्रों की पत्नियां विभा को चिढ़ातीं तो उसे पति के इस व्यवहार पर क्रोध भी आता, किंतु उन के खिलाफ बोलना उस के स्वभाव में न था. सो, चुप रह जाती. युवावस्था के उन मादक, मधुर दिनों की यादें विभा के दिल को झकझोरने लगीं. कैसे थे वे मोहक दिन, जब दफ्तर से छूटते ही सत्येंद्र इस तरह घर भागते, जैसे किसी कैदखाने से छूटे हों. दोस्तों के व्यंग्यबाणों को वे सिर के ऊपर से ही निकल जाने देते. पहले दफ्तर के बाद लगभग रोज ही कौफी हाउस में दोस्तों के साथ एक प्याला कौफी जरूर पीते थे, तब कहीं घर आते थे, किंतु शादी के बाद तो जैसे दफ्तर का समय ही काटे न कटता था.

शाम के बाद भला सत्येंद्र कहां रुकने वाले थे. दोस्तों के हंसने की जरा भी परवा किए बिना अपनी छोटी सी पुरानी गाड़ी में बैठ कर सीधे घर भागते. लेकिन दोस्त भी कच्चे खिलाड़ी न थे. कभीकभी दोचार इकट्ठे मिल कर मोरचा बांध लेते और उन से पहले ही उन की गाड़ी के पास आ खड़े होते. तभी कोई कहता, ‘यार, बोर हो गए कौफी हाउस की कौफी पीपी कर. आज तो भाभीजी के हाथ की कौफी पीनी है.’ इस से पहले कि सत्येंद्र हां या ना कहें, सब के सब गाड़ी में चढ़ कर बैठ जाते.

इधर विभा रोज ही शाम को पति के आने के समय विशेषरूप से बनसंवर कर तैयार रहती थी. यह उस की मां का दिया मंत्र था कि दिनभर के थकेहारे पति की आधी थकान तो पत्नी का मोहक मुसकराता मुखड़ा देख कर ही उतर जाती है. किंतु जब सत्येंद्र मित्रों को लिए घर पहुंचता और वे

सब उस की सुंदर सजीधजी पत्नी को ‘भाभीजी, भाभीजी’ कह कर घेर लेते तो वह अलगथलग कुरसी पर जा बैठता.

मित्र भी तो कम शरारती न थे, सत्येंद्र के मनोभावों को समझ कर भी अनजान बने रहते. उधर विभा उन सब के सामने बढि़या नाश्ता रख कर, कौफी बना कर स्नेह से उन्हें खिलातीपिलाती. यह सब देख सत्येंद्र और कुढ़ जाता. विभा स्थिति की नजाकत समझती थी और अब तक वह सत्येंद्र के स्वभाव को अच्छी तरह जान भी चुकी थी, इसलिए वह उस के मित्रों को जल्दीजल्दी खिलापिला कर विदा करने की कोशिश करती. मित्रों के जाते ही सत्येंद्र पत्नी पर बरसते, ‘क्या जरूरत थी उन सब की इतनी आवभगत करने की? तुम थोड़ा रूखा व्यवहार करोगी तो खुद ही आना छोड़ देंगे. लेकिन तुम तो उन के सामने मक्खनमलाई हो जाती हो, वाहवाही लूटने का शौक जो है.’

सत्येंद्र की कटु आलोचना सुन कर विभा की आंखें भर आतीं, किंतु उस में गजब का धैर्य था. वह अच्छी तरह जानती थी कि इस स्थिति में वह उसे कुछ भी समझा नहीं पाएगी. वह चुपचाप रात के खाने की तैयारी में लग जाती. सत्येंद्र की मनपसंद चीजें बनाती और फिर भोजन निबटने के बाद रात में जब खुश व संतुष्ट पति की बांहों में होती तो उसे समझाने की कोशिश करते हुए पूछती, ‘अच्छा, बताओ तो, क्या तुम सचमुच ही अपने मित्रों का यहां

आना पसंद नहीं करते? मैं तो उन की खातिरदारी सिर्फ इसलिए करती हूं कि वे औफिस में तुम्हारे साथ काम करते हैं. उन के साथ तुम्हारा दिनभर का उठनाबैठना होता है, वरना मुझे उन की खातिरदारी करने की क्या पड़ी है? यदि तुम्हें ही पसंद नहीं, तो फिर अगली बार से उन्हें केवल चाय पिला कर ही टरका दूंगी.’ ‘अरे, नहींनहीं,’ सत्येंद्र और भी कस कर उसे अपनी बांहों में जकड़ लेते, ‘यह ठीक नहीं होगा. सच तो यह है कि जब वे सब दफ्तर में तुम्हारी इतनी तारीफ करते हैं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. लेकिन क्या करूं, दिनभर के इंतजार के बाद जब शाम को तुम मुझे मिलती हो तो फिर बीच में कोई अड़ंगा मैं सहन नहीं कर सकता.’

‘कैसा अड़ंगा भला?’ उस के सीने में मुंह छिपाए विभा मीठे स्वर में कहती, ‘मैं तो सदा ही केवल तुम्हारी हूं, पूरी तरह तुम्हारी. तुम्हारे इन मित्रों की बचकानी हरकतें तो मेरे लिए तुम्हारे छोटे भाइयों की कमी पूरी करती हैं. अकसर सोचती हूं कि यदि तुम्हारे छोटे भाई होते तो वे यों ही ‘भाभीभाभी’ कह कर मुझे घेरे रहते. यही समझो कि तुम्हारे मित्रों द्वारा मेरे दिल की यही कमी पूरी होती है.’ ‘चलो, फिर ठीक है, अब बुरा नहीं मानूंगा. भूल जाओ सब.’

फिर धीरेधीरे सत्येंद्र इस सच को समझते गए कि घर आए मेहमान की उपेक्षा करना ठीक नहीं और अब विभा का अपने मित्रों से बातचीत करना, उन की खातिरदारी करना उन्हें बुरा नहीं लगता था. बदलते समय के साथ फिर तो बहुतकुछ बदलता गया. दोनों के जीवन में बच्चों के जन्म से ले कर उन के विवाह तक न जाने कितने उतारचढ़ाव आए. जिन्हें दोनों ने एकसाथ झेला. फिर कभी एक पल को भी सत्येंद्र का विश्वास न डगमगाया.

मेरी ननद की हरकतें काफी परेशान करती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 31 वर्ष है. मेरी 21 वर्षीया ननद हमारे साथ ही रहती है. मेरे सासससुर पटना में रहते हैं और बेटी को यहां दिल्ली पढ़ने के लिए भेजा है. वैसे तो मेरी और ननद की बहुत बनती है लेकिन उस की हरकतें मुझे विचलित कर देती हैं. कभी वह रातरातभर फोन पर बात करती रहती है तो कभी 9 बजे तक घर नहीं आती. उस के भैया जब उसे डांट देते हैं तो वह मुझे घृणित भाव से देखती है. कभीकभी तो बुरा भी कह देती है. मुझे डर है कि उस की इन हरकतों से कहीं मेरी 6 वर्षीया बेटी पर कोई गलत असर न पड़े. मुझे इस स्थिति में क्या करना चाहिए?

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जवाब

आप की ननद का पढ़ीलिखी युवा हो कर भी इस तरह का व्यवहार करना अचंभित करता है. अपने भाई से डांट खा कर उस का आप को खरीखोटी सुनाना कहीं से भी मान्य नहीं है. रही बात आप की बच्ची की, तो यह संभव है कि वह जो देखेसुने, वही व्यवहार में अपनाने भी लगे.

आप यह कर सकती हैं कि अपने साससुर को फोन कर उन्हें इन सभी हालात से परिचित कराएं. हो सके तो उन्हें कुछ दिन अपने साथ रहने के लिए बुला लें. इस से वे खुद अपनी आंखों से बेटी की हरकतें देख लेंगे और उन्हें ऐसा नहीं लगेगा कि आप उन से झूठी शिकायतें करती रहती हैं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

खेती से राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान

वैशाली जिले का एक छोटा सा गांव है चकवारा, जो गंडक नदी के तट पर बसा है. इस गांव में करीब 100 से ज्यादा परिवार रहते?हैं. इन में महज 2 लोग ही नौकरी करते हैं, बाकी की जीविका सब्जियों की खेती पर टिकी है. खेती की बदौलत ही इस गांव के 99 फीसदी मकान पक्के हैं. यहां के युवाओं में खेती की ललक आज भी देखी जा सकती है. चकवारा गांव निवासी संजीव कुमार एक प्रगतिशील किसान हैं. उन्होंने इंटर तक शिक्षा ग्रहण की. इस के बाद वे अपनी लगन व मेहनत के बल पर जल्द तैयार होने वाली फूलगोभी हाजीपुर अगात के बीज का उत्पादन कर रहे हैं. यह किस्म सामान्य फूलगोभी के मुकाबले पहले तैयार हो जाती है. जहां पर सामान्य गोभी के पौधे में 60 से 65 दिनों में फूल आते हैं, वहीं हाजीपुर अगात में 40 से 45 दिनों में फूल आने लगते हैं. इस की खासीयत यह भी है कि इस के पौधे में धूपबारिश सहने की कूवत ज्यादा होती है. इस के फूल सफेद, ठोस व खुशबूदार होने के अलावा 3 से 4 दिनों तक ताजा बने रहते हैं.

संजीव कहते हैं कि उन के परिवार में पारंपरिक बीज से गोभी की खेती 4 पीढि़यों से की जा रही?है. वे 3 एकड़ में खेती कर के लाखों की आय हासिल कर रहे हैं. अगात गोभी के बीज की खेती विभिन्न प्रकार की जमीनों में की जा सकती है. मगर गहरी दोमट मिट्टी जिस में सही मात्रा में जैविक खाद हो, इस के लिए अच्छी होती है. हलकी रचना वाली मिट्टी में सही मात्रा में खाद डाल कर इस की खेती की जा सकती है. जिस मिट्टी का पीएच मान 5.5-6.5 के मध्य हो वह फूलगोभी के लिए अच्छी मानी गई?है. संजीव का कहना है कि पहले खेत को पलेवा करें. जब जमीन जुताई लायक हो जाए, तब उस की जुताई 2 बार मिट्टी पलटने वाले हल से करें. इस के बाद 2 बार कल्टीवेटर चलाएं और हर जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं.

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हाजीपुर अगात वर्ग की किस्मों में सितंबर व मध्य अक्तूबर तक फूल आते हैं. उस दौरान तापमान 20-25 डिगरी सेल्सियस तक होता है. इस की बोआई मध्य जून तक व रोपाई जुलाई के पहले हफ्ते तक कर देनी चाहिए. अच्छी उपज के लिए खेत में सही मात्रा में खाद डालना बेहद जरूरी है. इस के लिए गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद और आर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करें. संजीव अपने बीज के नमूने विदेशों में भी भेजते हैं. उन्होंने गोभी के बीज को नार्वे, स्वीडन, इथोपिया, ब्रिटिश उच्चायोग, हंगरी, जापान कसटर्नल आफ एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन, कनाडियन उच्चायोग, हालैंड और कोरियाल ट्रेड सेंटर को भेजा, जहां से उन्हें तारीफ मिली.

कोरिया की बीज कंपनी के प्रतिनिधियों ने हाजीपुरा में होने वाली फूलगोभी की खेती को देखने की इच्छा जाहिर की और वहां के किसानों को अपने यहां आने की दावत भी दी. संजीव का कहना है कि इस बीज को उन्होंने तैयार किया है.

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पुरस्कार व सम्मान

संजीव को इस काम के लिए भारतीय सब्जी अनुसंधान परिषद, वाराणसी द्वारा साल 2009 के राष्ट्रीय सब्जी किसान मेले व प्रदर्शनी में रजत पदक व प्रशस्तिपत्र दिया गया. साल 2010 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा उन्नत प्रौद्योगिकी व अन्य आधुनिक तकनीकों को अपना कर कृषि की उत्पादकता बढ़ाने व कृषि के व्यवसायीकरण के प्रोत्साहन में सराहनीय योगदान के लिए उन्हें प्रशस्तिपत्र दिया गया. साल 2013 में इसी संस्थान द्वारा आयोजित किसान मेले में उन्हें प्रगतिशील किसान की उपाधि से सम्मानित किया गया.

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साल 2011 में अमति सिंह मेमोरियल फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा उन्हें उद्यान रत्न पुरस्कार से नवाजा गया. साल 2012 में उन्हें इंडिया एग्रो पुरस्कार मिला. बिहार दिवस समारोह में साल 2012 में उन्हें कृषि क्षेत्र में कामयाबियों के लिए प्रशस्तिपत्र दिया गया. साल 2013 में उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा कृषि क्षेत्र का सर्वोत्तम पुरस्कार दिया गया.

Crime Story: सरकारी पैसे से शाही शादी का सपना

सौजन्या-सत्यकथा

बैंक मैनेजर सुशील कुमार की 10 नवंबर को शादी होनी थी. कार उस ने खरीद  ली थी. लोन ले कर आलीशान मकान भी बनवा लिया था. वह शानोशौकत से शादी करना चाहता था. इस के लिए उस ने अपने ममेरे भाई नितेश, उस के 2 दोस्तों सतपाल व सुखविंद्र के साथ मिल कर साजिश रची और अपने ही बैंक में 1 करोड़ 13 लाख की डकैती करा दी, लेकिन…

‘हैंड्सअप’. मुख्य गेट का शटर डाल कर अंदर घुसे तीनों युवकों ने बैंक भवन के अंदर मेज पर रखी फाइलों में उलझे बैंक प्रबंधक सुशील कुमार व कैशियर परमपाल सिंह को हथियारों की नोक पर लेते हुए कर्कश आवाज में कहा. आगंतुकों के चेहरे के हावभाव व आंखों से उगलती आग दर्शा रही थी कि विरोध करने पर वे किसी भी हद तक जा सकते थे.

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अचानक आई आफत को देख दोनों बैंककर्मियों की घिग्घी बंध गई. हाथों में हथियार व 2 युवकों के कंधे पर लटकते पिट्ठू बैग देख उन को आभास हो गया था कि वे लोग बैंक लूटने आए हैं. दो पगड़ीधारी युवकों के हाथों में पिस्टल थी और तीसरे के हाथ में लंबे फल वालाचाकू.

दोनों बैंककर्मियों ने कोई प्रतिरोध न कर के आत्मसमर्पण कर दिया. तीनों लुटेरे केशियर व बैंक मैंनेजर को धकिया कर बैंक के स्ट्रांग रूम में ले गए. वहां तीनों ने तिजोरी में रखी 2 हजार, 5 सौ व एक सौ रुपयों की गड्डियां दोनों बैगों में ठूंसठूंस कर भर लीं. दोनों बैंक अफसरों के मोबाइल पहले ही छीन लिए गए थे. मैनेजर व कैशियर को स्ट्रांगरूम में बंद कर ताला लगा दिया गया. एक लुटेरे ने मैनेजर की मेज पर रखी कार की चाबी उठा ली थी. स्ट्रांगरूम की चाबी लुटेरों ने स्ट्रांग रूम के सामने ही फेंक दी.

नकदी भरे बैग उठाए तीनों युवक फुर्ती से बाहर निकल गए. जाते समय मुख्य गेट का शटर बंद कर तीनों लुटेरे बैंक मैनेजर की बाहर खड़ी गाड़ी आई10 नंबर आरजे 13 सीसी 1283 में भाग निकले.

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आधा घंटा बाद स्ट्रौगरूम में बंद मैनेजर व कैशियर कुछ सहज हुए. दोनों ने मिल कर स्ट्रौंगरूम में लगी प्लास्टिक की एक पाइप को उखाड़ा और जैसेतैसे स्ट्रांगरूम से बाहर निकले. लूट की इस बड़ी बारदात को महज 7 मिनट में अंजाम दे दिया गया था. बैंक गार्ड आधा घंटा पहले छुट्टी कर घर चला गया था.

लूट की यह सनसनीखेज घटना 17 सितंबर, 2020 को राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की प्रमुख मंडी संगरिया की धानमंडी स्थित एक्सिस बैंक शाखा में रात तकरीबन 8 बजे हुई थी. बैंक प्रबंधन की सूचना मिलते ही संगरिया थाना के टीआई इंद्रकुमार ने मौकामुआयना कर अविलंब उच्च अधिकारियों को सूचना प्रेषित कर दी.

बैंक मैनेजर की शिकायत पर 3 अज्ञात लोगों के खिलाफ हथियारों की नोक पर एक करोड़ 13 लाख रुपए लूट ले जाने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पुलिस ने यह मुकदमा आईपीसी 292 व 34 के तहत दर्ज कर किया. संयोग से सवा करोड़ की लूट की यह वारदात मंडी सांगरिया की पहली घटना थी.

सूचना मिलते ही बीकानेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक प्रफुल्ल कुमार जिला पुलिस अधीक्षक राशि डोगरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने घटना स्थल पर पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया.

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एसपी राशि डोगरा ने एकएक बिंदु को देखा, परखा पुलिस अधिकारियों को बताया गया कि कई दिनों से बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरा सिस्टम गड़बड़ था. पुलिस जांच में यह तथ्य भले ही परेशानी साबित हो सकता था पर एसपी राशि डोगरा ने कैमरों के गड़बड़ होने को जांच के लिए एक अहम क्लू माना. आईजी प्रफुल्ल कुमार ने इस लूट प्रकरण को जल्दी से ट्रेस आउट करने का आदेश दे दिया.

जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर घटित बैंक लूट की इस घटना को युवा आईपीएस राशि डोगरा ने एक चैलेंज के रूप में लिया. उन्होंने एएसपी जस्साराम बोस और स्वयं के सुपरविजन में जिला क्षेत्र के सीओ दिनेश राजौरा, सीओ प्रशांत कौशिक, सीओ नारायण सिंह, सर्किल इंसपेक्टर इंद्रकुमार के नेतृत्व में एसआई फूल सिंह, राजाराम और सुरेश के साथ दर्जनभर हैड कांस्टेबलों को लगाया. इस के तहत 8 टीमों का गठन कर जांच में लगा दिया. साइबर व सीसीटीवी कैमरा एक्सपर्ट भी लगाए गए.

अपराधी कितना भी शातिर हो, अनजाने में कोई न कोई भूल कर घटनास्थल पर कोई न कोई क्लू जरूर छोड़ जाता है. इसी तथ्य को सत्य मान कर राशि डोगरा ने अपने अनुभव इस वारदात को खोलने में लगा दिए. शुरुआती जांच व बैंक के नजदीक स्थित दुकानों पर लगे कैमरों से यह साबित हो गया था कि जाते समय लुटेरे मैनेजर की कार में भागे थे. लेकिन आते समय बैंक तक पैदल आए थे.

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पुलिस की आठों टीम पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, मध्य प्रदेश सहित हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर जिला क्षेत्र में उतर गईं. 15 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली ही रहे.एक दुकान के बाहर लगे कैमरों में तीनों लुटेरों की कदकाठी नजर आ रही थी पर पगड़ी के पल्लू व कैप लगी होने के कारण तीनों में से एक का भी चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था.

सीसीटीवी कैमरा एक्सपर्ट ने जांच कर खुलासा कर दिया था कि बैंक के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरों में हाल ही में छेड़छाड़ की गई थी.जांचपड़ताल में मिल रहे मामूली क्लू बैंक प्रबंधन के खिलाफ जा रहे थे. पर पुख्ता साक्ष्य के अभाव में पुलिस प्रमुख राशि डोगरा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थीं. बड़ी रकम का मामला था. अन्य प्रदेशों व स्थलों पर गई टीमों के भी हाथ खाली थे.

बैंक मैनेजर सुशील व कैशियर परमपाल सिंह से अलगअलग व संयुक्त रूप से कई दौर में पूछताछ की गई पर नतीजा शून्य रहा. दूसरे दिन मैनेजर सुशील की कार संगरिया से 30 किलोमीटर दूर हरियाणा के डबवाली शहर में लावारिस हालात में मिल गई. पूछताछ में पता चला कि 2 दिन पहले कार की जगह एक मोटरसाइकिल कई घंटे खड़ी रही थी.

राशि डोगरा की नजर में बैंक मैनेजर सुशील कुमार चढ़ चुका था. उन्होंने सुशील की जन्म कुंडली खंगालना शुरू कर दी. उन्हें बताया गया कि सुशील को कुछ अरसा पहले ही बैंक परीक्षा पास करने पर मैनेजर की नौकरी मिली थी.

इसी 10 नवंबर को सुशील की शादी होनी थी. उन की रिहायशी आलीशान बंगला बिना कर्ज लिए बनना मुश्किल था. सुशील की ननिहाल पंजाब के जनखुआ (राजपुरा) में है.एसपी डोगरा ने सांगरिया के तेजतर्रार सर्किल इंसपेक्टर इंद्रकुमार को टीम के साथ जनसुआ भेज दिया. हाईकमान के आदेशानुसार 4 सदस्यीय टीम ने यूनिफार्म की जगह ग्रामीणों के वेश धर लिए. खुद इंद्रकुमार ने शरीर पर सफेद कुरता और लुंगी पहनी. पैरों में चमड़े की जूती व सिर पर चैकदार साफा. सीआई ने टीम के साथ सुशील के ननिहाल में रैकी शुरू कर दी थी. वहीं 3 अन्य पुलिसकर्मी शराब ठेकों व बाजार की रैकी में लग गए थे. इस पुलिस टीम का टारगेट था एक्सिस बैंक संगरिया के नजदीक सीसीटीवी कैमरों में दर्ज हुए लुटेरों की चालढाल व कदकाठी वाले युवकोंकी तलाशना.

टीम ने 2 लोगों की कदकाठी व चाल को पहचान लिया. एक तो सुशील के नाना के घर आजा रहा था. दूसरे को शराब ठेके पर शराब की महंगी बोतल खरीदते समय पहचाना गया. जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने डेली रिपोर्ट के रूप में इस प्रोगेस को एसपी राशि डोगरा से साझा किया. एसपी के आदेश पर इंद्रकुमार की टीम संगरिया लौट आई.

टीम की मेहनत रंग लाई

इंद्रकुमार की टीम ने चोरीछिपे दोनों संदिग्धों के विडियो मोबाइल कैमरे में कैद कर लिए थे. कैमरों व वीडियो में कैद फोटोज लुटेरों से मिल रहे थे. शक की गुंजाइश नहीं थी. बैंक मैनेजर वारदात के बाद से लगातार ड्यूटी पर आ रहा था.21 अक्तूबर को पुलिस ने अपराधियों को एक साथ उठाने का निर्णय लिया. सब से पहले जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने मैनेजर सुशील को पूछताछ के बहाने पुलिस थाने बुलाया. एक मुस्तैद सिपाही जो डंडा लिए था, की तरफ इशारा करते हुए सीओ ने कहा, ‘मैनेजर साहब, आप बिना लागलपेट सच उगल दो. वरना इन डंडे वालों को संभालना मुश्किल हो जाएगा.’’  ‘‘सर, मैं सब कुछ सचसच बता दूंगा,’’ सुशील ने कहा.

बिना लागलपेट सुशील कुमार ने बयां किया, ‘‘बैंक परीक्षा पास करने के बाद मुझे बैंक में नौकरी मिल गई थी. मैं ने कर्जा उठा कर भव्य मकान बनवाया था. अब 10 नवंबर को मेरी शादी होनी थी. शानोशौकत की चाह भावी दांपत्य जीवन को मनमोहक बना देती है. इसी इच्छा के चलते बैंक की तिजौरी में रखी नोटों की गड्डियां देख मेरा इमान डोल गया. मैं ने अपने ममेरे भाई नितेश को बुला कर उस से गुफ्तगू की. ‘‘मेरी रजामंदी के चलते नितेश ने अपने 2 दोस्तों सतपाल व सुखविंद्र को शामिल कर लिया. कुछ दिन पहले नितेश अपने दोस्तों के साथ बैंक आया था. तीनों ने गहनता से बैंक भवन व आसपास का जायजा लिया था.’’

वारदात के दिन तीनों दोस्त मोटरसाइकिल से डबवाली पहुंचे. डबवाली के बाजार से एक काली व एक रंगीन पगड़ी खरीदी गई. पिट्ठू बैग भी यहीं से खरीदे गए थे. दो जनों ने पगड़ी इसलिए बांधी कि पुलिस भ्रमित हो जाए. मोटरसाइकिल डबवाली में रोड़ पर खड़ी कर तीनों बस से 6 बजे शाम संगरिया पहुंच गए थे. निर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक गार्ड को पहले ही छुट्टी दे दी गई थी.

बैंक में लगे कैमरे कई दिन पहले खराब कर दिए गए थे. दोनों बैंककर्मियों को स्ट्रांगरूम में बंद कर चाबी वहीं डाल दी गई थी ताकि स्ट्रांगरूम का दरवाजा तोड़ने की नौबत न आ जाए. मैनेजर की कार प्लानिंग के अनुसार ली गई थी. तीनों सहयोगियों की पहचान भी सुशील ने जाहिर कर दी थी.

सुशील के बताए अनुसार तीनों लोग उसी दिन नकदी के साथ कुल्लू-मनाली पहुंच गए. तीनों ने वहां महंगे होटलों व शराबखोरी में दोतीन दिनों में 3 लाख रुपए उड़ा दिए.

पुलिस सांगरिया में साजिशकर्ता सुशील निवासी भूना जिला फतेहाबाद से पूछताछ कर रही थी. वहीं 2 टीमें जनसुआ तहसील राजपुरा में अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी में जुटी थीं. जनसुआ से पुलिस ने सुशील के ममेरे भाई नितेश जो 8वीं तक पढ़ा और अविवाहित है और एमए पास अंबाला का सुखविंद्र जो 2 बेटों का पिता भी है, उठा लिया.

सतपाल 5वीं तक पढ़ा था, वह जनसुआ में हैयर ड्रैसिंग का काम करता था, उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उन्हें सांगरिया ला कर चारों से अलगअलग व आमनेसामने बिठा कर पूछताछ शुरू की. पर चारों रिकवरी के बिंदु पर पुलिस को गच्चा देते रहे. जांच अधिकारी इंद्रकुमार ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर ले लिया.

दोबारा पूछताछ में चारों ने अपने घरों में छिपा कर रखी एक करोड़ 5 लाख रुपयों की बरामदगी करवा दी थी. अदालत में दोबारा पेश करने पर अदालत ने तीनों को जेल भिजवा दिया.

मुख्य साजिशकर्ता सुशील को पुलिस ने रिकवरी के लिए दोबारा 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया था. इस अवधि में सुशील ने अपने घर से 5 लाख रुपए और बरामद करवाए. पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गई बाइक, कार व अन्य साक्ष्य कब्जे में ले लिए.

आईजी (बीकानेर) ने एसपी साहित अन्य अधिकारियों की दिल खोल कर हौसलाअफजाई की. एसपी राशि डोगरा ने इंसपेक्टर इंद्रकुमार की विशेष सराहना की.

चारों आरोपियों ने रूपयों की खनकदमक के आगे पहली बार अपराध किया था ताकि उन का व उन के परिवार का भविष्य संवर जाए. पर हकीकत में चारों ने न केवल खुद को बल्कि परिवार को भी गहरी अंधेरी गहराइयों में धकेल दिया है.

केले केे पत्ते की सब्जी इस तरह से बनाएं

केला एक ऐसा फल है जो हर शहर और गांव में आसानी से मिल जाता है.  केला का इस्तेमाल बहुत सारे तरीके से किया जाता है. कुछ लोग केला का सेवन फल के रूप में करते हैं यानी पक्के हुए केले खाना पसंद करते हैं. ऐसे में आग आपको केले के पत्ते से कैसे सब्जी बनती है.

शायद इससे पहले आपने कभी नहीं सोचा होगा कि केले के पत्ते की सब्जी बनती हैं.

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समाग्री

1 केला का पत्ता

एक चुटकी जीरा

हींग

2 साबुत लाल मिर्च

1-2 हरी मिर्च

थोड़ा सा अदरक

पिसा धनिया

एक चम्मच आमचूर

एक चम्मच तेल

विधि

-केले के मोटे के डंडल को हटा दें, अब केले के अच्छे से साफ कर लें. अब छलनी पर उसे छोड़ दें. जब पूरा पानी निकल जाए तो उसे अच्छे से साफ कर लें. उसके बाद केले को बारीक काट लें.

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-अब कड़ाही में माध्यम आंच पर तेल गर्म करें, उसके बाद उसमें जीरा डालें, कुछ सेकेण्ड भूनें और फिर उसमें हींग डालें जब हींग और जीरा भून जाए तो उसमें मिर्च डाल दें. अब उसमें बारीक कटी हुई लहसुन और अदरक को डालकर भूनें.

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– अब कटी हुई केले डाले और उसे अच्छे से भूनें, अब इसमें नमक और पिसा धनिया डालकर अच्छे से चलाएं. कुछ देर चलाने के बाद उसमें आमचूर पाउडर, धनिया पाउडर , खटाई डालकर अच्छे से चलाएं.

कुछ देर चलाने के बाद स्वादिष्ट पौष्टिक केले की सब्जी तैयार है अब आप केले की सब्जी को चावल या फिर रोटा के साथ खा सकते हैं.

 

प्रहरी-भाग 1 : कैसे उतरा विभा की आंखों पर पड़ा नासमझी का परदा

विभा रसोई में भरवां भिंडी और अरहर की दाल बनाने की तैयारी कर रही थी. भरवां भिंडी उस के बेटे तपन को पसंद थी और अरहर की दाल की शौकीन उस की बहू सुषमा थी. इसीलिए सुषमा के लाख मना करने पर भी वह रसोई में आ ही गई. सुषमा और तपन को अपने एक मित्र के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में जाना था और उस के लिए उपहार भी खरीदना था. सो, दोनों घर से जल्दी निकल पड़े. जातेजाते सुषमा बोली, ‘‘मांजी, ज्यादा काम मत कीजिए, थोड़ा आराम भी कीजिए.’’

विभा ने मुसकरा कर सिर हिला दिया और उन के जाते ही दरवाजा बंद कर दोबारा अपने काम में लग गई. जल्दी ही उस ने सबकुछ बना लिया. दाल में छौंकभर लगाना बाकी था. कुछ थकान महसूस हुई तो उस ने कौफी बनाने के लिए पानी उबलने रख दिया. तभी दरवाजे की घंटी बजी. जैसे ही विभा ने दरवाजा खोला, सुषमा आंधी की तरह अंदर घुसी और सीधे अपने शयनकक्ष में जा कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. विभा अवाक खड़ी देखती ही रह गई.

सिर झुकाए धीमी चाल से चलता तपन भी पीछेपीछे आया. उस का भावविहीन चेहरा देख कुछ भी अंदाजा लगाना कठिन था. विभा पिछले महीने ही तो यहां आई थी. किंतु इस दौरान में ही बेटेबहू के बीच चल रही तनातनी का अंदाजा उसे कुछकुछ हो गया था. फिर भी जब तक बेटा अपने मुंह से ही कुछ न बताए, उस का बीच में दखल देना ठीक न था. जमाने की बदली हवा वह बहुत देख चुकी थी. फिर भी न जाने क्यों इस समय उस का मन न माना और वह सोफे पर बैठे, सिगरेट फूंक रहे तपन के पास जा बैठी.

तपन ने सिगरेट बुझा दी तो विभा ने पूछा, ‘‘सुषमा को क्या हुआ है?’’ ‘‘कुछ भी नहीं,’’ वह झल्ला कर बोला, ‘‘कोई नई बात तो है नहीं…’’

‘‘वह तो मैं देख ही रही हूं, इसीलिए आज पूछ बैठी. यह रोजरोज की खींचतान अच्छी नहीं बेटा, अभी तुम्हारे विवाह को समय ही कितना हुआ है? अभी से दांपत्य जीवन में दरार पड़ जाएगी तो आगे क्या होगा?’’ विभा चिंतित सी बोली.

‘‘यह सब तुम मुझे समझाने के बजाय उसे क्यों नहीं समझातीं मां?’’ कह कर तपन उठ कर बाहर चला गया, जातेजाते क्रोध में दरवाजा भी जोर से ही बंद किया. विभा परेशान हो उठी कि तपन को क्या होता जा रहा है? बड़ी मुश्किल से तो वे लोग उस की रुचि के अनुसार लड़की ढूंढ़ पाए थे. उस ने तमाम गुणों की लिस्ट बना दी थी कि लड़की सुंदर हो, खूब पढ़ीलिखी हो, घर भी संभाल सके और उस के साथ ऊंची सोसाइटी में उठबैठ भी सके, फूहड़पन बिलकुल न हो आदिआदि.

कुछ सोचते हुए विभा फिर रसोई में चली गई. कौफी का पानी खौल चुका था. उस ने 3 प्यालों में कौफी बना ली. बाथरूम में पानी गिरने की आवाज से वह समझ गई कि सुषमा मुंह धो रही होगी, सो, उस ने आवाज लगाई, ‘‘सुषमा आओ, कौफी पी लो.’’ ‘‘आई मांजी,’’ और सुषमा मुंह पोंछतेपोंछते ही बाहर आ गई.

कौफी का कप उसे पकड़ाते विभा ने उस की सूजी आंखें देखीं तो पूछा, ‘‘क्या हुआ था, बेटी?’’ सुषमा सोचने लगी, पिछले पूरे एक महीने से मां उस के व तपन के झगड़ों में हमेशा खामोश ही रहीं. कभीकभी सुषमा को क्रोध भी आता था कि क्या मां को तपन से यह कहना नहीं चाहिए कि इस तरह अपनी पत्नी से झगड़ना उचित नहीं?

‘‘बताओ न बेटी, क्या बात है?’’ विभा का प्यारभरा स्वर दोबारा कानों में गूंजा तो सुषमा की आंखें छलछला उठीं, वह धीरे से बोली, ‘‘बात सिर्फ यह है कि इन्हें मुझ पर विश्वास नहीं है.’’ ‘‘यह कैसी बात कर रही हो?’’ विभा बेचैनी से बोली, ‘‘पति अपनी पत्नी पर विश्वास न करे, यह कभी हो सकता है भला?’’

‘‘यह आप उन से क्यों नहीं पूछतीं, जो भरी पार्टी में किसी दूसरे पुरुष से मुझे बातें करते देख कर ही बौखला उठते हैं और फिर किसी न किसी बहाने से बीच पार्टी से ही मुझे उठा कर ले आते हैं, भले ही मैं आना न चाहूं. मैं क्या बच्ची हूं, जो अपना भलाबुरा नहीं समझती?’’ विभा की समझ में बहुतकुछ आ रहा था. तसवीर का एक रुख साफ हो

चुका था.अपनी सुंदर पत्नी पर अपना अधिकार जमाए रखने की धुन में पति का अहं पत्नी के अहं से टकरा रहा था. वह प्यार से बोली, ‘‘अच्छा, तुम कौफी पियो, ठंडी हो रही है. मैं तपन को समझाऊंगी,?’’ यह कह कर विभा रसोई में चली गई. कुकर का ढक्कन खोल दाल छौंकी तो उस की महक पूरे घर में फैल गई. तभी तपन भी अंदर आया और बिना किसी से कुछ बोले कौफी का कप रसोई से उठा कर अंदर कमरे में चला गया.

रात को जब तीनों खाना खाने बैठे, तब भी तपन का मूड ठीक नहीं था. इधर सुषमा भी अकड़ी हुई थी. वह डब्बे से रोटी निकाल कर अपनी व विभा की प्लेट में तो रखती, लेकिन तपन के आगे डब्बा ही खिसका देती. एकाध बार तो विभा चुप रही, फिर बोली, ‘‘बेटी, तपन की प्लेट में भी रोटी निकाल कर रखो.’’ इस पर सुषमा ने रोटी निकाल कर पहले तपन की प्लेट में रखी तो उस का तना हुआ चेहरा कुछ ढीला पड़ा.

खाने के बाद विभा रोज कुछ देर घर के सामने ही टहलती थी. सुषमा या तपन में से कोई एक उस के साथ हो लेता था. उन दोनों ने उसे यहां बुलाया था और दोनों चाहते थे कि जितने दिन विभा वहां रहे, उस का पूरा ध्यान रखा जाए. इसीलिए जब विभा ने बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला तो पांव में चप्पल डाल कर तपन भी साथ हो लिया.

कुछ दूर तक मौन चलते रहने के बाद विभा ने पूछा, ‘‘सुषमा को क्या तुम पार्टी से जबरदस्ती जल्दी ले आए थे?’’ ‘‘मां, अच्छेबुरे लोग सभी जगह होते हैं. सुषमा जिस व्यक्ति के साथ बातें किए जा रही थी उस के बारे में दफ्तर में किसी की भी राय अच्छी नहीं है. दफ्तर में काम करने वाली हर लड़की उस से कतराती है. अब ऐसे में सुषमा का इतनी देर तक उस के साथ रहना…और ऊपर से वह नालायक भी ‘भाभीजी, भाभीजी’ करता उस के आगेपीछे ही लगा रहा, क्योंकि कोई और लड़की उसे लिफ्ट ही नहीं दे रही

Crime Story: पाप किसी का सजा किसी को

प्रिंस का दुर्भाग्य यह था कि उस ने एक ऐसा दृश्य देख लिया था, जो उसे नहीं देखना चाहिए था. यही उस की हत्या का कारण बना. वह सतरूपा और अंकित के आंतरिक संबंधों की भेंट चढ़ गया, लेकिन…
पुष्पा देवी सुबह 10 बजे मंदिर से घर आईं. उन्होंने पूजा का थाल चौकी पर रखा फिर चारों ओर नजर दौड़ाई. जब प्रिंस दिखाई नहीं पड़ा तो उस ने आवाज लगाई, ‘‘प्रिंस कहां हो तुम? आ कर प्रसाद ले लो.’’
8 वर्षीय प्रिंस पुष्पा का एकलौता बेटा था. उसे घर से गायब देख वह घबरा गई. घर से बाहर जा कर वह उसे गली में खोजने लगी. जब प्रिंस गली में कहीं नहीं दिखा, तब पुष्पा ने उस की खोजबीन आसपड़ोस के घरों में की, पर उस का पता नहीं चला.

पुष्पा के घर से चंद घर दूर उस का देवर राकेश रहता था. उस ने सोचा कहीं वह चाचा के घर न चला गया हो. वह तुरंत देवर के घर पहुंची. राकेश घर पर ही था. पुष्पा ने उस से पूछा, ‘‘देवरजी, प्रिंस घर से गायब है. जब मैं मंदिर गई थी, तब घर के बाहर खेल रहा था. वापस आई तो नहीं था. मैं ने पासपड़ोस के घरों में खोजबीन की, पर उस का पता नहीं चला. कहीं वह तुम्हारे घर तो नही है.’’‘‘भाभी, प्रिंस कुछ देर पहले आया था. मैं ने उसे नाश्ता भी कराया था. उस के बाद वह चला गया था. भाभी, आप घबराइए नहीं. यहीं कहीं होगा. चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं.’’

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फिर देवरभौजाई ने मिल कर गांव की हर गली छान मारी. आसपड़ोस के हर घर का दरवाजा खटखटा कर पूछताछ की. लेकिन प्रिंस का पता न चला. पुष्पा के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं. मन घबरा रहा था. राकेश के माथे पर भी चिंता की लकीरें उभर आई थीं. मन में उथलपुथल होने लगी थी.
चौसड़ गांव में रहने वाली पुष्पा के पति राजेश कुमार कुशवाहा प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. वह भागीरथी डिग्री कालेज में प्रवक्ता थे. उस समय वह कालेज में थे. पुष्पा ने पति को फोन पर प्रिंस के गायब होने की जानकारी दी और तुरंत घर आने को कहा.राकेश ने भी फोन पर बात की और चिंता जताते हुए भाई से अनुरोेध किया कि वह कैसा भी जरूरी काम हो, छोड़ कर घर आ जाएं.

अपने एकलौते बेटे प्रिंस के गायब होने की जानकारी पा कर प्रोफेसर राजेश कुशवाहा घबरा गए. वह तुरंत घर आ गए. उन्होंने भी आसपास पूछताछ की लेकिन किसी से उन्हें कोेई सुराग नहीं मिला. इस से उन की चिंता बढ़ गई. उन्होंने भाई राकेश को साथ लिया और मोटरसाइकिल से पूजास्थल, बस व टैंपो स्टैंड पर प्रिंस की खोज की. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. आखिरकार निराश हो कर वह घर लौट आए.
प्रोफेसर राजेश कुशवाहा के मन में बारबार सवाल उठ रहा था कि आखिर 8 साल का बच्चा कहां चला गया. अगर वह गांव में भटक गया होता तो वह उसे ढूंढ लेते. उन के मन में विचार आया, कहीं किसी ने उन के बेटे का अपहरण तो नहीं कर लिया.

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पुलिस को दी सूचना

राजेश कुमार कुशवाहा ने जब घर आ कर बताया कि प्रिंस का कुछ पता नहीं लग रहा है. तब घर में रोनाधोना शुरू हो गया. आसपड़ोस के लोग भी आ गए.
प्रिंस के गायब होने से सभी चिंतित थे. पुष्पा का तो रोरो कर बुरा हाल था. वह बारबार पति से अनुरोध कर रही थी कि जैसे भी संभव हो, उस के जिगर के टुकड़े को वापस लाओ. राजेश पुष्पा को धैर्य बंधा रहे थे. यह बात 19 अक्तूबर, 2020 की है.जब दिन भर खोजने के बाद भी प्रिंस का कुछ पता नहीं चला तो राजेश शाम 7 बजे थाना विसंडा पहुंचे. थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह उस समय थाने में ही थे. उन्होंने उन्हें अपने 8 वर्षीय बेटे प्रिंस के अचानक घर से गायब होने की जानकारी दी और रिपोर्ट दर्ज कर प्रिंस को खोजने का अनुरोध किया.

फिरौती की आई काल

नरेंद्र सिंह ने तत्काल प्रिंस की गुमशुदगी दर्ज कर ली और आश्वासन दिया कि वह उन के बेटे को खोजने का पूरा प्रयास करेंगे.प्रोफेसर राजेश कुशवाहा गुमशुदगी दर्ज करा कर घर आए तो उन के मित्र व परिवार के लोग घर पर मौजूद थे. राजेश उन से प्रिंस के गायब होने के संबंध में विचारविमर्श करने लगे. अभी वह बात कर ही रहे थे कि उन के मोबाइल फोन पर काल आई. राजेश ने काल रिसीव कर हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘मास्टरजी, मेरी बात गौर से सुनो. मैं ने तुम्हारे बच्चे का अपहरण कर लिया है. 5 लाख फिरौती चाहिए, जल्दी इंतजाम करो. पुलिस को सूचना दी तो बच्चे की लाश मिलेगी.’’
इस के बाद उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. राजेश हैलोहैलो ही कहते रहे.

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अपहरण की जानकारी पा कर सभी चिंतित हो उठे. पुष्पा रोने लगी और पति से बोली, ‘‘मेरे पास जो भी पैसा है, सब ले लो. सोनेचांदी के गहने भी बेच दो. लेकिन मेरे लाल को छुड़ा कर ले आओ. उस के बिना मैं नहीं रह पाऊंगी.’’पुष्पा के करुण रूदन से सभी की आंखें भर आईं. राजेश ने पत्नी को समझाया कि वह जल्द ही फिरौती की रकम दे कर प्रिंस को छुड़ा लेंगे. उसे कुछ नहीं होगा. राजेश और पुष्पा ने वह रात आंखोंआंखों में बिताई.

सवेरा होते ही उन के घर पर फिर जमावड़ा शुरू हो गया. इसी बीच राकेश किसी काम से तालाब की ओर गया तो उस ने तालाब किनारे भतीजे प्रिंस की एक चप्पल पड़ी देखी. उस का माथा ठनका. वह सोचने लगा, ‘‘कहीं प्रिंस तालाब में तो नहीं डूब गया.’’राकेश ने यह बात बड़े भाई राजेश को बताई तो राजेश दरजनों लोगों के साथ तालाब पर पहुंच गए. दरअसल, राजेश के घर से तालाब की दूरी मात्र 100 मीटर थी और वहां तक प्रिंस आसानी से पहुंच सकता था. अत: शक के आधार पर गांव के 2 तैराक तालाब में उतरे. उन्होंने हरसंभव प्रयास किया. लेकिन प्रिंस का पता नहीं चला.

तालाब के किनारे पुआल और कंडे का ढेर लगा था. पुआल के ढेर के पास प्रिंस के पैर की दूसरी चप्पल पड़ी थी. उत्सुकतावश कुछ लोगों ने पुआल के ढेर को पलटा तो सब की आंखें फटी रह गईं. पुआल और कंडे के बीच 8 वर्षीय प्रिंस की लाश पड़ी थी. उस के मुंह पर टेप चिपका था और हाथपैर रस्सी से बंधे थे.
पुष्पा और परिवार की अन्य महिलाओं ने प्रिंस की लाश देखी तो वे बिलख पड़ीं. सब एकदूसरे को धैर्य बंधाने लगीं. पुष्पा तो रोतेरोते मूर्छित हो गईं. महिलाएं उन्हें घर ले गईं. राकेश और राजेश भी प्रिंस का शव देख कर रो रहे थे. प्रोफेसर के मासूम बेटे प्रिंस की हत्या की खबर जंगल की आग की तरह चौसड़ और आसपास के गांवों में फैली तो भारी भीड़ उमड़ पड़ी.

भीड़ हुई उत्तेजित

इसी बीच थाना विसंडा पुलिस को प्रिंस की हत्या की खबर मिली तो थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह तथा डीएसपी आनंद कुमार पांडेय पुलिस टीम के साथ चौसड़ गांव आ गए. घटनास्थल पर भारी भीड़ देख कर पुलिस के हाथपांव फूल गए. हालात तब ज्यादा बिगड़ गए, जब उत्तेजित भीड़ पुलिस विरोधी नारे लगाने लगी. उन की मांग थी कि जब तक आला अधिकारी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह शव को नहीं उठने देंगे.
स्थिति को भांप कर डीएसपी आनंद कुमार पांडेय ने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी और जनता की मांग से अवगत कराया. जानकारी पा कर आईजी (बांदा) के. सत्यनारायण, एसपी डा. सिद्धार्थ शंकर मीणा तथा एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह चौहान चौसड़ गांव पहुंचे. सुरक्षा की दृष्टि से उन्होंने अतिरिक्त फोर्स मंगवा ली थी.

पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित जनता को आश्वासन दिया कि मासूम की हत्या
का जल्द ही परदाफाश होगा और कातिल पकड़े जाएंगे. पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर जनता का गुस्सा ठंडा पड़ा तो उन्होंने आननफानन में घटनास्थल का निरीक्षण किया. फिर शव को पोस्टमार्टम हेतु बांदा के जिला अस्पताल भिजवा दिया. एसपी डा. सिद्धार्थ शंकर मीणा ने हत्या का परदाफाश करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया. टीम की कमान एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह चौहान को सौंपी गई. इस टीम में थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह, चौकी इंचार्ज पी.आर. गौरव, एसआई अनिल सिंह, सत्येंद्र मिश्र, महिला सिपाही विमला, अंजू तथा डीएसपी आनंद कुमार पांडेय को शामिल किया गया.
गठित पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के अनुसार प्रिंस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. इस के बाद टीम ने मृतक प्रिंस के मातापिता व चाचा से पूछताछ की.

पिता राजेश कुशवाहा ने बताया कि 19 अक्तूबर की रात 10 बजे उन के मोबाइल पर एक काल आई थी, जिस में प्रिंस के अपहरण की बात कही गई थी और 5 लाख की फिरौती मांगी गई थी. उन्हें शक है कि बेटे की हत्या में परिवार के ही किसी सदस्य का हाथ है. उन्होंने पुलिस को वह नंबर दिया, जिस से काल आई थी. उन्होंने हत्या का शक परिवार के जितेंद्र कुशवाहा व उस की पत्नी सतरूपा पर जताया.

21 अक्तूबर, 2020 की शाम 4 बजे पुलिस टीम ने शक के आधार पर जितेंद्र और उस की पत्नी सतरूपा को उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना विसंडा ले आई.उधर जिस नंबर से फिरौती का फोन आया था, पुलिस ने उस की जांच की तो पता चला कि वह नंबर विसंडा के छोटा गुप्ता के नाम से है. शक के आधार पर पुलिस छोटा गुप्ता को भी उस के घर से उठा कर थाना विसंडा ले आई.पुलिस टीम ने सब से पहले जितेंद्र कुशवाहा से पूछताछ की. उस ने बताया कि 19 अक्तूबर की सुबह 7 बजे वह खेत पर पानी लगाने गया था. दोपहर 12 बजे लौट कर घर आया तो पत्नी सतरूपा ने बताया कि मास्टर राजेश का लड़का प्रिंस लापता हो गया है. तब वह उन के घर गया और सब के साथ प्रिंस की खोज में जुटा रहा. प्रिंस की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है.

जितेंद्र के बाद पुलिस टीम ने उस की पत्नी सतरूपा से पूछताछ शुरू की. सतरूपा जब से थाने आई थी, उस का चेहरा उतरा हुआ था, वह घबराई हुई भी.पूछताछ में पहले तो वह पुलिस को बरगलाती रही . लेकिन जब सख्ती की गई तो उस ने प्रिंस की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि प्रिंस की हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी अंकित कुशवाहा व उस के दोस्त छोटा गुप्ता ने दिया था.
यह पता चलते ही पुलिस टीम ने अंकित कुशवाहा को भी रात में उस के घर में ही छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया. यही नहीं, पुलिस टीम ने आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल रस्सी, टेप तथा मोबाइल फोन सतरूपा के घर से बरामद कर लिया. सतरूपा के पति जितेंद्र कुशवाहा का हत्या में कोई हाथ नही था, अत: उसे थाने से जाने दिया गया.

चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आला कत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह ने मृतक के पिता राजेश कुमार कुशवाहा की तहरीर पर भादंवि की धारा 363/364/302/201/34 के तहत सतरूपा, अंकित कुशवाहा छोटा गुप्ता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों से की गई पूछताछ में एक ऐसी औरत का खेल सामने आया, जिस ने अपना पाप छिपाने के लिए एक घर का चिराग बुझा दिया था.
अवैध संबंधों के चलते हुई हत्या

बांदा जिला की अतर्रा तहसील में एक बड़ी आबादी वाला गांव है चौसड़. इसी गांव में राजेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी पुष्पा के अलावा एकलौता बेटा प्रिंस था.
राजेश कुशवाहा भागीरथी डिग्री कालेज में प्रवक्ता थे. उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी, वह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. राजेश कुमार का बेटा प्रिंस कुशाग्र बुद्धि व चंचल स्वभाव का था. राजेश और पुष्पा उसे भरपूर प्यार देते थे.

पुष्पा के लिए प्रिंस जिगर का टुकड़ा था. प्रिंस घर वालों का ही दुलारा नहीं था, बल्कि मोहल्ले के लोग भी उसे प्यार करते थे. वह घरघर का कन्हैया था. प्रिंस का चाचा राकेश तो उस पर जान छिड़कता था. वह अकसर नाश्ता उसी के साथ करता था.

राजेश के घर से 4 घर दूर जितेंद्र कुशवाहा रहता था. वह किसान था. लगभग 7 साल पहले उस का विवाह सतरूपा से हुआ था. सतरूपा साधारण रंगरूप वाली मनचली औरत थी और चमकदमक से रहती थी. वह 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. 2 बेटियों के जन्म के बाद जितेंद्र का मन स्त्री संसर्ग से उचट गया था, जबकि सतरूपा की शारीरिक भूख बढ़ गई थी. वह हर रात पति का साथ चाहती थी. लेकिन जितेंद्र उस का साथ नहीं दे पाता था. वह किसानी में ही व्यस्त रहता था.

जितेंद्र के घर अंकित कुशवाहा का आनाजाना था. अंकित पड़ोस में ही रहने वाले मास्टर आनंद कुमार का बिगड़ैल बेटा था. वह शरीर से हृष्टपुष्ट तथा अविवाहित था. औरत उस की कमजोरी थी. जितेंद्र के घर आतेजाते उस की नजर जितेंद्र की पत्नी सतरूपा पर पड़ी. वह उस पर डोरे डालने लगा.
सतरूपा और अंकित के बीच देवरभाभी का नाता था. सो दोनों के बीच खूब हंसीमजाक होता था. सतरूपा मनचली औरत थी और पति सुख से वंचित रहती थी, सो जल्दी ही वह अंकित के प्यार जाल में फंस गई और दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया.

सतरूपा अविवाहित अंकित की इतनी दीवानी बन गई कि वह जब भी प्रणय निवेदन करता सतरूपा उसे समर्पित हो जाती थी. अंकित ऐसे समय घर आता था जब सतरूपा का पति खेतों पर होता था.

प्रिंस ने देख लिया था

19 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे जितेंद्र अपने खेतों में पानी लगाने चला गया. उस के जाने के कुछ देर बाद अंकित घर आ गया. आते ही उस ने सतरूपा को बांहों में भर लिया और कमरे में ले गया. जल्दी में दोनों घर का मुख्य दरवाजा बंद करना भूल गए. कमरे के अंदर अंकित और सतरूपा जिस्म की प्यास बुझा ही रहे थे कि राजेश का 8 वर्षीय बेटा प्रिंस कमरे में आ गया. उस ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया.प्रिंस कहीं भेद न खोल दे, अत: दोनों ने मासूम प्रिंस को पकड़ लिया और उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फेवीक्विक लगा कर होेंठ बंद कर दिए तथा मुंह पर टेप लगा दिया ताकि वह चीखचिल्ला न सके. इस के बाद गला दबा कर दोनों ने प्रिंस को मार डाला. लाश को कमरे में ही छिपा दिया.

इस के बाद अंकित ने अपने दोस्त छोटा गुप्ता को सारी जानकारी दे कर मदद मांगी. छोटा गुप्ता मदद को राजी हो गया. उस ने ही रात में राजेश को अपहरण और फिरौती के लिए फोन किया था, ताकि घर वाले और पुलिस गुमराह हो जाएं. आधी रात को तीनों ने मिल कर प्रिंस के शव को घर से कुछ दूरी पर स्थित तालाब के किनारे पुआल और कंडों के बीच छिपा दिया.उधर पुष्पा देवी मंदिर से घर लौटीं तो प्रिंस घर से नदारद था. उस ने खोज शुरू की और पति को जानकारी दी. राजेश अपने साथियों के साथ प्रिंस की खोज करता रहा, लेकिन उस का पता न चला. दूसरे रोज पुआल के ढेर से प्रिंस का शव बरामद हुआ.
थाना विसंडा पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर जांच प्रारंभ की तो प्रिंस की हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

22 अक्तूबर, 2020 को थाना विसंडा पुलिस ने अभियुक्त अंकित कुशवाहा, छोटा गुप्ता तथा सतरूपा को बांदा की जिला अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.
सैक्स के भूखे लोग दरवाजा क्यों खुला छोड़ देते हैं, समझ के बाहर है.

देवोलीना भट्टचार्जी ने किया दिव्या भटनागर के पति के बारे में खुलासा, पति उन्हें मारता-पिटता था

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ कि फेम दिव्या भटनागर के मौत से पूरा इंडस्ट्री हिला हुआ है. दिव्या भटनागर की मौत से उनके सभी साथी कलाकार को सदमा लगा हुआ है. दिव्या कि सबसे क्लोज सहेली रही देवोलीना भट्टाचार्जी का बयान सोशस मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

देवोलीना भट्टाचार्जी ने दिव्या को भावभीन श्रद्धाजलीं देने के बाद एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में बिग बॉस 13 फें एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्जी ने बताया है कि दिव्या का पति गगन उन्हें मारता- पिटता था. और दिव्या को धोखा दे रहा था.

इसी के साथ देवोलीना ने वीडियो में ये भी बताया कि गगन के खिलाफ शिमला में मोलेशटेशन का केस दर्ज है. यह सच्चाई जानने के बाद सभी के होश उड़ गए हैं. दिव्या अपने घरेलू मामले से भी परेशान थीं.

34 साल की दिव्या भटनागर के जाने का दुख हर किसी को है. वो काफी दिनों से वेटिलेटर पर सीरियस हालत में थी. दिव्या ये रिश्ता क्या कहलाता है में गुलाबो के किरदार से मशहूर थीं. उन्हें कुछ वक्त पहले नेमोनिया हो गया था.

नेमोनिया के अलावा उन्हें हाइपरटेंशन की भी बीमारी थीं. और उनकी कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटीव आई थी. कुछ दिन पहले दिव्या की हालात ज्यादा खराब हो गई थी जिसके बाद उन्हें मुंबई के ख अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. जिसके कुछ दिनों बाद ही दिव्या ने दम तोड़ दिया. उनकी मौत से पूरी इंडस्ट्री में सन्नाटा छाया हुआ है. सभी साथी दोस्तों ने उन्हें श्रद्धाजली दी है.

वहीं देवोलीना भट्टचार्जी ने लिखा है कि पोस्ट में कि ‘जब कोई साथ नहीं होता था तब तू ही होती थी. जिसे मैं डांट सकती थी रूठ सकती थी, अपने दिल की बात कह सकती थी. मैं जानती हूं जिंदगी तुम्हारे लिए बहुत कठिन थी. दर्द बहुत असहनीय थी. आज तुम एएक बेहतर स्थान पर हो.’

बिग बॉस 14: घर से बाहर जानें के बाद राहुल वैद्या ने फैंस के लिए लिखा इमोशनल पोस्ट

बिग बॉस 14 में एकबार फिर सलमान खान ने चौकाने वाला फैसला लिया है. इस फैसले से लगभग हर कोई हैरान हो गया है. राहुल वैद्या को घर से बेघर कर दिया है. राहुल वैद्या के शॉकिंग  इविक्शन से हर कोई हैरान है.

राहुल वैद्या को घर में एक मजबूत दावेदार माना जा रहा था. ऐसे में सिंगर को खुद ही घर से बाहर निकलने के फैसले ने उन्हें चौका दिया है. घर से बाहर आते ही राहुल वैद्या अपने चाहने वालों के सामने आएं हैं. राहुल वैद्या ने सभी के सामने आने के बाद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट शेयर करते हुए अपने सभी चाहने वाले लोगों को थैक्स बोला है.

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राहुल वैद्या ने पोस्ट लिखते हुए कहा है कि मैं अपने सभी प्रशंसकों को धन्यवाद देना चाहता हूं, आप सभी के बिना ये सफर आसान नहीं था. मुझे बहुत खुशी है कि मैं आप सभी का मनोरंजन कर पाया. आप सभी के प्रतिक्रया को देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि हमारा फैनडम कितना विशाल है.

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राहुल वैद्या के इविकेश्न के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि मेकर्स ने उन्हें जान बुझकर बाहर किया है. कुछ लोगों का कहना है कि राहुल का हौसला लगातार तोड़ा गया था क्योंकि उन्होंने नेशनल टीवी के सामने अपने प्यार का इजहार किया.

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जबकी इसका जवाब उन्हें शो में नहीं मिला राहुल ने कुछ दिन पहले भी यह बात साफ करते हुए कहा था कि उन्हें गर कि याद सता रही है. ऐसे में राहुल वैद्या के जाने से काफी लोगों का दिल टूटा है.

किसान आन्दोलन: जब किसानों ने रागिणी गा कर सरकार को घेर लिया

लेखक-रोहित और शाहनवाज

“सो सो पड़े मुसीबत बेटा, मर्द जवान में,
ओरे भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में
मेरे जैसा कौन जणदे पूत जहान में,
भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में
दुनिया में तेरे गीत सुनूंगी, और कदे ना कदे माँ फेर बनूंगी,
और अगले जनम में फेर जनूंगी, ऐसी संतान मैं,
भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में…”

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शाम के करीब 4:30 बज रहे थे. दिल्ली हरियाणा के टिकरी बॉर्डर पर किसान आन्दोलन में मंच के पास सब कुछ शांत हो गया था. मंच से काफी दूर दूर तक सब हलचल मानों बंद हो गई थी. अचानक से लाउड स्पीकर पर एक धुन बजने लगी. ये मटके के बजने की आवाज थी. मटके के मुह पर काला रबर बंधा था, जो की किसी दुसरे रबर के संपर्क में आने पर ‘टुंग टुंग’ जैसी आवाज निकल रही थी.

मंच पर करीब 5-6 लोग मिल कर मटका बजा रहे थे और एक आदमी हारमोनियम बजा रहा था. ये धुन इतनी प्यारी थी की सिर्फ चुप चाप खड़े हो कर सुनने का मन कर रहा था. उसी बीच मंच पर उपस्थित एक और व्यक्ति, थोड़ी भारी सी आवाज में और हरियाणवी बोली में ऊपर लिखे गीत को गाने लगे.

कोई भी इंसान उस आवाज को सुनता तो यह उस आवाज को सुरीला नहीं कहता. लेकिन जैसे ही गाने में “भगत सिंह कदे जी घबरा जा, तेरा बंद मकान में…” ये लाइन आई तो जितने लोग उस वक्त मौजूद थे उन के अन्दर न जाने कहां से एक ऐसा जोश और ऐसा उमंग भर गया, जो शायद ही अभी शब्दों में बयान करना मुमकिन है.

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ऊपर इन लाइन का मतलब समझाते हुए हरियाणा के रोहतक में टिटोली गांव से प्रदर्शन में शामिल हुए रविंदर ने बताया कि, “इस गाने में भगत सिंह की माँ, लोगों को ये मेसेज देना चाहती है कि भगत सिंह को चार दिवारी में बाँध कर नहीं रखा जा सकता है. और उन की माँ ये बताना चाहती है कि उन को गर्व है की उन्होंने भगत सिंह जैसे पूत को जन्म दिया है और अगले जनम में अगर फिर से माँ बनी तो फिर से भगत सिंह जैसे बेटे को जनम देंगी.”

उस वक्त की सब से खास बात ये थी कि वहां मौजूद लोग चुपचाप खड़े हो कर रागिणी सुनने में मगन थे. लेकिन जब भी पंचिंग लाइन (भगत सिंह कदे जी घबरा जा…) आती तो सब एक लय में मंच पर मौजूद रागिणी गाने वाले व्यक्ति की आवाज से आवाज मिला कर गाने लगते. ये बेहद जोशीला माहौल था जिस का साक्षी होने का मौका हमें मिला.

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क्या होती है रागिणी?

हर राज्य का अपना कुछ न कुछ कल्चर होता है, गीत होता है, संगीत होता है. उसी तरह से रागिणी भारत में हरियाणा की लोक गीत है. रागिणी में प्रेमियों के जुदाई का दर्द बयान किया जाता है, वीरता और शौर्य का गुणगान किया जाता है, फसल उगने का और कटने की खुशी व्यक्त की जाती है. इसे कही बढ़ कर रागिणी में समाज में चल रहे अस्त व्यस्तता को दिखाया जाता है और सच्चाई को बुलंद आवाज में कह देने की हिम्मत होती है.

इसे गाने के लिए किसी का सुरीला होना जरुरी नहीं है, बल्कि गीत के बोल में इतना दम होना चाहिए कि सुन ने वाले व्यक्ति के दिल और दिमाग में उस के बोल उतर जाए. रागिणी गाने के साथ साथ गाने वाला सांग भी करता है जो कि गीत के बोल पर हल्का फुल्का थिरकना शामिल होता है, जो की माहौल को और अधिक खुशनुमा बनाता है.

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रागिणी को गाने के लिए और उस में धुन बजाने के लिए बहुत अधिक उपकरणों की जरुरत भी नहीं है. कम से कम एक मटका जिस के मुह पर रबर बंधा हो और उसे बजाने के लिए दूसरा रबर ही काफी है. प्रोफेशनल रागिणी गाने वाले लोग अपने पास इकतारा, सारंगी, चिमटा, मंजीरा, दुग्गी, खर्ताल इत्यादि उपकरण भी साथ रखते हैं.

मुख्य रूप से रागिणी गांव देहातों में ख़ुशी के मौको पर गाई जाती है, जैसे की शादी बियाह के मौकों पर. लेकिन यह किसी भी मौके पर गाई जा सकती है.

क्यों गाई गई प्रोटेस्ट में रागिणी?

दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन की सब से अनोखी बात यह है की प्रदर्शन करने आए ये किसान अपनी मांगों को ले कर बेहद क्रिएटिव है. वें सिर्फ अपनी मांगों को ले कर नारे लगाना नहीं जानते बल्कि अपनी बात अलग अलग माध्यमों के द्वारा जाहिर करना भी जानते हैं. रागिणी उन्ही में से एक माध्यम है.

शाम 4:30 बजे से रागिणी गाना शुरू किया गया था और 4-5 घंटे तक अलग अलग कलाकारों ने किसान आन्दोलन के समर्थन में कई तरह कि रागिणी गा कर सरकार की पोल खोलने का काम किया.

क्योंकि रागिणी में किसानों के द्वारा फसल की उगाई से ले कर कटाई तक हर तरह का वर्णन मिलता है इसीलिए रागिणी ने मुख्य रूप से किसानों की आवाज बुलंद करने का काम किया है.

उस समय मौजूद कलाकारों के द्वारा कई ऐसे गाने गाए गए जो की सरकारी हुकूमत, भ्रष्टाचार, शोषण, उत्पीडन, नौकरशाही, बेरोजगारी इत्यादि न जाने कई तरह की समस्याओं और सरकार को घेरने का काम किया गया. जिस से आन्दोलन कर रहे किसानों के अन्दर एक अलग तरह की ऊर्जा का संचार देखने को मिलता है.

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