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सेहत के लिए घातक रासायनिक कीटनाशक

आज खेती में अनेक तरह के कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन में अनेक कीटनाशक ऐसे हैं, जो हमारे लिए हानिकारक हैं. फसल में बीमारी होने पर किस फसल में कौन सा कीटनाशक प्रयोग करना है, इस की जानकारी की कमी में किसान कई बार गलत कदम उठा लेते हैं. कीटनाशक विजेता ने जैसा बताया वैसा किया, जबकि कई चालू कंपनियां लोकल माल बनाती हैं और विके्रताओं को अच्छा मुनाफा भी देती हैं तो विक्रेता भी उन्हीं दवाओं को किसान को इस्तेमाल करने की सलाह  देता है. किसान भी उन के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लेते हैं.

अभी कुछ दिन पहले भारत सरकार ने भी मई, 2020  में 27 कीटनाशकों को बैन करने की बात कही, जिस पर अनेक  कीटनाशक कंपनियों ने होहल्ला मचाया. इस तरह की खबरें आती  रहती हैं, लेकिन तसवीर साफ नहीं होती कि कौन सा कीटनाशक  हमें इस्तेमाल करना है, कौन सा नहीं. अनेक कंपनियां मिलतेजुलते नामों से उन की नकल बना कर भी बेचती हैं, जिस में अकसर  किसान धोखा खा जाते हैं, इसलिए किसान को सजग रहना है.

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अपनी सेहत के साथसाथ फसल की सेहत का भी खयाल रखना है.जहरीले कीटनाशक सभी को हानि पहुंचाते हैं. हमेशा कृषि माहिरों से जानकारी ले कर ही उन्हें इस्तेमाल करें.इस विषय को ले कर कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि अनाज हो, फल या सब्जी, अच्छी पैदावार के लिए इन में कीटनाशकों का जो प्रयोग हो रहा है, उस से इनसान की सेहत को गंभीर खतरा है. ये कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में कीटनाशकों में जहर का ओवरडोज मिला रही हैं. किसान अपनी कीट संबंधी समस्या ले कर कीटनाशी विक्रेता के पास जाते हैं, तो अधिकतर विक्रेता सब से जहरीला कीटनाशी पहली बार में ही दे देते हैं या एकसाथ कई कीटनाशी डालने के लिए करते हैं. जोमात्रा संस्तुत है, उसे ज्यादा मात्रा में फसल पर डालते हैं. ऐसा भी देखने में आया है कि ज्यादा मात्रा होने से फसल झुलस भी जाती है. फल, सब्जी या अनाज में मौजूद कीटनाशक कई खतरनाक बीमारियों को जन्म दे रहे हैं. ये रसायन लिवर व किडनी जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों के लिए खतरनाक हैं.

किसी भी कीटनाशक को तैयार करने में उस में खतरनाक कैमिकल मिलाने का अनुपात निर्धारित है. कई रासायनिकों की जांच से भी खुलासा हो चुका है कि इन्हें बनाने में तय मानकों का घोर उल्लंघन होता है. अधिक उपज के लिए किसान इन कीटनाशकों को जितना ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, उतने ही अधिक कीटपतंगों की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ रही है.

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कीटनाशकयुक्त फलसब्जी लेने से आदमी की सेहद पर बुरा असर  पड़ता है. खानेपीने की चीजों में मिले हुए कीटनाशक जब मनुष्य  के पेट में पहुंचते हैं, तो वहां से रक्त में मिल कर शरीर के सभी अंगों तक पहुंच जाते हैं. शरीर में मिलने के बाद कीटनाशक लिवर और किडनी को नुकसान पहुंचाना शुरू करते हैं.
डाक्टरों का कहना है कि कीटनाशकों के दुष्परिणाम के कारण नपुंसकता और डायबिटीज के मामले बढ़ते जा रहे हैं. सिरदर्द, उलटी का अनुभव, अनिद्रा, आंखों से धुंधला दिखना आदि लक्षण दिख सकते हैं.
किसानों से सीधे सब्जी खाने के लिए क्रय किया जाता है, तो  फसल पर छिड़काव तक सीमित रहता है. परंतु वही सब्जी जो स्थायी विक्रेताओं से ली जाती है, तो कभीकभी ज्यादा घातक होती
है.

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एक तो सब्जियां बासी कई दिनों की होती हैं और उसे हराभरा रखने के लिए मेलाकाइट ग्रीन रसायन मिलाते हैं. केला कार्बाइड से पकाते हैं. सेब के ऊपर मोम की परत चढ़ा देते हैं. तरबूज में लाल रंग सेक्रिन में मिला कर इंजैक्शन लगा देते हैं. इस से बचने के लिए विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. मौसमी फलसब्जियों का सेवन करें. बेमौसम वाली सब्जियों का प्रयोग न करें, क्योंकि मिलावट इसी में ज्यादा होने की संभावना रहती है. सब्जियों को सिरके के पानी में धो कर प्रयोग करें. सेब को खाने से पहले छिलका हटा लें. कीटनाशी विके्रता जैविक कीटनाशी की बिक्री करें. कीट बीमारी लगने पर इन के प्रबंधन के लिए कीट रोग विशेषज्ञ से राय जरूर लें.

राज-भाग 2 : रचना और रेखा की दोस्ती से किसको परेशानी होने लगी थी

रचना मुसकराई, ‘‘हां मौसी, आप ने समझाया तो था.’’

‘‘फिर निखिल को उस के साथ क्यों भेज दिया?’’

‘‘वहां अस्पताल में मामीजी और भाभी को कोई भी जरूरत पड़ सकती है न.’’

सीता ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘दीदी, छोटी बहू को तो जरा भी अक्ल नहीं है.’’

राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.’’ रचना घर का काम खत्म कर सुस्ताने के लिए लेटी तो सीता मौसी वहीं आ गईं. रचना उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘आओ, मौसी.’’ आराम से बैठते हुए सीता ने पूछा, ‘‘तुम कब सुना रही हो खुशखबरी?’’

‘‘पता नहीं, मौसी.’’

‘‘क्या मतलब, पता नहीं?’’

‘‘मतलब, अभी सोचा नहीं.’’

‘‘देर मत करो, औलाद पैदा हो जाएगी तो निखिल उस में व्यस्त रहेगा. कुछ तो भाभी का भूत उतरेगा सिर से और आज तुम्हें एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘हां बताइए.’’

‘‘मैं ने सुना है मानसी निखिल की ही संतान है. अनिल के हाल तो पता ही हैं सब को.’’ रचना भौचक्की सी सीता का मुंह देखती रह गई, ‘‘क्या कह रही हो, मौसी?’’

‘‘हां, बहू, सब रिश्तेदार, पड़ोसी यही कहते हैं.’’ रचना पलभर कुछ सोचती रही, फिर सहजता से बोली, ‘‘छोडि़ए मौसी, कोई और बात करते हैं. अच्छा, चाय पीने का मूड बन गया है. चाय बना कर लाती हूं.’’ सीता हैरानी से रचना को जाते देखती रही. इतने में राधिका भी वहीं आ गई. सीता को हैरान देख बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे, यह तुम्हारी छोटी बहू कैसी है? इसे कुछ भी कह लो, अपनी धुन में ही रहती है.’’ राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, धोखा खाएगी किसी दिन, अपनी आंखों से देख लेगी तो आंखें खुलेंगी. हम बड़े अनुभवी लोगों की कौन सुनता है आजकल.’’ रचना ने टीवी देख रहे ससुरजी को एक कप चाय दी, फिर जा कर रेखा के बैडरूम में देखा, अनिल गहरी नींद में था. फिर राधिका और सीता के साथ चाय पीनी शुरू ही की थी कि रचना का मोबाइल बज उठा. निखिल का फोन था. बात करने के बाद रचना ने कहा, ‘‘मां, भाभी के मामाजी को 3-4 दिन अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. ये छुट्टी ले लेंगे, भाभी को साथ ले कर ही आएंगे.

‘‘मैं ने भी यही कहा है वहां आप दोनों देख लो, यहां तो हम सब हैं ही.’’ राधिका ने डपटा, ‘‘तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रहा. जो रेखा चाहती है निखिल वही करता है. तुम से कहा था न निखिल को उस से दूर रखो.’’

‘‘आप चिंता न करें, मां. मैं देख लूंगी. अच्छा, मानसी आने वाली है, मैं उस के लिए कुछ नाश्ता बना लेती हूं और मैं भाभी के आने तक छुट्टी ले लूंगी जिस से घर में किसी को परेशानी न हो.’’ दोनों को हैरान छोड़ रचना काम में व्यस्त हो गई.

सीता ने कहा, ‘‘इस की निश्चिंतता का आखिर राज क्या है, दीदी? क्यों इस पर किसी बात का असर नहीं होता?’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, सीता.’’ निखिल और रेखा लौट आए थे. रेखा और रचना स्नेहपूर्वक लिपट गईं. उमेश वहां के हालचाल पूछते रहे. अनिल ने सब चुपचाप सुना, कहा कुछ नहीं. उन का अधिकतर समय दवाइयों के असर में सोते हुए ही बीतता था. उन्हें अजीब से डिप्रैशन के दौरे पड़ते थे जिस में वे कभी चीखतेचिल्लाते थे तो कभी घर से बाहर भागने की कोशिश करते थे. सासूमां को रेखा फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि वे खुद ही उसे बहू बना कर लाई थीं. बेटे की अस्वस्थता का सारा आक्रोश रेखा पर ही निकाल देती थीं. घर का सारा खर्च निखिल और रचना ही उठाते थे. उमेश रिटायर्ड थे और अनिल तो कभी कोई काम कर ही नहीं पाए थे. उन की पढ़ाई भी बहुत कम ही हुई थी. 3 साल बीत गए, रचना ने एक स्वस्थ व सुंदर पुत्र को जन्म दिया तो पूरे घर में उत्सव का माहौल बन गया. नन्हे यश को सब जीभर कर गोद में खिलाते. रेखा ने ही यश की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. रचना के औफिस जाने पर रेखा ही यश को संभालती थी. कई पड़ोसरिश्तेदार यश को देखने आते रहते और रचना के कानों में मक्कारी से घुमाफिरा कर निखिल और रेखा के अवैध संबंधों की जानकारी का जहर उड़ेलते चले जाते. कुछ औरतें तो यहां तक मजाक में कह देतीं, ‘‘चलो, अब निखिल 2 बच्चों का बाप बन गया.’’

रचना के कानों पर जूं न रेंगती देख सब हैरान हो, चुप हो जाते. रेखा और रचना के बीच स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही गया था. रचना जब भी बाहर घूमने, डिनर पर जाती, रेखा और मानसी को भी जरूर ले जाती. रचना के कानों में सीता मौसी का कथापुराण चलता रहता था, ‘‘देख, तू पछताएगी. अभी भी संभल जा, सब लोग तुम्हारा ही मजाक बना रहे हैं.’’ पर रचना की सपाट प्रतिक्रिया पर राधिका और सीता हैरान हुए बिना भी न रहतीं. वे दोनों कई बार सोचतीं, यह क्या राज है, यह कैसी

औरत है, कौन सी औरत इन बातों पर मुसकरा कर रह जाती है, समझदार है, पढ़ीलिखी है. आखिर राज क्या है उस की इस निश्ंिचतता का? एक साल और बीत रहा था कि एक अनहोनी घट गई. मानसी के स्कूल से फोन आया. मानसी बेहोश हो गई थी. निखिल और रचना तो अपने आौफिस में थे. यश को राधिका के पास छोड़ रेखा तुरंत स्कूल भागी. निखिल और रचना को उस ने रास्ते में ही फोन कर दिया था. मानसी को डाक्टर देख चुके थे. उन्होंने उसे ऐडमिट कर कुछ टैस्ट करवाने की सलाह दी. रेखा निखिल के कहने पर मानसी को सीधा अस्पताल ही ले गई. स्कूल में फर्स्ट ऐड मिलने के बाद वह होश में तो थी पर बहुत सुस्त और कमजोर लग रही थी. निखिल और रचना भी अस्पताल पहुंच गए थे. निखिल ने घर पर फोन कर के सारी स्थिति बता दी थी.

मानसी ने बताया था, सुबह से ही वह असुविधा महसूस कर रही थी. अचानक उसे चक्कर आने लगे थे और वह शायद फिर बेहोश हो गई थी. हैरान तो सब तब और हुए जब उस ने कहा, ‘‘कई बार ऐसा लगता है सिर घूम रहा है, कभी अचानक अजीब सा डिप्रैशन लगने लगता है.’’ रेखा इस बात पर बुरी तरह चौंक गई, रोते हुए बोली, ‘‘रचना, यह क्या हो रहा है मानसी को. अनिल की भी तो ऐसे ही तबीयत खराब होनी शुरू हुई थी. क्या मानसी भी…’’

‘‘अरे नहीं, भाभी, पढ़ाई का दबाव  होगा. कितना तनाव रहता है आजकल बच्चों को. आप परेशान न हों. हम सब हैं न,’’ रचना ने रेखा को तसल्ली दी. मानसी के सब टैस्ट हुए. राधिका और उमेश भी यश को ले कर अस्पताल पहुंच गए थे. सीता मौसी अनिल की देखरेख के लिए घर पर ही रुक गई थीं. रात को निखिल ने सब को घर भेज दिया था. अगले दिन रचना अनिल को अपने साथ ही सुबह अस्पताल ले गई. वहां वे थोड़ी देर मानसी के पास बैठे रहे. फिर असहज से, बेचैनी से उठनेबैठने लगे तो रचना उन्हें वहां से वापस घर ले आई. रेखा मानसी के पास ही थी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा….

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयन्ती के अवसर पर आज ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ के अन्तर्गत देश के 09 करोड़ से अधिक किसानों के बैंक खातों में 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि ऑनलाइन अन्तरित की. इससे उत्तर प्रदेश के 2.13 करोड़ से अधिक किसान 4,260 करोड़ रुपये की सम्मान राशि से लाभान्वित हुए. कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने प्रदेश के जनपद महराजगंज के किसान राम गुलाब सहित अरुणाचल प्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु आदि राज्यों के किसानों से संवाद भी किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ जिले के मोहनलालगंज विकासखण्ड परिसर में आयोजित कार्यक्रम में सम्मिलित होकर प्रधानमंत्री जी द्वारा पीएम किसान सम्मान निधि के तहत धनराशि अन्तरण कार्यक्रम का अवलोकन किया.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि भारत सरकार किसानों के हित और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है. आत्मनिर्भर किसान ही आत्मनिर्भर भारत का आधार हो सकते हैं. भारत सरकार कृषि सुधारों के सम्बन्ध में तर्क और तथ्य के आधार पर खुले मन से चर्चा के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ एप्रोच में बदलाव जरूरी है. 21वीं सदी में कृषि को आधुनिक और लाभकारी बनाने की आवश्यकता है. नए कृषि कानूनों के बाद किसान जिसे चाहे, जहां चाहे अपनी उपज बेच सकता है. किसान अपनी उपज एमएसपी पर मण्डी में, व्यापारी को, दूसरे राज्य में, एफपीओ के माध्यम से, जहां भी उचित मूल्य मिले बेच सकता है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि नए कृषि सुधारों के बारे में असंख्य भ्रम फैलाये जा रहे हैं. इन कानूनों को लागू हुए कई महीने बीच चुके हैं. हाल के दिनों में सरकार ने एमएसपी में वृद्धि की है. यह नए कानूनों और सुधारों के बाद किया गया है. कृषि सुधारों से सरकार ने अपनी जिम्मेदारियां बढ़ाई हैं. नए कृषि सुधारों में सुनिश्चित किया गया है कि खरीददार कानूनन समय से भुगतान के लिए बाध्य है. व्यवस्था है कि खरीददार को फसल क्रय के बाद रसीद देनी होगी. साथ ही, तीन दिन में मूल्य का भुगतान भी करना होगा. सरकार किसानों के साथ हर कदम पर खड़ी है. इसलिए व्यवस्था की गई है कि कानून और तंत्र किसान के पक्ष में हो. यदि किसी वजह से किसान की उपज बरबाद हो जाती है, तो भी उससे एग्रीमेण्ट करने वाले को किसान को उपज का मूल्य देना होगा. किसान से एग्रीमेण्ट करने वाला, एग्रीमेण्ट समाप्त नहीं कर सकता, जबकि किसान एग्रीमेण्ट खत्म कर सकता है. किसान की उपज से एग्रीमेण्ट करने वाले को अधिक लाभ होने पर उसे किसान को बोनस भी देना होगा.

प्रधानमंत्री ने कहा कि नए कृषि सुधारों से भारतीय कृषि में बड़े पैमाने पर तकनीक का प्रवेश होगा. इससे किसान की उपज में वृद्धि होगी. किसानों द्वारा अपने उत्पादों की बेहतर पैकेजिंग की जा सकेगी. कृषि उपज में वैल्यू एड की जा सकेगी. इससे भारतीय कृषि उपज की मांग पूरी दुनिया में होगी. हमारे किसान निर्यातक भी बन सकेंगे. उन्होंने कहा कि जैसे अन्य क्षेत्रों में ब्राण्ड इण्डिया स्थापित हुआ है, इसी प्रकार विश्व के कृषि बाजारों में ब्राण्ड इण्डिया स्थापित होगा.

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प्रधानमंत्री ने कहा कि आज पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वापजेयी की जयन्ती सुशासन दिवस के रूप में मनाई जा रही है. अटल जी ने सदैव गांव, गरीब, किसान को प्राथमिकता दी. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना सहित विभिन्न योजनाएं उनके द्वारा संचालित की गई. वर्तमान सरकार द्वारा जिन कृषि सुधारों को जमीन पर उतारा गया है, उसके सूत्रधार श्रद्धेय वाजपेयी जी ही थे.भ्रष्टाचार को रोग मानते थे. वर्तमान में दिल्ली से निकला प्रत्येक रुपया सीधे लाभार्थी के खाते में जाता है. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि इसका एक उदाहरण है. यही गुड गवर्नेंस है. उन्होंने कहा कि पीएम किसान निधि योजना के शुरू होने के बाद से अब तक 01 लाख 10 हजार करोड़ रुपये किसानों के खातों में अन्तरित किये जा चुके हैं. तकनीक के प्रयोग से यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई लीकेज न हो. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किसानों के रजिस्ट्रेशन एवं आधार वेरीफिकेशन के बाद पीएम किसान सम्मान निधि का लाभ पूरे देश के किसानों को मिल रहा है. पश्चिम बंगाल सरकार के असहयोग के कारण वहां की लगभग 70 लाख किसान इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियों के कारण कम जमीन और संसाधनों वाले किसानों को नुकसान हुआ. गरीब किसान को बीज, खाद, बिजली, सिंचाई के साधन सुलभ नहीं हुए. उसके उत्पाद की खरीद भी नहीं हुई. इससे गरीब किसान और गरीब होता गया. देश में ऐसे किसानों की संख्या 80 प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में सत्ता मंे आने के बाद उनकी सरकार ने किसानों की स्थिति में बदलाव के गम्भीर प्रयास किये. दुनिया भर में कृषि के क्षेत्र में आए बदलावों का अध्ययन कर अलग-अलग लक्ष्य बनाकर एक साथ कार्य शुरू किया गया.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि कृषि की लागत कम करने एवं उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास किये गये. मृदा परीक्षण, सोलर पम्प, यूरिया कोटिंग, पीएम फसल बीमा योजना शुरू की गई. पीएम फसल बीमा योजना में मामूली प्रीमियम के भुगतान पर किसानों को 87 हजार करोड़ रुपये प्राप्त हुए. उन्होंने कहा कि दशकों से लम्बित सिंचाई परियोजनाओं को पूर्ण कर, माइक्रो इरिगेशन को प्रोत्साहित कर हर खेत को सिंचाई सुविधा सुलभ कराने का प्रयास किया गया. फसल की उचित कीमत दिलाने के लिए स्वामीनाथन कमेटी के अनुसार लागत से डेढ़ गुना एमएसपी निर्धारित की गई. पहले कुछ ही फसलों की एमएसपी घोषित की जाती थी. इनकी संख्या बढ़ाई गई. वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रिकाॅर्ड मात्रा में खरीद और किसान को रिकाॅर्ड धनराशि का भुगतान किया जा रहा है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि फसल बेचने के लिए किसान को मण्डी के अलावा विकल्प मिलंे, इसके लिए मण्डियों को आॅनलाइन जोड़ा गया. इससे किसानों ने 01 लाख करोड़ रुपये का करोबार किया. सामूहिक रूप से कारोबार करने के लिए किसानों को जोड़ा गया. 10 हजार एफपीओ का गठन कर, उनकी सहायता की जा रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में गांव के पास भण्डारण सबसे बड़ी आवश्यकता है. इसे प्राथमिकता दी जा रही है. गांव के पास भण्डारण एवं कोल्ड स्टोरेज विकसित करने के लिए करोड़ों रुपए की धनराशि की व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही, खेती से जुड़े व्यवसायों यथा मधुमक्खी पालन, पशुपालन को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2014 में किसानों को बैंकिंग सुविधा के लिए 07 लाख करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी. वर्तमान में 14 लाख करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है, जिससे किसानों को आसानी से ऋण प्राप्त हो सके. 2.5 करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराई गई है. वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा मत्स्य पालन, पशुपालन के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा अनुमन्य की गई है. विगत कुछ वर्षों में अनेक कृषि संस्थान स्थापित करने के साथ ही, कृषि की पढ़ाई की सीटों में वृद्धि की गई.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान सरकार द्वारा गांव के किसान के जीवन को आसान बनाने के लिये कार्य किया गया. सरकार किसान के दरवाजे, खेत तक पहुंची है. उन्होंने कहा कि किसान को पक्का मकान, शौचालय, निःशुल्क बिजली कनेक्शन, निःशुल्क रसोई गैस कनेक्शन, आयुष्मान भारत योजना के अन्तर्गत निःशुल्क उपचार का लाभ प्राप्त हो रहा है. 60 वर्ष की आयु के बाद 03 हजार रुपये मासिक आय का कवच भी किसान के पास है. उन्होंने कहा कि स्वामित्व योजना के अन्तर्गत किसान को उसके मकान, खेत आदि के स्वामित्व के अभिलेख भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं.

इससे पूर्व, जनपद लखनऊ के विकासखण्ड मोहनलालगंज में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने 05 किसानों शोभनाथ, राधे श्याम द्विवेदी, मनोज कुमारी के पुत्र अशोक कुमार, सुरेन्द्र कुमार और राजेन्द्र सिंह के पुत्र कर्मवीर सिंह को ट्रैक्टर की प्रतीकात्मक चाभी प्रदान की. उन्होंने 03 किसानों राम नरेश, मीना कुमारी तथा कविता पाठक को राइस पोर्टेबल मिलर मशीन तथा अमरेश कुमार को स्माल आॅयल एक्सट्रैक्शन मशीन प्रदान किये जाने के प्रमाण पत्र सौपे.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की जयन्ती सुशासन दिवस को किसान सम्मान दिवस के रूप में मनाया जाना सर्वाधिक उपयुक्त है, क्योंकि आजादी के बाद किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का प्रयास सबसे पहले श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा वर्ष 1998 में प्रारम्भ किया गया. श्रद्धेय अटल जी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का कार्य प्रारम्भ किया. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से किसानों को अपनी उपज मण्डी तक ले जाने के लिये मार्ग सुलभ हुआ. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के हाईवे, हर गरीब के हाथ में मोबाइल फोन भी श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की देन है. श्रद्धेय वाजपेयी जी द्वारा देश की अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण का जो कार्य शुरू किया गया, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा उसे आगे बढ़ाया जा रहा है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा किसान, मजदूर, महिला, नौजवान आदि सभी के प्रति आत्मीयता के भाव से कार्य किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि देश के सर्वांगीण विकास, किसानों की खुशहाली, नौजवानों के उज्ज्वल भविष्य और मातृ शक्ति के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए जो कार्यक्रम 06 वर्ष पहले प्रधानमंत्री जी द्वारा प्रारम्भ किया गया था, आज का कार्यक्रम उसी श्रृंखला की कड़ी है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा देश के 09 करोड़ किसानों के खाते में अंतरित की जा रही 18 हजार करोड़ रुपए की धनराशि से प्रदेश के 2.13 करोड़ किसान लगभग 4,300 करोड़ रुपए की धनराशि से लाभान्वित होंगे.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान सरकार ने किसानों को बीज, खाद, बिजली, सिंचाई सुविधाएं सुलभ करायी हैं. वर्तमान सरकार द्वारा किसानों की उपज की बड़ी मात्रा में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की जा रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार ने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करते हुए कृषि लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया. केन्द्र सरकार द्वारा 34 जिन्स का समर्थन मूल्य घोषित किया गया.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार ने सत्ता में आते ही किसानों के हित और कल्याण को प्राथमिकता देते हुए प्रभावी कदम उठाए. सबसे पहले 86 लाख किसानों के 36 हजार करोड़ रुपए के ऋण माफी का निर्णय लिया गया. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने दशकों से लम्बित सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता पर पूर्ण करने का कार्य किया. वर्ष 1977 से लम्बित बाण सागर परियोजना 01 वर्ष में पूर्ण कर प्रधानमंत्री जी द्वारा राष्ट्र को समर्पित करायी गयी. अर्जुन सहायक, सरयू नहर, मध्य गंगा नहर जैसी परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया जा रहा है. मार्च, 2021 तक 20 लाख हेक्टेयर से अधिक अतिरिक्त भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त हो जाएगी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2017 में हमारी सरकार के सत्ता में आने पर 06 साल से भी अधिक गन्ना मूल्य का बकाया था. पूर्ववर्ती सरकारों ने चीनी मिलों को बेचने का कार्य किया. वर्तमान राज्य सरकार ने रमाला चीनी मिल, बागपत के नवीनीकरण का कार्य किया. अब यहां प्रतिदिन 50 हजार कुन्तल गन्ने की पेराई होती है. उन्होंने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार द्वारा अपने कार्यकाल में 01 लाख 12 हजार करोड़ रुपए के गन्ना मूल्य का भुगतान कराया गया. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा परीक्षण आदि योजनाओं के सुचारू क्रियान्वयन से किसानों के जीवन में खुशहाली आयी है.

कार्यक्रम को सांसद कौशल किशोर एवं अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी ने भी सम्बोधित किया. इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी, अपर मुख्य सचिव एमएसएमई एवं सूचना नवनीत सहगल, मण्डलायुक्त व जिलाधिकारी लखनऊ सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं बड़ी संख्या में किसान उपस्थित थे.

अड़ियल कौन : किसान या सरकार?

लेखक-रोहित और शाहनवाज

सरकार द्वारा किसानों पर खालिस्तानी, देशद्रोही, माओवादी, टुकड़ेटुकड़े गैंग, जैसे तमाम मनगड़ंतआरोपों और लांछनों को लगाने के बावजूद,किसान अनोदोलन पिछले एक महीने से और भी मजबूत होता दिख रहा है. यह आन्दोलन अपने मजबूत इरादों के साथ 21वीं सदी में किसान आन्दोलन का नया इतिहास भी लिख रहा है. और इस ने सरकार द्वारा लगाए गए आरोपों को न सिर्फ धुंधला किया बल्कि झूठा भी साबित कर दिया है. किन्तु सरकार के तरकश में मानो लग रहा है उन तीरों की कमी हो गई है जिन तीरों से उस ने छात्र, दलित, जनवादी और सीएए विरोधी आंदोलनों को कुचला था. इसीलिए अब लग रहा है कि सरकार के पास ‘विक्टिम प्ले’ का आखरी हथियार बचा है जिसे वह इस समय भुनाने पर लगी हुई है.

किसान, दिल्ली के अलगअलग बोर्डेरों पर 26 नवंबर से डेरा जमाएं हैं. इस सर्द मौसम में लगभग उन्हें 1 महीने से ऊपर हो चला है.किसान और सरकार के बीच शुरूआती6 राउंड की बातचीत हो चुकी हैं, कहने को सरकार की और से किसानों को 8 सूत्रीय प्रस्ताव भी दिया जा चूका है और अब चिठ्ठियों का दौर भी चल पड़ा है,लेकिन समाधान का कोई नामों निशान नहीं. आखिर वजह क्या है? क्या सरकार सच में मासूम है जिसे अड़ियल किसान लताड़ रहे हैं? या सरकार ही अड़ियलहै जो किसानों की मांग समझ कर भी मानने को तैयार नहीं है? आखिर पेंच कहां फसा हैं?

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23 दिसम्बर को मिनिस्ट्री ओफ एग्रीकल्चरल एंड फार्मर्स वेलफेयर की तरफ से 40 किसान नेताओं को 3 पेज का पत्र भेजा गया. पत्र में कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव था और साथ में किसान नेताओं से की गई एक उदार अपील भी थी. जौइंट सेक्रेटरी विवेक अग्रवाल ने पत्र के माध्यम से किसानों से कहा कि, “सरकार खुले दिल से और साफ नियत के साथ आप के सभी मुद्दों पर बात करने को तैयार है. कृपया दिन और समय बात करने के लिए तय करें.” इस लैटर में सरकार ने फिर से दोहराया कि इन कानूनों से एमएसपी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

चर्चा का भ्रम
अब जाहिर सी बात है सरकार के इस रवैय्ये से किस का दिल नहीं पसीजेगा. सरकार लगातार मीडिया के माध्यम से किसानों से यही अपील कर रही है कि किसान उन से बात करे जिस के बाद उन्होंने अगले दिन यानी 24 तारीख को भी किसान नेताओं को दूसरा पत्र भेजा और कहा, “सरकार के लिए चर्चा के सभी दरवाजे खुले रखना महत्वपूर्ण है. किसान संगठनों और किसानों की बात सुनना सरकार की जिम्मेदारी है और सरकार इससे इनकार नहीं कर सकती.”सरकार ने दोहराया कि वह किसान यूनियनों के आन्दोलन द्वारा उठाए गए मुद्दों पर “तार्किक समाधान” खोजने के लिए तैयार है.

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एक तरीके से सरकार ने यह संकेत दिया कि वह इस मसले को लेकर काफी उदार है और चर्चा का रास्ता बनाए रखना चाहती है. 2014 के बाद यह पहला मौका है जब सरकार का इस तरीके का रवैय्या देखने को मिला. सरकार ने लगातार यह स्थापित कर नेकी भी कोशिश की, किमसले पर सरकार तो अपनी जिम्मेदारी निभा रही लेकिन किसान अड़ियल है. वे (किसान) सिर्फ मोदी विरोध के चलते आन्दोलन करना चाहते हैं. इस बात का अधिकतर किसानों से कोई लेना देना नहीं है और जिस से दिखता है की वे पोलिटिकली मोटीवेटेड हैं. यही कारण है की सरकार इस के चलते उन पर कभी खालिस्तानी होने का आरोप लगा रही थी, तो कभी माओवादी, तो कभी ओपोजीशन के बहकावे में होने का आरोप लगाती आई है.

इस बात में कितनी सच्चाई है? यह पता करने के लिए हम सिंघु बोर्डर कूच किए. वहां हमारी मुलाकात किसान संयुक्त मोर्चा (एआईकेएससीसी) कमिटी के जिम्मेदार सदस्य व एआईकेएस के वाईस प्रेसिडेंट लखबीर सिंह से हुई. जिन्होंने कहा, “हम शुरुआत से ही सरकार से समस्याओं पर बातचीत करने के पक्ष में हैं. हमारा आन्दोलन इन तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ ही खड़ा हुआ था. ऐसे में जबजब सरकार ने इस मसले पर बातचीत करने का प्रस्ताव रखा है हम तबतब अपनी मांगों को ले कर उन से बात करने के लिए पहुंचे हैं.

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“3 दिसम्बर के दिन 7 घंटे चली मीटिंग में केन्द्रीय मंत्री पियूष गोयल और कई अन्य नेताओं के साथ बातचीत में हम किसानों ने 39 बिन्दुओं का मसौदा रख अपनी बात सरकार के सामने रखी थी. उस के बाद 5 दिसम्बर को कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की तरफ से मीटिंग का प्रस्ताव रखा गया, जिस में हम मौजूद थे. फिर 9 तारीख को कृषि मंत्री की तरफ से दोबारा मीटिंग का प्रस्ताव रखा गया, जिसे उन के द्वारा कैंसिल कर एक दिन पहले ही भारत बंद के दिन इमरजेंसी में करवाई गई. और उस में भी हम मौजूद थे.”
वे आगे कहते हैं,“सरकार के पीछेकौर्पोरेट का हाथ है. ये तीनों कानून कौर्पोरेट के फायदे के लिए बनाए गए हैं. भाजपा यह अच्छे से जानती है कि उसे जनता ने नहीं बल्कि इन्ही कौर्पोरेटों लौबीने प्रधानमंत्री बनाया है. जिस कारण सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेना चाहती. यही कारण भी है कि सरकार कौर्पोरेट और प्राइवेट प्लेयर्स को अपना दोस्त समझती है और हम किसानों को अपना दुश्मन. सरकार अबहमें किसान नहीं बल्कि अपना ‘पोलिटिकल राइवल समझ रही है.

“समझने वाली बात है,हमें चिठ्ठी भेजने से पहले सरकार इसे मीडिया को भेजती है. यह हमारे खिलाफ सरकारी प्रोपगंडा है. सरकारी चिठ्ठियों का तो मीडिया खूब बखान करती है लेकिन हमारा जवाब और उस में लिखी हमारी मांगों और असहमतियोंपर कोई चर्चा नहीं होती. मीडिया के माध्यम से सरकार यही जाताने की कोशीश कर रही है कि वे चर्चा के लिए तैयार है और हम कड़क बने हैं, जब कि ऐसा नहीं है.”

सरकार के प्रस्ताव पर किसानों के जवाब
9 दिसम्बर को केंद्र सरकार ने पहली बार किसानों को 8 सूत्रीय प्रस्ताव भेजा था. यह 8 सूत्रीय प्रस्ताव कृषि कानूनों में संशोधन का प्रपोजल था. जिस में एमएसपी को जारी रखने का लिखित आश्वासन, एपीएमसी मंडियों के बाहर प्राइवेट मंडियों को भी टैक्स जोन में लाने, ट्रेडर्स का सरकारी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन और वेरिफिकेशन होने,न्याय के लिए कोर्ट में अर्जी की आज्ञा, पोल्यूशन एक्ट और इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2020 को वापस लिए जाने के मुख्य बिंदु शामिल हैं. इस के अलावा आन्दोलन के दौरान नामजद किसानों पर से बिना शर्त मुकदमा वापस लिएजाने की बात भी शामिल थी.

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इन प्रस्तावों से किसानों को क्या समस्या है और आखिर सहमती क्यों नहीं बन पा रही, जब इस मसले पर किसान संयुक्त मोर्चा (एआईकेएससीसी) और पानीपत से खेत मजदुर सभा व सीटू के नेता गुलाब सिंह (45) से पूछा तो उन्होंने कहा, “किसी भी कानून में संशोधन तभी किया जाता है जब उस में खामियां हों. जब सरकार भी यह मान चुकी है कि इस में खामियां हैं तो उन्हें प्रस्ताव के रूप में आन्दोलन को खत्म किए जाने की शर्त के तौर पर भेजना धोखाधड़ी है. अगर यह खामियां थी तो इन्हें अमेंडमेंट करने का प्रोसीजर तो उन्हें स्वतः चालू कर देना चाहिए था.”

वे आगे कहते हैं, “हमारा मसला संशोधन का तो कभी रहा ही नहीं. क्योंकि यह तीनों कानून संविधान के खिलाफ है, और हमारे देश के संघीय ढांचे के साथ छेड़छाड़ है. इस के साथ ही यह यूनाइटेड नेशन के रेजोल्यूशन का भी उल्लंघन करता है. हम शुरुआत से इन तीनों कानूनों को रद्द किए जाने की बात कर रहे थे, जिस पर सरकार ही बात करने को तैयार नहीं है. उन्होंने जो प्रस्ताव भेजा उस में एमएसपी के लिखित आश्वासन की बात है जबकि देश का किसान इस के लीगल गारंटी की मांग कर रहा है.

“एमएसपी को तय करना और एमएसपी पर खरीद करना दोनों अलगअलग विषय हैं. हम चाहते हैं कि छोटे से छोटा किसान जहां भी अपनी फसल बेचे उस की एमएसपी की गारंटी हो. अगर जो कोई भी एमएसपी के नीचे खरीद करता हो, चाहे वह सरकारी हो या गैरसरकारी, उस पर क्रिमिनल ओफेंस का चार्ज लगे. और वैसे भी यह सरकार जो एमएसपी की कथित गारंटी दे रही है वह सिर्फ एडमिनिस्ट्रेटिव आर्डर है, जिस से कल को सरकार द्वारा मुकरा भी जा सकता है. सरकार बाध्य नहीं है.”

किसानों का यह सीधा मानना है कि सरकार प्रस्ताव में जो किसानों को लुभाने के लिए प्राइवेट प्लेयर्स को टैक्स के दायरे में रखने, रजिस्टर कराने और वेरीफाई करने की बात कर रही है वह एक भ्रमजाल है, मंडियों को ख़त्म करने का. सवाल यह है कि प्राइवेट प्लेयर्स को मंडी में लाने की सरकार की क्या मजबूरी है?”वह आगे कहते हैं, “प्राइवेट प्लेयर को मंडी में लाने का कानून ही इसीलिए बनाया गया है ताकि सरकार अपना पल्ला झाड़ कर मंडी से बाहर निकल सके. इतिहास गवाह है जहांजहां सरकारी संस्थाओं के सामानांतर प्राइवेट संस्थाएं खड़ी हुई हैं, वहां सरकारी संस्थाएं बर्बाद हुई हैं या उसी कगार पर है. जिओ का नेटवर्क आया और बीएसएनएल बर्बाद हो गया. प्राइवेट स्कूल और हौस्पिटल आए तो सरकारी स्कूल और हौस्पिटल की हालत खराब हो गई.”

लखबीर सिंह (एआईकेएससीसी कमिटी मेम्बर) का कहना है. “सरकार संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही है, खेतीबाड़ी राज्यों का विषय है. उन का इस पर हम किसानों से बिना कंसल्ट किए कानून बना कर राज्यों पर थोपना देश के फैडरल सिस्टम पर हमला है.इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2020 में सरकार राज्यों पर अतिरिक्त भार डाल कर किसानों की बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म करने का काम कर रही है.”
वे आगे कहते हैं, “अब देखिये ये एसेंशियल कमोडिटी एक्ट 1955 को रद्द कर के 2020 का एक्ट ले कर आएं हैं जिस में भंडारण की कोई सीमा नहीं होगी. यह कौन नहीं जानता कि भंडारण करने कि किस की औकात है. सीधी सी बात है ये कौर्पोरेट को देश की मार्किटकंट्रोल करने की पूरी ताकत दे रहे हैं.”

‘किसान संयुक्त मोर्चा’ के कमिटी सदस्य व ‘जम्हूरी किसान सभा’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाक्टर सतनाम सिंह अजनाला सीधे व खरे तौर पर कहते हैं कि किसानों को समस्या नए कृषि कानूनों से है, इस पर बात करने की जगह, बारबार हमारे द्वारा रिजेक्टेड प्रस्तावों को भेजना ही उन की हठधर्मिता है. वे कहते हैं, “अब कौन्ट्रैक्ट फार्मिंग को ही ले लें, सोचिए अगर व्यापारी-किसान का करार टूटता है, तो उस की जिम्मेदारी कौन लेगा, उसे मैनेज कौन करेगा? सरकार ने तो अपना पल्ला झाड़ दिया है. क्या व्यापारी उस से सही खरीद देगा?क्या इस की गारंटी दे रही है सरकार? नहीं. इसीलिए हम एमएसपी की लीगल गारंटी की बात कर रहे हैं. सरकार सिर्फ इन प्रस्तावों पर ही देश को भटका रही है.”

वे आगे कहते हैं, “पराली जलाने पर जेल और 1 करोड़ का जुर्माना है. पहली बात यह कि देश में पराली के निपटारे के लिए सरकार के द्वारा आधुनिक उपकरणों को किसानों तक पहुंचाना प्राथमिकता होनी चाहिए थी. इस के उलट किसानों पर मुकदमा होना हास्यास्पद है. मानो, कल को कोई आपसी रंजिश में रात को किसी की पराली में आग लगा दे, तो उसे सरकार कैसे हैंडल करेगी?”

सतनाम सिंह कहते हैं, “8 दिसंबर को गृहमंत्री से हुई बातचीत में हम ने मुख्य पौइंट रेज किए थे. जहां ‘भाव अंतर’ के नेगोसिएशन पर भी बात हुई थी, जिस पर भी सरकार तैयार नहीं थी. तब उन्होंने (अमित शाह) कहा था कि इसे कैबिनेट में रखा जाएगा और विचार होगा. लेकिन कानूनों पर विचार नहीं हुआ, बस हमें प्रस्ताव लैटर भेजा गया. हमारे रिजेक्ट करने के बाद फिर वही बातेंघूमफिर कर सरकार की तरफ से रिपीट हो रही हैं. यह जाहिर करता है कि सरकार हमारी बात सुनने को तैयार ही नहीं है.”

अड़ियल कौन?
जब से देश में कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन चला है तब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कानूनों का सिर्फ बचाव करते रहे. और जब भी वह कृषि कानूनों को ले कर कुछ बोले, तभ तब आन्दोलनकारी किसानों और प्रधानमंत्री के बीच संवाद बिलकुल गायब रहा. चाहे प्रधानमंत्री के मन की बात हो, उत्तर प्रदेश में काशी दौरा हो या 12 दिसम्बर को फिक्की (पूंजीपतियों का संगठन) के मंच से कानून के पक्ष में दलीले देते रहे. लेकिन एक बार भी आन्दोलनकारी किसानों से सीधा संवाद कायम करने की कोशिश नहीं की.
15 दिसम्बर के दिन प्रधानमंत्री गुजरात में जिन किसानों से मिलने गए वह भी पूरी तरह से स्क्रिप्टेड था. 10-12 किसानों के साथ हस्ते मुस्कुराते हुए प्रधानमंत्री ने आम लोगों के बीच यह मेसेज दिया कि वह किसानों के साथ संवाद स्थापित कर रहे हैं. इसी तरह से 18 दिसम्बर को मध्य प्रदेश के किसानों के साथ विडियो कांफ्रेंसिंग में की गई वार्तालाप इसी नाटक का हिस्सा थी.

वहीं देश के गृह मंत्री अमित शाह मानों गृह मंत्री नहीं, अपनी पार्टी के प्रचारक मात्र ही हैं. देश में किसान आंदोलन का इतना बड़ा घटनाक्रम घट रहा है, उसे लेकर उन्होंने मात्र एक मीटिंग की वह भी आनन् फानन में. गृह मंत्रालय से 35-45 किलोमीटर दूर दिल्ली के बोर्डेरों पर बैठे किसानों से मिलने की जगह 1400 किलोमीटर दूर बंगाल चुनावों में पूरे जोरशोर से व्यस्त हो चुके हैं. मानों उन का ध्येय देश की समस्याओं को सुलझाने के बजाय सत्तालोभ मात्र रह गया है.

आज आंदोलन का स्वरूप पहले से बड़ा हो चुका है. इतने वर्षों में यह पहला मौका ऐसा आया है जब इतने तीखे तौर पर सरकार पर कॉर्पोरेट की दलाली करने का आरोप लग रहा है. इस का असर इस से सीधा समझा जा सकता है कि हरियाणा पंजाब में अदानी अंबानी के चीजों का न सिर्फ बोयकोट हो रहा है बल्कि जिओ के टावरों को, कॉर्पोरेट मॉल को, टोल प्लाजाओं पर किसान अपना अधिपत्य जमाने लगे हैं.
जाहिर सी बात है किसानों को सरकार की मंशा समझ आ चुकी है. वे भलीभाति जान रहे हैं की सरकार अपने द्वारा फैंके गए प्रस्ताव के अजेंडे पर देश को घुमा रही है और यह जता रही है वह फ्लेक्सिबल है जबकि पूरे घटनाक्रम को समझते हुए यह देखा जा सकता है कि सरकार किसानों की मांगों पर बात करने की बजाय अपने ही बातों को चर्चा का केंद्र बना रही है जिस में किसानों की मांगें पूरी तरह से नदारत है. इस हिसाब से अड़ियल किसान नहीं बल्कि सरकार है.

मलयालम एक्टर अनिल पी के निधन से सदमें है पूरा परिवार , फैंस को लगा बड़ा झटका

मलयालम एक्टर अनिल पी का निधन हो गया है इस खबर से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को बहुत ज्यादा झटका लगा हैं. पुलिस ने बताया है कि अनिल पी एक डैम में नहा रहे थें जहां यह घटना हुई है. डैम से निकालकर उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन वह नहीं बचें.

अनिल पी के मौत से केरल के चीफ मिनिस्टर पिनाराई विजयन ने शोक प्रकट किया है. उन्होंने कहा है कि वह एक ऐसे एक्टर थे कि स्वर्णीम काल तक के लिए अपनी छाप छोड़ दी है. उनके किरदारों ने लोगों के बीच गहरी छाप छोड़ी है. उनके परिवार नए इस बात का दुख जाताया है कि उनकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता है.

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बता दें कि फैंस अनिल पी के किरदार को खूब पसंद करते हैं साथ ही उन्होंने कई शानदार फिल्में दी हैं. जिसे खूब पसंद किया गया है. उनकी फिल्म अय्यपन्रमू को खूब पसंद किया गया . इस फिल्म के डायरेक्टर केआर सचिदानंद का निधन जून के महीने में हो गया था.

उन्होंने मृत्यु से पहले अनिल पी के साथ अपनी फेसबुक कवर लगा रखी थी. जो आज तक किसी ने बदली नहीं है.

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अनिल पी अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में खूब संघर्ष करते नजर आएं थे. लेकिन एक समय के बाद उन्हें खूब सारा स्टार्डम मिल गया था जिसके बाद उन्होंने कई सफल फिल्मों को दिया जिसें फैंस ने खूब पसंद किया और उनकी पहचान भी इंडस्ट्री में बनती गई.

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वहीं उनका परिवार इस सदमें से बाहर नहीं आ पा रहा है कि अचानक वह उन्हें छोड़कर कैसे जा सकते हैं. अनिल पी के जानें के सदमें से इतनी जल्दी उभरना परिवार के लिए आसान नहीं हैं लेकिन उम्मीद है जल्द परिवार वाले रिकवरी करेंगें इस दुख से.

बिग बॉस 14 प्रोमो: घर से आई चिट्ठी को पढ़कर कंटेस्टेंट हुए इमोशनल, साथ मिलकर मनाया क्रिसमस का जश्न

बिग बॉस 14 के कंटेस्टेंट खिताब जितने के लिए एक-दूसरे के पीठ पर छूरा घोपते नजर आ रहे हैं. चैलेजर्स और वाइल्ड कार्ड एंट्री के बाद भी सदस्यों के अंदर एक अलग तरह की बेचैनी देखऩे को मिल रही है. इसी बीच शो के मेकर्स घरवालों को कुछ सरप्राइज देने वाले हैं.

जिसके बाद से सभी घरवाले अपनी प्लानिंग को एक साइड में रखकर क्रिसमस का जश्न मनाते नजर आएंगे. वहीं कुछ कंटेस्टेट इमोशनल होते हुए भी नजर आएंगे.

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बिग बॉस के प्रोमो में दिखाया गया है कि राहुल वैद्या और राखी सावंत गार्डन एरिया में झूमते नजर आ रहे हैं. वहीं घर से आई चिट्ठी को पढ़ने के बाद से एक कंटेस्टेंट के आंख में आसू आ गया.

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क्रिसमस सेलिबएशन के दौरान एजाज और जैस्मिन की दोस्ती हो जाएगी. दोनों साथ में एक –दूसरे से प्यारसे बात करते नजर आएंगे. क्रिसमस के सेलिब्रेशन को देखकर लग रहा है कि घर वालों के एक नया टास्क दिया जाएगा.

वहीं बीती रात राहुल महाजन ने राखी सावंत को चिप सेलिब्रिटी कह दिया था जिसके बाद वह खूब रोई थीं. इसी दौरान एजाज खान राखी सावंत को समझा रहे थें तभी जैस्मिन भसीन जले में नमक छिड़कने आ गई.

वहीं बिग बॉस 14 के देखऩे वाले फैंस के लिए खुशखबरी है कि सलमान खान वीकेंड के वार एपिसोड़ में घरवालों के साथ अपना जन्मदिन मनाने वाले हैं.

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जिसे जानने के बाद सलमान खान के फैंस काफी ज्यादा एक्साइटेड नजर आ रहे हैं. सलमान खान के फैंस के लिए इससे अच्छी खबर क्या हो सकती है.

वहीं अगर बीते दिनों की बात करें तो अर्शी खान औऱ राखी सावंत के बीच में खूब ज्यादा झड़प हुई थी. जिसके बाद से अर्शी खान ने राखी सावंत को खूब भला बुरा कहा था. दोनों की लड़ाई को देखने के बाद फैंस को लग रहा था कि दोनों में से कोई एक घर से बाहर जरुर जाएंगी.

तो वहीं दूसरी तरफ राहुल वैद्या अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर खूब चर्चा में बने हुए हैं. जल्द ही उनकी गर्लफ्रेंड की भी घर में एंट्री होने वाली है. उन्होंने अपना नया लुक इंस्टाग्राम पर शेयर किया था जिसे फैंस ने खूब पसंद किया था.

मौनपालन से आमदनी बढ़ाएं

लेखक-  डा. अजय कुमार, वैज्ञानिक (कृषि प्रसार)

मधुमक्खीपालन एक ऐसा कारोबार है, जिसे दूसरे धंधों से कम धन, कम श्रम और कम जगह पर किया जा सकता है. मधुमक्खीपालन से मौनपालकों को शहद हासिल होता है, साथ ही साथ मधुमक्खियों के जरीए परपरागण के चलते फसलों और औद्योगिक फसलों से अच्छी उपज होती है.

भारतीय चिकित्सा पद्धति में शहद का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इस में रोगनाशक और स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं. यही वजह है कि भारत में मधुमक्खीपालन पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाता है.
मधुमक्खीपालन को छोटे लैवल पर और व्यवसाय के रूप में भी अपनाया जा सकता है. इस के लिए मौनपालकों को आधुनिक  व वैज्ञानिक तरीके से अपनाने के लिए सभी पहलुओं की अच्छी जानकारी होनी चाहिए.

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मधुमक्खीपालन प्रबंध
* मौनगृह का निरीक्षण 8-10 दिन के आसपास करते रहना चाहिए.
* इस के लिए मुंहरक्षक जाली पहन कर हाथों में दस्ताने पहन कर ऊपरी ढक्कन हटाते हैं और उलट कर नीचे साइड में रख देते हैं. उस के बाद मधुखंड की चौखट की जांच करते हैं.
* जांच करते हुए जांच करने वाले को सादा कपड़ों में होना चाहिए. चटकीले या भड़कीले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए.
* मधुखंड की जांच में देखते हैं कि किसकिस चौखट में शहद है.
* जिन चौखटों में शहद 70-80 फीसदी तक शील्ड है, उस फ्रेम को निकाल कर उस की मधुमक्खियां मधुखंड में ही झाड़ देते हैं.
* इस के बाद शील्ड मधु छत्ते को स्क्रेयर या चाकू की मदद से खरोंच कर बाहर करते हैं व चौखट को दोबारा मधुखंड में रख देते हैं.
* मधुखंड की जांच करने के बाद मधुखंड को उलटा रखे हुए ऊपरी ढक्कन के ऊपर रख देते हैं व इस के बाद शिशुखंड की जांच करते हैं. शिशुखंड की जांच
* रानी का निरीक्षण : सब से पहले शिशु खंड की विभिन्न चौखटों में रानी को देखा जाता है.
* रानी सब से लंबी उदर वाली सुनहरे रंग की होती है, जिस के चारों तरफ श्रमिक मधुमक्खी साथसाथ चलती हैं.

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* रानी की पहचान के बाद देखा जाता है कि रानी को कोई चोट तो नहीं है.
* साथ ही, कोषों में देख कर पता लगाया जाता है कि रानी अंडे दे रही है या नहीं. अगर रानी बूढ़ी हो गई हो या अंडे नहीं दे रही है हो या फिर दुर्घटना में रानी की मौत हो गई हो तो तकनीक के द्वारा रानी बनाई या दी जा सकती है.

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* जब किसी मौनवंश में रानी न हो, तब दूसरे मौनवंश, जिस में रानी कोष तैयार हो (रानी कोष मूंगफली के आकार का कोष होता है) उस रानी कोष को ऊपर से छत्ता समेत काट कर जिस मौनवंश में देना हो, उन में 2 छत्तों के बीच में दे देना चाहिए. इस प्रक्रिया को रानी कोष देना कहते हैं.

इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डा. अजय कुमार के मोबाइल 9450306419 पर संपर्क करें .

चक्रव्यूह : ईमानदार सुशील के दामन पर किसने लगाया था कलंक 

यौन दुराचार के आरोप में निलंबन, धूमिल सामाजिक प्रतिष्ठा और एक लंबी विभागीय जांच प्रक्रिया के बाद निर्दोष साबित हो कर फिर बहाल हुए सुशील आज पहली बार औफिस पहुंचे. पूरा स्टाफ उन के सम्मान में खड़ा हो गया, मगर उन्होंने किसी की तरफ भी नजर उठा कर नहीं देखा और चपरासी के पीछेपीछे सीधे अपने केबिन में चले गए. आज उन की चाल में पहले सी ठसक नहीं थी. वह पुराना आत्मविश्वास कहीं खो सा गया था.

कुरसी पर बैठते ही उन की आंखों में नमी तैर गई. उन के उजले दामन पर जो काले दाग लगे थे वे बेशक आज मिट गए थे मगर उन्हें मिटातेमिटाते उन का चरित्र कितना बदरंग हो गया, यह दर्द सिर्फ भुक्तभोगी ही जान सकता है.

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कितना गर्व था उन्हें अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर, बहुत भरोसा था अपने व्यवहार की पारदर्शिता पर. हां, वे काम में सख्त और वक्त के पाबंद थे. मगर यह भी सच था कि अपने स्टाफ के प्रति बहुत अपनापन रखते थे. वे कितनी बड़ी खुशफहमी पाले हुए थे अपने दिल में कि उन का स्टाफ भी उन्हें बहुत प्यार करता है. तभी तो उन्हें अपने चपरासी मोहन की बातों पर जरा भी यकीन नहीं हुआ था जब उस ने रजनी और शिखा के बीच हुई बातचीत ज्यों की त्यों सुना कर उन्हें खतरे से आगाह किया था. उन्हें आज भी वह सब याद है जो मोहन ने उस दिन दोनों की बातें लगभग फुसफुसा कर कही थीं…

‘इन सुशील का भी न, कुछ न कुछ तो इलाज करना ही पड़ेगा. जब से डिपार्टमैंट में हेड बन कर आए हैं, सब को सीट से बांध कर रख दिया है. मजाल है कि कोई लंचटाइम के अलावा जरा सा भी इधरउधर हो जाए,’ शिखा की टेबल पर टिफिन खोलते हुए रजनी ने अपनी भड़ास निकाली.

‘हां यार, विमल सर के टाइम में कितने मजे हुआ करते थे. बड़े ही आराम से नौकरी हो रही थी. न सुबह जल्दी आने की हड़बड़ाहट और न ही शाम को 6 बजे तक सीट पर बैठने की पाबंदी. अब तो सुबह अलार्म बजने के साथ ही मोबाइल में सुशील का चेहरा दिखाई देने लगता है,’ शिखा ने रजनी की हां में हां मिलाते हुए उस की बात का समर्थन किया.

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‘याद करो, कितनी बार हम ने औफिस से बंक मार कर मैटिनी शो देखा है, ब्यूटीपार्लर गए हैं, त्योहारों पर सैल में शौपिंग के मजे लूटे हैं. और तो और, औफिसटाइम में घरबाहर के कितने ही काम भी निबटा लिया करते थे. अब तो बस, सुबह साढ़े 9 बजे से शाम 6 बजे तक सिर्फ फाइलें ही निबटाते रहो. लगता ही नहीं कि सरकारी नौकरी कर रहे हैं,’ रजनी ने बीते हुए दिनों को याद कर के आह भरी.

‘और हां, सुशील सर पर तो तुम्हारी आंखों का काला जादू भी काम नहीं कर रहा, है न,’ शिखा ने जानबूझ कर रजनी को छेड़ा?

‘सही कह रही हो तुम. विमल सर तो मेरी एक मुसकान पर ही फ्लैट हो जाते थे. सुशील को तो यदि बांहोें में भर के चुंबन भी दे दूं न, तब भी शायद कोई छूट न दें,’ रजनी ने ठहाका लगाते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली.

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‘शिखा मैडम, आप को साहब ने याद किया है,’ तभी मोहन ने आ कर कहा था.

‘अभी आती हूं,’ कहती हुई शिखा ने अपना टिफिन बंद किया और सुशील के चैंबर की तरफ चल दी.

‘साहब का चमचा,’ कह कर रजनी भी बुरा सा मुंह बनाती हुई अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

सुशील को एकएक बात, एकएक घटना याद आ रही थी. रजनी उन के औफिस में क्लर्क है. बेहद आकर्षक देहयष्टि की मालकिन रजनी को यदि खूबसूरती की मल्लिका भी कहा जाए तो भी गलत न होगा. उस की मुखर आंखें उस के व्यक्तित्व को चारचांद लगा देती हैं. रजनी को भी अपनी इस खूबी का बखूबी एहसास है और अवसर आने पर वह अपनी आंखों का काला जादू चलाने से नहीं चूकती.

मोहन ने ही उन्हें बताया था कि 3 साल पहले जब रजनी ने ये विभाग जौइन किया था तब प्रशासनिक अधिकारी मिस्टर विमल उस के हेड थे. शौकीनमिजाज विमल पर रजनी की आंखों का काला जादू खूब चलता था. बस, वह अदा से पलकें उठा कर उन की तरफ देखती और उस के सारे गुनाह माफ हो जाते थे.

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विमल ने कभी उसे औफिस की घड़ी से बांध कर नहीं रखा. वह आराम से औफिस आती और अपनी मरजी से सीट छोड़ कर चल देती. हां, जाने से पहले एक आखिरी कौफी वह जरूर मिस्टर विमल के साथ पीती थी. उसी दौरान कुछ चटपटी बातें भी हो जाया करती थीं. मिस्टर विमल इतने को ही अपना समय समझ कर खुश हो जाते थे. रजनी की आड़ में शिखा समेत दूसरे कर्मचारियों को भी काम के घंटों में छूट मिल जाया करती थी, इसलिए सभी रजनी की तारीफें करकर के उसे चने के झाड़ पर चढ़ा रखते थे.

लेकिन रजनी की आंखों का काला जादू ज्यादा नहीं चला क्योंकि मिस्टर विमल का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह सुशील उन के बौस बन कर आ गए. दोनों अधिकारियों में जमीनआसमान का फर्क. सुशील अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार थे और साथ ही, वक्त के भी बहुत पाबंद, औफिस में 10 मिनट की भी देरी न तो खुद करते हैं और न ही किसी स्टाफ की बरदाश्त करते. शाम को भी 6 बजे से पहले किसी को सीट नहीं छोड़ने देते.

जैसा कि अमूमन होता आया है कि लंबे समय तक मिलने वाली सुविधाओं को अधिकार समझ लिया जाता है. रजनी को भी सुशील के आने से कसमसाहट होने लगी. उन की सख्ती उसे अपने अधिकारों का हनन महसूस होती थी. उसे न तो जल्दी औफिस आने की आदत थी और न ही देर तक रुकने की. उस ने एकदो बार अपनी अदाओं से सुशील को शीशे में उतारने की कोशिश भी की मगर उसे निराशा ही हाथ लगी. सुशील तो उसे आंख उठा कर देखते तक नहीं थे. फिर? कैसे चलेगा उस की आंखों का काला जादू? इस तरह तो नौकरी करनी बहुत मुश्किल हो जाएगी. रजनी की परेशानी बढ़ने लगी तो उस ने शिखा से अपनी परेशानी साझा की थी. तभी मोहन ने उन की बातें सुन ली थीं और सुशील को आगाह किया था.

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उन्हीं दिनों विधानसभा का मौनसून सत्र शुरू हुआ था. इन सत्रों में विपक्ष द्वारा सरकार से कई तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं और संबंधित सरकारी विभाग को उन के जवाब में अपने आंकड़े पेश करने पड़ते हैं. साथ ही, जब तक उस दिन का सत्र समाप्त नहीं हो जाता,

तब तक उस विभाग के सभी अधिकारियों व उन से जुड़े कर्मचारियों को औफिस में रुकना पड़ता है. हां, देरी होने पर महिला कर्मचारियों को सुरक्षित उन के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जरूर विभाग की होती है. इस बाबत सुशील भी हर रोज उन के लिए कुछ टैक्सियों की एडवांस में व्यवस्था करवाते थे.

रजनी के अधिकारक्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण विकास योजनाओं की जानकारी वाली फाइलें थीं. इसलिए सुशील की तरफ से उसे खास हिदायत थी कि वह बिना उन की इजाजत के औफिस छोड़ कर न जाए. और फिर उस दिन जो हुआ उसे भला वे कैसे भूल सकते हैं.

‘साहब ने आज आप को फाइलों के साथ रुकने के लिए कहा है,’ मोहन ने जैसे ही औफिस से निकलने के लिए बैग संभालती रजनी को यह सूचना दी, उस के हाथ रुक गए. उस ने मन ही मन कुछ सोचा और सुशील के चैंबर की तरफ बढ़ गई.

‘सर, आज मेरे पति का जन्मदिन है, प्लीज आज मुझे जल्दी जाने दीजिए. मैं कल देर तक रुक जाऊंगी,’ रजनी ने मिन्नत की.

‘मगर मैडम, हमारे विभाग से जुड़े प्रश्न तो आज के सत्र में ही पूछे जाएंगे. कल रुकने का क्या फायदा? लेकिन आप फिक्र न करें, जैसे ही आप का काम खत्म होगा, हम तुरंत आप को टैक्सी से जहां आप कहेंगी वहां छुड़वा देंगे. अब आप जाइए और जल्दी से ये आंकड़े ले कर आइए,’ सुशील ने उस की तरफ एक फाइल बढ़ाते हुए कहा. रजनी कुछ देर तो वहां खड़ी रही मगर फिर सुशील की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर निराश सी चैंबर से बाहर आ गई.

‘सर, क्या मैं आप के मोबाइल से एक फोन कर सकती हूं? अपने पति को देर से आने की सूचना देनी है, मैं जल्दबाजी में आज अपना मोबाइल लाना भूल गई,’ रजनी ने संकोच से कहा.

‘औफिस के लैंडलाइन से कर लीजिए,’ सुशील ने उस की तरफ देखे बिना ही टका सा जवाब दे दिया.

‘लैंडलाइन शायद डेड हो गया है और शिखा भी घर चली गई. पर

खैर, कोई बात नहीं, मैं कोई और व्यवस्था करती हूं,’ कहते हुए रजनी वापस मुड़ गई.

‘यह लीजिए, कर दीजिए अपने घर फोन. और हां, मेरी तरफ से भी अपने पति को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीजिएगा,’ सुशील ने रजनी को

अपना मोबाइल थमा दिया और फिर से फाइलों में उलझ गए. रजनी उन

का मोबाइल ले कर अपनी सीट पर आ गई. थोड़ी देर बाद उस ने मोहन के साथ सुशील का मोबाइल वापस भिजवा दिया और फिर अपने काम में लग गई.

‘रजनीजी, आज आप अभी तक औफिस नहीं आईं?’ दूसरे दिन सुबह लगभग 11 बजे सुशील ने रजनी को फोन किया.

‘सर, कल आप के साथ रुकने से मेरी तबीयत खराब हो गई. मैं 2-4 दिनों तक मैडिकल लीव पर रहूंगी, रजनी ने धीमी आवाज में कहा.

‘क्या हुआ?’ सुशील के शब्दों में चिंता झलक रही थी.

‘कुछ खास नहीं, सर. बस, पूरी बौडी में पेन हो रहा है. रैस्ट करूंगी तो ठीक हो जाएगा. मैं अलमारी की चाबियां शिखा के साथ भिजवा रही हूं. शायद आप को कुछ जरूरत पड़े,’ कह कर रजनी ने अपनी बात खत्म की.

2 दिनों बाद सुशील के पास महिला आयोग की अध्यक्ष सुषमा का फोन आया जिसे सुन कर सुशील के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. रजनी ने उन पर यौन दुराचार का आरोप लगाया था. रजनी ने अपने पक्ष में सुशील द्वारा भेजे गए कुछ अश्लील मैसेज और एक फोनकौल की रिकौर्डिंग उन्हें उपलब्ध करवाई थी. सुशील ने लाख सफाई दी, मगर सुषमा ने उन की एक  न सुनी और रजनी की लिखित शिकायत व सुबूतों को आधार बनाते हुए यह खबर हर अखबार व न्यूज चैनल वालों को दे दी. सभी समाचारपत्रों ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया.

चूंकि खबर एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ी थी और वह भी ऐसे विभाग का जोकि खास महिलाओं की बेहतरी के लिए ही बनाया गया था, सो सत्ता के गलियारों में भूचाल आना स्वाभाविक था. न्यूज चैनलों पर गरमागरम बहस हुई. महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था पर खामियों को ले कर विपक्ष द्वारा सरकार को घेरा गया. सुशील के घर के बाहर महिला संगठनों द्वारा प्रदर्शन किया गया. सरकार से उन्हें बरखास्त करने की पुरजोर मांग की गई.

सरकार ने पहले तो अपने अधिकारी का पक्ष लिया मगर बाद में जब रजनी के मोबाइल में भेजे गए सुशील के अश्लील संदेश और फोनकौल की रिकौडिंग मीडिया में वायरल हुए तो सरकार भी बैकफुट पर आ गईर् और तुरंत प्रभाव से सुशील को सस्पैंड कर के एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. मामले की निष्पक्ष जांच के लिए एक महिला प्रशासनिक अधिकारी उपासना खरे को जांच अधिकारी बनाया गया.

उपासना की छवि एक कर्मठ और ईमानदार अधिकारी की रही थी. उसे इस से पहले भी ऐसी कई जांच करने का अनुभव था. साथ ही, एक महिला होने के नाते रजनी उस से खुल कर बात कर सकेगी, शायद उसे जांच अधिकारी नियुक्त करने के पीछे सरकार की यही मंशा रही होगी.

इधर सुशील के निलंबन को रजनी अपनी जीत समझ रही थी. उस ने एक दिन बातों ही बातों में शेखी मारते हुए शिखा के सामने सारे घटनाक्रम को बखान कर दिया तो शिखा को सुशील के लिए बहुत बुरा लगा. उधर शर्मिंदगी और समाज में हो रही थूथू के कारण सुशील ने अपनेआप को घर में कैद कर लिया.

उपासना ने पूरे केस का गंभीरता से अध्ययन किया. सुशील और रजनी के अलगअलग और एकसाथ भीबयान लिए. दोनों के पिछले चारित्रिक रिकौर्ड खंगाले. पूरे स्टाफ से दोनों के बारे में गहन पूछताछ की और सुशील के पिछले कार्यालयों से भी उन के व्यवहार व कार्यप्रणाली से जुड़ी जानकारी जुटाई.

मोहन और शिखा से बातचीत के दौरान अनुभवी उपासना को रजनी की साजिश की भनक लगी और उन्हीं के बयानों को आधार बनाते हुए उस ने रजनी को पूछताछ के लिए दोबारा बुलाया. इस बार जरा सख्ती से बात की. थोड़ी ही देर के सवालजवाबों में रजनी उलझ गई और उस ने सारी सचाई उगल दी.

‘मैं ने औफिस के लैंडलाइन फोन की पिन निकाल कर उसे डेड कर दिया. फिर बहाने से सुशील का मोबाइल लिया और उस से अपने मोबाइल पर कुछ अश्लील मैसेज भेजे. दूसरे दिन जब सर ने मुझे फोन किया तो मैं ने उन की बातों के द्विअर्थी जवाब देते हुए उस कौल को रिकौर्ड कर लिया और फिर उन्हें सबक सिखाने के लिए सारे सुबूत देते हुए महिला आयोग से उन की शिकायत कर दी. नतीजतन, वे सस्पैंड हो गए. इस कांड से सबक लेते हुए नए अधिकारी भी मुझ से दूरदूर रहने लगे और मुझे फिर से मनमरजी से औफिस आनेजाने की आजादी मिल गई,’ रजनी ने उपासना से माफी मांगते हुए यह सब कहा. अब यह केस शीशे की तरह बिलकुल साफ हो गया.

‘रजनी, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम ने ऐसी गिरी हुई हरकत कर के महिलाओं का सिर शर्म से नीचा कर दिया. तुम ने अपने महिला होने का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर के महिला जाति के नाम पर कलंक लगाया है. तुम्हें इस की सजा मिलनी ही चाहिए…’ उपासना ने रजनी को बहुत ही तीखी टिप्पणियों के साथ

दोषी करार दिया और सुशील को बहाल करने की सिफारिश की. उपासना ने अपनी जांच रिपोर्ट में रजनी को बतौर सजा न सिर्फ शहर बल्कि राज्य से भी बाहर स्थानांतरण करने की अनुशंसा की.

मामला चूंकि सरकार के उच्चस्तरीय प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ा था और आरोप भी बहुत संगीन थे, इसलिए मुख्य सचिव ने व्यक्तिगत स्तर पर गुपचुप तरीके से भी मामले की जांच करवाई और आखिरकार, उपासना की जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए सुशील को बहाल करने के आदेश जारी हो गए, हालांकि उन का विभाग जरूर बदल दिया गया था. रजनी का ट्रांसफर दिल्ली से लखनऊ कर दिया गया.

रजनी ने कई बार मौखिक व लिखित रूप से विभाग में अपना माफीनामा पेश किया, मगर आरोपों की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने उस का प्रार्थनापत्र ठुकरा दिया और आखिरकार रजनी को लखनऊ जाना पड़ा.

आज भले ही सुशील अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से बरी हो चुके हैं मगर महिलाओं को ले कर एक अनजाना भय उन के भीतर घुस गया है. महिलाओं के प्रति उन के अंदर जो एक स्वाभाविक संवेदना थी उस की जगह कठोरता ने ले ली. वे शायद जिंदगीभर यह हादसा न भूल पाएं कि महज काम के घंटों में छूट न देने की कीमत उन्हें क्याक्या खो कर चुकानी पड़ी.

सुशील ने मुख्य सचिव को पत्र लिख कर अपील की कि या तो

उन के अधीन कार्यरत सभी महिलाओं को दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया जाए या फिर उन्हें ही ऐसे सैक्शन में लगा दिया जाए. जहां महिला कर्मचारी न हों. आखिर दूध का जला छाछ भी फूंकफूक कर पीता है.

स्वाभाविक है यह मांग नहीं मानी गई और सालभर बाद सुशील ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपना छोटा सा कंसल्ंिटग का व्यवसाय शुरू कर दिया. एक औरत ने इस तरह उन की कमर तोड़ दी कि अब वे पत्नी व बेटी से भी आंख नहीं मिला पाते हैं.

मेनोपौज: ढलती उम्र में ऐसे रखें अपना ख्याल

शाम के 7 बजे थे. 45 वर्षीय वर्षा को एक ओर घर जाने की जल्दी थी तो दूसरी ओर बौस को रिपोर्ट भी देनी थी. वह एक निजी कंपनी में बतौर मार्केटिंग मैनेजर काम करती थी. उस ने जल्दी से सारी रिपोर्ट पर एक उड़ती नजर डाली और फटाफट बौस के चैंबर में जा कर रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट को देखते ही बौस गरज उठे. रिपोर्ट में कई सारी गलतियां थीं. वर्षा को डांटते हुए उन्होंने कहा कि आजकल कुछ समय से उस के काम में कुछ न कुछ गलती नजर आती है. कहीं उस की याददाश्त तो कम नहीं हो गई? उसे बादाम खाने चाहिए जैसे व्यंग्य भी किए.

वर्षा को स्वयं भी लगा कि वह कितनी भी सावधानी बरते, उस से कोई न कोई गलती हो ही जाती है. क्या सचमुच उस की याददाश्त कमजोर हो गई है? ऐसे खयाल आते ही उस की आंखों में आंसू भर आए. पर वह अपनी परेशानियां किसे और किस तरह समझाती?

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48 वर्षीय रश्मि अपने बौस के साथ बैठ कर एसी चैंबर में पूरे दिन के हिसाब का लेखाजोखा कर रही थी. उस के सीनियर अफसर सहायता कर रहे थे. उसी वक्त बौस ने देखा, हिसाब की एंट्रियों के पिं्रटों पर रश्मि के पसीने की बूंदें गिर रही थीं. पिं्रट बिगड़ने की वजह से उन्होंने रश्मि को डांट दिया.

वर्षा या रश्मि की जैसी परेशानियों का सामना ज्यादातर औरतों को अकसर करना ही पड़ता है. आम लोगों को इस की जानकारी न होने से वे औरतों की इस प्रकार की परेशानियों को समझ नहीं पाते. उन के साथ हमदर्दी से पेश आने के बजाय उन के साथ बेअदबी भरा बरताव करते हैं. 40 या 45 की उम्र में ज्यादातर महिलाएं किसी न किसी समस्या का सामना करती दिखती हैं. हालांकि 21वीं सदी में महिलाओं की औसतन आयु 80+ मानी जाती है.

एक अनुमान के अनुसार, 2025 के साल में विश्व की कुल आबादी के 70 प्रतिशत लोग 60 से ऊपर की उम्र के होंगे. इन में स्त्रियों की संख्या बहुत ज्यादा होगी. इतनी लंबी आयु को यदि महिलाएं स्वास्थ्य की दृष्टि से तंदुरुस्त रखें तो न सिर्फ परिवार और समाज का भला होगा, वे स्वयं भी सुखी रहेंगी.

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महिलाओं पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी होने के कारण उन की तकलीफों के चलते पूरे परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. हालांकि हार्मोनल बदलाव के कारण 40 की उम्र के बाद स्वस्थ रहने के लिए महिलाओं को एक निश्चित कार्यक्रम तैयार करना होता है. इस के तहत उन के परिवार का सहयोग अत्यंत आवश्यक हो जाता है.

इस उम्र के दौरान अंत:स्राव के बदलाव से नई हड्डियां नहीं बनतीं और जो हैं उन की घिसाई ज्यादा बढ़ जाती है. इसी दौरान  हड्डियों में छिद्र बनते हैं जिन्हें मैडिकल लैंग्वेज में औस्टियोपोरोसिस कहा जाता है. एक सर्वे के अनुसार, भारत में 6 करोड़ व्यक्ति इस रोग से पीडि़त हैं. उन में 5 करोड़ महिलाएं हैं. प्रतिवर्ष औस्टियोपोरोसिस की वजह से होने वाले फ्रैक्चर्स की तादाद हार्ट अटैक, लकवा और सीने के कैंसर की तादाद से कई गुना ज्यादा है.

महिलाओं में 35 की उम्र के बाद जोरदार हार्मोनल बदलाव होते हैं. हार्मोंस  असंतुलित होने से महिलाओं की पूरी जिंदगी असंतुलित हो जाती है. आम लोग शायद इस स्थिति को मेनोपौज पीरियड के नाम से जानते हैं, पर सचाई यह है कि यह जानकारी आधीअधूरी है.

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हकीकत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में हार्मोनल बदलाव लगातार होते रहते हैं. इन सारी समस्याओं की जड़ में जिम्मेदार तत्त्व इस्ट्रोजन है. जन्म के बाद 10 से 12 साल तक लड़केलड़कियों में विशेष भेद देखने को नहीं मिलता. परंतु लड़की के 12 साल की होने पर मासिक धर्म की शुरुआत के बाद से भिन्नता दिखाई देती है. उम्र के इस पड़ाव को मोनार्की कहा जाता है.

लड़के या लड़कियों में जन्म के 12-13 साल के बाद होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण लड़कियां शारीरिक व मानसिक ढंग से अलग दिखाई देती हैं. उन का शारीरिक विकास तेजी से होता है, बालों का जत्था बढ़ता है, उन की त्वचा में चमक आती है, आवाज पतली होने लगती है. यह पूरी प्रक्रिया इस्ट्रोजन हार्मोंस  की वजह से होती है. यह पीरियड 12 से 15 वर्ष के बीच प्रारंभ होता है और 35 से 40 वर्ष की उम्र तक रहता है.

प्रकृति ने स्त्री को बच्चे को जन्म देने की अमूल्य शक्ति दी है. अपनी शारीरिक रचना के कारण सबला होने के बावजूद उसे अबला माना जाता है. 12 से 35 साल तक महिलाएं हर ढंग से सक्षम होती हैं. 35 वर्ष की आयु के बाद उन के शरीर में हार्मोनल इंबैलैंस शुरू हो जाता है. उस में मुख्यत: इस्ट्रोजन ही होता है.

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अब तक यह माना जाता था कि मेनोपौज के दौरान महिला के शरीर में इस्ट्रोजन समाप्त हो जाता है लेकिन मैडिकल साइंस के एक हालिया अन्वेषण के अनुसार, महिलाओं के शरीर में इस्ट्रोजन का एकतिहाई हिस्सा ताउम्र रहता है.

35 वर्ष की उम्र के बाद हार्मोंस  की कमी के कारण कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक परेशानियां आती हैं. उन में घुटनों की तकलीफ, औस्टियोपोरोसिस, आंखों की शक्ति क्षीण होना, त्वचा ढल जाना, झुर्रियां पड़ना, विटामिन की कमी होना, बाल झड़ना, बाल की ग्रोथ कम होना, हौट फ्लैशेज होना, एसी में भी पसीना आना, एनीमिक हो जाना, धड़कन बढ़ना, अटैक आने सा महसूस होना, बारबार गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन बढ़ जाना, छोटीछोटी बातों में दुखी होना, रोने लगना, नेगेटिव सोच होना, लोगों से उम्मीदें बढ़ जाना इत्यादि का समावेश होता है. इस्ट्रोजन कम होते ही मासिक धर्म भी बंद हो जाता है.

मैडिकल हैल्थ क्लब की कोऔर्डिनेटर डा. जयश्री गांधी बताती हैं कि मनोरंजन से ले कर परिवार के साथ रह कर और अन्य ऐक्टिविटी के जरिए मेनोपौज के दौरान किस तरह फ्रैश रहा जा सके, यह हम क्लब के माध्यम से समझाते हैं.

डा. जयश्री के अनुसार, इस उम्र में औरतों को बड़े व गंभीर रोगों से बचने के लिए कुछ परीक्षण कराने आवश्यक हैं. इन में पैप स्मीयर टैस्ट, पैल्विक टैस्ट, सोनोग्राफी, ब्रैस्ट परीक्षण मुख्य हैं. औरतों के ये दोनों महत्त्वपूर्ण अंग उन की परेशानियों का सबब बन जाते हैं. इस वजह से उन को नियमित चैकअप कराना चाहिए. इन टैस्टों से कैंसर की जानकारी मिल सकती है.

डा. जयश्री के अनुसार, ‘‘यदि जीवन के समय को आप अच्छे से गुजारना चाहती हैं तो सब से पहले आप को यह कबूल करना चाहिए कि जीवन के अन्य समय की तरह यह भी कुदरत की देन है. हकीकत को स्वीकार करने के साथसाथ बजाय दुखी होने के जीवन को मनपसंद ढांचे में ढालना सीख लेना चाहिए. मानसिक ढंग से मजबूत हो कर शारीरिक ऐक्सरसाइज, प्रोटीन, विटामिनयुक्त आहार, योगासन, वौकिंग, संगीत, मनपसंद रुचियों आदि के लिए समय निकालना चाहिए.’’

मासिक धर्म के कुछ दिन पूर्व औरत गुस्से की भावना का शिकार बनती है, चिड़चिड़ी हो जाती है. इस समयावधि में हार्मोंस के असंतुलन से औरतें कमजोरी महसूस करती हैं. अगर आप चाहें तो इस उम्र में भी सकारात्मक सोच के चलते स्वस्थ व तंदुरुस्त रह कर जीवन बिता सकते हैं.

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