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रिश्तेदार-भाग 1: सौम्या के जीवन में अकेलापन दूर करने के लिए किसने सहारा दिया

कौन कहता है कि पराए अपने नहीं हो सकते. नए शहर में आ कर सौम्या अकेली पड़ गई थी. लेकिन उस ने अपनेपन का ऐसा तानाबाना बुना कि रिश्ते अपनेआप बनते गए…

सौम्या बालकनी में खड़ी आसमान की ओर देख रही थी. सुबह से ही नीले आसमान को कालेकाले शोख बादलों ने अपनी आगोश में ले रखा था. बारिश की नन्हीनन्ही बूंदों के बाद अब मोटीमोटी बूंदें गिरने लगी थीं. सावन के महीने की यही खासीयत होती है. पूरी प्रकृति बारिश में नहा कर खिल उठती है. सौम्या का मनमयूर भी नाचने को विकल था. सुहाने मौसम में वह भी पति की बांहों में सिमट जाना चाहती थी. मगर क्या करती, उस का पति अनुराग तो अपने कमरे में कंप्यूटर से चिपका बैठा था.

वह 2 बार उस के पास जा कर उसे उठाने की कोशिश कर चुकी थी. एक बार फिर वह अनुराग के कमरे में दाखिल होती हुई बोली, ‘‘प्लीज चलो न बाहर, बारिश बंद हो जाएगी और तुम काम ही करते रह जाओगे.’’

‘‘बोला न सौम्या, मु झे जरूरी काम है. तुम चाहती क्या हो? बाहर जा कर क्या करूंगा मैं? तुम भूल क्यों जाती हो कि अब हम प्रौढ़ हो चुके हैं. तुम्हारी नवयुवतियों वाली हरकतें अच्छी नहीं लगतीं.’’

तुनकते हुए सौम्या ने कहा, ‘‘मैं कौन सा तुम से रेनडांस करने को कह रही हूं?  बस, बरामदे में बैठ कर सुहाने मौसम का आनंद लेने ही को कह रही हूं. गरमगरम चाय और पकौड़े खाते हुए जीवन के खट्टेमीठे पल याद करने को कह रही हूं.’’

‘‘देखो सौम्या, मेरे पास इतना फालतू वक्त नहीं कि बाहर बैठ कर प्रकृति निहारूं और खट्टेमीठे पल याद करूं. मु झे चैन से काम करने दो. तुम अपने लिए कोई सहेली या रिश्तेदार ढूंढ़ लो, जो हरदम तुम्हारा मन लगाए रखे और हर काम में साथ दे,’’ कह कर अनुराग फिर से काम में लग गया और मुंह बनाती हुई सौम्या किचन में घुस गई.

वह इस शहर में करीब 4 साल पहले आई थी. अनुराग का ट्रांसफर हुआ तो पुराना शहर छोड़ना पड़ा. पुरानी सहेलियां और पुरानी यादें भी पीछे छूट गईं. इस शहर में अभी किसी से ज्यादा परिचय नहीं है उस का. वैसे भी, यहां लोग अपनेअपने घरों में कैद रहते हैं. बगल के घर में मिस्टर गुप्ता अपनी मिसेज के साथ रहते हैं. 60 साल के करीब के ये दंपती दरवाजा खोलने में बहुत आलसी हैं. दूसरी तरफ मिस्टर भटनागर हैं, जो

2 बेटों के साथ रहते हैं. उन की पत्नी का देहांत हो चुका है. खुद सौम्या के दोनों बच्चे अब ऊंची कक्षाओं में आ चुके हैं. इसलिए हमेशा किताबें या लैपटौप खोल कर बैठे रहते हैं. बड़ा बेटा इंजीनियरिंग एंट्रैंस टैस्ट की तैयारी कर रहा है जबकि बिटिया बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुटी  है.

पूरे घर में सौम्या ही है जो व्यस्त नहीं है. घर के काम निबटा कर उसे इतना वक्त आराम से मिल जाता है कि वह अपने दिल के काम कर सके. कभी किताबें पढ़ना, कभी पेंटिंग करना और कभी यों ही प्रकृति को निहारना उस का मनपसंद टाइमपास है. इन सब के बाद भी कई बार उस का टाइम पास नहीं होता, तो वह उदास हो जाती है. इस शहर में उस का कोई रिश्तेदार भी नहीं.

वैसे भी वह घर की इकलौती बिटिया थी. पिता की मौत के बाद मां ने ही उसे संभाला था. अभी भी सौम्या दिल से मां के बहुत करीब है. मां खुद बहुत व्यस्त रहती हैं. वैसे भी, वे दूसरे शहर में सरकारी नौकरी में हैं. सौम्या की एकदो सहेलियां हैं, मगर फोन पर कितनी बात की जाए.

सौम्या का मन आज बहुत उदास था. शाम तक उसे कहीं सुकून नहीं मिला. रात में बिस्तर पर लेटेलेटे उस ने एक प्लान बनाया. अगले दिन सुबहसुबह पति और बच्चों के साथ वह भी तैयार होने लगी.बेटी ने जब सौम्या को कहीं जाने के लिए तैयार होते देखा तो पूछ बैठी, ‘‘ममा, आप कहां जा रहे हो?’’

‘‘फिल्म देखने,’’ इठलाती हुई सौम्या बोली. बेटी ने फिर से सवाल किया, ‘‘मगर किस के साथ?’’ ‘‘खुद के साथ.’’‘‘यह क्या कह रहे हो आप? भला फिल्म भी खुद के साथ देखी जाती है? अकेली क्यों जा रही हो आप? कितना अजीब लगेगा.’’

‘‘तो फिर क्या करूं, बता जरा. तुम चलोगी मेरे साथ? तुम्हारे पापा चलेंगे? नहीं न. कोई रिश्तेदारी या सहेली है इस शहर में मेरी? नहीं न. बताओ, फिर क्या करूं? अजीब लगेगा, यह सोच कर अपने मन को मारती रहूं? मगर कब तक? कभी तो हिम्मत करनी पड़ेगी न मु झे अकेले चलने की. सब के होते हुए भी मैं अकेली जो हूं.’’

सौम्या की बात सुन कर घर के सभी सदस्यों की नजरें सौम्या पर जा टिकीं. मगर कोई कुछ बोल न सका. सौम्या बैग उठा कर और सैंडल पहन कर घर से निकल गई.

वैसे, अजीब तो उसे वाकई लग रहा था, कभी भी अकेली फिल्म देखने जो नहीं गई थी. बाहर आ कर उस ने बैटरी रिकशा लिया और सब से नजदीकी सिनेमाहौल पहुंच गई, जो एक छोटे मौल में था. वैसे यहां अधिक भीड़ नहीं रहा करती थी मगर फिल्म अच्छी होने की वजह से कई जोड़े युवकयुवतियां काउंटर के बाहर मंडराते नजर आए. जैसे ही काउंटर खुला, लंबी लाइन लग गई. 15 मिनट लाइन में लग कर आखिरकार उस ने टिकट हासिल कर लिया.

सिक्योरिटी चैक के बाद अंदर दाखिल हुई तो देखा बहुत से लड़केलड़कियां बैठ कर शो शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं. सब आपस में बातें कर रहे थे. उसे कुछ अजीब सा लग रहा था. मगर वह अपना आत्मविश्वास खोना नहीं चाहती थी. मोबाइल पर सहेली को फोन लगा कर बातें करने लगी. कुछ ही देर में शो शुरू होने का समय हो गया. टिकट चैकिंग के बाद एकएक कर सब को अंदर भेजा जाने लगा. वह भी अंदर जा कर अपनी सीट पर बैठ गई. बगल की सीट पर एक लड़की को देख उसे तसल्ली हुई. वह भी अकेली बैठी हुई थी. सौम्या ने उस से हलकीफुलकी बातचीत आरंभ की. तब तक उस लड़की का बौयफ्रैंड आ गया और दोनों आपस में मशगूल हो गए.

सौम्या चैन से फिल्म देखने लगी. इंटरवल के समय जब लड़का पौपकौर्न वगैरह लेने जाने लगा तो सौम्या ने उस के द्वारा अपने लिए भी स्नैक्स मंगा लिए. इंटरवल में सौम्या ने उस लड़की से काफी बातें कीं. वह लड़की काफी चुलबुली और प्यारी सी थी. लड़का भी अच्छा लग रहा था. फिल्म खत्म होने पर तीनों साथसाथ बाहर निकले. सौम्या को यह जान कर आश्चर्य हुआ कि दोनों उसी के महल्ले के थे. सौम्या ने उन दोनों को घर चलने का निमंत्रण दिया. दोनों तैयार हो गए.

सौम्या दोनों के साथ घर पहुंची. उस वक्त अनुराग औफिस में और बच्चे स्कूल में थे. सौम्या ने फटाफट चाय और पकौड़े बनाए और दोनों को मन से खिलाया. लड़की का नाम नेहा और लड़के का नितिन था. एक घंटा बातचीत करने के बाद दोनों चले गए.

सौम्या का मन आज बहुत खुश था. उस का पूरा दिन बहुत खूबसूरत जो गुजरा था. अब तो वह अकसर नितिन और नेहा को घर पर बुलाने लगी. कभी नितिन व्यस्त होता तो नेहा अकेली आ जाती. दोनों मिल कर शौपिंग करने जाते तो कभी कहीं घूमने निकल जाते.

सौम्या को नितिन और नेहा के रूप में मनचाहे साथी या कहिए रिश्तेदार मिल गए थे. वहीं, नितिन और नेहा के लिए सौम्या दोस्त, बहन, मां, दादी, गाइड और दोस्त जैसे किरदार निभा रही थी. वे सौम्या से दोस्त की तरह अपनी हर बात शेयर करते. सौम्या कभी बहन की तरह प्यार लुटाती तो कभी मां की तरह उन की फिक्र करती. कभी दादी की तरह आज्ञा देती तो कभी गाइड की तरह सही रास्ता दिखाती. उन दोनों को कोई भी समस्या आती, तो वे बेखटके सौम्या के पास पहुंच जाते. सौम्या उन के लिए हमेशा तैयार रहती. वैसे भी वह पूरे दिन घर में अकेली होती थी. सो, इन दोनों के साथ खुल कर समय बिताती.

एक दिन दोपहर के समय नेहा सौम्या के घर आई. दरवाजा खुलते ही वह सौम्या के सीने से लग कर रोने लगी. सौम्या घबरा गई. उसे बैठा कर पानी ले आई. नेहा की आंखें सूजी हुई थीं. वह अब भी रो रही थी.

हुंडई i20 की खासियत जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

ये कहना की नई हुंडई i20 सिर्फ फीचर पैक्ड कार है, गलत होगा ! वास्तव में हम ऐसा क्यों कह रहे है यह बताने के लिए हम आगे नई हुंडई i20  की एक्स्ट्रा पॉपुलर फीचर्स की जानकारी देगें.  सबसे पहले आपको बता दें कि इसमें 26.03 सेमी टचस्क्रीन मीडिया और नेविगेशन सिस्टम है. इसकी बड़ी स्क्रिन होने के कारण यह अधिक जानकारी को प्रदर्शित करती है. और यह जानकारी बहुत ही आसान प्रारुप में प्रस्तुत की जाती है. यह आपके लिए और भी ज्यादा सरल हो जाता है जब आप रास्ते में होते हैं.

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इसके साथ ही नई i20 में एयर क्वालिटी इंडिकेटर के साथ एयर प्यूरीफायर लगाया गया है, अभी के समय में इनबिल्ड एयर प्यूरीफायर होना लाभदायक ही नहीं है बल्कि जरूरत भी है. और हुंडई i20 आपको  ऐसी ही चीजें प्रोवाइड करता है जिसकी आपको जरुरत है.   हमने आपको पहले ही बता दिया था कि i20 के पास बेस्ट इंटीरियर है. लेकिन आप इसके इलेक्ट्रीक सनरूफ के साथ ज्यादा धूप का आनंद ले सकते हैं.

जो आपके कार के इंटीरियर को और हवादार बना देता है.  अगर यात्रा के दौरान आपके फोन की बैटरी खत्म हो रही हो तो ऐसे में i20 में वायरलेस चार्जिंग प्वाइंट कूलिंग वेन्ट के साथ दिया है. जिससे आप बिना किसी परेशानी के अपना फोन चार्ज कर सकते हैं. जब तक आप अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचेंगे आपका फोन चार्ज हो गया होगा.  इन सभी अनगिनत सुविधाओं को देखते हुए हुंडई i20  को #BringsTheRevolution कहा गया है.

करीना कपूर ने अपने दूसरे बच्चे के नाम को लेकर कह दी बड़ी बात

करीना कपूर खान दूसरी बार मां बनने जा रही हैं. इन दिनों वह अपने प्रेग्नेंसी को एंजॉय कर रही हैं. साल 2016 में पहली बार मां बनी थी. जिसके बाद उन्हें बहुत ज्यादा कंट्रावर्सी का सामना करना पड़ा था.ऐसे में जब करीना कपूर से पूछा गया आने वाले बच्चे के बारे में तो आइए जानते हैं क्या था उनका जवाब.

जब नेहा धूपिया ने ऑनलाइन टॉक शो में करीना कपूर से सवाल पूछा कि क्या आपने आने वाले बच्चे का नाम सोच ली है तो उन्होंने बताया कि नहीं तैमूर के नाम को लेकर हमने बहुत कुछ सुना था इसलिए हम अपने आने वाले बच्चे के नाम के बारे में कुछ नहीं सोचे हैं.

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उसके आने के बाद सभी को सरप्राइज देंगे. दरअसल, जब सैफ अली खान ने तैमूर नाम रखा था अपने बेटे का उस दौरान लोगों का कहना था कि एक तैमूर नाम का मुस्लिम शासक आकर हमारे देश को लूटने की कोशिश किया था.

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जिसके बाद से बहुत सारे लोगों ने भरा – बुरा कहा था तैमूर के नाम को लेकर. इसलिए करीना और सैफ इस वक्त अपने कदम फूंक- फूंक कर रख रहे हैं.

खैर करीना कपूर अपने प्रेंग्नेसी को खूब एंजॉय कर रही हैं. हाल ही में करीना ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट डाला था जिसमें वह अपनी फैमली के साथ पालमपूर गांव में एंजॉय कर रही हैं.

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करीना कुछ वक्त पहले अपने पुस्तैनी हवेली पटौदी हाउस में थी. इसके साथ ही करीना ने कुछ दिनों पहले पंजाब में अपने को एक्टर आमीर खान के साथ नजर आई थी. वहां करीना अपनी अपकमिंग फिल्म की शूटिंग कर रही थी.

बिग बॉस 14: विकास गुप्ता के नाक में दम किया अर्शी खान ने , करियर खराब करने का लगाया आरोप

बिग बॉस सीजन 11 में शुरू हुई विकास गुप्ता और अर्शी खान की लड़ाई अब बिग बॉस सीजन 14 में भी जारी है. तभी शायद दोनों एक दूसरे से बात करने के लिए भी राजी नहीं है. घर में आते ही अर्शी खान ने सबसे पहले विकास गुप्ता पर निशाना साधा है.

बिग बॉस 14 के बीते एपिसोड में अर्शी खान ने विकास गुप्ता को रोने पर मजबूर कर दिया. अर्शी खान ने विकास गुप्ता के सामने शिल्पा शिंदे का नाम लिए बिना जमकर आरोप लगाए. वहीं बीते एपिसोड़ में अर्शी खान नॉमिनेशन टॉस्क हार गई.

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जिसके बाद विकास गुप्ता ने कहा आज का दिन अर्शी खान का आखिरी दिन है. विकास गुप्ता की यह बात सुनकर अर्शी खान का गुस्सा सातवें आसमान पर था. जिसके बाद अर्शी खान ने बिग बॉस के घर में जमकर बवाल किया था.

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अर्शी खान ने कहा मुझे गेम के बारे में सबकुछ पता है तुम मुझे नहीं समझाओ मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं. झिसके बाद अर्शी खान ने आरोप लगाए कि विकास गुप्ता अर्शी खान के करियर को तबाह करने के आरोप लगा चुके हैं. एक बार फिर वह यही करने की ताक में हैं.

 

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आगे अर्शी खान ने कहा कि बिग बॉस विकास गुप्ता से मिले हुए हैं. मैं सच पता करके रहूंगी. वहीं विकास गुप्ता ने जब अर्शी खान का यह रूप देखा तो कहा कि तुम्हें पाप लगेगा. भगवान तेरा बुरा करेगा. तब अर्शी खान ने कहा कि मैं तेरी वजह से 2 साल तक रोई हूं अब और ज्यादा नहीं रोना चाहती हूं.

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विकास गुप्ता इस बात पर इमोशनल हो गए. और बॉथरूम में जाकर रोने लगे. वह अपनी बात रोते हुए अभिनव शुक्ला को बता रहे थें और कहा कि मैंने कभी किसी का कैरियर तबाह नहीं किया है.शिल्पा शिंदे ने मेरे साथ काम करने से मना किया था.

ममता-भाग 3: माधुरी अपनी सास को क्यों नहीं समझ पा रही थी

उस की बात सुन कर मम्मीजी ने मुंह बिचका दिया था लेकिन जो घर नौकरों के द्वारा चलने से बेजान हो गया था माधुरी के हाथ लगाने मात्र से सजीव हो उठा था. इस बात को पापाजी और पल्लव के साथ मम्मीजी ने भी महसूस किया था.पल्लव, जो पहले रात में 10 बजे से पहले घर में कदम नहीं रखता था. वही अब ठीक 5 बजे घर आने लगा. यही हाल उस के पापाजी का भी था. एक बार भावुक हो कर पापा ने कहा भी था, ‘बेटा, तुम ने इस धर्मशाला बन चुके घर को पुन:

घर बना दिया. सचमुच जब तक घरवाली का हाथ घर में नहीं लगता तब तक घर सुव्यवस्थित नहीं हो पाता है.’एक बार पापाजी उस के हाथ के बने पनीर के पकवान की तारीफ कर रहे थे कि मम्मीजी चिढ़ कर बोलीं, ‘भई, मुझे तो बाहर के कामों से ही फुरसत नहीं है. इन बेकार के कामों के लिए समय कहां से निकालूं?’‘बाहर के लोगों के लिए समय है, किंतु घर वालों के लिए नहीं,’ तीखे स्वर में ससुरजी ने उत्तर दिया था जो सास के जरूरत से अधिक घर से बाहर रहने के कारण अब परेशान हो उठे थे.‘मैं अपनी पूरी जिंदगी घर में निठल्ले बैठे नहीं गुजार सकती. वैसे ही अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा इस परिवार को भेंट कर ही चुकी हूं, लेकिन अब और नहीं कर सकती,’ आक्रोश में सास ने उत्तर दिया था.‘मम्मीजी, घर में भी दूसरे सैकड़ों जरूरी काम हैं, यदि किए जाएं तो,’ कहना चाह कर भी माधुरी कह नहीं सकी थी. व्यर्थ ही उन का गुस्सा बढ़ जाता और हासिल कुछ भी न होता.

हो सकता है वे अपनी जगह ठीक हों वरना कौन पढ़ीलिखी औरत फालतू के कामों में अपनी पूरी जिंदगी बिताना चाहेगी.मम्मीजी का निर्णय अपना है. पर वह उस सचाई को कैसे भूल सकती है जिस के पीछे उस का भोगा हुआ अतीत छिपा है, तनहाइयां छिपी हैं, रुदन छिपा है, जिस को देखने का, पहचानने का उस के पालकों के पास समय ही नहीं था. उस समय उसे लगता था कि ऐसे दंपती संतान को जन्म ही क्यों देते हैं, जब उन के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है. वह बेचारा उन की प्यारभरी निगाह के लिए जीवनभर तड़पता ही रह जाता है लेकिन वह निगाह उसे नसीब नहीं होती. आज इंसान पैसों के पीछे भाग रहा है, लेकिन पैसों से मन की शांति, प्यार तो नहीं खरीदा जा सकता.एक बच्चे को जब मां की कोख की गरमी चाहिए तब उसे बोतल और पालना मिलता है, जब वह मां का हाथ पकड़ कर चलना चाहता है,

अपनी तोतली आवाज में दुनियाभर के प्रश्न पूछ कर अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहता है, तब उसे आया के हाथों में सौंप दिया जाता है या महानगरों में खुले के्रचों में, जहां उस का बचपन, उस की भावनाएं, उमंगें कुचल कर रह जाती हैं. वह एकाकीपन से इतना घबरा उठता है कि अकेले रहने मात्र से सिहर उठता है. उसे याद है कि वह 15 वर्ष तक अंगूठा पीती रही थी, अंगूठा चूसना उसे न केवल मानसिक तृप्ति देता था वरन आसपास किसी के रहने का एहसास भी कराता था. अचानक किसी को सामने पा कर चौंक उठना तथा ठीक से बातें न कर पाना भी उस की कमजोरी बन गई थी. इस कमजोरी के लिए भी सदा उसे ही दोषी ठहराया जाता रहा था.जब सब बच्चे स्कूल में छुट्टी होने पर खुश होते थे तब माधुरी चाहती थी कि कभी छुट्टी हो ही न, क्योंकि छुट्टी में वह और अकेली पड़ जाती थी.

मातापिता के काम पर जाने के बाद घर खाने को दौड़ता था. घर में सुखसुविधा का ढेरों सामान मौजूद रहने के बावजूद उस का बचपन सिसकता ही रह गया था. वह नहीं चाहती थी कि उस की संतानें भी उसी की तरह घुटघुट कर जीते हुए किसी अनहोनी का शिकार हों या मानसिक रोगी बन जाएं.बाद में पल्लव से ही पता चला था कि प्रारंभ में तो मम्मी पूरी तरह घरेलू ही थीं किंतु पापा के व्यापार में निरंतर मिलती सफलता के कारण वे अकेली होती गईं तथा समय गुजारने के लिए उन्होंने समाज सेवा प्रारंभ की. बढ़ती व्यस्तता के कारण घर को नौकरों पर छोड़ा जाने लगा और अब उन्होंने उस क्षेत्र में ऐसी जगह बना ली है कि जहां से लौटना उन के लिए न तो संभव है और शायद न ही उचित.‘‘बेटी, नाश्ता कर ले,’’ मम्मी का स्नेहिल स्वर उसे चौंका गया और वह अतीत की यादों से निकल कर वर्तमान में आ गई.‘‘न जाने तुम ने मम्मी पर क्या जादू कर दिया है कि सबकुछ छोड़ कर तुम्हारी तीमारदारी में लगी हैं,’’ मम्मीजी को आवश्यकता से अधिक उस की देखभाल करते देख पल्लव ने उसे चिढ़ाते हुए कहा था.‘‘क्यों नहीं करूंगी उस की देखभाल? तू तो सिर्फ मेरा बेटा ही है किंतु यह तो बहू होने के साथसाथ मेरी बेटी भी है तथा मेरे होने वाले पाते की मां भी है,’

’ मम्मीजी, जो पास में खड़े बेटे की बात सुन रही थीं, ने अपनी चिरपरिचित मुसकान के साथ कहा था.                  मम्मीजी जहां पहले एक दिन घर में रुकने के नाम पर भड़क जाती थीं, वहीं वह सप्ताहभर से अपने सारे कार्यक्रम छोड़ कर उस की देखभाल में लगी हैं. आज माधुरी को खुद पर ग्लानि हो रही थी. उस के मन में उन के लिए कितने कलुषित विचार थे. वास्तव में उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि स्त्री पहले मां है बाद में पत्नी या अन्य रूपों को जीती है. मां रूपी प्रेम का स्रोत कभी समाप्त नहीं होता. ममता कभी नहीं मरती.मम्मीजी उन स्त्रियों में से नहीं थीं जो घरपरिवार के लिए अपना पूर्ण जीवन समर्पित करना अपना ध्येय समझती हैं, वे उन से कहीं परे थीं, अलग थीं. अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने समाज में अपनी एक खास पहचान बनाई थी.अब उस की यह धारणा धूमिल होती जा रही थी कि समाज सेवा में लिप्त औरतें घर से बाहर रहने के लिए ही इस क्षेत्र में जाती हैं. कुछ अपवाद अवश्य हो सकते हैं.उसे लग रहा था कि बच्चों की जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद यदि संभव हो सका तो वह भी देश के गरीब और पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए अपना योगदान अवश्य देगी. फिलहाल तो उसे अपनी कोख में पलने वाले बच्चे की ओर ध्यान देना है,

जो उस की जरा सी असावधानी से मरतेरते बचा है. सोचतेसोचते उस ने करवट बदली और उसी के साथ ही उसे महसूस हुआ मानो वह कह रहा है, ‘ममा, जरा संभल कर, कहीं मुझे फिर से चोट न लग जाए.’‘नहीं बेटा, अब तुझे कुछ नहीं होगा. मैं हूं न तेरी देखभाल के लिए,’ माधुरी ने दोनों हाथों से बढ़े पेट को ऐसे थाम लिया मानो वह गिरते हुए अपने कलेजे के टुकड़े को पकड़ रही है. उस के चेहरे पर मातृत्व की गरिमा, अजन्मे के लिए अनोखा, अटूट प्रेम दिखाई दे रहा था.  द्य    मां अत्यंत ही महत्त्वाकांक्षी थीं. यही कारण था कि दादी के बारबार यह कहने पर कि वंश चलाने के लिए बेटा होना ही चाहिए, उन्होंने ध्यान नहीं दिया था. उन का कहना था कि आज के युग में लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं रह गया है.

 

 

ममता-भाग 2: माधुरी अपनी सास को क्यों नहीं समझ पा रही थी

‘क्या एक लड़की और लड़के में सिर्फ मित्रता नहीं हो सकती. यह शादीविवाह की बात बीच में कहां से आ गई?’ पल्लव ने तीखे स्वर में कहा था.‘मैं मान ही नहीं सकता. नर और मादा में बिना आकर्षण के मित्रता संभव ही नहीं है. भला प्रकृति के नियमों को तुम दोनों कैसे झुठला सकते हो? वह भी इस उम्र में,’ शांतनु ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा.शांतनु तो कह कर चला गया, किंतु नदी की शांत लहरों में पत्थर फेंक गया था. पिछली बातों पर ध्यान गया तो लगा कि शांतनु की बातों में दम है, जिस बात को वे दोनों नहीं समझ सके या समझ कर भी अनजान बने रहे, उस आकर्षण को उस की पारखी निगाहों ने भांप लिया था. गंभीरतापूर्वक सोचविचार कर आखिरकार माधुरी ने ही उचित अवसर पर एक दिन पल्लव से कहा, ‘यदि हम अपनी इस मित्रता को रिश्ते में नहीं बदल सकते तो इसे तोड़ देना ही उचित होगा, क्योंकि आज शांतनु ने संदेह किया है,

कल दूसरा करेगा तथा परसों तीसरा. हम किसकिस का मुंह बंद कर पाएंगे. आज हम खुद को कितना ही आधुनिक क्यों न कह लें किंतु कहीं न कहीं हम अपनी परंपराओं से बंधे हैं और ये परंपराएं एक सीमा तक ही उन्मुक्त आचरण की इजाजत देती हैं.’ पल्लव को भी लगा कि जिस को वह अभी तक मात्र मित्रता समझता रहा वह वास्तव में प्यार का ही एक रूप है, अत: उस ने अपने मातापिता को इस विवाह के लिए तैयार कर लिया. पल्लव के पिताजी बहुत बड़े व्यवसायी थे. वे खुले विचारों के थे इसलिए अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार में करने को तैयार हो गए. मम्मीजी ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि जातिपांति पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यदि उन्हें लड़की पसंद आई तभी वे इस विवाह की इजाजत देंगी.माधुरी के मातापिता अतिव्यस्त अवश्य थे किंतु अपने संस्कारों तथा रीतिरिवाजों को नहीं छोड़ पाए थे इसलिए विजातीय पल्लव से विवाह की बात सुन कर पहले तो काफी क्रोधित हुए थे और विरोध भी किया था, लेकिन बेटी की दृढ़ता तथा निष्ठा देख कर आखिरकार तैयार हो गए थे तथा उस परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की थी.

दोनों परिवारों की इच्छा एवं सुविधानुसार होटल में मुलाकात का समय निर्धारित किया गया था. बातों का सूत्र भी मम्मीजी ने ही संभाल रखा था. पंकज और पल्लव तो मूकदर्शक ही थे. उन का जो भी निर्णय होता उसी पर उन्हें स्वीकृति की मुहर लगानी थी. यह बात जान कर माधुरी अत्यंत तनाव में थी तथा पल्लव भी मांजी की स्वीकृति का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.बातोंबातों में मां ने झिझक कर कहा था, ‘बहनजी, माधुरी को हम ने लाड़प्यार से पाला है, इस की प्रत्येक इच्छा को पूरा करने का प्रयास किया है. इस के पापा ने तो इसे कभी रसोई में घुसने ही नहीं दिया.’‘रसोई में तो मैं भी कभी नहीं गई तो यह क्या जाएगी,’ बात को बीच में ही काट कर गर्वभरे स्वर के साथ मम्मीजी ने कहा. मम्मीजी के इस वाक्य ने अनिश्चितता के बादल हटा दिए थे तथा पल्लव और माधुरी को उस पल एकाएक ऐसा महसूस हुआ कि मानो सारा आकाश उन की मुट्ठियों में समा गया हो. उन के स्वप्न साकार होने को मचलने लगे थे तथा शीघ्र ही शहनाई की धुन ने 2 शरीरों को एक कर दिया था.पल्लव के परिवार तथा माधुरी के परिवार के रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर था. समानता थी तो सिर्फ इस बात में कि मम्मीजी भी मां की तरह घर को नौकरों के हाथ में छोड़ कर समाजसेवा में व्यस्त रहती थीं.

अंतर इतना था कि वहां एक नौकर था तथा यहां 4, मां नौकरी करती थीं तो ससुराल में सास समाजसेवा से जुड़ी थीं.मम्मीजी नारी मुक्ति आंदोलन जैसी अनेक संस्थाओं से जुड़ी हुई थीं, जहां गरीब और सताई गई स्त्रियों को न्याय और संरक्षण दिया जाता था. उन्होंने शुरू में उसे भी अपने साथ चलने के लिए कहा और उन का मन रखने के लिए वह गई भी, किंतु उसे यह सब कभी अच्छा नहीं लगा था. उस का विश्वास था कि नारी मुक्ति आंदोलन के नाम पर गरीब महिलाओं को गुमराह किया जा रहा है. एक महिला जिस पर अपने घरपरिवार का दायित्व रहता है, वह अपने घरपरिवार को छोड़ कर दूसरे के घरपरिवार के बारे में चिंतित रहे, यह कहां तक उचित है? कभीकभी तो ऐसी संस्थाएं अपने नाम और शोहरत के लिए भोलीभाली युवतियों को भड़का कर स्थिति को और भी भयावह बना देती हैं. उसे आज भी याद है कि उस की सहेली नीता का विवाह दिनेश के साथ हुआ था. एक दिन दिनेश अपने मित्रों के कहने पर शराब पी कर आया था तथा नीता के टोकने पर नशे में उस ने नीता को चांटा मार दिया. यद्यपि दूसरे दिन दिनेश ने माफी मांग ली थी तथा फिर से ऐसा न करने का वादा तक कर लिया था, किंतु नीता, जो महिला मुक्ति संस्था की सदस्य थी, ने इस बात को ऐसे पेश किया कि उस की ससुराल की इज्जत तो गई ही,

साथ ही तलाक की स्थिति भी आ गई और आज उस का फल उन के मासूम बच्चे भोग रहे हैं.ऐसा नहीं है कि ये संस्थाएं भलाई का कोई काम ही नहीं करतीं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि किसी भी प्रतिष्ठान की अच्छाइयां छिप जाती हैं जबकि बुराइयां न चाहते हुए भी उभर कर सामने आ जाती हैं.वास्तव में स्त्रीपुरुष का संबंध अटूट विश्वास, प्यार और सहयोग पर आधारित होता है. जीवन एक समझौता है. जब 2 अजनबी सामाजिक दायित्वों के निर्वाह हेतु विवाह के बंधन में बंधते हैं तो उन्हें एकदूसरे की अच्छाइयों के साथसाथ बुराइयों को भी आत्मसात करने का प्रयत्न करना चाहिए. प्रेम और सद्भाव से उस की कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए, न कि लड़झगड़ कर अलग हो जाना चाहिए.मम्मीजी की आएदिन समाचारपत्रों में फोटो छपती. कभी वह किसी समारोह का उद्घाटन कर रही होतीं तो कभी विधवा विवाह पर अपने विचार प्रकट कर रही होतीं, कभी वह अनाथाश्रम जा कर अनाथों को कपड़े बांट रही होतीं तो कभी किसी गरीब को अपने हाथों से खाना खिलाती दिखतीं.

वह अत्यंत व्यस्त रहती थीं. वास्तव में वह एक सामाजिक शख्सियत बन चुकी थीं, उन का जीवन घरपरिवार तक सीमित न रह कर दूरदराज तक फैल गया था. वह खुद ऊंची, बहुत ऊंची उठ चुकी थीं, लेकिन घर उपेक्षित रह गया था, जिस का खमियाजा परिवार वालों को भुगतना पड़ा था. घर में कीमती चीजें मौजूद थीं किंतु उन का उपयोग नहीं हो पाता था.मम्मीजी ने समय गुजारने के लिए उसे किसी क्लब की सदस्यता लेने के लिए कहा था किंतु उस ने अनिच्छा जाहिर कर दी थी. उस के अनुसार घर की 24 घंटे की नौकरी किसी काम से कम तो नहीं है. जहां तक समय गुजारने की बात है उस के लिए घर में ही बहुत से साधन मौजूद थे. उसे पढ़नेलिखने का शौक था, उस के कुछ लेख पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो चुके थे. वह घर में रहते हुए अपनी इन रुचियों को पूरा करना चाहती थी.यह बात अलग है कि घर के कामों में लगी रहने वाली महिलाओं को शायद वह इज्जत और शोहरत नहीं मिल पाती है जो बाहर काम करने वाली को मिलती है. घरेलू औरतों को हीनता की नजर से देखा जाता है लेकिन माधुरी ने स्वेच्छा से घर के कामों से अपने को जोड़ लिया था. घर के लोग, यहां तक कि पल्लव ने भी यह कह कर विरोध किया था कि नौकरों के रहते क्या उस का काम करना उचित लगेगा. तब उस ने कहा था कि ‘अपने घर का काम अपने हाथ से करने में क्या बुराई है, वह कोई निम्न स्तर का काम तो कर नहीं रही है. वह तो घर के लोगों को अपने हाथ का बना खाना खिलाना चाहती है. घर की सजावट में अपनी इच्छानुसार बदलाव लाना चाहती है और इस में भी वह नौकरों की सहायता लेगी, उन्हें गाइड करेगी.

सच्चा प्यार : रेनू और मोहन का प्यार भी बेमेल था

न जाने क्यों रेनू दीदी ने 40 साल की आयु होने के बाद भी शादी नहीं की जबकि उन की छोटी बहन मीनू ने उम्र होते ही शादी कर ली थी और उस की एक बेटी भी थी. रेनू, मीनू और मीनू के पति सब एक ही स्कूल में पढ़ाते थे और इन्हीं के स्टाफ में मोहन भी था. स्वभाव से शर्मीले मोहन ने अपने से 15 वर्ष बड़ी लेकिन नाजुक सी रेनू में न जाने क्या देखा कि वे उन्हें बेइंतहा पसंद करने लगे. पूरे स्कूल में यह बात बच्चेबच्चे को पता चल गई थी. लेकिन कभी किसी ने मोहन को कोई अनुचित हरकत करते नहीं देखा.

बड़ा ही रूमानी प्यार था मोहन का. रेनू ने हमेशा मोहन को समझाया, अपनी उम्र का वास्ता दिया, समाज का नजरिया दिखाया. हर तरह से उन्होंने मोहन सर को इस मोहजाल से निकालने की कोशिश की. मोहन नहीं माना. उस पर तो उस नाजुक सी परी का जादू चल गया था, जो बोलती थी तो लगता था फूल झड़ रहे हैं, बहुत धीरे से मुसकराते हुए हलकेहलके, जैसे खुशबुओं से भरी हवा हलके से छू जाए. सारे बच्चे रेनू दीदी के फैन थे. वे हर वक्त बच्चों से घिरी रहतीं.

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मोहन सर की चाहत थी या पत्थर की लकीर, वे टस से मस नहीं हुए. 3-4 साल तक तो रेनू उन को नकारती रहीं लेकिन कब तक, आखिर उन को मोहन सर के प्यार के आगे झुकना ही पड़ा. सारे स्टाफ की मौजूदगी में दोनों ने बहुत ही साधारण तरीके से शादी कर ली. न कोई दिखावा, न ही कोई ढकोसला. लेकिन मोहन सर की मां इस शादी से खुश नहीं थीं. उन्होंने तो अपने बेटे के लिए छोटी उम्र की मिलतीजुलती लड़की देख रखी थी. लेकिन मां की एक न चल सकी. आखिर मोहन सर रेनू को ब्याह कर घर ले ही आए. मां ने इस से पहले रेनू को कभी नहीं देखा था.

जब दूल्हादुलहन की आरती के लिए मां दरवाजे पर आईं तो दुलहन को देख कर बेहोश हो गईं. लोगों ने खूब बातें बनाईं. रेनू को बहुत दुख हुआ. वे जिस बात से अब तक बचना चाह रही थीं, आखिर वह ही पल उन के जीवन में उन की आंखों के सामने था. खैर, मां उन दोनों से नाराज ही रहीं. समय बीतता गया और अब उन दोनों का प्यार दोतरफा हो गया था. मोहन सर रेनू को अपनी जिंदगी बना कर बहुत खुश थे. न उन्हें मां कि परवा थी और न ही जमाने की. सुबह दोनों स्कूल चले जाते और स्कूल के बाद एकदूसरे को जीभर कर खुशियां देते. रेनू दीदी अब तक मेनोपौज से गुजर चुकी थीं, इसलिए उन की संतान होने की कोई संभावना ही नहीं थी. मगर, मजाल है जो मोहन सर को किसी भी चीज का कोई मलाल हो.

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वे तो रेनू को पा कर इतना खुश थे कि मानो उन्हें पूरी दुनिया मिल गई हो. और उन का प्यार देख कर रेनू दीदी निहाल थीं. उन्हें जीवन के इस दौर में जीवनसाथी मिलेगा, इस की तो उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी क्योंकि वे तो शादी करना ही नहीं चाहती थीं. कितने ही रिश्ते ठुकरा कर वे इस उम्र तक कुंआरी ही थीं. मगर ये मोहन सर के प्यार का असर था जो रेनू दीदी को उन के लिए हां कहना ही पड़ा. बहुत हंसीखुशी से वक्त पंख लगा कर उड़ रहा था कि अचानक रेनू दीदी को ब्रेन हेमरेज हो गया. उन का शरीर पत्थर का हो गया, वे जड़ हो चुकी थीं. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी उन का शरीर हरकत में नहीं आया. वे एकटक मोहन सर को देखती रहतीं और आंखों से आंसू बहातीं.

मोहन सर ने भी उन को ठीक करने में अपनी जीजान लगा दी, मगर वे ठीक नहीं हुईं. डाक्टरों ने अब जवाब दे दिया था. थकहार कर मोहन सर को उन्हें घर वापस लाना पड़ा. मगर उन का प्यार एक रत्ती भी कम नहीं हुआ. वे उन का चौबीसों घंटे खयाल रखते, अपने हाथों से उन्हें नहलाते, खाना खिलाते, उन के बाल संवारते और तरहतरह की बातें कर उन का दिल बहलाते. रेनू दीदी चाह कर भी मोहन सर के आगे कभी रोती नहीं थीं, क्योंकि वे जानती थीं कि उन के लिए उन का प्यार अनमोल था. मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था. उस से उन दोनों का प्यार शायद देखा नहीं गया. एक दिन मोहन सर को रोतेबिलखते छोड़ कर रेनू दीदी इस दुनिया से चल बसीं. मोहन सर की तो दुनिया ही उजड़ गईर् थी.

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वे ही जानते होंगे कि उन्होंने कैसे इस मुश्किल घड़ी में खुद को संभाला होगा. यह प्रेम कहानी मेरे दिलोदिमाग से कभी नहीं उतरती. रेनू दीदी मोहन सर का प्यार पा कर अमर हो गईं. उन्हें कुछ ही सालों में जिंदगी का वह सुख मिला जो हर स्त्री की चाहत होती है. मुझे लगता है रेनू दीदी पूर्ण और तृप्त हो कर गई हैं इस दुनिया से. कुछ सालों तक मोहन सर रेनू दीदी के गम में डूबे रहे, लेकिन फिर उन्हें अपनी मां की मरजी से शादी करनी पड़ी. पता नहीं आज वे खुश हैं या नहीं.

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और हैं भी तो कहां हैं, आज किसी को उन के बारे में कुछ नहीं पता. लेकिन याद है तो, बस, यही कि समाज के खिलाफ जा कर उन्होंने अपने से 15 साल बड़ी लड़की से शादी की थी. आजकल एक नया फैशन चला हुआ है अपने से बड़ी उम्र की महिलाओं को प्रेम प्रस्ताव रखना, वह भी अविवाहित नहीं, विवाहित महिलाओं से. पता नहीं यह कहां तक सही है, और सही है भी या नहीं. मगर जब भी ऐसा कुछ देखती या सुनती हूं तो रेनू दीदी की यादें ताजा हो जाती हैं और दिल कहता है, एक थीं रेनू दीदी.

ममता-भाग 1: माधुरी अपनी सास को क्यों नहीं समझ पा रही थी

बचपन से ही मातापिता के स्नेह से वंचित माधुरी जब ससुराल गई तो वहां भी पल्लव के प्यार के सिवा सासससुर दोनों को ही बाहर की जिंदगी जीते देख उसे बड़ी ठेस पहुंची. लेकिन उस की तकलीफ के बीच जब सासुमां ने जिस तरह उस का खयाल रखा उस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.  माधुरी को आज बिस्तर पकड़े  8 दिन हो गए थे. पल्लव के मित्र अखिल के विवाह से लौट कर कार में बैठते समय अचानक पैर मुड़ जाने के कारण वह गिर गई थी. पैर में तो मामूली मोच आई थी किंतु अचानक पेट में दर्द शुरू होने के कारण उस की कोख में पल रहे बच्चे की सुरक्षा के लिए उस के पारिवारिक डाक्टर ने उसे 15 दिन बैड रैस्ट की सलाह दी थी.

अपनी सास को इन 8 दिनों में हर पल अपनी सेवा करते देख उस के मन में उन के प्रति जो गलत धारणा बनी थी एकएक कर टूटती जा रही थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि मनोविज्ञान की छात्रा होने के बाद भी वह अपनी सास को समझने में चूक कैसे गई?उसे 2 वर्ष पहले का वह दिन याद आया जब मम्मीजी अपने पति पंकज और पुत्र पल्लव के साथ उसे देखने आई थीं. सुगठित शरीर के साथ सलीके से बांधी गई कीमती साड़ी, बौबकट घुंघराले बाल, हीरों का नैकलेस, लिपस्टिक तथा तराशे नाखूनों में लगी मैचिंग नेलपौलिश में वे बेहद सुंदर लग रही थीं. सच कहें तो वे पल्लव की मां कम बड़ी बहन ज्यादा नजर आ रही थीं तथा मन में बैठी सास की छवि में वह कहीं फिट नहीं हो पा रही थीं. उस समय उस ने तो क्या उस के मातापिता ने भी सोचा था कि इस दबंग व्यक्तित्व में कहीं उन की मासूम बेटी का व्यक्तित्व खो न जाए. वह उन के घर में खुद को समाहित भी कर पाएगी या नहीं. मन में संशय छा गया था लेकिन पल्लव की नशीली आंखों में छाए प्यार एवं अपनत्व को देख कर उस का मन सबकुछ सहने को तैयार हो गया था.

यद्यपि उस के मातापिता उच्चाधिकारी थे, किंतु मां को सादगी पसंद थी, उस ने उन्हें कभी भी गहनों से लदाफदा नहीं देखा था. वे साड़ी पहनती तो क्या, सिर्फ लपेट लेती थीं. लिपस्टिक और नेलपौलिश तो उन्होंने कभी लगाई ही नहीं थी. उन के अनुसार उन में पड़े रसायन त्चचा को नुकसान पहुंचाते हैं. वैसे भी उन्हें अपने काम से फुरसत नहीं मिलती थी.पापा को अच्छी तरह से रहने, खानेपीने और घूमने का शौक था. उन की  पैंटशर्ट में तो दूर रूमाल में भी कोई दागधब्बा रहने पर वे आसमान सिर पर उठा लेते थे. खानेपीने तथा घूमने का शौक भी मां के नौकरी करने के कारण पूरा नहीं हो पाया था, क्योंकि जब मां को छुट्टी मिलती थी तब पापा को नहीं मिल पाती थी और जब पापा को छुट्टी मिलती तब मां का कोई अतिआवश्यक काम आ जाता था. उन के घर रिश्तेदारों का आना भी बंद हो गया था, क्योंकि उन्हें लगता था कि यहां आने पर मेजबान की परेशानियां बढ़ जाती हैं तथा उन्हें व्यर्थ की छुट्टी लेनी पड़ती है.

अत: वे भी कह देते थे, जब आप लोगों का मिलने का मन हो तब आ कर मिल जाइए.मां का अपने प्रति ढीलापन देख कर पापा टोकते तो वे बड़ी सरलता से उत्तर देतीं, ‘व्यक्ति कपड़ों से नहीं, अपने गुणों से पहचाना जाता है और यह भी एक सत्य है कि आज मैं जो कुछ हूं अपने गुणों के कारण हूं.’ वेएक प्राइवेट संस्थान में पर्सनल मैनेजर थीं. कभीकभी औफिस के काम से उन्हें टूर पर भी जाना पड़ता था. घर का काम नौकर के जिम्मे था, वह जो भी बना देता सब वही खा लेते थे. मातापिता का प्यार क्या होता है उसे पता ही नहीं था. जब वे छोटी थीं तब बीमार होने पर उस ने दोनों में इस बात पर झगड़ा होते भी देखा था कि उस की देखभाल के लिए कौन छुट्टी लेगा? तब वह खुद को अत्यंत ही उपेक्षित महसूस करती थी. उसे लगता था कि उस की किसी को जरूरत ही नहीं है.मां अत्यंत ही महत्त्वाकांक्षी थीं. यही कारण था कि दादी के बारबार यह कहने पर कि वंश चलाने के लिए बेटा होना ही चाहिए, उन्होंने ध्यान नहीं दिया था. उन का कहना था कि आज के युग में लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं रह गया है.

बस, परवरिश अच्छी तरह से होनी चाहिए लेकिन वे अच्छी तरह परवरिश भी कहां कर पाई थीं? जब तक दादी थीं तब तक तो सब ठीक चलता रहा, लेकिन उन के बाद वह नितांत अकेली हो गई थी. स्कूल से लौटने के बाद घर उसे काटने को दौड़ता था, तब उसे एक नहीं अनेक बार खयाल आया था कि काश, उस के साथ खेलने के लिए कोई भाई या बहन होती.माधुरी को आज भी याद है कि हायर सेकेंडरी की परीक्षा से पहले मैडम सभी विद्यार्थियों से पूछ रही थीं कि वे जीवन में क्या बनना चाहते हैं? कोई डाक्टर बनना चाहता था तो कोई इंजीनियर, किसी की रुचि वैज्ञानिक बनने में थी तो कोई टीचर बनना चाहता था. जब उस की बारी आई तो उस ने कहा कि वह हाउस वाइफ बनना चाहती है. सभी विद्यार्थी उस के उत्तर पर खूब हंसे थे. तब मैडम ने मुसकराते हुए कहा था, ‘हाउस वाइफ के अलावा तुम और क्या बनना चाहोगी?’ उस ने चारों ओर देखते हुए आत्मविश्वास से कहा था, ‘घर की देखभाल करना एक कला है और मैं वही अपनाना चाहूंगी.’उस की इस इच्छा के पीछे शायद मातापिता का अतिव्यस्त रहना रहा था और इसी अतिव्यस्तता के कारण वे उस की ओर समुचित ध्यान नहीं दे पाए थे और शायद यही कारण था कि वह अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए पल्लव की तरफ आकर्षित हुई थी, जो उस की तरह कालेज में बैडमिंटन टीम का चैंपियन था.

वे दोनों एक ही क्लब में अभ्यास के लिए जाया करते थे. खेलतेखेलते उन में न जाने कब जानपहचान हो गई, पता ही न चला. उस से बात करना, उस के साथ घूमना उसे अच्छा लगने लगा था. दोनों साथसाथ पढ़ते, घूमते तथा खातेपीते थे, यहां तक कि कभीकभी फिल्म भी देख आते थे, पर विवाह का खयाल कभी उन के मन में नहीं आया था. शायद मातापिता के प्यार से वंचित उस का मन पल्लव के साथ बात करने से हलका हो जाता था.‘यार, कब तक प्यार की पींगें बढ़ाता रहेगा? अब तो विवाह के बंधन में बंध जा,’ एक दिन बातोंबातों में पल्लव के दोस्त शांतनु ने कहा था. क्या एक लड़की और लड़के में सिर्फ मित्रता नहीं हो सकती. यह शादीविवाह की बात बीच में कहां से आ गई?’ पल्लव ने तीखे स्वर में कहा था.‘मैं मान ही नहीं सकता. नर और मादा में बिना आकर्षण के मित्रता संभव ही नहीं है. भला प्रकृति के नियमों को तुम दोनों कैसे झुठला सकते हो? वह भी इस उम्र में,’ शांतनु ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा.शांतनु तो कह कर चला गया, किंतु नदी की शांत लहरों में पत्थर फेंक गया था. पिछली बातों पर ध्यान गया तो लगा कि शांतनु की बातों में दम है, जिस बात को वे दोनों नहीं समझ सके या समझ कर भी अनजान बने रहे, उस आकर्षण को उस की पारखी निगाहों ने भांप लिया था.

गंभीरतापूर्वक सोचविचार कर आखिरकार माधुरी ने ही उचित अवसर पर एक दिन पल्लव से कहा, ‘यदि हम अपनी इस मित्रता को रिश्ते में नहीं बदल सकते तो इसे तोड़ देना ही उचित होगा, क्योंकि आज शांतनु ने संदेह किया है, कल दूसरा करेगा तथा परसों तीसरा. हम किसकिस का मुंह बंद कर पाएंगे. आज हम खुद को कितना ही आधुनिक क्यों न कह लें किंतु कहीं न कहीं हम अपनी परंपराओं से बंधे हैं और ये परंपराएं एक सीमा तक ही उन्मुक्त आचरण की इजाजत देती हैं.’ पल्लव को भी लगा कि जिस को वह अभी तक मात्र मित्रता समझता रहा वह वास्तव में प्यार का ही एक रूप है, अत: उस ने अपने मातापिता को इस विवाह के लिए तैयार कर लिया. पल्लव के पिताजी बहुत बड़े व्यवसायी थे. वे खुले विचारों के थे इसलिए अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार में करने को तैयार हो गए. मम्मीजी ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि जातिपांति पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यदि उन्हें लड़की पसंद आई तभी वे इस विवाह की इजाजत देंगी.माधुरी के मातापिता अतिव्यस्त अवश्य थे किंतु अपने संस्कारों तथा रीतिरिवाजों को नहीं छोड़ पाए थे इसलिए विजातीय पल्लव से विवाह की बात सुन कर पहले तो काफी क्रोधित हुए थे और विरोध भी किया था, लेकिन बेटी की दृढ़ता तथा निष्ठा देख कर आखिरकार तैयार हो गए थे तथा उस परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की थी.दोनों परिवारों की इच्छा एवं सुविधानुसार होटल में मुलाकात का समय निर्धारित किया गया था. बातों का सूत्र भी मम्मीजी ने ही संभाल रखा था. पंकज और पल्लव तो मूकदर्शक ही थे.

उन का जो भी निर्णय होता उसी पर उन्हें स्वीकृति की मुहर लगानी थी. यह बात जान कर माधुरी अत्यंत तनाव में थी तथा पल्लव भी मांजी की स्वीकृति का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.बातोंबातों में मां ने झिझक कर कहा था, ‘बहनजी, माधुरी को हम ने लाड़प्यार से पाला है, इस की प्रत्येक इच्छा को पूरा करने का प्रयास किया है. इस के पापा ने तो इसे कभी रसोई में घुसने ही नहीं दिया.’‘रसोई में तो मैं भी कभी नहीं गई तो यह क्या जाएगी,’ बात को बीच में ही काट कर गर्वभरे स्वर के साथ मम्मीजी ने कहा. मम्मीजी के इस वाक्य ने अनिश्चितता के बादल हटा दिए थे तथा पल्लव और माधुरी को उस पल एकाएक ऐसा महसूस हुआ कि मानो सारा आकाश उन की मुट्ठियों में समा गया हो. उन के स्वप्न साकार होने को मचलने लगे थे तथा शीघ्र ही शहनाई की धुन ने 2 शरीरों को एक कर दिया था.पल्लव के परिवार तथा माधुरी के परिवार के रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर था. समानता थी तो सिर्फ इस बात में कि मम्मीजी भी मां की तरह घर को नौकरों के हाथ में छोड़ कर समाजसेवा में व्यस्त रहती थीं.

अंतर इतना था कि वहां एक नौकर था तथा यहां 4, मां नौकरी करती थीं तो ससुराल में सास समाजसेवा से जुड़ी थीं.मम्मीजी नारी मुक्ति आंदोलन जैसी अनेक संस्थाओं से जुड़ी हुई थीं, जहां गरीब और सताई गई स्त्रियों को न्याय और संरक्षण दिया जाता था. उन्होंने शुरू में उसे भी अपने साथ चलने के लिए कहा और उन का मन रखने के लिए वह गई भी, किंतु उसे यह सब कभी अच्छा नहीं लगा था. उस का विश्वास था कि नारी मुक्ति आंदोलन के नाम पर गरीब महिलाओं को गुमराह किया जा रहा है. एक महिला जिस पर अपने घरपरिवार का दायित्व रहता है, वह अपने घरपरिवार को छोड़ कर दूसरे के घरपरिवार के बारे में चिंतित रहे, यह कहां तक उचित है? कभीकभी तो ऐसी संस्थाएं अपने नाम और शोहरत के लिए भोलीभाली युवतियों को भड़का कर स्थिति को और भी भयावह बना देती हैं. उसे आज भी याद है कि उस की सहेली नीता का विवाह दिनेश के साथ हुआ था. एक दिन दिनेश अपने मित्रों के कहने पर शराब पी कर आया था तथा नीता के टोकने पर नशे में उस ने नीता को चांटा मार दिया. यद्यपि दूसरे दिन दिनेश ने माफी मांग ली थी तथा फिर से ऐसा न करने का वादा तक कर लिया था, किंतु नीता, जो महिला मुक्ति संस्था की सदस्य थी, ने इस बात को ऐसे पेश किया कि उस की ससुराल की इज्जत तो गई ही, साथ ही तलाक की स्थिति भी आ गई और आज उस का फल उन के मासूम बच्चे भोग रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि ये संस्थाएं भलाई का कोई काम ही नहीं करतीं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि किसी भी प्रतिष्ठान की अच्छाइयां छिप जाती हैं जबकि बुराइयां न चाहते हुए भी उभर कर सामने आ जाती हैं.वास्तव में स्त्रीपुरुष का संबंध अटूट विश्वास, प्यार और सहयोग पर आधारित होता है. जीवन एक समझौता है. जब 2 अजनबी सामाजिक दायित्वों के निर्वाह हेतु विवाह के बंधन में बंधते हैं तो उन्हें एकदूसरे की अच्छाइयों के साथसाथ बुराइयों को भी आत्मसात करने का प्रयत्न करना चाहिए. प्रेम और सद्भाव से उस की कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए, न कि लड़झगड़ कर अलग हो जाना चाहिए.मम्मीजी की आएदिन समाचारपत्रों में फोटो छपती. कभी वह किसी समारोह का उद्घाटन कर रही होतीं तो कभी विधवा विवाह पर अपने विचार प्रकट कर रही होतीं, कभी वह अनाथाश्रम जा कर अनाथों को कपड़े बांट रही होतीं तो कभी किसी गरीब को अपने हाथों से खाना खिलाती दिखतीं. वह अत्यंत व्यस्त रहती थीं.

वास्तव में वह एक सामाजिक शख्सियत बन चुकी थीं, उन का जीवन घरपरिवार तक सीमित न रह कर दूरदराज तक फैल गया था. वह खुद ऊंची, बहुत ऊंची उठ चुकी थीं, लेकिन घर उपेक्षित रह गया था, जिस का खमियाजा परिवार वालों को भुगतना पड़ा था. घर में कीमती चीजें मौजूद थीं किंतु उन का उपयोग नहीं हो पाता था.मम्मीजी ने समय गुजारने के लिए उसे किसी क्लब की सदस्यता लेने के लिए कहा था किंतु उस ने अनिच्छा जाहिर कर दी थी. उस के अनुसार घर की 24 घंटे की नौकरी किसी काम से कम तो नहीं है. जहां तक समय गुजारने की बात है उस के लिए घर में ही बहुत से साधन मौजूद थे. उसे पढ़नेलिखने का शौक था, उस के कुछ लेख पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो चुके थे. वह घर में रहते हुए अपनी इन रुचियों को पूरा करना चाहती थी.यह बात अलग है कि घर के कामों में लगी रहने वाली महिलाओं को शायद वह इज्जत और शोहरत नहीं मिल पाती है जो बाहर काम करने वाली को मिलती है. घरेलू औरतों को हीनता की नजर से देखा जाता है लेकिन माधुरी ने स्वेच्छा से घर के कामों से अपने को जोड़ लिया था.

घर के लोग, यहां तक कि पल्लव ने भी यह कह कर विरोध किया था कि नौकरों के रहते क्या उस का काम करना उचित लगेगा. तब उस ने कहा था कि ‘अपने घर का काम अपने हाथ से करने में क्या बुराई है, वह कोई निम्न स्तर का काम तो कर नहीं रही है. वह तो घर के लोगों को अपने हाथ का बना खाना खिलाना चाहती है. घर की सजावट में अपनी इच्छानुसार बदलाव लाना चाहती है और इस में भी वह नौकरों की सहायता लेगी, उन्हें गाइड करेगी.

Crime Story: 10 करोड़ की ठगी करने वाले नाइजीरियन

सौजन्या-सत्यकथा

नाइजीरिया के कई गिरोह दिल्ली में रह कर लोगों से पहले फेसबुक के माध्यम से दोस्ती करते हैं और फिर मोटा गिफ्ट भेजने के नाम पर ठगी करते हैं. ऐसे गिरोह में लड़कियां भी होती हैं. यह सारा लालच का खेल है. जो लालच में फंसा, समझो उस के 5-10 लाख रुपए गए. आश्चर्य की बात यह कि इस के शिकार पढ़ेलिखे लोग होते हैं. डाक्टर साधना भी…

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पीजीआई अस्पताल के पास फ्लैट में रहने वाली डाक्टर साधना कुमार अस्पताल में काम करने के साथसाथ प्राइवेट अस्पताल में भी मरीजों को देखने का काम करती थीं. उन के मन में था कि अगर यूएसए यानी अमेरिका में उन की जौब लग जाए तो वहां जाने से जिंदगी संवर सकती है.

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तमाम महिलाओं की तरह डाक्टर साधना फेसबुक और इंस्टाग्राम पर बहुत एक्टिव रहती थीं. कई बार रात को जब समय मिलता तो फेसबुक और मैसेंजर पर फ्रैंडलिस्ट में शामिल लोगों से बातचीत भी करती थीं. अगस्त माह की बात होगी. एक दिन उन्होंने देखा कि उन के फेसबुक पर अमेरिका में रहने वाले डेविड एलेक्स नाम के अमेरिकी युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई हुई थी.

डाक्टर साधना के मन में अमेरिका में रहने और किसी अमेरिकी से करीबी संबंध बनाने की इच्छा बलवती हुई. डेविड एलेक्स की प्रोफाइल देखने से लग रहा था कि वह युवा है. एलेक्स अमेरिका की कई मैडिकल संस्थाओं से भी जुड़ा था. ऐसे में डाक्टर साधना को लगा कि उस के साथ परिचय और फेसबुक पर जानपहचान करने में कोई बुराई नहीं है.

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साधना ने डेविड एलेक्स की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार करते ही 5 मिनट में उधर से फेसबुक मैसेंजर पर ‘हेलो’ का मैसेज आया. साधना ने भी ‘हेलो’ कहा. इस के बाद दोनों के बीच फेसबुक मैसेंजर पर चैटिंग का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे उन की आपस में तमाम तरह की बातें होने लगीं.हो गई दोस्ती साधना व्यस्तता के चलते आमतौर पर रात में ही अपना फेसबुक खोल पाती थी. वह जब भी अपना फेसबुक खोलती तो मैसेजर पर कोई ना कोई मैसेज पड़ा होता था. साधना और डेविड एलेक्स के बीचबातचीत शुरू हुए एक महीने से अधिक का समय बीत गया था.

अक्तूबर महीने में दशहरे और नवरात्रि का त्यौहार आया. इस दौरान साधना ने दोनों फेस्टिवल की तैयारियों के अपने फोटो फेसबुक पर पोस्ट किए. डेविड एलेक्स ने बधाई दी और इस के बाद मैसेंजर पर दोनों त्यौहारों के बारें में बातें भी कीं. अंत में डेविड एलेक्स ने साधना को लिखा, ‘दोस्त, मैं तुम्हें कुछ उपहार भेजना चाहता हूं.’

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साधना ने लिखा, ‘इस की जरूरत नहीं है. बिना उपहार के भी दोस्ती चलती है. जब हम मिलेंगे तब उपहार लेंगे. आप को जब इंडिया आना हो तो लखनऊ भी आना, आप से मिल कर अच्छा लगेगा.’डेविड एलेक्स ने साधना की बात नहीं मानी और उन्हें उपहार देने के लिए मना लिया और उन का पोस्टल एड्रैस और फोन नंबर भी ले लिया.

अब दोनों के बीच फेसबुक के साथसाथ वाट्सऐप पर भी बातचीत होने लगी. बातचीत में डेविड एलेक्स बहुत सज्जन सीधा लग रहा था. साधना उस पर अब पूरी तरह से भरोसा करने लगी थीं. डेविड एलेक्स ने कहा था कि वह यूएस में उन्हें जौब दिलाने में मदद करेगा.

15 अक्तूबर की बात है. साधना को फोन आया, जिस में कहा गया कि दिल्ली एयरपोर्ट पर आप का एक कोरियर आया है, जो यूएसए के डेविड एलेक्स ने भेजा है. उन्होंने अमेरिका का टैक्स भुगतान कर दिया है पर भारत में लगने वाले टैक्स का भुगतान आप को करना है. इस एवज में आप 82 हजार रुपए बैंक खाते में जमा करा दें.

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साधना ने मैसेज कर के एलेक्स को पूछा तो उस ने कहा, ‘दोस्त, इंडियन मनी आप दे दो. मै आप के खाते में पैसा भेज दूंगा.’ डेविड एलेक्स ने जिस शालीनता के साथ जवाब दिया, साधना मना नहीं कर पाईं. उन्होंने 82 हजार रुपए बैंक खाते में जमा करा दिए.

डाक्टर साधना फंस गईं जाल में

एक दिन बाद ही दिल्ली एयरपोर्ट कस्टम विभाग के नाम से दूसरा फोन आया. साधना ने ‘ट्रूकालर’ पर चैक किया तो दिल्ली एयरपोर्ट दिखा रहा था. यह फोन करने वाली महिला ने बताया, ‘मैम, पार्सल में 56 हजार पाउंड कैश है. यह सीधा आपराधिक मामला है. मनी लौंड्रिंग का केस बनता है. आप ने इस के लिए 82 हजार रुपए बैंक में जमा भी कराए हैं. इस से साफ है कि मामला गंभीर है. अब इस की जांच ईडी को दी जाएगी.’

यह सुन कर साधना घबरा गईं. इस के बाद बातचीत में दोबारा काल करने के लिए कहा गया. साधना ने फिर डेविड एलेक्स को मैसेज भेजा और उसे सारी बात बताई. उस ने कहा कोई बात नहीं तुम्हारे यहां के लोग रिश्वत चाहते हैं. तुम कुछ पैसे रिश्वत में दे कर पार्सल छुड़ा लो, वरना वे लोग दिक्कत कर सकते हैं. पैसा तो तुम को मिल ही रहा है.’

साधना को बात तो अच्छी नहीं लगी. पर अनमने मन से उन्होंने बताए गए खाते में 4 लाख 30 हजार रुपए और जमा करा दिए. इस तरह साधना के पास से करीब 5 लाख रुपए चले गए. अब यह चिंता की बात बन गई थी. साधना ने यह बात अपनी एक मित्र से बताई. उस ने कहा, ‘साधना तुम किसी फ्रौड में उलझई हो.’ इस के बाद भी साधना को डेविड एलेक्स पर यकीन बना हुआ था.

17 अक्तूबर को दिल्ली का आयकर विभाग दिखा रहे फोन नंबर से काल आई. उस में साधना को आयकर का डर दिखाते हुए 5 लाख और जमा कराने को कहा गया. साधना ने डेविड एलेक्स को जब गुस्से में मैसेज किया तो उस ने उन के किसी मैसेज का जबाव नहीं दिया.

परेशान साधना ने फेसबुक पर जा कर मैसेज किया तो डेविड एलेक्स ने साधना को फेसबुक और वाट्सऐप से ब्लौक कर दिया. पूरी जानकारी साधना ने अपनी दोस्त को बताई तो उस ने कहा, ‘साधना, यह पूरी तरह फ्रौड था. उस ने तुम से ठगी कर ली है.’

ठगी गई साधना

साधना को कुछ बोलते नहीं बन रहा था. दोस्तों ने सभी नंबर पर काल करनी शुरू की तो सभी नंबर बंद हो चुके थे. बैंक से पता करने पर बैंक खाते का कोई पता नहीं चला.19 अक्तूबर को साधना ने पीजीआई थाने में डेविड एलेक्स के खिलाफ धारा 420 और आईटीएक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया. मामला दिल्ली और साइबर क्राइम से जुड़ा था तो लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने जांच के लिए यह मामला स्पैशल टास्क फोर्स को सौंप दिया.

प्रभारी पुलिस अधीक्षक एसटीएफ विशाल विक्रम सिंह ने अपनी टीम के लोगों को मामले की छानबीन का काम सौंप दिया. एसटीएफ ने जब जांच शुरू की तो पता चला कि डेल्टा एगबोर नाइजीरिया के रहने वाले थियाम बालदे और अशातु नाम की युवती ने डेविड एलेक्स के नाम पर फेसबुक प्रोफाइल बना कर इस पूरे खेल को अंजाम दिया था.

थियाम ने यूएसए के युवक डेविड एलेक्स की प्रोफाइल फोटो लगा कर फरजी फेसबुक आईडी बनाई थी. इस के बाद थियाम ने पीजीआई क्षेत्र में रहने वाली महिला डाक्टर साधना प्रसाद को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी. इस के बाद थियाम और साधना के बीच चैटिंग शुरू हो गई. थियाम ने बातों में उलझा कर डाक्टर साधना को महंगा गिफ्ट भेजने का झांसा दिया.

यह कोई नई बात नहीं थी,ठगी के ऐसे मामले होते रहते हैं और खूब होते हैं. खास बात यह कि ठगी के ऐसे मामलों में पढ़ेलिखे लोग ही फंसते हैं.  बात यह कि इस तरह की ठगी ज्यादातर इंडिया में बैठे नाइजीरियन करते हैं. डाक्टर साधना भी ऐसे ही लोगों के चक्कर में फंस गई थीं.

आखिर पकड़े गए ठग

ठगी का एहसास होने पर डाक्टर साधना ने पुलिस से शिकायत की. जांच के बाद एसटीएफ ने ठगी का खुलासा किया. थियाम बालदे व अशातु दिल्ली के निलोठी निहालपुर में रहते थे. यहीं रह कर ये दोनों इस तरह की ठगी करते थे.

जांच में पता चला कि थियाम वर्ष 2018 में भारत आया था. फरवरी, 2020 में उस का वीजा समाप्त हो गया था. इस के बाद उस के पास पैसे भी कम होने लगे तो उस ने अपनी प्रेमिका अशातु के साथ मिल कर यूएसए के लोगों के फोटो लगा कर 6 लोगों की फरजी फेसबुक प्रोफाइल बनाई थी.

इस गिरोह में कई भारतीय भी शामिल थे, जिन के खातों में रुपए मंगाए जाते थे. थियाम महिलाओं को प्रेमजाल में फंसाता था और उस की प्रेमिका अशातु युवकों को झांसे में लेती थी. एसटीएफ की टीम ने सर्विलांस की मदद से दोनों आरोपियों थियाम बालदे व अशातु को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने दोनों के पास से 2 लैपटौप, 2 पासपोर्ट, 8 मोबाइल फोन और 17 सौ रुपए नकद आदि सामान रामद किया.एसटीएफ की जांच में पता चला कि इन लोगों ने केवल डाक्टर साधना को ही अपने जाल में नहीं फंसाया, बल्कि लखनऊ के साथसाथ दिल्ली, चेन्नई और मुंबई जैसे बड़े शहरों के तमाम लोगों को ठगा था.

इन्होंने करीब 10 करोड़ रुपए से अधिक की ठगी की थी. इन लोगों ने कुछ स्थानीय खाताधारकों को अपने जाल में फंसा रखा था, जिन के खाते में पैसा जमा कराया जाता था. इस के बदले में उन्हें अच्छाभला पैसा मिलता था.

थियाम बालदे ने बताया कि ‘पहले हम लोग दिल्ली में इस तरह की छोटीछोटी ठगी करते थे. धीरेधीरे दिल्ली के बाहर के शहरों के लोगों को निशाने पर लिया. मेरी प्रेमिका अशातु इस में साथ देती थी.

अशातु युवकों को अपने जाल में फंसाती थी. हम लोग अमेरिका और सऊदी अरब के लोगों के नाम पर फेसबुक बनाते थे. क्योंकि वहां के लोग पैसे वाले भी होते है और शौकीनमिजाज भी.

लोगों से ठगी करने के लिए उपहार देने के अलावा किसी को शादी कर विदेश ले जाने और किसी को विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर फंसाया जाता था. उपहार भेजने वाले लोगों को फरजी नंबरों से कस्टम, इनकम टैक्स और एयरपोर्ट के अधिकारी बन कर ठगी की जाती थी. ऐसे लोग फंसने के बाद जेल जाने के डर से पैसा दे देते थे.

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