हम अपने आसपड़ोस में नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि कितने ही लोग हैं जिन्होंने किसी ना किसी कारणवश अपने जीवनसाथी का साथ छूटने के बाद दूसरी शादी या तीसरी शादी की है. बहुतेरे ऐसे भी मिलेंगे जो पहले साथी की जुदाई के बाद से अभी तक अकेले हैं और दूसरी शादी की उन्हें कोई चाह भी नहीं है. बहुतेरे ऐसे लोग भी हैं जो दूसरी शादी करना तो चाहते हैं, लेकिन पहली शादी के कड़ुवे अनुभवों के चलते आशंकित हैं और हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास पहली शादी से बच्चे हैं और इस कारण वो पुनः शादी की चाह रखते हुए भी अकेले जिए जा रहे हैं. इसके अलावा भी तमाम वजहें हैं जो मध्यमवर्गीय लोगों को दूसरी शादी से डराती हैं. लोग क्या कहेंगे? फिर वही झगड़े-झमेले होने लगे तो क्या होगा? आर्थिक निर्भरता, स्वतन्त्रता, धर्म की बंदिशें बहुतेरे कारण हैं जो इंसान को दूसरी शादी से रोकते हैं. खासकर महिलाओं को.
भारतीय मध्यमवर्गीय समाज में एक बात और गौर करने लायक है. यहाँ दस तलाकशुदा पुरुषों में से औसतन सात पुरुष दूसरी शादी कर लेते हैं, लेकिन दस तलाकशुदा महिलाओं में से मात्र दो या तीन महिलायें ही पुनर्विवाह करती हैं. अधिकाँश महिलायें दूसरी शादी से डरती हैं और अकेले अथवा मायके में माता-पिता, भाई वगैरा के साथ रहने में ही खुद को सुरक्षित पाती हैं. यह भी देखा गया है कि तलाक होने या पति की मृत्यु हो जाने पर जो महिलायें किसी नौकरी या व्यवसाय से जुड़ कर आत्मनिर्भर हो जाती हैं, वो पुनः शादी करने की इच्छुक नहीं रहतीं. जबकि अधिकाँश पुरुष, चाहे कामकाजी हो या बेरोज़गार, दो या तीन साल से ज़्यादा अकेले नहीं रहते हैं. वे जल्दी ही दूसरा विवाह कर पुरानी यादों को भुला देते हैं. कई महिलायें जिन्होंने ससुराल में प्रताड़ना का दंश झेला है वो तलाक लेने के बाद दुबारा शादी नहीं करना चाहती हैं. उन्हें भय होता है कि कहीं जीवन में दुबारा वही सब ना झेलना पड़ जाए. जिन महिलाओं के साथ बच्चे होते हैं वे इस डर से दूसरी शादी नहीं करतीं कि पता नहीं दूसरा पति उसके बच्चों को एक पिता के सामान प्यार और अपनापन दे पाएगा अथवा नहीं. या बच्चे नए व्यक्ति को पिता मान कर उसके साथ एडजेस्ट कर पाएंगे या नहीं.
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भारतीय समाज में धर्म इंसान को स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीने में सबसे बड़ा बाधक है. खासतौर पर महिलाओं के पैरों में तो धर्म ने इतनी बेड़ियाँ डाल रखी हैं कि वह सारी जिंदगी ना तो खुद फैसले ले पाती है और ना ही जीवन को पूर्णता में जी पाती है. पहली शादी के कटु अनुभवों से गुज़र कर अगर कोई महिला दूसरी शादी करना भी चाहें तो फिर वही सवाल सामने आ खड़े होते हैं कि अपनी बिरादरी में, अपने धर्म, अपनी जाति का, अपने सामाजिक स्तर का कोई लड़का मिले तभी शादी करना. इस खोज में ही लड़की की पूरी जवानी गुज़र जाती है. अगर गैर-धर्म, जाति का कोई युवक उसको अपनी जीवनसंगिनी बनाने को तैयार भी हो जाए, या उसको किसी से प्यार हो जाए और वो उससे शादी करना चाहे तो समाज उसके पैरों में धर्म की बेड़ियाँ डाल देता है और वह मन मार कर रह जाती है.
भारतीय समाज में तलाक होने पर घर-परिवार और समाज इसके लिए ना सिर्फ लड़की को दोषी मानता है, बल्कि उसे दूसरी शादी करने के लिए हतोत्साहित भी करता है. लोग उसको उलाहना देते हैं कि इसकी तो किस्मत ही खराब है, इसके तो लक्षण ही खराब हैं, संस्कार तो कुछ हैं ही नहीं, पति को छोड़ आयी, कुछ तो कमी रही होगी तभी ससुराल में एडजेस्ट नहीं हो पायी, किसी गैर मर्द से चक्कर रहा होगा, अब इस से कौन शादी करेगा, दूसरे का जूठा कोई क्यों खायेगा, आदि, आदि. लेकिन पुरुष अगर तलाक लेता है तो उसको इस प्रकार के तानों-उलाहनों का सामना नहीं करना पड़ता है. उसके हमदर्द उसको यही समझाते हैं कि – अच्छा हुआ उस औरत से तलाक ले लिया, रोज़-रोज़ की झिकझिक से अच्छा है अगल हो जाना, कितनी लड़ाका थी, ना गुण ना संस्कार, कैसे पट-पट जवाब देती थी, बड़ों की इज्जत तक नहीं करती थी, अच्छा हुआ उससे पीछा छूटा, उससे अच्छी तमाम लड़कियां पड़ी हैं दूसरी शादी करो और मौज से रहो. पुरुषों को भारतीय समाज में दूसरी या तीसरी शादी के लिए उकसाया जाता है और दूसरी शादी भी किसी कुंवारी से करने पर ही अधिक जोर दिया जाता है. यही वजह है कि पुरुषों के लिए तलाक के बाद दूसरी शादी करना बहुत सहज होता है, लेकिन महिलाओं के लिए नहीं.
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अब आइये बात करते हैं दूसरी शादी के सम्बन्ध में विदेशी सोच की. विदेशों में दूसरी शादी को लेकर ज़्यादा ‘अगर-मगर’, ‘क्यों-कैसे’, धर्म-जाति, रंग, नस्ल, उम्र और बच्चों के साथ एडजस्मेंट जैसे सवाल नहीं हैं. एक साथी छूटा तो लोग तुरंत अपना अकेलापन दूर करने के लिए दूसरा साथी तलाश लेते हैं. पुनर्विवाह के मामले में विदेशों में स्त्री और पुरुष दोनों की संख्या लगभग सामान है. इसकी मुख्य वजह है स्त्री का पढ़ा-लिखा होना, आत्मनिर्भर होना, आर्थिक रूप से सबल होना और अपने जीवन के फैसले खुद करना. वे अपने जीवन सम्बन्धी निर्णयों के लिए आज़ाद हैं. बच्चे माता या पिता की दूसरी शादी में बाधा नहीं बनते हैं. परिवार और समाज ऐसी शादियों को हेय दृष्टि से नहीं देखता है, पुनर्विवाह या प्रेम की राह में धर्म भी रोड़ा नहीं अटकाता है. विदेशों में तो बुढ़ापे में भी दूसरी शादी कर जिंदगी को भरपूर जीने की ललक देखी जाती हैं जबकि हमारे यहाँ पचास पार हुए नहीं कि पूजा-पाठ, तीर्थयात्रा, रोज़ा-नमाज़, हज आदि की तरफ इंसान को धकेल कर समझा दिया जाता है कि जिंदगी के मायने तुम्हारे लिए ख़त्म हो गए और अब बस ईश्वर में ध्यान लगाओ और अपना परलोक सुधारो.
विदेश में महिलायें और पुरुष दोनों शिक्षित और आत्मनिर्भर हैं. ऐसे में यदि उनको लगता है कि उनकी आपस में नहीं बन रही है तो वे ऐसी शादी के बोझ को ढोते नहीं हैं. वे तुरंत तलाक ले कर अपनी पसंद के साथी से पुनर्विवाह कर लेते हैं. उनके फैसले की राह में धर्म, समाज, परिवार, बच्चों की ओर से कोई रुकावट नहीं आती है. भारत में उच्च वर्गीय परिवारों और बॉलीवुड में ऐसा चलन देखा जाता है क्योंकि वहाँ स्त्री-पुरुष शिक्षित और आर्थिक रूप से मजबूत हैं. मगर मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय लोग खोखले संस्कारों, खोखली इज्जत, खोखले रिवाजों और धर्म के चाबुक खा-खा कर जीवन भर अकेलेपन के दर्द में कराहते रहते हैं.
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दूसरे पति से भी ना बनी तो
दिल्ली लाजपतनगर सेन्ट्रल मार्किट की निवासी नैना भसीन का तलाक हुए सात साल हो चुके हैं. नैना मायके में माँ और भाई के साथ रहती है और अपना ब्यूटी पार्लर चलाती है. नैना हमेशा से अपना व्यवसाय करना चाहती थी. घर के कामों में उनको कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी. ससुराल में बूढ़े सास ससुर थे. जिनकी देखभाल के लिए किसी को हर वक्त घर पर रहना होता था. नैना के पति चाहते थे कि वह घर के कामों पर ध्यान दे और उनके माता पिता का ख्याल रखे, लेकिन नैना का बहुत सारा वक़्त घूमने और सहेलियों के साथ गुज़रता था. वह स्वतंत्र प्रवृत्ति की महिला है. घर में दिन भर बंद रहने पर उसको घुटन होती थी. शादी के दो साल भी पूरे नहीं हुए कि नैना का रिश्ता तलाक के मुहाने पर पहुंच गया.
अब तलाक हुए भी सात साल बीत चुके हैं. इस बीच उसके भाई और माँ ने उसके लिए कई रिश्ते देखे, लेकिन नैना दूसरी शादी के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही है. उसके भीतर एक डर है कि कहीं दूसरा पति भी उसकी काम करने की ललक को ना समझ सका और उससे भी उसकी ना बनी तो क्या होगा? वो चाहती है कि कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो उसके काम करने की राह में रुकावट ना बने और उसको घर में रहने को ना कहे. लेकिन ऐसा पुरुष कहाँ मिलता है जो पत्नी पर घर और बच्चों का बोझ ना डाले. इसलिए नैना दोबारा रिस्क नहीं लेना चाहती है. जबकि नैना की माँ को चिंता है कि उनके बाद नैना पहाड़ सा जीवन अकेले कैसे काटेगी. भाई की शादी होने के बाद भाभी के साथ कैसे एडजेस्ट करेगी?
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इसके विपरीत नैना के पति ने तलाक लेने के एक साल के भीतर ही धूमधाम से दूसरा विवाह कर लिया और अब उसके पास दो बच्चे भी हैं.
बच्चे को अपनापन ना मिला तो
कीर्ति नगर दिल्ली में रहने वाली अलका कपूर के पति का दो साल पहले कैंसर के कारण निधन हो गया था. अलका के पास छह साल का बेटा है. ससुराल वालों ने उसके पति के रहते ही उससे नाता तोड़ लिया था. दरअसल वो बेटे के कैंसर का भारीभरकम खर्च नहीं उठाना चाहते थे. अलका के पिता ने उसके पति के इलाज का खर्च उठाया और उनको अपने निवास स्थान के पास ही किराय के मकान में रखा. पति की मौत के बाद अलका और उसके नन्हे बेटे का खर्च भी उसके पिता ही उठा रहे हैं. वो चाहते हैं कि अलका दूसरी शादी कर ले, मगर अलका को यह डर है कि दूसरे पति ने अगर उसके बेटे को प्यार ना दिया तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी. इसके अलावा वो अब दोबारा माँ बनने की भी इच्छुक नहीं है. इसलिए अकेलापन काटने के बावजूद दूसरी शादी की बात पर अक्सर उसकी अपने पिता से बहस हो जाती है.
बच्चे तैयार नहीं होंगे
जमरूदपुर की रेखा का एक टैक्सी ड्राइवर से कई सालों से सम्बन्ध है. रेखा विधवा है. आसपास के घरों में मेड का काम करती है. पहले पति से उसके पास दो बेटियां हैं. एक बेटी दस साल की और दूसरी चौदह साल की. बेटियां स्कूल में होती हैं तो रेखा अपने प्रेमी को घर बुला लेती है. कभी-कभी वो उसके साथ काम के बहाने से बाहर भी जाती है. वो रेखा को पसंद करता है, उससे शादी करना चाहता है. बेटियों की जिम्मेदारी भी उठाने को तैयार है, मगर रेखा शादी नहीं करना चाहती. वो उससे कहती है कि ऐसे ही चलने दो. जब तक चले.
दरअसल रेखा जानती है कि उसकी दोनों बेटियों को उसकी दूसरी शादी पसंद नहीं आएगी. वो दोनों अब भी अपने पिता को याद करती हैं और रोती हैं. वो अपने पिता की जगह किसी दूसरे पुरुष को हरगिज़ नहीं देंगी. रेखा कहती है, ‘मैं अपने मोहल्ले में किसी आदमी से दो मिनट बात कर लूं तो दोनों को नागवार गुज़रता है, दोनों मुझसे लड़ती हैं, मैंने शादी कर ली तो मेरी शक्ल भी ना देखेंगी. मैं ‘उसे’ बहुत चाहती हूँ. उससे शादी भी करना चाहती हूँ मगर बेटियों को मना पाना बहुत मुश्किल है. वो उसको बाप का दर्जा देने के लिए राज़ी नहीं होंगी.
हम आज़ाद ही ठीक हैं
रूपल मेहता और उनकी बहन डिंपल दोनों का तलाक हो चुका है. दोनों बीते पंद्रह सालों से अपनी माँ के साथ रह रही हैं. रूपल जहाँ एक अच्छी पेंटर हैं वहीँ एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर भी कार्यरत हैं. उनकी बहन डिंपल कॉमर्स की टीचर हैं और एक अच्छे कॉलेज में कार्यरत हैं. दोनों अच्छा कमाती हैं. खुल कर खर्च करती हैं. आज़ाद पंछी की तरह उड़ती फिरती हैं.
रूपल कहती हैं – शादी ने मानो जकड़ दिया था. ये ना करो, वहां ना जाओ, दिन में मत सो, ये मत खाओ, ये मत पहनो……. हर चीज़ पर सास का हुकुम चलता था. पति भी उसी के इशारे पर नाचता था. वहां मैं जैसे गुलाम हो गयी थी. इसलिए तलाक ले लिया. दूसरी शादी नहीं करनी है. सारे पुरुष एक जैसे ही होते हैं. हम जैसों के लिए ससुराल जेल है. हम आज़ाद ही ठीक हैं.
मेरी कमाई मेरी तो है
वहीँ डिंपल ने अपनी ससुराल में अलग तरह की परेशानी झेली है. डिंपल शादी से पहले से ही कॉलेज में पढ़ा रही थी. शादी से पहले उसकी पूरी तनख्वाह पर उसका हक़ था. माँ को पिता की पेंशन मिलती थी और बहन का अपना काम था. उसका नौकरीपेशा होना उसके ससुरालवालों को खूब पसंद आया था. शादी के बाद जब उसके पति ने उससे कहा कि उसको अपनी हर महीने की कमाई सास के हाथ में रखनी होगी जैसा कि वो भी करता है तो डिंपल को धक्का लगा. कुछ महीने तक तो वो ऐसा करती रही. फिर उसने पाया कि हर छोटी-छोटी ज़रूरत के लिए उसको सास के आगे हाथ फैलाना पड़ता है. कोई सामान ले कर आओ तो पहले सास को पूरा हिसाब दो. उस पर दो-चार बात भी सुनो. कुछ समय बाद उसने सैलरी सास को देनी बंद कर दी. पूछा तो कह दिया कि घर खर्च में कमी हो तो मांग लिया करें. सैलरी मैंने अपने बैंक अकाउंट में जमा कर दी है. फिर क्या था घर में बवाल मच गया.
पहले उसको घर के संस्कार और नियम समझाने की कोशिशें हुईं. फिर पति ने मुँह फुलाना और बात-बात पर नाराज़ होने का नाटक शुरू कर दिया. आये दिन झगड़े होने लगे. सास और देवर ने बात करनी छोड़ दी. कई बार वो कॉलेज से घर लौटती तो किचन में उसके हिस्से का लंच ही नहीं होता. कभी-कभी वो नाश्ता किये बिना ही कॉलेज चली जाती क्योंकि सुबह-सुबह किचन में सास घुसी रहती थी. पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो तंग आकर डिंपल अपने मायके आ गयी और वकील से तलाक का नोटिस भिजवा दिया.
तलाक ले कर डिंपल खुश है. कहती है – मेरी मेहनत की कमाई पर मेरा हक़ है. कोई और मेरा पैसा कैसे खर्च कर सकता है? वहां तो मैं बिन पैसे की नौकरानी बनी हुई थी. जो घर में भी काम करे और बाहर से भी कमा कर लाये, लेकिन फिर भी भिखारियों की तरह एक-एक चीज़ के लिए दूसरे के सामने हाथ फैलाये.
दूसरी शादी के नाम पर डिंपल भी मुँह बिचका लेती हैं. कहती है – हम दोनों बहनें ऐसे ही खुश हैं. दोबारा ऐसा झंझट मोल नहीं लेना है.
धर्म अटकाता है रोड़ा
संध्या की उम्र चालीस के पास पहुंच रही है. तलाक हुए दस साल हो गए. दूसरी शादी करके सेटल होना चाहती थी, लेकिन धर्म और जाति के दायरे में आने वाले वर की तलाश में उसके माता पिता ने उसकी पूरी जवानी खराब कर दी. संध्या के लिए शादी की शर्त बस इतनी थी कि कोई उसके जितना पढ़ा लिखा और नौकरीपेशा व्यक्ति मिल जाए, लेकिन उसके माता-पिता और परिवार के अन्य लोगों को संध्या की शर्तों के साथ-साथ एक पक्का शाकाहारी, धनी, धार्मिक तेलगू ब्राह्मण ही चाहिए था. ऐसा लड़का ढूंढते-ढूंढते दस साल निकल गए हैं. कई लड़के थे संध्या के कार्यक्षेत्र में, जो उससे शादी करने के इच्छुक थे, लेकिन किसी गैर-धार्मिक व्यक्ति से विवाह करके वह बूढ़े माँ बाप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी. अब इतने सालों में तो उसकी शादी की इच्छा ही दम तोड़ चुकी है. वह बस अपनी नौकरी के सहारे एकाकी जीवन काट रही है.
समाज का दोमुंहापन
भारत में किसी भी महिला की दूसरी शादी, शायद ही कभी धूम-धाम से उस तरह होती है, जिसके लिए भारत मशहूर है. लड़की का दूसरा ब्याह तो हमेशा ही चुपचाप, गिनेचुने लोगों की मौजूदगी में हो जाता है. आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि, ‘ज़िंदगी में शादी तो बस एक बार होती है.’ ये कहावत भारत में सिर्फ लड़कियों पर लागू होती है.
तेलुगू पार्श्व गायिका और डबिंग कलाकार सुनीता उपाद्रष्टा ने हाल ही में अपने क़रीबी दोस्त राम वीरप्पनन के साथ दूसरी शादी की है. वीरप्पनन एक बिज़नेस मैन हैं. शादी के दिन सुनीता ने बस इतनी सी तैयारी की थी कि अपने बालों में फूल लगाए थे और लाल रंग का ब्लाउज़ पहन लिया था.
क़रीब 42 बरस की उम्र में सुनीता के दूसरी शादी करने की ख़ुशी बहुत से लोगों ने मनाई, पर कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया था. सुनीता ने 19 बरस की उम्र में टीवी प्रोड्यूसर किरण कुमार गोपारागा से पहला विवाह किया था, लेकिन दोनों के बीच तलाक़ हो गया था. दूसरी शादी के मौक़े पर खींची गई तस्वीरों में सुनीता के साथ उनके दो बच्चे – बेटा आकाश और बेटी श्रेया भी बगल में खड़े दिखाई देते हैं. दोनों बच्चे सुनीता की पहली शादी से हैं. सोशल मीडिया पर शेयर की गई ये तस्वीरें किसी भी सामान्य शादी जैसी हैं, लेकिन ये उस समाज के ख़िलाफ़ बग़ावत का ऐलान करती मालूम होती हैं, जहां मर्दों से कहीं कम औरतें दूसरी शादी करती हैं.
ये कोई नई बहस नहीं है. लेकिन जब भी कोई महिला दूसरी शादी करती है, ज़िंदगी में दूसरी पारी की शुरुआत का जश्न मनाना चाहती है तो समाज उसका साथ नहीं देता है. समाज का ये दोमुँहापन लड़कियों को दूसरी शादी के प्रति हतोत्साहित करता है, उनके भीतर भय उत्पन्न करता है.
क्या कहते हैं आंकड़े
2016 के भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण के मुताबिक़, देश में विधवा, अपने पति से अलग रह रही और तलाक़शुदा महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है. आयु के तमाम वर्गों में ऐसी महिलाओं की अधिक संख्या ये इशारा करती है कि, भारत में पुरुषों के मुक़ाबले महिलाएं दूसरी शादी कम कर रही हैं. 2019 में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि पिछले दो दशकों के दौरान भारत में तलाक़ के मामले दोगुने हो गए हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं के बीच तलाक़ के मामले काफ़ी अधिक बढ़ गए हैं. लेकिन इस मुकाबले में महिलाओं की दूसरी शादी का आंकड़ा बहुत कम है.
हमारा समाज बड़ा पोंगापंथी और महिला विरोधी है. किसी भी महिला के लिए दूसरी शादी करके अपनी ज़िंदगी को नए सिरे से शुरू कर पाना बेहद मुश्किल होता है. शादियों को लेकर समाज मे कई निरर्थक बातें प्रचलन में हैं – जैसे जोड़ियां तो ऊपर से बन कर आती हैं, जन्नत में बनी जोड़ी तोड़ना गुनाह है, पति तो परमेश्वर है, आदि आदि. ऐसे में एक परमेश्वर को छोड़ कर दूसरा ढूंढने में हिचकिचाहट होती है. जब भी बात दूसरी शादी करने की आती है, तो किसी तलाक़शुदा महिला या विधवा के लिए दूसरा साथी तलाश पाना बेहद मुश्किल होता है. ऊपर से उन्हें समाज के दबाव का भी सामना करना पड़ता है.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान तलाक़शुदा महिलाओं की मदद करने वाले कई समूह बने हैं. बहुत सी मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर अब दूसरी शादी के विकल्प उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इसके अलावा विवाहेत्तर संबंधों के लिए भी तमाम डेटिंग साइट्स खुल गई हैं. भारत में इनका धंधा बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है. फ्रांस में विकसित किए गए, विवाहेत्तर संबंधों के डेटिंग ऐप ग्लीडीन का कहना है कि कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत में उसके सब्सक्राइबर्स की संख्या 13 लाख को पार कर गई है. ग्लीडीन का ये भी कहना है कि पिछले तीन महीने में तो उसके सब्सक्राइबर्स की संख्या में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है.
ग्लीडीन के मुताबिक़, पिछले साल सितंबर, अक्टूबर और नवंबर महीनों में भारत में इसके सब्सक्राइबर्स की संख्या जून, जुलाई और अगस्त की तुलना में लगभग 246 प्रतिशत बढ़ गई है. हालांकि इसमें चीटिंग ज़्यादा हो रही है. लड़कियों के अकेलेपन, भावुकता, जल्दी ही नया साथी पा लेने की हड़बड़ी को अपराधी मानसिकता के लोग भुनाने में लगे हैं. ऑनलाइन डेटिंग साइट्स पर इमोशनल और आर्थिक चोट पहुंचाने के केस आयदिन साइबर क्राइम सेल में दर्ज होते हैं. लेकिन विदेशों में यह गन्दगी नहीं है.
ज्योति प्रभु सत्तर के दशक में जब अपने भाई से मिलने न्यूयॉर्क गई थीं, तो एक खिलंदड़ी किशोरी ही थीं, जिसके लिए दुनिया किसी अजूबे से कम नहीं थी. न्यूयॉर्क में ही उनकी मुलाक़ात अपने भावी पति से हुई. वो कहती हैं कि, ‘शादी के बाद हमारे यहां दो ख़ूबसूरत बेटियां हुईं, जिन्हें हमने अच्छे से पाला-पोसा.’ लेकिन, लगभग तीन दशक की ख़ुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी के बाद, उनके पति की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गयी. वो 50-55 बरस के रहे होंगे, जब उनकी मौत हुई.
ज्योति प्रभु कहती हैं, ‘मैंने क़रीब छह साल विधवा के रूप में बिताये. अकेलापन मुझे कचोटता था, तन्हाई भरी शामों की ख़ामोशियां कानों में गूंजती थी, मन गहरे अवसाद में था, किताबों में भी दिल नहीं लगता था. जब कुछ परिचितों ने मुझे एक विधुर व्यक्ति से मिलने का सुझाव दिया, तो मैं राज़ी हो गई.’
उस वक़्त ज्योति अपने पैरों पर खड़ी थी. उन्हें पैसों की कोई कमी नहीं थी, बस एक साथी की कमी उन्हें बहुत खल रही थी.
ज्योति कहती हैं कि, ‘मुझे डिनर के लिए, शो देखने के लिए, घूमने-फिरने और सफ़र के लिए एक साथी की ज़रूरत थी. तो हमने अपनी ज़िंदगी के बाक़ी दिन एक-दूसरे के साथ बिताने का फ़ैसला किया. हम साथ मिलकर ख़ूब मस्ती करते थे. उनके दोनों बेटे और मेरी दो बेटियां बड़े हो गए थे. वो अपनी-अपनी ज़िंदगियों में व्यस्त थे और अलग रहते थे. इसीलिए हमारे पास एक-दूसरे को तवज्जो देने के लिए पर्याप्त समय था. लेकिन अगर मैं भारत में रह रही होती तो दूसरा साथी पाना मुश्किल था. यहाँ तो बच्चे ताउम्र साथ ही चिपके रहते हैं और माँ बाप को दूसरी शादी की इजाज़त ही नहीं देते. उनको लगता है बुढ़ापे में माँ शादी करेंगे तो समाज उन पर थूकेगा.’
हालांकि आर्थिक आज़ादी के चलते भारत में भी हालात बदल रहे हैं, लेकिन इसकी रफ़्तार बहुत धीमी है. इसका एक पहलू भारत में विरासत के अधिकार का भी है. दूसरी शादी का मतलब, परिवार की संपत्ति का भी हस्तांतरण होता है. बहुत से लोगों को ये मंज़ूर नहीं होता है.
भारतीय क़ानूनों के मुताबिक़, तलाक़ या अलग होने पर पत्नी के आर्थिक अधिकार बेहद सीमित हैं. वो अपने पति से बस गुज़ारा भत्ता लेने का दावा कर सकती है. यही नहीं, भारत में ज़्यादातर शादियां और तलाक़ के मामले तमाम धर्मों के पर्सनल लॉ के हिसाब से तय होते हैं, जिनमे महिलाओं के अधिकार बहुत ही सीमित हैं. तलाक के बाद वे आर्थिक रूप से बदतर हालत में आ जाती हैं और दूसरों पर आश्रित हो जाती हैं. इस वजह से वो ज़िन्दगी अपने आश्रयदाता के घर में एक नौकरानी के तौर पर बिता देती है और दूसरी शादी की इच्छा होने पर भी उस इच्छा को व्यक्त नहीं कर पाती.
जिन महिलाओं के सामने आर्थिक समस्या नहीं है और जो दोबारा शादी करने के फ़ैसले ले रही हैं उनके फ़ैसलों पर भी सामाजिक और पारिवारिक दबाव भारी पड़ जाते हैं. मैट्रिमोनियल वेबसाइट के आंकड़े बताते हैं कि इनके लगभग सत्तर प्रतिशत यूज़र मर्द ही होते हैं जो कुंवारी लड़कियों में ही ज़्यादा इंटरेस्ट लेते हैं. यहाँ भी तलाकशुदा या एकाकी महिला के लिए संभावनाएं बहुत सीमित हैं.