हम अपने आसपड़ोस में नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि कितने ही लोग हैं जिन्होंने किसी ना किसी कारणवश अपने जीवनसाथी का साथ छूटने के बाद दूसरी शादी या तीसरी शादी की है. बहुतेरे ऐसे भी मिलेंगे जो पहले साथी की जुदाई के बाद से अभी तक अकेले हैं और दूसरी शादी की उन्हें कोई चाह भी नहीं है. बहुतेरे ऐसे लोग भी हैं जो दूसरी शादी करना तो चाहते हैं, लेकिन पहली शादी के कड़ुवे अनुभवों के चलते आशंकित हैं और हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास पहली शादी से बच्चे हैं और इस कारण वो पुनः शादी की चाह रखते हुए भी अकेले जिए जा रहे हैं. इसके अलावा भी तमाम वजहें हैं जो मध्यमवर्गीय लोगों को दूसरी शादी से डराती हैं. लोग क्या कहेंगे? फिर वही झगड़े-झमेले होने लगे तो क्या होगा? आर्थिक निर्भरता, स्वतन्त्रता, धर्म की बंदिशें बहुतेरे कारण हैं जो इंसान को दूसरी शादी से रोकते हैं. खासकर महिलाओं को.

भारतीय मध्यमवर्गीय समाज में एक बात और गौर करने लायक है. यहाँ दस तलाकशुदा  पुरुषों में से औसतन सात पुरुष दूसरी शादी कर लेते हैं, लेकिन दस तलाकशुदा महिलाओं में से मात्र दो या तीन महिलायें ही पुनर्विवाह करती हैं. अधिकाँश महिलायें दूसरी शादी से डरती हैं और अकेले अथवा मायके में माता-पिता, भाई वगैरा के साथ रहने में ही खुद को सुरक्षित पाती हैं. यह भी देखा गया है कि तलाक होने या पति की मृत्यु हो जाने पर जो महिलायें किसी नौकरी या व्यवसाय से जुड़ कर आत्मनिर्भर हो जाती हैं, वो पुनः शादी करने की इच्छुक नहीं रहतीं. जबकि अधिकाँश पुरुष, चाहे कामकाजी हो या बेरोज़गार, दो या तीन साल से ज़्यादा अकेले नहीं रहते हैं. वे जल्दी ही दूसरा विवाह कर पुरानी यादों को भुला देते हैं. कई महिलायें जिन्होंने ससुराल में प्रताड़ना का दंश झेला है वो तलाक लेने के बाद दुबारा शादी नहीं करना चाहती हैं. उन्हें भय होता है कि कहीं जीवन में दुबारा वही सब ना झेलना पड़ जाए. जिन महिलाओं के साथ बच्चे होते हैं वे इस डर से दूसरी शादी नहीं करतीं कि पता नहीं दूसरा पति उसके बच्चों को एक पिता के सामान प्यार और अपनापन दे पाएगा अथवा नहीं. या बच्चे नए व्यक्ति को पिता मान कर उसके साथ एडजेस्ट कर पाएंगे या नहीं.

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