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मन की पीड़ा -भाग 4: पंचम को हर इतवार कांटे की तरह क्यों चुभता था

पंचम के पापा ने कल्याणी की बातों को हवा में उड़ा दिया. उन्होंने भी आसान रास्ता अपनाया है. ऐसी स्थिति में बड़बड़ाते हुए वे घर से बाहर चले जाते हैं. रात का समय था. इस तानाकशी से बचने के लिए बाहर भी नहीं जा सकते थे. बिस्तर पर पड़ी पंचम उन की बातों का आनंद लेते मन ही मन में बड़बड़ा रही थी, ‘कोट की बात करती हो मां, नाप तो अपना ही दिया था. कपड़ा, रंग और स्टाइल भी खुद ही चुना था. सब से कहती हैं पंचम के लिए बनवाया है.’ यही सोचतेसोचते उस की आंख लग गई. सुबह होते ही हितेश साहब का टैलीफोन आया. आज रियाज नहीं होगा. आज पंचम को सुकून था. उस का मन शांत था. कितना हलकापन था दिल पर. वह खुश थी.

अपने तथा अरमान के लिए वह यह मनाती कि प्रकृति कुछ ऐसा हो जाए कि मंच से छुट्टी मिल जाए. एक इतवार की छुट्टी है तो क्या? सप्ताह के सभी दिनों से जल्दी आ टपकता है यह इतवार. शनिवार की रात होते ही वह तिलतिल मरने लगती थी. घर के सभी सदस्य चैन से सोए थे. मां खुश थीं. इतवार की तैयारी में लगी थीं. चुपके से मां ने पंचम के सिरहाने घड़ी रख दी. उस ने जरा सी आंख खोली, और सोचने लगी, फिर सुबह 4 बजे उठना पड़ेगा. हितेश साहब के घर जाने से पहले रियाज भी करना था. वह उलझन में थी क्योंकि कुछ दिन से मां मुझ पर बहुत स्नेह उड़ेल रही थीं. हितेश साहब ने मेरे साथ मां को भी बुलाया है. शायद किसी अनुबंध पर हस्ताक्षर करने होंगे. मां खुश तो ऐसे थीं जैसे स्वयं ही पार्श्व गायिका बन गई हों.

सुबह नाश्ते के बाद पंचम और कल्याणी हितेश साहब के घर पहुंचे. वही हुआ जिस का संदेह था. अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाने के बाद हितेश साहब बोले, ‘सगाई का उत्सव है. गीत प्रेमभाव से गाना. तगड़ी आसामी है. बलैया भी खूब लेंगे. शायद अगला कौन्ट्रैक्ट भी मिल जाए. नोट लुटाएंगे.’ पंचम हितेश साहब की ओर देखती रही, जिन के बच्चे पंचम से उम्र में कहीं बड़े हैं. वह खूंटे से बंधी रंभाती गाय थी जो खूंटे को तोड़ कर भागना चाहती थी. रियाज के बाद कल्याणीजी मुसकराती हुई बोलीं, ‘चलो पंचम, मुंबई जाने की तैयारी भी करनी है.’

‘मुंबई, कब?’ पंचम ने विस्मय और कुतूहल से  पूछा.

घर पहुंचते ही कल्याणीजी तैयारियों में जुट गईं. पापा सिर्फ  रेलवे स्टेशन तक ही छोड़ने गए. सगाई के उत्सव में जानेमाने लोगों के साथसाथ संगीत जगत की जानीमानी हस्तियां भी पधारीं. कल्याणी मन ही मन सोचती रही कि किसी संगीत डायरैक्टर की नजर पंचम की आवाज पर पड़ जाए तो लौटरी निकल जाएगी. बधाई के गीतों के बाद फरमाइशी गीतों का दौर चला. कुछ सभ्य और कुछ असभ्य. कुछ शील, कुछ अश्लील. सुबह के 5 बज गए. अतिथियों के बीच बिजनैस कार्डों का आदानप्रदान तथा बातचीत का सिलसिला चलता रहा. व्यापार जो ठहरा. कल्याणी बड़ेबड़े लोगों से मिल कर खुशी के साथ उन्हीं के स्तर पर झूमने लगीं. ‘वाह खूब गाया हितेश साहब, क्या खोज है आप की? कहां से ढूंढ़ी यह लाजबाव बाला?’

‘हमारे यहां भी कभी दर्शन दीजिएगा,’ दूसरे महाशय ने बड़े मसखरे लहजे में कहा.

‘क्यों नहीं, जनाब, आप बुलाएं और हम न आएं. आवाज तो दे कर देखिए,’ हितेश साहब ने उल्लास से कहा.

‘हां, इस फुलझड़ी को लाना मत भूलिएगा.’

पंचम दूर खड़ी यह सब देख और सुन रही थी. ‘नमस्ते कल्याणीजी, हार्दिक बधाई हो. क्या गला पाया है आप की बेटी ने. क्या कोमल गंधार लगाए. वाह, ऐसे ही गाती रही तो एक दिन बहुत ऊंचाइयों तक पहुंचेगी,’ एक भद्र महिला इतना कह कर चली गई. कल्याणीजी को आसमान करीब दिखने लगा. सामने खड़ी 3 महिलाओं के झुंड में से एक बोली, ‘लानत है ऐसी मां पर, बेटी है उस की? कैसे गवा रही है कोठेवालियों की तरह. इतनी सुंदर लड़की है, ऐसे ही गाती रही तो बस मंच के लिए ही रह जाएगी.’

दूसरी बोली, ‘उम्र की छोटी है तो क्या? देखो न गला कितना सुरीला और सधा है.’ दूसरी ओर पुरुषों की टोली में से एक सज्जन बोले, ‘देखो तो सही, बूढ़ा कहां से ले आया फुलझड़ी को. इस का तो जैकपौट ही निकल आया है. मैं तो उस से कहने वाला हूं, जब जी भर जाए तो इधर भेज देना,’ उस ने लचीली मुसकराहट से कहा. दूर खड़ी पंचम पर ऐसी बातें हथौड़े सी बौछार कर रही थीं. उस ने  सोच लिया था, ऐसी बकवास, घटिया सोच अब और नहीं बरदाश्त कर सकती. दूसरे दिन दिल्ली की वापसी थी. कल्याणी भी बहुत खुश थीं. बेटी अच्छा कमाने लगी थी. घर पहुंचते ही दूसरे दिन उसे अरमान से मिलना था. आज अरमान का चेहरा बहुत उतरा था. उल्लास जाने कहां गुम हो गया था. वह बेसुध अपना सिर घुटनों पर टिकाए, जमीन को कुरेद रहा था. उसे पंचम के आने का एहसास तक न हुआ. पंचम ने स्नेह से उसे छू कर अपनी उपस्थिति का एहसास दिलाया.

‘पंचम, तुम!’ वह चौंक कर बोला. अरमान के भीतर की पीड़ा की प्रतिच्छाया उस की आंखों में झलक रही थी. स्थिति  की नजाकत को देखते वह कुछ क्षण चुप रही. कुछ देर बाद उस ने गहरी सांस ले कर मुंबई के उत्सव का प्रसंग छेड़ा. अरमान की नजरें न उठीं. वह जमीन कुरेदता रहा. मिट्टी पर गिरते आंसू देख पंचम का मन रेशारेशा हो गया. पंचम के आग्रह करने पर वह प्यार से उदासीन स्वर से बोला, ‘पंचम, मेरी पंचू, तुम्हें दोष नहीं देता, मुझे ही मांबाप को समझाना नहीं आया. इतना बेबस, लाचार मैं ने स्वयं को कभी नहीं पाया. तुम चिंता मत करो. प्रेम करता हूं तुम्हें, तुम तो मेरे खून में बसी हो. तुम्हारी तो कल्पनामात्र से ही अभिभूत हो जाता हूं. अकसर भावनाओं को काबू में रखने के लिए अपनेआप से लड़ता हूं. पलपल, क्षणक्षण तुम्हें प्रेम करता हूं चाहे ठिठुरा देने वाली निष्ठुर सर्दी हो या गरमी की तेज ऊष्मा. जब तुम से मिलता हूं तो मेरी खुशी का ओरछोर नहीं दिखता. मैं दमकने लगता हूं. खुशी से उड़ताउड़ता बादलों तक पहुंच जाता हूं. मांबाप के तीखे बाणों की बौछार तनमन को घायल करती है, तब कल्पना से यथार्थ में आ जाता हूं. थक गया हूं पैरवी करतेकरते. बाऊजी डाक्टरी छुड़ाने की धमकी देते हैं. मैं जानता हूं, गरीबी में डाक्टरी पढ़ाना कितना कठिन है. और बहनभाई भी तो हैं. मेरी मां सुबहशाम एक ही राग अलापती रहती हैं-इक बूटा लाया सी, सोचया सी, छांवे बैठांगे, पुतर तां कंजरी दिल दे बैठा. घर आ के और ऐसे घर नूं बी कंजरखाना बना देवेगी.

‘इंतजार है डाक्टर बनने का. बस, एक बार डाक्टर बन जाऊं. सब ठीक हो जाएगा. डाक्टर तो हर हाल में बनना है. कैसे तोड़ दूं बाऊजी के बचपन का सपना? जो वे पिछले 45 वर्षों से देखते आए हैं. बाऊजी की कुर्बानियों के ऋण में दबा हूं.’

दोनों एकदूसरे की विवशता पर रोते रहे. पंचम स्वयं को संभालती बोली,  ‘अरमान, हम दोनों एकदूसरे के पलपल, क्षणक्षण के खाते के एकएक पन्ने के विराम, अर्द्धविराम, चंद्रबिंदु तथा पंक्ति से वाकिफ हैं, हमारा तो सबकुछ सांझा है. कैसे बताऊं तुम्हें अरमान? तिलतिल मरती हूं जब हर इतवार को हितेश साहब के यहां रियाज के लिए जाना पड़ता है. मन में ऐसा ज्वालामुखी उठता है, लगता है मानो क्षण में भस्म हो जाऊंगी. तुम तो समझते हो कैसे तोड़ दूं अपनी मां का सपना एक पार्श्वगायिका बनने का? जो वे बचपन से संजोती आई हैं. तुम तो जानते हो, मेरी मां के सामने पापा भी आवाज नहीं उठा सकते. मैं चुपचाप भावनाओं, इच्छाओं का आंसुओं से दमन कर देती हूं.’

कुछ देर के लिए दोनों में मौन संवाद चलता रहा.

‘पंचम, अंधेरा होने लगा है. मैं नहीं चाहता तुम अंधेरे में अकेली घर जाओ. चलते हैं,’ अरमान ने मौन को भंग करते हुए कहा. दोनों अपनेअपने कंधों पर एकदूसरे के आंसुओं का बोझ लिए भारी कदमों से घर की ओर चल दिए. निरंतर पंचम को एक ही प्रश्न कोचता रहा. आज ऐसा क्या हो गया है? पहले तो जब वह अरमान से मिल कर आती थी तो खुद को चांद के चारों ओर घूमती चांदनी महसूस करती थी. एकांत में सदा वह साथ होता था. अरमान उसे देख कर जब प्रेम की बातें करता तो वह आलोक के गंध में घिरती चली जाती जिस का पूरा वजूद पगली, मनचली पवन में बदल जाता. पांव धरती से बेदखल होन लगते और ब्रह्मांड में उड़ने लगती. इतना बेबस तो उस ने खुद को कभी नहीं पाया. आज की रात बहुत भारी थी. पंचम के मस्तिष्क का द्वंद्व बढ़ता जा रहा था.

आज पंचम का मन विद्रोह कर बैठा था. आज उस ने इन बंधनों को तोड़ कर स्वयं मुक्त होने का निर्णय लिया. कितनी बार सोचा, काश, वह किसी और की बेटी होती? कई बार सोचा, घर छोड़ दूं. संबंध कभी टूट पाते हैं क्या? कैसी शक्तिशाली प्रवृत्ति होती है मानव की. जैसी भी हो, मानव उस में जी लेता है. जीवनरूपी रेल चलती रहती है. उस ने ठान लिया था, अगर आज कुछ नहीं कर पाई तो कभी नहीं कर पाएगी. घर पहुंचते ही वह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर खुद को कोसने लगी, ‘अपना दर्द तो जैसेतैसे सह लेती हूं पर अरमान का दर्द नहीं सहा जाता. आज मैं किस मोड़ पर खड़ी हूं. मेरे जिस मधुर गले को मेरी खूबी समझा जाता है आज वही मेरे लिए मुसीबत बन गया है. मैं इस अनमोल धरोहर को संभाल नहीं पाऊंगी.’ पंचम अपने तानपूरे से लिपट कर खूब रोई. रोतेरोते उस ने तानपूरे के तारों को तोड़ डाला. आज पंचम के अंदर की पीड़ा की प्रतिच्छाया उस की आंखों में थरथराने लगी. उस के स्वर में घिरता हुआ शाम का अंधेरा उतर आया. पर्स में रखा पान मुंह में डाल हाथ जोड़ कर बोली, ‘माफ करना मां, आप का सपना पूरा न कर पाई और हमेशा के लिए मैं गीतसंगीत की दुनिया को अलविदा कह रही हूं.’

मन की पीड़ा -भाग 3: पंचम को हर इतवार कांटे की तरह क्यों चुभता था

‘मैडम, पान…?’ उस ने पंचम से पूछा.

‘नहीं, शुक्रिया, ये मेमसाहब पान नहीं खातीं,’ हितेश साहब ने उचक कर कहा. फिर पंचम की ओर मुड़ कर बोले, ‘पंचम, भूले से भी किसी के हाथ से पान मत ले लेना. हजारों सज्जनों में दुश्मन भी छिपा होता है. ईर्ष्या से पान में ऐसी चीज मिला देते हैं जिस से गला सदा के लिए खत्म हो जाता है.’ पंचम ने स्वीकृति में सिर हिला दिया. हितेश साहब तो वहां से चले गए, थोड़ी देर बाद पान वाला फिर वहां  आ धमका. ‘मैडम, बनारसी पान है, ले लीजिए.’ उस से पीछा छुड़ाने के लिए पंचम ने एक पान उठा कर पेपर नैपकिन में लपेट कर अपने पर्स में रख लिया. पार्टी समाप्त होतेहोते 2 बज चुके थे. पंचम सोचने लगी, शुक्र है कल दोपहर की वापसी है. कल्याणीजी बहुत उचक रही थीं. मानो हितेश साहब ने उन के हाथ में नोट छापने वाली मशीन थमा दी हो. उन्हें लखपति बनने का सपना पूरा होता दिखाई दे रहा था. दिल्ली पहुंचते ही पंचम ने चैन की सांस ली. परीक्षाएं सिर पर थीं. जब तक परीक्षाएं समाप्त नहीं हो जातीं तब तक कई इतवारों की छुट्टी. पंचम खुश थी कि अब तो अरमान भी घर बैठ अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है.

परीक्षा समाप्त होते ही वह अरमान से मिलने लोधीटूम पहुंची. अरमान उसी पेड़ के नीचे प्रतीक्षा कर रहा था, जहां दोनों बचपन से बैठते आए थे. कुछ क्षण के लिए दोनों अपनेअपने बुलबुलों में बंद रहे. अरमान सिर झुकाए जमीन पर टेढ़ीमेढ़ी लकीरें खींचते हुए बुदबुदाया, ‘क्यों पंचम, बताने के काबिल नहीं समझा…क्यों?’

‘क्या बताती, मां ने बिना बताए ही अनुबंध पर हस्ताक्षर कर दिए थे. आगे से ऐसी बात नहीं होगी. मुसकराओ,’ उस ने शरारत से कहा.

अरमान थोड़ा मुसकराया. पंचम ने कहा, ‘अब कुछ और बताती हूं. सुनो, अरमान, अगले महीने एक बहुत बड़ा समारोह है. कुछ दिन के लिए मुझे मुंबई जाना पड़ेगा.’

‘पंचम, तुम तो जानती हो, व्यक्तिगत रूप से मुझे तुम्हारे संगीत से कोई समस्या नहीं. तुम से प्यार करता हूं. तुम्हारे तो आसपास होने मात्र से मेरे भीतर उत्तेजना का संचार होने लगता है. मैं अपने तमाम दुख भूल जाता हूं. प्रेम की सरिता में बहने लगता हूं. एकाएक हितेश साहब की खिड़की से हारमोनियम का स्वर सुनते ही तमाम प्रेम भावनाओं का स्थान ईर्ष्या, द्वेष और क्रोध ले लेते हैं. बारबार घड़ी की सूई देखता हूं. यहां तक कि हितेश साहब से जुड़ी हर चीज बुरी लगती है. उन के घर के आगे से निकलने में तकलीफ होती है. फिर अपनी नादानी पर बहुत हंसता हूं.’ ‘अरमान, तुम से क्या छिपा है. यह तो मैं ही जानती हूं कि मंच पर गाने में मेरा कितना दिल दुखता है. हर इतवार को कलेजा बाहर आता है. हर गाने पर आपत्ति होती है. हर पंक्ति में हर शब्द शूल की तरह चुभता है. जब उस बूढ़े खूसट के साथ प्रेमगीत गाना पड़ता है तो वह कहता है मेरी ओर देख कर गाओ, भाव से गाओ, चेहरे पर मुसकान ला कर गाओ, उस वक्त मुसकान व भाव सभी क्रोध में परिवर्तित हो जाते हैं. स्टेज पर मैं नहीं, एक सांस लेता रोबोट बैठा होता है. तुम कहते हो, कल्पना में मुझे सामने बैठा लिया करो. तुम्हीं बताओ, एक 50 वर्ष के शरीर से मैं 20 वर्ष के युवा की कल्पना कैसे कर सकती हूं?’

‘मां को समझाने का प्रयत्न करो, तुम हितेश साहब के घर में नहीं, अपने घर में रियाज करना चाहती हो.’

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‘खुद को हलाल करवाना है क्या? तुम्हें क्या बताऊं, जबजब रियाज के लिए जाती हूं, खिड़की से मुझे सब दिखाई और सुनाई देता है. जब तुम्हारी मां मेरे एकएक सुर के साथ अपनी पूरी आवाज से सौसौ कटाक्ष तुम्हारी ओर फेंकती हैं, ‘देखया कंजरियां दे कम. ओनू घर ले आया तो तेरी भैन नाल कौन व्याह करेगा. घर घर नहीं रहेगा.’ इन कटाक्षों से बचने के लिए तुम घर से बाहर चले जाते हो. मेरे कारण हर इतवार को तुम्हें यह जहर पीना पड़ता है. फिर कहते हो तुम्हें मेरे संगीत से कोई आपत्ति नहीं. किस मिट्टी के बने हो तुम? सब कुछ चुपचाप सह लेते हो. किंतु तकलीफ तो मुझे होती है.’

‘मेरी जान, समझो, मांबाप पर आश्रित हूं. न चाहते हुए भी डाक्टरी पूरी करनी है. बाऊजी का सपना पूरा करना है. वे फीस देते हैं. मैं हर शनिवार की रात को रोकने के प्रयास में रात बिता देता हूं.’

‘रात भी कहीं रुकती है क्या?’

‘सोच तो सकता हूं. पंचम, चलो घर  चलते हैं. अंधेरा होने को है.’

उस रात पंचम की आंखों में नींद कहां. रातभर तानेबाने बुनती रही. कैसे पीछा छुड़ाया जाए हितेश साहब से. मां की पढ़ाई छुड़ाने की धमकियों से डर लगता है. मांपापा की नोंकझोंक रोज का काम है. पापा को भी पसंद नहीं. जब पापा मां को डांटते हैं, मां उन पर हावी होने लगती हैं. कहती हैं, ‘आप को तो बच्चों के भविष्य में कोई दिलचस्पी नहीं. एक दिन देखना, हमारी पंचम हिंदुस्तान की मशहूर गायिका बनेगी. अखबारों में नाम छपेगा. बच्चाबच्चा उस के गीत गुनगुनाएगा. सब कहेंगे, कल्याणी की बेटी है, सभी का उद्धार होगा.’ ‘कल्याणी, क्यों बच्ची के पीछे पड़ी रहती हो? जीने दो उसे. मत छीनो उस का बचपन. सो लेने दो पूरी नींद उसे.’

‘आप के पैसों से तो कभी पूरा नहीं पड़ा.’

‘सारी तनख्वाह तो ला कर तुम्हें दे देता हूं.’

‘जब से ब्याह कर आई हूं, सर्दियों में एक गरम कोट के लिए तरस गई हूं. लड़की पैसे कमाती है, उसे कपड़े भी तो अच्छे चाहिए. पिछले समारोह के पैसों से पंचम के लिए गरम कोट बनवाया था. कभीकभार वह कोट मैं भी पहन लेती हूं. लोग कहते हैं, कल्याणी, यह कोट तुम पर जंचता है.’

मन की पीड़ा -भाग 2: पंचम को हर इतवार कांटे की तरह क्यों चुभता था

उस दिन रियाज के बाद जब हितेश साहब पंचम को घर छोड़ने आए तो उन्होंने मां से हिचकिचाते हुए पूछा, ‘कल्याणीजी, आप को पंचम को दिल्ली से बाहर भेजने में कोई आपत्ति तो नहीं?’ बात समाप्त करने से पहले उन्होंने अनुबंध उन के सामने रख दिया. कल्याणीजी ने बिजली की कौंध की तरह झट से अनुबंध  पर हस्ताक्षर कर दिए. दिल्ली से बाहर फरीदकोट में पंचम का यह पहला समारोह था. नाम तक न सुना था कभी. बस, सांत्वना यही थी कि वहां किसी परिचित व्यक्ति के मिलने की संभावना नहीं थी. सालाना परीक्षा के कारण कुछ दिन स्कूल में छुट्टी थी. किंतु पंचम का हितेश साहब के यहां रियाज का सिलसिला जारी रहा. अब सप्ताह में 2 बार. मां की इन हरकतों पर गुस्सा आने पर अकसर पंचम कह देती, ‘मां, वहां हितेश साहब की लड़की बैठ कर परीक्षा की तैयारी करती है और मैं उस के पापा के साथ रियाज करती हूं, प्रेम गीत गाती हूं, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता?’

‘बेटा पंचम, तुझ में जो हुनर है वह उस में थोड़े ही है. इस में तेरा भी भला है. पंचम सोचने लगी, मां नहीं जानती थीं कि उन के इस जनून में मेरा और अरमान का हरेक इतवार बरबाद होता है. मेरे वहां जाने से वह भी इतवार को परीक्षा की तैयारी नहीं कर सकता. मां यह अच्छी तरह जानती हैं कि अरमान की खिड़की से हितेश अंकल का घर साफसाफ दिखाई देता है. फिर क्यों? बचपन से अरमान और पंचम एक अटूट अनकहे प्रेमबंधन में बंधे थे. अरमान के घर वाले बहुत पुराने विचारों के थे, उन्हें पंचम के गानेबजाने से सख्त नफरत थी. पंचम का ‘स’ लगते ही अरमान जोर से खिड़की बंद कर देता. वह अकसर अपनी मां की जलीकटी बातों से बचने के लिए लोधी गार्डन के उस पेड़ के नीचे जा बैठता जहां वे दोनों जंगलजलेबियां बीनबीन कर खाते और घंटों बातें करते रहते थे. अरमान के कुछ न कहने पर भी पंचम उस की कहीअनकही बातें उस की आंखों में साफ पढ़ लेती.

कल्याणीजी के लिए नाम और प्रसिद्धि एक चुनौती बन चुकी थी. उसे वे किसी भी तरह पाना चाहती थीं. उस रात कल्याणी ने पंचम के पापा से फरीदकोट का जिक्र किया. पापा भड़क उठे, ‘मैं हरगिज नहीं चाहता, लड़की शहर से बाहर जाए. मना कर दो उस मरासी को. क्यों बरबाद करने पर तुली हो मेरी बेटी के भविष्य को.’ ‘यह कैसे हो सकता है? अब तो नामुमकिन है,’ मां ने दृढ़ता से कहा. मां के लिए पापा के विरोध की कोई महत्ता नहीं थी. ‘कल्याणी, कान खोल कर सुन लो, मुझ से पैसों की आशा कतई मत करना.’ ‘मांग कौन रहा है. वैसे भी आप के पास पैसे हैं ही कहां? आप की समस्या मेरी समझ से बाहर है. लोग मेरी तारीफ करने का कोई मौका नहीं चूकते, कहते हैं, हिम्मत वाली हैं कल्याणीजी आप. जितनी मेहनत, आप करती हैं बच्ची पर अभी तक तो कोई मां ऐसी नहीं देखी. और एक आप हैं, तारीफ तो क्या, साथ तक नहीं देते. मांबाप की कुर्बानियों से ही बच्चे बनते हैं. पैदा करना ही काफी नहीं है. अगर बेटी ने चार पैसे भी कमा लिए तो भला तो हमारा ही होगा. घर की स्थिति सुधर जाएगी. ऐसी बातें आप की समझ से बाहर हैं. हमारी पंचम में तो गुण कूटकूट कर भरे हुए हैं. अगर कहीं मेरी मां ने मेरे सपने अपने समझे होते, बापूजी के झगड़ों को नजरअंदाज कर मेरे साथ खड़ी होतीं, तो आज मेरे सपने यथार्थ में बदल जाते. फिर मैं आप की नहीं, किसी बड़े स्टार की ब्याहता होती. धन, मान, सम्मान सभी होते, करोड़ों में खेलती, कोठियों में रहती.’

‘अभी कौन सी देर हुई है. मैं ने रोका है क्या?’

पंचम बिस्तर पर पड़ी उन की नोंकझोक सुन रही थी. वह दिन भी आ गया. गाड़ी नई दिल्ली स्टेशन से सुबह 5 बजे चलती थी. समारोह रात को था. फरीदकोट पहुंचते ही बड़ी आवभगत हुई. सफेद चमचमाती हुई कार लेने आई. फाइवस्टार होटल में ठहराया गया. होटल तो पंचम को स्वप्नमहल सा लग रहा था. सफेदसफेद उजली चादरें, टीवी, डनलप के गद्दे वाले पलंग, शीशे सा चमकता बाथरूम, बड़ीबड़ी खिड़कियां, बिस्तर से मैचिंग परदे. उत्साह के स्थान पर पंचम को कमरे में लगे आईने में बारबार अरमान का उदास चेहरा दिखाई दे रहा था. प्रोग्राम प्राइवेट नहीं, राजनीतिक था. पहले देशभक्ति, उस के बाद पार्टीबाजी के व्याख्यान होने थे. बाद में संगीत. तालियों की गड़गड़ाहट बता रही थी कि लोगों को संगीत भाया था. लोगों ने बहुत पैसा लुटाया उस पर. जिस से पंचम को बहुत नफरत थी. समारोह के बाद विशेष अतिथियों के लिए खाने की व्यवस्था थी.

‘बहनजी, क्या गला पाया है आप की बेटी ने, बहुत दूर तक जाएगी. स्वरमयी गला और खूबसूरत दोनों ही विरासत में पाए हैं. आप तो और भी सुरीला गाती होंगी’, एक महाशय ने व्यंग्यपूर्वक कहा. ‘शुक्रिया’, कह कर कल्याणीजी पंखहीन सातवें आसमान पर उड़ने लगीं. वे यह बताने से कभी न चूकती थीं कि बच्चों की सफलता में मांबाप का पहला हाथ होता है. वहां भिन्नभिन्न प्रकार के पकवानों की भरमार थी. लोग खाने पर ऐसे टूटे जैसे 6 महीने से भूखे हों. भोजन के बाद पान वाला मंडराने लगा.

तापसी पन्नू की नई फिल्म ‘लूप लपेटा‘ का फर्स्ट लुक हुआ वायरल

तापसी पन्नू ने फिल्म ‘लूप लपेटा’के लुक को सोशल मीडिया पर किया साझा कोरोना महामारी के चलते तापसी पन्नू की ‘रष्मी राॅकेट’, ‘हसीन दिलरूबा’के अलावा निर्देषक आकाश भाटिया की हास्य व रोमांचक फिल्म ‘‘लूप लपेटा’’लटक गयी थी.मगर जब से तापसी पन्नू ने फिल्म‘‘लूप लपेटा’’ की षूटिंग षुरू की, तब से इस फिल्म में उनके लुक को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता रही है.

अब यह लुक वायरल हो चुका है.तापसी पन्नू काफी दिलचस्प अंदाज में नजर आ रही हैं. तापसी का यह विशिष्ट लुक बाहर आते ही चर्चाओं में है,फैंस तारीफ करते नजर आ रहे हैं. खुद तापसी पन्नू ने अपनी यह तस्वीर साझा करते हुए अपने ट्वीटर एकाउंट पर लिखा है-‘‘लाइफ में कभी कभार ऐसा टाइम आता है जब हमें खुद से यह कहना पड़ता है ‘मैं यहां तक आई कैसे?‘ मैं भी यही सोच रही थी. मैं शिट पॉट के बारे में नहीं, जिंदगी में हुई गड़बड़ के बारे में. हाय, मैं सावी हूं और इस क्रेजी राइड के लिए तैयार हूं.‘

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ज्ञातब्य है कि 1998 में प्रदर्शित जर्मन की सुपरहिट क्लासिक कल्ट फिल्म ‘‘रन लोला रन’’हर देश के फिल्मकारों के बीच सदैव चर्चा में रहती है.यह जर्मन की प्रयोगात्मक रोमांचक फिल्म है,जिसका लेखन और निर्देशन टॉम टाइकवर ने किया था. इसमें वहां के फ्रांका पोटेन्ते ने लोला और मोरित्ज ब्लिबेटेंउ ने मन्नी के किरदार निभाए थे. भारत में यह फिल्म नौ फरवरी 2001 को प्रदर्शित हुई थी. 2019 के अंतिम माह में अतुल कस्बेकर व तनुज गर्ग ने इस जर्मन फिल्म का भारतीकरण कर हिंदी में ‘लूप लपेटा’ के नाम से बनाने का ऐलान किया था. इतना ही नही फिल्म‘‘लूप लपेटा’’में तापसी पन्नू के साथ ‘मर्दानी’फेम अभिनेता ताहिर राज भसीन को अभिनय करने के लिए चुना गया था.

इस फिल्म के लिए तापसी पन्नू को खास तरह की ट्रेनिंग करनी थी और फिर अप्रैल 2020 में इसकी शूटिंग शुरू होनी थी. मगर कोरोना और लाॅकडाउन के चलते सब कुछ थप हो गया था.जब स्थितियों सामान्य हुई,तब अक्टूबर माह से तापसी पन्नू ने ट्रेनिंग शुरू की.फिर इसकी कुछ शूटिंग दिसंबर माह में और कुछ अब हो रही है.

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आकाश भाटिया द्वारा निर्देशित,सोनी पिक्चर्स फिल्म्स इंडिया, एलिप्सिस एंटरटेनमेंट 1⁄4तनुज गर्ग, अतुल कसबेकर1⁄2 और आयुष महेश्वरी द्वारा निर्मित फिल्म‘‘लूप लपेटा’’में तापसी पन्नू मर्दानी फेम एक्टर ताहिर राज भसीन के साथ पहली बार ऑनस्क्रीन पर नजर आएंगी.  इस फिल्म की शूटिंग गोवा में अपने आखिरी शिड्यूल में चल रही है.

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कुछ समय पहले इस फिल्म् की चर्चा चलने पर तापसी पन्नू ने कहा था-‘‘मूल जर्मन फिल्म‘रन लोला रन’अपने समय से काफी आगे की फिल्म थी. फ्रांका पोटेंटे अभिनीत यह फिल्म एक ऐसी महिला के इर्द-गिर्द घूमती है.

जिसे अपने प्रेमी के जीवन को बचाने के लिए 20 मिनट में 100,000 डेचमार्स प्राप्त करने की आवश्यकता होती है. सच कहूँ तो, यह एक प्रयोग है.हमें यह देखने की जरूरत है कि क्या दर्शक इसे स्वीकार करेंगे. मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि अवधारणा अभी भी अछूती है. यह कुछ ऐसा नहीं है, जो बहुत ही नियमित या लोगों ने पहले देखा हो.’’

प्रीतीश नंदी ने सलमान खान को कहा- ‘नारी द्वेषी’, जानें क्या है मामला

बिग ब़स 14 के बीते वीकेंड के वार पर सलमान खान और शो के मेकर्स को बहुत ज्यादा ट्रोल किया जा रहा है. सामने आ रही रिपोर्ट में मेकर्स ने सलमान पर पक्षपात का आरोप लगाया है. इस बीच प्रोड्यूसर प्रीतीश नंदी बिग बॉस द्वारा दिए गए व्यूज से सहमत नहीं हैं.

प्रितीश ने ट्वीट करते हुए सलमान खान को नारी द्वेषी भी बताया है. इतना ही नहीं प्रोड्यूसर ने निक्की तम्बोली और रुबीना दिलाइक का सपोर्ट भी किया है.

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प्रीतीश नंदी ने लिखा की बिग बॉस देखते हुए मैंने अनुभव किया है कि सलमान खान मेरे पसंदीदा कंटेस्टेंट रुबीना दिलाइक और निक्की तम्बोली के साथ बहुत ज्यादा कठोर व्यवहार करते हैं. आगे उन्होंने कहा कि सलमान खान  नारी द्वेषी ना बनें .

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प्रितीश नंदी का ये ट्वीट धड्डले से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. फैंस भी इस ट्वीट को देखकर अलग-अलग रिएक्शन दे रहे हैं. बीते वीकेंड पर सलमान ने रुबीना की जमकर क्लास लगाई थी. जिसके बाद से प्रितीश ने ऐसा रिएक्शन दिया है.

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राखी सावंत ने जब अभिनव शुक्ला का नाड़ा खींचा तो राखी सावंत का बचाव करते सलमान खान ने अभिनव शुक्ला की क्लास लगाई थी. जिसके बाद लोग सलमान खान को उल्टा सीधा कहने लगे हैं. इसके अलावा सलमान खान ने निक्की तम्बोली की भी जमकर क्लास लगाई है.

इंडियन आइडल 12 के सेट पर दिखा नेहा कक्कड़ का डांस, ‘सैंया जी’ गाने पर झूमती नजर आईं

नेहा कक्कड़ इन दिनों लगातार सुर्खियों में छाई हुई हैं. अपने नए-नए गाने को लेकर. वहीं नेहा रियलिटी शो इंडियन आइडल 12 में बतौर जज नजर आती हैं. इसके साथ ही वह एक के बाद एक नए प्रोजेक्ट्स पर काम करती नजर आ रही हैं.

अपने काम और गानों से नेहा कक्कड़ अपने फैंस का दिल जीत लेती हैं. हाल ही में नेहा कक्कड़ का गाना सैंया जी रिलीज हुआ है. इन गानों पर नेहा आए दिन झूमती हुई नजर आती हैं. नेहा कक्कड़ ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह अपने गाने पर शानदार अंदाज में डांस करती नजर आ रही हैं.

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इस गाने पर डांस के दौरान नेहा का एक्सप्रेशन देखते बनता है. बता दें कि इंडियन आइडल के मंच पर नेहा हमेशा धमाकेदार एंट्री मारती हैं. उनके इस अंदाज के फैंस भी दीवाने हैं. की दफा नेहा कक्कड़ अपने ड्रेस के साथ-साथ अपने स्टाइल से लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती नजर आती हैं.

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नेहा के फैंस अक्सर उनके हेयर स्टाइल को कॉपी करते नजर आते हैं. इंडियन आइडल के मंच पर नेहा को आए दिन अलग-अलग हेयर स्टाइल में देखा जाता है. जो उनके लुक पर खूब जचता है.

बता दें कि कुछ दिनों पहले ही नेहा कक्कड़ जबसे रोहनप्रीत के साथ शादी के बंधन में बंधी हैं. जिसके बाद लगातार वह सुर्खिया बटोरती नजर आ रही हैं. नेहा और रोहनप्रीत की जोड़ी को बेस्ट जोड़ी बताया जा रहा है. वह अपनी शादी से बेहद ज्यादा खुश हैं. नेहा को लोग शादी के बाद ढ़ेर सारी बधाइयां दी थी.

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रोहनप्रीत भी एक पंजाबी सिंगर हैं, दोनों के परिवार वालों की मर्जी से इनकी शादी हुई है.

ड्रिप और मल्चिंग पद्धति से शिमला मिर्च की खेती

परंपरागत खेती में रोज ही नएनए तरीके अपना कर किसान उन्नत खेती के साथ मुनाफा ले रहे हैं. ड्रिप और मल्चिंग पद्धति से खेती कर के फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है. इन के इस्तेमाल से न सिर्फ अच्छा उत्पादन मिलता है, बल्कि खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई जल की बचत भी की जा सकती है.
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गरहा गांव के प्रगतिशील किसान विजय शंकर शर्मा ने अपने खेत के 2 एकड़ रकबे में शिमला मिर्च की खेती की है. ड्रिप व मल्चिंग पद्धति से पूरे खेत में बिछी सिल्वर कलर की पौलीथिन और उस में से झांकते पौधे देखने के लिए राह चलते लोग भी रुक जाते हैं.
विजय शंकर शर्मा बताते हैं कि जब लौकडाउन में सबकुछ बंद था, लोग घरों में बैठे थे, उस दौरान उन्हें खाली समय का सही इस्तेमाल खेती में करने का विचार आया. इस तरीके से खेती करने की प्रेरणा उन्हें सिवनी जिले के लखनादौन के पास विजना गांव में मल्चिंग पद्धति से खेती करने वाले रिश्तेदार से मिली थी.
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ड्रिप और मल्चिंग पद्धति की पूरी जानकारी ले कर उन्होंने 2 एकड़ में शिमला मिर्च की खेती करने की योजना बनाई. इस के तहत पूरे खेत में ड्रिप इरिगेशन के लिए पाइपलाइन बिछाई गई. मल्चिंग के लिए मिट्टी ऊंची कर के पूरे खेत को पौलीथिन से ढक दिया. 2 एकड़ खेत में बीज समेत सभी खर्च मिला कर तकरीबन 2 लाख रुपए की लागत आई.
किसान विजय शंकर शर्मा ने बताया कि इस काम को करते वक्त शुरू में उन का लोगों ने काफी मजाक उड़ाया. वहीं उन के छोटे भाई शिक्षक सतीश शर्मा व शिवम शर्मा ने पूरा सहयोग दे कर उन्हें खेती करने के लिए पे्ररित किया. बस फिर क्या था, अच्छी देखरेख के चलते तकरीबन 3-4 महीने में पौधे फल देने लगे.
आजकल फुटकर बाजार में शिमला मिर्च का भाव 100 रुपए प्रति किलोग्राम है. विजय शंकर की मेहनत से उगाई शिमला मिर्च में एक अनूठी मिठास भी है. इस से बाहर की शिमला मिर्च के उलट उन की मिर्च क्वालिटी में उम्दा साबित हो रही है.
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जहां आमतौर पर किसानों को सब्जी बेचने के लिए भटकना पड़ता है, वहीं उन की उपज थोक विक्रेता खुद और्डर पर मंगाते हैं. वर्तमान में 8-10 क्विंटल उपज बाजार में बिक चुकी है. आगे 1-2 महीने और मिर्च उपज देगी, जिस में अनुमानित 20 से 30 क्विंटल उत्पादन होगा. उन्होंने साथ में खाली जमीन में लहसुन भी लगाया है. इस से जहां लहसुन से खेत में कीटाणु नहीं हो रहे, वहीं खाली जगह का सही इस्तेमाल भी हो रहा है. अगली बार शिमला मिर्च के पौधे अलग कर टमाटर की खेती करेंगे.
विजय शंकर शर्मा ने अपनी मेहनत से आसपास के किसानों के लिए उम्मीद जगाई है. आसपास के गांव के किसान उन की खेती देखने रोज ही आते हैं. उन्होंने बताया कि उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने आ कर फसल देखी है और शासन से इस पद्धति को प्रोत्साहन और मदद दिलाने का भरोसा दिलाया है. 2 लाख रुपए की लागत में कम से कम 6 लाख रुपए की उपज निकलने का अंदाजा है.
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एक पौधे पर दर्जनों मिर्च
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की जलवायु शिमला मिर्च उत्पादन के लिए सही नहीं मानी जाती?है, लेकिन किसान की मेहनत और लगन ने शिमला मिर्च की खेती कर के यह साबित कर दिया है कि कोई काम नामुमकिन नहीं है. खेत पर लगे 1-1 पौधे पर तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा शिमला मिर्च के फल लगे हुए हैं. इतना ही नहीं, बाजार में मिलने वाली शिमला मिर्च की तुलना में इन की उपज में ज्यादा चमक और बड़ी साइज भी देखने को मिली है.
इसलिए है फायदेमंद
इस तकनीक से खेतों में नमी बनी रहती है और मिट्टी का कटाव नहीं होता है. क्षेत्र के दूसरे जानकार किसानों के मुताबिक, मल्चिंग व ड्रिप इरीगेशन के तालमेल से एकबार में लागत लगा कर जब तक पौलीथिन खराब नहीं होती, खेती की जा सकती है. तकरीबन 2-3 साल में एक बार इस तरह पौलीथिन बिछा कर खेती करने में बखरनी और ट्रैक्टर चलाने का खर्च बचता है. वहीं खेत में कोई दवा डालनी हो, तो ड्रिप पद्धति से दवा पाइप से सीधे पौधों तक आसानी से पहुंचाई जाती है. इस से अलग से दवा डालने की मेहनत बचती है. सब से बड़ी बात ड्रिप इरीगेशन से पानी की बचत होती है.
सब्जियों की फसल में इस का इस्तेमाल कैसे करें
मल्चिंग विधि के जानकार किसान बताते हैं कि जिस खेत में सब्जी वाली फसल लगानी है, उसे पहले अच्छी तरह से जुताई कर लें, फिर उस में गोबर की खाद और मिट्टी परीक्षण करवा कर उचित मात्रा में खाद दे कर खेत में उठी हुई क्यारी बना लें. फिर उन के ऊपर ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन को बिछा लें. 25 से 30 माइक्रोन प्लास्टिक मल्च फिल्म, जो सब्जियों के लिए बेहतर रहती है, को उचित तरीके से बिछा दें, फिर फिल्म के दोनों किनारों को मिट्टी की परत से दबाना चाहिए. इसे आप ट्रैक्टरचालित यंत्र से भी दबा सकते हैं.
फिर उस फिल्म पर गोलाई में पाइप से पौधों से पौधों की दूरी तय कर के छेद कर लें. किए हुए छेदों में बीज या नर्सरी में तैयार पौधों का रोपण करना चाहिए.
खेत में मल्चिंग करते समय रखी जाने वाली सावधानियां
* प्लास्टिक फिल्म हमेशा सुबह या शाम के समय लगानी चाहिए.
* फिल्म में ज्यादा तनाव न रखें.
* प्लास्टिक फिल्म लगाते समय उस में सिलवटें नहीं पड़नी चाहिए.
* फिल्म में सिंचाई नली का ध्यान रख कर छेद सावधानी से करने चाहिए.
* छेद एकजैसे करें और फिल्म न फटे, इस बात का ध्यान रखें.
* मिट्टी चढ़ाने में दोनों साइड एकजैसी रखें.
* फिल्म को फटने से बचाएं, ताकि उस का इस्तेमाल दूसरी बार भी कर पाएं और उपयोग होने के बाद उसे सुरक्षित रखें.
शिमला मिर्च की खेती और ड्रिप और मल्चिंग पद्धति से खेती करने की जानकारी किसान विजय शंकर शर्मा के मोबाइल फोन नंबर 9165732179 पर बात कर के ली जा सकती है.

रिश्तों की कसौटी

Valentine’s Special: रिश्तों की कसौटी- भाग 2: क्यों दुखी थी सुरभी

अमित का परिवार दिल्ली में था. फिर भी वह हर सप्ताह मालती से मिलने आगरा चला आता. मगर ठहरता गेस्ट हाउस में ही था. उन की इन मुलाकातों में परिवार की रजामंदी भी शामिल थी, इसलिए उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. पर मालती ने इस प्यार को एक सीमा रेखा में बांधे रखा, जिसे अमित ने भी कभी तोड़ने की कोशिश नहीं की.

मालती की परवरिश उन के पिता, बूआ व दादाजी ने की थी. उन की मां तो 2 साल की उम्र में ही उन्हें छोड़ कर मुंबई चली गई थीं. उस के बाद किसी ने मां की खोजखबर नहीं ली. मालती को भी मां के बारे में कुछ भी पूछने की इजाजत नहीं थी. बूआजी के प्यार ने उन्हें कभी मां की याद नहीं आने दी.

बड़ी होने पर मालती ने स्वयं से जीवनभर एक अच्छी और आदर्श पत्नी व मां बन कर रहने का वादा किया था, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया था.

उन की शादी से पहले की दीवाली आई. मालती के ससुराल वालों की ओर से ढेरों उपहार खुद अमित ले कर आया था. अमित ने अपनी तरफ से मालती को रत्नजडि़त सोने की अंगूठी दी थी. कितना इतरा रही थीं मालती अपनेआप पर. बदले में पिताजी ने भी अमित को अपने स्नेह और शगुन से सिर से पांव तक तौल दिया.

दोपहर के खाने के बाद बूआजी के साथ घर के सामने वाले बगीचे में अमित और मालती बैठे गपशप कर रहे थे. इतने में उन के चौकीदार ने एक बड़ा सा पैकेट और रसीद ला कर बूआजी को थमा दी.

रसीद पर नजर पड़ते ही बूआ खीजती हुई बोलीं, ‘2 महीने पहले कुछ पुराने अलबम दिए थे, अब जा कर स्टूडियो वालों को इन्हें चमका कर भेजने की याद आई है,’ और पैसे लेने वे घर के अंदर चली गईं.

‘लो अमित, तब तक हमारे घर की कुछ पुरानी यादों में तुम भी शामिल हो जाओ,’ कह कर मालती ने एक अलबम अमित की ओर बढ़ा दिया और एक खुद देखने लगीं.

संयोग से मालती के बचपन की फोटो वाला अलबम अमित के हाथ लगा था, जिस में हर एक तसवीर को देख कर वह मालती को चिढ़ाचिढ़ा कर मजे ले रहा था. अचानक एक तसवीर पर जा कर उस की नजर ठहर गई.

‘यह कौन है, मालती, जिस की गोद में तुम बैठी हो?’ अमित जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा था.

‘यह मेरी मां हैं. तुम्हें तो पता ही है कि ये हमारे साथ नहीं रहतीं. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो? क्या तुम इन्हें जानते हो?’ मालती ने उत्सुकता से पूछा.

‘नहीं, बस ऐसे ही पूछ लिया,’ अमित ने कहा.

‘ये हम सब को छोड़ कर वर्षों पहले ही मुंबई चली गई थीं,’ यह स्वर बूआजी का था.

बात वहीं खत्म हो गई थी. शाम को अमित सब से विदा ले कर दिल्ली चला गया.

इतना पढ़ने के बाद सुरभी ने देखा कि डायरी के कई पन्ने खाली थे. जैसे उदास हों.

फिर अचानक एक दिन अमित साहनी के पिता का माफी भरा फोन आया कि यह शादी नहीं हो सकती. सभी को जैसे सांप सूंघ गया. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. अमित 2 सप्ताह के लिए बिजनेस का बहाना कर जापान चला गया. इधरउधर की खूब बातें हुईं पर बात वहीं की वहीं रही. एक तरफ अमित के घर वाले जहां शर्मिंदा थे वहीं दूसरी तरफ मालती के घर वाले क्रोधित व अपमानित. लाख चाह कर भी मालती अमित से संपर्क न बना पाईं और न ही इस धोखे का कारण जान पाईं.

जगहंसाई ने पिता को तोड़ डाला. 5 महीने तक बिस्तर पर पड़े रहे, फिर चल बसे. मालती के लिए यह दूसरा बड़ा आघात था. उन की पढ़ाई बीच में छूट गई.

बूआजी ने फिर से मालती को अपने आंचल में समेट लिया. समय बीतता रहा. इस सदमे से उबरने में उसे 2 साल लग गए तो उन्होंने अपनी पीएच.डी. पूरी की. बूआजी ने उन्हें अपना वास्ता दे कर अमित साहनी जैसे ही मुंबई के जानेमाने उद्योगपति के बेटे परेश से उस का विवाह कर दिया.

अब मालती अपना अतीत अपने दिल के एक कोने में दबा कर वर्तमान में जीने लगीं. उन्होंने कालेज में पढ़ाना भी शुरू कर दिया. परेश ने उन्हें सबकुछ दिया. प्यार, सम्मान, धन और सुरभी.

सभी सुखों के साथ जीते हुए भी जबतब मालती अपनी उस पुरानी टीस को बूंदबूंद कर डायरी के पन्नों पर लिखती थीं. उन पन्नों में जहां अमित के लिए उस की नफरत साफ झलकती थी, वहीं परेश के लिए अपार स्नेह भी दिखता था. उन्हीं पन्नों में सुरभी ने अपना बचपन पढ़ा.

रात के 3 बजे अचानक सुरभी की आंखें खुल गईं. लेटेलेटे वे मां के बारे में सोच रही थीं. वे उन के उस दुख को बांटना चाहती थीं, पर हिचक रही थीं.

अचानक उस की नजर उस बड़ी सी पोस्टरनुमा तसवीर पर पड़ी जिस में वह अपने मम्मीपापा के साथ खड़ी थी. वह पलंग से उठ कर तसवीर के करीब आ गई. काफी देर तक मां का चेहरा यों ही निहारती रही. फिर थोड़ी देर बाद इत्मीनान से वह पलंग पर आ बैठी. उस ने एक फैसला कर लिया था.

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