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रैड लाइट- भाग 4 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

मिल्ड्रेड की आयु के 75 वर्ष पूरे होने पर उन की प्लैटिनम ऐनिवर्सरी के सम्मानस्वरूप सब बेटों ने मिल कर उन के पुराने जर्जर घर का पुनरुद्धार किया. बड़ी बेटी वीरता पदक प्राप्त आर्मी मेजर की विधवा है और आर्मी हौस्पिटल में औपरेशन रूम नर्स. उसे इंटीरियर डैकोरेशन का शौक है और उस ने घरों की रंगाईपुताई का प्रोफैशनल कोर्स भी कर रखा है. अपने युवा बेटेबेटी सहित वह मां के घर की ऊपरी मंजिल में बाकायदा किराया दे कर रहती है. कौन्सर्ट पियानिस्ट सब से छोटी, अविवाहित बेटी और सब से छोटा बेटा भी मां के साथ रहते हैं. बड़ी और छोटी, दोनों बेटियों, छोटे बेटे और नातीनातिन ने दोमंजिले पूरे घर के रखरखाव की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है. बड़ी बेटी ने बहुत शौक से घर के अंदरबाहर की पूरी पेंटिंग खुद की. छोटे बेटे और नाती ने छत की खपरैलें बदलीं. गरमी में घर के आगेपीछे लौन की घास काटना, पतझड़ में आसपास से उड़ कर जमा पत्तों के ढेर उठाना और जाड़ों में बर्फ साफ करना, ये सब वे लोग ही करते हैं. बेटियों, बहुओं की लाख कोशिशों के बावजूद घर की रोजमर्रा सफाई और थोड़ीबहुत बागबानी मिल्डे्रड स्वयं करती हैं.

जो बेटे अपनेअपने बीवीबच्चों सहित अलग रहते हैं वे भी रविवार को मिल्डे्रड के घर पर इकट्ठे हो कर एकसाथ घूमने जाते हैं जिस के बाद पूरा परिवार साथ बैठ कर लंच करता है. सारी खरीदफ रोख्त खुद ही कर के पूरा खाना मिल्ड्रेड अकेले बनाती हैं और खाने की मेज भी बिलकुल फौर्मल तरीके से सुबहसुबह सजा कर तैयार करती हैं. सालों के अपने नियम में सिर्फ इतनी ढील देने लगी हैं कि बेटियां, बहुएं खाने के बाद मेज और खाना समेटें और कौफी सर्व करें.फार्मर्स मार्केट से ताजे फल, सब्जी खरीदते समय मिल्ड्रेड बखूबी याद रखती हैं कि परिवार में किस को क्या पसंद है. कभी कच्ची, कभी पका कर पहुंचा भी आती हैं. उन की पैनी निगाहें भांप लेती हैं कि अत्यधिक व्यस्तता के  कारण किस के यहां धुला ई के कपड़ों का ढेर हो गया है, किस का फ्रिज साफ कर के चीजें ला कर स्टौक करना है. लाख मना करने पर भी नखशिख से सब दुरुस्त कर के ही लौटती हैं.

‘‘हैल्प योरसैल्फ ऐंड ऐंजौय’’ लिखे गत्ते के टुकड़े के पीछे खड़ी मिल्ड्रेड पर कैमरा क्लिक कर के सुमि उन से विदा लेती है.

लगभग 2 सप्ताह बाद मुलाकात में गौर्डन सुमि को अपने महल्ले में उसी उत्साह से फिर घुमाते हैं जितने चाव से पहली भेंट में अपना रैल्फ मैन्शन दिखाया था. अपनी रनिंग कमैंट्री के साथ टहलते हुए वे इस बार उसे इलाके के उस हिस्से में ले जाते हैं जहां अधिकांश घर तालाबंद हैं और एकाध में मरम्मत चल रही है. मिल्ड्रेड के घर जैसे तो नहीं लेकिन रहने काबिल बनाए गए एकमंजिले घर के दरवाजे पर गौर्डन दस्तक देते हैं. गौरवर्ण एक वृद्धा द्वार खोलती हैं और गौर्डन को देख कर खिल उठती हैं.

‘‘मीट कौंस्टेंस स्टेहमायेर,’’ गौर्डन सुमि से कहते हैं और गृहस्वामिनी से मिलवाते हैं. वृद्धा बड़े प्रेम से स्वागत करती हैं.

कौंस्टेंस को सुमि के प्रोजैक्ट के बारे में समझा कर गौर्डन पूछते हैं, ‘‘हाउ इज माय पिं्रसैस?’’ वृद्धा घर के पीछे लौन में पेड़ पर बंधे हैमौक की तरफ इशारा करती हैं, ‘‘लौस्ट इन हर म्यूजिक, ऐज औलवेज बट शी विल बी डिलाइटेड टू सी यू, औल्सो ऐज औल्वेज.’’ हैमौक के निकट खड़ी उसे हलकेहलके झोटे देती एक युवती का चेहरा सुमि को जानापहचाना सा लगता है.

‘‘आय विल लीव यू लेडीज टु टौक व्हाइल आई जौइन माय यंग फ्रैंड,’’ कहते हुए गौर्डन पीछे की तरफ बढ़ जाते हैं. कौंस्टेंस तलाकशुदा हैं, वयस्क पुत्रों और पुत्री की मां. ‘पिं्रसैस’ कौंस्टेंस की 25 वर्षीया बेटी है, गे्रटा, जो मानसिक तौर पर बाधित है. पति रिचर्ड स्टेहमायेर एक औल अमेरिकन ट्रक कंपनी के सीनियर ड्राइवर हैं जिस कारण उन्हें दूरदराज शहरोें तक जाना पड़ता था. कौंस्टेंस एक छोटे बिजनैस के लिए अकाउंटिंग करती थीं. हर महीने 2-2, 3-3 हफ्तों की पति की लंबी गैरहाजिरियों की वजह से घर का सारा दायित्व भी उन्हें अकेले ही संभालना पड़ता था. पिता का अंकुश न होने के कारण बेटे उद्दंड हो गए थे.

दोनों के जन्म के वर्षों बाद शरीर से स्वस्थ और बेहद खूबसूरत बेटी के आगमन की खुशी पर तुषारापात हुआ जब डाक्टरों ने बताया कि वह आजन्म मंदबुद्धि ही रहेगी. सब से बड़ा सदमा तो तब लगा जब रिचर्ड ने साफ इल्जाम लगाया कि मंदबुद्धि बच्ची उन की संतान हो ही नहीं सकती बल्कि उन की लंबी गैरहाजिरी में किसी के साथ कौंस्टेंस के अफेयर का नतीजा है. उन्हें तलाक चाहिए. उस समय डीएनए जैसे प्रमाण की जानकारी नहीं थी. बेटों को सदमे से बचाने के लिए कौंस्टेंस ने तलाक की कार्यवाही को लंबा नहीं खींचा. मामूली से सैटलमैंट में उन्हें घर तो मिला लेकिन बाधित बच्ची की चौबीसों घंटे देखभाल के लिए कौंस्टेंस को नौकरी छोड़नी पड़ी. खर्चे की किल्लत की वजह से आखिरकार घर भी बेचना पड़ा और फूड स्टैंप्स पर गुजर की नौबत आ गई. वैलफेयर हाउसिंग कौंप्लैक्स के तंग अपार्टमैंट में शरण लेनी पड़ी. वैलफेयर हाउसिंग यानी सबस्टैंडर्ड लिविंग कंडीशंस. दीवारों से पपड़ी बन उतरता पेंट, नलों से लीक होता पानी, आए दिन चोक होती नालियां. बदबूदार गलियारों में चूहे, काक्रोच, गालीगलौज वाला पड़ोस. गंदी गुडि़या सी ग्रेटा बावली घूमती, दीवारों से उतरती पपडि़यां चाटती और जहांतहां गंदगी करती. दलदल में फंसी कौंस्टेंस डिप्रैशन में डूबती गई थीं और खैरात पर पलने वालों की मानसिकता उन पर हावी होती गई. बिना मेहनत सरकार से जो भी खींच सको, भला. डिप्रैशन के लिए गोलियां लेतेलेते नौबत नशे तक आ गई थी.

पोंगा पंथी माँ बाप की ना सुनें

पैंतालीस वर्षीया नंदिनी चिल्लापैय्या आज पूरी तरह अकेला और नास्तिक जीवन बिता रही है, लेकिन बेहद खुश है. वह उच्च शिक्षा प्राप्त महिला हैं. उनके माँ बाप हैदराबाद में रहते हैं और वो दिल्ली में अकेली रहती हैं. एक समाजसेवी संस्थान के लिए काम करती हैं. अच्छे पद पर हैं, अच्छा कमाती हैं और मनमाफिक खर्च करती हैं. उनकी जिंदगी पर अब किसी की रोकटोक नहीं चलती. कोई बंधन अब उनकी स्वतन्त्रता को नहीं बाँध सकता. आज़ाद पंछी की तरह वह जब चाहे जहाँ चाहे उड़ती फिरती हैं. वह कई देशों की यात्राएं कर चुकी हैं. उनके पास दोस्तों की लम्बी फेहरिस्त है. जिनके साथ अक्सर वीकेंड पर खाना-घूमना होता है. नंदिनी जीवन को एन्जॉय कर रही हैं. वह सुबह उठ कर जॉगिंग-एक्सरसाइज करती हैं. मनचाहा ब्रेकफास्ट बना कर खाती हैं. पांच साल पहले तक वो शाकाहारी थीं, लेकिन अब मांस, मछली, अंडा सब खाती हैं और सोचती हैं कि ये स्वादिष्ट चीज़ें उन्होंने बचपन से क्यों नहीं खाईं? दिन में ऑफिस का काम करती हैं और शाम को शॉपिंग, फिल्म, दोस्तों के साथ कॉफ़ी वगैरा में समय बिताती हैं. अंग्रेज़ी फ़िल्में देखने का शौक है तो अक्सर देर रात लैपटॉप पर मनपसंद फ़िल्में भी देखती हैं.

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लेकिन पांच साल पहले तक यही नंदिनी धर्म, रीतिरिवाजों, पूजा-व्रतों, दान-दक्षिणाओं, धार्मिक यात्राओं में अपनी ज़िन्दगी तबाह किये हुए थी. माँ बाप के दबाव में और ये सोच कर कि इन सब कर्म-कांडों से उन्हें अच्छा घर-वर मिलेगा और उनकी ज़िन्दगी सुख से बीतेगी. दक्षिण भारतीय तेलगू ब्राह्मण परिवार में जन्मी नंदिनी ने बचपन में संघ के स्कूल में शिक्षा पायी थी. फ़ालतू के कड़े अनुशासन में रही. माँ बाप दोनों घोर पूजापाठी थे लिहाज़ा नंदिनी घर में धार्मिक अनुष्ठान, व्रत, हवन आदि देखते हुए ही बड़ी हुई थी. उसकी माँ का हर दिन कोई ना कोई व्रत-अनुष्ठान चलता रहता था. ज़रूरत से ज़्यादा व्रत रखने के चक्कर में वह सूख के काँटा हो चुकी थी, मगर व्रत नहीं छूटते थे. मज़े की बात ये थी कि सारे व्रत उसकी माँ के हिस्से में ही थे, पिता को उसने कभी व्रत रखते नहीं देखा. कभी-कभी नंदिनी माँ से कहती कि इतने व्रत ना रखे मगर वह भगवान् और पिता का डर दिखाती. धार्मिक कार्य ना करने पर नरक में जाने का उसको बड़ा डर था. ये डर माँ के अंदर उनके माता-पिता, सास-ससुर, पति और मंदिर के महंत ने डाला था. माँ ने भी नंदिनी को भी वही सब सिखाया जो उसको उसके बड़ों ने सिखाया था. वह नंदिनी को बिलकुल अपने जैसा बनाना चाहती थी, ताकि कोई उसकी परवरिश पर उंगली ना उठाये. जाड़ा हो या गर्मी नंदिनी सुबह चार बजे उठ कर नहाती और पूजा घर से लेकर आँगन तक पानी से धोती थी. फिर दूर-दूर तक जाकर पूजा के लिए फूल इकट्ठे करती थी. सात बजे तक पिता के उठने से पहले ही वह माँ के साथ मिल कर पूजा की सारी तैयारियां कर लेती थी. पिता बस नहा-धो कर आते और पूजा करने बैठ जाते. घंटा भर उनकी पूजा चलती थी. धूपबत्ती के कारण पूरा घर धुएं से भर जाता था. इसी धुएं के कारण बाद में माँ को अस्थमा की तकलीफ भी हो गयी, लेकिन पिता धूपबत्ती जलाने से बाज़ ना आये.

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नंदिनी के माँ-बाप बेहद अंधविश्वासी और टोनों-टोटकों पर विश्वास करने वाले लोग थे. आज नंदिनी उन पुरानी बातों को सोचती है तो उसको दुःख भी होता है और हंसी भी आती है कि क्यों उस वक़्त वह माँ की कही बातों पर विश्वास करके वैसा ही करती थी, जैसा वह करवाना चाहती थी. बातें छोटी-छोटी थीं, लेकिन बेवकूफियों से भरी हुई थीं. जैसे रोटी बनाने के बाद गर्म तवे पर पानी मत डालो वरना सास से झगड़ा रहेगा. झाड़ू को घर में खड़ा करके मत रखों वरना लक्ष्मी घर से चली जाएगी. शनिवार को नाखून और बाल मत काटो. सोमवार और वीरवार का व्रत ज़रूर करो अच्छा पति मिलेगा. कभी रास्ते में हिजड़ा दिख जाए तो उसको कुछ पैसा दानस्वरूप अवश्य दो क्योंकि उसका आशीर्वाद हर मनोकामना पूरी कर जीवन को सुखी बना देता है. कोई पूछे कि रास्ते में भीख मांगने वाला हिजड़ा, जिसका खुद का जीवन बर्बाद है उसका आशीर्वाद भला किसी दूसरे के जीवन को क्या सुखी बनाएगा? लेकिन नंदिनी की माँ इन बातों और आस्थाओं पर कोई सवाल नहीं चाहती थी. तब तो नंदिनी का दिमाग भी कुंद था और वो कोई सवाल उठाये बिना वह सब करती थी जो उसके माँ पिता कहते थे.

ये तो अच्छा हुआ कि नंदिनी उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आ गयी और यहाँ कई साल पढ़ने, दूसरे धर्म-सम्प्रदाय के लोगों के संपर्क में आने और फिर एक समाज सेवी संस्था में काम करने के दौरान उसके आचरण, व्यवहार, आस्था में काफी परिवर्तन हुए. ये परिवर्तन हालांकि बहुत धीमी गति से हुए. कोई ढाई दशक लंबा वक़्त लग गया नंदिनी को अंधकूप से बाहर आने में. और इन ढाई दशकों में उसके जीवन ने बहुत से उतार-चढ़ाव भी देखे. आस्थाओं को बिखरते देखा. विश्वासों को टूटते देखा.

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हालाँकि शुरू के कई सालों तक उसके माँ-बाप उससे मिलने दिल्ली आते रहे और उसके किराय के फ्लैट में उसके साथ रहे. जब वे आते तो नंदिनी का फ्लैट बिलकुल मंदिर का रूप बन जाता था. सुबह-शाम धूपबत्ती का गहरा धुंआ उसके फ्लैट की खिड़की से निकलता दिखता, घंटी का शोर देर तक सुनाई देता. वह नंदिनी पर इस बात का दबाव रखते कि वह नियम से व्रत-पूजा अवश्य करे. नंदिनी ने अपने घर के एक कमरे में छोटा सा मंदिर बना रखा था, जहाँ बैठ कर वह माँ के दिए धर्म ग्रन्थ भी कभी-कभी पढ़ती थी. व्रत आदि भी करती थी. रास्ते में हिजड़ा दिख जाए तो कुछ रुपयों का दान भी अवश्य देती थी, लेकिन दिल्ली में रहते हुए ये कार्य थोड़े कम हो गए थे.

इसी दौरान माँ बाप के दबाव में उसने एक तेलगू ब्राह्मण व्यक्ति से विवाह कर लिया, जबकि दिल्ली में रह रहे और उसके साथ काम करने वाले कई लोग उसको काफी पसंद करते थे. वह खुद अपने सहकर्मी अर्जुन रंधावा के प्रति काफी आकर्षित थी. मगर अर्जुन ना तो तेलगु ब्राह्मण था और ना ही पूजा-पाठ में विश्वास करता था. उसके बारे में नंदिनी ने अपने माँ बाप से जिक्र तक नहीं किया. क्योंकि उसको मालूम था कि गैर ब्राह्मण से उसकी शादी के लिए वह राजी ही नहीं होंगे. नंदिनी का पहला प्यार उसके अंदर ही मर गया. माँ बाप की पसंद के तेलगु ब्राह्मण लड़के से शादी करने के बाद उन्हें पता चला कि वह एक झूठा, बेरोज़गार और कपटी आदमी है. जिसने सिर्फ नंदिनी की हर महीने होने वाली अच्छी आय और दहेज़ की लालच में शादी की थी. नंदिनी और उसके परिवार पर वज्रपात हुआ. नंदिनी तीन दिन में ही ससुराल से मायके लौट आयी और कुछ ही दिन में वापस दिल्ली आकर अपने काम में व्यस्त हो गयी. यहाँ एक वकील से बात करके उसने जल्दी ही उस झूठे और बदमाश व्यक्ति से तलाक लेकर छुटकारा पा लिया.

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तलाक के बाद ही नंदिनी के जीवन में अचानक परिवर्तन हुआ और धर्म और धार्मिक अनुष्ठानों की जो भारी गठरी वह बचपन से अपने सिर पर ढोती आ रही थी, उसने एकाएक उतार कर फेंक दी. उसने माँ-बाप से सीधा सवाल किया – मेरे हर सोमवार को व्रत करने का क्या नतीजा निकला? बचपन से हिजड़े को दान दे रही हूँ, खूब आशीर्वाद मिला उनसे मगर मेरा जीवन स्वर्ग हुआ क्या? तुम लोगों के कहने पर तेलगू ब्राह्मण से शादी की, कितना धूर्त और धोखेबाज़ निकला वह…. इससे तो बेहतर था कि मैं किसी जानने वाले उत्तर भारतीय व्यक्ति से शादी कर लेती. कितने लड़के थे जो मुझसे शादी करना चाहते थे, जो अच्छे घरों के थे, अच्छी नौकरियां कर रहे थे, लेकिन मैं तुम लोगों के कहने पर धर्म के घेरे में बंधी रही. क्या मिला मुझे?

नंदिनी बागी हो गयी. सब रीतिरिवाज़, अनुष्ठान, परम्पराएं गटर में डाल कर नास्तिक बन गयी. अब वह खुश है. दुःख उसको सिर्फ इस बात का है कि उसकी ऑंखें काफी देर से खुलीं. अगर पहले ही वह अपने पोंगा-पंथी माँ-बाप की दी गयी नसीहतों को नकार देती और अच्छा लड़का देख कर अपनी पसंद से शादी कर लेती तो शायद अन्य सहेलियों की तरह उसका भी एक परिवार होता, बच्चे होते.

नंदिनी के विपरीत हुमैरा ज़्यादा मजबूत निकली. अलीगढ के एक नामी खान परिवार की बेटी हुमैरा दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है. उच्च शिक्षा ने उसके दिल-दिमाग के बंद कपाट जल्दी ही खोल दिए थे. घर से बगावत करके वह घर के रीतिरिवाजों के विपरीत काम करने दिल्ली आई थी. इसमें उसकी माँ ने उसका काफी सहयोग किया था और वो शायद इसलिए कि वह नहीं चाहती थी कि जिस तरह पढ़ी लिखी होने के बाद भी वह परदे में सारी उम्र घुटती रही, उसकी बेटी भी वही सब सहे. हुमैरा नहीं चाहती थी कि अलीगढ में रहते हुए किसी मुल्लानुमा व्यक्ति से उसकी शादी हो जाए और उसकी सारी पढ़ाई लिखाई मिट्टी में मिल जाए. जीवन भर बुर्के में लिपटे रहना, रोज़ा-नमाज़ और बच्चों की परवरिश में अपनी पूरी जवानी बर्बाद कर देना उसको हरगिज़ मंजूर नहीं था. बाप और भाइयों से लड़ कर वह दिल्ली आयी थी. वह काबिल थी, मेहनती थी, जल्दी ही तरक्की पा कर अच्छी पोस्ट पर भी पहुंच गयी. धर्म की बंदिशों से ऊपर उठ कर उसने अपनी पसंद के हिन्दू लड़के से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कोर्टमैरिज  की. अब उनके दो प्यारे बच्चे हैं. दिल्ली में अपना घर है. हुमैरा खुश है कि वह अपने परिवार की बंदिशों को तोड़ कर अपनी ज़िन्दगी वैसी जी रही है जैसा वह चाहती थी.

आज की पीढ़ी हालांकि पहले की दो पीढ़ियों की अपेक्षा बहुत ज़्यादा मुखर है. अपनी पसंद को प्रमुखता देती है. शिक्षा का गाँव-गाँव तक प्रसार होने से और इंटरनेट के घर-घर पहुंचने से भी काफी बदलाव समाज में आया है, लेकिन वर्तमान में संघ और भाजपा द्वारा जिस तरह छद्म हिंदुत्व का भौकाल रचा जा रहा है और जिस तरह धर्म, पूजा पाठ, मंदिर, आरती, व्रत, आयुर्वेद आदि अवैज्ञानिक बातों का महिमामंडन किया जा रहा है, वह देश के युवाओं के विकास में बाधा, तर्क और विज्ञानं की राह में अवरोध पैदा कर उन्हें पुरानी परम्पराओं में बंधे रहने को मजबूर करने की सियासी साजिश है. ये लोग जनता को लकीर का फ़कीर बनाये रखना चाहते हैं. सदियों पुरानी सड़ी गली धार्मिक मान्यताओं और अतार्किक बातों में ही समाज को उलझाए रखना चाहते हैं. आज देश भर में ऐसे कानून समाज पर थोपने के षड्यंत्र हो रहे हैं ताकि युवा अपनी पसंद से अपना जीवनसाथी तक ना चुन सकें. लड़कियों को उनके ही धर्म में शादी करने के लिए मजबूर करने के लिए गिरफ्तारियों का डर दिखाया जा रहा है. हिन्दू राष्ट्र बनाने का अलाप चल रहा है ताकि पुजारियों-महंतों, मुल्लाओं की दुकानें चलती रहें. कर्मकांड चलते रहें. आडम्बर और चढ़ावों में किसी तरह की कमी ना आये. इन्ही आडम्बरों के नीचे अंधविश्वास, यंत्र-तंत्र और टोने-टोटके करने वालों के धंधे भी पनपते रहें. जनता इन धार्मिक क्रियाकलापों में ही उलझी रहे और बेरोज़गारी, तरक्की, शिक्षा, विकास की बातें कोई ना उठाये.

जो समझदार हैं वो इन सियासी चालों के भुलावे में नहीं हैं. वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला रहे हैं. वह लोन लेकर हायर एजुकेशन के लिए उन्हें विदेश भेज रहे हैं. मगर देश में लाखों ऐसे माँ बाप हैं जो अधिक फीस के कारण अपने बच्चों को स्कूल भले ना भेजें, मगर धर्म के नाम पर हज़ारों रूपए खर्च करने को तैयार हैं. ऐसे लोग अपने बच्चो के भविष्य के साथ धोखा करके उन्हें धर्मवीर बना रहे हैं. वे अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए सस्ता सा लैपटॉप खरीद कर नहीं देंगे मगर पंडित के कहने पर हवन-पूजन और ब्राहमण भोज में हज़ारों रूपए खर्च कर देंगे. वे अपनी बेटी के लिए गैरधर्मी मगर उच्च शिक्षा प्राप्त और अच्छी नौकरी वाला वर नहीं चाहेंगे, बल्कि धर्म की बेड़ियों में जकड़ कर उसे किसी सधर्मी बेरोज़गार, शराबी, नकारा के साथ बाँधने में गुरेज़ नहीं करेंगे. ऐसे में अब किशोरों और युवाओं को खुद तय करना होगा कि उन्हें कैसी ज़िंदगी चाहिए. उन्हें तय करना है कि अपने अच्छे भविष्य के लिए उन्हें कब अपने घर में बगावत करनी है. अन्याय के खिलाफ खड़े होने का हौसला अपने अंदर पैदा करना है. तरक्की में बाधा बन रही दीवारों को खुद ढहाना होगा. धार्मिक बंधनों और कर्म-कांडों के बोझ से कैसे मुक्ति मिले इसका रास्ता उन्हें खुद निकालना होगा.

 

रैड लाइट- भाग 3 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

मिल्ड्रेड की निगाहें अनायास उन घरों की तरफ जाती हैं जिन के कारण महल्ले की छवि धूमिल है, ‘ओहओह’ कहते ही तुरंत संभल जाती हैं.

‘‘कम इन, कम इन,’’ कहते हुए मिल्ड्रेड गौर्डन और सुमि के स्वागत में अपने पोर्च से नीचे उतर आती हैं. उन के साथ भीतर जाते हुए सुमि देखती है कि पोर्च में एक बैंच पर सामान से भरे कागज के खाकी थैले सजे हैं और उन के आगे गत्ते के टुकड़े पर लिखा है, ‘‘हैल्प योरसैल्फ ऐंड ऐंजौय.’’

‘‘आह, सो यू फाउंड गुड डील्ज ऐट द फार्मर्स मार्केट.’’

सुमि की ओर मुड़ कर गौर्डन समझाते हैं कि घर के पीछे अपने छोटे से किचन गार्डन में सागसब्जी उगाना और फार्मर्स मार्केट जा कर खेत से आई ताजी सागसब्जी, फल खरीदना मिल्ड्रेड की हौबी है. खुद तो पकातीखाती हैं ही, बुजुर्ग पड़ोसियों को भी भिजवाने के अलावा कागज के खाकी थैलों में डाल कर पोर्च में रख देती हैं ताकि कोई भी जरूरतमंद ले जाए.मिल्ड्रेड हारपोल रिटायर्ड नर्स हैं. इराक के साथ औपरेशन डेजर्ट स्टौर्म में पति की शहादत के बाद 7 बेटों और 2 बेटियों के पालनपोषण की

जिम्मेदारी अकेले नर्सिंग के सहारे संभालना कठिन था. पति की मृत्यु के बाद मिली राशि और मामूली पैंशन में  भी गुजारा न होता, सो सिलाई, बुनाई, कपड़ों पर इस्तरी और छोटीमोटी कैंटरिंग का काम भी ढूंढ़ा. ड्राईक्लीनिंग की दुकान खोली.

राशनपानी, सागसब्जी की भरसक उम्दा खरीदारी के हुनर के साथ मिल्डे्रड ने गृहस्थी सुचारु रूप से चलाई. बड़ बच्चों ने पढ़ाई के साथसाथ बिजनैस संभालने में हाथ बंटाना सिखाया. 50 साल से महल्ले के बच्चों की क्रौसिंग गार्ड हैं. सुबहशाम स्कूल बसस्टौप तक जिन बच्चों को सावधानी से सड़क पार करवा पहुंचाने/लाने जाती हैं उन में से एक भी कम होता है तो उस की कुशलक्षेम पूछने उस के घर पहुंच जाती हैं. यदि बच्चे की गैरहाजिरी का कारण अभिभावक का देर रात तक नशे में धुत रहने के बाद सुबह समय से न उठ पाना या ऐसी ही कोई गफलत होती है तो अभिभावक की भी अच्छी खबर लेती हैं. आज 7 बेटों में से एक आर्मी के ट्रांसपोर्ट डिवीजन का हैड इंजीनियर है, एक फिजिकल मैडिसन का डाक्टर. शेष 5 में कोई डैंटिस्ट है, कोई कंप्यूटर स्पैशलिस्ट, कोई म्यूजिक सिम्फनी का डायरैक्टर और कोई फुटबौल टीम का हैड कोच. सब से छोटे अविवाहित बेटे ने इंजीनियरिंग में मास्टर्स करने के बाद किसी नामी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी में नौकरी के बजाय हाईस्कूल में फिजिक्स और मैथ्स पढ़ाना और स्पोर्ट्स कोचिंग करना पसंद किया है. मिल्ड्रेड की बहुएं भी प्रोफैशनल्स हैं. 2 सीनियर नर्सेज हैं, एक पब्लिक स्कूल सिस्टम में सीनियर पिं्रसिपल, एक म्यूजियम में सीनियर क्यूरेटर, एक स्पोर्ट्स मैडिसिन में थैरेपिस्ट व पति के साथ हैल्थ फिटनैस क्लीनिक की मालिक है और एक पुलिस औफिसर है.

रैड लाइट- भाग 2 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

वही खिड़की खूबसूरती और ऐंटीक वैल्यू की वजह से उन के घर की पहचान बन गई. रैल्फ मैन्शन यदि लेक के निकट और इलाके में होता तो हैरिटेज होम्ज में शुमार किया जाता जिन की सालाना नुमाइश यानी परैड औफ होम्ज की महंगी टिकटें समाज कल्याण के कई कार्यों के लिए हजारों डौलर जुटाती हैं. अपनी स्टोरी में लगाने के लिए सुमि रैल्फ मैन्शन और खिड़की की फोटो लेती है. खूबसूरती से तराशी झाडि़यों से घिरे लौन में टहलते हुए गौर्डन अगलबगल के  घरों की खस्ता हालत के बारे में पूछने पर बताते हैं कि उन के वृद्ध मालिक या तो नर्सिंग होम में हैं या कब्रगाह में. जो वारिस नौकरियों के सिलसिले में अन्य शहरों में हैं वे घरों को किराए पर चढ़ा गए. मैन्यूफैक्चरिंग का सारा काम चीन क्या गया कि डाउनटाउन का खुशहाल इलाका अब खस्ताहाल है. बढ़ती गुंडागर्दी के कारण किराएदार घर छोड़ कर जाने लगे हैं. खाली घर खुराफात के अड्डे बन रहे हैं. कितने घर तो सरकार ने तालाबंद करवा दिए हैं. नोट्स लेने के साथसाथ सुमि उन की भी फोटोज लेती चलती है.

तालाबंद घरों को फिर आबाद करने की एक स्कीम के तहत मेहनतकश लोग केवल एक डौलर में ऐसे घर खरीद सकते हैं, बशर्ते कि वे उन की मरम्मत कर के कम से कम 5 वर्ष तक अमनचैनपूर्वक उन में खुद रहने और नियम से प्रौपर्टी टैक्स भरने का कौंट्रैक्ट साइन करें. उद्यमी और साहसी नए प्रवासियों के लिए सुनहरा अवसर. ऐसे आबाद घरों से कानून और व्यवस्था में बेहतरी की भी उम्मीद है. संभ्रांत इलाकों में तो घरों को झाडि़यों वगैरा से घेरना लगभग अशिष्टता समझा जाता है लेकिन गौर्डन मजबूर हैं. नशाखोरों की टोलियां ऊंची आवाज में शोरशराबे के साथ किसी के भी घर के आगे हुल्लड़ मचाती मंडराती हैं. पुलिस बुलाओ, उन्हें भगाओ लेकिन अगली रात फिर वही तमाशा. झाडि़यों की सीमा खुराफातियों को कुछ हद तक थोड़ी दूर रखती है. गौर्डन अपने मैन्शन के आगे झाडि़यों की कतार का रोज सुबहसवेरे मुआयना करते हैं. चरसियों, नशाखोरों की रातभर की कारस्तानियों की निशानियां सिरिंजेज, सुइयां, कंडोम बीनते हैं वरना पड़ोस के छोटे बच्चे उन से डाक्टरडाक्टर खेलते हैं. कंडोम को नन्हे गुब्बारे समझ कर फुलाते हैं, उन में पानी भरभर कर एकदूसरे पर फेंकते हैं.

जर्जर हालत में कुछ घरों में सिंगल मदर्स अलगअलग बौयफ्रैंड्स से अपने बच्चों के साथ रह रही हैं. यह वह तबका है जो सरकार को दुधारी गाय मान कर उसे दुहे जाता है. ब्याह, शादी कर के तो आम गृहस्थी की तरह मेहनतमशक्कत से रोटी कमानी पड़ेगी. कोई बौयफ्रैंड अपनी संतान की परवरिश के लिए नियमित राशि दे तो भला, वरना अविवाहित मातापिता संतान को सरकार से मिलने वाले फूड स्टैंप्स और अन्य सहायता के सहारे पालते हैं. ऐसी मानसिकता वालों के कारण इलाके की छवि धूमिल होती है. गौर्डन अपनी दृष्टि घुमा कर सड़कपार कुछ दूरी पर उन घरों की ओर इशारा करते हैं जिन का हाल ही में पुनरुद्धार हुआ लगता है. एक घर के दोमंजिले पोर्च में स्विंगसोफे  या आरामकुरसी पर बैठी कुछ युवतियां मैगजीन पढ़ने या बातचीत करने में तल्लीन दिखती हैं. घर के मालिक अधेड़ आयु के निसंतान दंपती हैं, टायरोल और ऐग्नेस कार्सन. सोशल डैवलपमैंट कमीशन उन के घर की ऊपर मंजिल को किराए पर ले कर जरूरतमंदों के अस्थायी आवास के रूप में इस्तेमाल करता है. फिलहाल वहां रह रही युवतियां यूनिवर्सिटी के सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्कौलरशिप स्टूडैंट्स हैं जो पार्टटाइम काम भी करती हैं, जिस की वजह से उन्हें वक्तबेवक्त जानाआना पड़ता है. यूनिवर्सिटी जानेआने के लिए वैन सर्विस है और काम के लिए वे बस से जातीआती हैं.

सुमि कुछ कहती नहीं, लेकिन उस ने अलग से यह भी सुना है कि उस इलाके में गाडि़यां दिन में कई चक्कर मारती हैं. उन में ‘जौन्ज’ यानी ग्राहक होते होंगे. इसी कारण इस इलाके के रैड लाइट एरिया होने की अफवाह धुएं से चिंगारी बनने लगी है. गौर्डन सुमि को महल्ले के दौरे पर ले चलते हैं. 100 गज ही आते हैं कि बस से उतर कर एक अधेड़ महिला थैलों से लदीफंदी सामने से आती दिखती है. गौर्डन आगे बढ़ कर कुछ थैले पकड़ लेते हैं और उन्हें उन के दरवाजे तक छोड़ आते हैं. बारबार थैंक्स कहतीकहती जब वे अंदर चली जाती हैं तब नीची आवाज में सुमि को उन के बारे में गौर्डन बताते हैं कि हो न हो, खून बेच कर आई हैं तभी खरीदारी के थैले अकेले पकड़े थीं. सरकारी फूड स्टैंप्स से ग्रोसरी खरीदने या फूड बैंक से मुफ्त सामान लाने के लिए वे बच्चों को साथ ले जाती हैं. ड्रग ऐडिक्ट बेटी डीटौक्स सैंटर में है. बेटी का बौयफ्रैंड फरार है. उस से और पिछले एकदो बौयफ्रैंड्स से बेटी के 5 बच्चे हैं जिन्हें ये पाल रही हैं. सब को नियम से स्कूल की बस पर चढ़ा कर आती हैं, तीसरे पहर बस स्टौप से लिवा कर लाती हैं और घर में अनुशासित रखती हैं ताकि अच्छी अभिभावक होने का सुबूत दे सकें और बच्चों को अलगअलग फौस्टर होम्ज में न भेजा जाए. इन का पति नशेबाज था, सो उस से तलाक लिया और घरों, दफ्तरों की सफाई के सहारे गुजारा किया. टूटीफूटी हालत में छोटा घर एक डौलर में मिल गया जिसे हैबिटैट वालों ने रहने लायक बना दिया.

बेटी इकलौती संतान है और उसी के बच्चों की वजह से इन्हें कई जगह काम छोड़ना पड़ा. सब से बड़ी नातिन 12 साल की हो जाए तब उस की निगरानी में उस के भाईबहन को कुछ समय के लिए छोड़ कर सफाई वगैरह का ज्यादा काम पकड़ लेंगी. फिलहाल तो स्टेट इमदाद पर गुजारा कर रही हैं लेकिन मजबूरीवश. वे जानती हैं कि इस तरह से पलने वाले बच्चे जीवनभर हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं. जैसे और जितना बन पड़े बिन ब्याही मां के नाजायज बच्चों का भविष्य गर्त में जाने से बचाए रखना चाहती हैं गौर्डन और सुमि टहलतेटहलते आगे निकल आते हैं, तो एक पुराना दोमंजिला मकान दिखता है जिस का हाल ही में पुनरुद्धार हुआ लगता है. पोर्च में खड़ी एक अफ्रीकन अमेरिकी वृद्धा मुसकरा कर हाथ हिलाती हैं.

‘‘हाय,’’ गौर्डन गर्मजोशी से अभिवादन का उत्तर देतेदेते उन की तरफ बढ़ते हैं, ‘‘मीट माय न्यू फैं्रड,’’ कहते हुए सुमि का परिचय मिल्ड्रेड से करवाते हैं, ‘‘शी इज डूइंग अ स्टोरी औन अवर नेबरहुड.’’

रैड लाइट- भाग 1 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

शाम की क्लासेज और शाम भी जाड़े की. बर्फ नहीं पड़ रही थी वरना और मुसीबत होती. अमेरिका के विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते ही दिल में धुकधुकी इतनी तेज हो जाती है कि ड्राइविंग पर ध्यान बनाए रखना दूभर हो जाता है. ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का इलाका रैड लाइट एरिया कहलाया जाने लगा है. रैड लाइट एरिया का खौफ सुमि के मन में बालपन से ही बैठा हुआ है. सुमि के पापा के दूर के कुछ रिश्तेदार पुरानी दिल्ली में दशकों पुराने जमेजमाए कारोबार के चलते वहीं हवेलियों में रहते रहे हैं. मां बताती थीं कि वहां के बड़े चावड़ी बाजार के पास एक इलाका वेश्याओं और गुंडों की वजह से बदनाम ‘रैड लाइट’ एरिया हुआ करता था जिस के आसपास महल्लों में पलक झपकते लड़कियां गायब किए जाने की वारदातें सुनने में आया करती थीं. इस कारण वहां रहने वाले परिवारों की औरतें अपने घरों से बहुत कम निकलती थीं. मजबूरी में जब भी उन्हें बड़े चावड़ी बाजार के पास से गुजरना पड़ता तो उस ओर देखे बिना झट कन्नी काट कर बच्चों, विशेषकर बच्चियों को अपनी लंबी चादर के भीतर दबोचे ऐसे लंबे डग भरतीं मानो कोई चोरउचक्का पीछे पड़ा हो.

अमेरिका के शहर मिडवैस्टर के बीचोंबीच डाउनटाउन इलाके में देश की प्रख्यात और महंगी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के तेज रफ्तार रिफ्रैशर इवनिंग कोर्स के लिए फुल स्कौलरशिप का मौका विरलों को मिलता है. सुमि इसे हर हाल में पूरा करने को कटिबद्ध है. रैग्युलर कोर्स की गुंजाइश  नहीं, दिन की नौकरी छोड़े तो गुजारा कैसे हो?

जितनी प्रख्यात यूनिवर्सिटी है डाउनटाउन का यह इलाका उतना ही बदनाम होता जा रहा है. वहां की समृद्ध फार्मर्स (किसान) पीढ़ी वृद्ध हो चुकी है और उन की संतानों को सीधा उत्तराधिकार प्राप्त नहीं. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उन के वृहद् फार्म्स खरीद कर डैवलपर्स वहां आलीशान घर, मौल और आधुनिक सुविधाओं से लैस उपनगर बनाते जा रहे हैं. नतीजतन, शहरी आबादी वहीं उमड़ी जा रही है. बीच शहर में बंद दुकानें, खाली घर ड्रग डीलर्स और बदनाम पेशों के अड्डे हो गए हैं जिस के चलते महंगी यूनिवर्सिटी में प्रवेशातुर रईस परिवारों की संतानों की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है. 5 मील के घेरे के भीतर रहने वाले सभी छात्रों के लिए सुबह 7 बजे से रात के 12 बजे तक निशुल्क वैन सर्विस है. इस के अलावा, यूनिवर्सिटी ने पूरे इलाके के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है और इस के पुनर्वास के लिए नियत फैडरल सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है. जरूरतमंदों के लिए उदार छात्रवृत्तियां, डैंटिस्ट्री और नर्सिंग डिपार्टमैंट्स की ओर से फ्री क्लीनिक्स, लौ डिमार्टमैंट की ओर से मुफ्त कानूनी सलाह के सैशंस की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कोर्स के एक असाइनमैंट के लिए अन्य सहपाठियों ने सामयिक घटनाओं को चुना जिन के लिए तथ्य रेडियो, टीवी और पत्रपत्रिकाओं से जुटाना सहज होता है. भारत की प्रमुख पत्रिकाओं, पत्रों में प्रकाशित सुमि का शौकिया लेखन मुख्यतया मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण भोगा हुआ यथार्थ ही रहा था. ऐसी 2 प्रविष्टियों और प्रमाणित पूर्व प्रकाशनों के बल पर ही इस तेज रफ्तार कोर्स में उसे प्रवेश मिला जिस के पूर्ण होने पर स्थानीय अखबार के फीचर सैक्शन में उस की सह संपादक की नियुक्ति की संभावना बन सकती थी.

ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट के खस्ताहाल इलाके पर सुमि के ह्यूमन इंटै्रस्ट स्टोरी के चयन पर प्रोफैसर को आश्चर्य था पर मौन अनुमोदन दे दिया शायद इसलिए कि यह यूनिवर्सिटी की वर्तमान नीति के अनुरूप हो. बहरहाल, इलाके के गली, महल्ले छानने और इंटरव्यूज कर के तथ्य बटोरने के लिए वहां वीकेंड पर दिन का समय ही सुरक्षित होगा. यह उन्होंने पहले ही बता दिया. सिटी गजट अखबार की पुरानी प्रतियों में डाउनटाउन के इतिहास में ऐतिहासिक घरों, इमारतों का प्रचुर विवरण है. हैरत की बात यह कि ऐसे कुछ घर ठीक ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट पर हैं. हिस्टौरिकल सोसाइटी से संपर्क कर के सुमि ने गृहस्वामियों के नामपते लिए और फोन कर के इंटरव्यू का समय तय किया. नियत समयानुसार मिस्टर गौर्डन रैल्फ के पते पर ठिठक कर अपनी लिस्ट फिर पढ़नी पढ़ती है. गलीचे से लौन के आगे संतरी सरीखे खड़े ऊंचे दरख्तों और तराशी हुई झाडि़यों से घिरे छोटे मगर शानदार मैन्शन का इस इलाके में क्या काम? ईंटपत्थर के मकान पुराने स्थापत्य शिल्प के नामलेवा भर रह गए हैं. रैल्फ मैन्शन का एकएक पत्थर जैसे समय के बहाव को रोके अविचल खड़ा. सामने की दीवार पर खूबसूरत स्टैंड ग्लास की बड़ी गोल खिड़की जैसे उन्नत भाल पर टीका हो. हस्तनिर्मित ऐसी नायाब कृतियां तो यूरोप के पुरातन गिरजाघरों में ही मिलें.

पूर्वनियत इंटरव्यू की औपचारिकता परे रख गृहस्वामी गौर्डन चाव से सुमि को घर दिखाते हैं, अपने बारे में बताते हैं. पत्नी का देहांत हो चुका है, बेटेबेटियां सुदूर प्रांतों और देशों में हैं. दशकों पूर्व जरमनी से अमेरिका आए उद्यमियों को लेक मिशिगन के तट पर बसा शहर बियर उद्योग की स्थापना के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा था. बे्रवरीज लगाई गईं, रिहाइश के लिए घर बनाए गए. शहरी इलाकों में भी तब सड़कें कच्ची हुआ करती थीं जिन पर घोड़े और बग्घियां चलती थीं. गैराज के बजाय घरों के आगे घोड़े या छोटीबड़ी बग्घी के लिए शेड होते थे.

जरमन बियर और इंजीनियरिंग का दुनिया में आज भी मुकाबला नहीं. उन  के घरों की पुख्ता नींवें बहुत गहरी हैं और सारी प्लंबिंग तांबे की. समयोपरांत ब्रेवरीज के रईस मालिक लेकड्राइव का रुख करते गए और बीच शहर में उन के घर ब्रेवरीज के इंजीनियर और ब्रियूमास्टर्ज खरीदते गए. मिशिगन लेक को छूती एकड़ों जमीन पर आज भी खड़े कुछ आलीशान मैन्शंज और उन के अपने गैस्टहाउस, केयरटेकर्ज कौटेजेज, ग्रीनहाउस, अस्तबल, बग्घीखाने उस युग के प्रतीक हैं. आज के युग में ऐसी इमारतों का रखरखाव लगभग असंभव है. जिन मैन्शंज के मालिक या वारिस नहीं रहे और जो नींवों में लेक का पानी रिसने से खंडहर हो चले, उन्हें डैवलपर्ज ने ढहा कर आधुनिक बंगले, बहुमंजिले मकान जिन्हें यहां कौन्डोज कहा जाता, बना डाले. गौर्डन के परनाना ब्रियूमास्टर थे और शहर के भीतर पुराने घर का विस्तार कर के उसे छोटे मैन्शन का रूप दिया था. उन्नत भाल पर टीके सी खूबसूरत खिड़की का अलग ही एक किस्सा सुनाते हैं.

गौर्डन के नाना इकलौती संतान थे और मैन्शन के उत्तराधिकारी. मैन्शन का विस्तार किया लेकिन उन के पुत्र यानी गौर्डन के मामा ने पादरी बनने का निर्णय ले लिया. मैन्शन पुत्री को मिला और उन के बाद नाती गौर्डन को. ईंटपत्थर की दोहरी दीवारों के बीच एअर स्पेस, लकड़ी के फर्श, मजबूत लकड़ी के डबल फ्रेम वाली खिड़कियां, दरवाजे और हर कमरे में फायर प्लेस व रेडिएटर हीटर्ज भीषण जाड़े में भी घर को आरामदेह रखते हैं. खुले, हवादार घर में एअरकंडीशनिंग की जरूरत भी नहीं पड़ती लेकिन बैठक की एक दीवार गरमी में बेहद गरम हो जाती थी. अधिक आराम के लिए गौर्डन ने एअरकंडीशनर भी लगाए. दीवार फिर भी गरम रहती. एअरकंडीशनर को कई बार जांचने पर भी कारण समझ नहीं आया तो प्लास्टर तोड़ा गया. नीचे दीवार में जड़ी मिली स्टैंडग्लास ही हस्तनिर्मित नायाब गोल खिड़की जिस से तेज धूप अंदर आती रही थी इसीलिए वहां पर प्लास्टर मढ़ दिया गया होगा. गौर्डन ने शीशे की वह खूबसूरत खिड़की निकाल कर घर में ऊपर के बैडरूम को जाती सीढि़यों में लैंडिंग की उस दीवार में फिर जड़वा दी जिस तरफ धूप का रुख नहीं रहता.

रैड लाइट- भाग 5 : सुमि के दिलोदिमाग पर हावी था कौन सा डर

हाउसिंग कौंप्लैक्स में मुद्दा उठा कि मकानमालिक सरकार से बस पैसे ऐंठते हैं और अपार्टमैंट्स के रखरखाव पर धेला नहीं खर्च करते. एक शातिर वकील ने मुद्दे को तूल दिया कि अपार्टमैंट्स की दीवारों पर मकानमालिक सस्ता पेंट करवाता है जिस में सीसा मिला होता है. घटिया पेंट बहुत जल्दी पपडि़यां बन कर उतरता है जिसे गे्रटा जैसे छोटे बच्चे अकसर मुंह में रख लेते हैं और बहुतों को मिरगी के दौरे पड़ने लगे हैं. ऐसे दौरे गे्रटा को भी पड़ने लगे तो कौंस्टेंस के दिमाग में खयाल कौंधा. वे शिकायती दल की प्रतिनिधि बन गईं और वकील की मदद से मकानमालिक व पेंट कंपनी, दोनों पर सामूहिक मुकदमा ठोंक दिया. अखबारों ने मामले को खूब उछाला. नतीजतन दावेदारों को भारी मुआवजा मिला जिस का लगभग आधा भाग वकील की जेब में गया. इलाके में सक्रिय राजनीतिक दल और सोशल डैवलपमैंट कमीशन ने हस्तक्षेप कर के सब दावेदारों को मकानमालिक के बेहतर हाउसिंग कौंप्लैक्स में अपार्टमैंट्स दिलवाए. पेंट कंपनी से भी भारी हर्जाना वसूल कर गे्रटा जैसे बाधित बच्चों के ताउम्र इलाज के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया.

मां की अत्यधिक व्यस्तता और तंगदस्ती की वजह से बेटे बिलकुल बेकाबू हो गए. वयस्क होते ही बड़ा बेटा अलग रहने लगा. कद्दावर शरीर के बल पर उसे एक नाइट क्लब में बाउंसर यानी दंगाफसाद करने वालों से निबटने की नौकरी मिल गई. कुछ समय बाद वह कैलिफोर्निया चला गया जहां वह फिल्मों में स्टंटमैन है. अपनी डांसर बीवी के साथ एक  छोटीमोटी टेलैंट एजेंसी चला रहा है जो फिल्म और टीवी की दुनिया में मौका पाने को आतुर भीड़ के लिए छोटेमोटे रोल जुटाती है. छोटे बेटे ने जैसेतैसे हाईस्कूल पास किया और कम्युनिटी कालेज से अकाउंटिंग और कंप्यूटर कोर्सेज पूरे कर के एक कार डीलर के यहां अकाउंटैंट बन गया. काम में होशियार था. अच्छा वेतन और बोनस कमाने लगा तो मां और बहन को छोड़ कर वह भी अलग हो लिया. जो भी कमाता वह गर्लफ्रैंड्स, कैसीनो और पब में उड़ा देता. खर्चीली आदतें बढ़ती गईं तो कर्ज लेने लगा और आखिरकार गबन करते पकड़ा गया.

कौंस्टेंस को जबरदस्त झटका लगा. रिचर्ड को खबर की. वे मिलने तो आए लेकिन जमानत से हाथ खींच लिया. बड़े बेटे से मदद मांगी तो उस ने मां को खरीखरी सुनाईं कि यदि खैरात के बजाय ईमानदारी व इज्जत से बेटे पाले होते तो ऐसी नौबत ही क्यों आती? सजायाफ्ता बेटे से मिलने जेल गई तो उस ने मुंह फेर लिया और कड़वे शब्दों में आइंदा मिलने आने के लिए मना कर दिया. मां ने बेटे से मिलने जाना नहीं छोड़ा. भले ही वह बात न करता था लेकिन दूर बैठ उसे जीभर देख कर वे लौट आती थीं.अपने ही खून से ऐसे घोर अपमान से कौंस्टेंस हिल गईं. उन्होंने अपनी शेष जिंदगी का रुख मोड़ने का निश्चय किया और विपन्न स्थिति में अपने जैसे हताश लोगों की मानसिकता बदलने के इरादे से सोशल डैवलपमैंट कमीशन के प्रयासों से जुड़ने की ठान  ली. आर्थिक सहायता के दावेदारों को सही और वाजिब अर्जियां दाखिल करने में मदद करने लगीं. अब अपने हाउसिंग कौंप्लैक्स की मुखिया हैं और इलाके में सक्रिय राजनीतिक दल की कार्यकर्त्ता.

बेटों के दिए सदमे से उबरने का अप्रत्याशित अवसर भी प्रकृति ने दिया. बड़े बेटेबहू के यहां लंबे इंतजार के बाद संतान हुई जिस के बारे में उन्हें बहुत समय बाद पता लगा. वह भी तब जब बरसों बाद रिचर्ड को अचानक अपने सामने पाया. उन से जाना के दोनों का पहला पौत्र मंदबुद्धि जन्मा है. कौंस्टेंस पर लगाए लांछन के लिए शर्मिंदा रिचर्ड स्वयं को क्षमा नहीं कर पा रहे थे. बडे़ बेटे ने भी कहलवाया कि मां को घोर विपत्ति से अकेले जूझने को छोड़ देने के लिए वह उन्हें अपना मुंह दिखाने के काबिल नहीं है. बापबेटे ने मिल कर प्रायश्चित करने की याचना की और गौर्डन के महल्ले में एक तालाबंद घर कौंस्टेंस को खरीदवा कर उस का पुनरुद्धार कर डाला जिस में वे रहती हैं. संबंधों के बीच बरसों पुरानी गहरी दरार पटनी मुश्किल है लेकिन रिचर्ड अब लगभग हर महीने मिलने आते हैं. बड़े बेटे ने भी पत्नी और बच्चे के साथ आने की इच्छा प्रकट की है. पिता और दोनों भाई ग्रेटा के हितचिंतक बने रहें, कौंस्टेंस इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहतीं. गुजारे लायक कमा लेती हैं. बढ़ती आयु के कारण गे्रटा की पूरी देखभाल अकेले करने में कठिनाई होने लगी तो उसे स्पैशल नीड्ज वालों के होम में डाल दिया जिस का खर्च ट्रस्ट उठाता है. बेटी की मैडिकल और रिक्रिएशनल जरूरतों के प्रति अब बेफिक्री है लेकिन वीकेंड पर उसे घर ले आती हैं और पड़ोस में रहने वाली सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स में से किसी न किसी को मदद के लिए बुला लेती हैं. सुमि सोचती है कि तभी गे्रटा को झोटे देती युवती का चेहरा जानापहचाना लगा.

छोटे बेटे ने भी जिंदगी से सबक सीखा. जेलयाफ्ताओं को मिलने वाली शैक्षणिक सुविधा का लाभ उठा कर उस ने कंप्यूटर सौफ्टवेयर डैवलपमैंट में मास्टर्स कर लिया. अच्छे आचरण के लिएउस की सजा की मियाद घटा दी गई है और जल्दी ही रिहाई के बाद उसे वहीं जेल में एजुकेटर की नौकरी भी मिल जाएगी. भाई और पिता की तरह वह भी अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदा है. पिछली विजिट में वे उसे अपने साथ आ कर रहने के लिए लगभग राजी कर आई हैं. सुमि सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स से भेंट करने के बारे में गौर्डन से मशविरा करती है तो वे उसे कौंस्टेंस की मदद लेने की सलाह देते हैं. एक फोटो लेने और इंटरव्यू के लिए सुमि कौंस्टेंस से पूछती है तो वे चौंक कर पीछे लौन पर नजर डालती हैं, ‘‘अनेदर टाइम,’’ कह कर टाल देती हैं. असमंजस से भरी सुमि उन से विदा ले कर गौर्डन के साथ बाहर आ जाती है.

असाइनमैंट सबमिट करने की डैडलाइन से पहले सुमि गौर्डन को फोन करती है कि स्टोरी लगभग पूरी है, सिर्फ सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स से इंटरव्यू और एकाध फोटो लेना बाकी है. वे कौंस्टेंस से मशविरा कर के वापस फोन करने का आश्वासन देते हैं. 2 दिन बाद वे सुमि को रैल्फ मैन्शन बुलाते हैं.वहां पहुंचने पर कौंस्टेंस भी मिलती हैं. गंभीर मुद्रा में वे सुमि से वचन लेती हैं कि जो कुछ भी उसे बताया जाएगा उसे वह अपने तक सीमित रखेगी, असाइनमैंट सबमिट करने से पहले उन्हें दिखाएगी और ऐसा भी हो सकता है कि वे स्टोरी के किसी अंश को सैंसर करना चाहें.

कौंस्टेंस बहुत मुलायम स्वर में कहना शुरू करती हैं कि मामला एक पुराने संभ्रांत महल्ले का है जो समय की मार से बुरी तरह घायल हुआ. उस के अच्छे समय की स्मृतियां संजोए गौर्डन, टायरोल और ऐग्नेस, मिल्ड्रेड और कौंस्टेंस जैसे कुछ लोग इलाके को रैड लाइट एरिया के नाम से बदनाम किए जाने से तिलमिलाए हुए हैं. इसीलिए समाज उद्धार पर कटिबद्ध सोशल डैवलपमैंट कमीशन से जुड़े हैं. सुमि की स्टोरी उन के प्रयास को बल देगी, इस आस्थावश सब ने उसे पूर्ण सहयोग दिया. अपने जीवन के अंतरंग पक्ष उस के साथ साझा किए. टायरोल और ऐग्नेस सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स की स्टूडैंट्स के महज मकानमालिक ही नहीं, सोशल डैवलपमैंट कमीशन द्वारा नियुक्त उन के अभिभावक भी हैं. वे युवतियां वयस्क हैं लेकिन उन के अतीत को एक रहस्य ही रहना होगा. वे बस बहुत कच्ची आयु से ही घोर प्रताड़ना और त्रासदी के भंवर में घिर कर आत्महत्या के कगार तक पहुंच गई थीं.

अवैध तरीकों से देश में लाई गई उन जैसी लड़कियां वेश्यावृत्ति करवाने वाले गिरोहों के चंगुल में फंसी गर्त में गिरती जाती हैं. कई मार दी जाती हैं या नशाखोरी अथवा एड्स की शिकार हो कर दर्दनाक मौत का शिकार बनती हैं. अलगअलग शहरों में पुलिस के छापों में पकड़ी गई ऐसी युवतियों को इमिग्रेशन वालों की सहायता से तत्काल नया रूपरंग, नई पहचान दे कर दूर भेज दिया जाता है और समाजसेवी संस्थाएं उन का पुनर्वास करती हैं.कौंस्टेंस के यहां पीछे बगीचे में गे्रटा को झूला झुलाती जो युवती सुमि को पहचानी सी लगी, वह प्योनी है. गौर्डन के साथ महल्ले में घूमते हुए सुमि ने दोमंजिले पोर्च में बैठी, बतियाती युवतियों के बीच उसे देखा होगा.

सर्टिफाइड नर्सिंग असिस्टैंट कोर्स पूरा होते ही इन युवतियों को फिर रीलोकेट कर दिया जाएगा ताकि उन के पिछले पदचिह्न मिटते रहें जब तक पिछला कोई भी सुराग बाकी न बचे. कार्सन दंपती का घर उन का स्थायी पुनर्वास नहीं, बल्कि एक कड़ी मात्र है. कुछ अन्यत्र कहीं नर्सिंग कालेज में डिगरी कोर्स पूरा करेंगी और आर्मी में जाएंगी. कुछ की अलगअलग शहरों में वृद्धों के नर्सिंग होम्स में नौकरी लगभग पक्की है. अन्य को शहरशहर घूमतेघूमते कोई ठिकाना मिल ही जाएगा जिस में वे बेखौफ रह सकेंगी. जिस घर में 10 युवतियां रहती हों उस का असामाजिक तत्त्वों की नजरों से बचना मुश्किल होता है. टायरोल और ऐग्नेस के घर के चक्कर लगाने वाली बिना पहचान की गाडि़यां पुलिस के विशेष सुरक्षा दस्ते की हैं. सुमि की स्टोरी को डिस्ंिटक्शन ग्रेड मिलता है. स्टोरी में सुमि ने यूनिवर्सिटी और सोशल डैवलपमैंट कमीशन के साझे इनीशिएटिव का संक्षिप्त वर्णन ही दिया जिस के तहत जरूरतमंद वर्ग छात्रवृत्तियों और रिहाइश जैसी अन्य सुविधाओं का लाभ उठा कर अपना भविष्य संवार रहा है. निष्ठावान निवासियों द्वारा इलाके की धूमिल छवि को सुधारने के लिए किए गए अथक प्रयासों के सजीव चित्रण के लिए जर्नलिज्म डिपार्टमैंट का अखबार उसे मुख्य फीचर बनाता है. शहर के प्रमुख दैनिक में उस का प्रचुर विवरण छपता है.

सुमि अखबार की कई प्रतियां गौर्डन, कौंस्टेंस, मिल्डे्रड और टायरोल के यहां पोस्ट कर देती है. यूनिवर्सिटी और सोशल डैवलपमैंट कमीशन की ओर से जर्नलिज्म डिपार्टमैंट का अखबार शहर के मुख्य दैनिक के साथ मुफ्त वितरित किया जाता है. ग्रैजुएशन डे पर सुमि को बधाई देने वालों में गौर्डन, कौंस्टेंस, मिल्ड्रेड, टायरोल और ऐग्नेस के साथ प्योनी और उस की साथिनें भी आती हैं. सब के साथ फोटो सुमि को बैस्ट अवार्ड लगता है. स्थानीय अखबार में सह संपादक सुमि अब डाउनटाउन के चप्पेचप्पे से वाकिफ हो चुकी है. विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फ ोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते हुए सुमि पुराने भय को याद कर के हंसे बिना नहीं रह पाती. उस इलाके में प्रौपर्टी डैवलपमैंट जोर पकड़ने लगा है और जमीन के भाव बढ़ रहे हैं

यूपी सरकार का सख्त निर्देश: गाड़ियों पर जाति और धर्म लिखने पर कटेगा चलान, देना पड़ेगा जुर्माना

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जातीय समीकरण बहुत ज्यादा अहम माना जाता है. इसकी झलक आपको लखनऊ के हर इलाके में देखऩे को मिल जाएगा. महज कुछ घंटे लखनऊ शहर में बीताने के बाद. पहले तो यह हर घर में देखने को मिलता था लेकिन अब यह 2 पहिए वाहन और चार पहिए वाहन पर भी देखने को मिल जाता है .

आमतौर पर लोग अपने कार के नेमप्लेट पर जातिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं. जैसे कार के पीछे नेमप्लेट पर नबर की जगह पर क्षत्रिय, जाट ,राजपूत, पंडित और मौर्य जैसे जातिक सूचक लिखवा कर चलते हैं.

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लेकिन अब आगे से ऐसा नहीं होने वाला है सरकार इस पर सख्त कदम उठाने वाली है. साथ ही ऐसे वाहनों के मालिकों के खिलाफ चलान कटवाई जाएगी.

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गाड़ियों पर अपने नाम और जाती को दर्शाना अब कार मालिकों का जेब भी ढीला करेगा. यूपी सरकार अब इस पर भी चलान काटने वाली है. इस पर यूपी सरकार ने निर्देश दिए हैं. यह आदेश केंद्रीय परिवाहन विभाग द्वारा दिया गया है.

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दरअसल सरकार को ऐसी शिकायते लंबे वक्त से मिल रही थी कि लोग अपनी कार पर जातिसूचक स्टीकर लगाकर घूम रहे हैं. जिसे साफ-साफ मालूम होता है कि आप इस हरकत से दूसरे जाति को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. लिहाजा एक सभ्य संसार में ऐसा करना सही नहीं है.

जिसे देखते हुए योगी सरकार ने इसके खिलाफ सख्त निर्देश जारी किए हैं.

बिग बॉस 14 : इस हफ्ते होगा डबल एलिमिनेशन , दर्शकों को लगेगा झटका

क्रिसमस और बिग बॉस होस्ट सलमान खान की जन्मदिन की वजह से इस सप्ताह बिग बॉस के घर में एलिमिनेशन नहीं हुआ है. बिग बॉस होस्ट सलमान खान के जन्मदिन को सभी ने खूब धूमधाम से मनाया है.वहीं अब सभी कंटेस्टेंट पर एलिमिनेशन की गाज गिरने वाली है.

आपने पिछले एपिसोड़ में देखा होगा कि कैप्टन विकास गुप्ता के अलावा सभी घर वाले नॉमिनेट होने वाले हैं. निक्की तम्बोली और एली गोनी की वजह से सभी घरवालों के ऊपर गाज गिरने वाला है.

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बता दें कि घर से बेघर होने के लिए राखी सावंत, राहुल महाजन, निक्की तम्बोली , अर्शी खान , राहुल वैदेय , एजाज खान और जैस्मिन भसीन नॉमिनेट हो चुके हैं. अमूमन देखा गया है कि जिस हफ्ते बिग बॉस के घर में एलिमिनेशन नहीं होता है उसके अलगे हफ्ते एलिमिनेशन हो जाता है.

 

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सोनाली फोगाट, जैस्मिन भसीन और राहुल महाजन इस हफ्ते कम कंटेट दे पाएं हैं. ऐसे में हो सकता है कि इन सभी लोगों में से किसी एक को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. अभी इस शो में मनु और दिशा परमार की वाइल्ड कार्ड एंट्री होने वाली है. मनु पंजाबी को पैर में चोट लगने की वजह से बीच में ही शो को छोड़कर जाना पड़ा था. वहीं मेंकर्स दिशा परमार को घर के अंदर इसलिए एंट्री करवा रहे हैं क्योंकि दर्शक राहुल वैद्य की कैमेस्ट्री देखने के लिए काफी ज्यादा बेकरार हैं.

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दिशा परमार को राहुल वैद्य ने घर के अंदर प्रपोज किया था जिसके बाद से घरवालों  के अलावा दर्शक भी दिशा परमार और राहुल वैद्य की कैमेस्ट्री देखने के लिए बेताब नजर आ रहे हैं.

बिग बॉस 14: कॉमेडियन भारती सिंह के पति हर्ष लिंबाचिया ने NCB पर किया कमेंट तो फैंस ने कहा शर्म करो

बिग बॉस 14 वीकेंड के वार में क्रिसमस सेलीब्रेट किया गया इस दौरान घर में सभी खूब मस्ती करते नजर आएं . ऐसे में बिग बॉस के घर हर्ष लिंबाचिया भी सभी के साथ हंसी ठहाके लगाते नजर आएं. बिग बॉस में हर्ष के आते ही पूरा घर हंसी ठहाके से गुंज उठा.

हर्ष लिंबाचिया ने घर के सभी सदस्यों के साथ जमकर मस्ती किया. इतना ही नहीं हर्ष लिंबाचिया ने मजे-मजे में एनसीबी और खुद की भी खिल्ली उड़ा दी. बीते एपिसोड में हर्ष लिंबाचिया कहते दिखे कि आज कल मेरे घर पर लोग सुबह होते ही आ जाते हैं.

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हर्ष लिंबाचिया कि ये बात सुनकर घर पर लोग हंसते दिखे . वह बात अलग है कि इस शो को देख रहे दर्शकों को हर्ष लिंबाचिया का अंदाज बिल्कुल भी पसंद नहीं आया.

अपनी ही कही हुई बात से हर्ष लिंबाचिया ट्रोलर का शिकार हो गए. फैंस का मानना है कि हर्ष लिंबाचिया इस बात को ज्यादा सीरियस नहीं ले रहे हैं.

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एक यूजर ने सोशल मीडिया पर कमेंट करते हुए कहा है कि हर्ष लिंबाचिया ने इस बात को खुद ही कबूल किया है कि यह एक ड्रग्स एडिक्ट है. शायद मेकर्स को यह बात समझ नहीं आ रहा है कि हर्ष लिंबाचिया एक क्रिमनल है.


वहीं एक यूजर ने लिखा है कि हमें लगता है कि हर्ष लिंबाचिया को बिग बॉस के घर से जानें की जगह रिहैब सेंटर जाना चाहिए. तो वहीं एक ने हर्ष को चरसी बता दिया.

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हालांकि इन सभी कमेंट को देखने के बाद से इस पर हर्ष लिंबाचिया और उनकी पत्नी भारती सिंह ने अभी तक कोई कमेंट नहीं किया है. हर्ष लिंबाचिया और भारती सिंह के ऊपर कुछ दिनों पहले ड्रग्स लेने का आरोप लगा था जिसके बारे में सफाई देने के लिए इन दोनों को एनसीबी ऑफिस जाना पड़ा था.

हालांकि फैंस अभी भी भारती सिंह को उतना ही प्यार देते हैं जितना पहले देते हैं. इन दिनों भारती सिंह कपिल शर्मा शो का हिस्सा है. जहां फैंस उन्हें देखऩा खूब पसंद करते हैं.

Winter Special: बादाम बिस्कोटी

इतावली खाना केवल पास्ता और पिज्जा के लिए मशहूर नहीं है बल्किकुछ स्नैक्स के लिए भी मशहूर तो आइए जानते हैं क्या बनाएं इतावली का मशहूर डिश. दरअसल, इतावली में बादाम बिस्कोटी को लोग बनाना और खाना खूब पसंद करते हैं. ऐसे में आज आपको इतावली बिस्किट के बनाने का तरीका बताते हैं.

समाग्री

मैदा

गेहूं का आटा

शक्कर

वेनिला एक्सेस

दूध

बादाम का बुरादा

लंबे कटे बादाम सुखा आटा

बादा का सत्

विधि

सबसे पहले आप पार्चमेंट पेपर को एक ट्रे में लगाकर रखें. अब आप ओवन को 350 f पर गर्म करें. एक कोटोरे में अब शक्कर और मक्खन को एक साथ मिलाएं रखें. अब इसको हैंड ब्लेड की मदद से अच्छे से फेट लें. लेकिन ध्यान रखें कि इसे आप एक ही दिशा में फेटे.

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अब इसमें वेनिला एक्सेंस डालें और कुछ देर के लिए फेटे, अब इसमें दूध डालकर अच्छे से मिलाएं, एक दूसरे कटोरे में मैदा आटा और बुरादा मिलाकर अच्छे से मिलाएं. अब मैदा के मिश्रण को थोड़ा-थोड़ा करके अच्छे से मिलाएं. साथ में क्रिम भी डालती रहें.

अगर मिश्रण थोड़ा कड़ा लग रहा है तो उसमें कुछ बूंद पानी मिलाएं और फिर इसे अच्छे से फेटते रहें. अब मिश्रण में कटे हुए बादाम डाले और फिर अच्छे से मिलाएं. अब इसको 2 बराबर भागों में बांटे.

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अब हाथों में थोड़ा सा आटा लें ले और फिर मिश्रण को हाथ में लेकर उसकी लोई बनाएं. मिश्रण को फैलाएं फिर इसे अच्छे से काट लें फिर इसे बेक होने के लिए रख दें . कम से कम इसे आप 5 मिनट तक इसे बेक करें .

अब आप इसे सर्व करें.

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